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20231101.hi_766055_6
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मालगोदाम
गोदाम आमतौर पर बड़े भंडारण क्षेत्र को कवर करने वाले शहरों और कस्बों के औद्योगिक क्षेत्रों में बड़े सादे भवन होते हैं। औद्योगिक क्षेत्रों में या उसके आस-पास स्थित गोदाम इतने बड़े हैं कि एक बार में बड़ी संख्या में व्यापारियों के सामानों को स्टोर कर सकते हैं। इसके अलावा, भंडारण के अलावा, वेयरहाउस खरीद, छंटाई, विभाजन, विपणन, शिपमेंट की तैयारी, हैंडलिंग, इन्वेंट्री कंट्रोल, डिस्प्ले, ऑर्डर प्रोसेसिंग, फाइनेंसिंग, ट्रांसपोर्टेशन, ग्रेडिंग और ब्रांडिंग जैसे कई कार्य करते हैं और इसके परिणामस्वरूप विभिन्न वर्गों में रोजगार सृजन होता है और विभिन्न स्तरों पर। यह कई मजदूरों, श्रमिकों, कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए रोटी और मक्खन का स्रोत है।
0.5
532.887624
20231101.hi_766055_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AE
मालगोदाम
जब व्यवसायी कुछ औपचारिकताओं के तहत गोदामों में माल जमा करते हैं, तो उन्हें 'जमा रसीद' मिलती है, जो सामानों के जमा होने के बारे में प्रमाण के रूप में काम करती है। वेयरहाउस माल के भंडारण के खिलाफ मालिक के नाम पर एक दस्तावेज भी जारी करता है, जिसे वेयरहाउस-कीपर के वारंट के रूप में जाना जाता है। इस दस्तावेज़ को सरल समर्थन और वितरण द्वारा स्थानांतरित किया जा सकता है। इन दस्तावेजों (वारंट) के आधार पर व्यवसायियों को बैंकों से वित्तीय सहायता / ऋण, वित्तीय कंपनियों पर निजी निविदाएं मिल सकती हैं। कुछ मामलों में, वेयरहाउस व्यवसायियों को संपार्श्विक सुरक्षा के रूप में सामान रखने पर वित्त प्रदान करते हैं।
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20231101.hi_766055_8
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मालगोदाम
वेयरहाउस के मालिक / अधिकारी यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके गोदामों में रखा सामान अच्छी तरह से संरक्षित, संरक्षित और निगरानी में है। अच्छे विवरणों के बारे में उचित जानकारी रखने के लिए, चोरी और माल की ढुलाई से माल को बचाने के लिए, गोदाम कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मचारियों को नियुक्त करते हैं।
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मालगोदाम
खराब होने वाली वस्तुओं के लिए, वे कोल्ड स्टोरेज सुविधा प्रदान करते हैं, गोदाम को आग से बचाने के लिए, अग्निशमन उपकरणों का उपयोग किया जाता है। आवश्यकता होने पर, संग्रहित सामानों को आग, चोरी और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानि जैसे अप्रत्याशित हादसों के खिलाफ बीमा किया जा सकता है।
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मालगोदाम
जमाकर्ताओं की आवश्यकताओं के अनुसार अधिकांश वेयरहाउस माल के निरीक्षण, सॉर्टिंग, ब्रांडिंग, पैकेजिंग, वित्तपोषण और लेबलिंग के लिए सहायता प्रदान करते हैं जो कि माल की बिक्री के लिए आवश्यक है। कुछ मामलों में, जमाकर्ताओं को उनके थोक जमा के लिए परिवहन व्यवस्था का लाभ उठाया जा सकता है।
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मालगोदाम
भूमि की बढ़ती लागत और वित्तीय सीमाओं के कारण, छोटे व्यापारी अपने निजी गोदामों का खर्च नहीं उठा सकते। सार्वजनिक या सरकारी गोदाम उन्हें सस्ती दरों पर सामान रखने की सुविधा देते हैं। गोदामों की अनुपस्थिति में, छोटे व्यापारियों के लिए गला काट प्रतियोगिता में बचना मुश्किल होगा क्योंकि 'स्टॉक आउट' स्थिति यदि लंबे समय तक बनी रहती है, तो व्यापारियों की छवि और सद्भावना को बाधित कर सकती है, विशेषकर छोटे व्यापारियों के लिए जिनके पास कोई / सीमित विपणन बजट नहीं है खर्च करना।
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20231101.hi_552985_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A5%80
सूशी
मूल प्रकार की सूशी जो कि आजकल नरे ज़ूशी के नाम से केहते है, पहले दक्षिण पूर्व एशिया में बनाई गई थी, संभवतः अब मेकांग नदी के समीप। अवधी सूशी एक पुराने व्याकरण फार्म जो अब कोई उपयोग नही करता। वस्तुतः सूशी का अर्थ है "खट्टा स्वाद", अपनी ऐतिहासिक किण्वित जड़ों का एक प्रतिबिंब।
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20231101.hi_552985_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A5%80
सूशी
सूशी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, Hanaya Yohei (1799–1858) की वजह से "ऐदो"अवधि के अन्त मे प्रसिध हुई। हनाया के द्वारा सूशी का आविशकार एक फास्ट फूड का प्रारंभिक रूप था, जो कि किण्वित नहीं था और उसे बनने मे समय नही लगता था और खाने मे भी कोइ दिक्कत नही होती थी। मूल रूप से इस सूशी को "एदोमे ज़ूशी" कहते है क्योंकि यह कटी हुइ मछली से बना होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A5%80
सूशी
सबसे साधारण सामग्री जो की हर प्रकार की सूशी मे डाली जाती है वो है विनेगर सूशी चावल। उन्मे विविधता अनेक प्रकार की भराई, टॉपिंग, मसालों की वजह से आती है। समकालीन बनाम पारंपरिक विधियों से हर बार अलग अलग स्वाद आता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A5%80
सूशी
"चिराशीज़ूसशी" (, एक काटोरी भर सूशी चावल जिस्के ऊपर अनेक प्रकार की कटी हुई मछली और सब्ज़ियां डाली जाती है (इसे बाराज़ूशी भी कह्ते है)।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A5%80
सूशी
'इनारीज़ूशी'() यह सूशी तली हुई टोफू की एक थैली की तरह होती है जो कि केवल सूशी चावल से भरी होती है। इसका नाम शिन्तो धर्म के भगवान "इनारी" पर रखा गया है, माना जाता है कि वह तली हुई टोफू के बडे शौक़ीन थे। इस थैली मे सामान्य रूप से तली हुई टोफू से ही जमाते है। क्षेत्रीय विविधताओं को अगर ध्यान मे रखे तो इसे लोग पतले तले हुए अंडे (帛紗寿司) से भी बनाना पसन्द करते है। हमे इसे इनारि माकी से भ्रमित नही करना चाहिए क्योकि वो एक सुगंधित किया हुआ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A5%80
सूशी
मकीज़ूशी(, "rolled sushi"), नोरीमकी (, एक बेलनाकार टुकड़ा है जो कि बांस की चटाई की मदद से बना होता है जिसे 'मकीसू' भी कहते है (巻簾)। मकीज़ूशी आम तौर पर, नोरी (समुद्री शैवाल) में लपेटा जाता है, लेकिन कभी कभी एक पतली आमलेट, सोया कागज, ककड़ी, में भी लपेटा जाता है। इसे छह या आठ टुकड़ों में काटा जाता और आमतौर पर एक ही रोल मे लपेटा जाता है। इसके कई पृकार होते है-
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A5%80
सूशी
*Methylmercury: What You Need to Know About Mercury in Fish and Shellfish". Food and Drug Administration. 2004-03-01. Retrieved 2012-09-18.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A5%80
सूशी
"Clonorchis sinensis – Material Safety Data Sheets (MSDS)". Public Health Agency of Canada. 2011-02-18. Retrieved 2012-09-18.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A5%80
सूशी
"Parasites – Anisakiasis". Centers for Disease Control and Prevention. 2010-11-02. Retrieved 2012-09-18.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
संशयवाद
