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रे-बैन
रे-बैन धूप के चश्मों की एक निर्माता कंपनी है, जिसकी स्थापना 1937 में बॉश एंड लॉम्ब (Bausch & Lomb) द्वारा की गई थी। इन्हें युनाइटेड स्टेट्स आर्मी एयर कॉर्प्स के लिए के लिए बनाया गया था। 1999 में बॉश तथा लॉम्ब ने इस ब्रांड को इतालवी लक्सोटिका समूह को तथाकथित 640 मिलियन डॉलर में बेच दिया।
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रे-बैन
रे-बैन का निर्माण 1937 में किया गया था। कुछ वर्ष पूर्व, लेफ़्टिनेंट जॉन मॅकक्रेडी एक गुब्बारा उड़ान खेल से वापस लौटे और शिकायत की कि सूर्य ने उनकी आंखों को स्थायी तौर पर क्षतिग्रस्त कर दिया था। उन्होंने बॉश तथा लॉम्ब से संपर्क करके उनसे ऐसे धूप के चश्में बनाने की मांग की जो सुरक्षा प्रदान करने के साथ साथ देखने में भी आकर्षक लगें. 7 मई 1937 में बॉश तथा लॉम्ब ने इसका पेटेंट करवाया. ‘एंटी-ग्लेयर’ नाम के प्रोटोटाइप में 150 ग्राम वजन का अत्यंत हल्का फ़्रेम लगा था। उन्हें सोने की परत वाली धातु के साथ हरे लेंसों से बनाया गया था जो अवरक्त तथा पराबैंगनी किरणों को छानने वाले खनिज कांच से निर्मित थे। युनाइटेड स्टेट्स आर्मी कॉर्प्स के पायलटों ने इन धूप के चश्मों को तुरंत अपनाया. द्वितीय विश्व युद्ध में जब जेनरल डगलस मॅकआर्थर फिलिपींस के तट पर उतरे और इसे पहने हुए उनकी कई तस्वीरें फ़ोटोग्राफ़रों ने खींची तो धुप के चश्मों में रे-बैन एविएटर एक जाना माना अंदाज़ बन गया।
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रे-बैन
सबसे आधुनिक रे-बैन फ़्रेम कार्बन फ़ाइबर से बने होते हैं। ये फ़्रेम हल्के तथा मजबूत हैं। पानी द्वारा कटी हुई कार्बन की शीटों में रेज़िन के साथ कार्बन फ़ाइबरों के 7 विभिन्न स्तर मिश्रित होते हैं। रे-बैन द्वारा निर्मित फ़्रेम हल्के तथा मजबूत, लोचशील एवं प्रतिरोधी होते हैं, तथा साथ ही पहनने वालों के लिए आरामदायक भी होते हैं। इसके अलावा, उनमें मोनोब्लॉक कब्जा होता है, जिसमें फ़्रेम के सामने कोई वेल्डिंग नहीं होती, जिससे खोलने-बंद करने के दौरान फ़्रेम के टूटने की संभावना कम होती है। कंपनी ऐसे फ़्रेम भी निर्मित करती है जो टाइटेनियम से निर्मित होते हैं।
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रे-बैन
रे-बैन टाइटेनियम तथा मेमो–रे द्वारा निर्मित फ्रेमों का भी उत्पादन करता है। रे-बैन द्वारा निर्मित टाइटेनियम फ़्रेम हाइपोऐलर्जनिक, निकल रहित तथा जंग प्रतिरोधी होते हैं और इसलिए वे अधिकांश वातावरणों के लिए उपयुक्त होते हैं। टाइटेनियम फ़्रेम मजबूत तथा हल्के वजन के होते हैं।
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रे-बैन
मेमो-रे फ़्रेम निकल तथा टाइटेनियम के मिश्रण से निर्मित किए जाते हैं, जिससे फ़्रेम की प्रतिरोध क्षमता तथा लचीलापन बढ़ जाता है। रे-बैन द्वारा निर्मित ये फ़्रेम सर्वाधिक मजबूत होने के साथ हल्के वजन वाले भी हैं।
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रे-बैन
रे-बैन के धूप के चश्मों के संग्रह में 7 प्रमुख श्रेणियां हैं। ये हैं- फैमिलीज़, आइकंस, एक्टिव लाइफ़ स्टाइल, हाई स्ट्रीट, फास्ट एंड फ्यूरियस, टेक और क्राफ्ट.
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रे-बैन
इन धूप के चश्मों के फ़्रेम धातु जैसे बहुत पतले फ्रेमों से ले कर कार्बन फाइबर के मोटे फ्रेम जैसे भी होते हैं। कुछ रे-बैन धूप चश्मों के लेंस पोलेराइज्ड होते हैं जिसका अर्थ है कि वे परावर्तक सतहों की चमक ख़त्म करते हैं जिससे क्रोम और बड़े जल स्रोतों जैसी चमकीली सतहों की चमक बहुत हद तक कम होती है और ये पहनने वालों की आंखों के लिए बड़े आरामदेह होते हैं। ये लेंस पहनने वालों की आंखों को अत्यंत हानिकारक नीले प्रकाश से बचाते हैं। ये लेंस लोकप्रिय हैं क्योंकि ये खरोंचरोधी हैं, ये स्पष्टता प्रदान करते हैं और ये सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से शत-प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%A8
रे-बैन
अन्य धूप के चश्मों में G-15 लेंस होते हैं जो आंखों पर दबाव और भैंगेपन को कम करने में प्रभावी होते हैं। ये लेंस रंग के मूल प्रकार को बनाए रखते हुए इसे समान रूप से प्रेषित करते हैं जिसके कारण पहनने वाले के लिए ये आरामदायक होते हैं। B-15 लेंस बड़ी मात्रा में नीली रोशनी को रोककर देखने में स्पष्टता और आराम प्रदान करते हैं। कुछ लोग इन धूप चश्मों का सुझाव गाड़ी चलाने, खेल-कूद और अन्य क्रियाकलापों के लिए देते हैं जिनमें स्पष्ट दिखाई देना महत्वपूर्ण होता है। रे-बैन द्वारा प्रदान किए जाने वाले अन्य वर्ग प्रकाश अनुकूलन वाले होते हैं जो प्रकाश की अलग-अलग स्थितियों के अनुसार अनुकूलित होने के लिए डिजाइन किए गए हैं। सीधी धूप में रहने पर गिरगिट जैसी रंग बदलने वाली तकनीक इन लेंसों को काला कर देती है और पुन: घर के अन्दर अथवा कम रोशनी में आने पर ये पुन: रंगहीन हो जाते हैं।
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रे-बैन
रे-बैन धूप के चश्में संयुक्त राज्य में आधिकारिक वेबसाइट से खरीदे जा सकते हैं। वैश्विक रूप से, वेबसाइट एक सॉफ्टवेयर डाउनलोड की सुविधा प्रदान करती है जो इसके महत्वपूर्ण ग्राहकों को वास्तविक रूप के समान धूप के चश्में पहनकर देखने की अनुमति देता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%AF
प्रबोधचन्द्रोदय
द्वितीय अंक में ज्ञात होता है कि महामोह अपने राज्य के नाश के भय से आतंकित हैं। वह दंभ के द्वारा पृथ्वी के सबसे बड़े मुक्ति स्थान काशी पर तुरन्त अधिकार करने का प्रयत्न करता है। दम्भ का पितामह अहंकार काशी पहुँचता है, और वहाँ पर अपने सम्बन्धियों को देखकर प्रसन्न होता है। महामोह विजेता के ठाटवाट से नयी राजधानी में प्रवेश करता है। देहात्मवादी चार्वा उसका पक्षपोषण करता है परन्तु एक बुरा समाचार है, धर्म ने विद्रोह का
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प्रबोधचन्द्रोदय
तृतीय अंक -- शान्ति अपनी सखी करूणा के सहारे आती है। वह अपनी माँ श्रद्धा के वियोग में शोकाकुल है। वह दिगम्बर, जैन धर्म, बौद्धधर्म, दर्शन और सोमसिद्धान्त में श्रद्धा की निष्फल खोज करती है, उनमें से प्रत्येक अपनी पत्नी के साथ दिखाई पड़ता है। बौद्धमत (भिक्षु) और जैनमत (क्षपणक) झगड़ते हैं। सोमसिद्धान्त (कापालिक) आता है और उन्हें सुरारस से मत्त करके श्रद्धा की पुत्री शान्ति को खोजने के लिये उनको साथ लेकर चल देता है।
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प्रबोधचन्द्रोदय
चतुर्थ अंक -- विष्णुभक्ति विवेक के पास युद्ध आरम्भ करने का संदेश लाती है। विवेक अपने नायकों वस्तुविचार, क्षमा सन्‍तोष आदि को संगठित करता है।
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प्रबोधचन्द्रोदय
पंचम अंक -- युद्ध समाप्त होता है। महामोह और उसकी सन्ताने मर चुकी है परन्तु महामोह एवं प्रवृत्ति के निधन पर शोक करता हुआ मन उद्विग्न है। वैयासिकी सरस्वती उसे भ्रान्ति से मुक्त करती है।
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प्रबोधचन्द्रोदय
षष्ठ अंक -- मरने के पहले महामोह ने मुधमती के द्वारा पुरूष को भ्रान्त करने के लिये भेजा था। उसकी सहचरी माया ने भी उद्योग में सहायता की अन्ततः विष्णुभक्ति आ कर फलप्राप्ति की प्रश्ंसा करती है और नाटक समाप्त होता है।
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प्रबोधचन्द्रोदय
प्रबोधचन्द्रोदय एक महान रूपक कथात्मक कृति है, जिसमें समस्त मानव जीवन का चित्रण रूपक कथात्मक पद्धति पर मानवीय गुणों और वृत्तियों का मानवीयकरण कर किया गया है, किसी एक गुण या दोष का नहीं। इस नाटक का नाम (प्रबोधचन्द्रोदय = प्रबोध रूपी चन्द्रमा का उदय) ही अपने गम्भीर दार्शनिक विषय को सूचित करता है। इसमें मानव हृदय की शक्तियों को अर्न्तविरोध का सफल उपस्थापन और मानव हृदय की दो स्वाभाविक वृत्तियों का परस्पर संघर्ष चित्रित किया गया है।
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प्रबोधचन्द्रोदय
