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20231101.hi_76241_6
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80
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चिली
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सेंटियागो में चिली के केंद्रीय बैंक ने देश के लिए केंद्रीय बैंक के रूप में कार्य करता है। चिली मुद्रा चिली पीसो (CLP) है। चिली मानव विकास, प्रतिस्पर्धा, प्रति व्यक्ति आय, वैश्वीकरण, आर्थिक स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार के कम धारणा में लैटिन अमेरिकी देशों के प्रमुख, दक्षिण अमेरिका के सबसे अधिक स्थिर और समृद्ध देशों में से एक है। जुलाई 2013 के बाद से, चिली, इसलिए एक विकसित देश के रूप में एक "उच्च आय अर्थव्यवस्था" के रूप में विश्व बैंक द्वारा माना जाता है और है।
| 0.5 | 2,752.752874 |
20231101.hi_76241_7
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80
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चिली
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चिली की 2002 की जनगणना में 15 लाख लोगों की आबादी की सूचना दी। जनसंख्या वृद्धि की दर की वजह से गिरावट का जन्म दर को 1990 के बाद से कम हो गई है। 2050 तक की आबादी लगभग 2.02 करोड़ लोगों तक पहुंचने की उम्मीद है। देश की आबादी का लगभग 85 प्रतिशत 40 प्रतिशत ग्रेटर सैंटियागो में रहने के साथ, शहरी क्षेत्रों में रहती है। 2002 की जनगणना के अनुसार सबसे बड़ा संकुलन 824000 से 56 लाख लोगों के साथ ग्रेटर सैंटियागो, 861,000 के साथ ग्रेटर कॉन्सेप्शन और ग्रेटर वालपाराईसो हैं।
| 0.5 | 2,752.752874 |
20231101.hi_76241_8
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80
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चिली
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चिली की संस्कृति अपेक्षाकृत सजातीय आबादी के साथ ही दक्षिण अमेरिका के आराम करने के संबंध में देश की भौगोलिक अलगाव को दर्शाता है। औपनिवेशिक काल से, चिली संस्कृति स्वदेशी (ज्यादातर मापुचे) संस्कृति के साथ स्पेनिश औपनिवेशिक तत्वों का मिश्रण किया गया है।
| 0.5 | 2,752.752874 |
20231101.hi_3288_5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8
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सम्मोहन
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यह निश्चित रूप से समझ लेना चाहिए कि सम्मोहनकर्ता जादूगर, अथवा दैवी शक्तियों का स्वामी, नहीं होता। मनुष्यों में से अधिकांश प्रेरणा या सुझाव के प्रभाव में आ जाते हैं। यदि कोई आज्ञा, जैसे "आप खड़े हो जाँए" या "कुर्सी छोड़ दें", हाकिमाना ढंग से दी जाए, तो बहुत से लोग इसका तुरन्त पालन करते हैं। यह तो सभी ने अनुभव किया है कि यदि हम किसी को उबासी लेते देखते हैं, तो इच्छा न रहने पर भी स्वयं उबासी लेने लग जाते हैं। दूसरों के हँसने पर स्वयं भी हँसते या मुस्कराते हैं तथा दूसरों को रोते देखकर उदास हो जाते हैं।
| 0.5 | 2,729.1195 |
20231101.hi_3288_6
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सम्मोहन
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जो लोग दूसरों के सुझावों को इच्छा न रहते हुए भी मान लेते हैं, वे सरलता से सम्मोहित हो जाते हैं। सम्मोहित व्यक्ति के व्यवहार में निम्नलिखित समरूपता पाई जाती है :
| 0.5 | 2,729.1195 |
20231101.hi_3288_7
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सम्मोहन
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कुछ लोगों का मत है कि जो मनुष्य पूर्ण रूप से सम्मोहित हो जाता है वह सम्मोहनकर्ता की दी हुई सब आज्ञाओं का पालन करता है, किन्तु कुछ अन्य का कहना है कि सम्मोहित व्यक्ति के विश्वासों के अनुसार यदि आज्ञा अनैतिक या अनुचित हुई, तो वह उसका पालन नहीं करता और जाग जाता है।
| 0.5 | 2,729.1195 |
20231101.hi_3288_8
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सम्मोहन
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सम्मोहनकर्ता यदि कहता है कि दो और दो सात होते है, तो सम्मोहित व्यक्ति इसे मान लेता है। यदि सम्मोहनकर्ता कहता है कि तुम घोड़ा हो, तो वह व्यक्ति हाथों और घुटनों के बल चलने लगता है।
| 0.5 | 2,729.1195 |
20231101.hi_3288_9
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सम्मोहन
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सम्मोहित व्यक्ति को ऐसी वस्तुएँ जो उपस्थित नहीं है दिखाई तथा सुनाई जा सकती है और उनका स्पर्श व अनुभव कराया जा सकता है। इस अवस्था में यह भी मनवाया जा सकता है कि वह वस्तु उपस्थित नहीं है जो वास्तव में उपस्थित है। यदि प्रेरणा दी जाए कि जिस कुर्सी पर सम्मोहित व्यक्ति बैठा है वह वहाँ नहीं है, तो वह व्यक्ति मुँह के बल जमीन पर लुढ़क जाएगा।
| 1 | 2,729.1195 |
20231101.hi_3288_10
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सम्मोहन
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सम्मोहनकर्ता के सुझाव पर सम्मोहित व्यक्ति के शरीर का कोई भाग सुन्न हो जा सकता है, यहाँ तक कि उस भाग को जलाने पर भी उसे वेदना न हो। इन्द्रियों को तीव्र बनानेवाली प्रेरणा भी कार्यकारी हो सकती है, जिससे सम्मोहित व्यक्ति असाधारण बल का प्रयोग कर सकता है, या कही हुई बात को भी दूर से सुन सकता है।
| 0.5 | 2,729.1195 |
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सम्मोहन
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व्यक्ति की सम्मोहनावस्था में दिए हुए सुझावों या आज्ञाओं का, पूर्ण चेतनता प्राप्त करने पर भी, वह पालन करता है। यदि उससे कहा गया है कि चैतन्य होने के दस मिनट बाद नहाना, तो उतना समय बीतने पर वह अपने आप ऐसा ही करता है।
| 0.5 | 2,729.1195 |
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सम्मोहन
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प्रतिदिन के जीवन में सम्मोहन के अनेक दृष्टान्त मिलते हैं। राजनीतिक या धार्मिक नेता अपने भाषणों से लोगों को सम्मोहित कर लेते हैं। आत्मसम्मोहन भी सम्भव है। किसी चमकीली वस्तु पर दृष्टि स्थिर रखकर यह अवस्था उत्पन्न की जा सकती है। अत्यधिक उत्तेजना, भय आदि से मनुष्य सम्मोहित अवस्था जैसा व्यवहार करने लगता है, या उत्तेजना के क्षण के पहले या बाद की घटनाओं को भूल जाता है। वह कौन है, उसका पिछला जीवन क्या था, यह भी भुलाया जा सकता है।
| 0.5 | 2,729.1195 |
20231101.hi_3288_13
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सम्मोहन
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आकस्मिक शारीरिक चोट, मानसिक क्षोभ, अथवा उत्तेजना के कारण, हाथ पैर रहते कभी कभी मनुष्य लूले या लँगड़े के सदृश व्यवहार करने लगता है, दृष्टि का लोप हो जाता है, अथवा वह नीन्द में ही चलने फिरने लग सकता है। दृष्टि विभ्रम, या जाग्रत अवस्था में स्वप्न देखने के अनेक उदाहरण मिलते हैं। धार्मिक उत्तेजना से सम्मोहित होकर कुछ लोग अनजाने अर्धचेतनावस्था में हो जाते हैं और कल्पित होकर कुछ लोग अनजाने अर्धचेतनावस्था में हो जाते हैं और कल्पित दृश्य या वस्तुएँ देखते या सुनते हैं। बाद में उन्हें विश्वास हो जाता है कि यह सब वास्तविक था।
