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प्रत्यास्थता
किसी वस्तु पर लगाया गया बल, किसी बिंदु विशेष पर कार्य न कर, उसके किसी तल पर कार्य करता है। फलस्वरूप इसकी आंतरिक प्रतिक्रिया होती है। अत: इस आंतरिक प्रतिक्रिया की माप ईकाई क्षेत्र पर कार्यरत बल से की जाती है, जिसे प्रतिबल (Stress) कहते हैं।
0.5
3,499.931696
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प्रत्यास्थता
इसी प्रकार, वाह्य बल के फलस्वरूप किसी वस्तु की ईकाई लम्बाई में उत्पन्न परिवर्तन (वृद्धि या कमी) विकृति (strain) कहलाती है।
1
3,499.931696
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प्रत्यास्थता
किसी पदार्थ पर बाह्य तनाव (tension) के कारण तनाव की दिशा में कार्यरत प्रतिबल एवं उसी रेखा में उत्पन्न विकृति से रैखिक प्रत्यास्थता का ज्ञान होता है। किसी पदार्थ के लिये प्रतिबल एवं विकृति का अनुपात (प्रतिबल/विकृति) एक स्थिरांक होता है जिसे यंग प्रत्यास्थता गुणांक (Young's Modulus Of Elasticity) कहते हैं।
0.5
3,499.931696
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प्रत्यास्थता
इस रैखिक प्रतिबल के कारण रैखिक विकृति के साथ-साथ अनुप्रस्थ दिशा में भी विकृति उत्पन्न हो जाती है। जैसे - किसी तार के एक सिरे को बाँध कर दूसरे सिरे पर भार लटकाया जाय, तो तार की लंबाई में वृद्धि होगी ही, पर साथ ही साथ इसके व्यास में भी कमी आ जाएगी।
0.5
3,499.931696
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प्रत्यास्थता
प्रति इकाई प्रतिबल से उत्पन्न अनुप्रस्थ विकृति पदार्थ के लिये पॉसों अनुपात (या पॉयजन अनुपात-Poisson's Ratio) कहलाती है।
0.5
3,499.931696
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प्रत्यास्थता
जब पदार्थ को सभी दिशाओं से दबाया जाय, या दबाव डाला जाय, तब वस्तु के आयतन में विकृति होती है। इस अवस्था में ईकाई आयतन में विकृति लानेवाले प्रतिबल को आयतन प्रत्यास्थता गुणांक (Bulk Modulus Of Elasticity) कहते हैं। यंग गुणांक, प्वासॉन अनुपात एवं आयतन प्रत्यास्थता गुणांक के बीच सरलता के साथ संबंध निकाला जा सकता है।
0.5
3,499.931696
20231101.hi_1484987_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%A3
ऋण
जब कोई पार्टी या निगम बड़ी खरीदारी या निवेश करने के लिए धन उधार लेता है जो आम तौर पर वहन करने योग्य नहीं होता है और उसे एक निश्चित समय के भीतर ब्याज सहित चुकाना होता है, तो ऐसी उधार ली गई राशि को ऋण कहा जाता है।
0.5
3,499.053222
20231101.hi_1484987_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%A3
ऋण
यह समझने के बाद कि "ऋण क्या है?" आइए इसके प्रकार पर चलते हैं। ऋण को चार प्रमुख श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:
0.5
3,499.053222
20231101.hi_1484987_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%A3
ऋण
संपार्श्विक ऋण को सुरक्षित ऋण के रूप में जाना जाता है। यहां उधार ली गई राशि को ऋण को कवर करने के लिए पर्याप्त मूल्य की संपत्ति और संपत्तियों जैसे संपार्श्विक द्वारा सुरक्षित और समर्थित किया जाता है।
0.5
3,499.053222
20231101.hi_1484987_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%A3
ऋण
यहां जिन संपार्श्विक का उपयोग किया जा सकता है वे हैं निवेश, प्रतिभूतियां, नावें, वाहन, संपत्ति और अन्य महंगी संपत्तियां। संपार्श्विक को सुरक्षा के रूप में गिरवी रखकर एक समझौते का मसौदा तैयार किया जाता है।
0.5
3,499.053222
20231101.hi_1484987_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%A3
ऋण
यदि उधारकर्ता ऋण चुकाने में विफल रहता है, तो ऋण चुकाने के लिए इन प्रतिभूतियों का परिसमापन किया जाता है। इसलिए, जो ऋण उधारकर्ता की संपार्श्विक गिरवी रखकर सुरक्षित किए जाते हैं, उन्हें सुरक्षित ऋण के रूप में जाना जाता है।
1
3,499.053222
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%A3
ऋण
सुरक्षित ऋणों के विपरीत, असुरक्षित ऋणों को सुरक्षा के रूप में किसी संपार्श्विक द्वारा कवर करने की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसे ऋणों की सुविधा केवल उधारकर्ता की साख के आधार पर दी जाती है; इसलिए इसमें कोई संपार्श्विक असाइनमेंट शामिल नहीं है।
0.5
3,499.053222
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%A3
ऋण
स्वीकृत ऋण की राशि उधारकर्ता या देनदार की तरल नकदी और रोजगार की स्थिति सहित वित्तीय स्थिति पर निर्भर करती है।
0.5
3,499.053222
20231101.hi_1484987_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%A3
ऋण
परिक्रामी ऋण का अर्थ आवर्ती ऋण की तरह है। यहां देनदार ऋण लेता है, उसका उपयोग करता है, उसे चुकाता है और फिर दोबारा उधार लेता है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%A3
ऋण
ऐसे ऋण का एक उदाहरण क्रेडिट कार्ड है, जहां उपयोगकर्ता समय पर भुगतान के दायित्व को पूरा करने तक क्रेडिट सीमा का पुन: उपयोग कर सकता है।
0.5
3,499.053222
20231101.hi_67451_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97
पतंग
माना जाता है कि पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व तीसरी सदी में चीन में हुआ था। दुनिया की पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक "हुआंग थेग"ने बनाई थी। इस प्रकार पतंग का इतिहास लगभग २,३०० वर्ष पुराना है। पतंग बनाने का उपयुक्त सामान चीन में उप्लब्ध था जैसे:- रेशम का कपडा़, पतंग उडाने के लिये मज़बूत रेशम का धागा और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का और मज़बूत बाँस।
0.5
3,496.916106
20231101.hi_67451_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97
पतंग
हवा में डोलती अनियंत्रित डोर थामने वालों को आसमान की ऊंचाइयों तक ले जाने वाली पतंग अपने २,००० वर्षों से अधिक पुराने इतिहास में अनेक मान्यताओं, अंधविश्वासों और अनूठे प्रयोगों का आधार भी रही है। अपने पंखों पर विजय और वर्चस्व की आशाओं का बोझ लेकर उड़ती पतंग ने अपने अलग-अलग रूपों में दुनिया को न केवल एक रोमांचक खेल का माध्यम दिया, बल्कि एक शौक के रूप में यह विश्व की विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों में रच-बस गई।
0.5
3,496.916106
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97
पतंग
पतंग भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में एक शौक का माध्यम बनने के साथ-साथ आशाओं, आकांक्षाओं और मान्यताओं को पंख भी देती है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97
पतंग
पतंग का अंधविश्वासों में भी विशेष स्थान है। चीन में किंन राजवंश के शासन के दौरान पतंग उड़ाकर उसे अज्ञात छोड़ देने को अपशकुन माना जाता था। साथ ही किसी की कटी पतंग को उठाना भी बुरे शकुन के रूप में देखा जाता था।