संशयवाद (skepticism) वह मत है कि पूर्ण, असंदिग्ध या विश्वसनीय ज्ञान की प्राप्ति असम्भव है, अथवा किसी क्षेत्र-विशेष में (तत्वमीमांसीय, नीतिशास्त्रीय, धार्मिक इत्यादि) या साधन-विशेष (तर्कबुद्धि, प्रत्यक्ष, अंतःप्रज्ञा इत्यादि) से ऐसा ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।
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530.333476
20231101.hi_184074_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
संशयवाद
जैसा श्री शिवादित्य ने सप्तपदार्थी नामक ग्रंथ में लिखा है (अनवधारण ज्ञान संशयः) संशय अनिश्चित ज्ञान या संदिग्ध अनुभव को कहते हैं। तर्कसंग्रह के अनुसार संशय वह ज्ञान है जिसमें एक ही पदार्थ अनेक विरोधी धर्मो या गुणों से युक्त प्रतीत होता है (एकस्मिन् धर्मिणी विरुद्धनानाधर्मवैशिष्ट्यावगाहिज्ञानं संशयः)। उदाहरणार्थ, जब हम अँधेरे में किसी दूरस्थ स्तंभ को देखकर निश्चित रूप से यह नहीं जान पाते कि वह स्तंभ है तो हमारा मन दोलायमान हो जाता है और हम उस एक को पदार्थ में स्तंभत्व एवं मनुष्यत्व दो विभिन्न धर्मों का आरोप करने लगते हैं। न तो हम निश्चयपूर्वक यह कह सकते हैं कि वह पदार्थ स्तंभ है और न यह कि वह मनुष्य है। मन की ऐसी ही विप्रतिपत्तियुक्त, द्विविधाग्रस्त, निश्चयरहित या विकल्पात्मक अवस्था को संशय कहा जाता है। यह अवस्था न केवल ज्ञानाभाव तथा (रज्जु के सर्प के) भ्रम या विपरीत ज्ञान (विपर्यय) से ही किंतु यथार्थ निश्चित्त ज्ञान से भी भिन्न होती है। अतः संशयवाद, नामक सिद्धांत के अनुसार निश्चित्त ज्ञान अथवा उसकी संभावना का निषेध किया जाता है। इस सिद्धांत को पूर्ण रूप से माननेवाले व्यक्तियों के विचारानुसार मानव को कभी भी और किसी भी प्रकार का वास्तविक या निश्चित ज्ञान नहीं हो सकता। संशयवादियों की राय में हमारे मस्तिष्क या मन की बनावट ही ऐसी है कि उसके द्वारा हम कभी भी संसार के या उसके पदार्थों के सही स्वरूप को अवगत कर सकने में समर्थ नहीं हो सकते।
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20231101.hi_184074_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
संशयवाद
संशयवाद को आंग्ल भाषा में स्कैप्टिसिज़्म (Scepticism) कहते हैं। स्कैप्टिसिज्म का श्रीगणेश ईसा के पूर्व सन् 440 में यूनान देश के सोफिस्ट (Sofist) कहलानेवाले तर्कप्रधान व्यक्तियों से हुआ बतलाया जाता है। परंतु उनका संशयवाद सामान्य रूप का था। सुव्यवस्थित सिद्धांत के रूप में तो इसका आरंभ ऐलिस (Elis) के पिरो (Pyrrho) नामक प्रख्यात विचारक से, ईसा के तीन सौ वर्ष पूर्व, हुआ। पिरो ने वास्तविक ज्ञान को स्पष्ट शब्दों में असंभव बतलाया है। फिलियस का टाइमन (Timonof Philius 250 B.C.) उसका प्रमुख शिष्य था। पिरो के कुछ अनुयायियों ने तो, जिनमें सेक्सटस ऐंपिरीकस (Sextus Empiricus) का नाम विशेषतया उल्लेखनीय है, संशयवदी विश्वास को इस सीमा तक निभाया कि वे स्वयं इस बाद को भी संशय की दृष्टि से देखने लगे। इन संशयवादियों के अनुसार इच्छाओं और निराशाओं से समुद्भूत हमारे सरे ही दु:खों की उत्पत्ति पदार्थ विषयक हमारे परामर्शो की अप्रामाणिता से ही होती है। मध्यकालीन पाश्चात्य संशयवादियों में पैस्कल (Pascal) तथा आधुनिक संशयवादियों में ह्यूम (David Hume) अधिक प्रसिद्ध है। पैस्कल का कहना था कि संसार संबंधी कोई भी निश्चित या संतोषप्रद सिद्धांत बुद्धि द्वारा स्थापित नहीं किया जा सकता और ह्यूम महोदय ने हमारी जानने की क्षमता को केवल आनुभविक क्षेत्र तक ही सीमित बतलाया है। उनके अनुसार मनुष्य को अपने ऐंद्रिय अनुभव के बाहर की बात जानने या कहने का कोई अधिकार नहीं। कोई कोई विचारसमीक्षक प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक काँट को भी संशयवादियों में शामिल कर लेते हैं; परंतु उन्हें संशयवादी न कहकर अज्ञेयवादी (Agnostic) कहना अधिक उपयुक्त है, क्योंकि उन्होंने वस्तुओं के वास्तविक या पारमार्थिक स्वरूप (Noumena) को अज्ञेय या बुद्धि द्वारा अगम्य बतलाया है, संदेहास्पद नहीं। और कम से कम कार्यजगत् (phenomena) को समझ सकने की क्षमता तो उन्होंने बुद्धि में मानी ही है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
संशयवाद
भारतवर्ष के कुछ संशयवादियों का उल्लेख "श्रामण्यफलसूत्र" आदि कुछ बौद्ध ग्रंथों में मिलता है। उदाहरणार्थ, अजितकेसकंबली नामक एक विचारक का कहना था कि यथार्थ ज्ञान कभी संभव नहीं और गायकवाड़ ओरिएंटल सीरीज में प्रकाशित "तत्तवोपल्लवसिंह" नामक पांडुलिपि के लेखक श्री जयराशि ने किसी भी प्रमाण को, यहाँ तक कि प्रत्यक्ष प्रमाण को भी, असंदिग्ध ज्ञान का साधन नहीं माना। कभी-कभी कुछ लोग "स्यादस्ति स्यात् नास्ति" आदि शब्दों द्वारा प्रतिपादित जैन दर्शन के स्याद्वाद का भी संशयवाद समझने लगते हैं। परंतु वस्तुत: स्याद्वाद प्रतिपादित "स्यात्" शब्द का प्रयोग तत्तत् वाक्य की संदिग्धता (अथवा असत्यता) का नहीं किंतु उसे सत्य की सापेक्षता का द्योतक है। स्वाद्वाद को परामर्शों या निर्णयो का सत्यत्व, परिस्थिति एवं प्रसंगानुकूल, स्वीकार्य है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
संशयवाद
चाहे संशयवादी स्वयं कुछ भी कहें, संशय की मानसिक अवस्था कोई सुख की अवस्था नहीं होती ("न सुखं संशयात्मन:" गीता, अ. 4, श्लोक 40)। और पूर्ण रूप से संशयवादी होना अत्यंत कठिन ही नहीं, किंतु असंभव है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
संशयवाद
स्वयं संशयवाद की स्वीकृति ही उसकी मान्यता का खंडन कर देती है। यदि किसी भी प्रकार का निश्चित ज्ञान नहीं हो सकता, तो फिर यह निश्चय रूप से कैसे कहा जा सकता है कि किसी भी प्रकार का निश्चित ज्ञान संभव नहीं। या तो संशयवाद की मान्यता असमीचीन है या फिर स्वयं संशयवाद "वदतोव्याघात दोष" से दूषित सिद्ध होता है। इसके अतिरिक्त, हमारे व्यावहारिक जीवन का एक एक कार्य तत्संबंधी पदार्थ या व्यक्ति के निश्चित ज्ञान की मान्यता पर निर्भर रहता है। वह संशयवाद को पूर्णतया मान लेने पर चल ही नहीं सकता। इसीलिए तो श्रीमद्भगवद्गीता में "संशयात्मा विनश्यति" आदि शब्दों द्वारा संशयवाद को अग्राह्य ठहराया है। परंतु, साथ ही साथ, यह मानने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि अपरीक्षित परंपरागत मान्यताओं की अंध स्वीकृति भी विचारों के विकास में बाधा डालती है। अत: कभी कभी सामान्य रूप से स्वीकृत तथाकथित सत्यों को संदेह की दृष्टि से देखना भी ज्ञानवृद्धि के लिए आवश्यक हो जाता है जैसा भामतीकार श्री वाचस्पति मिश्र ने कहा है, संशय जिज्ञासा को जन्म देता है (जिज्ञासा संशयस्य कार्यम्) और जिज्ञासा तो ज्ञान के लिए वांछनीय है ही। और काँट महोदय की यह उक्ति कि ह्यूम के "संशयवाद ने मुझे वैचारिक रूढ़ियों की निद्रा से जगा दिया", इस सत्य को प्रमाणित करती है। परंतु बुद्धि या मन को संशय रूपी रंग से पूर्णतया रँग लेना और प्रत्येक बात पर संदेह करना ठीक वैसा ही है जैसा हाथों में मैल न होने पर भी किसी पागल द्वारा उनका सतत और निरंतर धोया जाना।
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20231101.hi_184074_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
संशयवाद
George Hansen, "CSICOP and the Skeptics," The Journal of the American Society for Psychical Research vol. 86, no. 1, January 1992, pp. 19–63. A critical history of CSICOP and U..S. skeptical organizations.