'प्रबोध-चन्द्रोदय' का अनुसरण करने वालों की संख्या न्यून नहीं है। यह भारतीय साहित्य की एक अत्यन्त विशिष्ट ध्यानाकर्षक उत्पत्ति के रूप में स्वीकार किया जाने योग्य है। धार्मिक और दार्शनिक रूपक कृति के रूप में - जिसमें भाववाचक मानवीय कृतियों और प्रतीकात्मक पात्र मनुष्यों की भांति कार्य करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण जीवित कृति है, यद्यपि पात्रों के कार्य में नाटकीयत्व की शक्ति की पूर्णतः सबल नहीं कही जा सकती है। यद्यपि भावपूर्ण दार्शनिक मन्तव्यों को सामने रखकर एक मनोरंजक नाटक का निर्माण कार्य अत्यन्त कठिन है, फिर भी कृष्णमिश्र अपनी रचना में यह कर सके हैं। उन्होंने मानव आत्मा के सनातन संघर्ष का मनोहर कलापूर्ण नाटकीय चित्र प्रस्तुत किया है। किसी भाव को चेतन मानव की भांति चित्रित करने के प्रयत्न में पूर्ण सफलता की आशा नहीं की जाती, फिर भी यदि प्रौढ़ प्रतिमा और चित्रण क्षमता कवि के पास है तो वह इस दिशा में भी निर्जीव अमूर्त चित्रों में उष्ण रक्‍त और प्राणों
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प्रबोधचन्द्रोदय
भारतीय नाट्यशास्त्रीय नियमानुसार नाटककार ने प्रबोध चन्द्रोदय को सुखान्त नाटक के रूप में निपुणता के साथ प्रस्तुत किया है और समान्य नाटकीय नियमों का पालन करने का प्रयत्न किया है। इस नाटक के कथोपकथन
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प्रबोधचन्द्रोदय
अत्यन्त सुन्दर बन पड़े हैं। उनके कथनों में संस्कृत भाषा का माधुर्य एवं व्यवहारोपयुक्तता, ध्वन्यात्मकता और प्रसादिकता दीख पड़ती है। पात्रानुकूल, विषयानुकूल, वातावरण के अनुकूल भाषा है। यद्यपि इस नाटक में सूक्ष्म भावों का मानवीयकरण किया गया है, और साथ ही उनकी व्यक्तिगत विशेषता भी व्यक्त की गई है, फिर भी रचना की प्रतीकात्मकता बुद्धिगम्य, तर्कसंगत, आध्यात्मिक, व्यायाम-शून्य और नीरसता से रहित है। रोचकता के कारण पाठक की उत्सुकता आदि से अन्त तक बनी रहती है। इन सब गुणों के होने पर भी नाटक के चरित्र बुद्धिवेध होकर ही रह जाते हैं। उनके मनुष्यत्व में हमें विश्वास नहीं होता और न हम सहानुभूति प्रगट करने के लिए अपने को बाध्य पाते हैं। पात्र अपनी मानवीय दुर्बलताओं तथा भारतीय आदर्शों को लेकर प्रस्तुत होते हैं। नाटककार ने अमूर्त भावों को मानव का रूप देने में जितनी भी सफलता पाई हो, इस क्षेत्र में पाश्चात्य नाटककार अधिक सफल हुए हैं। फिर भी संस्कृत साहित्य में कृष्ण मिश्र इस क्षेत्र में सर्वाधिक सफल कलाकार हैं। काम, क्रोध, अहंकार आदि के चित्र अत्यन्त सफलता के साथ अंकित किये हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
निराशावाद
~400 बीसीई (BCE) में, सुकरात-पूर्व के दार्शनिक गॉर्जियास ने विलुप्त हो चुकी एक रचना, ऑन नेचर ऑर द नॉन-एक्ज़िस्टंट (On Nature or the Non-Existent) में तर्क दिया कि:
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425.056419
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निराशावाद
फ्रेडरिक हैनरिच जैकोबी (1743-1819), ने तर्कवाद और विशिष्ट रूप से इमैन्युएल कान्ट के "निर्णायक" दर्शनशास्र, की विशेषता बताते हुए एक रिडक्शियो ऐड ऐब्सर्डम (reductio ad absurdum) दिया, जिसके अनुसार समस्त तर्कवाद (आलोचना के रूप में दार्शनशास्र) शून्यवाद बनकर रह जाता है और इसलिए इससे बचना चाहिये व इसके स्थान पर विश्वास और ईश्वरोक्ति के किसी प्रकार पर लौट आना चाहिये।
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निराशावाद
रिचर्ड रॉर्टी, कीर्कगार्ड और विटजेन्सटीन इस प्रश्न के अर्थ को चुनौती देते हैं कि क्या हमारी विशिष्ट अवधारणाएं एक उपयुक्त तरीके से विश्व के साथ संबंधित हैं, क्या हम अन्य तरीकों की तुलना में विश्व का वर्णन करने के हमारे तरीके को सही साबित कर सकते हैं। सामान्य रूप से, इन दार्शनिकों का तर्क है कि सत्य इसे सही रूप में प्राप्त करना अथवा वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करना नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक पद्धति का एक भाग था और किसी विशिष्ट समय में भाषा ने हमारे उद्देश्य की पूर्ति की; इस छोर तक उत्तर-संरचनावाद ऐसी किसी भी परिभाषा को अस्वीकार करता है, जो विश्व के बारे में पूर्ण 'सत्यों' या तथ्यों की खोज कर लेने का दावा करती हो।
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निराशावाद
किसी भी राजनैतिक दल में स्वयं में व स्वयं के बारे में निराशावादी रहने की प्रवृत्ति नहीं होती. रूढ़िवादी विचारक, विशेषतः सामाजिक रूढ़िवादी, अक्सर राजनीति की ओर एक निराशावादी दृष्टि से देखते हैं। विलियम एफ. बकले की यह टिप्पणी प्रसिद्ध है कि वे "इतिहास के आर-पार खड़े होकर 'रूको!' चिल्ला रहे हैं" और व्हाइटैकर चेम्बर्स का विश्वास था कि अवश्य ही पूंजीवाद का साम्यवाद के रूप में पतन हो जाएगा, हालांकि वे स्वयं अत्यधिक साम्यवाद-विरोधी थे। अक्सर सामाजिक रूढ़िवादी पश्चिम को एक अपकर्षी और शून्यवादी सभ्यता के रूप में देखते हैं, जिसने ईसाइयत तथा/या ग्रीक दर्शनशास्र की अपनी जड़ें खो दी हैं, जिसके परिणामस्वरूप इसका नैतिक व राजनैतिक पतन निश्चित है। रॉबर्ट बॉर्क की स्लाउचिंग टूवर्ड गोमोरा (Slouching Toward Gommorah) और ऐलन ब्लूम की द क्लोसिंग ऑफ अमेरिकन माइंड (The Closing of the American Mind) इस दृष्टिकोण की प्रसिद्ध अभिव्यक्तियां हैं।
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निराशावाद
अनेक आर्थिक रूढ़िवादी और दक्षिण-पंथी इच्छास्वातंत्र्यवादी मानते हैं कि समाज में राज्य का विस्तार और सरकार की भूमिका अपरिहार्य है और सर्वश्रेष्ठ रूप से वे इसके खिलाफ एक स्वामित्व अभियान लड़ रहे हैं। वे मानते हैं कि लोगों की स्वाभाविक प्रवृत्ति शासित होने की है और स्वतंत्रता मामलों की एक अपवादात्मक अवस्था है, जो कि अब कल्याणकारी शासन द्वारा प्रदत्त सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के बदले छोड़ी जा रही है। कभी-कभी राजनैतिक निराशावाद की अभिव्यक्ति आतंक-राज्य संबंधी उपन्यासों में देखने को मिलती है, जैसे जॉर्ज ऑरवेल का नाइनटीन एटी-फोर . अपने स्वयं के देश के प्रति राजनैतिक निराशावाद अक्सर उत्प्रवास की इच्छा से संबंधित होता है।
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425.056419
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
निराशावाद
कुछ पर्यावरणविदों का मानना है कि पृथ्वी की पारिस्थितिकी पहले ही अपूर्य रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी है और यहां तक कि राजनीति में कोई अवास्तविक परिवर्तन भी इसे बचा पाने के लिये पर्याप्त नहीं होगा। इस दृष्टिकोण के अनुसार, अरबों मनुष्यों का अस्तित्व-मात्र भी इस ग्रह की पारिस्थितिकी पर अत्यधिक दबाव डालता है, जिसका परिणाम अंततः एक मैल्थुशियाई पतन के रूप में मिलता है। यह पतन भविष्य में मनुष्यों की बड़ी संख्या का समर्थन कर पाने की पृथ्वी की क्षमता को कम कर देगा।
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निराशावाद
सांस्कृतिक निराशावादी मानते हैं कि स्वर्ण-युग इतिहास की बात है, तथा वर्तमान पीढ़ी केवल स्तर को गिराने और सांस्कृतिक जीविकावाद के ही योग्य है। ओलिवर जेम्स जैसे बुद्धिजीवी आर्थिक प्रगति को आर्थिक असमानता, कृत्रिम आवश्यकताओं की प्रेरणा और एफ्लुएंज़ा से जोड़कर देखते हैं। उपभोक्तावाद-विरोधी लोगों का मानना है कि संस्कृति में प्रत्यक्ष उपभोग और स्वार्थ, अपनी छवि के प्रति सतर्कता का व्यवहार बढ़ता जा रहा है। जीन बॉड्रीलार्ड जैसे उत्तर-आधुनिकतावादियों का तर्क है कि अब संस्कृति (और इसलिये हमारे जीवन) का वास्तविकता में कोई आधार नहीं है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
निराशावाद
कुछ उल्लेखनीय निरूपण इससे भी आगे चले गये हैं और वे इतिहास का एक वैश्विक रूप से लागू होने वाला चक्रीय मॉडल प्रस्तावित करते हैं—उल्लेखनीय रूप से जियामबैतिस्ता विको (Giambattista Vico) के लेखन में.
