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20231101.hi_387190_8
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डीएचसीपी
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डीएचसीपी आपरेशन के चार बुनियादी चरण हैं : आईपी खोज, आईपी लीज़ प्रस्ताव, आईपी अनुरोध और आईपी लीज़ स्वीकृति.
| 0.5 | 496.05756 |
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डीएचसीपी
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क्लाइंट फिज़िकल सबनेट पर उपलब्ध डीएचसीपी सर्वर को खोजने के लिए संदेश प्रसारित करता है। नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेटर एक स्थानीय रूटर को एक अलग सबनेट से डीएचसीपी के पैकेट को एक DHCP सर्वर पर आगे भेजने के लिए कॉन्फ़िगर कर सकते हैं। क्लाइंट द्वारा की गयी इस क्रिया के फलस्वरूप 255.255.255.255 या विशिष्ट सबनेट प्रसारण एड्रेस के साथ एक यूज़र डाटाग्राम प्रोटोकॉल (UDP) पैकेट बनता है।
| 0.5 | 496.05756 |
20231101.hi_387190_10
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डीएचसीपी
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एक डीएचसीपी क्लाइंट अपने पिछले ज्ञात आईपी पते (नीचे दिए गये उदाहरण में, 192.168.1.100) के लिए भी अनुरोध कर सकता है। यदि क्लाइंट उस नेटवर्क से जुड़ा रहता है जिसके लिए यह आईपी वैध है, तो सर्वर अनुरोध स्वीकार कर सकता है। अन्यथा, यह निर्भर करता है कि सर्वर को अधिकृत रूप में सेट किया गया है या नहीं। एक आधिकारिक सर्वर अनुरोध को अस्वीकार कर देगा, जिससे क्लाइंट तुरंत एक नया आईपी एड्रेस पूछेगा. एक गैर आधिकारिक सर्वर अनुरोध को केवल अनदेखा कर देता है, जिससे क्लाइंट को एक नया अनुरोध भेजने और नया आईपी एड्रेस पूछने के लिए कार्यान्वयन पर निर्भर समय मिल जाता है।
| 0.5 | 496.05756 |
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डीएचसीपी
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जब एक डीएचसीपी सर्वर क्लाइंट से एक आईपी लीज़ का अनुरोध प्राप्त करता है, यह क्लाइंट के लिए एक IP एड्रेस सुरक्षित रखता है और क्लाइंट को एक डीएचसीपीOFFER संदेश भेज कर आईपी लीज़ की पेशकश करता है। इस संदेश में क्लाइंट का मैक एड्रेस, सर्वर द्वारा प्रस्तावित आईपी एड्रेस, सबनेट मास्क, लीज़ की अवधि और प्रस्ताव भेजने वाले सर्वर का आईपी एड्रेस होता है।
| 0.5 | 496.05756 |
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चरखारी
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बुंदेलखंड अपनी अनूठी परंपरा, कलाकृतियों और वास्तु कला के लिए भी देश में अलग पहचान रखता है। यहां चंदेल शासनकाल की इमारतों की वास्तु कला देखते ही बनती है तो महोबा के सात सरोवरों का अद्भुत संगम बरबस ही आकर्षित करता है। यह सोरोवर वर्ष भर जल से संतृप्त रहते हैं, यहां के लोगों ने डल झील की तरह मनोरम छटा बिखरने वाले इन सरोवरों के कारण चरखारी को बुंदेलखंड का मिनी कश्मीर का दर्जा दे दिया गया है। यहां कीरतसागर, मदनसागर, कल्यान सागर आल्हा ऊदल की याद दिलाते हैं तो चरखारी के सप्त सरोवर मलखान जू देव महाराज की याद ताजा रखे हैं। चंदेलकालीन इन सात सरोवरों की अनूठी कलाकृति और वास्तु कला लोगों को खासा आकर्षित करती है।
| 0.5 | 495.477144 |
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चरखारी
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महोबा मुख्यालय से करीब 18 किलो मीटर दूर है चरखारी। कस्बा के एक किलो मीटर पहले से ही यहां की मनोरम छटा नजर आने लगती है। यहां आकर लगता है कि हम बुंदेलखंड के किसी कस्बे में नहीं बल्कि कशमीर की वादियों में आ गये हैं। कस्बे के बीच और बाहर फैसेल तालाब यहां का दृश्य और भी मनोरम बना देते हैं। कस्बे में बने कान्हा के प्रतीक रुप में बने 108 मंदिर तो शोभा बढ़ाते ही हैं यहां के सात तालाब और भी उसमें चार चांद लगा देते हैं।
| 0.5 | 495.477144 |
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चरखारी
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सात तालाबों में सबसे पहला तालाब है गोला तालाबा। यह तालाब चारो ओर से गोल है इसी लिए इसका नाम गोला तालाब है। सबसे पहले बस्ती और बारिश का पानी इसी तालाब में आता है। यह पूरा तालाब जब भर जाता है तो इसके बाद यहां का पानी कोठी तालाब में चला जाता है। इस तालाबा के पास राजाओं की कोठी बनी थीं इसलिए इसका नाम कोठी तालाब पड़ गया। इन कोठियों में राजाओं के मेहमान ठहरा करते थे। कोठी तालाब के बाद पंचीया तालाब में पानी भरता है। इसका नाम भगवान का मंदिर होने के कारण पड़ा। यहीं पर हर साल मेला लगता है।
| 0.5 | 495.477144 |
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चरखारी
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कोठी तालाब से पानी होकर जय सागर तालाब में मिलता है। इस तालाब को राजा जयसिहं ने खुदवाया था। इसी लिए इसका नाम जयसागर पड़ा। जयसागर से पानी होकर मलखान सागर में जाता है। मलखान सागर का नाम मलखान सिंह जू देव महाराज के नाम पर पड़ा। इन्हें सर की उपाधि भी मिली थी। इनके द्वारा चरखारी का मेला लगना शुरु हुआ था। यहां से पानी होकर रपट तलैया में आता है। रपट तलैया का नाम इसलिए पड़ा क्यों कि बस्ती का सारा पानी यहां भर जाने के बाद यहां से पानी आगे रतन सागर में जाता है। रतन सागर को राजा रतन सिंह ने खुदवाया था। इसीलिए इसका नाम रतन सागर पड़ा।
| 0.5 | 495.477144 |
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चरखारी
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अंग्रेजों के समय में यह एक छोटी राजशाही के रूप में मौजूद था जो भारत की आजादी के बाद अधिगृहीत कर लिया गया।यहाँ के शासकों ने ब्रिटिश राज़ के समय अंग्रेजों का साथ दिया....इस बात से क्षुब्ध तात्या टोपे द्वारा यहाँ एक बार आक्रमण किया गया जिससे घबरा कर यहाँ के राजा ने बिना युद्ध किये तात्या टोपे की सभी शर्त मान ली और चौथ दे के अपनी जान बचायी। तभी से भारत के स्वाधीनता संग्राम मे यहाँ के राज्य को जयचंद के राज्य से तुलना की जाती है। लेकिन यहाँ के राजाओं ने यहाँ कई तालाबों मंदिरों का भी निर्माण कराया।
| 1 | 495.477144 |
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चरखारी
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चरखारी की भूगोलीय अवस्थिति पर है और यह समुद्र तल से १८४ मीटर (६०३ फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यह स्थान कई झीलों से घिरा हुआ है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण "बुन्देलखण्ड का काश्मीर" कहा जाता है।
| 0.5 | 495.477144 |
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चरखारी
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के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, चरखारी नगर पालिका के अंतर्गत कुल ५,०६६ मकान थे और कुल २७,७६० लोग निवासी थे जिनमें १४,७१२ पुरुष और १३,०४८ महिलायें थीं। शून्य से छह वर्ष की आयु के अंतर्गत बच्चों की संख्या ३५५४ थी जो कुल जनसंख्या का १२% थी। चरखारी नगर पालिका में लिंगानुपात ८८७ दर्ज किया गया जो राष्ट्रीय औसत ९१२ से काफ़ी कम है। साक्षरता ७३.८ % है जो राज्य के औसत ६७.६८ % से अधिक है।
| 0.5 | 495.477144 |
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चरखारी
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चरखारी में प्रसिद्द गोवर्धन जू मेला लगता है और लोगों के मुताबिक़ इसकी शुरूआत राजा मलखान सिंह ने १८८३ ई॰ में की थी।
| 0.5 | 495.477144 |
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चरखारी
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बुन्देलखण्ड एक अत्यंत वैभव सम्पन्न राजसी क्षेत्र रहा है, इस बात में कोई दोराय नहीं है तभी इस क्षेत्र में हजारों साल पुराने किले, महल, तालाब, मंदिर इत्यादि हैं। ऐसा ही एक विशालकाय दुर्ग है, महोबा जिले की चरखारी नगरी में इससे सटा हुआ राजमहल है। इस राजमहल के चारों तरफ नीलकमल से आच्छादित तथा एक दूसरे से आन्तरिक रूप से जुड़े- विजय सागर, मलखान सागर, वंशी सागर, जय सागर, रतन सागर और कोठी ताल नामक झीलें हैं। चरखारी नगरी को वृज का स्वरूप एवं सौन्दर्य प्रदान करते कृष्ण के 108 मन्दिर- जिसमें सुदामापुरी का गोपाल बिहारी मन्दिर, रायनपुर का गुमान बिहारी, मंगलगढ़ के मन्दिर, बख्त बिहारी, बाँके बिहारी के मन्दिर तथा माडव्य ऋषि की गुफा है। इसके समीप ही बुन्देला राजाओं का आखेट स्थल टोला तालाब है। ये सब मिलकर चरखारी नगरी की सुन्दरता को चार चाँद लगाते हैं। चरखारी का प्रथम उल्लेख चन्देल नरेशों के ताम्र पत्रों में मिलता है।
| 0.5 | 495.477144 |
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दृष्टकूट