| 0.5 | 2,729.1195 |
20231101.hi_32859_9
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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बिजनौर
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बिजनौर में कृषि प्रमुख है। यहाँ पर रबी, ख़रीफ़, ज़ायद आदि की प्रमुख फ़सलें होती हैं, जिनमें गन्ना, गेहूँ, चावल, मूँगफली की मुख्य उपज होती हैं।
| 0.5 | 2,726.949967 |
20231101.hi_32859_10
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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बिजनौर
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बिजनौर जनपद में हिंदू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि धर्मावलंबी रहते हैं। हिंदुओं में रवां राजपूत, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अनेक जाति-उपजातियाँ हैं। प्रमुख रूप से भुइयार (हिन्दु जुलाहा), ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गूजर, अहीर, त्यागी, रवा राजपूत, बनिया (वैश्य), चमार, कायस्थ, खत्री आदि उपजातियाँ हैं। कार्य एवं व्यवसाय के आधार पर भी अनेक उपजातियों का अस्तित्व स्वीकार किया गया है। भुइयार (हिन्दु जुलाहा), बढ़ई, कुम्हार, लुहार, सुनार, रंगरेज (छीपी), तेली (वैश्य) , गडरिया, धींवर, नाई, धोबी, माली, बागवान, भड़भूजा, खुमरा, धुना, सिंगाडि़या, कंजर, मनिहार आदि प्रमुख हैं। मुसलमानों में शेख, सैयद, मुग़ल, पठान, अंसारी, सक्का, रांघड़, कज्जाड़, तुर्क (झोझा) आदि उपजातियाँ हैं। सिक्खों व जैनियों में भी इसी प्रकार की उपजातियाँ हैं। भारत-विभाजन से अनेक पंजाबी, पाकिस्तानी और बंगाली भी यहाँ आ बसे हैं। संपूर्ण क्षेत्र में हिंदू तथा मुसलमानों का बाहुल्य है। यहाँ की भाषा हिन्दी है किंतु बोलचाल में हिन्दी की अनेक बोलियों के शब्द मिलते हैं।
| 0.5 | 2,726.949967 |
20231101.hi_32859_11
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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बिजनौर
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प्रसिद्ध व्यक्ति - बिजनौर जनपद का साहित्यिक इतिहास बहुत संपन्न है। साहित्य के क्षेत्र में जनपद को मान्यता प्रदान करने में जिन साहित्यकारों ने मुख्य भूमिका निभाई है, उनमें प्रमुख हैं संपादकाचार्य पं. रुद्रदत्त शर्मा, समीक्षक एवं संस्मरण लेखक पं. पद्मसिंह शर्मा , ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार, क़ुर्रतुल ऐन हैदर, निश्तर ख़ानक़ाही, रामगोपाल विद्यालंकार, हरिदत्त शर्मा, फतहचंद शर्मा आराधक, पत्रकार बाबूसिंह चौहान,राजेंद्र पाल सिंह कश्यप संपादक उत्तर भारत टाइम्स, शायर चंद्रप्रकाश जौहर, महेंंद्र अश्क, व्यंग्यकार रवींद्रनाथ त्यागी, साहित्यकार डॉ भोलानाथ त्यागी तथा डॉ उषा त्यागी, प्रकाशक, संपादक, कहानीकार, रूपककार अमन कुमार त्यागी, कथाकार एवं पत्रकार डॉ॰ महावीर अधिकारी, डॉ॰ गिरिराजशरण अग्रवाल, शायर व लेखक रिफत सरोश,अख्तर उल इमान,दबिस्तान ए बिजनौर के लेखक शेख़ नगीनवी,अब्दुल रहमान बिजनौरी,कौसर चांदपुरी, खालिद अल्वी, स्थानीय इतिहास, नवाचार तथा तकनीकी लेखन में ग्राम फीना के हेमन्त कुमार, इनके अतिरिक्त फ़िल्म निर्माता प्रकाश मेहरा, राजनीतिज्ञ चरन सिंह, अभिनेता विशाल भारद्वाज, फुटबॉल खिलाड़ी हरपाल सिंह और स्वतंत्रता सेनानी बख़्तखान रुहेला मुशी सिंह Dhali Aheer और DMRC के MD मंगू सिंह का जन्म भी बिजनौर में हुआ था।
| 0.5 | 2,726.949967 |
20231101.hi_32859_12
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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बिजनौर
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साहित्य के क्षेत्र में पुरस्कार -बिजनौर के गाँव फीना के इंजीनियर हेमंत कुमार द्वारा लिखी गयी पुस्तक 'विविध प्रकार के भवनों का परिचय एवं नक़्शे' को उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा 2019 का सम्पूर्णानन्द पुरस्कार दिया गया। इस पुरस्कार में सम्मान पत्र और 75 हजार की धनराशि दी गयी। प्रविधि /तकनीकी वर्ग में यह राज्य स्तर का सबसे बड़ा पुरस्कार है। हेमन्त कुमार शोध, नवाचार, हरियाली विस्तार और स्थानीय इतिहास लेखन में भी कार्य कर रहे हैं। इंजीनियर हेमन्त कुमार की पुस्तक ग्राम फीना के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उनकी संघर्ष गाथा नामक पुस्तक को इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में स्थान प्राप्त हुआ है। इनके द्वारा किये गये controlled water and air dispenser for indoor and outdoor plants तथा Adjustable mouth opening bar bending key नामक आविष्कारों को भारत सरकार ने पेटेंट प्रदान किया गया है। सिंचाई विभाग से सम्बंधित अनुसन्धान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए इंजीनियर हेमन्त कुमार को उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री जल शक्ति स्वतंत्रत देव सिंह ने अभियन्ता दिवस 2022 पर प्रदेश स्तरीय और प्रतिष्ठित ए एन खोसला पदक प्रदान किया।
| 0.5 | 2,726.949967 |
20231101.hi_32859_13
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बिजनौर
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शिक्षा संस्थान - प्रमुख स्कूल व इंटर कालेज हैं- M.D.International School,मॉडर्न इरा पब्लिक स्कूल,ए.एन.इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल, के.पी.एस. बालिका इंटर कॉलेज, गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, बिजनौर इंटर कालेज, राजा ज्वाला प्रसाद आर्य इंटर कॉलेज और सेंट मेरी कॉन्वेंट। इसके अतिरिक्त दो स्नातकोत्तर महाविद्यालय वर्धमान कॉलेज और आर.बी.डी. स्नातकोत्तर कन्या विद्यालय, एक इंजीनियरिंग कॉलेज वीरा इंजीनियरिंग कॉलेज, एक फ़ारमेसी कॉलेज विवेक कॉलेज ऑफ़ टेकनिकल एजुकेशन, दो कानून विद्यालय विवेक कॉलेज ऑफ़ लॉ और कृष्णा कॉलेज ऑफ़ लॉ, Vivek College of Ayurveda, श्रीराम गंभीर कस्तूरी लाल अब्बी ग्रुप ऑफ़ कॉलेज यहॉ की प्रमुख शिक्षा संस्थाएँ हैं।
| 1 | 2,726.949967 |
20231101.hi_32859_14
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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बिजनौर
