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मेसोथेलियोमा
पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा के लक्षणों में वजन घटना और कैशेक्सिया (Cachexia), जलोदर (पेट में बनने वाला एक द्रव) के कारण पेट में सूजन और दर्द शामिल हैं। पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा के अन्य लक्षणों में आंतों में रूकावट, खून जमने में समस्या, रक्ताल्पता और बुखार शामिल हो सकते हैं। यदि कैंसर मेसोथेलियम से बाहर शरीर के अन्य भागों तक फैल गया हो, तो इसके लक्षणों में दर्द, निगलने में तकलीफ और गरदन या चेहरे पर सूजन आदि शामिल हो सकते हैं।
0.5
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मेसोथेलियोमा
गंभीर मामलों में, व्यक्ति के शरीर में ट्युमर भी बन सकता है। व्यक्ति में न्यूमोथोरैक्स, या फेफड़े द्वारा कार्य बंद कर देने, की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। रोग बढ़ सकता है और शरीर के अन्य भागों तक फैल सकता है।
0.5
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मेसोथेलियोमा
पेट को प्रभावित करने वाले ट्युमर सामान्यतः तब तक कोई लक्षण उत्पन्न नहीं करते, जब तक कि वे बहुत बाद वाले चरण तक न पहुंच जाएं. लक्षणों में शामिल हैं:
0.5
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मेसोथेलियोमा
डिसेमिनेटेड इन्ट्रावैस्क्युलर कोएग्युलेशन, एक समस्या जिसके कारण शरीर के अनेक अंगों में भीषण रक्त-स्राव होता है
1
600.965083
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मेसोथेलियोमा
सामान्यतः मेसोथेलियोमा अस्थियों, मस्तिष्क या अधिवृक्क ग्रंथि तक नहीं फैलता. फेफड़ों के ट्युमर सामान्यतः केवल फेफड़ों के एक ओर ही पाये जाते हैं।
0.5
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मेसोथेलियोमा
एस्बेस्टस के साथ कार्य करना मेसोथेलियोमा के लिये प्रमुख जोखिम कारक है। संयुक्त राज्य अमरीका में, एस्बेस्टस असाध्य मेसोथेलियोमा का प्रमुख कारण है और इसे "निर्विवाद" रूप से मेसोथेलियोमा के विकास से जुड़ा हुआ माना जाता है। वस्तुतः एस्बेस्टस और मेसोथेलियोमा के बीच संबंध इतना अधिक गहरा है कि कई लोग मेसोथेलियोमा को एक "संकेत (singal)" या "पहरेदार (sentinel)" ट्युमर ही मानते हैं। अधिकांश मामलों में, एस्बेस्टस से संपर्क का इतिहास पाया जाता है। हालांकि, कुछ लोगों में एस्बेस्टस से किसी ज्ञात संपर्क के बिना भी मेसोथेलियोमा होने की जानकारी मिली है। दुर्लभ मामलों में, मेसोथेलियोमा को विकिरण चिकित्सा, इन्ट्राप्लुरल थोरियम डाइऑक्साइड (थोरोट्रास्ट) और अन्य रेशेदार सिलिकेट, जैसे एरियोनाइट, के अंतःश्वसन से जोड़कर भी देखा जाता रहा है। कुछ अध्ययन दर्शाते हैं कि सिमियन वाइरस एसवी40 (SV40) मेसोथेलियोमा के विकास में एक सहायक कारक के रूप में कार्य कर रहा हो सकता है।
0.5
600.965083
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मेसोथेलियोमा
एस्बेस्टस प्राचीन काल में भी ज्ञात था, लेकिन उन्नीसवीं सदी के पूर्व तक इसे खानों से नहीं निकाला जाता था और व्यावसायिक रूप से इसका बड़े पैमाने पर उपयोग नहीं किया जाता था। द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान इसका प्रयोग बहुत अधिक बढ़ गया। सन 1940 के दशक के प्रारंभ से ही लाखों अमरीकी मजदूर एस्बेस्टस कणों के संपर्क में आ चुके थे। प्रारंभ में, एस्बेस्टस के संपर्क में आने के जोखिमों की जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं थी। हालांकि, बाद में यह पाया गया कि जलपोत कारखानों, एस्बेस्टस की खानों और मिलों में काम करने वाले लोगों, एस्बेस्टस उत्पादों के उत्पादकों, ताप और निर्माण उद्योगों के मजदूरों और अन्य व्यवसाय करने वालों में मेसोथेलियोमा विकसित होने का जोखिम बहुत अधिक होता है। आज संयुक्त राज्य अमरीका के ऑक्युपेशनल सेफ्टी एन्ड हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन (ओशा [OSHA]) तथा संयुक्त राज्य अमरीका के ईपीए (EPA) का आधिकारिक दृष्टिकोण यह है कि अमरीकी कानूनों के द्वारा आवश्यक बताये गये सुरक्षा मापदंड और "अनुमतियोग्य संपर्क सीमाएं", हालांकि एस्बेस्टस-संबंधी अधिकांश गैर-असाध्य रोगों को रोक पाने के लिये पर्याप्त हैं, लेकिन फिर भी वे एस्बेस्टस संबंधी कैंसरों, जैसे मेसोथेलियोमा, को रोक पाने या उसके प्रति सुरक्षा प्रदान कर पाने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। इसी प्रकार, ब्रिटिश सरकार के हेल्थ एन्ड सेफ्टी एक्ज़ीक्यूटव (एचएसई [HSE]) ने औपचारिक रूप से कहा है कि मेसोथेलियोमा के लिये कोई भी सीमा बहुत निचले स्तर पर होनी चाहिये और यह बात व्यापक तौर पर स्वीकार की जाती है कि यदि ऐसी कोई सीमा मौजूद भी हो, तब भी वर्तमान में उसे परिमाणित नहीं किया जा सकता. अतः व्यावहारिक उद्देश्यों के लिये, एचएसई (HSE) यह मानती है कि कोई "सुरक्षित" सीमा अस्तित्व में नहीं है। अन्य लोगों ने भी यह पाया है कि ऐसी किसी सीमा की उपस्थिति का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है, जिसके नीचे मेसोथेलियोमा का जोखिम न हो। ऐसा प्रतीत होता है कि दवा की खुराक और इसकी प्रतिक्रिया के बीच एक रेखीय संबंध है, जिसके अनुसार दवा की खुराक बढ़ाने पर बीमारी भी बढ़ती जाती है। इसके बावजूद, मेसोथेलियोमा को एस्बेस्टेस के संक्षिप्त, निम्न-स्तरीय या अप्रत्यक्ष संपर्क से जोड़ा जा सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभाव के लिये आवश्यक खुराक की मात्रा पल्मनरी एस्बेस्टॉसिस या फेफड़ों के कैंसर की तुलना में एस्बेस्टस-प्रेरित मेसोथेलियोमा के लिये कम होती है। पुनः एस्बेस्टस से संपर्क के लिये कोई सुरक्षित स्तर नहीं है क्योंकि यह मेसोथेलियोमा के बढ़े हुए जोखिम के साथ संबंधित है।
0.5
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मेसोथेलियोमा
मेसोथेलियोमा उत्पन्न करने के लिये एस्बेस्टस से संपर्क की अवधि संक्षिप्त हो सकती है। उदाहरणार्थ, केवल 1-3 माह के संपर्क में भी मेसोथेलियोमा उत्पन्न होने के मामले लेखबद्ध किये गये हैं। एस्बेस्टस के साथ काम करने वाले लोग इसके संपर्क से जुड़े जोखिम को कर करने के लिये व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण पहनते हैं।
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वास्तुक
३. वास्तुक के लिए निर्माण की व्यावहारिक विधियों का, सामग्री के उपयुक्त उपयोग का, उसके गुणधर्म का और निर्माण संबंधी विशेषज्ञता तथा आपेक्षिक मितव्ययिता का भली भाँति ज्ञान होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त भवनों के स्थायित्व संबंधी आवश्यक ज्ञान देने के लिए उसे संरचना इंजीनियरी सिखाई जाती है।
0.5
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वास्तुक
४. निर्माण में होनेवाले व्यय का और प्रयुक्त होनेवाली सामग्र के परिमाण का सही सही अनुमान लगाने के लिए उसे प्राक्कलन और विशिष्टियाँ सिखाई जाती हैं। उचित और स्वस्थ जीवननिर्वाह की सृष्टि में वह और भी दक्ष हो सके, इसलिए स्वच्छता, स्वास्थ्य विज्ञान, संवातन और जलवायु का अध्ययन उसे कराया जाता है। भवनों में विद्युत्‌, यांत्रिकीय उपकरणों और ध्वानिकी के प्रयोग के संबंध में सामान्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए वह इनका अध्ययन करता है। जीवन का पर्यावरण सुधारने के लिए वह स्थल-दृश्य-वास्तु सीखता है। गृह निर्मांण तथा पुरनिवेश की व्यापकता तथा उपयोग समझने के लिए वास्तुक उनका अध्ययन करता है। संतोषजनक आजीविका की पृष्ठभमि तैयार करने के लिए वह अधीक्षण, ठेके की शर्तों और व्यावसायिक व्यवहारसंहिता का अध्ययन करता है।