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20231101.hi_184074_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
संशयवाद
"In the Name of Skepticism: Martin Gardner's Misrepresentations of General Semantics ," by Bruce I. Kodish, appeared in General Semantics Bulletin, Number 71, 2004. The Bulletin is published by the Institute of General Semantics
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530.333476
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
संशयवाद
Peter Suber, Classical Skepticism. An exposition of Pyrrho's skepticism through the writings of Sextus Empiricus
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530.333476
20231101.hi_33633_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9F
जोरहाट
जोरहाट की स्थापना 18 वीं सदी के अन्तिम दशक में हुई थी। यहां पर चौकीहाट और माचरहाट नाम के दो बाजार हैं। इसी कारण इसका नाम जोरहाट रखा गया है। यहां पर विभिन्न संस्कृतियों और जातियों से जुडे लोग रहते हैं। जिनमें असमिया, मुस्लिम, पंजाबी, बिहारी और मारवाड़ी प्रमुख हैं। जोरहाट को 1983 ई. में पूर्ण रूप से जिला घोषित किया गया था। जोरहाट में मुख्यत: वैष्णव धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। यहां पर वैष्णव धर्म से जुड़े अनेक मठ और सतरा भी बने हुए हैं।
0.5
529.869244
20231101.hi_33633_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9F
जोरहाट
जोरहाट की स्थापना 18वीं सदी के अन्तिम दशक में हुई थी। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यह नगर स्वतंत्र अहोम राज्य की राजधानी था; जोरहाट में ताई भाषा बोलने वाले अहोम लोगों ने लगभग पहली शताब्दी में चीन के युन्नान क्षेत्र से देशांतरण किया था। जोरहाट को 1983 ई. में पूर्ण रूप से ज़िला घोषित किया गया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9F
जोरहाट
जोरहाट में मुख्यत: वैष्णव धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। जोरहाट पर वैष्णव धर्म से जुड़े अनेक मठ और सतरा भी बने हुए हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9F
जोरहाट
यह वैष्णव धर्म का सबसे बड़ा तीर्थस्थान है। माजुली में वैष्णव धर्म के औनिआती, दक्षिणपथ, गारामूर और कमलाबाड़ी जैसे अनेक तीर्थस्थान हैं। इन तीर्थस्थानों को यहां के लोग सतरा पुकारते हैं। 2016 मैं माजुली को जोरहाट से अलग करके एक नए जिले का मान्यता दिया गया और इसी के साथ माजुली देश का प्रथम नदीदीप वन गया जिसे एक जिले का मान्यता प्राप्त हुआ।
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20231101.hi_33633_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9F
जोरहाट
दक्षिणपथ सतरा की स्थापना बनमालीदेव ने की थी। सतरा के साथ उन्होंने रासलीला की शुरूआत भी की थी। यहां पर हरेक साल रासलीला का आयोजन किया जाता है।
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20231101.hi_33633_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9F
जोरहाट
इसकी स्थापना निरंजन पाठकदेव ने की थी। यह सतरा अपने पालनाम और अप्सराओं के नृत्य के लिए प्रसिद्ध है। इसमें पर्यटक प्राचीन असम के बर्तनों, आभूषणों और हस्त निर्मित वस्तुओं को भी देख सकते हैं।
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529.869244
20231101.hi_33633_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9F
जोरहाट
बेदुलापदम अता ने इस सतरा की स्थापना की थी। यह सतरा वैष्णव धर्म का मुख्य तीर्थस्थान है। तीर्थस्थान होने के साथ ही यह कला, साहित्य, शिक्षा और संस्कृति का मुख्य केन्द्र भी है। इसकी एक शाखा भी है। इस शाखा का नाम उत्तर कमलाबाड़ी है। यह सतरा भारत और विश्व के अलग-अलग भागों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन करते हैं।
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20231101.hi_33633_8
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जोरहाट
इस सतरा की स्थापना मुरारीदेव ने की थी। यहां पर पर्यटक असम की संस्कृति से जुडी प्राचीन व दुलर्भ वस्तुओं का संग्रह देख सकते हैं। इन वस्तुओं में अहोम शासक स्वर्गदेव गदाधर सिंह के राजसी वस्त्र और उनका शाही छाता प्रमुख हैं। यह दोनों वस्तुएं सोने से बनी हुई है।
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20231101.hi_33633_9
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जोरहाट
शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में जगन्नाथ बरुआ महाविद्यालय, जोरहाट इंजीनियरिंग कॉलेज, असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट चिकित्सा महाविद्यालय, वर्षा वन अनुसंधान संस्थान, कॉलेज ऑफ़ वेटनरी साइंस और कॉलेज ऑफ़ फ़िशरीज, असम महिला विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान शामिल हैं।
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जराविद्या
जरावस्था के प्रारंभ के सामान्य लक्षण, बालों का सफेद होना तथा त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ जाना महत्व की घटना नहीं है। उसकी विशेषता आभ्यंतराँगों या ऊतकों (tissues) में होनेवाले वे परिवर्तन हैं, जिनके फलस्वरूप उन अंगों की क्रिया मंद पड़ जाती है। इस प्रकार के परिवर्तन बहुत धीमें और दीर्घकाल में होते हैं। चलने, भागने, दौड़ने की शक्ति का ह्रास इस अवस्था का प्रथम लक्षण है। किंतु यदि व्यक्ति युवावस्था में स्वस्थ रहा है तो अभ्यंतरांगों में ह्रास दीर्घकाल तक नहीं होता तथा विचार की शक्ति बढ़ जाती है। वृद्ध व्यक्ति में अपनी आयु के अनुभवों के कारण सांसारिक प्रश्नों को समझने और हल करने की विशेष क्षमता होती है। इसीलिए कहा गया है कि "न सा सभा यत्र न संति वृद्धा:"। वृद्ध व्यक्ति की नवीन विषयों को समझने की शक्ति भी नहीं घटती। यही पाया गया है कि 82 वर्ष की आयु में व्यक्ति की विषय को ग्रहण करने की शक्ति 12 वर्ष के बालक के समान होती है। यह शक्ति 22 वर्ष की आयु में सबसे अधिक उन्नत होती है।
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जराविद्या
प्राणिमात्र का शरीर असंख्य कोशिकाओं (cells) के समूहों का बना हुआ है। अतएव ह्रास की क्रिया का अर्थ है कोशिकाओं का ह्रास। कोशिकाओं की सदा उत्पत्ति होती रहती है। वे नष्ट होती रहती हैं और साथ ही नवीन कोशिकाएँ उत्पन्न भी होती रहती हैं। यह अवधि जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत होती रहती है। इस प्रकार कोशिकाएँ सदा नई बनी रहती हैं। कोशिकाओं का सामूहिक कर्म ही अंग का कर्म है। किंतु वृद्धावस्था प्रारंभ होने पर इनकी उत्पत्ति की शक्ति घटने लगती है और जितनी उत्पत्ति कम होती है, उतना ही अंगों की कर्मशक्ति का ह्रास होता है।
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जराविद्या
कोशिका के जीर्णन प्रविधि का ज्ञान अभी तक अत्यल्प है। इसके ज्ञान का अर्थ है जीवनोत्पत्ति का ज्ञान। इसका ज्ञान हो जाने पर जीवन ही बदला जा सकता है।
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जराविद्या
अंगों के ह्रास के कारण वृद्ध शरीर में बाह्य उत्तेजनाओं की प्रतिक्रिया करने की शक्ति घट जाती है। अतएव यह रोगों के जीवाणुओं (bacteria) आदि के शरीर में प्रवेश करने पर उनका प्रतिरोध नहीं कर पाता। आघात आदि से क्षत होने पर यह नवीन ऊतक बनाने में असमर्थ होता है। यद्यपि जरावस्था के रोग युवावस्था के रोगों से किसी प्रकार भिन्न नहीं होते, तो भी उपर्युक्त कारणों से चिकित्सा में बाधा उत्पन्न हो जाती है और चिकित्सक को विशेष आयोजन करना होता है। वृद्धावस्था में होनेवाले विशेष रोग ये हैं : धमनी काठिन्य (arteriosclerosis), तीव्र रक्त चाप (high blood pressure), मधुमेह (diabetes), गठिया (gout), कैंसर (cancer) तथा मोतियाबिंद (cataract)। इनमें से प्रथम और द्वितीय रोगों का हृदय और शारीरिक रक्त संचरण से सीधा संबंध होने के कारण उनसे अनेक प्रकार से हानि पहुँचने की आशंका रहती है।
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जराविद्या
उपर्युक्त जरावस्था के रोगों की विशेषता यह है कि वे लक्षण प्रकट होने के बहुत पहले प्रारंभ होते हैं, जब कि उनका संदेह तक नहीं हो सकता। 2 से 20 वर्ष पूर्व उनका प्रारंभ होता है। अनेक बार अन्य विकारों के कारण रोगी की जाँच करने पर उनका चिकित्सक को पता लगता है, तब उनको रोकना असंभव हो जाता है और वे असाध्य हो जाते हैं; अतएव चिकित्सक को प्रौढ़ावस्था के रोगियों की परीक्षा करते समय भावी संभावना को ध्यन में रखना चाहिए। शरीर के भीतर ही उत्पन्न विकार इन रोगों का कारण होते हैं। जीवाणुओं की भाँति इनका कोई बाहरी कारण नहीं होता, इस कारण इनका निरोध असंभव होता है।
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जराविद्या
प्रयोगों से मालूम हुआ कि शरीर की कोशिकाएँ बहुदीर्घजीवी होती हैं। एक विद्वान् ने मुर्गी के भ्रूण के हृदय का टुकड़ा काट कर उपयुक्त पोषक द्रव्य में 34 वर्ष तक रखा। इस दीर्घ काल के पश्चात् भी वे कोशिकाएँ वैसी ही सजीव और क्रियाशील थीं जैसी प्रारंभ में। इसके कई गुना लंबे काल तक कोशिकाएँ जीवित रखी गई हैं। विद्वानों का कथन है कि वे अमर सी मालूम होती है। अत: प्रश्न उठता है कि जरावस्था का क्या कारण है?
