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20231101.hi_98438_1
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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गौर
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यह बोविडी कुल (Bavidae Family) के शफ गण (Order Ungulate) का एक जंगली स्तनपोषी शाकाहारी पशु है। गवल भारत प्रायद्वीप, असम, बर्मा, मलाया प्रायद्वीप तथा स्याम के पहाड़ी वनों में पाया जाता है। इसका सर्वोत्तम विकास दक्षिण भारतीय पहाड़ियों तथा असम में होता है। किसी समय यह प्राणी श्रीलंका में भी प्राप्य था, किंतु अब वहां से, संभवत: किसी पशुरोग के ही कारण लुप्त हो गया है।
| 0.5 | 1,677.47645 |
20231101.hi_98438_2
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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गौर
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यूरोपीय शिकारी गौर को 'बाइसन' (Bison / एक प्रकार का जंगली भैंसा) कहते हैं, परंतु भारतीय गवल को बाइसन कहना ठीक प्रतीत नहीं होता। वस्तुत: यूरोप तथा उत्तरी अमरीका के बाइसन भारतीय गवल से भिन्न होते हैं। पाश्चात्य बाइसनों की सीगें छोटी और रूक्ष दाढ़ियाँ हाती हैं।
| 0.5 | 1,677.47645 |
20231101.hi_98438_3
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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गौर
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गबल का सिर बड़ा, शरीर मांसल तथा गठीला और भुजाएँ पुष्ट होती हैं। यह आकृति से ही ओजस्वी और बलवान् प्रतीत होता है। कुछ नरों की कंधे तक की ऊँचाई 6 फुट तक होती है, पर इसकी सामान्य औसत ऊँचाई 5 फुट से लेकर 5 फुट 10 इंच तक होती है। मादा पाँच फुट से ज्यादा ऊँची नहीं होती। लंबाई में नर लगभग नौ फुट के और मादा सातफुट तक की होती हैं, इसकी सींगें अंग्रेजी के अक्षर सी (C) की आकृति की और लंबाई में 27 से 30 इंच तक की होती हैं। नर तथा मादा दोनों को सींगें होती हैं, किंतु मादा की सींगें अपेक्षाकृत छोटी निर्बल, बेलनाकार और नुकीली होती हैं। गवल के स्कंध पर मांसल पुट्ठा होता है, जो पीठ की ओर क्रमश: ढालुआ होता हुआ एकाएक समाप्त हो जाता है। दुम ठेहुने तक लंबी होती है।
| 0.5 | 1,677.47645 |
20231101.hi_98438_4
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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गौर
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गवल का रंग बचपन से वृद्धावस्था तक एक समान नहीं रहता, बल्कि बदलता रहता है। नवजात शिशु का रंग हल्का सुनहला पीला होता है। अल्प काल के उपरांत यह रंग हल्का पीला हो जाता है। पुन: कुछ कालोपरांत यह भूरा हो जाता है। वयस्क नर या मादा का रंग काफी जैसा, अर्थात् ललाई लिए भूरा होता है। प्रौढ़ावस्था में यह रंग बदल कर काजल जैसा काला तथा शरीर निर्लोम हो जाता है। कपाल का रंग खाकी तथा पीलापन लिए और आँखों का रंग भूरा होता है। कुछ का रंग हलका होता है और प्रतिबिंब के कारण नीला प्रतित होता है। पैरों का रंग घुटने के कुछ ऊपर से लेकर नीचे खुर तक श्वेत होता है।
| 0.5 | 1,677.47645 |
20231101.hi_98438_5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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गौर
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गवल पहाड़ी पशु है। यह मुख्यत: विस्तृत जंगलों में ही रहता है। कतिपय ऋतुओं में गवल चारागाह की टोह में निम्न सतह पर भी उतर आता है। गवल के चरने का समय प्रात: 9 बजे या कुछ उपरांत तक और पुन: मध्याह्नोत्तर होता है। यदि मौसम शीतल और आकाश मेघाच्छन्न रहा तो दोपहर में भी यह चरता रहता है। ग्रीष्म ऋतु में दोपहर को यह वन के किसी शांत एवं छायादार स्थान में विश्राम करता है। इसका मुख्य आहार घास पात तथा बाँस के नरम कल्ले हैं। पेड़ों की पत्तियों और कोमल छाल से भी इसे रुचि है।
| 1 | 1,677.47645 |
20231101.hi_98438_6
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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गौर
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साधारणत: गवल परिवार में आठ या इस सदस्य होते हैं। ये सदस्य एक गरोह में रहा करते हैं। मैथुन ऋतु के अतिरिक्त अन्य समय में सभी आयु के नर तथा मादा मिल जुलकर हेलमेल के साथ रहते हैं। वयस्क हो जाने पर नर समूह से निकलकर अकेले, अथवा अन्य नरों के साथ, आहार की खोज में निकल पड़ता है। साधारणतया ये परित्यक्त गवल गिरोह से अधिक दूर नहीं जाते। मैथुन ऋतु में समस्त नर पुन: समूह में आकर मिल जाते हैं।
| 0.5 | 1,677.47645 |
20231101.hi_98438_7
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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गौर
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मैथुन ऋतु में वयस्क नर गवलों का पारस्परिक सद्भाव और सहिष्णुता मिट जाती है और मादा पर आधिपत्य स्थापना के लिए स्पर्धा एवं द्वंद्वयुद्ध होने लगता है। इस स्पर्धा में जो नर विजयी होता है वह समूह के समस्त वयस्क मादा गवलों का एकमात्र स्वामी हो जाता है। वह अन्य वयस्क नरों को गिरोह से मार भगाता है और अपनी प्रेयसियों के साथ किसी क्षेत्रविशेष में चरने के लिये उपनिवेश सा बना लेता है। मैथुन ऋतु की समाप्ति पर नर गवल अपनी पत्नियों का परित्याग कर अकेला जीवनयापन करने लगता है। नर का एकाकी अथवा अन्य नरों के साथ जीवनयापन आगामी मैथुन ऋतु तक चलता रहता है। मैथुन ऋतु के आगमन पर वह मादा आधिपत्य प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये पुन: उन्मत्त हो जाता है और समूह में आ मिलता है। मैथुन करते समय नर एक प्रकार की सीटी अथवा बाँसुरी जैसी विचित्र ध्वनि करता है, जो इस जानवर के डीलडौल को देखते हुए बहुत हास्यास्पद मालूम होती है। मैथुन शक्ति क्षीण हो जाने पर वृद्ध नर सर्वदा के लिये एकाकी जीवन व्यतीत करने लगता है।
| 0.5 | 1,677.47645 |
20231101.hi_98438_8
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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गौर
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मादा गवल किसी एकांत स्थान में बच्चा जनती है। 9-10 महीनों पर यह एक या दो बच्चे जनती है। नवजात शिशु उत्पन्न होने के कुछ ही क्षण के उपरांत उछलने कूदने लगता है। साधारणतया प्रसूता गवल शिशु के समीप ही रहती है और शिशु के बड़े हो जाने पर समूह में सम्मिलित हो जाती है। किंतु किसी प्रकार के अनिष्ट की आशंका होने पर वह शिशु को त्यागकर समूह में मिल जाती है। मैथुन ऋतु के अतिरिक्त नर मादा से पृथक् ही रहता है और संतान पालन तथा समूह का नेतृत्व मादा ही करती है।
| 0.5 | 1,677.47645 |
20231101.hi_98438_9
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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गौर
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मध्य प्रदेश में गवल का मैथुनकाल दिसंबर, जनवरी होता है और संतानोत्पत्ति वर्षाऋतु के उपरांत सितंबर में होती है। कर्नाटक में भी गवलों का यही ऋतुकाल है, यद्यपि दिसंबर मास तक संतानोत्पत्ति होती रहती है।
| 0.5 | 1,677.47645 |
20231101.hi_71456_0
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80
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इडली
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इडली का स्रोत भारत देश- सूजी की इडली रेसिपी को पूरे भारत में ही नहीं बल्कि हर जगह पसंद किया जाता है।
| 0.5 | 1,675.449217 |
20231101.hi_71456_1
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80
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इडली
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इडली एक पूर्वी और दक्षिण भारतीय व्यंजन है। यह श्वेत रंग की कोमल और गुदगुदी, २-३ इंच के व्यास की होती है। यह चावल और उड़द की धुली दाल भिगो कर पीसे हुए, किण्वनित करके बनाये हुए घोल से भाप में पकाई जाती है। किण्वन उठने के कारण बड़े स्टार्च अणु छोटे अणुओं में टूट जाते हैं, व पाचन क्रिया को सरल बनाते हैं।
| 0.5 | 1,675.449217 |
20231101.hi_71456_2
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80
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इडली
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इडली का दक्षिण भारतीय खानपान में लम्बा इतिहास है। इसका उल्लेख शिवकोटि आचार्य के कन्नड़ प्रलेख में ९२० में मिलता है, और पता चलता है, कि यह व्यञ्जन केवल उड़द दाल के पिसे घोल के किण्वन से ही बनता था। चवुंदराय-द्वितीय, प्राचीनतम कन्नड़ विश्वकोष लोकोप्कार के रचयिता सं.१०२५ में वर्णन करते हैं: इडली बनाने की विधि। काली उड़द दाल को छाछ में भिगोने के उपरान्त, महीन पीस लें और उसमें दही का स्वच्छ पानी और मिला लें। फिर उसे भाप में पका लें। कन्नड़ राजा एवं ज्ञानी सोमेश्वर तृतीय वर्तमान कर्नाटक में राज्य करता था। उसने भी अपने बनाए विश्वकोष में इडली को स्थान दिया है। यह कोष उसने मानसोल्लास नाम से ११३० ई० में बनाया था। इसमें चावल को मिलाने का कोई ज्ञात इतिहास सत्रहवीं शताब्दी तक नहीं मिलता है। फिर खोजा गया होगा, कि चावल मिलाने से किण्वन की प्रक्रिया गति पकड़ती है। पर तब के बताए कुछ समाग्री अंश परिवर्त गए हैं, फिर भी पाक विधि वही है।.
