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20231101.hi_502831_7
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प्रति-कण
जहाँ अनुक्रमानुपाती चिह्न दर्शाता है कि यहाँ कला दक्षिण हस्थ दिशा में हो सकती है। अन्य शब्दों में कण और प्रतिकण का
1
515.200168
20231101.hi_502831_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A4%A3
प्रति-कण
यह अनुभाग क्वांटम क्षेत्र सिद्धान्त के विहित प्रमात्रिकरण के संकेत-चिह्न, भाषा और सुझाव पर आधारित है।
0.5
515.200168
20231101.hi_502831_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A4%A3
प्रति-कण
जहाँ क्वांटम संख्या p और σ का द्योतक k है और ऊर्जा को E(k), विलोपन संकारक को ak से प्रदर्शित किया गया है। जब हम फर्मियोनों की बात करते हैं तो संकारक को प्रति क्रमविनिमय गुणधर्म का पालन करना चाहिए तथापि हेमिल्टोनियन को निम्नलिखित प्रकार से लिखा जा सकता है
0.5
515.200168
20231101.hi_502831_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A4%A3
प्रति-कण
लेकिन यहाँ H प्रत्याशित मान का धनात्मक होना आवश्यक नहीं है क्योंकि "E(k)" का मान धनात्मक और ऋणात्मक कुछ भी हो सकता है और creation तथा विलोपन संकारकों के संयोजन का प्रत्याशित मान १ और ० हो सकता है
0.5
515.200168
20231101.hi_502831_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A4%A3
प्रति-कण
अतः हमें प्रति-कण प्रस्तावित करना पड़ता है जिसके creation और विलोपन संकारक निम्नलिखित सम्बंध को संतुष्ट करते हों
0.5
515.200168
20231101.hi_247423_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दूसरा
ऐसा लगता है कि कई अन्य ऑफ स्पिनर "दूसरा" का अधिकाधिक उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि स्वयं सकलैन मुश्ताक के अतिरिक्त, इस गेंद का इस्तेमाल करने वाले अन्य सभी ऑफ-स्पिनरों के खिलाफ फेंकने (थ्रोइंग) का आरोप लगाया जा चुका है, हालांकि अधिकांश मामलों में इसे ख़ारिज कर दिया गया है। इन में शामिल हैं, मुथैया मुरलीधरन, हरभजन सिंह, सईद अजमल, शोएब मलिक और जोहान बोथा। वारविकशायर के पूर्व गेंदबाज एलेक्स लूडन द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले एक अन्य तरीके में, बीच की ऊँगली को गेंद के पीछे रखके गेंद डालते समय उसे 'फ्लिक' किया जाता है (झटका दिया जाता है), ऐसा करने पर गेंद लेग से ऑफ की तरफ घूमती है। दूसरा के इस प्रकार की सफलता के बारे में अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है क्योंकि लूडन द्वारा इंग्लैण्ड के लिए अपने एक दिवसीय करियर की शुरुआत 24 जून 2006 को श्रीलंका के खिलाफ ही की गयी है। उन्होंने कोई विकेट तो नहीं लिया लेकिन मैच में दूसरा गेंद अवश्य डाली थी। उनके खिलाफ फेंकने का भी कोई आरोप नहीं लगाया गया। दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के डैन कलेन भी कथित रूप से दूसरा गेंद डाल लेते हैं। अजंता मेंडिस को अपने करियर की शुरुआत में दूसरा की मिडल फिंगर फ्लिक शैली का उपयोग करते हुए सफलता मिली थी।
0.5
515.170525
20231101.hi_247423_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दूसरा
मुरलीधरन का दूसरा, 2004 में ऑस्ट्रेलिया के श्रीलंका दौरे के दौरान गेंदबाजी करते समय, कोहनी के ऊपर बांह को अवैध तरीके से सीधा करने के लिए मैच रेफरी क्रिस ब्रॉड द्वारा आधिकारिक रिपोर्ट का विषय बनी थी। बाद में पर्थ स्थित युनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में किये गए बायोमेकेनिकल परीक्षणों में पाया गया कि मुरलीधरन दूसरा डालते समय अपनी बांह को 10 डिग्री तक सीधा करते थे, जो कि इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद) द्वारा स्पिन गेंदबाजों के लिए स्वीकृत 5 डिग्री से काफी अधिक था। मुरलीधरन को बाद में श्रीलंका क्रिकेट द्वारा निर्देश दिया गया कि वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में दूसरा का प्रयोग न करें। नवंबर 2004 में, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने अवैध गेंदबाजी एक्शन के क्षेत्र में और अधिक अनुसंधान किये और पाया कि कई गेंदबाज जिनके एक्शन को वैध माना जा रहा था, वास्तव में नियमों का अतिक्रमण कर रहे थे। 2005 की शुरुआत में आईसीसी (ICC) के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की बैठक में एक नियम बदलाव को प्रस्तावित और स्वीकृत कर लिया गया जिसमें कहा गया था कि कोई भी गेंदबाज अपनी बांह को 15 डिग्री तक सीधा कर सकता है और इस प्रकार मुरलीधरन की दूसरा पुनः एक वैध गेंद बन गयी।
0.5
515.170525
20231101.hi_247423_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दूसरा
फरवरी 2006 में ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों और उनके 'नो बॉल' के नारों को हमेशा के लिए चुप करने के प्रयास में मुरलीधरन ने यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में एक और परीक्षण करवाया जिसमें दूसरा सहित उनकी सभी गेंदों को वैध पाया गया।
0.5
515.170525
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दूसरा
भारतीय गेंदबाज हरभजन सिंह की दूसरा गेंद, दिसंबर 2004 में चित्तागोंग में भारत और बंगलादेश के बीच खेले गए दूसरे टेस्ट के बाद मैच रेफरी क्रिस ब्रॉड, ऑन-फील्ड अंपायरों अलीम दार और मार्क बेंसन, तथा टीवी अंपायर महबूबुर रहमान की एक आधिकारिक रिपोर्ट द्वारा विषय बनी थी। यह बताया गया कि उनकी बांह 10 डिग्री के कोण तक सीधी होती है जब कि आईसीसी (ICC) के मानक 5 डिग्री तक को ही स्वीकार करते है।
0.5
515.170525
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दूसरा
पाकिस्तानी ऑलराउंडर शोएब मलिक के खिलाफ भी 2004 दिसम्बर में पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए पहले टेस्ट के बाद उनके दूसरा को लेकर शिकायत की गयी थी। मुरलीधरन के समान, उन पर भी बायोमेकेनिकल परीक्षण किये गए और उस श्रृंखला के बाकी टेस्टों में उन्होंने गेंदबाजी नहीं की। अपनी दूसरा गेंद डालते समय थ्रो करने (फेंकने) के आरोपित अन्य क्रिकेटरों के विपरीत, मलिक एक सक्षम बल्लेबाज भी हैं और कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस गेंद को डालने से रोके जाने पर वे अपनी बल्लेबाजी पर अधिक ध्यान देने लगेंगे. मलिक को 2004 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले टेस्ट के लिए पाकिस्तानी टीम से हटा दिया गया था, हालांकि ऐसा किसी विवाद के चलते नहीं बल्कि पर्थ की पिच के स्पिन गेंदबाजों के प्रतिकूल होने की वजह से किया गया था।
1
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दूसरा
मलिक ने मई 2005 में कुछ सुधार करने के बाद पुनः गेंदबाजी शुरू कर दी। इंग्लैंड के खिलाफ नवंबर 2005 में मुल्तान में पहले टेस्ट के बाद उनके और अहमद शब्बीर के खिलाफ फिर से शिकायत कर दी गयी।
0.5
515.170525
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दूसरा
मई 2006 में मलिक ने अपने गेंदबाजी एक्शन को सही करने के लिए कोहनी की सर्जरी करवाई. मलिक और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड इसके पहले असफलातापूर्वक यह तर्क देते रहे थे कि 2003 की एक सड़क दुर्घटना में उनकी कोहनी में लगी चोट के कारण उनका गेंदबाजी एक्शन संदिग्ध दिखाई देता है। मलिक जून 2006 में पुनः खेल के मैदान पर उतरे लेकिन अब वे दूसरा गेंद का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
0.5
515.170525
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दूसरा
2006 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरे टेस्ट मैच के बाद दक्षिण अफ्रीका के जोहान बोथा के खिलाफ दूसरा के उनके संस्करण के लिए शिकायत दर्ज की गयी। बोथा का वह पहला टेस्ट मैच था जिसमें उन्होंने 2 विकेट लिए। बाद में उनकी गेंदबाजी को अवैध करार दे दिया गया और उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया, हालांकि इस प्रतिबंध को नवंबर 2006, में समाप्त कर दिया गया। हालांकि, अप्रैल 2009 में ऑस्ट्रेलिया की श्रृंखला के बाद उनके गेंदबाजी एक्शन के पुनर्मूल्यांकन के लिए उन्हें फिर से बुलाया गया। मई 2009 में उन्हें दूसरा के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार की गेंदों को डालने की अनुमति दे दी गयी क्योंकि उनकी दूसरा को 15 डिग्री की सीमा के पार माना गया था।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दूसरा
जुलाई 2009 में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के सेंटर फॉर एक्सीलेंस में आयोजित स्पिन शिखर सम्मेलन में निर्णय लिया गया कि युवा स्पिनरों को दूसरा गेंद सिखाई नहीं जायेगी. बैठक में निम्न प्रतिनिधि शामिल थे, पूर्व टेस्ट स्पिनर शेन वार्न, स्टुअर्ट मैकगिल, जिम हिग्स, गेविन रॉबर्टसन, टेरी जेनर, पीटर फिलपॉट तथा एशले मैलेट. उनके अनुसार, दूसरा को वैध तरीके से नहीं डाला जा सकता है और जब तक आईसीसी (ICC) चकिंग (फेंकने) के सभी रूपों वैध बनाने का फैसला नहीं करता है तब तक इसे ऑस्ट्रेलिया में नहीं सिखाया जाएगा.
