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20231101.hi_50351_4
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भूविज्ञान
इसी प्रकार जलीय संसाधनों के मूल्यांकन में भी इसका महत्व है। प्राकृतिक विपदाओं को समझने एवं उनकी भविष्यवाणी करने के कारण यह आम जनता के लिये भी महत्व रखता है। यह पर्यावरणीय समस्याओं का हल सुझा सकता है तथा भूतकाल के जलवायु परिवर्तनों के सम्बन्ध में अंतर्दृष्टि देता है। भूतकनीकी इंजीनियरी में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
1
2,872.435505
20231101.hi_50351_5
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भूविज्ञान
इस विज्ञान के अनेक उपविभाग हैं जिसमें से निम्नलिखित अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं- ऐतिहासिक भूविज्ञान, भौतिक भूविज्ञान, आर्थिक भूविज्ञान, संरचनात्मक भूविज्ञान, खनिज विज्ञान, खनन भूविज्ञान, भू-आकृति विज्ञान, शैल वर्णना, शैल विज्ञान, ज्वालामुखी विज्ञान, स्तरिक भूविज्ञान एवं जीवाश्म विज्ञान।
0.5
2,872.435505
20231101.hi_50351_6
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भूविज्ञान
भौतिक भूविज्ञान के अंतर्गत खनिज विज्ञान (mineralogy), मृदा विज्ञान (pedology), संरचनात्मक भूविज्ञान (structural geology) और भूआकृतिक विज्ञान (physiography) सम्मिलित हैं। ऐतिहासिक भूविज्ञान में स्तरित शैलविज्ञान (stratigraphy), जीवाश्म विज्ञान (palaeontology) तथा पुराभूगोल (palaeogeography) को सम्मिलित किया जाता है।
0.5
2,872.435505
20231101.hi_50351_7
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भूविज्ञान
भूपृष्ठीय परिवर्तनों के अध्ययन को बहुधा गतिकीय भूविज्ञान भी कहते हैं। स्पष्ट है कि यह नाम पृष्ठीय वातावरण की गतिशील स्थिति की ओर संकेत करता हैं, किन्तु आजकल यह नाम कुछ विशेष प्रचलित नहीं है और इसके स्थान पर भौतिक भूविज्ञान (Physical geology) अधिक प्रचलित है। इस विज्ञान के तीन मुख्य अंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं :
0.5
2,872.435505
20231101.hi_50351_8
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भूविज्ञान
(1) प्राकृतिक कारकों द्वारा पृष्ठीय शैलों का क्षय (decay), अपरदन (erosion) एवं अनाच्छादन (denudation) तथा उससे उत्पन्न अवसाद इत्यादि का परिवहन (transport),
0.5
2,872.435505
20231101.hi_128_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A1
यूनिकोड
इस परास (रेंज) में बहुत से ऐसे वर्णों के लिये भी कोड दिये गये हैं जो सामान्यतः हिन्दी में व्यवहृत नहीं होते। किन्तु मराठी, सिन्धी, मलयालम आदि को देवनागरी में सम्यक ढँग से लिखने के लिये आवश्यक हैं।
0.5
2,855.511547
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यूनिकोड
नुक्ता वाले वर्णों (जैसे ज़) के लिये यूनिकोड निर्धारित किया गया है। इसके अलावा नुक्ता के लिये भी अलग से एक यूनिकोड दे दिया गया है। अतः नुक्तायुक्त अक्षर यूनिकोड की दृष्टि से दो प्रकार से लिखे जा सकते हैं - एक बाइट यूनिकोड के रूप में या दो बाइट यूनिकोड के रूप में। उदाहरण के लिये ज़ को ' ज ' के बाद नुक्ता (़) टाइप करके भी लिखा जा सकता है।
0.5
2,855.511547
20231101.hi_128_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A1
यूनिकोड
यूनिकोड कन्सॉर्शियम, एक लाभ न कमाने वाला एक संगठन है। जिसकी स्थापना यूनिकोड स्टैंडर्ड, जो आधुनिक सॉफ़्टवेयर उत्पादों और मानकों में पाठ की प्रस्तुति को निर्दिष्ट करता है, के विकास, विस्तार और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये की गयी थी। इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इस कन्सॉर्शियम का वित्तपोषण पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से किया जाता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम में सदस्यता, विश्व में कहीं भी स्थित उन संगठनों और व्यक्तियों के लिये खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके विस्तार और कार्यान्वयन में सहायता करना चाहते हैं।
0.5
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यूनिकोड
पहले सोचा गया था कि केवल 16 बिट के माध्यम से ही दुनिया के सभी लिपिचिह्नों के लिये अलग-अलग कोड प्रदान किये जा सकेंगे। बाद में पता चला कि यह कम है। फिर इसे 32 बिट कर दिया गया। अर्थात इस समय दुनिया का कोई संकेत नहीं है जिसे 32 बिट के कोड में कहीं न कहीं जगह न मिल गयी हो।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A1
यूनिकोड
8 बिट के कुल 2 पर घात 8 = 256 अलग-अलग बाइनरी संख्याएँ बन सकती हैं; 16 बिट से 2 पर घात 16 = 65536 और 32 बिट से 4294967296 भिन्न (distinct) बाइनरी संख्याएँ बन सकती हैं।
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2,855.511547
20231101.hi_128_17
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यूनिकोड
इनमें अन्तर क्या है? मान लीजिये आपके पास दस पेज का कोई टेक्स्ट है जिसमें रोमन, देवनागरी, अरबी, गणित के चिन्ह आदि बहुत कुछ हैं। इन चिन्हों के यूनिकोड अलग-अलग होंगे। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि कुछ संकेतों के ३२ बिट के यूनिकोड में शुरू में शून्य ही शून्य हैं (जैसे अंग्रेजी के संकेतों के लिये)। यदि शुरुआती शून्यों को हटा दिया जाय तो इन्हें केवल 8 बिट के द्वारा भी निरूपित किया जा सकता है और कहीं कोई भ्रम या कॉन्फ़्लिक्ट नहीं होगा। इसी प्रकार रूसी, अरबी, हिब्रू आदि के यूनिकोड ऐसे हैं कि शून्य को छोड़ देने पर उन्हें प्राय: 16 बिट = 2 बाइट से निरूपित किया जा सकता है। देवनागरी, जापानी, चीनी आदि को आरम्भिक शून्य हटाने के बाद प्राय: 24 बिट = तीन बाइट से निरूपित किया जा सकता है। किन्तु बहुत से संकेत होंगे जिनमें आरम्भिक शून्य नहीं होंगे और उन्हें निरूपित करने के लिये चार बाइट ही लगेंगे।
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2,855.511547
20231101.hi_128_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A1
यूनिकोड