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जराविद्या
विद्वानों का मत है कि जरा का कारण कोशिकाओं के बीच की अंतर्वस्तु द्रव (fluids), तंतुओं आदि में देखना चाहिए। उनके मतानुसार इन तंतुओं या अन्य प्रकार की अंतर्वस्तु द्रव की वृद्धि हो जाती है, जो अपने में खनिज लवण एकत्र होने से कड़े पड़ जाते हैं। इस कारण अतंर्स्थान में होकर जो वाहिकाएँ कोशिकाओं को पोषण पहुँचाती हैं, वे दब जाती हैं तथा दब कर नष्ट हो जाती हैं जिससे कोशिकाओं में पोषण नहीं पहुँच पाता और वे नष्ट होने लगती हैं। इसी से जरावस्था की उत्पत्ति होती है।
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जराविद्या
जरावस्था सदा से सामाजिक प्रश्न रही है। वृद्धावस्था में स्वयं व्यक्ति में जीवकोपार्जन की शक्ति नहीं रहती और अधिक आयु होने पर उनके लिए चलना फिरना या नित्यकर्म करना भी कठिन होता है। अतएव वृद्धों को न केवल अपनी उदर पूर्ति के लिये अपितु अपने अस्तित्व तक के लिए दूसरों पर निर्भर करना पड़ता है। समाज के सामने सदा से यह प्रश्न रहा है कि किस प्रकार वृद्धों को समाज पर भार न बनने दिया जाए, उनको समाज का एक उपयोगी अंग बनाया जाए तथा उनकी देखभाल, उनकी आवश्कताओं की पूर्ति तथा सब प्रकार की सुविधाओं का प्रबंध किया जाए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
जराविद्या
यह प्रश्न 20वीं शताब्दी में और भी जटिल हो उठा है, क्योंकि जीवनकाल की अवधि में विशेष वृद्धि होने से वृद्धों की संख्या बहुत बढ़ गई है। इस कारण उनके लिए निवासस्थान, जरावस्था पेंशन (जो अभीतक यथोचित रूप में हमारे देश में नहीं है, किंतु उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे प्रारंभ कर दिया है।) सरकार उनका भरणपोषण, जो काम करने योग्य हों उनके लिए उपयुक्त काम, बीमार होने पर चिकित्सा का प्रबंध तथा अन्य अनेक ऐसे प्रश्न हैं जो समाज को सुलझाने होंगे। इस विषय की ओर सन् 1940 से पूर्व विशेष ध्यान नहीं दिया गया था। किंतु अब यह प्रश्न, विशेषकर पाश्चात्य देशों में, इतना जटिल हो उठा है कि उन देशों की सरकारें इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने और उचित योजनाएँ बनाने में व्यस्त हैं, क्योंकि उसका प्रभाव जाति के सभी आयुवालों पर पड़ता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5
कीव
उस समय से संबंधित बहुत कम ऐतिहासिक साक्ष्य हैं जब शहर की स्थापना हुई थी। 6 वीं शताब्दी से इस क्षेत्र में बिखरी हुई स्लाव बस्तियों का अस्तित्व था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उनमें से कोई बाद में शहर में विकसित हुआ या नहीं। टॉलेमी दुनिया के नक्शे पर बोरीस्थनीज की मध्य-धारा के साथ संकेतित कई बस्तियां हैं, जिनमें से अज़ागेरियम है, जिसे कुछ इतिहासकार कीव के पूर्ववर्ती मानते हैं।हालांकि, अलेक्जेंडर मैकबीन के प्राचीन भूगोल के 1773 के शब्दकोश के अनुसार, यह समझौता आधुनिक शहर चेरनोबिल से मेल खाता है। अज़ागरियम के ठीक दक्षिण में, एक और बस्ती है, अमाडोका, जिसे अमादोसी लोगों की राजधानी के रूप में माना जाता है जो पश्चिम में अमाडोका के दलदल और पूर्व में अमाडोका पहाड़ों के बीच के क्षेत्र में रहते हैं।इतिहास में उल्लेखित कीव का एक अन्य नाम, जिसकी उत्पत्ति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, संबत है, जिसका स्पष्ट रूप से खजर साम्राज्य से कुछ लेना-देना है। द प्राइमरी क्रॉनिकल का कहना है कि कीव के निवासियों ने आस्कॉल्ड को बताया, "तीन भाई क्यी, श्केक और खोरीव थे। उन्होंने इस शहर की स्थापना की और मर गए, और अब हम रह रहे हैं और उनके रिश्तेदारों खजरों को कर दे रहे हैं"। अपनी पुस्तक डी एडमिनिस्ट्रांडो इम्पीरियो में, कॉन्स्टेंटाइन पोर्फिरोजेनिटस ने छोटे-कार्गो नावों के एक कारवां का उल्लेख किया है जो सालाना इकट्ठा होते हैं, और लिखते हैं, "वे नीपर नदी के नीचे आते हैं और कीव (किओवा) के मजबूत बिंदु पर इकट्ठा होते हैं, जिसे संबात भी कहा जाता है"।कम से कम तीन अरबी भाषी 10वीं शताब्दी के भूगोलवेत्ता जिन्होंने इस क्षेत्र की यात्रा की, ज़ांबाट शहर का उल्लेख रूस के मुख्य शहर के रूप में किया। उनमें से अहमद इब्न रुस्तह, अबू सईद गरदेज़ी और हुदुद अल-आलम के लेखक हैं। उन लेखकों के ग्रंथों की खोज रूसी प्राच्यविद् अलेक्जेंडर तुमांस्की ने की थी। संबत की व्युत्पत्ति का तर्क कई इतिहासकारों द्वारा दिया गया है, जिनमें ग्रिगोरी इलिन्स्की, निकोले करमज़िन, जान पोटोकी, निकोले लैम्बिन, जोआचिम लेलेवेल, गुसब्रांडुर विगफसन शामिल हैं । इतिहासकार जूलियस ब्रुत्स्कस ने अपने काम "द खजर ओरिजिन ऑफ एंशिएंट कीव" में परिकल्पना की है कि संबत और कीव दोनों क्रमशः खजर मूल के हैं जिसका अर्थ है "पहाड़ी किला" और "निचला समझौता"। ब्रुत्ज़्कुस का दावा है कि संबत कीव नहीं है, बल्कि वाइसहोरोड (हाई सिटी) है जो पास में स्थित है।प्राथमिक कथाएँ (प्राइमरी क्रॉनिकल्स) बताती हैं कि 9वीं या 10वीं शताब्दी की शुरुआत के दौरान किसी समय आस्कोल्ड और डिर, जो वाइकिंग या वारंगियन वंश के हो सकते थे, ने कीव में शासन किया। 882 में नोवगोरोड के ओलेग द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी, लेकिन कुछ इतिहासकार, जैसे ओमेलजन प्रित्सक और कॉन्स्टेंटाइन जुकरमैन, विवाद करते हैं कि खजर शासन 920 के दशक के अंत तक जारी रहा (उल्लेखनीय ऐतिहासिक दस्तावेजों में कीवान पत्र और शेचटर पत्र हैं)।अन्य इतिहासकारों का मानान है कि कुछ खजर जनजातियों के साथ कार्पेथियन बेसिन में प्रवास करने से पहले, मग्यार जनजातियों ने 840 और 878 के बीच इस शहर पर शासन किया। प्राथमिक कथाओं में हंगरी लोगों के कीव से आगे जाने का भी उल्लेख है। आज भी कीव में एक जगह मौजूद है जिसे " उहोर्स्के यूरोचिश " (हंगेरियाई स्थान) के नाम से जाना जाता है, जिसे आस्कोल्ड्स ग्रेव के नाम से जाना जाता है।
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20231101.hi_2426_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5
कीव
कीव शहर वरंगियन और यूनानियों के बीच व्यापार मार्ग पर खड़ा था। 968 में खानाबदोश पेचनेग्स ने हमला किया और फिर शहर को घेर लिया। 1000 ईस्वी तक शहर की आबादी 45,000 थी।मार्च 1169 में, व्लादिमीर- सुज़ाल के ग्रैंड प्रिंस एंड्री बोगोलीबुस्की ने पुराने शहर और राजकुमार के हॉल को खंडहर में छोड़कर कीव को बर्खास्त कर दिया। उन्होंने धार्मिक कलाकृति के कई टुकड़े - व्लादिमीर आइकन के थियोटोकोस सहित - पास के विशोरोड से लिए। 1203 में, राजकुमार रुरिक रोस्टिस्लाविच और उनके किपचक सहयोगियों ने कीव पर कब्जा कर लिया और जला दिया। 1230 के दशक में, विभिन्न रूसी राजकुमारों द्वारा शहर को कई बार घेर लिया गया और तबाह कर दिया गया। शहर इन हमलों से उबर नहीं पाया था, जब 1240 में, बाटू खान के नेतृत्व में रूस के मंगोल आक्रमण ने कीव के विनाश को पूरा किया।इन घटनाओं का शहर के भविष्य और पूर्वी स्लाव सभ्यता पर गहरा प्रभाव पड़ा। बोगोलीबुस्की की लूट से पहले, कीव की दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से एक के रूप में प्रतिष्ठा थी, जिसकी आबादी 12 वीं शताब्दी की शुरुआत में 100,000 से अधिक थी।1320 के दशक की शुरुआत में, ग्रैंड ड्यूक गेडिमिनस के नेतृत्व में एक लिथुआनियाई सेना ने इरपेन नदी पर लड़ाई में कीव के स्टानिस्लाव के नेतृत्व में एक स्लाव सेना को हराया और शहर पर विजय प्राप्त की। टाटर्स, जिन्होंने कीव पर भी दावा किया, ने 1324-1325 में जवाबी कार्रवाई की, इसलिए जबकि कीव पर लिथुआनियाई राजकुमार का शासन था, उसे गोल्डन होर्डे को श्रद्धांजलि देनी पड़ी। अंत में, 1362 में ब्लू वाटर्स की लड़ाई के परिणामस्वरूप, लिथुआनिया के ग्रैंड ड्यूक, अल्गिरदास ने कीव और आसपास के क्षेत्रों को लिथुआनिया के ग्रैंड डची में शामिल किया। 1482 में, क्रीमियन टाटर्स ने कीव के अधिकांश हिस्से को तहस नहस कर दिया और जला दिया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5
कीव
