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कॉफ़ी
कोल्ड कॉफी भी लोगों के बीच लोकप्रिय है और इसे बनाना भी आसान है। बस इतना करना है कि पानी में कॉफी, शक्कर और आइस क्यूब को डालें और इन्हें मिक्सर में डालकर अच्छी तरह से मिला लें, लीजिए कोल्ड कॉफी तैयार है।
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कॉफ़ी
यह माना जाता है कि कॉफ़ी का पौधा सबसे पहले ६०० ईस्वी में इथियोपिया के कफ़ा प्रांत में खोजा गया था। एक दंतकथा के अनुसार एक आलसभरी दोपहर को यह निराला पौधा कलड़ी नामक इथियोपियाई गड़रिये की नज़र में तब आया, जब उसने अपने पशुओं के व्यवहार में अचानक चुस्ती और फुर्ती देखी। सारी भेड़ें एक पौधे के गहरे लाल रंग के बीजों को चर रही थीं, जिसके बाद वे पहले से ज़्यादा ऊर्जावान और आनंदित लग रहीं थीं। कलड़ी ने स्वयं भी कुछ बीज खाकर देखे और जल्द ही उसे भी अपनी भेड़ों की तरह अपने भीतर एक ऊर्जा और शक्ति का अनुभव हुआ।
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कॉफ़ी
कॉफी कई प्रकार की होती है। एस्प्रेसो- जिसे इसे बनाने के लिये, कड़क ब्लैक कॉफ़ी को एक एस्प्रेसो मशीन में भाप को गहरे-सिंके हुए तेज़ गंध वाले कॉफ़ी के दानों के बीच से निकालकर तैयार किया जाता है। इसकी सतह पर सुनहरे-भूरे क्रीम के (झाग) होते हैं। कैपेचीनो- गरम दूध और दूध की क्रीम की समान मात्रा से मिलकर बनती है। कैफ़े लैट्टे कैफ़ै लैट्टे में एक भाग एस्प्रेसो का एक शॉट और तीन भाग गर्म दूध होता है। इतालवी में लैट्टे का अर्थ दूध होता है। जिसके कारण इसका यह नाम पड़ा है। फ़्रैपी- ठंडी एस्प्रेसो होती है, जिसे बर्फ़ के साथ एक लंबे गिलास में पेश किया जाता है और अगर इसमें दूध भी मिलाया जा सकती हैं। दक्षिण भारतीय फ़िल्टर कॉफ़ी को दरदरी पिसी हुई, हल्की गहरी सिंकी हुई कॉफ़ी अरेबिका से बनाया जाता है। इसके साथ पीबेरी के दानों को सबसे अधिक पसंद किया जाता है। इसे परोसने किए जाने के पहले एक पारंपरिक धातु के कॉफ़ी फ़िल्टर में घंटों तक रिसा कर अथवा टपकाकर तैयार किया जाता है। इस्टेंट कॉफ़ी (या सॉल्यूबल कॉफ़ी) को कॉफ़ी के द्रव को बहुत कम तापमान पर छिड़काव कर सुखाया जाता है। फिर उसे घुलनशील पाउडर या कॉफ़ी के दानों में बदलकर इंस्टेंट कॉफ़ी तैयार की जाती है। मोचा या मोचाचिनो, कैपेचिनो और कैफ़े लैट्टे का मिश्रण है जिसमें चॉकलेट सिरप या पाउडर मिलाया जाता है। यह कई प्रकार में उपलब्ध होती है। ब्लैक कॉफ़ी टपकाकर तैयार की गई छनी हुई या फ़्रेंच प्रेस शैली की कॉफ़ी है जो बिना दूध मिलाए सीधे सर्व की जाती है। आइस्ड कॉफ़ी में सामान्य कॉफ़ी को बर्फ़ के साथ और कभी-कभी दूध और शक्कर मिलाकर परोसा जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%80
उद्यमी
यह शब्द (आंत्रप्रेन्योर) फ्रेंच भाषा से ग्रहण किया गया है और इसे सबसे पहले आयरिश अर्थशास्त्री रिचर्ड केंटीलोन द्वारा परिभाषित किया गया था। अंग्रेजी में उद्यमी एक शब्द है जो एक व्यक्तित्व के प्रकार के लिए प्रयोग किया जाता है जो स्वयं एक नए उद्यम या परियोजना शुरू करने का इच्छुक है और उसके परिणाम की पूरी ज़िम्मेदारी स्वीकार करने के लिए तैयार है। ऐसा माना जाता है कि जीन-बपतिस्ते से, एक फ्रेंच अर्थशास्त्री, ने 1800 में सबसे पहले उद्यमी शब्द गढ़ा था। उन्होंने एक उद्यमी के विषय में कहा "वह व्यक्ति जो एक उद्यम को चलाता है, विशेष रूप से एक ठेकेदार, जो पूंजी और श्रम के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है". यह देखे entrepreneur बनने के लिए यह करे
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%80
उद्यमी
उद्यमिता अक्सर मुश्किल और पेचीदा है, जिसके परिणामस्वरूप कई नए उद्यम असफल हो जाते हैं। शब्द उद्यमी अक्सर संस्थापक के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता है। आम तौर पर, उद्यमी शब्द उस पर लागू होता है जो बाज़ार में जगह बना कर उस उत्पाद या सेवा को प्रदान कर के नाम स्थापित करता है जो कि वर्तमान में अस्तित्व में नहीं है। उद्यमी बाज़ार में अवसर की पहचान करते हैं और अपने संसाधनों को प्रभावी ढंग से नियोजित करके ऐसे परिणाम से पूरा लाभ उठाते हैं जो एक क्षेत्र में वर्तमान विचारों को बदल देता है।
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उद्यमी
पर्यवेक्षक उन्हें अवसर प्राप्त करने के लिए एक उच्च स्तर के निजी, पेशेवर या आर्थिक रूप से जोखिम लेने को तैयार व्यक्ति बनने के इच्छुक के रूप में देखते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%80
उद्यमी
व्यापार उद्यमियों को पूँजीवादी समाज में मौलिक रूप में महत्वपूर्ण माना जाता है। कुछ लोग व्यापार उद्यमियों को या तो "राजनीतिक उद्यमियों" अथवा "बाजार उद्यमियों" के रूप में विभाजित करते हैं, जबकि सामाजिक उद्यमियों के प्रमुख उद्देश्यों में एक सामाजिक और/या पर्यावरणीय लाभ का निर्माण शामिल है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%80
उद्यमी
आंत्रप्रेन्योर (Entrepreneur) वह व्यक्ति होता है जो बिजनेस को नए बिजनेस कॉन्सेप्ट के साथ शुरू करता है। वह इसे सफल बनाने के लिए दिन-रात मेहनत करता है, एक व्यावसायिक उद्यम का आयोजन करता है और इसके लिए जोखिम उठाने के लिए तैयार रहता है। साथ ही इसका उद्देश्य लाभ कमाने के लिए व्यवसाय स्थापित करना है।
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उद्यमी
आंत्रप्रेन्योर तथा बिजनेसमैन के बीच अंतर जानने के लिए यह पढ़ें: entrepreneur vs businessman & entrepreneur meaning in Hindi
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%80
उद्यमी
"उद्यमी" शब्द फ्रेंच भाषा के (f. entrepreneuse) शब्द से ग्रहण किया गया। फ्रेंच में क्रिया "entreprendre" का अर्थ है "कार्य करना" जिसमें "entre" लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है "के बीच में" और "prendre" का अर्थ "लेना" है। फ्रेंच में एक व्यक्ति जो क्रिया करता है, उस क्रिया के अंत में "eur" लगाया जाता है जो अंग्रेजी के "er" की तरह प्रयुक्त होता है। "Unternehmer" (lit. "undertaker" शब्द जिसका शाब्दिक अर्थ "ज़िम्मेदार" है) जर्मन शब्द के बराबर है और दिलचस्प रूप से "Unternehmensforschung" ऑपरेशन अनुसंधान का जर्मन समकक्ष है, हालांकि व्यवसाय का एंग्लो-सेक्सोन मॉडल एक विज्ञान के रूप में प्रबंधन की धारणा का काफी विरोधाभासी है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%80
उद्यमी
स्कॉलर रॉबर्ट. बी रिक नेतृत्व, प्रबंधन क्षमता और टीम निर्माण को एक उद्यमी के आवश्यक गुण मानते हैं। इस अवधारणा का मूल रिचर्ड केंटीलोन के काम Essai sur la Nature du Commerce en Gohdbrnénéral (1755) और जीन-बपतिस्ते से (1803 या 1834) की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर निबंध में है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%80
उद्यमी
एक और आम तौर पर कहा जाने वाला सिद्धांत यह है कि मांग होने पर अवसरों और लोगों का लाभ लेने की स्थिति के संयोजन से उद्यमी जनसंख्या से उभरते हैं। एक उद्यमी यह मान सकता है कि वे उन कुछ लोगों में से एक हैं जो समस्या को पहचान सकने या हल करने में सक्षम हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, एक व्यक्ति भावी उद्यमियों के विषय में एक तरफा जानकारी के वितरण (देखें ऑस्ट्रियाई स्कूल अर्थशास्त्र) और दूसरी तरफ कैसे पर्यावरणीय कारक (पूँजी, प्रतियोगिता आदि) समाज द्वारा उद्यमियों की उत्पादकता दर में बदलाव ला सकते हैं, का अध्ययन करता है।
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गन्धकाम्ल
