Chapter
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61
| Part
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76
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890
| Mesra
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2
| Text
stringlengths 18
34
|
---|---|---|---|---|
7 | 18 | 3 | 1 |
سپاس از جهاندار فریادرس
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7 | 18 | 3 | 2 |
نگیرد به سختی جز او دست کس
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7 | 18 | 4 | 1 |
دگر آفرین بر فریدون برز
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7 | 18 | 4 | 2 |
خداوند تاج و خداوند گرز
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7 | 18 | 5 | 1 |
همش داد و هم دین و هم فرهی
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7 | 18 | 5 | 2 |
همش تاج و هم تخت شاهنشهی
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7 | 18 | 6 | 1 |
همه راستی راست از بخت اوست
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7 | 18 | 6 | 2 |
همه فر و زیبایی از تخت اوست
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7 | 18 | 7 | 1 |
رسیدم به خوبی بتوران زمین
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7 | 18 | 7 | 2 |
سپه برکشیدیم و جستیم کین
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7 | 18 | 8 | 1 |
سه جنگ گران کرده شد در سه روز
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7 | 18 | 8 | 2 |
چه در شب چه در هور گیتی فروز
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7 | 18 | 9 | 1 |
از ایشان شبیخون و از ماکمین
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7 | 18 | 9 | 2 |
کشیدیم و جستیم هر گونه کین
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7 | 18 | 10 | 1 |
شنیدم که ساز شبیخون گرفت
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7 | 18 | 10 | 2 |
ز بیچارگی بند افسون گرفت
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7 | 18 | 11 | 1 |
کمین ساختم از پس پشت اوی
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7 | 18 | 11 | 2 |
نماندم به جز باد در مشت اوی
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7 | 18 | 12 | 1 |
یکایک چو از جنگ برگاشت روی
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7 | 18 | 12 | 2 |
پی اندر گرفتم رسیدم بدوی
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7 | 18 | 13 | 1 |
بخفتانش بر نیزه بگذاشتم
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7 | 18 | 13 | 2 |
به نیرو ازان زینش برداشتم
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7 | 18 | 14 | 1 |
بینداختم چون یکی اژدها
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7 | 18 | 14 | 2 |
بریدم سرش از تن بیبها
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7 | 18 | 15 | 1 |
فرستادم اینک به نزد نیا
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7 | 18 | 15 | 2 |
بسازم کنون سلم را کیمیا
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7 | 18 | 16 | 1 |
چنان چون سر ایرج شهریار
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7 | 18 | 16 | 2 |
به تابوت زر اندر افگند خوار
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7 | 18 | 17 | 1 |
به نامه درون این سخن کرد یاد
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7 | 18 | 17 | 2 |
هیونی برافگند برسان باد
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7 | 18 | 18 | 1 |
فرستاده آمد رخی پر ز شرم
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7 | 18 | 18 | 2 |
دو چشم از فریدون پر از آب گرم
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7 | 18 | 19 | 1 |
که چون برد خواهد سر شاه چین
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7 | 18 | 19 | 2 |
بریده بر شاه ایران زمین
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7 | 18 | 20 | 1 |
که فرزند گر سر بپیچید ز دین
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7 | 18 | 20 | 2 |
پدر را بدو مهر افزون ز کین
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7 | 18 | 21 | 1 |
گنه بس گران بود و پوزش نبرد
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7 | 18 | 21 | 2 |
و دیگر که کین خواه او بود گرد
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7 | 18 | 22 | 1 |
بیامد فرستادهٔ شوخ روی
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7 | 18 | 22 | 2 |
سر تور بنهاد در پیش اوی
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7 | 18 | 23 | 1 |
فریدون همی بر منوچهر بر
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7 | 18 | 23 | 2 |
یکی آفرین خواست از دادگر
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7 | 19 | 1 | 1 |
به سلم آگهی رفت ازین رزمگاه
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7 | 19 | 1 | 2 |
وزان تیرگی کاندر آمد به ماه
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7 | 19 | 2 | 1 |
پس پشتش اندر یکی حصن بود
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7 | 19 | 2 | 2 |
برآورده سر تا به چرخ کبود
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7 | 19 | 3 | 1 |
چنان ساخت کاید بدان حصن باز
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7 | 19 | 3 | 2 |
که دارد زمانه نشیب و فراز
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7 | 19 | 4 | 1 |
هم این یک سخن قارن اندیشه کرد