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425.056419
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
निराशावाद
बिबास लिखते हैं कि कुछ फौजदारी प्रतिवादी वकील निराशावाद की ओर गलती करना पसंद करते हैं: "आशावादी पूर्वानुमानों के जोखिम सुनवाई के दौरान विनाशकारी रूप से गलत सिद्ध होते हैं, यह एक लज्जाजनक परिणाम है, जिससे मुवक्किल क्रोधित हो जाता है। दूसरी ओर, यदि मुवक्किल अपने वकील के अत्यधिक निराशावादी परामर्श का पालन करें, तो मुकदमे सुनवाई के लिये नहीं जाते और मुवक्किल को कभी इस बात का पता नहीं चलता."
0.5
425.056419
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%8F%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
पोएटिक्स
पहले सिद्धांत के परीक्षण में अरस्तु ने दो तरह के सिद्धांत पाए जिनके जरिए सत्य उद्घाटित होता है- १ अनुकरण तथा २ विधाओं की और अन्य संकल्पना। उनके चिंतन के केंद्र में त्रासदी का विश्लेषण है।
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पोएटिक्स
यद्यपि अरस्तु के पोएटिक्स को पाश्चात्य चिंतन परंपरा में सार्वभौम मान्यता प्राप्त है किंतु उनकी रचना के हर अंश पर मत भिन्नता मिलती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%8F%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
पोएटिक्स
यह रचना पश्चिमी जगत में बहुत लंबे समय तक अनुपलब्ध रही। मध्यकाल और पुनर्जागरण के आरंभिक दौर में यह अबेर्रोस लिखित अरबी संस्करण के लैटिन अनुवाद के माध्यम से उपलब्ध हुई।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%8F%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
पोएटिक्स
सौंदर्य संबंधी अरस्तु के कार्यों में काव्यशास्त्र, राजनीति तथा वाक् कला शामिल हैं। लेकिन पोएटिक्स का संबंध मुख्यतः नाटक से है। किसी समय अरस्तु की यह रचना मूल रूप में दो भागों में विभक्त थी । प्रत्येक भाग अलग-अलग भोजपत्रों के थान पर लिखा गया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%8F%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
पोएटिक्स
इसका केवल पहला भाग ही सुरक्षित रह सका जिसके २३ वें अध्याय में नाट्य कला के भाग के रूप में त्रासदी और महाकाव्य का वर्णन किया गया है। दूसरे खो गए भाग में कॉमेडी का वर्णन किया गया था।
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पोएटिक्स
कुछ विद्वानों का अनुमान है कि ट्रैकटेटस कोइसलिनियनस ने दूसरे खो गए भाग की सामग्री का सार प्रस्तुत किया है।
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पोएटिक्स
आधुनिक पुस्तकालयों में उपलब्ध २००१ में प्रकाशित अरस्तु की मूल रचनाओं के पोएटिक्स की विषय सूची पाँच भागों में विभक्त है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%8F%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
पोएटिक्स
त्रासदी की संरचना के नियम: त्रासद आनंद, अथवा दर्शकों में भय या त्रास से विरेचन की उत्पत्ति। चार प्रकार के चारित्रिक गुणों की अनिवार्यता: अच्छा, उपयुक्त, वास्तविक, तथा सतत। कथानक के भीतर खोज जरूर होना चाहिए। कथ्य, कहानी, संरचना तथा काव्यशास्त्र से ऊपर। कवि के लिए यह आवश्यक है कि कथानक निर्माण करते समय वह सभी दृश्यों का मानसिक रूप से दृश्यांकन कर ले। कवि को कथानक के भीतर ही जटिलता और गतिशीलता का समावेश करना चाहिए साथ ही त्रासदी के विभिन्न तत्वों का समावेश करना चाहिए। कवि को विचार अनिवार्यतः चरित्रों के शब्दों और कार्यों द्वारा व्यक्त करना चाहिए, उन चरित्रों द्वारा बोले गए शब्दों के उच्चारण और उसके द्वारा व्यक्त होने वाले खास विचारों पर करीबी ध्यान रखते हुए। अरस्तु मानते थे कि ये सभी विभिन्न तत्व काव्य में इस क्रम में आने चाहिए कि वह सुफलदायक हो। हालांकि १९४८ ई. से मैसिडोनियन शास्त्रवादी एम.डी. पेट्रुसेव्सकी तथा अन्य विद्वानों ने यह मानने से इनकार कर दिया कि अरस्तु ने स्वयं ही त्रासदी की परिभाषा देते हुए विरेचन (कैथालसिस) शब्द का प्रयोग किया था। क्योंकि जैसा कि परिभाषा में प्रयुक्त अन्य शब्दों के साथ हुआ है वैसे इसपर पूर्व में या बाद में कहीं चर्चा नहीं हुई है।
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पोएटिक्स
त्रासदी महाकाव्य से उच्चतर कला: त्रासदी में वह सबकुछ है जो महाकाव्य में होता है, यहाँ तक कि उसके छंद भी। प्रस्तुतिकरण की वास्तविकता का अनुभव नाटक को पढ़ने में भी होता है और उसके अभिनय में भी। त्रासद अनुकरण को अपेक्षाकृत कम स्थान की आवश्यकता होती है। यदि उसमें और भी संघनित प्रभाव हो तो यह अधिक आनन्ददायक होता है। इसे खोने या कम होने का समय नहीं मिलता है। अनुकरण के महाकाव्य रूप में एकता की कमी होती है और घटनाओं की बहुलता होती है। और यह इस तथ्य से सिद्ध होता है कि एक महाकाव्य कई त्रासदियों के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध करा सकता है।
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जन्तुभूगोल
प्राणिसमूह - यहाँ के चौपायों में भेड़ ओर बकरी प्रमुख हैं। मिस्त्र, सीरिया और सिनाई के पहाड़ी क्षेत्रों में इबेक्स (ibex) की एक जाति पाई जाती है। छछूंदर (mole) इस क्षेत्र में बराबर विस्तृत है। बैजर (badger), ऊँट, रो-डियर (roe-deer), कस्तूरी मृग, याक, शैमि (chamois), डॉरमाउस (dormouse), माइका (pika) तथा जल का छछूंदर (water mole) इस क्षेत्र में रहनेवाले विशेष स्तनधारी प्राणी हैं। पुरानी दुनियाँ के चूहे, चुहियाँ भी इस क्षेत्र में मिलती हैं। उनगों में वाइपर (viper) अधिक संख्या में मिलते हैं और अधिक विषैले भी होते हैं।
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जन्तुभूगोल
विशेषता - इस क्षेत्र में दुनियाँ के बड़े से बड़े रेगिस्तान हैं और बड़े बड़े जंगल, जिनमें अटूट वर्षा होती है। उष्ण प्रदेश से समशीतोष्ण देशों तक और हिमाच्छादित पहाड़ों से बड़े बड़े मैदान तक इसमें शामिल हैं। उत्तर में रेगिस्तान की एक बड़ी पट्टी बन जाती है। उसके बाद घास से भरे मैदान हैं। इनमें से अधिकतर चार या पाँच हजार फुट ऊँचे पठार (plateau) हैं। इसी में बृहत् उष्ण प्रदेशीय जंगल हैं।
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जन्तुभूगोल
प्राणिसमूह - इस विभाग में कई विचित्र जानवर मिलते हैं। खुरवाले जानवर तथा हिंसक जानवर विशेष रूप से विकसित हैं। कुछ खुरवाले जानवर, जैसे जिराफ और हिप्पोपॉटैमस केवल इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं। जंगली सूअर और साधारण सूअर अवश्य मिलते हैं। इस क्षेत्र में दरियाई घोड़े दो सींगवाले होते हैं। मृग कई प्रकार के मिलते हैं, छोटे बड़े सभी। भेड़ बकरी आदि यहाँ नहीं मिलते। बकरी के संबंधियों में इबैक्स मिलता है। सहारा के दक्षिण में कस्तूरीमृग का एक संबंधी मिलता है, जिसको शैव्रोटैन (chevrotain) कहते हैं। जंगली साँड़ यहाँ नहीं मिलता। जेब्रा और अबीसीनिया के जंगली गदहे, बहुतायत से पाए जाते हैं। शिकारी जानवरों में प्रमुख हैं बब्बर शेर, चीते, तेंदुए, गीदड़ और तरक्षु (hyena)। बाघ (tiger), भेड़िया और लोमड़ी यहाँ नहीं मिलती। ऊदबिलाव (civets) अच्छी तरह विकसित हैं। भालू नहीं मिलते। बंदर जैसे जानवरों में गोरिल्ला, चिंपैंजी, बेबून और लीमर आदि इस क्षेत्र के प्रतिनिधि हैं।
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जन्तुभूगोल
इस क्षेत्र का पक्षिसमूह संख्या में और विशेषता में महत्वपूर्ण नहीं है। यहाँ के प्रमुख पक्षी हैं गिनी फाउल (guineafowl) और सेक्रेटरी बर्ड (secretary bird) तथा शेष साधारण हैं। तोते कम हैं, काकातुआ आदि नहीं मिलते। शिकारी चिड़ियाँ बहुत हैं। शुतुर्मुर्ग भी यहाँ मिलते हैं।
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जन्तुभूगोल
उरगसमूह विभिन्न प्रकार का तथा बहुतायत से मिलता है। वाइपर (viper) सर्प कई प्रकार के मिलते हैं और सबसे विषैला पफ़ ऐडर (puff adder) भी यहाँ मिलता है। अजगर की जाति के भी कई जानवर हैं। छिपकलियों में अगामा और गिरगिट मिलते हैं। घड़ियाल लगभग सभी नदियों में मिलते हैं। मछलियाँ कई भाँति की हैं, परंतु प्रोटोप्टेरस (protopterous) नामक मछली यहाँ की विशेषता है। यह और कहीं नहीं पाई जाती।
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जन्तुभूगोल
