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20231101.hi_49947_7
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चंदेरी
यह स्मारक कुछ अनजान राजकुमारियों को समर्पित है। स्मारक के अंदरूनी हिस्से में शानदार सजावट की गई है। स्मारक की संरचना ज्यामिती से प्रभावित है।
0.5
2,793.491987
20231101.hi_49947_8
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चंदेरी
चन्देरी में बनी जामा मस्जिद मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी मस्जिदों में एक है। मस्जिद के उठे हुए गुंबद और लंबी वीथिका काफी सुंदर हैं।
0.5
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20231101.hi_49947_9
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चंदेरी
चन्देरी से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में देवगढ़ किला स्थित है। किले के भीतर 9वीं और 10 वीं शताब्दी में बने जैन मंदिरों का समूह है जिसमें प्राचीन काल की कुछ मूर्तियां देखी जा सकती हैं। किले के निकट ही 5वीं शताब्दी का विष्णु दशावतार मंदिर बना हुआ है, जो अपनी सुंदर मूर्तियों और नक्कासीदार स्तंभों के लिए जाना जाता है।
0.5
2,793.491987
20231101.hi_49947_10
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चंदेरी
ग्वालियर चन्देरी का निकटतम एयरपोर्ट है, जो लगभग 227 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चन्देरी पहुंचने के लिए यहां से बसों और टैक्सियों की व्यवस्था है।
0.5
2,793.491987
20231101.hi_45015_6
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उपवास
प्रोटीन नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ होते हैं। अतएव जब शरीर के प्रोटीन को उपर्युक्त काम करने पड़ते हैं तब मूत्र का नाइट्रोजनीय अंश बढ़ जाता है। उपवास के पहले सप्ताह में यह अंश प्रति दिन मूत्र के साथ लगभग 10 ग्राम निकलता है। दूसरे और तीसरे सप्ताह में इसकी मात्रा कुछ कम हो जाती है। यदि इस नाइट्रोजनीय अंश को बाहर निकालने में वृक्क असमर्थ होते हैं तो वह अंश रक्त में जाने लगता है और व्यक्ति में मूत्ररक्तता (यूरीमिया) की दशा में उत्पन्न हो जाती है। इसको व्यक्ति की अंतिम अवस्था समझना चाहिए।
0.5
2,793.355819
20231101.hi_45015_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8
उपवास
शरीर में कार्बोहाइड्रेट और वसा के समान प्रोटीन का संचय नहीं रहता। शरीर एक जीवित यंत्र है। इसकी रचना का आधार प्रोटीन है। इस यंत्र की यह विशेषता है कि इसके सामान्य भागों में प्रोटीन उपवासकाल में भी आवश्यक अंगों की रक्षा करते रहते हैं। शारीरिक यंत्र का सुचारु रूप से कार्य करते रहना शरीर में बननेवाले रसायनों, किण्वों (एनज़ाइम्स) और हार्मोनों पर निर्भर रहता है। ये उपवास की अवस्था में भी बनते रहते हैं। इनके निर्माण के लिए शरीर के सामान्य भाग अपना प्रोटीन ऐमिनो-अम्ल के रूप में प्रदान करते रहते हैं, जिससे ये रासायिनक पदार्थ बनते रहें और शरीर की क्रिया में बाधा न पड़े।
0.5
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20231101.hi_45015_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8
उपवास
स्वस्थ शरीर के लिए प्रोटीन की दैनिक मात्रा प्राय: निश्चित है। एक युवक के लिए प्रति दिन प्रत्येक किलोग्राम शारीरिक भार के अनुपात में लगभसग एक ग्राम प्रोटीन आवश्यक है और यह आहार से मिलता है। गर्भवती स्त्री तथा बढ़ते हुए शिशु, बालक अथवा तरुण को 50 प्रतिशत अधिक मात्रा में प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इससे अधिक प्रोटीन आहार में रहने से शरीर को उसका विश्लेषण करके बहिष्कार करना पड़ता है, जिससे यकृत और वृक्क का कार्य व्यर्थ ही बढ़ जाता है। प्रोटीन शारीरिक यंत्र की मारम्मत के काम में आता है। अतएव रोगोत्तर तथा उपवासोत्तर काल में आहार में प्रोटीन बढ़ा देना चाहिए। इन सब बातों का पता नाइट्रोजन संतुलन के लेखे जोखे से लगाया जा सकता है। यह काम जीव-रसायन-प्रयोगशाला में किया जाता है। यदि मूत्र के नाइट्रोजन की मात्रा भोजन के नाइट्रोजन से कम हो तब इसको "धनात्मक नाइट्रोजन संतुलन" कहते हैं। इससे यह समझा जाता है कि आहार के नाइट्रोजन (अर्थात् प्रोटीन) में से शरीर केवल एक विशिष्ट मात्रा को ग्रहण कर रहा है। यदि, इसके विपरीत, मूत्र का नाइट्रोजन अधिक हो, तो इसका अर्थ यह है कि शरीर अपने प्रोटीन से बने नाइट्रोजन का भी बहिष्कार कर रहा है। इस अवस्था को "ऋणात्मक नाइट्रोजन संतुलन" कहते हैं। उपवास की अवस्था में "ऋणात्मक प्रोटीन संतुलन" और उपवासोत्तर काल में, आहार में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में रहने पर, "धनात्मक प्रोटीन संतुलन" रहता है।
0.5
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20231101.hi_45015_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8
उपवास
रोग के दिनों में हमारे देश में भोजन प्राय: बंद करके वार्जी, साबूदाना आदि ही दिया जाता है। इससे रोगी को तनिक भी प्रोटीन नहीं मिलता, जिससे अंगों के ह्रास की पूर्ति नहीं हो पाती। अतएव शीर्घ पचनेवाली प्रोटीन भी किसी न किसी रूप में रोगी को देना आवश्यक है। बढ़ते हुए बालकों और बच्चों में प्रोटीन और भी आवश्यक है।
0.5
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20231101.hi_45015_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8
उपवास
उपवास में कुछ दिनों तक शारीरिक क्रियाएँ संचित कार्बोहाइड्रेट पर, फिर विशेष संचित वसा पर और अंत में शरीर के प्रोटीन पर निर्भर रहती हैं। मूत्र और रक्त की परीक्षा से उन पदार्थों का पता चल सकता है जिनका शरीर पर उस समय उपयोग कर रहा है। उपवास का प्रत्यक्ष लक्षण है व्यक्ति की शक्ति का निरंतर ह्रास। शरीर की वसा घुल जाती है, पेशियाँ क्षीण होने लगती हैं। उठना, बैठना, करवट लेना आदि व्यक्ति के लिए दुष्कर हो जाता है और अंत में मूत्ररक्तता (यूरीमिया) की अवस्था में चेतना भी जाती रहती है। रक्त में ग्लूकोस की कमी से शरीर क्लांत तथा क्षीण होता जाता है और अंत में शारीरिक यंत्र अपना काम बंद कर देता है।
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2,793.355819
20231101.hi_45015_11
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उपवास