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दृष्टकूट ऐसी कविता को कहते हैं जिसका अर्थ केवल शब्दों के वाचकार्थ से न समझा जा सके बल्कि प्रसंग या रूढ़ अर्थों से जान जाय।
| 0.5 | 494.813602 |
20231101.hi_220321_1
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दृष्टकूट
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शब्द, संस्कृत के "दृष्ट' तथा "कूट' शब्दों से बना है, जिसका साहित्यिक अर्थ है 'जो सहज रूप से देखने सुनने पर समझा न जा सके'। तिल की ओट पहाड़, दृष्टिछलन इत्यादि, अर्थात् साहित्य के समर्थक अंग श्लेषादि शब्दालंकारों से आवृत ऐसे अनेकार्थवाची शब्दों की योजना, जिनका अर्थ उसके शब्दों की अपेक्षा रूढ़ि वा प्रसंग से जाना जा सके। वस्तुत: इस यौगिक शब्द "दृष्टकूट' की अर्थगूढ़ता तथा जटिलता ही उसकी विशेषता है, जो अक्षरों में उलझी होने के कारण दुर्बोध तथा तद्गत शब्दों की भूलभुलइयों में छिपी रहती है।
| 0.5 | 494.813602 |
20231101.hi_220321_2
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दृष्टकूट
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दृष्टकूट शब्दार्थ का इतिहास उसके अंशविशेष कूट को लेकर पुराना है। वह वेद और उपनिषदों में ब्रह्म, जीव तथा जगत् अर्थों को व्यक्त करनेवाले कितने ही शब्दों का सहारा पाकर आगे बढ़ा और महाभारत रचना के समय नाना शब्दों से समृद्ध बना। वहाँ शब्दब्रह्म का अपने नाना भाँति के अर्थ व्यक्त करनेवाला खिलवाड़ दर्शनीय है। भक्तिसाहित्य की अमल संस्कृत कृति "भागवतंरसमालय' में भी उसकी छटा का यत्र तत्र सुंदर रूप देखने योग्य है। संस्कृत काव्यग्रंथों (शाकुंतल, माघ और "हर्षचरित' इत्यादि में भी) इस अर्थदुर्गम काव्य के कमनीय दर्शन जहाँ तहाँ होते हैं।
| 0.5 | 494.813602 |
20231101.hi_220321_3
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दृष्टकूट
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हिंदी, विशेषकर ब्रजभाषा साहित्य, में इस शब्द-ब्रह्म-रूप "दृष्टकूट' रचना का प्रवेश कब हुआ, कुछ कहा नहीं जा सकता, फिर भी वह डिंगल कवि नल्ह (सं. १२७२ वि.) के "बीसलदेवरासो' तथा मैथिल कवि विद्यापति (सं. १४२५ वि.) की पदावली में प्रारंभिक जीवनयापन कर सूरदास (सं. १५३५ वि.), अष्टछाप विमलवाणी पदावली में काफी फला फूला। पुरालोकनमस्कृत इतिहासग्रंथ महाभारत लिखते समय जिस प्रकार व्यासवाणी को समझ बूझकर लिखने में कुछ क्षण विरमना पड़ता था, उसी भाँति श्री सूर कृत दृष्टिकूट कीर्तनरचना में गाई गई "एतेचांश कला पुंस: कृष्णस्तुभगवान्स्वयं' (श्रीमद्भागवत १। ३। २८) की संयोगवियोगात्मक भाँति-भाँति की लोकपावन लीलाओं के रसमय गूढ़ रहस्यों को समझने में कुछ जूझना पड़ता है, इस दृष्टकूट रचनाशैली को हिंदी साहित्य में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी अपनाया, किंतु बहुत कम। फिर भी जो दो एक पद आपने इस प्रकार के रचे वे हिंदी साहित्य की शोभा हैं।
| 0.5 | 494.813602 |
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दृष्टकूट
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संस्कृत काव्यसिद्धांतों से विभूषित हिंदी रीतिकाल में भी दृष्टकूट' साहित्य समुन्नत हुआ। रीतिकाल के प्रथम आचार्य श्री चिंतामणि (सं. १६६६ वि.) प्रभृति द्वारा रचे गए विविध काव्य-शास्त्र-ग्रंथों में शब्दार्थालंकार रूपेण, अर्थात् "यमक', "प्रहेलिका', "अंतर्लापिका', "बहिर्लापिका', "रूपकातिशयोक्ति' पर "सूक्ष्म', "अर्थयुक्ति', तथा उभयात्मक "श्लेष' इत्यादि इस "दृष्टिकूट'-साहित्य-रचना में चार चाँद लगा रहे हैं। (हिंदी के "भक्तिकाल' से लेकर "अलंकृत काल' तक इस गूढ़ार्थी साहित्य को यदि गहरी दृष्टि से देखा जाए तो यह तीन भागों में विभक्त हुआ सा देखा जाता है, जिनकी संज्ञा - "कथात्मक, अलंकारत्मक और ध्वनि परिवर्तनात्मक' कही जा सकती है। कथात्मक (जिसका संबंध किसी पौराणिक कथा वा लोकवार्ता से घुलामिला हो) और अलंकारात्मक वर्ग अपने में स्पष्ट हैं। तृतीय वर्ग ध्वनिपरिवर्तनात्मक रूप उसे कहते हैं, जिसमें कुछ शब्दों की ध्वनि में परिर्वन कर एक नया अर्थ प्रस्तुत किया जाए, जैसे - "हरि अहार' (सूरसागर : सभा) हरि = सिंह, आहार व भोजन = "मांस' का अनुस्वार रहित रूप "मास' = महीना। संख्यावाची शब्द - "बीस' को ध्वनिपरिवर्तन कर "बिस' (विष = जहर) अर्थ में प्रयुक्त करना इत्यादि ...।) अष्टछाप के महाकवि श्री सूरदास जी के कुछ "दृष्टकूट' पदों को इधर उधर से जोड़ बटोरकर उनपर "टीका' लिखते हुए काशी के "सरदार कवि' ने (सं.- १९०२ वि. के आसपास) उपर्युक्त तीन दृष्टकूट वर्गों के अतिरिक्त दो तीन पदों (सं. - ८०, ८८, ८९: साहित्यलहरी : सरदार कवि) के संबंध में "उर्मिल द्वावर्ण' और "वारावर्त' दृष्टकूट भेदों का उल्लेख किया है, किंतु वहाँ आपने दोनों कूटभेदों की कोई परिभाषा नहीं दी जिससे इनकी विशेषता जानी जा सके। बाद के दृष्ट-कूट-पद-टीकाकारों ने, जिनमें भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र (सं. १९०० वि.) प्रधान हैं, सरदार कवि कथित इन दोनों दृष्टिकूट वर्गों पर कोई विचार प्रस्तुत नहीं किया है जबकि ये उनके सम्मुख आ चुके थे।
| 1 | 494.813602 |
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दृष्टकूट
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संस्कृत साहित्य में दृष्ट वा दृष्टकूट साहित्य की कोई पृथक् रचना पुस्तकरूप में नहीं मिलती। सुभाषित रत्नसंग्रहों में वे देखने में आते हैं। हिंदी पुस्तकसाहित्य में भी यह काव्य बिखरा हुआ ही मिलता है। अज्ञात साहित्यप्रेमियों द्वारा संकलित श्री सूरदास जी के दृष्टकूट पद हस्तलिखित रूप में सूर के कूटपद, सूरदास जी के दृष्टकूट, सूरदास के कूटपद नामों से मिलते हैं। आगे चलकर ये सूरकृत दृष्टकूट पद मुद्रित होकर प्रकाशित भी हुए; जैसे, दृष्टकूट पद (आगरा सन् १८६२ ई., होजी प्रेस), दृष्टकूट, सरदार कवि की टीका सहित (काशी, बनारस लाइट प्रेस, सं. १८६९ वि.,); सूरशतक, सूर के सौ कूटों की टीका (बालकृष्णदास, काशी, बनारस लाइट प्रेस, सं. १८६२ ई.); सूरदास जी का दृष्टकूट पद (हुसेनी प्रेस, दिल्ली, सं. अज्ञात); दृष्टकूट पद सूरदास कृत मुंबैउल उलूभ प्रेस, मथुरा, सं. १८६४ ई.) सूरशतक पूर्वार्ध (टीका बालकृष्णदास, काशी, खड्गविलास प्रेस, पटना १८८९ ई.); श्री सूरदास जी का दृष्टकूट (टीका भारतेंदु बा. हरिश्चंद्र, खड्गविलास प्रेस, पटना सं. १८९२ ई.) (इसे वहाँ साहित्यलहरी संज्ञा भी दी गई है); सूरदास जी का दृष्टकूट (टीका, सरदार कवि, काशी, नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ सं. १९१२ ई. चौथी बार। यहाँ भी इसे अंत में साहित्यलहरी नाम दिया गया है); साहित्यलहरी सटीक (टीका महादेवप्रसाद एम. ए., विद्यापति प्रेस, लहरिया सराय, सं. १९९६ वि. इत्यादि)
| 0.5 | 494.813602 |
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दृष्टकूट
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दृष्टकूट साहित्यरचना के मधुर उपासकों ने इस काव्य के सृजन में संस्कृत के अनेक शब्दों को अपना सहचर बनाकर उनसे मनचाहे अर्थों का काम लिया है। सारंग शब्द इसका प्रमाण है। संस्कृत कोशानुसार "सारंग' शब्द "चातक, हरिण, हाथी, चितकबरा, रवि, श्वेत पंखवाला पक्षी, हंस निस्पृह, विष्णु, शरीर, अग्नि, गाय का बछड़ा, वर्ष, पुत्र, देवता, इत्यादि अर्थों से संश्लिष्ट कहा गया है और जिसे ब्रजभाषा के लोकप्रिय कवि- "और सब गढ़िया' नंददास जड़िया' ने अपने कोशग्रंथ "अनेकार्थ मंजरी' में इस भाँति भाषारूप दिया है :
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दृष्टकूट
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श्री सूर ने इस सारंग शब्द का और और अर्थों में भी प्रयोग किया है। आपके अनुसार "सारंग' पद्म, मेघ, जल, खट्वांग, स्वर्ग, धनुष, सखी, केलि, श्री राधा, श्री कृष्ण, दंपति, सरस सर्प, स्वर्ण, शोभा, पद्मिनी नायिका विशेष, बिजली, बाण, नदी, अमृत, समुद्र, आभूषण, आदि अर्थों का भी द्योतक है। यही नहीं, श्री सूर ने सारंग शब्द के साथ अन्य शब्द जोड़कर दूसरे दूसरे अर्थ भी प्रस्तुत किए हैं, यथा, सारंगगति = सर्प की सी चालवाला, श्घ्रीा क्रोधित हो जानेवाला; सारंगधर और सारंगपानि, सारंगपाणि = भगवान् श्रीकृष्ण। सारंगरिपु = सूर्य, वस्त्र, घूँघट, गरुड़। सारंगसुत = भ्रमर, हरिण का बच्चा, चंद्रमा, काजल, कमल। सारंगसुता = स्याही आदि, आदि। अस्तु ये यौगिक शब्दकोश ग्रंथों में नहीं मिलते। हरि शब्द को भी दृष्टकूट साहित्यनिर्माताओं ने अपनाया। कोशानुसार हरि शब्द सिंह, वायु, इंद्र, चंद्र, सूर्य, विष्णु, किरण, घोड़ा, तोता, सर्प, वानर, मेढ़क, हरा पीला रंग, अर्थों का द्योतन करता है। भाषाकवि नंददास ने इसमें बढ़ोतरी की। आपके अनुसार हरि शब्द कमल, भ्रमर, आनंद, स्वर्ण काम, हरिण, वन, धनुष, दंड, नभ, पानी, अग्नि, पवन, पथ, राजा और श्रीकृष्ण भगवान् को भी कहते हैं (अने. मं. ११३ = ११४)। और इस हरि से बने अन्य शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं - हरितनया, हरितात, हरिद्रवन, हरिबाहन, हरिभष, हरिसिपु, हरिसुत इत्यादि। इनके अर्थ क्रमानुसार श्री जमुना जी, पवन, भोग, वृक्ष और गरुड़, महीना तथा मास, मान व क्रोध, काम और गजमुक्ता इत्यादि हैं। साहित्य में इस प्रकार के अनेक शब्दब्रह्म हैं, जिन्हें कविजनों ने मुख्य यौगिक शब्द बनाकर उनके स्वाभाविक अर्थों के अतिरिक्त यमक श्लेषादि अलंकारों के अन्य अर्थों को भी व्यक्त करते हुए साहित्य को सहज सुंदर बना दिया है।
