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20231101.hi_11627_4
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लड़का
मानव लिंग निषेचन पर निर्धारित होता है जब जीन टिक सेक्स ज़ीगोट को एक शुक्राणु सेल द्वारा प्रारंभ किया गया है। या तो एक एक्स या वाई गुणसूत्र होता है। यदि इस शुक्राणु कोशिका में एक X गुणसूत्र होता है, तो यह अंडाणु के X गुणसूत्र के साथ मेल खाएगा और एक लड़की विकसित होगा। Y गुणसूत्र ले जाने वाली शुक्राणु कोशिका के परिणामस्वरूप XY संयोजन होता है, और एक लड़का विकसित होगा।
0.5
1,197.159793
20231101.hi_11627_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A4%BE
लड़का
छह से सात सप्ताह के गर्भ में पुरुष भ्रूण में, "Y गुणसूत्र पर एक जीन की अभिव्यक्ति उन परिवर्तनों को प्रेरित करती है जिसके परिणामस्वरूप वृषण का विकास होता है"। लगभग नौ सप्ताह के गर्भ में, पुरुष भ्रूण द्वारा टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन के परिणामस्वरूप पुरुष प्रजनन प्रणाली का विकास होता है।पुरुष प्रजनन प्रणाली में बाहरी और आंतरिक दोनों अंग शामिल हैं। बाहरी अंगों में लिंग, अंडकोश, और अंडकोष (या वृषण) शामिल हैं। लिंग एक बेलनाकार अंग है जो स्पंजी ऊतक से भरा होता है। यह लड़कों द्वारा मूत्र को बाहर निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अंग है। खतना नामक प्रक्रिया में कुछ लड़कों के लिंग की चमड़ी को हटा दिया जाता है। अंडकोश लिंग के पीछे त्वचा की एक ढीली थैली होती है जिसमें अंडकोष होते हैं। अंडकोष अंडाकार आकार के गोनाड होते हैं। एक लड़के के पास आमतौर पर दो अंडकोष होते हैं। आंतरिक पुरुष प्रजनन अंगों में वास डिफेरेंस, स्खलन नलिकाएं, मूत्रमार्ग, सेमिनल वेसिकल्स और प्रोस्टेट ग्रंथि शामिल हैं।
0.5
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20231101.hi_11627_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A4%BE
लड़का
यौवन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चों के शरीर वयस्क शरीर में परिपक्व हो जाते हैं जो प्रजनन में सक्षम होते हैं। औसतन, लड़के ११-१२ साल की उम्र में यौवन शुरू करते हैं और १६-१७ साल की उम्र में यौवन पूरा करते हैं।
1
1,197.159793
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लड़का
लड़कों में, यौवन की शुरुआत अंडकोष और अंडकोश के बढ़ने के साथ होती है। लिंग का आकार भी बढ़ जाता है और एक लड़के के जघन बाल विकसित हो जाते हैं। एक लड़के के अंडकोष में भी शुक्राणु बनने लगते हैं। वीर्य का निकलना, जिसमें शुक्राणु और अन्य तरल पदार्थ होते हैं, स्खलन कहलाता है।
0.5
1,197.159793
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A4%BE
लड़का
एक लड़के का पहला स्खलन उसके विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।औसतन, एक लड़के का पहला स्खलन १३ साल की उम्र में होता है।कभी-कभी नींद के दौरान स्खलन होता है; इस घटना को रात उत्सर्जन के रूप में जाना जाता है।
0.5
1,197.159793
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A4%BE
लड़का
जब एक लड़का यौवन तक पहुंचता है, टेस्टोस्टेरोन माध्यमिक यौन विशेषताओं के विकास को ट्रिगर करता है। एक लड़के की मांसपेशियां आकार और द्रव्यमान में बढ़ जाती हैं, उसकी आवाज गहरी हो जाती है, उसकी हड्डियाँ लंबी हो जाती हैं और उसके चेहरे और शरीर का आकार बदल जाता है।यौवन के दौरान अंडकोष से टेस्टोस्टेरोन का बढ़ा हुआ स्राव पुरुष माध्यमिक यौन विशेषताओं को प्रकट करने का कारण बनता है।
0.5
1,197.159793
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A4%BE
लड़का
जो लड़के लिंग के नियमों का उल्लंघन करते हैं, उन्हें दुर्व्यवहार का अधिक खतरा हो सकता है, और लिंग-अनुरूप साथियों की तुलना में अधिक अवसाद का अनुभव हो सकता है, साथ ही माता-पिता और साथियों से सामाजिक कलंक
0.5
1,197.159793
20231101.hi_1269356_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8
बिम्ब-विधान
बिम्बों का प्रयोग साहित्य में आरम्भ से होता रहा है। प्रतीकों के विपरीत बिम्ब इन्द्रिय-संवेद्य होते हैं। अर्थात् उनकी अनुभूति किसी न किसी इन्द्रिय से जुड़ी रहती है। इसीलिए साहित्य में हमें दृश्य-बिम्बों के साथ-साथ श्रव्य, घ्राण और स्पर्श-बिम्बों का प्रयोग भी मिलता है। विश्व के परिवेश से रचनाकार कुछ दृश्य, कुछ ध्वनियाँ, कुछ स्थितियाँ उठाता है और अपनी कल्पना, संवेदना, विचार तथा भावना के योग से उन्हें तराश कर बिम्ब का रूप देता है। अपने कथ्य को संक्षेप, सघन रूप में प्रस्तुत करने के लिए, अपनी बात का प्रभाव बढ़ाने के लिए और किसी स्थिति को जीवन्त कर पाठक के सामने रख देने के लिए रचनाकार बिम्बों का प्रयोग करता है।
0.5
1,194.950154
20231101.hi_1269356_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8
बिम्ब-विधान
प्रश्न यह है कि कविता में बिम्बों और प्रतीकों का प्रयोग क्यों आवश्यक है? वस्तुतः बिम्ब और प्रतीक हमें अपनी बात सरलता से और चिर परिचित ढंग से कहने में सहायक होते हैं । यह कविता को अनावश्यक वर्णनात्मकता से बचाते हैं। पाठक पूर्व से ही उस बिम्ब के आंतरिक गुण से परिचित होते हैं इसलिए वे उन बिम्बों के मध्य से कही गयी बात को सरलता से आत्मसात कर लेते हैं । बिम्ब काव्यात्मकता का विशेष गुण है। इसके अभाव में कविता नीरस गद्य की तरह प्रतीत हो सकती है । इसके अलावा बिम्ब कविता को सजीव बनाते हैं, जीवन के विभिन्न आयामों को हम बिम्बों के मध्य से सटीक ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं। साहित्य की भाषा में बिम्ब अनेक प्रकार के बताये गए हैं जिनमे दृश्य, श्रव्य, स्वाद, घ्राण, स्पर्श आदि प्रमुख है , ऐंद्रिकता इनका केन्द्रीय भाव है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8
बिम्ब-विधान
