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टेनिस
टेनिस खेल 2 टीमों के बीच गेंद से खेले जाने वाला एक खेल है जिसमें कुल 2 खिलाडी (एकल मुकाबला) या ४ खिलाड़ी (युगल) होते हैं। टेनिस के बल्ले को टेनिस रैकट और मैदान को टेनिस कोर्ट कहते है। खिलाडी तारो से बुने हुए टेनिस रैकट के द्वारा टेनिस गेंद जोकि रबर की बनी, खोखली और गोल होती है एवम जिस के ऊपर महीन रोए होते है को जाल के ऊपर से विरोधी के कोर्ट में फेकते है।
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टेनिस
टेनिस की शुरुआत फ्रांस में मध्य काल में हुई मानी जाती है। उस समय यह खेल इन-डोर यानि छत के नीचे हुआ करता था। इंगलैड में 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में लॉन टेनिस, यानि छत से बाहर उद्यान में खेले जाने वाले का जन्म हुआ और बाद में सारे विश्व में लोकप्रिय हुआ। आज यह खेल ओलम्पिक में शामिल है और विश्व के सभी प्रमुख देशों के करोड़ों लोगो में काफी लोकप्रिय है। टेनिस की विश्व स्तर पर चार प्रमुख स्पर्धाए होती है जिन्हे ग्रेन्ड स्लेम कहा जाता है - हर साल जनवरी में ऑस्ट्रेलिया की ऑस्ट्रेलियन ओपन, मई में फ़्रांस की फ़्रेन्च ओपन और उसके दो हफ़्तों के बाद लंदन की विम्बलडन, सितम्बर में अमेरिका में होने वाली स्पर्धा को अमेरिकन ओपन (संक्षेप में यूएस ओपन) कहा जाता है। विम्बलडन एक घास के कोर्ट पर खेला जाता है। फ्रेंच ओपन मिट्टी के आंगन (क्ले कोर्ट) पर खेला जाता है। यूएस ओपन और ऑस्ट्रेलियन ओपन के मिश्रित कोर्ट
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टेनिस
इतिहासकार टेनिस खेल का मूल 12 वीं शताब्दी के उत्तरी फ्रांस में मानते है, जहां एक खेल गेंद को हाथ की हथेली के साथ मार कर खेला जाता था। उस समय खेल को "जिउ दी पौमे" (हथेली का खेल) कहा जाता था। रैकेट 16 वीं सदी में प्रयोग में आया और खेल को "टेनिस" कहा जाने लगा, पुरानी फ्रांसीसी शब्द टेनेज़ से, जो "पकड़", "ले" के रूप में अनूदित किया जा सकता है। यह इंग्लैंड और फ्रांस में लोकप्रिय था, हालांकि खेल केवल घर के अंदर खेला जाता था जहाँ गेंद दीवार से मारी जा सकती थी। इंग्लैंड के हेनरी अष्टम इस खेल के एक बड़े प्रशंसक थे, जो अब असली टेनिस (रियल टेनिस‌) के रूप में जाना जाता है।
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टेनिस
एक टेनिस रैकेट के घटक एक हैंडल शामिल हैं, जो पकड़ के रूप में जाना जाता है, गर्दन से जुड़ा हुआ जो कि मोटे तौर पर एक अण्डाकार फ्रेम में मिलती है जो कसकर खींचा तार का एक मैट्रिक्स होता है। आधुनिक खेल के पहले 100 वर्षों के लिए, रैकेट, लकड़ी के और मानक आकार के थे और तार पशु आंत के थे। पर्ती लकड़ी से 20 वीं सदी में बनने शुरू हुए, फिर धातु से और फिर कार्बन ग्रेफाइट की कंपोजिट से, जबतक चीनी मिट्टी और टाइटेनियम जैसी हल्की धातुओं से बनने शुरू हुए।
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टेनिस
पूरे रैकेट को एक निश्चित आकृती, आकार, वजन, और वजन वितरण का होना चाहिए। रैकेट में कोई भी ऊर्जा स्रोत निर्मित नहीं हो सकता है।
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टेनिस
टेनिस की गेंदों ने धागे के साथ कपड़े सिल कर बनाए जाने से एक लंबा सफर तय किया है। टेनिस की गेंदें महसूस करने लायक कोटिंग के साथ खोखले रबर के बने होते हैं। परंपरागत रूप से सफेद, दृश्यता सुधार के लिए प्रमुख रंग धीरे धीरे 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हल्का पीला कर दिया गया था। विनियमन खेलने की मंजूरी के लिए टेनिस की गेंदें को आकार, वजन, विरूपण, और उछाल के लिए कुछ मानदंडों का पालन करना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय टेनिस महासंघ (आईटीएफ) ने 65.41-68.58 मिमी (2.575-2.700 इंच) को सरकारी व्यास के रूप में परिभाषित किया है। गेंदें 56.0 और 59.4 ग्राम (1.975-2.095 औंस) के बीच होनी चाहिए।
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टेनिस
साल भर और भी कई स्पर्धाएं खेली जाती हैं जिनमें ग्रैंड स्लेम के मुकाबले कम प्रतियोगी और पुरस्कार राशि भी कम होती है। अन्य कुछ प्रतियोगिताएं हैं
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टेनिस
खेल मुख्यतः गेंद को विरोधी सतह पर एक टप्पा खिलाने के उद्देश्य से खेला जाता है। अगर विरोधी उसको वापस मारने (यानि प्रतिद्वंदी के भाग में, जाल के उस पार) में असफल होता है जो अंक गंवा बैठता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8
टेनिस
एक बार इस तरह १५ अंक (प्वाइंट) मिलते हैं। ४० से अधिक अंक मिलने पर एक गेम जीता जाता है और ६ से अधिक गेम जीतने पर एक सेट। दो (ठोटी प्रतियोगिताओं में) या तीन सेट पहले जीतने वाले को मैच विजेता मानते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B
ओशो
चन्द्र मोहन जैन का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था। ओशो शब्द की मूल उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई धारणायें हैं। एक मान्यता के अनुसार, खुद ओशो कहते है कि ओशो शब्द कवि विलयम जेम्स की एक कविता 'ओशनिक एक्सपीरियंस' के शब्द 'ओशनिक' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'सागर में विलीन हो जाना। शब्द 'ओशनिक' अनुभव का वर्णन करता है, वे कहते हैं, लेकिन अनुभवकर्ता के बारे में क्या? इसके लिए हम 'ओशो' शब्द का प्रयोग करते हैं। अर्थात, ओशो मतलब- 'सागर से एक हो जाने का अनुभव करने वाला'। १९६० के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से एवं १९७० -८० के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और १९८९ के समय से ओशो के नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये।
0.5
5,608.858391
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B
ओशो
रजनीश ने अपने विचारों का प्रचार करना मुम्बई में शुरू किया, जिसके बाद, उन्होंने पुणे में अपना एक आश्रम स्थापित किया, जिसमें विभिन्न प्रकार के उपचारविधान पेश किये जाते थे. तत्कालीन भारत सरकार से कुछ मतभेद के बाद उन्होंने अपने आश्रम को ऑरगन, अमरीका में स्थानांतरित कर लिया। १९८५ में एक खाद्य सम्बंधित दुर्घटना के बाद उन्हें संयुक्त राज्य से निर्वासित कर दिया गया और २१ अन्य देशों से ठुकराया जाने के बाद वे वापस भारत लौटे और पुणे के अपने आश्रम में अपने जीवन के अंतिम दिन बिताये।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B
ओशो
ओशो का मूल नाम चन्द्र मोहन जैन था। वे अपने पिता की ग्यारह संतानो में सबसे बड़े थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश में रायसेन जिले के अंतर्गत आने वाले कुचवाडा ग्राम में हुआ था। उनके माता पिता श्री बाबूलाल और सरस्वती जैन, जो कि तेैरापंथी दिगंबर जैन थे, ने उन्हें अपने ननिहाल में ७ वर्ष की उम्र तक रखा था। ओशो के स्वयं के अनुसार उनके विकास में इसका प्रमुख योगदान रहा क्योंकि उनकी नानी ने उन्हें संपूर्ण स्वतंत्रता, उन्मुक्तता तथा रुढ़िवादी शिक्षाओं से दूर रखा। जब वे ७ वर्ष के थे तब उनके नाना का निधन हो गया और वे गाडरवारा अपने माता पिता के साथ रहने चले गए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B
ओशो
रजनीश बचपन से ही गंभीर व सरल स्वभाव के थे, वे शासकीय आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पढा करते थे। विद्यार्थी काल में रजनीश बगावती सोच के व्यक्ति हुआ करते थे, जिसे परंपरागत तरीके नहीं भाते थे। किशोरावस्था तक आते-आते रजनीश नास्तिक बन चुके थे। उन्हें ईश्वर और आस्तिकता में जरा भी विश्वास नहीं था। अपने विद्यार्थी काल में उन्होंने ने एक कुशल वक्ता और तर्कवादी के रूप में अपनी पहचान बना ली थी। किशोरावस्था में वे आज़ाद हिंद फ़ौज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी क्षणिक काल के लिए शामिल हुए थे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B
ओशो
वर्ष 1957 में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के तौर पर रजनीश रायपुर विश्वविद्यालय से जुड़े। लेकिन उनके गैर परंपरागत धारणाओं और जीवनयापन करने के तरीके को छात्रों के नैतिक आचरण के लिए घातक समझते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति ने उनका स्थानांतरण कर दिया। अगले ही वर्ष वे दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में जबलपुर विश्वविद्यालय में शामिल हुए। इस दौरान भारत के कोने-कोने में जाकर उन्होंने गांधीवाद और समाजवाद पर भाषण दिया; अब तक वह आचार्य रजनीश के नाम से अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B
ओशो
वे दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उनके द्वारा समाजवाद, महात्मा गाँधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्म पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया। वे मानव कामुकता के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण के भी हिमायती थे जिसकी वजह से उन्हें कई भारतीय और फिर विदेशी पत्रिकाओ में "सेक्स गुरु" के नाम से भी संबोधित किया गया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B
ओशो
१९७० में ओशो कुछ समय के लिए मुंबई में रुके और उन्होने अपने शिष्यों को "नव संन्यास" में दीक्षित किया और अध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। उनके विचारों के अनुसार, अपनी देशनाओं में वे सम्पूूूर्ण विश्व के रहस्यवादियों, दार्शनिकों और धार्मिक विचारधारों को नवीन अर्थ दिया करते थे। १९७४ में पुणे आने के बाद उन्होनें अपने "आश्रम" की स्थापना की जिसके बाद विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी, जिसे आज ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रेसॉर्ट के नाम से जाना जाता है. तत्कालीन जनता पार्टी सरकार के साथ मतभेद के बाद १९८० में ओशो "अमेरिका" चले गए और वहां ओरेगॉन, संयुक्त राज्य की वास्को काउंटी में रजनीशपुरम की स्थापना की। १९८५ में इस आश्रम में सामुहिक फ़ूड पॉइज़निंग की घटना के बाद उन्हें संयुक्त राज्य से निर्वासित कर दिया गया.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B
ओशो
ओशो की मृत्यु १९ जनवरी १९९० को, ५८ वर्ष की आयु में, पुणे, भारत में आश्रम में हुई। मौत का आधिकारिक कारण हृदय गति रुकना था, लेकिन उनके कम्यून द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि अमेरिकी जेलों में कथित जहर देने के बाद "शरीर में रहना नरक बन गया था" इसलिए उनकी मृत्यु हो गई। उनकी राख को पुणे के आश्रम में लाओ त्ज़ु हाउस में उनके नवनिर्मित बेडरूम में रखा गया था। ओशो की समाधि पर स्मृतिलेख है, 'न जन्में न मरे - सिर्फ 11 दिसंबर, 1931 और 19 जनवरी, 1990 के बीच इस ग्रह पृथ्वी का दौरा किया'।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B
ओशो
ओशो की मौत अभी भी एक रहस्य बनी हुई है और जनवरी 2019 में 'द क्विंट' के एक लेख में कुछ प्रमुख प्रश्न पूछे गए हैं जैसे "क्या ओशो की हत्या पैसे के लिए की गई थी? क्या उनकी वसीयत नकली है? क्या विदेशी भारत के खजाने को लूट रहे हैं?