| 0.5 | 494.813602 |
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दृष्टकूट
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साहित्येतिहास ग्रंथों में इसे चित्रालंकारों का चक्रव्यूह कहा गया है जो वास्तव में शब्दार्थगोपन का चक्रव्यह है।
| 0.5 | 494.813602 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
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योगशास्त्र
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विशद् टीका सहित प्रथम चार परिच्छेदों में जैन दर्शन का विस्तृत और स्पष्ट वर्णन दिया ग्या है। योगशास्त्र नीति विषयक उपदेशात्मक काव्य की कोटि में आता है। योगशास्त्र जैन संप्रदाय का धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रंथ है। वह अध्यात्मोपनिषद् है।
| 0.5 | 489.222008 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
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योगशास्त्र
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आचार प्रधान है तथा धर्म और दर्शन दोनो से प्रभावित है। योग शाश्त्र ने नीतिकाव्यों या उपदेश काव्यों की प्ररम्परा को समृद्व एवं समुन्नत किया है। योगशास्त्र विशुद्व धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रंथ है। इसमें १२ प्रकाश तथा १०१८ श्लोक है।
| 0.5 | 489.222008 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
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योगशास्त्र
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इसके अंतर्गत मदिरा दोष, मांस दोष, नवनीत भक्षण दोष, मधु दोष, उदुम्बर दोष, रात्रि भोजन दोष का वर्णन है।
| 0.5 | 489.222008 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
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योगशास्त्र
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अंतिम १२ वें प्रकाश के प्रारम्भ में श्रुत समुद्र और गुरु के मुखसे जो कुछ मैं ने जाना है उसका वर्णन कर चुका हुं, अब निर्मल अनुभव सिद्व तत्वको प्रकाशित करता हुं ऐसा निदेश कर के विक्षिप्त, यातायात, इन चित-भेंदो के स्वरुपका कथन करते बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा का स्वरुप कहा गया है।
| 0.5 | 489.222008 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
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योगशास्त्र
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संवेदन के लिये पातच्जल योगसूत्र तथा हेमचंद्र योगशास्त्र में पर्याप्त साम्य है। योग से शरीर और मन शुद्व होता है। योग का अर्थ चित्रवृतिका निरोध। मन को सबल बनाने के लिये शरीर सबल बनाना अत्यावश्यक है।
| 1 | 489.222008 |
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योगशास्त्र
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योगसूत्र और योगशास्त्र में अत्यंत सात्विक आहार की उपादेयता बतलाकर अभक्ष्य भक्षणका निषेध किया गया है।
| 0.5 | 489.222008 |
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योगशास्त्र
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आचार्य हेमचंद्र सब से प्रथम 'नमो अरि हन्ताणं' से राग -द्वेषादि आन्तरिक शत्रुओं का नाश करने वाले को नमस्कार कहा है।
| 0.5 | 489.222008 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
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योगशास्त्र
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संसार के सभी वाद, संप्रदाय, मत, द्दष्टिराग के परिणाम है। द्दष्टिराग के कारण अशांति और दु:ख है। अतः विश्वशांति के लिये, द्दष्टिराग उच्छेदन के लिये हेमचंद्रका योगशास्त्र आज भी अत्यंत उपादेय ग्रंथ है।
| 0.5 | 489.222008 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
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योगशास्त्र
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योगशास्त्र में कुल 12 प्रकाश हैं। सब श्लोक 1012 हैं और उन पर श्रीहेमचन्द्राचार्य की ही 12750 श्लोक-परिमित स्वरचित व्याख्या है। पहले के तीनों प्रकाशों में योगविद्यामान्य यम-नियम, इन दोनों अंगों के रूप में पूर्वोक्त तीनों योगों का जैनदृष्टि से स्फुट वर्णन है। चौथे प्रकाश में आत्मा के परमात्मा से योग के लिए आत्मस्वरूप-रमण, कषायों और विषयों पर विजय, चित्तशुद्धि, इन्द्रिय-निग्रह, मनोविजय, समत्व, ध्यान, बारह अनुप्रेक्षाओं, मैत्री आदि चार भावनाओं एवं आसनों का विशद विवेचन है। पांचवें प्रकाश में प्राणायाम, मनःशुद्धि, पञ्चप्राणों का स्वरूप, प्राणविजय, धारणाओं, उनसे सम्बन्धित 4 मंडलों तथा प्राणवायु द्वारा ईष्ट-अनिष्ट, जीवन-मृत्यु आदि के ज्ञान एवं यंत्र, मंत्र, विद्या, लग्न, छाया, उपश्रुति आदि द्वारा कालज्ञान, नाडीशुद्धि एवं परकायप्रवेश आदि का वर्णन है। छठे प्रकाश में प्रत्याहार एवं धारणा का, सातवें प्रकाश में ध्यान के पिण्डस्थ आदि चार ध्येयों और पाथिवी आदि 5 धारणाओं का दिग्दर्शन कराया गया है। आठवें प्रकाश में पदस्थ-ध्येयानुरूप ध्यान का स्वरूप एवं विधि का संक्षिप्त वर्णन है। तदनन्तर नौवें में रूपस्थध्यान का और दशवें में रूपातीत का दिग्दर्शन है। फिर ग्यारहवें और बारहवें प्रकाश में समस्त चरणों सहित धर्मध्यान और शुक्लध्यान से ले कर निर्विकल्पक समाधि, मोक्ष तथा चित्त के प्रकारों आदि का अनुपम वर्णन है।
| 0.5 | 489.222008 |
20231101.hi_213577_29
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AC%E0%A4%B2
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स्क्रैबल
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प्रीमियम वर्ग प्रत्येक शब्द के अंकों को प्रभावित करते हैं जिन्हें उन वर्गों पर खले गए संघटक टाइलों द्वारा उसी खेल में अर्जित किया गया है। एक बार खेले गए प्रीमियम वर्ग, फिर बाद के खेल में नहीं गिने जाते हैं।
| 0.5 | 487.457 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AC%E0%A4%B2
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स्क्रैबल
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यदि एक खिलाड़ी एक ही खेल में रैक पर रखे सातों टाइलों का उपयोग करता है, तो 50 अंकों का एक बोनस उसके खेल में जोड़ दिया जाता है (इसे कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में "बिंगो" कहते हैं, स्पेन में "स्क्रैबल" कहते हैं और अन्य जगहों पर "बोनस" कहते हैं)। यह बोनस अंक प्रीमियम वर्ग द्वारा प्रभावित नहीं होते हैं।
| 0.5 | 487.457 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AC%E0%A4%B2
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स्क्रैबल
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जब शब्द तैयार करने के लिए अक्षर खत्म हो जाते हैं, तब अंतिम खेल प्रायः विजेता का निर्धारण कर सकता है। यह विशेष रूप से दो से अधिक खिलाड़ियों के बीच कांटे की टक्कर के मामलों में देखा जाता है। जो खिलाड़ी सबसे पहले खेल से बाहर हो जाता है उसके बिना खेले हुए टाइलों के अंकों के योग को बाकी खिलाड़ियों के स्कोर में जोड़ दिया जाता है। जिन खिलाड़ियों के रैक पर टाइलें शेष बच जाती हैं उनके बचे हुए टाइलों का योग उसके स्कोर से घटाया जाता है।
| 0.5 | 487.457 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AC%E0%A4%B2
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स्क्रैबल
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कुछ चुनिंदा शब्दकोशों में प्राथमिक प्रविष्टियों और उनके संयुग्मी रूपों को, स्वीकार्य शब्द माना जाता है। जिन शब्दों में हाइफन, बड़े अक्षर (जैसे व्यक्तिवाचक संज्ञा), या अपोसट्रोफी वाले शब्दों को इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है, जबतक की वे स्वीकार्य प्रविष्टियों के रूप में भी दृष्टिगत नहीं होते: "जैक " एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है, परन्तु जैक शब्द इसलिए भी स्वीकार्य है क्योंकि उसके कई अन्य उपयोग भी हैं (जैसे मोटर वाहन, वेक्सिलोलॉजीकल, आदि से सम्बंधित) जो स्वीकार्य है। लघु रूप या संक्षेपाक्षर, नियमित कर दिए गए शब्दों के आलावा (जैसे AWOL, RADAR और SCUBA), के उपयोग की अनुमति नहीं है। भिन्न वर्तनी, अपशब्द या आक्रामक शब्द, पुराने या अप्रचलित शब्द और विशिष्ट शब्दावली के शब्दों के प्रयोग को तभी अनुमति दी जाती है जब वे स्वीकार्यता के अन्य सभी मानदंडों को पूरा करते हैं।