वस्तुतः बिम्बों का महत्त्व कवि सदा से स्वीकार करते हैं। एक काव्यान्दोलन के रूप में बिम्बवाद के प्रवर्तन का श्रेय अंग्रेजी कवि टी.ई. ह्यूम (सन् 1883-1917) को है। उनके विचारों से प्रभावित कुछ अंग्रेजी तथा अमेरिकी कवियों- एजरा पाउण्ड, ऐमी लॉवेल, हिल्डा डूलिटिल, रिचर्ड एल्डिगंटन आदि ने सन् 1912 के आसपास काव्य लेखन का एक कार्यक्रम तय किया, जिसमें उन्होंने भावावेगपूर्ण, संगीतमय, रोमानी काव्यभाषा के स्थान पर चुस्त, तराशी हुई, सटीक तथा रोमन क्लासिकी काव्य के अनुशासन तथा सन्तुलन और चीनी, जापानी काव्य की सूक्ष्मता, संक्षिप्ति और सुगठन को अपनाया। एजरा पाउण्ड तथा ऐमी लॉवेल इस समूह के सबसे सक्रिय सदस्य कहे जा सकते हैं। वे सभी कवि थे और बिम्बवाद के सिद्धान्तकार भी। सन् 1915 में उन्होंने अपना एक घोषणा-पत्र निकाला और सन् 1924 में उनकी कविताओं का सहयोगी संकलन 'स्पेक्लेशन' नाम से प्रकाशित हआ।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8
बिम्ब-विधान
बिम्ब को पदचित्र, शब्दचित्र और 'मूर्त विधान' भी कहा जाता है। पाश्चात्य देशों में यह 'इमैजियम' नाम से एक आन्दोलन के रूप में चल पड़ा था। अंग्रेजी साहित्य के रोमांटिक कवियों ने इसे विशेष रूप से अपनाया था। उसी को हिंदी के छायावादी कवियों ने अपनाया।
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बिम्ब-विधान
टी.ई. हार्ल्म और फ्लींट ने बिम्ब पर विशेष कार्य किया है। बिम्ब प्रयोग के तीन प्रमुख लक्ष्य माने जाते हैं-
1
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बिम्ब-विधान
(३) काव्य निर्माण में संगीतात्मक नियम का निर्वाह, अर्थात् उसकी लय को घड़ी के लोलक के नियम से न बाँधना।
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बिम्ब-विधान
पहले के अंतर्गत पाठक कविता के विविध रूपों से इंद्रियगत अनुभव करता है। यानी आँख, कान, स्पर्श आदि से इंद्रिय बोध करता है। दूसरे के अन्तर्गत बिंब से काव्य सौंदर्य बढ़ता है। इसमें संक्षिप्तता, व्यंजकता और भास्वरता आदि शामिल है। दोनों का लक्ष्य संप्रेषणीयता को बढ़ाना ही है। इसके लिए कवि विशेष भाषा का प्रयोग करता है। शब्दों की जोड़ से बिंब का निर्माण करके वस्तु संप्रेषण करता है।
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बिम्ब-विधान
बिम्ब ग्रहण सरल कार्य भी है और संश्लिष्ट कार्य भी। इसमें कवि की प्रतिभा की अग्नि परीक्षा होती है। संश्लिष्ट होने पर बिंब दुरूह भी हो सकता है। वह भी भाषा प्रयोग का ही परिणाम है।
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बिम्ब-विधान
इस उदाहरण में चित्रों की एक क्रमबद्घ शृंखला है। राम की मानसिकता को स्पष्ट करने के लिए कवि ने चित्रों में क्षिप्रता और एक प्रकार का ऐंद्रिय आवेग-सा भर दिया है। प्रत्येक बिम्ब पूरे अर्थ की,
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स्कंदमाता
भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
0.5
1,194.131195
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स्कंदमाता
स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह (शेर) है।
0.5
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स्कंदमाता
नवरात्रि-पूजन के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है।
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स्कंदमाता
साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है। इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए। उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।
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1,194.131195
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स्कंदमाता
माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
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स्कंदमाता
सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त रहता है। यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है।
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स्कंदमाता
हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। इस घोर भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है।
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स्कंदमाता
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिए।
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स्कंदमाता
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।
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1,194.131195
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मामूट्टी
एम.टी. वासुदेवन नायर द्वारा लिखित तथा एम. आजाद द्वारा निर्देशित विल्कानुंडू स्वप्ननंगल, मामूट्टी की पहली उल्लेखनीय फिल्म थी। के.जी. जॉर्ज द्वारा निर्देशित मेला, जिसमें उन्होंने एक सर्कस कलाकार की भूमिका निभायी और आई.वी. शशि द्वारा निर्देशित तृष्णा, ने उन्हें एक नायक के रूप में पहचान दिलाई.
0.5
1,190.39824
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मामूट्टी
1982 में एक पुलिस अधिकारी की भूमिका में के.जी. जॉर्ज द्वारा निर्देशित जासूसी थ्रिलर यवनिका (1982) एक नए ट्रेंड की शुरुआत थी, जिससे आने वाले सालों में मामूट्टी को कई जासूसी थ्रिलर तथा एक्शन फिल्मों में एक सख्त पुलिस वाले की भूमिका निभाने का अवसर मिला।
0.5
1,190.39824
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मामूट्टी
1981 में, उन्हें अहिंसा में अपने अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता की श्रेणी में अपना पहला राज्य पुरस्कार मिला।
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1,190.39824
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80
मामूट्टी
1982 - 1984 की अवधि में मामूट्टी ने खुद को मुख्यधारा मलयालम सिनेमा में एक व्यावहारिक नायक के रूप में विकसित किया। पद्मराजन की कूडेविदे और जोशी की आ रात्री बॉक्स ऑफिस पर बेहद सफल रहीं। आल्कूताथिल थानिये और अदियोज्हुक्कुकल, जिनकी पटकथा एम्.टी. वासुदेवन नायर ने लिखी थी, जैसी फिल्मों में उनके अभिनय ने उन्हें एक सुद्ढ़ अभिनेता के रूप में स्थापित किया। .
