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20231101.hi_10312_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
एल्युमिनियम
ऐल्यूमिनियम ऑक्सिजन के प्रति अधिक क्रियाशील है। इस गुण के कारण अनेक आक्साइडों के अपचयन में इस धातु का प्रयोग किया जाता है। गोल्डश्मिट की थर्माइट या तापन विधि में ऐल्यूमिनियम चूर्ण का प्रयोग करके लौह, मैंगनीज़, क्रोमियम, मालिबडीनम, टंग्सटन आदि धातुएँ अपने आक्साइडों में से पृथक की जाती हैं।
1
5,198.509853
20231101.hi_10312_11
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एल्युमिनियम
बेंगफ (Bengough) और सटन ने 1926 ई. में एक विधि निकाली जिसके द्वारा ऐल्यूमिनियम धातु पर उसके आक्साइड का एक पटल इस दृढ़ता से बन जाता है कि उसके नीचे की धातु संक्षारण से बची रहे। यह कार्य विद्युद्धारा की सहायता से किया जाता है। ऐल्यूमिनियम पात्र को धनाग्र बनाकर 3 प्रतिशत क्रोमिक अम्ल के विलयन में (जो यथासंभव सल्फ़्यूरिक अम्ल से मुक्त हो) रखते हैं। वोल्टता धीरे-धीरे 40 वोल्ट तक 15 मिनट के भीतर बढ़ा दी जाती है। 35 मिनट तक इसी वोल्टता पर क्रिया होने देते हैं, फिर वोल्टता 5 मिनट के भीतर 50 वोल्ट कर देते हैं और 5 मिनट तक इसे स्थिर रखते हैं। ऐसा करने पर पात्र पर आक्साइड का एक सूक्ष्म पटल जम जाता है। पात्र पर रंग या वार्निश भी चढ़ाई जा सकती है और यथेष्ट अनेक रंग भी दिए जा सकते हैं। इस विधि को एनोडाइज़िंग या धनाग्रीकरण कहते हैं और इस विधि द्वारा बनाए गए सुंदर रंगों से अलंकृत ऐल्यूमिनियम पात्र बाजार में बहुत बिकने को आते हैं।
0.5
5,198.509853
20231101.hi_10312_12
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एल्युमिनियम
ऐल्यूमिनियम लगभग सभी धातुओं के साथ संयुक्त होकर मिश्र धातुएँ बनाता है, जिनमें से तॉबा, लोहा, जस्ता, मैंगनीज़, मैगनीशियम, निकेल, क्रोमियम, सीसा, बिसमथ और वैनेडियम मुख्य हैं। ये मिश्रधातुएँ दो प्रकार के काम की हैं – पिटवाँ और ढलवाँ। पिटवाँ मिश्रधातुओं से प्लेट, छड़ें आदि तैयार की जाती हैं। इनकी भी दो जातियाँ हैं, एक तो वे जो बिना गरम किए ही पीटकर यथेच्छ अवस्था में लाई जा सकती हैं, दूसरी वे जिन्हें गरम करना पड़ता है। पिटवाँ और ढलवाँ मिश्रधातुओं के दो नमूने यहाँ दिए जाते हैं-
0.5
5,198.509853
20231101.hi_10312_13
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एल्युमिनियम
ऐल्यूमिनियम ऑक्साइड (Al2 O3) प्रकृति में भी पाया जाता है तथा फिटकरी और अमोनिया क्षार की अभिक्रिया से तैयार भी किया जा सकता है। इसमें जल की मात्रा संयुक्त रहती है। जलरहित ऐल्यूमिनियम क्लोराइड (AlCl3) का उपयोग कार्बनिक रसायन की फ़्रीडेन-क्राफ़्ट अभिक्रिया में अनेक संश्लेषणों में किया जाता है। ऐल्यूमिनियम सलफ़ेट के साथ अनेक फिटकरियाँ बनती हैं। धातु को नाइट्रोजन या अमोनिया के साथ 800 डिग्री से. ताप पर गरम करके ऐल्यूमिनियम नाइट्राइड, (AlN), तैयार किया जा सकता है। सरपेक (Serpek) विधि में ऐल्यूमिना और कार्बन को नाइट्रोजन के प्रवाह में गरम करके यह नाइट्राइड तैयार करते थे। इस प्रकार वायु के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण संभव था। बौक्साइट और कार्बन को बिजली की भट्टियों में गलाकर ऐल्यूमिनियम कार्बाइड (Al4 C3) तैयार करते हैं, जो संक्षारण से बचाने में बहुत काम आता है और ऊँचा ताप सहन कर सकता है।
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20231101.hi_10312_14
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एल्युमिनियम
जल अपघटन होता है अत: HHCl डालकर रखना चाहिए. इसका उपयोग तेलों के भंडारों में उत्प्रेरक के रूप में होता है। फ्रीडल-क्रैफ्ट
0.5
5,198.509853
20231101.hi_10600_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
मन्त्र
ध्यान की उच्चतम अवस्था में साधक का आध्यात्मिक व्यक्तित्व पूरी तरह से प्रभु के साथ एकाकार हो जाता है जो अन्तर्यामी है। वही सारे ज्ञान एवं 'शब्द' (ॐ) का स्रोत है। प्राचीन ऋषियों ने इसे शब्द-ब्रह्म की संज्ञा दी - वह शब्द जो साक्षात् ईश्वर है! उसी सर्वज्ञानी शब्द-ब्रह्म से एकाकार होकर साधक मनचाहा ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
0.5
5,173.489395
20231101.hi_10600_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
मन्त्र
‘‘मननात त्रायते यस्मात्तस्मान्मंत्र उदाहृतः’’, अर्थात जिसके मनन, चिंतन एवं ध्यान द्वारा संसार के सभी दुखों से रक्षा, मुक्ति एवं परम आनंद प्राप्त होता है, वही मंत्र है। ‘‘मन्यते ज्ञायते आत्मादि येन’’ अर्थात जिससे आत्मा और परमात्मा का ज्ञान (साक्षात्कार) हो, वही मंत्र है। ‘‘मन्यते विचार्यते आत्मादेशो येन’’ अर्थात जिसके द्वारा आत्मा के आदेश (अंतरात्मा की आवाज) पर विचार किया जाए, वही मंत्र है। ‘‘मन्यते सत्क्रियन्ते परमपदे स्थिताःदेवताः’’ अर्थात् जिसके द्वारा परमपद में स्थित देवता का सत्कार (पूजन/हवन आदि) किया जाए-वही मंत्र है। ‘‘मननं विश्वविज्ञानं त्राणं संसारबन्धनात्। यतः करोति संसिद्धो मंत्र इत्युच्यते ततः।।’’ अर्थात यह ज्योतिर्मय एवं सर्वव्यापक आत्मतत्व का मनन है और यह सिद्ध होने पर रोग, शोक, दुख, दैन्य, पाप, ताप एवं भय आदि से रक्षा करता है, इसलिए मंत्र कहलाता है। ‘‘मननात्तत्वरूपस्य देवस्यामित तेजसः। त्रायते सर्वदुःखेभ्यस्स्तस्मान्मंत्र इतीरितः।।’’ अर्थात जिससे दिव्य एवं तेजस्वी देवता के रूप का चिंतन और समस्त दुखों से रक्षा मिले, वही मंत्र है। ‘‘मननात् त्रायते इति मंत्र’’ः अर्थात जिसके मनन, चिंतन एवं ध्यान आदि से पूरी-पूरी सुरक्षा एवं सुविधा मिले वही मंत्र है। ‘‘प्रयोगसमवेतार्थस्मारकाः मंत्राः’’ अर्थात अनुष्ठान और पुरश्चरण के पूजन, जप एवं हवन आदि में द्रव्य एवं देवता आदि के स्मारक और अर्थ के प्रकाशक मंत्र हैं। ‘‘साधकसाधनसाध्यविवेकः मंत्रः।’’ अर्थात साधना में साधक, साधन एवं साध्य का विवेक ही मंत्र कहलाता है। ‘‘सर्वे बीजात्मकाः वर्णाः मंत्राः ज्ञेया शिवात्मिकाः‘‘ अर्थात सभी बीजात्मक वर्ण मंत्र हैं और वे शिव का स्वरूप हैं। ‘‘मंत्रो हि गुप्त विज्ञानः’’ अर्थात मंत्र गुप्त विज्ञान है, उससे गूढ़ से गूढ़ रहस्य प्राप्त किया जा सकता है।
0.5
5,173.489395
20231101.hi_10600_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
मन्त्र
मंत्र की उत्पत्ति भय से या विश्वास से हुई है। आदि काल में मंत्र और धर्म में बड़ा संबंध था। प्रार्थना को एक प्रकार का मंत्र माना जाता था। मनुष्य का ऐसा विश्वास था कि प्रार्थना के उच्चारण से कार्यसिद्धि हो सकती है। इसलिये बहुत से लोग प्रार्थना को मंत्र समझते थे।
0.5
5,173.489395
20231101.hi_10600_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
मन्त्र
जब मनुष्य पर कोई आकस्मिक विपत्ति आती थी तो वह समझता था कि इसका कारण कोई अदृश्य शक्ति है। वृक्ष का टूट पड़ना, मकान का गिर जाना, आकस्मिक रोग हो जाना और अन्य ऐसी घटनाओं का कारण कोई भूत या पिशाच माना जाता था और इसकी शांति के लिये मंत्र का प्रयोग किया जाता था। आकस्मिक संकट बार-बार नहीं आते। इसलिये लोग समझते थे कि मंत्र सिद्ध हो गया। प्राचीन काल में वैद्य ओषधि और मंत्र दोनों का साथ-साथ प्रयोग करता था। ओषधि को अभिमंत्रित किया जाता था और विश्वास था कि ऐसा करने से वह अधिक प्रभावोत्पादक हो जाती है। कुछ मंत्रप्रयोगकर्ता (ओझा) केवल मंत्र के द्वारा ही रोगों का उपचार करते थे। यह इनका व्यवसाय बन गया था।