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वास्तुक
५. केवल वैज्ञानिक ज्ञान पर्याप्त नहीं होता, अपितु सार्वभौम भाषा आलेखन के माध्यम से विचार व्यक्त करने में वास्तविक प्रवीणता अत्यंत महत्वपूर्ण है। वह जन्मजात हो सकती है, अथवा मुक्तहस्त या अन्य वास्तुआलेखों का अध्ययन करके विकसित की जा सकती है। वास्तुक को, सफल होने के लिए, अपनी कलात्मक योग्यता का विकास करना आवश्यक है, ताकि वह उपयुक्त माध्यम द्वारा विचार व्यक्त करके अपने ग्राहकों का विश्वास प्राप्त कर सके।
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वास्तुक
६. स्थानीय निकायों और प्रधिकरणों के नियमों एवं विनियमों को जानना और उनका अर्थ निकाल सकना वास्तुक के लिए आवश्यक है। उसमें ठेका, करार, मूल्यन और इसी प्रकार के कानूनी दस्तावेज तैयार करने की योग्यता होनी चाहिए। व्यवहार में वास्तुक के लिए यह भी आवश्यक हो जाता है कि वह अपने ग्राहक के धन की बड़ी बड़ी राशियों का लेनदेन करे और सदा सतर्क रहे कि आर्थिक, या कानूनी मामलों में ग्राहक किसी कठिनाई में न आने पाए।
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वास्तुक
७. आजकल इमारतों के विविध प्रकार और उनके निर्माण की विधियाँ इतनी अधिक है कि किसी वास्तुक का अपने काम की प्रत्येक शाखा में प्रवीण होना असंभव है। इसलिए वह प्राय: निवास भवन, विद्यालय, चिकित्सालय, प्रेक्षागृह, फ्लैट, या अन्य किसी एक प्रकार की इमारत की वास्तुकला में विशेषज्ञता प्राप्त करना पसंद करता है। इसके लिए स्नातकोत्तर अध्ययन की आवश्यकता होती है। भारत में अभी ऐसी कोई संस्था स्थापित नहीं हुई, जहाँ वास्तुकला में स्नातकोत्तर अध्ययन करके कोई मास्टर की उपाधि प्राप्त कर सके। इसलिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोगों को विदेश जाना पड़ता है। किंतु बिना विशेषज्ञता प्राप्त किए भी अधिकांश दशाओं में भाँति भाँति की इमारतों का संतोषजनक काम चलाने के लिए वास्तुक सक्षम होता है, पर एक या अधिक सलाहकार की आवश्यकता हो सकती है। वास्तुक बहुधा विशेषज्ञों के एक दल का, जिसमें संरचना इंजीनियर, तापन और संवातन इंजीनियर, ध्वानिकी विशेषज्ञ, प्रकाश इंजीनियर, भू-सर्वेक्षक, मात्रा आगणक, स्वास्थ्य इंजीनियर और भू-दृश्य सलाहकार होते हैं, संयोजक बन जाता है। विशाल और जटिल प्रकार की इमारत ग्राहक के इच्छानुसार अत्यंत संतोषजनक ढंग से तैयार कराने में विशेषज्ञों के दल का संयोजक होने के नाते, वास्तुक उनके काम में समन्वय स्थापित करता है।
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वास्तुक
८. वास्तुकला का व्यवसाय सच्चा और संमाननीय है। वास्तुक अपने काम में उतना ही उसाही और निष्ठावान्‌ होता है जितना एक कुशल वकील या सहानुभूतिपूर्ण चिकित्सक। केवल धन कमाने के लिए वास्तुशास्त्र की शिक्षा लेनेवाला युवक कभी सच्चा वास्तुक नहीं बन सकता। वास्तुक को अपने व्यवसाय को सर्वाधिक महत्व देना चाहिए और उसका मान बढ़ाना चाहिए।
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वास्तुक
९. वास्तुक के योगदान के लिए पहली शर्त यह है कि वह व्यक्तियों और समाजों की आवश्यकता को समझे। फिर द्वितीय शर्त यह है कि वह परिस्थितिविशेष में उन आवश्यकताओं का सही सही विश्लेषण करे। तीसरी शर्त है, कि उसमें कमरों के उचित विन्यास और दिक्स्थान के साथ उनका समन्वय करने की योग्यता हो। चौथी शर्त है कि वह स्थल विशेष में सामान्य नकशों की सादी और सस्ती रचनापद्धति और सुधरी तथा मितव्ययी सामग्री एवं निर्माण विधियों में हुई गवेषण के साथ समन्वय करे। पाँचवीं शर्त है कि चूँकि वास्तुसंबंधी आकल्पों और अभिव्यक्तियों में दार्शनिक चेष्टाएँ अनुपात और मौलिकता रो नियंत्रित रहती हैं, ताकि वे मुखर हो सकें। इसलिए नियमों से नहीं बल्कि सिद्धांतों से स्पष्टीकरण करते हुए उसे कार्य का उद्देश्य और लक्ष्य सिद्ध करना चाहिए। छठी बात जो वास्तुक में अपेक्षित है, वह यह कि उपकरणों से, सामग्री के उपयोग और अनुप्रयोग से उसकी आयोजना इस प्रकार घुल मिल जाए कि उसके साथी प्रयोक्ता के लिए सुविधा, स्वास्थ्य और आनंदप्रद अवस्था सदा बनी रहे।
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वास्तुक
१०. कठोर प्रशिक्षणयुक्त शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध होने से वास्तु व्यवसाय को अब पर्याप्त मान्यता मिली है। अत: इसके लिए इसे राज्य का प्रोत्साहन, संबद्ध व्यवसायों का सहयोग और हर तरह के भवन निर्माण करने की इच्छा रखने वाले का आश्रय मिलना चाहिए। इमारतों के आकल्पन और निर्माण के लिए, अनुग्राही स्वभाव वाला, तकनीक योग्यतावाला और सुविधा, स्वास्थ्य एवं आनंदप्रद परिस्थितियाँ उत्पन्न करनेवाली गंभीर मौलिकता वाला वास्तुक ही उपयुक्त व्यक्ति है जिससे संपर्क स्थापित करना चाहिए।
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वास्तुक
११. इस समय भारत में चूँकि सरकार और जनता सार्वजनिक और निजी भवनों में गहरी रुचि लेने लगी है, इसलिए वास्तुक के लिए रोजगार के अवसर बड़े अच्छे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आवास समस्या सर्वोपरि हो गई है। इसके अतिरिक्त भारतीय गणतंत्र योजनाकालीन विकास कार्यों द्वारा तेजी से सुदृढ़ आधार वाला एक नया सामाजिक ढाँचा खड़ा करने में लगा हुआ है, जिसमें मानव के दैनिक जीवन के पर्यावरण का आकल्पी वास्तुक अत्यंत महत्वपूर्ण योग देगा। उन्हें लोक निर्माण विभाग जैसी सरकारी संस्थाओं, शिक्षा संस्थाओं, नगर नियोजन विभागों, स्थानीय निकायों, ग्रामोत्थान कार्यों, निजी फर्मों और आजीविका के निमित्त खोले हुए अपने ही कार्यालयों में काम मिलेगा। इस प्रकार व्यवसाय करनेवाले सभी व्यक्तियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण हैं : व्यवसाय कुशलता, व्यवहार चातुर्य और पेशे के लिए आवश्यक क्षमता।
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599.130056
20231101.hi_248866_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87
बैले
इटली में बैले की शुरुआत पंद्रहवीं शताब्दी में नवजागरण न्यायलय संस्कृति में बाड़ लगाने वाले एक नृत्य के तौर पर हुई, जो आगे सत्रहवीं शताब्दी में लुई चौदहवें के कार्यकाल से फ्रांसीसी सभा में और विकसित हुआ। यह बैले की मुख्यतः फ्रांसीसी शब्दावली में परिलक्षित होता है। अठारहवीं सदी में नोवेरे के महान सुधारों के बावजूद 1830 के बाद फ्रांस में बैले का पतन शुरू हो गया, हालांकि यह डेनमार्क, इटली और रूस में जारी रहा. इसे पश्चिमी यूरोप में प्रथम विश्व युद्ध से पहले रूस की एक कंपनी द्वारा दोबारा से पेश किया गया: सर्गेई डायाघिलेव का बैले रसेस, जो कि पूरे विश्व भर में काफी प्रभावशाली बन गया। बोलशेविक क्रांति के बाद अकाल और अशांति के बाद भागने वाली कई प्रशिक्षित नर्तकियों के लिए डायाघिलेव की ये कंपनी एक गंतव्य बन गई थी। इन नर्तकियों ने जार के शासन के तहत फलने-फूलने वाले कई नवीन प्रकारों तथा शैलियों को इस नृत्य के मूल स्थान तक वापस लाने में अहम भूमिका निभाई.
