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नकुल
तलवार चलाने वाला: नकुल एक शानदार तलवारबाज था और उसने कुरुक्षेत्र युद्ध के 18 वें दिन कर्ण के तीन पुत्रों सुशेन , सत्यसेन और प्रसेन को मारते हुए तलवार का अपना कौशल दिखाया था।
0.5
2,649.01852
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बहुसंस्कृतिवाद
1970 के दशक के बाद से कई पश्चमी देशों में बहुसंस्कृतिवाद को आधिकारिक नीति के रूप में अपनाया गया, जिसका तर्क अलग-अलग देशों में अलग था। पश्चिमी दुनिया के बड़े शहरों में तेजी से संस्कृति के मोज़ेक बने.
0.5
2,647.195805
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बहुसंस्कृतिवाद
जैसा कि आम तौर पर बहुसंस्कृतिवाद को एक सैद्धांतिक दृष्टिकोण और पश्चमी राष्ट्र-राज्यों में नीतियों की संख्या को अपनाने के लिए संदर्भित किया जाता है, जो कि 18वीं और/या 19वीं सदी के दौरान प्रकट रूप से वास्तविक एकल राष्ट्रीय पहचान को प्राप्त किया था। अफ्रीका, एशिया और अमेरिका सांस्कृतिक रूप से विविध और वर्णनात्मक रूप से बहुसांस्कृतिक रहे हैं। कुछ में, सांप्रदायिकता एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा है। इन राज्यों द्वारा अपनाए गए नीतियां अक्सर पश्चमी दुनिया में बहुसांस्कृतिक नीतियों के साथ समानताएं हैं, लेकिन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अलग है और लक्ष्य एक एकल संस्कृति या एकल-प्रजाति राष्ट्र-निर्माण को हो सकता है - उदाहरण के लिए मलेशियाई सरकार का 2020 तक एक मलेशियाई जाति का निर्माण करने का प्रयास है।
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2,647.195805
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बहुसंस्कृतिवाद
कनाडा के लिए आव्रजन आर्थिक नीति और परिवार एकीकरण द्वारा संचालित है। 2001 में, लगभग 250,640 लोग कनाडा में आकर बसे. अधिकांशतः नए चेहरे टोरंटो, वैंकूवर और मॉन्ट्रियल के प्रमुख शहरी क्षेत्रों में बस गए। 1990 के दशक और 2000 के दशक में कनाडा आप्रवासियों का सबसे बड़ा भाग एशिया से आया, जिसमें मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया शामिल है। कनैडियाई समाज को अक्सर अत्यंत प्रगतिशील, विविध और बहुसांस्कृतिक के रूप में दर्शाया जाता है। कनाडा में नस्लवाद का आरोप लगे किसी व्यक्ति को आमतौर पर गंभीर कलंक माना जाता है। कनाडा के राजनीतिक दल अब अपने देश के आव्रजन के उच्च स्तर की आलोचना के बारे में सतर्क हैं क्योंकि यह ग्लोब एंड मेल द्वारा विख्यात है, "1990 के दशक के प्रारम्भ में, पुरानी सुधार पार्टी को 250,000 से 150,000 के कम स्तर के आप्रवास का सुझाव देने के लिए नस्लवादी का ब्रांड दिया गया था।"
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20231101.hi_221860_11
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बहुसंस्कृतिवाद