1569 ( ल्यूबेल्स्की संघ) के साथ, जब पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल की स्थापना हुई, कीव क्षेत्र ( पोडोलिया, वोल्हिनिया और पोडलाचिया ) की लिथुआनियाई-नियंत्रित भूमि को लिथुआनिया के ग्रैंड डची से राज्य के क्राउन में स्थानांतरित कर दिया गया। पोलैंड और कीव कीव वोइवोडीशिप की राजधानी बन गए हादियाच की 1658 संधि ने पोलिश-लिथुआनियाई-रूथेनियन राष्ट्रमंडल के कीव को रूस के ग्रैंड डची की राजधानी बनने की परिकल्पना की थी, लेकिन संधि का यह प्रावधान कभी भी लागू नहीं हुआ।पेरेयास्लाव की 1654 की संधि के बाद से रूसी सैनिकों द्वारा कब्जा कर लिया गया, कीव 1667 से एंड्रसोवो के युद्धविराम के बाद रूस के साम्राज्य का हिस्सा बन गया और एक सीमा तक स्वायत्त भी बना रहा। कीव से संबंधित पोलिश-रूसी संधियों में से किसी की भी कभी पुष्टि नहीं की गई है। रूसी साम्राज्य में, कीव एक प्राथमिक ईसाई केंद्र था, जो तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता था, और साम्राज्य के कई सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक आंकड़ों का पालना था, लेकिन 19वीं शताब्दी तक, शहर का व्यावसायिक महत्व मामूली रहा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5
कीव
1834 में, रूसी सरकार ने सेंट व्लादिमीर विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसे अब यूक्रेनी कवि तारास शेवचेंको (1814-1861) के बाद कीव का तारास शेवचेंको राष्ट्रीय विश्वविद्यालय कहा जाता है। (शेवचेंको ने भूगोल विभाग के लिए एक क्षेत्र शोधकर्ता और संपादक के रूप में काम किया)। सेंट व्लादिमीर विश्वविद्यालय के चिकित्सा संकाय, सोवियत काल के दौरान 1919-1921 में एक स्वतंत्र संस्थान में अलग हो गए, 1995 में बोगोमोलेट्स नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी बन गए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5
कीव
19वीं शताब्दी के अंत में रूसी औद्योगिक क्रांति के दौरान, कीव रूसी साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण व्यापार और परिवहन केंद्र बन गया, रेलवे और द्नीपर नदी पर चीनी और अनाज निर्यात में विशेषज्ञता हासिल की। 1900 तक, शहर 250,000 की आबादी वाला एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र भी बन गया था। उस अवधि के स्थलों में रेलवे बुनियादी ढांचा, कई शैक्षिक और सांस्कृतिक सुविधाओं की नींव, और उल्लेखनीय स्थापत्य स्मारक (ज्यादातर व्यापारी-उन्मुख) शामिल हैं। 1892 में, रूसी साम्राज्य की पहली इलेक्ट्रिक ट्राम लाइन कीव (दुनिया में तीसरी) में चलने लगी।कीव 19वीं सदी के अंत में रूसी साम्राज्य में औद्योगिक क्रांति के दौरान समृद्ध हुआ, जब यह साम्राज्य का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण शहर और इसके दक्षिण-पश्चिम में वाणिज्य का प्रमुख केंद्र बन गया। 1917 की रूसी क्रांति के बाद की अशांत अवधि में, कीव एक के बाद आए कई यूक्रेनी राज्यों की राजधानी बना और कई संघर्षों के बीच में फंस गया: प्रथम विश्व युद्ध, जिसके दौरान जर्मन सैनिकों ने 2 मार्च 1918 से नवंबर 1918 तक इस पर कब्जा कर लिया, रूसी नागरिक 1917 से 1922 का युद्ध और 1919-1921 का पोलिश-सोवियत युद्ध। 1919 के अंतिम तीन महीनों के दौरान, कीव पर रुक-रुक कर श्वेत सेना का नियंत्रण रहा। 1918 के अंत से अगस्त 1920 तक कीव ने सोलह बार हाथ बदले।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5
कीव
1921 से 1991 तक, शहर यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य का हिस्सा बना, जो 1922 में सोवियत संघ का एक संस्थापक गणराज्य बन गया। युद्ध के बीच की अवधि के दौरान सोवियत यूक्रेन में हुई प्रमुख घटनाओं ने कीव को प्रभावित किया: 1920 के उक्रेनीकरण के साथ-साथ ग्रामीण उक्रेनोफोन आबादी के प्रवास ने रूसोफोन शहर को यूक्रेनी-भाषी बना दिया और शहर में यूक्रेनी सांस्कृतिक जीवन के विकास को बढ़ावा दिया; 1920 के दशक के उत्तरार्ध में शुरू हुए सोवियत औद्योगीकरण ने शहर को एक प्रमुख औद्योगिक, तकनीकी और वैज्ञानिक केंद्र में बदल दिया, जो वाणिज्य और धर्म का एक पूर्व केंद्र था; 1932-1933 महान अकाल ने प्रवासी आबादी के उस हिस्से को तबाह कर दिया जो राशन कार्ड के लिए पंजीकृत नहीं थे; और जोसफ स्टालिन के 1937-1938 के महान शुद्धिकरण ने शहर के बुद्धिजीवियों को लगभग समाप्त कर दिया1934 में, कीव सोवियत यूक्रेन की राजधानी बना। सोवियत औद्योगीकरण के वर्षों के दौरान शहर में फिर से उछाल आया क्योंकि इसकी आबादी तेजी से बढ़ी और कई औद्योगिक दिग्गज स्थापित हुए, जिनमें से कुछ आज भी मौजूद हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5
कीव
द्वितीय विश्व युद्ध में, शहर को फिर से महत्वपूर्ण क्षति हुई, और नाजी जर्मनी ने 19 सितंबर 1941 से 6 नवंबर 1943 तक इस पर कब्जा कर लिया। 1941 में कीव के महान घेराव युद्ध में धुरी बलों ने 600,000 से अधिक सोवियत सैनिकों को मार डाला या कब्जा कर लिया। पकड़े गए अधिकांश लोग कभी जीवित नहीं लौटे। वेहरमाच के शहर पर कब्जा करने के कुछ ही समय बाद, एनकेवीडी अधिकारियों की एक टीम, जो छिपी हुई थी ने शहर की मुख्य सड़क, ख्रेशचैटिक पर अधिकांश इमारतों को डाइनामाइट से उडा दिया, जहां जर्मन सैन्य और नागरिक अधिकारियों ने अधिकांश इमारतों पर कब्जा कर लिया था; इमारतें दिनों तक जलती रहीं और 25,000 लोग बेघर हो गए।कथित तौर पर एनकेवीडी की कार्रवाइयों के जवाब में, जर्मनों ने उन सभी स्थानीय यहूदियों को घेर लिया, जो उन्हें मिल सकते थे, लगभग 34,000, और 29 और 30 सितंबर 1941 को कीव के बाबी यार में उनका नरसंहार किया। इसके बाद के महीनों में, हजारों और लोगों को बाबी यार ले जाया गया जहां उन्हें गोली मार दी गई। यह अनुमान लगाया गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनों ने बाबी यार में विभिन्न जातीय समूहों के 100,000 से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी, जिनमें ज्यादातर नागरिक थे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5
कीव
युद्ध के बाद के वर्षों में कीव आर्थिक रूप से ठीक होता गया और एक बार फिर सोवियत संघ का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण शहर बन गया। 1986 में चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र में विनाशकारी दुर्घटना शहर के उत्तर में केवल हुई। हालांकि, उस समय दक्षिण की ओर चल रही हवा ने अधिकांश रेडियोधर्मी मलबे को कीव से दूर उड़ा दिया।सोवियत संघ के पतन के दौरान यूक्रेनी संसद ने 24 अगस्त 1991 को शहर में यूक्रेन की स्वतंत्रता की घोषणा की घोषणा की । 2004-2005 में, ऑरेंज क्रांति के समर्थन में, शहर में उस समय तक सोवियत संघ के बाद के सबसे बड़े सार्वजनिक प्रदर्शन हुए। नवंबर 2013 से फरवरी 2014 तक, केंद्रीय कीव यूरोमैदान का प्राथमिक स्थान बन गया।
0.5
523.920225
20231101.hi_2426_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5
कीव
भौगोलिक रूप से, कीव पोलेसिया वुडलैंड पारिस्थितिक क्षेत्र की सीमा पर स्थित है, जो यूरोपीय मिश्रित जंगल क्षेत्र का एक हिस्सा है, और पूर्वी यूरोपीय वन स्टेपी बायोम है। हालांकि, शहर का अनूठा परिदृश्य इसे आसपास के क्षेत्र से अलग करता है। कीव पूरी तरह से कीव ओब्लास्ट से घिरा हुआ है।मूल रूप से पश्चिमी तट पर, आज कीव नीपर के दोनों किनारों पर स्थित है, जो शहर के बीच से काला सागर की ओर दक्षिण की ओर बहती है। शहर का पुराना और ऊँचा पश्चिमी भाग कई जंगली पहाड़ियों ( कीव हिल्स ) पर स्थित है, जिसमें खड्ड और छोटी नदियाँ हैं। कीव की भौगोलिक राहत ने पोडिल (निचला मतलब), पेचेर्सक (गुफाएं), और उज्विज़ (एक खड़ी सड़क, "वंश") जैसे इसके शीर्ष नामों में योगदान दिया। कीव, अपने मध्य-प्रवाह में नीपर के पश्चिमी तट से सटे बड़े नीपर अपलैंड का एक हिस्सा है, और जो शहर के उन्नयन परिवर्तन में योगदान देता है।शहर के भीतर नीपर नदी शहर की सीमा के भीतर सहायक नदियों, द्वीपों और बंदरगाहों की एक शाखा प्रणाली बनाती है। यह शहर उत्तर में देसना नदी के मुहाने और कीव जलाशय और दक्षिण में कानिव जलाशय के करीब है। नीपर और डेसना दोनों नदियाँ कीव में नौगम्य हैं, हालाँकि जलाशय शिपिंग तालों द्वारा विनियमित और सर्दियों के फ़्रीज़-ओवर द्वारा सीमित हैं।कुल मिलाकर, कीव की सीमाओं के भीतर खुले पानी के 448 निकाय हैं, जिनमें स्वयं नीपर, इसके जलाशय और कई छोटी नदियाँ, दर्जनों झीलें और कृत्रिम रूप से बनाए गए तालाब शामिल हैं। वे 7949 हेक्टेयर पर स्थित हैं। इसके अतिरिक्त, शहर में 16 विकसित समुद्र तट (कुल 140 हेक्टेयर) और 35 निकट-जल मनोरंजन क्षेत्र (1,000 हेक्टेयर से अधिक का क्षेत्रफल) हैं। कई का उपयोग आनंद और मनोरंजन के लिए किया जाता है, हालांकि पानी के कुछ निकाय तैरने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।संयुक्त राष्ट्र 2011 के मूल्यांकन के अनुसार, कीव और उसके महानगरीय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं का कोई जोखिम नहीं था।