1943 की अकालपीड़ित बंगाल की जनता का विवरण बड़ा ही भयावह है। इस अकाल के सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण बड़े ही रोमांचकारी हैं। किंतु उसका वैज्ञानिक अध्ययन बड़ा शिक्षाप्रद था। बुभुक्षितों के संबंध में जो अन्वेषण हुए उनसे उपवास विज्ञान को बड़ा लाभ हुआ। एक दृष्टांत यह है कि इन अकालपीड़ित भुखमरों के मुँह में दूध डालने से वह गुदा द्वारा जैसे का तैसा तुरंत बाहर हो जाता था। जान पड़ता था कि उनकी अँतड़ियों में न पाचन रस बनता था और न उनमें कुछ गति (स्पंदन) रह गई थी। ऐसी अवस्था में शिराओं (वेन) द्वारा उन्हें भोजन दिया जाता था। तब कुछ काल के बाद उनके आमाशय काम करने लगते थे और तब भी वे पूर्व पाचित पदार्थों को ही पचा सकते थे। धीरे-धीरे उनमें दूध तथा अन्य आहारों को पचाने की शक्ति आती थी।
0.5
2,793.355819
20231101.hi_45015_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8
उपवास
इसी प्रकार गत विश्वयुद्ध में जिन देशों में खाद्य वस्तुओं पर बहुत नियंत्रण था और जनता को बहुत दिनों तक पूरा आहार नहीं मिल पाता था उनमें भी उपवसजनित लक्षण पाए गए और उनका अध्ययन किया गया। इन अध्ययनों से आहार विज्ञान और उपवास संबंधी ज्ञान में विशेष वृद्धि हुई। ऐसी अल्पाहारी जनता का स्वास्थ्य बहुत क्षीण हो जाता है। उसमें रोग प्रतिरोधक शक्ति नहीं रह जाती। गत विश्वयुद्ध में उचित आहार की कमी से कितने ही बालक अंधे हो गए, कितने ही अन्य रोगों के ग्रास बने।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8
उपवास
उपवास पूर्ण हो या अधूरा, थोड़ी अवधि के लिए हो या लंबी अवधि के लिए, चाहे धर्म या राजनीति पर आधारित हो, शरीर पर उसका प्रभाव अवधि के अनुसार समान होता है। दीर्घकालीन अल्पाहार से शरीर में वे ही परिवर्तन होते हैं जो पूर्ण उपवास में कुछ ही समय में हो जाते हैं।
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उपवास
उपवास तोड़ने के भी विशेष नियम हैं। अनशन: प्राय: फलों के रस से तोड़ा जाता है। रस भी धीरे-धीरे देना चाहिए, जिससे पाचकप्रणाली पर विशेष भार न पड़े। दो तीन दिन थोड़ा रस लेने के पश्चात् आहार के ठोस पदार्थों को भी ऐसे रूप में प्रारंभ करना चाहिए कि आमाशय आदि पर, जो कुछ समय से पाचन के अनभ्यस्त हो गए हैं, अकस्मात् विशेष भार न पड़ जाए। आहार की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए। इस अवधि में शरीर विशेष अधिक मात्रा में प्रोटीन ग्रहण करता है, इसका भी ध्यान रखना आवश्यक है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
बही-खाता
(१) पुस्तपालन एक विज्ञान है क्योंकि यह व्यवस्थित ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। यह अच्छी तरह से परिभाषित सिद्धांतों के एक सेट पर आधारित है, जिसका हर समय पालन किया जाता है ताकि एक विशेष तरीके से लेनदेन रिकॉर्ड करने के कारण पूरी तरह से समझा जा सके।
0.5
2,791.498358
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
बही-खाता
(२) पुस्तपालन एक कला है क्योंकि यह एक ऐसी व्यवस्था से संबंधित है जिसकी प्रथाओं के अनुसार व्यापार लेनदेन को रिकॉर्ड करने में मानव कौशल और क्षमता महत्व रखती है।
0.5
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बही-खाता
(३) धन पर विचार (Money Consideration) : इसका मतलब है कि सभी लेनदेन की रिकॉर्डिंग धन के संदर्भ में व्यक्त की जा सकती है। यह परिभाषा लेखा के निम्नलिखित तीन पहलुओं को आगे बढ़ाती है-
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
बही-खाता
(ग) रिकॉर्डिंग: यह मूल पुस्तकों में लेनदेन दर्ज करने और बाद में उन्हें एक अन्य सेट बुक में पोस्ट करने के लिए किया जाता है, जिसे खाता बही के नाम से जाना जाता है।
0.5
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बही-खाता
(२) सभी रिकॉर्ड लेनदेन को एडिथ बुक में पोस्ट करना जो कि 'जर्नल खाता' कहलाता है। संक्षेप में, एक विषय वस्तु तैयार करने का विवरण, जिसे 'ट्रायल बैलेंस' कहा जाता है।
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बही-खाता
(३) भविष्य में स्थायी संदर्भ के रूप में सेवा देने के लिए दी गई अवधि के लिए सभी रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए।
0.5
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बही-खाता
(६) संयुक्त पूँजी कंपनियों के मामले में विभिन्न कानूनों के प्रावधानों को पूरा करने के लिए, जिन्हें कंपनी अधिनियम १९५६ के प्रावधानों के अनुसार खाता तैयार करना होता है।
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बही-खाता
सिंगल एंट्री सिस्टम (Single Entry System): सिंगल एंट्री वह सिस्टम बहीखाता पद्धति है जिसमें एक नियम के रूप में केवल नकदी और निजी खाते का रिकॉर्ड रखे जाते हैं, यह हमेशा से असंबद्ध डबल प्रविष्टि है जो परिधि के साथ बदलता रहता है।
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बही-खाता
डबल एंट्री प्रणाली (Double Entry system): जैसे हम प्रत्येक व्यापार लेनदेन में दो पहलू पाते हैं, जैसे प्राप्त करने वाला पहलू और देय पहलू। इसी प्रकार इस प्रणाली के तहत, हर लेनदेन को दोबारा दर्ज किया जाता है, डेबिट पक्ष पर एक, अर्थात्, प्राप्तकर्ता और क्रेडिट पक्ष पर दूसरा, अर्थात, देय पहलू।
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20231101.hi_2571_3
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मदुरई
मदुरई शहर का क्षेत्रफल ५२ कि॰मी॰² है, जिसका शहरी क्षेत्र अब १३० कि.मी² तक फैल चुका है। इसकी स्थिति पर है। इस शहर की औसत समुद्रतल से ऊंचाई १०१ मीटर है। यहां का मौसम शुष्क एवं गर्म है, जो अक्टूबर-दिसम्बर में वर्षा के कारण आर्द्र हो जाता है। ग्रीष्म काल में तापमान अधिकतम ४० डि. एवं न्यूनतम २६.३ डि. से. रहता है। शीतकाल में यह २९.६ तथा १८ डि.से. के बीच रहता है। औसत वार्षिक वर्षा ८५ से.मी. होती है।
0.5
2,790.297117
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मदुरई
भारत की २००१ की जनगणनुसार, मदुरई शहर की नगरपालिका सीमा के भीतर जनसंख्या ९२८,८६९ है, एवं शहरी क्षेत्र की जनसंख्या १,१९४,६६५ है। इसमें से ५१% पुरुष एवं ४९% स्त्रियां हैं। मदुरई की औसत साक्षरता दर ७९% है, जो राष्ट्रीय दर ५९.५% से कहीं ऊंची है। पुरुष दर ८४% एवं स्त्री दर ७४% है। शहर की १०% जनसंख्या ६ वर्ष से नीचे की है। शहर में प्रत्येक १००० पुरुषों पर ९६८ स्त्रियों की संख्या है।