0.5
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20231101.hi_166892_10
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मामूट्टी
1982 से 1986 तक की पांच वर्ष की अवधि में मामूट्टी ने नायक के रूप में 150 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया।
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1,190.39824
20231101.hi_166892_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80
मामूट्टी
आई.वी. शशि द्वारा निर्देशित तथा एम्.टी. द्वारा लिखित अदियोज्हुक्कुकल में करुनन की भूमिका में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में राज्य पुरस्कार और फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला। मामूट्टी ने बालू महेंद्रा द्वारा निर्देशित यात्रा के लिए स्टेट स्पेशल ज्यूरी पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेयर पुरस्कार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80
मामूट्टी
जीता जिसमें उन्होंने एक वन अधिकारी की भूमिका निभाई थी। 1985 में, जोशी द्वारा निर्देशित तथा डेनिस जोसफ द्वारा लिखित निराक्कूट्टू में रवि वर्मा की भूमिका में उन्हें अत्याधिक प्रशंसा मिली तथा इसने बॉक्स ऑफिस पर इतिहास भी रचा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80
मामूट्टी
मामूट्टी ने 1987 में रिलीज नई दिल्ली और थानियावार्थानाम के साथ वापसी की। नई दिल्ली एक अभिनेता के रूप में उनके जीवन की बहुत महत्वपूर्ण फिल्म थी। यह फिल्म थोड़ीबहुत "इरविंग वैलेस द्वारा लिखित "द अल्माईटी" उपन्यास पर आधारित थी।
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मामूट्टी
1988 में मामूट्टी ने मलयालम सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी हिट फिल्म ओरु सीबीआई डायरी कुरिप्पू दी। ओरु सीबीआई डायरी कुरिप्पू ने केरल तथा तमिलनाडु में बॉक्स ऑफिस पर इतिहास कायम किया। पहली सीबीआई फिल्म ओरु सीबीआई डायरी कुरिप्पू की अपार सफलता के पश्चात् इन्हीं कलाकारों के साथ तीन और मर्डर मिस्ट्री सीक्वल्स तैयार किये गए: जग्राथा (1989), सेथुरामा अय्यर सीबीआई (2004) और नेरारियाँ सीबीआई (2005), सभी का निर्देशन के.मधु व लेखांकन एस.एन.स्वामी ने किया तथा मामूट्टी ने सेथुरामा अय्यर - एक बुद्धिमान किन्तु साधारण से दिखने वाले सीबीआई ऑफिसर का किरदार निभाया।
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स्लोवाकिया
सन् 907 में मोरावियाई साम्राज्य के बिखर गया और सन् 1018 में स्लोवाकिया हंगेरियाई साम्राज्य का भाग बन गया। इस समय में क्षेत्र की आर्थिक उन्नति हुई और क्षेत्र में खदानों से सोना, चांदी, एवं तांबा निकाला गया। परन्तु सन् 1237 में पूर्व से तातार लोगों ने हमला कर दिया और अर्थव्यवस्था इससे डूब गयी। इन हमलों से बचाव के लिए साम्राज्य ने जर्मन लोगों को स्लोवाकिया के कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में बसने के लिए भेजा। इससे जर्मन लोगों का यहाँ आना शुरू हुआ जिसके नतीजतन कई खनन वाले शहरों में जर्मन लोग प्रमुख जनजातीय समूह बन गए।
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स्लोवाकिया
चौदवीं और सोलहवीं शताब्दी में हंगेइरियाई साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह हुए। इसके बाद तुर्कियों ने हंगरी पर कब्ज़ा कर लिया, परन्तु 1686 में हंगेरियन साम्राज्य ने उन्हें हरा दिया और स्लोवाकिया पर फिर हंगेरियन साम्राज्य का प्रभुत्व था।
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स्लोवाकिया
स्लोवाकिया पूर्वी यूरोप में स्थित है। यह सभी तरफ़ से ज़मीन से घिरा है (अर्थात इसकी किसी सीमा पर समुद्र या महासागर नहीं है)। इसका कुल क्षेत्रफल 49,035 वर्ग किलोमीटर है। इसके उत्तर में पोलैंड है, दक्षिण में हंगरी, पूर्व में यूक्रेन और पश्चिम में चेक गणराज्य एवं ऑस्ट्रिया। डैन्यूब नदी राष्ट्र की राजधानी ब्रातिस्लावा से गुज़रती है और हंगरी के साथ स्लोवाकिया की सीमा का काम करती है। देश का लगभग 30% इलाका पहाड़ी है।
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स्लोवाकिया
2008 के अनुसार, स्लोवाकिया की जनसंख्या 54,12,254 है और जनसंख्या घनत्व है 110 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर। 45% जनसंख्या 5,000 से कम जनसंख्या वाले गाँवों में रहती है। साक्षरता दर 99.6% है और औसत आयु 38.3 वर्ष। देश में 51.41% स्त्रियाँ हैं और 48.59% पुरुष। राष्ट्र के 86% लोग स्लोवाक हैं, 10% हंगेरियाई, 1.7% रोमा, 1.4% चेक, 0.3% रूसिन, 0.1% जर्मन, 0.1% पोलिश, 0.1% यूक्रेनीयाई और 0.07% मोरावियाई।
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स्लोवाकिया
स्लोवाकिया में 69% लोग रोमन कैथलिक हैं, 10% प्रोटेस्टेंट, 4% यूनानी कैथलिक और 0.9% कट्टरवादी ईसाई (ओर्थोडोक्स ईसाई)। स्लोवाकिया में 4,000 से भी कम यहूदी हैं।
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स्लोवाकिया
स्लोवाकिया एक संसदीय गणतंत्र है। इसके राष्ट्रीय परिषद में 150 सदस्य होते हैं जिन्हें हर 4 साल में आम चुनाव द्वारा चुना जाता है। सन् 2002 तक सांसद राष्ट्रपति का चुनाव किया करते थे और राष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार को कम-से-कम 90 सांसदों के मत हासिल करने होते थे। 2002 में स्लोवाकिया के संविधान में संशोधन किया गया और अब राष्ट्रपति आम चुनावों द्वारा चुने जाते हैं।
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स्लोवाकिया
स्लोवाकिया में 55 ज़िला न्यायालय हैं, 8 क्षेत्रीय न्यायालय (उच्च न्यायालय) हैं; और एक सर्वोच्च न्यायालय है। इसके अतिरिक्त एक संवैधानिक न्यायालय भी है।
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स्लोवाकिया
2008 में स्लोवाकिया का सकल घरेलू उत्पाद 95 अरब डॉलर था। 1 जनवरी 2009 को स्लोवाकिया यूरोज़ोन का भाग बन गया और यूरो ने स्लोवाकी क्राउन की जगह ले ली।
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स्लोवाकिया
स्लोवाकिया चारों तरफ से भूमि से घिरा हुआ देश है। यहाँ जलमार्ग से नहीं पहुंचा जा सकता। संसार से जुड़ने के लिए यह वायु और सड़क मार्ग पर निर्भर है। ब्रातिस्लावा हवाई अड्डा यहाँ का एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और राजधानी का प्रवेशद्वार है। यह आस्ट्रिया की राजधानी वियना के वियना अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र से बहुत नजदीक स्थित है।
