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20231101.hi_479205_3
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%80
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वर्मपंखी
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नाप में कंचुकपक्ष एक ओर बहुत छोटे होते हैं, दूसरी ओर काफी बड़े। कोराइलोफ़िडी (Corylophidae) तथा टिलाइडी (Ptiliidae) वंशों के कई सदस्य 0.5 मिलीमीटर से भी कम लंबे होते हैं तो स्कैराबीडी (Scarabaeidae) वंश के डाइनेस्टीज़ हरक्यूलीस (Dynastes hercules) तथा सरैंबाइसिडी (Cerambycidaee) वंश के मैक्रोडॉन्शिया सरविकॉर्निस (Maerodontia Cervicornis) की लंबाई 15.5 सेंटीमीटर तक पहुँचती है। फिर भी संरचना की दृष्टि से इनमें बड़ी समानता है। इनके सिर की विशेषता है गल (ग्रीव, अंग्रेजी में gula) का सामान्यत: उपस्थित होना, अधोहन्वस्थि (मैंडिब्ल्स, mandibles) का बहुविकसित और मजबूत होना, ऊर्ध्वहन्वस्थि (मैक्सिली) का सामान्यत: पूर्ण होना तथा अधरोष्ठ (लेबियम) में चिबुक (मेंटम) का सुविकसित होना। वक्ष भाग में वक्षाग्र बड़ा तथा गतिशील हाता है और वक्षमध्य तथा वक्षपश्च एक दूसरे से जुड़े होते हैं; पृष्ठकाग्र (प्रोनोटम) एक ही पट्ट का बना होता है तथा पार्श्वक (प्लूरान) कई पट्टों में नहीं विभाजित होता। टाँगें बहुधा दौड़ने या खोदने के लिए संपरिवर्तित होती हैं, किंतु जलीय जातियों में ये तैरने योग्य होती हैं। पंखों में पक्षवर्म लाक्षणिक महत्व के हैं तथा पिछले पंख का नाड़ीविन्यास (वेनेशन) अन्य गणों के नाड़ीविन्यास से भिन्न होता है-इसकी विशेषता है लंबवत् नाड़ियों की प्रमुखता। नाड़ीविन्यास तीन मुख्य भेदों में बाँटा जाता है :
| 0.5 | 410.425854 |
20231101.hi_479205_4
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वर्मपंखी
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(1) सभी मुख्य नाड़ियों का पूर्णतया विकसित होना और उनका एक दूसरे से आड़ी नाड़ियों द्वारा जुड़ी होना (एडिफ़ेगिड (Adephagid) प्रकार का होना);
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वर्मपंखी
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(2) आड़ी नाड़ियों की अनुपस्थिति तथा ग् के प्रारंभिक भाग की अनुपस्थिति (स्टैफ़िलिनिड (Staphylinid) प्रकार का होना); और
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20231101.hi_479205_6
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वर्मपंखी
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(3) ग् तथा क्द्व का दूरस्थ भाग में एक दूसरे से जुडकर एक चक्र का निर्माण करना (कैंथेरिड (Cantharid) प्रकार का होना)।
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वर्मपंखी
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उदर की संरचना भी विभिन्न होती है, किंतु उसमें बहुधा नौ स्पष्ट खंड होते हैं। कई वंशों में उदर के पिछले खंड पर जनन संबंधी प्रवर्ध होते हैं। नर में ये मैथुन में सहायक होते हैं और स्त्री में अंडरोपकों (ओविपॉज़िटरों Ovipositors) का निर्माण करते हैं। इनका संबंध कुछ हद तक अंखरोपण स्वभाव से होता है और ये वर्गीकरण में सहायक हैं।
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वर्मपंखी
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अधिकांश जातियों में किसी न किसी प्रकार के ध्वनि-उत्पादक अंग पाए जाते हैं। इनकी रचना अनेक प्रकार की होती है। इनकी स्थितियाँ भी बहुत विभिन्न होती हैं। उदाहरण के लिए ये शिर के ऊपर तथा अग्र वक्ष पर स्थित हो सकते हैं, या शिर के नीचे के भाग में। स्थिति के अनुसार गहन (1900) ने इनको चार मुख्य भेदों में बाँटा है। स्कैराबीडी वंश के सदस्यों में ये बहुत सुविकसित दशा में मिलते हैं।
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वर्मपंखी
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कंचुकपक्ष कीटों के जीवनेतिहास में स्पष्ट रूपांतरण होता है। अंडे विविध स्थानों में दिए जाते हैं और विविध रूप के होते हैं। उदाहरण के लिए ऑसिपस (Ocypus) वंश के अंडे बहुत बड़े और संख्या में थोड़े होते हैं और मिलोइडो (Meloidae) वंश के अंडे बहुत छोटे और बहुसंख्यक होते हैं। हाइड्रोफिलिडी (Hydrophilidae) वंश में अंडे कोषों में सुरक्षित रखे जाते हैं और कैसिडिनी (Cassidinae) उपवंश में वे एक डिंबावरण में लिपटे होते हैं। कॉक्सिनेलिडी (Coccinellidae) के अंडे पत्तियों पर समूहों में दिए जाते हैं और करकुलियोनिडी (Curculionidae) के कीट अपने मुखांग द्वारा पौधों या बीजों में छेद कर उनमें अंडे देते हैं। इसी प्रकार स्कोलाइटिनी (Scolytinae) में स्त्री अंडों और डिंभ की रक्षा और उनका पोषण भी करती है।
| 0.5 | 410.425854 |
20231101.hi_479205_10
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वर्मपंखी
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इनमें वर्धन काल में स्पष्ट रूपांतरण होता है तथा डिंभ विविध प्रकार के हाते हैं। रोचक बात यह है कि ये डिंभ रहन-सहन के अनुरूप संपरिवर्तित होते हैं। एडिफेगा (Adephaga) उपवर्ग में तथा कुछ पालीफ़ागा (Polyphaga) में डिंभ अविकसित कैंपोडाई (Campodai) रूपी होते हैं, अर्थात् ये जंतुभक्षी, लंबी टाँगों, मजबूत मुखांगोंवाले तथा कुछ चिपटे होते हैं। कुकुजॉयडिया (Cucujoidea) के डिंभ कैंपोडाई रूपी तथा एरूसिफ़ार्म (Eruciform) के बीच के होते हैं, अर्थात् उनमें औदरीय टाँगें दिखाई पड़ती हैं। करकुलियोनायडिया में अपाद (ऐपोडस) अर्थात् बिना टाँगों के डिंभ होते हैं। स्पष्ट है कि कैंपोडाई रूपी डिंभ बहुत गतिशील होते हैं, परिवर्तित कैंपोडाई रूपी कम क्रियाशील तथा पादरहित डिंभ गतिविहीन होते हैं। काठ में सुरंग बनानेवाले डिंभ बहुत साधारणत: मांसल होते हैं, इनके मुखांग मजबूत होते हैं और शिर वक्ष में धँसा रहता है। जलीय वंशों के डिंभों की टाँगें तैरने के निमित्त संपरिवर्तित होती है। कुछ वंशों में, जैसे मिलोइडी (Meloidae), राइपिफ़ोरिडी (Rhipiphoridae) तथा माइक्रोमाल्थिडी (Micromalthidae) में अतिरूपांतरण (हाइपरमेटामॉर्फ़ोसिस, hypermetamorphosis) पाया जाता है। इनमें डिंभ की विभिन्न अवस्थाएँ अलग-अलग रूपों की होती हैं।
| 0.5 | 410.425854 |
20231101.hi_185886_21
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सूचकाक्षर
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सूचकाक्षर बनाने के कोई निश्चित नियम नहीं हैं। किसी एक शब्द या नाम के लिए इतने अधिक सूचकाक्षर बनाए जा सकते हैं कि कभी-कभी एक ही शब्द के लिए कई सूचकाक्षर प्रचलित हो जाते हैं। जो हो, वर्तमान में विविध प्रकार के जो सूचकाक्षर प्रचलित हो गए हैं, उनका अध्ययन करने पर हमें सूचकाक्षर बनाने के कुछ नियमों का पता चलता है, जो इस प्रकार है-
| 0.5 | 409.461842 |
20231101.hi_185886_22
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सूचकाक्षर
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(1) सूचकाक्षरों का सरलतम रूप वह है जिसमें किसी नाम में प्रयुक्त किए जाने वाले शब्दों के केवल प्रथमाक्षरों का ही प्रयोग होता है, यथा-यू॰एस॰ए॰ (यूनाइटेड स्टेट्स ऑव अमरीका), उ. प्र. (उत्तर प्रदेश), अ.भा.कां.क. (अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी), आई.ए.एस. (इंडियन ऐडमिनिस्ट्रेशन सर्विस), प्रे.ट्र. (प्रेस ट्रस्ट), ए.पी.आई. (एसोशियेटेड प्रेस ऑव इंडिया), एच.आर.एच. (हिज या हर रायल हाइनेस) आदि।
| 0.5 | 409.461842 |
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सूचकाक्षर
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(2) मूल शब्द के प्रथम और अंतिम अक्षरों को मिलाकर बनाए गए सूचकाक्षर यथा Dr. (Doctor), Mr. (Mister), Fa (Florida) आदि।
| 0.5 | 409.461842 |
20231101.hi_185886_24
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सूचकाक्षर
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(3) मूल शब्द में प्रयुक्त कुछ अक्षरों को इस क्रम से लिखना कि वे सहज ही मूल शब्द का बोध करा दें। यथा Ltd. (Limited) Bldg. (Building) आदि।
| 0.5 | 409.461842 |
20231101.hi_185886_25
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सूचकाक्षर