हालांकि अर्जेंटीना संविधान की प्रस्तावना में जिस प्रकार स्पष्ट रूप से आव्रजन को बढ़ावा दिया जाता है और अन्य देशों से आए नागरिकों को बहु-नागरिकता का मान्यता दिया जाता है उस प्रकार से बहुसंस्कृतिवाद को नहीं देखा जाता है। हालांकि अर्जेंटीना की 86% जनसंख्या अपने आप को यूरोपीय वंश के रूप में मानते हैं वर्तमान तक बहुसंस्कृतिवाद का उच्च स्तर अर्जेंटीना संस्कृति की एक विशेषता बनी हुई है,) जो विदेशी समारोहों और छुट्टियों (सेंट पैट्रिक दिवस) की अनुमति देता है, अल्पसंख्यकों के सभी प्रकार के कला और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का समर्थन करता है, साथ ही मीडिया में एक महत्वपूर्ण बहुसांस्कृतिक उपस्थिति के माध्यम से प्रसार करता है; उदाहरण के लिए अर्जेनटीना में अंग्रेजी, जर्मन, इतालवी या गुजराती भाषा में अखबारों या रेडियो कार्यक्रमों में इसे खोजना असामान्य नहीं है।
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बहुसंस्कृतिवाद
कई सदृश नीतियों के साथ कनैडियाई-शैली की बहुसंस्कृतिवाद को पूरी तरह से अपनाने वाला अन्य देश ऑस्ट्रेलिया है, उदाहरण स्वरूप स्पेशिएल ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का निर्माण है।
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बहुसंस्कृतिवाद
2006 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या का एक बटा पांच से अधिक लोग विदेश में पैदा हुए थे। इसके अलावा, जनसंख्या का लगभग 50% या तो:
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बहुसंस्कृतिवाद
कुल प्रवास के प्रति व्यक्ति के अर्थ में, ऑस्ट्रेलिया का स्थान 18वां (2008 डेटा) है जो कि कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और अधिकांश यूरोप से आगे है।
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बहुसंस्कृतिवाद
संयुक्त राज्य अमेरिका में, 19वीं सदी के प्रथम भाग से सतत् सामूहिक आप्रवास, अर्थव्यवस्था और समाज की एक विशेषता रही है। आप्रवासियों का सतत् आगमन और उनका शामिल हो जाना, अपने आप में अमेरिका के राष्ट्रीय मिथक की एक प्रमुख विशेषता बन गई। मेल्टिंग पॉट का विचार एक रूपक है जिसका तात्पर्य यह है कि सभी आप्रवासी संस्कृतियां राज्य के हस्तक्षेप के बिना मिश्रित और एकीकृत हुई हैं। मेल्टिंग पॉट, प्रत्येक आप्रवासी व्यक्ति और प्रत्येक आप्रवासी समूह, अमेरिकी समाज में अपनी गति से आत्मसात करने को ध्वनित करता है, जैसा कि ऊपर बताया गया है कि वह बहुसंस्कृतिवाद नहीं है चूंकि यह आत्मसात और एकीकरण के विरोध में है। देश की वास्तविक खाद्य और इसकी छुट्टियों की एक अमेरिकी (और अक्सर पारम्परिक) संस्करण बची हुई थीं।
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बहुसंस्कृतिवाद
मेल्टिंग पॉट परंपरा अमेरिकी संस्थापक पिता से राष्ट्रीय एकता और डेटिंग की विश्वास के साथ सह-मौजूद है।
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2,647.195805
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हाजीपुर
नगर के दक्षिणी भाग में स्तूपनुमा अवशेष पर बना रामचौरा मंदिर हिन्दू आस्था का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। ऎसी मान्यता है कि अयोध्या से जनकपुर जाने के क्रम में भगवान श्रीराम ने यहाँ विश्राम किया था। उनके चरण चिह्न प्रतीक रूप में यहाँ मौजूद है। पुरातत्वविदों का मानना है कि बुद्धप्रिय आनंद की अस्थि को रखे गये स्तूप के अवशेष स्थल पर ही इस मंदिर का निर्माण किया गया था।
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हाजीपुर