ईथिओपियन क्षेत्र का प्राणिसमूह आरंभ से अंत तक एक ही प्रकार का है। परंतु मैडागास्कर टापू का जीवसमूह महाद्वीप के जीवसमूह से भिन्न है। इस द्वीप और अफ्रीका के बीच एक चौड़ी मुजंबीक (Mozambique) जलांतराल है, परंतु बीच के कोमौरो द्वीप (Comoroisland) और कुछ जलमग्न किनारे यह सिद्ध करते हैं कि मैडागास्कर दक्षिणी अफ्रीका का ही भाग है। मैडागास्कर में अफ्रीका जैसी सच्ची बिल्लियाँ नहीं हैं, परंतु ऊदबिलाव मिलता है। बंदर की जातिवाले जानवरों में यहाँ केवल लीमर मिलते हैं। ये अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी पाए जाते हैं। अन्य विचित्र जानवरों में प्रमुख है ऐ-ऐ (aye-aye)। यह बिल्ली की भाँति का मांसाहारी जानवर है, जिसे क्रिप्टोप्रोक्टा फीरौक्स (Crytoprocta Ferox) कहते हैं। यहाँ जल में रहनेवाला सूअर तथा हिप्पोपोटैमस की एक अविकसित जाति भी मिलती है। साथ ही यहाँ का हेज हाग (hedge hog) एक विशेषता है। पक्षी अधिकतर एशिया के सदृश हैं। उरग प्राणिसमूह में कुछ अमरीकी ढंग के भी हैं। दोनों स्थानों (मैडागास्कर और अफ्रीका) के प्राणिसमूहों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ऊदबिलाव और लीमर के विकास तक ये जुड़े हुए थे और इसके बाद पृथक् हो गए। सच्ची बिल्लियाँ और बंदर पृथक् होने के बाद अफ्रीका में विकसित हुए, पर मैडागास्कर न जा सके।
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जन्तुभूगोल
सीमा - भारत, लंका, मलाया प्रायद्वीप, पूर्वी द्वीपसमूह, जैसे बोर्नियो, सुमात्रा, जावा और फिलीपीन आदि, इस प्रदेश के भाग हैं।
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जन्तुभूगोल
विशेषता - इस प्रदेश में घने जंगल हैं, जो हिमालय की तराई में आठ से लेकर दस हजार फुट की ऊँचाई तक फैले हैं। जंगलों की विशेषता की दृष्टि से कुछ लोगों ने इसे इंडोचायनीज़ और इंडोमलायन उपक्षेत्रों में विभाजित किया है। भारत में अधिकतर घास के खुले मैदान अथवा चरागाह हैं। इसका तीसरा उपक्षेत्र कहा जा सकता है। इसी तरह भारतीय प्रायद्वीप का दक्षिणी भाग लंका से भिन्न है। इसी तरह भारतीय प्रायद्वीप का दक्षिणी भाग लंका से भिन्न है। इसलिए लंका चौथा उपक्षेत्र बनाता है। इसे सिंहली उपक्षेत्र कहते हैं।
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जन्तुभूगोल
प्राणि समूह - इस क्षेत्र के स्तनधारी अफ्रीका के स्तनधारी प्राणियों से मिलते जुलते हैं। इसलिए पहले कुछ लोग इसे ईथियोपियन क्षेत्र का एक भाग मानते थे। जहाँ तक खुरवाले जानवरों का संबंध है, हिप्पोपोटैमस, जो अफ्रीका की विशेषता हे, इस क्षेत्र में नहीं मिलता। घोड़ों में केवल एक जाति सिंध नदी के पास मिलती है। यह वह सीमा है, जहाँ ओरिएंटल और होलार्कटिक क्षेत्र मिलते हैं। मृग भी यहाँ मिलते हैं, परंतु उनकी संख्या कम हो गई है। ठोस सींगवाले हिरन की लगभग 20 जातियाँ मिलती हैं। भारतीय भैंस, गाय और इनकी तीन चार जंगली जातियाँ, जैसे गवल (gour), गायल (gayal) आदि जावा से लेकर भारतीय प्रायद्वीप तक विस्तृत हैं। पवित्र गाय, जिसे ज़ेब कहते हैं, केवल पालतू रूप में मिलती है। बकरी भी यहाँ मिलती है। गैंडा (राइनॉसरॉस, rhinoceros) भी यहाँ मिलता है। ये एक सींगवाले और दो सींगवाले, दोनों प्रकार के होते हैं। अमरीकी तापिर की एक जाति और सूअर की छ: जातियाँ यहाँ मिलती हैं।
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फाज़िल्का
फाजिल्का, भारत-पाकिस्तान सीमा पर कई कस्बों की तरह, 1947 में भारत के विभाजन के लिए वापस डेटिंग करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों को विदा करने की सिफारिश की गई सीमा, रेडक्लिफ रेखा, प्राकृतिक संसाधनों, घरों, लोगों को विभाजित करती है। सतलुज नदी, जो पानी का एक सामान्य स्रोत है, दोनों देशों के बीच की एक सीमा है।
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फाज़िल्का
विभाजन से पहले, फाजिल्का की 50% आबादी मुस्लिम थी। इन सभी ने 1947 में पाकिस्तान के लिए भारत छोड़ दिया। फाजिल्का के आसपास के अधिकांश गांवों में मुस्लिम परिवारों का दबदबा है, जिनमें मुख्य रूप से बोदला, वट्टो, साहू राजपूत, कल्याण राजपूत और चिस्टिस वंश शामिल हैं।
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फाज़िल्का
फाजिल्का के कई लोग कटासराज की वार्षिक यात्रा करते हैं - पाकिस्तान में एक हिंदू पवित्र शहर - आमतौर पर अगस्त में।
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फाज़िल्का
2011 की भारतीय जनगणना के अनुसार, [1] फाजिल्का की आबादी 76,492 थी। पुरुषों की आबादी का लगभग 52% और महिलाओं का 48% है। फ़ाज़िल्का की औसत साक्षरता दर 70.7% है: पुरुष साक्षरता 74.6% है, और महिला साक्षरता 66.4% है। 11% जनसंख्या 6 वर्ष से कम आयु की है।
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फाज़िल्का
फाजिल्का को बाबा पोखर सिंह (1916–2002) द्वारा प्रचलित झुमर नृत्य की शैली के लिए जाना जाता है। पोखर सिंह का परिवार पश्चिमी पंजाब के मोंटगोमरी जिले से चला गया था, और उन्होंने झूमर की रवि शैली का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया। हालाँकि, फाजिल्का की अपनी शैली झुमर थी जिसे सतलुज शैली कहा जाता था। इसलिए, कम से कम दो क्षेत्रीय शैलियों को रोजमर्रा की जिंदगी में मिलाया गया, और उनकी झूमर दिनचर्या में (जो मूल रूप से हर बार एक ही था, और जो परिवार और दोस्त आज भी प्रदर्शन करते हैं), पोखर ने कई अन्य क्षेत्रीय आंदोलनों की पहचान की। [२]
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE
फाज़िल्का
फाजिल्का जिले की जलवायु पूरी तरह से सूखी है, और बहुत तेज़ गर्मी, थोड़ी बारिश के मौसम और एक सर्दियों के मौसम की विशेषता है। वर्ष को चार मौसमों में विभाजित किया जा सकता है। ठंड का मौसम नवंबर से मार्च तक होता है। इसके बाद गर्मियों का मौसम आता है जो जून के अंत तक रहता है। जुलाई से मध्य सितंबर तक की अवधि दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम का गठन करती है। सितंबर और अक्टूबर के उत्तरार्ध को मानसून या संक्रमण काल ​​कहा जा सकता है।
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फाज़िल्का
शहर के माध्यम से पहली रेलवे लाइन 1898 में रानी विक्टोरिया द्वारा सिंहासन पर चढ़ने की डायमंड जयंती के अवसर पर स्थापित की गई थी। फाजिल्का रेलवे द्वारा मैकलोड गंज (अब पाकमंडी सादिकगंज में) से बहावलनगर के मार्ग पर और फिर बहावलपुर तक जुड़ा हुआ था। फाजिल्का रेलवे द्वारा अमरुका (अब पाकिस्तान में) से चाननवाला के माध्यम से जुड़ा हुआ था। फाजिल्का से मैकलियोड गंज तक की पटरियाँ। फाजिल्का से चाननवाला तक एन डी अब बंद हो गए हैं, शायद हटा दिए गए हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE
फाज़िल्का
फाजिल्का रेलवे स्टेशन उत्तर रेलवे के फिरोजपुर और बठिंडा जंक्शन से जुड़ा है। दक्षिण की ओर अबोहर के लिए एक नई 43 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण बीकानेर से दूरी 100 किमी से कम करने के लिए किया गया है। अबोहर के लिए नई रेलवे लाइन पर ट्रेनें जुलाई 2012 में चलने लगीं। इस ट्रैक पर नवंबर 2012 में अबोहर और फाजिल्का के बीच श्री गंगानगर और फिरोजपुर के बीच एक एक्सप्रेस ट्रेन शुरू हुई। [3]
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फाज़िल्का
राष्ट्रीय राजमार्ग 7 फाजिल्का से होकर गुजरता है। NH 7 मलोट में NH 9 से जुड़ता है जो हिसार और रोहतक होते हुए दिल्ली की ओर जाता है। स्टेट हाईवे फाजिल्का से फिरोजपुर तक और फाजिल्का से मलोट तक चलता है। दोनों अच्छी सड़कें हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%AC
पॉर्नहब
पॉर्नहब प्रतिबंधित वीडियों को ढूँढ़ने और उन्हें साइट से हटाने के लिए Vobile का इस्तेमाल करता है। बिना सहमति के पोस्ट किए गए सामग्री अथवा निजी रूप से पहचाने जा सके जानकारी को एक ऑनलाइन फॉर्म की मदद से कंपनी को रिपोर्ट किया जा सकता है। मगर इन शिकायतों के प्रति पॉर्नहब के प्रतिक्रिया के खिलाफ़ आलोचना हुई है। 'वाइस' के पत्रकारों का कहना है कि पॉर्नहब "ऐसे सामग्री से कमाता है जिसने ज़िंदगियाँ नष्ट की हैं, और अब भी नष्ट करता जा रहा है।"
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419.671339
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पॉर्नहब
2014 में एक 14 साल की लड़की का सामूहिक बलात्कार किया गया था और लड़की ने दावा किया कि वीडियो को पॉर्नहब पर अपलोड किया गया था। उसने कहा कि उसने छः महीनों तक लगातार पॉर्नहब को ईमेल भेजे पर उनका कोई जवाब नहीं है। जब उसने एक वकील बनने का नाटक किया, उसके सारे वीडियो हटा दिए गए। 2015 में एक आदमी को गिरफ़्तार किया गया जब एक 15 साल की लड़की के साथ यौन-क्रिया के वीडियो पॉर्नहब, मॉडलहब, पेरिस्कोप और स्नैपचैट जैसे सेवाओं पर पाए गए।
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पॉर्नहब
दिसंबर 2020 में MindGeek के खिलाफ़ कैलिफ़ोर्निया में मुकदमा फाइल किया गया क्योंकि वे GirlsDoPorn पर बिना सहमति के रतिचित्रक वीडियों को होस्ट कर रहे थे। दावों के अनुसार उन्होंने गलत इरादे बताकर कुछ औरतों को अपने वीडियों में दिखाए। जनवरी 2021 में ऐसे ही दावों के साथ मॉन्ट्रियल में एक मुकदमा पंजीकृत किया गया। कनाडा में कंपनी को आदेश दिया गया कि वे उन सभी लोगों को $60 करोड़ दे जिनके अश्लील वीडियो 2007 के बाद से उनके सेवाओं पर अपलोड किए गए हैं, जिनमें से कुछ 18 वर्ष के नीचे के उम्र के भी थे। जून 2021 में कुछ औरतों ने MindGeek के खिलाफ़ उनका उपयोग करके सामग्री होस्ट करने तथा बाल यौन शोषण की वजह से मुकदमा पंजीकृत किया।