0.5
5,173.489395
20231101.hi_10600_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
मन्त्र
मंत्र का प्रयोग सारे संसार में किया जाता था और मूलत: इसकी क्रियाएँ सर्वत्र एक जैसी ही थीं। विज्ञान युग के आरंभ से पहले विविध रोग विविध प्रकार के राक्षस या पिशाच माने जाते थे। अत: पिशाचों का शमन, निवारण और उच्चाटन किया जाता था। मंत्र में प्रधानता तो शब्दों की ही थी परंतु शब्दों के साथ क्रियाएँ भी लगी हुई थीं। मंत्रोच्चारण करते समय ओझा या वैद्य हाथ से, अंगुलियों से, नेत्र से और मुख से विधि क्रियाएँ करता था। इन क्रियाओं में त्रिशूल, झाड़ू, कटार, वृक्षविशेष की टहनियों और सूप तथा कलश आदि का भी प्रयोग किया जाता था। रोग की एक छोटी सी प्रतिमा बनाई जाती थी और उसपर प्रयोग होता था। इसी प्रकार शत्रु की प्रतिमा बनाई जाती थी और उसपर मारण, उच्चाटन आदि प्रयोग किए जाते थे। ऐसा विश्वास था कि ज्यों-ज्यों ऐसी प्रतिमा पर मंत्रप्रयोग होता है त्यों-त्यों शत्रु के शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता जाता है। पीपल या वट वृक्ष के पत्तों पर कुछ मंत्र लिखकर उनके मणि या ताबीज बनाए जाते थै जिन्हें कलाई या कंठ में बाँधने से रोगनिवारण होता, भूत प्रेत से रक्षा होती और शत्रु वश में होता था। ये विधियाँ कुछ हद तक इस समय भी प्रचलित हैं। संग्राम के समय दुंदुभी और ध्वजा को भी अभिमंत्रित किया जाता था और ऐसा विश्वास था कि ऐसा करने से विजय प्राप्त होती है।
1
5,173.489395
20231101.hi_10600_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
मन्त्र
ऐसा माना जाता था कि वृक्षों में, चतुष्पथों पर, नदियों में, तालाबों में और कितने ही कुओं में तथा सूने मकानों में ऐसे प्राणी निवास करते हैं जो मनुष्य को दु:ख या सुख पहुँचाया करते हैं और अनेक विषम स्थितियाँ उनके कोप के कारण ही उत्पन्न हो जाया करती हैं। इनका शमन करने के लिये विशेष प्रकार के मंत्रों और विविधि क्रियाओं का उपयोग किया जाता था और यह माना जाता था कि इससे संतुष्ट होकर ये प्राणी व्यक्तिविशेष को तंग नहीं करते। शाक्त देव और देवियाँ कई प्रकार की विपत्तियों के कारण समझे जाते थे। यह भी माना जाता था कि भूत, पिशाच और डाकिनी आदि का उच्चाटन शाक्त देवों के अनुग्रह से हो सकता है। इसलिये ऐसे देवों का मंत्रों के द्वारा आह्वान किया जाता था। इनकी बलि दी जाती थी और जागरण किए जाते थे।
0.5
5,173.489395
20231101.hi_10600_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
मन्त्र
अपने शत्रु पर ओझा के द्वारा लोग मारण मंत्र का प्रयोग करवाया करते थे। इसमें मूठ नामक मंत्र का प्रचार कई सदियों तक रहा। इसकी विधि क्रियाएँ थीं लेकिन सबका उद्देश्य यह था कि शत्रु का प्राणांत हो। इसलिये मंत्रप्रयोग करनेवाले ओझाओं से लोग बहुत भयभीत रहा करते थे और जहाँ परस्पर प्रबल विरोध हुआ वहीं ऐसे लोगों की माँग हुआ करती थी। जब किसी व्यक्ति को कोई लंबा या अचानक रोग होता था तो संदेह हुआ करता था कि उस पर मंत्र का प्रयोग किया गया है। अत: उसके निवारण के लिये दूसरा पक्ष भी ओझा को बुलाता था और उससे शत्रु के विरूद्ध मारण या उच्चाटन करवाया करता था। इस प्रकार दोनों ओर से मंत्रयुद्ध हुआ करता था।
0.5
5,173.489395
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
मन्त्र
जब संयोगवश रोग की शांति या शत्रु की मृत्यु हो जाती थी तो समझा जाता था कि यह मंत्रप्रयोग का फल है और ज्यों-ज्यों इस प्रकार की सफलताओं की संख्या बढ़ती जाती थी त्यों-त्यों ओझा के प्रति लागों का विश्वास द्दढ़ होता जाता था और मंत्रसिद्धि का महत्व बढ़ जाता था। जब असफलता होती थी तो लोग समझते थे कि मंत्र का प्रयोग भली भाँति नहीं किया गया। ओझा लोग ऐसी क्रियाएं करते थे जिनसे प्रभावित होकर मनुष्य निश्चेष्ट हो जाता था। क्रियाओं को इस समय हिप्नोटिज्म कहा जाता है।
0.5
5,173.489395
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
मन्त्र
मंत्र, उनके उच्चारण की विधि, विविधि चेष्टाएँ, नाना प्रकार के पदार्थो का प्रयोग भूत-प्रेत और डाकिनी शाकिनी आदि, ओझा, मंत्र, वैद्य, मंत्रौषध आदि सब मिलकर एक प्रकार का मंत्रशास्त्र बन गया है और इस पर अनेक ग्रंथों की रचना हो गई है।
0.5
5,173.489395
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80
फिटकरी
फिटकरी (Alum), एक रंगहीन, क्रिस्टलीय पदार्थ हैं। साधारण फिटकरी का रासायनिक नाम पोटाश एलम(KAl(SO4)2.24H2O) होता हैं। (AB(SO4)2.12H2O) इम्पीरिकल सूत्र वाले सामान्य यौगिकों को 'एलम' (Alums) नाम से जाना जाता है।
0.5
5,158.11797
20231101.hi_26671_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80
फिटकरी
फिटकारी को अंग्रेजी में पोटैश ऐलम या केवल ऐलम भी कहते हैं। यह पोटैशियम सल्फेट और ऐलुमिनियम सल्फेट का द्विलवण है, इसके चतुर्फलकीय क्रिस्टल में क्रिस्टलीय जल के २४ अणु रहते हैं। इसके क्रिस्टल अत्यंत सरलता से बनते हैं।
0.5
5,158.11797
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80
फिटकरी
पहले पहल फिटकरी ऐलम शेल (shale) से बनाई गई थी। यह बड़ी मात्रा में ऐलूनाइट या फिटकरी पत्थर (K2SO4 Al2(SO4)3.4 Al(OH)3) के वायु में भंजन, निक्षालन (lixiviation) और क्रिस्टलीकरण से प्राप्त होती है। ऐलूनाइट से प्राप्त ऐलम को 'रोमन ऐलम' भी कहते हैं। ऐलूमिनों फेरिक के विलयन पर पोटैशियम सल्फेट की क्रिया से भी फिटकारी प्राप्त हो सकती है। फेरिक ऑक्साइड के कारण इसका रंग गुलाबी होता है, यद्यपि विलेय लोहा इसमें बिल्कुल नहीं होता, या केवल लेश मात्र होता है।
0.5
5,158.11797
20231101.hi_26671_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80
फिटकरी
पोटैश ऐलम ९२° सें. पर पिघलता है। २००° सें. पर इसका जल निकल जाता है जिसस यह सरंध्र पुंज में परिणत हो जाता है। इसे 'जली हुई फिटकरी' कहते हैं। वायु में इसके क्रिस्टल प्रस्फुटित होते हैं, जो वायु से अमोनिया का अवशोषण कर क्षारक लवण में परिवर्तित हो जाते हैं।
0.5
5,158.11797
20231101.hi_26671_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80
फिटकरी
ऐलम शब्द जब बहुवचन में प्रयुक्त होता है, तब उससे उन सभी यौगिकों का बोध होता है, जो पोटैश ऐलम से संगठन में समानता रखते हैं। ऐसे यौगिकों में पोटैश का स्थान, लिथियम, सोडियम, अमोनियम, रूबीडीयम, सीज़ियम, टेल्यूरियम धातुएँ तथा हाइड्रॉक्सीलैमिन (NH4O) एवं चतुर्थक नाइट्रोजन क्षारक (N(C H3)4) मूलक ले सकते हैं। ऐलुमिनियम का स्थान क्रोमियम (क्रोम ऐलम), लोहा (लौह ऐलम), मैंगनीज, इरीडियम, गैलियम, वैनेडियम, कोबल्ट इत्यादि ले सकते हैं। विरल मृद धातुएँ ऐलम नहीं बनती। कुछ यौगिकों में (SO4) मूलक में सल्फर का स्थान सिलीनियम ले सकता है।
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5,158.11797
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80
फिटकरी