बिन्दु (5) में बताए गये काम को UTF-8, UTF-16 और UTF-32 थोड़ा अलग अलग ढंग से करते हैं। उदाहरण के लिये यूटीएफ़-8 क्या करता है कि कुछ लिपिचिह्नों के लिये 1 बाइट, कुछ के लिये 2 बाइट, कुछ के लिये तीन और चार बाइट इस्तेमाल करता है। लेकिन UTF-16 इसी काम के लिये १६ न्यूनतम बिटों का इस्तेमाल करता है। अर्थात जो चीजें UTF-8 में केवल एक बाइट जगह लेती थीं वे अब 16 बिट == 2 बाइट के द्वारा निरूपित होंगी। जो UTF-8 में 2 बाइट लेतीं थी यूटीएफ-16 में भी दो ही लेंगी। किन्तु पहले जो संकेतादि 3 बाइट या चार बाइट में निरूपित होते थे यूटीएफ-16 में 32 बिट = ४
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20231101.hi_128_19
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यूनिकोड
4 बाइट के द्वारा निरूपित किये जायेंगे। (आपके पास बड़ी-बडी ईंटें हों और उनको बिना तोड़े खम्भा बनाना हो तो खम्भा ज्यादा बड़ा ही बनाया जा सकता है।)
0.5
2,855.511547
20231101.hi_128_20
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A1
यूनिकोड
इसके अलावा बहुत से पुराने सिस्टम 16 बिट को हैंडिल करने में अक्षम थे। वे एकबार में केवल 8-बिट ही के साथ काम कर सकते थे। इस कारण भी UTF-8 को अधिक अपनाया गया। यह अधिक प्रयोग में आता है।
0.5
2,855.511547
20231101.hi_217681_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
निगम
इसने 1855 में अंग्रेजी सामयिक पत्रिका द इकोनोमिस्ट को यह लिखने के लिए प्रेरित किया "इस बदलाव की इतने जोरदार ढंग तथा आम तौर मांग शायद कभी नहीं की गयी, जिसमे महत्व पर इतना अधिक जोर दिया गया हो." इस फैसले के दूसरे भाग की स्पष्ट अशुद्धि को 75 से अधिक वर्षों के बाद पत्रिका द्वारा ही पहचाना गया, जब इसने दावा किया कि, "भविष्य के आर्थिक इतिहासकार...सीमित देयता के सिद्धांत के बेनाम आविष्कारक को यह बताने के इच्छुक हो सकते हैं, वाट और स्टीफेंसन तथा औद्योगिक क्रांति के अन्य अग्रदूतों के साथ सम्मान का एक स्थान, व्यापारिक निगमों के रूप में होता है।"
0.5
2,853.870891
20231101.hi_217681_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
निगम
19 वीं सदी के अंत तक, न्यू जर्सी के शेरमेन अधिनियम ने कंपनियों के स्वामित्व को अनुमति दी तथा विलय के परिणामस्वरूप छितरे हुए शेयरधारकों के साथ बड़े निगम बने. (देखें आधुनिक निगम और निजी संपत्ति प्रसिद्ध सांता क्लारा काउंटी बनाम दक्षिणी प्रशांत रेलमार्ग निर्णय ने नीति बनाने की प्रणाली पर प्रभाव डाला और आधुनिक निगम का युग शुरू हुआ।
0.5
2,853.870891
20231101.hi_217681_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
निगम
20 वीं में सक्षम कानून का दुनिया भर में प्रसार हुआ, जिससे प्रथम विश्वयुद्ध से पहले तथा बाद में कई देशों में आर्थिक सुधारों की शुरुआत में मदद मिली. 1980 में शुरू कर के राज्य-स्वामित्व के साथ निगमों वाले कई बड़े देशों में निजीकरण शुरू हुआ, जिसमे निजी सेवाओं और उद्योगों को निगमों को बेचा गया। अविनयमन (निगम कार्यों का विनयमन कम करना) अक्सर हस्तक्षेप न करने की नीति के एक भाग के तहत निजीकरण के साथ होता है। युद्ध के बाद एक और प्रमुख बदलाव समूहों का विकास था, जिसमे बड़े निगमों ने अपना औद्योगिक आधार बढ़ाने के लिए छोटे निगमों को खरीद लिया। जापानी कंपनियों ने क्षैतिज समूह मॉडल, किरेत्सु (keiretsu) विकसित किया, जिसे बाद में अन्य देशों में भी दोहराया गया।
0.5
2,853.870891
20231101.hi_217681_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
निगम
एक निगम के अस्तित्व के लिए विशेष कानूनी संरचना तथा कानून की आवश्यकता होती है जो विशेष रूप से निगम को कानूनी व्यक्तित्व प्रदान करे, तथा सामान्य तौर पर निगम को एक काल्पनिक व्यक्ति, एक कानूनी व्यक्ति, या एक नैतिक व्यक्ति के रूप में देखे. (प्राकृतिक व्यक्ति के विपरीत) कॉर्पोरेट कानून आम तौर पर निगमों को संपत्ति को खरीदने, बाध्यकारी अनुबंधों पर हस्ताक्षर करने और उसके शेयरधारकों (जिन्हें कई बार "सदस्य" कहा जाता है) के अतिरिक्त कर का भुगतान करने की क्षमता प्रदान करते हैं। लॉर्ड चांसलर हाल्डेन के अनुसार,
0.5
2,853.870891
20231101.hi_217681_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
निगम
कानूनी व्यक्तित्व के दो आर्थिक निहितार्थ हैं। सर्वप्रथम दिवालिएपन की स्थिति में, यह लेनदारों को (शेयरधारकों या कर्मचारी के विपरीत) निगम की संपत्तियों हासिल करने की प्राथमिकता देता है। दूसरे, कंपनी परिसंपत्तियों को शेयरधारकों द्वारा नहीं निकला जा सकता और न ही कंपनी की परिसंपत्तियों का प्रयोग इसके शेयरधारकों के माध्यम से निजी लेनदारों द्वारा किया जा सकता है। दूसरी सुविधा में विशेष कानून और विशेष कानूनी ढांचे की आवश्यकता है, क्योंकि इसे मानक कानून के माध्यम से पुनः पेश नहीं किया जा सकता.
1
2,853.870891
20231101.hi_217681_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
निगम
व्यक्तियों तथा व्यक्तियों से बनी कानूनी संस्थाओं (जैसे ट्रस्ट व अन्य निगम) के पास वोट देने या बोर्ड द्वारा घोषणा करने के बाद लाभांश प्राप्त करने का अधिकार होता है। लाभ कमाने वाले निगमों के लिए, ये मतदाता स्टॉक के शेयर रखते हैं तथा इसलिए इन्हें शेयरधारक या स्टॉकधारक कहा जाता है। जब कोई स्टॉकधारक मौजूद नहीं होता, तो निगम एक गैर-शेयर निगम के रूप में बना रह सकता है तथा स्टॉकधारकों की बजाए निगम में सदस्य होते हैं, जिन्हें इसकी प्रक्रियाओं पर वोट देने का अधिकार होता है। एक "निगम" के केवल मतदाता सदस्य नहीं होते. गैर-स्टॉक निगमों के सदस्यों को निगमन के आलेखों द्वारा पहचाना जाता है (ब्रिटिश समकक्ष: आर्टिकल्स ऑफ़ एसोसिएशन) और सदस्य वर्गों के शीर्षकों में "ट्रस्टी", "सक्रिय", "एसोसिएट" तथा/या "मानद". हालांकि, इनमे से निगमन के आलेख में सूचीबद्ध प्रत्येक व्यक्ति निगम का सदस्य है। निगमन का अल्लेख "निगम" को अन्य नाम से परिभाषित कर सकता है, जैसे "द एबीसी क्लब इंक" तथा ऐसे मामले में, "निगम" और "द एबीसी क्लब इंक" या सिर्फ "द क्लब" को परस्पर एक समान तथा आपस में परिवर्तन करने योग्य माना जाता है क्योंकि वे निगमन के लेख या उपनियमों में अन्य जगहों में प्रकट हो सकते हैं। अगर गैर शेयर निगम लाभ के लिए संचालित नहीं किये जाते, तो इन्हें गैर लाभकारी निगम कहा जाता है। किसी भी श्रेणी में, निगम व्यक्तियों के समूह के साथ विशिष्ट कानूनी दर्जे तथा तथा विशेष सुविधाओं से मिल कर बना होता है जो सामान्य अविनयमित व्यापारों, स्वैच्छिक संगठनों या व्यक्तियों के समूह को प्रदान नहीं की जातीं.