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पॉर्नहब
पॉर्नहब ने स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं। पहले तीन कार्यक्रम 24 अप्रैल 2012 में न्यू यॉर्क में आयोजित हुए जहाँ "Boob Bus" को परिचित कराया गया। अगस्त 2012 में पॉर्नहब ने "Save the Boobs!" कार्यक्रम को भी आयोजित किया। अक्टूबर के महीने में पॉर्नहब के "big tit" या "small tit" श्रेणी में देखे जाने वाले हर 30 वीडियों के लिए वेबसाइट ने सूसान जी. कोमेन संस्थान को एक पेनी दान करने का वादा किया। संस्थान ने प्रस्ताव को अस्वीकार किया क्योंकि उनके अनुसार वे पॉर्नहब से संबंधित नहीं थे, और उन्होंने पॉर्नहब से भी अनुरोध किया कि वे उनके नाम का उपयोग करना बंद करे।
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पॉर्नहब
2014 के आर्बर दिवस पर पॉर्नहब ने "Pornhub Gives America Wood" के नाम से एक अभियान की शुरुआत की जो 25 अप्रैल 2014 से 2 मई 2014 तक चला।
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पॉर्नहब
पहले पॉर्नहब पुरस्कार कार्यक्रम को लॉस एंजिलिस के बेलास्को थिएटर में 6 सितंबर 2018 को होस्ट किया गया था। कान्ये वेस्ट रचनात्मक निर्देशक थे। कार्यक्रम में उन्होंने अपने गाने 'I Love It' के संगीत वीडियो को पहली बार चलाया। दूसरा वार्षिक शो लॉस एंजिलिस के ओर्फियम थिएटर में हुआ और कार्यक्रम के प्रमुख व्यक्ति थे बैड बनी।
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पॉर्नहब
2011 में यूरोपीय ब्रॉडबैंड सेवक TalkTalk (पूर्व Tiscali) को आलोचना में लाया गया क्योंकि उनका फ़िल्टर पॉर्नहब को अवरोधित नहीं कर पाया था।
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पॉर्नहब
'द हफ़िंगटन पोस्ट' के अनुसार 2013 में "CBS ने पॉर्नहब के लिए एक विज्ञापन को चलाने से मना कर दिया जिसमें सिर्फ एक बुज़ुर्ग जोड़ी साथ में बैठी हुई थी और विज्ञापन में कुछ भी अश्लील नहीं था।" इसे इसलिए अस्वीकार किया गया था क्योंकि संघीय संचार आयोग CBS के खिलाफ़ रतिचित्रण का संयोग देने के लिए प्रतिक्रिया ले सकती थी।
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पॉर्नहब
सितंबर 2013 में वेबसाइट को चीन के ग्रेट फ़ायरवाल द्वारा अवरोधित किया गया। 12 मार्च 2014 में पॉर्नहब को रूस में अवरोधित किया गया क्योंकि एक अभिनेत्री दिखने में काफी छोटी लग रही थी जिससे कुछ दर्शकों को लगने लगा कि उसकी उम्र 18 से कम थी।
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फ्रैंकनस्टाइन
1818 में गुमनाम प्रकाशन के बाद से ही फ्रैंकनस्टाइन की बहुत प्रशंसा भी हुई है और आलोचना भी. उस समय के आलोचकों द्वारा की गई समीक्षा इन दो मतों को दर्शाती है। द बेले एसेंबली ने उपन्यास को "निर्भीक परिकल्पना" (139) करार दिया. क्वार्टर्ली रिव्यू ने कहा कि "लेखक के पास कल्पना और भाषा दोनों की शक्ति है"(185). सर वॉल्टर स्कॉट, ने ब्लैकवुड एडिबर्ग मैगज़ीन में लिखते हुए बधाई दी, "लेखक की वास्तविक निपुणता और व्यक्त करने की खुशनुमा शक्ति", हालांकि जिस तरह से दैत्य ने दुनिया और भाषा का ज्ञान हासिल किया उससे वह कम सहमत थे। द एडिनबर्ग मैगज़ीन और लिट्ररी मिसलेनी ने उम्मीद व्यक्त की कि "वह इस लेखक के और उपन्यास चाहेंगे"(253).
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फ्रैंकनस्टाइन
दो अन्य समीक्षाओं में जहां यह मालूम पड़ता है कि लेखक विलियम गॉडविन की बेटी है, उपन्यास की आलोचना मेरी शेली के स्त्रीयोचित स्वभाव पर हमला है। ब्रिटिश आलोचक ने उपन्यास की कमियों को लेखक की गलती बताया है; "इसकी लेखक, हमारे मुताबिक, एक स्त्री है, यह उसका क्षोभ है और यही इस उपन्यास की सबसे बड़ी गलती है; लेकिन अगर वह लेखिका अपने लिंग की सौम्यता को भूल जाए, तो हमें ऐसा कोई कारण नज़र नहीं आता है कि क्यों; और इसलिए हम इस उपन्यास को आगे बिना किसी टिप्पणी के खारिज करते हैं।"(438). द लिट्ररी पैनोरमा और नेशनल रजिस्टर ने उपन्यास पर हमला बोलते हुए इसे "एक मशहूर उपन्यासकार की बेटी" द्वारा लिखित "मिस्टर गॉडविन के उपन्यासों की नकल" करार दया.
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फ्रैंकनस्टाइन
इन शुरूआती अस्वीकृतियों के बावजूद, 20वीं शताबदी के मध्य के बाद से इस उपन्यास को आलोचकों ने काफी पसंद किया है। एम ए गोल्डबर्ग और हारोल्ड ब्लूम जैसे प्रमुख आलोचकों ने इस उपन्यास की "सौंदर्यबोधी और नैतिक" अहमियत की प्रशंसा की है और हाल ही के कुछ वर्षों में यह उपन्यास मनोविश्लेषण और नारीवादी आलोचना के लिए एक मशहूर विषय बन चुका है। आज यह उपन्यास आमतौर पर रूमानी और गॉथिक साहित्य और वैज्ञानिक परिकल्पना का एतिहासिक कार्य माना जाता है।
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फ्रैंकनस्टाइन
आज की लोकप्रिय पागल वैज्ञानिक शेली में मेरी शैली के फ्रैंकनस्टाइन को पहला उपन्यास कहा जाता है। हालांकि प्रचलित संस्कृति ने निष्कपट और सरल विक्टर फ्रैंकनस्टाइन को एक अति दुष्ट चरित्र में तब्दील कर दिया है। जैसा दैत्य को पहले पेश किया गया था, उससे बिल्कुल अलग इसने दैत्य को भी एक सनसनीखेज़, अमानुषिक प्राणी में बदल दिया है। असली कहानी में विक्टर जो सबसे बुरा काम करता है वह है डर के मारे दैत्य की उपेक्षा करना. वह डर पैदा करना नहीं चाहता. दैत्य भी एक मासूम, प्यारे प्राणी की तरह अस्तित्व में आता है। जब दुनिया उस पर अत्याचार करती है तो उसके मन में द्वेष की भावना पनपती है। अंत में विक्टर विज्ञान के ज्ञान को सक्षत शैतान और खतरनाक रूप से आकर्षक बताता है।
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फ्रैंकनस्टाइन
हालांकि किताब प्रकाशित होने के तुरंत बाद, रंगमंच निर्देशकों को इस कहानी को दृश्यों में पेश करने में कठिनाई महसूस होने लगी. 1823 में शुरू हुए प्रदर्शनों के दौरान नाटककार यह बात मानने लगे कि इस उपन्यास को रंगमंच पर पेश करने के लिए वैज्ञानिक और दैत्य के अंतर्भावों के खत्म करना पड़ेगा. अपनी सनसनीखेज़ हिंसक हरकतों की बदौलत दैत्य कार्यक्रमों का सितारा बन गया। वहीं विक्टर को एक बेवकूफ की तरह पेश किया जाने लगा जो सिर्फ प्रकृति के रहस्यों में उलझा रहता था। इस सब के बावजूद यह नाटक असली उपन्यास से कहीं ज्यादा मेल खाते थे जोकि फिल्मों में नहीं होता था। इसके हास्यप्रद संस्करण भी आए और 1887 में लंदन में "फ्रैंकनस्टाइन, ऑर द वैम्पायर्स विकटिम " नाम से एक खिल्ली उड़ाता हुआ संगीतमय संस्करण भी प्रदर्शित किया गया।
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फ्रैंकनस्टाइन
मूक फिल्में कहानी में जान डालने का प्रयास करती रहीं. शुरूआती फिल्में जैसे कि, एडिसन कंपनी की एक-रील फ्रैंकनस्टाइन (1910) और लाइफ विदाउट सोल (1915) उपन्यास की कथावस्तु से जुड़े रहने में कामयाब रहे. हालांकि 1931 में जेम्स वेल ने एक फिल्म का निर्देशन किया जिसने कहानी को बिल्कुल उलट कर रख दिया. युनिवर्स सिनेमा में काम करते-करते, वेल की फिल्म ने कथावस्तु में ऐसे कई तत्व जोड़े जिन्हें आज के आधुनिक दर्शक बखूबी जानते हैं: "डॉ॰" की तस्वीर. फ्रैंकनस्टाइन, जो कि शुरूआत में एक निष्कपट, युवा छात्र था; ईगोर की तरह दिखने वाला चरित्र (फिल्म में नाम: फ्रिट्ज़), जो शरीर के अंगों को इकट्ठा करते वक्त गलती से अपने मालिक के लिए एक अपराधी का दिमाग लाता है; और एक सृजन का एक सनसनीखेज़ दृश्य जो रसायनिक प्रक्रिया की बजाय विद्युतीय शक्ति पर केंद्रित होता है। (शेली के असली उपन्यास में कथावाचक के तौर पर फ्रैंकनस्टाइन जानबूझ के वह प्रक्रिया नहीं बताता जिससे उसने दैत्य का सृजन किया था, क्योंकि उसे डर था कि कोई दूसरा इस प्रयोग को दोबारा करने की कोशिश करेगा). इस फिल्म में वैज्ञानिक एक अहंकारी, होनहार, व्यस्क है, ना कि एक युवा. फिल्म में दूसरा वैज्ञानिक स्वेच्छा से दैत्य को मारने का काम करता है, लेकिन फिल्म कभी भी फ्रैंकनस्टाइन को उसके कार्यों की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए दबाव नहीं डालती है। वेल की सीक्वेल ब्राइड ऑफ फ्रैंकनस्टाइन (1935) और इसके बाद के सीक्वेल सन ऑफ फ्रैंकनस्टाइन (1939) और घोस्ट ऑफ फ्रैंग्कंस्टीन (1942) सभी सनसनी, डर और अतिशयोक्ति से भरी पड़ी थीं और साथ ही साथ डॉ॰ फ्रैंकनस्टाइन और दूसरे चरित्र और भी बुरे होते चले गए।
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फ्रैंकनस्टाइन
अल्डिस, ब्रायन W."ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पेसियस:: मेरी शेली". स्पेकुलेशन ऑन स्पेकुलेशन: थिउरिज ऑफ साइंस फिक्शन. Eds. जेम्स गुन और मैथ्यू केंडेलारिया. लंहम, MD: सेक्यरक्रॉ 2005.