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5,608.858391
20231101.hi_2605_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%80
इटली
इटली के समीप स्थित सिसली, सार्डीनिया तथा कॉर्सिका के अतिरिक्त एल्वा, कैप्रिया, गारगोना, पायनोसा, मांटीक्रिस्टो, जिग्लिको आदि मुख्य मुख्य द्वीप हैं। इन द्वीपों में इस्चिया, प्रोसिदा तथा पोंजा, जो नेपुल्स की खाड़ी के पास हैं, ज्वालामुखी पहाड़ों की देन हैं। एड्रियाटिक तट पर केवल ड्रिमिटी द्वीप है।
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5,594.905148
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%80
इटली
देश की प्राकृतिक रचना, अक्षांशीय विस्तार (10 डिग्री 29 मिनट) तथा भूमध्यसागरीय स्थिति ही जलवायु की प्रधान नियामक है। तीन ओर समुद्र तथा उत्तर में उच्च आल्प्स से घिरे होने के कारण यहाँ की जलवायु की विविधता पर्याप्त बढ़ जाती है। यूरोप के सबसे अधिक गर्म देश इटली में जाड़े में अपेक्षाकृत अधिक गर्मी तथा गर्मी में साधारण गर्मी पड़ती है। यह प्रभाव समुद्र से दूरी बढ़ने पर घटता है। आल्प्स के कारण यहाँ उत्तरी ठंढी हवाओं का प्रभाव नहीं पड़ता है। किंतु पूर्वी भाग में ठंढी तथा तेज बोरा नामक हवाएँ चला करती हैं। अपेनाइंस पहाड़ के कारण अंध महासागर से आनेवाली हवाओं का प्रभाव तिर हीनियन समुद्रतट तक ही सीमित रहता है।
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5,594.905148
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%80
इटली
उत्तरी तथा दक्षिणी इटली के ताप में पर्याप्त अंतर पाया जाता है। ताप का उतार चढ़ाव 52 डिग्री फा. से 66 डिग्री फा. तक होता है। दिसंबर तथा जनवरी सबसे अधिक ठंढे तथा जुलाई और अगस्त सबसे अधिक गर्म महीने हैं। पो नदी के मैदन का औसत ताप 55 डिग्री फा. तथा 500 मील दूर स्थित सिसली का औसत ताप 64 डिग्री फा. है। उत्तर के आल्प्स के पहाड़ी क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 80फ़फ़ होती है। अपेनाइंस के ऊँचे पश्चिमी भाग में भी पर्याप्त वर्षा होती है। पूर्वी लोंबार्डी के दक्षिण पश्चिमी भाग में वार्षिक वर्षा 24फ़फ़ होती है, किंतु उत्तरी भाग में उसका औसत 50फ़फ़ होता है तथा गर्मी शुष्क रहती है। आल्प्स के मध्यवर्ती भाग में गर्मी में वर्षा होती है तथा जाड़े में बर्फ गिरती है। पो नदी की द्रोणी में गर्मी में अधिक वर्षा होती है। स्थानीय कारणों के अतिरिक्त इटली की जलवायु भूमध्यसागरीय है जहाँ जाड़े में वर्षा होती है तथा गर्मी शुष्क रहती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%80
इटली
जलवायु की विषमता के कारण यहाँ की बनस्पतियाँ भी एक सी नहीं हैं। मनुष्य के सतत प्रयत्नों से प्राकृतिक वनस्पतियाँ केवल उच्च पहाड़ों पर ही देखने को मिलती हैं। जहाँ नुकीली पत्तीवाले जंगल पाए जाते हैं। इनमें सरो, देवदारु, चीड़ तथा फर के वृक्ष मुख्य हैं। उत्तर के पर्वतीय ठंढे भागों में अधिक ठंडक सहन करनेवाले पौधे पाए जाते हैं। तटीय तथा अन्य निचले मैदानों में जैतून, नारंगी, नीबू आदि फलों के उद्यान लगे हुए हैं। मध्य इटली में अपेनाइंस पर्वत की ऊँची श्रेणियों को छोड़कर प्राकृतिक वनस्पति अन्यत्र नहीं है। यहाँ जैतून तथा अंगूर की खेती होती है। दक्षिणी इटली में तिरहीनियन तटपर जैतून, नारंगी, नीबू, शहतूत, अंजीर आदि फलों के उद्यान हैं। इस भाग में कंदों से उगाए जानेवाले फूल भी होते हैं। यहाँ ऊँचाई पर तथा सदाबहार जंगल पाए जाते हैं। अत: यह स्पष्ट है कि पूरे इटली को आधुनिक किसानों ने फलों, तरकारियों तथा अन्य फसलों से भर दिया है, केवल पहाड़ों पर ही जंगली पेड़ तथा झाड़ियाँ पाई जाती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%80
इटली
इटली वासियों का सबसे बड़ा व्यवसाय खेती है। संपूर्ण जनसंख्या का भाग खेती से ही अपनी जीविका प्राप्त करता है। जलवायु तथा प्राकृतिक दशा की विभिन्नता के कारण इस छोटे से देश में यूरोप में पैदा होनेवाली सारी चीजें पर्याप्त मात्रा में पैदा होती हैं, अर्थात् राई से लेकर चावल तक, सेब से लेकर नारंगी तक तथा अलसी से लेकर कपास तक। संपूर्ण देश में लगभग 7,05,00,000 एकड़ भूमि उपजाऊ है, जिसमें 1,83,74,000 एकड़ में अन्न, 28,62,000 एकड़ में दाल आदि फसलें, 7,72,000 एकड़ में औद्योगिक फसलें, 14,90,000 एकड़ में तरकारियाँ, 23,86,000 एकड़ में अंगूर, 20,33,000 एकड़ में जैतून, 2,19,000 एकड़ में चरागाह और चारे की फसलें तथा 1,44,58,000 एकड़ में जंगल पाए जाते हैं। यहाँ की खेती प्राचीन ढंग से ही होती है। पहाड़ी भूमि होने के कारण आधुनिक यंत्रों का प्रयोग नहीं हो सका है।
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20231101.hi_2605_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%80
इटली
जनसंख्या : पूर्व ऐतिहासिक काल में यहाँ की जनसंख्या बहुत कम थी। जनवृद्धि का अनुपात द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले पर्याप्त ऊँचा था (1931 ई. में वार्षिक वृद्धि 0.87 प्रति शत थी)।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%80
इटली
पर्वतीय भूमि तथा सीमित औद्योगिक विकास के कारण जनसंख्या का घनत्व अन्य यूरोपिय देशों की अपेक्षा बहुत कम है। अधिकांश लोग गाँवों में रहते हैं। देश में 50,000 से ऊपर जनसंख्यावाले नगरों की संख्या 70 है। यहाँ अधिकांश लोग रोमन कैथोलिक धर्म माननेवाले हैं। 1931 ई. की जनगणना के अनुसार 99.6 प्रतिशत लोग कैथोलिक थे, 0.34 प्रतिशत लोग दूसरे धर्म के थे तथा। 06 प्रतिशत ऐसे लोग थे जिनका कोई विशेष धर्म नहीं था। शिक्षा तथा कला की दृष्टि से इटली प्राचीन काल से अग्रणी रहा है। रोम की सभ्यता तथा कला इतिहासकाल में अपनी चरम सीमा तक पहुँच गई थी (द्र. "रोम")। यहाँ के कलाकार और चित्रकार विश्वविख्यात थे। आज भी यहाँ शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा है। निरक्षरता नाम मात्र की भी नहीं है। देश में 70 दैनिक पत्र प्रकाशित होते हैं। छविगृहों की संख्या लगभग 9,770 है (1969 ई.)।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%80
इटली
इटली में खनिज पदार्थ अपर्याप्त हैं, केवल पारा ही यहाँ से निर्यात किया जाता है। यहाँ सिसली (काल्टानिसेटा), टस्कनी (अरेंजो, फ्लोरेंस तथा ग्रासेटो), सार्डीनिया (कैगलिआरी, ससारी तथा इंग्लेसियास) एवं पिडमांट क्षेत्रों में ही खनिज तथा औद्योगिक विकास भली भाँति हुआ है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%80
इटली
देश का प्रमुख उद्योग कपड़ा बनाने का है। यहाँ 1969 ई. में सूती कपड़े बनाने के 945 कारखाने थे। रेशम का व्यवसाय पूरे इटली में होता है, किंतु लोंबार्डी, पिडमांट तथा वेनेशिया मुख्य सिल्क उत्पादक क्षेत्र हैं। 1969 में गृहउद्योग को छोड़कर रेशमी कपड़े बनाने के 24 तथा ऊनी कपड़े बनाने के 348 कारखाने थे। रासायनिक वस्तु बनाने के तथा चीनी बनाने के भी पर्याप्त कारखाने हैं। देश में मोटर, मोटर साइकिल तथा साइकिल बनाने का बहुत बड़ा उद्योग है। 1969 ई. में 15,95,951 मोटरें बनाई गई थीं जिनमें से 6,30,076 मोटरें निर्यात की गई थीं। अन्य मशीनें तथा औजार बनाने के भी बहुत से कारखाने हैं। जलविद्युत् पैदा करने का बहुत बड़ा धंधा यहाँ होता है। यहाँ 15,88,031 कारखाने हैं, जिनमें 68,00,673 व्यक्ति काम करते हैं। इटली का व्यापारिक संबंध यूरोप के सभी देशों से तथा अर्जेंटीना, संयुक्त राज्य (अमरीका) एवं कैनाडा से है। मुख्य आयात की वस्तुएँ कपास, ऊन, कोयला और रासायनिक पदार्थ हैं तथा निर्यात की वस्तुएँ फल, सूत, कपड़े, मशीनें, मोटर, मोटरसाइकिल एवं रासायनिक पदार्थ हैं। इटली का आयात निर्यात से अधिक होता है।
0.5
5,594.905148
20231101.hi_51007_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%B2
पंचशील
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत, जिन्हें पंचशील भी कहा जाता है, का उल्लेख चीन-भारतीय समझौते 1954 की प्रस्तावना में किया गया था। सिद्धांतों को बाद में चीन के संविधान की प्रस्तावना सहित कई प्रस्तावों और बयानों में अपनाया गया।
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पंचशील
पंचशील समझौता आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए भारत और चीन के बीच सबसे महत्वपूर्ण संबंधों में से एक के रूप में कार्य करता है। पांच सिद्धांतों की एक अंतर्निहित धारणा यह थी कि नए स्वतंत्र राज्य उपनिवेशवाद के बाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए एक नया और अधिक सैद्धांतिक दृष्टिकोण विकसित करने में सक्षम होंगे।
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पंचशील