| 0.5 | 1,675.449217 |
20231101.hi_71456_3
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80
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इडली
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दाल चावल की इडली बनाने के लिये, दाल चावल को भिगो कर पीस कर मिश्रण तैयार करना होगा और उस मिश्रण को फरमैन्ट भी करना होगा, इडली अच्छी तरह से स्पंजी तभी बनेगी जब मिश्रण अच्छी तरह से फरमैन्ट हुआ होगा, इसलिये सबसे पहले मिश्रण तैयार करना होगा। अगर रविवार को इडली बनाना चाहते हैं, तब गरम प्रदेश में रहने वालों को शनिवार की सुबह ही दाल भिगो देनी चाहिये होगी, लेकिन ठंडे प्रदेश में रहने वालों को शुक्रवार की सुबह ही दाल भिगो देनी पड़ेगी, क्यों कि ठंड में फरमैन्टेशन देर से होता है।
| 0.5 | 1,675.449217 |
20231101.hi_71456_4
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80
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इडली
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उरद की दाल और चावल को साफ कीजिये, धोइये और अलग अलग 4 घंटे या रात भर के लिये पानी में भिगो दीजिये. उरद दाल से अतिरिक्त पानी निकाल दीजिये और कम पानी का प्रयोग करते हुए एक दम बारीक पीस लीजिये, चावल से भी अतिरिक्त पानी निकाल दीजिये और कम पानी का प्रयोग करते हुए थोड़ा सा मोटा पीसिये, दोनौं को मिलाइये तथा इतना गाढ़ा घोल तैयार कीजिये कि चमचे से गिराने पर एक दम धार के रूप में नहीं गिरना चाहिये.
| 1 | 1,675.449217 |
20231101.hi_71456_5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80
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इडली
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मिश्रण को किण्वित (फरमैन्ट) करने के लिये स्वादानुसार नमक ओर बेकिंग सोडा डालकर, ढककर गरम जगह पर 12-14 घंटे के लिये रख दीजिये, फरमेन्ट किया हुआ मिश्रण पहले की अपेक्षा दोगुना हो जाता है। इडली बनाने के लिये मिश्रण तैयार है।
| 0.5 | 1,675.449217 |
20231101.hi_71456_6
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80
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इडली
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मिश्रण को चमचे से चलाइये, यदि बहुत अधिक गाढ़ा लग रहा है तो थोड़ा पानी मिला लीजिये. यदि आपके पास इडली बनाने का परम्परिक बर्तन है तो बहुत ही अच्छा है।. नहीं तो आप इडली मेकर और प्रेशर कुकर मैं भी इडली बना सकते हैं। मैं भी इडली प्रेशर कुकर में ही बनाती हूं.
| 0.5 | 1,675.449217 |
20231101.hi_71456_7
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80
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इडली
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प्रेशर कुकर में 2 छोटे गिलास पानी (500 ग्राम पानी) डालकर गरम करने के लिये गैस पर रखिये. इडली स्टैन्ड निकालिये साफ कीजिये, इडली के खानों में तेल लगाकर चिकना कीजिये. चमचे से इडली स्टैन्ड के खानों में बराबर बराबर मिश्रण भरिये, सारे खाने भर कर इन्हैं इडली स्टैन्ड में लगा लीजिये. इडली पकने के लिये स्टैन्ड को कुकर में रखिये. कुकर का ढक्कन बन्द कर दीजिये, ढक्कन के ऊपर सीटी मत लगाइये.
| 0.5 | 1,675.449217 |
20231101.hi_71456_8
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80
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इडली
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तेज गैस फ्लेम पर 9-10 मिनिट तक इडली पकने दीजिये. गैस बन्द कर दीजिये इडलियां पक गयीं हैं। प्रेशर कुकर खोलिये, इडली स्टैन्ड निकालिये, खांचे अलग कीजिये, ठंडा कीजिये और चाकू की सहायता से इडली निकाल कर प्लेट में लगाइये. लीजिये इडलियां तैयार हैं,
| 0.5 | 1,675.449217 |
20231101.hi_102164_7
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शब-ए-बारात
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इस मामले में यह ईसाई द्वारा हेलोवीन समारोह करने में मुख्य प्रस्तावों के समान ही है। अध्ययन में कहा गया है कि फारसी शब्द ब्रैट (ब्राइट) अरबी शब्द बारात से अलग है।
| 0.5 | 1,662.331976 |
20231101.hi_102164_8
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शब-ए-बारात
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अल-बिरूनी (973 - 1050 के बाद) ने "चंद्रमाह के 12 से 15 तक एक त्योहार के बारे में लिखा था कि अरबी में अल बैज़ का अर्थ उज्ज्वल है, और बरात को अल सीके अर्थ चेक भी कहा जाता है।" कुछ ईरानी शहरों में, लोग कब्रिस्तानों में इकट्ठा होकर, पुराने फारस में पेगनम हरमाला (जंगली रुए) - एक पवित्र पौधे को जलाकर - कब्रों के एक कोने में आग लगाकर, और आग पर कुछ नमक डालते हुए इस त्योहार को मनाते हैं। कविता कह रही है: "पेगानम हरमाला कड़वा होता है और नमक नमकीन होता है इसलिए दुश्मन की ईर्ष्यालु आंख अंधी हो जाती है।"
| 0.5 | 1,662.331976 |
20231101.hi_102164_9
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC-%E0%A4%8F-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4
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शब-ए-बारात
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मुसलमान मध्य-शाबान को पूजा और मोक्ष की रात के रूप में मानते हैं। इमाम शाफ़ी, इमाम नवावी, इमाम ग़ज़ाली और इमाम सुयुति जैसे विद्वानों ने मध्य शाबान की रात में प्रार्थना को स्वीकार्य घोषित किया है।
| 0.5 | 1,662.331976 |
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शब-ए-बारात
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अपने मजमू '[परिभाषा की आवश्यकता] में, इमाम नवावी ने इमाम अल-शफी' की किताब अल-उम्म को उद्धृत किया कि पांच रातें हैं जब दुआ (प्रार्थना) का उत्तर दिया जाता है, उनमें से एक शाबान की 15 वीं रात है।
| 0.5 | 1,662.331976 |
20231101.hi_102164_11
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शब-ए-बारात
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शब-ए-बारात दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है। मुसलमानों का मानना है कि शब-ए-बारात की रात, भगवान सभी पुरुषों और महिलाओं के अतीत में किए गए कार्यों को ध्यान में रखते हुए आने वाले वर्ष के लिए भाग्य लिखते हैं। यह सुन्नी मुसलमानों के लिए उच्च मूल्य का है, [8] और इस्लामी कैलेंडर पर सबसे पवित्र रातों में से एक माना जाता है। and is regarded as one of the holiest nights on the Islamic calendar.
