_id
stringlengths
17
22
url
stringlengths
32
237
title
stringlengths
1
23
text
stringlengths
100
5.91k
score
float64
0.5
1
views
float64
38.2
20.6k
20231101.hi_219763_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8
ग्रीनहाउस
ग्रीनहाउस के लिए इस्तेमाल किया कांच हवा के प्रवाह के लिए एक बाधा के रूप में काम करता है और इसका प्रभाव ग्रीनहाउस के भीतर ऊर्जा को बांधकर रखने के रूप में पड़ता है, जो पौधों और इसके अंदर की जमीन दोनों को गर्म करता है। यह जमीन के पास की हवा को गर्म करता है और इस हवा को उपर उठने और बहकर दूर चले जाने से रोका जाता है। एक ग्रीनहाउस की छत के पास एक छोटी सी खिड़की खोलकर इसका प्रदर्शन किया जा सकता है: क्योंकि तापमान उल्लेखनीय रूप से काफी नीचे आ जाता है। यह सिद्धांत ठंडा करने की ऑटोवेंट स्वचालित प्रणाली पर आधारित है। एक अति लघु ग्रीनहाउस एक ठंडे फ्रेम के रूप में जाना जाता है।
0.5
3,666.028433
20231101.hi_219763_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8
ग्रीनहाउस
ग्रीनहाउस बहुत अधिक गर्मी या सर्दी से फसलों की रक्षा करते हैं, धूल और बर्फ के तूफानों से पौधों की ढाल बनते हैं और कीटों को बाहर रखने में मदद करते हैं। प्रकाश और तापमान नियंत्रण की वजह से ग्रीनहाउस कृषि के अयोग्य भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदल देता है जिससे औसत पर्यावरणों में खाद्य उत्पादन की हालत में सुधार होता है।
0.5
3,666.028433
20231101.hi_219763_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8
ग्रीनहाउस
चूंकि ग्रीनहाउस कुछ फसलों को वर्ष भर उगाने की अनुमति देता है, इसलिए ग्रीनहाउस उच्च अक्षांश पर ‍स्थित देशों में खाद्य आपूर्ति के मामले में तेजी से महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस परिसरों में से एक स्पेन के अल्मरिया का ग्रीनहाउस है, जहां ग्रीनहाउस लगभग सबको ढंके हुए होते हैं। कभी-कभी इन्हें प्लास्टिक का समुद्र कहा जाता है।
0.5
3,666.028433
20231101.hi_219763_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8
ग्रीनहाउस
ग्रीनहाउसों का उपयोग अक्सर फूल, सब्जियां, फल और तंबाकू के पौधे उगाने में होता है। अधिकांश ग्रीनहाउस परागसेचन में परागण के लिए भौंरों को पसंद किया जाता है, हालांकि कृत्रिम परागण के साथ-साथ मधुमक्खी की अन्य प्रजातियों का भी उपयोग किया गया है। साथ ही ग्रीनहाउसों में हाइड्रोपोनिक्स (जल संवर्द्धन विधि) का इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि आंतरिक स्थान का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो सके।
1
3,666.028433
20231101.hi_219763_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8
ग्रीनहाउस
सर्दियों के अंत और बसंत ऋतु के प्रारंभ में ग्रीनहाउसों में तम्बाकू के अलावा कई सब्जियों और फूलों को उगाया जाता है और फिर मौसम के गर्म होने के बाद बाहर प्रतिरोपित किया जाता है। आम तौर पर रोपाई के समय पौधे लगाने वालों को किसान बाजार में छोटे पौधे उपलब्ध होते हैं। कुछ फसलों की विशेष ग्रीनहाउस किस्मों, जैसे टमाटर का उपयोग आमतौर पर वाणिज्यिक उत्पादन के लिए किया जाता है।
0.5
3,666.028433
20231101.hi_219763_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8
ग्रीनहाउस
आउटडोर उत्पादन की तुलना में एक ग्रीनहाउस के बंद वातावरण की अपनी अनूठी आवश्यकताएं होती हैं। कीटों और रोगों तथा गर्मी और आर्द्रता की चरम सीमाओं को नियंत्रित करना होता है और पानी प्रदान करने के लिए सिंचाई आवश्यक हैं। गर्मी और प्रकाश के महत्वपूर्ण आगत की आवश्यकता हो सकती है, खासकर जब गर्म मौसम में उगने वाली सब्जियों को सर्दियों में उगाना हो।
0.5
3,666.028433
20231101.hi_219763_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8
ग्रीनहाउस
चुँकि ग्रीनहाउस के तापमान और नमी की लगातार निगरानी होनी चाहिए, ताकि सर्वोत्कृष्ट स्थिति को सुनिश्चित किया जा सके, इसके लिए दूर से आंकड़े इकट्ठा करने के लिए वायरलेस सेंसर नेटवर्क का उपयोग किया जा सकता है। ये आंकड़े एक नियंत्रण स्‍थान में संचारित किये जाते हैं और इनका उपयोग गर्म करने, ठंडा करने और सिंचाई प्रणालियों के लिए किया जाता है।
0.5
3,666.028433
20231101.hi_219763_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8
ग्रीनहाउस
पर्यावरण की दृष्टि से नियंत्रित क्षेत्रों में पौधे उगाने का विचार रोमन काल से ही अस्तित्व में है। रोमन सम्राट टाइबेरियस ककड़ी की तरह दिखने वाली एक सब्जी रोज खाते थे। रोमन किसान साल में हर दिन उनकी मेज पर उसकी उपलब्धता के लिए उसे कृत्रिम तरीके (ग्रीनहाउस प्रणाली के समान) से उगाते थे। ककड़ी के पौधे एक पहिएदार वाहन में रोपे जाते थे, जिन्हें रोज धूप में रखा जाता था और फिर रात में उन्हें गर्म रखने के लिए भीतर लाया जाता था। प्लीनी द इल्डर के वर्णन के मुताबिक ककड़ियों को ढांचों और कंकड़ीघरों, जिन्हें "स्पेकुलारिया" नाम के तेल से सने कपड़ों या सेलेनाइट (ए.के.ए. लैपिस स्पेकुलेरिस) की चादरों से चमकाया जाता था।
0.5
3,666.028433
20231101.hi_5214_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
नास्तिकता
ईश्वरवादी एक युक्ति यह दिया करते हैं कि इस भौतिक संसार में सभी वस्तुओं के अंतर्गत और समस्त सृष्टि में, नियम और उद्देश्य सार्थकता पाई जाती है। यह बात इसकी द्योतक है कि इसका संचालन करनेवाला कोई बुद्धिमान ईश्वर है इस युक्ति का अनीश्वरवाद इस प्रकार खंडन करता है कि संसार में बहुत सी घटनाएँ ऐसी भी होती हैं जिनका कोई उद्देश्य, अथवा कल्याणकारी उद्देश्य नहीं जान पड़ता, यथा अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, बाढ़, आग लग जाना, अकालमृत्यु, जरा, व्याधियाँ और बहुत से हिंसक और दुष्ट प्राणी। संसार में जितने नियम और ऐक्य दृष्टिगोचर होते हैं उतनी ही अनियमितता और विरोध भी दिखाई पड़ते हैं। इनका कारण ढूँढ़ना उतना ही आवश्यक है जितना नियमों और ऐक्य का। जैसे, समाज में सभी लोगों को राजा या राज्यप्रबंध एक दूसरे के प्रति व्यवहार में नियंत्रित रखता है, वैसे ही संसार के सभी प्राणियों के ऊपर शासन करनेवाले और उनको पाप और पुण्य के लिए यातना, दंड और पुरस्कार देनेवाले ईश्वर की आवश्यकता है। इसके उत्तर में अनीश्वरवादी यह कहता है कि संसार में प्राकृतिक नियमों के अतिरिक्त और कोई नियम नहीं दिखाई पड़ते। पाप और पुण्य का भेद मिथ्या है जो मनुष्य ने अपने मन से बना लिया है। यहाँ पर सब क्रियाओं की प्रतिक्रियाएँ होती रहती हैं और सब कामों का लेखा बराबर हो जाता है। इसके लिए किसी और नियामक तथा शासक की आवश्यकता नहीं है। यदि पाप और पुण्य के लिए दंड और पुरस्कार का प्रबंध होता तथा उनको रोकने और करानेवाला कोई ईश्वर होता; और पुण्यात्माओं की रक्षा हुआ करती तथा पापात्माओं को दंड मिला करता तो ईसामसीह और गांधी जैसे पुण्यात्माओं की नृशंस हत्या न हो पाती।
0.5
3,664.190827
20231101.hi_5214_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
नास्तिकता
(1) जो लोग वेद को परम प्रमाण नहीं मानते वे नास्तिक कहलाते हैं। इस परिभाषा के अनुसार बौद्ध, जैन और लोकायत मतों के अनुयायी नास्तिक कहलाते हैं और ये तीनों दर्शन ईश्वर या वेदों पर विश्वास नहीं करते इसलिए वे नास्तिक दर्शन कहे जाते हैं।
0.5
3,664.190827
20231101.hi_5214_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
नास्तिकता
(2) जो लोग परलोक और मृत्युपश्चात् जीवन में विश्वास नहीं करते; इस परिभाषा के अनुसार केवल चार्वाक दर्शन जिसे लोकायत दर्शन भी कहते हैं, भारत में नास्तिक दर्शन कहलाता है और उसके अनुयायी नास्तिक कहलाते हैं।
0.5
3,664.190827
20231101.hi_5214_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
नास्तिकता
