Chapter
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61
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76
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890
| Mesra
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2
| Text
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34
|
---|---|---|---|---|
7 | 14 | 18 | 1 |
چنان تیره شد روز روشن ز گرد
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7 | 14 | 18 | 2 |
تو گفتی که خورشید شد لاجورد
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7 | 14 | 19 | 1 |
ز کشور برآمد سراسر خروش
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7 | 14 | 19 | 2 |
همی کرشدی مردم تیزگوش
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7 | 14 | 20 | 1 |
خروشیدن تازی اسپان ز دشت
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7 | 14 | 20 | 2 |
ز بانگ تبیره همی برگذشت
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7 | 14 | 21 | 1 |
ز لشگر گه پهلوان تا دو میل
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7 | 14 | 21 | 2 |
کشیده دو رویه رده ژندهپیل
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7 | 14 | 22 | 1 |
ازان شصت بر پشتشان تخت زر
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7 | 14 | 22 | 2 |
به زر اندرون چند گونه گهر
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7 | 14 | 23 | 1 |
چو سیصد بنه برنهادند بار
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7 | 14 | 23 | 2 |
چو سیصد همان از در کارزار
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7 | 14 | 24 | 1 |
همه زیر برگستوان اندرون
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7 | 14 | 24 | 2 |
نبدشان جز از چشم ز آهن برون
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7 | 14 | 25 | 1 |
سراپردهٔ شاه بیرون زدند
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7 | 14 | 25 | 2 |
ز تمیشه لشکر بهامون زدند
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7 | 14 | 26 | 1 |
سپهدار چون قارن کینهدار
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7 | 14 | 26 | 2 |
سواران جنگی چو سیصدهزار
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7 | 14 | 27 | 1 |
همه نامداران جوشنوران
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7 | 14 | 27 | 2 |
برفتند با گرزهای گران
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7 | 14 | 28 | 1 |
دلیران یکایک چو شیر ژیان
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7 | 14 | 28 | 2 |
همه بسته بر کین ایرج میان
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7 | 14 | 29 | 1 |
به پیش اندرون کاویانی درفش
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7 | 14 | 29 | 2 |
به چنگ اندرون تیغهای بنفش
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7 | 14 | 30 | 1 |
منوچهر با قارن پیلتن
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7 | 14 | 30 | 2 |
برون آمد از بیشهٔ نارون
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7 | 14 | 31 | 1 |
بیامد به پیش سپه برگذشت
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7 | 14 | 31 | 2 |
بیاراست لشکر بران پهندشت
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7 | 14 | 32 | 1 |
چپ لشکرش را بگرشاسپ داد
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7 | 14 | 32 | 2 |
ابر میمنه سام یل با قباد
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7 | 14 | 33 | 1 |
رده بر کشیده ز هر سو سپاه
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7 | 14 | 33 | 2 |
منوچهر با سرو در قلبگاه
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7 | 14 | 34 | 1 |
همی تافت چون مه میان گروه
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7 | 14 | 34 | 2 |
نبود ایچ پیدا ز افراز کوه
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7 | 14 | 35 | 1 |
سپه کش چو قارن مبارز چو سام
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7 | 14 | 35 | 2 |
سپه برکشیده حسام از نیام
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7 | 14 | 36 | 1 |
طلایه به پیش اندرون چون قباد
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7 | 14 | 36 | 2 |
کمین ور چو گرد تلیمان نژاد
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7 | 14 | 37 | 1 |
یکی لشکر آراسته چون عروس
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7 | 14 | 37 | 2 |
به شیران جنگی و آوای کوس
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7 | 14 | 38 | 1 |
به تور و به سلم آگهی تاختند
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7 | 14 | 38 | 2 |
که ایرانیان جنگ را ساختند
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7 | 14 | 39 | 1 |
ز بیشه بهامون کشیدند صف
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7 | 14 | 39 | 2 |
ز خون جگر بر لب آورده کف
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7 | 14 | 40 | 1 |
دو خونی همان با سپاهی گران
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7 | 14 | 40 | 2 |
برفتند آگنده از کین سران
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7 | 14 | 41 | 1 |
کشیدند لشکر به دشت نبرد
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7 | 14 | 41 | 2 |
الانان دژ را پس پشت کرد
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7 | 14 | 42 | 1 |
یکایک طلایه بیامد قباد