खनिज अम्लों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला यह महत्त्वपूर्ण अम्ल है। प्राचीन काल में हराकसीस (फेरस सल्फेट) के द्वारा तैयार गन्धक द्विजारकिक गैस को जल में घोलकर इसे तैयार किया गया। यह तेल जैसा चिपचिपा होता है। इन्ही कारणों से प्राचीन काल में इसका नाम 'आयँल ऑफ विट्रिआँल' रखा गया था। हाइड्रोजन, गन्धक तथा जारक तीन तत्वों के परमाणुओं द्वारा गन्धकाम्ल के अणु का संश्लेषण होता है। आक्सीजन युक्ति होने के कारण इस अम्ल को 'आक्सी अम्ल' कहा जाता है। इसका अणुसूत्र H2SO4 है तथा अणु भार रसविद् आचार्यों को गन्धकाम्ल के संबंध में बहुत समय से पता था। उस समय हरे कसीस को गरम करने से यह अम्ल प्राप्त होता था। बाद में फिटकरी को तेज आँच पर गरम करने से भी यह अम्ल प्राप्त होने लगा। प्रारंभ में गन्धकाम्ल चूँकि हरे कसीस से प्राप्त होता था, अत: इसे "कसीस का तेल' कहा जाता था। तेल शब्द का प्रयोग इसलिए हुआ कि इस अम्ल का प्रकृत स्वरूप तेल सा है।
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गन्धकाम्ल
(११) प्रयोगशालाओं में गन्धकाम्ल का प्रयोग विलायकों, निर्जलीकारकों (desiccating agent) तथा विश्लेषिक अभिकर्मकों के रूप में होता है।
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गन्धकाम्ल
गन्धकाम्ल इतने अधिक एवं विभिन्न उद्योगों में प्रयुक्त होता है कि उन सभी का उल्लेख यहाँ संभव नहीं है।
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गन्धकाम्ल
गन्धकाम्ल एक प्रबल अम्ल है। इसका अणुसूत्र (H2SO4) है। यह रंगहीन तेल सदृश गाढ़ा द्रव होता है। शुद्ध अवस्था में २५° सें. ताप पर इसका घनत्व १.८३४ है। इसका हिमांक १०.५° सें. है।
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गन्धकाम्ल
आधुनिक विचारधारा के अनुसार गन्धकाम्ल के अणु की संरचना चतुष्फलक (tetrahedron) होती है, जिसमें गंधक का एक परमाणु केंद्र में और दो हाड्रॉक्सी समूह तथा दो ऑक्सीजन के परमाणु चतुष्फलक के कोणों पर स्थित हैं। अम्ल के अणु की संरचना में गंधक-ऑक्सीजन बंध का अंतर १.५१ A (एंग्सट्रॉम इकाई) होता है।
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गन्धकाम्ल
गन्धकाम्ल जल के साथ मिलकर अनेक हाइड्रेट बनाता है, जिनमें सलफ़्यूरिक मोनोहाइड्रेट अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होता है। इस गुण के कारण सांद्र गन्धकाम्ल उत्तम शुष्ककारक होता है। यह वायु से ही जल को नहीं खींचता वरन्‌ कार्बनिक पदार्थों से भी जल का अंश खींच लेता है। जल के अवशोषण में अत्यधिक ऊष्मा का क्षेपण होता है, जिससे अम्ल का विलयन बहुत गरम हो जाता है। सांद्र गन्धकाम्ल प्रबल ऑक्सीकारक होता है। ऑक्सीजन के निकल जाने से यह सलफ़्यूरस अम्ल बनता है, जिससे गन्धक द्विजारकिक निकलता है। अनेक धातुओं पर गन्धकाम्ल की क्रिया से गन्धक द्विजारकिक प्राप्त होता है।
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गन्धकाम्ल
गन्धकाम्ल का जल में आयनीकरण होता है। इससे विलयन में हाइड्रोजन धनायन, बाइसल्फ़ेट तथा सल्फ़ेट ऋणायन बनते हैं। रासायनिक विश्लेषण की सामान्य रीतियों सेगन्धकाम्ल में गंधक, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन की उपस्थिति जानी जा सकती है।
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गन्धकाम्ल
शत प्रतिशत शुद्ध गन्धकाम्ल का घनत्व १५° सें. पर १.८३८४ ग्राम प्रति मिलीलीटर होता है। गन्धकाम्ल को गरम करने से उससे गन्धक ट्राइऑक्साइड का वाष्प निकलने लगता है तथा अम्ल का २९०° सें. से क्वथन प्रारंभ हो जाता है। क्वथनांक में तब तक वृद्धि होती जाती है, जब तक ताप ३१७° सें. नहीं पहुंच जाता। इस ताप पर गन्धकाम्ल ९८.५४ प्रतिशत रह जाता है। उच्च ताप पर गन्धकाम्ल का विघटन शुरु हो जाता है और जैसे जैसे ताप ऊपर उठता है विघटन बढ़ता जाता है। सांद्र गन्धकाम्ल जल के साथ गन्धकाम्ल मोनोहाइड्रेट, गलनांक ८.४७° सें., गन्धकाम्ल डाइहाइड्रेट, गलनांक - ३९.४६° सें. तथा गन्धकाम्ल टेट्राहाइड्रेट, गलनांक - २८.२५° सें., बनाता है। जल के साथ क्रिया के फलस्वरूप प्रति ग्राम सांद्र अम्ल २०५ कैलोरी उष्म का उत्पादन करता है। सांद्र अम्ल कार्बनिक पदार्थों, लकड़ी तथा प्राणियों के ऊतकों से जल खींच लेता है, जिसके फलस्वरूप कार्बनिक पदार्थों का विघटन हो जाता है और अवशेष के रूप में कोयल रह जाता है। गन्धकाम्ल लवण बनाता है, जिसे सल्फ़ेट कहते हैं। सल्फ़ेट सामान्य या उदासीन लवण होते हैं, जैसे सामान्य सोडियम सल्फ़ेट (Na2SO4) या अम्लीय सोडियम बाइसल्फ़ेट (NaHSO4)। अम्लीय इसलिए कि इसमें अब भी एक हाइड्रोजन रहता है, जो क्षारकों से प्रतिस्थापित हो सकता है। धातुओं, धातुओं के ऑक्साइडों, हाइडॉक्साइडों, कार्बोनेटो या अन्य लवणों पर अम्ल की क्रिया से सल्फ़ेट बते हैं। अधिकांश सल्फेट जलविलेय होते हैं। केवल कैल्सियम, बेरियम, स्ट्रौंशियम और सीस के लवण जल में अविलेय या बहुत कम विलेय होते हैं। अनेक लवण औद्योगिक महत्व के हैं। बेरियम और सीस सल्फ़ेट वर्णक के रूप में, सोडियम सल्फ़ेट कागज निर्माण में, कॉपर सल्फ़ेट कीटनाशक के रूप में और कैल्सियम सल्फ़ेट प्लास्टर ऑव पैरिस के रूप में प्रयुक्त होते हैं। सीस और इस्पात पर सांद्र अम्ल की कोई क्रिया नहीं होती। अत: अम्ल के निर्माण में तथा अम्ल को रखने के लिए सीस तथा इस्पात के पात्र प्रयुक्त होते हैं।
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गन्धकाम्ल
औद्योगिक स्तर पर सीस-कक्ष-विधि (lead chamber process) तथा संस्पर्श विधि (contact process) से अम्ल का उत्पादन होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE
दरभंगा
दरभंगा जिला का कुल क्षेत्रफल 2,279 वर्ग कि०मी० है। समूचा जिला एक समतल उपजाऊ क्षेत्र है जहाँ कोई चिह्नित वनप्रदेश नहीं है। जिले में हिमालय से उतरने वाली नित्यवाही औ‍र बरसाती नदियों का जाल बिछा है। कमला, बागमती, कोशी, करेह औ‍र अधवारा समूह की नदियों से उत्पन्न बाढ़ हर वर्ष लाखों लोगों के लिए तबाही लाती है औसत सालाना ११४२ मिमी वर्षा का अधिकांश मॉनसून से प्राप्त होता है। दरभंगा जिले को आमतौर पर निम्न चार क्षेत्रों में बाँटा जाता है:
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20231101.hi_1626_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE
दरभंगा
घनश्यामपुर, बिरौल तथा कुशेश्वरस्थान प्रखंड में कोशी के द्वारा जमा किया गया गाद क्षेत्र जहाँ दलदली भाग मिलते हैं।
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20231101.hi_1626_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE
दरभंगा
बूढ़ी गंडक औ‍र बागमती के बीच का दोआब क्षेत्र जो नीचा और दलदली है। यहाँ २९७०६ हेक्टेयर भूमि चौर क्षेत्र है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE
दरभंगा
2001 की जनगणना के अनुसार इस जिला की कुल जनसंख्या 32,85,493 है जिसमें शहरी क्षेत्र तथा देहाती क्षेत्र की जनसंख्या क्रमश: 2,66,834 एवं 30,18,639 है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE
दरभंगा
जबकि जनगणना 2011 के आकड़ों के अनुसार इस जिले की कुल आबादी 3,937,385 है।जिसमें पुरुषों की संख्या 2,059,949 और महिलाओं की 1,877,436 है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE
दरभंगा
प्रखंड- दरभंगा, बहादुरपुर, हयाघाट, हनुमाननगर, बहेरी, केवटी, सिंघवारा, जाले, मणिगाछी, ताराडिह, बेनीपुर, अलीनगर, बिरौल, घनश्यामपुर, कीरतपुर, गौरा-बौरम, कुशेश्वरस्थान, कुशेश्वरस्थान (पूर्व)
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20231101.hi_1626_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE
दरभंगा