0.5
3,496.916106
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97
पतंग
पतंग धार्मिक आस्थाओं के प्रदर्शन का माध्यम भी रह चुकी है। थाइलैंड में हर राजा की अपनी विशेष पतंग होती थी जिसे जाड़े के मौसम में भिक्षु और पुरोहित देश में शांति और खुशहाली की आशा में उड़ाते थे।
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3,496.916106
20231101.hi_67451_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97
पतंग
थाइलैंड के लोग भी अपनी प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाने के लिए वर्षा ऋतु में पतंग उड़ाते थे। दुनिया के कई देशों में २७ नवम्बर को पतंग उडा़ओ दिवस (फ्लाई ए काइट डे) के रूप में मनाते हैं।
0.5
3,496.916106
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97
पतंग
यूरोप में पतंग उड़ाने का चलन नाविक मार्को पोलो के आने के बाद आरंभ हुआ। मार्को पूर्व की यात्रा के दौरान प्राप्त हुए पतंग के कौशल को यूरोप में लाया। माना जाता है कि उसके बाद यूरोप के लोगों और फिर अमेरिका के निवासियों ने वैज्ञानिक और सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पतंग का प्रयोग किया।
0.5
3,496.916106
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पतंग
ब्रिटेन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाक्टर नीडहम ने अपनी चीनी विज्ञान एवँ प्रौद्योगिकी का इतिहास (ए हिस्ट्री ऑफ चाइनाज साइंस एण्ड टेक्नोलोजी) नामक पुस्तक में पतंग को चीन द्वारा यूरोप को दी गई एक प्रमुख वैज्ञानिक खोज बताया है। यह कहा जा सकता है कि पतंग को देखकर मन में उपजी उड़ने की लालसा ने ही मनुष्य को विमान का आविष्कार करने की प्रेरणा दी होगी।
0.5
3,496.916106
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पतंग
पतंग उड़ाने का शौक चीन, कोरिया और थाइलैंड समेत दुनिया के कई अन्य भागों से होकर भारत में पहुंचा। देखते ही देखते यह शौक भारत में एक शगल बनकर यहां की संस्कृति और सभ्यता में रच-बस गया। खाली समय का साथी बनी पतंग को खुले आसमान में उड़ाने का शौक बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के सिर चढ़कर बोलने लगा। भारत में पतंगबाजी इतनी लोकप्रिय हुई कि कई कवियों ने इस साधारण सी हवा में उड़ती वस्तु पर भी कविताएँ लिख डालीं।
0.5
3,496.916106
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हिन्दुस्तान
हिन्दुस्तान (अथवा 'हिन्दोस्तान' या 'हिन्द') भारत देश का कई भाषाओं (जैसे, उर्दू, हिन्दी, अरबी, फ़ारसी, संताली इत्यादि) में अनाधिकारिक लेकिन विख्यात नाम है।
0.5
3,496.026667
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हिन्दुस्तान
आजकल अरब देशों और ईरान में "हिन्दुस्तान" शब्द भारतीय उपमहाद्वीप के लिये प्रयुक्त होता है और भारत गणराज्य को हिन्द (अरबी : अल-हिन्द) कहा जाता है। हिंदुस्तान एवं हिन्द शब्द का प्रयोग अक्सर अरबी एवं ईरानी किआ करते थे।।
0.5
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हिन्दुस्तान
हिंदुस्तान शब्द का इतिहास हिन्दुकुश पहाड़ियों से भी जुड़ा हुआ है। हिन्दू कुश की पहाड़ियों के पीछे की जगह को ही हिंदुस्तान कहा जाता था। जब मुगल भारत में आए तो उससे पहले उन्हें इन पहाड़ियों का सामना करना पड़ा था।
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हिन्दुस्तान
हिंदुस्तान शब्द का एक और स्रोत माना जाता है। इसके अनुसार ईरानी (पर्शिया) का शब्द 'हिन्दू' एवं संस्कृत के शब्द सिन्धु से भी हिन्दुस्तान शब्द की उत्पत्ति हुई हो सकती है।
0.5
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हिन्दुस्तान
ये भी कहा जाता है कि जब दरिउस (Darius I) प्रथम ने जब सिन्धु घाटी पर अधिकार किया तो उसने सिन्धु नदी के पीछे वाली भूमि को हिन्दुस्तान कहकर पुकारा। शायद मध्य पर्शियाई काल में प्रत्यय 'स्तान' भी हिन्दू के साथ जोड़ दिया गया होगा और फिर दोनों शब्दों के योग से बना शब्द - हिन्दुस्तान।
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हिन्दुस्तान
हिन्दुस्तान शब्द के अनेक अलग अलग अर्थ हैं। हालाँकि ऐतिहासिक तौर पर ये प्रमुख रूप से गंगा के मैदानों के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। आज के समय में हिंदुस्तान शब्द केवल भारत के लिए प्रयोग किया जाता है, हिन्दुस्तानी शब्द का प्रयोग भारतीयों के लिए किआ जाता है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।
0.5
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हिन्दुस्तान
प्रायः बंगाल के निवासी हिन्दुस्तानी शब्द का प्रयोग उपरी गंगा के मैदानों में रहेने वालों के लिया करते हैं।
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हिन्दुस्तान
हिन्दुस्तानी शब्द कई बार मॉरीशस और सूरीनाम में रह रहे भारतियों मूल के निवासियों के लिए किया जाता है। जैसे डच शब्द Hindoestanen दक्षिण एशियाई लोगों के लिए किआ जाता है।
0.5
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हिन्दुस्तान
पाकिस्तान के निवासी हिन्दुस्तान शब्द का प्रयोग 'भारत' के लिए करते हैं। भारत में भी लोग हिन्दुस्तान शब्द का खूब प्रयोग करते हैं।
0.5
3,496.026667
20231101.hi_2265_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1
पोलैंड
1830 और 1863 में, पोलिश लोगों ने पोलैंड के रूसी हिस्से में रूसी ज़ारशाही के खिलाफ दो विद्रोह शुरू किए। पोलैंड के जर्मन और ऑस्ट्रियाई हिस्सों में कोई विद्रोह नहीं था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, पोलैंड स्वतंत्र हो गया जब जर्मन साम्राज्य, रूसी साम्राज्य और ऑस्ट्रिया हार गए थे। बाद में, पोलिश सेना ने 1920 में वारसॉ के पास रूसी लाल सेना को हराया जब कम्युनिस्टों ने यूरोप लेने की कोशिश की। पोलैंड ने 1918 और 1939 के बीच स्थिर समृद्धि का आनंद लिया। कई शहरों में विकास जारी रहा और पोलैंड फिर से एक शक्तिशाली देश था। देश बेहद बहुसांस्कृतिक था। पोलैंड की कुल आबादी का पोलिश लोग केवल 60% थे। कई जातीय अल्पसंख्यकों में से यहूदी, जर्मन, यूक्रेनियन, लिथुआनियाई, ऑस्ट्रियाई, हंगरी, रूसी, आर्मेनियन और तातार थे। अन्य यूरोपीय राज्यों में दमन की अपेक्षा यहूदियों का पोलिश समाज में स्वागत हुआ फलतः यह राज्य इज़राइल के बाहर कभी यहूदियों का सबसे बड़ा पालक था। द्वितीय विश्व युद्ध से पहले पोलैंड में एक बहुत बड़ी जिप्सी आबादी भी थी।
0.5
3,495.031882
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1
पोलैंड