| 1 | 1,662.331976 |
20231101.hi_102164_12
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शब-ए-बारात
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मृतकों के लिए प्रार्थना करना और मृतकों के लिए ईश्वर से क्षमा माँगना उन सभी शहरों में एक सामान्य समारोह है जो बरात समारोह आयोजित करते हैं। एक हदीस परंपरा के अनुसार, मुहम्मद इस रात बाकी के कब्रिस्तान में गए, जहां उन्होंने वहां दफन मुसलमानों के लिए प्रार्थना की। इस आधार पर, कुछ मौलवियों ने इस रात को मुसलमानों के कब्रिस्तान में कुरान का पाठ करने और मृतकों के लिए प्रार्थना करने की सलाह दी।
| 0.5 | 1,662.331976 |
20231101.hi_102164_13
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC-%E0%A4%8F-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4
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शब-ए-बारात
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कुछ सुन्नी इस्लाम परंपराओं के अनुसार, इस रात को शब-ए-बारात कहा जाता है (अनुवाद। "आजादी की रात") क्योंकि अल्लाह उन लोगों को मुक्त करता है,जिनको नर्क की सजा दी गई थी।
| 0.5 | 1,662.331976 |
20231101.hi_102164_14
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शब-ए-बारात
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यह अवसर पूरे दक्षिण और मध्य एशिया में मनाया जाता है। अरब दुनिया में, त्योहार सूफी और शिया मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है। सलाफी अरब इस छुट्टी को नहीं मनाते हैं।
| 0.5 | 1,662.331976 |
20231101.hi_102164_15
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC-%E0%A4%8F-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4
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शब-ए-बारात
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खुरासान में बारात उत्सव, विशेष रूप से ग्रेटर खुरासान क्षेत्र, कुर्दिस्तान और ईरान के कुछ हिस्सों में, मृतकों की आत्मा का सम्मान करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। हर क्षेत्र में लोगों के अपने रीति-रिवाज होते हैं, लेकिन खजूर (हलवा) और खजूर से मिठाई और कैंडी तैयार करना आम परंपरा है। सूर्यास्त से पहले समूह कब्रों को साफ करने के लिए कब्रिस्तानों में इकट्ठा होते हैं ताकि मृतकों के खाने, प्रार्थना करने और रोशनी (चेराग) चालू करने के लिए मोमबत्तियां जलाने के लिए कब्रों पर मिठाई और कैंडी पॉट का प्रसाद रखा जा सके। कुछ ईरानी शहरों में, इस त्योहार को मनाने के लिए लोग कब्रों के एक कोने में पेगनम हरमाला या हाओमा (जंगली रूई) जलाने के लिए कब्रिस्तान में इकट्ठा होते हैं और आग पर कुछ नमक डालते हैं, और एक कविता पढ़ते हैं: पेगनम हरमाला कड़वा होता है और नमक खारा होता है इसलिए दुश्मन की ईर्ष्यालु आंख अंधी हो जाए। ईरान में बारात का त्यौहार दो अलग-अलग समारोहों में मनाया जाता है। हाल ही की सदी में 15वें दिन, जो राष्ट्रीय अवकाश है, शियाओं के अंतिम इमाम इमाम अल महदी की जन्मतिथि मनाने के लिए शहर की सभी सड़कों पर रोशनी की जाती है। लेकिन शब बारात त्योहार का एक लंबा इतिहास रहा है।"
| 0.5 | 1,662.331976 |
20231101.hi_217631_29
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%BE
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धोखा
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व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी धोखे के कार्यप्रणाली संबंधी इस्तेमाल पर आपत्तियां हैं। ओर्टमैन और हर्टविग (1998) ने माना कि "धोखा व्यक्तिगत प्रयोगशालाओं और पेशे की प्रतिष्ठा को जबर्दस्त ढंग से प्रभावित कर सकता है, इस प्रकार प्रतिभागी बावड़ी (समूह) को दूषित कर सकता है" पृ. 806). अगर प्रयोग में शामिल प्रतिभागी ही अनुसंधानकर्ता के बारे में संदिग्ध हो तो वे सामान्य तौर पर जिस तरह से व्यवहार करते हैं वैसा नहीं करेंगे और शोधकर्ता द्वारा किये जा रहे प्रयोग पर नियंत्रण की संभावना कम हो जाती है (पृ. 807).
| 0.5 | 1,660.277789 |
20231101.hi_217631_30
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%BE
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धोखा
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जो लोग धोखे के प्रयोग पर आपत्ति नहीं करते हैं वे ध्यान रखें कि "सामाजिक समस्याओं का हल करने के लिए अनुसंधान की जरूरत और अनुसंधान में भागीदार की गरिमा और अधिकारों के संरक्षण की जरूरत" के बीच संतुलन बनाये रखने के लिए निरंतर संघर्ष जारी है, क्रिस्टेन्सेन (Christensen, 1988, पृ.670). वे इसका भी ध्यान रखें कि कुछ मामलों में जानकारी हासिल करने का एकमात्र उपाय धोखा ही है औऱ यह कि अनुसंधान में धोखे पर प्रतिबंध लगाने से "शोधकर्ताओं को महत्वपूर्ण अध्ययन की एक विस्तृत श्रृंखला को करने से रोकने पर प्रबल परिणाम हो सकते हैं"(किम्मेल, 1998, पृ. 805).
| 0.5 | 1,660.277789 |
20231101.hi_217631_31
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%BE
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धोखा
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इसके अतिरिक्त, निष्कर्षों के आधार पर यह पता लगता है कि धोखे प्रतिभागियों के लिए हानिकारक नहीं है। क्रिस्टेन्सेन (1988) के साहित्य की समीक्षा में पाया गया कि "अनुसंधान प्रतिभागियों को यह अनुभव नहीं होता कि उन्हें नुकसान पहुंचाया जा रहा है या वे भ्रमित किये जाने का बुरा मानते हुए प्रतीत नहीं होते हैं" (पृ. 668). इसके अलावा, धोखे से जुड़े प्रयोगों में भाग लेने वालों के "बारे में रिपोर्ट है कि वे प्रयोग का लुत्फ उठाते हैं और उन्हें इससे शैक्षणिक लाभ मिलता है" जबकि गैर भ्रामक प्रयोगों में शामिल होने वालों के साथ ऐसा नहीं होता है (पृ. 668).