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(4) मूल शब्द का इतना प्राथमिक अंश लिखना कि उससे पूरे शब्द का बोध सहज ही हो जाए। यथा अंग्रेजी में Prof. (Professor), Wash. (Washington), तथा हिंदी में कं. (कंपनी), लि. (लिमिटेड), डॉ॰ (डॉक्टर), पं॰ (पंडित) आदि।
| 1 | 409.461842 |
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सूचकाक्षर
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(5) मूल शब्द या नाम में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के कुछ ऐसे अंशों को मिलाना कि उनके मेल से एक स्वतंत्र शब्द बन सके यथा टिस्को (Tata Iron and Steel Company) गेस्टापो (Geheime Staats Polizic), रेडार (Radio detection and ranging system), Benelux (Belgium, Netherlands and Luxemburg), इम्पा (Indian Motion Pictures Producers Association) आदि।
| 0.5 | 409.461842 |
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सूचकाक्षर
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(6) शब्दों को पूरे रूप में न कहकर (या लिखकर) केवल उनके प्रथमाक्षर ही कहना (या लिखना) यथा-ए.सी. (Alternative Current), डी.सी. (Direct Current), डी.सी. (Direct Current या Deputy Collector), ए.जी.एम. (Annual General Meeting), एच.पी. (Horse Power), एम.पी.एच. (Mile per hour) आदि।
| 0.5 | 409.461842 |
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सूचकाक्षर
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(7) विविध-इस श्रेणी में हम ऐसे सूचकाक्षरों को रख सकते हैं जो यद्यपि किसी मूल शब्द के अंश हैं, तथापि जो अब स्वयं स्वतंत्र शब्द के रूप में प्रचलित हो चुके हैं। यथा - फ्लू (इन्फ्लुएंजा), फोटो (फोटोग्राफ), आटो (आटोमोबाइल), आदि।
| 0.5 | 409.461842 |
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सूचकाक्षर
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कुछ प्रसिद्ध व्यक्तियों के नामों के भी अब सूचकाक्षर प्रचलित हो गए हैं। अंग्रेजी साहित्य में जार्ज बर्नार्ड शा के लिए जी.बी.एस. और राबर्ट लुई स्टीवेन्सन के लिए आर.एल.एस. का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार राजनीति में भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति श्री फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट के लिए एफ.डी.आर. और भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री आइसनहाइवर के लिए प्रयोग किए जाने वाले "आइक" सूचकाक्षर से जनसाधारण अच्छी तरह परिचित है। अंग्रेजी में फ्रेडरिक को फ्रेड, विलियन को बिल, पैट्रिशिया को पैट, हिंदी में विश्वनाथ को बिस्सु, परमेश्वरी को परमू, चमेली को चंपी आदि कहना भी वास्तव में सूचकाक्षर का ही प्रयोग करना है, तथापि नामों को इस संक्षिप्त रूप में केवल स्नेह या प्यार के कारण ही कहा जाता है।
| 0.5 | 409.461842 |
20231101.hi_1454536_11
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मार्कोस
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मार्कोस के प्रशिक्षण की कुल अवधि सात से आठ महीने के बीच है। रंगरूटों को उग्रवाद विरोधी और आतंकवाद विरोधी अभियानों में फील्ड ऑपरेशन के माध्यम से युद्ध प्रशिक्षण प्राप्त होता है, और किसी भी तरह के वातावरण में और बंधक बचाव, शहरी युद्ध और समुद्री डकैती जैसी स्थितियों में काम करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। एक विशेष रूप से कठोर प्रशिक्षण कार्यक्रम " डेथ क्रॉल " है - एक के साथ लोड होने पर जांघ-ऊँची मिट्टी के माध्यम से संघर्ष करें गियर और बाधा कोर्स कि अधिकांश सैनिक विफल हो जाएंगे। उसके बाद, जब प्रशिक्षु थक जाता है और नींद से वंचित हो जाता है, तो उसे दूर, उसके बगल में एक साथी खड़ा है।
| 0.5 | 409.433897 |
20231101.hi_1454536_12
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मार्कोस
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मार्कोस को चाकू, क्रॉसबो, स्नाइपर राइफल, हैंडगन, असॉल्ट राइफल, सबमशीन गन और नंगे हाथों सहित हर तरह के हथियार और उपकरणों में प्रशिक्षित किया जाता है। गोताखोर होने के नाते, वे पानी के नीचे तैरते हुए शत्रुतापूर्ण तटों तक पहुँच सकते हैं।
| 0.5 | 409.433897 |
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मार्कोस
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उन्हें पूरे लड़ाकू भार के साथ खुले पानी में पैराशूट करने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है। 2013 में, मार्कोस ने एक बड़ा डक-ड्रॉप सिस्टम पेश किया जो Ilyushin Il-76 विमान पर लगाया जाएगा। दो नावों की प्रत्येक प्रणाली में 32 कमांडो, उनके हथियार और नावों के लिए ईंधन को समायोजित किया जा सकता है। एक बार विमान से पैरा-गिराए जाने के बाद, यह कमांडो को दस मिनट के भीतर इन्फ्लेटेबल मोटरयुक्त नावों को इकट्ठा करने की अनुमति देता है और जल्दी से संकटग्रस्त जहाजों तक पहुंचता है। इस तरह के बचाव अभियान को तैनात कमांडो एक घंटे के भीतर अंजाम दे सकते हैं।
| 0.5 | 409.433897 |
20231101.hi_1454536_14
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मार्कोस
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मार्कोस शहरी युद्ध की भी तैयारी कर रहा है और आतंकवादी हमले के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए अपतटीय प्रतिष्ठानों के 3D आभासी मॉडल पर अभ्यास करना शुरू कर दिया है। 26/11 हमले के समान हमले के लिए अच्छी तरह से तैयार होने के लिए समुद्री कमांडो इस कंप्यूटर जनित कार्यक्रम में नियमित प्रशिक्षण सत्र से गुजरते हैं।
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मार्कोस
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औसत मार्कोस प्रशिक्षण ड्रॉप-आउट दर 80% से अधिक है। आईएनएस अभिमन्यु, मुंबई में परिचालन कंपनी के सहायक के रूप में बल की अपनी प्रशिक्षण सुविधा है, बाद में नौसेना विशेष युद्ध सामरिक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में। कॉम्बैट डाइविंग ट्रेनिंग के लिए कमांडो को कोच्चि के नेवल डाइविंग स्कूल में भेजा जाता है। नौसेना विशेष युद्ध सामरिक प्रशिक्षण केंद्र को केरल में तत्कालीन नौसेना अकादमी सुविधा में स्थानांतरित करने की योजना है, जहां यह जंगल युद्ध और आतंकवाद विरोधी अभियानों पर ध्यान केंद्रित करेगा। नई सुविधा मिजोरम में भारतीय सेना के CIJWS की तर्ज पर तैयार की जाएगी।
| 1 | 409.433897 |
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मार्कोस
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विशेष अभियानों को अंजाम देने के लिए मार्कोस की क्षमताओं को मजबूत करने के लिए, भारतीय नौसेना एक उन्नत एकीकृत युद्ध प्रणाली (ICS) की खरीद करेगी जो लक्ष्यों को भेदते हुए मार्कोस की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक प्रभावी कमांड, नियंत्रण और सूचना-साझाकरण संरचना सुनिश्चित करेगी।
| 0.5 | 409.433897 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B8
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मार्कोस
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आईसीएस सामरिक जागरूकता और शत्रुतापूर्ण वातावरण में लड़ने की क्षमता जैसी उन्नत क्षमताएं प्रदान करेगा, और समूह कमांडरों को दूरस्थ रूप से निगरानी और संचालन को नियंत्रित करने में सक्षम बना सकता है। यह व्यक्तिगत और समूह स्तर पर एक एकीकृत नेटवर्क के माध्यम से एक नाविक की निगरानी, बैलिस्टिक सुरक्षा, संचार और गोलाबारी की क्षमता को एकीकृत करने में मदद करेगा। सूचना के अनुरोध (RFI) के माध्यम से खरीद प्रक्रिया शुरू करते हुए, नौसेना के विशेष संचालन और गोताखोरी निदेशालय ने ICS के बारे में वैश्विक विक्रेताओं से विवरण मांगा है।
| 0.5 | 409.433897 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B8
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मार्कोस