| 0.5 | 487.457 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AC%E0%A4%B2
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स्क्रैबल
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विश्व भर के विभिन्न भागों में दो लोकप्रिय प्रतियोगिता शब्द सूची का इस्तेमाल किया जाता हैं: TWL और SOWPODS. उत्तरी अमेरिका का 2006 का आधिकारिक टूर्नामेंट और क्लब शब्द सूची, द्वितीय संस्करण (OWL2), 1 मार्च 2006 में, अमेरिका, कनाडा, इज़रायल और थाई क्लबों और टूर्नामेंट खेलों में उपयोग के लिए यह सूचियां आधिकारिक रूप से जारी कर दी गई (या, स्कूली उपयोग के लिए,) खेल पर अधिकारी बने उपयोग के लिए (या, उपयोग के लिए स्कूल, परिशोधित आधिकारिक स्क्रैबल खिलाड़ी शब्दकोश, चौथा संस्करण (OSPD4))। OWL2 और OSPD4 की प्रारंभिक छपाई को राष्ट्रीय स्क्रैबल संस्था के वेब साइट पर पोस्ट corrigenda के अनुसार संशोधित किया जाना था। उत्तर अमेरिकी प्रतियोगिताओं में लंबे शब्दों के लिए Long Words List का उपयोग किया जाता है।
| 1 | 487.457 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AC%E0%A4%B2
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स्क्रैबल
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OWL2 और OSPD4 को चार (मूल पांच) प्रमुख महाविद्यालय स्तर के शब्दकोशों, जिसमें मेरियम-वेबस्टर (क्रमशः 10 वीं और 11 वीं संस्करण) शामिल है का उपयोग करके संकलित किया गया। यदि कोई शब्द कम से कम इनमें से किसी एक शब्दकोश में भी दिख जाता है (या पूर्व में कभी उसमें थी), उसे OWL2 और OSPD4 में शामिल कर लिया जाता है, जब तक कि उस शब्द का कोई आक्रामक अर्थ ना हो, ऐसा होने पर वह शब्द केवल OWL2 में शामिल किया जाता है। OWL2 और OSPD4 के बीच मुख्य अंतर यह है कि OSPD4 का विपणन "घर और स्कूल" में उपयोग के लिए किया जाता है और इसमें से ऐसे कई शब्द हटाए जाते हैं जो स्रोत शब्दकोशों के अनुसार आक्रामक थे और आधिकारिक स्क्रैबल खिलाड़ी शब्दकोश को स्क्रैबल खेलने के लिए कम उपयुक्त होने का प्रतिपादन किया। OSPD4 पुस्तक भंडारों में उपलब्ध है, जबकि OWL2 केवल राष्ट्रीय स्क्रैबल संस्था के खुदरा वेबसाइट wordgear.com से ही उपलब्ध है (जुलाई 2009 के बाद से, OWL को खरीदने के लिए NSA सदस्यता आवश्यक नहीं रही)।
| 0.5 | 487.457 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AC%E0%A4%B2
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स्क्रैबल
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अन्य सभी देशों में प्रतिस्पर्धा के लिए टूर्नामेंट और क्लब शब्द सूची (कोलिन्स) का ही प्रयोग किया जाता है जिसे मई 2007 में प्रकाशित किया गया था (SOWPODS देखें) जो 2 से 15 तक के सभी अक्षरों को सूचीबद्ध करता है और इसलिए इसे एक संपूर्ण सन्दर्भ माना जाता है। इस सूची में OWL2 के सभी उपरोक्त उल्लेखित शब्द और साथ ही चेम्बर्स और कोलिन्स अंग्रेजी शब्दकोशों से लिए हुए शब्द शामिल हैं। इस पुस्तक का उपयोग विश्व स्क्रैबल चैम्पियनशिप और उत्तरी अमेरिका के बाहर अन्य सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के न्याय निर्णय के लिए किया जाता है।
| 0.5 | 487.457 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AC%E0%A4%B2
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स्क्रैबल
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एक सफलतापूर्वक चुनौती वाले खेल के लिए दंड लगभग सार्वभौमिक है: उल्लंघन करने वाला खिलाड़ी खेले गए टाइल को हटाता है और बारी को खो बैठता है। (हालांकि, कुछ ऑनलाइन खेलों में, "वॉयड" नाम के एक विकल्प का उपयोग किया जा सकता है, जिसमें अस्वीकार्य शब्द स्वचालित रूप से इस कार्यक्रम के द्वारा अस्वीकार कर दिए जाते हैं। खिलाड़ी को फिर एक अन्य खेल शुरू करने की आवश्यकता होती है, जहां कोई जुर्माना लागू नहीं होता। )
| 0.5 | 487.457 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AC%E0%A4%B2
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स्क्रैबल
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एक असफल चुनौती (जहां खेल द्वारा बनाए गए सभी शब्दों को वैध माना जाता है) के लिए दंड काफी भिन्न होता है, जिसमें शामिल है:
| 0.5 | 487.457 |
20231101.hi_163112_6
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A5%8B
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टॉरपीडो
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यह तारपीडो का कार्य करनेवाला अंग है। इसमें लगभग आधा टन उच्च विस्फोटक रखा रहता है। तारपीडो में जितने भी पेचीदे उपकरण (fittings) हैं, उनका उद्देश्य शीर्ष भाग को लक्ष्य तक ठीक ठीक पहुँचाना भर है। प्रशिक्षण के लिये अभ्यासशीर्ष (Practice head) का प्रयोग किया जा सकता है।
| 0.5 | 485.461772 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A5%8B
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टॉरपीडो
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इसमें अलग अलग दो उपखंड, वायुपात्र और संतुलन कक्ष होते हैं, जिनकी एक दूसरे से पृथक् नहीं किया जा सकता। वायुपात्र बहुत ही मजबूत बनाया जाता है, जिससे कि वह प्रति वर्ग इंच ३१,००० पाउंड तक दाब सह सके। तारपीडो का यह सबसे दृढ़ भाग होता है। संतुलन कक्ष में गहराई गियर (depth gear), रोक वाल्व (stop valve), प्रभार वाल्व (Charging valve), ईधन और स्नेहक तेल की बोतलें रहती हैं।
| 0.5 | 485.461772 |
20231101.hi_163112_8
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A5%8B
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टॉरपीडो
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इसमें इंजन कमरा और उत्प्लावन कक्ष (buoyancy chamber) नामक दो उपखंड होते हैं। इंजन कमरे में मुख्य इंजन और जनित्र तथा उत्प्लावन कक्ष में जाइरो (gyro) और स्टीयरिंग (steering) के कल पुर्जे होते हैं।
| 0.5 | 485.461772 |
20231101.hi_163112_9
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A5%8B
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टॉरपीडो
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इसमें ऊर्ध्वाधर ओर क्षैतिज रडर (rudders), दृष्टिकोण पंख (fins) और नोदक (propellers) के लिये आवश्यक गियर (gear) कहते हैं।
| 0.5 | 485.461772 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A5%8B
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टॉरपीडो
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(२) वायु के पूर्व तापन से अधिक ऊर्जा प्रदान करने और ऑक्सीजन के साथ जलने के लिये सिलिंडर में अंत:क्षेपित ईधंन,
| 1 | 485.461772 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A5%8B
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टॉरपीडो
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(१) तारपीडो को चलाने और चाल को रोकने के लिये वाल्व और एक न्यूनक (reducer) वाल्व जो इंजन को स्थायी और स्थार दबाववाली वायु प्रदान कर सके ताकि तारपीडो की चाल एक सी बनी रहे,
| 0.5 | 485.461772 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A5%8B
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टॉरपीडो
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(क) जब तारपीडो को फायर करना होता है, तब चालन वाल्व को खोल दिया जाता है। इंजन कमरे में स्थित न्यूतक वाल्व को उच्च दबाववाली वायु प्रदान की जाती है, जिससे वायु का दबाव कम हो जाता है। ऐसी कम दबाववाली वायु का मुख्य अंश सीधे जनित्र में जाता है और शेष अंश ईंधन और तेल बोतल में जाकर उसपर दबाव डालता है।
| 0.5 | 485.461772 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A5%8B
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टॉरपीडो
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(ख) दबावाधीन ईंधन बोतल को छोड़कर दो अलग अलग नालियों से निकलता है। एक नाली को पाइलट ईंधन (pilot fuel) नाली और दूसरी को अंत:क्षेपण ईंधन (injection fuel) नाली कहते है। पाइलट ईंधन जनित्र में जाता है, जहाँ वह वायु से मिश्रित होता है। ऐसा मिश्रित वाष्पीय ईंधन तब जलाया जाता है और जलती गैस प्रेरणा वलय (induction ring) द्वारा ईजंन के सिलिंडर में प्रवेश करती है।