0.5
2,790.297117
20231101.hi_2571_5
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मदुरई
पहले इसका नाम मधुरा या मधुरापुरी था। कतिपय शिलालेखों तथा ताम्रपत्रों से विदित होता है कि ११वीं शती तक यहाँ, बीच में कुछ समय को छोड़कर पांड्य राजवंश का शासन था। संगम-काल के कवि नक्कीरर ने ही सुंदरेश्वरर के कुछ अंश रचे थे- जो आज भी मंदिर के पारंपरिक उत्सवों पर आयोजित नाट्य होते हैं। मदुरई शहर का उत्थान दसवीं शताब्दी तक हुआ, जब इस पर चोल वंश के राजा का अधिकार हुआ। मदुरई की संपन्नता शताब्दी के आरंभिक भाग में कुछ कम स्तर पर फिर से वापस आई, फिर यह शहर विजयनगर साम्राज्य के अधीन हो गया और यहां नायक वंश के राजा आए, जिनमें सर्वप्रथम तिरुमल नायक था। पांड्य वंश के अंतिम राजा सुंदर पांड्य के समय मलिक काफूर ने मदुरा पर आक्रमण किया (१३११ ई)। १३७२ में कंपन उदैया ने इसपर अधिकार कर लिया और यह विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया गया। १५५९-६३ ई० तक नायक वंश के प्रतिष्ठाता विश्वनाथ ने राज्य का विस्तार किया। १६५९ में राजा तिरुमल की मृत्यु के बाद मदुरा राज्य की शक्ति क्षीण होनी लगी। १७४० में चाँद साहब के आक्रमण के बाद नायक वंश की सत्ता समाप्त हो गई। कुछ समय पश्चात् इसपर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया। मूर्ति और मंदिर निर्माण के शिल्प की दृष्टि से मदुरा का विशेष महत्व है। मीनाक्षी और सुंदरेश्वर शिव के मंदिर प्राचीन भारतीय शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
0.5
2,790.297117
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मदुरई
मदुरई शहर मीनाक्षी सुंदरेश्वरर मंदिर को घेरे हुए आसपास बसा हुआ है। मंदिर के किनारे से एक दूसरे को घेरे हुए आयताकार सड़कें, महानगर की शहरी संरचना का भास देती हैं। पूरा शहर एक कमल के रूप में रचा हुआ है।
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2,790.297117
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
मदुरई
मदुरई और निकटवर्ती क्षेत्रों में मुख्यतः तमिल भाषा ही बोली जाती है। मदुरई तमिल की बोली कोंगू तमिल, नेल्लई तमिल, रामनाड तमिल एवं चेन्नई तमिल से भिन्न है। तमिल के संग अन्य बोली जाने वाली भाषाएं हैं हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दु, सौराष्ट्र, मलयालम एवं कन्नड़, हालांकि उन सभी भाषाओं में यहां तमिल शब्द समा गए हैं।
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2,790.297117
20231101.hi_2571_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
मदुरई
वंदीयुर मरियम्मन तेप्पाकुलम एक विशाल कुंड है। सरोवर के उत्तर में तमिलनाडु की ग्रामीण देवी मरियम्मन का मंदिर है। १६३६ में बना यह कुंड मदुरै का पत्थर से बना सबसे बड़ा कुंड है। इसका निर्माण राजा तिरुमलई नायक ने करवाया था। उनकी वर्षगांठ (जनवरी-फरवरी) पर यहां रंगबिरंगे फ्लोट फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है जिसमें सरोवर को रोशनी और दियों से सजाया जाता है। इस उत्सव में भाग लेने के लिए स्थानीय लोगों के अलावा बड़ी संख्या में सैलानी भी यहां आते हैं।
0.5
2,790.297117
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
मदुरई
तिरुमलई नायक पैलेस मदुरै का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। इसका निर्माण १६३६ में किया गया था। इटली के एक वास्तुकार ने राजा के लिए इसे बनाया था। राजा और उनका परिवार यहां रहते थे। स्वर्गविलास और रंगविलास महल के दो हिस्से हैं। इसके अलावा भी महल मे अनेक स्थान हैं जहां पर्यटकों को जाने की अनुमति है। इस महल में घूमने के लिए प्रवेश शुल्क देना पड़ता है। कहा जाता है कि ब्रिटिश राज में इस जगह का इस्तेमाल प्रशासनिक कार्यो के लिए किया जाता था। अब इसकी देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है और इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जा चुका है। शाम को यहां ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसमें रोशनी और ध्वनि के माध्यम से राजा के जीवन और उनके मदुरै में शासन के बार में बताया जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
मदुरई
गांधी संग्रहालय रानी मंगम्मल के लगभग ३०० वर्ष पुराने महल में स्थित है। यह संग्रहालय देश के उन सात संग्रहालयों में से एक है जिनका निर्माण गांधी मेमोरियल ट्रस्ट ने करवाया था। यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और कार्यो को दर्शाया गया है। संग्रहालय में गांधीजी की किताबों और पत्रों, दक्षिण भारतीय ग्रामीण उद्योगों एवं हस्तशिल्प का सुंदर संग्रह देखा जा सकता है। इसे कुछ भागों के बांटा जा सकता है जैसे- प्रदर्शिनी, फोटो गैलरी, खादी, ग्रामीण उद्योग विभाग, ओपन एयर थिएटर और संग्रहालय।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
मदुरई
देवी मीनाक्षी को समर्पित मीनाक्षी मंदिर मदुरै की पहचान है। यह देश के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष हजारों की संख्‍या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। 65 हजार वर्ग मीटर में फैले इस विशाल मंदिर को यहां शासन करने वाले विभिन्न वंशों ने विस्तार प्रदान किया। दक्षिण में स्थित इमारत सबसे ऊंची है जिसकी ऊंचाई १६० फीट है। इसका निर्माण १६वीं शताब्दी में किया गया था। मंदिर परिसर का सबसे प्रमुख आकर्षण हजार स्तंभों वाला कक्ष है जो सबसे बाहर की ओर स्थित है।
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2,790.297117
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एंजियोप्लास्टी
बाईपास सर्जरी की तुलना में एंजियोप्लास्टी अधिक सुरक्षित है और आंकड़ों के अनुसार इस प्रक्रिया के बाद होने वाली जटिलताओं के कारण 1% से भी कम लोग मरते हैं।
0.5
2,789.903884
20231101.hi_186784_6
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एंजियोप्लास्टी
धमनी का खिंचाव जिसके परिणामस्वरूप पूर्ण अवरोध और सम्भव रोधगलन हो सकता है - इसे आमतौर पर एक स्टेंट द्वारा ठीक किया जा सकता है।
0.5