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नौसेना द्वारा आवश्यक व्यक्तिगत आईसीएस उपकरणों में संचार उपकरण के साथ-साथ हल्के हेलमेट, हेड-माउंटेड डिस्प्ले, सामरिक और नरम बैलिस्टिक वेस्ट शामिल हैं। समूह-स्तरीय गियर आवश्यकताओं में कमांड और नियंत्रण और निगरानी प्रणाली और उच्च गति संचार उपकरण शामिल हैं। निगरानी, टोही और लक्ष्यीकरण करने के लिए उपकरणों में स्नाइपर, एक लेजर रेंजफाइंडर और एक लंबी दूरी की थर्मल इमेजर और एक मुकाबला समूह के लिए नियर-आईआर लेजर पॉइंटर के लिए एक दृष्टि होगी। ICS असॉल्ट राइफल्स और क्लोज-क्वार्टर लड़ाकू हथियारों के अनुकूल होगा। नौसेना ने हाल ही में मार्कोस के लिए इजरायली IMI Tavor TAR-21 का अधिग्रहण शुरू किया है।
| 0.5 | 409.433897 |
20231101.hi_1454536_19
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B8
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मार्कोस
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2013 में, विजाग स्थित हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड ने चार 500 टन की मिनी-पनडुब्बियों के निर्माण का अनुबंध जीता, जिन्हें लार्सन एंड टुब्रो द्वारा डिजाइन किया गया था। 2010 के उत्तरार्ध में वितरित की जाने वाली मिनी-पनडुब्बियों का उपयोग विशेष रूप से भारतीय नौसेना के मार्कोस द्वारा किया जाएगा।
| 0.5 | 409.433897 |
20231101.hi_221253_3
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80
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वसाबी
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सांस लेने या सूंघने से वसाबी की महक बिल्कुल गंध लवण की तरह होती है और शोधकर्ताओं ने इसके गुणत्व का प्रयोग कर बधिरों के लिए स्मोक अलार्म बनाने का प्रयास किया है। एक नमूने के परीक्षण में भाग लेने वाला बधिर ब्यक्ति वसाबी के वाष्प के तीक्ष्ण गंध के कारण अपनी निद्रा चैम्बर में 10 सेकंड के भीतर जाग जाता है।
| 0.5 | 407.41818 |
20231101.hi_221253_4
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80
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वसाबी
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वसाबी को अक्सर सुशी या साशिमी के साथ, आमतौर पर सोया सॉस के साथ परोसा जाता है कभी कभी इन दोनों को मिलाकर एक चटनी तैयार की जाती है जिसे वसाबी-जोयु कहते हैं। वसाबी की खेती में खर्च और कठिनाई के कारण इसके एक विकल्प (नकली वसाबी) का इस्तेमाल बहुत व्यापक रूप से किया जाता है जो (पश्चिमी) हॉर्सरैडिश, सरसों और हरे खाद्य रंग का एक मिश्रण है, साधारणतः यह अमेरिकी सुशी रेस्तरां में "वसाबी" के रूप में जाना जाता है जबकि वास्तविक वसाबी, जो कदाचित ही उपलब्ध है "ताजे वसाबी" के रूप में संदर्भित किया जाता है। इसी प्रकार, जब वसाबी ट्यूबों में बिकता है, तो सामग्री में वास्तविक वसाबी, सहिजन, सरसों और हरा खाद्य रंग या इन सभी का मिश्रण हो सकता है। जापान में, हॉर्सरैडिश के रूप में जाना जाता है।
| 0.5 | 407.41818 |
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वसाबी
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फलियां ((मूंगफली, सोयाबीन, या मटर) के भूने या तले हुए दानों को, वसाबी पाउडर के साथ चीनी नमक या तेल मिलाकर लेपित कर दिया जाता है और कुरकुरे नाश्ते की तरह खाया जाता हैं।
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वसाबी
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वसाबी में उपलब्ध आइसोथियोसाइनेट, वह रसायन है जो इसे अद्वितीय स्वाद प्रदान करता है, जिनमें शामिल हैं:
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वसाबी
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अनुसंधान ने दर्शाया है कि आइसोथियोसाइनेट का प्रभाव लाभकारी है क्योंकि यह सूक्ष्म जीव के विकास में बाधा डालता है।
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वसाबी
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बड़े पैमाने पर वसाबी की खेती के लिए कुछ स्थान उपयुक्त हैं और आदर्श स्थिति में भी इसकी खेती मुश्किल है। जापान में, वसाबी की खेती इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से की जाती है:
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80
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वसाबी
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वहाँ कृत्रिम रूप से खेती करने की कई सुविधाएं हैं जहां उत्तर में होक्कैदो तक और दक्षिण में क्यूशू तक. चूंकि असली वसाबी की मांग बहुत अधिक है, जापान इसे बड़ी मात्रा में मुख्यभूमि चीन, ताइवान के अली पर्वत और न्यूजीलैंड से आयात करता है।
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वसाबी
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उत्तरी अमेरिका में, कुछ मुट्ठी भर कंपनियों और छोटे किसानों ने वसाबी जापोनिका की खेती के प्रचलन को सफलतापूर्वक जारी रखा है। जबकि केवल उत्तरी पश्चिमी प्रशांत और ब्लू रिज पर्वत के भाग जलवायु और जल का ऐसा संतुलन प्रदान करते हैं जो सावा (जलीय) वसाबी की प्राकृतिक उपज के लिए बहुत उपयुक्त है, हीड्रोपोनिक्स और ग्रीनहाउस के प्रयोग से इस क्षेत्र में विस्तार किया गया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80
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वसाबी
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यद्यपि बेहतरीन सावा वसाबी लगातार बहते पानी, उर्वरकों या कीटनाशकों के बिना, शुद्ध रूप में उगाया जाता है, कुछ उत्पादक अधिक उत्पादन के लिए चिकन खाद, जैसे उर्वरक का प्रयोग करते हैं, जिसका प्रबन्ध ठीक तरीके से न किया जाए तो यह प्रदूषण की वृद्धि का एक स्रोत हो सकता है।
| 0.5 | 407.41818 |
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दूतवाक्यम्
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राजर्षिरथ दिव्यो वा भवेद् धीरोद्धतश्च सः।हास्यश्रृंगारशान्तेभ्य इतरे त्रांगिनो रसाः॥ - साहित्यदर्पण 6/231.233
| 0.5 | 407.187716 |
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दूतवाक्यम्
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अर्थात् व्यायोग उस रूपक को कहते हैं जिसमें प्रसिद्ध इतिवृत्त का चयन किया जाता है। पुरुष पात्रों की अधिकता और स्त्रीपात्रों की न्यूनता होती है, गर्भ और विमर्श सन्धियों की योजना अपेक्षित नहीं होती और पूरी रचना एक अंक में समाप्त होती है। इसमें ऐसे युद्ध का वर्णन होता है जिसमें स्त्री निमित्त न हो। इसमें कैशिकी वृत्ति का अभाव होता है। इसका नायक धीरोद्धत प्रकृति का कोई प्रख्यात व्यक्ति होता है या फिर कोई राजर्षि अथवा देवपुरुष। इसमें श्रृंगार, हास्य और शान्त रसों के अतिरिक्त अन्य कोई रस मुख्य होता है। दूतवाक्य में ‘व्यायोग’ के मुख्य लक्षण घटित होते हुए देखे जा सकते हैं। दूतवाक्यम् की कथावस्तु महाभारत की कथा के उस अंश से ली गयी है जिसमें भगवान् श्रीकृष्ण पाण्डवों के दूत बनकर कौरवों की सभा में जाते हैं। इस रूपक में स्त्रीपात्रों का सर्वथा अभाव है। इसमें राज्य के विभाजन को लेकर युद्ध की चर्चा है। कौरवों में से धीरोद्धत प्रकृति का दुर्योधन दूतवाक्य का नायक है। इसमें शृंगार और शान्त रसों की नहीं, वीर रस की प्रधानता है। इस रूपक में केवल एक अंक है।
| 0.5 | 407.187716 |
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दूतवाक्यम्
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संस्कृत रूपक के मुख्य रूप से तीन तत्त्व होते हैं- कथावस्तु, नेता और रस। प्राचीन काल से ही संस्कृत नाटक मंच पर खेले जाते रहे हैं, इसलिए इनके मूल्यांकन में अभिनय की दृष्टि से मंचन-योग्यता को भी पर्याप्त महत्त्व दिया जाता है।
| 0.5 | 407.187716 |
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दूतवाक्यम्
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कथावस्तु रूपक का मुख्य तत्त्व है। यह (कथा) प्रख्यात, उत्पाद्य या मिश्र किसी भी प्रकार की हो सकती है। व्यायोग नामक रूपक में प्रायः प्रसिद्ध इतिवृत्त होता है। महाकवि भास ने दूतवाक्य की कथावस्तु महाभारत के उद्योग पर्व से ली है। दूतवाक्यम् की मूल कथा इस प्रकार है-
| 0.5 | 407.187716 |
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दूतवाक्यम्