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7 | 14 | 42 | 2 |
چو تور آگهی یافت آمد چو باد
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7 | 14 | 43 | 1 |
بدو گفت نزد منوچهر شو
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7 | 14 | 43 | 2 |
بگویش که ای بیپدر شاه نو
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7 | 14 | 44 | 1 |
اگر دختر آمد ز ایرج نژاد
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7 | 14 | 44 | 2 |
ترا تیغ و کوپال و جوشن که داد
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7 | 14 | 45 | 1 |
بدو گفت آری گزارم پیام
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7 | 14 | 45 | 2 |
بدین سان که گفتی و بردی تو نام
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7 | 14 | 46 | 1 |
ولیکن گر اندیشه گردد دراز
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7 | 14 | 46 | 2 |
خرد با دل تو نشیند براز
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7 | 14 | 47 | 1 |
بدانی که کاریت هولست پیش
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7 | 14 | 47 | 2 |
بترسی ازین خام گفتار خویش
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7 | 14 | 48 | 1 |
اگر بر شما دام و دد روز و شب
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7 | 14 | 48 | 2 |
همی گریدی نیستی بس عجب
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7 | 14 | 49 | 1 |
که از بیشهٔ نارون تا بچین
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7 | 14 | 49 | 2 |
سواران جنگند و مردان کین
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7 | 14 | 50 | 1 |
درفشیدن تیغهای بنفش
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7 | 14 | 50 | 2 |
چو بینید باکاویانی درفش
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7 | 14 | 51 | 1 |
بدرد دل و مغزتان از نهیب
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7 | 14 | 51 | 2 |
بلندی ندانید باز از نشیب
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7 | 14 | 52 | 1 |
قباد آمد آنگه به نزدیک شاه
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7 | 14 | 52 | 2 |
بگفت آنچه بشنید ازان رزم خواه
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7 | 14 | 53 | 1 |
منوچهر خندید و گفت آنگهی
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7 | 14 | 53 | 2 |
که چونین نگوید مگر ابلهی
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7 | 14 | 54 | 1 |
سپاس از جهاندار هر دو جهان
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7 | 14 | 54 | 2 |
شناسندهٔ آشکار و نهان
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7 | 14 | 55 | 1 |
که داند که ایرج نیای منست
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7 | 14 | 55 | 2 |
فریدون فرخ گوای منست
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7 | 14 | 56 | 1 |
کنون گر بجنگ اندر آریم سر
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7 | 14 | 56 | 2 |
شود آشکارا نژاد و گهر
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7 | 14 | 57 | 1 |
به زور خداوند خورشید و ماه
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7 | 14 | 57 | 2 |
که چندان نمانم ورا دستگاه
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7 | 14 | 58 | 1 |
که بر هم زند چشم زیر و زبر
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7 | 14 | 58 | 2 |
بریده به لشکر نمایمش سر
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7 | 14 | 59 | 1 |
بفرمود تا خوان بیاراستند
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7 | 14 | 59 | 2 |
نشستنگه رود و میخواستند
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7 | 15 | 1 | 1 |
بدان گه که روشن جهان تیره گشت
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7 | 15 | 1 | 2 |
طلایه پراگنده بر گرد دشت
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7 | 15 | 2 | 1 |
به پیش سپه قارن رزم زن
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7 | 15 | 2 | 2 |
ابا رای زن سرو شاه یمن
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7 | 15 | 3 | 1 |
خروشی برآمد ز پیش سپاه
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7 | 15 | 3 | 2 |
که ای نامداران و مردان شاه
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7 | 15 | 4 | 1 |
بکوشید کاین جنگ آهرمنست
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7 | 15 | 4 | 2 |
همان درد و کین است و خون خستنست
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7 | 15 | 5 | 1 |
میان بسته دارید و بیدار بید
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7 | 15 | 5 | 2 |
همه در پناه جهاندار بید
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7 | 15 | 6 | 1 |
کسی کو شود کشته زین رزمگاه
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7 | 15 | 6 | 2 |
بهشتی بود شسته پاک از گناه
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7 | 15 | 7 | 1 |
هر آن کس که از لشکر چین و روم
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7 | 15 | 7 | 2 |
بریزند خون و بگیرند بوم
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7 | 15 | 8 | 1 |
همه نیکنامند تا جاودان
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7 | 15 | 8 | 2 |
بمانند با فرهٔ موبدان
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Subsets and Splits
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