(3) जो लोग ईश्वर (खुदा, गॉड) के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। ईश्वर में विश्वास न करनेवाले नास्तिक कई प्रकार के होते हैं। घोर नास्तिक वे हैं जो ईश्वर को किसी रूप में नहीं मानते। चार्वाक मतवाले भारत में और रैंक एथीस्ट लोग पाश्चात्य देशें में ईश्वर का अस्तित्व किसी रूप में स्वीकार नहीं करते; अर्धनास्ति उनका कह सकते हैं जो ईश्वर का सृष्टि, पालन और संहारकर्ता के रूप में नहीं मानते।
0.5
3,664.190827
20231101.hi_5214_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
नास्तिकता
1882 और 1888 के बीच, मद्रास सेकुलर सोसाइटी ने मद्रास से द थिचर (तमिल में तट्टूविवेसिनी) नामक पत्रिका प्रकाशित की। पत्रिका ने अज्ञात लेखकों द्वारा लिखे गए लेख और लंदन सेकुलर सोसाइटी के जर्नल से पुनर्प्रकाशित आलेखों को लिखा, जो मद्रास सेक्युलर सोसाइटी को खुद से संबद्ध माना जाता था
1
3,664.190827
20231101.hi_5214_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
नास्तिकता
पेरियार ई। वी। रामसामी (1879-1973) स्व-सम्मान आंदोलन के एक नास्तिक और बुद्धिवादी नेता और द्रविड़ कज़गम थे। असंबद्धता पर उनके विचार जाति व्यवस्था के उन्मूलन पर आधारित हैं, जाति व्यवस्था के विस्मरण को प्राप्त करने के लिए धर्म को वंचित होना चाहिए।
0.5
3,664.190827
20231101.hi_5214_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
नास्तिकता
सत्येंद्र नाथ बोस (18 9 4-1974) एक नास्तिक भौतिक विज्ञानी थे जो गणितीय भौतिकी में विशेषज्ञता रखते थे। बोस-आइंस्टीन के आंकड़ों के लिए नींव और बोस-आइंस्टीन घनीभूतता के सिद्धांत को प्रदान करते हुए, 1 9 20 के दशक में क्वांटम यांत्रिकी पर उनके काम के लिए वे सबसे अच्छी तरह जानते हैं।
0.5
3,664.190827
20231101.hi_5214_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
नास्तिकता
मेघनाद साहा (18 9 3 - 1 9 56) एक नास्तिक खगोल-भौतिकवादी थे जो कि साहा समीकरण के विकास के लिए जाना जाता था, जो सितारों में रासायनिक और भौतिक स्थितियों का वर्णन करता था।
0.5
3,664.190827
20231101.hi_5214_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
नास्तिकता
जवाहरलाल नेहरू (188 9 -1964), भारत का पहला प्रधान मंत्री अज्ञेय था (नास्तिक नहीं)। [41] उन्होंने अपनी आत्मकथा, टॉवर्ड फ्रीडम (1 9 36), धर्म और अंधविश्वास पर अपने विचारों के बारे में लिखा था। [42]
0.5
3,664.190827
20231101.hi_26949_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE
चिंता
यार्केस-डोडसन नियम के अनुसार एक कार्य को सर्वश्रेष्ठ रूप में पूरा करने के लिए उत्तेजना का एक इष्टतम स्तर, आवश्यक है जैसे कि एक परीक्षा, प्रदर्शन या प्रतिस्पर्धी घटना।. हालांकि, जब चिंता या उत्तेजना के स्तर इष्टतम से अधिक होता है, तब परिणाम प्रदर्शन में गिरावट होता है।
0.5
3,663.493441
20231101.hi_26949_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE
चिंता
असफलता से डरे हुए छात्रों में महसूस की जाने वाली बेचैनी, आशंका, या घबराहट, परीक्षा की चिंता है। छात्र जिन्हें परीक्षण चिंता है निम्न में से कुछ भी अनुभव कर सकते हैं व्यक्तिगत मूल्य का ग्रेड के साथ जुड़ना, शिक्षक द्वारा परेशान किये जाने का भय, माता –पिता या मित्रों से अलगाव का भय समय का दबाव या नियन्त्रण खोने का भाव। पसीना, चक्कर आना, सिर दर्द, रेसिंग दिल की धड़कन, मतली, व्यग्र होना और एक डेस्क बजाना सब सामान्य हैं। क्योंकि परीक्षण चिंता नकारात्मक मूल्यांकन के डर पर टिकी होती है, बहस मौजूद है कि क्या परीक्षण चिंता अपने आप में एक अनूठा दुष्चिन्ता विकार या क्या यह सामाजिक भय की एक विशिष्ट प्रकार है।
0.5
3,663.493441
20231101.hi_26949_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE
चिंता
जबकि शब्द "परीक्षण चिंता" विशेष रूप से छात्रों के संबंध में संदर्भित है, कई कार्यकर्ता उसी अनुभव को अपने कैरियर या व्यवसाय में समान रूप से मह्सूस करते हैं। एक कार्य के असफल रहने का भय और उस के लिए नकारात्मक मूल्यांकन किया जाना वयस्क पर भी एक इसी तरह नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
0.5
3,663.493441
20231101.hi_26949_19
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE
चिंता
जब अज्ञात लोगों के साथ मिलते या बातचीत करते समय चिंता युवा लोगों में विकास की एक आम अवस्था है। दूसरों में, यह वयस्कता तक बनी रह्ती है और सामाजिक चिंता या सामाजिक भय बन जाती है। छोटे बच्चों में " अजनबी चिंता" एक डर नहीं है। बल्कि, यह लड़खड़ा के चलने वालों (toddlers) और पूर्वस्कूली बच्चों का, उनसे जो माता-पिता या परिवार के सदस्य नहीं हैं, एक उन्नतशील (developmentally) उपयुक्त डर है। वयस्कों में, अन्य लोगों से अत्यधिक डर एक सामान्य् उन्नतशील (developmentally) अवस्था नहीं है यह एक सामाजिक चिंता कहलाती है।
0.5
3,663.493441
20231101.hi_26949_20
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE
चिंता
चिंता या तो एक छोटी अवधि की 'दशा' या एक लंबी अवधि के "लक्षण" हो सकती है। धमकी की प्रत्याशा में चिंता की अवस्था का प्रत्युत्तर देने के लिये लक्षण चिंता स्थिर प्रवृत्तियों को परावर्तित करती हैं। [33] यह नयोरोटोसिस्म (neuroticism) के लक्षण वाले व्यक्तित्व से निकटता से संबंधित है।
1
3,663.493441
20231101.hi_26949_21
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE
चिंता
लोगों और संगठनों के लिए समान विकल्पों के बीच चयन की आवश्यकता द्वारा उत्पन्न चिंता तेजी से पहचानी जा रही है। [35] [36] "आज हम सब अपने विकल्पों पर विचार या सही सलाह करने के लिए अधिक विकल्प, अधिक प्रतियोगिता और समय की कमी का सामना कर रहे हैं"[37]
0.5
3,663.493441
20231101.hi_26949_22
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE
चिंता
असत्यवत चिंता तरीकों या तकनीक से उतपन्न चिंता है जो सामान्य रूप से चिंता को कम करने के लिये प्रयोग कि जाती हैं। इसमें विश्राम या ध्यान की तकनीक भी शामिल है।[40]
0.5
3,663.493441
20231101.hi_26949_23
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE
चिंता
इसके साथ साथ कुछ निश्चित दवायें भी उपयोग की जाती हैं।[42] कुछ बौद्ध ध्यान साहित्य में इस प्रकार वर्णित है कि कुछ है जो स्वाभाविक रूप से उठता है और उसे भावनाओं की प्रकृति का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने तथा आत्मा की प्रकृति को और अधिक गहराई से जानने के लिये, सावधानी से विस्तारित कर, मोड़ देना चहिये, हालांकि लेखन के धार्मिक संदर्भ के कारण यह प्रभाव वहाँ चिंता के रूप में संदर्भित नहीं किया गया है। [44]
0.5
3,663.493441
20231101.hi_26949_24
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE
चिंता
सकारात्मक मनोविज्ञान में, चिंता को एक ऐसी मुश्किल चुनौती के लिए जवाबी कार्रवाई के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका सामना करने के लिये व्यक्ति अपर्याप्त कौशल रखता है।[46]
0.5
3,663.493441
20231101.hi_11158_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9A
घटोत्कच
घटोत्कच भीम और हिडिंबा का पुत्र था और बहुत बलशाली था। घटोत्कच बर्बरीक (खाटू श्याम) का पिता था। वह महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक था।
0.5
3,653.094617
20231101.hi_11158_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9A
घटोत्कच
लाक्षागृह के दहन के पश्चात सुरंग के रास्ते लाक्षागृह से निकल कर पाण्डव अपनी माता के साथ काम्यक वन के अन्दर चले गये। कई कोस चलने के कारण भीमसेन को छोड़ कर शेष लोग थकान से बेहाल हो गये और एक वट वृक्ष के नीचे लेट गये। माता कुन्ती प्यास से व्याकुल थीं इसलिये भीमसेन किसी जलाशय या सरोवर की खोज में चले गये। एक जलाशय दृष्टिगत होने पर उन्होंने पहले स्वयं जल पिया और माता तथा भाइयों को जल पिलाने के लिये लौट कर उनके पास आये। वे सभी थकान के कारण गहरी निद्रा में निमग्न हो चुके थे अतः भीम वहाँ पर पहरा देने लगे।