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20231101.hi_1232807_11
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थाईपुसम
कुछ भक्त अपनी जीभ और गाल में 'वेल' (छोटे लेंस) के साथ छेद करते हैं। भक्त भगवान मुरुगन को पीले और नारंगी फल एवं फूल चढ़ाते हैं। वे पीले या नारंगी रंग के रंगीन पोशाक पहनते हैं। इन दो रंगों की पहचान मुरुगन के साथ की जाती है।
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थाईपुसम
भक्त आध्यात्मिक रूप से प्रार्थना और उपवास के माध्यम से स्वयं को 48 दिनों तक त्योहार मनाने के लिए तैयार करते हैं। त्योहार के दिन, भक्त भगवान के आगे अपना सिर झुकाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान के विभिन्न कृत्यों में खुद को शामिल करते हुए तीर्थयात्रा के लिए बाहर निकलते हैं।
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थाईपुसम
विशेष रूप से इस दिन भक्त कांवड़ लेते हैं। कुछ भक्त कावंड़ के रूप में दूध का एक बर्तन लेते हैं। कुछ त्वचा, जीभ या गाल में छेद कर कांवड़ या बोझ लेते हैं।
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थाईपुसम
इस त्योहार में सबसे कठिन और तपस्या का जो अभ्यास होता है वो 'वाल कांवड़' है। वाल कांवड़ एक पोर्टेबल वेदी है जो लगभग दो मीटर लंबा है और मोर पंखों से सजा हुआ होता है। इसे भक्त अपनी छाती में छेद कराकर 108 वेल्स के माध्यम से शरीर में जोड़ते हैं। ये भक्त भगवान की भक्ति में इतने लीन रहते हैं कि इन्हें किसी भी तरह की दर्द, तकलीफ का अहसास तक नहीं होता।
0.5
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थाईपुसम
कावड़ी अट्टम ("कावड़ी नृत्य") नृत्य, भोजन प्रसाद और शारीरिक आत्म-मृत्यु के माध्यम से भक्ति बलिदान का एक औपचारिक कार्य है। यह अक्सर मुरुगन के सम्मान में थिपुसुम के त्योहार के दौरान भक्तों द्वारा किया जाता है। कावड़ी एक अर्धवृत्ताकार, सजी हुई छतरी है जो लकड़ी की छड़ द्वारा समर्थित है जिसे तीर्थयात्री अपने कंधों पर मंदिर में ले जाते हैं। भक्त नंगे पांव तीर्थ यात्रा (नादई पायनम) करता है, कावड़ी पर भोजन चढ़ाता है। मंदिर के स्थान के आधार पर, मंदिर तक चलने में एक सप्ताह से अधिक समय लग सकता है। पलानी में मुरुगन का मंदिर एक लोकप्रिय गंतव्य है, क्योंकि यह अरुपदई वेदू ("छह घर" - मुरुगन के लिए पवित्र स्थल) में से एक है। पैलानी मुरुगन मंदिर भी उपचार के स्थान के रूप में एक प्रतिष्ठा है। बोगर (एक प्राचीन सिद्धार और मुरुगन के भक्त) ने पलानी में मुरुगन की प्रतिमा बनाई, जिसमें कई पाल्धा दवाओं का मिश्रण था। [उद्धरण वांछित]
1
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A4%AE
थाईपुसम
भक्तगण उनके शरीर को हमेशा साफ रखने, नियमित प्रार्थना करने, शाकाहारी भोजन का पालन करने और थप्पड़म से पहले उपवास करके उत्सव की तैयारी करते हैं। कावड़ी धारण करने वालों को कवाड़ी को ग्रहण करने के समय और मुरुगन को अर्पित करने के समय विस्तृत समारोह करना पड़ता है। कवाड़ी-वाहक ब्रह्मचर्य का पालन करता है और केवल कुछ प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करता है, जिन्हें सात्विक भोजन के रूप में जाना जाता है, दिन में एक बार, भगवान की निरंतर सोच के लिए। त्यौहार के दिन, भक्त अपने सिर मुंडवाते हैं और एक निर्धारित मार्ग पर यात्रा करते हैं, जबकि भक्ति के विभिन्न कार्यों में संलग्न होते हैं, विशेष रूप से विभिन्न प्रकार के कावड़ी। भक्तों का मानना ​​है कि इस तरह हर साल भगवान मुरुगन की पूजा करने से वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाते हैं, और उन्हें उन कर्मी ऋणों को दूर करने में मदद मिलती है जो उनके द्वारा किए गए हो सकते हैं। [उद्धरण वांछित]
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A4%AE
थाईपुसम
अपने सरलतम समय में, तीर्थयात्रा दूध के बर्तन ले जाने वाले मार्ग पर चलने के लिए प्रवेश कर सकती है, लेकिन त्वचा, जीभ या गालों को छेदने के साथ छेद कर मांस को गिराना भी आम है। इसके अलावा, कुछ लोग अपनी जीभ या गाल, एक छोटे भाले के साथ, सभी तरह से छेदते हैं। [ce]
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A4%AE
थाईपुसम
भारत के पझानी में नागरथार समुदाय द्वारा एक समान अभ्यास किया जाता है। इसे नगरतौर कावड़ के नाम से जाना जाता है
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A4%AE
थाईपुसम
पलानी श्री ढांडायुथापानी मंदिर में, थिपुसुम के दौरान 10 दिवसीय महोत्सव (ब्रह्मोत्सवम) आयोजित किया जाता है। थिरुक्लयनम (सेलेस्टियल वेडिंग) थिपुसम से एक दिन पहले आयोजित किया जाएगा। थिपुसुम पर, थोट्टम आयोजित किया जाएगा। भगवान मुथुकुमारस्वामी 10 दिवसीय उत्सव के दौरान थंगा गुथिराई वाहन (गोल्डन हॉर्स), पेरिया थंगा मेइल वहनम (गोल्डन पीकॉक), थेपोत्सवम (फ्लोट फेस्टिवल) में भक्तों को आशीर्वाद देंगे।
0.5
523.8405
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%B5%E0%A4%B0
वैंकूवर
जीवन की अवस्था के आधार पर वैंकूवर को विश्व के पाँच सबसे अच्छे शहरों में से एक गिना गया है, और इकॉनमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (Economist Intelligence Unit) ने लगातार 10 वर्षों से इस शहर को विश्व का सबसे रहने-योग्य पद दिया है। मगर वैंकूवर को कनाडा के सबसे महँगे शहरों में भी गिना जाता है, जिससे यहाँ का निवास विश्व में चौथा सबसे महँगा साबित होता है। 2011 में इस शहर ने शपथ ली थी कि 2020 तक दुनिया का सबसे पर्यावरण-अनुकूल शहर बनेगा। 'वैंकूवरत्व' (Vancouverism) शहर का शहरी नियोजन डिजाइन दर्शन है।
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वैंकूवर
2016 में वैंकूवर का पोर्ट मेट्रो वैंकूवर उत्तर अमेरिका का चौथा सबसे बड़ा बंदरगाह, कनाडा का सबसे व्यस्त बंदरगाह और उत्तर अमेरिका का सबसे विविध बंदरगाह था। जहाँ वानिकी इस शहर की प्रमुख उद्योग है, वैंकूवर को प्रकृति से घिरे एक महानगर के रूप में काफी हद तक जाना जाता है, जिसकी वजह से पर्यटन भी एक प्रमुख उद्योग है। वैंकूवर और पास के बर्नाबी में मौजूद फिल्म निर्माण स्टूडियों की वजह से यह उत्तर अमेरिका के सबसे बड़े फिल्म निर्माण केंद्रों में से एक बन चुका है, और इससे इसे "उत्तर का हॉलीवुड" ("Hollywood North") उपनाम प्राप्त हुआ है।
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वैंकूवर
इस शहर ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल और साधारण प्रतिस्पर्धाओं को होस्ट भी किया है जैसे 1954 कॉमनवेल्थ खेल, एक्सपो 86 और 2015 फीफा महिला विश्व कप।
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वैंकूवर
शहर को यह नाम जॉर्ज वैंकूवर नामक खोजकर्ता से प्राप्त होता है जिसने सन् 1792 में बर्रार्ड इनलेट में बंदरगाह की खोज की और वहाँ के जगहों को ब्रिटिश नाम दिए। पारिवारिक नाम "वैंकूवर" डच शब्द "van Coevorden" से आता है जो कोवोर्डेन, नेदरलैंड्स के लोगों को दिया जाता है। खोजकर्ता के पूर्वज कोवोर्डेन से इंग्लैंड आए थे इसलिए यह उस नाम की शुरुआत है जो आखिर में जाकर "Vancouver" बनी।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%B5%E0%A4%B0
वैंकूवर
यहाँ रहने वाले देशज स्क्वामिश लोगों ने इस जगह का नाम 'K'emk'emeláy̓' रखा था जिसका मतलब है "मेपल पड़ों का स्थान"; यह पहले उस गाँव का नाम था जहाँ पर कैप्टेन एडवर्ड स्टैंप ने एक सॉमिल की स्थापना की और वही बस्ती बाद में वैंकूवर का हिस्सा बनी।
