Chapter
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61
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76
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890
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2
| Text
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34
|
---|---|---|---|---|
6 | 11 | 30 | 1 |
هر آنکس که بود اندر ایوان تو
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6 | 11 | 30 | 2 |
ز مردان مرد و ز دیوان تو
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6 | 11 | 31 | 1 |
سر از پای یکسر فروریختشان
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6 | 11 | 31 | 2 |
همه مغز با خون برامیختشان
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6 | 11 | 32 | 1 |
بدو گفت ضحاک شاید بدن
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6 | 11 | 32 | 2 |
که مهمان بود شاد باید بدن
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6 | 11 | 33 | 1 |
چنین داد پاسخ ورا پیشکار
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6 | 11 | 33 | 2 |
که مهمان ابا گرزهٔ گاوسار
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6 | 11 | 34 | 1 |
به مردی نشیند به آرام تو
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6 | 11 | 34 | 2 |
زتاج و کمر بسترد نام تو
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6 | 11 | 35 | 1 |
به آیین خویش آورد ناسپاس
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6 | 11 | 35 | 2 |
چنین گر تو مهمان شناسی شناس
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6 | 11 | 36 | 1 |
بدو گفت ضحاک چندین منال
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6 | 11 | 36 | 2 |
که مهمان گستاخ بهتر به فال
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6 | 11 | 37 | 1 |
چنین داد پاسخ بدو کندرو
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6 | 11 | 37 | 2 |
که آری شنیدم تو پاسخ شنو
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6 | 11 | 38 | 1 |
گرین نامور هست مهمان تو
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6 | 11 | 38 | 2 |
چه کارستش اندر شبستان تو
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6 | 11 | 39 | 1 |
که با دختران جهاندار جم
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6 | 11 | 39 | 2 |
نشیند زند رای بر بیش و کم
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6 | 11 | 40 | 1 |
به یک دست گیرد رخ شهرناز
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6 | 11 | 40 | 2 |
به دیگر عقیق لب ارنواز
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6 | 11 | 41 | 1 |
شب تیره گون خود بترزین کند
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6 | 11 | 41 | 2 |
به زیر سر از مشک بالین کند
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6 | 11 | 42 | 1 |
چومشک آن دو گیسوی دو ماه تو
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6 | 11 | 42 | 2 |
که بودند همواره دلخواه تو
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6 | 11 | 43 | 1 |
بگیرد ببرشان چو شد نیم مست
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6 | 11 | 43 | 2 |
بدین گونه مهمان نباید بدست
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6 | 11 | 44 | 1 |
برآشفت ضحاک برسان کرگ
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6 | 11 | 44 | 2 |
شنید آن سخن کارزو کرد مرگ
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6 | 11 | 45 | 1 |
به دشنام زشت و به آواز سخت
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6 | 11 | 45 | 2 |
شگفتی بشورید با شوربخت
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6 | 11 | 46 | 1 |
بدو گفت هرگز تو در خان من
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6 | 11 | 46 | 2 |
ازین پس نباشی نگهبان من
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6 | 11 | 47 | 1 |
چنین داد پاسخ ورا پیشکار
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6 | 11 | 47 | 2 |
که ایدون گمانم من ای شهریار
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6 | 11 | 48 | 1 |
کزان بخت هرگز نباشدت بهر
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6 | 11 | 48 | 2 |
به من چون دهی کدخدایی شهر
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6 | 11 | 49 | 1 |
چو بیبهره باشی ز گاه مهی
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6 | 11 | 49 | 2 |
مرا کار سازندگی چون دهی
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6 | 11 | 50 | 1 |
چرا تو نسازی همی کار خویش
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6 | 11 | 50 | 2 |
که هرگز نیامدت ازین کار پیش
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6 | 11 | 51 | 1 |
ز تاج بزرگی چو موی از خمیر
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6 | 11 | 51 | 2 |
برون آمدی مهترا چارهگیر
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6 | 11 | 52 | 1 |
ترا دشمن آمد به گه برنشست
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6 | 11 | 52 | 2 |
یکی گرزهٔ گاوپیکر به دست
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6 | 11 | 53 | 1 |
همه بند و نیرنگت از رنگ برد
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6 | 11 | 53 | 2 |
دلارام بگرفت و گاهت سپرد
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6 | 12 | 1 | 1 |
جهاندار ضحاک ازان گفتگوی