एक भारतीय राजनयिक और चीन के विशेषज्ञ वी. वी. परांजपे के अनुसार, पंचशील के सिद्धांतों को पहली बार सार्वजनिक रूप से झोउ एनलाई द्वारा तैयार किया गया था - "31 दिसंबर, 1953 को तिब्बती व्यापार वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए [...] के रूप में "विदेशों के साथ चीन के संबंधों को नियंत्रित करने वाले पांच सिद्धांत।"" फिर 18 जून 1954 को दिल्ली में एक संयुक्त बयान में, सिद्धांतों पर भारत के प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू और प्रीमियर झोउ एनलाई द्वारा जोर दिया गया था। बीजिंग में भारत-चीन संधि पर हस्ताक्षर के कुछ ही दिनों बाद कोलंबो, श्रीलंका में एशियाई प्रधान मंत्री सम्मेलन के समय दिया गया प्रसारण भाषण। नेहरू ने यहां तक ​​कहा: "यदि इन सिद्धांतों को पारस्परिक रूप से मान्यता दी गई थी सभी देशों के संबंध हैं, तो वास्तव में शायद ही कोई संघर्ष होगा और निश्चित रूप से कोई युद्ध नहीं होगा।" यह सुझाव दिया गया है कि पांच सिद्धांत आंशिक रूप से इंडोनेशियाई राज्य के पांच सिद्धांतों के रूप में उत्पन्न हुए थे। जून 1945 में सुकर्णो, इंडोनेशियाई नाटी ओनालिस्ट नेता ने पांच सामान्य सिद्धांतों, या पंचशील की घोषणा की थी, जिस पर भविष्य की संस्थाओं की स्थापना की जानी थी। 1949 में इंडोनेशिया स्वतंत्र हुआ।
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पंचशील
पांच सिद्धांतों को संशोधित रूप में अप्रैल 1955 में बांडुंग, इंडोनेशिया में ऐतिहासिक एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन में जारी दस सिद्धांतों के एक बयान में शामिल किया गया था, जिसने इस विचार को बनाने के लिए किसी भी अन्य बैठक से अधिक किया कि औपनिवेशिक राज्यों के पास कुछ खास था। दुनिया की पेशकश करें। "भारत, यूगोस्लाविया और स्वीडन द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर एक प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1957 में सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था।"<ref>Somnath Ghosh. India's Place in the World: From Panchsheel to RCEP। Rajiv Gandhi Institute for Contemporary Studies. Retrieved on 10 November 2020.</ref> पांच सिद्धांतों के रूप में उन्हें कोलंबो और अन्य जगहों पर अपनाया गया था, 1961 में बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में स्थापित गुटनिरपेक्ष आंदोलन का आधार बना।
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पंचशील
चीन ने अक्सर पांच सिद्धांतों के साथ अपने घनिष्ठ संबंध पर जोर दिया है। इसने उन्हें शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों के रूप में, दिल्ली में दिसंबर 1953 से अप्रैल 1954 तक पीआरसी सरकार के प्रतिनिधिमंडल और भारत सरकार के प्रतिनिधिमंडल के बीच संबंधों पर हुई बातचीत की शुरुआत में सामने रखा था। अक्साई चिन के विवादित क्षेत्रों के संबंध में और जिसे चीन दक्षिण तिब्बत और भारत अरुणाचल प्रदेश कहता है। ऊपर वर्णित 28 अप्रैल 1954 का समझौता आठ वर्षों तक चलने के लिए निर्धारित किया गया था। जब यह समाप्त हो गया, तो संबंधों में पहले से ही खटास आ रही थी, समझौते के नवीनीकरण का प्रावधान नहीं किया गया था और दोनों पक्षों के बीच चीन-भारतीय युद्ध छिड़ गया था।
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पंचशील
1979 में, जब भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री और भविष्य के प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चीन गए, तो पंचशील शब्द ने चीनियों के साथ बातचीत के दौरान बातचीत में अपना रास्ता खोज लिया। संधि की 50वीं वर्षगांठ पर, चीन जनवादी गणराज्य के विदेश मंत्रालय ने कहा कि "शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों के आधार पर एक नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था" का निर्माण किया जाना चाहिए। इसके अलावा 2004 में, प्रीमियर वेन जियाबाओ ने कहा,
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पंचशील
जून 2014 में, भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का चीन द्वारा बीजिंग में लोगों के ग्रेट हॉल में पंचशील संधि पर हस्ताक्षर करने की 60 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में स्वागत किया गया था। 2017 में, चीनी नेता शी जिनपिंग ने कहा कि "चीन पंचशील के पांच सिद्धांतों से मार्गदर्शन लेने के लिए भारत के साथ काम करने के लिए तैयार है"।
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पंचशील
भीमराव अम्बेडकर ने राज्यसभा में संधि के बारे में कहा "मुझे वास्तव में आश्चर्य है कि हमारे माननीय प्रधान मंत्री इस पंचशील को गंभीरता से ले रहे हैं [...] आप जानते होंगे कि पंचशील बुद्ध धर्म के महत्वपूर्ण भागों में से एक है। यदि श्री माओ की पंचशील में रत्ती भर भी आस्था थी, वे अपने देश के बौद्धों के साथ अलग ढंग से व्यवहार करते।" 1958 में, आचार्य कृपलानी ने कहा था कि पंचशील "पाप में पैदा हुआ था" क्योंकि यह एक राष्ट्र के विनाश के साथ स्थापित किया गया था; भारत ने प्राचीन तिब्बत के विनाश को मंजूरी दे दी थी।
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पंचशील
2014 में, एक चीनी विद्वान झाओ गेंचेंग ने कहा कि सतह पर पंचशील बहुत सतही लग रहा था; लेकिन शी जिनपिंग प्रशासन के तहत यह फिर से प्रासंगिक हो गया है। 2014 में, राम माधव ने इंडियन एक्सप्रेस में "मूविंग बियॉन्ड द पंचशील डिसेप्शन" शीर्षक से एक लेख लिखा और कहा कि अगर भारत और चीन पंचशील ढांचे से आगे बढ़ने का फैसला करते हैं, तो इससे दोनों देशों को फायदा होगा।
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बीमा
18. वैध सम्पत्तियों / कार्यों का ही बीमा - बीमा केवल वैध सम्पत्तियों का किया जा सकता है। चोरी, डकै ती तस्करी आदि के सामान का बीमा नही करवाया जा सकता है।
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बीमा
19. बीमितों की बड़ी संख्या का होना - एक ही प्रकार की जोखिम से घिरे व्यक्तियों का जितना बड़ा समूह होगा उतना ही बीमितों को कम प्रीमियम के बदले सुरक्षा प्राप्त होगी।
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बीमा
20. हानि बीमित के नियन्त्रण के बाहर हो - अज्ञात व अनिश्चित हानियों का ही बीमा करवाया जा सकता है। हानि होगी अथवा नहीं होगी, हानि की गहनता व तीव्रता क्या होगी ये सभी नियन्त्रण से बाहर होनी चाहिये
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बीमा
21. वित्तीय सुरक्षा: बीमा के सबसे महत्वपूर्ण लाभों में से एक वित्तीय सुरक्षा है। बीमा पॉलिसी दुर्घटनाओं, बीमारी और प्राकृतिक आपदाओं जैसी अप्रत्याशित घटनाओं से वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य बीमा चिकित्सा उपचार की उच्च लागत को कवर करने में मदद कर सकता है, जबकि वाहन बीमा दुर्घटना की स्थिति में सुरक्षा प्रदान कर सकता है। बीमा पॉलिसी व्यक्तियों और परिवारों को अप्रत्याशित घटनाओं के वित्तीय बोझ से बचने में मदद कर सकती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE
बीमा
बीमा के अनुबंध दो प्रकार की श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं। वे अनुबंध जिनमें क्षतिपूर्ति का उत्तरदायित्व होता है और वे जिनमें क्षतिपूर्ति का प्रश्न नहीं होता वरन् एक निश्चित धनराशि अदा करने का अनुबंध होता है। क्षतिपूर्ति विषयक बीमा सामुद्रीय (मैरीन इंश्योरेंस) भी हो सकता है और गैरसामुद्रीय भी। पहले का उदाहरण समुद्र द्वारा विदेशों को भेजे जानेवाले समान की सुरक्षा का बीमा है और दूसरे का उदाहरण अग्निभय अथवा मोटर का बीमा है। क्षतिपूर्ति के अनुबंध में केवल क्षति की पूर्ति की जाती है। यदि एक ही वस्तु का बीमा एक से अधिक स्थानों (बीमा संस्थानों) में है तो भी बीमा करानेवाले को क्षतिपूर्ति की ही धनराशि उपलब्ध होती है। हाँ, वे बीमा कंपनियाँ आपस में अदायगी की धनराशि का भाग निश्चित कर लेती हैं। अतः क्षतिपूर्ति अनुबंध का यह सिद्धांत जीवन बीमा तथा दुर्घटना बीमा पर लागू नहीं होता। अत: जीवन बीमा तथा दुर्घटना बीमा कितनी भी धनराशि के लिए किया गया है, बीमा करानेवाले को (यदि वह जीवित है) अथवा उसके मनोनीत व्यक्ति को वह पूरी रकम उपलब्ध होती है।
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बीमा
जैसा कहा जा चुका है, अग्नि बीमा क्षतिपूर्ति का अनुबंध है अर्थात् जो धनराशि बीमापत्र पर अंकित है वह अवश्य मिल जाएगी, ऐसा नहीं वरन् उस सीमा तक क्षतिपूर्ति हो सकेगी। अग्नि बीमा अनुबंध यद्यपि किसी न किसी संपत्ति के संबंध में ही होता है, फिर भी वह व्यक्तिगत अनुबंध ही है अर्थात् उक्त संपत्ति के स्वामी अथवा उस संपत्ति में बीमा हित रखनेवाले व्यक्ति को उस अनुबंध द्वारा क्षतिपूर्ति से आश्वस्त किया जाता है। अत: अगर बीमा करानेवाले को किस संपत्ति में स्वामित्व अथवा अन्य प्रकार का कोई ऐसा अधिकार नहीं है जिससे उसे बीमा हित उपलब्ध होता हो तो वह बीमा करा लेने के बाद भी अनुबंध का लाभ नहीं उठा सकता।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE