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द्यूतक्रीड़ा में हारने के बाद पाण्डव बारह वर्ष तक वनवास में और एक वर्ष तक अज्ञातवास में व्यतीत करने की शर्त पूरी करके वापस लौटे। जब उन्होंने कौरवों से अपने हिस्से का राज्य मांगा, तो दुर्योधन ने अस्वीकार कर दिया। कौरवों और पाण्डवों के बीच समझौते के प्रयत्न प्रारम्भ हुए। जब यह कार्य सरलता से सम्पन्न होता न दिखा, तब युधिष्ठिर ने विनाशकारी शुद्ध के स्थान पर कौरवों के साथ सन्धि करवाने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण से उनका दूत बनने का निवेदन किया। दूत के रूप में उनके हस्तिनापुर पहुंचने पर धृतराष्ट्र ने उनके स्वागत का पूरा प्रबन्ध किया। श्रीकृष्ण पहले कुन्ती के पास गये, फिर दुर्याधन आदि के पास। वे विदुर के घर ठहरे, जहाँ उन्होंने सुना कि कौरव युद्ध की पूरी तैयारी कर चुके हैं और वे लोग श्रीकृष्ण की कोई बात मानने को तैयार नहीं हैं; अतः श्रीकृष्ण का दौत्य कर्म व्यर्थ को जाएगा। फिर भी वे दूसरे दिन विदुर के साथ राजसभा में उपस्थित हुए। जब सब सभासद यथास्थान बैठ गये तब उन्होंने धृतराष्ट्र को बताया कि वे पाण्डवों की ओर से कौरवों से शान्ति-वार्ता करने आये हैं। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के आगे पाण्डवों को दायभाग देने का प्रस्ताव रखा। कौरव-प्रमुख भीष्म, द्रोण, विदुर और धृतराष्ट्र ने भी दुर्योधन से पाण्डवों को दाय भाग दे देने को कहा, किन्तु दुर्विनीत दुर्योधन पाण्डवों को सूई की नोंक के बराबर की भूमि देने को तैयार नहीं था। सन्धि का प्रस्ताव ठुकरा कर उनसे निर्णय को युद्ध पर ही छोड़ देने की बात की। वह क्रुद्ध होकर गान्धारी की बात अनसुनी करके अपने भाईयों के साथ राजसभा से चला गया। किसी प्रकार विदुर की प्रार्थना पर वह पुनः राजसभा में आया। पुनः उसने शकुनि, कर्ण, दुःशासन आदि से श्रीकृष्ण को बन्दी बनाने को कहा। किसी प्रकार धृतराष्ट्र ने उसे इस निन्दनीय कर्म से रोका। तब श्रीकृष्ण ने अपना विराट् रूप दर्शाया, जिसे श्रीकृष्ण की कृपा से अन्धे धृतराष्ट्र, द्रोण, भीष्म, विदुर और संजय ने देखा। धृतराष्ट्र ने श्रीकृष्ण के चरणों में सिर रखकर क्षमा मांगी। पाण्डवों के पास वापस लौटकर श्रीकृष्ण ने अपनी सन्धिवार्ता की असफलता का वर्णन किया।
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दूतवाक्यम्
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‘दूतवाक्य’ में कवि ने महाभारत के इसी कथांश को कुछ भिन्न रूप में प्रस्तुत किया है- नान्दीपाठ के पश्चात् प्रविष्ट हुआ सूत्रधार जैसे ही कुछ बतलाने जा रहा था कि तभी उसे नेपथ्य से कुछ शब्द सुनाई पड़ता है। उससे ज्ञात होता है कि कौरवों और पाण्डवों में विरोध हो गया है और उसी के लिए दुर्योधन की आज्ञा से उसका सेवक मन्त्रशाला की व्यवस्था कर रहा है। दुर्योधन एक वीर राजा के रूप में रंगमंच पर उपस्थित होता है। वह सब आमन्ति्रात राजाओं और सभासदों को सम्मान के साथ सभाभवन में बैठाता है। सभी सभासदों के बीच शकुनि के सुझाव पर भीष्म सेनापति चुने जाते हैं। इसी समय कांचुकीय बादरायण पाण्डवों के शिविर से दूत के रूप में पुरुषोत्तम नारायण के आने की सूचना देता है। श्रीकृष्ण को नारायण कहने पर दुर्योधन क्रोधित हो उठता है और कांचुकीय से कहता है कि कहो कि केशव नामक दूत आया है। बाद में वह उपस्थित राजाओं से पूछता है कि कृष्ण के साथ हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए। उनके आदरसूचक उत्तर को सुनकर वह पुनः उत्तेजित हो उठता है और कहता है कि कृष्ण को बन्दी बना लेना ही उसे रुचिकर है। वह आज्ञा देता है कि केशव के आने पर कोई भी सम्मानार्थ अपने आसन से नहीं उठेगा। यदि किसी ने ऐसा किया तो उसे राज्य की ओर से कठिन दण्ड दिया जायेगा। स्वयं अपने को उठने से रोकने के लिए वह बादरायण से द्रौपदी के केशहरण का चित्रपट मंगवाता है जिसे देखता हुआ वह बैठा रह सके। चित्रपट को देखते हुए वह द्रौपदी, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल-सहदेव, शकुनि, आचार्य आदि की भाव-भंगिमाओं का चित्रण करता है।
| 0.5 | 407.187716 |
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दूतवाक्यम्
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दुर्योधन के कहने पर कांचुकीय दूत कृष्ण को लेने जाता है। दुर्याधन कर्ण से कृष्ण के नारी जैसे मृदु वचन सुनने को तैयार होने को कहता है। श्रीकृष्ण के सभा में प्रवेश करते ही सभी राजा और क्षत्रिय घबड़ा कर खड़े हो जाते हैं। दुर्योधन भी अपने आसन से गिर जाता है। वासुदेव कृष्ण सभी राजाओं को सम्मान के साथ आसन ग्रहण करने का अनुरोध करते हैं। द्रौपदी के केश और वस्त्र खींचने के चित्र को दुर्योधन के पास देखकर वे मन ही मन उसकी भर्त्सना करते हैं कि अपने ही कुल के बन्धुओं के अपमान करने को मूर्खता के कारण दुर्याधन अपना पराक्रम समझता है। औपचारिक कुशलवार्ता के अनन्तर वासुदेव पाण्डवों का सन्देश सुनाते हैं कि ‘जो हमारा दायभाग है, वह हमें मिलना चाहिए।’ दुर्योधन कहता है कि ‘पाण्डु को मुनिशाप मिला था अतः पाण्डव तो देवपुत्र हैं फिर हमारे बन्धु कैसे हुए? उनका पिता के धन में क्या अधिकार?’ वासुदेव दुर्योधन से पूछते हैं कि धृतराष्ट्र भी अपने पिता विचित्रवीर्य के धन के उत्तराधिकारी कैसे हो सकते हैं? दुर्योधन वासुदेव को उनके बाल-कृत्यों पर भी उलाहना देने लगता है।
| 0.5 | 407.187716 |
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दूतवाक्यम्
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श्रीकृष्ण की तर्कसंगत स्पष्टवादिता से दुर्योधन और बौखला जाता है। वह कहता है कि राज्य भिक्षा में प्राप्त करने की वस्तु नहीं। वह राज्य का तृणमात्र भी पाण्डवों को नहीं देगा। वासुदेव उसको चेतावनी देते हुए कहते हैं कि तुम्हारे कारण सम्पूर्ण कुरुवंश का शीघ्र ही विनाश हो जाएगा। वे जाने लगते हैं। दुर्योधन उनको बन्दी बनाने की आज्ञा देता है। वासुदेव विश्वरूप में प्रकट हो जाते हैं। दुर्योघन उनकी माया से और अधिक चकरा जाता है और बाहर निकल जाता है। वासुदेव क्रोधित होकर सुदर्शन चक्र को बुलाते हैं, वह मानव रूप में प्रकट होता है। सुदर्शन के समझाने पर वासुदेव प्रकृतिस्थ होते हैं। अनन्तर वासुदेव के दिव्यास्त्र शार्ंर्ग धनुष, कौमोदकी गदा, पाञ्चजन्य शंख और नन्दक असि एक के बाद एक प्रवेश करते हैं और सुदर्शन के समझाने पर लौट जाते हैं। फिर विष्णुवाहन गरुड़ का प्रवेश होता है। भगवान् को शान्तरोष जानकर सभी अपने-अपने धाम लौट जाते हैं। बाद में श्रीकृष्ण भी पाण्डवों के शिविर में लौटने लगते हैं कि तभी वृद्ध धृतराष्ट्र का प्रवेश होता है। धृतराष्ट्र वासुदेव के पैरों पर गिरकर पुत्रों के अपराध के लिए क्षमा मांगते हैं। भरतवाक्य के साथ दूतवाक्य रूपक समाप्त होता है।
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दूतवाक्यम्
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महाभारत की मूल कथा से दूतवाक्य की कथा की तुलना करने पर हमें महाकवि भास द्वारा किये गये कुछ मौलिक परिवर्तन दिखायी देते हैं। महाभारत में धृतराष्ट्र राजा हैं, वे कृष्ण के दूत रूप में आने पर राजसिंहासन पर बैठते हैं जबकि दूतवाक्य में दुर्योधन को राजा के रूप में अवतरित किया गया है। दूतवाक्य में द्रौपदी के केश और वस्त्र खींचने से सम्बन्धित चित्र कवि की उद्भावना है। महाभारत में श्रीकृष्ण को बन्दी बनाने का कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया जाता है जबकि दूतवाक्य में उनको बांधने का प्रयत्न दिखाया गया है। दूतवाक्य में दिव्य आयुधों और वाहन गरुड़ की मानव रूप में अवतारणा कवि की अपनी कल्पना है। कवि ने श्रीकृष्ण और दुर्योधन के लम्बे वार्तालाप को अत्यन्त व्यंग्यपूर्ण और रोचक बना दिया है। इन सब नवीनताओं से ही दूतवाक्य की कथा और संवाद सुन्दर और प्रभावशाली हो गये हैं। दूत के रूप में उपस्थित श्रीकृष्ण के वाक्य अर्थात् सन्धि -प्रस्ताव पर आधारित होने के कारण इस रूपक का नाम ‘दूतवाक्य’ सर्वथा सार्थक है।
| 0.5 | 407.187716 |
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उत्थापक
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छोटे या संकुचित स्थानों में अथवा थोड़ी दूरी के लिए पेंच के रूप वाले उच्चालित्र का व्यवहार किया जाता है। खोखले गोल बेलन के भीतर कुंतलाकार एक फल होता है। इस फल के घूमने के साथ-साथ अनाज भी आगे बढ़ता है। अनाज की क्षैतिज गति के लिए यह ठीक काम देता है, किंतु खड़ी अथवा प्राय: खड़ी दिशा में अनाज को चढ़ाने के लिए इसमें बहुत बल लगाने की आवश्यकता होती है और इसलिए यह अनुपयोगी सिद्ध हुआ है।