| 0.5 | 1,660.277789 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%BE
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धोखा
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अंत में, यह भी सुझाव दिया गया है कि धोखे के अध्ययन में इस्तेमाल किया गया अप्रिय तरीका या धोखे के प्रयोग से निकले अप्रिय परिणामों की वजह, शायद धोखे का इस्तेमाल करने वाले प्रयोगों का अंतर्निहित कारण हो सकता है जो इसके प्रणाली संबंधी उपयोग को अनैतिक मानता है, जबकि खुद धोखे से ऐसा न होता हो (ब्रॉडर, 1998, पृ. 806; क्रिस्टेन्सेन, 1988, पृ. 671).
| 0.5 | 1,660.277789 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%BE
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धोखा
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अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन - मनोवैज्ञानिकों और आचरण के कोड का नैतिक सिद्धांत. (2002). APA.org से 7 फ़रवरी 2008 को पुनःप्राप्त
| 1 | 1,660.277789 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%BE
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धोखा
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एसोसिएशन, ए.पी. (2003). नैतिकता: मनोवैज्ञानिकों और आचरण के कोड का नैतिक सिद्धांत. एपीए ऑनलाइन (APA Online) से 18 फ़रवरी 2008 को पुनःप्राप्त
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%BE
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धोखा
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बस्सेट, रॉडनी एल.. और बसिंगर, डेविड और लिवरमोर, पॉल. (दिसम्बर 1992). लाइंग इन डी लैबोरेट्री: मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक और उलेमाओं परिप्रेक्ष्य द्वारा मानव रिसर्च में धोका ASA3.org
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%BE
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धोखा
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बौमरिंड, डी. (1964). अनुसंधान की नैतिकता पर कुछ विचार: मिलग्रैम के "बिहैव्यरल स्टडी ऑफ़ ओबिडियंस" पढ़ने के बाद. अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, 19 (6), 421-423. साइकइन्फो (PsycINFO) डेटाबेस से 21 फ़रवरी 2008 को पुनःप्राप्त.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%BE
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धोखा
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ब्रोडर, ए. (1998). धोखा स्वीकार्य हो सकता है। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, 53 (7), 805-806. साइकइन्फो (PsycINFO) डेटाबेस से 22 फ़रवरी 2008 को पुनःप्राप्त.
| 0.5 | 1,660.277789 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8A%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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ऊतकविज्ञान
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उपर्युक्त विवरण से यह प्रकट होता है कि कोशिकाविज्ञान तथा ऊतकविज्ञान का एक साथ अध्ययन किया जाना चाहिए। चूँकि कोशिकाएँ अतिसूक्ष्म संरचनाएँ होती हैं, अत: हम ऊतक विज्ञान को सूक्ष्मशारीर (microscopic anatomy) का ही पर्याय मानकर ऊतिकी का अध्ययन करेंगे। चूँकि ऊतक कोशिकाओं द्वारा ही बने होते हैं, अत: ऊतिकी का अध्ययन हम कोशिकाओं के ही माध्यम से करेंगे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8A%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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ऊतकविज्ञान
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ऊतकों के सम्यक् अध्ययन के लिए यह आवश्यक है कि सूक्ष्मदर्शक यंत्र तक उन्हें लाने के पूर्व उनको विशेष पद्धतियों द्वारा उपचार (treatment) किया जाए। ऊतक का सूक्ष्म अध्ययन करने के लिए यह अनिवार्य है कि वह अति पतला हो। जीवित ऊतक के विभिन्न भागों में बहुत समानताएँ पाई जाती हैं। अत: उसका ठीक ठीक अध्ययन संभव नहीं होता। इन कठिनाइयों को दूर करने के लिए सर्वप्रथम ऊतक को 4 से 8 माइक्रॉन तक विच्छेदित कर लिया जाता है। इस कार्य के लिए 'माइक्रोटोम' यंत्र का प्रयोग किया जाता है। जीवित ऊतक का इतना सूक्ष्म विच्छेद तब तक संभव नहीं होता, जब तक वह कड़ा न हो। अत: ऊतक को कड़ा करने के लिए उसे विशेष प्रकार के रसायनों के घोल में स्थायीकृत (fix) किया जाता है। स्थायीकरण के उपरांत इस ऊतक को अलकोहलों के विभिन्न घोलों, अभिरंजकों (stains) तथा अन्य रसायनों में उपचार (treat) करके निर्जल कर लिया जाता है। अंत में इसे विशेष ताप पर पहले से ही गलाकर तैयार रखा जाता है, डाल दिया जाता है। कुछ समय बाद मोम के साथ ही ऊतक के टुकड़ों को चतुर्भुजाकार (rectangular) साँचे में डाल दिया जाता है। जब मोम जमकर कड़ा हो जाता है, तो उसके छोटे-छोटे टुकड़े काट लिए जाते हैं। अंत में इन टुकड़ों को माइक्रोटोम के विशेष भाग में जमाकर उसमें एक अति धारदार चाकू (razor) से विशेष मोटाई के अनेक सेक्शन काट लिए जाते हैं। इन सेक्शनों को काँच की पट्टियों पर रखकर अध्ययन के लिए रख लिया जाता है। काँच की पट्टियों को हीटिंग प्लेट पर रखकर उनका मोम गला लिया जाता है और ऊतक का सेक्शन काँच की पट्टी पर जम जाता है। इन सेक्शनों से लदी काँच की पट्टियों को विशेष रसायनों तथा अल्कोहल के घोलों में निर्जल कर लिया जाता है। फिर इसे डाइलीन या सेडार उड आयल में भिगो दिया जाता है। अब यह सेक्शन सूक्ष्म अध्ययन के लिए तैयार हो गया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8A%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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ऊतकविज्ञान
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इन सेक्शनों के सूक्ष्म अध्ययन के लिए भाँति-भाँति के माइक्रॉस्कोपों (जैसे, फ़ेज़ कन्ट्रास्ट, इलेक्ट्रॉन आदि) का प्रयोग किया जाता है। आजकल ऊतकों का अध्ययन करने के लिए इस प्रकार के माइक्रॉस्कोपों का अत्यधिक प्रयोग होने लगा है। इस सूक्ष्म अध्ययन के लिए ऊतिकीरसायन (histochemestry) और विकिरण स्वचित्रण (radioau ography) विधियों का प्रयोग किया जाने लगा है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8A%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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ऊतकविज्ञान
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ऊतिकीरसायन के अंतर्गत ऊतकों के विभिन्न भागों की रासायनिक संरचना का अध्ययन होता है। विकिरण स्वचित्रण विधि में जीवित जतु के विशेष ऊतक में विशेष प्रकार के रेडियोआइसोटोपों का प्रवेश कराया जाता है। इस प्रकार से उपचारीकृत ऊतकों को जंतुशरीर से बाहर निकालकर सेक्शन बना लिए जाते हैं। इन सेक्शनों को डार्क रूम में ले जाकर फोटोग्राफी के विशेष रसायनों द्वारा अनुलेपित कर लेते हैं, या फिल्म के नीचे रखकर मजबूती से बाँध देते हैं। कुछ समय बाद इन्हें अँधेरे कक्ष (dark room) से बाहर निकालकर स्थायीकृत कर लिया जाता है। तत्पश्चात् इन्हें प्रकाश में लाकर इनका अध्ययन किया जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8A%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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ऊतकविज्ञान
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ऊतकों का अध्ययन उनकी सूक्ष्म संरचना का ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाता है। अत: ऊतकी की संरचना का संक्षिप्त उल्लेख आवश्यक है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8A%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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ऊतकविज्ञान
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ऊतकों की इकाई कोशिका होती है। कोशिकाएँ सजीव होती हैं तथा वे सभी कार्य करती हैं, जिन्हें सजीव प्राणी करते हैं। इनका आकार अतिसूक्ष्म तथा आकृति गोलाकार, अंडाकार, स्तंभाकार, रोमकयुक्त, कशाभिकायुक्त, बहुभुजीय आदि प्रकार की होती है। ये जेली जैसी एक वस्तु द्वारा आवृत्त होती हैं। इस आवरण को कोशिकावरण (cell membrane) या कोशिका-झिल्ली कहते हैं। इसे कभी-कभी जीव-द्रव्य-कला (plasma membrane) भी कहा जाता है। इसके भीतर निम्नलिखित संरचनाएँ पाई जाती हैं:-
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8A%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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ऊतकविज्ञान