बीमा
संपत्ति का स्वामित्व बदलने पर यद्यपि बीमा हित हस्तांतरित हो जाता है किंतु बीमा अनुबंध अंग्रेजी कानून के अनुसार स्वत: हस्तांतरित नहीं होता। यदि संपत्ति विक्रय के साथ साथ तत्संबंधी अनुबंध लाभ भी हस्तांतरित करना अभिप्रेत हो तो भी बीमा करने वाले की अनुमति आवश्यक है। भारतीय विधि में ऐसा नहीं है। स्थिर संपत्ति हस्तांतरण विधि की धारा 49 और 133 के अनुसार कोई विपरीत अनुबंध के अभाव में संपत्ति प्राप्तकर्ता बीमा अनुबंध का लाभ क्षतिपूर्ति के लिए माँग सकता है। एक ही वस्तु में एक से अधिक लोगों को कुछ कुछ अधिकार उपलब्ध हो सकते हैं एवं उनके विभिन्न प्रकार के बीमा हित हो सकते हैं। अत: वे सब अपने हितों के आधार पर उस एक की संपत्ति पर अनेक बीमे करा सकते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE
बीमा
अग्नि बीमा अनुबंध पर क्षतिपूर्ति का दावा करने के लिए यह आवश्यक है कि क्षति का निकट कारण अग्नि ही हो और अग्नि का अर्थ है कि चिनगारी निकली हो (अंग्रेजी में इसे इग्नीशन Ignition कहते हैं)। किसी वस्तु के अत्यधिक दबाव के कारण वस्तु का झुलस जाना आग लगना नहीं माना जाता। बिजली गिरने से होनेवली हानि पर "चिनगारी लगने" की अनिवार्यता का नियम लागू नहीं होता। विस्फोट द्वारा हुई हानि अग्नि से हानि नहीं कहलाती, भले ही वह विस्फोट अग्नि से ही हुआ तो। इसका आधार यह है कि हानि का निकट (Proximate cause) कारण अग्नि ही होना चाहिए। इसी प्रकार अग्नि लगने से उत्पन्न स्थिति में किसी तीसरे पक्ष द्वारा किए गए कृत्यों से उत्पन्न हानि भी अग्नि हानि में शामिल नहीं की जाती। लेकिन अग्नि अथवा जलहानि की सीमा का निर्धारण अग्नि बुझने के तुरंत बाद ही नहीं किया जाता वरन् उस समय किया जाता है जब उक्त बीमा संपत्ति बीमा करानेवाले को सौंपी जाती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE
बीमा
मूल्यांकित बीमा अनुबंध में यदि संपत्ति पूर्ण नष्ट हो जाए तो बीमा पत्र पर लिखित धनराशि बीमा करनेवाले को अनिवार्य रूप से देनी पड़ती है। अमूल्यांकित बीमा अनुबंध में यदि पूर्ण संपत्ति नष्ट हो जाए तो उक्त संपत्ति का मूल्यांकन उस समय किया जाता है। संपूर्ण तथा अनिश्चित अग्नि बीमा अनुबंध में वस्तुओं की सूची नहीं दी जाती वरन् अग्नि से हानिभय का बीमा सामान्य रूप में किया जाता है। निर्वारित अग्नि बीमा अनंबंध में धनराशि निर्धारित बीमा पत्र पर लिखी रहती है। औसत अग्नि बीमा अनुबंध में आनुपातिक क्षतिपूर्ति की जाती है : अग्नि बीमा अनुबंध में पुनस्थापन (Restoration or Restitution), औसत (average) तथा भागदारी (Partial liability) सिद्धांत लागू होते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%9F
रोबोट
टेलीरोबोट (Telerobot): जब कोई ऐसा खतरनाक कार्य करना होता है जिसे करते समय आस पास रहने से मनुष्य को खतरा हो सकता है तो काफी दूर, अगम्य, टेलीओपरेटेड रोबोटों का प्रयोग किया जाता है। पूर्वनिर्धारित गति करने कि बजाय, टेलीरोबोत कुछ दूर स्थित मानव द्वारा चलाया जाता है। रोबोट किसी दुसरे कमरे या किसी दुसरे देश, या ऑपरेटर के लिए एक बहुत अलग पैमाने पर हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक लेप्रोस्कोपिक (laparoscopic) सर्जरी रोबोट एक शल्यक्रिया विशेषज्ञ को इस बात कि सुविधा देता है कि वो एक रोगी के शरीर के अन्दर कोई शल्य क्रिया करने के लिए खुले ओपरेशन कि तुलना में काफी छोटे पैमाने पर ओपरेशन करे ताकि मरीज़ के ठीक होने का समय काफी कम हो जाता है। एक बम को निष्क्रिय करते समय ऑपरेटर एक छोटे रोबोट को उसे निष्क्रिय करने के लिए भेजता हैकई लेखक दूर से पुस्तकों पर हस्ताक्षर करने के लिए लॉन्ग पेन नाम का एक उपकरण इस्तेमाल कर रहे हैं दूर से चलाये जाने वाले टेलीओपरेटेड रोबोट vimaan, जिसकी प्रीडेटर मानव रहित हवाई वाहन अड़ियल वेहिकल (Unmanned Aerial Vehicle) का प्रयोग सेना द्वारा दिन प्रति दिन बढ़ रहा है। ये विमान चालक रहित वाहन इलाको को धुंद और लक्ष्य को भेद सकती है सैकणों रोबोट जैसे कि आई रोबोट (iRobot's), पैक रोबोट (Packbot) और फोस्टर-मिलर टी ए एल ओ एन (Foster-Miller TALON) का प्रयोफ़ इराक़ और अफगानिस्तान में अमीरिकी सेनाओं (U.S. military) द्वारा सड़क के किनारे लगाये गए बमों को निष्क्रिय करने और बेहतर विस्फोटक उपकरणों (Improvised Explosive Device)(आई ई डी) के विस्फोटक आयुध निपटान (explosive ordnance disposal)(आई ई डी) के लिए किया जा रहा है।
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रोबोट
समर्पित स्वायत्त रोबोटों:जैसे जैसे रोबोटों की कीमत घाट रही है और वो और चालाक और स्वायत्त होते जा रहे हैं, तब से एक करोड़ से ज्यादा घरों में साधारण रोबोट एक कार्य कर रहे हैं। वो ऐसी नौकरियां कर रहे हैं जो साधारण हैं लेकिन मनुष्य द्वारा अवांछित हैं जैसे की वैक्यूम क्लीनिंग (vacuum cleaning) और फर्श की सफाई (floor washing) या लॉन की कटाई. (lawn mowing) कई विकसित देशों जैसे कि जापान में, जनसँख्या कि औसत आयु बढ़ रही है, अर्थात ऐसे वृद्ध लोग ज्यादा हैं जिनका ख़याल रखा जाना है और ऐसे लोग कम हैं जो ख़याल रख सकें. शोधकर्ता एक ऐसे रोबोट को बनाने के काम में जुटे हैं जिससे रोबोट्स बूढे लोगों की देखभाल में मदद कर सकें
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रोबोट
सॉफ्ट रोबोट:ऐसे रोबोट का शरीर सिलिकन (silicone) का होता है और इनमें एक लचीला प्रवर्तक (वायु मांसपेशियां (air muscles), विद्यत सक्रिय पोल्य्मेर (electroactive polymers) और फेरोफ्लुइड (ferrofluid)) भी होता है, अस्पष्ट तर्क (fuzzy logic) और न्युरोल नेटवर्क (neural networks) की सहायता से इन्हें नियंत्रित किया जाता है और ये सख्त संरचना वाले रोबोट से बहुत अलग दिखते हैं और साथ ही इनका व्यवहार भी काफी अलग होता है।
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रोबोट
झुंड रोबोटों (Swarm robots):चींटी (ants) और मक्खियों (bees) के समूह (colonies of insects) से प्रेरित होकर अनुसन्धानकर्ताओं ने हजारों सूक्ष्म रोबोटों को बनाया जो मिलकर एक कार्य करते हैं, जैसे की कुछ छुपी हुई चीज़ ढूंढ़ना, साफ़ करना या जासूसी करना। प्रत्येक रोबोट काफी सरल होता है, लेकिन स्वार्म का आकस्मिक व्यवहार (emergent behavior) काफी जटिल होता है रोबोट्स के पूरे सेट को मात्र एक वितरण प्रणाली के रूप में माना जा सकता है, उसी प्रकार से चीटियों की मंडली को सुपर ओर्गानिस्म (superorganism) खुफिया झुंड (swarm intelligence) को प्रर्दशित करता हैआई रोबोट, एस आर आई / मोबाइल रोबोट्स सेंटी बोट्स परियोजना और ओपन-सोर्स मिक्रो-रोबोटिक परियोजना को मिलाकर अब तक का सबसे बड़ा स्वार्म जो बना है, वे सामूहिक अनुसंधान आचरण के अनुसन्धान के लिए प्रयोग में लाये जा रहे हैं भीड़ भी विफलता के प्रतिरोधी रहे है जबकि एक बड़ा रोबोट नाकाम हो सकता है और मिशन को बर्बाद कर सकता है, लेकिन एक स्वार्म अनेकों रोबोटों के विफल हो जाने पर भी कार्य कर सकता है यह उन्हें अंतरिक्ष की खोज के लिए आकर्षक बना सकता है, जहाँ पर नाकामियाबी बहुत ही महँगी पद सकती है
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रोबोट
हेप्तिक अंतरफलक रोबोट :रोबोटिक्स का आभासी वास्तविकता (virtual reality) के अंतरफलक के डिजाइन में भी कंप्यूटर प्रोग्राम है विशेष रोबोटों का हेप्तिक (haptic) अनुसंधान समुदाय में व्यापक इस्तेमाल है ये रोबोट "हेप्तिक इंटरफेस" कहे जाते हैं जो की स्पर्श-समर्थ उपयोगकर्ता को वास्तविक और आभासी वातावरण के संपर्क में आने के लिए अनुमति देता है रोबोटिक बल "आभासी वस्तुओं" के बनावटी यांत्रिक गुणों को स्वीकार करता है, जिसे उपयोगकर्ता स्पर्श (touch) के माध्यम से महसूस कर सकता है हेप्तिक इंटरफेसरोबोट-पुनर्वास सहायता (robot-aided rehabilitation) में भी इस्तेमाल की जाती हैं
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%9F
रोबोट
अनेकों पुस्तक श्रृंखलाओं और फिल्मों में रोबोट के प्रति भय और चिंता के बारे में बार -बार व्यक्त किया गया है एक आम विषय है की बेहद बुद्धिमान और सचेतन में दक्ष रोबोट का निर्माण, जो की मानव जाती को नष्ट करने या उनको अपना घुलाम बनाने के लिए प्रेरित करने की ताकत वाला हो (द टर्मिनेटर (The Terminator), रन अवे (Runaway), ब्लेड रनर (Blade Runner), रोबोकोप (Robocop), " स्टारगेट " में रेप्लिकेटरस (the Replicators in Stargate), "बैटलस्टार गैलैक्तिका " में साइकलोन (the Cylons in Battlestar Galactica), द मैट्रिक्स (The Matrix) और आई, रोबोट (I, Robot) देखें) कुछ काल्पनिक रोबोट मारने और बर्बाद करने के लिए प्रोग्राम किये जाते हैं और कुछ खुद के सॉफ्टवेर और हार्डवेयर का उन्नयन कर महामानवीय ज्ञान और क्षमताएं प्राप्त कर लेते हैं लोकप्रिय मीडिया जहां रोबोट खानायक के रूप में दिखाय गए हैं जैसे की2001: A Space Odyssey रेड प्लानेट (फिल्म) (Red Planet (film)), .... एक अन्य आम विषय है प्रतिक्रिया, कभी-कभी इसे "प्रारब्धिक घाटी" (uncanny valley) कहा जाता है, जो रोबोट मानव की बहुत करीबी से नक़ल करते हैं उनमें क़ोफ़्त और घृणा के भाव उत्पन्न हो जाता है फ्रेंकस्टीन (Frankenstein) (१८१८), ने अक्सर प्रथम काल्पनिक वैज्ञानिक उपन्यास में एक रोबोट या एक राक्षस को अपने निर्माताओं से आगे बढ़ते हुए दिखाया है जो की उस विषय का पर्याय बन गया है