दरभंगा जिले की चूना युक्त दोमट किस्म की मिट्टी रबी एवं खरीफ फसलों के लिए उपयुक्त है। भदई एवं अगहनी धान, गेहूँ, मकई, रागी, तिलहन (चना, मसूर, खेसारी, मूंग), आलू गन्ना आदि मुख्य फसले हैं। जिले के कुल क्षेत्रफल का 198415 हेक्टेयर कृषियोग्य है। 19617 हेक्टेयर क्षेत्र ऊँची भूमि, 37660 हेक्टेयर मध्यम और 38017 हेक्टेयर नीची भूमि है। यद्यपि दरभंगा जिला वनरहित प्रदेश है फिर भी निजी क्षेत्रों में वानिकी का अच्छा प्रसार देखने को मिलता है। गाँवों के आसपास रैयती जमीन पर सीसम, खैर, खजूर, आम, लीची, अमरुद, कटहल, पीपल, ईमली आदि मात्रा में दिखाई देते है। आम औ‍र मखाना के उत्पादन के लिए दरभंगा प्रसिद्ध है और खास स्थान रखता है। जिले के प्रायः हर हिस्से में तलाबों एवं चौर क्षेत्र में पोषक तत्वों से भरपूर मखाना यहाँ का खास उत्पाद है। मखाना की खेती से हो रहे लाभ के मद्देनजर यहाँ के किसानों में मखाने की खेती के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है।
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3,249.704841
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE
दरभंगा
परंपरा से यह शहर मिथिला के ब्राह्मणों के लिए संस्कृत में उच्च शिक्षा के लिए प्रसिद्ध रहा है। पुरातन एवं आधुनिक शिक्षा का अच्छा केंद्र होने के बावजूद दरभंगा एक निम्न साक्षरता वाला जिला है। ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय के अलावे यहाँ तथा कामेश्वरसिंह संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित है जिसके अंतर्गत राज्य के सभी संस्कृत महाविद्यालय आते हैं। शहर में तकनीकि एवं चिकित्सा महाविद्यालयों के अतिरिक्त मिथिला शोध संस्थान जैसे विशिष्ट शिक्षा केंद्र भी हैं। दरभंगा जिला के अंतर्गत आनेवाले शिक्षण संस्थान इस प्रकार हैं:
0.5
3,249.704841
20231101.hi_1626_13
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दरभंगा
दरभंगा कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग, महिला अभियंत्रण महाविद्यालय, राजकीय पॉलिटेक्निक दरभंगा, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान
0.5
3,249.704841
20231101.hi_144625_35
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC
रायगढ़
किले पर खाने की सुविधा है। परंतु स्वयं की सुविधा अनुसार खाद्यपदार्थ ले जाए। किले पर खाने की सुविधा और विविध प्रकार की दुकानें है।
0.5
3,242.351406
20231101.hi_144625_36
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रायगढ़
किलेपर गंगासागर तालाब इत्यादी अनेक पानी के तालाब है।किलेपर जाने के लिए अब कुल दो मार्ग है। यहाँ पानी की बहुत अच्छी सुविधा उपलब्ध है।शुद्ध पानी और फिल्टर किया हुआ पानी मिलता है।
0.5
3,242.351406
20231101.hi_144625_37
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रायगढ़
रायगड किले का प्राचीन नाम रायरी था। पूरब की ओर के देश के लोग इसे पूरब का जिब्राल्टर के नामसे जानते थे। जिब्राल्टर के जैसे ही रायगड पहाडी इलाके में है और अजिंक्य है।
0.5
3,242.351406
20231101.hi_144625_38
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC
रायगढ़
1662 ई. में शिवाजी तथा बीजापुर के सुल्तान में काफ़ी संघर्ष के पश्चात संधि हुई थी जिससे शिवाजी ने अपना जीता हुआ सारा प्रदेश प्राप्त कर लिया था। इस संधि के लिए शिवाजी के पिता कई वर्ष पश्चात पुत्र से मिलने आए थे। शिवाजी ने उन्हें अपना जीता हुआ समस्त प्रांत दिखाया। उस समय शाहजी के सुझाव को मानकर रैरी पहाड़ी के उल्ल श्रृंग पर शिवाजी ने रायगढ़ को बसाने का इरादा किया था। समाधि भी रायगढ़ में ही है। यहाँ उन्होंने एक क़िला तथा प्रासाद बनवाया और वे यहीं निवास करने लगे। इस प्रकार शिवाजी के राज्य की राजधानी रायगड में ही स्थापित हुई। रायगड चारों ओर से सह्यद्रि की अनेक पर्वत मालाओं से घिरा हुआ था और उसके उल्ल श्रृंग दूर से दिखाई देते थे।
0.5
3,242.351406
20231101.hi_144625_39
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC
रायगढ़
शिवाजी का राज्याभिषेक रायगड में, 6 जून 1674 ई. को हुआ था। काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट इस समारोह के आचार्य थे। उपरान्त 1689-90 ई. में औरंगज़ेब ने इस पर अधिकार कर लिया।
1
3,242.351406
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC
रायगढ़
शिवराज्याभिषेक यह रायगड ने अनुभव किया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसंग है। महाराज का राज्याभिषेक मतलब महाराष्ट्र का ही नही बल्कि भारत के इतिहास की एक लक्षणीय घटना है। १९ मे १६७४ को राज्याभिषेक विधी पूर्व महाराज ने प्रतापगड की भवानी देवी के दर्शन किए। तीन मन सोने के मतलब ५६ हजार किंमत के छत्र देवीको अर्पण किए। किले पर के राज सभामें ६ जून १६७४, ज्येष्ठ शुद्ध १३ शके १५९६, शनिवार इस दिन राज्याभिषेक मनाया गया। २४ सप्टेंबर १६७४, ललिता पंचमी आश्विन शुद्ध ५, आनंद संवत्सर शके १५९६ इस दिन तांत्रिक पद्धती से राजा ने स्वयं एक ओर राज्याभिषेक कर लिया। इसके पीछे का सच्चा हेतू ज्यादा से ज्यादा लोगों को संतोष मिले यह था।यह राज्याभिषेक निश्चलपुरी गोसावी इनके हातों संपन्न हुआ।
0.5
3,242.351406
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC
रायगढ़
“ शिवाजीने सर्व किले का आधार और विलासस्थान एेसे रायगड किले पर अपना बस्तीस्थान किया। यह किला बहुत बड़ा और विशाल है कि, उसमें तीनों लोको का वैभव समाया है। किले पर कुँए, सरोवरे, कूप विराजत है। सर्व यवनांओ को जीतकर रायगडा पर राजा शिवाजीने राजधानी बनाई। और लोगो की इच्छा पूर्ण की। जगत में श्रेष्ठ यश संपादन किया। इ.स. १६७५ फरवरी ४, शके १५९६ आनंद संवत्सर माघ व. ५ गुरूवार इस दिन संभाजी राजा की 'मुंज' रायगड पर हुई। शके १६०१ सिद्धार्थी संवत्सर फाल्गुन व. २, १६८० मार्च ७ इस दिन राजाराम महाराज की 'मुंज' रायगड पर हुई। आठ ही दिन में राजाराम महाराज का विवाह प्रतापराव गुजर इनकी कन्या से हुआ।रायगडा ने अनुभव किया हुआ अत्यंत दुःखद प्रसंग मतलब महाराज का निधन. शके १६०२ रुद्रनाम संवत्सरे चैत्र शुद्ध पौर्णिमा, हनुमान जयंती, दि. ३ अप्रेल १६८० इस दिन महाराज का निधन हुआ। सभासद बखर में ‘उस दिन पृथ्वीकंप हुई, अष्टदिशा दिग्दाह हो गई थी। श्रीशंभुमहादेवी तल का उदक रक्तांबर हो गया था।’ आगे शके १६०२ रौद्र संवत्सर माघ शु. ७, इ.स. १६८१ १६ फरवरी इस दिन रायगडापर संभाजी महाराज का विधिपूर्वक राज्यारोहण हुआ। इ.स. १६८४ के सितंबर में औरंगजेब ने रायगड का अभियान की शुरआत की। ता. २१ को शहाबुद्दीन खान से चालीस हजार सैनिकसह बादशहा ने रायगड के सामने ही मुठभेड़ की। १५ जनवरी १६८५ के लगभग शहाबुद्दीने किले के सामने के एक गाँव को आग लगाई और लुटमार की। पर प्रत्यक्ष रायगड पर हल्ला न करते हुए वह १६८५ की मार्च में वापस लौटा। औरंगजेबाने अपना वजीर आसदखान इनका लडका इतिकादखान उर्फ झुल्फिकारखान को सैनिक देकर रायगड लेने के लिए भेजा। शके १६१० विभव संवत्सर फाल्गुन शु. ३, १२ फरवरी १६८९ को राजाराम महाराज का कामकाज शुरू हुआ और २५ मार्च १६८९ को खान ने किले को घेर लिया। दि. ५ अप्रेल १६८९ को राजाराम महाराज रायगड से निकलकर प्रतापगड पर गए। आगे लगभग आठ महिने घेराव चालू ही था। पर दि. ३ नवंबर १६८९ को सूर्याजी पिसाल इस किलेदार की फितुरी के कारण किला मुगलाें को मिला। वाई इस गाँव की देशमुखी देने का उसे लालच दिखाया और इस प्रकार खान ने उसे फितुर किया। झुल्फिकारखान इस बादशाह ने इतिकादखान को दिया खिताब है। आगे रायगड का नामांतर ‘इस्लामगड’ यह हुआ।५ जून १७३३ इस दिन शाहूमहाराज के अधिकार में मराठों ने फिर से रायगड लिया।
0.5
3,242.351406
20231101.hi_144625_42
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC
रायगढ़
तटवर्ती कगार बरसाती नदी-घाटियों द्वारा विभक्त हैं, जो इस इलाक़े की अधिकांश कृषि में सहायक हैं। चावल और नारियल यहाँ की प्रमुख फ़सलें हैं और मछली पकड़ना और नमक बनाना महत्त्वपूर्ण समुद्रतटीय उद्यम हैं।
0.5
3,242.351406
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC
रायगढ़