0.5
515.170525
20231101.hi_215934_24
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
संवेदनहीनता
ब्रिटेन में रॉयल कॉलेज की मौखिक और लीखित परीक्षा के भागों को पूरा करने के पश्चात ही फेलोशिप ऑफ द रॉयल कॉलेज ऑफ एनेस्थेटिस्ट्स (एफआरसीए (FRCA)) की उपाधि प्रदान की जाती है। संयुक्त राज्य में, एक चिकित्सक एनेस्थेसियोलॉजिस्ट के द्वारा बोर्ड की लिखित और मौखिक परीक्षाएं पूरी करने के बाद ही अमेरिकन बोर्ड ऑफ एनेस्थेसियोलॉजी (या ऑस्ट्रियोपैथिक चिकित्सकों के लिए या अमेरिकन ऑस्टेयोपैथिक “बोर्ड सर्टीफायेड” कहलाने योग्य होता है।
0.5
514.585835
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
संवेदनहीनता
औषधि के अंतर्गत अन्य विशेषताएं एनेस्थेसियोलॉजिस्ट के साथ ही निकटता से संबद्ध हैं। इन औषधियों में गहन चिकित्सकीय देखभाल औषधि, दर्द निवारक औषधि, आपातकालीन औषधि एवं प्रशामक औषधि अंतर्भुक्त हैं। इन विषयों में विशेषज्ञों को आमतौर पर थोड़ा एनेस्थेटिस्ट्स का प्रशिक्षण पूरा करना पड़ता है। एनेस्थेशियोलॉजिस्ट की भूमिका बदल रही है। अब यह केवल शल्य-क्रिया तक ही सीमित नहीं रही. कई एनेस्थेसियोलॉजिस्ट शल्यक्रिया के बाद चतुर्दिक देखभाल करने वाले चिकित्सकों की भूमिका अच्छी तरह निभाते हैं, एवं वे सर्जरी से पूर्व रोगी के स्वास्थ्य को अनुकूलतम करने में खुद को शामिल कर देतें हैं (बोलचाल की भाषा में जो सम्पादन करते हुए, शल्य क्रियांतर्गतीय निगरानी में विशेषज्ञता के साथ (जैसे कि ट्रांससोफेजियल इकोकार्डियोग्राफी) सहित उत्तर संवेदनहीनता संरक्षण इकाई, तथा उत्तर शल्य-क्रियात्मक वॉर्ड्स (पोस्ट-ऑपरेटीव वॉर्ड्स) के रोगियों की निगरानी करते रहना, तथा पूरे समय तक सर्वोत्कृष्ट संवेदनाहरण सुनिश्चित करना शामिल है।
0.5
514.585835
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
संवेदनहीनता
यह दर्ज करना महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राज्य में एनेस्थेटीस्ट की शब्दावली को आमतौर पर पंजीकृत नर्सों के साथ ही, संदर्भित किया जाता है जिन्होनें रेजिसटर्ड नर्स एनेस्थेटीस्ट (सीआरएनए) बनने के लिए नर्स एनेस्थेशिया में विशेषज्ञता की शिक्षा और प्रशिक्षण पूरा कर लिया है। जैसा कि ऊपर दर्ज किया गया, ब्रिटेन में एनेस्थेटीस्ट की शब्दावली उन मेडिकल डॉक्टरों से संदर्भित है जो एनेस्थेसियोलॉजी में विशेषज्ञ है। संवेदनहीनता प्रदाता अक्सर पूरे पैमाने पर मानव सिमुलेटर्स इस्तेमाल करने में प्रशिक्षित होते हैं। यह क्षेत्र पहले इस तकनीक के एडॉप्टर के लिए था एवं इसका उपयोग छात्रों और चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने के लिए पिछले कई दशकों तक किया जाता रहा. संयुक्त राज्य के उल्लेखनीय केन्द्रों में हावर्ड से सेंटर फॉर मेडिकल साइमुलेसन, स्टेनफोर्ड, द माउंटसिनाई स्कूल ऑफ मेडिसिन हेल्प्स सेंटर इन न्यूयॉर्क, एवं ड्यूक यूनिवर्सिटी हैं।
0.5
514.585835
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संवेदनहीनता
संयुक्त राज्य अमेरिका में, संवेदनहीनता संरक्षण के प्रावधान में अग्रिम अनुशीलन करने वाली विशेषज्ञ नर्सों को प्रमाणित पंजीकृत एनेस्थेटिस्ट नर्स (सीआरएनए) के रूप में जाना जाता है। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ़ नर्स एनेस्थेटिस्ट्स के अनुसार अमेरिका में 39,000 सीआरएनए अनुमानतः 30 मिलियन अनेस्थेटिक्स हर साल देती हैं, जो अमेरिका के कुल का लगभग दो तिहाई है। 50,000 से कम जनसंक्या वाले समुदायों में चौंतीस प्रतिशत नर्स एनेस्थेटिस्ट्स चिकित्सक के पेशे से जुड़ी हैं। सीआरएनए स्कूल की शुरुआत स्नातक की डिग्री के साथ करता है और कम से कम 1 वर्ष की सजग समग्र देखभाल के नर्सिंग अनुभव और अनिवार्य प्रमाणन परीक्षा में उत्तीर्ण होने से पहले नर्स संवेदनहीनता में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करनी होती है। परास्नातक स्तर के सीआरएनए (CRNA) प्रशिक्षण कार्यक्रम की समय-सीमा 24 से 36 महीने लंबी होती है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
संवेदनहीनता
सीआरएनए पोडिआट्रिस्ट्स, दंत चिकित्सकों, एनेस्थेसियोलोजिस्ट्स, शल्य चिकित्सकों, प्रसूति-विशेषज्ञों और अन्य पेशेवरों को जिनको उनकी सेवाओं की आवश्यकता होती है, के साथ काम कर सकते हैं। सीआरएनए शल्य चिकित्सा के सभी प्रकार मामलों में संवेदनहीनता का प्रबंध करती हैं और वे चेतनाशून्य करनेवाली सभी स्वीकृत तकनीक लागू करने में सक्षम हैं- सामान्य, क्षेत्रीय, स्थानीय, या बेहोश करने की क्रिया. सीआरएनए को किसी भी राज्य में अनेस्थेसिओलोजिस्ट के पर्यवेक्षण की आवश्यकता नहीं है और 16 राज्यों को छोड़कर बाकी सभी में चिकित्सा बिलिंग के लिए चार्ट के अनुमोदन में सर्जन/दंत चिकित्सक/पोडिआट्रिस्ट के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। कई राज्य इस पेशे पर प्रतिबंध लगाते हैं और अस्पताल अक्सर यह विनियमित करते हैं कि सीआरएनए एवं अन्य मध्यस्तरीय प्रदाता स्थानीय कानून पर आधारित क्या कर सकते हैं या क्या नहीं कर सकते हैं, प्रदाता के प्रशिक्षण और अनुभव, तथा अस्पताल और चिकित्सक की प्राथमिकताएं.