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फ्रैंकनस्टाइन
बाल्डिक, क्रिस. इन फ्रैंकनस्टाइन्स शेडो: मिथ, मोंसट्रोसिटी, एण्ड नांइनटिंथ -सेंचुरी राइटिंग. ऑक्सफोर्ड: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1987.
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फ्रैंकनस्टाइन
बेनेट, बेट्टी टी. और स्टुअर्ट कुरान, eds. मेरी शेली इन हर टाइम्स. बाल्टीमोर: जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी प्रेस, 2000.
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हवाना
16वीं शताब्दी में स्पेनिश द्वारा हवाना शहर की स्थापना की गई थी और इसकी रणनीतिक स्थिती होने के कारण यह अमेरिका की स्पेनिश विजय के लिए एक फ़ौजों की चौकी के रूप में कार्य करता था, जो खजाने को स्पेन भेजने वाले स्पेनिश जहानों के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गया। स्पेन के राजा फिलिप द्वितीय ने 1592 में हवाना को शहर का खिताब दिया। पुराने शहर की रक्षा के लिए दीवारों और किलों का निर्माण किया गया था। 1898 में हवाना के बंदरगाह में अमेरिकी युद्धपोत मेन का डूबना स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध का तत्कालिन कारण बना था।
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हवाना
समकालीन हवाना को एक ही में स्थित तीन शहरों के रूप में वर्णित किया जा सकता है: ओल्ड हवाना, वेदडो और नए उपनगरीय जिलें। यह शहर क्यूबा सरकार का केंद्र है, और विभिन्न मंत्रालयों, व्यवसायों के मुख्यालय और 90 से अधिक राजनयिक कार्यालयों का घर है। वर्तमान महापौर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ क्यूबा (पीसीसी) के मार्टा हर्नैन्डेज़ हैं। 2009 में, शहर/प्रांत की देश में तीसरी सबसे ज्यादा आय थी।
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हवाना
शहर सालाना दस लाख से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करता है; हवाना के लिए आधिकारिक जनगणना रिपोर्ट के अनुसार 2010 में शहर में 1,176,627 अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आए थे, जोकि 2005 से 20% में वृद्धि हुई थी। 1982 में, ओल्ड हवाना को यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था। शहर अपने इतिहास, संस्कृति, वास्तुकला और स्मारकों के लिए भी जाना जाता है। क्यूबा के विशिष्ट होने के नाते, हवाना एक उष्णकटिबंधीय जलवायु का अनुभव करते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE
हवाना
मई 2015 में, हवाना को बेरूत, दोहा, डरबन, कुआलालंपुर, ला पास और विगान के साथ तथाकथित न्यू 7 वंडर्स शहरों में से एक के रूप में चुना गया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE
हवाना
हवाना फ्लोरिडा कुंजी के दक्षिण में क्यूबा के उत्तरी तट पर स्थित है, जहां मेक्सिको की खाड़ी अटलांटिक महासागर में शामिल हो जाती है। शहर ज्यादातर खाड़ी से पश्चिम और दक्षिण की ओर फैला हुआ है, जो एक संकीर्ण इनलेट के माध्यम से प्रवेश करते हुए तीन मुख्य बंदरगाहों मारिमेलेना, गुआनाबाकोआ, और एटारस में विभाजित हो जाता है। मंदगति के साथ अलमेन्डर्स नदी शहर में दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, खाड़ी के पश्चिम में कुछ मील की दूरी पर फ्लोरिडा के दहाने में प्रवेश करती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE
हवाना
छोटे पहाड़ियों जिस पर शहर बसा हुआ है, गहरे नीले पानी से धीरे-धीरे ऊपर कि ओर बढ़ता जाता है। 200 फुट ऊंची (60 मीटर) एक चूना पत्थर का टीला है जो पूर्व से ढलान लेता हुआ ला कैबाना और एल मोरो की ऊंचाई में जाकर समाप्त होता है जहाँ पर औपनिवेशिक किलेबंदी स्थल मौजुद है। एक अन्य उल्लेखनीय टीला, पश्चिम की पहाड़ी है जहाँ हवाना विश्वविद्यालय और प्रिंस कैसल स्थित है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE
हवाना
क्यूबा की तरह हवाना, एक उष्णकटिबंधीय जलवायु है जो व्यापार हवाओं के बेल्ट में और गर्म अपतटीय धाराओं से द्वीप की स्थिति से घिरा हुआ है। कोपेन जलवायु वर्गीकरण के तहत, हवाना में एक उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु है, जो एक उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु की सीमा से लगा हुआ होता है। औसत तापमान जनवरी और फरवरी में 22 डिग्री सेल्सियस (72 डिग्री फारेनहाइट) से अगस्त में 28 डिग्री सेल्सियस (82 डिग्री फारेनहाइट) तक होता है। सालाना 1,200 मिमी (47 इंच) औसत बारिश के साथ यहाँ जून और अक्टूबर में बारिश सबसे अधिक होती है वही दिसंबर से अप्रैल तक हल्की बूंदाबांदी होती है। तूफान कभी-कभी द्वीप पर आते रहते हैं, लेकिन आम तौर पर यह दक्षिण तट पर ज्यादा प्रभावशील रहते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE
हवाना
हवाना में विविधतापूर्ण अर्थव्यवस्था है, जिसमें पारंपरिक क्षेत्र जैसे विनिर्माण, निर्माण, परिवहन और संचार और नए या पुनरुद्धार किए गए जैसे जैव प्रौद्योगिकी और पर्यटन उद्योग शामिल हैं। पारंपरिक चीनी उद्योग, जिस पर द्वीप की अर्थव्यवस्था तीन शताब्दियों तक आधारित रही है, द्वीप पर आज भी केंद्रित है और निर्यात अर्थव्यवस्था के कुछ तीन-चौथाई हिस्से को नियंत्रित करती है। इसके अलावा कुछ विनिर्माण सुविधाएं, मांस पैकिंग संयंत्र, और रासायनिक और दवा संचालन भी हवाना में केंद्रित हैं। जहाज निर्माण, वाहन निर्माण, मादक पेय पदार्थ (विशेष रूप से रम), कपड़ा, और तम्बाकू उत्पादों, विशेष रूप से विश्व प्रसिद्ध हबानोस सिगार के उत्पादन के साथ-साथ अन्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी महत्वपूर्ण हैं। विशेष रूप से, सिनफ्युगोस और मटांजास के बंदरगाहों को क्रांतिकारी सरकार के तहत विकसित किया गया था। हवाना बंदरगाह, आज भी क्यूबा का प्रमुख बंदरगाह बना हुआ है; 50% क्यूबा का आयात और निर्यात हवाना के माध्यम से ही होता हैं। बंदरगाह से, मछली पकड़ने के उद्योग का भी संचालन होता है।
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हवाना
हवाना में, देश के अग्रणी सांस्कृतिक केंद्र से लेकर विभिन्न प्रकार की विशेषताओं से भरा हुआ है जिनमें संग्रहालय, महल, सार्वजनिक स्थल, रास्ते, चर्च, किलें (16वीं से 18वीं शताब्दी में अमेरिका के सबसे बड़े किले परिसर सहित), बैले और कला और संगीत त्योहारों से प्रौद्योगिकी की प्रदर्शनी आदि शामिल हैं। ओल्ड हवाना के मरम्मत के बाद से यह क्यूबा क्रांति से जुड़े अवशेषों के संग्रहालय समेत कई नए आकर्षण के लिये प्रसिद्ध है। सरकार ने सांस्कृतिक गतिविधियों पर विशेष जोर दिया, जिनमें से कई नि:शुल्क हैं या केवल न्यूनतम शुल्क लिया जाता हैं।
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रतनसिम्हा
इतिहासकार कालिका रंजन क़ानूनो ने अपने ए क्रिटिकल एनालिसिस ऑफ़ द पद्मिनी लीजेंड (1960) में यह प्रस्ताव रखा कि वास्तव में समान नाम वाले चार विशिष्ट व्यक्ति थे। उनके अनुसार, मध्ययुगीन वार्डों ने भ्रमित किया और इन चार व्यक्तियों को जोड़ा:
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रतनसिम्हा
पद्मावत में रत्नसेन, रतन सेन के रूप में उल्लिखित; वह वास्तव में राजस्थान में चित्तौड़ नहीं बल्कि आधुनिक उत्तर प्रदेश के चित्रकूट का शासक था
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रतनसिम्हा
क्षेम के पुत्र रत्न; वह और भीमसिम्हा नामक एक और योद्धा चित्तौड़ की पहाड़ी पर एक लड़ाई में मारे गए थे
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रतनसिम्हा
चमन शासक हम्मीर का पुत्र रत्नसिंह। चित्तौड़ के शासक लक्ष्मीसिंह ने उन्हें चित्तौड़ में शरण दी, अलाउद्दीन को चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए उकसाया