तीसरी शताब्दी ई. पू. के आरम्भ से ही कोंकण तट के रायगढ़ क्षेत्र का रोम के साथ व्यापार स्थापित हो गया था। काग़ज़ की लुगदी, रसायन और इंजीनियरिंग का काम यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं। खोपोली और पनवल प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं।
0.5
3,242.351406
20231101.hi_2472_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7
सिंध
सिन्ध का नाम 'सप्त सैन्धव' था जहां सिन्धु सहित शतद्रु, विपाशा, चन्द्रभागा, वितस्ता, परुष्णी और सरस्वती बहती थीं। सिन्धु के तीन अर्थ हैं- सिन्धु नदी, समुद्र और सामान्य नदियां। ऋग्वेद कहता है मधुवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। कालान्तर में इस भूभाग से सप्त सिन्धव लुप्त होकर सिन्ध रह गया है, जो खण्डित भारत यानी पाकिस्तान का सिन्ध प्रदेश है।
0.5
3,232.215722
20231101.hi_2472_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7
सिंध
ईसा के 1500 साल पहले भारतीय (तथा ईरानी) क्षेत्रों में आर्यों का अगमन आरंभ हुआ। आर्य भारत के कई भागों में बस गए। ईरान में भी आर्यों की बस्तियां फैलने लगीं। भारतीय स्रोतों में सिन्ध का नाम सिंध, सिंधु, सिंधुदेश तथा सिंधुस्थान जैसे शब्दों के रूप में हुआ है।
0.5
3,232.215722
20231101.hi_2472_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7
सिंध
700 ईस्वी में हिन्दू ब्रााहृण राजा दाहिर सैन सिन्ध के शासक थे। उनके स्वर्णयुग राजा दाहिर ने समुद्र से व्यापार करने वाले अरबियों को लूटा और सिन्ध में अन्य लोगों से लूट करते थे। खलीफा की ओर से मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में सिन्ध में अरबी सैनिकों ने आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। उनसे युद्ध करते हुए राजा दाहिर को खत्म किया और अपने फंसे कैदियों को छुड़ाया । सिन्ध में अरब घुस आया। दाहिर की रानी वीर बाला ने अधूरे युद्ध को हवा दी। युद्ध छिड़ गया। रानी ने अरबों के खिलाफ प्रक्षेपास्त्र का प्रयोग किया। रानी जीत गई। इसके बाद सिन्ध में इस्लाम की घुसपैठ शुरू हो गई। अधिसंख्यक हिन्दू इस्लामी तौर तरीकों के चलते मुसलमान हुए। उस समय सिन्ध के दलित वर्ग के लोग छुआछूत, भेदभाव और सामाजिक अवमानना से खिन्न होकर इस्लाम में आ गए क्योंकि यहां के बड़े लोग अपने से कम वर्ग के लोगों से छुआछूत करते थे इसलिए इस्लामी तरीके को देखते देखते ब्राह्मण दाहिर के पुत्र जयसिंह भी मुसलमान हो गए। यदि हिन्दू राजाओं ने जयसिंह की सहायता की होती तो वे मतान्तरित न होते। भयाक्रांतता के चलते हिन्दू इस्लाम को मानने के बारे में जानकर हुए या कुछ लोग कहते हैं मजबूर हुए। राजनीतिक अलगाववादी नीति के चलते मतान्तरित मुसलमान मुख्यधारा से आज तक जुट न पाए। ब्राह्मणवाद इस्लामवाद हो गया। अरबी बहुत दिनों तक सिन्ध में रहे और अपने अलग रवैये और व्यवहार के जरिए हिन्दुओं को इस्लाम में लाते रहे। मतान्तरित मुसलमान नारियां भी हिन्दुओं के इस्लामीकरण का काम करने लगी थीं। सिन्ध से लेकर ब्लूचिस्तान तक जितने कबीले, जनजातियां, शोषित, पीड़ित और दलित वर्ग के लोग थे, उनके पुरखे हिन्दू थे। उनकी निर्धनता, अशिक्षा पिछड़ापन और मजबूरी को ध्यान में रखकर अरबों ने उन्हें लगा के मुसलमानो में बराबरी छुआ छूत कम है और वो मुसलमान बन गए। इस प्रकार सिन्ध के हिन्दुओं में फूट, आपसी कलह और भेदभाव के चलते अन्तत: वे मतान्तरित हुए। धीरे-धीरे सिन्ध में मुसलमान अधिसंख्यक हो गए और बचे खुचे हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए। अब अल्पसंख्यक हिन्दू सिन्ध प्रान्त में इस्लाम की ओर झुक रहे हैं।
0.5
3,232.215722
20231101.hi_2472_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7
सिंध
सिन्ध में अनेक गरीब जाट वर्ग के लोगों ने भी इस्लाम को मान लिया था। देश के हिन्दू राजाओं में आपसी मनमुटाव, प्रतिद्वन्द्विता और शत्रुत्रा थी। वे हिन्दुओं को क्या बचा पाते? आज भी देश में अधिसंख्यक हिन्दुओं में पारस्परिक एकता का अभाव है। देश में जात-पांत का बोलबाला है। अनेक जातिवादी घटक हैं। दलगत नीतियों का वर्चस्व है। ऐसी ही भयावह स्थिति 700 ईस्वी में सिन्ध में थी। देश की इन दुर्बलताओं से अरबी लुटेरों और आक्रान्ताओं ने लाभ उठाया। उन दिनों सिन्ध में इस्लामीकरण का अभियान था। "इस्लाम के तरीकों को देखकर हताश जनता ने इस्लाम ही कबूल लिया और उन्हें सहानुभूति मिली। ऐसा ही मुगलकाल में भी हुआ था।
0.5
3,232.215722
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7
सिंध
सिन्ध से हम हिन्दू हुए हैं। वरुण देवता झूलेलाल के अनुयायी हिन्दू अपने को सिन्धी कहते हैं। दाहिर सिन्धी थे। पाक अधिकृत सिन्ध प्रान्त के वर्तमान मुसलमानों के पुरखे हिन्दू थे, यानी सिन्धी।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7
सिंध
सिन्ध की संस्कृति सिन्धु संस्कृति के नाम से जानी जाती है। सप्त सैन्धव संस्कृति आर्य संस्कृति है वह वैदिक ललित पुष्प है। उसकी गन्ध सनातन और शाश्वत है।
0.5
3,232.215722
20231101.hi_2472_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7
सिंध
ईसा के 500 साल पहले यहां ईरान के हख़ामनी शासकों का अधिकार हो गया। यह घटना इस्लाम के आगमन से कोई 1000 साल पहले की है। फ़ारस, यानि आज का ईरान, पर यूनान के सिकंदर का अधिकार हो जान के बाद सन् 328 ईसापूर्व में यह यवनों के शासन में आया। ईसापूर्व 305 में मौर्य साम्राज्य के अंग बनने के बाद यह ईसापूर्व 185 से करीब सौ सालों तक ग्रेको-बैक्टि्रयन शासन में रहा। इसके बाद गुप्त और फिर अरबों के शासन में आ गया। मुगलों का अधिकार सोलहवीं सदी में हुआ। यह ब्रिटिश भारत का भी अंग था।
0.5
3,232.215722
20231101.hi_2472_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7
सिंध
कराँची -- जमशोरो -- थट्टा -- बादिन -- थारपारकर -- उमरकोट -- मीरपुर ख़ास -- टंडो अल्लहयार -- नौशहरो फ़िरोज़ -- टंडो मुहम्मद ख़ान -- हैदराबाद -- संगहार -- खैरपुर -- नवाबशाह -- दादु -- क़म्बर शहदाकोट -- लरकाना -- [[मटियारी== सिन्ध के जिले ==
0.5
3,232.215722
20231101.hi_2472_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7
सिंध
कराँची -- जमशोरो -- थट्टा -- बादिन -- थारपारकर -- उमरकोट -- मीरपुर ख़ास -- टंडो अल्लहयार -- नौशहरो फ़िरोज़ -- टंडो मुहम्मद ख़ान -- हैदराबाद -- संगहार -- खैरपुर -- नवाबशाह -- दादु -- क़म्बर शहदाकोट -- लरकाना -- मटियारी -- घोटकी -- शिकारपुर -- जैकोबाबाद -- सुक्कुर -- काशमोरे
0.5
3,232.215722
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
सर्वांगसमता
ASA (कोण-भुजा-कोण): यदि संगत कोणों का एक युग्म और उनकी सम्मिलित भुजा बराबर हो तो दोनो त्रिभुज सर्वांगसम हैं। ASA अभिधारणा का योगदान थेल्स ऑफ मिलेटस (ग्रीक) द्वारा किया गया था।
0.5
3,219.227213
20231101.hi_44974_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
सर्वांगसमता
AAS (कोण-कोण-भुजा): यदि दो त्रिभुजों के कोणों के दो युग्म माप में बराबर हों, और संगत गैर-शामिल भुजाओं का एक युग्म लंबाई में बराबर हो, तो त्रिभुज सर्वांगसम होते हैं। एएएस एक एएसए शर्त के बराबर है, इस तथ्य से कि यदि कोई दो कोण दिए गए हैं, तो तीसरा कोण भी प्राप्त किया जा सकता, क्योंकि उनका योग 180° होना चाहिए।
0.5
3,219.227213
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
सर्वांगसमता
RHS (समकोण-कर्ण-पक्ष): यदि दो समकोण त्रिभुजों के कर्णों की लंबाई समान है, और छोटी भुजाओं का एक युग्म लंबाई में समान है, तो त्रिभुज सर्वांगसम होते हैं।
0.5
3,219.227213
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
सर्वांगसमता