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मैट्रिक्स या आधात्री को इंटर्सेल्यूलर (intercellular) या ग्राउंड सब्स्टैंस (ground substance) भी कहा जाता है। जैसा नाम से ही स्पष्ट है, यह कोशिकाओं के मध्य भाग में स्थित होकर उन्हें परस्पर जोड़ने का कार्य करती है। ये सजीव तथा निर्जीव दोनों प्रकार की होती हैं। साधारणतया आधातृ संयोजक ऊतकों (connective tissues) में पाई जाती हैं। यह तंतु या रेशों द्वारा बनी होती है, जो तीन प्रकार के होते हैं : कॉलाजनी (collagenous), जालीदार (reticluar) तथा एलास्टिक (elastic)। यह सजातीय या समांगी (homogenous) पदार्थ होता है जो तरल अथवा जिलेटिन जैसी स्थित में रहता है। यह उपकला (epithelium), कोशिकाओं (capillaries) तथा छोटी-छोटी शिराओं (veins) के नीचे जमी रहती है। इसमें म्यूकोपोलीसैक्केराइड अम्ल (mucopolysaccharide acids) पाए जाते हैं। आधात्री कोमल (soft) तथा दृढ़ (firm) दोनों प्रकार की होती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8A%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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ऊतकविज्ञान
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ऊतकों में तरल पदार्थ भी होते हैं, जिनमें रक्त और लसीका (lymph) मुख्य हैं। ये दोनों आशयों (vesicles) अथवा नलिकाओं (tubules) से होकर प्रवाहित होते हैं। ऊतक तरल (tissue fluid) कोशिकाओं को तर रखता है। अधातु के ही कारण शरीर का स्वरूप (Form) बना रहता है। जंतु का शरीर वस्तुत: और कुछ नहीं, अपितु अंत: कोशिकीय पदार्थ अथवा आधातृ का महल मात्र है, जिसमें अनेक रंग रूप और आकार प्रकार की अरबों कोशिकाओं की ईटें चुनी होती हैं। ये कोशिकाएँ अपने उत्पादों का आदान प्रदान करती हुई अपना जीवन व्यतीत करती रहती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8A%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
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ऊतकविज्ञान
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ऊतक विज्ञान शरीर के अंगतंत्रों की भी सम्यक् जानकारी देता है। अंगतंत्रों की सरंचना, रासायनिक प्रकृति एवं कार्यविधियों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए ऊतक विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है।
| 0.5 | 1,646.909417 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80
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महागौरी
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इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी।' इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं।
| 0.5 | 1,643.100035 |
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महागौरी
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महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। यही महागौरी देवताओं की प्रार्थना पर हिमालय की श्रृंखला मे शाकंभरी के नाम से प्रकट हुई थी।
| 0.5 | 1,643.100035 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80
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महागौरी
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माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं। जिससे देवी के मन का आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।
| 0.5 | 1,643.100035 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80
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महागौरी
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एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”। महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं। एक अन्य कथा के अनुसार दुर्गम दानव के अत्याचारों से संतप्त जब देवता भगवती शाकंभरी की शरण मे आये तब माता ने त्रिलोकी को मुग्ध करने वाले महागौरी रूप का प्रादुर्भाव किया। यही माता महागौरी आसन लगाकर शिवालिक पर्वत के शिखर पर विराजमान हुई और शाकंभरी देवी के नाम से उक्त पर्वत पर उनका मंदिर बना हुआ है यह वही स्थान है जहां देवी शाकंभरी ने महागौरी का रूप धारण किया था।
| 0.5 | 1,643.100035 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80
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महागौरी
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अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी प्रत्येक दिन की तरह देवी की पंचोपचार सहित पूजा करते हैं।
| 1 | 1,643.100035 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80
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महागौरी
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माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।
| 0.5 | 1,643.100035 |
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महागौरी
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मां महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती है। इसकी उपासना से अर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इसके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए।
| 0.5 | 1,643.100035 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80
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महागौरी
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पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए।
| 0.5 | 1,643.100035 |
20231101.hi_47376_8
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80
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महागौरी
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अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
| 0.5 | 1,643.100035 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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तैलचित्रण
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तैलचित्रण चित्र के उस अंकनविधान का नाम है जिसमें तेल में मिलाए गए रंगों का प्रयोग होता है। 19वीं शती के पूर्व यूरोप में ही इसका प्रयोग अधिक हुआ, पूर्वी देशों में तैल माध्यम से उस काल में चित्रांकन का कोई उल्लेखनीय प्रमाण प्राप्त नहीं है।
| 0.5 | 1,625.61841 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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तैलचित्रण
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यद्यपि तेल की वार्निश बनाने का उल्लेख 8वीं सदी की "लूका की पांडुलिपि" में हुआ है तथापि रंगों के साथ इसके प्रयोग का उल्लेख 12वीं शती में सबसे पहले थियोफिलस, इराक्लियस और पीटर द सेंट आडेमार ने किया है। ये तीनों यूरोप में आल्प्स पर्वत के उत्तर के निवासी थे। इटली में भी इनके पूर्व बहुत पहले से तैलचित्रण होता था, ऐसा विश्वास किया जाता है, कहते हैं, फ्लोरेंस का विख्यात चित्रकार जियोतो (Giotto) (1276-1337) कभी कभी तैल माध्यम का प्रयोग करता था। ईस्टलेक का कथन है कि "जर्मनी, फ्रांस, इटली और इंग्लैंड में कम से कम 14वीं सदी में तैलचित्रण प्रचलित था।" पर तैल माध्यम का विकसित रूप 15वीं-16वीं सदी से दिखाई देने लगता है। किंतु यह धारणा भी प्रचलित है कि डच चित्रकार जान फान आयक (Jan Van Eyck) (मृत्यु 1441 ई) ने ही तैल माध्यम से चित्रांकन शुरू किया था।
| 0.5 | 1,625.61841 |
20231101.hi_186755_2
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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तैलचित्रण
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तैल माध्यम अन्य माध्यमों की अपेक्षा सरल होता है और पारदर्शी रंग इसमें सर्वाधिक पारदर्शी रहते हैं, अत: सुंदर लगते हैं। पानी का भी कोई असर तैल चित्रों पर फौरन नहीं होता। इसी कारण यह माध्यम इतना लोकप्रिय है।
| 0.5 | 1,625.61841 |
20231101.hi_186755_3
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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तैलचित्रण