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रोबोट
मैनुएल डे लेंडा (Manuel De Landa) ने इस बात पर ध्यान दिया है की "स्मार्ट मिसाइल" और कृत्रिम धारणा से सुसज्जित स्वायत्त बम को रोबोट माना जा सकता है और वे अपने कुछ निर्णय स्वतंत्रता से स्वयं ही ले सकते हैं
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रोबोट
उनका मानना है की यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और खतरनाक प्रवृत्ति है की मनुष्य अपने अहम फैसले मशीनों को सौप रहा है
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%9F
रोबोट
लुटेरे रोबोट्स में मनोरंजन के तत्व हो सकते हैं, लेकिन उनके दुरूपयोग के वो वास्तविक खतरा पैदा कर सकते हैं एक भरी भरकम, प्रवर्तक और अपूर्वानुमेय जटिल व्यवहार वाला औद्योगिक रोबोट नुक्सान पहुंचा सकता है, जैसे की अगर वो मानव पैर पर या मानव शरीर पर गिर जाए तो वो नुक्सान पहुंचा सकता है अधिकांश औद्योगिक रोबोट सुरक्षा बडे के अंदर काम करते हैं, जो उन्हें मानवों से अलग रखता है, लेकिन सभी रोबोटों को नहीं एक रोबोट द्वारा पहली दुर्घटना रॉबर्ट विलियम्स (Robert Williams) के साथ घटी, 25 जनवरी १९७९ में कास्टिंग प्लांट में फ्लैट रॉक, मिचिगन (Flat Rock, Michigan) में वे एक रोबोटिक हस्त से टकरा गए थे और दुसरे थे ३७ वर्षीय केंजी उरदा (Kenji Urada), १९८१ में, एक जापानी फैक्ट्री के मजदूर उरादा अपने रोबोट की नियमित रखरखाव का काम कर रहे थे, लेकिन लापरवाही में उसे ठीक तरह से बंद करना भूल गए और दुर्घटना वश वे ग्रिन्डिंग मशीन (grinding machine) की और धकेल गए
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कुरुक्षेत्र
यह ज्ञातव्य है कि यद्यपि वनपर्व ने 83वें अध्याय में सरस्वती तट पर एवं कुरुक्षेत्र में कतिपय तीर्थों का उल्लेख किया है, किन्तु ब्राह्मणों एवं श्रौतसूत्रों में उल्लिखित तीर्थों से उनका मेल नहीं खाता, केवल 'विनशन' एवं 'सरक' के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता। इससे यह प्रकट होता है कि वनपर्व का सरस्वती एवं कुरुक्षेत्र से संबन्धित उल्लेख श्रौतसूत्रों के उल्लेख से कई शताब्दियों के पश्चात का है। नारदीय पुराण ने कुरुक्षेत्र के लगभग 100 तीर्थों के नाम दिये हैं। इनका विवरण देना यहाँ सम्भव नहीं है, किन्तु कुछ के विषय में कुछ कहना आवश्यक है। पहला तीर्थ है ब्रह्मसर जहाँ राजा कुरु संन्यासी के रूप में रहते थे। ऐंश्येण्ट जियाग्राफी आव इण्डिया में आया है कि यह सर 3546 फुट (पूर्व से पश्चिम) लम्बा एवं उत्तर से दक्षिण 1900 फुट चौड़ा था।
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कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र जिला एक मैदानी क्षेत्र है, जिसके 88 प्रतिशत हिस्से पर खेती की जाती है और अधिकांश क्षेत्र पर दो फसलें उगाई जाती है। लगभग समूचा कृषि क्षेत्र नलकूपों द्वारा सिंचित है। कृषि में चावल और गेहूं की प्रधानता है। अन्य फसलों में गन्ना, तिलहन और आलू शामिल है। लगभग सभी गाँव सड़कों से जुड़े हैं। कुरुक्षेत्र नगर में हथकरघा, चीनी, कृषि उपकरण, पानी के उपकरण और खाद्य उत्पाद से जुड़े उद्योग अवस्थित है।
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कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्त्व अधिक माना जाता है। इसका ऋग्वेद और यजुर्वेद में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है। यहाँ की पौराणिक नदी सरस्वती का भी अत्यन्त महत्त्व है। इसके अतिरिक्त अनेक पुराणों, स्मृतियों और महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत में इसका विस्तृत वर्णन किया गया हैं। विशेष तथ्य यह है कि कुरुक्षेत्र की पौराणिक सीमा 48 कोस की मानी गई है जिसमें कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त कैथल, करनाल, पानीपत और जींद का क्षेत्र सम्मिलित हैं।
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कुरुक्षेत्र
इसका ऋग्वेद और यजुर्वेद में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है। यहां की पौराणिक नदी सरस्वती का भी अत्यन्त महत्व है। सरस्वती एक पौराणिक नदी जिसकी चर्चा वेदों में भी है। इसके अतिरिक्त अनेक पुराणों, स्मृतियों और महर्षि वेद व्यास रचित महाभारत में इसका विस्तृत वर्णन किया गया हैं। विशेष तथ्य यह है कि कुरुक्षेत्र की पौराणिक सीमा 48 कोस की मानी गई है। वन पर्व में आया है कि कुरुक्षेत्र के सभी लोग पापमुक्त हो जाते हैं और वह भी जो सदा ऐसा कहता है- 'मैं कुरुक्षेत्र को जाऊँगा और वहाँ रहूँगा।' इस विश्व में इससे बढ़कर कोई अन्य पुनीत स्थल नहीं है। यहाँ तक कि यहाँ की उड़ी हुई धूलि के कण पापी को परम पद देते हैं।' यहाँ तक कि गंगा की भी तुलना कुरुक्षेत्र से की गयी है। नारदीय पुराण में आया है कि ग्रहों, नक्षत्रों एवं तारागणों को कालगति से (आकाश से) नीचे गिर पड़ने का भय है, किन्तु वे, जो कुरुक्षेत्र में मरते हैं पुन: पृथ्वी पर नहीं गिरते, अर्थात् वे पुन: जन्म नहीं लेते।
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कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र अम्बाला से 25 मील पूर्व में है। यह एक अति पुनीत स्थल है। इसका इतिहास पुरातन गाथाओं में समा-सा गया है। ऋग्वेद में त्रसदस्यु के पुत्र कुरुश्रवण का उल्लेख हुआ है। 'कुरुश्रवण' का शाब्दिक अर्थ है 'कुरु की भूमि में सुना गया या प्रसिद्ध।' अथर्ववेद में एक कौरव्य पति (सम्भवत: राजा) की चर्चा हुई है, जिसने अपनी पत्नी से बातचीत की है। ब्राह्मण-ग्रन्थों के काल में कुरुक्षेत्र अति प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल कहा गया है। शतपथ ब्राह्मण में उल्लिखित एक गाथा से पता चलता है कि देवों ने कुरुक्षेत्र में एक यज्ञ किया था जिसमें उन्होंने दोनों अश्विनों को पहले यज्ञ-भाग से वंचित कर दिया था। मैत्रायणी संहिता एवं तैत्तिरीय ब्राह्मण का कथन है कि देवों ने कुरुक्षेत्र में सत्र का सम्पादन किया था। इन उक्तियों में अन्तर्हित भावना यह है कि ब्राह्मण-काल में वैदिक लोग यज्ञ-सम्पादन को अति महत्त्व देते थे, जैसा कि ऋग्वेद में आया है- 'यज्ञेय यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यसन्।'
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कुरुक्षेत्र
कुरू ने जिस क्षेत्र को बार-बार जोता था, उसका नाम कुरूक्षेत्र पड़ा। कहते हैं कि जब कुरू बहुत मनोयोग से इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इस परिश्रम का कारण पूछा। कुरू ने कहा-"जो भी व्यक्ति यहाँ मारा जायेगा, वह पुण्य लोक में जायेगा।" इन्द्र उनका परिहास करते हुए स्वर्गलोक चले गये। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने देवताओं को भी बताया। देवताओं ने इन्द्र से कहा-"यदि संभव हो तो कुरू को अपने अनुकूल कर लो अन्यथा यदि लोग वहां यज्ञ करके हमारा भाग दिये बिना स्वर्गलोक चले गये तो हमारा भाग नष्ट हो जायेगा।" तब इन्द्र ने पुन: कुरू के पास जाकर कहा-"नरेश्वर, तुम व्यर्थ ही कष्ट कर रहे हो। यदि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर अथवा युद्ध करके यहाँ मारा जायेगा तो स्वर्ग का भागी होगा।" कुरू ने यह बात मान ली। यही स्थान समंत-पंचक अथवा प्रजापति की उत्तरवेदी कहलाता है।
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कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र की पावन धरती पर श्री स्थानेश्वर महादेव मन्दिर स्थित है। लोक मन्यता है कि महाभारत के युद्ध से पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन समेत यहाँ भगवान शिव की उपासना कर अशिर्वाद प्राप्त किया था। इस तीर्थ की विशेषता यह भी है कि यहाँ मन्दिर व गुरुद्वरा एक हि दिवार से लगते है। यहाँ पर हजारो देशी विदेशी पर्यटक दर्शन हेतु आते हैं।
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कुरुक्षेत्र
सड़क मार्ग: यह राष्ट्रीय राजमार्ग १ पर स्थित है। हरियाणा रोडवेज और अन्य राज्य निगमों की बसों से कुरुक्षेत्र पहुंचा जा सकता हैं। यह दिल्ली, चंडीगढ़ और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों से सड़क मार्ग से पूरी तरह जुड़ा हुआ है।