1
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
संवेदनहीनता
संयुक्त राज्य अमेरिका में, ऐनेस्थेसिओलोजिस्ट सहायक (एए (AA)) स्नातक स्तर के प्रशिक्षित विशेषज्ञ हैं जिन्होंने ऐनेस्थेसिओलोजिस्ट के निर्देशन के अंतर्गत संवेदनहीनता में संरक्षण प्रदान करने की विशेष शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त किया है। आस (ऐनेस्थेसिओलोजिस्ट असिस्टेंट्स) आम तौर पर मास्टर डिग्री धारक होते हैं और ऐनेस्थेसिओलोजिस्ट के पर्यवेक्षण में लाइसेंस, प्रमाण-पत्र या चिकित्सक प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से 18 राज्यों में चिकित्सकीय पेशा करते हैं।
0.5
514.585835
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
संवेदनहीनता
ब्रिटेन में, ऐसे सहायकों के दल का हाल-फिलहाल मूल्यांकन किया गया है। ये चिकित्सक के सहायक (एनेस्थेसिया) फिजिशियंस असिस्टेंट (एनेस्थेसिया) (पीएए (PAA)) कहलाते हैं। उनकी पृष्ठभूमि नर्सिंग, ऑपरेटिंग विभाग अभ्यास, या दवा से संबद्ध कोइ अन्य पेशा अथवा विज्ञान स्नातक हो सकती है। प्रशिक्षण एक स्नातकोत्तर डिप्लोमा के रूप में है और इसे पूरा करने में 27 महीने लगते हैं। समाप्त होने पर, स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की जा सकती हैं।
0.5
514.585835
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
संवेदनहीनता
संवेदनहीनता तकनीशियन विशेष रूप से प्रशिक्षित जैव चिकित्सा तकनीशियन हैं, जो ऐनेस्थेसिओलोजिस्ट्स, नर्स ऐनेस्थेटिस्ट्स, एवं ऐनेस्थेसिओलोजिस्ट सहायक की उपकरण की निगरानी, आपूर्ति और ऑपरेटिंग कमरे में रोगी के संरक्षण की प्रक्रियाओं के साथ सहायता करते हैं। आमतौर पर ये सेवाएं सामूहिक रूप से पेरिओपरेटिव सेवाएं कहलाती हैं और इस प्रकार पेरिओपरेटिव सेवा तकनीशियन (पीएसटी) (PST) शब्दावली का प्रयोग विनिमेयता के अनुसार ऐनेस्थेसिया तकनीशियन के साथ किया जाता है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
संवेदनहीनता
न्यूजीलैंड में, एक एनेस्थेटिक तकनीशियन को न्यूजीलैंड एनेस्थेटिक तकनीशियन सोसायटी द्वारा मान्यता प्राप्त एक पाठ्यक्रम का अध्ययन पूरा करना पड़ता है।
0.5
514.585835
20231101.hi_214386_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A1
डॉकयार्ड
प्रत्येक डॉकयार्ड ऐडमिरल या कप्तान अधीक्षक के अधीन रहता है। उनका सहायक अधिकारी पत्तन में जहाजों के चलाने और घाट लगाने का उत्तरदायी होता है। निर्माण-प्रबंधक, नौ सेना भांडार अधिकारी, विद्युत्‌ इंजीनियर, सिविल इंजीनियर, खजांची, आय-व्यय लेखा अधिकारी और चिकित्सा अधिकारी, डॉकयार्ड के अन्य मुख्य अधिकारी हैं। तोप और तारपीडोकी प्राविधिक बातों का पर्यवेक्षण स्थानीय गनरी स्कूल के कप्तान करते हैं। विभिन्न अधिकारियों में परस्पर व्यक्तिगत संपर्क होते रहने के कारण कार्य का परिचालन सुचारु रूप से होता है और कार्य प्रगति करता रहता है।
0.5
514.087661
20231101.hi_214386_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A1
डॉकयार्ड
फ्रांस -- संपूर्ण फ्रांसीसी तट को तीन विभागों में बाँटा गया है। शेयरवूर्ग, ्व्रोस्ट और टुलॉन बंदरगाहों पर इसके प्रधान कार्यालय हैं। इनमें यार्डों को सुसज्जित किया जाता है और उनका निर्माण होता है।
0.5
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20231101.hi_214386_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A1
डॉकयार्ड
जर्मनी -- २०वीं शती के प्रारंभ में विलहेल्म्स हाफेन और कील में दो बड़े और आधुनिक डॉकयार्डों का निर्माण हुआ। कुक्सहाफेन, ब्रेमरहावेन, फ्लेंसबूर्क, स्वाइनमंड, डैनज़िग आदि स्थानों पर छोटे से संस्थापन थे। विश्वयुद्ध में बमबारी से इनकी भारी क्षति हुई।
0.5
514.087661
20231101.hi_214386_13
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डॉकयार्ड
इटली -- १९३९ ई० में इटली आधुनिक डॉकयार्डों से सज्जित था, जिनमें स्पेज़िया प्रधान था। नेपुल्ज़ में और भी डॉक थे तथा जहाज निर्माण का कार्य कास्टेल्लांमारे, टरांटों और वेनिस में होता था।
0.5
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डॉकयार्ड
जापान -- १८६५ ई० में योकोसूका में पहला डॉकयार्ड बन जाने के बाद प्रगति का क्रम तेजी से चला। प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो जाने पर आधुनिक जहाजों के निर्माण की सुविधाएँ उपलब्ध थीं। छोटे अड्डों के अतिरिक्त सासेबो और माइजुरू में दो नए डॉकयार्ड बने।
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डॉकयार्ड
रूस -- प्रधान डॉकयार्ड लेनिनग्रैड और निकोलेयर में हैं, आर्केजिल, क्रोंस्टाट, सेवास्टोपॉल, ओडेसा और ब्लैडिवॉस्टॉक में छोटे संस्थापन हैं।
0.5
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डॉकयार्ड
स्पेन -- २०वीं शती के मध्यकाल में फेरॉल, कार्टाजीना और काडिज़ के पुराने डॉकयार्डों के सुधार में विशेष प्रगति नहीं हुई, किंतु बेड़े का आधुनिकीकरण स्थिरता से हो रहा था।
0.5
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डॉकयार्ड
अमरीका -- १७९८ ई० में नौसेना विभाग स्थापित होने के तीन वर्षों के अंदर पोर्टस्मथ, चार्ल्ज़टाउन, ब्रुकलिन, फिलाडेल्फ़िया, वाशिंगटन और गैसपोर्ट आदि छ: स्थानों में तटीय सैनिक सुविधाओं की स्थापना हो गई। नॉरफॉक यार्ड ब्रिटिशों ने गृहयुद्ध के पूर्व ही निर्मित कर दिया था। १८२६ ई० पेंसाकोला में एक और यार्ड बन गया। कैलिफोर्निया का समावेश होने पर १८५४ ई० में व्रोमरटन में और १९०१ ई० में चार्ल्ज़टन में यार्ड बने। एक सौ वर्ष की अवधि में डॉकयार्डों में जो उन्नति हुई वह नौसेना की उन्नति देखते हुए अपर्याप्त थी। इस अवधि में नौसेना फ्रगेट और छोटे-छोटे जहाजों के रूप से मुक्त होकर अनेक प्रकार के छोटे-बड़े, युद्धक रणपोत और उनके सहायकों से जटिल संगठन के रूप में प्रस्तुत हो चुकी थी। नौसेना-विस्तारण-योजना-काल (१९३८ ई०) में एक ही डॉकयार्ड अभिनव प्रकार के जहाजों के लिए उपलब्ध था।
0.5
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डॉकयार्ड
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सर्वप्रथम पनामा नहर कटिबंध और हवाई द्वीप में तीन बड़े विमान अड्डों की संस्तुति हुई, जिनके परिचालन अड्डे वेस्टइंडीज़, ऐलास्का और प्रशांत द्वीप के क्षेत्र में नहीं पड़ते थे। पानी के जहाज और विमानों की संख्या बढ़ने पर नए पनडुब्बी अड्डे और अनेक परिवर्तन आवश्यक हो गए।