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2,853.870891
20231101.hi_217681_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
निगम
विश्व में कंपनी प्रशासन प्रारूपों के दो व्यापक वर्ग हैं। अधिकांश विश्व में, निगमों का नियंत्रण निदेशक मंडल द्वारा निर्धारित होता है, जिसे शेयरधारकों द्वारा चुना जाता है। कुछ क्षेत्राधिकारों, जैसे जर्मनी में, निगम के नियंत्रण को पर्यवेक्षी बोर्ड की सहायता दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है जो प्रबंधन बोर्ड को चुनता है। जर्मनी दृढ़ संकल्प नामक अद्वितीय प्रणाली के कारण भी विशिष्ट है जिसके अनुसार आधे पर्यवेक्षी बोर्ड में कर्मचारियों के प्रतिनिधि होते हैं। सीईओ, अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और अन्य अधिकारियों को अक्सर निगम के मामलों का प्रबंधन करने के लिए बोर्ड द्वारा चुना जाता है।
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2,853.870891
20231101.hi_217681_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
निगम
शेयरधारकों के सीमित प्रभाव के अलावा, निगम बैंक जैसे लेनदारों के माध्यम से भी (हिस्सों में) नियंत्रित हो सकते हैं। निगम को उधार दी गयी राशि के बदले में, लेनदार सदस्य के समान नियंत्रक हित की मांग कर सकते हैं, जिसमे बोर्ड के निर्देशक की एक या अधिक सीटें शामिल हैं। जर्मनी और जापान जैसे कुछ क्षेत्रों में, बैंकों के लिए निगम के शेयर लेना सामान्य बात है जबकि कुछ अन्य क्षेत्रों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका में, 1933 के ग्लास-स्टीगल अधिनियम और ब्रिटेन में बैंक ऑफ़ इंग्लैण्ड के तहत, बैंकों को बाहरी निगमों के शेयर लेने की मनाही है। हालांकि, अमेरिका में 1999 के बाद से, वाणिज्यिक बैंकों को आधुनिकीकरण अधुनियम या ग्राम्म-लीच-बिली अधिनियम के तहत सहायक इकाइयों के माध्यम से निवेश बैंकिंग की अनुमति है। 1997 के बाद से, ब्रिटेन के बैंकों के निगरानी वित्तीय सेवा प्राधिकरण द्वारा की जाती है; इसके नियम गैर-प्रतिबंधक हैं जो इसकी सभी आर्थिक संस्थाओं के संचालन के लिए, जिनमे बीमा, वाणिज्यिक और वित्तीय बैंकिंग शामिल है, में विदेशी और घरेलू पूंजी की अनुमति देते हैं।
0.5
2,853.870891
20231101.hi_217681_19
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
निगम
बोर्ड द्वारा लाभकारी निगम को भंग करने के निर्णय के पश्चात्, शेयरधारकों को लेनदारों तथा अन्य व्यक्तियों जिनके निगम में हित हैं, को देने के बाद बचा हुआ प्राप्त होता है। हालांकि शेयरधारक सीमित देयता का लाभ प्राप्त करते हैं, इसलिए वे उतनी ही राशि के लिए जिम्मेदार हैं जिसका उन्होनें योगदान दिया है।
0.5
2,853.870891
20231101.hi_9830_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
गीत
अंतिम भाग को ‘आभोग’ कहते थे। कभी कभी ध्रुव और आभोग के बीच में भी पद होता था जिसे अंतरा कहते थे। अंतरा का पद प्राय: ‘सालगसूड’ नामक प्रबंध में ही होता था। जयदेव का गीतगोविंद प्रबंध में लिखा गया है। प्रबंध कई प्रकार के होते थे जिनमें थोड़ा थोड़ा भेद होता था। प्रबंध गीत का प्रचार लगभग चार सौ वर्ष तक रहा। अब भी कुछ मंदिरों में कभी कभी पुराने प्रबंध सुनने को मिल जाते हैं।
0.5
2,846.539159
20231101.hi_9830_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
गीत
प्रबंध के अनंतर ध्रुवपद गीत का काल आया। यह प्रबंध का ही रूपांतर है। ध्रुवपद में उद्ग्राह के स्थान पर पहला पद स्थायी कहलाया। इसमें स्थायी का ही एक टुकड़ा बार बार दुहराया जाता है। दूसरे पद को अंतरा कहते हैं, तीसरे को संचारी और चौथे को आभोग। कभी कभी दो या तीन ही पद के ध्रुवपद मिलते हैं। ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर (15वीं सदी) के द्वारा ध्रुवपद को बहुत प्रोत्साहन मिला। तानसेन ध्रुवपद के ही गायक थे। ध्रुवपद प्राय: चौताल, आड़ा चौताल, सूलफाक, तीव्रा, रूपक इत्यादि तालों में गाया जाता है। धमार ताल में अधिकतर होरी गाई जाती है।
0.5
2,846.539159
20231101.hi_9830_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
गीत
14वीं सदी में अमीर खुसरो ने खयाल या ख्याल गायकी का प्रारंभ किया। 15वीं सदी में जौनपुर के शर्की राजाओं के समय में खयाल की गायकी पनपी, किंतु १८वीं सदी में यह मुहम्मदशाह के काल में पुष्पित हुई। इनके दरबार के दो गायक अदारंग और सदारंग ने सैकड़ों खयालों की रचना की। खयाल में दो ही तुक होते हैं-स्थायी और अंतरा। खयाल अधिकतर एकताल, आड़ा चौताल, झूमरा और तिलवाड़ा में गाया जाता है। इसको अलाप, तान, बालतान, लयबाँट इत्यादि से सजाते हैं। आजकल यह गायकी बहुत लोकप्रिय है।
0.5
2,846.539159
20231101.hi_9830_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
गीत
ठुमरी में अधिकतर शृंगार के पद होते हैं। यह पंजाबी ठेका, दीपचंदी इत्यादि तालों में गाई जाती है। ठुमरी दो प्रकार की होती है-एक बोल आलाप की ठुमरी और दूसरी बोल बाँट की ठुमरी। पहले प्रकार की ठुमरी में बोल या कविता की प्रधानता होती है। स्वर द्वारा बोल के भाव व्यक्त किए जाते हैं। बोल बाँट ठुमरी में लय की काँट छाँट का अधिक काम रहता है।
0.5
2,846.539159
20231101.hi_9830_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
गीत
दादरा गीत अधिकतर दादरा ताल में गाया जाता है। कभी कभी यह कहरवा ताल में भी गाया जाता है। इसमें भी स्थायी और अंतरा ये दो ही तुक होते हैं। टप्पा अधिकतर पंजाबी भाषा में मिलता है। इसमें भी स्थायी और अंतरा दो तुक होते हैं। इसकी तानें द्रुत लय में होती हैं और एक विचित्र कंप के साथ चलती हैं। गिटकिरी और जमजमा टप्पे की विशेषता है।
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2,846.539159
20231101.hi_9830_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
गीत
इस गीत में षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद इनके प्रथम सांकेतिक अक्षर स, रे, ग, म प, ध, नि, इस प्रकार से बाँधे जाते हैं कि इनका कुछ अर्थ भी निकलता है। जिस राग का सरगम होता है उसी राग के स्वर प्रयुक्त होते हैं।
0.5
2,846.539159
20231101.hi_9830_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
गीत
इस प्रकार के गीत में किसी विशिष्ट राग का सरगम ताल में निबद्ध होता है। इसमें केवल स्वर की बंदिश होती है। उसका कोई अर्थ नहीं होता। तर्राना या तिल्लाना-इसमें त नोम तनन तदेर दानि इत्यादि अक्षर किसी विशिष्ट राग या ताल में निबद्ध होते हैं। कभी कभी इसमें मृदंग या तबले के बोल भी होते हैं। अथवा फारसी या संस्कृत का कोई पद भी संमिलित कर लिया जाता है इस प्रकार के गीत को हिंदुस्तानी संगीत में प्राय: तर्राना कहते हैं और कर्णाटक संगीत में तिल्लाना।
0.5
2,846.539159
20231101.hi_9830_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
गीत
एक ही गीत के भिन्न भिन्न पद या अंश जब भिन्न भिन्न रागों में बंधे होते हैं तो उसे रागमलिका या रागमाला कहते हैं। हिंदुस्तानी संगीत में इसे प्राय: रागसागर कहते हैं। इसमें प्राय: भिन्न भिन्न रागों के नाम भी आ जाते हैं। बंदिश इस प्रकार होनी चाहिए कि गीत भिन्न भिन्न अंशों का समुच्चय मात्र न जान पड़े, किंतु वे परस्पर संहत या सश्लिष्ट हों जिससे सारे गीत से एक भाव या अर्थ सूचित होता हो।