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7 | 19 | 4 | 2 |
که برگاشتش سلم روی از نبرد
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7 | 19 | 5 | 1 |
کلانی دژش باشد آرامگاه
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7 | 19 | 5 | 2 |
سزد گر برو بربگیریم راه
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7 | 19 | 6 | 1 |
که گر حصن دریا شود جای اوی
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7 | 19 | 6 | 2 |
کسی نگسلاند ز بن پای اوی
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7 | 19 | 7 | 1 |
یکی جای دارد سر اندر سحاب
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7 | 19 | 7 | 2 |
به چاره برآورده از قعر آب
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7 | 19 | 8 | 1 |
نهاده ز هر چیز گنجی به جای
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7 | 19 | 8 | 2 |
فگنده برو سایه پر همای
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7 | 19 | 9 | 1 |
مرا رفت باید بدین چاره زود
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7 | 19 | 9 | 2 |
رکاب و عنان را بباید بسود
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7 | 19 | 10 | 1 |
اگر شاه بیند ز جنگآوران
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7 | 19 | 10 | 2 |
به کهتر سپارد سپاهی گران
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7 | 19 | 11 | 1 |
همان با درفش همایون شاه
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7 | 19 | 11 | 2 |
هم انگشتر تور با من به راه
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7 | 19 | 12 | 1 |
بباید کنون چارهای ساختن
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7 | 19 | 12 | 2 |
سپه را به حصن اندر انداختن
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7 | 19 | 13 | 1 |
من و گرد گرشاسپ وین تیره شب
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7 | 19 | 13 | 2 |
برین راز بر باد مگشای لب
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7 | 19 | 14 | 1 |
چو روی هوا گشت چون آبنوس
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7 | 19 | 14 | 2 |
نهادند بر کوههٔ پیل کوس
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7 | 19 | 15 | 1 |
همه نامداران پرخاشجوی
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7 | 19 | 15 | 2 |
ز خشکی به دریا نهادند روی
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7 | 19 | 16 | 1 |
سپه را به شیروی بسپرد و گفت
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7 | 19 | 16 | 2 |
که من خویشتن را بخواهم نهفت
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7 | 19 | 17 | 1 |
شوم سوی دژبان به پیغمبری
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7 | 19 | 17 | 2 |
نمایم بدو مهر انگشتری
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7 | 19 | 18 | 1 |
چو در دژ شوم برفرازم درفش
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7 | 19 | 18 | 2 |
درفشان کنم تیغ های بنفش
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7 | 19 | 19 | 1 |
شما روی یکسر سوی دژ نهید
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7 | 19 | 19 | 2 |
چنانک اندر آید دمید و دهید
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7 | 19 | 20 | 1 |
سپه را به نزدیک دریا بماند
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7 | 19 | 20 | 2 |
به شیروی شیراوژن و خود براند
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7 | 19 | 21 | 1 |
بیامد چو نزدیکی دژ رسید
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7 | 19 | 21 | 2 |
سخن گفت و دژدار مهرش بدید
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7 | 19 | 22 | 1 |
چنین گفت کز نزد تور آمدم
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7 | 19 | 22 | 2 |
بفرمود تا یک زمان دم زدم
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7 | 19 | 23 | 1 |
مرا گفت شو پیش دژبان بگوی
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7 | 19 | 23 | 2 |
که روز و شب آرام و خوردن مجوی
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7 | 19 | 24 | 1 |
کز ایدر درفش منوچهر شاه
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7 | 19 | 24 | 2 |
سوی دژ فرستد همی با سپاه
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7 | 19 | 25 | 1 |
تو با او به نیک و به بد یار باش
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7 | 19 | 25 | 2 |
نگهبان دژ باش و بیدار باش
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7 | 19 | 26 | 1 |
چو دژبان چنین گفتها را شنید
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7 | 19 | 26 | 2 |
همان مهر انگشتری را بدید
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7 | 19 | 27 | 1 |
همان گه در دژ گشادند باز
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7 | 19 | 27 | 2 |
بدید آشکارا ندانست راز
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7 | 19 | 28 | 1 |
نگر تا سخنگوی دهقان چه گفت
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7 | 19 | 28 | 2 |
که راز دل آن دید کو دل نهفت
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7 | 19 | 29 | 1 |
مرا و تو را بندگی پیشه باد
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7 | 19 | 29 | 2 |
ابا پیشهمان نیز اندیشه باد
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