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रतनसिम्हा
अन्य इतिहासकारों, जैसे कि जोगेंद्र प्रसाद सिंह (1964) और राम वल्लभ सोमानी (1976) ने निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर कानुंगो के सिद्धांत की आलोचना की है:
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रतनसिम्हा
गुहिला राजा रत्नसिंह और पद्मावत के रतन सेन अलग-अलग व्यक्ति नहीं हो सकते, यह देखते हुए कि दोनों को चित्तौड़ के राजा के रूप में वर्णित किया जाता है, जिन्हें अलाउद्दीन खिलजी ने हराया था। जयसी रतन सेन के पिता का नाम समरसिंह के अलावा एक व्यक्ति के रूप में बताता है, लेकिन सिंह के अनुसार यह केवल एक गलती है, जिसके परिणामस्वरूप जयसी ने 200 साल बाद लिखा।
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रतनसिम्हा
पद्मावत के रतन सेन वर्तमान उत्तर प्रदेश के राजा नहीं हो सकते थे, क्योंकि यह पाठ कुंभलगढ़ को अपना पड़ोसी बताते हुए मेवाड़ क्षेत्र के चित्तौड़ को स्पष्ट रूप से संदर्भित करता है।
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रतनसिम्हा
क्षेमा के पुत्र रत्ना, अलाउद्दीन के खिलाफ नहीं लड़ सकते थे: उनकी मृत्यु का उल्लेख 1273 सीई के शिलालेख में है, जबकि अलाउद्दीन केवल 1296 ईस्वी में सिंहासन पर चढ़ा। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि भीमसिंह, जिस व्यक्ति के साथ लड़ते हुए मर गया, वह भीम सिंह के रूप में ही है, जिसका उल्लेख बर्दिक किंवदंतियों में किया गया है।
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रतनसिम्हा
यह एक मात्र अनुमान है कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर हमला किया क्योंकि लक्ष्मणसिंह ने हम्मीर के पुत्र रत्नसिंह को शरण दी। इस दावे का स्रोत सूरजमल का वाभास्कर है, जो कि 19 वीं शताब्दी का ऐतिहासिक ऐतिहासिक रूप से अविश्वसनीय बर्डी कहानियों पर आधारित काम है। समकालीन स्रोतों में से कोई भी सुझाव नहीं देता है कि हम्मीर का एक पुत्र था जिसका नाम रत्नसिंह था। हम्मीर की प्रारंभिक जीवनी, हम्मीर महाकव्य में कहा गया है कि अलाउद्दीन के साथ युद्ध करने से पहले हम्मीर ने अपने राज्य के शासक के रूप में अपने मंत्री जाजदेव को नियुक्त किया। यदि हम्मीर का एक बेटा होता, तो वह अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने बेटे (बल्कि जाजदेव) को नियुक्त करता। इसके अलावा, हम्मीर ने अतीत में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, और दो राज्यों के बीच संबंध चित्तौड़ के लिए पर्याप्त नहीं थे, ताकि हम्मीर के बेटे को आश्रय दिया जा सके।
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कलापक्ष
कलापक्ष या हायमेनोप्टेरा (Hymenoptera; हायमेन (hymen) = झिल्ली; टेरोन (pteron) = पक्ष या पंख) के अंतर्गत चींटियाँ, बर्रे (wasps), मधुमक्खियाँ और इनके निकट संबंधी तथा आखेटि पतंग आते हैं। लिनियस ने 1758 ई. में हायमेनोप्टेरा नाम उन कीटों को दिया जिनके पंख झिल्लीमय होते हैं तथा जिनकी नारियों में डंक होता है। अब तक डेढ़ लाख से अधिक जीवित हायमेनोप्टेरा प्रजातियों का वर्णन किया जा चुका है। इसके अलावा इसमें २ हजार से अधिक जन्तु अब विलुप्त हो चुके हैं।
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कलापक्ष
इन कीटों के लक्षण ये हैं – पक्ष (पंख) झिल्लीमय, प्राय: छोटे और पारदर्शक होते हैं तथा पक्षों का नाड़ीविन्यास (Venation) क्षीण होता है। आगे वाले पंख की तुलना में पीछे वाला पंख बड़ा होता है। पश्चपक्ष अग्रपक्ष के पिछलेवाले किनारे में ठीक-ठीक समा जाता है। अग्रपक्ष का पिछला किनारा मुड़ा रहता है जिसमें पश्चपक्ष के अगले किनारेवालें काँटे (Hamuli) फँस जाते हैं। ये काँटे बहुत ही छोटे तथा एक पंक्ति में होते हैं। कुछ जातियों की नारियाँ पक्षविहीन भी होती हैं, उदाहरणत: डेसीबेबरिस अरजेंटीपेस (Dasybabris argenti) में, किंतु नर सदैव पक्षवाले होते हैं। इनके मुखभाग चबाकर खानेवाले (chewing type) या चबाने चाटनेवाले (chewing lapping type) होते हैं। मैंडिबल तो चबाने या काटने का कार्य करते हैं, किंतु लेबियम प्राय: एक प्रकार की जिह्वा सी बन जाता है, जिससे पतंग भोजन चाटता है। वक्ष के अग्र और मध्य खंड का समेकन हो जाता है। उदर प्राय: पतला होकर कमर सा बन जाता है और इसके प्रथम खंड का वक्ष से सदा ही समेकन रहता है। नारियों में अंडरोपक (ovipositor) सदा पाया जाता है, जो काटने तथा छेदने और रक्षक तथा आक्रामक शस्त्र के रूप में डंक मारने का कार्य करता है। इनमें पूर्ण रूतांपरण होता है। डिंभ या तो इल्लियों के आकार के या बिना टाँगोंवाले होते हैं। उदर की टाँगें, जो पूर्वपाद (Proleg) कहलाती हैं, पाँच जोड़ी से अधिक होती हैं। कलापक्ष की बहुत सी जातियाँ समाजों में रहती हैं।
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कलापक्ष
कलापक्ष सर्वाधिक विकसित कीटगणों में से एक गण है। इस गण की महत्ता केवल इसलिए नहीं है कि इसकी रचना पूर्ण रीति से हो चुकी है, वरन्‌ इसलिए भी है कि इसमें अंत: प्रवृत्ति का अद्भूत विकास मिलता है। इसके जीवन के विषय में पर्याप्त अध्ययन द्वारा ज्ञात हुआ है कि इस कीटगण में समाज का विकसन किस प्रकार हुआ। कलापक्ष की लगभग 90,000 जातियों का पता चला है। इनमें से अधिकांश जातियाँ अन्य गणों की जातियों की भाँति एकाकी (Solitary) जीवन ही व्यतीत करती हैं, केवल कुछ ही जातियों में सामाजिक जीवन की प्रवृत्ति विकसित हुई है। ये जातियाँ बड़े-बड़े समाजों में रहती हैं, जैसे मधुमक्खियाँ, बर्रे और चीटियाँ। कलापक्ष की सहस्रों जातियाँ पराश्रयी (parasitic) होने के कारण मनुष्य के लिए बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि ये अनेक हानिकारक कीटों को नष्ट कर देती हैं।
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कलापक्ष
कलापक्ष सूक्ष्म से लेकर मझोली नाप तक के होते हैं। दृष्टि तीक्ष्ण होती हैं, क्योंकि इनके नेत्र संयुक्त तथा बड़े होते हैं और प्राय: तीन सरल नेत्र भी पाए जाते हैं। दोनों लिगों की शृंगिकाओं में बहुत भेद रहता है। मधुमक्खी तथा बर्रो के नरों की शृंगिकाओं में प्राय: 13 खंड होते हैं और नारियों की शृंगिकाओं में 13 खंड। क्रकचमक्षी (सॉफ्लाई, Sawfl) के मुखभाग साधारण रूप के होते हैं और काटने का ही कार्य कर सकते हैं। अधिकतर कलापक्षों में मैंडिबल भोजन काटने के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं, जैसे मधुमक्खियाँ अपने छत्ते के लिए मोम ढालने अन्य कार्य भी करते हैं, जैसे मधुमक्खियाँ अपने छत्ते के लिए मोम ढालने का कार्य मैंडिबल से ही करती हैं। कुछ मधुमक्खियों की जिह्वा बहुत लंबी होती है। कतिपय मधुमक्खियों की जिह्वा उनके शरीर की लंबाई से भी अधिक होती है। किसी-किसी में अधरोष्ठ (लेबियम, Labium) की स्पर्शनियां और ऊर्ध्व हन्वस्थि (मैक्सिला, Maxilla) भी जिह्वा के अनुसार ही लंबी हो जाती हैं और सब मिलकर एक स्पष्ट शुंड बना देती हैं। उदर के दूसरे खंड के आकोचन के कारण कमर बन जाती है। पक्षों के नाड़ीविन्यास में बहुत भेद पाए जाते हैं। क्रकचमक्षी में नाड़ीविन्यास भली प्रकार विकसित रहता है। कुछ पराश्रयी कलापक्षों के अग्रपक्ष में केवल एक ही शिरा (वेन vein) पर छोटे शल्कि के आकार की खपड़ियाँ (टेगुली, Tegulae) होती हैं, जो कलापक्ष के वर्गीकरण में एक महत्वपूर्ण लक्षण मानी जाती है। नारियों में अंडरोपक पूर्ण रूप से विकसित रहता है। लाक्षणिक अंडरोपक में तीन जोड़ी कपाट (वाल्व, Valve) होते हैं, एक जोड़ी कपाट मिलकर डंक बन जाते हैं, दूसरी जोड़ी डंक का खोल या म्यान और तीसरी डंक की स्पर्शनियाँ होती हैं। क्रकचमक्षी का अंडरोपक अंडरोपण के अतिरिक्त पौधों में अंडा रखने के लिए छोटे-छोटे छेद भी बनाता है; आखेटि पतंग और इसके संबंधी इसको अन्य कीटों पर आघात के लिए भी प्रयुक्त करते हैं। मधुमक्खियाँ, बर्रे और कुछ चींटियाँ इसको डंक मारने के काम में लाती हैं। डंक मारने की प्रकृति इन कीटों के अतिरिक्त अन्य किसी भी कीट में नहीं पाई जाती।