| 0.5 | 485.461772 |
20231101.hi_163112_14
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A5%8B
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टॉरपीडो
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(ग) अंत:क्षेपण ईंधन-'ईंधन समय नियंत्रक' से होकर इंजन के सिलिंडरों में जाता है, जहाँ वह जनित्र की उष्ण गैस के संपर्क से प्रज्वलित होता है और इससे सिलिंडर में दाब बढ़ जाती है। जली हुई गैसें पिस्टन को नीचे ढकेलकर अपना कार्य करती हुई क्रैंक के खोल में आती हैं और वहाँ से नोदक-ईषा-केंद्र से निकल जाती है। यह नोदक ईषा खोखली होती है और चूषण नल का काम करती है।
| 0.5 | 485.461772 |
20231101.hi_165098_0
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE
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संविभ्रम
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संविभ्रम (Paranoia) एक गंभीर भावात्मक विकार है और तर्कसंगत, सुसंबद्ध, जटिल तथा प्राय: उत्पीड़क विभ्रमों या मिथ्या विश्वासों का उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ सिलसिला इसका आंतरिक लक्षण है। संविभ्रमी व्यक्ति को अपनी योग्यता, प्रभुता, पद की वरिष्ठता, या निरंतर यातना का भ्रम होता है। यह उन्माद का ही एक रूप है, परंतु इसमें अन्य सभी मानसिक क्रियाएँ बहुधा स्वाभाविक अवस्था में रहती हैं।
| 0.5 | 484.216437 |
20231101.hi_165098_1
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE
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संविभ्रम
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कमरे में किसी नए व्यक्ति के प्रविष्ट होते ही उपस्थित मित्रमंडली के एकाएक बातचीत बंद कर देने पर, व्यक्ति का यह समझना कि अभी उसकी की चर्चा हो रही थी, एक सामान्य प्रतिक्रिया है। किसी जनसंकुल होटल में घुसने पर सभी अपनी ओर देख रहे हैं यह समझना भी स्वाभविक प्रतिक्रिया है, किंतु संविभ्रमी प्रतिक्रिया में ये भाव स्थायी और व्यापक हो जाते हैं।
| 0.5 | 484.216437 |
20231101.hi_165098_2
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE
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संविभ्रम
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शुद्ध संविभ्रम दुर्लभ है, कुछ तो इसके अस्तित्व में ही संदेह करते हैं। यह मदिरा या कोकेन के चिरकालिक व्यसनियों में नशे की अवस्था में, अंतराबंध (Schizophrenia) जैसे उन्माद से सहचरित स्थिति में, या उत्तेजना संविषाद (mame depressive psychosis) में स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में पाया जाता है।
| 0.5 | 484.216437 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE
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संविभ्रम
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बुढ़ापे के जटिल विषाद रोग में रोगी के मन में हीनता और अपराध के भावों को जन्म देनेवाले, आत्मपरक उत्पीड़क विचार आते हैं। इसमें रोगी अपने पिछले पापों और अपराधों को बहुत विशद रूप से देखता ओर अपने को अपराधी करार देता है। वह अत्यंत सतर्क हो जाता है और सोचता है कि सभी उसे घृणा की दृष्टि से देख रहे हैं। वह दूर के शोर को अपनी उत्पड़ित संतान का, जो उसके कुकृत्यों का फल भोग रहे हैं, क्रंदन समझता है और वह अपने अक्षम्य अपराधों के कारण प्रलय का होना अवश्यभावी समझता है। उन्मत भव्य कल्पना भी करता है; उदाहरणार्थ, वह समझता है कि उसके हितेच्छु अपनी समूची शक्ति से उसे उच्च् पद पर पहुँचाने की चेष्टा कर रहे हैं।
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संविभ्रम
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संविभ्रमी व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, अति संवेदनशीलता और आत्मविश्वास की कमी होती है। बधिरता जैसी असुविधाजनक शारीरिक त्रुटि संविभ्रामी लक्षणों के विकास में उत्तेजक होती है। किसी ऐसी आदत या परिस्थिति से जिसके साथ लज्जा का भाव सहचरित होता है और जिसे रोगी छिपना चाहता है, जैसे हस्तमैथुन, विकृत कामाचरण, प्रेमव्यापार, अवैध जन्म, गुप्त सुरापान, से प्राय: संविभ्रम का सिलसिला प्रारंभ होता है। रहस्य के यथार्थ या कल्पित उद्घाटन से संविभ्रम के लक्षण तेजी से प्रकट होने लगते हैं और रोगी समझता है कि उसका अपराध सबको ज्ञात हो गया है, चारों ओर उससे सम्बन्धित कानाफूसी हो रही है, मित्र और सगे सम्बन्धी उसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं, उससे बचने की कोशिश करते हैं और उसके प्रति षड्यंत्र करते हैं। वह अत्यंत उद्विग्न हो जाता है और दुस्सह ग्लानि, आत्मघाती प्रयत्न, विकृत चेतना या निर्मूल भ्रम की गौण भावात्मक स्थितियाँ उसके मन में उत्पन्न हो जाती हैं। बीमारी, आत्मगौरव पर चोट, पदोन्नति का न होना जबकि औरों की पदोन्नति हो रही हो, मुकदमें में हार, कारावास से एकांतवास जैसी घटनाओ से संविभ्रम के भी लक्षण उत्तेजित हो जाते है। रोगी अपने विचारों का सही मूल्यांकन नहीं कर पाता; उदाहरण के लिये, एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में मामला ले जानेवाले और अपने कानूनी परामर्शदाता तक पर बिगड़ उठनेवाला, संविभ्रमी मुकदमेबाज इस भ्रम में हो सकता है कि वह केवल यथार्थ के लिये नहीं, बल्कि एक बृहत्तर सिद्धांत के लिये संघर्ष कर रहा है।
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संविभ्रम
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संविभ्रम के गंभीर रोगियों को छोड़कर साधारण रोगियों में सुसंगत विचार और तर्कशक्ति बनी रहती है, यहाँ तक कि चिकित्सक के लिये भी यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि व्यक्ति वास्तव में संविभ्रमी है या नहीं।
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संविभ्रम
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समाज में कुछ चिरकालिक मंद संविभ्रमी व्यक्ति सामान्य जीवनयापन करते है और अनावश्यक रूप से सतर्क होने के कारण अपने परिवार और घनिष्ट मित्रों को ही खटकते हैं। इसका उपचार कठिन और श्रमसाध्य है और गंभीर संविभ्रम के उपचार में मस्तिष्क की शल्यचिकित्सा करनी पड़ती है, जिसका परिणाम बहुत ही अनिश्चित सा होता है।
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संविभ्रम
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Freeman, D. & Garety, P.A. (2004) Paranoia: The Psychology of Persecutory Delusions. Hove: Psychology Press. ISBN 1-84169-522-X
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संविभ्रम
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Igmade (Stephan Trüby et al., eds.), 5 Codes: Architecture, Paranoia and Risk in Times of Terror", Birkhäuser 2006. ISBN 3-7643-7598-1
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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सामगान
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इसकी विषयवस्तु एवं मंत्रों का क्रम कौथुमीय संहिता के समान ही है। मात्र गाना पद्धति में अंतर है। इसमें विषयवस्तु का विभाजन प्रपाठक, अर्द्धप्रपाठक एवं दशति के रूप में है। कौथुम शाखा से इस संहिता का उच्चारणगत भेद भी प्राप्त होता है।
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सामगान
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जैमिनीय संहिता एवं कौथुम संहिता में सामगानों की संख्या का भेद है। जैमिनीय संहिता में कौथुम शाखा की अपेक्ष 1000 अधिक सामगान हैं। तलवकार (तवलकार) इसकी अवान्तर शाखा है जिससे सम्बद्ध उपनिषद् केनोपनिषद् के नाम से प्रसिद्ध है।
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सामगान
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सामवेद के मंत्रों के गान पर पर्याप्त साहित्य रचना हुई है। इन ग्रथों का आधार पूर्वार्चिक मंत्र हैं। ये सामगान 4 प्रकार के हैं-
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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सामगान
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वैदिक संहिताओं में सामवेद संहिता का अत्यन्त महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं को सामवेद कहते हैं - ' वेदानां सामवेदोऽस्मि।' बृहद्देवता में सामवेद के दार्शनिक एवं तात्त्विक महत्त्व को स्पष्ट करते हुये कहा गया है कि - 'यो वेत्ति सामानि स वेत्ति तत्त्वम्।'
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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सामगान