ऐलम संकर (Complex) यौगिक नहीं है। पानी में घुलने पर विलयन में इसके समसत आयन अलग अलग रहते हैं : यह समरूपीय क्रिस्टल बनाता है। एक लवण के क्रिस्टल पर दूसरे लवण के क्रिस्टल बड़ी सरलता से बनते हैं। इसके मिश्रित क्रिस्टल भी बनते हैं और विभिन्न लवणों के स्तरों के क्रिस्टल भी बनते हैं। बहुत अधिक विलेय होने के कारण सोडिय ऐलम के क्रिस्टल बड़ी कठिनाई से प्राप्त होते हैं।
0.5
5,158.11797
20231101.hi_26671_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80
फिटकरी
चिकित्सा में, "फिटकरी" एक वैक्सीन सहायक के रूप में उपयोग किए जाने वाले एल्यूमीनियम हाइड्रॉक्साइड जेल का भी उल्लेख कर सकता है।
0.5
5,158.11797
20231101.hi_26671_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80
फिटकरी
पोटाश एलम का उपयोग रक्त को थक्का बनाने के लिये किया जाता है। दाढ़ी बनाने के बाद प्रायः इसे चेहरे पर रगड़ा जाता है।
0.5
5,158.11797
20231101.hi_26671_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80
फिटकरी
गर्म बर्तन पर उपस्थित अशुद्धियों को साफ करने के लिए उपयोग किया जाता है जिससे लोहे के धातु पर तुरंत चमक उत्पन्न हो जाती है
0.5
5,158.11797
20231101.hi_26638_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%95
चुम्बक
हर एक अणु का अपना एक चुम्बकीये क्षेत्र होता है। वैसे तो चुम्बकीये क्षेत्र सभी पदार्थो के अणुओं में पाया जाता है लेकिन चुम्बक के अणु एक खास तरह की संरचना बनाते हैं। जहाँ बाकी सारे पदार्थो का चुम्बकीये क्षेत्र अलग-अलग दिशाओं में पाया जाता है, जिससे की उनका कुल नेट मेग्नेटिक फील्ड शून्य हो जाता है। लेकिन चुम्बक में ये सभी चुम्बकीय क्षेत्र एक ही दिशा में संरेखित होते हैं और इसी कारण चुंबक का चुंबकीय क्षेत्र अति शुद्ध और कहीं अधिक शक्तिशाली होता है। दूसरे शब्दों में हर पदार्थ के हर इलेक्ट्रॉन का एक चुंबकीय क्षेत्र होता है। लेकिन केवल चुम्बक में ही ये सभी सूक्ष्म चुम्बकीय क्षेत्र एक दिशा में आकर एक बन जाते हैं और तब एक अधिक शक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड, जिसे नेट मेग्नेटिक फील्ड भी कहते हैं, पैदा होता है।
0.5
5,153.083668
20231101.hi_26638_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%95
चुम्बक
क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, एटीएम कार्ड आदि में एक चुम्बकीय पट्टी उपयोग में लायी जाती है। इस पट्टी पर कुछ आंकड़े और सूचनाएँ दर्ज की गयी होती हैं।
0.5
5,153.083668
20231101.hi_26638_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%95
चुम्बक
परम्परागत टीवी एवं कम्प्यूटर के मॉनिटर में : एलेक्ट्रॉन बीम को उपर-नीचे एवं अगल-बगल मोडने के लिये विद्युत्चुम्बक का प्रयोग होता है। इसी से छबि-निर्माण सम्भव हो पाता है।
0.5
5,153.083668
20231101.hi_26638_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%95
चुम्बक
चुम्बकीय दिक्सूचक (कम्पास या कुतुबनुमा) में - इसमें एक हल्का सा स्थायी चुम्बक होता है जो क्षैतिज तल में घूमने के लिये स्वतन्त्र होता है। यह उत्तर-दक्षिण दिशा में ही स्थिर होता है और इस प्रकार दिशा बताने में सहायता करता है।
0.5
5,153.083668
20231101.hi_26638_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%95
चुम्बक
चुम्बकों की सहायता से ऐसी चीजों को खोजने, पकड़ने एवं इकट्ठा करने में मदद मिलती है जो बहुत छोटी हैं, जिन तक हाथ नही जा सकता, या जिन्हें हाथ से पकड़ना कठिन है। (लोहे की कीलें, स्टैपुल पिनें, कागज की क्लिपें आदि)
1
5,153.083668
20231101.hi_26638_10
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चुम्बक
किसी कबाड़ से चुम्बकीय पदार्थों (लोहा, निकिल, स्टील आदि) एवं अचुम्बकीय पदार्थों (एल्युमिनियम, ताँबा, आदि) को अलग करने हेतु।
0.5
5,153.083668
20231101.hi_26638_11
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चुम्बक
मास-स्पेक्ट्रोमीटर में - अलग-अलग द्रव्यमान के कण चुम्बकीय क्षेत्र से गुजरने के बाद परदे पर अलग-अलग स्थान पर जाकर टकराते हैं। टकराये गये स्थान के निर्देशांक से उस कण के भार के बारे में पता चलता है।
0.5
5,153.083668
20231101.hi_26638_12
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चुम्बक
चुम्बकीय बीयरिंग में - शाफ्ट बिना किसी चीज को स्पर्श किये हुए ही घूमता रहता है। इससे घर्षण में उर्जा का व्यय नहीं होता व सामान घिसता नहीं है।
0.5
5,153.083668
20231101.hi_26638_13
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चुम्बक
Articles, tutorials and other educational information about magnets National High Magnetic Field Laboratory
0.5
5,153.083668
20231101.hi_45770_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
थैलासीमिया
इस रोग का फिलहाल कोई ईलाज नहीं है। हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन। थैलीसीमिया इन प्रोटीन में ग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने से होता है। जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से नष्ट होती है। रक्त की भारी कमी होने के कारण रोगी के शरीर में बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। रक्त की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है एवं बार-बार रक्त चढ़ाने के कारण रोगी के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है, जो हृदय, यकृत और फेफड़ों में पहुँचकर प्राणघातक होता है। मुख्यतः यह रोग दो वर्गों में बांटा गया है:
0.5
5,140.742543
20231101.hi_45770_3
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थैलासीमिया
यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया होता है। जिसे थैलीसीमिया मेजर कहा जाता है।
0.5
5,140.742543
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थैलासीमिया
थैलीसीमिया माइनर उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक से प्राप्त होता है। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।
0.5
5,140.742543
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थैलासीमिया
पूर्ण रक्तकण गणना (कंपलीट ब्लड काउंट) यानि सीबीसी से रक्ताल्पता या एनीमिया का पता लगाया जाता है। एक अन्य परीक्षण जिसे हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस कहा जाता है से असामान्य हीमोग्लोबिन का पता लगता है। इसके अलावा म्यूटेशन एनालिसिस टेस्ट (एमएटी) के द्वारा एल्फा थैलीसिमिया की जांच के बारे में जाना जा सकता है। मेरूरज्जा ट्रांसप्लांट से भी इस बीमारी के उपचार में मदद मिलती है।
0.5
5,140.742543
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थैलासीमिया
सूखता चेहरा, लगातार बीमार रहना, वजन ना ब़ढ़ना और इसी तरह के कई लक्षण बच्चों में थेलेसीमिया रोग होने पर दिखाई देते हैं।
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5,140.742543
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थैलासीमिया