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जिले में कृषि उद्योग प्रमुख उद्योग है। ३३ प्रतिशत जनसंख्या इसी में कार्यरत है। रबी, ख़रीफ़, ज़ायद आदि प्रमुख फ़सलें होती हैं, जिनमें गन्ना, गेहूँ, चावल, मूँगफली की मुख्य उपज हैं। २५ प्रतिशत खेतिहर मजदूर हैं। इस प्रकार ५८ प्रतिशत जनसंख्या कृषि उद्योग से संबंधित है। अन्य कर्मकार ३७ प्रतिशत तथा पारिवारिक उद्योग में ५ प्रतिशत हैं। जिले का उत्तरी क्षेत्र सघन वनों से आच्छादित होने के कारण काष्ठ उद्योग विकसित अवस्था में मिलता है। नजीबाबाद, नहटौर, माहेश्वरी, धामपुर आदि स्थानों पर काष्ठ मंडिया हैं। करघा उद्योग यहाँ का तीसरा महत्त्वपूर्ण ग्रामोद्योग है। हथकरघे से बुने हुए कपड़े नहटौर के बाज़ार में बिकते हैं। यहाँ के बने कपड़े अन्यत्र भी निर्यात किए जाते हैं। पशुओं की अधिकता के कारण चर्म उद्योग में भी बहुत से लोग लगे हुए हैं। चमड़े एवं उससे निर्मित वस्तुओं के क्रय-विक्रय से अनेक व्यक्ति जीविकोपार्जन करते हैं। बिजनौर क्षेत्र की ११४८ हेक्टेयर भूमि स्थायी चरागाह के लिए है। इसलिए पशुपालन-उद्योग विकसित अवस्था में है। इसके अतिरिक्त मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग जिसे कुम्हारगीरी का व्यवसाय भी कहते हैं, यहाँ एक प्रचलित व्यवसाय है।। लगभग सभी ग्राम-नगरों में मिट्टी के बर्तन बनानेवाले रहते हैं। अनेक लोग तेल उद्योग में लगे हुए हैं। तेली (वैश्य) उपजाति के व्यक्तियों के अतिरिक्त भी इस उद्योग को करनेवाले पाए जाते हैं। नगरों में एक्सपेलर तथा ग्रामों में परंपरागत तेल कोल्हू से तेल निकालने का कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त बाग़वानी जिसमें माली, कुँजड़े और बाग़बान (सानी) आदि उपजातियों के लोग कार्यरत हैं तथा मत्स्योद्योग अर्थात् मछली पकड़ने का कार्य-व्यवसाय करनेवाले हैं जिसमें धींवर तुरकिये आदि उपजातियों के लोग हैं। इन्हें मछियारा तथा माहेगीर भी कहते हैं। अन्य प्रमुख लघु उद्योग हैं- बढ़ईगीरी, लुहारगीरी, सुनारगीरी, रँगाई-छपाई, राजगीरी, मल्लाहगीरी, ठठेरे का व्यवसाय, वस्त्र सिलाई का काम, हलवाईगीरी, दुकानदारी, बाँस की लकड़ी से संबंधित उद्योग, गुड़-खाँडसारी उद्योग, बटाई, बुनाई का काम, वनौषधि-संग्रह आदि।
| 0.5 | 2,726.949967 |
20231101.hi_32859_15
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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बिजनौर
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कण्व आश्रम बिजनौर जनपद में अनेक ऐसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल हैं जो इस जनपद की महत्ता को प्रतिपादित करते हैं। इनमें महत्त्वपूर्ण स्थल है 'कण्व आश्रम'। अर्वाचीन काल में यह क्षेत्र वनों से आच्छादित था। मालिनी और गंगा के संधिस्थल पर रावली के समीप कण्व मुनि का आश्रम था, जहाँ शिकार के लिए आए राजा दुष्यंत ने शकंुतला के साथ गांधर्व विवाह किया था। रावली के पास अब भी कण्व आश्रम के स्मृति-चिह्न शेष हैं।
| 0.5 | 2,726.949967 |
20231101.hi_32859_16
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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बिजनौर
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विदुरकुटी महाभारत काल का एक प्रसिद्ध स्थल है 'विदुरकुटी'। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण जब हस्तिनापुर में कौरवों को समझाने-बुझाने में असफल रहे थे तो वे कौरवों के छप्पन भोगों को ठुकराकर गंगा पार करके महात्मा विदुर के आश्रम में आए थे और उन्होंने यहाँ बथुए का साग खाया था। आज भी मंदिर के समीप बथुए का साग हर ऋतु में उपलब्ध हो जाता है।
| 0.5 | 2,726.949967 |
20231101.hi_32859_17
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%B0
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बिजनौर
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दारानगर महाभारत का युद्ध आरंभ होनेवाला था, तभी कौरव और पांडवों के सेनापतियों ने महात्मा विदुर से प्रार्थना की कि वे उनकी पत्नियों और बच्चों को अपने आश्रम में शरण प्रदान करें। अपने आश्रम में स्थान के अभाव के कारण विदुर जी ने अपने आश्रम के निकट उन सबके लिए आवास की व्यवस्था की। आज यह स्थल 'दारानगर' के नाम से जाना जाता है। संभवत: महिलाओं की बस्ती होने के कारण इसका नाम दारानगर पड़ गया।
| 0.5 | 2,726.949967 |
20231101.hi_193350_9
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B5
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आटोक्लेव
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वाष्प स्पंद - वाष्प स्पंदों की श्रृंखला का उपयोग करते हुए वायु तनुकरण किया जाता है, जिसमें वायुमंडलीय दबाव के आस-पास पहुंचाने के लिए कक्ष को बारी-बारी से दबाव युक्त और दबाव रहित किया जाता है।
| 0.5 | 2,713.266635 |
20231101.hi_193350_10
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B5
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आटोक्लेव
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सुपर-वायुमंडलीय - इस प्रकार के चक्र निर्वात पम्पों का उपयोग करते हैं। यह निर्वात के साथ शुरू होता है, बाद में वाष्प स्पंद और उसके बाद निर्वात, जिसका अनुवर्तन वाष्प स्पंद करता है। स्पंदों की संख्या विशिष्ट आटोक्लेव और चयनित चक्र पर निर्भर करता है।
| 0.5 | 2,713.266635 |
20231101.hi_193350_11
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B5
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आटोक्लेव
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सब-वायुमंडलीय यह सुपर-वायुमंडलीय चक्र के समान ही होता है, लेकिन कक्ष का दबाव कभी भी वायुमंडलीय दबाव से अधिक नहीं बढ़ता है जब तक कि वे निष्कीटन तापमान तक दाबानुकूलित नहीं करते.
| 0.5 | 2,713.266635 |
20231101.hi_193350_12
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B5
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आटोक्लेव
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चिकित्सा आटोक्लेव एक ऐसा साधन है जो वाष्प का उपयोग करके उपकरणों और अन्य वस्तुओं को निष्कीटित करता है। तात्पर्य यह कि सभी बैक्टीरिया, वायरस, कवक और बीजाणु निष्क्रिय हो जाते हैं। हालांकि, क्रुत्ज़फेल्ट-जैकोब रोग के साथ जुड़े प्रीऑन जैसे रोगाणु, ऑटोक्लेविंग द्वारा विशिष्ट रूप से 134 °C पर 3 मिनट या 121 °C पर 15 मिनट में नष्ट नहीं भी हो सकते हैं। इसके अलावा, कुछ हाल ही में खोजे गए स्ट्रेन 121 जैसे जीव, 121 °C से भी अधिक तापमान पर जीवित रह सकते हैं।
| 0.5 | 2,713.266635 |
20231101.hi_193350_13
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B5
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आटोक्लेव
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आटोक्लेव कई चिकित्सा विन्यासों में और अन्य स्थानों में पाए जाते हैं, जिनमें वस्तुओं का निष्कीटन सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है। आजकल की कई प्रक्रियाएं निष्कीटित, पुनरुपयोगी वस्तुओं के स्थान पर एकल-उपयोग वस्तुओं का ही इस्तेमाल करती हैं। ऐसा पहले हाइपोडर्मिक सुईयों के साथ हुआ, लेकिन आज कई सर्जिकल उपकरण (जैसे फोरसेप, सुई धारक और स्कैल्पेल हैंडल्स) पुनरुपयोगी के बजाय सामान्यतः एकल उपयोगी मदें होते हैं। अपशिष्ट आटोक्लेव देखें.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B5
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आटोक्लेव
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क्योंकि इसमें नम गर्मी का प्रयोग किया जाता है, कुछ ताप-परिवर्ती वस्तुएं (जैसे कि प्लास्टिक) इस प्रकार निष्कीटित नहीं की जा सकती, अन्यथा वे पिघल जाएंगी. कुछ काग़ज़ या अन्य उत्पाद भी, जो वाष्प द्वारा नष्ट हो सकती हैं, अन्य उपाय द्वारा ही निष्कीटित किए जाते हैं। सभी आटोक्लेवों में, वस्तुओं को हमेशा अलग करके रखा जाना चाहिए, ताकि भाप लदी हुई मदों के भीतर समान रूप से प्रवेश कर सकें.