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राजमुकुट
बीती सदियों के दौरान, क्रमशः पहले अंग्रेज़ी तथा तत्पश्चात् ब्रिटिश औपनिवेशिक विस्तार द्वारा यह संकल्पना विश्व के अन्य अनेक कोनों तक पहुची, और आज यह यूनाइटेड किंगडम के अतिरिक्त, अन्य 15 स्वतंत्र राष्ट्रों और तीन भिक्त मुकुटीय निर्भरताओं की प्रशासनिक प्रणाली तथा विधिकीय व्यवस्था के मूल आधारभूतियों में जड़ा हुआ है। इनमें से प्रत्येक राष्ट्र के शासन एक-दूसरे से पूर्णतः विभक्त हैं, परंतु सारे के सारे समान रूप से एक ही राजपरिवार को साझा करते हैं। अतः एक नरेश होने के बावजूद इन सारे राष्ट्रों के "राजमुकुट" एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। इस शब्द को और भी कई आधिकारिक शब्दों में देखा जा सकता है, उदाहरणस्वरूप:मुकुट के मंत्री, मुकुटीय भूमि(क्राउन लैण्ड), इत्यादि।
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राजमुकुट
मुकुट के इस वर्तमान, संकल्पना का विकास, सैकड़ों सालों के समय में इंग्लैण्ड में सामंतवादी व्यवस्था के दौरान हुआ है। पारंपरिक रूप से इंग्लैण्ड में शासन करने का परम अधिकार, केवल अधिराट् (संप्रभु) के हाथों में रहा है, तथा समस्त अधीनस्थ अधिकारीयों एवं प्रशासनिक व न्यायिक संस्थानों के शासन-अधिकार के अंत्यत् स्त्रोत, अधिराट् ही हुआ करते थे। अतः अदालतों तथा समस्त प्रशासनिक दस्तावेज़ों को "मुकुट" के संबोधन के शैली में लिखा जाता था, अर्थात, शासन को "राजमुकुट"(क्राउन) के नाम से संबोधित किया जाता था। संसद की स्थापना, मैग्ना कार्टा का लागू होन, तथा अंग्रेज़ी गृहयुद्ध जैसी घटनाओं के ज़रिए, अनेक वर्षों के अंतराल पर वास्तविक शासनाधिकार, क्रमशः मुकुट से संसद के हाथों में हस्तांतरित हो गया, परंतु शासन को उस ही शैली द्वारा संबोधित किया जाता था। यहां यह जानना जरूरी है कि ऐसा किसी स्थापित नियम के तहत नहीं है, लेकिन अनेक वर्षों में के काल में क्रमशः विकसित हुई परंपरा है।
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राजमुकुट
आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणाली में, दृढ़ राजतंत्रों के विरुद्ध, पदस्थ संप्रभु, केवल एक परंपरागत पद होता है, जिसकी आम तौर टर कोई भी वास्तविक शक्ति नहीं होती है। इसके विपरीत, सारे शासनाधिकार तथा शक्तियाँ, निर्वाचित सरकार के अधिकारियों के हाथों में होते हैं, और परंपरागत रूप से शासनाधिकार के धारक होने के नाते, शासक, केवल सरकर के प्रतिनिधि के परामर्श के अनुसार ही कार्य करते हैं। अतः, जहाँ पहले, "राजमुकुट" या "क्राउन" शब्द को राजसत्ता तथा राजतांत्रिक शासन व शासक के संबोधन के लिए उपयोग किया जाता था(जोकी उस समय शासन के समस्त पहलुओं का एकमात्र धारक हुआ करता था), वहीं, संसद की स्थापना तथा क्रमशः सारे सार्थक शासन-शक्तियों का, मुकुट से संसद के हाथों में हस्तांतरित होने के पश्चात्‌, आज यह शब्द मूलतः एक परंपरागत अवशेष है, जिसे आजकल, राज्य तथा सरकार या शासन को संबोधित करने के लिए उपयोग किया जाता है तथा राष्ट्रप्रमुख होने के नाते, संप्रभु को कथित "मुकुट" अतः "राज्य" के मानवीय प्रतिनिधि तथा प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
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राजमुकुट
अतः वर्तमान संवैधानिक-राजतंत्रिक व्यवस्था में "मुकुट" मूलतः, सर्कर को ही संबोधित करने का एक दूसरा तरीका है। तथा कथित "राजमुकुट" और "राजमुकुटीय संपत्ती" मूलतः राजकीय या सार्वजनिक संपत्ती है जिसे गणतांत्रिक देशों में आम शब्दों में सरकारी संपत्ति कहा जाता है। अतः इस संकल्पना के अनुसार, राजमुकुट और राजमुकुटीय संपत्ति, शासक तथा उनकी निजी संपत्ती से विभक्त है, अर्थात् राजमुकुटीय संपत्ति को शासक की निजी संपत्ति नहीं समझा जा सकता है। बलकी, राजमुकुटीय संपत्ति असल में सार्वजनिक या सरकारी संपत्ति होती है। बहरहात, अंत्यतः समस्त राष्ट्रमण्डल प्रदेश में तमाम संपत्तियों और धन का अंत्यत् मालिक मुकुट ही होता है, तथा समस्त स्वामीहीन संपत्तियों का भी मालिकत्व मुकुट का ही होता है।
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राजमुकुट
शासक को मुकुट तथा राज्य के जीवित मानवीय रूप में देखा जाता है। अतः नरेश की काया दो भिन्न व्यक्तित्वों की धारक होती है:एक सामान्य रूप से जन्मे मानव की, तथा, विधानों द्वारा, संपूर्ण रियासत की; अतः "धारनात्मक रूप से मुकुट तथा नरेश, दोनों विभक्त हैं, परंतु न्यायिक रूप से एक ही हैं।" राज्य,मुकुट, [अधिकारक्षेत्र] पर अपने अधिकार द्वारा, मुकुट..., [अधिकारक्षेत्र] पर अपने अधिकार द्वारा, महारानी... इत्यादि जैसे जुमले एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं और इनका इशारा शासक के विधिक व्यक्तित्व की ओर होता है।
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राजमुकुट
इस संदर्भ में अधिराट् सांसदो, राज्यपालों , राजप्रतिनिधियों, न्यायाधीशों , सशस्त्र बलों समेत अन्य सभी सरकारी कर्मचारियों के नियोक्ता (एम्प्लॉयर) हैं, सभी पोष्यपुत्रों के अभिभावक हैं(क्राउन वार्ड), तथा सभी राजकीय या सरकारी जमीनों (क्राउन लैण्ड) भवनों, संपत्तियों (क्राउन हेल्ड प्राॅपर्टी) और सरकारी कंपनियों के मालिक भी होते हैं इन साड़ी वस्तुओं पर मालिकत्व का अधिकार, उन्हें एक व्यक्ति नहीं, बल्कि शासक होने के उनके पद के अधिकार द्वारा प्राप्त है। अतः इन पर मलिकत्व के सारे अधिकार वे निजी इच्छा-अनुसार नही, बल्कि, संवैधानिक रूप से उनके पद पर निहित अधिकारों, शक्तियों और सीमाओं के आधार पर ही कर सकते हैं। अतः वे इस संपत्ति पर मालिकत्व के अधिकार का उपयोग केवल अपने संबंधित मंत्रियों की सलाह व स्वीकृति द्वारा ही कर सकते हैं।
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राजमुकुट
ऐतिहासिक तौर पर राजमुकुट को अविभाजनीय माना जाता था, परंतु समय के साथ यह धारणा भी परिवर्तित होती गयी, और आज, उन प्रत्येक प्रदेश, प्रांत या राज्य, जो अंग्रेज़ी मुकुट को राष्ट्रप्रमुख के रूप में देखते हैं, में, उस प्रदेश की स्वायत्तता की मात्र से बेमुरव्वत, स्वतंत्र माना जाता है। हालाँकि, मुकुट की पद, शक्तियां और अधिकार, स्थानीय कानूनों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। एक मुक़दमे की सुनवाई करते हुए लॉर्ड ऑफ़ अपील्स द्वारा कहा गया था की: "महारानी, जितनी इंग्लैंड, वेल्स, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड या यूनाइटेड किंगडम की हैं, उतनी ही न्यू साउथ वेल्स और मॉरिशस और उन्हें राष्ट्रप्रमुख की मानने वाले अन्य प्रदेशों की हैं।"
