Chapter
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61
| Part
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76
| Bait
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890
| Mesra
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2
| Text
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34
|
---|---|---|---|---|
6 | 10 | 23 | 1 |
سرش را بدین گرزهٔ گاو چهر
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6 | 10 | 23 | 2 |
بکوبم نه بخشایش آرم نه مهر
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6 | 10 | 24 | 1 |
چو بشنید ازو این سخن ارنواز
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6 | 10 | 24 | 2 |
گشاده شدش بر دل پاک راز
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6 | 10 | 25 | 1 |
بدو گفت شاه آفریدون تویی
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6 | 10 | 25 | 2 |
که ویران کنی تنبل و جادویی
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6 | 10 | 26 | 1 |
کجا هوش ضحاک بر دست تست
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6 | 10 | 26 | 2 |
گشاد جهان بر کمربست تست
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6 | 10 | 27 | 1 |
ز تخم کیان ما دو پوشیده پاک
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6 | 10 | 27 | 2 |
شده رام با او ز بیم هلاک
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6 | 10 | 28 | 1 |
همی جفتمان خواند او جفت مار
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6 | 10 | 28 | 2 |
چگونه توان بودن ای شهریار
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6 | 10 | 29 | 1 |
فریدون چنین پاسخ آورد باز
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6 | 10 | 29 | 2 |
که گر چرخ دادم دهد از فراز
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6 | 10 | 30 | 1 |
ببرم پی اژدها را ز خاک
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6 | 10 | 30 | 2 |
بشویم جهان را ز ناپاک پاک
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6 | 10 | 31 | 1 |
بباید شما را کنون گفت راست
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6 | 10 | 31 | 2 |
که آن بیبها اژدهافش کجاست
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6 | 10 | 32 | 1 |
برو خوب رویان گشادند راز
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6 | 10 | 32 | 2 |
مگر که اژدها را سرآید به گاز
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6 | 10 | 33 | 1 |
بگفتند کاو سوی هندوستان
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6 | 10 | 33 | 2 |
بشد تا کند بند جادوستان
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6 | 10 | 34 | 1 |
ببرد سر بیگناهان هزار
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6 | 10 | 34 | 2 |
هراسان شدست از بد روزگار
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6 | 10 | 35 | 1 |
کجا گفته بودش یکی پیشبین
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6 | 10 | 35 | 2 |
که پردختگی گردد از تو زمین
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6 | 10 | 36 | 1 |
که آید که گیرد سر تخت تو
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6 | 10 | 36 | 2 |
چگونه فرو پژمرد بخت تو
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6 | 10 | 37 | 1 |
دلش زان زده فال پر آتشست
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6 | 10 | 37 | 2 |
همه زندگانی برو ناخوشست
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6 | 10 | 38 | 1 |
همی خون دام و دد و مرد و زن
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6 | 10 | 38 | 2 |
بریزد کند در یکی آبدن
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6 | 10 | 39 | 1 |
مگر کاو سرو تن بشوید به خون
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6 | 10 | 39 | 2 |
شود فال اخترشناسان نگون
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6 | 10 | 40 | 1 |
همان نیز از آن مارها بر دو کفت
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6 | 10 | 40 | 2 |
به رنج درازست مانده شگفت
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6 | 10 | 41 | 1 |
ازین کشور آید به دیگر شود
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6 | 10 | 41 | 2 |
ز رنج دو مار سیه نغنود
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6 | 10 | 42 | 1 |
بیامد کنون گاه بازآمدنش
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6 | 10 | 42 | 2 |
که جایی نباید فراوان بدنش
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6 | 10 | 43 | 1 |
گشاد آن نگار جگر خسته راز
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6 | 10 | 43 | 2 |
نهاده بدو گوش گردنفراز
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6 | 11 | 1 | 1 |
چوکشور ز ضحاک بودی تهی
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6 | 11 | 1 | 2 |
یکی مایه ور بد بسان رهی
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6 | 11 | 2 | 1 |
که او داشتی گنج و تخت و سرای
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6 | 11 | 2 | 2 |
شگفتی به دل سوزگی کدخدای
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6 | 11 | 3 | 1 |
ورا کندرو خواندندی بنام
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6 | 11 | 3 | 2 |
به کندی زدی پیش بیداد گام
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6 | 11 | 4 | 1 |
به کاخ اندر آمد دوان کند رو