0.5
3,653.094617
20231101.hi_11158_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9A
घटोत्कच
उस वन का राजा हिडिंब नाम का एक भयानक असुर था । मानवों का गंध मिलने पर उसने पाण्डवों को पकड़ लाने के लिये अपनी बहन हिडिंबा को भेजा ताकि वह उन्हें अपना आहार बना कर अपनी क्षुधा पूर्ति कर सके। वहाँ पर पहुँचने पर हिडिंबा ने भीमसेन को पहरा देते हुये देखा और उनके सुन्दर मुखारविन्द तथा बलिष्ठ शरीर को देख कर उन पर आसक्त हो गई। उसने अपनी राक्षसी माया से एक अपूर्व लावण्मयी सुन्दरी का रूप बना लिया और भीमसेन के पास जा पहुँची। भीमसेन ने उससे पूछा, "हे सुन्दरी! तुम कौन हो और रात्रि में इस भयानक वन में अकेली क्यों घूम रही हो?" भीम के प्रश्न के उत्तर में हिडिम्बा ने कहा, "हे नरश्रेष्ठ! मैं हिडिम्बा नाम की राक्षसी हूँ। मेरे भाई ने मुझे आप लोगों को पकड़ कर लाने के लिये भेजा है किन्तु मेरा हृदय आप पर आसक्त हो गया है तथा मैं आपको अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हूँ। मेरा भाई हिडिम्ब बहुत दुष्ट और क्रूर है किन्तु मैं इतना सामर्थ्य रखती हूँ कि आपको उसके चंगुल से बचा कर सुरक्षित स्थान तक पहुँचा सकूँ।"
0.5
3,653.094617
20231101.hi_11158_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9A
घटोत्कच
इधर अपनी बहन को लौट कर आने में विलम्ब होता देख कर हिडिम्ब उस स्थान में जा पहुँचा जहाँ पर हिडिम्बा भीमसेन से वार्तालाप कर रही थी। हिडिम्बा को भीमसेन के साथ प्रेमालाप करते देखकर वह क्रोधित हो उठा और हिडिम्बा को दण्ड देने के लिये उसकी ओर झपटा। यह देख कर भीम ने उसे रोकते हुये कहा, "रे दुष्ट राक्षस! तुझे स्त्री पर हाथ उठाते लज्जा नहीं आती? यदि तू इतना ही वीर और पराक्रमी है तो मुझसे युद्ध कर।" इतना कह कर भीमसेन ताल ठोंक कर उसके साथ मल्ल युद्ध करने लगे। कुंती तथा अन्य पाण्डव की भी नींद खुल गई। वहाँ पर भीम को एक राक्षस के साथ युद्ध करते तथा एक रूपवती कन्या को खड़ी देख कर कुन्ती ने पूछा, "पुत्री! तुम कौन हो?" हिडिम्बा ने सारी बातें उन्हें बता दी।
0.5
3,653.094617
20231101.hi_11158_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9A
घटोत्कच
अर्जुन ने हिडिम्ब को मारने के लिये अपना धनुष उठा लिया किन्तु भीम ने उन्हें बाण छोड़ने से मना करते हुये कहा, "अनुज! तुम बाण मत छोडो़, यह मेरा शिकार है और मेरे ही हाथों मरेगा।" इतना कह कर भीम ने हिडिम्ब को दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया और उसे हवा में अनेक बार घुमा कर इतनी तीव्रता के साथ भूमि पर पटका कि उसके प्राण-पखेरू उड़ गये। हिडिम्ब के बाद भीम काम्यक वन का राजा बना तथा भीम ने 20 साल काम्यक वन पर राज किया।
1
3,653.094617
20231101.hi_11158_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9A
घटोत्कच
हिडिम्ब के मरने पर वे लोग वहाँ से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा ने कुन्ती के चरणों में गिर कर प्रार्थना करने लगी, "हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिये। यदि आप लोगों ने मझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूँगी।" हिडिम्बा के हृदय में भीम के प्रति प्रबल प्रेम की भावना देख कर युधिष्ठिर बोले, "हिडिम्बे! मैं तुम्हें अपने भाई को सौंपता हूँ किन्तु यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा।" हिडिंबा इसके लिये तैयार हो गई और भीमसेन के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।
0.5
3,653.094617
20231101.hi_11158_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9A
घटोत्कच
हिडिम्बा ने अपने पुत्र को पाण्डवों के पास ले जा कर कहा, "यह आपके भाई की सन्तान है अतः यह आप लोगों की सेवा में रहेगा।" इतना कह कर हिडिम्बा वहाँ से चली गई। घटोत्कच श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम कर के बोला, "अब मुझे मेरे योग्य सेवा बतायें।? उसकी बात सुन कर कुन्ती बोली, "तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है। समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जायेगी।" इस पर घटोत्कच ने कहा, "आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेंगे, मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर घटोत्कच वर्तमान उत्तराखंड की ओर चला गया।
0.5
3,653.094617
20231101.hi_11158_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9A
घटोत्कच
घटोत्कच का विवाह दिति के पुत्र मूर की कन्या कामकटंककटा मोरवी से हुआ था और उनके तीन पुत्र हुए उनमें सबसे बड़ा पुत्र बब्बर शेर जैसे बालों वाला था इसलिए उसका नाम बर्बरीक रखा गया अन्य दो पुत्रों के नाम अंजनपर्व और मेघवर्ण रखे गए।
0.5
3,653.094617
20231101.hi_11158_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9A
घटोत्कच
आठवें दिन घटोत्कच ने कौरव सेना के कई वीरों का वध किया और दुर्योधन तथा दु:शासन को भी बुरी तरह से घायल कर दिया। इरावन ने भी अपने बड़े भाई का इस युद्ध में साथ दिया और कौरव सेना के कई शूरवीरों को मौत के घाट उतार दिया। अन्त में दुर्योधन ने अपने एक असुर मित्र अलमबुष को बुलाकर इरावन को उसके हाथों मरवा डाला। अपने छोटे भाई की मृत्यु से दुःखी एवम् क्रोधित होकर घटोत्कच ने अलाबुष का वध करने की प्रतिज्ञा की। नवें दिन अलमबुष और घटोत्कच में बहुत ही भयानक युद्ध हुआ। अन्त में घटोत्कच के हाथों अलमबुष मारा गया।
0.5
3,653.094617
20231101.hi_47049_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8
नास्त्रेदमस
इतना ही नहीं, नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी को विस्तार से समझाया है और उनकी सत्यता को प्रमाणित करने के लिए उदाहरण भी दिए हैं। इस कड़ी में इंदिरा गांधी का भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनना और उनकी हत्या निकटतम लोगों से होना का उदाहरण है। फिर राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना और आकस्मिक घटना में मृत्यु होने का उल्लेख है।
0.5
3,650.717714
20231101.hi_47049_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8
नास्त्रेदमस
भविष्य की बातों को हजारों साल पहले घोषणा करने के लिए मशहूर नास्त्रेदमस का जन्म १४ दिसम्बर १५०३ को फ्रांस के एक छोटे से गांव सेंट रेमी में हुआ। उनका नाम मिशेल दि नास्त्रेदमस था बचपन से ही उनकी अध्ययन में खास दिलचस्पी रही और उन्होनें लैटिन, यूनानी और हीब्रू भाषाओं के अलावा गणित, शरीर विज्ञान एवं ज्योतिष शास्त्र जैसे गूढ विषयों पर विशेष महारत हासिल कर ली।
0.5
3,650.717714
20231101.hi_47049_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8
नास्त्रेदमस
नास्त्रेदमस ने किशोरावस्था से ही भविष्यवाणियां करना शुरू कर दी थी। ज्योतिष में उनकी बढती दिलचस्पी ने माता-पिता को चिंता में डाल दिया क्योंकि उस समय कट्टरपंथी ईसाई इस विद्या को अच्छी नजर से नहीं देखते थे। ज्योतिष से उनका ध्यान हटाने के लिए उन्हे चिकित्सा विज्ञान पढने मांट पेलियर भेज दिया गया जिसके बाद तीन वर्ष की पढाई पूरी कर नास्त्रेदमस चिकित्सक बन गए।
0.5
3,650.717714
20231101.hi_47049_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8
नास्त्रेदमस
२३ अक्टूबर १५२९ को उन्होने मांट पोलियर से ही डॉक्टरेट की उपाधि ली और उसी विश्वविद्यालय में शिक्षक बन गए। पहली पत्नी के देहांत के बाद १५४७ में यूरोप जाकर उन्होने ऐन से दूसरी शादी कर ली। इस दौरान उन्होनें भविष्यवक्ता के रूप में खास नाम कमाया।
0.5
3,650.717714
20231101.hi_47049_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8
नास्त्रेदमस