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एंजियोप्लास्टी
एक भटका हुआ थक्का कुछ परिस्थितियों में स्ट्रोक पैदा कर सकता है। (एंजियोप्लास्टी कराने वाले 1% से भी कम रोगियों में प्राय: ऐसा होता है।) ं
0.5
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एंजियोप्लास्टी
गुर्दे की समस्याएँ, विशेष रूप से उन लोगों में जिनमे पहले से ही गुर्दे या मधुमेह की बीमारी हो। (यह एक्स-रे के लिए इस्तेमाल होने वाले आयोडीन कंट्रास्ट डाई की वजह से होता है; इस जोखिम को कम करने के लिए प्रक्रिया से पहले और बाद में अन्तर्शिरा द्रव और दवा दी जाती है।)
0.5
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एंजियोप्लास्टी
प्रक्रिया के दौरान इमरजेंसी कोरोनरी धमनी बाईपास ग्राफ्टिंग की जरूरत। (2-4 प्रतिशत लोगों के लिये) यह तब हो सकता है जब एक धमनी खुलने की बजाय बन्द हो जाये।
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एंजियोप्लास्टी
रेस्टेनोसिस, एंजियोप्लास्टी की सबसे आम जटिलताओं में से एक है और इसके तहत प्रक्रिया समाप्ति के बाद अगले कई हफ़्तों या महीनों के दौरान रक्त वाहिकाओं का धीरे-धीरे पुनः संकुचन होता है। ऐसी कुछ परिस्थितियाँ हैं जिनके तहत इस जटिलता के विकास का जोखिम बढ़ जाता है और वे हैं उच्च रक्तचाप, मधुमेह, एंजाइना या गुर्दे की बीमारी।
0.5
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एंजियोप्लास्टी
रक्त के थक्के (इंस्टेंट घनास्त्रता)। ये थक्के एंजियोप्लास्टी के कुछ घण्टों या महीनों के बाद स्टेंट के भीतर बन सकते हैं और रोधगलन का कारण हो सकते हैं।
0.5
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एंजियोप्लास्टी
एंजियोप्लास्टी से उपजे जोखिम 75 साल से अधिक उम्र वाले रोगियों में अधिक होते हैं। इसके अतिरिक्त उन रोगियों में भी हो सकते हैं, जो मधुमेह या गुर्दे की बीमारी से पीड़ित हों या जिन्हें व्यापक हृदय रोग हो अथवा उनके हृदय की धमनियों में थक्के जमा हो गये हों। इसके अलावा, महिलाओं में और जिन रोगियों में हृदय की पम्पिंग क्रिया कमज़ोर होती है उनमें भी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।
0.5
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एंजियोप्लास्टी
फिर भी, रोधगलन स्ट्रोक, स्ट्रोक या गुर्दे की समस्याओं जैसी जटिलताएँ काफी कम होती हैं। एंजियोप्लास्टी करवाने वाले रोगियों में मृत्यु दर बहुत कम है। (नियमित बाईपास सर्जरी के 1% से 2% की तुलना में केवल 0.1%)
0.5
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अतिताप
गर्म, शुष्क त्वचा अतिताप के सामान्य संकेत होते हैं। इससे त्वचा लाल और गर्म हो सकती है क्योंकि रक्त कोशिकाएं ताप अपव्यय को बढ़ाने के प्रयास में चौड़ी हो जाती हैं, कभी-कभी होंठ सूज जाते हैं। शरीर को ठंडा करने में असमर्थता के कारण पसीने के माध्यम से त्वचा सूखी होने लगती है।
0.5
2,780.995126
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अतिताप
अन्य संकेत और लक्षण कारणों पर निर्भर हैं। ऊष्माघात के साथ निर्जलीकरण जुड़ा हुआ है जो कि मिचली, उल्टी, सिर दर्द और न्यून रक्त दबाव का उत्पादन कर सकते हैं। यह अचानक बेहोशी या चक्कर आने तक बढ़ सकता है, खासकर अगर व्यक्ति खड़ा है।
0.5
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अतिताप
गंभीर ऊष्माघात के मामले में, व्यक्ति भ्रमित या शत्रुतापूर्ण हो सकता है और नशे में धुत्त लग सकता है। हृदय दर और श्वसन दर में वृद्धि होगी (टेकिकार्डिया या टेकिपनिया) क्योंकि रक्तचाप कम हो जाता है और हृदय, शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति करने का प्रयास करने लगता है।
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अतिताप
रक्तचाप में कमी, रक्त वाहिकाओं के संकुचन का कारण बन सकता है, जिसके परिणामस्वरूप, ऊष्माघात के उन्नत मामलों में त्वचा का रंग पीला या नीला हो जाता है। कुछ पीड़ित, खासकर छोटे बच्चों को मिर्गी आ सकती है। अंततः, जैसे-जैसे शरीर के अंग विफल होते जाते हैं, मूर्च्छा और कोमा फलित होने लगती है।
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अतिताप
ऊष्माघात का कारण गर्मी से पर्यावरणीय संपर्क होता है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में एक असामान्य तापमान पैदा होता है। गंभीर मामलों में, तापमान तक अधिक हो सकता है। ऊष्माघात थकाऊ या गैर-थकाऊ हो सकती है, जो इस पर निर्भर करता है कि क्या व्यक्ति गर्मी में काम कर रहा था। गर्मी के दिन में अत्यधिक शारीरिक श्रम एक स्वस्थ शरीर में भी ताप पैदा कर सकते हैं जो शरीर को ठंडा करने की शारीरिक क्षमता से भी अधिक हो सकती है, क्योंकि पर्यावरण का ताप और आर्द्रता शरीर को ठंडा करने की यंत्र की सामान्य दक्षता को कम कर देती है। कम पानी पीना अन्य कारकों में से एक हैं, यह हालत को ख़राब कर सकता है। गैर-श्रम ऊष्माघात आमतौर पर दवाओं द्वारा उत्पन्न होता है जो कि वाहिकाविस्फार, पसीना और अन्य ताप को कम करने वाले तंत्रों को कम कर देता है, जैसे कोलीनधर्मरोधी दवा, एंटीथिस्टेमाइंस और मूत्रल. इस स्थिति में, अत्यधिक पर्यावरणीय तापमान का सामना करने के लिए शरीर की सहनशीलता काफी सीमित हो सकती है, यहां तक कि आराम करने के समय भी.
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अतिताप
कुछ दवाएं अत्यधिक आंतरिक गर्मी उत्पादन का कारण होते हैं, यहां तक कि सामान्य तापमान वातावरण में भी. दवा खाने के दर के मुताबिक अतिताप होता है जहां दवाओं का इस्तेमाल अधिक होता है वहां अतिताप भी उच्च होता है।
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अतिताप
कई नशीली दवाइयां जैसे सेलेक्टीव सेरेटोनिन रिअपटेक इनहिबिटर्स (SSRIs), मोनोमाइन ओक्सीडेस इन्हिबिटर्स और ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेजेंट्स (MAOIs) आदि अतिताप पैदा कर सकते हैं। सेरेटोनिन सिंड्रोम अक्सर बाद में कई दवाओं के लिए जोखिम प्रस्तुत करता है। इसी तरह न्यूरोलेप्टिक घातक रोग न्यूरोलेप्टिक एजेंटों के लिए असामान्य प्रतिक्रिया है। ये सिंड्रोम अन्य संबद्ध सिंड्रोम लक्षण द्वारा विभेदित होते हैं जैसे कंपन में सेरेटोनिन सिंड्रोम और न्यूरोलेप्टिक घतक रोग में "लीड-पाइप" मांसपेशी अनम्यता.