0.5
2,846.539159
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
गीत
इस प्रकार के गीत कर्णाटक संगीत में होते हैं। इसके प्रथम भाग को पल्लवी कहते हैं जो हिंदुस्तानी संगीत के स्थायी जैसा होता है, द्वितीय भाग को अनुपल्लवी कहते हैं जो हिंदुस्तानी संगीत के अंतरा जैसा होता है। अन्य भाग या पद चरणम्‌ कहलाते हैं। कृति में भिन्न भिन्न स्वरसंगतियाँ आती हैं जबकि कीर्तन सीधा सादा होता है। त्यागराज ने बहुत सी कृतियों की रचना की। इस प्रकार के गीतों के और प्रसिद्ध रचयिता श्याम शास्त्री और मुथुस्वामी दीक्षितार हुए। दीक्षितार की रचनाएँ ध्रुवपद से मिलती जुलती हैं।
0.5
2,846.539159
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%9A
उच्चावच
3- तृतीय श्रेणी उच्चावच:- सरिता,खाङी, डेल्टा, सागरीय जल, भूमिगत जल, पवन, हिमनद आदि के कारण उत्पन्न स्थलाकृतियों को तृतीय श्रेणी उच्चावच कहते हैं।
0.5
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उच्चावच
भू- आकृति विज्ञान के विषयक्षेत्र के अन्तर्गत उपर्युक्त तीन प्रकार के स्थलरूपों को शामिल किया जाता है।
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उच्चावच
धरातल पर अनेकानेक स्थलाकृत्तियाँ पाई जाती हैं। धरातल पर सर्वत्र ढाल एक सा नहीं है । कहीं पर हिमालय जैसे ऊँचे-ऊँचे पर्वतों पर तीव्र ढाल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%9A
उच्चावच
तो कहीं गंगा-सतलज जैसे समतल मैदान हैं, कहीं गहरी घाटियों के खड़े एवं तीव्र ढाल तो कहीं ऊबड़-खाबड़ धरातल के असमान ढाल भूपटल की विशेषताऐँ
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उच्चावच
हैं । इन्हें मानचित्र पर प्रदर्शित करने की कई विधियाँ हैं । उच्चावच प्रदर्शन हेतु प्रारम्भ में तकनीकी एवं गणितीय सुविधाओं के
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उच्चावच
अभाव में गुणात्मक विधियों का उपयोग किया जाता था मानचित्रण कला, तकनीकी ज्ञान एवं गणितीय सुविधाओं के विकास के साथ-साथ मात्रात्मक
0.5
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उच्चावच
विधियों का विकास हुआ है । उच्चावच प्रदर्शन की विभिन्न विधियों का निम्नानुसार विकास के क्रम में वर्णन किया गया है -
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उच्चावच
गुणात्मक विधियों में हैश्यूर विधि (Hachure Method) या रेखाच्छादन विधि सरल और प्राथमिक विधि है। इस विधि में छोटी-छोटी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%9A
उच्चावच
रेखाओं के माध्यम से उच्चावच का प्रदर्शन किया जाता है । तीव्र ढाल के प्रदर्शन के लिये हैश्यूर रेखाऐं गहरी, मोटी एवं पास-पास खींची
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
सम्पत्ति
धीरे धीरे सम्पत्ति का धार्मिक स्वरूप लुप्त होता गया। मिताक्षरा के अनुसार सम्पत्ति इहलौकि वस्तु है क्योंकि इसका उपयोग सांसारिक लेन देन के लिए होता है।
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सम्पत्ति
मनुस्मृति के टीकाकारों के मतानुसार आर्यों में सम्पत्ति का आशय पूरे परिवार से सम्बद्ध होता था जिसमें पुत्र, पुत्री, पत्नी तथा दास भी सम्मिलित थे। समाज के विकास के साथ पुत्र, पुत्री तथा पत्नी को सम्पत्ति की वस्तु या सम्पत्ति का अंग न समझकर उन्हें सम्पत्ति से पृथक् अस्तित्व की मान्यता दी गई।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
सम्पत्ति
भारतीय कानून में सपात्त का विधिक प्रत्यय वैसा ही होता है जैसा अंग्रेजी न्यायशास्त्र में। अंग्रेजी कानून बहुत कुछ रोमन कानून से प्रभावित है। "सम्पत्ति" शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं यथा स्वामित्व या स्वत्व, अर्थात् स्वामी को प्राप्त सम्पूर्ण अधिकार। कभी कभी इसका अर्थ रोमन "रेस" होता है जिसे अन्तर्गत स्वामित्व के अधिकार का प्रयोग होता है जिसके अन्तर्गत स्वामित्व के अधिकार का प्रयोग होता है अर्थात् स्वयं वह वस्तु जो उक्त अधिकार का विषय या पात्र है। "रेस" अथवा "वस्तु" का मानव से सम्बन्ध बतानेवाला अर्थ सम्पत्ति के स्वरूप के विकास में सहायक हुआ है। इस प्रकार "रेस" अथवा "वस्तु" पर अधिकार का सम्बोध और स्वयं "रेस" या "वस्तु" का सम्बोध सपत्ति सम्बन्धी प्रत्यय से जटिल तथा गहरे रूप से सम्बद्ध है अर्थात् दोनों एक दूसरे के पूरक और सहायक है।
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सम्पत्ति
रोमन में "रेस" का अर्थ अत्यन्त जटिल है। यह अंग्रेजी की तरह अधिकार की ठोस वस्तु है। किंतु "रेस" का ठीक ठीक अर्थ "वस्तु" के बिलकुल समान नहीं है, उससे कुछ अधिक है। यद्यपि "रेस" का मूल अर्थ भौतिक वस्तु है, परन्तु धीरे धीरे इसका प्रयोग ऐसी परिसम्पत्ति (assets) को व्यक्त करने के लिए भी होने लगा जो भौतिक तथा स्थूल ही न होकर अमूर्त भी हो सकती थी जैसे बिजली। "रेस" का प्रयोग विशिष्टाधिकार के लिए भी होता है और ऐसे अधिकारों के लिए भी जो, उदाहरणार्थ, प्रसिद्धि या ख्याति से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार इन दो अर्थो के लिए रेस का लगातार प्रयोग होने के कारण "रेस" के दो अर्थ हो गए : "रेस पार्थिव" अर्थात् भौतिक वस्तुएँ जो मनुष्य के अधिकारों के अन्तर्गत आ सकती है तथा "रेस अपार्थिव" अर्थात् वे अधिकार स्वयं। इस प्रकार अन्तिम विश्लेषण के फलस्वरूप "वस्तु" का आशय "रेस पार्थिव" से ही लिया जाएगा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
सम्पत्ति
रोमन भाषा में "रेस" सम्पत्ति की वस्तु तथा अधिकार दोनों के लिए प्रयुक्त होता है, परन्तु "बोना" (Bona) शब्द, जो सामान या धन के लिए प्रयुक्त होता है, संस्कृत के "धन" शब्द के समकक्ष है। अरबी जूरियों (Arabian Jurists) के अनुसार "माल" शब्द सम्पत्ति तथा किसी भी ऐसी वस्तु के लिए प्रयुक्त हो सकता है जिसका अरबी कानून (बशेरियात) में मूल्य या अर्थ (वैल्यू) हो अथवा जो किसी व्यक्ति के अधिकार में रह सकती हो। "धन" शब्द भी सम्पत्ति के लिए बहुधा प्रयुक्त होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
सम्पत्ति
सम्पत्ति के अर्थ में प्रयुक्त होनेवाली वस्तु में स्थायित्व का तथा भौतिक एकत्व का गुण होना आवश्यक है। इकाइयों के एक संग्रह को जिसकी इकाइयाँ स्वयं पृथक वस्तु हों और ऐसी एकल इकाइयों के सम्मिलन से बनी वस्तु को भी वस्तु कह सकते हैं; जैसे एक ईंट अथवा ईंटों से निर्मित एक मकान या एक भेंड़ अथवा कई भेड़ों से बना एक झुडं। कानून में वस्तु का प्रयोग कुछ अधिकारों एवं कर्तव्यों को व्यक्त करने के लिए भी किया जाता है। भौतिक गुणों के आधार पर "वस्तु" दो प्रकार की हो सकती है - चल अथवा अचल। लेकिन अग्रेजी कानून के तकनीकी नियमों के अनुसार वस्तु, वास्तविक तथा व्यक्तिगत होती है। रोमन कानून के अनुसार "रेस" को इसी प्रकार "मैनसिपेबुल" (mancipable) तथा अनमैनसिपूबुल में विभक्त किया गया है। इस प्रकार सम्पत्ति एक और "रेस" या "वस्तु" और दूसरी ओर रेस अथवा वस्तु से सम्बन्धित मनुष्य के अधिकारों से सम्बद्ध है। इसलिए सम्पत्ति के लिए एक ऐसा व्यक्ति आवश्यक है जो किसी वस्तु पर अपना अधिकार रख सके।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