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6 | 12 | 1 | 2 |
به جوش آمد و زود بنهاد روی
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6 | 12 | 2 | 1 |
چو شب گردش روز پرگار زد
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6 | 12 | 2 | 2 |
فروزنده را مهره در قار زد
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6 | 12 | 3 | 1 |
بفرمود تا برنهادند زین
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6 | 12 | 3 | 2 |
بران باد پایان باریک بین
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6 | 12 | 4 | 1 |
بیامد دمان با سپاهی گران
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6 | 12 | 4 | 2 |
همه نره دیوان جنگ آوران
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6 | 12 | 5 | 1 |
ز بیراه مر کاخ را بام و در
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6 | 12 | 5 | 2 |
گرفت و به کین اندر آورد سر
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6 | 12 | 6 | 1 |
سپاه فریدون چو آگه شدند
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6 | 12 | 6 | 2 |
همه سوی آن راه بیره شدند
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6 | 12 | 7 | 1 |
ز اسپان جنگی فرو ریختند
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6 | 12 | 7 | 2 |
در آن جای تنگی برآویختند
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6 | 12 | 8 | 1 |
همه بام و در مردم شهر بود
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6 | 12 | 8 | 2 |
کسی کش ز جنگ آوری بهر بود
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6 | 12 | 9 | 1 |
همه در هوای فریدون بدند
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6 | 12 | 9 | 2 |
که از درد ضحاک پرخون بدند
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6 | 12 | 10 | 1 |
ز دیوارها خشت و ز بام سنگ
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6 | 12 | 10 | 2 |
به کوی اندرون تیغ و تیر و خدنگ
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6 | 12 | 11 | 1 |
ببارید چون ژاله ز ابر سیاه
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6 | 12 | 11 | 2 |
پئی را نبد بر زمین جایگاه
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6 | 12 | 12 | 1 |
به شهر اندرون هر که برنا بدند
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6 | 12 | 12 | 2 |
چه پیران که در جنگ دانا بدند
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6 | 12 | 13 | 1 |
سوی لشکر آفریدون شدند
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6 | 12 | 13 | 2 |
ز نیرنگ ضحاک بیرون شدند
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6 | 12 | 14 | 1 |
خروشی برآمد ز آتشکده
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6 | 12 | 14 | 2 |
که بر تخت اگر شاه باشد دده
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6 | 12 | 15 | 1 |
همه پیر و برناش فرمان بریم
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6 | 12 | 15 | 2 |
یکایک ز گفتار او نگذریم
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6 | 12 | 16 | 1 |
نخواهیم برگاه ضحاک را
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6 | 12 | 16 | 2 |
مرآن اژدهادوش ناپاک را
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6 | 12 | 17 | 1 |
سپاهی و شهری به کردار کوه
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6 | 12 | 17 | 2 |
سراسر به جنگ اندر آمد گروه
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6 | 12 | 18 | 1 |
از آن شهر روشن یکی تیره گرد
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6 | 12 | 18 | 2 |
برآمد که خورشید شد لاجورد
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6 | 12 | 19 | 1 |
پس آنگاه ضحاک شد چاره جوی
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6 | 12 | 19 | 2 |
ز لشکر سوی کاخ بنهاد روی
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6 | 12 | 20 | 1 |
به آهن سراسر بپوشید تن
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6 | 12 | 20 | 2 |
بدان تا نداند کسش ز انجمن
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6 | 12 | 21 | 1 |
به چنگ اندرون شست یازی کمند
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6 | 12 | 21 | 2 |
برآمد بر بام کاخ بلند
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6 | 12 | 22 | 1 |
بدید آن سیه نرگس شهرناز
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6 | 12 | 22 | 2 |
پر از جادویی با فریدون به راز
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6 | 12 | 23 | 1 |
دو رخساره روز و دو زلفش چو شب
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6 | 12 | 23 | 2 |
گشاده به نفرین ضحاک لب
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6 | 12 | 24 | 1 |
به مغز اندرش آتش رشک خاست
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6 | 12 | 24 | 2 |
به ایوان کمند اندر افگند راست
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6 | 12 | 25 | 1 |
نه از تخت یاد و نه جان ارجمند
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6 | 12 | 25 | 2 |
فرود آمد از بام کاخ بلند
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6 | 12 | 26 | 1 |
به دست اندرش آبگون دشنه بود
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6 | 12 | 26 | 2 |
به خون پری چهرگان تشنه بود
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Subsets and Splits
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