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6 | 11 | 4 | 2 |
در ایوان یکی تاجور دید نو
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6 | 11 | 5 | 1 |
نشسته به آرام در پیشگاه
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6 | 11 | 5 | 2 |
چو سرو بلند از برش گرد ماه
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6 | 11 | 6 | 1 |
ز یک دست سرو سهی شهرناز
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6 | 11 | 6 | 2 |
به دست دگر ماهروی ار نواز
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6 | 11 | 7 | 1 |
همه شهر یکسر پر از لشکرش
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6 | 11 | 7 | 2 |
کمربستگان صف زده بر درش
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6 | 11 | 8 | 1 |
نه آسیمه گشت و نه پرسید راز
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6 | 11 | 8 | 2 |
نیایش کنان رفت و بردش نماز
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6 | 11 | 9 | 1 |
برو آفرین کرد کای شهریار
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6 | 11 | 9 | 2 |
همیشه بزی تا بود روزگار
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6 | 11 | 10 | 1 |
خجسته نشست تو با فرهی
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6 | 11 | 10 | 2 |
که هستی سزاوار شاهنشهی
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6 | 11 | 11 | 1 |
جهان هفت کشور ترا بنده باد
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6 | 11 | 11 | 2 |
سرت برتر از ابر بارنده باد
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6 | 11 | 12 | 1 |
فریدونش فرمود تا رفت پیش
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6 | 11 | 12 | 2 |
بکرد آشکارا همه راز خویش
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6 | 11 | 13 | 1 |
بفرمود شاه دلاور بدوی
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6 | 11 | 13 | 2 |
که رو آلت تخت شاهی بجوی
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6 | 11 | 14 | 1 |
نبیذ آر و رامشگران را بخوان
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6 | 11 | 14 | 2 |
بپیمای جام و بیارای خوان
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6 | 11 | 15 | 1 |
کسی کاو به رامش سزای منست
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6 | 11 | 15 | 2 |
به دانش همان دلزدای منست
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6 | 11 | 16 | 1 |
بیار انجمن کن بر تخت من
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6 | 11 | 16 | 2 |
چنان چون بود در خور بخت من
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6 | 11 | 17 | 1 |
چو بشنید از او این سخن کدخدای
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6 | 11 | 17 | 2 |
بکرد آنچه گفتش بدو رهنمای
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6 | 11 | 18 | 1 |
می روشن آورد و رامشگران
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6 | 11 | 18 | 2 |
همان در خورش باگهر مهتران
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6 | 11 | 19 | 1 |
فریدون غم افکند و رامش گزید
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6 | 11 | 19 | 2 |
شبی کرد جشنی چنان چون سزید
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6 | 11 | 20 | 1 |
چو شد رام گیتی دوان کندرو
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6 | 11 | 20 | 2 |
برون آمد از پیش سالار نو
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6 | 11 | 21 | 1 |
نشست از بر بارهٔ راه جوی
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6 | 11 | 21 | 2 |
سوی شاه ضحاک بنهاد روی
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6 | 11 | 22 | 1 |
بیامد چو پیش سپهبد رسید
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6 | 11 | 22 | 2 |
سراسر بگفت آنچه دید و شنید
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6 | 11 | 23 | 1 |
بدو گفت کای شاه گردنکشان
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6 | 11 | 23 | 2 |
به برگشتن کارت آمد نشان
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6 | 11 | 24 | 1 |
سه مرد سرافراز با لشکری
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6 | 11 | 24 | 2 |
فراز آمدند از دگر کشوری
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6 | 11 | 25 | 1 |
ازان سه یکی کهتر اندر میان
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6 | 11 | 25 | 2 |
به بالای سرو و به چهر کیان
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6 | 11 | 26 | 1 |
به سالست کهتر فزونیش بیش
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6 | 11 | 26 | 2 |
از آن مهتران او نهد پای پیش
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6 | 11 | 27 | 1 |
یکی گرز دارد چو یک لخت کوه
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6 | 11 | 27 | 2 |
همی تابد اندر میان گروه
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6 | 11 | 28 | 1 |
به اسپ اندر آمد بایوان شاه
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6 | 11 | 28 | 2 |
دو پرمایه با او همیدون براه
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6 | 11 | 29 | 1 |
بیامد به تخت کئی بر نشست
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6 | 11 | 29 | 2 |
همه بند و نیرنگ تو کرد پست
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Subsets and Splits
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