नगर के रक्षक भगवान शिव पतालेश्वर नाम से प्रसिद्ध हैं। पतालेश्वर स्थान नाम से मशहूर स्थानीय हिन्दुओं का सबसे महत्त्वपूर्ण पूजास्थल शहर के दक्षिण में रामचौरा के पास रामभद्र में स्थित है। १८९५ में धरती से शिवलिंग मिलने के बाद यहाँ मन्दिर निर्माण हुआ। भीड़ भरे माहौल से दूर बने इस शिव मन्दिर का स्थापत्य साधारण लेकिन आकर्षक है। लगभग २२८०० वर्गफ़ीट में बने इस मन्दिर का वर्तमान स्वरूप १९३२-३४ के बीच अस्तित्व में आया। मन्दिर परिसर में बने विवाह मंडप में सालोंभर विवाह-संस्कार संपन्न कराये जाते हैं, जिसकी आधिकारिक मान्यता भी है।
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हाजीपुर
शेख हाजी इलियास द्वारा निर्मित किले के अवशेष क्षेत्र के भीतर बनी संगी जामा मस्जिद हाजीपुर में मुगलकाल की महत्त्वपूर्ण इमारत है। शहजादपुर अन्दरकिला में जी॰ ए॰ इंटर स्कूल के पास पत्थर की बनी तीन गुम्बदों वाली यह आकर्षक मस्जिद आकार में २५•८ मीटर लम्बी और १०•२ मीटर चौड़ी है। मस्जिद के प्रवेश पर लगे प्रस्तर में इसे अकबर काल में मख्सूस शाह एवं सईद शाह द्वारा १५८७ ई॰ (१००५ हिजरी) में निर्मित बताया गया है। मस्जिद के पास जिलाधिकारी आवास के निकट हाजी इलियास तथा हाजी हरमेन की मज़ार बनी है।
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2,641.681082
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हाजीपुर
मुगलशासक औरंगजेब के मामा शाईस्ता खान ने हज़रत मोहीनुद्दीन उर्फ दमारिया साहेब और कमालुद्दीन साहेब की मज़ार हाजीपुर से ५ किलोमीटर पूरब मीनापुर, जढुआ में बनवायी थी। सूफी संतो की यह मजार स्थानीय लोगों में मामू-भगिना या मामा-भाँजा की मज़ार के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं बाबा फरीद के शिष्य ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के मज़ार की अनुकृति भी बनी है। सालाना उर्स के मौके पर इलाके के मुसलमानों का यहाँ भाड़ी जमावड़ा होता है। इसके पास ही मुगल शासक शाह आलम ने लगभग १८० वर्ष पूर्व करबला का निर्माण कराया था, जो मुसलमानों के लिए पवित्र स्थल है।
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2,641.681082
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हाजीपुर
हाजीपुर रेलवे स्टेशन के समीप स्थित गाँधी आश्रम महात्मा गाँधी के तीन बार हाजीपुर पधारने के दौरान उनसे जुड़ी स्मृतियों का स्थल है। एक पुस्तकालय के अतिरिक्त गाँधीजी के चरखा प्रेम और खादी जीवन को बढ़ावा देने हेतु द्वारा संचालित परिसर है। स्थानीय विक्रय केन्द्र पर खादी वस्त्र, मधु, कच्ची घानी सरसों तेल आदि उपलब्ध है। हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र में खादी और ग्रामोद्योग का केन्द्रीय पूनी संयंत्र भी है, जहाँ खादी वस्त्र तैयार किये जाते हैं।
1
2,641.681082
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हाजीपुर