सम्पत्ति
अन्तिम विश्लेषण के अनुसार सम्पत्ति, एक व्यक्ति और एक वस्तु या अधिकार, जिसे वह केवल अपना मानता हो, के मध्य स्थापित सम्बन्ध को व्यक्त करती है। अपने आधुनिक प्रयोगों में सम्पत्ति उन सभी वस्तुओं या सम्पदा (assets) के लिए प्रयुक्त होती है जो किसी व्यक्ति से सम्बन्धित हो या उस व्यक्ति ने किसी अन्य को समर्पित कर दिया हो परन्तु अपने लाभ के लिए उस वस्तु की व्यवस्था करने का अधिकार सुरक्षित रखता हो।
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सम्पत्ति
रेस या वस्तु के पार्थिव और अपार्थिव वर्गीकरण तथा वस्तु या अधिकारों के स्वरूप के अनुसार सम्पत्ति का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से हुआ है जैसे, पार्थिव या अपार्थिव; चल या अचल तथा वास्तविक या व्यक्तिगत। सम्पत्ति के साथ अन्य विशिष्ट शब्दों जैसे व्यक्तिगत या सार्वजनिक, पैतृक, दाययोग्य, संयुक्त पारिवारिक, समाधिकारिक आदि के संयुक्त कर देने से सम्पत्ति के स्वरूप के साथ सम्बन्ध व्यक्त होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
सम्पत्ति
सम्पत्ति की वैधानिक व्याख्या के अनुसार इसके कई अर्थ है। सम्पत्ति के अन्तर्गत किसी व्यक्ति के द्वारा किए गए शारीरिक तथा मानसिक परिश्रम के फल भी आते हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी किसी वस्तु के बदले में जो कुछ भी पाता है, जो कुछ भी उसे दिया जाता है और जिसे कानून द्वारा उस व्यक्ति का माना जाता है अथवा उसे प्रयोग करने, भोग करने तथा व्यवस्था करने का अधिकार प्रदान किया जाता है, वह सब उस व्यक्ति की व्यक्तिगत सम्पत्ति कहलाती है। परन्तु कानून द्वारा मान्यता न प्राप्त होने पर उसे सम्पत्ति नहीं कहा जा सकता और तब विधिक परिणाम की दृष्टि से व्यक्ति और वस्तु के बीच कोई सम्बन्ध नहीं रह जाता है।
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2,838.789885
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B
मीशो
2015 के मध्य में, एट्रे और बरनवाल ने एक बेहद क्षेत्रीय फैशन खोज और वाणिज्य ऐप फेशियर बनाया। 2015 के अंत तक, उन्होंने "मेरि शॉप" (माय शॉप) लिए लघु मेशो का रूप अपनाया, एक ऐसा ऐप जिसने बाज़ारों में दुकानों को अपनी सूची ऑनलाइन लेने और सामाजिक वेबसाइटों के माध्यम से सामान बेचने में सक्षम बनाया। कुछ ही समय बाद, मीशो ने फिर से रूप बदला, जो ज्यादा माँग वाले उत्पादों के लिए भारत के पहले ऑनलाइन वितरण चैनल में रूपांतरित हो गया, जिससे व्यक्तिगत पुनर्विक्रेताओं को व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सामाजिक नेटवर्क पर इन उत्पादों को बेचने का अवसर मिला।
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2,828.35212
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B
मीशो
जुलाई 2016 में, मीशो को वाई कॉम्बीनेटर द्वारा चुना गया, माउंटेन व्यू, कैलिफोर्निया स्थित बीज त्वरक, तीन महीने के समर प्रोग्राम के लिए जहां इसने $ 120,000 हासिल किए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B
मीशो
बाद में अगस्त 2016 में, स्टार्टअप ने भारतीय एंजेल निवेशकों वीएच कैपिटल, कश्यप देवराह, राजुल गर्ग, इन्वेस्टोपेड संस्थापकों अर्जुन और रोहन मल्होत्रा, मनिंदर गुलाटी, अभिषेक जैन, और जसप्रीत बिंद्रा से एक अज्ञात सीड राउंड उठाया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B
मीशो
अक्टूबर 2017 में, मेशो ने भारतीय उद्यम पूंजी फर्म SAIF पार्टनर्स के नेतृत्व में निवेशकों से $ 3.1 मिलियन सीरीज़ ए फंडिंग जुटाई, जिससे इसकी कुल फंडिंग $ 3.7 मिलियन हो गई।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B
मीशो
मेशो ने जून 2018 में सिकोइया इंडिया की अगुवाई में 11.5 मिलियन डॉलर की अपनी श्रृंखला बी फंडिंग राउंड को बंद कर दिया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B
मीशो
नवंबर 2018 तक, मेशो ने चीन के शुनवेई कैपिटल, डीएसटी पार्टनर्स, आरपीएस वेंचर्स, और पहले के निवेशकों सेकोइया इंडिया, एसएआईएफ पार्टनर्स, वेंचर हाईवे और वाई कॉम्बिनेटर से अपनी सी सीरीज सी 50 मिलियन डॉलर की बंद की।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B
मीशो
अगस्त 2019 में, मीशो ने नैस्पर्स की अगुवाई में चरण D दौर में 125 मिलियन डॉलर जुटाए, जिसमें मौजूदा निवेशकों सैफ, सेक़्विया कैपिटल, शुनवेई कैपिटल, आरपीएस और वेंचर हाईवे की भागीदारी थी। फेसबुक और वोडाफोन समूह के पूर्व सीईओ अरुण सरीन भी इस दौर में शामिल हुए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B
मीशो
अगस्त 2016 में, वीसी-केंद्रित डेटा प्लेटफॉर्म मैटरमार्क ने 25 सबसे तेजी से बढ़ते वाई कॉम्बिनेटर इनक्यूबेट किए गए स्टार्टअप्स में मीशो 8 को स्थान दिया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B
मीशो
फरवरी 2018 में, फोर्ब्स इंडिया ने अपने 30 अंडर 30 यंग अचीवर्स की सूची में मीशो के संस्थापकों विदित आत्रे और संजीव बरनवाल को दिखाया। इसी वर्ष फोर्ब्स एशिया द्वारा प्रोफाइल किए जाने वाले बढ़ते भारतीय व्यवसायों में से एक स्टार्टअप भी था।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
रत्न
जब विभिन्न तत्व रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा आपस में मिलते हैं तब रत्न बनते हैं। जैसे स्फटिक, मणिभ, क्रिस्टल आदि। इसी रासायनिक प्रक्रिया के बाद तत्व आपस में एकजुट होकर विशिष्ट प्रकार के चमकदार आभायुक्त बन जाते हैं तथा कई अद्भुत गुणों का प्रभाव भी समायोजित हो जाता है। यह निर्मित तत्व ही रत्न कहलाता है, जो कि अपने रंग, रूप व गुणों के कारण मनुष्यों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यथा- रमन्ते अस्मिन्‌ अतीव अतः रत्नम्‌ इति प्रोक्तं शब्द शास्त्र विशारदैः॥ (आयुर्वेद प्रकाश 5-2)
0.5
2,821.560473
20231101.hi_9800_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
रत्न
जैसा कि हमने पहले ही यह बात स्पष्ट कर दी है कि पृथ्वी के अंदर अग्नि के प्रभाव के कारण विभिन्न तत्व रासायनिक प्रक्रिया द्वारा रत्न बनते हैं। अतः यह सुविदित है कि रत्न विभिन्न मात्रा में विभिन्न रासायनिक यौगिक मेल से बनता है। मात्र किसी एक रासायनिक तत्व से नहीं बनता। स्थान-भेद से विविध रासायनिक तत्वों के संयोग के कारण ही रत्नों में रंग, रूप, कठोरता व आभा का अंतर होता है। खनिज रत्नों में मुख्यतः निम्न तत्वों का संयोग होता है-
0.5
2,821.560473
20231101.hi_9800_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
रत्न
कार्बन, अल्यूमीनियम, बेरियम, बेरिलियम, कैल्शियम, तांबा, हाइड्रोजन, लोहा, फासफोरस, मैंगनीज, पोटेशियम, गंधक, सोडियम, टिन, जस्ता, जिर्केनियम आदि।
0.5
2,821.560473
20231101.hi_9800_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
रत्न
वैसे तो प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार उच्च कोटि में आने वाले रत्न 84 प्रकार के हैं। इनमें से बहुत से रत्न अब अप्राप्य हैं तथा बहुत से नए-नए रत्नों का आविष्कार भी हुआ है। अतः आधुनिक युग में प्राचीन ग्रंथों में वर्णित रत्नों की सूचियाँ प्रामाणिक नहीं रह गई हैं। रत्नों के नामों की सूची निम्न प्रकार है -