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तैलचित्रण में आमतौर से अस्तर चढ़े कैनवास पर तेल में घोंटे गए गाढ़े चिपचिपे रंगों को बुरुश से लगाया जाता है। इसके लिये अधिकतर अलसी और पोस्त के तेल प्रयुक्त होते हैं। तेलों का चुनाव विभिन्न देशों में रुचि और आवश्यकता पर निर्भर करता है। पहले के चित्रकार आवश्यकतानुसा अपने रंगों को, काम शु डिग्री करने के पहले तैयार कर लेते थे पर प्राय: पिछले 100 वर्षों से जलीय रंगों (Water colours) की भाँति तैल के रंग भी ट्यूबों में उपलब्ध हैं। बीजों को बिना गर्म किए हुए निकाला हुआ अलसी का तेल धूप और हवा में शोधकर प्रयोग किया जाए तो उसमें रंग मैले नहीं दीखते और टिकते भी ज्यादा हैं। रंगों को पतला करने और शीघ्र सुखाने के लिये पहले अलसी या तारपीन का तेल मिलाते थे लेकिन आजकल चमकीले रंग पसंद नहीं किए जाते इसलिये अलसी का तेल न मिलाकर सिर्फ तारपीन के तेल या पेट्रोल मिलाते हैं।
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तैलचित्रण
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कैनवास सूती कपड़े का अथवा सन का बनाया जाता है। विभिन्न रुचियों और आवश्यकताओं के अनुसार उसकी सतह खुरदुरी अथवा सपाट रखी जाती है। कैनवास के अलावा गत्ते, कागज, काच, लकड़ी, ताँबे, जस्ते (Zinc) की चादरें और दीवार पर भी अस्तर (Ground) चढ़ाकर तैल माध्यम से चित्रांकन किया जाता है। प्लाइउड, हार्डबोर्ड, अलम्यूनियम और एस्बेस्टस आदि का प्रयोग भी अनेक चित्रकार कर रहे हैं, क्योंकि ये सुलभ और सस्ते होते हैं तथा बड़े आकार में मिल भी जाते हैं।
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तैलचित्रण
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अस्तर बनाने के लिये जिस चीज पर चित्र बनाना है उस पर सरेस का हलका लेप चढ़ाते हैं, सूख जाने पर, सफेद रंग, अलसी का तेल और वार्निश मिलाकर आवश्यकतानुसार दो तीन कोट लगाए जाते हैं। जमीन तैयार करने के विभिन्न कालों में और विभिन्न चित्रकारों के भिन्न भिन्न नुस्खे रहे हैं।
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तैलचित्रण
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कैनवास को एक चौखटे (Stretcher) पर ताना जाता है। आजकल कैनवास की विभिन्न किस्में बाजार में तैयार मिल जाती हैं। प्राचीन काल का कैनवास या अन्य वस्तुओं की जमीन का रंग कुछ कत्थई रंगत का होता था पर आजकल के चित्रकार सफेद रंग की जमीन पसंद करते हैं।
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तैलचित्रण
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सूअर के बाल के बने, लंबे हैंडल के, चपटे और गोल बुरुशों का चलन अधिक है पर कुछ चित्रकार सपाट और कोमल अंकन के लिये सैबल (एक प्रकार की लोमड़ी) के बालों से बने बुरुश पसंद करते हैं। रंगों को महोगनी की लकड़ी अथवा काच या चीनी मिट्टी की एक प्लेट (Pallette) पर छुरी से मिलाया जाता है। इन प्लेटों और छुरियों के विभिन्न नमूने होते हैं। प्राचीन काल में रंग सीपियों और प्यालों में भी रखे जाते थे।
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तैलचित्रण
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तैल चित्रों को अधिकतर "ईजल" (Easel) पर रखकर तथा खड़े रहकर बनाने की प्रथा है। यूरोप में तो अन्य चित्र भी खड़े होकर बनाए जाते हैं। पर इस माध्यम में विशेष रूप से खड़े रहकर काम करने में ही सुविधा रहती है क्योंकि आवश्यकतानुसार दूर जाकर भी बीच बीच में चित्रों को देखा जा सकता है और रंग भी शरीर पर नहीं लगते।
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अकेलापन
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अकेलापन बच्चे के जन्म के बाद (प्रसव बाद अवसाद द्वारा), शादी के बाद या किसी भी सामाजिक रूप से विघटनकारी घटना से जैसे अपने गृहनगर से विश्वविद्यालय परिसर या अपरिचित समुदाय या स्कूल को जाने से भी हो सकता है।
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अकेलापन
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से उत्पन्न हो सकता है जिनमें क्रोध या आक्रोश की भावनाएं शामिल हो सकती हैं या जिनमें प्यार दिया या लिया नहीं जा सकता.
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अकेलापन
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कम घनत्व वाली जनसंख्या के स्थानों जहां परस्परक्रिया के लिए लोग अपेक्षाकृत कम हों, के परिणामस्वरूप भी हो सकता है।
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अकेलापन
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एक जुड़वां अध्ययन से सबूत मिला है कि वयस्कों में अकेलेपन के मानक योग्य लगभग आधे अंतर का कारण आनुवंशिकी है जो पहले बच्चों में पाए गए आनुवांशिकता अनुमान के समान था।
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अकेलापन
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ये जीन पुरुषों और महिलाओं में एक समान तरीके से कार्य करते हैं। अध्ययन से वयस्क अकेलेपन में समान पर्यावरणात्मक योगदान नहीं मिला।
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अकेलापन
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अकेलापन सामाजिक अपर्याप्तता की भावनाओं का आह्वान कर सकता है। अकेला व्यक्ति मान सकता है कि उसमें ही कुछ गड़बड़ है और कि कोई उसकी स्थिति को नहीं समझता. इस तरह का व्यक्ति आत्मविश्वास खो देता है और सामाजिक अस्वीकृति के डर
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अकेलापन
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से बदलने की कोशिश या नई चीज़ें आज़माने का प्रयास करने का अनिच्छुक होगा। चरम मामलों में, एक व्यक्ति खालीपन की भावना महसूस कर सकता हैं जो नैदानिक अवसाद की स्थिति का रूप धारण कर सकता है।
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अकेलापन
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गुमनाम भीड़ में वे परिचित समुदाय का अभाव अनुभव करते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि अकेलापन उच्च घनत्व वाली जनसंख्या के कारण बिगड़ी हुई हालत है या इस सामाजिक ढांचे से उत्पन्न मानवीय हालात का हिस्सा मात्र है।
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अकेलापन
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निश्चित रूप से, अकेलापन बहुत छोटी आबादी वाले समाज में भी होता है लेकिन शहर में दैनिक रूप से संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या, भले ही थोड़ी देर के लिए हो, वास्तव में उनके साथ गहराई से अन्योन्य क्रिया में अधिक बाधा बन सकती है और अलग और अकेले होने की भावना में वृद्धि कर सकती है।
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रिबोफ्लेविन
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रिबोफ्लेविन (Riboflavin) जीवित ऊतक के एक बुनियादी घटक है और प्रोटीन चयापचय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि आप इस प्रपत्र या नहीं कर सकते नई क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत वाले विटामिन याद आती है। यह भी महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह प्रोटीन एंजाइमों कि जिगर में विभिन्न चयापचय की प्रक्रिया को नियंत्रित फार्म के साथ प्रतिक्रिया. Riboflavin भी आंख की रेटिना वर्णक का एक घटक है और अनुकूलन की प्रक्रिया में प्रकाश में भाग लेता है। एक riboflavin की कमी un'arrossamento आँखें, नेत्रश्लेष्मjलाशोथ पैदा कर सकते हैं और भी मोतियाबिंद, या लेंस पारदर्शिता और में या दृष्टि के नुकसान के परिणामस्वरूप कमी के नुकसान के साथ आंख opacification.
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रिबोफ्लेविन
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विटामिन बी 2 की एक ठेठ विकृति होठों की ulceration और विशेष रूप से कोनों है। स्क्वैमस प्रकार के घावों नाक के क्षेत्रों में, गाल, ठोड़ी और कभी कभी कान lobes विकास हो सकता है। (testes थैली जिसमें अंडकोश की थैली के साथ संलग्न किया जा सकता है) और योनी.
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रिबोफ्लेविन
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एक विटामिन riboflavin है कि आसानी से जाना इसकी संवेदनशीलता की वजह से प्रकाश में नष्ट कर सकता है। और 'विशेष रूप से दूध के साथ मामले की जा रही करने के लिए यह उपयोगी विटामिन डी के साथ प्रदान विकिरणित, विटामिन खो देता है "बी 2".
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रिबोफ्लेविन
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अन्य सभी पानी में घुलनशील विटामिन की तरह, खाना पकाने के द्वारा नष्ट हो जाता है, शराब के लिए असुरक्षित है एंटीबायोटिक दवाओं और मौखिक गर्भ निरोधकों.