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सामगान की अपनी विशिष्ट स्वरलिपि (नोटेशन) है। लोगों में एक भ्रांत धारणा है कि भारतीय संगीत में स्वरलिपि नहीं थी और यह यूरोपीय संगीत का परिदान है। सभी वेदों के सस्वर पाठ के लिए उदात्त, अनुदात्त और स्वरित के विशिष्ट चिह्र हैं किंतु सामवेद के गान के लिए ऋषियों ने एक पूरी स्वरलिपि तैयार कर ली थी। संसार भर में यह सबसे पुरानी स्वरलिपि तैयार कर ली थी। संसार भर में यह सबमें पुरानी स्वरलिपि है। सुमेर के गान की भी कुछ स्वरलिपि यत्रतत्र खुदी हुई मिलती है। किंतु उसका कोई साहित्य नहीं मिलता। अत: उसके विषय में विशिष्ट रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। किन्तु साम के सारे मंत्र स्वरलिपि में लिखे मिलते हैं, इसलिए वे आज भी उसी रूप में गाए जा सकते हैं।
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सामगान
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आजकल जितने भी सामगान के प्रकाशित ग्रंथ मिलते हैं उनकी स्वरलिपि संख्यात्मक है। किसी साम के पहले अक्षर पर लिखी हुई 1 से 5 के भीतर की जो पहली संख्या होती है वह उस साम के आरंभक स्वर की सूचक होती है। 6 और 7 की संख्या आरंभ में कभी नहीं दी होती। इसलिए इनके स्वर आरंभक स्वर नहीं होते। हम यह देख चुके हैं कि सामग्राम अवरोही क्रम का था। अत: उसके स्वरों की सूचक संख्याएँ अवरोही क्रम में ही लेनी चाहिए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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सामगान
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प्राय: 1 से 5 के अर्थात् मध्यम से निषाद के भीतर का कोई न कोई आरंभक स्वर अर्थात् षड्ज स्वर होता है। संख्या के पास का "र" अक्षर दीर्घत्व का द्योतक है। उदाहरणार्थ निम्नलिखित "आज्यदोहम्" साम के स्वर इस प्रकार होंगे :
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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सामगान
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इस साम में रे, स, नि, ध, प - ये पाँच स्वर लगे हैं। संख्या के अनुसार भिन्न भिन्न सामों के आरंभक स्वर बदल जाते हैं। आरंभक स्वरों के बदल जाने से भिन्न भिन्न मूर्छनाएँ बनती हैं जो जाति और राग की जननी हैं। सामवेद के काव्य में स्वर, ग्राम और मूर्छना का विकास हो चुका था। सामवेद में ताल तो नहीं था, किंतु लय थी। स्वर, ग्राम, लय और मूर्छना सारे संगीत के आधार हैं। इसलिए सामवेद को संगीत का आधार मानते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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सामगान
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प्रातिशाख्य और शिखा काल में स्वरों के नाम षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद हो गए। ग्राम का क्रम आराही हो गया : स्वर के तीनों स्थान मंद्र, मध्य और उत्तम (जिनका पीछे नाम पड़ा मंद्र, मध्य और तार) निर्धारित हो गए। ऋक्प्रातिशाख्य में उपर्युक्त तीनों स्थानों और सातों स्वरों के नाम मिलते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
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आस्तिकता
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(4) ब्रह्म जगत् से परे भी है। इस मतवाले, जिनको पाश्चात्य देशों में "पैन ऐनथीस्ट" कहते हैं, यह मानते हैं कि जगत् में भगवान की परिसमाप्ति नहीं होती। जगत् तो उसके एक अंश मात्र में है। जगत् शांत है, सीमित है और इसमें भगवान के सभी गुणों का प्रकाश नहीं है। भगवान अनादि, अनंत और अचित्य हैं। जगत् में उनकी सत्ता और स्वरूप का बहुत थोड़े अंश में प्राकट्य है। इस मत के अनुसार समस्त जगत् ब्रह्म है, पर समस्त ब्रह्म जगत् नहीं है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
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आस्तिकता
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(5) अजातवाद, अजातिवाद अथवा जगद्रहित शुद्ध ब्रह्मवाद-(अकास्मिज्म) इस मत के अनुसर ईश्वर के अतिरिक्त और कोई सत्ता ही नहीं है। सर्वत्र ब्रहा ही ब्रह्म है। जगत् नाम की वस्तु न कभी उत्पन्न हुई, न है और न होगी। जिसको हम जगत् के रूप में देखते हैं वह कल्पना मात्र, मिथ्या भ्रम मात्र है जिसका ज्ञान द्वारा लोप हो जाता है। वास्तविक सत्ता केवल विकाररहित शुद्ध सच्चिदानंद ब्रह्म की ही है जिसमें सृष्टि न कभी हुई, न होगी।
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आस्तिकता
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आस्तिकता के अंतर्गत एक यह प्रश्न भी उठता है कि ईश्वर एक है अथवा अनेक। कुछ लोग अनेक देवी देवताओं को मानते हैं। उनको बहुदेववादी (पोलीथीस्ट) कहते हैं। वे एक देव को नहीं जानते। कुछ लोग जगत् के नियामक दो देवों को मानते हैं - एक भगवान और दूसरा शैतान। एक अच्छाइयों का स्रष्टा और दूसरा बुराइयों का। कुछ लोग यह मानते हैं कि बुराई भले भगवान की छाया मात्र है। भगवान एक ही है, शैतान उसकी मायाशक्ति का नाम है जिसके द्वारा संसार में सब दोषों का प्रसारहै, पर जो स्वयं भगवान के नियंत्रण में रहती है। कुछ लोग मायारहित शुद्ध ब्रह्म की सत्ता में विश्वास करते हैं। उनके अनुसार संसार शुद्ध ब्रह्म का प्रकाश है, उसमें स्वयं कोई दोष नहीं है। हमारे अज्ञान के कारण ही हमको दोष दिखाई पड़ते हैं। पूर्ण ज्ञान हो जाने पर सबको मंगलमय ही दिखाई पड़ेगा। इस मत को शुद्ध ब्रह्मवाद कहते हैं। इसी को अद्वैतवाद अथवा ऐक्यवाद (मोनिज्म) कहते हैं।
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आस्तिकता
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पाश्चात्य और भारतीय दर्शन में आस्तिकता को सिद्ध करने में जो अनेक युक्तियां दी जाती हैं उनमें से कुछ ये हैं :
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आस्तिकता
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(1) मनुष्यमात्र के मन में ईश्वर का विचार और उसमें विश्वास जन्मजात है। उसका निराकरण कठिन है, अतएव ईश्वर वास्तव में होना चाहिए। इसको आंटोलॉजिकल, अर्थात् प्रत्यय से सत्ता की सिद्धि करनेवाली युक्ति कहते हैं।
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आस्तिकता
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(2) संसारगत कार्य-कारण-नियम को जगत् पर लागू करके यह कहा जाता है कि जैसे यहां प्रत्येक कार्य के उपादान और निमित्त कारण होते हैं, उसी प्रकार समस्त जगत् का उपादान और निमित्त कारण भी होना चाहिए और वह ईश्वर है (कास्मोलॉजिकल, अर्थात् सृष्टिकारण युक्ति)।
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आस्तिकता
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(3) संसार की सभी क्रियाओं का कोई न कोई प्रयोजन या उद्देश्य होता है और इसकी सब क्रियाएं नियमपूर्वक और संगठित रीति से चल रही हैं। अतएव इसका नियामक, योजक और प्रबंधक कोई मंगलकारी भगवान होगा (टिलियोलोजिकल, अर्थात् उद्देश्यात्मक युक्ति)।
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आस्तिकता
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(4) जिस प्रकार मानव समाज में सब लोगों को नियंत्रण में रखने के लिए और अपराधों का दंड एवं उपकारों और सेवाओं का पुरस्कार देने के लिए राजा अथवा राजव्यवस्था होती है उसी प्रकार समस्त सृष्टि को नियम पर चलाने और पाप पुण्य का फल देनेवाला कोई सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और न्यायकारी परमात्मा अवश्य है। इसको मॉरल या नैतिक युक्ति कहते हैं।
| 0.5 | 483.559886 |
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आस्तिकता
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(5) योगी और भक्त लोग अपने ध्यान और भजन में निमग्न होकर भगवान का किसी न किसी रूप में दर्शन करके कृतार्थ और तृप्त होते दिखाई पड़ते है (यह युक्ति रहस्यवादी, अर्थात् मिस्टिक युक्ति कहलाती है)।
| 0.5 | 483.559886 |
20231101.hi_432056_18
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95
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लेसिक
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बाद लेजर stromal परत reshaped है, LASIK प्रालंब ध्यान सर्जन द्वारा उपचार के क्षेत्र पर repositioned और हवाई बुलबुले, मलबे और आंखों पर उचित फिट की उपस्थिति के लिए जाँच. प्रालंब प्राकृतिक आसंजन द्वारा स्थिति में रहता है जब तक चिकित्सा पूरा हो गया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95
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लेसिक