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उत्थापक
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पिछले कई वर्षों से, नौकाओं तथा जहाजों और, इससे भी अभिनव काल में, रेलों से अनाज उतारने तथा ऊपर नीचे पहुँचाने के लिए हवा से काम लिया जाता है। लचीले नलों से काम लेकर इस विधि का प्रयोग विविध कार्यों में किया जा सकता है। यद्यपि इसके उपयोग में अधिक बल की आवश्यकता होती है और अनाज की गति सीमित होती है, तो भी अन्य उच्चालित्रों की अपेक्षा इसमें अनेक गुण हैं।
| 0.5 | 402.369911 |
20231101.hi_538245_5
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उत्थापक
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हवा से चलने वाली मशीनों का हृदय एक पंप होता है जो या तो पिस्टन के आगे पीछे चलने से अथवा केवल वेगपूर्वक घूमते रहने से काम करता है। यह यंत्र उन नलों से, जिनका मुख अनाज के भीतर डूबा रहता है, वायु निकाल लेता है। तब नलों के मुख से, जिनमें अनाज के साथ अतिरिक्त वायु के प्रवेश के लिए अलग मार्ग रहता है, हवा तथा अनाज साथ-साथ ऊपर चढ़ते हैं।
| 0.5 | 402.369911 |
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उत्थापक
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अनाज के उठाने रखने की मशीनों से काम लेते समय अनाज की धूलि से विस्फोट होने की आशंका पर ध्यान रखना आवश्यक है।
| 0.5 | 402.369911 |
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उत्थापक
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इस वर्ग के यंत्रों में माल पहुँचाने का कार्य अविराम न होकर रुक रुककर होता रहता है। इस प्रकार का उच्चालित्र भार को समय-समय पर ऊपर नीचे करता रहता है। भार रखने के लिए एक चौकी तथा उसे ऊपर नीचे चलाने के लिए रस्सी या जलसंचालित (हाइड्रॉलिक) यंत्र होता है। चौकी एक चौकोर या गोल घर में ऊपर नीचे चलती है जिसे कूपक (शैफ्ट) कहते हैं।
| 1 | 402.369911 |
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उत्थापक
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लघु कार्यक्षम उच्चालित्र २० से ३० मन की सामर्थ्य के, २५ फुट प्रति मिनट की गतिवाले तथा ३५ फुट ऊँचाई तक कार्य करनेवाले होते हैं। इन उच्चालित्रों के सब भागों की रचना साधारण आवश्यकता से कहीं अधिक दृढ़ होती है और इनमें बटन दबाने पर कार्य करनेवाले स्थिर-दाब-नियंत्रक, भवन के प्रत्येक तल पर तथा चलनेवाली चौकी में भी, लगे रहते हैं। यदि नीचे उतरते समय गति अत्यधिक हो जाए तो यान में स्वत:चालित गतिनियंत्रक-सुरक्षा-यंत्र काम करने लगते हैं। चौकी के प्रारंभिक और अंतिम स्थानों पर सीमा स्थिर करनेवाले खटके तथा सुरक्षा के अन्य उपाय भी रहते हैं। ऐसे यंत्रों की एक विशेषता यह है कि चौकी को चलानेवाला यंत्र उच्चालित्र के पेंदे के पास रहता है। इसलिए ऊपर किसी अवलंब या छत की आवश्यकता नहीं होती।
| 0.5 | 402.369911 |
20231101.hi_538245_9
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उत्थापक
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रस्सीवाले गुरुकार्यक्षम उच्चालित्र विशेषकर मोटर ट्रकों पर काम करने के लिए बनाए जाते हैं। वे इतने पुष्ट बनाए जाते हैं कि भार से हानेवाले सब प्रकार के झटके आदि सह सकें। इनके सब नियंत्रक (कंट्रोल) पूर्ण रूप से स्वयंचालित होते हैं और इनका प्रयोग ट्रक का ड्राइवर अथवा अन्य कोई कर्मचारी कर सकता है। यातायात मार्ग के कुछ स्थानों पर, सिर से ऊपर लगे और बटन दबाने पर कार्य करनेवाले नियंत्रकों, से यह बात संभव हो जाती है। जहाँ आवश्यकता होती है वहाँ ऐसा प्रबंध भी रहता है जिसके द्वारा कोई अनुचर भी नियंत्रण कर सकता है। जहाँ भवन बहुत ऊँचा हो तथा माल शीघ्र चढ़ाने की आवश्यकता हो वहाँ के लिए रस्सी की सहायता से कार्य संपादित करनेवाले उच्चालित्र विशेष उपयोगी होते हैं।
| 0.5 | 402.369911 |
20231101.hi_538245_10
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%95
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उत्थापक
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जलचालित उच्चालित्र जलचालित उच्चालित्रों का उपयोग नीचे भवनों में होता है जहाँ बोझ बहुत भारी रहता है और तीव्र गति की आवश्यकता नहीं रहती। इन उच्चालित्रों के कार्य में दाब में पड़े द्रव से काम लिया जाता है। ऐसे उपकरणों के निर्माता दावा करते हैं कि जलचालित उच्चालित्र की चौकी पर भारी बोझ लादने पर चौकी नीचे की ओर नहीं भागती क्योंकि उसका आधार तेल का एक असंपीडनीय स्तंभ होता है। वे इस प्रकार के यंत्रों में निम्नांकित अन्य गुण भी बताते हैं : इनके लिए किसी छत की आवश्यकता नहीं पड़ती; इनका कूपकमार्ग खुला और इसलिए सुप्रकाशित रहता है; चौकी बिना झटके के चलना आरंभ करती और रुकती है; जहाँ रोकना चाहें ठीक वहीं रुकती है; और मशीन को अच्छी दशा में बनाए रखने में व्यय कम होता है।
| 0.5 | 402.369911 |
20231101.hi_538245_11
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उत्थापक
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यात्रियों के लिए बने उच्चालित्रों की रचना भी बोझ ढोनेवाले उच्चालित्रों की ही तरह होती है। केवल इनमें सुरक्षा की कुछ अधिक युक्तियाँ रहती हैं तथा इनके रूप और यात्रियों की सुख सुविधा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
| 0.5 | 402.369911 |
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त्रिनिदाद
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त्रिनिदाद (अंग्रेजी: ट्रिनिडाड, स्पैनिश:ट्रिनिटी) कैरेबियाई या केरिबियन सागर में एक द्वीप है। त्रिनिदाद और टोबैगो द्वीप मिलकर एक द्वीप देश का निर्माण करते हैं। इनमे से त्रिनिदाद ज्यादा बडा़ और सघन जनसंख्या वाला द्वीप है। त्रिनिदाद कैरिबियन के सबसे दक्षिणी छोर पर स्थित द्वीप है और वेनेजुएला के पूर्वी तट से सिर्फ 11 किमी (7 मील) दूर है। त्रिनिदाद, पूरे वेस्ट इंडीज का सबसे बड़ा छठे स्थान का द्वीप है। इसका क्षेत्रफल 4769 किमी ² (1864 वर्ग मी.) है और यह 10 ° 3'N 60 ° 55'W / 10,05, -60,917 और 10 ° 50'N 61 ° 55'W / 10,833, -61,917 के बीच स्थित है। चगवानस त्रिनिदाद का प्रमुख नगर है। यहाँ भारतीय मूल निवासियों का बाहुल्य है।
| 0.5 | 400.240436 |
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त्रिनिदाद
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विश्वास किया जाता है कि प्राचीन काल में वह दक्षिणी अमरीका का एक भाग रहा होगा। द्वीप की आकृति वर्गाकार तथा क्षेत्रफल 48,46,04 वर्ग किलोमीटर है जिसके उत्तरी-पश्चिमी तथा दक्षिणी-पश्चिमी कोने में दो प्रायद्वीप हैं। उत्तर तथा दक्षिण में एक द्वीप के मध्य में पर्वतीय श्रृंखलाएँ पूर्व से पश्चिम द्वीप के आर पार फैली हुई हैं। एरिपो पर्वत उत्तर-पूर्व में है जिसकी ऊँचाई 973 मीटर है। यहाँ अनेक तेज तथा छोटी धाराएँ हैं। जलवायु गर्म तथा तर है। औसत ताप 25 डिग्री सें0 है। अधिकांश वर्षा जून से दिसंबर तक होती है। अधिकांश भूक्षेत्र जंगलों से ढका हुआ है। खाद्यान्नों के अतिरिक्त कहवा, ईख, केला तथा अन्य गरम और तर जलवायु के फल प्रचुर मात्रा में पैदा होते हैं। यूरोपीय निवासियों में अंग्रेज, फ्रांसीसी, पुर्तगाली तथा स्पेनी मुख्य हैं। आदिवासियों में अफ्रीकी जाति के लोग हैं।
| 0.5 | 400.240436 |
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त्रिनिदाद
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दक्षिण-पश्चिम में स्थित पिच झील से हजारों टन डामर (Asphalt) निकाला जाता है। खनिज तेल, चीनी, कहवा, शराब, तथा डामर निर्यात की मुख्य वस्तुएँ हैं। द्वीप में 188.8 किलोमीटर लंबी रेलवे तथा 3742.4 किलोमीटर लंबी सड़कें हैं। यहाँ की राजधानी तथा मुख्य बंदरगाह पोर्टस्पैन है। दूसरा मुख्य नगर तथा बंदरगाह सेन फनरैंडो है। अंग्रेजी अधिकांश लोगों की भाषा है।
| 0.5 | 400.240436 |
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त्रिनिदाद