0.5
594.93568
20231101.hi_248866_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87
बैले
20वीं सदी में भी बैले का विकास निरंतर जारी रहा और कंसर्ट डांस पर जबरदस्त प्रभाव रहा. उदाहरण के लिए आपको बता दें कि अमेरिका में कोरियोग्राफर जॉर्ज बैलेंशाइन ने नृत्य की जो शैली विकसित की वो नवशास्त्रीय बैले के रूप में जानी जाती है। उसके बाद के विकासों में शामिल हैं समकालीन बैले और पोस्ट-स्ट्रक्चरल बैले, जो कि जर्मनी में विलियम फॉर्सिथे की कृतियों में दिखाई देता है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87
बैले
बैले शैलियों में शास्त्रीय बैले सबसे व्यवस्थित है; यह पारंपरिक बैले तकनीक का पालन करता है। उत्पत्ति के क्षेत्रों को लेकर इनमें विभिन्नता है, जैसे रूसी बैले, फ्रांसीसी बैले, डेनमार्क का बोर्नोविले बैले और इतालवी बैले, हालांकि विगत दो सदियों के ज्यादातर बैले मुख्य रूप से ब्लैसिस की शिक्षा पर ही आधारित है। सबसे ज्यादा लोकप्रिय बैले शैलियों की बात करें तो उनमें रूसी विधि, इतालवी विधि, डेनमार्क की विधि, बैलेंशाइन विधि या न्यूयॉर्क सिटी बैले विधि और इंग्लैंड में तैयार हुए सेसेत्ति विधि से निकले रॉयल एकेडेमी ऑफ डांस और रॉयल बैले स्कूल शामिल है। इस नृत्य के लिए सबसे पहले इस्तेमाल किये जाने वाले नुकीले जूते, वास्तव में चप्पलें होती थीं जिनकी नोक पर भारी काम (रफू) किया होता था। इससे नर्तकी को थोड़े समय के लिए अपने पैरों के अंगूठे पर खड़े होने में मदद मिलती है। बाद में इसे एक सख्त बॉक्स में तब्दील कर दिया गया जिसका आज भी इस्तेमाल किया जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87
बैले
नवशास्त्रीय बैले वो बैले शैली है जो पारंपरिक बैले की शब्दावली तो इस्तेमाल करती है, लेकिन ये शास्त्रीय बैले जैसी कठोर नहीं है। उदाहरण के लिए, नर्तकियां ज्यादा चरम रफ्तार में नृत्य करती हैं और ज्यादा तकनीकी तरीके का प्रदर्शन करती हैं। नवशास्त्रीय बैले में स्पेसिंग आमतौर पर शास्त्रीय बैले से काफी आधुनिक या जटिल होता है। हालांकि नवशास्त्रीय बैले में संगठन ज्यादा विविध है, संरचना पर ध्यान केंद्रित रखना नवशास्त्रीय बैले की मुख्य विशेषता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87
बैले
बैलेंशाइन अपनी कंपनी न्यूयॉर्क सिटी बैले में आधुनिक नर्तकों को नृत्य के लिए लेकर आये थे। ऐसे ही एक नर्तक थे पॉल टेलर जिन्होंने 1959 में बैलेंशाइन के एपिसोड्स पर प्रदर्शन किया था। बैलेंशाइन ने आधुनिक नृत्य कोरियोग्राफर मार्था ग्राहम के साथ भी काम किया, जिससे उन्हें आधुनिक तकनीक तथा विचारों के संपर्क में आने में मदद मिली. इस अवधि के दौरान टेटले ने जानबूझकर बैले और आधुनिक तकनीकों को मिलाकर प्रयोग करना शुरू कर दिया था।
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20231101.hi_248866_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87
बैले
फ्रॉम पेटिपा टू बैलेंशाइन के लेखक टिम स्कॉल का मानना है कि 1928 में जॉर्ज बैलेंशाइन का अपोलो पहला नवशास्त्रीय बैले है। अपोलो में सर्गेई डायघिलेव के निराकार बैले की वापसी के तौर पर प्रदर्शित किया था।
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20231101.hi_248866_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87
बैले
समकालीन बैले नृत्य की वो शैली हो जो शास्त्रीय बैले और आधुनिक नृत्य दोनों से प्रभावित है। इसने अपनी तकनीक और केंद्रित काम का इस्तेमाल शास्त्रीय बैले से लिया, हालांकि इसमें चाल में ज्यादा रेंज की गुंजाइश होती है जो कि बैले तकनीक के तहत सख्त बॉडी लाइन में पालन कर पाना मुश्किल हो सकता है। फ्लोर वर्क और पैरों की कलाबाजी समेत इसकी ज्यादातर अवधारणाएं 20वीं शताब्दी के आधुनिक नृत्य के विचारों और आविष्कारों से ही आई हैं।
0.5
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20231101.hi_248866_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87
बैले
नवशास्त्रीय बैले के विकास में जॉर्ज बैलेंशाइन को अक्सर समकालीन बैले के अग्रणियों में पहला माना जाता है। मिखाइल बैरिशनिकोव ने बैलेंशाइन के लिए थोड़े से वक्त के लिए नृत्य किया, वो किरोव बैले प्रशिक्षण का उदाहरण थे। 1980 में बैरिशनिकोव को जब अमेरिकी बैले थिएटर का कलात्मक निदेशक नियुक्त किया गया तब उन्होंने मुख्य तौर पर तायला थार्प जैसे कई आधुनिक कोरियोग्राफर्स के साथ काम किया। थार्प ने 1976 में एबीटी और बैरिशनिकोव के लिए पुश कम्स टू शोव को कोरियाग्राफ्ड किया; 1986 में उन्होंने अपनी कंपनी के लिए द अपर रूम तैयार किया। प्वांइटेड जूतों और प्रशिक्षित शास्त्रीय नर्तकियों से समकालीन बैले के साथ-साथ आधुनिक चाल के इस्तेमाल की वजह से इन दोनों ही नमूनों को आविष्कारी माना जाता है।
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बैले
तायला थार्प ने रॉबर्ट जॉफ्रे द्वारा 1957 में स्थापित जॉफ्रे बैले कंपनी के लिए भी काम किया। 1973 में उन्होंने जॉफ्रे के लिए ड्यूस कूप कोरियोग्राफ किया जिसमें उन्होंने पॉप संगीत और आधुनिक तथा बैले तकनीक के मेल का इस्तेमाल किया। जॉफ्रे बैले ने समकालीन नमूनों का प्रदर्शन जारी रखा, जिनमें से कई को सह-संस्थापक गेराल्ड अर्पिनो ने कोरियोग्राफ किया था।
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क्लासिक
प्राचीन ग्रीस और रोम का साहित्य कालविस्तार, वस्तु और विधाओं की विविधता, शिल्पगत समृद्धि और यूरोपीय साहित्य और संस्कृति की मुख्य प्रेरणात्मक शक्ति की दृष्टि से असाधरण महत्त्व का है। उसका प्रसार होमर (ल. ९०० ई. पू.) से लेकर जुस्तिनियन (५२७ ई.) तक माना जाता है। १४ सदियों के इस लंबे साहित्यिक इतिहास के तीन कालविभाग किए जाते हैं:
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क्लासिक
इसे अंशत: वीरगाथाकाल कहना अनुचित न होगा, महाकाव्य, गीतिकाव्य, नाटक और गद्य-सभी में नवीन किंतु श्रेष्ठ कृतित्व का काल है। अंधकवि होमर वीरगाथाकाल के साथ साथ यूरोप का आदि कवि भी हैं। उसकी प्रसिद्ध रचनाओं, ‘ईलियद’ और ‘ओदेसी’, में यूनान के कवियों की लंबी मौखिक परंपरा और उसकी व्यक्तिगत प्रतिभा का संगम है। ग्रीक वीरछंद हेक्सामीअर में रचित युद्ध और पराक्रम की ये कथाएँ इतनी लोकप्रिय हुई कि इनके गायकों की ‘होमरीदाई’ (होमर के पुत्र) नामक श्रेणी बन गई। इन्हें होमर के लगभग ३०० वर्ष वाद छठी सदी ई. पू. में लिपिबद्ध किया गया। इसी वीरछंद का प्रयोग आठवीं सदी ई. पू. में हेसिआद ने अपनी नीतिपरक और दार्शनिक कविताओं में किया। बाद में हेसिआद की परंपरा में ही ज़ेजोफेनिज, पारमेनीदीज, एंपिदोक्लीज़ आदि दार्शनिक कवि हुए।
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क्लासिक