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मरीजों को आमतौर पर एंटीबायोटिक और विरोधी भड़काऊ आई ड्रॉप का एक कोर्स दिया जाता है। इन सर्जरी के बाद के हफ्तों में जारी कर रहे हैं। मरीजों को आमतौर पर बहुत अधिक नींद बताया जाता है और भी ढाल के एक अंधेरे जोड़ी दी चमकदार रोशनी और सुरक्षात्मक चश्मे आँखों के जब सो मलाई को रोकने के लिए और सूखी आंखों को कम करने से उनकी आंखों की रक्षा. उन्होंने यह भी परिरक्षक मुक्त आँसू के साथ आँखों moisturize और डॉक्टर के पर्चे की बूंदों के लिए निर्देशों का पालन करने के लिए आवश्यक हैं। मरीजों को पर्याप्त रूप से पोस्ट ऑपरेटिव उचित देखभाल के महत्व के अपने सर्जन द्वारा सूचित किया जाना चाहिए जटिलताओं के जोखिम को कम करने के लिए [प्रशस्ति पत्र की जरूरत]
| 0.5 | 481.284343 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95
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लेसिक
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उच्च आदेश aberrations के दृश्य समस्याओं है कि एक पारंपरिक आँख परीक्षा है, जो दृष्टि की तीक्ष्णता के लिए केवल परीक्षण का उपयोग नहीं किया जा निदान कर सकते हैं कर रहे हैं। गंभीर aberrations महत्वपूर्ण दृष्टि हानि का कारण बन सकती है। इन aberrations starbursts, ghosting, halos, डबल दृष्टि और अन्य पोस्ट ऑपरेटिव जटिलताओं के एक नंबर शामिल हैं।
| 0.5 | 481.284343 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95
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लेसिक
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वहाँ हमेशा अपने उच्च आदेश aberrations प्रेरित करने की प्रवृत्ति की वजह से LASIK के बारे में चिंताओं. LASIK प्रौद्योगिकी की उन्नति में सर्जरी के बाद चिकित्सकीय महत्वपूर्ण दृश्य हानि के जोखिम को कम करने में मदद मिली है। पुतली के आकार और aberrations के बीच एक संबंध है। [15 ] प्रभावी ढंग से, पुतली का आकार बड़ा है, aberrations के जोखिम को अधिक से अधिक है। इस संबंध कॉर्निया के अछूता भाग और reshaped भाग के बीच अनियमितता का परिणाम है। दिन के समय के बाद lasik दृष्टि इष्टतम है, क्योंकि छात्र LASIK प्रालंब की तुलना में छोटी है। लेकिन रात में, शिष्य शिष्य है जो प्रकाश के सूत्रों के आसपास halos की उपस्थिति सहित कई aberrations, को जन्म देता है में LASIK प्रालंब के किनारे के माध्यम से ऐसी है कि प्रकाश गुजरता विस्तार कर सकते हैं। शिष्य आकार के अलावा अन्य कारकों वर्तमान में अज्ञात भी है कि उच्च आदेश aberrations के लिए नेतृत्व कर सकते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95
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लेसिक
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चरम मामलों में, जो आदर्श प्रक्रियाओं नेत्र रोग विज्ञानियों द्वारा पालन नहीं थे और कुंजी अग्रिम पहले, कुछ लोगों को गरीब प्रकाश स्थितियों में इसके विपरीत संवेदनशीलता का गंभीर नुकसान जैसे दुर्बल लक्षणों पीड़ित सकता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95
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लेसिक
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समय के साथ, सबसे अधिक ध्यान अन्य aberrations से स्थानांतरित कर दिया गया है और पर केंद्रित गोलाकार विपथन . LASIK और PRK लेजर की प्रवृत्ति के रूप में इसे उपचार क्षेत्र के केंद्र से जावक चाल undercorrect की वजह से, गोलाकार विपथन प्रेरित करते हैं। यह मुख्य रूप से प्रमुख सुधार के लिए एक मुद्दा है। सिद्धांतों कि मंज़ूर है कि अगर लेज़रों बस इस प्रवृत्ति के लिए समायोजित करने के लिए क्रमादेशित रहे थे, कोई महत्वपूर्ण गोलाकार विपथन घटित होता हैं। अच्छी तरह से कुछ उच्च आदेश aberrations wavefront अनुकूलित LASIK (बजाय wavefront निर्देशित LASIK की तुलना में) के साथ आंखों में भविष्य हो सकता है [प्रशस्ति पत्र की जरूरत]
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95
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लेसिक
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उच्च आदेश aberrations पूर्व सेशन परीक्षा के दौरान लिया WaveScan पर micrometers (सुक्ष्ममापी) में मापा जाता है, जबकि छोटी द्वारा अनुमोदित लेज़रों के बीम आकार अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन के बारे में 1000 गुना बड़ा 0.65 मिमी. इस प्रकार खामियों प्रक्रिया में निहित हैं और मंद प्रकाश में छोटे स्वाभाविक रूप से फैली हुई विद्यार्थियों के साथ भी क्यों रोगियों प्रभामंडल, चमक और starburst अनुभव कारण,.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95
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लेसिक
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Wavefront निर्देशित LASIK [16] LASIK सर्जरी के एक भिन्नता है, जो में कॉर्निया (पारंपरिक LASIK के रूप) करने के लिए शक्ति ध्यान केंद्रित करने का एक सरल सुधार लागू करने के बजाय, एक नेत्र रोग विशेषज्ञ एक spatially अलग सुधार लागू होता है, कंप्यूटर नियंत्रित excimer लेजर मार्गदर्शन एक wavefront सेंसर से माप के साथ. लक्ष्य और ऑप्टिकली सही आँख को प्राप्त करने के लिए, हालांकि अंतिम परिणाम अभी भी भविष्यवाणी परिवर्तन है कि भरने के दौरान होने पर चिकित्सक की सफलता पर निर्भर करता है। पुराने रोगियों में हालांकि, सूक्ष्म कणों से बिखरने के एक प्रमुख भूमिका निभाता है और wavefront सुधार से कोई लाभ पल्ला झुकना सकता है। इसलिए, तथाकथित "सुपर दृष्टि" ऐसी प्रक्रियाओं से उम्मीद रोगियों को निराश हो सकता है। फिर भी, सर्जन का दावा है कि रोगियों को आम तौर पर पिछले तरीकों के साथ तुलना में इस तकनीक के साथ संतुष्ट हैं, विशेष रूप से halos "," दृश्य artifact के द्वारा कारण के कम घटना के बारे में पहले विधियों द्वारा आंख में प्रेरित गोलाकार विपथन. अपने अनुभव के आधार पर, संयुक्त राज्य वायु सेना WFG-Lasik दे "बेहतर दृष्टि के परिणाम" के रूप में वर्णित है। [17]
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लेसिक
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LASIK के साथ रोगी संतोष का निर्धारण सर्वेक्षण में पाया गया है सबसे अधिक रोगियों संतुष्टि सीमा 92-98 प्रतिशत के साथ जा रहा संतुष्ट है। [ 18] [ 19] [ 20] [ 21] मार्च 2008 को एक meta-विश्लेषण के अमेरिकन सोसायटी द्वारा प्रदर्शन मोतियाबिंद और अपवर्तक 3,000 से अधिक सर्जरी की समीक्षा की सहकर्मी दुनिया भर से 19 कि संतोष पर सीधे देखा बाईस सौ रोगियों को शामिल अध्ययन सहित नैदानिक पत्रिकाओं में पिछले 10 वर्षों में प्रकाशित लेख, LASIK के दुनिया भर में रोगियों के बीच 95.4 प्रतिशत रोगी संतोष दर से पता चला है। [22]
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नरवाना
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सड़क नेटवर्क पर यह राष्ट्रीय राजमार्ग द्वारा राज्य की राजधानी चंडीगढ़ तथा प्रमुख नगरों हिसार, सिरसा, कैथल आदि से जुड़ा है। राष्ट्रीय राजमार्ग ५२ द्वारा यह देश की राजधानी दिल्ली, हरियाणा के प्रमुख नगरों रोहतक, जींद व पंजाब के प्रमुख नगरों लुधियाना, संगरुर आदि से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग १५२ यह कैथल और अम्बाला से जुड़ा है।
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नरवाना
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रेल मार्ग पर यह सीधा दिल्ली से जुड़ा है तथा दिल्ली जाखल मार्ग पर स्थित है। दिल्ली, लुधियाना, बठिण्डा (भटिण्डा) के लिये यहां से ट्रेन मिलती हैं। कुरुक्षेत्र के लिये एक अलग रूट है जो कैथल आदि से होकर निकलता है।
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नरवाना
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बाबा गबी साहब इस क्षेत्र में एक बहुत पुराना और धार्मिक मंदिर है। आसपास के गांवों के लोग रविवार को यहां पूजा करने आते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य प्रसिद्ध मंदिर हैं जैसे हनुमान मंदिर, बक्शी सिनेमा के पास नवरगह मंदिर, विश्वकर्मा मंदिर, ढोला कुआँ के पास पुराना शिव मंदिर आदि। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान मंदिर की मुख्य मूर्ति पाँच पांडवों द्वारा बनाई गई है।
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नरवाना
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नरवाना में फुटबॉल, कबड्डी, हैंडबॉल, बैडमिंटन और क्रिकेट सबसे लोकप्रिय खेल हैं। नरवाना के नवदीप स्टेडियम का नाम खिलाड़ियों और दीपक के सम्मान में रखा गया था, जिनकी एक स्पोर्ट मीट से लौटते समय ट्रेन दुर्घटना में मौत हो गई थी। इसमें एक फुटबॉल खेल का मैदान, हॉकी खेल का मैदान, कुश्ती कोर्ट, टेनिस कोर्ट और बैडमिंटन हॉल, जिमनास्टिक, रोपिंग और बहुत कुछ है और लगभग 15,000 लोगों की क्षमता है। नरवाना में खेल की दुकान समय-समय पर खेल उत्पाद खिलाड़ियों के लिए उपलब्ध है