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कुरुक्षेत्र
हवाई मार्ग: कुरुक्षेत्र के करीब हवाई अड्डों में दिल्ली और चंडीगढ़ हैं, जहां कुरुक्षेत्र के लिए टैक्सी और बस सेवा उपलब्ध है। करनाल में नया हवाई अड्डा प्रस्तावित है।
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साम्राज्यवाद
15वीं16वीं शताब्दी में भौगोलिक अन्वेषण के फलस्वरूप औपनिवेशिक साम्राज्यों का युग आया। इस साम्राज्यवादी युग को दो भागों में बांट कर अध्ययन किया जा सकता है- पुराना साम्राज्यवाद और नवीन साम्राज्यवाद। पुराने साम्राज्यवाद का आरम्भ लगभग 15वीं शताब्दी से माना जा सकता है जब स्पेन और पुर्तगाल ने इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया। साम्राज्यवाद का यह दौर 18वीं शताब्दी के अन्त तक चला। स्पेन और पुर्तगाल ने तमाम देशों की खोज कर वहां अपनी व्यापारिक चौकियाँ स्थापित की। धीरे-धीरे फ्रांस और इंग्लैण्ड ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया। इंग्लैण्ड का औपनिवेशिक साम्राज्य सम्पूर्ण विश्व में स्थापित हो गया।
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साम्राज्यवाद
19वीं शताब्दी में इस साम्राज्यवाद ने नवीन रूप धारणा किया। 1890 ईस्वी के बाद यूरोप के देशों में साम्राज्यवादी भावना नये रूप में सामने आई। यह नव साम्राज्यवाद पहले के उपनिवेशवाद से आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भिन्न था। पुराना साम्राज्यवाद वाणिज्यवादी था, यह भारत हो या चीन अथवा दक्षिण पूर्व एशिया। यूरोपीय व्यापारी स्थानीय सौदागरों से उनका माल खरीदते थे। मार्गों की सुरक्षा के लिए कुछेक स्थाानों पर कार्यालयों तथा व्यापारिक केन्द्रों की रक्षा के अतिरिक्त यूरोपीय राष्ट्रों को राज्य या भूमि की भूख नहीं थी। नव साम्राज्यवाद के दौर में अब सुनियोजित ढंग से यूरोपीय देश पिछड़े इलाकों में प्रवेश कर उन पर प्रभुत्व जमाने लगे। इन क्षेत्रों में उन्होंने पूंजी लगाई, बड़े पैमाने पर खेती आरम्भ की, खनिज तथा अन्य उद्योग स्थापित किये, संचार और आवागमन के साधनों का विकास किया तथा सांस्कृतिक जीवन में भी हस्तक्षेप किया। अपने प्रशासित इलाकाें की परम्परागत अर्थव्यवस्था और उत्पादन अर्थव्यवस्था को विनष्ट करके बहुसंख्यक स्थानीय लोगों की विदेशी मालिकों पर आश्रित बना दिया।
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साम्राज्यवाद
उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद में स्वरूपगत भिन्नता दिखाई पड़ती है। उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद से अधिक जटिल है क्योंकि यह उपनिवेशवाद के अधीन रह रहे मूल निवासियों के जीवन पर गहरा तथा व्यापक प्रभाव डालता है। इसमें एक तरफ उपनिवेशी शक्ति के लोगों का, उपनिवेश के लोगों पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक नियंत्रण होता है तो दूसरी तरफ साम्राज्यिक राज्यों पर राजनीतिक शासन की व्यवस्था शामिल होती है। इस तरह साम्राज्यवाद में मूल रूप से राजनैतिक नियंत्रण की व्यवस्था है वहीं उपनिवेशवाद औपनिवेशिक राज्य के लोगोें द्वारा विजित लोगों के जीवन तथा संस्कृति पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की व्यवस्था है। साम्राज्यवाद के प्रसार हेतु जहां सैनिक शक्ति का प्रयोग और युद्ध प्रायः निश्चित होता है वहीं उपनिवेशवाद में शक्ति का प्रयोग अनिवार्य नहीं होता।
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साम्राज्यवाद
1. अतिरिक्त पूंजी का होना : औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप यूरोप के देशों में धन का अत्यधिक संचय हुआ। इस अतिरिक्त संचित पूंजी को यदि वहीं यूरोप के देश में पुनः लगाया जाता तो लाभ बहुत कम मिलता जबकि पिछड़े हुए देशों में श्रम सस्ता होने से और प्रतियोगिता शून्य होने से अत्यधिक लाभ की संभावना थी। इसी कारण पूंजी को उपनिवेशों में लगाने की होड़ प्रारम्भ हुई।
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साम्राज्यवाद
2. कच्चे माल की आवश्यकता : यूरोपीय देशों की अपने औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल और अनाज की जरूरत थी जैसे कपास, रबर, टिन, जूट, लोहा आदि। अतः ये औद्योगिक देश औपनिवेशिक प्रसार में लग गये जहां से उन्हें सुगमतापूर्व सस्ते दामों में यह कच्चा माल मिल सके।
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साम्राज्यवाद
3. बाजार की आवश्यकता : औद्योगिक देशों को अपने निर्मित माल की बिक्री के लिये एक बड़े बाजार की जरूरत थी ऐसे में नये बाजारों की खोज के तहत उपनिवेश बनाये गये। अब यह कहा जाने लगा कि बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन करने वाले राज्यों का अपना औपनिवेशिक साम्राज्य होना चाहिए जहां मनमाने ढंग से एकाधिकार की स्थिति में अपना माल बेचा जा सके।
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साम्राज्यवाद
4. तकनीकी विकास : यूरोप में हुये तकनीकी विकास ने रेलवे, डाक-तार, टेलीफोन आदि के माध्यम से देश और काल पर अभूतपूर्व विजय प्राप्त की। नवीन संचार साधनों के जरिए उपनिवेशों पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित करना संभव हो पाया। इतना ही नहीं अनेक स्थानों पर यातायात के साधनों के विकास को लेकर साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा भी शुरू हो गई।
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साम्राज्यवाद
5. जनसंख्या का आधिक्य : 19वीं सदी में यूरोप में बढ़ती हुई जनसंख्या ने औद्योगिक देशों को चिन्ता में डाल दिया। इस बढ़ती आबादी से रोजगार और आवास की समस्या पैदा हुई इस समस्या के समाधान के रूप में यह विचार दिया गया कि उपनिवेशों की स्थापना कर वहां सैनिक शासकीय अधिकरियों के रूप में लोगों को बसा दिया जाए।
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साम्राज्यवाद
6. राष्ट्रीय गौरव की स्थापना : कुछेक यूरोपीय देशजिनका औद्योगिक आर्थिक विकास अपेक्षाकृत कम था कि फिर भी उन्होंने औद्योगिक विकास के विस्तार में रूचि दिखाईजैसे इटली और रूस। वस्तुतः इन देशों ने राजनीतिक उद्देश्य से परिचालित होकर राष्ट्रीय गौरव में वृद्धि करने के लिए औपनिवेशिक विस्तार की नीति अपनाई। इटली ने अपना राष्ट्रीय महत्व बढ़ाने के लिए लीबिया पर अधिकार कर लिया तो मिस्त्र में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
तारा
कांतिमान मापन का अर्थ है तारे के प्रकाश की तीव्रता का मापन। पहले यह कार्य विशेष प्रकार के फोटोमीटरों की सहायता से आँखों द्वारा किया जाता था। इस प्रकार ज्ञात किए गए कांतिमान को दृश्य कांतिमान (Visual magnitude) कहते हैं। आँखें पीले प्रकाश की सुग्राही (sensitive) हैं, अत: दृश्यकांतिमान पीले और हरे रंग के प्रकाश के मापक हैं। बाद में कांतिमापन फोटोग्राफी की प्लेटों की सहायता से किया जाने लगा। इस प्रकार से ज्ञात कांतिमान को फोटोग्राफीय कांतिमान कहते हैं। फोटोग्राफीय कांतिमान नीले रंग के प्रकाश के मापक हैं। तारे कई रंगों के प्रकाश विकीर्ण (emit) करते हैं। अत: तारों के कांतिमान ज्ञात करने के लिए विभिन्न रंगों की सुग्राही प्लेटों के द्वारा तथा वर्णशोधकों (filters) के उपयोग से उनके प्रकाश की तीव्रता आँकी जाती है। पीले रंग की सुग्राही प्लेटों पर पीले रंगशोधकों से फोटोग्राफीय (नीले) तथा दृश्य (पीले) कांतिमानों के अंतर को वर्ण सूचक (Colour index) कहते हैं। इससे तारों का ताप ज्ञात होता है। कांतिमान फोटोग्राही सेलों पर प्रकाश को ग्रहण कर तथा उसे बहुगुणित कर प्रकाश की तीव्रता मापी जाती है। कांतिमान को मापते समय हमें वायुमंडल के प्रभाव तथा तारों की अंतर्वर्ती धूल तथा गैसों के प्रभाव को भी दृष्टि में रखना पड़ता है। कांतिमान के यथार्थ ज्ञान से हमें तारों की दूरियाँ तथा बहुत से भौतिक पदार्थो को जानने में सहायता मिलती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
तारा
बहुत से तारों का निजी प्रकाश बहुत अधिक है, किंतु अत्याधिक दूरी पर स्थिर होने के कारण उनका दृश्य कांतिमान अधिक दिखलाई पड़ता है। यथार्थ कांतिमान तो तभी ज्ञात हो सकता है, जब वे उपमात्र से समान दूरी पर स्थित हों। समस्त तारों को 10 पारसेक की दूरी पर कल्पित करके ज्ञात किए गए कांतिमान को निरपेक्ष कांतिमान कहते हैं। यदि हमें तारे का दृश्य कांतिमान ज्ञात हो तथा उसकी दूरी ज्ञात हो तो हम निम्नलिखित सूत्र से निरपेक्ष कांतिमान जान सकते हैं:
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
तारा
निरपेक्षकांतिमान दृश्यकांतिमान 5-5 लघुगणक दूरी, पारसेकों में है। विलोमत: यदि हमें निरपेक्ष कांतिमान ज्ञात हो तो हम तारों की दूरियाँ भी जान सकते हैं। सूर्य का निरपेक्ष कांतिमान 4.7 है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