0.5
514.087661
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गैसनिर्माण
1792 ई. में इंग्लैंड के मुरडोक ने गैस उद्योग की नींव डाली, तब उन्होंने बताया कि प्रकाश उत्पन्न करने के लिये गैस का व्यवहार हो सकता है। 1812 ई. में लंदन, 1815 ई. में पैरिस और 1826 ई. में बरलिन की सड़कों को प्रकाशित करने के लिये प्रदीपक गैस का व्यवहार शु डिग्री हुआ। पीछे गैस बड़ी मात्रा में बनने लगी और छोटे-छोटे नगर भी गैस के प्रकाश से जगमगा उठे। आज प्रदीपक गैस का स्थान बहुत कुछ बिजली की रोशनी ले रही है। एक समय ऐसा समझा जाता था कि गैस उद्योग का शीघ्र ही अंत हो जायगा, पर इसी बीच 1885 ई. में तापदीप्त मैंटल के प्रवेश से यह उद्योग फिर चमक उठा। पीछे कारब्युरेटेड जलगैस के आविष्कार से प्रकाश और ऊष्मा उत्पन्न करने की क्षमता में बहुत वृद्धि हो गई, जिससे यह उद्योग फिर पनपा।
0.5
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गैसनिर्माण
उत्पादक गैस का उपयोग उद्योग धंधों में दिन दिन बढ़ रहा है। भट्ठे और भट्ठियों, विशेषत: लोहे और इस्पात तथा काँच की भट्ठियों, भभकों और गैस इंजनों को गरम करने में उत्पादक गैस का ही आजकल व्यवहार होता है।
0.5
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गैसनिर्माण
कोयला गैस के साथ, मिलाकर जलगैस ईंधन में काम आती है। इससे बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन तैयार होती है और पेट्रोलियम तथा मेथिल ऐलकोहल का संश्लेषण भी होता है।
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गैसनिर्माण
जलगैस के साथ कुछ हाइड्रोकार्बन गैस मिली हो तो ऐसी गैस को कार्बुनीकृत जलगैस कहते हैं। आवश्यक हाइड्रोकार्बन गैस पेट्रोलियम तेल के भंजन से प्राप्त होती है। इसके जनित्र भी जलगैस के जनित्र से ही होते हैं। कार्बनीकृत जलगैस की ज्वाला बड़ी दीप्त होती है। हाइड्रोकार्बन के कारण इसमें गंध भी होती है। कार्बनीकृत जलगैस का विश्लेषण इस प्रकार है :
0.5
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गैसनिर्माण
खनिज तेलों के भंजक आसवन से तैलगैस प्राप्त होती है। यह आसवन भभकों में संपन्न होता है। कोयला गैस की भाँति ही इस गैस का शोधन होता है और तब यह टंकियों में संग्रहीत होती है, अथवा सिलिंडर में दबाव से। इस प्रकार तैलगैस तैयार करने की विधि को "पिंटश विधि" कहते हैं। भारत की छोटी बड़ी प्रयोगशालाओं में यही गैस गरम करने के लिये प्रयुक्त होती है। साधारणतया मिट्टी का तेल अथवा डीज़ेल तेल इसके लिये उपयुक्त होता है। यदि इस गैस के साथ आक्सीजन अथवा वायु मिला दी जाय तो यह सस्ती पड़ती है और तापनशक्ति भी बढ़ जाती है। ऐसी गैस में मेथेन, एथिलीन, ऐसीटिलीन, बेंजीन आदि हाइड्रोकार्बन रहते हैं। ऐसे तो यह गैस बहुत धुआँ देती हुई दीप्त ज्वाला से जलती है, पर एक विशिष्ट प्रकार के ज्वालक में, जिसमें बड़े छोटे छिद्र से गैस निकलती है, यह बिना धुआँ उत्पन्न किए जलती है। ऐसी ज्वाला की तापन शक्ति ऊँची होती है। यदि इस गैस में थोड़ा ऐसटिलीन मिला दिया जाय तो गैस की प्रदीपक शक्ति और बढ़ जाती है। इस गैस को जलाने के लिये तापदीप्त मैंटलवाला ज्वालक भी बना है, जिससे बड़ी तेज रोशनी प्राप्त होती है।
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गैसनिर्माण
वायु और कुछ वाष्पशील हाइड्रोकार्बनों, सामान्यत: पेट्रोल या पेट्रोलियम ईथर (क्वथनांक 35 डिग्री -60 डिग्री सें.), का मिश्रण भी प्रदीपन के लिये व्यवहृत होता है।
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गैसनिर्माण
पेट्रोलियम के भंजन और आसवन से कुछ गैसें प्राप्त होती है, जिनमें मेथेन, एथेन, प्रोपेन, नार्मल ब्यूटेन, आइसो ब्यूटेन और उनके तदनुरूपी ओलिफीन तथा पेंटेन रहते हैं। इनमें प्रोपेन, नार्मल और आइसो ब्यूटेन तथा उनके असंतृप्त संजात और ओलिफ़ीन सिलिंडर में भरकर अथवा टंकियों में रखकर बाहर भेजे जाते हैं। इन गैसों की प्राप्ति के लिय "संपीडन रीति" अथवा "अवशोषण रीति" प्रयुक्त होती है। अवशोषक तेल इन्हें अवशोषित कर लेता है और उसे गरम करने से गैसें निकल जाती हैं, जिनको ठंड़ाकर संघनन और संपीडन द्वारा अलग करते हैं। सावधानी से इसके प्रभावी आसवन द्वारा गैस प्राप्त करते हैं। प्रति वर्ग इंच 450 पौंड दाब पर टंकी-यानों में रखकर उपभोक्ताओं को देते हैं।
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गैसनिर्माण
गैसों का यह मिश्रण घरेलू ईंधन में काम आता है। मोटर में भी यह जलता है। सड़कों की रोशनी भी इससे की जाती है।
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गैसनिर्माण
हाइड्रोजन, आक्सिजन और ऐसीटिलीन भी प्रदीपन और तापन के लिये व्यवहृत होते हैं। इनका वर्णन अन्यत्र मिलेगा। पेट्रोलियम कूपों से निकली "प्राकृतिक गैस" भी प्रदीपन और तापन में काम आती है।
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512.596006
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वानूआतू
देश के सबसे बड़े शहर एफ़ाटे पर स्थित राजधानी पोर्ट विला और एस्पिरिटू सैंटो पर स्थित लुगानविले हैं। वानूआतू का उच्चतम बिंदु एस्पिरिटू सैंटो द्वीप पर पर स्थित माउंट ताबवेमासना है।
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512.061755
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वानूआतू
वानूआतू का कुल क्षेत्र (मोटे तौर पर ) है, जिसका भूमि क्षेत्र बहुत कम है (मोटे तौर पर ); ज़्यादातर द्वीप तेज़ ढलान वाले हैं, जिनकी मिट्टी अस्थिर है और इनमे स्थाई ताज़े मीठे पानी की काफी कमी है। एक अनुमान (2005) के मुताबिक़ केवल 9% भूमि का कृषि के लिए प्रयोग किया जाता है (7% स्थायी फसलें, 2% कृषि योग्य भूमि). तट रेखा आमतौर पर चट्टानी है जो किनारों वाली शैलभित्तियों की उपस्थिति और महाद्वीपीय शेल्फ न होने के कारण तेज़ी से सागर की गहराई में समा जाती है।
0.5
512.061755
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%82
वानूआतू
वानूआतू में लोपेवी सहित कई सक्रिय ज्वालामुखी मौजूद हैं, साथ ही यहाँ कई जलनिमग्न ज्वालामुखियां भी हैं। सदैव उपस्थित रहने वाले बड़े विस्फोट के खतरे के साथ-साथ यहाँ ज्वालामुखीय गतिविधि काफी आम है; हाल ही में नवम्बर 2008 में पास के समुद्र के भीतर 6.4 तीव्रता का ज्वालामुखी विस्फोट हुआ, जिसमें कोई हताहत नहीं हुआ, एक विस्फोट 1945 में भी हुआ था। वानूआतू की एक विशिष्ट स्थलीय पारिस्थितिकी क्षेत्र के रूप में मान्यता है, जिसे वानूआतू वर्षा वनों के रूप में जाना जाता है। यह ऑस्ट्रेलेशिया पारिस्थितिकी मंडल का एक हिस्सा है, जिसमें न्यू कैलेडोनिया, सोलोमन द्वीप, ऑस्ट्रेलिया, न्यू गिनी और न्यूजीलैंड शामिल हैं।