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राजमुकुट
प्रत्येक राष्ट्रमण्डल प्रदेश में राजमुकुट की संकल्पना सामान, परंतु विभक्त विधिक संकल्पनाएँ हैं। अतः राष्ट्रमंडलीय विधि में, एक अधिकारक्षेत्र को दुसरे से अलग करने के लिए न्यायिक दस्तावेज़ों में, "[अधिकारक्षेत्र] पर अधिकार धारी मुकुट..."(, , ला कूऱ़ून् दू च़़ेफ़ दु [अधिकारक्षेत्र]) उदाहरण: "The Crown in right of the United Kingdom..."("यूनाइटेड किंगडम पर अधिकार धारी राजमुकुट...") या '"La Couronne du chef du Québec"(उच्चारण:ला कूऱ़ून् दू च़़ेफ़ दु क़़ुबेक, "कुबेक पर अधिकार धारी मुकुट...") इसके अलावा The Crown in right of Canada, The Crown in right of Australia, The Crown in right of Papua New Guinea, इत्यादि, और क्योंकि, कैनडा और ऑस्ट्रेलिया संघीय राष्ट्र हैं, अतः प्रत्येक कैनेडियाई प्रांत और ऑस्ट्रेलियाई राज्य "पर अधिकार धारी राजमुकुट" भी हैं। मुकुट के अधिकारों को या अधिराट् द्वारा स्वयं या फिर उनके प्रतिनिधि द्वारा, संबंधित मंत्रियों या अधिकारियों की सलाह पर प्रयोग किया जाता है।
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राजमुकुट
जर्सी में, मुकुट के न्यायिक अधिकारियों द्वारा राजमुकुट के अधिकारों को परिभाषित किया जाता है। ऐसा कहा गया है की जेर्सी के सारे मुकुटिया भूमि जर्सी पर अधिकार धारी मुकुट के अधिकार में ही है, और वे यूके की मुकुट के क्राउन एस्टेट का हिस्सा नहीं हैं। सक्सेशन टू द क्राउन (जर्सी) विधान 2013 "जर्सी पर अधिकार धारी मुकुट के अधिकारों को परिभाषित करती है। इसी प्रकार के विधान आइल्स ऑफ़ मैन और गर्न्से के लिए भी हैं जो सम्बंधित मुकुटों को ब्रिटिश मुकुट से भिन्न बताते हैं।।
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जीपीआरऍस
GPRS सेवा या GSM सेवा (ध्वनि, SMS) से जुड़े होते हैं। एक सेवा से दूसरी सेवा के बीच परिवर्तन हस्तचालित होता है।
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जीपीआरऍस
एक ही समय में दो अलग आवृत्तियों पर प्रसारित करने के लिए, एक सच्चे वर्ग A उपकरण की आवश्यकता हो सकती है और इस तरह दो रेडियो की आवश्यकता होगी। इस महंगी आवश्यकता से बचने के लिए, एक GPRS मोबाइल दोहरी अंतरण विधा (DTM) को लागू कर सकता है। एक DTM-सक्षम मोबाइल, एक साथ ध्वनि और पैकेट डेटा का उपयोग कर सकता है, जहां नेटवर्क यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करता है कि एक ही समय में दो अलग आवृत्तियों पर प्रसारित करना आवश्यक नहीं है। ऐसे मोबाइलों को छद्म-वर्ग A माना जाता है, कभी-कभी इन्हें "सामान्य वर्ग A" के रूप में निर्दिष्ट करते हैं। 2007 में कुछ नेटवर्कों द्वारा DTM समर्थन की उम्मीद है।
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जीपीआरऍस
USB GPRS मॉडेम एक टर्मिनल सदृश इंटरफेस USB 2.0 का प्रयोग करते हैं और बाद में डाटा प्रारूप V.42bis और RFC 1144 और बाहरी एन्टेना का भी. मॉडेम को कार्ड के रूप में (लैपटॉप के लिए) या बाह्य USB उपकरण के रूप में, जिनकी आकृति और आकार एक कंप्यूटर माउस के समान है, जोड़ा जा सकता है।
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जीपीआरऍस
सबसे कम मजबूत, लेकिन सबसे तेज़, कोडिंग स्कीम (CS-4), एक बेस ट्रांसीवर स्टेशन (BTS) के निकट उपलब्ध है, जबकि सबसे मजबूत कोडिंग स्कीम (CS-1) को तब प्रयोग किया जाता है, जब मोबाइल स्टेशन (MS) BTS से और अधिक दूर है।
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जीपीआरऍस
CS-4 का उपयोग करते हुए, 20.0 kbit/s प्रति टाइम स्लॉट की उपयोगकर्ता गति को प्राप्त करना संभव है। हालांकि, इस योजना का उपयोग करने में सेल कवरेज सामान्य का 25% रहा है। CS-1, 8.0 kbit/s प्रति टाइम स्लॉट की उपयोगकर्ता गति को प्राप्त कर सकता है, लेकिन इसके पास सामान्य कवरेज का 98% है। अपेक्षाकृत नए नेटवर्क उपकरण, मोबाइल अवस्थिति के आधार पर स्थानांतरण गति को स्वतः अनुकूलित कर सकते हैं।
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जीपीआरऍस
GPRS के अलावा, दो अन्य GSM प्रौद्योगिकी मौजूद हैं, जो डेटा सेवाओं को प्रदान करती है: सर्किट-स्विच्ड डेटा (CSD) और हाई स्पीड सर्किट-स्विच्ड डेटा (HSCSD). GPRS के साझा स्वभाव के विपरीत, ये बल्कि एक समर्पित परिपथ की स्थापना करते हैं (आम तौर पर प्रति मिनट देय). कुछ अनुप्रयोग, जैसे वीडियो फ़ोन, HSCSD को पसंद कर सकते हैं, विशेष रूप से जब अंतिम छोरों के बीच डेटा का एक सतत प्रवाह है।
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जीपीआरऍस
GPRS के साथ GPS में प्रयुक्त बहु अभिगम पद्धति, फ्रीक्वेंसी डिविज़न डुप्लेक्स (FDD) और TDMA पर आधारित है। एक सत्र के दौरान, एक उपयोगकर्ता को एक जोड़ी अप-लिंक और डाउन-लिंक फ्रीक्वेंसी चैनल सौंपा जाता है। यह टाइम डोमेन सांख्यिकीय बहुसंकेतन के साथ संयुक्त होता है, यानी, पैकेट मोड संचार, जो कई उपयोगकर्ताओं द्वारा एक ही फ्रीक्वेंसी चैनल साझा करने को संभव बनाता है। एक GSM टाइम स्लॉट के अनुसार पैकेटों की स्थिर लंबाई होती है। डाउन-लिंक, पहले-आओ पहले-पाओ पैकेट अनुसूचन का उपयोग करता है, जबकि अप-लिंक काफ़ी हद तक आरक्षण ALOHA (R-ALOHA) जैसी प्रणाली का उपयोग करता है। इसका मतलब यह है कि स्लॉटेड ALOHA (S-ALOHA) का, एक विवाद चरण के दौरान आरक्षण पूछताछ के लिए प्रयोग होता है और उसके बाद गतिशील TDMA का उपयोग करते हुए वास्तविक डाटा को पहले-आओ पहले-पाओ अनुसूचन के साथ स्थानांतरित किया जाता है।
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जीपीआरऍस
एक GPRS संयोजन अपने एक्सेस पॉइंट नेम (APN) के संदर्भ द्वारा स्थापित होता है। अपन, सेवाओं को परिभाषित करता है जैसे वायरलेस एप्लीकेशन प्रोटोकॉल (WAP) अभिगम, संक्षिप्त संदेश सेवा (SMS), मल्टीमीडिया संदेश सेवा (MMS) और इंटरनेट संचार सेवाओं के लिए जैसे ईमेल और वर्ल्ड वाइड वेब.