थेलेसीमिया पी‍डि़त के इलाज में काफी बाहरी रक्त चढ़ाने और दवाइयों की आवश्यकता होती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते, जिससे १२ से १५ वर्ष की आयु में बच्चों की मृत्य हो जाती है। सही इलाज करने पर २५ वर्ष व इससे अधिक जीने की आशा होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है।
0.5
5,140.742543
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थैलासीमिया
विवाह पूर्व जांच को प्रेरित करने हेतु एक स्वास्थ्य कुण्डली का निर्माण किया गया है, जिसे विवाह पूर्व वर-वधु को अपनी जन्म कुण्डली के साथ साथ मिलवाना चाहिये। स्वास्थ्य कुंडली में कुछ जांच की जाती है, जिससे शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े यह जान सकें कि उनका स्वास्थ्य एक दूसरे के अनुकूल है या नहीं। स्वास्थ्य कुंडली के तहत सबसे पहली जांच थैलीसीमिया की होगी। एचआईवी, हेपाटाइटिस बी और सी। इसके अलावा उनके रक्त की तुलना भी की जाएगी और रक्त में RH फैक्टर की भी जांच की जाएगी।
0.5
5,140.742543
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थैलासीमिया
इस प्रकार के रोगियों के लिए कितनी ही संस्थायें रक्त प्रबंध कराती हैं। इसके अलावा बहुत से रक्तदान आतुर सज्जन तत्पर रहते हैं।
0.5
5,140.742543
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थैलासीमिया
थैलेसीमिया पर विश्व भर में शोध अनुसंधान अन्वरत जारी हैं। इन प्रयासों से ही थैलीसीमिया पीड़ितों के लिए एक दवाई अविष्कृत हुई थी। इस दवाई से बच्चों को अब इंजेक्शन के दर्द को नहीं झेलना पड़ेगा। जल्दी ही भारतीय बाजार में ये दवा आने वाली है, जिसे खाने से ही शरीर में लौह मात्रा नियंत्रित हो जाएगी। असुरां नाम की यह दवा पश्चिमी देशों में एक्स जेड नाम से पहले से ही प्रयोग हो रही है। इससे इलाज का खर्च भी कम हो जाएगा, किंतु इसके दुष्प्रभावों (साइड एफ़ेक्ट्स) में इससे किडनी प्रभावित होने का एक परसेंट खतरा बना रहता है। दिल्ली के गंगाराम अस्पताल के थैलीसीमिया इकाई के अध्यक्ष डॉ॰ वीरेंद खन्ना के अनुसार भारत में अतिरिक्त लौह निकालने के लिए दो तरीके प्रचलन में हैं। पहले तरीके में डेसोरॉल (इंजेक्शन) के जरिए आठ से दस घण्टे तक लौह निकाला जाता है। यह प्रक्रिया बहुत महंगी और कष्टदायक होती है। इसमें प्रयोग होने वाले एक इंजेक्शन की कीमत १६४ रुपए होती है। इस प्रक्रिया में हर साल पचास हजार से डेढ़ लाख रुपए तक खर्च आता है। दूसरी प्रक्रिया में कैलफर नामक दवा (कैप्सूल) दी जाती है। यह दवा सस्ती तो है लेकिन इसका इस्तेमाल करने वाले ३० प्रतिशत रोगियों को जोड़ों में दर्द की समस्या हो जाती है। साथ ही इनमें से एक प्रतिशत बच्चे गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में नई दवा असुरां काफ़ी लाभदायक होगी। यह दवा फलों के रस के साथ मिलाकर पिलाई जाती है और इसकी कीमत १०० रुपये प्रति डोज है।
0.5
5,140.742543
20231101.hi_2523_5
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अमृतसर
हरमंदिर साहब परिसर में दो बडे़ और कई छोटे-छोटे तीर्थस्थल हैं। ये सारे तीर्थस्थल जलाशय के चारों तरफ फैले हुए हैं। इस जलाशय को अमृतसर और अमृत झील के नाम से जाना जाता है। पूरा स्वर्ण मंदिर सफेद पत्थरों से बना हुआ है और इसकी दिवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है। हरमंदिर साहब में पूरे दिन गुरु बानी की स्वर लहरियां गुंजती रहती हैं। मंदिर परिसर में पत्थर का स्मारक लगा हुआ है। यह पत्थर जांबाज सिक्ख सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने के लिए लगा हुआ है।
0.5
5,116.504016
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%B8%E0%A4%B0
अमृतसर
13 अप्रैल 1919 को इस बाग में एक सभा का आयोजन किया गया था। यह सभा ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध थी। इस सभा को बीच में ही रोकने के लिए जनरल डायर ने बाग के एकमात्र रास्ते को अपने सैनिकों के साथ घेर लिया और भीड़ पर अंधाधुंध गोली बारी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में बच्चों, बुढ़ों और महिलाओं समेत लगभग 300 लोगों की जान गई और 1000 से ज्यादा घायल हुए। यह घटना को इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक माना जाता है।
0.5
5,116.504016
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%B8%E0%A4%B0
अमृतसर
जलियां वाला बाग हत्याकांड इतना भयंकर था कि उस बाग में स्थित कुआं शवों से पूरा भर गया था। अब इसे एक सुन्दर पार्क में बदल दिया गया है और इसमें एक संग्राहलय का निर्माण भी कर दिया गया है। इसकी देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी जलियांवाला बाग ट्रस्ट की है। यहां पर सुन्दर पेड लगाए गए हैं और बाड़ बनाई गई है। इसमें दो स्मारक भी बनाए गए हैं। जिसमें एक स्मारक रोती हुई मूर्ति का है और दूसरा स्मारक अमर ज्योति है। बाग में घुमने का समय गर्मियों में सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक और सर्दियों में सुबह 10 बजे से शाम 5 तक रखा गया है।
0.5
5,116.504016
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अमृतसर
अमृतसर की दक्षिण दिशा में संतोखसर साहब और बिबेसर साहब गुरूद्वार है। इनमें से संतोखसर गुरूद्वारा स्वर्ण मंदिर से भी बड़ा है। महाराजा रणजीत सिंह ने रामबाग पार्क में एक समर पैलेस बनवाया था। इसकी अच्छी देखरेख की गई जिससे यह आज भी सही स्थिति में हैं। इस महल की बाहरी दीवारों पर लाल पत्थर लगे हुए हैं। इस महल को अब महाराजा रणजीत सिंह संग्राहलय में बदल दिया गया है। इस संग्राहलय में अनेक चित्रों और फर्नीचर को प्रदर्शित किया गया है। यह एक पार्क के बीच में बना हुआ है। इस पार्क को बहुत सुन्दर बनाया गया है। इस पार्क को लाहौर के शालीमार बाग जैसा बनाया गया है। संग्राहलय में घूमने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक रखा गया है। यह सोमवार को बंद रहता है।
0.5
5,116.504016
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%B8%E0%A4%B0
अमृतसर
प्राचीन हिन्दू मंदिर हाथी गेट क्षेत्र में स्थित हैं। यहां पर दुर्गीयाना मंदिर है। इस मंदिर को हरमंदिर की तरह बनाया गया है। इस मंदिर के जलाशय के मध्य में सोने की परत चढा गर्भ गृह बना हुआ है। दुर्गीयाना मंदिर के बिल्कुल पीछे हनुमान मंदिर है। दंत कथाओं के अनुसार यही वह स्थान है जहां हनुमान अश्वमेध यज्ञ के घोडे को लव-कुश से वापस लेने आए थे और उन दोनों ने हनुमान को परास्त कर दिया था।
1
5,116.504016
20231101.hi_2523_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%B8%E0%A4%B0
अमृतसर
यह मस्जिद गांधी गेट के नजदीक हॉल बाजार में स्थित है। नमाज के समय यहां बहुत भीड़ होती है। इस समय इसका पूरा प्रागंण नमाजियों से भरा होता है। उचित देखभाल के कारण भारी भीड के बावजूद इसकी सुन्दरता में कोई कमी नहीं आई है। यह मस्जिद इस्लामी भवन निर्माण कला की जीती जागती तस्वीर पेश करती है मुख्य रूप से इसकी दीवारों पर लिखी आयतें। यह बात ध्यान देने योग्य है कि जलियांवाला बाग सभा के मुख्य वक्ता डॉ सैफउद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल इसी मस्जिद से ही सभा को संबोधित कर रहे थे।
0.5
5,116.504016
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अमृतसर