0.5
512.061755
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वानूआतू
वानूआतू की बढ़ती हुई आबादी (2008 में 2.4 प्रतिशत वार्षिक अनुमानित) कृषि, चराई, शिकार और मछली पकड़ने के स्थानीय संसाधनों पर काफी दबाव बढ़ा रही है। नी-वानूआतू के लगभग 90 प्रतिशत परिवार मछली पकड़ते हैं और मछली खाते हैं, यह गावों के नज़दीक मत्स्य संसाधनों पर ज़बरदस्त दबाव और तट के निकट की कई मत्स्य प्रजातियों की तेज़ी से कमी का कारण बना है। हालांकि सघन रूप से वनस्पति से आच्छादित ज्यादातर द्वीप भी वनों की कटाई के संकेत दे रहे हैं। उनकी कटाई की जा रही है (विशेष रूप से उच्च मूल्य की इमारती लकड़ी के लिए),
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वानूआतू
उन्हें बड़े पैमाने पर काटकर और जलाकर कृषि के अंतर्गत लाया जा रहा है, नारियल वृक्षारोपण और पशु फ़ार्म में परिवर्तित किया जा रहा है और उनमें मिट्टी के कटाव और भू-स्खलन के बढ़ते हुए साक्ष्य दिखाई दे रहे हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%82
वानूआतू
ताज़ा मीठा पानी तेज़ी से कम होता जा रहा है और कई उच्चभूमि के जलोत्सारण क्षेत्र वन-रहित और नष्ट हो रहे हैं। शहरी क्षेत्रों और बड़े गावों के आस-पास उचित अपशिष्ट निपटान और जल एवं वायु प्रदूषण भी दिन-ब-दिन मुश्किल पैदा करने वाले मुद्दे बनते जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, औद्योगिक और शहरी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में कमी और बाजारों तक अगम्यता, मिलकर ग्रामीण परिवारों को जीवन निर्वाह स्तर या आत्म निर्भरता के दायरे में बंद कर स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर जबरदस्त दबाव डाल रहे हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%82
वानूआतू
अपने उष्णकटिबंधीय जंगलों के बावजूद, वानूआतू में वनस्पतियों और पशु प्रजातियों की एक सीमित संख्या है। यहाँ किसी भी तरह के स्वदेशी बड़े स्तनपायी नहीं हैं। यहाँ की मूल 19 सरीसृप प्रजातियों में फ्लावरपॉट सांप भी शामिल हैं, जो केवल एफ़ाटे पर ही पाए जाते हैं। यहाँ चमगादड़ की 11 प्रजातियां (3 विशिष्ट रूप से वानूआतू की ही हैं) और भूमि एवं जल पक्षियों की 61 प्रजातियां मौजूद हैं। हालांकि छोटे पोलीनेशियाई चूहे मूल रूप से यहीं के हैं लेकिन बड़ी प्रजातियाँ यूरोपियनों के साथ यहाँ पहुचीं, इसी तरह पालतू सुअर, कुत्ते और मवेशी भी यहाँ पहुंचे थे। वानूआतू के कुछ द्वीपों की चीटियों की प्रजातियों को ई. ओ. विल्सन द्वारा सूचीबद्ध किया गया था।
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वानूआतू
समुद्री घोंघे की 4000 से अधिक प्रजातियों समेत, यह क्षेत्र समुद्री जीव-जंतुओं के मामले में काफी समृद्ध है। कोनशेल और स्टोनफिश में मनुष्य के लिए घातक विष होता है। विशाल पूर्वी अफ्रीकी स्थलीय घोंघा 1970 के दशक में ही यहाँ आया लेकिन इसके बावजूद अभी तक पोर्ट विला क्षेत्र से लुगानविले क्षेत्र तक फैल चुका है।
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वानूआतू
वानूआतू के मैंग्रोव में संभवतः 3 या 4 वयस्क खारे पानी के मगरमच्छ रह रहे हैं और वर्तमान में इनकी कोई प्रजनन संबंधी जनसंख्या नहीं है। यह अज्ञात है कि यहाँ मगरमच्छों की कभी प्राकृतिक प्रजनन से उत्पन्न जनसंख्या थी या नहीं (आज के मगरमच्छ उन मगरमच्छों के वंशज हैं जो इस द्वीप पर उपनिवेशकों द्वारा लाये गए थे) लेकिन इस द्वीप समूह की सोलोमन द्वीप और न्यू गिनी (जहाँ मगरमच्छ बहुत आम हैं) से नज़दीकी को देखते हुए ऐसा निश्चित रूप से संभव है।
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512.061755
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80
सादड़ी
सादडी अरावली की पहाड़ियों की गोद मे बसा हुआ है। इसे मेवाड़ के मारवाड़ का प्रवेशद्वार माना जाता है। यह भामाशाह की जन्मस्थली है। जैन धर्म के लोगों के लिए सादड़ी एक मुख्य पूजास्थल है। यहाँ के रणंकपुर मंदिर तथा परशुराम महादेव मंदिर प्रसिद्ध मंदिर हैं। भादरास गाँव यहाँ से ३ किमी की दूरी पर मघई नदी के किनारे है। रणकपुर रोड पर जाने पर आदर्श विद्यालय के सामने की तरफ राडाजी वाला बेरा है वहा पर प्रसिद्ध व्यक्ति चंपालाल जी उर्फ़ चंपत जाट का जन्म हुआ है
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511.999182
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80
सादड़ी
सादड़ी एक नगरपालिका है। पाली जिले का सबसे बड़ा नगर पालिका क्षेत्र भी है इसके अन्तरगर्त भादरास गाँव भी सम्मिलित है। वर्तमान मे यहाँ नगरपालिका अध्यक्ष दिनेश कुमार मीणा है जो कि पार्षदों द्वारा निर्वाचित किए गए हैं वर्तमान में सादड़ी नगरपालिका में 35 वार्ड कर दिए गए हैं।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80
सादड़ी
सादड़ी इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण नगर रहा है यहां पर राजस्थान के अमरनाथ कहलाने वाले *परशुराम महादेवजी* का मंदिर है यहां पर श्रावण शुक्ला षष्ठी को प्रतिवर्ष मेला लगता है जिसमें राजस्थान के तमाम भजन गायक अपनी हाजिरी प्रस्तुत करते हैं। सादड़ी वर्तमान पाली जिले जोधपुर संभाग में स्थित है लेकिन रियासत काल में यह मेवाड़ रियासत के अंदर था
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80
सादड़ी
महाराणा प्रताप को धन भेंट करने वाले दानवीर भामाशाह की यह जन्म भूमि भी है। भामाशाह के पिता जी भारमल और उनके बड़े भाई ताराचंद जी कावेडिया थे ताराचंद जी की और भामाशाह की यहां पर बावड़ी बनी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को इन्होंने इनकी पूरी निजी संपत्ति दे दी थी इसलिए सादडी को साहूकारों की सादड़ी भी कहते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80
सादड़ी
विश्व प्रसिद्ध राणकपुर जैन मंदिर भी इसी नगर के अंतर्गत है जिसका निर्माण सेठ धरनक शाह अर्थात धन्ना सेठ ने कराया था। यह महाराणा कुंभा के समय में बनाया गया। यहां पर रणकपुर प्रस्तुति की भी रचना की गई। इस मंदिर का वास्तुकार दीपक था और इसका निर्माण 1439 ईसवी में किया गया। इस मंदिर के अंदर 1444 खंभे है। इस मंदिर की विशेषता है कि किसी भी जगह से खड़े होकर भगवान की मूर्ति देखो तो कोई भी खंबा बीच में नहीं आता। यह मंदिर मगाई नदी के किनारे रणकपुर बांध के अंतिम छोर पर स्थित है। इस मंदिर को इतिहास में "वनों का स्तम्भ" भी कहा जाता है।