0.5
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अतिताप
कई अवैध दवाएं प्रतिकूल प्रभाव के रूप में अतिताप को पैदा कर सकती हैं, इसमें एम्फ़ैटेमिन, कोकीन, पीसीपी, एलएसडी और एमडीएमए शामिल हैं।
0.5
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अतिताप
घातक अतिताप सामान्य संवेदनाहारी एजेंट (जैसे हेलोथिन) के लिए दुर्लभ प्रतिक्रिया है या घाती एजेंट सक्सिनीकोलिन के लिए एक प्रतिक्रिया है। घातक अतिताप एक आनुवंशिक स्थिति है और घातक हो सकती है।
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तिरुवनन्तपुरम
यह बच्चों के आकर्षण का केंद्र है। इसकी स्थापना 1980 में की गई थी। यह सिटी सेंट्रल बस स्टेशन से 1 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस संग्रहालय में विभिन्न परिधानों में सजी 2000 आकृतियां रखी गई हैं। यहां हेल्थ एजुकेशन डिस्प्ले, एक छोटा एक्वेरिअम और मलयालम में प्रकाशित पहली बाल साहित्य की प्रति भी प्रदर्शित की गई है।
0.5
2,777.179189
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तिरुवनन्तपुरम
यह बीच शहर से लगभग 8 किलोमीटर दूर है। इसके पास ही तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डा है। इंडोर मनोरंजन क्लब, चाचा नेहरु ट्रैफिक ट्रैनिंग पार्क, मत्सय कन्यक और स्टार फिश के आकार का रेस्टोरेंट यहां के मुख्य आकर्षण हैं। नाव चलाते सैकड़ों मछुवारे और सूर्यास्त का नजारा यहां बहुत ही सुंदर दिखाई देता है। मंदिरों में होने वाले उत्सवों के समय इस बीच पर भगवान की प्रतिमाओं को पवित्र स्नान कराया जाता है।
0.5
2,777.179189
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तिरुवनन्तपुरम
तिरुवनंतपुरम से 16 किलोमीटर दूर स्थित कोवलम बीच केरल का एक प्रमुख पर्यटक केंद्र है। रेतीले तटों पर नारियल के पेड़ों और खूबसूरत लैगून से सजे ये बीच पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कोवलम बीच के पास तीन और तट भी हैं जिनमें से दक्षिणतम छोर पर स्थित लाइट हाउस बीच सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यह विश्व के सबसे अच्छे तटों में से एक है। कोवलम के तटों पर अनेक रेस्टोरेंट हैं जिनमें आपको सी फूड मिल जाएगें।
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तिरुवनन्तपुरम
अट्टुकल पोंगल महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध उत्सव है। यह उत्सव तिरुवनंतपुरम से 2 किलोमीटर दूर देवी के प्राचीन मंदिर में मनाया जाता है। 10 दिनों तक चलने वाले पोंगल उत्सव की शुरुआत मलयालम माह मकरम-कुंभम (फरवरी-मार्च) के भरानी दिवस (कार्तिक चंद्र) को होती है। पोंगल एक प्रकार का व्यंजन है जिसे गुड़, नारियल और केले के निश्चित मात्रा को मिलाकर बनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह देवी का पसंदीदा पकवान है। धार्मिक कार्य प्रात:काल ही शुरू हो जाते हैं और दोपहर तक चढ़ावा तैयार कर दिया जाता है। पोंगल के दौरान पुरुषों का मंदिर में प्रवेश वर्जित होता है। मुख्य पुजारी देवी की तलवार हाथों में लेकर मंदिर प्रांगण में घूमता है और भक्तों पर पवित्र जल और पुष्प वर्षा करता है।
0.5
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तिरुवनन्तपुरम
ऐसा माना जाता है कि यह त्रृषि अगस्त्य का निवास स्थान था। समुद्रतल से 1890 मी. ऊपर स्थित यह जगह केरल का दूसरा सबसे ऊंचा स्‍थान है। सहाद्री पर्वत शृंखला का हिस्सा अगस्त्यकूडम के जंगल अपने यहां मिलने वाली जड़ी बूटियों और वनस्पति के लिए जाना जाता हैं। यहां मिलने वाली चिकित्सीय औषधियों की संख्या 2000 से भी ज्यादा है। वनस्पतियों के अलावा इस जंगल में हाथी, शेर, तेंदुआ, जंगली सूअर, जंगली बिल्ली और धब्बेदार हिरन जैसे जानवर भी मिलते हैं। 1992 में 23 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को अगस्त्य वन को बायोलॉजिकल पार्क बना दिया गया था। ऐसा करने के पीछे मुख्य उद्देश्य इस स्थान का शैक्षणिक प्रयोग करना था। ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह स्थान उपयुक्त है। इसके लिए दिसंबर से अप्रैल के बीच यहां आ सकते हैं।
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2,777.179189
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तिरुवनन्तपुरम
तिरुवनंतपुरम से 30 किलोमीटर दूर स्थित यह जगह पश्चिमी घाट पर स्थित है। यहां की झील और बांध पर्यटकों को बहुत लुभाते हैं। अभयारण्य की स्थापना 1958 में की गई थी। इसका क्षेत्रफल 123 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह अभयारण्य नेन्नयर, मुल्लयर और कल्लर नदियों के प्रवाह क्षेत्र में आता है। वॉच टावर, क्रोकोडाइल फार्म, लायन सफारी पार्क और डियर पार्क यहां के मुख्य आकर्षण हैं। यहां से पहाड़ों का बहुत ही सुंदर नजारा दिखाई देता है। वन्य जीवों की बात करें तो गौर, भालू, जंगली बिल्ली और नीलगिरी लंगूर यहां पाए जाते हैं। यहां ट्रैकिंग और बोटिंग की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
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तिरुवनन्तपुरम
मैंगलोर, अर्नाकुलम, बैंगलोर, चैन्नई, दिल्ली, गोवा, मुंबई, कन्याकुमारी और अन्य नगरों से यहां के लिए रेलगाड़ियां चलती हैं। त्रिशूर के प्रतिदिन लगभग सात रेलगाड़ियां यहां आती हैं। कोल्लम और कोच्चि से भी प्रतिदिन यहां रेलगाडी आती है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%AE
तिरुवनन्तपुरम
कोच्चि, चैन्नई, मदुरै, बैंगलोर और कन्याकुमारी से तिरुवनंतपुरम के लिए बसें चलती हैं। लंबी दूरी की बसें केन्द्र बस थाना (केएसआरटीसी, तिरुवनंतपुरम बस अड्डा) से जाती हैं।
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2,777.179189
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%AE
तिरुवनन्तपुरम
खरीदारी उत्साहकों के लिए तिरुवनंतपुरम उत्तम जगह है। यहां ऐसी अनेक सामान मिलती हैं जो कोई भी व्यक्ति अपने साथ ले जाना चाहेगा। केरल का हस्तशिल्प पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां से पारंपरिक हस्तशिल्प जैसे तांबे का सामान, बांस का उपस्कर लिया जा सकता हैं। कथककली के मुखौटे और पारंपरिक परिधान अनेक दुकानों पर मिलते हैं। सरकारी दुकानों के अलावा चलाई बाजार, कोन्नेमारा मार्केट, पावन हाउस रोड के पास की दुकानें और एम.जी.रोड, अट्टुकल शॉपिंग कॉम्प्लेक्स (पूर्वी किला), नर्मदा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स (कोडियार) से भी खरीदारी की जा सकती है। अधिकतर दुकानें सवेरा 9 बजे-रात 8 बजे तक तथा सोमवार से शनिवार तक खुली रहती हैं।
0.5
2,777.179189
20231101.hi_143969_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96
आरेख
(क) आर्गड - चित्र में संमिश्र संख्या न्अत्न्र् को किसी निर्देशांक पद्धति के निर्देश में संगत बिंदु (x,y) ये निरूपित करते हैं।