0.5
2,821.560473
20231101.hi_9800_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
रत्न
यह कृष्ण, पीत, सफेद आदि अनेक रंगों का चमकदार व मृदु पत्थर होता है। इसमें लाल रंग के चमकते हुए सितारे भी दिखाई देते हैं, जिन्हें रत्न पोल कहते हैं।
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2,821.560473
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
रत्न
यह पत्थर मैलापन लिए गुलाबी रंग का होता है। इसका औचारों की धार तेज करने वाला सान भी बनाया जाता है तथा यह रत्न भी घिसने के काम में आता है।
0.5
2,821.560473
20231101.hi_9800_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
रत्न
यह लाल तथा पीले रंग का मृदु व पारदर्शक होता है। यह एक विशेष प्रकार के वृक्ष का गोंद होता है। इसे कुछ लोग कहरुआ भी कहते हैं।
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2,821.560473
20231101.hi_9800_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
रत्न
यह चिकना पानीदार पारदर्शक श्वेत वर्ण का तथा तुरमली की तरह हरे रंग का होता है, इसका उपयोग दन्त रोगों में किया जाता है।
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2,821.560473
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
रत्न
यह कत्थई रंग का पीले तथा धूमिल रंग के छोटे-छोटे बिन्दुओं से युक्त होता है। इसका उपयोग खरल बनाने में होता है।
0.5
2,821.560473
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE
मानचित्रकला
स्थानिक आँकड़े मापन और अन्य प्रकाशित स्रोतों द्वारा प्राप्त किये जाते हैं और उसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए प्रयोग हेतु डाटाबेस में भंडारित किया जा सकता है। स्याही और कागज द्वारा मानचित्र बनाने की परंपरा अब समाप्त होती जा रही है। इसका स्थान कम्प्यूटर निर्मित मानचित्र ले रहे हैं। ये मानचित्र अधिक गत्यात्मक और अंतःक्रियात्मक होते है तथा अंकीय युक्ति (डिजिटल डिवाइस) से इसमें परिवर्तन किये जा सकते हैं। आज अधिक व्यापारिक गुणवत्ता वाले मानचित्र कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर की सहायता से बनाये गये हैं। ये कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर आधारित आंकड़ा प्रबंधन (कैड/CAD), भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) और भूमंडलीय स्थिति तंत्र (जीपीएस/ GPS) है।
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2,820.507786
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मानचित्रकला
मानचित्रकला, आरेखण तकनीक के संग्रहण से निकलकर वास्तविक विज्ञान बन गई है। एक मानचित्रकार को अवश्य समझना चाहिए कि कौन सा संकेत पृथ्वी के बारे में प्रभावशाली सूचना देता है और उन्हें ऐसे मानचित्र तैयार करने चाहिए जिनसे प्रत्येक व्यक्ति मानचित्रों के प्रयोग हेतु उत्साहित हो और वह इसका प्रयोग स्थानों को ढूँढ़ने तथा अपने दैनिक जीवन में करे। मानचित्रकारों को भूगणित के साथ-साथ आधुनिक गणित में भी पारंगत होना चाहिए ताकि वे समझ सकें कि पृथ्वी की आकृति, निरीक्षण के लिए चौरस सतह पर प्रक्षेपित मानचित्र के चिन्हों की विकृति को किस प्रकार प्रभावित करती है।
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मानचित्रकला
’’भौगोलिक सूचना तंत्र‘‘ पृथ्वी के विषय में सूचनाओं का भंडार है, जो कम्प्यूटर द्वारा स्वचालित व उचित रीति से पुनः प्राप्त किया जा सकता है। एक जी. आई. एस. विशेषज्ञ को भूगोल के अन्य उपविषयों के साथ-साथ कम्प्यूटर विज्ञान तथा आंकड़ा संचय तंत्र की समझ होनी चाहिए। पारंपरिक रूप में मानचित्रों का उपयोग पृथ्वी की खोज और संसाधनों के दोहन में होता रहा है। जी. आई. एस. तकनीक मानचित्र विज्ञान का विस्तार है, जिसके द्वारा पारंपरिक मानचित्रण की क्षमता और विश्लेषणात्मक शक्ति काफी बढ़ गई है। आजकल वैज्ञानिकों का समुदाय मानवीय क्रियाकलापों के फलस्वरूप पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को जान गये हैं तथा जी. आई. एस. तकनीक भूमंडलीय परिवर्तनों की प्रक्रियाओं को समझने का अनिवार्य उपकरण बन गया है। विविध प्रकार के मानचित्रों और उपग्रह सूचना तंत्रों को मिलाकर प्राकृतिक तंत्रों की जटिल अन्तःक्रियाओं की पुनर्रचना की जा सकती है। इस प्रकार की सजीव कल्पना से यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि बार-बार बाढ़ से ग्रस्त होने वाले क्षेत्र का क्या होगा या किसी विशेष उद्योग के किसी क्षेत्र में स्थापित या विकसित होने से क्षेत्र में क्या परिवर्तन होंगे।
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मानचित्रकला
ब्रिटिश आर्डिनेन्स सर्वेक्षण के आधार पर स्थापित भारतीय सर्वेक्षण विभाग के बाद राष्ट्रीय एटलस एवं विषयक मानचित्रण संगठन (एन. ए. टी. एम. ओ.) भारत में मानचित्र निर्माण की प्रमुख संस्था है। इसके दस लाख शृंखला के मानचित्र बहुत प्रसिद्ध हैं। 1960 में पांडिचेरी के फ्रांसीसी संस्थान के मानचित्रण इकाई ने भूगोल के विकास में उल्लेखनीय प्रभाव डाला। इस संस्थान ने 1:1,00,000 के पैमाने पर वनस्पति और मृदा मानचित्र बनाये थे। इस संस्थान को संसाधनों के मानचित्रण के लिए खूब प्रशंसा मिली। 1995 में इस इकाई का दर्जा बढ़ाकर ज्योमेटिक्स प्रयोगशाला (Geomatics Lab) कर दिया गया, जिसमें कम्प्यूटर मानचित्र और भौगोलिक सूचना तंत्र पर विशेष बल दिया जाता है।
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मानचित्रकला
उसमें एक ज्वालामुखी को भी दर्शाया गया था। 2300 ईपू. में बेबिलोन के निवासियों द्वारा मिट्टी की टिकियों पर स्थानीय चित्र बने मिले थे। विश्व का पहला मानचित्र यूनानी व्यक्ति अनाक्सि मैंडर ने बनाया था उसका जन्म 610 ईपू.माईलीटस (इटली) में हुआ था। दुर्भाग्य से वह मानचित्र आज हमारे पास नहीं है।
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मानचित्रकला
सन् 140 ई. में यूनानी गणितज्ञ टॉलेमी ने अपनी किताब "गाइड टू ज्योग्राफी" की 8 पुस्तकों में विदित विश्व को मानचित्र करने की कोशिश की। इसमें अक्षांश व देशान्तर का प्रयोग भी किया गया था।
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मानचित्रकला
सन् 1569 ई. में गेरार्डस मर्केटर ने कई मानचित्र बनाये। ये फ्लैंडर्स, बेल्जियम के थे। इसके बाद कई यूरोपीय एवं ऐशियाई लोगों ने कई मानचित्र बनाये।
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मानचित्रकला
नक्शा खींचना (Map Drawing) मनुष्य को उसकी भौमिक परिस्थितियों से साक्षात्कार कराने का सबसे सरल माध्यम है। भूपृष्ठ पर स्थित प्राकृतिक विवरण, जैसे पहाड़, नदी पठार, मैदान, जंगल आदि और सांस्कृतिक निर्माण, जैसे सड़कें, रेलमार्ग, पुल, कुएँ धार्मिक स्थान, कारखाने आदि का सक्षिप्त, सही और विश्वसनीय चित्रण नक्शे पर मिलता है।
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मानचित्रकला
(३) भूपृष्ठ की अधिकांश प्राकृतिक और कृत्रिम वस्तुएँ त्रिविमितीय होती हैं, अत: उनका समतल पर कैसे ज्ञान कराया जाए?