SSA स्थिति (साइड-साइड-एंगल) जो दो पक्षों और एक गैर-शामिल कोण (जिसे ASS (एंगल-साइड-साइड) के रूप में भी जाना जाता है) को निर्दिष्ट करती है, हमेशा सर्वांगसमता साबित नहीं होती है।
0.5
3,219.227213
20231101.hi_44974_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
सर्वांगसमता
विशेष रूप से, SSA तब सर्वांगसमता सिद्ध नहीं करता है जब कोण न्यून हो और विपरीत भुजा आसन्न भुजा से छोटी या बराबर हो, लेकिन आसन्न भुजा के कोण के ज्या से अधिक लंबी हो। यह अस्पष्ट मामला है। अन्य सभी मामलों में, SSA सर्वांगसमता सिद्ध करता है। ध्यान दें कि विपरीत पक्ष कोण की ज्या के आसन्न पक्ष से छोटा नहीं हो सकता क्योंकि यह त्रिभुज का वर्णन नहीं कर सकता है।
1
3,219.227213
20231101.hi_44974_9
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सर्वांगसमता
यदि कोण अधिक या सम हो तो SSA स्थिति सर्वांगसमता सिद्ध करती है। समकोण के मामले में (जिसे HL (हाइपोटेन्यूज़-लेग) स्थिति के रूप में भी जाना जाता है), हम तीसरे पक्ष की गणना कर सकते हैं और SSS पर वापस आ सकते हैं।
0.5
3,219.227213
20231101.hi_44974_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
सर्वांगसमता
SSA स्थिति सर्वांगसमता सिद्ध करती है यदि कोण न्यून हो और विपरीत भुजा या तो आसन्न भुजा को कोण की ज्या (समकोण त्रिभुज) के गुणा के बराबर हो या आसन्न भुजा से लंबी हो।
0.5
3,219.227213
20231101.hi_44974_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
सर्वांगसमता
AAA (कोण-कोण-कोण) इस स्थिति में दोनो त्रिभुज केवल समरूप होते हैं, जरूरी नहीं कि वे सर्वांगसम भी हों। ऐसा इसलिये है कि यह स्थिति आकार (size) के बारे में कुछ भी नहीं कहती। तथापि
0.5
3,219.227213
20231101.hi_44974_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
सर्वांगसमता
Interactive animations demonstrating Congruent angles, Congruent line segments, Congruent triangles, Congruent polygons
0.5
3,219.227213
20231101.hi_377484_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2
अपील
अंग्रेजी सामान्य विधि में अपील के लिए कोई उपबंध नहीं था। परंतु सामान्य विधि न्यायालयों की गलतियाँ त्रुटिलेख के माध्यम से किंग्स बेंच न्यायालय द्वारा सुधारी जा सकती थीं। त्रुटिलेख केवल विधि के प्रश्न पर होता था, तथ्य के प्रश्न पर नहीं।
0.5
3,212.251133
20231101.hi_377484_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2
अपील
परंतु रोमन विधि में अपील के लिए उपबंध था। इंग्लैड में अपील की कार्यवाही रोमन विधि से ली गई और अंग्रेजी विधि में उसका समावेश उन वादों में हुआ जिनका निर्णय सुनीति क्षेत्राधिकार के अंतर्गत लार्ड चांसलर द्वारा अथवा धर्म या नौकाधिकरण न्यायालयों द्वारा होता था। बाद में, समविधि ने अपील के अधिकार को, सामान्य विधि तथा अन्य क्षेत्राधिकार के अंतर्गत होनेवाले दोनों प्रकार के वादों में, नियमित रूप दिया।
0.5
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20231101.hi_377484_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2
अपील
प्राचीन भारत में, जब विवाद कम होते थे, राजा स्वयं प्रजाए के विवादों का निपटारा करता था। उस समय अपील का प्रश्न नहीं था क्योंकि राजा न्याय का स्रोत था। परंतु राजा के न्यायालय के साथ साथ लोकप्रिय न्यायालय हुआ करते थे, बाद में राजा ने स्वयं नीचे के न्यायालयों की स्थापना की। लोकप्रिय न्यायालय या नीचे के निर्णय के विरुद्ध अपील राजा के समक्ष हो सकती थी।
0.5
3,212.251133
20231101.hi_377484_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2
अपील
मुगल काल में व्यवहारवादों की अपील सदर दीवानी अदालत में तथा दंडवादी की अपील निज़ाम--ए--अदालत में होती थी। परंतु सन्‌ 1857 ई. के असफल स्वातंत्रय युद्ध के पश्चात्‌ जब ब्रिटिश राज्य ने भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से अपने हाथ में लिया, सदर दीवानी अदालत तथा निज़ाम-ए-अदालत का उन्मूलन हो गया और उनका क्षेत्राधिकार कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास स्थित महानगर-उच्च-न्यायालयों को दे दिया गया। बाद में भारत के विभिन्न प्रांतों में उच्च न्यायालयों की स्थापना हुई।
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3,212.251133
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2
अपील
अपील सामान्यत: दो प्रकार की होती है---प्रथम अपील या द्वितीय। कतिपय वादों में तृतीय अपील भी हो सकती है। प्रथम अपील आरंभिक न्यायालय के निर्णाय के संबंध में उच्चतर न्यायालय में होती है। द्वितीय अपील--अपील न्यायालय के निर्णय के संबंध में श्रेष्ठतम अधिकारी के समक्ष होती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2
अपील
व्यवहार वादों में न्यायालय के समस्त आदेश दो भागों में विभाजित होते हैं--'आज्ञप्ति' तथा आदेश'। आज्ञप्ति से तात्पर्य उस अभिनिर्णयन से है जिसके द्वारा, जहाँ तक अभिनिर्णयन देनेवाले न्यायालय का संबंध है, वाद या वादानुरूप अन्य आरंभिक कार्यवाही में निहित विवादग्रस्त सब या किसी एक विषय के संबंध में, विभिझ पक्षों के अधिकारों का अंतिम रूप से निवारण होता है (धारा 2 (2) व्यवहार-प्रक्रिया-संहिता)। आदेश से तात्पर्य व्यवहार न्यायालय के ऐसे प्रत्येक विनिश्चय से है जाए आज्ञप्ति की श्रेणी में नहीं आता (धारा 2 (14), व्यवहार-प्रक्रिया-संहिता)। आदेश के विरूद्ध केवल एक अपील हो सकती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2
अपील
प्रथम अपील व्यवहार-प्रक्रिया-संहिता की धारा 96 के अंतर्गत किसी आज्ञप्ति के विरुद्ध बाद के मूल्यानुसार उच्च न्यायालय या जिला न्यायाधीश के समक्ष होती है। प्रथम अपील में तथ्य तथा विधि के सभी प्रश्नों पर विचार हो सकता है। प्रथम अपील न्यायालय को परीक्षण न्यायालय की समस्त शक्तियाँ प्राप्त हैं। द्वितीय अपील, व्यवहार--प्रक्रिया--संहिता की जारा 100 के अंतर्गत व्यवहारवादों में आज्ञप्ति के विरुद्ध केवल विधि संबंधी प्रश्नों पर, न कि तथ्य के प्रश्न पर, उच्च न्यायालय में होती है। जब द्वितीय अपील की सुनवाई उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश द्वारा होती है तब यह न्यायाधीश 'लेटर्स पेटेंट' या उच्च न्यायालय विधानीय अधिनियम के अंतर्गत, उसी न्यायालय के दो न्यायधीशों के खंड के समक्ष एक और अपील की अनुमति दे सकता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2
अपील
दंड अपील संबधी विधि दंड--प्रक्रिया--संहिता की धारा 404 से लेकर 431 तक में दी हुई है। दंड संबंधी वादों में केवल एक अपील हो सकती है। इसका एक ही अपवाद है। जब अपील न्यायालय अभियुक्त को निमुक्त कर देता है तब दंड-प्रक्रिया-संहिता की धारा 417 के अंतर्गत विमुक्ति आदेश के विरुद्ध द्वितीय अपील उच्च न्यायालय में हो सकती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2
अपील
जब जिलाधीश के अतिरिक्त कोई अन्य दंडनायक दंड--प्रक्रिया--संहिता की धरा 122 के अंतर्गत किसी वाद को स्वीकार या विमुक्त करना अस्वीकार कर दे तब उसके आदेश के विरुद्ध अपील जिलाधीश के समक्ष हो सकती है (धारा 406 (अ) दंड-प्रक्रिया-संहिता)। उत्तर प्रदेश राज्य ने जिलाधीश के समक्ष होनेवाली इस अपील का भी उन्मूलन कर दिया है और अपील जिलाधीश के समक्ष न होकर सत्रन्यायालय में होती है।
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3,212.251133
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF
लोकनीति
हम सब अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में असंख्य सार्वजनिक नीतियों से अत्यन्त प्रभावित हैं। सार्वजनिक नीति की पहुँच व्यापक है, अत्यावश्यक से नगण्य तक। सार्वजनिक नीतियाँ आज प्रतिरक्षा, पर्यावरण सरंक्षण, चिकित्सकीय देखभाल एवं स्वास्थ्य, शिक्षा, गृह निर्माण, कराधान, महँगाई, विज्ञान और तकनीकी इत्यादि मूलभूत क्षेत्रों से सम्बन्धित है।