तारा
किसी तारे की सूर्य के सापेक्ष कांति को सापेक्ष कांति कहते हैं। इसमें सूर्य की कांति १ मान ली जाती है। इस प्रकार के अध्ययन से हम तारों से प्राप्त होनेवाली ऊर्जा (energy) का अध्ययन करते हैं, जिससे उनकी भौतिक स्थितियों (physical conditions) के अध्ययन में सहायता मिलती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
तारा
पूर्णतया निर्मल आकाश में हमें दृष्टि सहायक यंत्रों के 3,200 से अधिक तारे नहीं दिखलाई पड़ते। चूँकि हम आकाश के केवल आधे हिस्से को ही देख पाते हैं अत: चक्षुदृश्य तारों की संख्या 6,500 (2x3,200+100) के लगभग है। इनमें
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
तारा
शेष चक्षुदृश्य तारे छठे कांतिमान के है। यदि हम अपनी दृष्टि को 10 गुनी अंतर्मुखी कर लें तो दृश्य तारों की संख्या 1000 गुना बढ़ जाएगी, अर्थात्‌ यदि तारों को समरूप से फैला हुआ मान लिया जाए तो उनकी संख्या उनकी दूरी की छह गुनी बढ़ जाएगी। यह संबंध अधिक चमकीले तारों तक ही सीमित है। कम गैलेक्सी में विशालतम दूरदर्शी द्वारा ज्ञात तारों की संख्या लगभग 1,00,00,00,00,000 (एक खरब) है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
तारा
तारे की वास्तविक गति तथा गमनदिशा ज्ञात करने के लिए हम उसकी गति को दो भागों में बाँट लेते हैं। दृष्टिसूत्र पर लंब दिशा की गति के कोणीय मान को तारे की निजी गति (proper motion) कहते हैं। तारों की निजी गतियाँ कम होतीं हैं। उन्हें ज्ञात करने के लिए हमें बहुत दूरवर्ती कालों में लिए गए तारों के फोटोग्राफों की तुलना करनी पड़ती है। जो तारे हमारे निकट हैं, वे दूरवर्ती तारों के सापेक्ष आगे पीछे हट जाते हैं। इस कोणीय मान को काल के अंतराल से भाग देने पर निजी गति ज्ञात हो जाती हैं। इस कोणीय दृष्टिसूत्र की दिशा की तारक गति को त्रैज्य वेग (Radial velocity) कहते हैं। त्रैज्य वेग जानने के लिए हम वर्णक्रमदर्शी (spectrograph) की सहायता से तारे का वर्णक्रम (spectrum) ले लेते हैं। यदि वर्णक्रम रेखाएँ नीले छोर की तरफ हटी हों, तो हम डॉपलर सिद्वांत की सहायता से जान लेते हैं कि तारा हमारी ओर आ रहा है तथा, यदि वर्णक्रम रेखाएँ लाल छोर की ओर हटी हों, तो हम से दूर जा रहा है। रेखाओं का स्थानांतरण (shift) उनके त्रैज्यवेग का अनुक्रमानुपाती (directly proportional) होता है। बनार्ड ने ओफियूकस (सर्पधर) तारामंडल के एक दश्म कांतिमान्‌ के तारे की निजी गति 10.3 प्रति वर्ष ज्ञात की है, जो विशालतम है। निजी गति का ज्ञान तारापुंजों के अध्ययन में सहायक होता है तथा इससे हम यह भी जान जाते हैं कि अधिक नीली गति के तारे अपेक्षाकृत हमारे निकट हैं। त्रैज्य वेग का सूर्य के सापेक्ष ज्ञान करने के लिए, हमें पृथ्वी की गति को भी ध्यान में रखना पड़ता है। निजी गति तथा त्रैज्य वेग के ज्ञान से बल-समांतर-चतुर्भुज के सिद्धांत द्वारा वास्तविक गति तथा उसकी दिशा ज्ञात हो जाती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
तारा
तारों की दूरियाँ ज्ञात करने के लिए त्रिकोणमितीय विधियों का प्रयोग किया जाता है। हमसे अति समीप तारा भी इतनी दूरी पर है कि यदि हम पृथ्वी के व्यास को आधार मानकर उसकी दिशाओं को देखें तो वे समांतर प्रतीत होतीं हैं, अर्थात्‌ तारे का लंबन (parallax) शून्य ही आता है। अत: तारों के लंबन को ज्ञात करने के लिए हमें बड़े आधार की आवश्यकता पड़ती है। अत: पृथ्वी की कक्षा (orbit) के व्यास को हम आधार बनाते हैं। यदि हम किसी तारे की दिशा के एक वेध के छ: महीने बाद उसका वेघ करें तो हमें पृथ्वी की कक्षा के व्यास (2 x 6,30,00,000 मील के लगभग) का आधार मिल जाता है। इस प्रकार के वेध से समीपस्थ तारे दूरस्थ तारों के सापेक्ष (जिनका हमें उनकी निजी गति के अध्ययन से ज्ञान है) थोड़ा दिक्‌ परिवर्तन दिखलाते हैं। इसे निकालते समय हमें तारे की निजी गति के प्रभाव पर भी विचार करना पड़ता है। तो भी यह इतना कम है कि निकटतम तारे का लंबन 76 है। यदि किसी तारे का लंबन 1'' हो तो वह पृथ्वी से पृथ्वी की कक्षा की त्रिज्या से 2,06,265 गुनी दूरी पर होता है। इस दूरी को एक पारसेक (पारलैक्स सेकंड का संक्षिप्त रूप) कहते है। दूरी मापने के लिए जिस अन्य इकाई का प्रयोग किया जाता है, वह है प्रकाशवर्ष (light year)। प्रकाश का वेग 1,86,000 मील प्रति सेकंड है। इस वेग से प्रकाश एक वर्ष में जितनी दूरी तक जाता है उतनी दूरी को एक प्रकाश वर्ष कहते हैं यह दूरी लगभग 60,00,00,00,00,000 मील होती है। एक पारसेक लगभग 3.26 प्रकाश वर्ष के तुल्य होता है। त्रिकोणमितीय विधि से हम केवल अत्यंत समीपस्थ तारों की दूरियाँ ही ज्ञात कर सकते हैं। अत: दूरवर्ती तारों की दूरियाँ ज्ञात करने के लिए हमें अन्य विधियों का आश्रय लेना पड़ता है। यदि हम किसी प्रकार तारों के निरपेक्ष कांतिमान को जान सकें, तो हम निरपेक्ष कांतिमान शीर्षक में दिए गए सूत्र की सहायता से उनकी दूरियाँ ज्ञात कर सकते हैं। सौभाग्य से हमें सेफिइड (Cepheid) तथा लाइरा (Lyra) वर्ग के तारे उपलब्ध हैं, जिनके निरपेक्ष कांतिमान हम ज्ञात कर सकते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
तारा
इन वर्गीकरणों का निजी महत्व है और इनसे हमें तारों के विश्लेषण में विशेष सहायता मिलती है। इन वर्गीकरणों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है:
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A8
साबुन
ब्रिटिश शासन के दौरान इंग्लैंड के लीवर ब्रदर्स ने भारत में पहली बार आधुनिक साबुन पेश करने का जोखिम उठाया। कंपनी ने साबुन आयात किए और यहाँ उनकी मार्केटिंग की। हालाँकि नॉर्थ वेस्ट सोप कंपनी पहली ऐसी कंपनी थी जिसने १८९७ में यहाँ कारखाना लगाया। साबुन की कामयाबी की एक अहम कड़ी में जमशेदजी टाटा ने १९१८ में केरल के कोच्चि में ओके कोकोनट ऑयल मिल्स खरीदी और देश की पहली स्वदेशी साबुन निर्माण इकाई स्थापित की। इसका नाम बदलकर टाटा ऑयल मिल्स कंपनी कर दिया गया और उसके पहले ब्रांडेड साबुन बाजार में १९३० की शुरुआत में दिखने लगे। १९३७ के करीब साबुन धनी वर्ग की जरूरत बन गया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A8
साबुन
बड़ी मात्रा में साबुन बनाने में तेल और वसा इस्तेमाल होते हैं। तेलों में महुआ, गरी, मूँगफली, ताड़, ताड़ गुद्दी, बिनौले, तीसी, जैतून तथा सोयाबीन के तेल, और जांतव तैलों तथा वसा में मछली एवं ह्वेल की चरबी और हड्डी के ग्रीज (grease) अधिक महत्व के हैं। इन तेलों और वसा के अतिरिक्त रोज़िन भी इस्तेमाल होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A8
साबुन
अधिकांश साबुन एक तेल से नहीं बनते, यद्यपि कुछ तेल ऐसे हैं जिनसे साबुन बन सकता है। अच्छे साबुन के लिए कई तेलों अथवा तेलों और चरबी को मिलाकर इस्तेमाल करते हैं। भिन्न-भिन्न कामों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के साबुन बनते हैं। धुलाई के लिए साबुन सस्ता होना चाहिए। नहाने वाला साबुन महँगा भी रह सकता है। तेलों के वसा अम्लों के टाइटर, तेलों के आयोडीन मान, साबुनीकरण मान और रंग महत्व के हैं। टाइटर के साबुन की विलेयता का, आयोडीन मान से तेलों की असंतृप्ति का और साबुनीकरण मान से वसा अम्लों के अणुभार का पता लगता है और कुछ के लिए ऊँचे टाइटर वाला। असंतृप्त वसा अम्लों वाला साबुन रखने से साबुन में से पूतिगंध आती है। कम अणुभार वाले अम्लों के साबुन चमड़े पर मुलायम नहीं होते। कुछ प्रमुख तेलों और वसाओं के आँकड़े इस प्रकार हैं:
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साबुन
तेल के रंग पर ही साबुन का रंग निर्भर करता है। सफेद साबुन के लिए तेल और रंग की सफाई नितांत आवश्यक है। तेल की सफाई तेल में थोड़ा सोडियम हाइड्रॉक्साइट का विलयन डालकर गरम करने से होती है। तेल के रंग की सफाई तेल को वायु के बुलबुले और भाप पारित कर गरम करने से अथवा सक्रियित सरंध्र फुलर मिट्टी के साथ गरम कर छानने से होती है। साबुन में रोज़िन के अम्ल का सोडियम लवण बनता है। यह साबुन सा ही काम करता है। रोज़िन की मात्रा २५ प्रतिशत से अधिक नहीं रहनी चाहिए। सामान्य साबुन में यह मात्रा प्राय: ५ प्रतिशत रहती है। साबुन के चूर्ण में रोज़िन नहीं रहता। रोज़िन से साबुन में पूतिगंध नहीं आती। साबुन को मुलायम अथवा जल्द घुलने वाला और चिपकने वाला बनाने के लिए उसमें थोड़ा अमोनिया या ट्राइ-इथेनोलैमिन मिला देते हैं। हजामत बनाने में प्रयुक्त होने वाले साबुन में उपर्युक्त रासायनिक द्रव्यों को अवश्य डालते हैं।
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साबुन