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कलापक्ष
अधिकांश या लगभग सभी कलापक्षों का लिंग उसमें उपस्थित गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) की संख्या से निर्धारित होता है। जनन के संबंध में अत्यंत रोचक बात यह है कि इन कीटों में अधिकतर अनिषेक जनन होता है। मधुमक्खियों में अनिषिक्त अंडों में से केवल नर ही उत्पन्न होते हैं। द्रुस्फोट वरटों (गॉल वास्प) के अनिषिक्त अंडों से नर और नारी दोनों ही उत्पन्न होते हैं। अनिषिक्त अंडों की पीढ़ी और संसेचित अंडों की पीढ़ी, एक के पश्चात्‌ एक, क्रमानुसार उत्पन्न होती रहती है। कुछ द्रुस्फोट वरटों में नर संभवतः उत्पन्न नहीं होते। क्रकचमक्षी और भुजतंतु वरट (कैलसिड, Chalcid) में भी अधिकतर अनिषेक जनन ही होता है।
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कलापक्ष
सिमफ़ायटा (Symphyta) के डिंभ शाकभक्षी होते हैं। जो डिंभ खुले में रहकर पत्तियाँ खाते हैं, वे इल्लियाँ कहलाते हैं। इनके उदर पर छह जोड़ी या इससे अधिक टाँगें नहीं पाई जातीं और वक्ष की टाँगें भी क्षीण होकर गुटिका के आकार की बन जाती हैं। ऐपोक्रिटा (Apocrita) के डिंभ प्राय: अपने भोजन के संपर्क में ही अंडे से निकलते हैं, अत: इनको भोजन की खोज नहीं करनी पड़ती। इस कारण इनमें अध:पतन (डिजेनेशन degerneration) हो जाता है। इनमें टाँगें तो होतीं ही नहीं और अन्यान्य विशिष्ट ज्ञानेंद्रियों का भी पूर्ण अभाव रहता है। पराश्रयी कलापक्षों में प्राय: अतिरूपांतरण (हाइपरमेटामार्फ़ोसिस, hypermetamorphosis) होता है, अत: डिंभ भी कई प्रकार के होते हैं और एक दूसरे में अत्यधिक भेद रहता है। उन पराश्रयी कलापक्षों में, जो अपने अंडे पोषक से दूर रखते हैं, अंडों से निकले हुए डिंभ बहुत क्रियाशील होते हैं, क्योंकि तभी वे पाषकों के पास पहुंच सकते हैं। पोषक पा जाने के पश्चात्‌ ये पदविहीन डिंभ का आकार धारण कर लेते हैं। इस प्रकार के डिंभ साधारणतया सभी ऐपोक्रिटा में पाए जाते हैं। कुछ जतियाँ बाह्य पराश्रयी (external pa anite) होने के कारण अपने मुखभागों से अपने पोषक की देह छेदकर अपना भोजन प्राप्त करती हैं, किंतु अधिकतर पराश्रयी कलापक्ष आंतरिक परजीवी हैं। आंतरिक परजीवियों की नारी अपना अंडरोपक पोषक के भीतर घुसाकर एक अंडा रख देती हैं, किंतु जब पोषकों की कमी होती है तब एक-एक पोषक के भीतर एक से अधिक भी अंडा रख दिया जाता है। कुछ परजीवी इतने छोटे होते हैं कि किसी अन्य कीट के अंडे के भीतर ही अपना विकसन पूरा कर लेते हैं। कुछ परजीवी अपने अंडे अन्य कीटों के डिंभ और प्यूपा के भीतर भी रखते हैं, किंतु प्रौढ़ के भीतर अंडा रखनेवाले परजीवियों की संख्या बहुत थोड़ी है। पोषक की अंत में मृत्यु हो जाती है। खोदाई करनेवाले वरट अन्य कीटों को पकड़कर अपने डिंभों को खिलाते हैं। ये पकड़े हुए कीट प्रत्येक अंडे के साथ घरौंदा बनाकर रख दिए जाते हैं। जब अंडे से डिंभ निकलता है तब उसको अपने समीप ही भोजन मिल जाता है। मधुमक्खियाँ केवल पुष्पपराग और पुष्पमकरंद ही खाती हैं और अपने डिंभों के लिए इन्हें एकत्र कर लेती हैं। इस प्रकार ये कीट अपनी संतान का ध्यान रखते हैं। संतान का ध्यान रखने की यह प्रवृत्ति अन्य कीटों में नहीं है। इस प्रकार इन कीटों के कुछ समुदायों में समाजिक जीवन का विकास हुआ है। डिंभ पूर्ण अवस्था को पहुँचने पर कोष (कोकून, cocoon) के भीतर प्यूपा बन जाते हैं।
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कलापक्ष
सबसे बड़े कलापक्ष खोदाई करनेवाले वरटों में मिलते हैं। इनमें से कोई-कोई वरट तीन इंच तक लंबा होता है। सबसे छोटे कलापक्ष अन्य कीटों के अंडों के भीतर रहनेवाले परजीवी हैं। अप्सरा (फ़ेयरी फ़्लाइ, Fairy fly) नामक परजीवी केवल 0.21 मिलीमीटर लंबा होता है। अधिकतर कलापक्ष भूमि पर रहने और हवा में उड़नेवाले हैं। केवल अप्सराएँ ही पानी में रहती हैं। ये अन्य जलवाले कीटों के अंडों या डिंभों पर अंडा रखने के लिए अपने पक्षों की सहायता से शीघ्रतापूर्वक तैरती रहती है। पराश्रयी जातियों की संख्या इस गण की शेष जातियों की संख्या की तुलना में बहुत अधिक है। भूमि पर रहनेवाले कीटों का कोई भी गण इनके आक्रमण से बचा नहीं। भूमि में गहराई पर छेद करके, या ठोस काष्ठ में, रहनेवाले डिंभ भी इनसे बच नहीं पाते। जिन परजीवियों को वृक्षों के भीतर रहनेवाले पोषकों तक अपना अंडा पहुँचाने के लिए अपना अंडरोपक वृक्षों के भीतर प्रविष्ट करना पड़ता है उनका अंडरोपक बहुत लंबा होता है। खोदाई करनेवाले वरट अपने घोंसले में अन्य कीट या मकड़ियाँ जमा करके रखते हैं। इन्हें साधारणत: डंक मारकर केवल निश्चल कर दिया जाता है। कुछ वरट अपने आखेट को मार भी डालते हैं। किंतु मरा हुआ शिकार सड़ता नहीं है, इसलिए ऐसा अनुमान है कि डंक मारते समय जो विष शिकार में पहुँचना है वह शिकार को सड़ने नहीं देता।
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कलापक्ष
मधुमक्खियाँ, बर्रे और कुछ चींटियाँ अपना डंक अपनी रक्षा के लिए प्रयुक्त करती हैं। इनके डंक की जड़ पर विशेष प्रकार की बड़ी ग्रंथि होती है, जिसका स्राव डंक मारते समय शत्रु में प्रविष्ट हो जाता है। यह स्राव शत्रु में क्षोभ उत्पन्न करता है। चींटियों के स्राव में फ़ॉर्मिक अम्ल होता है।
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कलापक्ष
घोंसला या छत्ता बनाना भी कलापक्षों का एक गण है। खोदाई करनेवाले वरट केवल सादा सा ही बिल धरती में बना लेते हैं। कुछ भ्रमरों का घोंसला सुरंगाकार कई शाखाओंवाला होता है। कुछ भ्रमर काष्ठ को छेदकर या वृक्षों के खोखले तनों में अपना घोंसला बनाते हैं। बर्रे सूखी लकड़ी को चबा चबाकर और चबाई हुई लकड़ी में अपनी लार मिलाकर एक प्रकार का कागज तैयार कर लेती है और इसी कागज का उपयोग अपना छत्ता बनाने में करती है। सामाजिक मधुमक्खियाँ अपने शरीर से मोम का उत्सर्जन करती हैं और इसे अपने छत्ते बनाने के काम में लाती हैं। कुछ कलापक्ष अपने घोंसले नहीं बनाते, बल्कि दूसरी जातियों के बनाए घोंसलों में ही रहने लगते हैं। ऐसे कलापक्ष अधिवासी (इनक्विलाइन, inquilline) कहलाते हैं। छत्तेवासियों द्वारा अपने डिंभों के लिए लाया गया भोजन भी कभी-कभी अधिवासियों के डिंभ खा जाते हैं। कुछ अधिवासी कलापक्ष ऐसे भी हैं जो छत्तेवासियों के डिभों को भी खा जाते हैं और इस प्रकार वास्तविक परजीवी बन जाते हैं। कलापक्षों का सबसे रोचक लक्षण है इनका सामाजिक जीवन। (देखिये सामाजिक कीट)।
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वर्मपंखी
कंचुकपक्ष गण में 2,20,000 से अधिक जातियों का उल्लेख किया जा चुका है और इस प्रकार यह कीटवर्ग ही नहीं, वरन्‌ समस्त जंतु संसार का सबसे बड़ा गण है। इनकी रहन-सहन बहुत भिन्न होती है; किंतु इनमें से अधिकांश मिट्टी या सड़ते गलते पदार्थों में पाए जाते हैं। कई जातियाँ गोबर, घोड़े के मल, आदि में मिलती हैं और इसलिए इनको गुबरैला कहा जाता है। कुछ जातियाँ जलीय प्रकृति की होती हैं; कुछ वनस्पत्याहारी हैं और इनके डिंभ तथा प्रौढ़ दोनों ही पौधों के विभिन्न भागों को खाते हैं; कुछ जातियाँ, जिनको साधारणत: घुन नाम से अभिहित किया जाता है, काठ, बाँस आदि में छेदकर उनको खोखला करती हैं और उन्हीं में रहती हैं। कुछ सूखे अनाज, मसाले, मेवे आदि का नाश करती हैं।
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