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सादड़ी
यहां पर रणकपुर बांध भी है जो पाली जिले का दूसरा सबसे बड़ा बांध है। यह बाँध जोधपुर दरबार के अधीन है, इसका कुल गेज 62 फीट 4 पत्ती है।
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सादड़ी
यहां पर बड़े-बड़े उद्योगपतियों का भी जन्म हुआ। सेलो समूह (cello ग्रुप) के मालिक घीसू लाल बदामिया की भी यह जन्मभूमि है जिनका हाल ही में निधन हो चुका है। फ्लेयर ग्रुप के मालिक भी यहीं के निवासी हैं और सोने के शर्ट बनाने वाला रांका ज्वेलर्स के मालिक की भी जन्मभूमि है। किलर जींस ग्रुप के मालिक भी यहीं के निवासी है।
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सादड़ी
यहां पर रणकपुर जैन मंदिर के कारण प्रतिदिन विदेशी पर्यटक बहुत आते हैं। यहां पर अस्थि एवं जोड़ों का अस्पताल है जो आसपास के क्षेत्रों को अपनी सेवाएँ प्रदान करता है। यहां पर दो सरकारी हॉस्पिटल भी हैं और एक पशुओं का अस्पताल भी है।
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सादड़ी
सादड़ी के अंदर आने के लिए तीन रोड जुड़े हुए हैं। एक सादड़ी से उदयपुर को जोड़ता है (राणकपुर घाट से होकर) ; दूसरा सादड़ी से फालना जोधपुर और तीसरा सादड़ी से देसूरी घाट की तरफ जाता है। यहां पर एक बड़ा बस स्टैंड भी है जहां पर प्रत्येक बस 10 मिनट कम से कम रूकती है।
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खपरैल
किसी मिट्टी, पत्थर, धातु, काच आदि कठोर पदार्थ से बने टुकड़े को खपरे या खपरैल (टाइल) कहते हैं। ग्रामीण भारत में घरों पर छाया का मुख्य साधन है, उपयोग प्रायः छत, फर्श, दीवार आदि ढकने में होता है।
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खपरैल
इनके अलावा चीनी मिट्टी के ग्लेज किए हुए तथा सीमेंट के चौके फर्श तथा दीवाल पर जड़ने के लिए भी बनाए जाते हैं, जो कई आकृतियाँ तथा रंगों के होते हैं।
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खपरैल
छत छाने के लिए ऐसबेस्टस तथा अन्य वस्तुओं के भी तरह तरह के चौके अथवा टाइलें भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं के लिए प्रयोग में आती हैं जैसे संगमरमर, स्लेट, टेराकोटा इत्यादि के चौके।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%B2
खपरैल
मिट्टी के चौके और खपरैल प्राय: उसी प्रकार बनाई जाती हैं जैसे ईंट पर इनके बनाने में अधिक मेहनत और ध्यान देना पड़ता है। इन खपरैलों तथा चौकों की तरह तरह की डिजाइनों के लिए फर्मा बहुत सावधानी से तथा सच्चा बनाना पड़ता है और उनके पकाने और निकासी में बहुत सावधानी रखनी पड़ती है।
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खपरैल
भारत में छत छाने के लिए स्थानीय देशी खपरैल से लेकर स्यालकोट, इलाहाबाद, मंगलोर इत्यादि में अच्छे मेल की खपरैल काफी बनती थीं, पर इनका प्रचलन अब धीरे-धीरे सीमेंट कंक्रीट तथा प्रबलित ईटों (reinforecd-bricks) के कारण कम होता जा रहा है।
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खपरैल
देशी खपरैलों में दो प्रकार की खपरैलें अधिक प्रचलित हैं। एक में दो अधगोली नालीदार खपरैलें एक दूसरे पर आैंधाकर रख दी जाती हैं। दूसरे में दो चौकोर चौके, जिनके किनारे, थोड़ा सा ऊपर मुड़े रहते हैं, अगल बगल रखकर उन दोनों के ऊपर एक अधगोली खपरैल उलटकर रख दी जाती है, जिससे दोनों चौकों के बीच की जगह ढक जाए। करीब १,२०० खपरैलें १०० वर्गफुट छत छाने के लिए अपेक्षित होती हैं।
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खपरैल
मँगलोर चौके चिपटे होते हैं। इनमें आपस में एक दूसरे को फँसाने के लिए खाँचा बना रहता है। करीब १३० दक्षिणी चौके या १०० कानपुरी चौके १०० वर्गफुट छत छाने के लिए आवश्यक होते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%B2
खपरैल
इलाहाबादी टाइल से एकहरी या दोहरी छवाई की जाती है। उभरे हुए भाग (ridge), कटि प्रदेश (hip) तथा निम्न भूमि (valley) के लिए विशेष टाइलें बनानी पड़ती हैं। नाली के लिए जो टाइल या चौके बनते हैं, या तो चिपटे
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%B2
खपरैल
बनाकर सुखाने तथा पकाने से पहले लकड़ी के गोल फर्मे पर मोड़ लिए जाते हैं, अथवा आरंभ में ही अधगोले के आकार में मशीन द्वारा ढाल लिए जाते हैं। ग्लेज़ किए हुए चीनी मिट्टी के चौके महँगे होते हैं और स्नानागार अस्पताल तथा अन्य स्थानों पर सौंदर्य तथा सफाई के विचार से फर्श या दीवाल में सीमेंट द्वारा बैठा दिए जाते हैं। अब सीमेंट के मोज़ेइक टाइल भी बहुत बनने लगे हैं और इनका प्रचलन दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। ये सब कई डिजाइनों तथा रंगों के बनते हैं और इनसे बने फर्श बहुत सुंदर लगते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B
ताबो
ताबो (Tabo) भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के लाहौल और स्पीति ज़िले में स्थित एक बस्ती है। यह स्पीति नदी के किनारे बसा हुआ है। ताबो राष्ट्रीय राजमार्ग 505 पर काज़ा और रिकांग पिओ के बीच स्थित है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B
ताबो
ताबो एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ ताबो गोम्‍पा के चारो तरफ बसा हुआ है। यह मठ हिमालय क्षेत्र का दूसरा सबसे महत्‍वपूर्ण मठ माना जाता है। स्‍थानीय लोगों के अनुसार इस मठ का निर्माण 996 ई. में हुआ था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B
ताबो