0.5
2,770.899317
20231101.hi_143969_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96
आरेख
(ख) स्वचालित आरेख वह है, जो किसी मशीन से स्वत: निर्मित हो जाता है और दो चर राशियों में सम्बन्धित विचरण को दिखाता है; उदाहरणार्थ, दिन पर्यत के ताप में परिवर्तन।
0.5
2,770.899317
20231101.hi_143969_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96
आरेख
(च) हेर्ट्ज-आरेख निर्दिष्ट हवा की मात्रा में ताप, दाब और नमी के परिवर्तन को, जबकि हवा के आयतन में रुद्धोष्म परिवर्तन हो रहा ही, निरूपित करता है। "नायहोफ आरेख" इसी के अनुरूप होता है।
0.5
2,770.899317
20231101.hi_143969_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96
आरेख
(छ) ऑयलर आरेख तार्किक सम्बन्धों का आलेखी निरूपण करता है। इसमें वृत्त अथवा अन्य चित्रों द्वारा उन राशियों की श्रेणी को सूचित करते हैं जिनपर निर्दिष्ट गुण लागू होते हैं।
0.5
2,770.899317
20231101.hi_143969_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96
आरेख
(ज) विकृति आरेख' एक चित्र है, जो किसी प्रतिबल के परिमाण और उसके कारण उत्पन्न विकृति को निरूपित करता है।
1
2,770.899317
20231101.hi_143969_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96
आरेख
Petri net – shows the structure of a distributed system as a directed bipartite graph with annotations
0.5
2,770.899317
20231101.hi_143969_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96
आरेख
Sankey diagram - represents material, energy or cost flows with quantity proportional arrows in a process network.
0.5
2,770.899317
20231101.hi_143969_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96
आरेख
SDL/GR diagram – Specification and Description Language. SDL is a formal language used in computer science.
0.5
2,770.899317
20231101.hi_143969_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96
आरेख
Michael Anderson, Peter Cheng, Volker Haarslev (Eds.) (2000). Theory and Application of Diagrams: First International Conference, Diagrams 2000''. Edinburgh, Scotland, UK, September 1-3, 2000. Proceedings.
0.5
2,770.899317
20231101.hi_27044_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8B
एस्किमो
एस्किमो, का शाबदिक अर्थ_ कच्चा मॉस खाने वाला एस्किमों जनजाति मंगोल प्रजाति से सम्बन्धीत है।एस्किमो एल्यूट भाषा बोलते है|
0.5
2,770.055778
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8B
एस्किमो
उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के चारो ओर ग्रीनलैण्ड से लेकर पश्चिम में अलास्का और बेरिंग जलडमरु मध्य के पार साइबेरिया के उत्तरी-पूर्वी चुकची प्रायद्वीप क्षेत्र तक एक पतली पट्टी में एस्किमो लोगो का निवास पाया जाता हैं। वार्षीक औसत तापमान 0 डीग्री सैल्शियस से भी नीचे रहता है। कठोर जलवायु में लगभग 10 लाख एस्किमों विगत दस हजार वर्षों से रह रहे हैं।
0.5
2,770.055778
20231101.hi_27044_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8B
एस्किमो
मौसम के बदलते कुदरती वसूलों के कारण से स्थायी घरों में नहीं रहते बल्कि वक़्त के साथ अपने निवास स्थानों को भी बदलते रहते हैं. ठंडी के मौसम में ये अपना मकान बर्फ के टुकड़ों से बनाते हैं जिन्हें इग्लू कहा जाता है. इग्लू की बनावट अर्ध गुम्बदाकार होती है. इसमें प्रवेश करने के लिए एक सुरंग नुमा रास्ता बनाया जाता है जिसके कारण घर के अन्दर प्रवेश करने और बाहर आने के लिए एस्किमो को रेंग कर आना जाना पड़ता है. साँस लेने के लिए इसमें ऊपर की तरफ एक छोटा छिद्र होता है.यह घर बने बर्फ के होते हैं मगर माना जाता है की अंदर से यह बहुत ही ज्यादा गर्म होते हैं. इसे और गर्म करने के लिए कई बार इसमें हलकी सी आग भी जलाई जाती है.
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8B
एस्किमो
इनके निवास बर्फ की सिल्लियों को अर्द्धगोलाकार रूप में जोड़कर बानाए जाते हैं जिन्हे इग्नू कहा जाता हैं। इस निवास का भीतरी भाग लगभग तीन सही एक बटा दो मीटर व्यास का होता है|
0.5
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एस्किमो
ये लोग मुख्य रूप से सील मछली का हारपून नामक हड्डीयों से बने भाले से शिकार करतें हैं तथा उसका मांस खाते हैं
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एस्किमो
ग्रीष्म ऋतु में एस्किमो अपने घर तट के किनारे - किनारे स्थापित करते हैं । इनके ये ग्रीष्मकालीन घर केरीबो तथा ध्रुवीय भालू की खाल से बने होते हैं । चमङे से बने इन घरों को 'ट्युपिक' कहा जाता है। इस प्रकार के घर अनेक परिवारों के द्वारा समूह में बनाये जाते हैं ।
0.5
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एस्किमो
ये वस्त्र कैरिबो की खाल से बने होते हैं। ये वस्त्र सील मछली की खाल की अपेक्षा अधिक गर्म एवं हल्क़े होते हैं। धुर्वीय भालू के समूर से भी वस्त्र बनाये जाते हैं। एस्किमो तिमीयाक व अनोहाक नामक वस्त्र पहनते है|
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8B
एस्किमो
ये मंगोल जाति के होते है|एस्किमो साइबेरिया के टूंड्रा प्रदेश के जनजाति है जो मछली करेबू तथा रेनडियर का शिकार करते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8B
एस्किमो
शीत ऋतु में इग्नू बनाकर रहते है। ऋतु परिवर्तन के साथ ये स्थान परिवर्तन करते हैं। यह समाज आर्थिक ,समाजिक एवम् भौगोलिक परिस्थितियों की दृष्टि से कमजोर होने के कारण अपने परिवार का पेट भरने के लिए कठिन परिश्रम करते है इनके समाज में यह परम्परा है कि जब व्यक्ति बुज़ुर्ग हो जाता है तो उस व्यक्ति के लिए अपना जीवन त्यागना होता है क्योंकि एक परिवार में केवल सीमित सदस्य ही रह सकते हैं।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
परजीविता
आरम्भ में जीवों में अपेक्षाकृत अबोध सहवास उत्पन्न हुआ होगा, जिसका उद्देश्य असहाय जीव को बलवान द्वारा सुरक्षा देना, अथवा भोज्य स्थानों तक पहुँचाना होगा। परंतु संपर्क स्थापित हो जाने पर एक बार यह कल्पना करना कठिन नहीं है कि अतिथि को परपोषी शरीर, अथवा उससे उत्पन्न पदार्थों, का आकस्मिक रूप से या जान बूझकर स्वाद लेने का मौका प्राप्त हुआ होगा, जिसने धीरे धीरे उसे बाह्य परजीवन की ओर आकर्षित किया होगा। बाह्य परजीवन स्थापित हो जाने पर अंत: परजीवन प्राप्त करना अधिक कठिन नहीं रह जाता। बाह्य परजीवी त्वचा को भेदकर, अथवा मुँह द्वारा, पाचन नली में पहुँच सकता है। पॉलीस्टोमम (Polystomum) नामक कृमि का बाह्य परजीवी से अंत:परजीवी में परिवर्तित होना, इसका अच्छा उदाहरण है। यह कृषि अपने प्रारंभिक जीवन का निर्वाह मेढक के बच्चे (टैडपोल) के गिल (gill) पर बाह्यपरजीवी की भाँति करता है, परंतु क्लोम के लुप्त होने पर वह पाचन नली द्वारा होकर प्रौढ़ (adult) मेढक के मूत्राशय में पहुँचकर परिपक्व होता है तथा अंत:परजीवी बन जाता है।