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नरवाना
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नरवाना में घूमने के लिए कुछ बहुत अच्छी जगहें हैं। नेहरू पार्क उनमें से एक है। कई लोग सुबह और शाम इस जगह पर आते हैं। स्टेडियम फॉर गेम्स, (नवदीप स्टेडियम में भारत का पहला इनडोर हैंडबॉल कोर्ट है, जो केवल नरवाना में है)। छोटू राम पार्क। सिनेमा जिसे हाल ही में बख्शी सिनेमा कहा जाता है, अब 2 स्क्रीन के साथ-साथ चल रहा है।
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नरवाना
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नरवाना शहर में डेटा कनेक्टिविटी के लिए बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं। 3 जी और 4 जी सेवाओं के अलावा बीएसएनएल, डिजिटल वर्ल्ड ब्रॉडबैंड आदि द्वारा काफी अच्छी ब्रॉडबैंड सेवाएं दी जाती हैं।
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नरवाना
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कस्बे में 100 बिस्तरों वाला नागरिक अस्पताल और कई अन्य निजी अस्पताल हैं जो कस्बे के निवासियों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करते हैं।
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नरवाना
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पूर्वजों के अनुसार नरवाना शहर के नाम के अस्तित्व से संबंधित कई मिथक हैं। उनमें से एक यह है कि इसका नाम बाबा गबी साहिब मंदिर के पास एक झील, निर्वाण के नाम पर रखा गया था।
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नरवाना
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नरवाना के निकटतम हवाई अड्डे हिसार , चंडीगढ़ , पटियाला और दिल्ली के हैं। दिल्ली का हवाई अड्डा नरवाना से और भारतीय राज्यों और क्षेत्रों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। कुछ निजी कंपनियां सिरसा से चार्टेड उड़ानें भी प्रदान करती हैं, जो सड़क मार्ग से 2 घंटे की दूरी पर है।
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नंदीग्राम
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सुश्री फिरोज़ा बीबी ने, जिन्होंने अपने निकटतम प्रतिस्पर्धी भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीआई (CPI)) के उम्मीदवार से 39,500 से भी अधिक वोटों से जीत हासिल की, अपनी जीत को उन लोगों के नाम समर्पित किया जो भूमि के मुद्दे को लेकर भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के कार्यकर्ताओं के साथ हुई लगभग एक साल तक की लम्बी लड़ाई में मारे गए थे। सुश्री फिरोज़ा बीबी तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली 'भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी' की सक्रिय कार्यकर्ता है और इसी कमिटी ने 2008 में राज्य सरकार को औद्योगिक विकास के लिए कृषिभूमि को अधिग्रहण करने की अपनी योजना को रद्द करने पर मजबूर किया था।
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नंदीग्राम
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उप-चुनाव करवाना ज़रूरी हो गया था चूंकि एक 'स्टिंग ऑपरेशन' के दौरान, पदस्थ विधान सभा सदस्य- सीपीआई (CPI) के श्री इलियास महम्मद शेख के भ्रष्ट कारनामों का भाण्डा फूट चुका था और उन्हें पद से त्याग देना पड़ा। इससे पहले वे 2006 और 2001, दोनों वर्षों के राज्य चुनाव जीत चुके थे।
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नंदीग्राम
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1991 और 1987 में, सीपीआई (CPI) के शक्तिप्रसाद पाल ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। 1982 में सीपीआई (CPI) के उम्मीदवार भूपाल पाण्डा इस निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। जनता पार्टी के प्रबीर जाना ने 1977 में यह सीट जीती थी। नन्दीग्राम विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, "तामलुक" (जो लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है) का ही हिस्सा है।
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नंदीग्राम
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नन्दीग्राम में रसायन केन्द्र (केमिकल हब) बनाने की राज्य सरकार की योजना को लेकर उठे विवाद के कारण विपक्ष की पार्टियों ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई। तृणमूल कांग्रेस, सोश्यलिस्ट यूनिटी सेन्टर ऑफ़ इंडिया ((एसयूसीआई)(SUCI)), जमात उलेमा-ए-हिंद और इंडियन नैशनल कांग्रेस के सहयोग से भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी (बीयूपीसी (BUPC) - भूमि-निष्काशन के ख़िलाफ़ लड़ने वाली समिति) की स्थापना की गई। सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) (CPI(M)) पार्टी के अनेक समर्थक भी इसमें जुड़ गए। कारखानों को स्थापित करने के लिए भूमि अधिग्रहण को रोकना बीयूपीसी (BUPC) का लक्ष्य था। सत्तारूढ़ पार्टी के वरिष्ट नेताओं ने इस आन्दोलन को 'औद्योगीकरण के विरुद्ध' घोषित किया। सरकार-समर्थक माध्यमों ने पश्चिम बंगाल के बेरोजगार युवाओं के लिए बहुत बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने की बात कही और इस क्षेत्र के विकास में तेजी लाने का दावा किया। इस विचार के अनुसार, इस तरह यह क्षेत्र एक औद्योगिक क्षेत्र बन जाता जिससे राज्य में और अधिक निवेश तथा नौकरियों के द्वार खुल जाते. हालाँकि प्रमुख विपक्षी पार्टी - तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी (TMC)) का कहना था कि असल में वह औद्योगीकरण के विरुद्ध नहीं है, बल्कि वह अमानवीय तरीकों से जारी किये जा रहे थे।
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नंदीग्राम
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हालात तब बिगड़े जब समीप के हल्दिया के सांसद ने योजना में सक्रिय भूमिका निभाने की कोशिश की। इस सांसद के अधिकार के तहत आने वाले 'हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी' (हल्दिया विकास प्राधिकरण) ने भूमि अधिग्रहण के लिए नोटिस जारी किये। यह आरोप लगा कि विरोधियों ने सीपीआई (एम) और बीयूपीसी के समर्थकों और उनके घरों पर हमले किये। दोनों पक्षों ने हथियार जमा किये और कई संघर्ष हुए जिसके परिणामस्वरूप कई घर जल गए और साथ ही हत्या व बलात्कार की घटनाएँ घटीं। आखिरकार, माओवादियों के समर्थन के कारण बीयूपीसी (BUPC) का पलड़ा भारी रहा और उसने सीपीआई (एम) (CPI(M)) के कार्यकर्ताओं और पुलिस को 3 महीनों से अधिक समय तक के लिए सड़कों की खुदाई करके इस क्षेत्र में प्रवेश करने से रोका। फिर सरकार ने नाकेबन्दी को हटाने और परिस्थिति को सामान्य बनाने के बहाने का प्रयास किया। 14 मार्च 2007 की रात को राज्य पुलिस ने 'जॉइण्ट ऑपरेशन' किया, जिसमें अन्य लोगों के सम्मिलित होने का भी आरोप लगाया गया। इस कार्यवाई में 14 लोगों की हत्या हुई।
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नंदीग्राम
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बंगाल के बुद्धिजीवियों में इस मसले को लेकर कुछ मतभेद रहा है। एक तरफ महाश्वेता देवी, अपर्णा सेन, सांवली मित्रा, सुवप्रसन्ना, जॉय गोस्वामी, कबीर सुमन, ब्रत्या बासु और मेधा पाटकर ने सरकार की आलोचना की, और दूसरी तरफ सौमित्र चटर्जी, नीरेन्द्रनाथ चक्रबर्ती और तरुण मजुमदार ने विकास के मुद्दे को लेकर मुख्य मन्त्री का समर्थन किया। 14 मार्च को सरकार=समर्थी बुद्धिजीवियों ने मुख्य मंत्री का पक्ष लिया, जिनमें उपन्यासकार बुद्धदेब गुहा व देबेश रॉय, साहित्यकार अमितावा चौधरी, कवियित्री मल्लिका सेनगुप्ता, अभिनेता दिलीप रॉय व सब्यसाची चक्रबर्ती, व अभिनेत्री उषा गांगुली, गायक अमर पाल, शुवेन्दु माइती, उत्पलेंदु चौधरी, व इन्द्राणी सेन, सरोद वादक बुद्धदेव दासगुप्ता, इतिहासकार अनिरुद्ध रॉय, फुटबॉल-विद्वान पी के बैनर्जी, प्रसिद्ध आर्किटेक्ट सैलापति गुहा, वैज्ञानिक सरोज घोष और कोलकाता के सायंस सिटी ऑडिटोरियम में आयोजित एक सभा की अध्यक्षता करने वाले नीरेन्द्रनाथ चक्रबर्ती शामिल थे। लेकिन वामपन्थी सुमित व तनिका सरकार, प्रफुल्ल बिदवाई व संखा घोष ने सरकार सरकार की आलोचना की। पश्चिम बंगाल सरकार की 'स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन' नीति का सीधा असर पड़ा मई 2008 में हुए पंचायत चुनावों पर. तृणमूल कांग्रेस-एसयूसीआई (SUCI) गठबन्धन ने नन्दीग्राम और आस-पास के क्षेत्रों में सीपीआई (एम) (CPI(M)) और उसके वामपन्थी सहयोगियों को हराया। तृणमूल कांग्रेस-एसयूसीआई (SUCI) गठबन्धन और कांग्रेस ने, लगभग 30 वर्षों बाद, पश्चिम बंगाल के 16 जनपदों में से 3 जनपदों के जनपद परिषदों को सीपीआई (एम) (CPI(M)) से छीन लिया।
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