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त्रिनिदाद और टोबैगो द्वीपों का इतिहास अमरीकी मूल निवासियों की बस्तियों के साथ शुरू होता है। दोनों द्वीपों से क्रिस्टोफर कोलंबस का साक्षातकार अपनी तीसरी यात्रा पर, 1498 की जुलाई में हुआ था। यह नाम भी उसी का दिया हुआ है। 1552 तक यह द्वीप उपेक्षित रहा और स्पेनवालों ने इसपर अधिकार करने की रुचि नहीं दिखाई।
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त्रिनिदाद
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टोबैगो ब्रिटिश, फ्रांसीसी, डच और कोरलन्डर के हाथों मे जाकर अंततः ब्रिटेन के हाथों में चला गया। 1797 तक त्रिनिदाद पर स्पैनिश लोगों का अधिपत्य था, लेकिन फ्रांसीसी एक बड़े पैमाने पर यहाँ बने रहे। 1888 में दोनो द्वीपों एक ही उपनिवेश में शामिल थे। त्रिनिदाद और टोबैगो ने 1962 में ब्रिटिश साम्राज्य से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की और 1976 में एक गणराज्य बना।
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त्रिनिदाद
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इसके बाद धीरे-धीरे स्पेनवाले यहाँ आए लेकिन स्थानीय "इंडियनों" तथा अन्य यूरोपियनों में हुए संघर्ष ने यूरोपियनों का बसना कठिन कर दिया। कुछ दिनों तक यह द्वीप स्पेनी व्यापारियों का केंद्र रहा। दास व्यापार ने जन्म लिया। फिर भी स्पेन के अन्य लोग वहाँ जाने में रुचि नहीं लेते थे। 1783 में स्पेन की सरकार ने अन्य राष्ट्रों के लोगों को बसने की अनुमति दे दी। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत से लोग, विशेषतया फ्रांसीसी, वहाँ पहुँचे और द्वीप नाममात्र को स्पेन का रह गया। 1802 में ट्रिनिडैड अंग्रेजों के अधिकार में आ गया और स्वतंत्र होने तक (31 अगस्त 1962 तक) वे ही उसके अधिकारी बने रहे।
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त्रिनिदाद
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ट्रिनिडैड में नीग्रो और भारतीयों ने आर्थिक मामलों में एक दूसरे पर आश्रित होते हुए भी अपनी सांस्कृतिक भिन्नता को नहीं मिटने दिया है। अंतर्विवाहों की संख्या नगण्य है। यह सांस्कृतिक और जातीय अंतर राजनीति में भी भूमिका अदा करता है। नीग्रो प्राय: नगरों में तथा ट्रिनिडौड के उत्तरी, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी स्थानों पर, जहाँ कृषि के लिये अच्छी सुविधाएँ नहीं हैं, बसे हुए हैं। भारतीय अच्छी कृषियोग्य भूमि में बसे हुए हैं और नीग्रो लोगों की अपेक्षा व्यापार, उद्योग आदि में अधिक संपन्न हैं।
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त्रिनिदाद
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स्नेनी राज्य के काल से 19वीं शताब्दी तक चीनी ही यहाँ का मुख्य उत्पादन रहा। 1834 में दासप्रथा के समाप्त होने के कारण श्रमशक्ति का अभाव हो गया। इसके लिये लगभग 1 लाख 50 हजार भारतीयों को बसाया गया। 19वीं शताब्दी के अंत तक कोको का उत्पादन अधिक बढ़ा और उसका निर्यात चीनी से भी अधिक होने लगा। 1910 में दक्षिण ट्रिनिडैड में पेट्रोल प्राप्त हुआ। उस समय से आज तक ट्रिनिडैड की अर्थव्यवस्था में उसका महत्वपूर्ण स्थान है।
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त्रिनिदाद
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समीपस्थ द्वीप टोबैगो में सबसे पहले अंग्रेज 1616 में बसने के लिए पहुँचे, किंतु वहाँ के "इंडियनों" ने उन्हें वहाँ नहीं रहने दिया। अगले 200 वर्षों तक वहाँ अनेक जगहों से लोग आते जाते रहे। अंततोगत्वा 1814 में वहाँ अंग्रेजों का अधिकार हो गया, जो लगभग 150 वर्ष तक बना रहा। इस समय तक टोबैगो पृथक् उपनिवेश के रूप में शासित था, 1888 में ट्रिनिडैड के साथ इसे मिला दिया गया। दोनों साथ ही साथ एक राष्ट्र के रूप में स्वतंत्र हुए।
| 0.5 | 400.240436 |
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शैलकला
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चित्रांकन और रेंखांकन मनुष्य जाति की सबसे प्राचीन कलाएं हैं। आदि मानव गुफाओं की दीवारों का प्रयोग कैनवास के रूप में किया करता था। उसने रेखांकन और चित्रांकन शायद अपने प्रतिवेश को चित्रित करने अथवा अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का दृश्य रिकार्ड करने के लिए भी किया हो। गुफाओं की चट्टानों पर अपने इतिहास को चित्रित करने का उसका प्रयास शायद वैसा ही था जैसेकि हम अपनी दैनिक डायरी लिखते हैं।
| 0.5 | 400.107825 |
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शैलकला
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वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि पाषाणयुग (वह समय जबकि वह पत्थर के हथियारों का प्रयोग करता था) का मनुष्य गुफाओं में रहता था और शिलाओं के इन आश्रय स्थलों का प्रयोग वर्षा, बिजली, ठंड और चमचमाती गर्मी से अपनी रक्षा करने के लिए किया करता था। वे यह भी मानते हैं और उन्होंने यह प्रमाणित करने के साक्ष्य भी ढूंढ लिए हैं कि गुफाओं में रहने वाले ये लोग लंबे, बलवान थे और प्राकृतिक खतरों से निबटने और साथ ही विशालकाय जंगली गैंडे, डायनोसोर अथवा जंगली सूअरों के समूह के बीच अपने जीवन की दौड़ दौड़ते रहने के लिए उसके पास अनेक वहशियों की तुलना में कहीं अच्छे दिमाग होते थे। रेनडियर, जंगली घोड़े, सांड अथवा भैंसे का शिकार करते-करते कभी-कभी वह आसपास रहने वाले भालुओं, शेरों तथा अन्य जंगली पशुओं का ग्रास बन जाता था।
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शैलकला
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हां, इन आदि मानवों के पास कुछ उत्तम चित्र रेखांकित और चित्रांकित करने का समय रहता था। सारे वि में अनेक गुफाओं का दीवारें जिन पशुओं का कन्दरावासी शिकार किया करते थे, उनके बारीकी से उत्कीर्ण और रंगे हुए चित्रों से भरी हुई हैं। ये लोग मानवीय आकृतियों, अन्य मानवीय क्रियाकलापों, ज्यामिति के डिजाइनों और प्रतीकों के चित्र भी बनाते थे।
| 0.5 | 400.107825 |
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शैलकला
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वैज्ञानिकों ने प्राचीन गुफा आश्रय स्थलों की खोज करके मनुष्य के प्राचीन इतिहास के सम्बन्ध में बहुत कुछ जान लिया है। ये वैज्ञानिक प्राचीन काल की दलदल और नमीदार दीवारों की रेत के कारण दफन हुए शवों की खुदाई करते हैं और गहरी खुदाई करने पर उन्हें हड्डियों और हथियारों की एक और परत मिलती है, जो और भी प्राचीन मनुष्यों का परिचय देती है। इन परतों में उन्हें उन पशुओं के अवशेष (अस्थियां) भी मिलते हैं जिनका अब इन पृथ्वी पर कोई नामों-निशान नहीं बच रहा है। इन अवशेषों और मनुष्यों ने गुफाओं की दीवारों पर जो चित्र बनाए थे उनके सहारे अध्यवसायी वैज्ञानिक उस युग के मनुष्य की कहानी को कण-कण करके जोड़ते हैं और प्रकाश में लाते हैं।
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शैलकला
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आदिम मानव ने शिला पर अपनी कला के कई निशान छोड़े हैं जो कि कच्चे कोयले से खींची गई आकृतियों अथवा हेमेटाइट नामक पत्थऱ से तैयार किए गए अथवा पौधों से निकाले गए रंग से बनाए गए चित्रों अथवा पत्थर पर उत्कीर्ण नक्काशी के रूप में मौजूद हैं। कच्चे कोयले अथवा रंगों से बनाए गए चित्र (चित्रलेख) पिक्टोग्राफ कहलाते हैं जबकि अपघर्षित चित्र (प्राचीन मनुष्य इन अर्थों में कुशाग्र बुद्धि था कि वह आकृतियों की बहि:रेखाएं खींचता था और दूसरे पत्थर से चित्रांकन किए हुए हिस्से से मिटा देता था, जिससे कि वह चित्रांकनों के लिए पृष्ठभूमि के रूप में प्रयुक्त पत्थर पर आकृतियां उभार सकें) (शीलोत्कीर्णन) पैट्रोग्लिफ कहलाते हैं।
| 1 | 400.107825 |
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शैलकला
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महाराष्ट्र राज्य के कोकण प्रांतमें रत्नागिरी, लांजा, राजापूर, देवगड़ और सिंधुदुर्ग जिलोमें सबसे ज्यादा शैलशिल्प है।
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शैलकला
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जयगड, चवे, रामरोड, करबुडे, मासेबाव, निवळी, गोळप, निवळी गावडेवाडी, कापडगाव, उमरे, कुरतडे, कोळंबे, गणेशगुळे, मेर्वी, गावखडी, डोर्ले इ.