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वैंकूवर
देशज लोग करीब 8,000 से 10,000 साल पहले से इस क्षेत्र में रह रहे थे। यह शहर पूर्व स्क्वामिश, मुस्कियाम, और स्लेइल-वौटुथ जैसे जातियों की स्थानीय भूमि पर बसा है। उनके पास वर्तमान वैंकूवर के कई हिस्सों में गाँव थे जैसे स्टैनली पार्क, फ़ॉल्स क्रीक, किट्सिलियानो, पॉइंट ग्रे, और फ्रेसर नदी के पास। वर्तमान वैंकूवर के स्थान को हाल्कोमेलेम भाषा में 'Lhq’á:lets' कहा जाता था, जिसका मतलब है "अंत में चौड़ा"।
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वैंकूवर
1791 में क्षेत्र का संपर्क यूरोपीयों से हुआ जब स्पेनिश खोजकर्ताओं ने पॉइंट ग्रे की खोज की, हालाँकि एक लेखक का दावा है कि फ्रांसिस ड्रेक 1759 में ही इस क्षेत्र में पहुँच गए थे। पश्चिमोत्तर कंपनी के व्यापारिक साइमन फ्रेसर और उनके दल इस भूमि पर कदम रखने वाले पहले यूरोपीय बने। वे फ्रेसर नदी के सहारे काफी अंदर तक गए, शायद पॉइंट ग्रे तक भी।
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वैंकूवर
1858 में फ्रेसर खदान में खुदाई करने के लिए कम से कम 25,000 लोगों को पास के न्यू वेस्टमिंस्टर में लाया गया, जिनमें से ज़्यादातर कैलिफ़ोर्निया से थे। न्यू वेस्टमिंस्टर तक पहुँचने के लिए वैंकूवर से गुज़रना नहीं पड़ता था। वैंकूवर ब्रिटिश कोलंबिया के सबसे नए शहरों में से एक है;
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वैंकूवर
1862 में इस स्थान को पहली बार यूरोपीयों द्वारा तब बसाया गया जब उन द्वारा मुस्कियाम नामक प्राचीन गाँव के पूर्व में वर्तमान मार्पोल पर एक खेत की सृष्टि की गई। मूडीविल (वर्तमान उत्तर वैंकूवर नगर) में एक सॉमिल स्थापित किया गया जिससे 1863 में शहर को लकड़ी का कुन्दे के कार्य से परिचय हुआ। इस मिल का नाम हेस्टिंग्स मिल रखा गया और वैंकूवर इसी के आस-पास से बसना शुरू हुआ। 1880 युग में कैनेडियन पैसिफ़िक रेलवे (CPR) के आने के बाद इस मिल की भूमिका कम हो गई, मगर वैंकूवर फिर भी 1920 युग में मिल के बंद होने तक एक स्थानीय अर्थव्यवस्था केंद्र बना रहा। गैसटाउन नामक यह बस्ती 1867 में जेक डेइटन द्वारा बनाए गए मधुशालों के आस-पास तेज़ी से बढ़ने लगा।
0.5
523.26152
20231101.hi_26647_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
भविष्य
वर्तमान से निकल कर जैसे ही हम अपना अगला, देखने, सुनने, और समझ कर करने का प्रयास शुरु करेंगे, वह ही भविष्य ही भविष्य होगा.
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
भविष्य
अभी तक वर्तमान काल भूत काल और भविष्य काल के बारे में सुना देखा समझा और पढ़ा है वर्तमान काल यानि जो हमारे या किसी के द्वारा हो रहे कार्य को दर्शाता है वर्तमान काल कहलाता है भूत काल जो हमारे या किसी और के द्वारा हो चुके कार्य को दर्शाता है भविष्य काल वह कल है जो हमारे या किसी और के द्वारा सोचे गए कार्य को दर्शाता या बताता है यूज हमे भविष्य काल कहलाता है लेकिन समय 1 प्रकार का होता है लेकिन अलग अलग रूप से जरूर देखने को मिलता है लेकिन इनका सबका सामना वर्तमान से ही होता है जो करोगे वह वर्तमान में पाओगे चाहें वह निगेटिव हो या पॉजिटिव ok
0.5
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20231101.hi_26647_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
भविष्य
1.वर्तमान एक होता है लेकिन फल दो प्रकार से मिलता है चाहें वह पॉजिटिव या निगेटिव हो फल भूत काल से वर्तमान काल में प्राप्त होता है न भूत से न भविष्य से भविष्य सिर्फ एक अनुमान या टारगेट है कोई निश्चित या फिक्स नही है कि क्रिया या कार्य होगा ही सभी जीवों या निर्जिवों का भूत भविष्य वर्तमान बदलता रहता हैं कुछ भी एक टारगेट निश्चित नहीं रहता है क्योंकि जब आप वर्तमान में करोगे तब बिगड़ेगा या बेहतर सुधार आएगा। या स्पीट आयेगी लेकिन वर्तमान में कोई टारगेट निश्चित नहीं होता है टारगेट में परिवर्तन होता रहता है अगर रुका ना जाए तो चाहें निगेटिव के प्रति हो या पॉजिटिव के प्रति हो लेकिन परिवर्तन होगा जरुर
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
भविष्य
i जीव या व्यक्ती जो स्वयं बनाता है वह जैसी क्रिया एवं कार्य करेंगा वैसा भविष्य बनेगा चाहें निगेटिव हो या पॉजिटिव हों ok
0.5
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20231101.hi_26647_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
भविष्य
ii वह भविष्य जो समाज या प्रकृति द्वारा बनता है और ये भविष्य समाज में रहने वाले हर एक जीव या निर्जिवों पर असर करता है जैसे व्यक्तियों के बीच युद्ध होना या कोई भी अचानक दुर्घटना होना या प्रकृति द्वारा अचानक कोई दुर्घटना होना जैसे सूखा पड़ता बहाड़ आना भूकंप आना तूफान आना या कोई बीमारी आना या वर्षा होना फसले तैयार होना ये सब ये कुछ प्रकृति या जीवों द्वारा मिलता है वर्तमान में है जो वर्तमान में करोगे वही हकीकत में मिलेगा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
भविष्य
वर्तमान एक होता है लेकिन फल दो प्रकार से मिलता है चाहें वह पॉजिटिव या निगेटिव हो फल वर्तमान से प्राप्त होता है न भूत से न भविष्य से भविष्य सिर्फ अनुमान या टारगेट है भूत सुधारने या बिगाड़ने की सिख या समय देता है
0.5
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20231101.hi_26647_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
भविष्य
सभी जीवों या निर्जिवों का भूत भविष्य वर्तमान बदलता रहता हैं कुछ भी एक टारगेट निश्चित नहीं रहता है क्योंकि जब आप वर्तमान में करोगे तब बिगड़ेगा या बेहतर सुधार आएगा। या स्पीट आयेगी लेकिन वर्तमान में कोई टारगेट निश्चित नहीं होता है टारगेट में परिवर्तन होता रहता है अगर रुका ना जाए तो चाहें निगेटिव के प्रति हो या पॉजिटिव के प्रति हो लेकिन परिवर्तन होगा जरुर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
भविष्य
और कुछ व्यक्ति यानि पाखंडी रुपए लूटने वाले होते है जो कहते है कि हम भविष्य बताते है बताने का दावा करते है 100 में 100% सत्य का दावा ठोंकते है हम उन्हें 100 में ये 100% झूठ कहते है झूठ बताते है कोई किसी का भविष्य नहीं बता सकता है चाहें कितना बड़ा ज्ञाता क्यो न हो सिर्फ अनुमान लगा सकते है सलाह सहयोग कर सकता है इससे अधिक कुछ नहीं और दूसरा व्यक्ति आपका सहयोग हर समय आपके पॉजिटिव के लिए नहीं करता है कभी कभी व्यक्ति आपका सहयोग अपने मतलब के लिए भी भर भरपूर्ण करता है आपको लूटने के लिए
0.5
522.828898
20231101.hi_26647_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
भविष्य
Thanks 👍 🙏 मैं आपसे माफ़ी मांगता हूं अगर आपके प्रति कोई गलत शब्द लिखा हो या ये पाठ पढ़ कर आपको ठेस पहुंचा हो लेकिन मुझे यही सही लगा है इसमें आपको क्या सही लगा और क्या गलत लगा है कॉमेंट जरूर करें क्योंकि हमें भी सम्पूर्ण ज्ञान नही है क्योंकि हमने भी प्रकृति और आप से ही सीखा है हमारा नाम PMPPE Arun Kumar hai
0.5
522.828898
20231101.hi_694106_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5
हिरनगाँव
चंदवार गेट - हिरनगाँव से लगभग 13 किलो मीटर दूर यमुना तट पर चंदवार वसा हुआ है चंद्रवार का किला (फिरोजाबाद) यहाँ पर मोहम्मद ग़ोरी एवम् जयचंद का युद्ध हुआ था। जैन विद्वानों की यह मान्यता थी कि ये कृष्न भगवान कृष्न के पिता वासुदेव द्वारा शसित रहा है कहा जाता है कि चंदवार नगर की स्थापना चंद्रसेन ने की थी। यमुना नदी ग्राम से होकर बहती है जहां चंद्रसेन के वंशज चंद्रपाल द्वारा बनवाए किले के अवशेष खंडहर इनकी विशालता एवं वैभव की कहानी कहते हैं पुरातात्विक दृष्टिकोण से चंद बार एक महत्वपूर्ण स्थान है सूफी साहब की दरगाह से लगभग 1 किलोमीटर दूर दक्षिण की ओर यमुना नदी के किनारे राजा चंद्रसेन के किले का टीला स्थित है इस टीले पर एक छोटी इमारत खड़ी है जिसके नीचे के भाग की ईट निकल रही है ऊपर आने के लिए एक जीना है जिसकी सीढ़ियां टूट गई है पानी से टीला कहीं-कहीं कट गया है ऐसी किवदंती है कि टीले पर दूब घास नहीं उगती जबकि खाई के बाहरी और यह खास उगती हैं