जर्मन-पोलिश संबंध बहुत तनावपूर्ण और बुरे थे। जर्मनी लगातार धमकी दे रही थी। 1939 में, हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण करने का आदेश दिया, जिसे सोवियत संघ द्वारा समर्थित किया गया था। इस आक्रमण ने आधिकारिक तौर पर द्वितीय विश्व युद्ध शुरू किया। 2 दिन बाद इंग्लैंड और फ्रांस जर्मनी के खिलाफ पोलैंड में शामिल हो गए। चूंकि भारत ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था, इसलिए यह युद्ध में भी शामिल हो गया और नाज़ियों के खिलाफ पोलैंड की मदद की। युद्ध पोलैंड को तबाह कर दिया। नाज़ियों ने इसकी आबादी का भेदभाव किया था। यहूदियों के साथ-साथ जिप्सी, समलैंगिक और विकलांग लोगों को ऑशविट्ज़ जैसे एकाग्रता शिविरों में भेजा गया था और हत्या कर दी गई थी। सोवियत संघ ने पोलिश सेना के हजारों अधिकारियों की हत्या कर दी और पोलिश लोगों को पूर्व और पूरे एशिया में सोवियत कार्य शिविरों में निर्वासित कर दिया। युद्ध 1945 में समाप्त हुआ।
0.5
3,495.031882
20231101.hi_2265_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1
पोलैंड
बाद में सोवियत संघ पोलैंड के साथ दोस्त बन गया और एक कम्युनिस्ट सरकार को लागू किया जब स्टालिन ने मध्य और पूर्वी यूरोप पर कब्जा कर लिया। सोवियत संघ ने पोलैंड के खिलाफ अपने अत्याचारों को छुपाया और सुलह चाहते थे। पोलैंड एक स्वतंत्र देश था, लेकिन सोवियत गठबंधन का हिस्सा था। 1980 के दशक में, पोलैंड के लोग सोवियत नियंत्रण से नाराज हो गए और 1989 में लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ एवं लेख़ व़ावेंसा गणतंत्र के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए और पोलैंड में साम्यवाद का नाश हुआ। पोलैंड ने सोवियत गठबंधन छोड़ने और सोवियत संघ के साथ संबंध तोड़ने का फैसला किया, इस प्रकार 1991 में सोवियत संघ के पतन में योगदान दिया।
0.5
3,495.031882
20231101.hi_2265_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1
पोलैंड
पोलैंड 1989 से काफी विकसित हुआ है। इसकी अर्थव्यवस्था यूरोप में सबसे बड़ी और सबसे गतिशील में से एक बन गई है। वर्तमान में, यह एक विकसित और उच्च आय वाला देश है। पोलैंड नाटो का हिस्सा है और 2003 में इराक में नाटो ऑपरेशन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पोलिश पर्यटन क्षेत्र भी विस्तार कर रहा है। यह जर्मन, चेक, स्वीडिश और यूक्रेनी लोगों के लिए पसंदीदा यात्रा स्थलों में से एक है। अपने लंबे इतिहास के कारण, पोलैंड में कई वास्तुशिल्प चमत्कार हैं।
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पोलैंड
पौलैंड west m जर्मनी से, दक्षिण में चेक गणराज्य और स्लोवाकिया , east m belarus and ukraine उत्तर में लिथुआनिया और रूस के कालिनीग्राड प्रांत से और उत्तर में बाल्टिक सागर से घिरा हुआ है। ओडर-नीस नदियाँ जर्मनी और पोलैंड के बीच की अधिकांश सीमा को अंकित करती हैं।
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पोलैंड
पोलैंड का भूभाग विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में बंटा हुआ है। इसके उत्तर-पश्चिमी भाग में बाल्टिक तट अवस्थित है जो कि पोमेरेनिया की खाड़ी से लेकर ग्दायींस्क के खाड़ी तक विस्तृत है। पोलैंड का दक्षिण कापेइथ़ियन पहाड़ियों से आच्छादित है। अधिकांश देश अपने सपाट मैदानों, मीडोज और जंगलों द्वारा विशेषता है। पोलैंड यूरोप में भौगोलिक दृष्टि से सबसे विविध देशों में से एक है।
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पोलैंड
अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर वन पोलैंड के भूमि क्षेत्र का लगभग 30.5% कवर करते हैं। इसका कुल प्रतिशत अभी भी बढ़ रहा है।
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पोलैंड
पोलैंड के क्षेत्र का 1% से अधिक 23 पोलिश राष्ट्रीय उद्यान के रूप में संरक्षित है। मासुरिया, पोलिश जुरा और पूर्वी बेस्कीड्स के लिए तीन और राष्ट्रीय उद्यान पेश किए गए हैं। इसके अलावा, उत्तर में तटीय क्षेत्रों के रूप में, मध्य पोलैंड में झीलों और नदियों के साथ आर्द्रभूमि कानूनी रूप से संरक्षित हैं। कई प्रकृति भंडार और अन्य संरक्षित क्षेत्रों के साथ लैंडस्केप पार्क के रूप में नामित 120 से अधिक क्षेत्र हैं।
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पोलैंड
पोलैंड की बडी नदियों में विस्चुला नदी (पोलिश: Vistula, Wisła), १,०४७ कि.मि (६७८ मिल); ओडर नदी (पोलिश: Odra) - जो कि पोलैंड कि पश्चिमी सीमा रेखा का एक हिस्सा है - ८५४ कि॰मी॰ (५३१ मील); इसकी उपनदी, वार्टा, ८०८ कि॰मी॰ (५०२ मील) और बग - विस्तुला की एक उपनदी-७७२ कि॰मी॰ (४८० मील) आदि प्रधान हैं। पोमेरानिया दूसरी छोटी नदियों की भांति विस्तुला और ओडेर भी बाल्टिक समुद्र में पडते हैं। हालांकि पोलैंड की ज्यादातर नदियां बाल्टिक सागर मे गिरती हैं पर कुछेक नदियां जैसे कि डैन्यूब आदि काला सागर में समाहित होती हैं।
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तानाशाही
(2) इस व्यवस्था का दूसरा गुण देश का तेजी से विकास है। देश में एक ही नेता, एक ही योजना तथा एक ही विकास लक्ष्य रहने से देश की सम्पूर्ण शक्ति इसी लक्ष्य के मार्ग को प्रशस्त करने में प्रयुक्त होती है। आर्थिक साधनों का समुचित विकास व उपयोग सम्भव होता है। देश के विकास के लिए एकता, शान्ति व व्यवस्था की आवश्यकता होती है। अधिनायकतंत्र में इनकी ठोस व्यवस्था रहने के कारण देश के सारे साधन विकास में लगाए जा सकते हैं।
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तानाशाही
(3) देश में एकता की स्थापना में अधिनायकतंत्र बहुत सहायक रहता है। विभिन्न दलों तथा विरोधियों का दमन करके देश में एक दल व एक नेता का शासन स्थापित होने के कारण सारी जनता इसके प्रति वफादार हो जाती है। नेता के चारों तरफ, सारी व्यवस्थाएं गुंथ जाती हैं तथा देश एक ठोस एकता के सूत्र में बंध जाता है। दल या नेता एकता में बांधने का साधन हो जाता है और उसी में सबको अपनत्व का आभास होने लगता है। हिटलर व मुसोलिनी इसी तरह जर्मनी व इटली को एक करने में सफल रहे थे।
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तानाशाही
(4) राष्टींयता की भावना जाग्रत करने में सहायक है। देश के नागरिकों को पारस्परिकता में बांधने के लिए एक विचारधारा, एक दल व एक नेता का होना पर्याप्त होता हैं। सभी नागरिक बन्धुत्व की भावना से अनुप्राणित रहते हैं। एक राष्ट्र का नारा, एक ही झंडे के नीचे सबको खड़ा कर देता है। देश भक्ति का इतना प्राबल्य होता है कि नागरिक अपने देश तथा नेता के लिए बलिदान तक करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
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तानाशाही
(5) संकट काल में तानाशाही व्यवस्था सर्वोत्तम रहती है। इसमें संकट का सामना करने के लिए सभी निर्णय व आदर्श एक व्यक्ति द्वारा दिये जाने के कारण, आदेशों की एकता रहती है। इससे समय पर उचित कार्यवाही करना सरल हो जाता है। युद्धकालीन संकट में तो यही व्यवस्था विजय दिलाती है।