सातवीं सदी ई. पू. में ग्रीक लिरिक या गीतिकाव्य का जन्म हुआ। ‘लीरे’ नामक तंत्री वाद्ययंत्र के स्वर पर गाए जानेवाले इनगीतों का प्रारंभ राजनीतिक विष्यवस्तु से हुआ लेकिन बाद में उन्होंने प्रधानत: प्रयाणनिवेदन या मरसिया (ऐलेजी) का रूप ग्रहण किया। इनकी रचना आइएंबिक छंदों में होती थी। व्यक्तिगत गायन के लिये रचित इन गीतों के क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध नाम आल्कीयस और कवयित्री सैफ़ो के हैं। इन व्यक्तिगत गीतों के अतिरिक्त सामूहिक (कोरस) गीतों का भी उदय हुआ। इनका चरमोत्कर्ष छठी-पाँचवी सदी ई. पू. में पिंदार की रचनाओं में हुआ।
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क्लासिक
धार्मिक कृत्यों के अवसर पर साधारण जन द्वारा गाए जानेवाले ‘कोरस’ गीतों से पाँचवीं सदी ई. पू. में प्राचीन यूनानी साहित्य में नाटकों का अत्यंत महत्वपूर्ण विकास हुआ। त्राजेदी (दु:खांत नाटक) के क्षेत्र में ईस्किलस, सोफ़ोक्लीज़ और यूरीपीदीज़ और कामेदी (सुखांत नाटक) के क्षेत्र में अरिस्तोफ़नीज के नाम विख्यात हैं।
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क्लासिक
गद्य का विकास साहित्य की अन्य विधाओं के बाद, प्राय: चौथी सदी ई. पू. में हुआ। तीन मुख्य दिशाएँ थीं : वक्तृता, जिसमें सबसे प्रसिद्ध नाम दिमास्थेनीज़ का है, इतिहास जिसमें सबसे प्रसिद्ध नाम हेरीदोतस, यूकिदीदीज़ (यूसिडाइडीज़) और ज़ेनोफ़ोन के हैं।
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क्लासिक
इस काल के साहित्य में मौलिक प्रयोगों के स्थान पर अनुकरण और विद्वत्ता की प्रवृति अधिक है। इस काल की कविताएँ प्राय: प्रेमविषयक, लघु और परिमार्जित हैं। अपोलोनियस रोदियस ने प्राचीन वीरकाव्य की परंपरा को जीवित रखने और लोकप्रिय बनाने का असफल प्रयत्न किया। कालीमाखस के नेतृत्व में स्फुट प्रेमविषयक कविताओं का प्रचलन अधिक हुआ। अन्य कवियों में एरातस और निकांदर उल्लेखनीय हैं।
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क्लासिक
इस काल की कविता में विकास की एक नई दिशा के रूप में थियोक्रितस, बियोन और मौस्कस के पशुचारण, शोकगीतों, ग्वालगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है।
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क्लासिक
वस्तुत: यह कान गद्य में अधिक समृध है। गणित, ज्योतिष, इतिहास, भूगोल, आलोचना, व्याकरण, भाषाशास्त्र आदि के संबंध में रचनाएँ प्रस्तुत हुई। इस काल के इतिहासकारों में पोलीबियस, स्त्रावो और प्लूतार्क विशेष प्रसिद्ध हैं।
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क्लासिक
रोम द्वारा यूनान पर विजय के बाद का, अर्थात्‌ ग्रेको-रोमन साहित्य गद्य में इतिहास और आलोचना शास्त्र की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण है। रोम के ईसाई धर्म में दीक्षित होने के बाद प्रकृतिपूजक ग्रीस के साहित्य और संस्कृति को बहुत चोट पहुंची। फिर इस युग में प्लूतार्क और लूसियन जैसे इतिहासकार और दियोनीसियस तथा लाजिनस जैसे आलोचनाशात्री हुए।
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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, ब्रह्मगुप्त की प्रमुख रचना है। यह संस्कृत मे है। इसकी रचना सन ६२८ के आसपास हुई। ध्यानग्रहोपदेशाध्याय को मिलाकर इसमें कुल पचीस (२५) अध्याय हैं। यह ग्रन्थ पूर्णतः काव्य रूप में लिखा गई है। 'ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त' का अर्थ है - 'ब्रह्मगुप्त द्वारा स्फुटित (प्रकाशित) सिद्धान्त'।
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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त पहला ग्रन्थ है जिसमें धनात्मक संख्याओं, ऋणात्मक संख्याओं एवं शून्य से सम्बन्धित ठोस जानकारी मिलती है। इसमें मौजूद कुछ नियम नीचे दिए गए हैं-
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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
एक धनात्मक संख्या तथा दूसरी ऋणात्मक संख्या का योग उनके अन्तर के बराबर होता है। और यदि वे दोनो बराबर हैं तो योग शून्य होगा।
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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
जब किसी धनात्मक संख्या को ऋणात्मक संख्या से घटाना हो या ऋणात्मक संख्या को धनात्मक संख्या से घटाना हो तो उन दोनों को जोड़ा जाएगा।
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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
धनात्मक को ऋणात्मक से भाग देने ऋणात्मक परिणाम आयेगा। ऋणात्मक को धनात्मक से भाग देने पर भी ऋणात्मक परिणाम आयेगा।
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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
धनात्मक या ऋणात्मक संख्या को शून्य से भाग देने पर एक भिन्न प्राप्त होगा जिसका हर (डीनॉमिनेटर) शून्य होगा।
0.5
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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
शून्य को किसी धनात्मक या ऋणात्मक संख्या से भाग देने पर परिणाम शून्य होगा या उस भिन्न के बराबर होगा जिसका अंश शून्य हो और हर एक सीमित संख्या हो।
0.5
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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
ध्यान देने योग्य है कि अन्तिम तीन नियम सही नहीं हैं क्योंकि शून्य से भाग देना फिल्ड के लिए पारिभाषित नहीं है। किन्तु यह उससे भी महत्वपूर्ण है कि सबसे पहले शून्य से भाग देने की कोशिश की गई है।
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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
Brahmagupta's BRAHMA-SPHUTA SIDDHANTA (Digital Rare Book:) (Edited by Acharyavara Ram Swarup Sharma, Published by Indian Institute of Astronomical and Sanskrit Research, New Delhi - 1965In Four Volumes)
0.5
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20231101.hi_7930_74
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%A6
२०१०
इराक के संसदीय चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इयाद अलावी के गठबंधन ने 91 सीटों पर जीत हासिल कर 89 सीटें जीतने वाले गठबंधन के नेता और निवर्तमान प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी को हरा दिया।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%A6
२०१०
उत्तर कोरिया के समुद्री सीमा के पास एक दक्षिणी कोरियाई नौसेना का युद्धपोत डूब गया।। पोत पर सवार 104 लोगों में से 58 को बचा लिया गया।
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584.750049
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%A6
२०१०
अमेरिका और भारत के बीच सितंबर 2008 में हुए 123 समझौता में छोड़ दिए गए परमाणु ईंधन के पुनर्शोधन के पहलू पर अमेरिकी प्रशासन ने सहमति का ऐलान किया।
0.5
584.750049
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%A6
२०१०
रूस की राजधानी मॉस्को में दो मेट्रो स्टेशनों पर हुए अलग-अलग धमाकों में 38 लोग मारे गए। पहला धमाका शहर के मध्य स्थित लुबियंका स्टेशन पर हुआ और कुछ देर बाद ही दूसरा धमाका पार्क कुलतरी स्टेशन पर हुआ।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%A6