गज-ग्राह घटना की याद में कौनहारा घाट के सामने सोनपुर में हरिहरक्षेत्र मेला लगता है। स्थानीय लोगों में 'छत्तर मेला' के नाम से मशहूर है। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र गंडक-स्नान से शुरू होनेवाले मेले का आयोजन पक्ष भर चलता है। सोनपुर मेला की प्रसिद्धि एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में है। हाथी-घोड़े से लेकर रंग-बिरंगे पक्षी तक मेले में खरीदे-बेचे जाते हैं। आनेवाले जाड़े के लिए गर्म कम्बल से लेकर लकड़ी के फर्नीचर तक स्थानीय लोगों की जरुरतों को पूरा करती हैं। तमाशे, लोकनृत्य, लोककलाएँ और प्रदर्शनियाँ देशी-विदेशी पर्यटकों की कौतूहल को शान्त करती हैं। मेले के दौरान पर्यटक या तो हाजीपुर के किसी होटल में रुक सकते हैं या बिहार पर्यटन विकास निगम की सुविधाजनक तम्बू को भाड़े पर लेकर गंडक तट की बालूका राशि पर डेरा डाल सकते हैं।
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हाजीपुर
प्रतिवर्ष वैशाली महोत्सव का आयोजन जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म दिवस पर बैसाख पूर्णिमा को किया जाता है। भगवान महावीर का जन्म वैशाली के वज्जिकुल में बसोकुंड (बसाढ) ग्राम में हुआ था। अप्रैल के मध्य में आयोजित होनेवाले इस राजकीय उत्सव में देशभर के संगीत और कलाप्रेमी हिस्सा लेते हैं। वैशाली में अशोक का स्तम्भ, अभिषेक पुष्करिणी, विश्व शान्ति स्तूप, चौमुखी महादेव मंदिर को भी आयोजन के दौरान देखा जा सकता है।
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हाजीपुर
महत्त्वपूर्ण सामरिक अवस्थिति के चलते अतीत में बाहरी लोगों के आकर बसने से यहाँ मिली-जुली स्थानीय संस्कृति पनपी है। हिन्दू और मुसलमान दोनों यहाँ के गौरवशाली अतीत और आपसी सहिष्णुता पर नाज़ करते हैं। कृषियोग्य उर्वर भूमि और मृदु जलवायु के चलते प्राचीन काल से ही यह स्थान सघन आबादी का क्षेत्र रहा है। बिहार की राजधानी पटना से जुड़ाव और भूगोलीय निकटता ने यहाँ की घटनाओं और अवसरों के महत्त्व को कई गुणा बढ़ा दिया है।
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2,641.681082
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
हाजीपुर
हिन्दी प्रमुख भाषा है किंतु पश्चिमी मैथिली यहाँ की स्थानीय बोली है, जो मुजफ्फरपुर, सीतामढी, शिवहर और समस्तीपुर के अतिरिक्त नेपाल के सर्लाही जिले में भी बोली जाती है। युवक और युवतियाँ सभी आधुनिक भारतीय पहनावे पहनते हैं, लेकिन गाँव में रहनेवाले अधिकांश व्यस्क स्त्री-पुरुष धोती या साड़ी पहनना ही पसन्द करते हैं।
0.5
2,641.681082
20231101.hi_145362_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95
रूपक
‘‘रोचक विषय का मनोरम और विशद प्रस्तुतिकरण ही फीचर है। इसमें दैनिक समाचार, सामयिक विषय और बहुसंख्यक पाठकों की रूचि वाले विषय की चर्चा होती है। इसका लक्ष्य मनोरंजन करना, सूचना देना और जानकारी को जन उपयोगी ढंग से प्रस्तुत करना है।’’
0.5
2,637.856062
20231101.hi_145362_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95
रूपक
‘‘फीचर समाचार मूलक यथार्थ, भावना-प्रधान और सहज कल्पना वाली रसमय एवं संतुलित गद्यात्मक एवं दृश्यात्मक, शाश्वत, निसर्ग और मार्मिक अभिव्यक्ति हैं।’’
0.5
2,637.856062
20231101.hi_145362_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95
रूपक
The good newspaper is not just only paper and ink. The good newspaper lives. News is its life blood, leaders are its heart and features may be said to be its soul
0.5
2,637.856062