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जीपीआरऍस
एक वायरलेस मॉडेम हेतु एक GPRS संयोजन स्थापित करने के लिए, उपयोगकर्ता के लिए एक APN निर्दिष्ट करना आवश्यक है, वैकल्पिक रूप से एक उपयोगकर्ता नाम और पासवर्ड और कदाचित ही एक IP पता, सभी नेटवर्क ऑपरेटर द्वारा प्रदत्त.
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आचार्यकुलम
आचार्यकुलम गुरुकुल पद्धति पर आधारित गुरुकुल शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पद्धति का एक आवासीय शैक्षणिक संस्थान है, जो भारत देश के उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार में स्थित है। इसका उद्घाटन 26 अप्रैल 2014 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा हुआ। यह संस्थान भारतीय योग-गुरु स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा संयुक्त रूप से संचालित है।
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आचार्यकुलम
आचार्यकुलम गुरुकुल पद्धति पर आधारित वैदिक शिक्षा और आधुनिक शिक्षा पर आधारित स्कूल है जो सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) से सम्बद्ध है। आचार्यकुलम में 5 वीं कक्षा से लेकर 12 वीं कक्षा तक शिक्षा दी जाती है। इसकी सबसे खास बात है कि यहाँ 8 वीं तक 50 प्रतिशत वैदिक और 50 प्रतिशत सीबीएसई का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। इसके बाद 8 वीं के 25 प्रतिशत वैदिक और 75 प्रतिशत सीबीएसई का सिलेबस होता है। साथ ही यह ऐसा पहला स्कूल है जहां विद्यार्थी को जितनी अंग्रेजी सिखाई जाती, उतना ही संस्कृत में भी पारंगत किया जाता है।
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आचार्यकुलम
(१) बहुआयामी व समग्र व्यक्तित्व का निर्माण करना ही शिक्षा का उद्देश्य है। शारीरिक, मानसिक , भावानात्मक, बौद्धिक व आध्यात्मिक रूप से छात्रों का सर्वांगीण विकास जिससे हो सके, वही आदर्श आर्ष शिक्षा प्रणाली आचार्यकुलम् में होगी।
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आचार्यकुलम
(२) सनातन श्रुतिपरम्पपरा के साथ-साथ अत्याधुनिक विधाओं व उपकरणों से सुसज्जित परिसर में सीबीएसई/एनसीईआरटी पाठ्यक्रम का समन्वय होगा।
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आचार्यकुलम
(४) यह विश्वस्तरीय सुविधाओं व इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ आध्यात्मिकता, चरित्र-निर्माण तथा सामाजिक व राष्ट्रीय नेतृत्व निर्माण की दिव्य कर्मस्थली होगी।
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आचार्यकुलम
(५) योग, आयुर्वेद पर आधारित स्वदेशी जीवन-पद्धति एवं पूर्ण सात्विक व पौष्टिक आहार छात्रों को उपलब्ध होगा।
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आचार्यकुलम
(६) भारतीय मूल संस्कृत भाषा के बोध व सम्भाषण से लेकर वेद-वेदांग, दर्शन, उपनिषद्, वैदिक संस्कृति, सभ्यता एवं संस्कारों के समग्र बोध के साथ अंग्रेजी भाषा, संभाषण, गणित, विज्ञान, कला, कौशल व क्रीडा आदि में निपुणता प्राप्त होगी।
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आचार्यकुलम
आचार्यकुलम खोलने के पीछे इसके संस्थापक बाबा रामदेव का उद्देश्य यह है कि वैदिक शिक्षा और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा मिले। आचार्यकुलम की स्थापना कर उनका मानना है कि इससे न सिर्फ भारतीय संस्कृति की रक्षा होगी बल्कि वैदिक ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में मदद मिलेगी। बाबा रामदेव का अगला लक्ष्य है कि देश के हर जिले में आचार्यकुलम की स्थापना हो, ऐसा नहीं है कि आचार्यकुलम में सिर्फ वैदिक शिक्षा ही दी जाती है बल्कि वैदिक शिक्षा और योग के साथ-साथ छात्रों को आधुनिक शिक्षा का ज्ञान भी दिया जाता है।
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आचार्यकुलम
आचार्यकुलम में प्रवेश लेने हेतु जनवरी में परीक्षा होती है। प्रवेश पाँचवीं कक्षा के लिए होता है। चयनित विद्यार्थियों को एक सप्ताह आचार्यकुलम में रखकर दोबारा परीक्षा होती है। परीक्षा में सफल होने वाले 80 छात्रों और 40 छात्राओं को प्रवेश मिलता है, इसके बाद उनकी शिक्षा दसवीं कक्षा तक चलती है। छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग छात्रावास की व्यवस्था है।
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खगड़िया
खगड़िया में केले, मक्का और मिरची की खेती प्रचुर मात्रा में होती है। गंगा, कोसी तथा गंडक यहाँ की मुख्य नदियाँ हैं। यह बिहार के महत्वपूर्ण जिलों में से एक है। कात्यायनी, श्यामलाल नेशनल हाई स्कूल और अजगैबिनाथ महादेव यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल है। इसका जिला मुख्यालय खगाड़िया शहर है। यह जिला सात नदियों गंगा, कमला बालन, कोशी, बूढ़ी गंडक,करहा, काली कोशी और बागमती से घिरा हुआ है। इसके अलावा, यह जिला सहरसा जिले के उत्तर, मुंगेर और बेगुसराय जिले के दक्षिण, भागलपुर और मधेपुरा जिले के पूर्व तथा बेगुसराय और समस्तीपुर जिले के पश्चिम से घिरा हुआ है। इस जगह को फरकिया के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि पांच शताब्दी पूर्व मुगल शासक के राजा अकबर ने अपने मंत्री तोडरमल को यह निर्देश दिया कि वह सम्पूर्ण साम्राज्य का एक मानचित्र तैयार करें। लेकिन मंत्री इस क्षेत्र का मानचित्र तैयार करने में सफल नहीं हो सका क्योंकि यह जगह कठिन मैदानों, नदियों और सघन जंगलों से घिरी हुई थी। यहीं वजह है कि इस जगह को फरकिया नाम दिया गया था। वर्तमान समय में यहां फराकियांचल टाइम्स नामक साप्‍ताहिक अखबार भी निकलता है।
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खगड़िया
प्रमुख व्यक्ति स्वर्गीय रामसेवक सिंह स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लड़ाई में कई बार जेल भी गए। ऐसे महान क्रांतिकारी बिहार के पुण्य भूमि में खगड़िया का रामनगर नामक ग्राम कोसी नदी के किनारे पर बसा है। यह जगह फरकिया का मशहूर है।
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खगड़िया
ये धरती आज भी केला के बहुत प्रशिद्ध है।बहुत से गांव में भदास फ़सलो के उपजाऊ के दृष्टिकोण से जाना जाता है।
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खगड़िया
जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर कात्यायनी स्थान है। इस जगह पर मां कात्यायनी का मंदिर है। इसके साथ ही भगवान राम, लक्ष्मण और मां जानकी का मंदिर भी है। प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार काफी संख्या में भक्त मंदिर में पूजा के लिए आते हैं। माना जाता है कि इस क्षेत्र में मां कात्यायनी की पूजा दो रूपों में होती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि कात्यायन ने कौशिक नदी, जिसे वर्तमान में कोशी के नाम से जाना जाता है, तट पर तपस्या की थी। तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर मां दुर्गा ने ऋषि की कन्या के रूप में जन्म लेना स्वीकार लिया। इसके बाद से उन्हें कत्यायनी के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त, ऐसा कहा जाता है कि लगभग 300 वर्ष पूर्व यह जगह सघन जंगलों से घिरी हुई थी। एक बार भक्त श्रीपत महाराज ने मां कत्यायनी को स्वप्न में देखा और उनके दिशानिर्देश से इस जगह पर मंदिर का निर्माण करवाया था।
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खगड़िया
खगड़िया शहर से सटे सन्हौली दुर्गास्थान में दशकों से मां दुर्गा विराजमान हैं । बड़ी संख्या में श्रद्धालु शक्तिपीठ मानकर यहां पूजा-अर्चना करते हैं। राज्य के विभिन्न हिस्सों के अलावा आसाम, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के श्रद्धालु भी मनोकामना पूरा होने पर यहां माता के दरबार में माथा टेकने व चढ़ावा चढ़ाने आते हैं।
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खगड़िया
खगड़िया जिले के बूढ़ी गंडक बाँध से सटे इस मंदिर में अनेकों क्षेत्र से भक्त पूजा अर्चना, शादी विवाह हेतु तथा दर्शन करने आते है। यहाँ मंदिर प्रांगण में योगाभ्यास किया जाता है,कुछ सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता सेवा हेतु मौजूद होते हैं।
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खगड़िया
इस हाई स्कूल की स्थापना 1910 ई॰ में हुई थी। स्कूल की स्थापना के लिए श्री श्यामलाल ने पर्याप्त भूमि दान की थी। इस स्कूल के विद्यार्थियों और शिक्षकों ने स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। स्वतंत्रता आंदोलन के समय यह स्थान क्रांतिकारियों के मिलने का प्रमुख स्थल रहा था।
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खगड़िया
यह जगह भागलपुर जिले के सुल्तानगंज में स्थित है। यह स्थान खगड़िया जिले अगुनिघाट के बहुत ही समीप है। यहां स्थित भगवान शिव का मंदिर ऊंचे पर्वत पर है। काफी संख्या में भक्त मंदिर में दर्शनों के लिए आते हैं। इस मंदिर की विशेषता है कि यह मंदिर गंगा नदी के तट पर है। जिस कारण भक्त गंगा नदी में स्नान करने के पश्चात् ही मंदिर में भगवान शिव के दर्शनों के लिए जाते हैं। यहां सावन के महीने में लाखों की तादाद में शिव भक्त आते हैं और जल भर के देवघर जल चढ़ाने जाते हैं सहरसा से आने वाले यात्री महेशखूंट जमालपुर मरैया होते हुए अगवानी जाते हैं और रास्ते में मरैया उन शिव भक्तों के लिए मरैया वासी उनसे भक्तों का काफी ख्याल रखते हैं तथा आदर सत्कार करते हैं और नींबू पानी गर्म पानी का व्यवस्था करते हैं।
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खगड़िया
सड़क मार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से खगड़िया आसानी से पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 31 से खगड़िया पहुंच सकते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%88
जनाबाई
जनाबाई दास्य भाव, वात्सल्य भाव, सख्य भाव के सोपान चढ़ते हुए मधुरा भक्ति तक पहुँच जाती हैं। अपने आप को विट्ठल की प्रेमिका कहती हैं और नितांत दैहिक अनुभवों की अभिव्यक्ति करती हैं -
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जनाबाई
यह श्रृंगारवर्णन करते-करते कुलीनता की सारी मर्यादाएँ त्यागकर जनाबाई स्वयं को व्यभिचारिणी घोषित करती हैं -
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जनाबाई
(सिर से सरककर आँचल कंधे पर आ चुका है। मैं भरे बाजार सिर उघाडे चल रही हूँ। अपने ईष्ट के लिए मुझे वेश्या बनना भी स्वीकार है। अब ईश्वर के घर जाने से मुझे भला कौन रोक पायेगा?) यहाँ अनायास पैरों में घुँगरु बांधकर गली-गली नाचने-गानेवाली राजरानी मीरा स्मरण हो आती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%88
जनाबाई
विट्ठल और जनाबाई के बीच के इस नाते से गुस्साई रुक्मिणी को विट्ठल अपने और जनाबाई के रिश्ते का बहुआयामीपन इस प्रकार समझाते हैं -
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जनाबाई
(हे रुक्मिणी, हमारे रिश्ते से तुम क्रोधित ना होना क्योंकि जनी मात्र मेरी प्रियतमा नहीं, वह तो हम दोनों के आश्रय में आया नन्हीं-सी पक्षिणी है, बच्ची है)
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जनाबाई
(मेरे मन को चुरानेवाले विट्ठल को मैंने अपने हृदय में बंद कर दिया है। याद कीजिए बाबा कबीर को, जो अपने ईष्ट को आँखों में बंद कर पलकें मूंदना चाहते हैं ताकि न वे किसी को देख पाएं ना उनके ब्रह्म किसी दूसरे को देख सके)
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जनाबाई
यहाँ एक बात अवश्य कहना चाहूँगी कि जनाबाई ऐसी एकमात्र कवयित्री हैं जिन्होंने लौकिक के माध्यम से अलौकिक अनुभूतियों की न केवल अभिव्यक्ति की बल्कि उन्हें प्रतिष्ठा भी प्रदान की। एक बात इसमें और जोड़ दूँ कि तत्कालीन समय में समकालीन कवि स्वयं को अत्यंत विरक्त एवं लौकिक जीवन से विमुख दिखाने का प्रयास करते थे। मुक्ताबाई की कट्टर योगिनी की प्रतिमा, उनके द्वारा मधुरा भक्ति को पूर्णतः अस्पृश्य रखना और पुरुष संतों का भी कमोबेश रुप में उसी लीक पर चलना सांसारिक जीवन से स्वयं को निर्लिप्त दिखाने की ही कोशिश थी। अब इस पृष्ठभूमि पर जनाबाई की खुली अभिव्यक्तियों ने कितना हड़कंप मचाया होगा और इसके चलते उन्हें क्या-क्या लांच्छन सहने पड़े होंगे, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन जनाबाई को इन बातों ने आहत नहीं किया क्योंकि वे लिंगातीत-देहातीत हो चुकी थीं, सुधबुध खो चुकी थीं -
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जनाबाई