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मुज़फ़्फ़रनगर
6 अप्रैल 1919 को डॉ॰ बाबू राम गर्ग, उगर सेन, केशव गुप्त आदि के नेतृत्व में इण्डियन नेशनल कांगेस का कार्यालय खोला गया और पण्डित मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी, मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, सरोजनी नायडू, सुभाष चन्द्र बोस आदि नेताओं ने समय-समय पर मुज़फ़्फ़र नगर का भ्रमण किया। खतौली के पण्डित सुन्दर लाल, लाला हरदयाल, शान्ति नारायण आदि बुद्धिजीवियों ने स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने पर केशव गुप्त के निवास पर तिरंगा फ़हराने का कार्यक्रम रखा गया।मुजफ्फरनगर से दो किमोमीटर दूर एक गाँव हैं मुस्तफाबाद और इसके साथ लगा गाँव हैं पचेंडा , कहते हैं यह पचेंडा गाव महाभारत काल में कौरव पांडव की सेना का पड़ाव स्थल था , मुस्तफाबाद के पश्चिम में पंडावली नामक टीला हैं जहां पांडव की सेना पडी हुई थी तथा पूर्व में कुरावली हैं जहां कौरव की सेना डेरा डाले पडी थी , पचेंडा में एक महाभारतकालीन भेरो का मंदिर और देवी का स्थल भी हैं
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मुज़फ़्फ़रनगर
मुज़फ़्फ़र नगर का क्षेत्रफल 4049 वर्ग किलोमीटर (19,63,662 एकड़) है। मुजफ़्फ़र नगर में पहली जनगणना 1847 में हुई और तब मुजफ़्फ़र नगर की जनसंख्या 537,594 थी। 2001 की जनगणना के अनुसार मुज़फ़्फ़र नगर जिले की आबादी 35,43,360 (18,93,830 पुरूष और 16,49,530 महिला, 26,39,480 ग्रामीण और 9,03,880 शहरी, 17,80,380 साक्षर, 4,78,320 अनुसूचित जाति और लगभग 90 अनुसूचित जनजाति) है और औसत 31,600 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर में रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार मुजफ्फरनगर की कुल जनसंख्या 4138605 (पुरूष 2194540, महिला 1944065), लिंग अनुपात 886 तथा साक्षरता दर 70.11 (पुरूष 79.11, महिला 60.00) है
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मुज़फ़्फ़रनगर
मुजफ्फरनगर एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर है, चीनी, इस्पात, कागज और सिले सिलाये कपड़े और हाथ की कशीदाकारी से बने महिलाओं के सूट के लिए प्रसिद्ध है, गन्ना के साथ अनाज यहाँ के प्रमुख उत्पाद है। यहाँ की ज़्यादातर आबादी कृषि में लगी हुई है जो कि इस क्षेत्र की आबादी का 70% से अधिक है। मुजफ्फरनगर का गुड़ बाजार एशिया में सबसे बड़ा गुड़ का बाजार है। मुजफ्फर नगर में खतौली की पुली सम्पूर्ण भारत में महत्वपूर्ण है सबसे ज्यादा पृशिद है गन्ना भारत में सबसे अधिक पैदा होता है गन्ने के मिल भी सबसे ज्यादा संख्या में है
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मुज़फ़्फ़रनगर
यह सिद्धपीठ नगर के गांधी कालोनी मोहल्ले में स्थित है, यहाँ श्री राधा माधव जी का एक भव्य मंदिर है मंदिर राधाकृष्ण के चमत्कारिक विग्रह के लिए प्रसिद्ध है। प्रतिदिन राधामाधव जी का श्रृंगार व वस्त्र धारण कराए जाते हैं, यहाँ श्री राधा कृष्ण जी के सिध्द स्वरूप श्री श्यामाश्याम जी भी विराजित हैं, जिनकी अष्टयाम सेवा की जाती है,
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मुज़फ़्फ़रनगर
यह एक उत्तराखंड बॉर्डर पर स्थित है जो चाट के लिए प्रसिद्ध है। पुरकाज़ी को एनएच-58 दो भागों में बाँटता हैं। साथ ही यहाँ उत्तर प्रदेश परिवहन का मुख्य अड्डा भी है। इस के पास से गंगा नदी भी बहती है।
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मुज़फ़्फ़रनगर
यह स्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। गंगा नदी के तट पर स्थित शुक्रताल जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि इस जगह पर अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित को शराप मुक्त करने के लिए महर्षि सुखदेव जी ने भागवत गीता का वर्णन किया था। इसके समीप स्थित वट वृक्ष के नीचे एक मंदिर का निर्माण किया गया था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर ही सुखदेव जी भागवत गीता के बारे में बताया करते थे। सुखदेव मंदिर के भीतर एक यज्ञशाला भी है। राजा परीक्षि‍त महाराजा सुखदेव जी से भागवत गीता सुना करते थे। इसके अतिरिक्त यहां पर पर भगवान गणेश की 35 फीट ऊंची प्रतिमा भी स्‍थापित है। इसके साथ ही इस जगह पर अक्षय वट और भगवान हनुमान जी की 72 फीट ऊंची प्रतिमा बनी हुई है। यह गंगा की शाखा नदी गंगा के किनारे बसा है। जहाँ देश विदेश से कई लाख प्र्य्ट्क आते है।
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मुज़फ़्फ़रनगर
मुजफ्फरनगर स्थित खतौली एक शहर है। यह जगह मुजफ्फरनगर से 21 किलोमीटर की दूरी पर और राष्ट्रीय राजमार्ग 58 द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। यहां स्थित जैन मंदिर काफी खूबसूरत है। इसके अतिरिक्त एक विशाल सराय भी है। इनका निर्माण शाहजहां द्वारा करवाया गया था। खतौली का नाम पहले ख़ित्ता वली था जो बाद में खतौली हो गया
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मुज़फ़्फ़रनगर
खतौली तहसील का सबसे मुख्य विलेज खेड़ी कुरेश है इस गांव में अनुसूचित जाति की संख्या का बाहुल क्षेत्र है अनुसूचित जातियो में चेतना पैदा करने में अग्रणी है
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मुज़फ़्फ़रनगर
यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा दिल्‍ली स्थित इंदिरा गांधी अंर्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। दिल्ली से मुजफ्फनगर 116 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
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रायबरेली
रायबरेली जिला अंग्रेजों द्वारा 1858 में बनाया गया था अपने मुख्यालय शहर के बाद नामित किया था। परंपरा यह है कि शहर राजभर राजा डलदेव द्वारा स्थापित किया गया था और भरौली जो समय के पाठ्यक्रम में कायस्थ व सिद्दीकी मनिहार जो समय के एक अवधि के लिए शहर के स्वामी थे उपाधि के तौर पर 'राय' शीर्षक का प्रतिनिधित्व करता है। चूंकि दक्षिण जिनमें से रायबरेली का जिले द्वारा कवर क्षेत्र अवध या अवध के शुभ के रूप में ज्ञात किया गया है इस क्षेत्र में भारतीय इतिहास के मीडिया स्तर अवधि की शुरुआत के बारे में. उत्तर में यह हिमालय की तलहटी के रूप में दूर फैला और वत्स देश के दक्षिण में दूर के रूप में के रूप में गंगा जो परे रखना. इसमें कोई शक नहीं है कि जिले सभ्य और बहुत ही प्रारंभिक काल से बसे जीवन दिया गया है। 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरुवात थी और जिळा किसी भी अन्य लोगों के पीछे नहीं था। फिर यहाँ जन गिरफ्तारी, सामूहिक जुर्माना, लाठी भांजना और पुलिस फायरिंग की गई थी। सरेनी में उत्तेजित भीड़ पर पुलिस ने गोलीबारी की जिसमे कई लोग शहीद हो गए और कई अपंग हो गए। इस जिले के लोग उत्साहपूर्वक व्यक्ति सत्याग्रह में भाग लिया और बड़े पैमाने में गिरफ्तारी दीं जिसने विदेशी जड़ो को हिलाकर रख दिया। १५ अगस्त १९४७ को लंबे अन्तराल के बाद, प्रतीक्षित स्वतंत्रता हासिल की और देश के बाकी हिस्सों के साथ साथ आ आज़ादी का जश्न हर्षौल्लास के साथ मनाया गया।
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रायबरेली