वागाह बोर्डर पर हर शाम भारत की सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्तान रेंजर्स की सैनिक टुकडियां इकट्ठी होती है। विशेष मौकों पर मुख्य रूप से 14 अगस्त के दिन जब पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस समाप्त होता है और भारत के स्वतंत्रता दिवस की सुबह होती है उस शाम वहां पर शांति के लिए रात्रि जागरण किया जाता है। उस रात वहां लोगों को एक-दुसरे से मिलने की अनुमति भी दी जाती है। इसके अलावा वहां पर पूरे साल कंटिली तारें, सुरक्षाकर्मी और मुख्य द्वार के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता।
0.5
5,116.504016
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अमृतसर
अमृतसर से करीब 22 किलोमीटर दूर इस स्थान पर एक तालाब है। ऐसी मान्यता है कि इसके पानी में बीमारियों को दूर करने की ताकत है। यह तालाब बिमारियों को अपने अंदर घोल लेता है।
0.5
5,116.504016
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अमृतसर
अमृतसर के व्यंजन पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। यहां का बना चिकन, मक्के की रोटी, सरसों का साग और लस्सी बहुत प्रसिद्ध है। खाने-पीने वाले शौकीन लोगों के लिए पंजाब स्वर्ग माना जाता है। दरबार साहिब के दर्शन करने के बाद अधिकतर श्रद्धालु भीजे भठुर, रसीली जलेबी और अन्य व्यंजनों का आनंद लेने के लिए भरावन के ढाबे पर जाते हैं। यहां की स्पेशल थाली भी बहुत प्रसिद्ध है। इसके अलावा लारेंस रोड की टिक्की, आलू-पूरी और आलू परांठे बहुत प्रसिद्ध हैं। अमृतसर के अमृतसरी कुल्चे बहुत प्रसिद्ध है। अमृतसरी कुल्चों के लिए सबसे बेहतर जगह मकबूल रोड के ढा़बे हैं, यहां केवल 2 बजे तक ही कुल्चे मिलते हैं। पपडी़ चाट और टिक्की के लिए बृजवासी की दूकान प्रसिद्ध है। यह दूकान कूपर रोड पर स्थित है। लारेंस रोड पर बी.बी.डी.ए.वी. गर्ल्‍स कॉलेज के पास शहर के सबसे अच्छे आम पापड़ मिलते हैं।
0.5
5,116.504016
20231101.hi_2437_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जबलपुर
भेड़ाघाट, ग्वारीघाट और जबलपुर से प्राप्त जीवाश्मों से संकेत मिलता है कि यह प्रागैतिहासिक काल के पुरापाषाण युग के मनुष्य का निवास स्थान था। मदन महल, नगर में स्थित कई ताल और गोंड राजाओं द्वारा बनवाए गए कई मंदिर इस स्थान की प्राचीन महिमा की जानकारी देते हैं। इस क्षेत्र में कई बौद्ध, हिन्दू और जैन भग्नावशेष भी हैं। कहते है कि जबलपुर में स्थ‍ित ५२ प्राचीन ताल तलेैयों ने यहाँ की पहचान को बढाया, इनमें से अब कुछ ही तालाब शेष बचे हैं परन्तु उन प्राचीन ताल तलैयों के नाम अभी तक प्रचलित हैं। जिनमें से कुछ निम्न हैं;
0.5
5,088.273379
20231101.hi_2437_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जबलपुर
अधारताल, रानीताल, चेरीताल, हनुमानताल, फूटाताल, मढाताल, हाथीताल, सूपाताल, देवताल, कोलाताल, बघाताल, ठाकुरताल, गुलौआ ताल, माढोताल, मठाताल, सुआताल, खम्बताल, गोकलपुर तालाब, शाहीतालाब, महानद्दा तालाब, उखरी तालाब, कदम तलैया, भानतलैया, श्रीनाथ की तलैया, तिलकभूमि तलैया, बैनीसिंह की तलैया, तीनतलैया, लोको तलैया, ककरैया तलैया, जूडीतलैया, गंगासागर, संग्रामसागर। जबलपुर भेड़ाघाट मार्ग पर स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर, हथियागढ़ संस्कृत के कवि राजशेखर से सम्बंधित है ।
0.5
5,088.273379
20231101.hi_2437_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जबलपुर
विंध्य पर्वत श्रृंखला में स्थित यह नगर पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। जबलपुर भारत के प्रमुख शहरों दिल्ली हैदराबाद अहमदाबाद पुणे कोलकाता तथा मुंबई से हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है।
0.5
5,088.273379
20231101.hi_2437_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जबलपुर
2011 की जनगणना के अनुसार जबलपुर नगर निगम क्षेत्र की जनसंख्या 14,44,667 है, जबलपुर छावनी क्षेत्र की जनसंख्या 102,482 और जबलपुर ज़िले की कुल जनसंख्या 24,63,289 है।
0.5
5,088.273379
20231101.hi_2437_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जबलपुर
यह नगर सामरिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, यहाँ तोपगाड़ी बनाने का केंद्रीय कारख़ाना शस्त्र निर्माण कारख़ाना और एक शस्त्रागार स्थित है। यहाँ के प्रमुख उद्योगों में खाद्य प्रसंस्करण, आरा मिल और विभिन्न निर्माण शामिल हैं।
1
5,088.273379
20231101.hi_2437_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जबलपुर
रेडीमेड वस्त्र उत्पादन जबलपुर रेडीमेड वस्त्र उद्योग - सलवार-सूट , शर्ट, का प्रमुख उत्पादक केंद्र बन गया है।
0.5
5,088.273379
20231101.hi_2437_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जबलपुर
इसके आसपास के क्षेत्रों में नर्मदा नदी घाटी के पश्चिमी छोर पर स्थित एक अत्यधिक उपजाऊ, गेहूँ की खेती वाला इलाक़ा हवेली शामिल है। चावल, ज्वार चना और तिलहन आसपास के क्षेत्रों की अन्य महत्त्वपूर्ण फ़सलें हैं। यहाँ लौह अयस्क, चूना-पत्थर बॉक्साइट, चिकनी मिट्टी, अग्निसह मिट्टी, शैलखड़ी, फ़ेल्सपार, मैंगनीज और गेरू का व्यापक पैमाने पर खनन होता है।
0.5
5,088.273379
20231101.hi_2437_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जबलपुर
रानी दुर्गावती का मदन महल - मदन महल का किला सन् १११६ में राजा मदन शाह द्वारा बनवाया गया था। जबलपुर को आचार्य विनोबा भावे ने 'संस्‍कारधानी का नाम दिया था।
0.5
5,088.273379
20231101.hi_2437_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जबलपुर
भेड़ाघाट- भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित चौंसठ योगिनी मंदिर इसके समीप ही स्थित है - धुंआधार जलप्रपात, भेड़ाघाट एक आकर्षक पर्यटन स्थल है।
0.5
5,088.273379
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मैसूर
मैसूर से 13 किलोमीटर दक्षिण में स्थित चामुंडा पहाड़ी मैसूर का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है जो देवी दुर्गा को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। यह मंदिर देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। मंदिर मुख्य गर्भगृह में स्थापित देवी की प्रतिमा शुद्ध सोने की बनी हुई है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का एक अच्छा नमूना है। मंदिर की इमारत सात मंजिला है जिसकी कुल ऊँचाई 40 मी. है। मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है जो 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा रखी हुई है। पहाड़ी के रास्ते में काले ग्रेनाइट के पत्थर से बने नंदी बैल के भी दर्शन होते हैं।
0.5
5,053.208572
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मैसूर
1933 में बना यह चर्च भारत के सबसे बड़े चर्च में से एक है। मैसूर शहर से 3 किलोमीटर दूर कैथ्रेडल रोड पर स्थित यह चर्च निओ-गोथिक शली में निर्मित है। भूमिगत कमरे में तीसरी शताब्दी के संत इन संत की प्रतिमा स्थापित है। इसकी 175 फीट ऊंची जुड़वा मीनारें मीलों दूर से दिखाई दे जाती हैं। यहां की दीवारों पर ईसा मसीह के जन्म से लेकर पुनर्जन्म तक उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं का दर्शाती हुई ग्लास पेंटिग्स लगी हुई हैं। वर्तमान में इस चर्च को सेंट जोसेफ चर्च के नाम से जाना जाता है। समय: सुबह 5-शाम 8 बजे तक