20231101.hi_145362_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95
रूपक
सामान्य शब्दों में कहें तो समाचार का काम तत्थ्य और विचार देकर खत्म हो जाता है। जबकि फीचर का काम इससे आगे का होता है। यह समाचार की पृष्ठभूमि का खुलासा करते हैं, विषय या घटना के जन्म और विकास का विवरण देते हैं। यह विषय अथवा घटना का पूरा खुलासा भी करते हैं और पाठक को कुछ सोचने के लिए भी विवश करते हैं। एक अच्छे फीचर की सार्थकता इसी बात में है कि वह अपने पाठकों के मन मष्तिष्क पर कितना प्रभाव डालती है। फीचर लेखक घटना या विषय के बारे में अपनी प्रतिक्रिया या विचार भी पाठक को बतलाता है और इस तरह पाठक की कल्पना शक्ति को और उसकी वैचारिक मनःस्थिति को भी प्रभावित करता है।
0.5
2,637.856062
20231101.hi_145362_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95
रूपक
फीचर का महत्व इसी बात में है कि यह कब, क्यों, कैसे, कहां और कौन को स्पष्ट करने वाले समाचार यानी न्यूज से आगे जाकर तत्थ्य कल्पना और विचार की संतुलित प्रस्तुति के जरिए अपना एक विशेष प्रभाव छोड़ता है। फीचर का एक महत्व यह भी है कि यह पाठक के मन में किसी खबर को पढ़ने के बाद पैदा हुई जिज्ञासा को भी संतुष्ट करता है। आजकल समाचार पत्रों में फीचरों का उपयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। यूरोप में जारी जबर्दस्त सरदी और हिमपात पर भारतीय भाषाई अखबारों में विस्तृत समाचारों के लिए स्थानाभाव हो सकता है। लेकिन इसी विषय को महज एक छोटी सी जगह में एक सचित्र फीचर के जरिए प्रस्तुत कर अखबार अपने स्थानाभाव की समस्या से भी उबर सकते हैं और पाठक को बर्फ से जमे यूरोप के बारे में सम्पूर्ण जानकारी भी मिल जाती है। इसी तरह किसी स्थानीय दुर्घटना के समाचार के साथ-साथ अगर उस तरहकी अन्य घटनाओं का विवरण, रोकथाम के उपायों, प्रभावितों के अनुभव आदि एक सचित्र फीचर के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है तो इससे पाठक को सम्पूर्ण जानकारी एक साथ मिल जाती है। फीचर के इस उपयोग ने आज फीचर के महत्वको अत्यधिक बढ़ा दिया है।
1
2,637.856062
20231101.hi_145362_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95
रूपक
इस बढ़ते महत्व के कारण फीचर लेखन भी अब पत्रकारिता की एक महत्वपूर्ण विधा हो गई है। इसी के साथ फीचर लेखकों का महत्व भी बढ़ता जा रहा है। आज समाचार पत्रों में फीचर डेस्क का महत्व भी बढ़ गया है और उनकी उपयोगिता भी। समाचार पत्रों में अब फीचर के कारण बेहतर प्रस्तुतिकरण और तात्कालिकता पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। कई बड़े अखबार समूहों में अब केन्द्रीयकृत फीचर लेखन व्यवस्था भी शुरू हो गई है जिसके तहत महत्वपूर्ण विषयों पर फीचर तैयार कर अखबार के सभी संस्करणों के लिए भेज दिए जाते हैं। इंटरनेट और सूचना तकनीक के चमत्कारों ने आज फीचर लेखन को आसान बना दिया है। लेकिन इन्हीं चमत्कारों के कारण आज फीचर लेखन के क्षेत्र में नई चुनौतियाँ भी खड़ी हो गई है। आज फीचर लेखक को इस चीज पर सर्वाधिक ध्यान देना पड़ता है कि उसके फीचर में सारे तत्थ्य एकदम सही हों, ताजे हों, समीचीन हों और वे पाठक की सारी जिज्ञासाओं का समाधान भी कर सकें।
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2,637.856062