२०१०
शारजाह की शरिया अदालत ने 17 भारतीयों को पिछले साल विद्वेषपूर्ण हमले में एक पाकिस्तानी व्यक्ति की हत्या करने और तीन अन्य को घायल करने के लिए मौत की सजा सुनाई।
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584.750049
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%A6
२०१०
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू की के नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) नामक म्यांमार के सबसे बड़े विपक्षी दल ने इस वर्ष होने वाले चुनाव में भाग नहीं लेने की घोषणा की।
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584.750049
20231101.hi_7930_80
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%A6
२०१०
जेनेवा में महामशीन में अतीतीव्र गति से प्रोटोन को टकराने में सफलता मिली। यूरोपीय नाभीकिय अनुसंधान केंद्र के भौतिक वैज्ञानिकों ने महामशीन में 13.7 बिलियन साल पहले महा-विस्फोट के जरिए हुए ब्रहमांड के निर्माण की प्रक्रिया को दुहराने का प्रयोग किया। इससे वैज्ञानिक महा-विस्फोट सिद्धांत के जरिए ब्रहमांड की उत्पत्ति की गुत्थी शायद सुलझा सकें।
0.5
584.750049
20231101.hi_7930_81
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%A6
२०१०
मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनैशनल की नयी रपट के अनुसार 2009 में [[[चीन]] को छोड़कर क्योंकि उसके बारे में एमनेस्टी के पास कोइ आँकड़े नहीं हैं) संसार भर में 700 से अधिक लोगों को फांसी दे कर मार डाला गया
0.5
584.750049
20231101.hi_7930_82
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%A6
२०१०
रूस में मास्को मेट्रो बम विस्फोट के बाद दागेस्तान के अशांत काकेकस इलाके में दो आत्मघाती हमलावरों द्वारा किए गए शक्तिशाली विस्फोटों में 12 लोगों की मृत्यु हो गई और 27 लोग घायल हो गए।
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584.750049
20231101.hi_12877_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE
मसूरिका
संपूर्ण विश्व में व्याप्त यह रोग बच्चों को अधिक होता है। यह चार पाँच मास तक के बच्चों को साधारणतया नहीं होता तथा चार पाँच वर्ष तक के बच्चों को अधिक होता है। गर्भवती नारी में यह रोग गर्भपात का कारण बन सकता है। इसका प्रकोप प्रत्येक दो या चार वर्ष पर होता है।
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मसूरिका
यह रोग एक अत्यंत सूक्ष्म विषाणु द्वारा होता है, जो नाक, आँख तथा गले के स्राव में मिलते हैं। दाने निकलने के पूर्व रोगी सर्वाधिक संक्रामक होता है।
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578.163292
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE
मसूरिका
इस रोग का उद्भवन काल चौदह दिन होता है। सर्वप्रथम सर्दी, ज़ुकाम, खाँसी, ज्वर तथा मुँह के भीतर सफेद दाने प्रकट होते हैं। ये पिछले दाँतों के पास कपोल की भीतरी श्लेष्म कला पर, त्वचा पर दाने प्रकट होने के ७२ घंटे पूर्व, दृष्टिगोचर होते हैं। नेत्र रक्ताभ हो जाते हैं तथा नासिका एवं नेत्रों से स्राव होता है। ज्वर दूसरे दिन कुछ कम हो जाता है, किंतु तीसरे दिन से पुन: बढ़ना प्रारंभ हो जाता है। चौथे दिन त्वचा पर दाने प्रकट हो जाते हैं। ये दाने सर्वप्रथम बालों की रेखा के पास, कानों के पीछे, ग्रीवा पर तथा मस्तक पर दृष्टिगोचर होते हैं। इसके बाद ये नीचे की ओर बढ़ते हैं तथा शनै: शनै: संपूर्ण शरीर को आच्छादित कर लेते हैं। दाने अत्यंत सूक्ष्म एवं रक्ताभ होते हैं, जो आपस में मिलकर एक हो जाते हैं तथा शरीर को रक्तवर्ण प्रदान करते हैं। रोगी को खुजली तथा जलन की अनुभूति होती है। ये दाने चार से सात दिनों तक रहते हैं, फिर धीरे धीरे लुप्त हो जाते हैं। अब त्वचा की एक झिल्ली सी संपूर्ण शरीर से अलग हो जाती है। ज्वर तथा अन्य लक्षण भी इसके साथ ही समाप्त हो जाते हैं।
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मसूरिका
इस में अत्यधिक ज्वर, सदमें के चिह्न तथा रक्तरंजित दाने मिलते हैं। नाक, आँख और त्वचा से रक्तस्राव होता है तथा रोग प्राय: घातक होता है।
0.5
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मसूरिका
इसमें श्वास की गति अत्यंत तीव्र हो जाती है, रोगी नीला पड़ जाता है तथा बेहोशी अथवा मृत्यु हो सकती है।
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मसूरिका
ग्रसनी शोथ, कंठ शोथ, श्वासनली शोथ, फुफ्फुसीय शोथ, कर्ण शोथ, पलक शोथ, मुखशोथ, लसिकाग्रंथि शोथ, मस्तिष्क शोथ, अतिसार आदि रोग हो सकते हैं। पुराना क्षय रोग पुन: उभड़ सकता है।
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मसूरिका
फलानुमान -- साधारणतया मसूरिका घातक नहीं होती, किंतु इसके घातक रूप या जटिलताओं के कारण मृत्यु हो सकती है।
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मसूरिका
रोगी को अलग रखा जाए। रोग ठीक होने पर रोगी के रक्त से सीरम निकालकर इंजेक्शन देने से, दूसरे बच्चों में प्रतिशोधक शक्ति उत्पन्न की जा सकती है।
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मसूरिका
इस रोग की कोई विशेष रोगहर चिकित्सा ज्ञात नहीं है। केवल रोगी को आराम देना, सफाई रखना, द्रव खाद्य पदार्थ देना तथा जटिलताओं की चिकित्सा करना आवश्यक है।
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कन्होपत्रा
कन्होपत्रा एक अमीर वेश्या शमा कि बेठी थी, जो पंढरपुर के मंगलवेद शेहर मे रहते थे। कन्होपत्रा के अलावा मंगलवेद संतों वरकारि चोखामेला और डमाजि का भी
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कन्होपत्रा
शमा कन्होपत्रा के पिता की पहचान के बारे में अनिश्चित था, लेकिन यह संदेह था कि शहर के सिर मैन सदाशिव मालगुजर जन्मस्थान है।
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कन्होपत्रा
कन्होपत्रा उसकी माँ के महलनुमा घर में उसके बचपन बिताया थी और कई नौकरानियों द्वारा सेवा कराते थे। कन्होपत्रा की सामाजिक स्थिति बहुत ही कम था।कन्होपत्रा बचपन से ही नृत्य और गीत में प्रशिक्षित किया गया था ताकि वह अपनी माँ के पेशे में शामिल होने सकि। वह एक प्रतिभाशाली नर्तकी और गायक बन गए।उसकी सुंदरता अप्सरा (स्वर्गीय अप्सरा) मेनका से तुलना करते थे।शमा ने कन्होपत्रा को सुझाए गया कि बादशाह (मुस्लिम राजा) को मिलना है, तब जो उसकी सुंदरता और उपहार उसे पैसे और गहने पूजा होगी लेकिन कन्होपत्र साफ ​​इनकार कर दिया। कन्होपत्रा की मा शामा ने कन्होपत्रा को शादी करवाने के लिये सोचा था। विद्वान तारा भवलकार कहा गया है कि कन्होपत्रा की शादी के लिए मना किया गया था क्यों कि वह एक दासि कि बेठी है। कन्होपत्रा को वेश्या के जीवन मे आशा नहि थी लेकिन उसके लिये घ्रुणा किये थे और भी लोग कहते हेय कि वह वेश्या बनने के लिये मजबूति से मना कि थी। कुछ लेखकों का मानना ​​है कि हो सकता है कि वह भी एक वेश्या के रूप में काम किया है।
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कन्होपत्रा