0.5
2,759.545419
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
परजीविता
जन्तुओं में भोजन प्राप्त करने के मुख्य ढंग हैं : मृतोपजीविता (Saprophytism), अर्थात् मृत जंतु या पौधे के शरीर पर निर्वाह, परमाश्रिता (predation), अर्थात् जंतुओं को मारकर खाना, तथा अन्य जीवों (जंतु या पौधों) से उत्पन्न तरल पदार्थों पर निर्वाह करना। इन सभी तरीकों द्वारा आश्रित जीव को अनाश्रित के निकट संपर्क में आना पड़ता है, जो परजीवन को प्रोत्साहित कर सकता है। कम से कम, पाचन नली में पाए जानेवाले परजीवी की उत्पत्ति समझना अपेक्षाकृत अधिक सरल है। स्वतंत्रता से रहनेवाले जीव को यदि कोई जंतु गलती से, या जानबूझकर, निगल जाय और निगला हुआ जीव पाचन नली के वातावरण को झेल सके, तो संभव है समय बीतने पर उसमें ऐसी अनुकूलनशीलताएँ उत्पन्न हो जाएँगी जो उसे पाचन नली में जीवन व्यतीत करने के लिये पूर्णतया अभ्यस्त कर देंगी और इन परजीवियों में जो अधिक महत्वाकांक्षी (ambitious) होंगे, वे शरीर के अन्य अंगों तक भी पहुँच सकते हैं। रुधिर के प्रोटोज़ोआ (protozoa) परजीवियों से इस प्रकार की उत्पत्ति की ओर संकेत मिलता है। अपने प्रारंभिक जीवनकाल में ये परजीवी किसी कीट की पाचन नली में रहते हैं और जब यह कीट किसी रीढधारी जंतु को काटता है तो परजीवी उसके रक्त में पहुँच जाते हैं।
0.5
2,759.545419
20231101.hi_217739_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
परजीविता
कुछ जन्तु (जैसे मक्खियाँ) किसी अन्य जन्तु के घाव के मांस में अंडा देते हैं। स्पष्ट है, उन अंडों से निकले बच्चों (लार्वों) को त्वचा भेदकर, या रक्त में पहुँचकर, अन्तःपरजीवी बनने का अवसर सदैव रहता है।
0.5
2,759.545419
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
परजीविता
पोषक शरीर पर परजीविता का कुछ न कुछ हानिकारक प्रभाव अवश्य पड़ता है। इस हानि की मात्रा परजीवी की सफलता या असफलता पर निर्भर करती है। सफल परजीवी अपनी अनुकूलनशीलताओं द्वारा परपोषी को कम से कम हानि पहुचाने की चेष्टा करता है, जिसके कारण परपोषी उसकी उपस्थिति की अधिक चिंता नहीं करता। इसके विपरीत असफल परजीवी के अधिक हानि के कारण वह या तो उपचार द्वारा, या अपने शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा (natural immunity) द्वारा, परजीवी से शीघ्र से शीघ्र छुटकारा पाने की चेष्टा करता है, अन्यथा स्वयं उसका शिकार बन जाता है। सफलता या असफलता परजीवी में परजीविता की प्राचीनता अथवा नवीनता की ओर भी संकेत करती है।
0.5
2,759.545419
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
परजीविता
स्वयं परजीवी पर परजीविता के भारी प्रभाव पड़ते हैं, जो दो प्रकार के होते हैं : आकृतिक (morphological) और शरीरक्रियात्मक (physiological)।
1
2,759.545419
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
परजीविता
चलन अंगों (organs of locomotion) का लुप्त होना - परजीवी को, चाहे वह बाह्य हो या अंत: परपोषी शरीर के सीमित क्षेत्र को छोड़कर अधिक चलने फिरने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अतएव चलन अंग लुप्त हो जाते हैं और उनके स्थान पर रीड़ (spines), अंकुश (hooks), चूषक (sucker) जैसे अंग उत्पन्न हो जाते हैं।
0.5
2,759.545419
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परजीविता
पाचन नली का लुप्त होना - परपोषी द्वारा पचा पचाया भोजन प्राप्त होने के कारण पाचन नली की आवश्यकता नहीं रह जाती और वह क्षीण या लुप्त हो जाती है।
0.5
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परजीविता
ज्ञानेंद्रियों का लुप्त होना - बाह्य परजीवी को स्पर्श अथवा दृश्य अंगों की आवश्यकता पड़ती है, परंतु अंत:परजीवी में उसके वातावरण की अपरिवर्तनीय दशा के कारण नाड़ी संस्थान अत्यंत क्षीण तथा ज्ञानेद्रियाँ मुख्यत: लुप्त हो जाती हैं।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
परजीविता
उपचर्म (cuticle) की उत्पत्ति - परपोषी के पाचन तथा अन्य रासायनिक रसों से अपने को सुरक्षित रखने के लिये परजीवी के शरीर पर उपचर्म की पतली झिल्ली उत्पन्न हो जाती है। जिसपर उन रसों का प्रभाव नहीं पड़ता।
0.5
2,759.545419
20231101.hi_222116_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%A8
पटसन
रेशा निकालने वाला पानी में खड़ा रहकर, डंठल का एक मूठा लेकर जड़ के निकट वाले छोर को छानी या मुँगरी से मार मार कर समस्त डंठल छील लेता है। रेशा या डंठल टूटना नहीं चाहिए। अब वह उसे सिर के चारों ओर घुमा घुमा कर पानी की सतह पर पट रख कर, रेशे को अपनी ओर खींचकर, अपद्रव्यों को धोकर और काले धब्बों को चुन चुन कर निकाल देता है। अब उसका पानी निचोड़ कर धूप में सूखने के लिये उसे हवा में टाँग देता है। रेशों की पूलियाँ बाँधकर जूट प्रेस में भेजी जाती हैं, जहाँ उन्हें अलग अलग विलगाकर द्रवचालित दाब (Hydraulic press) में दबाकर गाँठ बनाते हैं। डंठलों में 4.5 से 7.5 प्रति शत रेशा रहता है।
0.5
2,755.686629
20231101.hi_222116_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%A8
पटसन
ये साधारणतया छह से लेकर दस फुट तक लंबे होते हैं, पर विशेष अवस्थाओं में 14 से लेकर 15 फुट तक लंबे पाए गए हैं। तुरंत का निकाला रेशा अधिक मजबूत, अधिक चमकदार, अधिक कोमल और अधिक सफेद होता है। खुला रखने से इन गुणों का ह्रास होता है। जूट के रेशे का विरंजन कुछ सीमा तक हो सकता है, पर विरंजन से बिल्कुल सफेद रेशा नहीं प्राप्त होता। रेशा आर्द्रताग्राही होता है। छह से लेकर 23 प्रति शत तक नमी रेशे में रह सकती है।
0.5
2,755.686629
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%A8
पटसन
जूट की पैदावार, फसल की किस्म, भूमि की उर्वरता, अंतरालन, काटने का समय आदि, अनेक बातों पर निर्भर करते हैं। कैप्सुलैरिस की पैदावार प्रति एकड़ 10-15 मन और ओलिटोरियस की 15-20 मन प्रति एकड़ होती है। अच्छी जोताई से प्रति एकड़ 30 मन तक पैदावार हो सकती है।
0.5
2,755.686629
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%A8
पटसन
जूट के रेशे से बोरे, हेसियन तथा पैंकिंग के कपड़े बनते हैं। कालीन, दरियाँ, परदे, घरों की सजावट के सामान, अस्तर और रस्सियाँ भी बनती हैं। डंठल जलाने के काम आता है और उससे बारूद के कोयले भी बनाए जा सकते हैं। डंठल का कोयला बारूद के लिये अच्छा होता है। डंठल से लुगदी भी प्राप्त होती है, जो कागज बनाने के काम आ सकती है।
0.5
2,755.686629
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%A8
पटसन
Department of Horticulture & Landscape Architecture, Purdue University Some chemistry and medicinal information on tossa jute.