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तानाशाही
(6) अधिनायकतंत्र व्यवस्था में देश का बहुमुखी विकास होता है। आर्थिक क्षेत्र में भी तेजी से विकास की व्यवस्था होती है। एकता, अनुशासन व कर्तव्य-परायणता के कारण विकास की श्रेष्ठ व्यवस्था हो जाती है। रूस, जर्मनी, चीन, इटली, टर्की और स्पेन का अभी तक इतिहास इस बात का साक्षी है। जेक्सन ने अपनी पुस्तक ‘यूरोप सिन्स दी वॉर’ में ठीक ही लिखा है- ”स्पेनवासियों के इतिहास में यह पहला अवसर है जबकि रेलें समय पर चली हैं। अधिनायक के अधीन व्यापार और उद्योग समृद्ध हुए हैं। कृषि फलीफूली है। श्रम संकट दूर हो गए हैं।“
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तानाशाही
(7) कुछ विद्वान अधिनायकतंत्र को मानव-स्वभाव के अनुकूल भी मानते हैं। इसके पक्ष में उनका कहना है कि मनुष्य में स्वभावतः अपने हितों की रक्षा की इच्छा अवश्य होती है। वह अपनी रक्षा चाहता है चाहे यह किसी के द्वारा की जाय। अपनी समस्याओं का समाधान चाहता है। आम जनता को इससे कोई मतलब नहीं होता है कि उसकी रक्षा व्यवस्था कौर करता है? वह तो सुरक्षा चाहती है, अपने हितों की पूर्ति चाहती है। अधिनायकतंत्र में ऐसा सम्भव होने के कारण यह मानव स्वभाव के अनुकूल व्यवस्था भी मानी जाती है।
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तानाशाही
(8) विकासशील राज्यों के लिए राजनीतिक और आर्थिक विकास की संक्रमणकालीन परिस्थितियों में भी अधिनायकतंत्र उपयोगी माना गया है। विकासशील राज्यों में जनइच्छा की अनुशासित अभिव्यक्ति की समस्या अत्यन्त प्रबल रही है। विकास के विभिन्न चरणों को पार करने के प्रयास में नवोदित राष्ट्र जन आकांक्षाओं को जागृत तो कर देते हैं, परन्तु जन आकांक्षाएं जितनी तेजी से जागृत होती हैं, उतनी तेजी से वे उनकी पूर्ति नहीं कर पाते हैं। इसके कारण राज्य व्यवस्था पर तनाव बढ़ते हैं एवं उसके टूटने का डर रहता है। ऐसी स्थिति में राजनीतिक अनुशासन बनाए रखने के लिए अधिनायकतंत्र अधिक उपयोगी हो सकता है। हणि्ंटगटन ने ठीक ही कहा है कि ‘नवोदित राष्टोंं में प्रथम कार्य राजनीतिक सहभाग, शिक्षा आदि की वृद्धि के स्थान पर मूलभूत, संस्थात्मक ढांचे का निर्माण होना चाहिए तथा इसके लिए एकदलीय शासन या सैनिक अधिनायकतंत्र भी उपयुक्त हो सकता है।’
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तानाशाही
अधिनायकतंत्र में गुणों के होते हुए भी इस प्रणाली का किसी भी देश में लम्बी अवधि तक प्रचलन नहीं रह पाता है। इतिहास ऐसे प्रमाणों से भरा पड़ा हैं जहां कहीं भी अधिनायकतंत्र स्थापित होता है वहीं पर एक स्थिति ऐसी आती है जब जनता सत्ता सम्पन्न सर्वोच्च शासक को उखाड़ फेंकने के लिए हिंसात्मक क्रान्ति तक का सहारा लेने में नहीं हिचकिचाती है। इससे स्पष्ट है कि इस व्यवस्था में कुछ कमियां अवश्य पाई जाती हैं। संक्षेप में इस प्रणाली के दोष इस प्रकार हैं-
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तानाशाही
(1) इस व्यवस्था में व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्मान नहीं होने के कारण व्यक्ति को सब कुछ सुविधाएं होते हुए भी उसे अपने व्यक्तित्व को अपनी इच्छानुसार विकसित करने का वातावरण नहीं मिल पाता है तथा वह अपने जीवन को अपूर्ण ही रखने पर मजबूर हो जाता है। व्यक्ति को किसी भी प्रकार स्वतंत्रता नहीं रहती है। इससे उसका व्यक्तित्व दबकर रह जाता है। तानाशाही व्यवस्था में मौलिक अधिकारों एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। अतः तानाशाही व्यवस्था का सबसे बड़ा दुर्गुण व्यक्ति के व्यक्तित्व के दमन का वातावरण बनाना है।
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खुदरा
काउंटर सेवा, जहां सामान ग्राहक की पहुंच से बाहर होते हैं और उन्हें विक्रेता से ही पाया जा सकता है। इस प्रकार की खुदरा बिक्री, छोटी महंगी वस्तुओं (जैसे गहने) और नियंत्रित मदों जैसे दवा और शराब के लिए आम है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका में 1900 के दशक में आम थी और कुछ ख़ास देशों में अधिक आम है।
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खुदरा
डिलिवरी (वाणिज्य) जहां माल को सीधे उपभोक्ता के घर या कार्यस्थल पर भेजा जाता है। एक मुद्रित सूची से मेल आदेश को 1744 में आविष्कार किया गया था और यह 1800 के उत्तरार्ध और 1900 के पूर्वार्ध में लोकप्रिय था। टेलीफोन द्वारा ऑर्डर देना अब आम है, या तो एक सूची, अखबार, टेलीविजन विज्ञापन से या तत्काल सेवा के लिए स्थानीय रेस्तरां मेनू से (विशेषकर पिज्जा सुपुर्दगी के लिए). टेलीफोन आदेश उत्पन्न करने के लिए प्रत्यक्ष खरीदारी, जिसमें शामिल है टेलीमार्केटिंग और टेलीविजन शॉपिंग चैनल, का भी इस्तेमाल किया जाता है। ऑनलाइन शॉपिंग को 2000 में विकसित देशों में बाज़ार का महत्वपूर्ण हिस्सा मिलना शुरू हो गया।
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खुदरा
एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे बिक्री, जिसके तहत कभी-कभी विक्रेता बिक्री के लिए माल के साथ यात्रा करता है।
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खुदरा
कुछ दुकानें सेकेण्ड हैंड माल बेचती हैं। गैर-मुनाफा दुकान के मामले में, जनता बिक्री के लिए दुकान को दान में माल देती है। मुफ्त-दुकान में सामान को मुफ्त में पाया जा सकता है।
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खुदरा
दूसरा रूप है गिरवी की दुकान, जहां ऐसे माल बेचे जाते हैं जिन्हें ऋण के लिए संपार्श्विक रूप में इस्तेमाल किया गया है। "कन्साइनमेंट दूकान भी होती है, जो ऐसी होती हैं, जहां एक व्यक्ति एक सामान रखता है और अगर वह बिकता है तो वह व्यक्ति, दुकान मालिक को विक्रय मूल्य का कुछ प्रतिशत देता है। इस तरह सामान बेचने का लाभ यह है कि स्थापित दुकान अधिक संभावित खरीददारों के लिए वस्तु को प्रदर्शित करती है।
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खुदरा
खुदरा क्षेत्र में पर्दे के पीछे, वहां एक और पहलू काम करता है। निगम और स्वतंत्र स्टोर मालिक, समान रूप से हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त पाने की कोशिश करते रहते हैं। ऐसा करने का एक तरीका यह है कि एक क्रय-विक्रय समाधान की कंपनी को किराए पर लेना जो दुकान के प्रदर्शन को विशेष रूप से डिज़ाइन करे ताकि एक ख़ास तबके से और अधिक ग्राहकों को आकर्षित किया जा सके. देश के सबसे बड़े खुदरा विक्रेता हर साल इन-स्टोर विपणन कार्यक्रम पर लाखों रुपये खर्च करते हैं जो मौसमी और प्रोमोशन अवधि के परिवर्तनों के अनुसार बदलता रहता है। जैसे-जैसे उत्पाद बदलते हैं, वैसे-वैसे खुदरा परिदृश्य भी. खुदरा विक्रेता, पूरी तरह से वस्तुओं से भरी हुई दुकान का स्वरूप देने के लिए फेसिंग तकनीक का भी उपयोग कर सकते हैं, जब वास्तव में ऐसा न हो.