| 0.5 | 400.107825 |
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शैलकला
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देवाचे गोठणे, सोगमवाडी, गोवळ, उपळे, साखरे कोंब, विखारे गोठणे, बारसू, पन्हाळे ,शेडे, कोतापूर, देवीहसोळ इ.
| 0.5 | 400.107825 |
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शैलकला
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कोकण प्रांतके पर्वतीय पठार पर यह संशोधन कार्य जारी है । ३७०० चौ कि मी व्यापित क्षेत्र में यह संशोधन हो रहा है ।
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पश्तूनवाली
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7. इस्तेक़ामत Isteqamat – ख़ुदा पर विश्वास करना। पश्तो में जिसे ख़ुदा, अरबी में अल्लाह व हिन्दी में व्हगवान कहा जाता है। इसी को अंग्रेज़ी में ग़ाड कहते हैं। ऐसा विश्वास करना कि ख़ुदा एक है, उसी ने सारी दुनिया की सभी चीज़ें बनाई हैं। यह यहां हज़ार साल पुराना पख़्तूनवली का सिद्धान्त इसलाम के तौहीद के समकक्ष है।
| 0.5 | 399.900409 |
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पश्तूनवाली
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8. ग़ैरत:- Ghayrat (self honour or dignity) – पख़्तून ने हमेशा अपना मानवीय गरिमा बनाये व बचाये रखना चाहिये। पख़्तून समाज में गरिमा बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होने अपनी व अन्य लोगों की भी गरिमा को बनाये व बचाये रखना चाहिये। उन्होने ख़ुद अपना भी सम्मान करना चाहिये व दूसरों का भी सम्मान करना चाहिये नमूस (औरतों का सम्मान) Namus (Honor of women) – एक पठान ने पठान स्त्रियों व लड़कियों के सम्मान की रक्षा हर क़ीमत पर करनी चाहिये।
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पश्तूनवाली
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आज़ादी:- शारीरिक, मानसिक, धार्मिक रूहानी, राजनीतिक व आर्थिक आज़ादी, उस समय तक जब तक कि यह दूसरों को नुकसान ना पहुंचाने लगे।
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पश्तूनवाली
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न्याय व माफ़ करना:- अगर कोई जानबूझ कर गलत काम करे व आपने अगर न्याय की मांग नहीं की ना ही गलती करने वाले ने माफ़ी मांगी तो ख़ून के बदले ख़ून आंख के बदले आंख दान्त के बदले दान्त के अनुसार बदला जब तक ना लिया जाये, पठान पर यह एक क़र्ज़ा रहता है। यहां तक कि यह उस पर एक बन्धन है कि उसे ऐसा करना ही होगा। चाहे वह पठान स्त्री हो या पठान पुरुष्।
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पश्तूनवाली
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एकता व बराबरी:- चाहे वे कोई भी भाषा बोलते हों, चाहे किसी भी क़बीले के हों, चाहे ग़रीब हों या अमीर, चाहे कितना ही रुपया उनके पास हो, पख़्तूनवली सारी दुनिया के पख़्तूनों या पठानों को एक सूत्र बें बांधती है। हर इन्सान बराबर है, यह पश्तूनवली का मूल सिद्धान्त था।
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पश्तूनवाली
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सुने जाने का अधिकार:- चाहे वे कोई भी भाषा बोलते हों, चाहे किसी भी क़बीले के हों, चाहे ग़रीब हों या अमीर, चाहे कितना ही रुपया उनके पास हो हर एक को यह अधिकार प्राप्त है कि उसकी बात समाज में व जिर्गा में सुनी जाये।
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पश्तूनवाली
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परिवार व विश्वास:- यह मानना कि हर एक पख़्तून स्त्री व पुरुष अन्य पख़्तूनों का भाई व बहन है, चाहे पख़्तून 1 हज़ार क़बीलों में ही बंटे क्यों ना हों। पख़्तून एक परिवार है, उन्भें अन्य पख़्तून परिवारों के स्त्रियों, बेटियों, ब्ड़े बुज़ुर्गों, माता- पिता, बेटों, व पतियों का ख़्याल रखना चाहिये।
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पश्तूनवाली
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इल्म या ज्ञान प्राप्त करना:- पख़्तून ने ज़िन्दगी, इतिहास, विज्ञान, सभ्यता संस्कृति आदि के बारे में लगातार अपना ज्ञान बढ़ाते रहने की कोशिश करते रहना चाहिये। पख़्तून ने अपना दिमाग़ हमेशा नये विचारों के लिये खुला रखना चाहिये।
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पश्तूनवाली
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बुराई के ख़िलाफ़ लड़ो:- अच्छाई व बुराई के बीच एक लगातार जंग जारी है, पख़्तून ने जहां कहीं भी वह बुराई देखे तो उसके ख़िलाफ़ लड़ना चाहिये। यह उसका फ़र्ज़ है। हेवाद:- Hewad (nation) –पख़्तून ने अपने पख़्तून देश से प्यार करना चाहिये। इसे सुधारने व मुक़म्मल बनाने की कोशिश करते रहना चाहिये। पख़्तून सभ्यता व संस्कृति की रक्षा करना चाहिये। किसी भी प्रकार के विदेशी हमले की स्थिति में पख़्तून ने अपने देश पख़्तूनख़्वा की हिफ़ाज़त करना चाहिये। देश की हिफ़ाज़त से तात्पर्य सभ्यता संस्कृति, परंपराएं, जीवन मूल्य आदि की हिफ़ाज़त करने से है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%95
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ब्लैकजैक
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आम तौर पर, अधिकतम संभावित हैण्ड एक "ब्लैकजैक" या "नैच्यूरल" है, जिसका मतलब कुल 21 मानों वाला एक आरंभिक दो कार्ड (एक इक्का और एक 10 मान वाला कार्ड) है। जिस खिलाड़ी को ब्लैकजैक बांटा जाता है वह अपने आप जीत जाता है, अगर डीलर के पास भी ब्लैकजैक न हो, इस मामले में हैण्ड एक "पुश" (टाई) होता है। जब डीलर का अपकार्ड एक इक्का होता है, तो खिलाड़ी को अलग से दांव लगाने की अनुमति दी जाती है जिसे "इंश्योरेंस" कहते हैं, जो कथित तौर पर जोखिम की रक्षा करता है कि डीलर के पास एक ब्लैकजैक (अर्थात्, उसके होल कार्ड के रूप में एक दस मान वाला कार्ड) है। इंश्योरेंस दांव से 2 से 1 का भुगतान होता है यदि डीलर के पास एक ब्लैकजैक हो। जब कभी डीलर के पास एक ब्लैकजैक होता है, वह उन खिलाड़ियों को छोड़कर बाकी सभी खिलाड़ियों से जीत जाता है जिनके पास भी एक ब्लैकजैक (एक "पुश") होता है।
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ब्लैकजैक
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न्यूनतम और अधिकतम दांव टेबल पर लगाए जाते हैं। अधिकांश दांव की अदायगी 1:1 होती है जिसका मतलब यह है कि खिलाड़ी उतना ही रकम जीतता है जितने रकम का वह दांव लगाता है। एक खिलाड़ी ब्लैकजैक की पारंपरिक अदायगी 3:2 होती है जिसका मतलब यह है कि कसीनो हर 2 डॉलर के दांव के लिए 3 डॉलर का भुगतान करता है लेकिन आज के दौर में कई कसीनो कुछ टेबलों पर कम भुगतान करते हैं।
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ब्लैकजैक
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अपने आरंभिक दो कार्डों को प्राप्त करने के बाद खिलाड़ी को चार मानक विकल्प प्राप्त होते हैं: वह "हिट", "स्टैंड", "डबल डाउन," या "स्प्लिट ए पेयर" का चयन कर सकता है। प्रत्येक विकल्प के लिए एक हैण्ड संकेत के उपयोग की जरूरत पड़ती है। कुछ कसीनो या टेबलों पर, खिलाड़ी को एक पांचवां विकल्प मिल सकता है, जिसे "आत्मसमर्पण" कहते हैं।
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ब्लैकजैक
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संकेत : (हैण्डहेल्ड) टेबल के विरूद्ध कार्डों को बटोरना. (फेस अप) अंगुली से टेबल को स्पर्श करना या खुद की तरह हाथ लहराना.