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आटोक्लेव
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आटोक्लेव प्रणाली का उपयोग अक्सर नगर निगम के मानक ठोस अपशिष्ट धारा में मिलाने से पहले चिकित्सा अपशिष्ट को निष्कीटित करने के लिए किया जाता है। यह अनुप्रयोग पर्यावरण और भस्मक के दाहक उपजातों द्वारा, विशेषकर व्यक्तिगत अस्पतालों से सामान्यतः संचालित छोटी इकाइयों से उत्पन्न स्वास्थ्य चिंताओं के कारण, भस्मीकरण के विकल्प के रूप में
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आटोक्लेव
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उभरा है। भस्मीकरण या उसके समान ऊष्मीय ऑक्सीकरण प्रक्रिया अभी भी आम तौर पर रोगनिदान संबंधी अपशिष्ट और अन्य बहुत विषाक्त और/या संक्रामक चिकित्सा अपशिष्ट के लिए अनिवार्य होती है।
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आटोक्लेव
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आटोक्लेव में भौतिक, रासायनिक और जैविक संकेतक मौजूद होते हैं जिनका उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि आटोक्लेव सही समय पर, सही तापमान तक पहुंचा है या नहीं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B
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कच्छ
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भगवान विष्णु के सरोवर के नाम से चर्चित इस स्थान में वास्तव में पांच पवित्र झीलें हैं। नारायण सरोवर को हिन्दुओं के अति प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थलों में शुमार किया जाता है। साथ ही इन तालाबों को भारत के सबसे पवित्र तालाबों में गिना जाता है। श्री त्रिकमरायजी, लक्ष्मीनारायण, गोवर्धननाथजी, द्वारकानाथ, आदिनारायण, रणछोडरायजी और लक्ष्मीजी के मंदिर आकर्षक मंदिरों को यहां देखा जा सकता है। इन मंदिरों को महाराज श्री देशलजी की रानी ने बनवाया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B
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कच्छ
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भद्रावती में स्थित यह प्राचीन जैन मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अति पवित्र माना जाता है। भद्रावती में 449 ईसा पूर्व राजा सिद्धसेन का शासन था। बाद में यहां सोलंकियों का अधिकार हो गया जो जैन मतावलंबी थे। उन्होंनें इस स्थान का नाम बदलकर भद्रेश्वर रख दिया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B
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कच्छ
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यह राष्ट्रीय बंदरगाह देश के 11 सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाहों में एक है। यह बंदरगाह कांडला नदी पर बना है। इस बंदरगाह को महाराव श्री खेनगरजी तृतीय और ब्रिटिश सरकार के सहयोग से 19वीं शताब्दी में विकसित किया गया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B
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कच्छ
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इस बंदरगाह को विकसित करने का श्रेय महाराज श्री खेनगरजी प्रथम को जाता है। लेखक मिलबर्न ने मांडवी को कच्छ के सबसे महान बंदरगाहों में एक माना है। बड़ी संख्या में पानी के जहाजों को यहां देखा जा सकता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B
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कच्छ
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यह बंदरगाह मुंद्रा शहर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है। ओल्ड पोर्ट और अदनी पोर्ट यहां देखे जा सकते हैं। यह बंदरगाह पूरे साल व्यस्त रहते हैं और अनेक विदेशी पानी के जहाजों का यहां से आना-जाना लगा रहता है। दूसरे राज्यों से बहुत से लोग यहां काम करने आते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B
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कच्छ
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यह बंदरगाह कच्छ जिले के सबसे प्राचीन बंदरगाहों में एक है। वर्तमान में मात्र मछली पकडने के उद्देश्य से इसका प्रयोग किया जाता है। कच्छ जिले के इस खूबसूरत बंदरगाह में तटरक्षक केन्द्र और बीएसफ का जलविभाग है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B
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कच्छ
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भुज विमानक्षेत्र और कांदला विमानक्षेत्र कच्छ जिले के दो महत्वपूर्ण एयरपोर्ट हैं। मुंबई से यहां के लिए नियमित फ्लाइट्स हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B
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कच्छ
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गांधीधाम और भुज में जिले के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं। यह रेलवे स्टेशन कच्छ को देश के अनेक हिस्सों से जोड़ते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B
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कच्छ
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कच्छ सड़क मार्ग द्वारा गुजरात और अन्य पड़ोसी राज्यों के बहुत से शहरों से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन और प्राईवेट डीलक्स बसें गुजरात के अनेक शहरों से कच्छ के लिए चलती रहती हैं।
| 0.5 | 2,712.243561 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81
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साधु
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के रूप में रहने वाले एक साधु एक मुश्किल है, जीवन शैली है। साधुओं पर विचार कर रहे हैं करने के लिए मृत हो सकता है स्वयं के इधार, और कानूनी तौर पर मृत देश के लिए भारत में है। एक अनुष्ठान के रूप में, वे आवश्यक हो सकता है में भाग लेने के लिए अपने स्वयं के अंतिम संस्कार के बाद से पहले एक गुरु के कई वर्षों के लिए, उसे सेवा कर रही सेवक का कार्य जब तक अत्यंत आवश्यक अनुभव छोड़ करने के लिए अपने नेतृत्व. [प्रशस्ति पत्र की जरूरत]
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81
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साधु
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जबकि जीवन के त्याग के रूप में वर्णित है चौथे चरण के जीवन में शास्त्रीय संस्कृत साहित्य के हिन्दू परंपरा, और सदस्यों के कुछ संप्रदायों—विशेष रूप से उन लोगों का प्रभुत्व शुरू ब्रह्म की पृष्ठभूमि में आम तौर पर रहते थे के रूप में गृहस्वामियों और उठाया परिवारों बनने से पहले साधु-कई संप्रदायों से बना रहे हैं पुरुषों है कि त्याग के जीवन में जल्दी, अक्सर अपने देर से किशोर या जल्दी 20s. कुछ मामलों में, जो उन लोगों का चयन साधु जीवन से भाग रहे हैं परिवार या वित्तीय स्थितियों जो वे पाया जा करने के लिए अस्थिर है,[प्रशस्ति पत्र की जरूरत] अगर वहाँ कुछ सांसारिक ऋण है कि बनी हुई है चुकाया जा करने के लिए, होगा renunciates प्रोत्साहित कर रहे हैं के द्वारा अपने गुरुओं के लिए उन ऋण बंद का भुगतान करने से पहले वे बन साधुओं.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81
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साधु
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Ruggedness के साधु जीवन के रवैयों के लिए बाधक कई के बाद से साधु पथ है। इस तरह के व्यवहार के रूप में अनिवार्य सुबह जल्दी स्नान में ठंडे पहाड़ों की आवश्यकता होती है एक टुकड़ी से आम विलासिता है. स्नान के बाद, साधुओं के चारों ओर इकट्ठा dhuni, या पवित्र चिमनी, और के साथ शुरू अपनी प्रार्थना और ध्यान के लिए दिन.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81
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साधु
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कुछ साधुओं के बग़ैर इलाज के लिए स्थानीय समुदाय, निकालें बुराई आँखें या आशीर्वाद के साथ एक शादी. वे कर रहे हैं एक पैदल अनुस्मारक के लिए औसत हिंदू के देवत्वहै। वे कर रहे हैं आम तौर पर स्वीकार्य मुक्त बीतने पर गाड़ियों कर रहे हैं और एक के पास से बुनना संगठन है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81
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साधु
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कुंभ मेला, एक जन-सभा के साधुओं से भारत के सभी भागों में, जगह लेता है, हर तीन साल में एक से चार अंक के साथ पवित्र नदियों में भारत सहित पवित्र नदी गंगाहै। यह 2007 में आयोजित किया गया था में नासिक, महाराष्ट्र. पीटर ओवेन जोन्स फिल्माया एक प्रकरण के "चरम तीर्थ" वहाँ इस घटना के दौरान. यह जगह ले ली फिर हरिद्वार में 2010 में. साधुओं के संप्रदायों में शामिल होने के इस पुनर्मिलन. लाखों लोगों की गैर-साधु भी तीर्थयात्रियों में भाग लेने के त्योहारों, और कुंभ मेले की सबसे बड़ी सभा है मनुष्य के लिए एक एकल धार्मिक उद्देश्य ग्रह पर; सबसे हाल ही में कुंभ मेला शुरू, 14 जनवरी, 2013, इलाहाबाद.[प्रशस्ति पत्र की जरूरत] , समारोह में साधुओं कर रहे हैं "बड़ी भीड़ खींचने", जहां उनमें से कई, "पूरी तरह से नग्न के साथ ऐश-लिप्त शरीर, स्प्रिंट में मिर्च पानी में डुबकी लगाने के लिए सुबह की दरार में".
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81
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साधु
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जीवन के साधुओं समकालीन भारत में काफी भिन्नता है. साधुओं में रहते हैं आश्रमों और मंदिरों के बीच में प्रमुख शहरी केंद्रों में, झोपड़ियों के किनारों पर गांवों, गुफाओं में सुदूर पहाड़ों में. दूसरों को जीवन जीने का शाश्वत तीर्थ यात्रा चलती है, बंद के बिना एक शहर में, एक पवित्र जगह है, एक और करने के लिए है। कुछ गुरुओं के साथ रहते हैं एक या दो चेलों; कुछ संन्यासियों एकान्त हैं, जबकि दूसरों के बड़े में रहते हैं, सांप्रदायिक संस्थाओं. के लिए कुछ साधुओं ब्रदरहुड या बहनापा संन्यासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81
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साधु
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परिशुद्धता के आध्यात्मिक प्रथाओं में जो समकालीन साधुओं संलग्न यह भी एक महान सौदा बदलता है। के अलावा बहुत कुछ शामिल है कि सबसे नाटकीय में, हड़ताली तपस्या—उदाहरण के लिए, एक पैर पर खड़े अंत पर साल के लिए या चुप शेष के लिए एक दर्जन से अधिक वर्षों—सबसे साधुओं में संलग्न के रूप में कुछ धार्मिक अभ्यास: भक्ति पूजा, हठ योग, उपवास, आदि. के लिए कई साधुओं की खपत के कुछ रूपों भांग है दी एक धार्मिक महत्वहै।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81
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साधु
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साधुओं पर कब्जा के लिए एक अनूठा और महत्वपूर्ण जगह में हिन्दू समाज में, विशेष रूप से गांवों और छोटे शहरों में और अधिक बारीकी से करने के लिए बंधे परंपरा है। इसके अलावा करने के लिए कन्यादान धार्मिक शिक्षा और आशीर्वाद के लिए लोगों को करना है, साधुओं अक्सर कहा जाता है पर निर्णय करने के लिए विवादों के बीच व्यक्तियों या में हस्तक्षेप करने के लिए संघर्ष परिवारों के भीतर. साधुओं भी कर रहे हैं रहने के embodiments देवी की छवियों, क्या मानव जीवन में, हिन्दू देखने के लिए, सही मायने में के बारे में – धार्मिक रोशनी और मुक्ति से जन्म और मृत्यु के चक्र.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81
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साधु
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हालांकि कुछ तपस्वी संप्रदायों गुण के अधिकारी है कि राजस्व उत्पन्न करने के लिए बनाए रखने के सदस्यों, सबसे साधुओं पर भरोसा करते हैं, दान के लोगों को रखना; गरीबी और भूख से कर रहे हैं कभी वर्तमान वास्तविकताओं के लिए कई साधुओं.