सगुण भक्ति से निर्गुण की ओर मार्गक्रमण कितना सुंदर हो सकता है, इसका जीवंत उदाहरण जनाबाई की अनुभूतियों से उपजा काव्य है। उनकी रचना 'आत्मस्वरुप स्थिती'इसका सुंदर उदाहरण है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%88
जनाबाई
भक्ति के सभी रंगों की मनमोहक अभिव्यक्ति के अलावा जनाबाई की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि संत परंपरा में उन्होंने हर कवि-कवयित्री का मूल्यांकन बहुत ईमानदारी से किया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
केसरिया
केसरिया चंपारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है। यह पुरातात्विक महत्व का प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है।
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1,155.896221
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
केसरिया
केसरिया एक महत्‍वपूर्ण बौद्ध स्‍थल है। यह चंपारण में स्थित एक छोटा सा शहर है जो गंडक नदी के किनारे बसा हुआ है। इसका इतिहास काफी पुराना व समृद्ध है। बौद्ध तीर्थस्‍थलों में इसका महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर जाते हुए एक रात केसरिया में बिताई थी तथा लिच्‍छवियों को अपना भिक्षा-पात्र प्रदान किया था। कहा जाता है कि जब भगवान बुद्ध यहां से जाने लगे तो लिच्‍छवियों ने उन्‍हें रोकने का काफी प्रयास किया। लेकिन जब लिच्‍छवि नहीं माने तो भगवान बुद्ध ने उन्‍हें रोकने के लिए नदी में कृत्रिम बाढ़ उत्‍पन्‍न की। इसके पश्‍चात् ही भगवान बुद्ध यहां से जा पाने में सफल हो सके थे। सम्राट अशोक ने यहां एक स्‍तूप का निर्माण करवाया था। इसे विश्‍व का सबसे बड़ा स्‍तूप माना जाता है।
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केसरिया
भगवान बुद्ध जब महापरिनिर्वाण ग्रहण करने कुशीनगर जा रहे थे तो वह एक दिन के लिए केसरिया में ठहरें थे। जिस स्‍थान पर पर वह ठहरें थे उसी जगह पर कुछ समय बाद सम्राट अशोक ने स्‍मरण के रूप में स्‍तूप का निर्माण करवाया था। इसे विश्‍व का सबसे बड़ा स्‍तूप माना जाता है। वर्तमान में यह स्‍तूप 1400 फीट के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी ऊंचाई 104 फीट है। अलेक्‍जेंडर कनिंघम के अनुसार मूल स्‍तूप 70 फीट ऊंचा था।
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केसरिया
यह स्तूप आठ मंजिलो मे विभक्त है,जो अपने आप मे अपनी भव्यता को प्रदर्शित करती हैं।पहली मंजिल से लेकर सातवीं मंजिल तक एक क्रम में ब्रैकेटनुमा छोटा छोटा कमरा बना हुआ हैं,जिसमें महात्मा बुद्ध की कुछ मुर्तियो के अवशेष आज भी सुरक्षित हैं। जिन्हें देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कितना भव्य रहा होगा।इस इक्यावन फुट ऊँचे स्तूप में तकरीबन २०० के करीब में मूर्तियाँ रही होगी, जो आज लगभग अप्राप्य हैं।इसकी केवल अनुमान ही लगायी जा सकती है।
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केसरिया
यह केसरिया से दो मील दक्षिण में स्थित है। देवरा ही केसरिया के समृद्ध इतिहास का सबसे चमकता सितारा था। वर्तमान में यहां पर ईटों का एक विशाल टीला है। इस जगह का भगवान बुद्ध के जीवन में महत्‍वपूर्ण स्‍थान था।
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केसरिया
यह लिंगम भगवान केसरनाथ मंदिर में स्‍थापित है। इस लिंगम को केसरिया की सबसे अमूल्‍य निधि माना जाता है। यह लिंगम 1969 ई॰ में एक नहर की खुदाई के दौरान मिला था। स्‍थानीय लोगों का मानना है कि यह लिंगम ठीक उसी प्रकार का है जिस प्रकार का जिक्र अग्नि पुराण में मिलता है। इसी कारण स्‍थानीय लोगों का मानना है कि यह लिंगम बहुत प्राचीन है। श्रावण मास के प्रत्‍येक सोमवार और शुक्रवार को यहां भक्‍तों की काफी भीड़ होती है।
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केसरिया
केसरिया प्राचीन काल में सांस्‍कृतिक दृष्‍िट से एक महत्‍वपूर्ण स्‍थान था। केसरिया की यह सांस्‍कृतिक समृद्धता धक्‍कान्‍हा मठ के माध्‍यम से प्रतिबिंबित होती है। इस मठ का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। यह मठ जिला मुख्‍यालय से 7 किलोमीटर दक्षिण में धक्‍कान्‍हा गांव में स्थित है।
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केसरिया
यह एक समृद्ध पुस्‍तकालय है। इस पुस्‍तकालय में बहुत सी अमूल्‍य पुस्‍तके हैं। यहां गांधी जी से संबंधित अनेकों पुस्‍तके हैं। जैसा कि हम सभी लोग जानते है कि गांधी जी 1917 ई॰ में नील की खेती के विरोध में सत्‍याग्रह करने के लिए चंपारण आए थे। उस समय वे केसरिया भी आए थे। उस सत्‍याग्रह का केसरिया पर महत्‍वपूर्ण प्रभाव पड़ा था।
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केसरिया
यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा वैशाली में है। किन्तु आजकल वैशाली के लिये कोई उडान उपलब्ध नहीं है। वायुयान से पटना तक आकर वहाँ से केसरिया जाया जा सकता है।
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पूर्वानुमान
अज्ञात स्थितियों में तर्कपूर्ण आकलन (estimation) करने को पूर्वानुमान करना (Forecasting) कहते हैं। जैसे दो दिन बाद किसी स्थान के मौसम के बारे में अनुमान लगाना, एक वर्ष बाद किसी देश की आर्थिक स्थिति के बारे में कहना आदि पूर्वानुमान हैं। पूर्वानुमान के साथ अनिश्चितता और खतरा (Risk) का घनिष्ट सम्बन्ध है। आधुनिक युग में पूर्वानुमान के अनेकानेक उपयोग हैं; जैसे - ग्राहक की मांग की योजना बनाना।
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पूर्वानुमान
रेलगाड़ी के विकास ने विश्व भर में क्रांति ला दी, किन्तु इसे भी कई प्रकार के विरोध का सामना करना पड़ा। यूनिवर्सिटी कालेज, लन्दन के विद्वान प्रोफेसर डा लार्डर ने घोषणा की थी कि तेज गति से रेल यात्रा सम्भव नहीं है।
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पूर्वानुमान
हवा से भारी उड़ने वाली मशीनों का निर्माण असम्भव है : प्रख्यात वैज्ञानिक एवं वहाँ की रायल सोसायटी के अध्यक्ष लार्ड केल्विन ने १८९५ में यह भविष्यवाणी की थी। किन्तु इंसान उड़ा और वह भी सन १९०३ में ही। एडिसन ने भी इसके कुछ वर्ष पहले यह घोषणा की थी कि उड़ने वाली मशीन का निर्माण सम्भव नहीं है।
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