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हिरनगाँव
राजा का ताल - हिरनगाँव से लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर राजा का ताल बसा हुआ है फिरोजाबाद गजेटियर द्वारा राजा के ताल का निर्माण सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक मंत्री राजा टोडरमल ( राजस्व मंत्री)द्वारा कराया गया था आगरा मार्ग के किनारे लाल पत्थर से बना बड़ा राजा का ताल राजा टोडरमल का स्मरण कराता है इस ताल के विषय में एक रुचिकर तथ्य है कि यहां ताल के मध्य में पत्थर का बना एक मंदिर है जहां एक बांध पुल द्वारा पहुंचा जा सकता है परंतु वर्तमान में अब यह ताल नाम मात्र का रह गया है और यहां पर ज्यादातर मकान बन चुके हैं परंतु कहीं कहीं पर लाल ककरी की दीवार नाममात्र के रूप में नजर आती है
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हिरनगाँव
फिरोजशाह का मकवरा - हिरनगाँव से लगभग 9 किलो मीटर दूर नगर निगम फ़िरोज़ाबाद के सामने फिरोज शाह का मकवरा 16वी सताब्दी का निर्मित बताया जाता है। इस मकबरे में ख़वाजा मुग़ल सेनापति फ़िरोज़शाह की कब्र है उ0प्र0 वफ बोर्ड द्वारा मकवरे की देखवाल की जा रही है।
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हिरनगाँव
महा वृक्ष अजान - हिरनगाँव से लगभग 16 किलो मीटर दूरी पर कोटला रोड पर बड़ा गाँव तथा जाटउ मार्ग पर एक बृक्ष जिसकी गोलाई 9.80 मीटर तथा ऊँचाई 19.3 मीटर है महा बृक्ष अजान के नाम से जाना जाता है इस बृक्ष पर जुलाई माह में सफ़ेद रंग के फूल आते है।
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हिरनगाँव
सूफी शाह - हिरनगाँव से लगभग 15 किलो मीटर दूर दक्षण में यमुना के किनारे सूफी शा ह का मकवरा है जहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा उर्श भी होता है उक्त स्थल पर सूफी शाह की मजार पर नगर के मुस्लिम व् हिन्दू श्रद्धा से मेले में सरीक होते है।
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हिरनगाँव
सांती - हिरनगाँव से लगभग 13 किलो मीटर दूर उत्तर दिशा में सांती ग्राम स्थित है यहाँ पर लगभग 100 बीघा में स्थित एक प्राचीन खेरा तथा शिवजी का मंदिर है कहा जाता है कि प्राचीन समय में राजा शान्तनु का यहाँ किला था फाल्गुन माह के कृष्न पक्ष की त्रयोदसी के दिन यहाँ प्रत्येक वर्ष हजारो की संख्या में भक्तजन गंगा से जल लाकर कावर चढ़ाते है एवम् उसी दिन मेला भी लगता है यह मेला लगभग 200 वर्ष पुराना वताया गया है।
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हिरनगाँव
शाही मस्जिद - हिरनगाँव से लगभग 9 किलो मीटर दूर आगरा गजेटियर के अनुसार नगर की सबसे प्राचीन शाही मस्जिद जोकि वर्तमान में कटरा पठानान में है का निर्माण शेरशाह सूरी ने कराया था।
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हिरनगाँव
गोपाल आश्रम - हिरनगाँव से लगभग 9 किलो मीटर दूर सेठ रामगोपाल मित्तल द्वारा बाई पास रोड स्थित आश्रम का निर्माण 1953 में कराया आश्रम में 57 फीट ऊँची हनुमान की प्रतिमा स्तापित है इस आश्रम में एक विशाल सत्संग भवन है यहाँ पर प्रतिदिन सत्संग होता है।
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हिरनगाँव
श्री हनुमान मंदिर - हिरनगांव से लगभग 9 किलोमीटर दूरी पर मराठा शासन काल में श्री वाजीराव पेशवा द्वतीय द्वारा इस मंदिर की स्थापना एक मठिया के रूप में की गई। यहाँ 19वी शताब्दी के ख्याति प्राप्त तपस्वी चमत्कारिक महात्मा वावा प्रयागदास की चरण पादुकाएं भी स्थित है।
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प्रसूतिशास्र
(१) अडिंभी (anouhlar) रज:स्राव - इस विकार में स्वाभाविक रज:स्राव होता रहता है, परंतु स्त्री बंध्या होती है।
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प्रसूतिशास्र
(२) रुद्धार्तव (Amehoryboea) स्त्री के प्रजननकाल अर्थात् यौवनागमन (Puberty) से रजोनिवृत्ति तक के समय में रज:स्राव का अभाव होने को रुद्धार्तव कहते हैं। यह प्राथमिक एवं द्वितीयक दो प्रकार का होता है। प्राथमिक रुद्धार्तव में प्रारंभ से ही रुद्धार्तव रहता है जैसे गर्भाशय की अनुपस्थिति में होता है। द्वितीयक में एक बार रज:स्राव होने के पश्चात् किसी विकार के कारण बंद होता है। इसका वर्गीकरण प्राकृतिक एवं वैकारिक भी किया जाता है। गर्भिणी, प्रसूता, स्तन्यकाल तथा यौवनागमन के पूर्व तथा रजो:निवृत्ति के पश्चात् पाया जानेवाला रुद्धार्तव प्राकृतिक होता है। गर्भधारण का सर्वप्रथम लक्षण रुद्धार्तव है।
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प्रसूतिशास्र
(३) हीनार्तव (Hypomenorrhoea) तथा स्वल्पार्तव (oligomenorrhoea) - हीनार्तव में मासिक (menstrual cycle) रज:चक्र का समय बढ़ जाता है तथा अनियमित हो जाता है। स्वल्पार्तव में रज:स्राव का काल तथा उसकी मात्रा कम हो जाती है।
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प्रसूतिशास्र
(७) श्वेत प्रदर (Leucorrhoea) - योनि से श्वेत या पीत श्वेत स्राव के आने को कहते हैं। इसमें रक्त या पूय या पूय नहीं होना चाहिए।
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प्रसूतिशास्र
(८) बहुलार्तव (Polymenorrhoea) - इसमें रज:चक्र 28 दिन की जगह कम समय में होता है जैसे 21 दिन का अर्थात् स्त्री को रज:स्राव शीघ्र शीघ्र होने लगता है। अंडोत्सर्ग (ovulation) भी शीघ्र होने लगता है।
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प्रसूतिशास्र
(१०) कानीय रजोदर्शन - निश्चित वय या काल से पूर्व ही रजस्राव के होने को कहते हैं तथा इसी प्रकार के यौवनागमन को कानीय यौवनागमन कहते हैं।
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प्रसूतिशास्र
(११) अप्राकृतिक आर्तव क्षय - निश्चित वय या काल से बहुत पूर्व तथा आर्तव विकार के साथ आर्तव क्षय को कहते हैं। प्राकृतिक क्षय चक्र की अवधि बढ़कर या मात्रा कम होकर धीरे धीरे होता है।
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प्रसूतिशास्र
(1) बीजग्रंथियाँ - ग्रंथियों की रुद्ध वृद्धि (Hypoplasea) पूर्ण अभाव आदि विकार बहुत कम उपलब्ध होते हैं। कभी-कभी अंडग्रंथि तथा बीजग्रंथि सम्मिलित उपस्थित रहती है तथा उसे अंडवृषण (ovotesties) कहते हैं।
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प्रसूतिशास्र
(2) बीजवाहिनियाँ - इनका पूर्ण अभाव, आंशिक वृद्धि, तथा इनका अंधवर्ध (diverticulum) आदि विकार पाए जाते हैं।
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प्रति-कण
डिराक समीकरण को हल करने पर हमें ऋणात्मक ऊर्जा की क्वांटम (प्रमात्रा) अवस्था प्राप्त होती है। परिणाम स्वरुप एक [इलेक्ट्रॉन अपनी ऊर्जा को विकिरित करते हुये ऋणात्मक ऊर्जा अवस्था को प्राप्त हो सकता है।
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प्रति-कण
यदि एक कण और प्रति-कण यथोचित क्वांटम अवस्था में हैं तो वो दोनों एक दूसरे को विलुप्त करके कोई अन्य कण का निर्माण कर सकते हैं। अभिक्रिया e- + e+ → γ + γ (इलेक्ट्रॉन-पोजीट्रॉन का दो फ़ोटोनो में विलोपन) एक उदाहरण है। मुक्त आकाश में e- + e+ → γ (इलेक्ट्रॉन-पोजीट्रॉन का एकल फ़ोटोन में विलोपन) सम्भव नहीं है क्योंकि इस अभिक्रिया में ऊर्जा व संवेग संरक्षण दोनों एक साथ सम्भव नहीं हैं। यद्यपि नाभिक के कुलाम क्षेत्र में यह सम्भव है।
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प्रति-कण
कण और प्रतिकण की क्वांटम अवस्थाओं का आवेश संयुग्मन (C), पैरिटी (Parity) (P) और समय व्युत्क्रमण (T) संकारको को आरोपित करके विनिमय किया जा सकता है। यदि को क्वांटम अवस्था से निरुपित किया जाये जहाँ कण (n) का संवेग p, स्पिन J जिसका z-दिशा में घटक σ है, तब
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A4%A3
प्रति-कण
जहाँ nc आवेश संयुग्मन अवस्था को निरुपित करता है, जो कि प्रतिकण अवस्था है। यदि T गतिकी की एक अच्छी सममिति है तो
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