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वहाँ बहुत अधिक विटामिन B2 लेने का कोई खतरा नहीं है इसके पानी solubility की वजह से है, राशि शरीर द्वारा इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, मूत्र के माध्यम से निकाल दिया. तुम नोटिस हूँ कि बाद के पीले रंग ज्यादतियों कि नष्ट कर रहे हैं के प्रभाव पर होगा.
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सबसे अच्छा आहार स्रोतों जैविक फसलों जिसमें से, इसके अलावा में, अन्य विटामिन riboflavin जाएगा से प्राकृतिक पदार्थ हैं। गेहूं, अंडे, हरी पत्तेदार सब्जियां, मटर और भी offal और offal, विटामिन बी 2 के सर्वश्रेष्ठ स्रोत हैं।
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Riboflavin tryptophan करने के लिए (एक एमिनो एसिड है कि बचपन में विकास के लिए आवश्यक है metabolize की जरूरत है). बारी में करने के लिए tryptophan पीपी या B3 या नियासिन, जब आवश्यक हो, कि यह परिवर्तन जगह ले लेता है riboflavin आवश्यक है विटामिन बदल जाती है। अगले अध्याय में हम बात करेंगे नियासिन के महान महत्व.
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रिबोफ्लेविन
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प्रोटीन और lipids के चयापचय. जिगर के स्वास्थ्य, आँखें और epidermis. बाल और खोपड़ी के स्वास्थ्य. नाखूनों की कमजोरी के खिलाफ. मुँहासे rosacea के उपचार.
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रिबोफ्लेविन
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जलन और खुजली (आँखों congiutivite). (दरारें मुँह के कोनों पर घावों). (जीभ जिह्वा की सूजन की सूजन). सूखी होंठ और प्लावित. असुविधा (प्रकाश की असहनीयता प्रकाश के लिए).
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अजमोद
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अजमोद, बगीचों में, व्यापक रूप से एक सहयोगी पौधे की तरह प्रयोग किया जाता है। कई अन्य एमबीलाइफर की तरह, यह बगीचों में ततैया और परभक्षी मच्छरों सहित कई परभक्षी कीडों को आकर्षित करता है, जो फिर आसपास के पौधों की रक्षा करते हैं। उदाहरण के लिए, यह टमाटर के पौधों की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से उपयोगी हैं क्योंकि जो ततैया टमाटर होर्नवोर्म को मारते हैं, वह अजमोद से अमृत भी खाते हैं। जबकि अजमोद द्विवार्षिक है, जो अपने दूसरे वर्ष तक नहीं खिलता, अपने पहले साल में भी यह टमाटर के पौधों की तेज गंध को छिपाने में मदद करने के लिए प्रतिष्ठित है, जिससे कीट आकर्षण कम होता है।
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अजमोद
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मध्य और पूर्वी यूरोप में और पश्चिम एशिया में, कई व्यंजनों के ऊपर ताज़ा हरा कटा अजमोद छिड़क कर, उन्हें परोसा जाता है। हरा अजमोद अक्सर एक गार्निश के रूप में प्रयोग किया जाता है। हरे अजमोद का नया फ्लेवर, आलू के पकवानों (फ्रेंच फ्राइज़, उबले मक्खन वाले आलू या मैश्ड आलू) के साथ, चावल के व्यंजनों के साथ (रिसोट्टो या पिलाफ), मछली, तले हुए चिकन, भेड़ या हंस, मांस की टिक्की, माँस या सब्जी स्ट्यू (जैसे बीफ बौर्गउइग्नोंन, गुलाश या चिकन पप्रिकाश), के साथ बहुत अच्छे से जाता है। दक्षिणी और मध्य यूरोप में, अजमोद गुलदस्ता गार्नी का एक भाग है, जो स्टाक्स, सूप और सॉस को फ्लेवर करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ताज़ी जड़ी बूटियों का एक गठ्ठा है। ताज़ा कटा हरा अजमोद, चिकन सूप जैसे सूप, हरे सलाद या सेलेड ओलिवर जैसे सलाद, ठंडे कट या पेटिस (pâtés) के साथ खुले सैंडविच पर एक टॉपिंग के रूप में प्रयोग किया जाता है। अजमोद कई पश्चिम एशियाई सलादों, जैसे तेबौलेह (लेबनन का राष्ट्रीय पकवान, ऐतिहासिक आर्मेनिया, वान से आर्मेनियन द्वारा तेर्कोट्स भी कहलाया जाने वाला), में एक प्रमुख घटक है। पर्सिलेड, फ्रांसीसी भोजन में कटे हुए लहसुन और कटे हुए अजमोद का मिश्रण है। ग्रिमोलता, इतालवी वील स्ट्यू, ओसोबुको अला मिलानिज़, अजमोद, लहसुन और नींबू रस के मिश्रण का एक पारंपरिक संगत है।
| 0.5 | 1,616.896767 |
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अजमोद
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जड़ अजमोद मध्य और पूर्वी यूरोप के व्यंजनों में बहुत आम है, जहाँ यह कई सूप में सब्जी के सूप के रूप में प्रयोग किया जाता है और अधिकांश माँस या सब्जी स्ट्यू और कैसरोल में भी।
| 0.5 | 1,616.896767 |
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अजमोद
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चाय एक एनीमा के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है। चीनी और जर्मन हेर्बोलोजिस्टस, अधिक रक्तचाप को नियंत्रण करने में मदद के लिए अजमोद चाय की सिफारिश करते हैं और चीरोकीज़ इसे मूत्राशय को मजबूत बनाने के लिए एक टॉनिक के रूप में इस्तेमाल करते थे। यह अक्सर एक एम्मेनागोग के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
| 0.5 | 1,616.896767 |
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अजमोद
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अजमोद, गुर्दे में Na+/K+ ATPase पंप को रोकने के द्वारा डाईयूरेसिस में वृद्धि करते हुए भी दिखाई देता है, जिसके फलस्वरूप सोडियम और पानी के उत्सर्जन में वृद्धि करते हुए पोटेशियम पुनः अवचूषण को बढ़ाया जाता है। इसे एक एकुआरेटिक के रूप में भी सम्मानित किया जाता है।
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अजमोद
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आमतौर पर माना जाता है कि अजमोद चबाने से, गंदी साँस को ताज़ा किया जा सकता है। हालाँकि, कुछ लोग इसे एक मिथक के रूप में देखते हैं - यह कोई भी अन्य पदार्थ (जैसे गम चबाने) चबाने से अधिक प्रभावी नहीं है।
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अजमोद
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अजमोद, गर्भवती महिलाओं द्वारा एक दवा या पूरक के रूप में उपभुक्त नहीं होना चाहिए। एक तेल, जड़, पत्ते, या बीज के रूप में अजमोद, गर्भाशय उत्तेजना और वक्त से पहले प्रसव की ओर ले जा सकता है।
| 0.5 | 1,616.896767 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6
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अजमोद
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अजमोद, ओक्सेलिक एसिड में प्रखर है (आधिक्य द्वारा 1.70% ), जो गुर्दा पत्थर और पोषक तत्वों की कमी के गठन में शामिल एक समास है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6
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अजमोद
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अजमोद तेल में फुरानुकुमारिन्ज़ और प्सोरेलिंज़ समाविष्ट होते हैं, जो यदि मौखिक रूप से प्रयोग किये जाएं तो अत्यंत प्रकाश-सुग्राही की ओर जाते हैं।
| 0.5 | 1,616.896767 |
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सिंदरी