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ब्लैकजैक
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डबल डाउन : अपने पहले दो कार्डों को प्राप्त करने के बाद तथा उसे कोई और कार्ड बांटे जाने से पहले, एक खिलाड़ी के पास "डबल डाउन" का विकल्प होता है। इसका मतलब है कि खिलाड़ी को डीलर से केवल एक और कार्ड प्राप्त करने के बदले में अपने आरंभिक दांव को दोगुना करने की अनुमति दी जाती है। खेले जाने वाले हैण्ड में उसके मूल दो कार्ड और डीलर से प्राप्त एक और कार्ड शामिल होता है। ऐसा करने के लिए वह अपने मूल दांव के आगे बेटिंग बॉक्स में पहले दांव के बराबर एक दूसरा दांव लगाता है। (यदि इच्छा हो और कसीनो के नियमों की अनुमति हो, तो
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ब्लैकजैक
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खिलाड़ी को आम तौर पर "डबल डाउन फॉर लेस" की अनुमति दी जाती है, जिससे उसे बेटिंग बॉक्स में इसके आगे मूल दांव से कम रकम का दांव लगाने की अनुमति मिल जाती है, हालांकि आम तौर पर यह एक अच्छा विचार नहीं है क्योंकि खिलाड़ी को केवल अनुकूल परिस्थितियों में अपने दांव को दोगुना करना चाहिए लेकिन उसके बाद ज्यादा से ज्यादा जितना हो सके उतना दांव बढ़ाना चाहिए। इसके विपरीत, कोई खिलाड़ी मूल दांव के मूल्य से अधिक डबल डाउन नहीं कर सकता है।)
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ब्लैकजैक
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स्प्लिट ए पेयर : यदि उसके पहले दो कार्ड एक "पेयर" (जोड़ा) हैं, जिसका मतलब यह है कि दोनों कार्डों का मान एक समान है, तो खिलाड़ी उस जोड़े कार्डों को अलग कर सकता है। ऐसा करने के लिए, वह मूल दांव के बेटिंग बॉक्स के बाहर के किसी क्षेत्र में पहले दांव के बराबर एक दूसरा दांव लगाता है। डीलर दो हैण्ड का निर्माण करने के लिए कार्डों को अलग करता है और प्रत्येक हैण्ड के साथ एक दांव लगाता है। उसके बाद खिलाड़ दो अलग-अलग हैण्ड खेलता है।
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ब्लैकजैक
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संकेत : बेटिंग बॉक्स के बाहर मूल दांव के आगे अतिरिक्त चिप्स रखना. वी के आकार में फैलाकर दो अंगुलियों से इंगित करना.
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ब्लैकजैक
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सरेंडर या आत्मसमर्पण : कुछ कसीनो एक पांचवां विकल्प प्रदान करते हैं जिसे "सरेंडर" या आत्मसमर्पण कहा जाता है। डीलर द्वारा ब्लैकजैक की जांच करने के बाद खिलाड़ी अपने दांव का आधा भाग छोड़कर और अपना हाथ न खेलकर "आत्मसमर्पण" कर सकता है।
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आदिजन्तु
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फोरैमिनिफ़ेरा (Foraminifera) नामक गण के प्रोटोज़ोआ सुरक्षा के लिए अपने ऊपर खोल बनाते हैं। असामान्य स्थिति में कुछ प्रोटोज़ोआ सुरक्षा कला का निर्माण करते हैं जिसे पुटी (Cysts) कहते हैं। पुटी प्रोटोज़ोआ की प्रतिरोधक अवस्था है। इस अवस्था में परजीवी प्रोटोज़ोआ भी अपने परपोषी के प्रति प्रभावहीन रहते हैं।
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आदिजन्तु
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प्रोटोज़ोआ के कोशिका द्रव्य में पाचन के लिए खाद्य रिक्तिका (food vacuole) और जल तथा अन्य तरल उत्सर्ग को बाहर निकालने के लिए संकुचनशील रिक्तका (contractile vacuole) होते हैं। जिन प्रोटोज़ोआओं में क्लोरोफिल रहता है, उनमें क्लोरोफिल के लिए हरित लवक (chloroplast) या वर्णकी लबक रहता है
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आदिजन्तु
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केंद्रक - प्रोटोज़ोआ की कोशिका की महत्वपूर्ण संरचना केंद्रक है। यह जनन को नियमित तथा अन्य कार्यों को नियंत्रित करता है। कोशिकाद्रव्य के अंत:प्रद्रव्य में यह स्थिर रहता है और इसकी संरचना की सहायता से प्रोटोज़ोआ के जेनरा (genera) और स्पीशीज़ में अंतर करने में सहायता मिलती है। प्रटोज़ोआ में एक या अधिक केंद्रक होते हैं।
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आदिजन्तु
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प्रोटोज़ोआ में श्वसन संस्थान नहीं होता, किंतु ऑक्सीकरण द्वारा ये ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। उत्सर्जन संस्थान की उपस्थिति भी विवादस्पद है। जीवन के लगभग सभी कार्य इसके कोशिकाद्रव्य द्वारा होते हैं। अधिकांश प्रोटोज़ोआ आहार के लिए लघु पौधों, मल और दूसरे प्रोटोज़ोआओं पर निर्भर करते हैं। परजीवी प्रोटोज़ोआ परपोषी के ऊतकों पर रहते हैं। जिन प्रोटोज़ोआओं में क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) होता है, वे पौधों की तरह प्रकाशसंश्लेषण से अपना भोजन बनाते हैं। यूग्लीना (Euglena) और वॉलवॉक्स (volvox) इसके उदाहरण हैं । कुछ प्रोटोज़ोआ अपने शरीर की सतह द्वारा जल में घुले आहार को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार के पोषण को मृतजीवी पोषण (saprozoic nutrition) कहते हैं। कुछ प्रोटोज़ोआ परिस्थिति के अनुसार पादपसमभोजी (holophytic) और मृतजीवी में बदलते रहते हैं, जैसे यूग्लीना को, जो पादपसमभोजी है, यदि अंधकार में रख दिया जाए तो इसका क्लोरोफिल समाप्त हो जाता है और यह मृतजीवी हो जाता है। कुछ प्रोटोज़ोआ प्राणिसम भोजी (holozoic) होते हैं, जो प्रग्रहण (capture) तथा अंतर्ग्रहण (injestin) द्वारा कार्बनिक पदार्थो को खाते हैं।
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आदिजन्तु
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प्रोटोज़ोआ में अलैंगिक एवं लैंगिक दोनों प्रकार से जनन क्रिया होती है। अलैंगिक जनन भी दो प्रकार से होता है :
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आदिजन्तु
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(1) सरल द्विविभाजन - इसमें प्रोटोज़ोआ अनुप्रस्थ या अनुदैर्ध्य रूप में दो भागों में विभाजित हो जाता है। ये भाग न्यूनाधिक बराबर होते हैं।
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आदिजन्तु
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(2) बहुविभाजन - इस विभाजन में दो या अधिक प्रोटोज़ोआ उत्पन्न होते हैं। जनक कोश के केंद्र का बारंबार विभाजन होता है और विभक्त हुए खंडों को कोशिकाद्रव घेर लेता है। जब कोशों का बनना पूर्ण हो जाता है, तो कोशिका द्रव फटकर अलग हो जाता है।
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आदिजन्तु
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(1) संयुग्मन - इस प्रकार के जनन में दो प्रोटाज़ोआओं का अस्थायी संयोग होता है। इस संयोग काल में केंद्रकीय पदार्थ का विनिमय होता है। बाद में दोनों प्रोटोज़ोआ पृथक् हो जाते हैं, प्रत्येक इस क्रिया द्वारा पुनर्युवनित (rejuvenated) हो जाता है। सिलिएटा (ciliata) का जनन संयुग्मन का उदाहरण है।
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आदिजन्तु
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(2) युग्मकसंलयन - इस क्रिया में युग्मक (gamete) स्थायी रूप से संयोग करते हैं और केंद्रकीय पदार्थ का संपूर्ण विखंडन होता है। विखंडन के परिणामस्वरूप युग्मनज (zygote) उत्पन्न होते हैं।
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संत्रास
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संत्रास कभी भी उभर सकता है। बिना किसी पूर्व कारण अथवा तालमेल के व्यक्ति का अंतःकरण अचानक भय से भर जाता है। व्यक्ति की चेतना पर अनजाने ही आतंक और गहरी आशंका का दौरा छा जाता है। जी मिचलाने लगता है, खुद पर बस नहीं रहता, कुछ लोगों को तो ऐसा भी लगता है जैसे वे पगला गए हों या फिर बस मौत सिर पर खड़ी है। प्रतिवर्ष दुनिया भर में लाखों लोग इस तरह के अनुभवों से गुजरते हैं। बहुतों को तो ऐसा लगता है कि उन्हें दिल का दौरा पड़ गया है और वे अस्पताल भागते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो चरम भय का अनुभव करने पर भी उसे नकारना चाहते हैं। लेकिन, दास्तान सबकी लगभग एक ही जैसी होती है। असलियत में वे सभी संत्रास के दौरों के शिकार हो जाते हैं जिसे आप चाहें तो संत्रास विकार भी कह सकते हैं।
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संत्रास
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संत्रास के दौरों को कभी ‘उत्तेजना’ या तनाव कह कर हाशिये पर डाल दिया जाता था, लेकिन आज इसे एक ऐसी स्थिति माना जाता है जो व्यक्ति को हर तरह से पंगु बना देती है। किंतु इसका इलाज भी संभव है। इसका दौरा अमूमन कुछ सैकंड से लेकर कई घंटों तक बना रहता है। हां, अधिकांश दौरे शुरूआती दस मिनटों में चरम अवस्था तक पहुंच जाते है और 20-30 मिनट में शांत भी हो जाते हैं। साथ ही मरीज को अजीब सी थकान से पस्त कर देते हैं। ये दौरे दुबारा कभी भी हो सकते हैं और यह अनिश्चिय व्यक्ति को लगातार व्यग्र बनाए रखता है। मन में भय घर कर जाता है और आदमी को समाज ही नहीं आता कि आखिर क्या किया जाए? कुछ लोग तो इतने आतंकित हो जाते हैं कि डर के मारे घर से बाहर कदम भी नहीं रखते।
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Subsets and Splits
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