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20231101.hi_11604_2
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D
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मालविकाग्निमित्रम्
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अर्थात पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी तथा हेय। विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठकर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख लोग दूसरों द्वारा बताने पर ग्राह्य अथवा अग्राह्य का निर्णय करते हैं।
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20231101.hi_11604_3
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D
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मालविकाग्निमित्रम्
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वस्तुतः यह नाटक नाट्य-साहित्य के वैभवशाली अध्याय का प्रथम पृष्ठ है। लगभग 2200 वर्ष पूर्व के युग का चित्रण करते इस नाटक में शुंग वंश के काल की कला, संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था आदि की उल्लेखनीय झलक मिलती है। इस नाटक में कालिदास द्वारा स्वांग, चतुष्पदी छन्द तथा गायन के साथ अभिनय के भी संकेत किये गए हैं, जो इंगित करते हैं कि उस युग में भी लोकनाट्य के तत्व विद्यमान थे।
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20231101.hi_11604_4
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मालविकाग्निमित्रम्
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कालिदास ने इस नाटक में अत्यन्त मनोहर नृत्य-अभिनय का उल्लेख किया है। वह चित्र अपने में इतना प्रभावशाली, रमणीय और सरस है कि समूचे तत्कालीन साहित्य में अप्रतिम माना जाता है। नाटक में दो नृत्याचार्यों में अपनी कला निपुणता के सम्बन्ध में झगड़ा होता है और यह निर्णय होता है कि दोनों अपनी-अपनी शिष्याओं का नृत्य-अभिनय दिखाएँ। यह भी निर्णय होता है कि पक्षपातरहित निर्णय के लिए जानी जानेवाली विदुषी, भगवती कौशिकी निर्णय करेंगी कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है। दोनों आचार्य तैयार होते हैं, मृदंग बज उठता है, प्रेक्षागृह में दर्शकगण यथास्थान बैठ जाते हैं और प्रतियोगिता प्रारम्भ होती है। इस प्रकार के दृश्य का पूर्ववर्ती साहित्य में कहीं उल्लेख नहीं हुआ है जबकि परवर्ती फिल्मों और धारावाहिकों में इससे प्रेरणा लेकर आज भी यह दृश्य प्रस्तुत किया जाता है।
| 0.5 | 2,694.983034 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D
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मालविकाग्निमित्रम्
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नाटक की कथावस्तु राजकुमारी मालविका और विदिशा नरेश अग्निमित्र के मध्य प्रेम पर केन्द्रित है। विदर्भ राज्य की स्थापना अभी कुछ ही दिनों पूर्व हुई थी। इसी कारण इस नाटक में विदर्भ राज्य को "नवसरोपणशिथिलस्तरू" (जो सद्यः स्थापित है) कहा गया है। यज्ञसेन इस समय विदर्भ का राजा है जो पूर्व मौर्य सम्राट् वृहद्रथ के मन्त्री का सम्बन्धी था। विदर्भराज ने अग्निमित्र की अधीनता को स्वीकार नहीं किया। दूसरी ओर कुमार माधवसेन यद्यपि यज्ञसेन का सम्बन्धी (चचेरा भाई) था, परन्तु अग्निमित्र ने उसे अपनी ओर मिला लिया। जब माधवसेन गुप्त रूप से अग्निमित्र से मिलने जा रहा था, यज्ञसेन के सीमारक्षकों ने उसे बन्दी बना लिया। अग्निमित्र इससे अत्यन्त क्रुद्ध हो गया। उसने यज्ञसेन के पास यह सन्देश भेजा कि वह माधवसेन को मुक्त कर दे। किन्तु यज्ञसेन ने माधवसेन को इस शर्त पर छोड़ने का आश्वासन दिया कि शुंगों के बन्दीगृह के बन्दी पूर्व मौर्य सचिव तथा उनके साले का मुक्त करते है तो ही कुमार माधवसेन को मुक्त किया जाएगा। इससे अग्निमित्र और क्रुद्ध हो गए और उन्होंने अपने सेनापति वीरसेन, जो उनके मित्र भी थे, से आक्रमण करने का आदेश दे दिया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D
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मालविकाग्निमित्रम्
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इस प्रकार, विदर्भ पर शुंगों का आक्रमण हुआ। युद्ध में यज्ञसेन आत्म समर्पण करने के लिए बाध्य हुआ। माधवसेन मुक्त कर दिया गया। विदर्भ राज्य को दोनों चचेरे भाइयों के बीच बाँट दिया गया। वर्धा नदी को उन दोनों राज्यों की सीमा निर्धारित किया गया।वर्धा नदी के एक तरफ माधवसेन और दूसरी तरफ यज्ञसेन को राजा बनाया जाता है। दोनो अग्निमित्र के आधीन शासन करना शुरू करते है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D
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मालविकाग्निमित्रम्
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इधर विदर्भ राज्य पर अधिकार हेतु संघर्ष की स्थिति में माधवसेन अपनी बहन मालविका को सुरक्षा हेतु अन्यत्र भेज देते हैं। परिस्थितिवश मालविका भागकर विदिशा आती है, यहां राज्य के महामात्य (मंत्री) से मुलाकात होती है जो उन्हें वेष बदलकर रहने की अनुमति देता है। अग्निमित्र के राजमहल में ही, अग्निमित्र की पहली पत्नी महारानी धारिणी मालविका को संगीत-नृत्य सिखाने हेतु नाट्यचार्य गणदास को नियुक्त करती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D
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मालविकाग्निमित्रम्
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विदर्भ विजय से अग्निमित्र शुंग की प्रतिष्ठा में अच्छी अभिवृद्धि हुई। एक दिन अग्निमित्र विदर्भ जाते है वहाँ राजा माधवसेन के महल में किसी चित्रकार द्वारा बनाये राजा माधवसेन की बहन मालविका का चित्र देखते है और उससे उन्हें प्रेम हो जाता है।
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मालविकाग्निमित्रम्
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धारिणी प्रयत्न करती है कि राजा अग्निमित्र मालविका के रूप-सौन्दर्य पर मुग्ध न हो जाएं। फिर भी इसकी जानकारी अग्निमित्र को हो जाती है, वह मालविका की सुन्दरता पर मोहित हो जाते हैं। राजा के मित्र और विदूषक गौतम के प्रयासों से दोनों का मिलन होता है। कुछ समय बाद विदिशा में सांस्कृतिक आयोजन होता है, जिसमें राजा अग्निमित्र मालविका को बिना किसी विचार के विजयी घोषित कर देते हैं। नाटक के अन्त में मालविका की राजसी पृष्ठभूमि के सम्बन्ध में ज्ञात होने पर धारिणी स्वयं मालविका और अग्निमित्र का विवाह करवा देती है।
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मालविकाग्निमित्रम्
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नाटक के प्रारम्भ में रानी धारिणी मालविका को राजा की दृष्टि से छिपाये रखना चाहती हैं। रानी धारिणी की आज्ञा से मालविका के नृत्य और गायन की शिक्षा की प्रगति के संबंध में नाट्याचार्य गणदास से जानकारी करने के लिए जा रही वकुलावलिका की भेंट कौमुदिनी से हो जाती है जो रानी के लिए सांकित अँगूठी लेकर स्वर्णकार के यहाँ से लौट रही थी। उन दोनों की वार्ता से ज्ञात होता है कि मालविका के सौन्दर्य के कारण रानी धारिणी उसे राजा अग्निमित्र की दृष्टि से दूर रखना चाहती है। परन्तु एक दिन चित्रशाला में चित्र देखती हुई महादेवी के निकट उपस्थित होकर राजा मालविका का चित्र देख लेता है, और उसके बारे में पूछने पर वसुलक्ष्मी बालभाव से कह देती हैं कि यह मालविका है। मालविका को देखकर राजा उसके सौंदर्य पर मोहित हो गया। कौमुदिनी धारिणी के पास चली जाती है और वकुलावलिका गणदास के पास, गणदास मालविका की निपुणता और गृहणशक्ति की प्रशंसा करता है। इसी को देवी अपने विश्वासपात्र नाट्याचार्य गणदास के पास संगीत नृत्य की शिक्षा के लिए रख छोड़ती है और मालूम होता है कि वह बड़ी कुशलता से नृत्य की प्रायोगिक शिक्षा ग्रहण कर रही है।
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अग्निपुराण