एक किंवदंती के अनुसार एक बार नास्त्रेदमस अपने मित्र के साथ इटली की सड़कों पर टहल रहे थे, उन्होनें भीड़ में एक युवक को देखा और जब वह युवक पास आया तो उसे आदर से सिर झुकाकर नमस्कार किया। मित्र ने आश्चर्यचकित होते हुए इसका कारण पुछा तो उन्होने कहा कि यह व्यक्ति आगे जाकर पोप का आसन ग्रहण करेगा। किंवदंती के अनुसार वास्तव में वह व्यक्ति फेलिस पेरेती था जिसने १५८५ में पोप चुना गया। नास्त्रेदमस के बारे में ऐसी कई कहानियाँ हैं, लेकिन इनमें से किसी के लिए कोई सबूत नहीं है।
1
3,650.717714
20231101.hi_47049_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8
नास्त्रेदमस
नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियां की ख्याति सुन फ्रांस की महारानी कैथरीन ने अपने बच्चों का भविष्य जानने की इच्छा जाहिर की। नास्त्रेदमस अपनी इच्छा से यह जान चुके थे कि महारानी के दोनो बच्चे अल्पायु में ही पूरे हो जाएंगे, लेकिन सच कहने की हिम्मत नहीं हो पायी और उन्होंने अपनी बात को प्रतीकात्मक छंदों में पेश किया। इसक प्रकार वह अपनी बात भी कह गए और महारानी के मन को कोई चोट भी नहीं पहुंची। तभी से नास्त्रेदमस ने यह तय कर लिया कि वे अपनी भविष्यवाणीयां को इसी तरह छंदो में ही व्यक्त करेंगें।
0.5
3,650.717714
20231101.hi_47049_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8
नास्त्रेदमस
१५५० के बाद नास्त्रेदमस ने चिकित्सक के पेशे को छोड़ अपना पूरा ध्यान ज्योतिष विद्या की साधना पर लगा दिया। उसी साल से अन्होंने अपना वार्षिक पंचाग भी निकालना शुरू कर दिया। उसमें ग्रहों की स्थिति, मौसम और फसलों आदि के बारे में पूर्वानुमान होते थे। कहा जाता है कि उनमें से ज्यादातर सत्य साबित हुई। नास्त्रेदमस ज्योतिष के साथ ही जादू से जुड़ी किताबों में घंटों डूबे रहते थे।
0.5
3,650.717714
20231101.hi_47049_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8
नास्त्रेदमस
नास्त्रेदमस ने १५५५ में भविष्यवाणियों से संबंधित अपने पहले ग्रंथ सेंचुरी के प्रथम भाग का लेखन पूरा किया, जो सबसे पहले फ्रेंच और बाद में अंग्रेजी, जर्मन, इटालवी, रोमन, ग्रीक भाषाओं में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक ने फ्रांस में इतना तहलका मचाया कि यह उस समय महंगी होने के बाद भी हाथों-हाथ बिक गई। उनके कुछ व्याख्याकारों क मानना है कि इस किताब के कई छंदो में प्रथम विश्व युद्ध, नेपोलियन, हिटलर और कैनेडी आदि से संबंद्ध घटनाएं स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। व्याख्याकारों ने नास्त्रेदमस के अनेक छंदो में तीसरे विश्वयुद्ध का पूर्वानुमान और दुनिया के विनाश के संकेत को भी समझ लेने में सफलता प्राप्त कर लेने का दावा किया है। अधिकांश शैक्षणिक और वैज्ञानिक सूत्रों का कहना है कि ये व्याख्याएँ गलत अनुवाद या गलतफ़हमी का परिणाम हैं और कुछ गलतियाँ तो जानबूझकर भी की गईं हैं।
0.5
3,650.717714
20231101.hi_47049_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8
नास्त्रेदमस
नास्त्रेदमस के जीवन के अंतिम साल बहुत कष्ट से गुजरे। फ्रांस का न्याय विभाग उनके विरूद्ध यह जांच कर रहा था कि क्या वह वास्ताव में जादू-टोने का सहारा लेते थे। यदि यह आरोप सिद्ध हो जाता, तो वे दंड के अधिकारी हो जाते। लेकिन जांच का निष्कर्ष यह निकला कि वे कोई जादूगर नहीं बल्कि ज्योतिष विद्या में पारंगत है। उन्हीं दिनों जलोदर रोग से ग्रस्त हो गए। शरीर में एक फोड़ा हो गया जो लाख उपाचार के बाद भी ठीक नहीं हो पाया। उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था, इसलिए उन्होंने १७ जून १५६६ को अपनी वसीयत तैयार करवाई। एक जुलाई को पादरी को बुलाकर अपने अंतिम संस्कार के निर्देश दिए। २ जूलाई १५६६ को इस मशहूर भविष्यवक्ता का निधन हो गया। कहा जाता है कि अपनी मृत्यु की तिथि और समय की भविष्यवाणी वे पहले ही कर चुके थे।
0.5
3,650.717714
20231101.hi_9894_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF
काकभुशुण्डि
काकभुशुण्डि को राम के एक भक्त के रूप में दर्शाया गया है, जो एक कौवे के रूप में गरुड़ को रामायण की कहानी सुनाते हैं। उन्हें चिरंजीवियों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है, हिंदू धर्म में एक अमर व्यक्ति जो वर्तमान कलियुग के अंत तक पृथ्वी पर जीवित रहेगा।
0.5
3,643.610025
20231101.hi_9894_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF
काकभुशुण्डि
काकभुशुण्डि मूलतः अयोध्या के शूद्र वर्ग के सदस्य थे। देवता शिव के एक उत्साही भक्त, उन्होंने अपने गुरु के इस मानसिकता से उन्हें हतोत्साहित करने के प्रयासों के बावजूद, देवता विष्णु और वैष्णवों को तिरस्कार में रखा। एक बार, काकभुशुण्डि ने अपने गुरु को अपना सम्मान देने से इनकार कर दिया, जबकि वह एक मंदिर में शिव की प्रार्थना में लगे हुए थे। क्रोधित होकर, शिव ने अपने कृतघ्न भक्त को सर्प का रूप लेने और एक छोटे जीव के रूप में एक हजार जीवन जीने का श्राप दिया। अपने गुरु द्वारा श्राप को कम करने के लिए देवता से प्रार्थना करने के बाद, शिव ने कहा कि उनके हजार शापित जन्मों के बाद, काकभुशुंडी राम के भक्त बन जाएंगे। देवता ने उसे चेतावनी भी दी कि वह फिर कभी किसी गुरु को अप्रसन्न न करे। तदनुसार, शापित जन्मों के बाद, काकभुशुंडी एक ब्राह्मण के रूप में पैदा हुए, और राम के एक महान अनुयायी और एक ऋषि बन गए। लोमश नाम के एक ऋषि को निर्गुण (गैर-योग्य निरपेक्ष) पूजा के गुणों पर प्रवचन सुनते हुए, उन्होंने ब्राह्मण की सगुण (योग्य निरपेक्ष) पूजा की तुलना में, उन्होंने इन विचारों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। लोमश ने क्रोध में आकर उसे कौवा बनने का श्राप दे दिया।
0.5
3,643.610025
20231101.hi_9894_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF
काकभुशुण्डि
ऋषि ने गरुड़ से कहा कि हर त्रेता युग में, वह अयोध्या जाते हैं और पांच साल तक शहर में रहते हैं, बालक राम को एक कौवे के रूप में देखते हैं। एक बार, राम ने एक उत्साहित बच्चे की सभी हरकतों से उसे पकड़ने की कोशिश की। ऋषि के मन में राम की दिव्यता के बारे में संदेह का क्षण आया। जब काकभुशुण्डि ने आकाश की ओर उड़ान भरी, तब उन्होंने महसूस किया कि देवता की उंगलियाँ हमेशा उनसे केवल उँगलियों की दूरी पर थीं, यहाँ तक कि जब वे ब्रह्मलोक के लिए उड़ान भर रहे थे। जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं, तो उन्होंने खुद को वापस अयोध्या में हंसते हुए बच्चे के बीच पाया। उन्होंने राम के मुंह में एक लौकिक दृष्टि देखी, जिसमें लाखों सूर्य और चंद्रमा देखे गए, और प्रत्येक आकाशीय वस्तु के भीतर अयोध्या में स्वयं ऋषि के दर्शन हुए। वह सदियों से इन क्षेत्रों में से प्रत्येक के भीतर रहते थे, और राम के मुख से लौटकर खुद को उसी क्षण में वापस पाने के लिए पाते थे जब वह चले गए थे। हतप्रभ, उसने राम के उद्धार के लिए भीख माँगी, और उसे तुरंत ही आशीर्वाद मिल गया। उन्होंने हमेशा के लिए एक कौए के रूप में रहना चुना क्योंकि उस रूप में उनके इष्ट देवता ने उन्हें आशीर्वाद दिया था।
0.5
3,643.610025
20231101.hi_9894_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF
काकभुशुण्डि
हर्टेल, ब्राडली आर.; ह्यूम्स, सिंथिया ऐन (1993-01-01)। लिविंग बनारस: सांस्कृतिक संदर्भ में हिंदू धर्म। सनी प्रेस। पी। 279. आईएसबीएन 978-0-7914-1331-9।
0.5
3,643.610025
20231101.hi_9894_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF
काकभुशुण्डि
विलियम्स, मोनियर (1872)। एक संस्कृत-अंग्रेज़ी शब्दकोश: मोनियर विलियम्स द्वारा ग्रीक, लैटिन, गोथिक, जर्मन, एंग्लो-सैक्सन और अन्य सजातीय इंडो-यूरोपीय भाषाओं के विशेष संदर्भ के साथ व्युत्पत्ति और भाषाशास्त्र की दृष्टि से व्यवस्थित। क्लेरेंडन प्रेस। पी। 216.