सदाशिव मालगुजर, कन्होपात्रा की अपेक्षा की पिता, कन्होपत्रा की सुंदरता के बारे में सुना है और उसके नृत्य को देखने के लिए कामना की, लेकिन कन्होपत्रा से इनकार कर दिया।तदनुसार, सदाशिव कन्होपत्रा और शमा को परेशान करना शुरू कर दिया था।शमा उसे समझा दिया है कि वह कन्होपत्रा का पिता था और इस तरह उन्हें छोड़ देना चाहिए की कोशिश की, लेकिन सदाशिव उसे विश्वास नहीं किया।वह अपने उत्पीड़न जारी रखा, शमा के धन धीरे-धीरे समाप्त हो गया।आखिरकार, शमा सदाशिव के लिए माफी मांगी और उसे करने के लिए कन्होपत्रा पेश करने की पेशकश की। कन्होपत्रा, तथापि, एक नौकरानी के रूप में प्रच्छन्न उसकी वृद्ध नौकरानी हौसा की मदद से पंढरपुर के लिए भाग गए। कुछ किंवदंतियों में, होउसा वर्णित के रूप में एक वरकारि भक्ति करने के लिए कन्होपत्रा की यात्रा के लिए श्रेय दिया।अन्य खातों वरकारि तीर्थयात्रियों जो पंढरपुर में विठोबा मंदिर के लिए अपने रास्ते पर कन्होपत्रा के घर से पारित क्रेडिट दिया। एक कहानी के अनुसार, उदाहरण के लिए, वह विठोबा के बारे में एक गुजर वरकारि से पूछा।
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कन्होपत्रा
वरकारि कहा कि विठोबा ", उदार बुद्धिमान, सुंदर और सही" है, उसकी महिमा का वर्णन से परे है और उसकी सुंदरता से बढ़कर लक्ष्मी, सौंदर्य की देवी का है।
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कन्होपत्रा
कन्होपत्रा आगे पूछा कि क्या विठोबा एक भक्त के रूप में उसे स्वीकार करेंगे क्या और वरकारि कह कि वह कन्होपत्रा को स्वीकार करेंगे।इस आश्वासन,पंढरपुर जाने के लिए उसके संकल्प को मजबूत बनाया। कन्होपत्रा तुरंत वरकारि तीर्थयात्रियों के साथ विठोबा-के भजन पंढरपुर-गायन के लिए छोड़ देता है या पंढरपुर उसके साथ उसकी माँ को भी समझाकर जाति थी। जब कन्होपत्रा ने पहलि बार् पंढरपुर की विठोबा छवि को देखा है,तब उन्होंने अभंगाओं को गाने के लिए शुरु कर दिया। वह एक अभंगा में गायि थी कि उसे आध्यात्मिक योग्यता पूरी की थी और वह विठोबा के पैरों देखा है के लिए आशीर्वाद दिया था। वह अद्वितीय सौंदर्य वह विठोबा में उसके दूल्हे की मांग में पाया था। वह भगवान से "विवाहित" खुद को माना और पंढरपुर में बस गए।वह समाज से वापस ले लिया। कन्होपत्रा हौसा के साथ पंढरपुर में एक झोपड़ी में ले जाया गया और एक तपस्वी का जीवन जिया। वह विठोबा मंदिर में गाया और नृत्य किया था, और यह एक दिन में दो बार साफ किया थी। वह लोगों के संबंध में प्राप्त की,और लोग मानते थे कि वह एक किसान कि बेठी थी।इस अवधि पर , कन्होपत्रा विठोबा के लिए समर्पित ओवी कविताओं की रचना की।
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कन्होपत्रा
इस अवधि पर सदाशिव बादशाह से मदद माँगा। कन्होपत्रा की सुंदरता के किस्से सुनकर बादशाह उसकी रखैल बनने के लिए उसे आदेश दिया।जब उसने मना कर दिया, राजा बल द्वारा उसे पाने के लिए अपने आदमियों को भेजा था। कन्होपत्रा विठोबा मंदिर में शरण ली। राजा के सैनिकों मंदिर को घेर लिया और इसे नष्ट करने के लिए अगर कन्होपत्रा उन्हें सौंप दिया गया था नहीं की धमकी दी। कन्होपत्रा ले जाया जा रहा से पहले विठोबा के साथ एक पिछली बैठक का अनुरोध किया। सभी इसाब के द्वारा, कन्होपत्रा तो विठोबा छवि के पैर में निधन हो गया, लेकिन हालात स्पष्ट नहीं थे। लोकप्रिय परंपरा के अनुसार, कन्होपत्रा शादी-कुछ कन्होपत्रा के लिए इंतज़ार के एक फार्म में विठोबा की छवि के साथ विलय कर दिया। अन्य सिद्धांतों का सुझाव है कि वह खुद को मार डाला है, या कि वह उसकी निरंकुशता के लिए मार डाला गया था। अधिकांश। इसाब कहते है कि कन्होपत्रा के शरीर विठोबा के चरणों में रखी गई थी और उसके बाद मंदिर के दक्षिणी भाग के पास दफनाया गया था।पौराणिक कथा के सभी संस्करणों के अनुसार, एक तरति पेड़-जो उसके तीर्थयात्रियों द्वारा पूजा की जाती है की मौके पर ही स्मरण-उठी जहां कन्होपत्रा दफनाया गया था। कन्होपत्रा केवल एक ही व्यक्ति जिसका समाधि (समाधि) विठोबा मंदिर के परिसर में है।
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कन्होपत्रा
कई इतिहासकारों कन्होपत्रा के जीवन और मृत्यु की तिथि को स्थापित करने का प्रयास किया है। एक अनुमान उसकी बीदर के बहमनी एक राजा, जो अक्सर कन्होपत्रा कहानी हालांकि ज्यादातर खातों में, कि राजा को स्पष्ट रूप से नामित कभी नहीं जाता है के साथ जुड़ा हुआ है के संबंध में से लगभग 1428 सीई उसके जीवन देता है। पवार का अनुमान है कि वह 1480 में मृत्यु हो गई थी। दूसरों को 1448, 1468 या 1470, या बस की तारीखों का कहना है कि वह 15 वीं सदी या दुर्लभ मामलों में, 13 वीं या 16 वीं सदी में रहते थे का सुझाव है। जेल्लियट के अनुसार, वह संत-कवियों चोखामेला (14 वीं सदी) और नामदेवा (c.1270-c.1350) के समकालीन थे।
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कन्होपत्रा
कन्होपत्रा कई अभंगा बना है माना जाता है, लेकिन सबसे लिखित रूप में नहीं थे: उसे का केवल तीस या ओविस आज जीवित रहते हैं।
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ब्रेज़र्ज़
ब्रेज़र्ज़ एक कनाडा के अश्लील उत्पादन कंपनी हेैं। मुख्यालय मॉन्ट्रियल, क्यूबेक कनाडा और कानूनी निवास-स्थान लिमासोल साइप्रस में है। इकतीस हार्डकोर पोर्नोग्राफ़ी वेबसाइटों से युक्त एक ऑनलाइन नेटवर्क के साथ, कंपनी का नारा है "वर्ल्ड्स बेस्ट एचडी पोर्न साइट!"। साइट में 9729 वीडियो हैं, जो 33 विभिन्न साइटों (दिसंबर 2019) द्वारा प्रकाशित किए गए थे।
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ब्रेज़र्ज़
मॉन्ट्रियल निवेशकों के एक समूह द्वारा 2005 में स्थापित, ब्रेज़र मैनसेफ़ के कॉर्पोरेट नाम के तहत अश्लील साइटों के एक बड़े समूह का हिस्सा बन गया। 2010 में मैनसेफ को फैबियन थिलमैन को बेच दिया गया और मैनविन इंक रूप में फिर से लिखा गया। दिसंबर 2012 में टैक्स चोरी के संदेह में थिल्मन को बेल्जियम से जर्मनी ले जाया गया था।
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ब्रेज़र्ज़
अक्टूबर 2013 में Thylmann एक आंतरिक प्रबंधन समूह, Mindgeek, सीईओ की अध्यक्षता करने के लिए Brazzers सहित Manwin की संपत्ति, बेचा, Feras Antoon और शेयरधारक डेविड Tassilo।
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ब्रेज़र्ज़
2014 में ब्रेज़र्स ने न्यूयॉर्क शहर में टाइम्स स्क्वायर में एक बिलबोर्ड के साथ अपनी 10 वीं वर्षगांठ मनाई। डिजिटल होर्डिंग 47 वें और 7 वें कोने में स्थित था और अगस्त के पूरे महीने के लिए देखा जा सकता था। 2010 में ब्रेज़्ज़र्स ने अपने सुरक्षित यौन अभियान को बढ़ावा देने और "गेट रबर!" की घोषणा करने के लिए टाइम्स स्क्वायर बिलबोर्ड का उपयोग किया था। नारा और वेबसाइट।
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ब्रेज़र्ज़
सितंबर 2016 में विजिलेंट ने ब्रेज़र द्वारा सामना किए गए एक डेटाबेस के उल्लंघन की खबर को तोड़ दिया, जो अप्रैल 2013 में साइट के हैक होने के बाद लगभग 1 मिलियन उपयोगकर्ताओं को प्रभावित किया था।