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3,212.189608
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF
लोकनीति
सार्वजनिक नीतियाँ सूक्ष्म स्तर से वृहत स्तर तक अनेक पक्षों के साथ व्यवहार करती है। इसका सम्बन्ध चाहे आन्तरिक घरेलू पक्षों से हो या बाह्य विदेशी मामले से। घरेलू क्षेत्र में, सार्वजनिक नीतियाँ सूक्ष्म स्तर के किसी विशिष्ट गाँव पर ध्यान केन्द्रित कर सकती है या किसी विशिष्ट खण्ड या समुदाय से सम्बन्धित हो सकती है। इसी तरह सार्वजनिक नीतियाँ स्थानीय, राज्य या राष्ट्रीय सरकार से सम्बन्धित हो सकती है। सार्वजनिक नीति विदेशी मामले, शिक्षा, प्रतिरक्षा, कृषि, गृह निर्माण, शहरी विकास, सिंचाई आदि से जुड़ी हो सकती है। सार्वजनिक नीतियों का विस्तार अत्यन्त नगण्य पक्ष से लेकर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पक्ष तक हो सकता है। इसमें किसी राष्ट्रीय नेता की स्मृति में राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने और इसके तहत सैकड़ों करोड़ रूपये की मजदूरी देना भी सम्मिलित है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF
लोकनीति
आधुनिक मनुष्य का जन्म सरकार द्वारा प्रदत्त वित्तय सहायता वाले चिकित्सालय में होता है। वह अपनी शिक्षा राज्य सहायता प्राप्त विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में प्राप्त करता है, अपने समय का काफी हिस्सा राज्य द्वारा निर्मित परिवहन सुविधाओं से यात्रा करते हुए गुजारता है, डाक घर या अर्द्ध राजकीय दूरभाष प्रणाली का उपयोग संचार हेतु करता है, राज्य द्वारा व्यवस्था किये पेय जल के पीता है, अपने कूड़े-कचरे का निपटान सावर्जनिक स्वच्छता प्रणाली के माध्यम से करता है, सार्वजनिक पस्तकालय से पुस्तकें पढ़ता है, सार्वजनिक पार्कों में पिकनिक मनाता है तथा सार्वजनिक पुलिस, अग्निशमन एवं स्वास्थ्य प्रणाली से लाभान्वित होता है। अन्ततोगत्वा, उसकी मृत्यु चिकित्सालय में होती है, और हो सकता है कि उसको सार्वजनिक शमशान में दफनाया जाये। मनुष्य कितना ही रूढ़िवादी क्यों न हो, वह अपना दिन प्रतिदिन का जीवन उपर्युक्त या अन्य कई सार्वजनिक सेवाओं के सम्बन्ध में सरकार के निर्णय से बँधा हुआ पाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF
लोकनीति
लोक प्रशासन का राजनीति विज्ञान के समानान्तर अध्ययन के एक क्षेत्र के रूप में प्रादुर्भाव होने तथा एक अलग शैक्षणिक विभाग के रूप में उभरने के साथ ही, 1960 के दशक में सार्वजनिक नीति को राजनीति विज्ञान के अंतर्गत अध्ययन के एक उपक्षेत्र के नाते मान्यता मिली। ‘सार्वजनिक नीति‘ सावर्जनिक मामलों के प्रति सरकार के रूख का सैद्धान्तिक अध्ययन करती है। राजनीति विज्ञान का बल सिद्धान्त पर, तथा साजर्वनिक नीति का बल उसके अनुप्रयोग पर होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF
लोकनीति
राजनीति विज्ञान में व्यवहारवादी क्रान्ति के परिणामस्वरूप अधिकतर राजनीतिक वैज्ञानिकों के लिए ‘प्रासंगिकता‘ अध्ययन का केन्द्रीय विषय हो गया है। राजनीति शास्त्रियों ने, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका में, छठे दशक के उत्तरार्द्ध में महसूस किया कि समाज के सामने उपस्थिति कई संकटकालीन समस्याओं का हल निकालने की अत्यधिक आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, वियतनाम में अमेरिका का उलझाव अमेरिकी जनता के लिए डरावना अनुभव था। विश्व भर में हथियारों की दौड़ ने विश्व के अस्तित्व तक को बड़े खतरे में डाल दिया। नृजातीय समस्याएँ कई समाजों के लिए बड़ी चुनौती बन गई हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों द्वारा लिए गए निर्णयों की परिणति युद्ध या शांति, आर्थिक उन्नति या अंत, परमाणु विध्वंस या शांतिपूर्ण सह अस्तित्व में हो सकती है। राजनीति वैज्ञानिकों ने सार्वजनिक नीति के संभावित खतरों तथा सकारात्मक लाभों को महसूस किया है और इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि सार्वजनिक नीतियों के अध्ययन और विश्लेषण की अत्यधिक आवश्यकता है।
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लोकनीति
सरकारें इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कई नीतियाँ बना सकती है और कोष उपलब्ध करा सकती हैं। तो भी, केवल कानून बनाने तथा बजट पारित करने मात्र से सिद्ध नहीं हो सकेगा कि अभीष्ट उद्देश्य प्राप्त हो जावेंगे। भारतीय योजनाओं में हमेशा ही उद्देश्यों और उपलब्धियों के मध्य एक बड़ा अन्तराल रहता है। उन असफलताओं के कारणों का विश्लेषण करना होगा।
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3,212.189608
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF
लोकनीति
सरल रूप में व्यक्त करना हो तो, सावर्जनिक नीति सरकारों की गतिविधियों का योग है, चाहे सरकार स्वयं कार्य करती है या अभिकर्ता के माध्यम से कार्य करती है। सार्वजनिक नीति का नागरिकों के जीवन पर प्रभाव पड़ता है। सरकरें जो कुछ भी करना या नहीं करना पसंद करती हैं वहीं सावर्जनिक नीति है। राजनीति वैज्ञानिक डेविड ईस्टन ने सार्वजनिक नीति के ‘‘सम्पूर्ण समाज के लिए बड़ी मात्रा में धनराशि का अधिकाधिक विनोजन‘‘ के रूप में परिभाषित किया है। राजनीति वैज्ञानिक हेन्ज यूला एवं केनीथ प्रेविट सार्वजनिक नीति की एक अन्य परिभाषा देते हैं। उनके अनुसार नीति को ‘स्थायी निर्माण‘ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
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लोकनीति
सार्वजनिक नीति का विश्लेषण प्रायः नीतिगत निर्णय या नीति कथन के परिणामों के प्रकाश में किया जाता है। नीतिगत परिणाम सार्वजनिक नीतियों की साकार अभिव्यक्ति है। सरल शब्दों में, नीतिगत परिणाम सरकार द्वारा जो कुछ वास्तव में किया जाता है, उसको प्रदर्शित करते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF
लोकनीति
सार्वजनिक नीतियाँ किसी राजनीतिक प्रणाली का समग्र चित्रण करती है। सावर्जनिक नीति का परिचालित क्षेत्र अतिशय विस्तृत होता है तथा इसी के पहुँच और व्याप्ति पर्याप्त वृहत होती है। मानव जीवन के किसी भी पहलू पर गौर करें, हम किसी एक या अन्य नीति से मुक्ति नहीं मिल सकती। बच्चे के जन्म से लेकर मनुष्य की मृत्यु तक और जब भी जब मृतक शरीर अंतिम संस्कारों के लिए शमशान गृह लाया जाता है, कोई न कोई नीति होती है जिसका सामना हमें करना पड़ता है और जिसका लाभ हम उठाते हैं। बच्चे की शिक्षा, रोगों से बचाव, बेहतर एवं पोष्टिक भोजन, अच्छे लिबास, सर्वोत्तम उच्च शिक्षा, काम की संभावनाएँ, बेहतर वेतन, पर्याप्त आवास गृह व अन्य सुविधाएँ, राष्टींय व अन्तर्राष्टींय खतरों से सुरक्षा और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव कुछ ऐसी नीतियाँ हैं जिनके बारे में हम सुगमता से चर्चा करते हैं। अन्य राष्टींय शक्तियों पर अन्योन्याश्रय को ध्यान में रखते हुए, किसी राजनीतिक प्रणाली की सार्वजनिक नीतियाँ आयात-निर्यात से संबंधित तथा अन्य राष्टोंं से अच्छे एवं मैत्रीपूर्ण संबंधों से संबंधित नीतियों को भी अपने में सम्मिलित करती है। सार्वजनिक नीति के क्षेत्र एवं पहुंच को शब्दों में सीमित करना या परिभाषित करना निश्चय ही कठिन है।
0.5
3,212.189608
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शिशुपाल
विदर्भ के राजकुमार रुक्मी , शिशुपाल के बहुत करीब थे। वह चाहता था कि उसकी बहन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से हो। लेकिन समारोह होने से पहले, रुक्मिणी ने कृष्ण के साथ भागने का फैसला किया। इससे शिशुपाल कृष्ण से घृणा करने लगा।
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3,204.375231
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
शिशुपाल