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खुदरा
एक गंतव्य दुकान वह होती है जहां जाने के लिए ग्राहक विशेष रूप से तियार होते हैं, कभी-कभी एक बड़े क्षेत्र में. इन स्टोर का अक्सर इस्तेमाल एक शॉपिंग मॉल या प्लाजा को "एंकर" करने, पैदल यात्रा को उत्पन्न करने के लिए होता है, जो छोटे खुदरा विक्रेताओं द्वारा भुनाया जाता है।
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खुदरा
"डिस्कवरी-बेस्ड रिटेल" किताब के अनुसार उपभोक्ता सेवा "उन क्रियाओं और तत्वों का योग है जो उपभोक्ताओं को आपके खुदरा अनुष्ठान से अपनी जरूरत या इच्छा की वस्तुओं को प्राप्त करने की अनुमति देते हैं।"
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खुदरा
खुदरा बिक्री की रिपोर्ट हर महीने प्रकाशित होती है। यह उपभोक्ता खर्च का मापन है, जो US GDP का एक महत्वपूर्ण सूचक है। रिटेल कंपनियां डॉलर मूल्य पर अपनी खुदरा बिक्री और माल के आंकड़े प्रदान करती हैं। अंतिम सर्वेक्षण में 12000 कंपनियां और 5000 आगामी रूप से. पूर्व अनुमानित आंकड़े, US CB पूर्ण खुदरा और खाद्य सेवा से प्राप्त उप नमूने पर आधारित है।
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डिप्थीरिया
रोहिणी या डिप्थीरिया (Diphtheria) उग्र संक्रामक रोग है, जो 2 से लेकर 11 वर्ष तक की आयु के बालकों को अधिक होता है, यद्यपि सभी आयुवालों को यह रोग हो सकता है। इसका उद्भव काल (incubation period) दो से लेकर चार दिन तक का है। रोग प्राय: गले में होता है और टॉन्सिल भी आक्रांत होते हैं। स्वरयंत्र, नासिका, नेत्र तथा बाह्य जननेंद्रिय भी आक्रांत हो सकती हैं। यह वास्तव में स्थानिक रोग है, किंतु जीवाणु द्वारा उत्पन्न हुए जीवविष के शरीर में व्याप्त होने से रुधिर विषाक्तता (Toxemia) के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। ज्वर, अरुचि, सिर तथा शरीर में पीड़ा आदि जीवविष के ही परिणाम होते हैं। इनका विशेष हानिकारक प्रभाव हृदय पर पड़ता है। कुछ रोगियों में इनके कारण हृदयविराम (heart failure) से मृत्यु हो जाती है।
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डिप्थीरिया
रोग का कारण कोराइन बैक्टीरियम डिपथीरी (Coryn bacterium diphtheriae) नामक जीवाणु होता है। यह प्राय: बिंदुसंक्रमण से तथा बालकों द्वारा एक दूसरे की पेंसिल, लेखनी आदि वस्तुओं को मुँह में रख लेने से गले की श्लैष्मिक कला में प्रविष्ट होकर वहाँ रोग उत्पन्न कर देता है, जिसके कारण उत्पन्न हुए स्त्राव में फाइब्रिन अधिक होने से स्त्राव वहाँ पर झिल्ली के रूप में एकत्र हो जाता है। उसका रंग मटमैला सा होता है और उसके पास श्लेष्मिक कला में शोथ होता है। झिल्ली नीचे मांस से चिपकी होती है और कठिनाई से पृथक् की जा सकती है। यह जीवाणु तीन प्रकार का होता है, उग्र (gravis), मध्यम (intermedians) और मृदु (mitis)। प्रथम प्रकार अत्युग्र, दूसरा उग्र और तीसरा मृदु रूप का रोग उत्पन्न करता है, जिसमें कभी कभी झिल्ली तक नहीं बनती। केवल गलशाथ के लक्षण होते हैं।
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डिप्थीरिया
कोरिनेबेक्टीरियम डिप्थेरिया और कफ के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में यह फैलता है। इसके अतिरिक्त जीवाणु एक प्रकार के जीव विष को जन्म देता है जिससे हृदय की पेशियों में सूजन आ सकती है अथवा स्नायु तंत्र की खराबी हो सकती है।
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डिप्थीरिया
झिल्ली ही रोग का विशेष लक्षण है। उपयुक्त चिकित्सा तत्काल प्रारंभ न करने से वह गले में चारों ओर से उत्पन्न होकर श्वास मार्ग तक को रोक सकती है, जिससे रोगी को श्वासकष्ट हो जाता है और फुफ्फुसों में वायु नहीं पहुँच पाती। गले में शोथ होता है। टाँन्सिल भी सूज जाते हैं। झिल्ली गले में न बनकर उसके नीचे श्वासनली (trachea) में बन सकती है। अग्रनासिका के आक्रांत होने पर नासास्राव विशेषतया अधिक होता है, किंतु श्वासकष्ट नहीं होता। नेत्र तथा जननेंद्रियों के रोग में उनपर झिल्ली एकत्र हो जाती है।
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डिप्थीरिया
रोगी को ज्वर 100°F-102°F तक रहता है। रुधिर विषाक्तता के कारण रोगी क्लांत दिखाई देता है। रोग की उग्रता उसके चेहरे तथा साधारण दशा से झलक जाती है। सिरदर्द, अरुचि, कब्ज आदि बने रहते हैं।
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डिप्थीरिया
डिपथीरिया के जीवविष हृतपेशीस्तर (myocardium) पर अपकर्षण (degeneration) प्रभाव डालते हैं। हृदय के दुर्बल हो जाने से उसके स्पंदन दुर्बल हो जाते हैं, जिससे शरीर का रक्तचाप कम हो जाता है। जितना हृद्दौर्बल्य बढ़ता है, रोगी के जीवन की आशा उतनी ही कम हो जाती है।
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डिप्थीरिया
तंत्रिकातंत्र पर भी विषों का प्रभाव होता है। गले के भीतर की पेशियों का स्तंभ प्राय: 10वें या 12वें दिन पर दिखाई पड़ता है, जो पहले वहाँ की दुर्बलता से आरंभ होता है। रोगी का शब्द अनुनासिक हो जाता है। निगलने पर जल या अन्य पेय नाक से लौट आते हैं। नेत्र की पेशियों की क्रिया का ह्रास हो सकता है, जिससे समायोजन (accommodation) क्रिया न होने से रोगी को छोटे अक्षर स्पष्ट नहीं दिखाई देते। आगे चलकर दो या तीन सप्ताह के पश्चात् और कभी कभी इससे पहले ही बहुतंत्रिकाशोथ (polyneuritis) के लक्षण प्रकट हो जाते हैं।
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डिप्थीरिया
कभी-कभी स्वरयंत्र आक्रांत हो जाता है, जिससे श्वासावरोध का डर रहता है। ऐसी दशा में तत्काल श्वासनली का वेधन (tracheotomy) करके श्वासमार्ग बनाना पड़ता है।
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डिप्थीरिया
यह प्राय: कठिन नहीं होता। रोग का संदेह होने पर यदि झिल्ली न दिखाई दे तो गले के स्त्राव की संवर्धन (culture) परीक्षाएँ आवश्यक हैं। शिक जाँच (Schick test) द्वारा रोग के वाहकों को पहचानने से रोग को रोकने में बहुत सहायता मिलती है।
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समन्वय
1 . प्रारम्भ से ही उपयोग - समन्वय का कार्य प्रबन्ध की प्रारम्भिक व्यवस्था से ही आरम्भ कर देना चाहिए। यदि प्रारम्भ से ही हम समन्वय क्रिया को अलग से नहीं करेंगे तो बाद में समन्वय स्थापित करना कठिन होगा और अनुत्पादक भी होगा। उदाहरण के लिए एक संस्था का प्रबन्धक माल खरीदने के लिए आदेश दे देता है लेकिन बाद में वित्तीय प्रबन्धक से पता चलता है कि संस्था में इसके लिए धन की व्यवस्था नहीं है तो समन्वय स्थापित करना बड़ा कठिन होगा। इसी प्रकार से यदि विक्रय प्रबन्धक अपने स्टाक के बारे में बिना जाने ही माल बेचने का आदेश स्वीकार करता है तो किसी भी दशा में माल की पूर्ति समय पर नहीं की जा सकती। अतः योजना बनाते समय ही और कार्यो को प्रारम्भ करने से पहले ही समन्वय स्थापित हो जाना चाहिए।