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इस पुराण के वक्ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह 'अग्निपुराण' कहलाता है। अत्यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से अन्य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्ट तथा महत्वपूर्ण हो जाता है।
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अग्निपुराण
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पद्म पुराण में भगवान् विष्णु के पुराणमय स्वरूप का वर्णन किया गया है और अठारह पुराण भगवान के 18 अंग कहे गए हैं। उसी पुराणमय वर्णन के अनुसार ‘अग्नि पुराण’ को भगवान विष्णु का बायां चरण कहा गया है।
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अग्निपुराण
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आधुनिक उपलब्ध अग्निपुराण के कई संस्करणों में ११,४७५ श्लोक है एवं ३८३ अध्याय हैं, परन्तु नारदपुराण के अनुसार इसमें १५ हजार श्लोकों तथा मत्स्यपुराण के अनुसार १६ हजार श्लोकों का संग्रह बतलाया गया है। बल्लाल सेन द्वारा दानसागर में इस पुराण के दिए गए उद्धरण प्रकाशित प्रतियों में उपलब्ध नहीं है। इस कारण इसके कुछ अंशों के लुप्त और अप्राप्त होने की बात अनुमानतः सिद्ध मानी जा सकती है।
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अग्निपुराण
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अग्निपुराण में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है। सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है।
| 0.5 | 2,693.240465 |
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अग्निपुराण
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अग्नि पुराण के अनुसार इसमें सभी विधाओं का वर्णन है। यह अग्निदेव के स्वयं के श्रीमुख से वर्णित है, इसलिए यह प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण पुराण है। यह पुराण अग्निदेव ने महर्षि वशिष्ठ को सुनाया था। यह पुराण दो भागों में हैं पहले भाग में पुराण ब्रह्म विद्या का सार है। इसके आरंभ में भगवान विष्णु के दशावतारों का वर्णन है। इस पुराण में ११ रुद्रों, ८ वसुओं तथा १२ आदित्यों के बारे में बताया गया है। विष्णु तथा शिव की पूजा के विधान, सूर्य की पूजा का विधान, नृसिंह मंत्र आदि की जानकारी भी इस पुराण में दी गयी है। इसके अतिरिक्त प्रासाद एवं देवालय निर्माण, मूर्ति प्रतिष्ठा आदि की विधियाँ भी बतायी गयी है। इसमें भूगोल, ज्योतिः शास्त्र तथा वैद्यक के विवरण के बाद राजनीति का भी विस्तृत वर्णन किया गया है जिसमें अभिषेक, साहाय्य, संपत्ति, सेवक, दुर्ग, राजधर्म आदि आवश्यक विषय निर्णीत है। धनुर्वेद का भी बड़ा ही ज्ञानवर्धक विवरण दिया गया है जिसमें प्राचीन अस्त्र-शस्त्रों तथा सैनिक शिक्षा पद्धति का विवेचन विशेष उपादेय तथा प्रामाणिक है। इस पुराण के अंतिम भाग में आयुर्वेद का विशिष्ट वर्णन अनेक अध्यायों में मिलता है, इसके अतिरिक्त छंदःशास्त्र, अलंकार शास्त्र, व्याकरण तथा कोश विषयक विवरण भी दिये गए है।
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20231101.hi_54615_6
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अग्निपुराण
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पुराण साहित्य में अग्निपुराण अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। साधारण रीति से पुराण को 'पंचलक्षण' कहते हैं, क्योंकि इसमें सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (संहार), वंश, मन्वंतर तथा वंशानुचरित का वर्णन अवश्यमेव रहता है, चाहे परिमाण में थोड़ा न्यून ही क्यों न हो। परंतु अग्निपुराण इसका अपवाद है। प्राचीन भारत की परा और अपरा विद्याओं का तथा नाना भौतिकशास्त्रों का इतना व्यवस्थित वर्णन यहाँ किया गया है कि इसे वर्तमान दृष्टि से हम एक विशाल विश्वकोश कह सकते हैं।
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अग्निपुराण
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यह अग्नि पुराण का कथन है जिसके अनुसार अग्नि पुराण में सभी विधाओं का वर्णन है। यह अग्निदेव के स्वयं के श्रीमुख से वर्णित है इसलिए यह प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण पुराण है। यह पुराण उन्होंने महर्षि वशिष्ठ को सुनाया था। यह पुराण दो भागों में हैं पहले भाग में ब्रह्म विद्या का सार है। इसको सुनने से देवगण ही नहीं समस्त प्राणी जगत् सुख प्राप्त करता है। विष्णु भगवान के अवतारों का वर्णन है। वेग के हाथ के मंथन से उत्पन्न पृथु का आख्यान है। दिव्य शक्तिमयी मरिषा की कथा है। कश्यप ने अपनी अनेक पत्नियों द्वारा परिवार विस्तार किया उसका वर्णन भी किया गया है।
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अग्निपुराण
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भगवान् अग्निदेव ने देवालय निर्माण के फल के विषय में आख्यान दिए हैं और चौसठ योगनियों का सविस्तार वर्णन भी है। शिव पूजा का विधान भी बताया गया है। इसमें काल गणना के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला गया है। साथ ही इसमें गणित के महत्त्व के साथ विशिष्ट राहू का वर्णन भी है। प्रतिपदा व्रत, शिखिव्रत आदि व्रतों के महत्त्व को भी दर्शाया गया है। साथ ही धीर नामक ब्राह्मण की एक कथा भी है। दशमी व्रत, एकादशी व्रत आदि के महत्त्व को भी बताया गया है।
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अग्निपुराण
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अग्नि पुराण में अग्निदेव ने ईशान कल्प का वर्णन महर्षि वशिष्ठ से किया है। इसमे पन्द्रह हजार श्लोक है। इसके अन्दर पहले पुराण विषय के प्रश्न है फ़िर अवतारों की कथा कही गयी है, फ़िर सृष्टि का विवरण और विष्णुपूजा का वृतांत है। इसके बाद अग्निकार्य, मन्त्र, मुद्रादि लक्षण, सर्वदीक्षा विधा और अभिषेक निरूपण है। इसके बाद मंडल का लक्षण, कुशामापार्जन, पवित्रारोपण विधि, देवालय विधि, शालग्राम की पूजा और मूर्तियों का अलग अलग विवरण है। फ़िर न्यास आदि का विधान प्रतिष्ठा पूर्तकर्म, विनायक आदि का पूजन, नाना प्रकार की दीक्षाओं की विधि, सर्वदेव प्रतिष्ठा, ब्रहमाण्ड का वर्णन, गंगादि तीर्थों का माहात्म्य, द्वीप और वर्ष का वर्णन, ऊपर और नीचे के लोकों की रचना, ज्योतिश्चक्र का निरूपण, ज्योतिष शास्त्र, युद्धजयार्णव, षटकर्म मंत्र, यन्त्र, औषधि समूह, कुब्जिका आदि की पूजा, छ: प्रकार की न्यास विधि, कोटि होम विधि, मनवन्तर निरूपण ब्रह्माचर्यादि आश्रमों के धर्म, श्राद्धकल्प विधि, ग्रह यज्ञ, श्रौतस्मार्त कर्म, प्रायश्चित वर्णन, तिथि व्रत आदि का वर्णन, वार व्रत का कथन, नक्षत्र व्रत विधि का प्रतिपादन, मासिक व्रत का निर्देश, उत्तम दीपदान विधि, नवव्यूहपूजन, नरक निरूपण, व्रतों और दानों की विधि, नाडी चक्र का संक्षिप्त विवरण, संध्या की उत्तम विधि, गायत्री के अर्थ का निर्देश, लिंगस्तोत्र, राज्याभिषेक के मंत्र, राजाओं के धार्मिक कृत्य, स्वप्न सम्बन्धी विचार का अध्याय, शकुन आदि का निरूपण, मंडल आदि का निर्देश, रत्न दीक्षा विधि, रामोक्त नीति का वर्णन, रत्नों के लक्षण, धनुर्विद्या, व्यवहार दर्शन, देवासुर संग्राम की कथा, आयुर्वेद निरूपण, गज आदि की चिकित्सा, उनके रोगों की शान्ति, गो चिकित्सा, मनुष्यादि की चिकित्सा, नाना प्रकार की पूजा पद्धति, विविध प्रकार की शान्ति, छन्द शास्त्र, साहित्य, एकाक्षर, आदि कोष, प्रलय का लक्षण, शारीरिक वेदान्त का निरूपण, नरक वर्णन, योगशास्त्र, ब्रह्मज्ञान तथा पुराण श्रवण का फ़ल बताया गया है।
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20231101.hi_194880_21
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स्नेहक
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नोट: हालांकि आम तौर पर लूब्रिकेंट एक या दूसरे प्रकार के बेस ऑयल पर आधारित हैं, यह संभव है कि निष्पादन अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए बेस ऑयल के मिश्रणों का इस्तेमाल किया जाए.