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5,053.208572
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मैसूर
1932 में बना यह बांध मैसूर से 12 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसका डिजाइन श्री एम.विश्वेश्वरैया ने बनाया था और इसका निर्माण कृष्णराज वुडेयार चतुर्थ के शासन काल में हुआ था। इस बांध की लंबाई 8600 फीट, ऊँचाई 130 फीट और क्षेत्रफल 130 वर्ग किलोमीटर है। यह बांध आजादी से पहले की सिविल इंजीनियरिंग का नमूना है। यहां एक छोटा सा तालाब भी हैं जहां बोटिंग के जरिए बांध उत्तरी और दक्षिणी किनारों के बीच की दूरी तय की जाती है। बांध के उत्तरी कोने पर संगीतमय फव्वार हैं। बृंदावन गार्डन नाम के मनोहर बगीचे बांध के ठीक नीचे हैं।
0.5
5,053.208572
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मैसूर
यह पार्क मैसूर का एकमात्र अम्यूजमेंट वॉटर पार्क है। 30 एकड़ में फैला यह पार्क सभी उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस पार्क के मुख्य आकर्षण पानी के खेल, रोमांचक सवारी और बच्चों के लिए तालाब हैं। जीआरएस पार्क मैसूर रलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दूर है। पार्क के अंदर शाकाहारी खाने का एक रेस्टोरेंट भी है। बाहर से खाने-पीने का सामान लाना मना है।
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5,053.208572
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मैसूर
समय: सोमवार से शुक्रवार सुबह 10.30-6 बजे तक, रविवार और सार्वजनिक अवकाश के दिन शाम 7.30 बजे तक, गर्मियों में शनिवार के दिन भी 7.30 बजे तक खुलता है।
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5,053.208572
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मैसूर
यह चिड़ियाघर विश्व के सबसे पुराने चिड़ियाघरों में से एक है। इसका निर्माण 1892 में शाही संरक्षण में हुआ था। इस चिड़ियाघर में 40 से भी ज्यादा देशों से लाए गए जानवरों को रखा गया है। यहां के बगीचों को बहुत ही खूबसूरती से सजाया और संभाला गया है। शेर यहां के मुख्य आकर्षण हैं। इसके अलावा हाथी, सफेद मोर, दरियाई घोड़े, गैंडे और गोरिल्ला भी यहां देखे जा सकते हैं। चिड़ियाघर में करंजी झील भी है। यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इसके अतिरिक्त यहां एक जैविक उद्यान भी है जहां भारतीय और विदेशी पेड़ों की करीब 85 प्रजातियां रखी गई हैं।
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5,053.208572
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मैसूर
यह संग्रहालय कृष्णराज सागर रोड पर स्थित सीएफटी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सामने है। यहां मैसूर स्टेट रेलवे की उन चीजों को प्रदर्शित किया गया है जो 1881-1951 के बीच की हैं। 1979 में स्थापित इस संग्रहालय में एक विशेष क्षेत्र से जुड़ी हुई वस्तुओं का अच्छा संग्रह है। यहां प्रदर्शित वस्तुओं में भाप से चलने वाले इंजन, सिग्नल और 1899 में बना सभी सुविधाओं वाला महारानी का सैलून शामिल है। यहां का मुख्य आकर्षण चामुंडी गैलरी है जहां रेलवे विभाग के विकास का दर्शाती तस्वीरों का रखा गया है। यह संग्रहालय बच्चों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उनके ज्ञान को भी बढ़ाता है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0
मैसूर
यूं तो दशहरा पूर देश में मनाया जाता है लेकिन मैसूर में इसका विशेष महत्त्व है। 10 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव चामुंडेश्वरी द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक है। इसमें बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है। इस पूरे महीने मैसूर महल को रोशनी से सजाया जाता है। इस दौरान अनेक सांस्कृतिक, धार्मिक और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उत्सव के अंतिम दिन बैंड बाजे के साथ सजे हुए हाथी देवी की प्रतिमा को पारंपरिक विधि के अनुसार बन्नी मंटप तक पहुंचाते है। करीब 5 किलोमीटर लंबी इस यात्रा के बाद रात को आतिशबाजी का कार्यक्रम होता है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उसी उत्साह के साथ निभाई जाती है।
0.5
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मैसूर
यह नगर कबीनी नदी के किनारे मैसूर के दक्षिण में राज्य राजमार्ग 17 पर है। यह स्थान नंजुंदेश्वर या श्रीकांतेश्वर मंदिर (दूरभाष: 0821-226245) के लिए प्रसिद्ध है। दक्षिण काशी कही जाने वाली इस जगह पर स्थापित लिंग के बार में माना जाता है कि इसकी स्थापना गौतम ऋषि ने की थी। यह मंदिर नंजुडा को समर्पित है। कहा जाता है कि हकीम नंजुडा ने हैदर अली के पसंदीदा हाथी को ठीक किया था। इससे खुश होकर हैदर अली ने उन्हें बेशकीमती हार पहनाया था। आज भी विशेष अवसर पर यह हार उन्हें पहनाया जाता है।
0.5
5,053.208572
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
संधारित्र
संधारित्र की धारा और उसके प्लेटों के बीच में विभवान्तर का सम्बन्ध निम्नांकित समीकरण से दिया जाता है-
0.5
5,036.980682
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संधारित्र
C संधारित्र की धारिता है जो संधारित्र के प्लेटों की दूरी, उनके बीच प्रयुक्त डाइएलेक्ट्रिक पदार्थ, प्लेटों का क्षेत्रफल एवं अन्य ज्यामितीय बातों पर निर्भर करता है। संधारित्र की धारिता निम्नलिखित समीकरण से परिभाषित है-
0.5
5,036.980682
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संधारित्र
संधारित्र को आवेशित करने में जो कार्य करना पड़ता है वह संधारित्र में संग्रहित हो जाती है। संधारित्र में संग्रहित यह ऊर्जा विद्युत क्षेत्र के रूप में होती है। संग्रहित ऊर्जा U का मान निम्नलिखित सूत्र द्वारा अभिव्यक्त होती है-
0.5
5,036.980682
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संधारित्र
वैद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु पर ईकाई आयतन में संग्रहित उर्जा का मान निम्नलिखित सूत्र से दिया जा सकता है-
0.5
5,036.980682
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संधारित्र
आवेश भण्डारण तथा उर्जा भण्डारण के लिये (पल्स पॉवर सप्लाई में, स्थायी चुम्बकों को चुम्बकित या विचुम्बकित करने के लिए)
1
5,036.980682
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संधारित्र
जिस प्रकार प्रतिरोधों और प्रेरकत्वों को आवश्यकतानुसार श्रेणीक्रम या समान्तर क्रम में जोड़कर उचित मान (वैल्यू) तथा उचित रेटिंग (वाटेज, वोल्टता, धारा की रेटिंग आदि) प्राप्त कर ली जाती है, उसी प्रकार दो या अधिक संधारित्रों को भी आवश्यकतानुसार संयोजित किया जाता है।
0.5
5,036.980682
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संधारित्र
दो संधारित्र श्रेणीक्रम में जोड़े जाँय तो उनकी तुल्य धारिता निम्नलिखित सरल सूत्र से निकाला जा सकता है-
0.5
5,036.980682