1
3,643.610025
20231101.hi_9894_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF
काकभुशुण्डि
www.wisdomlib.org (2017-01-29)। "भुशुण्डि, भुशुण्डि, भुसुमदी: 15 परिभाषाएँ"। www.wisdomlib.org। 2023-02-08 को पुनःप्राप्त।
0.5
3,643.610025
20231101.hi_9894_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF
काकभुशुण्डि
ज्योतिर माया नंदा, स्वामी (2013)। रामायण का रहस्यवाद। इंटरनेट आर्काइव। गाजियाबाद: इंटरनेशनल योगा सोसाइटी। पीपी। 230–235। आईएसबीएन 978-81-85883-79-3।
0.5
3,643.610025
20231101.hi_9894_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF
काकभुशुण्डि
हर्टेल, ब्राडली आर.; ह्यूम्स, सिंथिया ऐन (1993-01-01)। लिविंग बनारस: सांस्कृतिक संदर्भ में हिंदू धर्म। सनी प्रेस। पी। 81. आईएसबीएन 978-0-7914-1331-9।
0.5
3,643.610025
20231101.hi_9894_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF
काकभुशुण्डि
दलाल, रोशन (2014-04-18)। हिंदू धर्म: एक वर्णमाला गाइड। पेंगुइन यूके। पी। 310. आईएसबीएन 978-81-8475-277-9।
0.5
3,643.610025
20231101.hi_476765_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
त्यागी पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में पायी जाने वाली एक जमींदार ब्राह्मण जाति है। त्यागी परशुराम भगवान के वंशज हैं इन्होंने ही परशुराम भगवान के साथ मिलके अधर्मी क्षत्रिय राजाओं के खिलाफ युद्ध लड़ा था और जीता भी था
0.5
3,626.460917
20231101.hi_476765_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
त्यागी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जमींदारी व् रियासतों से जाने जाते है। तलहैटा, निवाड़ी, असौड़ा रियासत, रतनगढ़, हसनपुर दरबार(दिल्ली), बेतिया रियासत, राजा का ताजपुर, बनारस राजपाठ, टेकारी रियासत, आदि बहुत सारे प्रमुख राजचिन्ह है। इसके अलावा सैकड़ो बावनी(बावन हजार बीघा जमीन वाले) गांव है।
0.5
3,626.460917
20231101.hi_476765_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
बनारस का राजघराना (विभूति साम्राज्य) काशी नरेश भी इसी परिवार से है। इसके अलावा ईरान, अफ़ग़ानिस्तान के प्राचीन राजा भी मोहयाल शाखा के यही थे। इनमे सबसे प्रमुख है अफ़ग़ानिस्तान का प्राचीन शाही साम्राज्य जो मोहयालो का महान साम्राज्य था जिन्होंने भारतवर्ष में सबसे पहले अरबो को युद्ध में धुल चटाई थी और ऐसी हार दी थी की अगले 300 साल तक कोई हमला नही कर पाए थे।
0.5
3,626.460917
20231101.hi_476765_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
त्यागी समाज की उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, हापुड़, गौतमबुद्धनगर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, मुरादाबाद और बिजनौर जिले के गाँव में अधिक संख्या है, इसके अलावा दिल्ली में छतरपुर, शाहदरा, शकरपुर, होलंबी कलां, मंडोली, बुराडी इत्यादि त्यागीयो के मुख्य गाँव है, हरियाणा के कुछ जिले जैसे कि सोनीपत, फरीदाबाद, गुडगाँव, पानीपत, रोहतक, पलवल और करनाल में भी त्यागीयो के गाँव मिलेंगे।
0.5
3,626.460917
20231101.hi_476765_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
मध्यप्रदेश के मुरैना मैं त्यागीयो के 45 गांव हैं जिसे पेतालिसी के नाम से जाना जाता है। इसमें प्रमुख तोर पै दीपेरा,निधान,चिन्नोनी करैरा, बदरपुरा(यही गालव पूर्व त्यागी ब्राह्मणों कि कुलदेवी माता सती का मंदिर है),खरिका,भटपुरा और चचिया जैसे गांव आते है।मध्यप्रदेश के भिंड मैं भी त्यागीयो के अच्छे खासे गांव है।नरसिंहपुर,सीहोर, आगर मालवा मैं भी त्यागीयो ठीक ठाक आबादी है।
1
3,626.460917
20231101.hi_476765_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
राजस्थान के धौलपुर मैं भी त्यागीयो के 40 गांव है जिसे चालीसी के नाम से जाना जाता है। यहां त्यागियो का अच्छा दबदबा है।
0.5
3,626.460917
20231101.hi_476765_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
दिल्ली के एक राजा ने भाइचारे की मिसाल देते हुए छतरपुर के पास तंवर(गुर्जरो) को दिल्ली के 8 गाँवो में बसाया था, जिनमें से एक प्रमुख गाँव (असोला फतेहपुर बेरी) आज भी छतरपुर के पास स्तिथ तंवर(गुर्जरों) का प्रमुख गाँव माना जाता है।
0.5
3,626.460917
20231101.hi_476765_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
गाजियाबाद के मुरादनगर में त्यागी समाज का इतिहास बहोत पुराना है यहां एक समय लगभग 40 गाँव का जमींदारा त्यागीयो पर था, उस समय के कुछ प्रमुख गाँव जो जमींदारी थी वो वर्तमान मे भी मौजूद है जिनमे प्रमुख तौर पर ग्राम [ बन्दीपुर ] और [ काकड़ा ] शामिल है जो उस समय अपनी जमींदारी के लिए जाने जाते थे।
0.5
3,626.460917
20231101.hi_476765_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
आजादी के समय मुरादनगर के ही 5 त्यागीयो के गाँव अंग्रेजो के खिलाफ बागी हो गए थे जिनमे ग्राम कुम्हैड़ा, खिंदौडा, भनेडा, ग्यास्पुर और सुहाना शामिल थे।
0.5
3,626.460917
20231101.hi_9332_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%A8
पवन
अधिक यथार्थता (precision) से पवन की दिशा बताने के लिए यह दिशा अंशों में व्यक्त की जाती है। जब पवन दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में परिवर्तित होता है (जैसे उ से उ पू और पू), तब ऐसे परिवर्तन को पवन का दक्षिणावर्तन और वामावर्त दिशा में परिवर्तन (जैसे उ से उप और प) का विपरीत पवन कहते हैं।
0.5
3,616.977955
20231101.hi_9332_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%A8
पवन
वेधशाला में पवनदिक्सूचक नामक उपकरण हवा की दिशा बताता है। इसका नुकीला सिरा हमेशा उधर रहता है जिधर से हवा आ रही होती है। पवन का वेग मील प्रति घंटे, या मीटर प्रति सेकंड, में व्यक्त किया जाता है। सतह के पवन को मापने के लिए प्राय: प्याले के आकार का पवनमापी काम में आता है। पवनवेग का लगातार अभिलेख करने के लिए अनेक उपकरण काम में आते हैं, जिनमें दाबनली एवं पवनलेखक (Anemograph) महत्वपूर्ण एवं प्रचलित हैं। भिन्नःभिन्न ऊँचाई के उपरितन पवन का निर्धारण करने के लिए हाइड्रोजन से भरा गुब्बारा उड़ाया जाता है और ऊपर उठते हुए तथा पवनहित बैलून की ऊँचाई और दिगंश (azimuth) ज्ञात करने के लिए इसका निरीक्षण सामान्य थियोडोलाइट (theodolite) या रेडियो थियोडोलाइट से करते हैं और तब बैलून की उड़ान का प्रक्षेपपथ (trajectory) तैयार किया जाता है और प्राय: बैलून के ऊपर उठने के वेग की दर की कल्पना करके, प्रक्षेपपथ के विभिन्न बिंदुओं से बैलून की संगत ऊँचाई की गणना की जाती है। प्रक्षेपपथ से, इच्छित ऊँचाई पर, पवन की चाल और दिशा ज्ञात की जाती है।
0.5
3,616.977955
20231101.hi_9332_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%A8
पवन
१८०६ ई. में जब पवनवेग मापन के सूक्ष्म उपकरण नहीं थे, तो ऐडमिरल बोफर्ट ने सामान्य प्रेक्षणों के आधार पर पवनवेग आकलन (estimate) का एक मापक्रम (स्केल) बनाया।
0.5
3,616.977955
20231101.hi_9332_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%A8
पवन
पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनें अपनी मूल दिशा में विक्षेपित हो जाती हैं. इसे कॉरिऑलिस बल कहते हैं. इसका नाम फ्रांसीसी वैज्ञानिक के नाम पर पड़ा है. इन्होने सबसे पहले इस बल के प्रभाव का वर्णन 1835 में किया था.