इस गोम्‍पा की स्‍थापना लोचावा रिंगचेन जंगपो (रत्‍नाभद्र) ने 996 ई. में की थी। लोचावा रिंगचेन जंगपो एक प्रसिद्ध विद्धान थे। ताबो मठ परिसर में कुल 09 देवालय है, जिनमें से चुकलाखंड, सेरलाखंड एवं गोन्‍खंड प्रमुख हैा मठ के भीतर अनेक भित्ति चित्र एवं मूर्तियां निर्मित की गई है, चुकलाखंड लंड (देवालय) के दीवारों पर बहुत ही सुंदर चित्र अंकित किये गये जिसमें बुद्ध के संपूर्ण जीवन को चित्रों के माध्‍यम से बताने का प्रयास किया गया है, गोंपा में बहुत ही पुराने धर्म ग्रन्‍थ (‍जो कि तिब्‍बती भाषा में लिखे हुये है) एवं बौद्ध धर्म से संबंधित बहुत पुराने पांडुलिपि भी प्राप्‍त हुआ है। ताबो गोंपा के चित्र अजंता गुफा की चित्रों से मेल खाते है इसलिये ताबो गोंपा को हिमालयन अजंता के नाम से भी जाना जाता हैा इस गोम्‍पा में लगभग 60 से 80 लामा प्रतिदिन बौद्ध धर्म का अध्‍ययन करते है, जिनका दैनिक चर्या बौद्ध धर्म के धार्मिक ग्रन्‍थों का अध्‍ययन एवं स्‍थानीय लोगों के अनुरोध पर उनके घरों में जाकर धार्मिक ग्रन्‍थों का अध्‍ययन करना एवं पूजा पाठ कराना हैा इस गोम्‍पा का निर्माण भालू मिट्टी एवं मिट्टी के ईटों से किया गया है। मुख्‍य मंदिर के मध्‍य में वेरोकाना की मूर्ती है जो कि मुख्‍य मंदिर को चारो दिशाओं से मुखारबिंद किये हुये है, एवं उनके चारो तरफ मंदिर की दीवार के मध्‍य में दुरयिंग के मूर्तियों है, जिनमें महाबुद्ध अ‍मिताभ, अक्षोभया, रत्‍नासंभा की मूर्तियॉ मुख्‍य हैा वर्ष 1996 ई. में इस गोम्‍पा ने अपने स्‍थापना के 1000 वर्ष पूरे किए। दलाई लामा जी ने ताबो गोम्‍पा में वर्ष 1983 एवं 1996 में कालचक्र प्रवर्तन किया गया। यहां हर चार वर्ष में एक बार चाहर मेला लगता है जोकि माह अक्‍टूबर में होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B
ताबो
ताबो गोम्‍पा के सामने ही प्रकृति निर्मित गुफा है। इन गुफाओं में अब सिर्फ एक ही गुफा 'फू गोम्‍पा' गावं से अलग एवं कुछ दूरी पर स्थित होने के कारण इसे फू कहा गया है, सुरक्षित अवस्‍था में है। बाकी गुफाओं के संरक्षण के लिए भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग प्रयत्‍नशील है। इन गुफाओं की दीवारों पर चित्र भी बने हुए हैं। कुछ चित्र अभी भी सुरक्षित अवस्‍था में हैं। इन चित्रों में कुछ पशुओं के चित्र भी हैं। इन पशुओं में जंगली बकरा तथा तेंदुआ शामिल है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B
ताबो
काज़ा यहाँ से 47 किलोमीटर दूर है। काज़ा में प्रशासनिक भवन तथा कुछ बौद्व मठ हैं। नजदीक ही अनुमंडल अधिकारी का कार्यालय है। इसी कार्यालय से विदेशियों को लाहौल-स्‍पीति के अंदरुनी भागों में जाने की अनुमति मिलती है। यहां ठहरने के लिए कुछ होटल भी है। काजा से ही हिक्किम तथा कौमिक गांव जाने का रास्‍ता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B
ताबो
काजा से एक रास्‍ता उत्तर-पूर्व दिशा में किब्‍‍बर को जाता है। यह समुद्र तल से 13796 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां स्‍कूल, डाकघर तथा रेस्‍ट हाउस है। यहां प्रत्‍येक वर्ष जुलाई महीने में 'लदारचा मेला' लगता है। इस मेले में भाग लेने के लिए दूर-दूर से बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग आते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B
ताबो
यह काजा से 14 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मठ की स्‍थापना 13वीं शताब्‍दी में हुई थी। यह स्‍पीती क्षेत्र का सबसे बड़ा मठ है। यह मठ दूर से लेह में स्थित थिकसे मठ जैसा लगता है। यह मठ समुद्र तल से 13504 फीट की ऊंचाई पर एक शंक्‍वाकार चट्टान पर निर्मित है। स्‍थानीय लोगों का मानना है कि इसे रिंगछेन संगपो ने बनवाया था। यह मठ महायान बौद्ध के जेलूपा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ पर 19वीं शताब्‍दी में सिखों तथा डोगरा राजाओं ने आक्रमण भी किया था। इसके अलावा यह 1975 ई. में आए भूकम्‍प में भी सुरक्षित रहा। इस मठ में कुछ प्राचीन हस्‍तलिपियों तथा थंगकस का संग्रह है। इसके अलावा यहां कुछ हथियार भी रखे हुए हैं। यहां प्रत्‍येक वर्ष जून-जुलाई महीने में 'चाम उत्‍सव' मनाया जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B
ताबो
डंखर एक समय स्‍पीती की राजधानी थी। आज यह एक छोटा सा गांव है। यहां 16 वीं शता‍ब्‍दी में डंखर गोम्‍पा की स्‍थापना हुई थी। यह गोम्‍पा समुद्र तल से 12763 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। डंखर गोंपा को भी ताबो गोंपा के समान स्पिति में मान्‍यता प्राप्‍त है। वर्तमान में यह 150 लामाओं का निवास स्‍थान है। इस गोम्‍पा में भी बौद्ध धर्म के अनेक प्राचीन धर्मग्रन्‍थ एवं थांगा पैंटिग संरक्षित किये गये हैा। यहां ध्‍यानमग्‍न बुद्ध की एक मूर्त्ति भी है। यह गोम्‍पा सिचलिंग सड़क से 2 घण्‍टे की खड़ी चढ़ाई पर स्थित है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B
ताबो
इसे 'वर्फीले तेंदुओं तथा जंगली बकरों' की धरती कहा जाता है। यह दक्षिणी धनकर में स्थित है। यह पार्क 675 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस पार्क के समीप 600 वर्ष पुराना कुंगरी गोम्‍पा है। यह गोम्‍पा बौद्ध धर्म के नियिगम्‍पा सम्‍प्रदाय से संबंधित है। यहां काजा से बस द्वारा जाया जा सकता है।
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इमाम-उल-हक़
20 जुलाई 2018 को, जिम्बाब्वे के खिलाफ चौथे एकदिवसीय मैच में, उन्होंने और फखर ज़मान ने एकदिवसीय मैचों में सर्वाधिक 304 रनों की साझेदारी की।
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इमाम-उल-हक़
पाकिस्तान ने एक विकेट के नुकसान पर 399 रनों पर अपनी पारी समाप्त की, जो एकदिवसीय मैचों में उनका सर्वोच्च स्कोर है।
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इमाम-उल-हक़
ज़मान और इमाम ने श्रृंखला में एक साथ 705 रन बनाए थे, जो द्विपक्षीय एकदिवसीय श्रृंखला में एक जोड़ी द्वारा सबसे अधिक था।
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इमाम-उल-हक़
जनवरी 2019 में, दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीसरे एकदिवसीय मैच के दौरान, इमाम अपनी 19 वीं पारी में, एकदिवसीय मैचों में 1,000 रन बनाने वाले दूसरे सबसे तेज बल्लेबाज बन गए।
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इमाम-उल-हक़
उन्होंने 5 मई 2019 को इंग्लैंड के खिलाफ पाकिस्तान के लिए ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (टी20आई) की शुरुआत की। इंग्लैंड के खिलाफ एकदिवसीय श्रृंखला में, क्रिकेट विश्व कप पहले, इमाम ने तीसरे वनडे मैच में 151 रन बनाए। एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच में इंग्लैंड के खिलाफ पाकिस्तान के बल्लेबाज के लिए यह सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर था।
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इमाम-उल-हक़
जून 2020 में, उन्हें कोविड-19 महामारी के दौरान पाकिस्तान के इंग्लैंड दौरे के लिए 29 सदस्यीय टीम में नामित किया गया था।