पुराणों के अनुसार, शिशुपाल का विवाह कौशल्या द्वितीय से हुआ था, जो कोशल के इक्ष्वाकु राजा की सबसे बड़ी और सबसे सुंदर लड़की थी । शिशुपाल की पत्नी से तीन पुत्र हुए। पुत्र का नाम धृष्टकेतु और सुकेतु रखा गया। बाद में मत्स्य के राजा ने अपनी पुत्री का विवाह शिशुपाल से कर दिया। शिशुपाल की पत्नी से एक पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम करेणुमती तथा पुत्र का नाम महिपाल रखा गया। तब शिशुपाल का विवाह कैकेय के इक्ष्वाकु राजा की पुत्री से हुआ था । इस पत्नी से शिशुपाल को एक पुत्र प्राप्त हुआ, उसका नाम सराभा रखा गया।
0.5
3,204.375231
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
शिशुपाल
जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया, तो उन्होंने भीम को शिशुपाल, जो अब अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा था, की राजसभा प्राप्त करने के लिए भेजा। शिशुपाल ने बिना किसी विरोध के युधिष्ठिर के वर्चस्व को स्वीकार कर लिया, और इंद्रप्रस्थ में अंतिम समारोह में आमंत्रित किया गया।
0.5
3,204.375231
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
शिशुपाल
उस घटना पर, पांडवों ने फैसला किया कि कृष्ण बलिदान समारोह के विशेष सम्मानित अतिथि होंगे। इस पर शिशुपाल क्रोधित हो जाता है और कृष्ण के अवगुणों पर (जिसे वह समझता है) लंबा भाषण देता है और उसे ग्वाला आदि कहता है। जब उन्होंने 100वें अपशब्दों को पार कर लिया और कृष्ण द्वारा क्षमा कर दिया गया (वरदान के अनुसार)। जब उसने दोबारा कृष्ण का अपमान किया तो उसने अपना 101वां पाप किया, श्रीकृष्ण ने उसे चेतावनी दी। इसके बाद वह विधानसभा से चले जाते हैं। लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद, वह कृष्ण को एक दूत भेजता है।
0.5
3,204.375231
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
शिशुपाल
कृष्ण युद्ध की घोषणा करते हैं, और सेनाएँ युद्ध करती हैं, सेनाओं के विभिन्न जटिल स्वरूपों के साथ माघ अपने छंदों के लिए अपनाए गए जटिल रूपों से मेल खाते हैं। अंत में, कृष्ण लड़ाई में प्रवेश करते हैं, और एक लंबी लड़ाई के बाद, अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल के सिर पर प्रहार करते हैं।
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3,204.375231
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शिशुपाल
शिशुपाल की मृत्यु पर माता लक्ष्मी ने उसे वैकुंठ लाने के लिए स्वयं दिव्य विमान भेजा जिसने बैठ कर शिशुपाल अपने असली जय रूप को प्राप्त कर परमलोक वैकुंठ चला गया।
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3,204.375231
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
शिशुपाल
मप्र के अशोकनगर जिले में है चन्देरी'। यहां एक किंवदंती सदियों से प्रचलित है। और वह यह कि यहां कभी ढाई प्रहर सोने की बारिश हुई थी
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3,204.375231
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
शिशुपाल
शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण को अपमानित किया था। जिसके चलते भगवान ने उसका सिर, शरीर से सुदर्शन चक्र के द्वारा अलग कर दिया था। तब उसके राज्य चेदि (वर्तमान में संभवतः चन्देरी) में ढाई प्रहर सोने की बारिश हुई थी। यह क्षेत्र बुंदेलखंड में आता है।
0.5
3,204.375231
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
शिशुपाल
सोने की बारिश तो द्वारयुग में हुई थी! लेकिन अलग-अलग तरह की बारिश होती रही है। इसका उल्लेख हमारे वैदिक ग्रंथों में भी मिलता है।
0.5
3,204.375231
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%B8
घास
घास एक एकबीजपत्री हरा पौधा है। इसके प्रत्येक गाँठ से रेखीय पत्तियाँ निकलती हुई दिखाई देती हैं। साधारणतः यह कमजोर, शाखायुक्त, रेंगनेवाला पौधा है। बाँस, मक्का तथा धान के पौधे भी घास ही हैं।
0.5
3,193.087718
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%B8
घास
घास शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। साधारणतया घासों में वे सब वनस्पतियाँ सम्मिलित की जाती हैं जो गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि पालतू पशुओं के चारे के रूप में काम आती हैं, परन्तु आधुनिक युग में वानस्पतिक वर्गीकरण के अनुसार केवल घास कुल (ग्रेमिनी कुल, Gramineae family) के पौधे ही इसके अंतर्गत माने जाते हैं। लगभग दो लाख फूलने और फलने वाले पौधों में से पाँच हजार इस कुल के अंतर्गत आते हैं। चरागाह एवं खेल के मैदान ऐसे स्थानों में होने वाले पौधे, जैसे हाथी घास (नेपियर ग्रास, Napier grass), सूडान घास, दूब आदि को तो घास कहते ही हैं हमारे भोजन के अधिकांश अनाज, जैसे गेहूँ, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा आदि भी घास कुल में ही परिगणित हैं। इनके अतिरिक्त ईख, बाँस आदि भी इसी कुल में सम्मिलित हैं।
0.5
3,193.087718
20231101.hi_56728_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%B8
घास
घासों के आकार एवं ऊँचाई में भिन्नता होती है। कुछ पौधे केवल कुछ इंच लंबे हाते हैं, जैसे खेल के मैदान एवं लान (lawn) की घासें; कुछ मध्यम वर्ग के होते हैं, जैसे गेहूँ, मक्का आदि तथा कुछ बहुत ही ऊँचे होते हैं, जैसे ईख, बाँस आदि। कुछ प्रकार के पौधों में फूल अलग-अलग तथा कुछ में गुच्छों में होते हैं। अनाजवाले पौधे अधिकतर वार्षिक होते है, किंतु बाँस, काँस आदि ३०-४० वर्ष, या इससे भी अधिक, जीवित रहते हैं। कुछ घासें पानी में उगती हैं या प्राय: नदी,तालाब और समुद्र के किनारे पाई जाती हैं। इसके विपरीत कुछ प्रकार की घासें केवल कम वर्षावाले स्थानों तथा मरुस्थलों में ही जीवित रहती हैं।
0.5
3,193.087718
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%B8
घास
घासों की जड़ें प्राय: रेशेदार होती हैं। तने ठोस तथा संधियुक्त होते हैं। संधियों के बीच के भागों को पोर या पोरी (internodes) कहते हैं। पत्तियाँ नुकीली और तने के जोड़ों पर एक के बाद दूसरी ओर मुड़ी रहती हैं। पत्तियाँ सदैव समांतरमुखी (parallel viewed) होती हैं। और दो स्पष्ट भागों, मुतान (sheath) एवं फलक (blade), में विभाजित होती हैं। पत्तियाँ तने के जोड़ से निकलती हैं और मुतान पोरी को घेरे रहती हैं। मुतान में फलक के मूल के कुछ ऊपर से विशेष प्रकार के अस्तर (linings) निकलते हैं। इन्हें छोटी जीभ (Little tongue) कहते हैं। कुछ घासों की पत्तियों के नीचे फलक के मूल पर एक विशेष प्रकार के वृद्धि उपांग (growth appendages) होते हैं, जिन्हें कर्णाभ (Auricles) कहते हैं। इस प्रकार घास की पत्तियों की बनावट विशेष प्रकार की होती है तथा पत्तियों द्वारा ही इस कुल के पौधों को पहचाना जाता है। कुछ घासों में नीचे की ओर की कुछ पोरियाँ कुछ अधिक लंबी और उपवर्तुल (Subglobular) होकर पौधे के लिये भोजन तत्व इकट्ठा करने का स्थान बना लेती हैं। इस पकार के पौधे कंदीय (bulbus) कहलाते हैं।
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घास
जिस प्रकार पत्ती की बनावट से ग्रैमिनी कुल के पौधे पहचाने जाते हैं उसी प्रकार फूलों और बीजों द्वारा जातियाँ पहचानी जा सकती हैं। फूलों के गुच्छे विभिन्न प्रकार के होते हैं। फूल अकेले या समूह में फूल देनेवाली अनुशूकियों (spikelets) पर लगे होते हैं।
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घास