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Shaharpura शहर खरीदारी क्षेत्र है जहां स्थापित सूखी माल व्यापारियों, दर्जी और कसाई किसानों और अन्य छोटे समय व्यापारियों के साथ अपने स्थान साझा की मेजबानी की. हर सोमवार, बुधवार और शनिवार को एक जीवंत खुली हवा में बाजार ताजा स्थानीय उठाया उत्पादन, मुर्गी पालन और स्थानीय रूप से तैयार की जाती कलाकृतियों की विशेषता आयोजित किया गया. के रूप में दूर से भटक minstrels और पारंपरिक दवा पुरुषों के रूप में अफगानिस्तान उन लोगों के साथ कम लागत वाली सड़क की ओर दाँत निष्कर्षण और कि स्वस्थानी में तेल की एक विस्तृत मुँह Vats में कम गर्मी पर में पीसा गया था गठिया से ग्रस्त मरीजों के लिए "छिपकली तेल" की तरह अप्रत्याशित और सेवाओं concoctions लाया जो कुछ विदेशी तलाश में छिपकलियों के आसपास दोपहर के लिए (नुकसान) lounged. मैराथन bicyclists कभी कभी अंत पर दिनों के लिए हलकों में चारों ओर अपने पैर नीचे की स्थापना के बिना सवारी शहर में आए. थिएटर की यह फार्म हजामत बनाने का काम वर्षा और वीर स्तर करने के लिए खाने की तरह हर रोज गतिविधियों को ऊंचा और सिंदरी के वेतनभोगी पुरुषों उनके कम भाग्यशाली compatriots अगर साहसी के लिए कुछ परिवर्तन स्पेयर. खुली हवा बाजार भारत के आराम करने के लिए सिंदरी विंडो किया गया था और एक अन्यथा पस्टेल शहर में रंग की एक छप लाया।
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सिंदरी
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एक अच्छी तरह से स्टॉक पुस्तकालय एक महान जगह आराम करने के लिए और समय खर्च किया गया था। स्थानीय क्लब नाई मोइनुद्दीन एक लोकप्रिय आंकड़ा था और काफी एक शहर में कुछ नवीनतम बाल कटाने के लिए जिम्मेदार था। वह कभी तैयार मुस्कान और एक नवीनतम गपशप के साथ शहर में सबसे लोकप्रिय नाई था।
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सिंदरी
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सिंदरी अपनी सक्रिय सामाजिक होश में महिला क्लब और वनिता समाज, सिंदरी में अधिकारियों की पत्नियों के लिए दो प्रमुख संगठनों के लिए भी जाना जाता था।
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सिंदरी
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अलग अलग भाषाओं में साहित्य हिन्दी साहित्य परिषद, विद्यापति परिषद, उर्दू - हिंदी संगम और अंजुमन - i - उर्दू जैसे संगठनों के साथ सिंदरी में अच्छे आसार. विभिन्न मुशायरा (उर्दू काव्य) और कवि samelans 1965 और 1995 के बीच आयोजित किया गया. एक साहित्य के नजरिए से इस सिंदरी के गौरवशाली युग श्री Gosai और श्री महेश्वर मिश्र जैसे लोग हैं, जो शहर में साहित्यिक गतिविधियों के संचालन के लिए सक्रिय रूप से हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में विशेष काम करने के लिए कारण था।
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सिंदरी
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रंगमंच, नाटक और संगीत सामाजिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका थी और बंगाली समुदाय इस में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सिंदरी जीवन के इस भाग को भारी कलकत्ता (अब कोलकाता, सिर्फ 250 किमी दूर) से प्रभावित किया गया था। अजंता कला मंदिर सिंदरी में आगे बढ़ रही है बच्चों की एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। बच्चे कथक नृत्य और श्रीमती अजंता झा (टीवी और रेडियो कलाकार, नगरपालिका पार्षद) से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखा. श्रीमती अजंता झा अभी भी संस्था चल रहा है, लेकिन छात्र गिनती बेहद कमी आई है। महिमा के अपने दिनों में, इस संस्था सिंदरी के लिए कई पुरस्कार जीता था।
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सिंदरी
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कल्याण केन्द्र (कल्याण केन्द्र) Rohrabandh और Shaharpura के बीच स्थित एक विशाल इससे सटे जमीन थी। परिसर में एक परंपरागत जिम और एक आधुनिक एक के भी दावा. बाद में एक स्विमिंग पूल के इस परिसर के भाग के रूप में बनाया गया था। यह स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस परेड के लिए स्थल और समूहों है कि विश्वास है कि फिल्में (तंबाकू चबाने के साथ साथ, चाय imbibing, जुआ और शतरंज या ताश खेल रहे) देख एक बुरी आदत थी द्वारा नाटकों और कविता रीडिंग का मंचन के लिए पसंद के स्थान था। एक पश्चिमी प्रभाव है कि कल्याण केन्द्र में seeped टेबल टेनिस और कैरम बोर्ड के पाठ्यक्रम था। बंगाली लितराती रात भर यात्राओं का मंचन किया और दुर्गा पूजा, बिहारी (और पूर्वी उत्तर प्रदेश से उन) लितराती कवि Samelans का मंचन किया और चाट मनाया, तमिल लितराती Kacheris के लिए व्यवस्था और अय्यप्प पूजा का मंचन किया। नेहरू पिघलने पॉट वह बनाने के लिए मदद था गर्व होता है। वह शायद कम अनधिकृत लेकिन काफी लोकप्रिय देर रात transvestite कैबरे है कि जंगली में ऊपर popped के गर्व होता है। अब Goushala टॉवर शहर के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि, सिंदरी के सभी टेलीकॉम कंपनियों Goushala में टॉवर है।
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सिंदरी
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आदेश में अपने कर्मचारियों और सिंदरी और आसपास के इलाकों के अन्य निवासियों के बच्चों के बच्चों को शिक्षा सेवाओं प्रदान करने के लिए, FCIL प्रबंधन 1948 में सिंदरी में पहला स्कूल शुरू. तीन उच्च झारखंड शैक्षणिक परिषद, चार मध्य विद्यालयों झारखंड राज्य शिक्षा नीति के तहत Shaharpura और टाउनशिप के Domgarh क्षेत्रों में पाठ्यक्रम के बाद, सभी डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के बाद नाम से संबद्ध स्कूल, उर्वरक कारखाने के प्रबंधन के सात राजेंद्र स्कूलों, भागा स्वतंत्र भारत और एक अंग्रेजी माध्यम एकीकृत वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, मॉडल उच्च अंग्रेजी स्कूल, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, टाउनशिप के Rohrabandh क्षेत्र में नई दिल्ली से संबद्ध के प्रथम राष्ट्रपति. राजिंदर Saharpura क्षेत्र में लड़कियों के लिए हाई स्कूल शिक्षा प्रदान कर रहे थे विशेष रूप से छात्राओं के लिए.
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सिंदरी
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FCIL स्कूलों के अलावा, विभिन्न निजी स्कूलों को भी निवासियों अर्थात् के लिए उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करते हैं। DeNobili स्कूल (झरिया कोयला बेल्ट में जीसस सोसायटी द्वारा संचालित स्कूलों की श्रृंखला), लायंस पब्लिक स्कूल, डीएवी पब्लिक स्कूल (डीएवी एजुकेशन सोसाइटी, नई दिल्ली द्वारा प्रबंधित) और सरस्वती शिशु विद्या मंदिर (सरस्वती विद्या मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित, नई दिल्ली). वहाँ कई स्कूलों तैयारी के रूप में अच्छी तरह से कर रहे हैं, जो रवींद्र परिषद था के बीच अग्रणी.
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सिंदरी
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उच्च शिक्षा के लिए प्रदान FCIL एक सह - शिक्षा डिग्री कॉलेज की स्थापना की [सिंदरी कॉलेज] विज्ञान, मानविकी और वाणिज्य विषयों, जो वर्तमान में राज्य रन विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के एक घटक इकाई के साथ
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रसायन
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रसायन, आयुर्वेद के आठ भागों में से का एक विभाग है। आधुनिक रसायन शास्त्र में उन सभी द्रव्यों को रसायन कहते हैं जो किसी अभिक्रिया में भाग लेते हैं।
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Subsets and Splits
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