0.5
3,616.977955
20231101.hi_9332_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%A8
पवन
इस प्रकार की पवनों को वायुमंडल का प्राथमिक परिसंचरण भी कहा जाता है। यह आधारभूत पवने होती हैं। स्थाई पवनो को प्रचलित पवने भी कहा जाता है। यह क्षैतिज रूप से प्रवाहित होती है।स्थाई पवने पृथ्वी की घूर्णन गति के प्रभाव से विकसित हो जाती हैं। इन पवनों का विकास अस्थाई वायुदाब पेटियों में उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की दिशा में होता है।
1
3,616.977955
20231101.hi_9332_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%A8
पवन
ये पवने दोनों गोलार्द्ध में उपोषण उच्च वायु दाब कटिबंध से विषुवत रेखिये निम्न वायु दाब कटिबंध की ओर प्रवाहित होती है । ये पवने वर्ष भर एक ही दिशा में लगातार बहती रहती हैं। इस प्रकार की पवने फेरल के नियम के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाएं ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाई ओर प्रवाहित होती हैं।व्यापारिक पवनों को पुरवाई पवन 'भी कहा जाता है। प्राचीन काल में इन पवनो से व्यापारियों को बहुत लाभ मिलता था। उनके पालयुक्त पानी के जहाज को चलाने में काफी मदद मिलती थी। इस वजह से इस प्रकार की पवनों को व्यापारिक पवन कहा जाता है।
0.5
3,616.977955
20231101.hi_9332_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%A8
पवन
इस प्रकार की पवने पश्चिम दिशा से चलती हैं। यह व्यापारिक पवनों के विपरीत दिशा में पश्चिम से पूरब की दिशा में चलती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इसकी दिशा दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर होती है। यह दोनों गोलाद्धों में उपोष्ण उच्च वायुदाब (30 डिग्री से 35 डिग्री) कटिबंधों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब (60 डिग्री से 65 डिग्री) कटिबंधों की ओर चलने वाली स्थाई पवन है। पछुवा पवनों का सबसे अच्छा विकास 40 डिग्री से 65 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के मध्य पाया जाता है क्योंकि यहां पर जल अधिक मात्रा में पाया जाता है।इस वजह से पछुआ पवनें तेज और निश्चित दिशा में बहती हैं। दक्षिण गोलार्द्ध में इनकी प्रचंडता के कारण 40 से 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के बीच इन्हें “चीखती चालीस”, 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के समीपवर्ती इलाकों में “प्रचंड पचासा” और 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के पास “चीखता साठा” नाम से जाना जाता है।
0.5
3,616.977955
20231101.hi_9332_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%A8
पवन
यह पवने बहुत ठंडी होती हैं। इनका जन्म ध्रुवीय उच्च वायुदाब से होता है। ध्रुवीय पवने व्यापारिक पवनों की दिशा में बहती हैं। यह उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम और दक्षिण गोलार्द्ध में दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर प्रवावित होती हैं।ध्रुवीय पवनो के कारण सभी महाद्वीपों के पूर्वी तटीय भाग पर वर्षा होती है। ध्रुवीय पवन जब गर्म पछुआ पवनों से मिलती है तो ध्रुवीय वाताग्र का निर्माण होता है। इससे शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति होती है।
0.5
3,616.977955
20231101.hi_9332_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%A8
पवन
इस प्रकार की पवने ग्रीष्म, शीत, वर्षा ऋतु जैसी विशेष ऋतु में उत्पन्न होती हैं। मौसम बदलने पर इस प्रकार की पवने समाप्त हो जाती हैं। इनका क्षेत्र सीमित होता है।दिन और रात के तापमान में अंतर के कारण मौसमी पवनों का जन्म होता है। दैनिक पवने एक प्रकार की मौसम पवन ही हैं। इनकी उत्पत्ति भी दिन और रात के तापमान में अंतर के कारण होती है।दैनिक पवने दो प्रकार की होती हैं- समुद्री एवं स्थलीय समीर और घाटी एवं पर्वतीय समीर। समुद्री एवं स्थलीय समीर समुद्र तटीय क्षेत्रों में दिन और रात में प्रवाहित होती हैं, जबकि घाटी और पर्वतीय समीर पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ों के ऊपरी भाग में बहती है।
0.5
3,616.977955
20231101.hi_184573_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
नीलगाय
नीलगाय एक बड़ा और शक्तिशाली जानवर है। कद में नर नीलगाय घोड़े जितना होता है, पर उसके शरीर की बनावट घोड़े के समान सन्तुलित नहीं होती। पृष्ठ भाग अग्रभाग से कम ऊँचा होने से दौड़ते समय यह अत्यंत अटपटा लगता है। अन्य मृगों की तेज चाल भी उसे प्राप्त नहीं है। इसलिए वह बाघ, तेन्दुए और सोनकुत्तों का आसानी से शिकार हो जाता है, यद्यपि एक बड़े नर को मारना बाघ के लिए भी आसान नहीं होता। छौनों को लकड़बग्घे और गीदड़ उठा ले जाते हैं। परन्तु कई बार उसके रहने के खुले, शुष्क प्रदेशों में उसे किसी भी परभक्षी से डरना नहीं पड़ता क्योंकि वह बिना पानी पिए बहुत दिनों तक रह सकता है, जबकि परभक्षी जीवों को रोज पानी पीना पड़ता है। इसलिए परभक्षी ऐसे शुष्क प्रदेशों में कम ही जाते हैं।
0.5
3,608.526548
20231101.hi_184573_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
नीलगाय
वास्तव में "नीलगाय" इस प्राणी के लिए उतना सार्थक नाम नहीं है क्योंकि मादाएँ भूरे रंग की होती हैं। नीलापन वयस्क नर के रंग में पाया जाता है। वह लोहे के समान सलेटी रंग का अथवा धूसर नीले रंग का शानदार जानवर होता है। उसके आगे के पैर पिछले पैर से अधिक लम्बे और बलिष्ठ होते हैं, जिससे उसकी पीठ पीछे की तरफ ढलुआँ होती है। नर और मादा में गर्दन पर अयाल होता है। नरों की गर्दन पर सफेद बालों का एक लम्बा और सघन गुच्छा रहता है और उसके पैरों पर घुटनों के नीचे एक सफेद पट्टी होती है। नर की नाक से पूँछ के सिरे तक की लम्बाई लगभग ढाई मीटर और कन्धे तक की ऊँचाई लगभग डेढ़ मीटर होती है। उसका वजन 250 किलो तक होता है। मादाएँ कुछ छोटी होती हैं। केवल नरों में छोटे, नुकीले सींग होते हैं जो लगभग 20 सेण्टीमीटर लम्बे होते हैं।
0.5
3,608.526548
20231101.hi_184573_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
नीलगाय
नीलगाय भारत में पाई जानेवाली मृग जातियों में सबसे बड़ी है। मृग उन जन्तुओं को कहा जाता है जिनमें स्थायी सींग होते हैं, यानी हिरणों के शृंगाभों के समान उनके सींग हर साल गिरकर नए सिरे से नहीं उगते।
0.5
3,608.526548
20231101.hi_184573_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
नीलगाय
नीलगाय दिवाचर (दिन में चलने-फिरने वाला) प्राणी है। वह घास भी चरती है और झाड़ियों के पत्ते भी खाती है। मौका मिलने पर वह फसलों पर भी धावा बोलती है। उसे बेर के फल खाना बहुत पसन्द है। महुए के फूल भी बड़े चाव से खाए जाते हैं। अधिक ऊँचाई की डालियों तक पहुँचने के लिए वह अपनी पिछली टाँगों पर खड़ी हो जाती है। उसकी सूँघने और देखने की शक्ति अच्छी होती है, परन्तु सुनने की क्षमता कमजोर होती है। वह खुले और शुष्क प्रदेशों में रहती है जहाँ कम ऊँचाई की कँटीली झाड़ियाँ छितरी पड़ी हों। ऐसे प्रदेशों में उसे परभक्षी दूर से ही दिखाई दे जाते हैं और वह तुरनत भाग खड़ी होती है। ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी वह घोड़े की तरह तेजी से और बिना थके काफी दूर भाग सकती है। वह घने जंगलों में भूलकर भी नहीं जाती।
0.5
3,608.526548
20231101.hi_184573_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
नीलगाय