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स्नेहक
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एक प्राकृतिक जल विकर्षक, लानोलिन भेड़ ऊन ग्रीज़ से व्युत्पन्न है और अधिक आम पेट्रो-रसायन आधारित लूब्रिकेंटों का विकल्प है। यह लूब्रिकेंट ज़ंग निरोधक भी है, जो ज़ंग, लवण और अम्लों से रक्षा करता है।
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स्नेहक
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स्वयं जल का उपयोग किया जा सकता है, या अन्य किसी बेस ऑयल के संयोजन से प्रमुख घटक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सामान्यतः मिलिंग और लैथ टर्निंग जैसी इंजीनियरिंग प्रक्रियाओं में प्रयुक्त होता है।
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स्नेहक
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यह शब्द कच्चे तेल से व्युत्पन्न लूब्रिकेटिंग बेस ऑयल को स्पष्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिकन पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट (API) विभिन्न प्रकार के लूब्रिकेंट बेस ऑयल को निर्दिष्ट करता है जिनकी निम्न रूप में पहचान की गई है:
| 0.5 | 2,687.655696 |
20231101.hi_194880_25
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%95
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स्नेहक
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समूह I - संतृप्त <90% और/या सल्फ़र >0.03%, तथा सोसाइटी ऑफ़ ऑटोमोटिव इंजीनियर्स (SAE) 80 से 120 का चिपचिपाहट सूचकांक (VI)
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स्नेहक
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विलायक निष्कर्षण, विलायक या उत्प्रेरक डीवैक्सिंग और जल परिष्करण प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित. आम समूह I के बेस ऑयल हैं आधार तेल 150SN (विलायक तटस्थ), 500SN और 150BS (ब्राइटस्टॉक)
| 0.5 | 2,687.655696 |
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स्नेहक
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हाइड्रोक्रैकिंग द्वारा विनिर्मित और विलायक या उत्प्रेरक डीवैक्सिंग प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित. समूह II बेस ऑयल के बेहतर ऑक्सीकरण-विरोधी गुण हैं चूंकि लगभग सभी हाइड्रोकार्बन अणु संतृप्त हो गए हैं। इसका रंग पानी के समान सफ़ेद है।
| 0.5 | 2,687.655696 |
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स्नेहक
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आइसोहाइड्रोमराइज़ेशन जैसी विशेष प्रक्रिया द्वारा निर्मित. बेस तेल या स्लैक्स वैक्स से डीवैक्सिंग प्रक्रिया द्वारा निर्मित.
| 0.5 | 2,687.655696 |
20231101.hi_194880_29
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स्नेहक
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उत्तरी अमेरिका में, समूह III, IV और V को अब सिंथेटिक लूब्रिकेंट के रूप में अब वर्णित किया जाता है, जबकि समूह III को अक्सर संश्लेषित हाइड्रोकार्बन, या SHCs के रूप में वर्णित किया जाता है। यूरोप में, केवल समूह IV और V को सिंथेटिक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
| 0.5 | 2,687.655696 |
20231101.hi_12169_2
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
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लोकोक्ति
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लोकोक्ति और मुहवरों में अन्तर है। मुहावरा पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है। लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है।
| 0.5 | 2,687.498281 |
20231101.hi_12169_3
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लोकोक्ति
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लोकोक्ति का वाक्य में ज्यों का त्यों उपयोग होता है। मुहावरे का उपयोग क्रिया के अनुसार बदल जाता है लेकिन लोकोक्ति का प्रयोग करते समय इसे बिना बदलाव के रखा जाता है। हाँ, कभी-कभी काल के अनुसार परिवर्तन सम्भव है।
| 0.5 | 2,687.498281 |
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लोकोक्ति
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हिंदी की डिक्शनरी के अनुसार कई लोग कहावत और लोकोक्ति में अंतर नहीं कर पाते, लेकिन ये दोनों कुछ हद तक अलग-अलग होती हैं। दरअसल, कहावत किसी भी आम व्यक्ति द्वार कही हो सकती है, जबकि लोकोक्ति उसे कहते हैं, जिसे विद्वानों द्वारा कहा गया है।
| 0.5 | 2,687.498281 |
20231101.hi_12169_5
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लोकोक्ति
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डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, “विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों एवं लोक विश्वास आदि पर आधारित चुटीला, सरगर्भित, सजीव, संक्षिप्त लोक प्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं जिनका प्रयोग बात की पुष्टि या विरोध, सीख तथा भविष्य कथन आदि के लिए किया जाता है।”
| 0.5 | 2,687.498281 |
20231101.hi_12169_6
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
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लोकोक्ति
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धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार, “लोकोक्तियां ग्रामीण जनता की नीति शास्त्र है। यह मानवीय ज्ञान के घनीभूत रत्न हैं।”
| 1 | 2,687.498281 |
20231101.hi_12169_7
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लोकोक्ति
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अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा = जहाँ मालिक मूर्ख हो वहाँ सद्गुणों का आदर नहीं होता।
| 0.5 | 2,687.498281 |
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लोकोक्ति
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गीदड़ की शामत आए तो वह शहर की तरफ भागता है = जब विपत्ति आती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।
| 0.5 | 2,687.498281 |
20231101.hi_12169_9
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लोकोक्ति
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घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध = जो मनुष्य बहुत निकटस्थ या परिचित होता है, उसकी योग्यता को न देखकर बाहर वाले की योग्यता देखना।
| 0.5 | 2,687.498281 |
20231101.hi_12169_10
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
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लोकोक्ति
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जहाँ चाह, वहाँ राह = जब किसी काम को करने की व्यक्ति की इच्छा होती है, तो उसे उसका साधन भी मिल ही जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%82%E0%A4%9F
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ईंट
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एक काम के लिए सही ईंट रंग, सतह, बनावट, घनत्व, भार, अवशोषण और संरचना, ताप विशेषताओं, ताप और नमी की गति अग्नि प्रतिरोधकता से चुना जा सकता है।
| 0.5 | 2,686.645761 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%82%E0%A4%9F
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ईंट
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इंग्लैंड में, सामान्य ईंटों की लंबाई और चौड़ाई सदियों से के निरंतर समान बनी रही है, लेकिन आधुनिक समय में, गहराई में करीब ढ़ाई इंच (लगभग 63 मिमी) का अंतर हाल में आया है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, आधुनिक ईंटें आमतौर पर लगभग 8 × 4 × 2.25 इंच (203 × 102 × 57 मिमी) की हैं। यूनाइटेड किंगडम में, सामान्यत: ("काम") आधुनिक ईंट का आकार 215 × 65 मिमी × 102.5 (करीब 8.5 × 4 × 2.5 इंच) है, जो न्यूनतम 10 मिमी गारा के जोड़ के साथ एक "समन्वय" या 225 × 112.5 मिमी × 75मिमी, 06:03:02 के अनुपात के लिए बनाते हैं।
| 0.5 | 2,686.645761 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%82%E0%A4%9F
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ईंट