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ब्रेज़र्ज़
Brazzers वर्तमान में सीईओ के नेतृत्व में है Feras Antoon, और स्वामित्व और संचालित Mindgeek, एक बहुराष्ट्रीय आधिकारिक तौर पर लक्ज़मबर्ग में पंजीकृत द्वारा।
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ब्रेज़र्ज़
Brazzers के साथ जोड़ के लिए उद्योग आलोचना हुई थी मीडिया स्ट्रीमिंग जैसी साइटों Pornhub । जवाब में, 2009 में कंपनी ने एंटी-पायरेसी अभियान शुरू किया।
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ब्रेज़र्ज़
2008 में, निकाल दिए जाने के बाद, निर्माता बॉबी मनीला ने ब्रेज़र्स को धोखाधड़ी और अपने अनुबंध की शर्तों के उल्लंघन के लिए मुकदमा चलाया। मुकदमा अंततः अदालत से बाहर हो गया था।
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ब्रेज़र्ज़
फरवरी 2010 में पिंक विज़ुअल स्टूडियो द्वारा ब्रेज़र्स की मूल कंपनी, मैनविन पर कॉपीराइट मुक्त सामग्री का उल्लंघन करके, उसके मुफ्त वीडियो-साझाकरण साइटों पर बिना लाइसेंस के वीडियो सामग्री वितरित करके मुकदमा दायर किया गया था। ब्रेज़र्स नेटवर्क पर साझा साइटों से ट्रैफ़िक से अप्रत्यक्ष रूप से लाभ प्राप्त करके बिना लाइसेंस की सामग्री से लाभ उठाने का आरोप लगाया गया है, लेकिन यह पहली बार था जब एक प्रसिद्ध स्टूडियो ने मुकदमा दायर किया था। एक क्लास एक्शन मुकदमा अन्य स्टूडियो द्वारा माना जाता था।
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लहरबाज़ी
और भी बहुत सारे आला स्टाइल हैं, जैसे कि एग, एक लौंगबोर्ड-स्टाइल का शॉर्ट बोर्ड ऐसे लोगों को ध्यान में रख कर बनाया गया है जो शॉर्ट की सवारी करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें पैडल करने की ताकत की ज्यादा जरूरत है। फिश एक बोर्ड है, जो खास तौर पर थोड़ा छोटा, सपाट और सामान्य बोर्ड से थोड़ा चौड़ा, अक्सर विभाजित पूंछ वाला (सैलो टेल के रूप में जाना जाता है) होता है। फिश में आमतौर पर दो या चार फिन्स होते है और छोटे तरंगों पर लहरबाज़ी के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए होते हैं। बड़ी लहरों के लिए एक लंबा, मोटा बोर्ड गन, होता है, जिसका अगला और पिछला हिस्सा नुकीला (पिन टेल कहलाता है) होता है, विशेष रूप से यह बड़ी लहरों के लिए डिजाइन किया गया होता है।
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लहरबाज़ी
मैवरिक्स उत्तरी कैलिफोर्निया में विश्व-विख्यात लहरबाज़ी स्थान है। यह पीलर प्वाइंट हार्बर के तट से लगभग आधा मील (0.8 किमी) की दूरी पर प्रिंस्टन-बाई-द-सी के गांव हाफ मून बे के एकदम उत्तर में स्थित है। उत्तरी प्रशांत महासागर में प्रचंड ठंड के तूफानी मौसम में लहरें नियमित तौर पर चोटी पर 25 फीट (8 मीटर) और शीर्ष से बाहर 50 मीटर (15 मीटर) हो सकती हैं। पानी के नीचे असामान्य आकार में चट्टानों का निर्माण इस ब्रेक का कारण है।
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लहरबाज़ी
हवाई के ओआहू के उत्तरी तट पर पुपुका के एहुकई बीच पार्क गामी स्थान पर पाइपलाइन नामक सर्फ रिफ ब्रेक स्थित है। स्थान कुख्यात और उथले पानी में बड़े-बड़े लहरों के टूटने के लिए प्रसिद्ध है; यहां नुकीले और गुफाओंवाला चट्टान जो कि पानी का खोखला और मोटा-सा छल्ला बनाते है, जिसमें भीतर लहरबाज़ सवारी कर सकता है। यहां पाइपलाइन में तीन चट्टान हैं जो उत्तरोत्तर और भी गहरे होते जाते हैं, जहां महासागर की महातरंगों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न स्तरवाली क्षमता सक्रिय होती है।
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लहरबाज़ी
टीहूपो (जिसका उच्चारण चो-पो है) दुनिया का जाना माना लहरबाज़ी स्थान है जो दक्षिण प्रशांत महासागर, फ्रांसीसी पोलीनेशिया, ताहिती के द्वीपों के दक्षिर-पश्चिम सुदूर पर स्थित है। यह भारी और पारदर्शी लहरों के लिए जाना जाता है, जो अक्सर 2 से 3 मीटर तक (7 से 10 फीट तक) और इससे ऊंचा जाता है। यह सालाना प्रो ताहिती सर्फ प्रतियोगिता के बिलबोर्ड का स्थान है, जो पेशेवर लहरबाज़ी सर्किट के एएसपी वर्ल्ड टूर (ASP World Tour) के वर्ल्ड चैंपियनशिप टूर (डब्ल्यूसीटी (WCT) का हिस्सा है।
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लहरबाज़ी
पानी के सभी खेलों की तरह लहरबाज़ी में भी डूब कर मरने का खतरा अंतर्निहित है। हालांकि बहते रहने में बोर्ड सहायक होता है, लेकिन चूंकि यह उपयोगकर्ता से अलग होता है, इसीलिए ऊपरी तौर पर तैरते रहने के लिए इस पर आश्रित नहीं हुआ जा सकता है। एक पट्टा, जो टखने या घुटने से बंधा होता है, लहरबाज़ को बोर्ड से सुविधा के लिए जोड़े रखता है, लेकिन लहरबाज़ को डूबने से बचा नहीं सकता. स्थापित नियम यह है कि अगर लहरबाज़ बगैर अपने बोर्ड के पानी की स्थिति को संभाल नहीं सकता या सकती है तो उसे दूर नहीं जाना चाहिए। पानी के नीचे लहरबाज़ द्वारा पकड़े गए चट्टान के पट्टा से उलझ जाने के परिणामस्वरूप डूबने की कुछ घटना घटी है। वैमा या मावेरिक्स जैसी तरंगों में पट्टा अवांक्षनीय हो सकता है, क्योंकि पानी बोर्ड को बहुत दूर तक खींच कर ले जा सकता है, जिसे लहरबाज़ लहर के नी‍चे पकड़े हुए होता है।
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लहरबाज़ी
गलत स्थिति में पड़ जाने पर, लहरबाज़ का शरीर रेल की टीले, चट्टान, चट्टान, सर्फबोर्ड और अन्य लहरबाज़ समेत किसी भी चीज के साथ संपर्क में आने से खतरा खड़ा हो जाता है। इन चीजों के साथ टक्कर होने से कभी कभी बेहोशी, या यहाँ तक कि मौत भी हो सकती है।
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लहरबाज़ी
सर्फ तक पहुंचने के लिए बहुत सारे लहरबाज़ पुल, इमारत, गोदी और अन्य संरचनाओं से कूद पड़ते हैं। अगर कूदने का समय गलत हो गया तो वे अपना या उपकरण का या फिर दोनों का ही नुकसान कर देते हैं। बड़ी संख्या में चोट, 66% तक, का कारण सर्फबोर्ड (अग्रभाग या ‍फिन से) से टकरा जाना होता है। फिन गहरे चीर-फाड या कटने, साथ ही साथ बहुत ही अधिक थका देने का कारण होता है। हालांकि ये चोट छोटे-मोटे होते हैं, लेकिन समुद्री संक्रमण के लिए ये त्वचा को खोल देते हैं; संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए लहरबाज़ अगेंस्ट सीवेज जैसे दल पानी की सफाई का अभियान चलाते हैं। लहरबाज़ी के दौरान सर्फबोर्ड से गिरना, दूसरों के साथ टकराना या दूसरों को घायल करना आमतौर पर 'वाइपआउट' (wipeout) कहलाता है।
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लहरबाज़ी
समुद्री जीवन कभी कभी चोट लगने और यहां तक कि मौत का भी कारण हो सकता है। एस शार्क, स्ट्रिंगरे, सील और जेलीफिश जैसे जीव कभी खतरा पैदा कर सकते हैं।
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लहरबाज़ी
रिपटाइड अनुभवी और अनुभवहीन दोनों तरह के लहरबाज़ के लिए खतरनाक होता है। रिप प्रवाह पानी का चैनल होता है जो तट से दूर बहता हैं। चूंकि यह प्रवाह गुप्त होता है, पानी दिखने में शांत लगता है, थके और अनुभवहीन तैराक या लहरबाज़ आसानी से बह जाते हैं।