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2,755.686629
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%A8
पटसन
For entrepreneurs interested in searching for Jute related articles and Jute related Video Links and Jute products suppliers & Jute Showroom details, may visit this Blog at https://web.archive.org/web/20130419094757/http://indianjute.blogspot.com/
0.5
2,755.686629
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%A8
पटसन
Jute fabric could be used for industrial applications as composites reinforcement in sandwich design for automotive or building market. The sandwich technology using jute fabric could be viewed on https://web.archive.org/web/20090907144657/http://daifa.fr/index.php?Page=71 at §4. DAIFA have reach a leading position to supply jute fabric on the European market.
0.5
2,755.686629
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%A8
पटसन
Bangladeshi Ministry of Jute and Textile (Jute Division). The ministry in Bangladesh directly concerned with jute.
0.5
2,755.686629
20231101.hi_222116_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%A8
पटसन
National Institute of Research on Jute And Allied Fibre Technology (NIRJAFT) - under Indian Council of Agricultural Research (ICAR)
0.5
2,755.686629
20231101.hi_76241_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80
चिली
चिली दक्षिण अमेरिकी में एंडिज पर्वत और प्रशांत महासागर के बीच स्थित लंबा और संकरा देश है। देश के उत्तर में पेरु, उत्तर-पूर्व में बोलीविया, पूर्व में अर्जेन्टीना और दक्षिण छोर पर ड्रेक पैसेज स्थित है। यह दक्षिण अमेरिका के उन दो देशों (दूसरा ईक्वाडोर) में से है, जिसकी सीमाएं ब्राजील से नहीं मिलती है। देश के पश्चिम का पूरा भाग प्रशांत महासागर से लगा हुआ है, जिसकी लंबाई 6,435 किमी से भी अधिक है। दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के मध्य से दक्षिण छोर तक फैले इस देश की जलवायु में भी विविधता देखी जाती है।
0.5
2,752.752874
20231101.hi_76241_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80
चिली
शब्द चिली की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न सिद्धांत हैं। 17 वीं सदी के स्पेनिश इतिहासकार डिएगो डी रोसेल्स के अनुसार, इंकास एक पिकूंचे आदिवासी मुख्यमंत्री के नाम का भ्रष्टाचार से अकोंकागुआ "मिर्च" की घाटी कहा जाता है ("मुखिया") इंका के समय क्षेत्र जो शासन तिलि कहा जाता है, 15 वीं सदी में विजय। चिली नाम के एक शहर और घाटी वहां गया था, जहां पेरू में कासमा घाटी, के साथ कि अकोंकागुआ की घाटी की समानता के लिए एक और सिद्धांत अंक।
0.5
2,752.752874
20231101.hi_76241_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80
चिली
अन्य सिद्धांतों चिली या "समुद्र समुद्री पक्षी" "पृथ्वी की छोर" जिसका अर्थ है एक अमेरिकी मूल शब्द से अपने नाम प्राप्त कर सकते हैं का कहना है; इसका मतलब यह हो सकता है जो मापुचे शब्द मिर्च, से "भूमि समाप्त हो जाती है, जहां" या "बर्फ" या "पृथ्वी के गहरे बिंदु" या तो अर्थ क्वेशुआ chiri, "ठंड", या मिर्च, से। मिर्च के लिए जिम्मेदार ठहराया एक और मूल स्थानीय स्तर पर trile के रूप में जाना एक पक्षी के गीत की ओनोमाटोपोईक cheele-cheele-मापुचे नकली है।
0.5
2,752.752874
20231101.hi_76241_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80
चिली
स्पेनिश कॉन्कीस्टाडोरस इंकास से इस नाम के बारे में सुना है, और 1535-36 में पेरू से दक्षिण डिएगो डी अल्माग्रो की पहली स्पेनिश अभियान के कुछ बचे खुद को "मिर्च के पुरुषों" कहा जाता अंततः, अल्माग्रो नाम के सार्वभौमिकरण चिली के साथ श्रेय दिया जाता है, जैसे मापोचो घाटी के नामकरण के बाद। पुराने वर्तनी "मिर्च" "चिली" पर स्विच करने से पहले कम से कम 1900 तक अंग्रेजी में उपयोग में था।
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चिली
चिली के इतिहास में आम तौर पर वर्तमान चिली के क्षेत्र में मानव बस्ती की शुरुआत से इस दिन को लेकर बारह अवधियों में विभाजित है
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चिली
चिली दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित एक देश है। उन्होंने खुद को एक सप्ताह में तीन महाद्वीपीय देश, यानी समझता पास या तीन महाद्वीपों पर प्रदेशों का दावा है। इस अर्थ में, क्षेत्र महाद्वीपीय चिली में बांटा गया है, द्वीपीय चिली, 'द्वीपीय चिली महाद्वीपीय' और 'द्वीपीय चिली समुद्रीय "और चिली अंटार्कटिक क्षेत्र में उपखंड, प्रादेशिक दावा संधि के प्रावधानों के अनुसार में निलंबित कर दिया है चिली उनके हस्ताक्षर के बिना, एक हस्ताक्षरकर्ता है, जिनमें से अंटार्कटिक, एक छूट का गठन किया।
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