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समन्वय
2 . प्रत्यक्ष सम्पर्क - समन्वय का दूसरा सिद्धान्त है कि सम्पूर्ण व्यक्तियो के साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क होना चाहिए। प्रत्यक्ष सम्पर्क होने से समन्वय शीघ्र स्थापित किया जा सकता है। इससे आपसी समझ एवं सहयोग को बढ़ावा मिलता है और लालफीताशाही जन्म नहीं पाती। वैसे भी समन्वय की सफलता स्पष्ट एवं शीघ्र सवंहन पर निर्भर करती है और इसके लिए प्रत्यक्ष सम्पर्क होना आवश्यक है, जिससे कि दो व्यक्तियों तथा विभागों के बीच में किसी भी प्रकार का भ्रम पैदा न हो।
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समन्वय
3 . निरन्तरता - समन्वय के बारे में यह कहा जाता है कि यह एक निरन्तर चलती रहने वाली प्रक्रिया है। यदि इसे बीच में छोड़ दिया जाएगा तो अनेक समस्याएं पैदा हो सकती है। अतः यह आवश्यक है कि संस्था के उद्देश्यों एवं प्रयत्नों एवं कर्मचारियों, प्रगति एवं लक्ष्यों आदि के बीच निरन्तर समन्वय रहना चाहिए। कभी-कभी कुछ विशेष समन्वय समितियां समन्वय की कुछ महत्वपूर्ण समस्याओं को हल करने के लिए बनाई जाती है। लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं हो सकता। यह आवश्यक है कि समन्वय का कार्य निरन्तर चलता रहे।
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समन्वय
4 . परस्परता (Reciprocity) - विभिन्न तत्व जब एक साथ प्रयोग किए जाते है तो एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा एक दूसरे से जुड़े रहते है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सभी व्यक्तियो के कार्यो हितो आदि में एकीकरण की आवश्यकता होती है और एकीकरण करने के लिए परस्पर सम्बन्धो को ध्यान में रखकर समन्वय किया जाता है। उदाहरण के लिए विक्रय, उत्पादन, वित्त और कर्मचारी सभी विभाग एक-दूसरे से जुडे़ होते है तथा एक-दूसरे पर निर्भर होते है। यदि हम उत्पादन बढ़ाना चाहते है तो अतिरिक्त वित्त एवं कर्मचारी की आवश्यकता होगी और विक्रय प्रबन्ध को अधिक माल बेचना पड़ेगा। यदि हम कुछ कर्मचारियो को निकालते है तो एक और हमें वित्त की कुछ बचत होगी लेकिन दूसरी और उत्पादन कम होने का भय रहेगा। अतः स्पष्ट हो जाता है कि सभी व्यक्ति एवं कार्य एक दूसरे पर निर्भर होते है।
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समन्वय
1 . आदेश शृंखला द्वारा समन्वयन - संगठन सिद्धान्त के अनुसार, प्रत्येक वरिष्ठ अधिकरी को अपने अधीनस्थों को आदेश देने का अधिकार होता है। अतः अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्य उनके वरिष्ठो द्वारा समन्वित किये जाते रहे हैं। इस प्रकार आदेश श्रृखला द्वारा समन्वय स्थापित हो जाता है।
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समन्वय
2 . वैयक्तिक नेतृत्व द्वारा समन्वयन - बै्रंच के मतानुसार समन्वय एक मानवीय प्रक्रिया होती है और प्रबन्धक अपने वैयक्तिक आचरण द्वारा इसकी स्थापना करता है। सफल नेतृत्व के लिए जिन बातों की आवश्यकता होती है, उनकी आवश्यकता सफल समन्वयन के लिए भी पड़ती है।
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समन्वय
3 . समितियों द्वारा समन्वयन - कुछ समितियां केवल अनुशासन करने वाली होती हैं और कुछ निर्णय लेने वाली। अनुशासन अथवा निर्णय बहुमत पर आधारित होता है। उच्चाधिकारी समन्वय की स्थापना के लिए विभिन्न प्रमुखों की एक समिति बना देता है। इससे उसे सभी प्रकार के दृष्टिकोणों से अवगत होने का अवसर मिलता है तथा फलस्वरूप संस्था की स्थापना सुगम हो जाती है।
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समन्वय
4 . स्व-समन्वय द्वारा समन्वयन - प्रायः व्यावसायिक संस्थाओं में विभाग प्रमुख और अन्य अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र में समन्वय स्थापित करने का कार्य करते हैं। किन्तु इसके सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति होना कठिन है। यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक अधिकारी अपने-अपने कार्यक्षेत्र में समन्वय रखने के अतिरिक्त यह भी देखे कि अन्य अधिकारियों के क्रियाकलापों पर बुरा प्रभाव न पड़े।
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समन्वय
5 . सामान्य स्टाफ द्वारा समन्वयन - स्व-समन्वयन की दशा में प्रत्येक अधिकारी अपनी योजना में अन्य अधिकारियों की अपेक्षा सुविधाजनक परिवर्तन करने का विरोध करता है और अनुभव करता है कि उसे अमुक अधिकारियों की अपेक्षा कम महत्व दिया जा रहा है। इस दोष को दूर करने हेतु बड़ी संस्थाओं में सामान्य सहायकों का प्रयोग होने लगा है। सामान्य विभाग को संस्था के सभी विभागों द्वारा सूचना मिलती रहती है। अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण यह विभाग यह निश्चित कर सकता है कि किस विभाग की कौन-सी सूचना अन्य विभाग या विभागों के लिए लाभप्रद हो सकती है। इस प्रकार, सामान्य विभाग के द्वारा भी समन्वय स्थापित किया जा सकता है।
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डब्ल्यूडब्ल्यूई
रोडरिक जेम्स "जैस" मैकमोहन (Roderick James "Jess" McMahon) मुक्केबाजी के प्रवर्तक थे जिनकी उपलब्धियों में शामिल हैं १९१५ में जैश विल्यार्ड (Jess Willard) और जैक जॉनसन (Jack Johnson) के बीच एक मुक़ाबले का को-प्रोमोशन.सन् १९२६ में टेक्स रिकार्ड (Tex Rickard) (जो वास्तव में कुश्ती को घृणित कार्य मानते थे और वे अपनी सोच में इतना आगे बढ़ गए की उन्होंने १९३९ से १९४८ के बीच मैडिसन स्क्वायर गार्डन (Madison Square Garden) में होने वाले कुश्ती के मुक़ाबले बंद करवा दिए) के साथ काम करते हुए उन्होंने मैडिसन स्क्वायर गार्डन न्यूयॉर्क में मुक्केबाजी को प्रोमोट किया। उनकी सांझेदारी के दौरान पहला मुक़ाबला जैक डिलाने (Jack Delaney) और पॉल बर्लेन्बाक़ (Paul Berlenbach) के बीच एक लाईट हैवी वेट मैच था।
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डब्ल्यूडब्ल्यूई
लगभग उसी समय, पेशेवर पहलवान जोसेफ रेमंड "टूट्स" मोंड (Joseph Raymond "Toots" Mondt) ने इस खेल को दर्शकों हेतु अधिक रोचक बनाने के लिए पेशेवर कुश्ती की एक नयी शैली इजाद की जिसको वह स्लैम बेंग वेस्टर्न स्टाईल रेसलिंग कहा करता था। इसके बाद उसने रेसलिंग चैम्पियन ऐड लुईस (Ed Lewis) और उसके मेनेजर बिली सेंडो (Billy Sandow) के साथ एक प्रोमोशन की स्थापना कि. उन्होंने कई पहलवानों को गोल्ड डस्ट ट्रायो (Gold Dust Trio) के साथ अनुबंध करने के लिए राजी कर लिया। काफी सफलता मिलने के बाद अधिकारों के मुद्दे पर तीनो में असहमती हो गयी और प्रोमोशन भंग हो गया। मोंड ने कई अन्य प्रोमोटरों के साथ भागीदारी की जिनमें न्यू यार्क सिटी के जैक कर्ले (Jack Curley) भी थे। जब कर्ले मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तब मोंड न्यू यार्क रेसलिंग पर कब्ज़ा जमाने की ग़रज़ से कई बुकर्स की मदद ले रहा था, उनमें से एक था जेस मक्मोहन