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इमाम-उल-हक़
जुलाई में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट मैचों के लिए उन्हें पाकिस्तान के 20 सदस्यीय टीम में शामिल किया गया था।
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इमाम-उल-हक़
वह एक पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर इंज़माम-उल-हक़ का भतीजा है, जिसने राष्ट्रीय टीम के कप्तान के रूप में भी काम किया है।
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इमाम-उल-हक़
हक परिवार की उत्पत्ति मुल्तान से हुई है। उनके पूर्वज 1947 में भारत के वर्तमान भारतीय राज्य हरियाणा के हांसी शहर से पाकिस्तान चले गए थे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B0
मनसुंदर
अवनी गोयनका के रूप में अलीशा तुंगे: रतन और सौमी की बेटी; समर की बड़ी बहन; नहार की छोटी सौतेली बहन, प्रमील की पत्नी (2023-वर्तमान)
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मनसुंदर
समर गोयनका के रूप में उज्जवल शर्मा: रतन और सौमी का बेटा; अवनि का छोटा भाई; नहार का छोटा सौतेला भाई (2023-वर्तमान)
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मनसुंदर
प्रमिल के रूप में नितेश पाराशर; अवनी की पति, रतन और सौमी के दामाद, नहार और समर की जीजा (2023-वर्तमान)
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मनसुंदर
संजय भाटिया - नरेश गोयल के रूप में: पूनम के पति; निहार, प्रीति और प्रतीक के पिता; श्रीमती गोयल का बेटा; प्रिया, पिंकू और जूही के दादा; रूही के दत्तक दादा (2021-वर्तमान)
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मनसुंदर
अपर्णा घोषाल - पूनम नरेश गोयल: नरेश की पत्नी; निहार, प्रीति और प्रतीक की माँ; रुचिता, रितु और पलक की सास; प्रिया, पिंकू और जूही की दादी; रूही की दत्तक दादी (2021-वर्तमान)
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मनसुंदर
पिंकू गोयल के रूप में मुकेश चौधरी: प्रतीक और दिशा का बेटा; निहार का दत्तक पुत्र; प्रिया का सौतेला भाई; जूही का चचेरा भाई; रूही की दत्तक चचेरी बहन; पलक की पति (2023–मौजूदा)
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मनसुंदर
सूरज पंजाबी /सपन चौधरी - प्रतीक गोयल के रूप में : पूनम और नरेश का सबसे बड़ा बेटा; निहार और प्रीति के बड़े भाई; दिशा का पूर्व प्रेमी; रितु का विधुर; मोनिका का प्रेमी, प्रिया और पिंकू के पिता; जूही के चाचा; रूही के दत्तक चाचा (2021-2023) / (2023-वर्तमान)
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मनसुंदर
श्रीमती गोयल के रूप में ममता लूथरा: नरेश की माँ; निहार, प्रीति और प्रतीक की दादी; पूनम की सास; रुचिता और रितु की दादी सास (2021–2023)
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मनसुंदर
मनीषा सक्सेना / प्रीति सिंघानिया - रितु प्रतीक गोयल (नी गोयनका): मीरा की दत्तक बेटी; प्रतीक की पत्नी; अमृता की सबसे ब दत्तक बहन; पूनम की बहू; रुचिता की भाभी, प्रिया की माँ और पिंकू की सौतेली माँ; जूही की चाची; रूही की दत्तक चाची (2021-2023) / (2023) (मृत)
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डीएचसीपी
जब एक डीएचसीपी-कॉन्फ़िगर क्लाइंट (एक कंप्यूटर या कोई अन्य नेटवर्क-युक्त उपकरण) एक नेटवर्क से जुड़ता है, डीएचसीपी क्लाइंट DHCP सर्वर से आवश्यक जानकारी के लिए एक प्रसारण क्वेरी भेजता है। डीएचसीपी सर्वर IP एड्रेस और क्लाइंट कॉन्फ़िगरेशन पैरामीटर की जानकारियों का एक समूह एकत्रित करता है जैसे कि डिफ़ॉल्ट गेटवे, डोमेन नाम, DNS सर्वर अन्य सर्वर जैसे टाइम सर्वर, और दूसरे. एक वैध अनुरोध प्राप्त होने पर, सर्वर कंप्यूटर को एक आईपी एड्रेस, एक लीज़ (जितने समय तक आबंटन मान्य है) और अन्य आईपी कॉन्फ़िगरेशन पैरामीटर जैसे कि सबनेट मास्क और डिफ़ॉल्ट गेटवे निर्दिष्ट करता है। आमतौर पर बूटिंग के तुरंत बाद क्वेरी की शुरुआत हो जाती है और यह क्लाइंट द्वारा अन्य होस्ट के साथ आईपी आधारित संचार शुरू होने से पहले पूरी होनी चाहिए।
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डीएचसीपी
डायनेमिक आबंटन: एक नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेटर डीएचसीपी को आईपी एड्रेस की एक श्रंखला प्रदान करता है और लैन पर प्रत्येक क्लाइंट कंप्यूटर का अपना आईपी एड्रेस होता है जो इस ढंग से कॉन्फ़िगर होता है जो नेटवर्क के शुरू होने पर डीएचसीपी सर्वर से एक आईपी एड्रेस का अनुरोध करता है। अनुरोध और अनुदान प्रक्रिया एक नियंत्रित की जा सकने वाली समय अवधि के साथ एक लीज़ की अवधारणा का प्रयोग करती है, ताकि डीएचसीपी सर्वर उन आईपी एड्रेस को पुनः प्राप्त कर सके जो नये सिरे से नहीं बने हैं (आईपी एड्रेस का डायनेमिक पुनः-प्रयोग)।
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डीएचसीपी
स्वचालित आबंटन: डीएचसीपी सर्वर स्थायी रूप से एडमिनिस्ट्रेटर द्वारा निर्धारित सीमा से अनुरोध करने वाले क्लाइंट को एक मुफ्त आईपी एड्रेस प्रदान करता है। यह डायनेमिक आवंटन की तरह है, लेकिन डीएचसीपी सर्वर आबंटित किये गये पिछले आईपी एड्रेस की एक टेबल रखता है, ताकि यह क्लाइंट को प्राथमिकता के आधार पर वही आईपी एड्रेस आबंटित कर सके जो क्लाइंट के पास पिछली बार था।
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डीएचसीपी
स्टेटिक आबंटन: डीएचसीपी सर्वर एक मैक एड्रेस/आईपी एड्रेस पेयर से युक्त एक तालिका के आधार पर आईपी एड्रेस आबंटित करता है, जो कि मैन्युली भरे जाते हैं (शायद एक नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेटर द्वारा)। केवल इस तालिका में सूचीबद्ध मैक एड्रेस से क्लाइंट को अनुरोध करने पर एक आईपी एड्रेस आवंटित होगा। इस सुविधा (जो सभी रूटरों द्वारा समर्थित नहीं है) को अक्सर स्टेटिक डीएचसीपी असाइनमेंट (DD-WRT द्वारा), फिक्स्ड एड्रेस (डीएचसीपीd डोक्युमेंटेशन द्वारा) DHCP आरक्षण या स्टेटिक DHCP (सिस्को/लिंकसिस द्वारा), और आईपी आरक्षण या मैक / IP बाइंडिंग (विभिन्न अन्य रूटर निर्माताओं द्वारा) कहा जाता है।
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डीएचसीपी
डीएचसीपी IANA द्वारा निर्दिष्ट उन्हीं दो पोर्ट का प्रयोग BOOTP के लिए करता है : सर्वर साइड के लिए 67/udp और क्लाइंट साइड के लिए 68/udp.
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