पुंकेसर (stamens) और स्त्रीकेसर (pistils) प्राय: साथ-साथ होते हैं, किंतु मक्का जैसे पौधों में अलग-अलग भी होते हैं। फूल के अतिरिक्त अनुशूकी में दो या अधिक निपत्र (bracts) होते हैं, जिन्हे तुषनिपत्र ( glumes) कहते हैं। इनमें फूलों के नीचेवाले तुषनिपत्र को बाह्य पुष्पकवच (लेमा, Lemmas) और उनके ऊपरवालों को अंत: पुष्पकवच (पेलिया, palea) कहते हैं। कभी कभी बाह्य पुष्पकवच में नुकीली तथा काँटे की तरह वृद्धि होती है, जिसे सीकुर (Awn) कहते हैं, जैसे गेहूँ, जौ इत्यादि में। फूलों में आकर्षित करनेवाला कोई रंग या सुंगध नहीं होती। परागण प्राय: हवा द्वारा होता है। कुछ फूलों में स्वयं परागण (self pollination) भी होता है। कैलिक्स (calyx) और पँखड़ियों (petals) के स्थान पर दो या तीन पतले पारभासक शल्क होते हैं, जिन्हें परिपुष्पक (Lodicules) कहते हैं। जब फूलों के खिलने का समय आता है तब परिपुष्पक एक प्रकर के रस से भर जाते हैं और बाह्मपुष्पकवच तथा अंत:पुष्पकवच पर दबाव पड़ता है, जिससे फूल खिल जाते हैं। इस अवस्था में वायु द्वारा परागण होता है।
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घास
सभी पौधों का फल एक बीज वाला होता है, जिसमें बीजावरण (seed coat), या बीजकवच (Testa), फलकवच (fruit coat) फलावरण (pericarp) से चिपका रहता है। घासों के बीज बहुत छोटे होते हैं तथा बहुत अधिक मात्रा में पैदा होते हैं। ये बहुत दिनों तक जीवित रह सकते हैं और विभिन्न प्रकार की जलवायु और मिट्टी में उगाए जा सते हैं। बीजों का विकिरण (dispersal) उनकी बनवाट के अनुसार विभिन्न प्रकार से होता है, परंतु मुख्य रूप से हवा, पानी मनुष्यों और पशुओं द्वारा होता है।
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घास
मिट्टी और उसपर उगनेवाली वनस्पति में परस्पर बहुत घनिष्ठ संबंध होता है। संसार की कुछ प्रकार की मिट्टियाँ घासों के प्रकार और उपज से विशेष रूप से संबंधित हैं। जिन प्रदेशों में बड़ी-बड़ी घासें उगती हैं, वहाँ की मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। बहुत अधिक घास उपजाने वाले स्थलों (grass lands) को प्राय: ब्रेड बास्केट्स (Bread Baskets) कहा जाता है। उदाहरण के लिये संयुक्त राज्य अमरीका, तथा कनाडा के प्रेरिज (prairies), अर्जेंटाइना के पंपाज (pampas), आस्ट्रेलिया की ग्रेन बेल्ट (Grain belt) और यूरेशिया में स्टेप्स के बहुत से भाग, विशेषकर यूक्रेन प्रदेश में स्थित भाग आजकल संसार के मुख्य मुख्य ब्रेड बास्केट्स हैं।
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घास
कुछ प्रकार की घासें, जिनमें प्रसारण (propagation), विरोहक (stolon) तथा प्रकंद (rhizone) से होता है, कम वर्षा वाले प्रदेशों में बहुत उगती हैं। इनमें दूब प्रधान घास है। इसे धर्मग्रंथों में राष्ट्ररक्षक (Preserver of nations) एवं 'भारत की ढाल' (Shield of India) कहा गया है। मिट्टी के भीतर इन घासों की जड़ों का घना जाल रहता है, जिससे वर्षाजल से मिट्टी का कटाव या बहाव कम होता है। भूमि के ऊपर घनी पत्तियाँ होने से वायु द्वारा मिट्टी का कटाव नहीं होता। हवा और पानी से कटाव रोककर भूमिसंरक्षण करने में घासें बड़ी सहायक होती हैं।
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वेनेज़ुएला
वेनेज़ुएला सरकार 1999 में बनाए गए संविधान के अनुसार चलाई जाती है और सभी बाधाओं के बावजुद सफलतापूर्वक कार्यरत है। सरकार 5 साल की अवधि के लिए निर्वाचित होती है। राष्ट्रपति वेनेजुएला गणराज्य का प्रमुख होता हैं जो उसका कार्यकाल पांच साल की अवधि का होता है।
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वेनेज़ुएला
अन्य लोकतांत्रिक देशों की तरह, वेनेजुएला सरकार के तीन घटक हैं- विधायिका, कार्यकारी और न्यायपालिका। वेनेजुएला देश, 23 राज्य, 11 द्वीप समूह और एक संघीय जिले से मिलकर बना है। वेनेजुएला विधायिका द्विसदनी है जिसमें चैंबर ऑफ डेप्युटीज और सीनेट शामिल है। देश के विधायिका का हिस्सा बनने के लिए इसके सदस्यों को उम्र 30 होना चाहिए और वेनेज़ुएला स्थाई निवासी होना चाहिए। चयन करने के लिए मतपत्र प्रणाली का उपयोग किया जाता है। वेनजुएला में मतदान की आयु अठारह वर्ष और उससे अधिक है, मतदान अनिवार्य नहीं है। राष्ट्रपति कार्यकारी का नेता होता है और राज्य का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रपति को वेनेजुएला का स्थाई निवासी होना चाहिए और तीस साल से कम नहीं होना चाहिए। वह पांच साल की अवधि के लिए कार्य करता है और इसे दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुना जा सकता है। न्यायपालिका विधायिका के साथ समान स्थिति साझा नहीं करती है। वेनेज़ुएला में कोई राष्ट्रीय या राज्य अदालत नहीं है।
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वेनेज़ुएला
वेनेज़ुएला को 23 प्रांतो (एस्टाडोस), एक राजधानी जिला (डिस्ट्रिटो राजधानी), जो कराकास शहर से संबंधित है, और संघीय निर्भरता (डेपेन्डेनियास फेडेरलेस, एक विशेष क्षेत्र) में विभाजित किया गया है।
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वेनेज़ुएला
1980 के दशक से वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था दक्षिण अमेरिका में सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में से एक थी। देश के अर्थव्यवस्था के एक बड़ा हिस्सा तेल पर आधारित है। पेट्रोलियम क्षेत्र, अर्थव्यवस्था पर बहुत हावी है यह सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक तिहाई हिस्सा, निर्यात आय के लगभग 80% और सरकारी परिचालन राजस्व का आधे से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है। देश संयुक्त राज्य अमेरिका को तेल का सबसे बड़ा विदेशी आपूर्तिकर्ता है। 2002 और 2003 के अंत में उच्च तेल की कीमतों के बावजूद, घरेलू राजनीतिक अस्थिरता, दिसंबर 2002 से फरवरी 2003 तक एक विनाशकारी दो महीने की राष्ट्रीय तेल हड़ताल हुई, जिसके कारण अस्थायी रूप से आर्थिक गतिविधि रूक गई।
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वेनेज़ुएला
वेनेज़ुएला के लगभग 13% लोग कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। मुख्य फसलें मकई, ज्वार, गन्ना, चावल, केला, सब्जियां और कॉफी हैं। पशुपालन और मछली पालन भी व्यापक रूप से किया जाता है। देश की राजमार्ग प्रणाली काफी हद तक विकसित है, लेकिन सामान अभी भी मुख्य रूप से जहाज द्वारा ले जाया जाता है। मुख्य व्यापार भागीदार संयुक्त राज्य अमेरिका, कोलंबिया और ब्राजील के साथ हैं। अन्य निर्यात में बॉक्साइट, एल्यूमीनियम, स्टील, रसायन, लौह अयस्क, कोको, कॉफी, चावल, और सूती कपड़े हैं। आयात में कच्चे माल, मशीनरी, परिवहन उपकरण, और निर्माण सामग्री शामिल हैं।
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वेनेज़ुएला
सरकार ने तेल राजस्व का उपयोग विनिर्माण उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए करता है। यह अपनी नदियों का उपयोग जलविद्युत शक्ति बनाने के लिये करता है। जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गरीबी में रहता है लेकिन 1980 के दशक के अंत में तेल में आई उछाल के खत्म होने के बाद, 2003 में वेनेज़ुएला में गरीबों की संख्या नाटकीय रूप से 28% से बढ़कर 68% दर्ज की गई। देश के कई शहर मलिन झोपड़ कस्बों के रूप में हैं, और ग्रामीण इलाकों में अभी भी कई लोग पट्टेदार किसान हैं। 2018 में मुद्रास्फीति दर बढ़कर 1,000,000 प्रतिशत हो चुका है।
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वेनेज़ुएला
दक्षिण अमेरिका में, वेनेज़ुएलाई लोगों को उनके मजेदार और आसान चरित्र के लिए जाना जाता है। उनमें से ज्यादातर संयुक्त अफ्रीकी, यूरोपीय और भारतीय जड़ों से आते हैं। रोमन कैथोलिक देश का प्रमुख धर्म है और आधिकारिक भाषा स्पेनिश है। वेनेज़ुएला में व्यंजन आमतौर पर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होता है। पैबेलॉन क्रियोलोल देश का राष्ट्रीय पकवान माना जाता है। आमतौर पर अन्य खाद्य पदार्थों में मुख्य व्यंजन, ब्रेड, स्नैक्स, डेसर्ट, पेय पदार्थ, केक, चीज और अन्य शामिल होते हैं।
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