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डब्ल्यूडब्ल्यूई
रोडरिक मैकमोहन और रेमंड मोंड ने मिलकर कैपिटोल रेसलिंग कोर्पोरेशन की रचना की। १९५३ में सी डबल्यू सी नैशनल रेसलिंग अलायंस (National Wrestling Alliance) में शामिल हो गया। उसी साल मोंड के सहयोगियों में से एक रे फाबियानी विन्सेंट जे. को ले कर आया। मैकमोहन (Vincent J. McMahon) प्रोमोशन में अपने पिता जेस की जगह को बदलने के लिए। मैकमोहन और मोंड की जोड़ी सफल थी और थोड़े ही समय में NWA की लगभग ७०% बुकिंग उनके हाथ में आ गयी, इसके पीछे बड़ा कारण था घनी आबादी वाले पूर्वोत्तर क्षेत्र में उनका प्रभुत्व. मोंड ने मैकमोहन को बुकिंग के बारे में सिखाया और बताया की रेसलिंग के कारोबार में कैसे काम किया जाए. पूर्वोत्तर क्षेत्र में उनके प्रभुत्व को देखते हुए अमेरिकन रेसलिंग असोसिएशन (American Wrestling Association) के लीजेंड कहे जाने वाले और डबल्यू डबल्यू ई हॉल ऑफ़ फेम (WWE Hall of Fame) निक बॉकविंकल (Nick Bockwinkel) ने सी डबल्यू सी को "पूर्वोत्तर का त्रिकोण" कहा. यह त्रिकोण (triangle) पिट्सबर्ग (Pittsburgh), वाशिंगटन डी.सी. और मेन को ज़ाहिर करता है। जो सी डबल्यू सी का इलाका मन जाता था।
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डब्ल्यूडब्ल्यूई
NWA ने एक निर्विवाद NWA विश्व हैवीवेट चैंपियन (NWA World Heavyweight Champion) को चुना जो अलायंस की एक रेसलिंग कंपनी से दूसरी रेसलिंग कंपनी में जाता था और विश्व भर में अपनी बेल्ट यानि खिताब की रक्षा करता था। १९६३ का चैम्पियन था "नेचर बॉय" बड्डी रोजर्स ("Nature Boy" Buddy Rogers)NWA के बाकी लोग मोंड के रवैये से खुश नहीं थे क्योंकि वह रोजर्स को बहुत कम ही पूर्वोत्तर से बाहर रेसलिंग करने देता था। मोंड और मैकमोहन चाहते थे कि रोजर्स NWA विश्व चैम्पियनशिप को अपने पास रखे किंतु रोजर्स बेल्ट के लिए जमा किए गए अपने २५००० डॉलर वापस चाहता था (उस समय खिताब धारी को एक जमाराशी देनी होती थी, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे विजेता के रूप में अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान बनाये रखेंगे. २४ जनवरी१९६३ को टोरंटो, ओंटारियो में रोजर्स अपनी NWA विश्व चैम्पियनशिप लू थेज़ (Lou Thesz) से एक वन-फाल मैच में हार गया। इसके विरोध स्वरुप मोंड, मैकमोहन और सीडब्ल्यूसी ने NWA छोड़ दिया तथा वर्ल्ड वाइड रेसलिंग फेडरेशन (WWWF) की स्थापना कि.
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डब्ल्यूडब्ल्यूई
अप्रैल में, रियो डी जनेरियो में संपन्न एक अपोक्रिफा (apocrypha) ल टूर्नामेंट के पश्चात रोजर्स को नयी WWWF विश्व चैम्पियनशिप से नवाज़ा गया। इसके एक महीने बाद १७ मई (May 17) १९६३ को रोजर्स और ब्रुनो सम्मरटिनो (Bruno Sammartino) के बीच मुकाबले से कुछ समय पहले रोजर्स को हार्ट अटेक (heart attack) हुआ और वह मुकाबला हार गया। रोजर्स की हालत को देखते हुए मैच अन्तिम समय के लिए बुक किया गया।
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अपने जीवन के छटे दशक के अंत में मोंड ने कंपनी छोड़ दी। यद्यपि WWWF ने NWA छोड़ दिया था फिर भी विन्स मैकमोहन सीनियर NWA के निदेशक मंडल में शामिल थे। पूर्वोत्तर क्षेत्र में कोई और इलाका नहीं तय किया जा सका। कई "चैंपियन बनाम चैंपियन" मैच हुए (आम तौर पर सभी का अंत दोहरी अयोग्यता या अन्य कोई गैर निर्णायक कारण रहा।
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मार्च १९७९ में, WWWF बन गयी वर्ल्ड रेसलिंग फेडरेशन (WWF) यह बदलाव सिर्फ़ दिखावटी था और इससे स्वामित्व तथा फ्रंट ऑफिस कर्मियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
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१९८० में विन्सेंट जे. के पुत्र मैकमोहन, विंसेंट कैनेडी मैकमोहन (Vincent Kennedy McMahon), ने टाइटन स्पोर्ट्स, इंक. की स्थापना कि और १९८२ में अपने पिता से कैपिटोल रेसलिंग कोर्पोरेशन खरीद लिया। मैकमोहन सीनियर ने लंबे समय में पूर्वोत्तर क्षेत्र को NWA का एक जीवंत सदस्य के तौर पर स्थापित कर दिया। उनको बहुत पहले ये बात समझ आ गयी थी कि पेशेवर कुश्ती वास्तविक खेल से कहीं आगे बढ़ कर एक मनोरंजन (entertainment) है। अपने पिता कि इच्छा के विपरीत मैकमोहन विस्तार प्रक्रिया आरम्भ कि जिसने मौलिक रूप से खेल को बदल दिया।
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डब्ल्यूडब्ल्यूई
केवल डब्लू डब्लू एफ ही एकमात्र ऐसी प्रोमोशन कंपनी नहीं है जिसने NWA से नाता तोड़ा हो; अमेरिकन कुश्ती संघ (American Wrestling Association) (AWA) भी लंबे समय से NWA सदस्य नहीं था। (हालांकी डब्लू डब्लू एफ कि तरह उसने बिरले ही अपना इलाका छोड़ा)। लेकिन ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जब किसी सदस्य ने इलाकाई प्रणाली (territory system) को कोई हानि पहुँचाई हो। यह पर्णाली आधी सदी से भी अधिक समय से इस उद्योग कि बुनियाद है।
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मारवाड़
ह्वेन त्सांग ने राजस्थान में एक राज्य का वर्णन किया जिसे वह कू-चा-लो कहता है(राजस्थान का प्राचीन नाम). प्रतिहार राजपुत्र, ने 6 वीं शताब्दी में मंडोर में एक राजधानी के साथ मारवाड़ में एक राज्य स्थापित किया, वर्तमान जोधपुर से 9 कि.मी. जोधपुर से 65 किमी, प्रतिहार काल का एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र था। जोधपुर का शाही राठौर परिवार प्रसिद्ध राष्ट्रकूट वंश से वंश का दावा करता है।राष्ट्रकूट वंश के पतन पर वे उत्तर प्रदेश के कन्नौज चले गए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
मारवाड़
जोधपुर राज्य की स्थापना 13 वीं शताब्दी में राजपूतों के राठौड़ वंश द्वारा की गई थी। 1194 में घोर के मुहम्मद द्वारा कन्नौज को बर्खास्त करने और 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में दिल्ली सल्तनत द्वारा इसके कब्जे के बाद, राठौर पश्चिम भाग गए। राठौड़ परिवार के इतिहासकार बताते हैं कि कन्नौज के अंतिम गढ़वाला राजा जयचंद्र के पोते सियाजी गुजरात के द्वारका की तीर्थयात्रा पर मारवाड़ आए थे। पाली शहर में रुकने पर वह और उनके अनुयायी ब्राह्मण समुदाय की रक्षा करने के लिए वहां गए। पाली के ब्राह्मणों ने सियाजी से पाली में बसने और उनका राजा बनने का अनुरोध किया। राव चंदा, सियाजी से उत्तराधिकार में दसवीं, अंत में प्रतिहारों के राजपुत्रों की मदद से मंडोर और तुर्कों से मारवाड़ का नियंत्रण छीन लिया गया। जोधपुर शहर, राठौड़ राज्य की राजधानी और अब एक जिला प्रशासनिक केंद्र, 1459 में राव चंदा के उत्तराधिकारी राव जोधा द्वारा स्थापित किया गया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