इतिहास मुस्लिम आक्रमण से पहले जिले के प्रशासनिक स्थिति के बारे में चुप है, सिवाय इसके कि यह प्राचीन कोसला देश के भाग का गठन किया था। 13 वीं सदी की शुरुआत में, क्या अब रायबरेली और इसके चारों ओर इलाकों राजभर राजपूतों द्वारा विस्थापित थे और कुछ मामलों में कुछ मुस्लिम उपनिवेशवादी द्वारा, द्वारा शासित थे। जिले के दक्षिण पश्चिमी भाग बैस राजपूतों द्वारा कब्जा किया गया था। कानपुर और अमेठी वाले, अन्य राजपूत कुलों, खुद को क्रमशः उत्तर पूर्व और पूर्व में स्थापित थे। दिल्ली के सुल्तानों के शासन के दौरान लगभग पूरे पथ नाममात्र अपने राज्य का एक हिस्सा का गठन किया था। अकबर के शासनकाल के दौरान जब जिले द्वारा कवर क्षेत्र अवध और लखनऊ के सिरकार्स के बीच इलाहाबाद की सुबह, जो जिले का बड़ा हिस्सा के रूप में शामिल किया गया। यह वर्तमान में जिले के मोहनलाल गंज परगना से बढ़ाया मानिकपुर के सिरकार्स में विभाजित किया गया था। उत्तर पश्चिम पर दक्षिण में गंगा और उत्तर पूर्व पर परगना इन्हौना लखनऊ. इन्हौना के परगना अवध के सिरकार्स में उस नाम के एक महल के लिए सम्तुल्य। सरेनी, खिरो और रायबरेली के परगना के पश्चिमी भाग के परगना लखनऊ के सिरकार्स का हिस्सा बनाया। 1762 में, मानिकपुर के सिरकार्स अवध के क्षेत्र में शामिल किया गया था और चकल्दार के तहत रखा गया था। 1858 में, यह के रायबरेली में मुख्यालय के साथ लखनऊ डिवीजन के एक भाग के रूप में एक नए जिले, फार्म प्रस्तावित किया गया था। जिले के रूप में तो गठित और मौजूदा एक से आकृति और आकार में बहुत अलग था और चार तहसीलों, रायबरेली, हैदरगढ़, बछरावा और डलमऊ में विभाजित किया गया था। यह व्यवस्था बहुत अनियमित आकार के, ९३ कि॰मी॰ लम्बा और 100 कि॰मी॰ चौड़ा एक जिले में हुई। 1966 में, कारण गंगा के पाठ्यक्रम कटिया, अहतिमा, रावत पुर, घिया, मौ, सुल्तानपुर अहेत्माली, किशुनपुर, डोमै और लौह्गी के गांवों में इस जिले में जिला फतेहपुर से तहसील के परगना सरेनी डलमऊमें परिवर्तन के लिए स्थानांतरित कर दिया गया।
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रायबरेली
यह शहर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के दक्षिण-पूर्व में, 80 किलो मीटर दूर सई नदी के किनारे बसा हुआ है। पूरे मेहरबान मिश्र मजरे नेरथुवआ का एक ग्राम है जो रायबरेली हैदरगढ रोड पर 40 किलो मीटर पर स्थित है यह लखनऊ डिवीजन का एक हिस्सा है और अक्षांश 25 ° 49 'उत्तर और 26 ° 36' उत्तरी और 100 देशांतर ° 41 'पूर्व और 81 ° 34' पूर्व के बीच स्थित है। उत्तर में यह जिले लखनऊ और बाराबंकी जिले तहसील हैदर गढ़ तहसील मोहनलाल गंज द्वारा घिरा हुआ है, तहसील मुसाफिर खाना जिला सुल्तानपुर के द्वारा और दक्षिण पूर्व - परगना फ़तेहपुर और जिले के कुंडा तहसील प्रताप गढ़ के द्वारा पूर्व में. दक्षिणी सीमा गंगा जो इसे फतेह पुर जिले से अलग से बनाई है। पश्चिम में जिला उन्नाव के पुरवा तहसील स्थित है
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रायबरेली
जिले के रोहनिया विकास खंड में स्थित है, लखनऊ से लखनऊ - वाराणसी राजमार्ग पर लगभग १२२ किलोमीटर दूर ७९९.३७१ हेक्टेयर के कुल क्षेत्र पर १९८७ में स्थापित किया गया था। ऊंचाहार निकटतम रेलवे स्टेशन है और निकटतम हवाई अड्डा फुरसतगंज है। इस यात्रा की सबसे अच्छी अवधि नवम्बर से मार्च तक है। पक्षियों की २५० से अधिक किस्मे देखी जा सकती है जो ग्रेलैग हंस (Greylag Goose), पिन टेल, आम तील, विजन, Showler, Surkhab आदि शामिल हैं ५००० किमी की दूरी से यहाँ आते हैं स्थानीय पक्षियों कंघी बतख, teel, स्पॉट विधेयक, चम्मच विधेयक, किंग फिशर, गिद्ध आदि। समसपुर झील में मछली के बारह किस्मे पाई जाती हैं।
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रायबरेली
डलमऊ पवित्र गंगा के तट पर स्थित है और प्राचीन काल से प्रसिद्ध है। यह जिले के ऐतिहासिक शहर में किया गया है। डलमऊ में प्रमुख राजा डाल का किला, बारा मठ, महेश गिरि मठ, निराला स्मारक संस्थान, इब्राहीम शार्की, नवाब पैलेस शुजा - उद - दौला, आल्हा-उदल की बैठक प्रसिद्ध हैं। डलमऊ पम्प - नहर द्वारा निर्मित कर रहे हैं
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रायबरेली
इंदिरा गांधी स्मारक वानस्पतिक उद्यान वर्ष 1986 में स्थापित किया गया था क्रम में पारिस्थितिकी संतुलन बहाल करने है। बगीचे लखनऊ - वाराणसी राजमार्ग के बाईं ओर पर स्थित है। इस उद्यान साई नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। बगीचा रायबरेली - इलाहाबाद रेलवे लाइन के पश्चिम में चल रहा है जो लखनऊ - वाराणसी राजमार्ग के समानांतर है। इंदिरा गांधी वानस्पतिक उद्यान का कुल प्रस्तावित क्षेत्र 57 हेक्टेयर है, जिसमें से अब तक 10 हेक्टेयर विकसित किया गया है और यह दिन ब दिन बढ़ रही है। बगीचे के उद्देश्य केवल के लिए यह बढ़ रही फूल, फल या सब्जियों, लेकिन यह भी वैज्ञानिकों, शोध कार्यकर्ताओं / छात्रों संयंत्र जीवन में जागृति हित के लिए और आम जनता के लिए एक शैक्षिक स्थापना के लिए एक जगह बनाने के लिए नहीं है। औषधीय संयंत्र (Azadirachta इंडिका 'नीम, जटरोफा curcas' Jamalghota ', नशा metel' Dhatura ', शतकुंभ' Kaner 'आदि जैसे 23 औषधीय प्रजातियों के 114 पौधों से मिलकर) ट्रेल्स, सांस्कृतिक संयंत्र ट्रेल्स (156 पौधों से मिलकर Aegal Marmel 'बेल' जैसे 16 से अधिक प्रजातियों, पवित्र पीपल वृक्ष 'पीपल'), आर्थिक संयंत्र (12 प्रजातियों के 60 पौधों से मिलकर) ट्रेल्स, बल्बनुमा उद्यान (Caina, Jaiferenthus, रजनीगंधा, Haimanthos, नरगिस, Gladuolos और Haemoroucoulis शामिल आदि) रॉक बगीचा, उद्यान, मौसमी संयंत्र बगीचा, जलीय उद्यान और एक ग्रीन हाउस गुलाब वानस्पतिक उद्यान में शामिल हैं।
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रायबरेली
यह पुल रायबरेली शहर के बाहरी इलाके में स्थित है। इस पुल के महत्वपूर्ण बात यह है कि इस जगह पर शारदा नहर सई नदी पार कर एक जलसेतु का निर्माण करती है।
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रायबरेली
नसीराबाद, [छतोह] रायबरेली जनपद का बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कस्बा है। इसका नाम पहले पटाकपुर था जिसे सैय्यद जकरिया ने जीत हासिल करने के बाद इसका नाम नसीराबाद रखा। यह कस्बा शियों की संस्कृतिक के नजरिये से बेहद महत्व रखता है। महान शिया धर्मगुरू सैय्यद दिलदार अली गुफ़रानमाब का जन्म यहीं हुआ था। जिनका एतिहासिक इमामबाड़ा, इमामबाड़ा गुफ़रान माब, यहां आज भी स्थित है। राजनीतिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो कि इसे एक अलग पहचान रखता है।
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रायबरेली
जायस जिले का एक प्राचीन शहर है। एक बार एक समय पर यह राजा उदयन की राजधानी था। मलिक मोहम्मद जायसी जैसा एक महान कवि इस जगह पर था। उनकी स्मृति में वहाँ "जायस स्मारक " का निर्माण किया गया है।
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चंदेरी
यह किला चन्देरी का सबसे प्रमुख आकर्षण है। बुन्देला राजपूत राजाओं द्वारा बनवाया गया यह विशाल किला उनकी स्थापत्य कला की जीवंत मिशाल है। किले के मुख्य द्वार को खूनी दरवाजा कहा जाता है। यह किला पहाड़ी की एक चोटी पर बना हुआ है। यह पहाड़ी की चोटी नगर से 71 मीटर ऊपर है। यह मुगावली से ३८ किलोमीटर मीटर दूर है।
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चंदेरी
इस महल को 1445 ई. में मालवा के महमूद खिलजी ने बनवाया था। यह महल चार बराबर हिस्सों में बंटा हुआ है। कहा जाता है कि सुल्तान इस महल को सात खंड का बनवाना चाहता था लेकिन मात्र ३ खंड का ही बनवा सका। महल के हर खंड में बॉलकनी, खिड़कियों की कतारें और छत की गई शानदार नक्कासियां हैं।
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चंदेरी
इस खूबसूरत ताल को बुन्देला राजपूत राजाओं ने बनवाया था। ताल के निकट ही एक मंदिर बना हुआ है। राजपूत राजाओं के तीन स्मारक भी यहां देखे जा सकते हैं। चन्देरी नगर के उत्तर पश्चिम में लगभग आधे मील की दूरी पर यह ताल स्थित है।
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चंदेरी
चन्देरी से लगभग ४५ किलोमीटर दूर ईसागढ़ तहसील के कडवाया गांव में अनेक खूबसूरत मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में एक मंदिर दसवीं शताब्दी में कच्चापगहटा शैली में बना है। मंदिर का गर्भगृह, अंतराल और मंडप मुख्य आकर्षण है। चंदल मठ यहां का अन्य लोकप्रिय और प्राचीन मंदिर है। इस गांव में एक क्षतिग्रस्त बौद्ध मठ भी देखा जा सकता है।
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चंदेरी
ओल्ड चन्देरी सिटी को बूढ़ी नाम से जाना जाता है। 9वीं और 10वीं शताब्दी में बने जैन मंदिर यहां के मुख्य आकर्षण हैं। जिन्हें देखने हेतु हर साल बड़ी संख्या में जैन धर्म के अनुयायी आते हैं।
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