सभी नर एक ही स्थान पर आकर मल त्याग करते हैं, लेकिन मादाएँ ऐसा नहीं करतीं। ऐसे स्थलों पर उसके मल का ढेर इकट्ठा हो जाता है। ये ढेर खुले प्रदेशों में होते हैं, जिससे कि मल त्यागते समय यह चारों ओर आसानी से देख सके और छिपे परभक्षी का शिकार न हो जाए।
1
3,608.526548
20231101.hi_184573_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
नीलगाय
नीलगाय राजस्थान, मध्य प्रदेश के कुछ भाग, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, बिहार और आन्ध्र प्रदेश में पाई जाती है। वह सूखे और पर्णपाती वनों का निवासी है। वह सूखी, खुरदुरी घास-तिनके खाती है और लम्बी गर्दन की मदद से वह पेड़ों की ऊँची डालियों तक भी पहुँच जाती है। लेकिन उसके शरीर का अग्रभाग पृष्ठभाग से अधिक ऊँचा होने के कारण उसके लिए पहाड़ी क्षेत्रों के ढलान चढ़ना जरा मुश्किल है। इस कारण से वह केवल खुले वन प्रदेशों में ही पाई जाती है, न कि पहाड़ी इलाकों में।
0.5
3,608.526548
20231101.hi_184573_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
नीलगाय
नीलगाय में नर और मादाएँ अधिकांश समय अलग झुण्डों में विचरते हैं। अकेले घूमते नर भी देखे जाते हैं। इन्हें अधिक शक्तिशाली नरों ने झुण्ड से निकाल दिया होता है। मादाओं के झुण्ड में छौने भी रहते हैं।
0.5
3,608.526548
20231101.hi_184573_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
नीलगाय
नीलगाय निरापद जीव प्रतीत हो सकती है पर नर अत्यन्त झगड़ालू होते हैं। वे मादाओं के लिए अक्सर लड़ पड़ते हैं। लड़ने का उनका तरीका भी निराला होता है। अपनी कमर को कमान की तरह ऊपर की ओर मोड़कर वे धीरे-धीरे एक-दूसरे का चक्कर लगाते हुए एक-दूसरे के नजदीक आने की चेष्टा करते हैं। पास आने पर वे आगे की टाँगों के घुटनों पर बैठकर एक-दूसरे को अपनी लम्बी और बलिष्ठ गर्दनों से धकेलते हैं। यों अपनी गर्दनों को उलझाकर लड़ते हुए वे जिराफों के समान लगते हैं। अधिक शक्तिशाली नर अपने प्रतिद्वन्द्वी के पृष्ठ भाग पर अपने पैने सींगों की चोट करने की कोशिश करता है। जब कमजोर नर भागने लगता है, तो विजयी नर अपनी झाड़ू-जैसी पूँछ को हवा में झण्डे के समान फहराते हुए और गर्दन को झुकाकर मैदान छोड़कर भागते प्रतिद्वन्द्वी के पीछे दौड़ पड़ता है। यों लड़ते नर आस-पास की घटनाओं से बिलकुल बेखबर रहते हैं और उनके बहुत पास तक जाया जा सकता है।
0.5
3,608.526548
20231101.hi_184573_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
नीलगाय
प्रत्येक नर कम-से-कम दो मादाओं पर अधिकार जमाता है। नीलगाय बहुत कम आवाज करती है, लेकिन मादा कभी-कभी भैंस के समान रँभाती है। नीलगाय साल के किसी भी समय जोड़ा बाँधती है, पर मुख्य प्रजनन समय नवम्बर-जनवरी होता है, जब नरों की नीली झाईवाली खाल सबसे सुन्दर अवस्था में होती है।
0.5
3,608.526548
20231101.hi_26631_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8
विवर्तन
यदि किसी प्रकाशस्रोत के सम्मुख लेंस रखकर, एकवर्णी समांतर किरणों को एक ग्रेटिंग पर डाला जाए, तो इससे प्राप्त विवर्तन में एक दूसरी से दूर दूर कई तीक्ष्ण रेखाएँ पाई जाती हैं। ये रेखाएँ वास्तव में रेखाछिद्र स्रोत का विवर्तन बिंब होती हैं। बीच की सबसे तीव्र रेखा को शून्य कोटि (Zero order) की रेखा कहते हैं। इसके दोनों ओर पहली, दूसरी, तीसरी आदि रेखाएँ क्रमश: प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय कोटि की रेखाएँ कहलाती हैं। यदि ग्रेटिंग पर श्वेत प्रकाश डाला जाए, तो शून्य कोटि की रेखा श्वेत होती है, किंतु अन्य कोटि की रेखाओं स्थान पर स्पेक्ट्रम प्राप्त होते हैं। इन्हें क्रमश: प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि कोटि के स्पेक्ट्रम कहा जाता है। यदि ग्रेटिंग से विवर्तित होनेवाले प्रकाश का तरंगदैर्घ्य l, आपतित तरंगाग्र का आपतन कोण i और विवर्तन कोण q हो तथा किन्हीं दो समीपस्थ रेखाछिद्रों के मध्यबिंदुओं की पारस्परिक दूरी d हो, तो
0.5
3,605.736437
20231101.hi_26631_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8
विवर्तन
ऊपर जिस ग्रेटिंग का विवरण दिया गया है, उसे समतल विवर्तन ग्रेटिंग कहते हैं। यदि वक्र शीशे पर ऐलुमिनियम की कलई कर दी जाए और उसी पर हीरे की कनी से रेखाएँ खुरच दी जाएँ, तो प्रत्येक दो रेखाओं के बीच का भाग एक नन्हें परावर्ती दर्पण का काम करता है। इन भागों से परावर्तित तरंगों के व्यतिकरण से भी विवर्तन पैटर्न बनता है। इस ग्रेटिंग को अवतल ग्रेटिंग (Concave grating) कहते हैं। इसका आविष्कार रोलैंड (Rowland) ने किया था। अवतल ग्रेटिंग अवतल दर्पण का भी काम करता है। अत: विवर्तित किरणों को फोक्स करने के लिए लेंस का प्रयोग नहीं करना पड़ता है।
0.5
3,605.736437
20231101.hi_26631_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8
विवर्तन
स्पेक्ट्रमिकी (spectroscopy) में स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए वक्र ग्रेटिंग से बड़े उपयोगी स्पेक्ट्रोग्राफ बनाए गए हैं। वक्र ग्रेटिंग के लिए भी तरंगदैर्घ्य का सूत्र d (sin i + sin q) = n l ही होता है। दो विभिन्न वर्णों की रश्मियों (l1, l2) को एक दूसरे से पृथक् करने की क्षमता को ग्रेटिंग की वर्णविक्षेपण क्षमता (Dispersive Power) कहा जाता है। यदि l1- l2 = Dl हो और इनके विवर्तन कोण क्रमश: q1 और q2 हों तथा q1 - q2 = Dq हो, तो ग्रेटिंग की वर्ण विक्षेपण क्षमता होती है। तरंगदैर्घ्य के सूत्र से इसका मान होता है। क्रमश: उच्चतर कोटि में वर्ण विक्षेपण क्षमता बढ़ती जाती है। यदि l और l+dl दो अत्यंत समीपवर्ती विकिरण (radiations) हों और ग्रेटिंग द्वारा इनको एक दूसरे से अलग-अलग देखा जा सके तो dl को ग्रेटिंग की विभेदन क्षमता (resolving power) कहते हैं। N ग्रेटिंग पर बनी हुई कुल रेखाओं (या रेखाछिद्रों) की संख्या है। क्रमश: उच्च्तर कोटि में विभेदन क्षमता भी बढ़ती जाती है।
0.5
3,605.736437
20231101.hi_26631_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8
विवर्तन
छाया के किनारे पर विवर्तन पैटर्न का बनना प्रकाश के सरल रैखिक गमन से नहीं समझाया जा सकता है। इसे समझाने के लिए फ्रैनेल ने तरंग सिद्धांत का उपयोग किया। किसी तरंगाग्र के विभिन्न बिंदुओं का प्रभाव समझाने के लिए उन्होंने अर्ध काल जोन (Half Period Zones) का सिद्धांत प्रतिपादित किया। इस सिद्धांत के आधार पर बनाया गया ज़ोन प्लेट लेंस की भाँति काम करता है और फ्रेनेल के सिद्धांत की पुष्टि करता है।
0.5
3,605.736437
20231101.hi_26631_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8
विवर्तन
यदि किसी अत्यंत छोटे छिद्र पर एकवर्णी समतल तरंगाग्र आपतित होता हो, तो पर्दें पर इसका विवर्तन पैटर्न बन जाता है। इस पैटर्न में वृत्ताकार धारियाँ (circular fringes) पाई जाती हैं। सबसे बाहरी धारी सबसे अधिक मोटी होती है और भीतरी धारियाँ क्रमश: पतली होती हैं। फ्रेनेल के अर्धकाल ज़ोन के आधार पर इस विवर्तन की व्याख्या की जा सकती है।
1
3,605.736437
20231101.hi_26631_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8
विवर्तन
यदि छिद्र का आकार प्रथम अर्धकाल ज़ोन के बराबर हो और पैटर्न के केंद्र तथा छिद्र की परिधि की दूरियों का अंतर (2m+1) l/2 हो, तो पैटर्न का केंद्र प्रकाशित होता है। यदि पर्दे से छिद्र की दूरी स्थिर रखकर छिद्र का आकार बढ़ाते जाएँ, तो यह केंद्र क्रमश: प्रकाशित (bright) और अप्रकाशित (dark) होता है। जब छिद्र का आकार (2m+1) अर्धकाल-ज़ोन समाविष्ट करता है, तो पैटर्न का केंद्र चमकीला होता है और जब छिद्र में 2m अर्ध-काल-ज़ोन समाविष्ट होते हैं, तो केंद्र काला होता है। छिद्र को स्थिर रखकर पर्दें को उससे समीप या दूर लाने पर भी केंद्र पर परिवर्तन होता है। यदि पैटर्न के केंद्र से छिद्र के केंद्र और छिद्र की परिधि की दूरियों का अंतर (2 m+1) l/2 हो, तो केंद्र चमकीला, अन्यथा काला, होता है।