20231101.hi_185307_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
संधारित्र
और अगर दोनो संधारित्र समान मान वाले हों तो श्रेणीक्रम में संयोजित करने पर उनकी तुल्य धारिता प्रत्येक की धारिता की आधी हो जाती है। उदाहरण के लिये १० माइक्रोफैराड के दो संधारित्रों को श्रेणीक्रम में जोड़ने पर तुल्य धारिता ५ माइक्रोफैराड होगी।
0.5
5,036.980682
20231101.hi_185307_10
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संधारित्र
समान्तर क्रम में जुड़े संधारित्रों की कुल धारिता (तुल्य धारिता) उनकी धारिताओं के योग के बराबर होती है।
0.5
5,036.980682
20231101.hi_9003_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%AE
मौसम
मेघाच्छादित मौसम वह मौसम है जब वायुमंडल में अधिक मात्रा में बादलों की उपस्थिति के कारण सूर्य का प्रकाश सीधे पृथ्वी तक नहीं आ पाता है अथवा कम मात्रा में आता है। यह मौसम सामान्यतः अपेक्षाकृत ठंडा होता है तथा कभी कभी उमस भरा होता है। ऐसे बादल पृथ्वी तल से लेकर 12मील की ऊंचाई तक होते हैं।
0.5
5,034.578233
20231101.hi_9003_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%AE
मौसम
वर्षा का मौसम तब होता है जब वायुमंडल में बादलों में उपस्थित जल वाष्प संघनित हो कर जल की बूंदों के रुप में धरातल पर गिरती है। जब बादल पानी की बूंदों से बहुत घने हो जाते हैं, तो वे बारिश के रूप में पृथ्वी पर गिरते हैं। तूफ़ान में तीव्र वर्षा के साथ-साथ बिजली, गड़गड़ाहट और, कुछ स्थितियों में, तेज़ हवाएँ और ओले शामिल होते हैं। तूफ़ान, जो अविश्वसनीय रूप से तेज़ हवाओं के साथ घूमते तूफ़ान हैं, कहीं अधिक खतरनाक हैं। तूफान, जिसमें भारी बारिश भी होती है, अपनी तेज़ हवा की गति के कारण बारिश और तूफ़ान से अधिक हानिकारक होते हैं।
0.5
5,034.578233
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%AE
मौसम
बर्फ़ीला तूफ़ान एक प्रकार की मौसमी घटना है जिसमें बर्फ़ीली वर्षा होती हैं। जब तापमान शून्य से नीचे चला जाता है तो बर्फ़ीला तूफ़ान आता है और बर्फ़ की वर्षा होती है। बर्फ़ीला तूफ़ान अधिक कठोर शीतकालीन मौसम की घटनाएं हैं जो भारी बर्फबारी और 35 मील प्रति घंटे से अधिक की शक्तिशाली हवाएं पैदा करती हैं।
0.5
5,034.578233
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%AE
मौसम
मौसम को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक होते हैं जो मौसम के तत्वों को दैनिक परिवर्तित करके मौसम के बदलाव में सहायक होते हैं। इस तरह से मौसम का पूर्वानुमान और निर्धारण किया जाता है।
0.5
5,034.578233
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%AE
मौसम
सौर दूरी का सीधा संबंध तापमान से है, इसलिए सौर दूरी मौसम को नियंत्रित करने वाले कारकों में से एक है। सौर दूरी अपनी भ्रमण कक्षा के दौरान पृथ्वी से अपनी दूरी बदलती रहती है, जिसके परिणामस्वरूप निकटतम और सबसे दूर दोनों स्थानों के बीच तापमान में 4℉ तक का अंतर होता है। ग्रह के दोलनशील झुकाव का मौसम पर कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है क्योंकि सूर्य की ओर झुकाव या उससे दूरी और एक वर्ष से अधिक यह निर्धारित करता है कि ग्रह के उस हिस्से को कितनी गर्मी प्राप्त होगी। जब एक गोलार्ध सीधे सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आता है, तो गर्मी का अनुभव होता है; जब यह सूर्य से दूर तिरछा हो जाता है, तो सर्दी का अनुभव होता है।
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5,034.578233
20231101.hi_9003_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%AE
मौसम
मौसम अक्षांशीय स्थान के अनुसार परिवर्तित होता है। उदाहरण के लिए, भूमध्य रेखा के पास मौसम में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होता है, क्योंकि उस अक्षांश पर लगभग समान मात्रा में यानी हर दिन लगभग 12 घंटे धूप मिलती है। हालाँकि, जब आप भूमध्य रेखा से आगे बढ़ते हैं, तो आपको मौसम के अनुसार कम या ज्यादा धूप दिखाई देती है। ध्रुवीय क्षेत्रों में गर्मियों में असामान्य रूप से लंबे दिन और सर्दियों में अविश्वसनीय रूप से लंबी रातें होती हैं। जैसे-जैसे आप भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण की ओर बढ़ते हैं, गर्मी और सर्दी दोनों का तापमान धीरे-धीरे कम हो जाता है।
0.5
5,034.578233
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%AE
मौसम
सौर विकिरण पृथ्वी को गर्म करता है, लेकिन यह असमान रूप से होता है। हवा के गर्म और ठंडे जेबें, जिन्हें वाताग्र कहा जाता है, के बीच वायुदाब में परिवर्तन से वायुदाब में परिवर्तन होता है। जब जेबों का तापमान बहुत भिन्न होता है, तो वे मिश्रण करने का प्रयास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप गति और दबाव होता है। जब वे बहुत भिन्न नहीं होते हैं, तो वायुमंडल कम परिवर्तित होता है, जिसके परिणामस्वरूप मौसम का परिवर्तन कम होता है।
0.5
5,034.578233
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%AE
मौसम
जल की उपस्थिति मौसम के को परिवर्तित करने में अहम भूमिका निभाती है। आस-पास के जल निकायों से वाष्पीकरण से वातावरण में नमी बढ़ जाती है, यही कारण है कि प्रमुख महासागरों या झीलों के पास, उदाहरण के लिए, अक्सर रेगिस्तान की तुलना में अधिक नमी होती है। पानी के बड़े भंडार भी हवाएँ उत्पन्न करते हैं क्योंकि ज़मीन और पानी के बीच तापमान का अंतर दिन भर हवाओं को अंदर यानी भूमि की ओर ले जाता है और रात के समय फिर से समुद्र या झीलों की ओर चला जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%AE
मौसम
किसी भी क्षेत्र के मौसम में परिवर्तन विभिन्न कारणों द्वारा प्रभावित होता है। जैसा की हम जानते है मौसम को प्रभावित करने वाली एक तत्व है क्षोभमंडल, वायुमंडल का सबसे निचला क्षेत्र जो पृथ्वी की सतह से ध्रुवों पर 6-8 किमी (4-5 मील) और भूमध्य रेखा पर लगभग 17 किमी (11 मील) तक फैला हुआ है। मौसम काफी हद तक क्षोभमंडल तक ही सीमित है क्योंकि यहीं पर लगभग सभी बादल आते हैं और वर्षा होती है। क्षोभमंडल और उससे ऊपर के ऊंचे क्षेत्रों में होने वाली घटनाएं, जैसे कि जेट स्ट्रीम और ऊपरी हवा की लहरें, समुद्र-स्तर के वायुमंडलीय-दबाव पैटर्न-तथाकथित ऊंचाई और चढ़ाव-को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं और इस तरह स्थलीय सतह पर मौसम की स्थिति को प्रभावित करती हैं। भौगोलिक विशेषताएं, विशेष रूप से पहाड़ और पानी के बड़े निकाय (उदाहरण के लिए, झीलें और महासागर), भी मौसम को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, हाल के शोध से पता चला है कि समुद्र की सतह के तापमान की विसंगतियाँ लगातार मौसमों में और दूर के स्थानों पर वायुमंडलीय तापमान की विसंगतियों का एक संभावित कारण है। समुद्र और वायुमंडल के बीच मौसम को प्रभावित करने वाली ऐसी अंतःक्रियाओं की एक अभिव्यक्ति को अल नीनो / दक्षिणी दोलन (ENSO) कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि ENSO न केवल भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में असामान्य मौसम की घटनाओं (उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में अत्यधिक गंभीर सूखा और 1982-83 में पश्चिमी दक्षिण अमेरिका में मूसलाधार बारिश) के लिए जिम्मेदार है, बल्कि अक्षांश में समय-समय पर मध्य में होने वाली घटनाओं के लिए भी जिम्मेदार है। उदाहरण के लिए, पश्चिमी यूरोप में सामान्य अंकित तापमान से भी उच्च गर्मी तापमान का और 1982-83 में मध्य संयुक्त राज्य अमेरिका में असामान्य रूप से वसंत ऋतु भारी वर्षा का होना। 1997-98 ENSO की घटना संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में सर्दियों के तापमान के औसत से काफी ऊपर होने से जुड़ी थी।