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ताइपे
ताइपे, चीन गणराज्य (जिसे ताइवान के नाम से ज्यादा जाना जाता है) की राजधानी है। ताइपे ताइवान द्वीप के सबसे बड़े मेट्रोपोलिटन क्षेत्र का केंद्रीय शहर है। यह द्वीप के उत्तरी छोर पर, तम्सुई नदी के किनारे पर स्थित है। ताइपे शहर की आबादी २६,१८,७७२ है। ताइपे, नया ताइपे और कीलूंग मिलकर "ताइपे मेट्रोपोलिटन क्षेत्र" बनाते हैं, जिसकी कुल आबादी ६९,००,२७३ है। केवल "ताइपे" शब्द का प्रयोग मुख्यतः मेट्रोपोलिटन क्षेत्र के लिए और "ताइपे शहर" शब्द का प्रयोग सिर्फ शहर के लिए किया जाता है। ताइपे शहर चारों और से नया ताइपे से घिरा हुआ है।
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ताइपे
ताइपे ताइवान की राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्रबिंदु है। यह शहर मध्य-पूर्वी एशिया के प्रमुख शहरों में से एक है।
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ताइपे
ताइपे बेसिन के नाम से जाना जाने वाला क्षेत्र, अट्ठारहवीं शताब्दी में केतागालान जनजाति का घर था। १७९० में, हान चीनी मुख्यतः चीन के फ़ूज्यान प्रान्त से आकार ताइपे बेसिन में बसने लगे। १९ वीं शताब्दी के अंत में, ताइपे क्षेत्र, जहाँ उत्तरी ताइवान के मुख्य हान चीनी बसाहट और विदेशी व्यापार बंदरगाहों में से एक तम्सुई स्थित थे, तेजी से बढ़ते विदेशी व्यापार की वजह से, विशेष रूप से चाय के निर्यात, आर्थिक रूप से महत्तवपूर्ण हो गया। १८७५ में, ताइवान का उत्तरी हिस्से को ताइवान प्रशासनिक क्षेत्र से अलग कर दिया गया और चीनी सरकार के नये प्रशासनिक ईकाई के रूप में नया ताइपे प्रशासनिक क्षेत्र में शामिल कर दिया गया। १८७५ से १८९५ में जापानी शासन की शुरुआत तक ताइपे शहर, ताइपे प्रशासनिक विभाग के तम्सुई काउंटी का हिस्सा और इसकी राजधानी रहा। १८८६ में, जब ताइवान चीन का प्रान्त घोषित किया गया, तब ताइपे शहर को प्रान्तीय राजधानी बना दिया गया। १८९४ में, आधिकारिक रूप से घोषणा होने तक ताइपे शहर अस्थाई प्रान्तीय राजधानी बना रहा।
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ताइपे
प्रथम चीन-जापान युद्ध में हारने के बाद चीन ने समझौता करके जापान साम्राज्य को १८९५ में ताइवान द्वीप सौंप दिया। जापानी नियंत्रण में जाने के बाद ताइपे (जापानी में ताइहोकू) जापानी औपनिवेशिक सरकार के राजनीतिक केंद्र के रूप में उभरा। उस समय के दौरान शहर में कई नए सार्वजनिक भवन, सिविल सेवकों के लिए आवास आदि बने और इस तरह शहर ने एक प्रशासनिक केंद्र की विशेषताओं का अर्जित किया। ताइपे की वास्तुकला का बहुत हिस्सा जापानी शासन की अवधि से है, जैसे राष्ट्रपति भवन जो ताइवान के गवर्नर जनरल का कार्यालय था।
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ताइपे
जापानी शासन के समय, १९२० में, ताइहोकू (ताइपे) को ताइहोकू प्रशासनिक विभाग में शामिल कर लिया गया। जापानियों के प्रशान्त युद्ध में हराने के बाद, अगस्त १९४५ में आत्मसमर्पण करने पर गुओमिंदांग ने ताइवान की कमान संभाल ली। इसके साथ ही, ताइवान प्रान्त के प्रशासनिक गवर्नर का ताइपे शहर में एक अस्थाई कार्यालय बना दिया गया।
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ताइपे
७ दिसम्बर १९४९ को, च्ह्यांग काई शेक के नेतृत्व में गुओमिंदांग सरकार, जिसे चीनी गृह युद्ध में कम्युनिस्टों द्वारा मुख्य भूमि चीन से पलायन के लिए मजबूर कर दिया गया, ने ताइपे को चीनी गणराज्य की अस्थाई राजधानी और नानकिंग (वर्तमान नानजिंग) को आधिकारिक राजधानी घोषित किया।
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ताइपे
१९४९ के बाद के दशकों में ताइपे ने बहुत तेजी से विकास किया। ३० दिसम्बर १९६६ को युआन कार्यपालिका ने ताइपे को विशेष केंद्रीय प्रशासित नगरपालिका घोषित कर दिया। १ जुलाई १९६७ को इसे प्रशासनिक रूप से प्रान्त का दर्जा दे दिया गया। १९६० के दशक की शुरुआत में ताइपे की आबादी १० लाख पहुँच गयी और १९७० दशक के मध्य में २० लाख पार कर गयी। १९९० के दशक के मध्य तक आबादी में थोड़ी स्थिरता आई। १९९० में ताइपे के तत्कालीन १६ जिलों को वर्तमान १२ जिलों में समाहित कर दिया गया।
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ताइपे
ताइवान की राजधानी के रूप में, ताइपे देश में तेजी से हुए आर्थिक विकास के केंद्र में रहा है और अब उच्च प्रौद्योगिकी और उसके घटकों के उत्पादन में वैश्विक शहरों में से एक बन गया है। यह शहर ताइवान चमत्कार का हिस्सा है, जिसके कारण १९६० के दशक में शहर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बहुत तेजी से बढ़ोतरी हुई। देश के महत्वपूर्ण वस्त्र उद्योग ताइपे में हैं, इनके अलावा अन्य उद्योग हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद और उनके घटक, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और उपकरण, प्रिंटेड सामग्री आदि का उत्पादन करते हैं।
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ताइपे
२००७ में, मूल ताइपे शहर का नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद लगभग १६० अरब डॉलर था। ताइपे का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद ४८,४०० डॉलर है, जो एशिया में टोक्यो के बाद किसी भी शहर से ज्यादा है। पर्यटन, ताइपे की अर्थव्यवस्था का छोटा पर महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ २००८ में लगभग ३० लाख अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आये। ताइपे में कई बेहतरीन पर्यटन स्थल हैं, जो ताइवान के ६.८ अरब डॉलर के पर्यटन उद्योग में बड़ा योगदान देतें हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%80
मधुमती
मधुमती 1958 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह शायद पहली हिन्दी फ़िल्म है जिसमें एक कलाकार (वैजयन्ती माला) ने तीन-तीन रोल निभाये हों। इस फ़िल्म के निर्माता और निर्देशक बिमल रॉय थे। फ़िल्म में मुख्य भूमिका दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला और जॉनी वॉकर ने निभाई है। इस फ़िल्म को सन् १९५८ में अन्य पुरस्कारों के अलावा फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था।
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मधुमती
फ़िल्म वर्तमान समय से शुरु होती है। देवेन्द्र (दिलीप कुमार), जो एक अभियन्ता है, अपने दोस्त डॉक्टर (तरुण बोस) के साथ कार से रात को तूफ़ान और बारिश में पहाड़ी रास्तों से होकर अपनी पत्नी और नवजात बच्चे को लेने रेलवे स्टेशन जा रहा है। रास्ते में भूस्खलन के कारण रास्ता बन्द हो जाता है तो कार का ड्राइवर मदद लेने के लिए जाता है और दोनों दोस्त एक पुरानी हवेली में पनाह लेते हैं। वहाँ देवेन्द्र को हवेली जानी पहचानी सी लगती है और उसे धीरे-धीरे पुराने जन्म की बातें याद आने लगती हैं। वह अपने डॉक्टर दोस्त और हवेली के चौकीदार को कहानी सुनाना शुरु करता है।
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