साबुन बनाने के लिए तेल या वसा को दाहक सोडा (कास्टिक सोडा) के विलयन के साथ मिलाकर बड़े-बड़े कड़ाहों या केतली में उबालते हैं। कड़ाहे भिन्न-भिन्न आकार के हो सकते हैं। साधारणतया १० से १५० टन जलधारिता के ऊर्ध्वाधार सिलिंडर मृदु इस्पात के बने होते हैं। ये भापकुंडली से गरम किए जाते हैं। धारिता के केवल १/३ ही तेल या वसा से भरा जाता है।
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साबुन
कड़ाहे में तेल और क्षार मिलाने और गरम करने के तरीके भिन्न-भिन्न कारखानों में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। कहीं-कहीं कड़ाहे मे तेल रखकर गरम कर उसमें सोडा द्राव डालते हैं। कहीं-कहीं एक ओर से तेल ले आते और दूसरी ओर सोडा विलयन ले आकर गरम करते हैं। प्राय: ८ घंटे तक दोनों को जोरों से उबालते हैं। अधिकांश तेल साबुन बन जाता है और ग्लिसरीन उन्मुक्त होता है। अब कड़ाहें में नमक डालकर साबुन का लवणन (salting) कर निथरने को छोड़ देते हैं। साबुन ऊपरी तल पर और जलीय द्राव निचले तल पर अलग-अलग हो जाता है। निचले तल के द्राव में ग्लिसरीन को निकाल लेते हैं। साबुन में क्षार का सांद्र विलयन (८ से १२ प्रतिशत) डालकर तीन घंटे तक फिर गरम करते हैं। इसे साबुनीकरण परिपूर्ण हो जाता है। साबुन को फिर पानी से धोकर २ से ३ घंटे उबालकर थिराने के लिए छोड़ देते हैं। ३६ से ७२ घंटे रखकर ऊपर के स्वच्छ चिकने साबुन को निकाल लेते हैं। ऐसे साबुन में प्राय: ३३ प्रतिशत पानी रहता है। यदि साबुन का रंग कुछ हल्का करना हो, तो थोड़ा सोडियम हाइड्रोसल्फाइट डाल देते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A8
साबुन
इस प्रकार साबुन तैयार करने में ५ से १० दिन लग सकते हैं। २४ घंटे में साबुन तैयार हो जाए ऐसी विधि भी अब मालूम है। इसमें तेल या वसा को ऊँचे ताप पर जल अपघटित कर वसा अम्ल प्राप्त करते और उसको फिर सोडियम हाइड्रॉक्साइड से उपचारित कर साबुन बनाते हैं। साबुन को जलीय विलयन से पृथक् करने में अपकेंदित्र (सेण्ट्रीफ्यूज) का भी उपयोग हुआ है। आज ठंडी विधि से भी थोड़ा गरम कर सोडा विलयन के साथ उपचारित कर साबुन तैयार होता है। ऐसे तेल में कुछ असाबुनीकृत तेल रह जाता है। तेल का ग्लिसरीन भी साबुन में ही रह जाता है। यह साबुन निकृष्ट कोटि का होता है, पर अपेक्षया सस्ता होता है। अर्ध-क्वथन विधि से भी प्राय: ८० डिग्री सेल्सियस तक गरम करके साबुन तैयार हो सकता है। मुलायम साबुन, विशेषत: हजामत बनाने के साबुन, के लिए यह विधि अच्छी समझी जाती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A8
साबुन
यदि कपड़ा धोने वाला साबुन बनाना है, तो उसमें थोड़ा सोडियम सिलिकेट डालकर, ठंढा कर, टिकियों में काटकर उस पर मुद्रांकण करते हैं। ऐसे साबुन में ३० प्रतिशत पानी रहता है। नहाने के साबुन में १० प्रतिशत के लगभग पानी रहता है। पानी कम करने के लिए साबुन को पट्टवाही पर सुरंग किस्म के शोषक में सुखाते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A8
साबुन
यदि नहाने का साबुन बनाना है, तो सूखे साबुन को काटकर आवश्यक रंग और सुगंधित द्रव्य मिलाकर पीसते हैं, फिर उसे प्रेस में दबाकर छड़ (बार) बनाते और छोटा-छोटा काटकर उसको मुद्रांकित करते हैं। पारदर्शक साबुन बनाने में साबुन को ऐल्कोहॉल में घुलाकर तब टिकिया बनाते हैं।
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मातृभाषा
जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है।
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मातृभाषा
महात्मा गांधी जी ने मैकाले की इस धूर्ततापूर्ण योजना का अपने लेखों में वर्णन किया है (मैकालेज ड्रीम्स, यंग इंडिया, 19 मार्च 1928, पृ. 103, देखें ) तथा इस घोषणा को "शरारतपूर्ण" कहा है। यह सत्य है कि गांधी जी स्वयं अंग्रेजी के प्रभावी ज्ञाता तथा वक्ता थे। एक बार एक अंग्रेज विद्वान ने कहा था कि भारत में केवल डेढ़ व्यक्ति ही अंग्रेजी जानते हैं- एक गांधी जी और आधे मि. जिन्ना। अत: भाषा के सम्बंध में गांधी जी के विचार राजनीतिक अथवा भावुक न होकर अत्यन्त संतुलित तथा गंभीर हैं।
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मातृभाषा
शिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है। उनका कथन था कि-
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मातृभाषा
गांधी जी के अनुसार विदेशी माध्यम का रोग बिना किसी देरी के तुरन्त रोक देना चाहिए। उनका मत था कि मातृभाषा का स्थान कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती। उनके अनुसार, "गाय का दूध भी मां का दूध नहीं हो सकता।"
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मातृभाषा
गांधीजी देश की एकता के लिए यह आवश्यक मानते थे कि अंग्रेजी का प्रभुत्व शीघ्र समाप्त होना चाहिए। वे अंग्रेजी के प्रयोग से देश की एकता के तर्क को बेहूदा मानते थे। सच्ची बात तो यही है कि भारत विभाजन का कार्य अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों की ही देन है। गांधी जी ने कहा था- "यह समस्या 1938 ई. में हल हो जानी चाहिए थी, अथवा 1947 ई. में तो अवश्य ही हो जानी चाहिए थी।" गांधी जी ने न केवल माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा का मुखर विरोध किया बल्कि राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर भी राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता को प्रकट करने वाले विचार प्रकट किए। उन्होंने कहा था,
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मातृभाषा
यदि स्वराज्य अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों को और उन्हीं के लिए होने वाला हो तो नि:संदेह अंग्रेजी ही राष्ट्रभाषा होगी। लेकिन अगर स्वराज्य करोड़ों भूखों मरने वालों, करोड़ों निरक्षरों, निरक्षर बहनों और पिछड़ों व अत्यंजों का हो और इन सबके लिए होने वाला हो, तो हिंदी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है।
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मातृभाषा
विदेश में रहने वाले बच्चे जो अपने घर में परिवार वालों के साथ मातृभाषा में बात करते हैं और बाहर दूसरी भाषा बोलते हैं, वह ज्यादा बुद्धिमान होते हैं। एक नए अध्ययन से यह जानकारी मिली है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के शोधकर्ताओं ने शोध में पाया कि जो बच्चे स्कूल में अलग भाषा बोलते हैं और परिवार वालों के साथ घर में अलग भाषा का उपयोग करते हैं, वे बुद्धिमत्ता जांच में उन बच्चों की तुलनामें अच्छे अंक लाए जो केवल मातृभाषा जानते हैं। इस अध्ययन में ब्रिटेन में रहने वाले तुर्की के सात से ११ वर्ष के १९९९ बच्चों को शामिल किया गया। इस आईक्यू जांच में दो भाषा बोलने वाले बच्चों का मुकाबला ऐसे बच्चों के साथ किया गया जो केवल अंग्रेजी बोलते हैं।
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मातृभाषा
बहुत से अध्ययनों में यह बात उभरकर सामने आयी है कि आरम्भिक कक्षाओं में बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने से बेहतर परिणाम मिलते हैं। ऐसे कुछ अध्ययन युनेस्को द्वारा भी किये गये हैं।
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मातृभाषा
मौलिक लेखन, चिंतन या रचनात्मकता को संसारभर में नोट किया जाता है। विश्व में आज भी भारत की पहचान यहां की भाषा में लिखित उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, योगसूत्र, रामायण, महाभारत, नाट्यशास्त्र आदि से है जो मौलिक रचनाएँ हैं। नीरद चौधरी, राजा राव, खुशवन्त सिंह जैसे लेखकों से नहीं। समाज की रचनात्मकता और मौलिकता अनिवार्यत: उसकी अपनी भाषा से जुड़ी होती है। विश्व में मौलिकता का महत्व है, माध्यम का नहीं। इसलिए यदि स्वतंत्र भारत में मौलिक चिन्तन, लेखन का ह्रास होता गया तो उसका कारण 'अंग्रेजी का बोझ' है। मौलिक लेखन, चिन्तन विदेशी भाषा में प्रायः असंभव है। कम से कम तब तक, जब तक ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका की मूल सभ्यता की भांति भारत सांस्कृतिक रूप से पूर्णत: नष्ट नहीं हो जाता और अंग्रेजी यहां सबकी एक मात्र भाषा नहीं बन जाती। तब तक भारतीय बुद्धिजीवी अंग्रेजी में कुछ भी क्यों न बोलते रहें, वह वैसी ही यूरोपीय जूठन की जुगाली होगी, जिसकी बाहर पूछ नहीं हो सकती।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B8
बाँस
बाँस बीजों से धीरे धीरे उगता है। मिट्टी में आने के प्रथम सप्ताह में ही बीज उगना आरंभ कर देता है। कुछ बाँसों में वृक्ष पर दो छोटे छोटे अंकुर निकलते हैं। 10 से 12 वर्षों के बाद काम लायक बाँस तैयार होते हैं। भारत में दाब कलम के द्वारा इनकी उपज की जाती है। अधपके तनों का निचला भाग, तीन इंच लंबाई में, थोड़ा पर्वसंधि (node) के नीचे काटकर, वर्षा शु डिग्री होने के बाद लगा देते हैं। यदि इसमें प्रकंद का भी अंश हो तो अति उत्तम है। इसके निचले भाग से नई नई जड़ें निकलती हैं।
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