0.5
5,034.578233
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
काव्यशास्त्र
(5) ध्वनि संप्रदाय का प्रवर्तन आनन्दवर्धन (नवम शताब्दी का उत्तरार्ध) ने अपने युगान्तरकारी ग्रंथ "ध्वन्यालोक" में किया तथा इसका प्रतिष्ठापन अभिनव गुप्त (१०वीं शताब्दी) ने ध्वन्यालोक की लोचन टीका में किया। मम्मट (11वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), रुय्यक (12वीं शताब्दी का पूर्वार्ध), हेमचन्द्र (12वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), पीयूषवर्ष जयदेव (13वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), विश्वनाथ कविराज (14वीं शताब्दी का पूर्वार्ध), पंडितराज जगन्नाथ (17वीं शताब्दी का मध्यकाल)--इसी संप्रदाय के प्रतिष्ठित आचार्य हैं।
0.5
5,027.908734
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
काव्यशास्त्र
(6) औचित्य संप्रदाय के प्रतिष्ठाता क्षेमेन्द्र (११वीं शताब्दी का मध्यकाल) ने भरत, आनन्दवर्धन आदि प्राचीन आचार्यों के मत को ग्रहण कर काव्य में औचित्य तत्त्व को प्रमुख तत्त्व अंगीकार किया तथा इसे स्वतंत्र संप्रदाय के रूप में प्रतिष्ठित किया। अलंकारशास्त्र इस प्रकार लगभग दो सहस्र वर्षों से काव्यतत्वों की समीक्षा करता आ रहा है।
0.5
5,027.908734
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काव्यशास्त्र
यह शास्त्र अत्यन्त प्राचीन काल से काव्य की समीक्षा और काव्य की रचना में आलोचकों तथा कवियों का मार्गनिर्देश करता आया है। यह काव्य के अंतरंग और बहिरंग दोनों का विश्लेषण बड़ी मार्मिकता से प्रस्तुत करता है। समीक्षासंसार के लिए अलंकारशास्त्र की काव्यतत्वों की चार अत्यंत महत्वपूर्ण देन है जिनका सर्वांग विवेचन, अंतरंग परीक्षण तथा व्यावहारिक उपयोग भारतीय साहित्यिक मनीषियों ने बड़ी सूक्ष्मता से अनेक ग्रंथों में प्रतिपादित किया है। ये महनीय काव्य तत्त्व हैं--औचित्य, वक्रोक्ति, ध्वनि तथा रस।
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काव्यशास्त्र
औचित्य का तत्त्व लोक व्यवहार में और काव्यकला में नितांत व्यापक सिद्धांत है। औचित्य के आधार पर ही रसमीमांसा का प्रासाद खड़ा होता है। आनन्दवर्धन की यह उक्ति समीक्षाजगत् में मौलिक तथ्य का उपन्यास करती है कि अनौचित्य को छोड़कर रसभंग का कोई दूसरा कारण नहीं है और औचित्य का उपनिबंधन रस का रहस्यभूत उपनिषत् है-
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काव्यशास्त्र
वक्रोक्ति लोकातिक्रांत गोचर वचन के विन्यास की साहित्यिक संज्ञा है। वक्रोक्ति के माहात्म्य से ही कोई भी उक्ति काव्य की रसपेशल सूक्ति के रूप में परिणत होती है। यूरोप में क्रोचे द्वारा निर्दिष्ट "अभिव्यंजनावाद" (एक्सप्रेशनिज्म) वक्रोक्ति को बहुत कुछ स्पर्श करनेवाला काव्यतत्व है।
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काव्यशास्त्र
ध्वनि का तत्त्व संस्कृत आलोचना की तीसरी महती देन है। हमारे आलोचकों का कहना है कि काव्य उतना ही नहीं प्रकट करता जितना हमारे कानों को प्रतीत होता है, प्रत्युत वह नितांत गूढ़ अर्थों को भी हमारे हृदय तक पहुँचाने की क्षमता रखता है। यह सुंदर मनोरम अर्थ "व्यंजना" नामक एक विशिष्ट शब्दव्यापार के द्वारा प्रकट होता है और इस प्रकार व्यंजक शब्दार्थ को ध्वनिकाव्य के नाम से पुकारते हैं। सौभाग्य की बात है कि अंग्रेेजी के मान्य आलोचक एबरक्रांबी तथा रिचर्ड्स की दृष्टि इस तत्त्व की ओर अभी-अभी आकृष्ट हुई है।
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काव्यशास्त्र
रसतत्व की मीमांसा भारतीय आलोचकों के मनोवैज्ञानिक समीक्षापद्धति के अनुशीलन का मनोरम फल है। काव्य अलौकिक आनंद के उन्मीलन में ही चरितार्थ होता है चाहे वह काव्य श्रव्य हो या दृश्य। हृदयपक्ष ही काव्य का कलापक्ष की अपेक्षा नितांत मधुरतर तथा शोभन पक्ष है, इस तथ्य पर भारतीय आलोचना का नितांत आग्रह है।
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काव्यशास्त्र
भारतीय आलोचना जीवन की समस्या को सुलझाने वाले दर्शन की छानबीन से कथमपि परांमुख नहीं होती और इस प्रकार यह पाश्चात्य जगत् के तीन शास्त्रों-- "पोएटिक्स", "रेटारिक्स" तथा "ऐस्थेटिक्स"- का प्रतिनिधित्व अकेले ही अपने आप करती है। प्राचीनता, गंभीरता तथा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण में यह पश्चिमी आलोचना से कहीं अधिक महत्वशाली है; इस विषय में दो मत नहीं हो सकते।
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काव्यशास्त्र
काव्य, मनुष्य-चेतना की महत्तम सृष्टि है। काव्यशास्त्र में काव्य का विश्लेषण किया जाता है। काव्य का लक्षण निर्धारित करना ही काव्यशास्त्र का प्रयोजन है। लक्षण का अर्थ है, 'असाधारण अर्थ'। वस्तुतः कोई कृति साहित्यिक कृति है या नहीं, यह जानना आवश्यक है और इसी के लिए यह जानना आवश्यक हो जाता है कि साहित्यिक दृषिटकोण क्या है या साहित्य (काव्य) क्या है, उसकी परिभाषा क्या है। दूसरे शब्दों में, काव्य का वह असाधारण धर्म क्या है जिसमें काव्य, 'काव्य' कहलाता है।
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मिश्रातु
(8) डेल्टा धातु (Delta metal) - इसमें ताँबा 56-54, जस्ता 40-44, लोहा 0.9-1.3, मैंगनीज 0.8-1.4 और सीसा 0.4-1.8 प्रतिशत तक होता है। यह मृदु इस्पात के समान मजबूत है, किंतु उसकी तरह सरलता से जंग खाकर नष्ट नहीं होती। इसका उपयोग पानी के जहाज बनाने में होता है।
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मिश्रातु
(9) डो धातु (Dow metal) - इसमें मैग्नीशियम 90-96, ऐल्युमिनियम 10-4 प्रतिशत तक तथा कुछ अंशों में मैंगनीज़ होता है। इसका उपयोग मोटर तथा वायुयान के कुछ हिस्सों को बनाने में होता है।
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मिश्रातु
(10) जर्मन सिलवर - इसमें ताँबा 55, जस्ता 25 और निकल 20 प्रतिशत होता है। कुछ वस्तुओं को बनाने में चाँदी के स्थान पर इसका उपयोग करते हैं, क्योंकि इससे बनी वस्तुएँ चाँदी के समान ही होती हैं।
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मिश्रातु
(11) हरित स्वर्ण (Green gold) - इसमें सोना, चाँदी और कैडमियम, क्रमश: 75, 11-25 तथा 13-0 प्रतिशत तक, होते हैं। इसके आभूषण बनाए जाते हैं।
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मिश्रातु
(12) गन मेटल (Gun metal) - इसमें ताँबा 95-71, टिन 0-11, सीसा 0.-13, जस्ता 0-5 तथा लोहा 0-1.4 प्रतिशत तक होता है। इससे बटन, बिल्ले, थालियाँ तथा दाँतीदार चक्र (gear) बनाए जाते हैं।
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