0.5
3,605.736437
20231101.hi_26631_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8
विवर्तन
किसी प्रकाशीय यंत्र द्वारा किसी बिंदु स्रोत का बिंब (image) वास्तव में उस यंत्र के द्वारक (aperture) से होकर जानेवाली तरंगों का विवर्तन पैटर्न होता है। यदि दो बिंदु स्रोत अत्यंत पास पास हों, तो यंत्र द्वारा प्रत्येक का एक-एक विवर्तन पैटर्न बनता है। चूँकि सभी प्रकाशीय यंत्रों में वर्तुल द्वारक (circular aperture) होता है, अत: बिंदु स्रोतों के विवर्तन पैटर्न में वर्तुल बिंदु (spot) बनता है और उसके किनारे किनारे कई वर्तुल वलय (rings) होते हैं। यंत्र का द्वारक जितना ही बड़ा होता है, विवर्तन पैटर्न उतने ही छोटे बनते हैं। यदि प्रकाशीय यंत्र द्वारा दो अत्यंत समीपस्थ बिंदु स्रोतों के विवर्तन पैटर्न इतने छोटे और स्पष्ट बनें कि एक का केंद्रीय महत्तम (central maximum) प्रकाशित भाग दूसरे के सर्वप्रथम न्यूनतम (first minimum) प्रकाशित भाग पर पड़े, तो दोनों के केंद्रीय बिंदु (spots) स्पष्ट देखें जा सकते हैं। प्रकाशीय यंत्र की इस क्षमता को विभेदन क्षमता (Resolving Power) कहते हैं।
0.5
3,605.736437
20231101.hi_26631_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8
विवर्तन
बहुधा आकाश में बादलों की उपस्थिति के समय सूर्य अथवा चंद्रमा के चारों ओर एक चमकीला घेरा दिखाई पड़ता है। इसे किरीट कहते हैं। पानी की नन्हीं बूँदों द्वारा प्रकाश का विवर्तन होने से ही किरीट बनते हैं। स्पष्ट किरीट के लिए नन्हीं बूँदों का समाकार होना आवश्यक होता है। ये बूँदे जितनी ही अधिक छोटी होती हैं किरीट का व्यास उतना ही बड़ा होता है। टी यंग (T. Young) ने किरीटों का व्यास नापकर जलकणों के व्यास की गणना करने के लिए यंत्र बनाया था, जिसे तंतुमापी (Eriometer) कहते हैं।
0.5
3,605.736437
20231101.hi_26631_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8
विवर्तन
विवर्तन और व्यतिकरण में सिद्धांतत: कोई भेद नहीं है। तब भी बहुधा यह कहा जाता है कि व्यतिकरण में कुछ नियत संख्या के प्रकाशपुंजों का अध्यारोपण (superposition) होने से तरंग आयाम (wave amplitude) के प्रत्येक अतिसूक्ष्म खण्डों (elements) के प्रभाव का समाकलन (integrate) करके तरंग का आयाम ज्ञात किया जाता है। एक से अधिक रेखाछिद्रों का विवर्तन पैटर्न, विवर्तन और व्यतिकरण के संयुक्त प्रभाव से, बनता है। संक्षेप में; विवर्तन, व्यतिकरण का ही किंचित् क्लिष्ट रूप है।
0.5
3,605.736437
20231101.hi_17685_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80
राजतरंगिणी
राजतरंगिणी, कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है। 'राजतरंगिणी' का शाब्दिक अर्थ है - राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है - 'राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह'। यह कविता के रूप में है। इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होता है। राजतरंगिणी का इतिहास सप्तर्षि संवत् के माध्यम से लिखा गया । इसका रचना काल सन ११४७ से ११४९ तक बताया जाता है । इस पुस्तक के अनुसार कश्मीर का नाम "कश्यपमेरु" था जो ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि के पुत्र थे।
0.5
3,602.243308
20231101.hi_17685_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80
राजतरंगिणी
राजतरंगिणी के प्रथम तरंग में बताया गया है कि सबसे पहले कश्मीर में पांडवों के सबसे छोटे भाई सहदेव ने राज्य की स्थापना की थी और उस समय कश्मीर में केवल वैदिक धर्म ही प्रचलित था। फिर सन 273 ईसा पूर्व कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ।
0.5
3,602.243308
20231101.hi_17685_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80
राजतरंगिणी
१९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में औरेल स्टीन (Aurel Stein) ने पण्डित गोविन्द कौल के सहयोग से राजतरंगिणी का अंग्रेजी अनुवाद कराया।
0.5
3,602.243308
20231101.hi_17685_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80
राजतरंगिणी
राजतरंगिणी एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। स्वयं कल्हण ने राजतरंगिणी में कहा है कि एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वेष-विनिर्मुक्त होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती है-
0.5
3,602.243308
20231101.hi_17685_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80
राजतरंगिणी
हिन्दी अनुवाद - उस समय भगवान् शाक्य सिंह का इस महीलोक में परिनिर्वाण हुए 150 वर्ष व्यतीत हो चुके थे।
1
3,602.243308
20231101.hi_17685_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80
राजतरंगिणी
</blockquote>अनुवाद: जलौक, जो अशोक के वंश में पैदा हुआ, उनके एक जगतपति तेजस्वी पुत्र हुवे जिनका नाम दामोदर रखा।''
0.5
3,602.243308
20231101.hi_17685_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80
राजतरंगिणी
राजतरंगिणी में आठ तरंग (अर्थात, अध्याय) और संस्कृत में कुल ७८२६ श्लोक हैं। इस पुस्तक के प्रथम तीन अध्याय कश्मीर की पीढ़ी-दर-पीढ़ी से आ रही मौखिक परंपराओं का चित्रण है। अगले तीन अध्याय भी इतिवृत्तात्मक ही हैं। केवल अंतिम दो अध्याय कल्हण की व्यक्तिगत जानकारी एवं ग्रंथावलोकन पर आधारित हैं।
0.5
3,602.243308
20231101.hi_17685_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80
राजतरंगिणी
स्पष्ट है पुस्तक के मूल उद्देश्य इतिहासेतर हैं। आश्चर्य नहीं, ए॰एल॰ वैशम की टिप्पणी है कि कल्हण राजतरंगिणी में तथ्यों से कम नैतिकता से अधिक संबंधित है। लेकिन इतना जरूर कहना होगा कि राजतरंगिणी भारतीय इतिहास-लेखन का प्रस्थान-बिन्दु है।
0.5
3,602.243308
20231101.hi_17685_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80
राजतरंगिणी
राजतरंगिणी में वर्णित कश्मीर के राजाओं की सूची नीचे दी गयी है। कोष्टक में पहले 'तरंग संख्या और फिर श्लोक संख्या लिखी गयी है, जैसे (IV.678) का अर्थ है तरंग ४ एवं श्लोक 678। सारांश जे सी दत्त के अनुवाद से लिया गया है। राजतरंगिणी में "कलि" संवत एवं "लौकिक" संवत का प्रयोग किया गया है।
0.5
3,602.243308
20231101.hi_9445_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3
उच्चारण
देवनागरी आदि लिपियों में लिखे शब्दों का उच्चारण नियत होता है किन्तु रोमन, उर्दू आदि लिपियों में शब्दों की वर्तनी से उच्चारण का सीधा सम्बन्ध बहुत कम होता है। इसलिये अंग्रेजी भाषा, फ्रांसीसी भाषा आदि भाषाओं के शब्दों के उच्चारण को बताने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला लिपि या औडियो फ़ाइल या किसी अन्य विधि का सहारा लेना पड़ता है। किन्तु हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली आदि के शब्दों की वर्तनी ही उनके उच्चारण के लिये पर्याप्त है।
0.5
3,597.963916
20231101.hi_9445_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3
उच्चारण
इन्हीं के अंतर से किसी व्यक्ति या वर्ग के उच्चारण में अंतर आ जाता है। कभी-कभी ध्वनियों के उच्चारणस्थान में भी कुछ भेद पाए जाते हैं।
0.5
3,597.963916