मारवाड़
1561 में मुगल सम्राट अकबर द्वारा राज्य पर आक्रमण किया गया था। जैतारण और मेड़ता के परगना मुगलों द्वारा कब्जा कर लिया गया था। लगभग दो दशकों के युद्ध और 1581 में राव चंद्रसेन राठौड़ की मृत्यु के बाद, मारवाड़ को सीधे मुगल प्रशासन में लाया गया और 1583 तक ऐसा ही रहा, जब उदय सिंह सिंहासन पर चढ़े ।
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मारवाड़
1679 ईस्वी में, जब महाराजा जसवंत सिंह, जिन्हें सम्राट औरंगजेब ने खैबर दर्रे के मुहाने पर जमरुद में तैनात किया था, उस स्थान पर उनकी मृत्यु हो गई, जिससे कोई भी पुत्र उनके उत्तराधिकारी नहीं बना; लाहौर में उनकी विधवा रानी ने दो बेटों को जन्म दिया। एक की मृत्यु हो गई और दूसरा मारवाड़ के सिंहासन को सुरक्षित करने और मुस्लिम शासकों के खिलाफ अपने सह-धर्मवादियों की भावनाओं को भड़काने के लिए बच गया। स्वर्गीय राजा के परिवार ने सम्राट की अनुमति के बिना जमरूद को छोड़ दिया था और पासपोर्ट बनाने के लिए कहने पर अटॉक के एक अधिकारी की हत्या कर दी थी। यह मुगल साम्राज्य में मारवाड़ को शामिल करने, या एक सक्षम शासक के तहत निर्भरता की स्थिति को कम करने के लिए एक पर्याप्त आधार था।इसलिए मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1679 में मारवाड़ पर आक्रमण किया। दुर्गादास राठौड़ ने 31 साल तक चलने वाले मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध का नेतृत्व किया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद, दुर्गादास ने जोधपुर पर कब्जा कर लिया और मारवाड़ से मुग़ल गैरीसन को बाहर निकाल दिया।
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मारवाड़
सभी राजपूत वंश मुगल सम्राट के आक्रामक व्यवहार के कारण एकजुट हुए। जोधपुर राज्य, उदयपुर (मेवाड़) और जयपुर साम्राज्य द्वारा स्वतंत्र होने के लिए एक ट्रिपल गठबंधन का गठन किया गया था
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मारवाड़
आंतरिक विवाद और उत्तराधिकार के युद्धों ने सदी के शुरुआती वर्षों की शांति को भंग कर दिया, जब तक कि जनवरी 1818 में जोधपुर को ब्रिटिश नियंत्रण में नहीं लाया गया। ब्रिटिश भारत की राजपुताना एजेंसी में जोधपुर एक रियासत थी।
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मारवाड़
राज्य उत्तर में बीकानेर राज्य, जयपुर राज्य द्वारा उत्तर-पूर्व में, ब्रिटिश राज्य अजमेर के पश्चिम में, मेवाड़ (उदयपुर) राज्य द्वारा दक्षिण-पूर्व में बसाया गया था, सिरोही राज्य द्वारा दक्षिण में और बंबई प्रेसीडेंसी की बनास कांथा एजेंसी, सिंध प्रांत के दक्षिण पश्चिम में, और जैसलमेर राज्य द्वारा पश्चिम में। राठौड़ महाराजा राज्य के प्रमुख थे, जिनमें जागीरदार, जामिदार और ठाकुरों का अभिजात वर्ग था। राज्य में 22 परगना और 4500 गाँव थे।
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मारवाड़
1839 में अंग्रेजों ने विद्रोह को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया। 1843 में, जब महाराजा मान सिंह (1803–1843 का शासन) एक बेटे के बिना और एक वारिस को गोद लिए बिना मर गए। रईसों के पास से एक उत्तराधिकारी का चयन करने के लिए रईसों और राज्य के अधिकारियों को छोड़ दिया गया था। उनकी पसंद अहमदनगर के राजा तख्त सिंह पर गिरी। 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों का समर्थन करने वाले महाराजा तख्त सिंह की 1873 में मृत्यु हो गई थी। उनके उत्तराधिकारी, महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय, जिनकी मृत्यु 1896 में हुई थी, एक बहुत ही प्रबुद्ध शासक थे। उनके भाई, सर प्रतापसिंह ने, प्रशासन का संचालन तब तक किया, जब तक कि उनके भतीजे, सरदार सिंह, वयस्क नहीं हुए । महाराजा सरदार सिंह ने 1911 तक शासन किया। शाही सेवा घुड़सवार सेना ने तिरान अभियान के दौरान रिजर्व ब्रिगेड का हिस्सा बनाया।
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मारवाड़
1899-1900 के अकाल से राजपूताना के किसी अन्य हिस्से की तुलना में मारवाड़ को बहुत अधिक नुकसान हुआ। फरवरी 1900 में 110,000 से अधिक लोग अकाल राहत की प्राप्ति में थे। 1901 में राज्य की जनसंख्या 1,935,565 थी, 1891 से 23% की गिरावट, बड़े पैमाने पर अकाल के परिणामों के कारण।
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राष्ट्रकुल
राष्ट्रमण्डल के प्रमुख, का पद, राष्ट्रमण्डल का एक औपचारिक अध्यक्षात्मक पद है। यह पद केवल एक रितिस्पद पद है, जिसके पदाधिकारी का इस संगठन के दैनिक कार्यों में किसी भी प्रकार की कोई भूमिका नहीं है। इस पद के कार्यकाल की कोई समय-सीमा नहीं है, और परंपरागत रूप से इस पद को ब्रिटिश संप्रभु पर निहित किया गया है।
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राष्ट्रकुल
ब्रिटिश संप्रभु को पूर्वतः, राष्ट्रमण्डल के सारे देशों के शासक होने का दर्जा प्राप्त था, परंतु भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारत ने स्वयं को एक गणराज्य घोषित कर दिया, और भारत के सम्राट के पद को खत्म कर दिया गया। बहरहाल, भारत ने राष्ट्रमण्डल का एक सदस्य रहना स्वीकार किया। इसके पश्चात, राष्ट्रमण्डल के प्रमुख के इस पद को एक गैर-राजतांत्रिक, औपचारिक अध्यक्षात्मक उपदि के रूप में स्थापित किया गया था। कथित तौर पर, राष्ट्रमण्डल के प्रमुख को, "स्वतंत्र सदस्य राष्ट्रों की मुक्त सहचार्यता का प्रतीक" माना गया है।
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राष्ट्रकुल
इस संगठन का मुख्य निर्णयकारी पटल है, द्विवार्षिक राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक (सीएचओजीएम), जहां राष्ट्रमंडल देशों के शासनाध्यक्ष, जिनमें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपतिगण शामिल हैं, आपसी हितों के मामलों पर चर्चा करने के लिए कई दिनों हेतु एकत्रित होते हैं। यह बैठक राष्ट्रमंडल प्रधानमंत्रियों की बैठकों का उत्तराधिकारी है तथा उससे भी पहले की, इंपीरियल सम्मेलन और औपनिवेशिक सम्मेलन की भी, जिन्हें १८८७ से आयोजित किया जाता रहा है। इसके अलावा, वित्त मंत्रियों, कानून मंत्रियों, स्वास्थ्य मंत्रियों आदि की नियमित बैठकें भी होती हैं। उनके समक्ष विशेष सदस्यों के रूप में बकाया राशि के सदस्यों को या तो मंत्रिस्तरीय बैठकों या शासनाध्यक्ष-स्तरीय बैठकों में प्रतिनिधि भेजने के लिए आमंत्रित नहीं किया जाता है।
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राष्ट्रकुल
शासनाध्यक्षों की बैठक की मेजबानी करने वाले सरकार के प्रमुख को राष्ट्रमंडल पदासीन (कॉमनवेल्थ चेयरपर्सन-इन-ऑफिस) कहा जाता है जो अगकी बैठक तक इस पड़ पर बना रखता है।
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