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कुछ ईंट निर्माता प्लास्टर (इसलिए दृश्यमान नहीं) के लिए उपयोग करने के लिए अभिनव आकार और आकृति के ईंटों को बनाते हैं जहां उनकी निहित यांत्रिक गुण दृश्यमान की तुलना में अधिक है। ये ईंटें आमतौर पर थोड़ी बड़ी होती हैं, लेकिन ब्लॉक के रूप में बड़ा नहीं और निम्न लाभ की पेशकश करती हैं:
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%82%E0%A4%9F
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ईंट
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ब्लॉकों के पास आकारों की व्यापक शृंखला है। लंबाई और ऊंचाई में समन्वय मानक आकार (मिमी) में शामिल हैं 400 × 200, 450 × 150, 450 × 200, 450 × 225, 450 × 300, 600 × 150, 600 × 200 और 600 × 225; गहराई (काम आकार, मिमी) 60, 75, 90, 100, 115, 140, 150, 190, 200, 225 और 250. वे इस शृंखला में प्रयोग करने योग्य हैं क्योंकि वे मिट्टी की ईंटों की तुलना में हल्का रहे हैं। ठोस मिट्टी की ईंटों का घनत्व 2,000 किलो/m³ के आसपास है, यह दादुरी, खोखली ईंटों आदि से कम है, लेकिन वातित, स्वत:छिद्रित और ठोस ईंट, ठोस ईंट के समान, 450–850 kg/m³ की श्रेणी में हो सकती हैं।
| 0.5 | 2,686.645761 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%82%E0%A4%9F
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ईंट
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ईंटों को ठोस (आयतन में 25 प्रतिशत से कम छेदों की कतार, हालांकि ईंट "दादुरी" हो सकती हैं, छोटे अग्रभाग के निशान के साथ), छिद्रित (25 प्रतिशत से कम आयतन को निकालते हुए छोटी छिद्रों वालो प्रतिमान), सेलुलर (20 प्रतिशत से अधिक आयतन को निकालते हुए छिद्रो के प्रतिमान सहित) या (खोखले (ईंट के आयतन के 25 प्रतिशत से अधिक को निकाल कर बड़े छिद्रों को शामिल करने वाला प्रतिमान). ब्लॉक ठोस, सेलुलर या खोखले हो सकते हैं
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%82%E0%A4%9F
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ईंट
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ईंट के एक बिस्तर पर इंडेंटेशन के लिए शब्द "melfrog जो अक्सर अपने मूल रूप में जिज्ञासा उत्तेजित करता है। सबसे अधिक संभावित विवरण है कि ईंट निर्माता भी कहते हैं, कि ब्लॉक एक मेढ़क को छिद्रित करने के लिए सांचे के आकार में रखा जाता है। आधुनिक ईंटनिर्माता सामान्यत: प्लास्टिक के मेढ़क का उपयोग करते हैं लेकिन पहले लकड़ी के बनाए जाते थे। जब वे भीग जाते थे और उन पर मिट्टी रखी जाती थी तो वे एम्फीबिया प्रकार के मेढ़क दिखते थे और इसी से इनाक नामकरण हुआ। समय इस शब्द का उपयोग भी उनके द्वारा छोड़ गए निशान के संदर्भ में होता है। मैथ्यू 2006]
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%82%E0%A4%9F
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ईंट
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संयुक्त राज्य अमेरिका में निर्मित ईंटों की दाबी ताकत 1000 lbf/in² से लेकर 15,000 lbf/in² (7-105 MPA या N/mm²) है, जो उपयोग करने पर भिन्न रही है जिस पर ईंटें रखी जाती हैं। इग्लैंड में मिट्टी की ईंटों की ताकत 100MPA तक हो सकती है, हालांकि एक सामान्य घर की ईंटें संभवत: 20-40MPA दिखती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%82%E0%A4%9F
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ईंट
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ईंटों का उपयोग भवनों और फुटपाथ के निर्माण के लिए किया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, ईंटों के फुटपाथ को भारी यातायात के लिए अयोग्य पाया गया था, लेकिन यह यातायात में सुधार या पैदल यात्री के परिसर के सतह की सजावटी उपयोग के रूप में वापस आ रही एक पद्धति है। उदाहरण के लिए, 1900 के प्रारंभ में, मिशिगन के ग्रांड रैपिड्स के शहर की अधिकांश गलियां ईंटों से पक्की की गई थीं। आज, वहां केवल करीब 20 प्रतिशत ईंट के ब्लॉक से पक्की गलियां शेष हैं (शहर के सभी गलियों की 0.5 प्रतिशत से भी कम की कुल मात्रा).
| 0.5 | 2,686.645761 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%82%E0%A4%9F
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ईंट
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ईंटें धातुकर्म ओर अस्तर भट्ठी के लिए कांच उद्योग के लिए भी उपयोग किया जाता है। इनके कई उपयोग हैं, विशेष रूप से सिलिका, मैग्निशिया, कैमौटे और तटस्थ (क्रोमोमैग्नेसाइट) दुर्दम्य ईंटें. ईंट का प्रकार अच्छा ताप प्रतिरोधी, भार के अंदर दुर्दम्य, उच्च गलन बिंदु और संतोषप्रद और संतोषजनक संरंध्र वाला होना आवश्यक है। यूनाइटेड किंगडम, जापान और संयुक्त राज्य में विशेष रूप से दुर्दम्य ईंट उद्योग हैं।
| 0.5 | 2,686.645761 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A4%B8
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लोंजाइनस
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कभी-कभी रचना-तत्त्वों का सामंजस्य उस क्षति की आपूर्ति कर देता है, जो रचना के किसी विशेष तत्त्व-दोष से उत्पन्न होती है और इस प्रकार यह सामंजस्य उदात्त-प्रभाव को अक्षुण्ण बनाये रखता है। अतः गरिमामय एवं भव्य रचना-विधान भी उदात्त-सृजन का पोषक है।
| 0.5 | 2,683.350365 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A4%B8
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लोंजाइनस
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लोंजाइनस ने उदात्त के विरोधी तत्त्वों पर भी विचार किया है। उन्होंने बालेयता, असंयत वाग्विस्तार, अस्त-व्यस्त पद-रचना, हीन अर्थ वाले शब्द, भावाडम्बर और शब्दाडम्बर, अवांछित संक्षिप्तता, अनावश्यक साज-सज्जा, संगीत व लय पर अत्यधिक बल आदि को उदात्त का विरोधी तत्त्व माना है। अतः श्रेष्ठ कवि को अपनी रचना में इन्हें स्थान नहीं देना चाहिए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A4%B8
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लोंजाइनस
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यह शैली का भारी दोष है। ‘बालेय’ का शाब्दिक अर्थ है ‘बचकाना’। बच्चों में जैसे चपलता, संयमहीनता, हल्कापन और क्षुद्रता पाई जाती है, वैसे ही बालेयता का दोष उस शैली में माना जाएगा। जिसमें बिना संयम के वाग्स्फीति की जाए, क्षुद्र अर्थ द्योतक शब्दों का प्रयोग हो और चंचल या अस्थिर पद-विन्यास पाया जाए। इसमें शैली कृत्रिम हो जाती है। लोंजाइनस के अनुसार-
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A4%B8
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लोंजाइनस
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"Slips of this sort are made by those who aiming at brilliancy, polish and especially attractiveness."
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A4%B8
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लोंजाइनस
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भाव की गरिमा के अभाव में अलंकृत और भारी शब्दों का प्रयोग। जैसे गृद्ध जैसे छोटे पदार्थ के लिए ‘जीवित समाधि’ शब्द का प्रयोग। वागाडम्बर उदात्त अतिक्रमण के प्रयास से उत्पन्न होता है।
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लोंजाइनस
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जहाँ लेखक मद्यप की भाँति आचरण कर प्रायः अनपेक्षित, निरर्थक और असंगत आवेग की अभिव्यक्ति करता है अर्थात् जहाँ आवेग के नियंत्रण की आवश्यकता होने पर भी आवेग की अभिव्यक्ति की जाए। आवेग की अभिव्यक्ति भावाडम्बर को जन्म देती है और उदात्त का ह्रास करती है।
| 0.5 | 2,683.350365 |
20231101.hi_219938_27
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लोंजाइनस
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लोगों को प्रभावित करने के मोह में अतिशयोक्तिपूर्ण कथन ही शब्दाडम्बर है। हिन्दी में बिहारी के ऊहात्मक दोहे इसी दोष से ग्रस्त हैं। उदाहरणार्थ, लोंजाइनस का मत है कि स्त्री के लिए चक्षु-दंश अथवा ‘चक्षु-फोडक’ और ‘पुतली’ के लिए ‘आँख की कुमारी’ आदि शब्दों का प्रयोग मात्र शब्दाडम्बर है, भाषा का अलंकार नहीं है।
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Subsets and Splits
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