20231101.hi_145362_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95
रूपक
फीचर, पत्रकारिता की एक ऐसी विधा है जिसमें लेखन को नियमों की किसी खास सीमा में नहीं बांधा जा सकता। विकसित देशों में पत्रकारिता की एक विधा के रूप में फीचर लेखन बहुत लोकप्रिय है। चूंकि भारत में पत्रकारिता का जन्म और विकास राजनीति के साथ हुआ है इसलिए यहाँ फीचर की विकास यात्रा अपेक्षाकृत देर से शुरू हुई। यहाँ प्रारम्भिक पत्रकारिता में कलम का उपयोग तलवार के रूप में किया गया। आजादी के बाद के वर्षो में और विशेष रूप से आपातकाल के बाद के वर्षो में अखबारों ने राजनीति से इतर जीवन के वृहत्तर आयामों कीखोज करने और जीवन को उसकी समग्रता में देखने समझने का काम तेज कर दिया था। इसी के चलते हमारे देश में फीचर लेखन की एक विशिष्ट शैली विकसित हुई। प्रिंटिंग टैक्नोलॉजी में आए क्रान्तिकारी परिवर्तनों ने फीचर लेखन की उपयोगिता, जरूरत और महत्व तीनों को द्विगुणित कर दिया है।
0.5
2,637.856062
20231101.hi_145362_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95
रूपक
फीचर रचना का मुख्य नियम यह है कि फीचर आकर्षक, तत्थ्यात्मकऔर मनोरंजक होना चाहिए। वर्तमान में फीचर के लिए किसी खास प्रकार का ले आऊट, साज सज्जा, आकार-प्रकार या शब्द सीमा का बंधन नहीं रह गया है। आज कम से कम शब्दों में फीचर रचना को अधिक महत्वपूर्ण माना जाने लगा है। इसी तरह अब एक विषय पर एक बड़ी रचना के बजाय एक साथ छोटी-छोटी कई सूचनाओं-सामग्रियों को प्रस्तुत करके भी फीचर लिखे जाने लगे हैं।
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2,637.856062
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95
रूपक
(१) तत्थ्यों का संग्रह : जिस विषय या घटना पर फीचर लिखा जाना है उससे जुड़े, तत्थ्यों को एकत्रित करना सबसे जरूरी काम है। तत्थ्यों और जानकारी को जुटाए बिना फीचर की रचना हो ही नहीं सकती। जितनी अधिक जानकारी होगी, फीचर उतना ही उपयोगी और रोचक बनेगा। तत्थ्यों के संग्रह में इस बात का भी खास ध्यान रखा जाना चाहिए कि तत्थ्य मूल स्रोत से जुटाए जाएं औरवह एकदम सही हों। गलत तत्थ्यों से फीचर का प्रभाव ही उल्टा हो जाता है।
0.5
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20231101.hi_52809_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%80
गुलदाउदी
वर्ग द्विदलीय (Dicotyledon), गैमोपेटैली (Gamopetalae), श्रेणी इनफेरी (Inferae), आर्डर ऐस्टरेलीज़ (Asterales), कुल कॉम्पॉज़िटी (Compositae), जीनस क्राइसैंथिमम
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गुलदाउदी
गुलदाउदी संसार के सबसे प्रसिद्ध एवं शरद ऋतु में फूलनेवाले पौधों में से है। यह चीन का देशज है, जहाँ से यह यूरोप में भेजा गया। सन्‌ 1780 में फ्रांस के एक महाशय सेल्स (Cels) ने इंग्लैंड के विश्वविख्यात उपवन क्यू (Kew) में इसे सबसे पहले उत्पन्न किया। इसके उपरांत, अपने सुंदर तथा मोहक रूप के कारण और इसके फूलों में कीटनाशक पदार्थ, अर्थात पाईथ्रोम (pyrethrum) होने के कारण गुलदाउदी का प्रसार बहुत ही विस्तृत हो गया। इस समय इसकी लगभग 150 जातियाँ हैं जो यूरोप, अमरीका, अफ्रीका तथा एशिया महाद्वीपों में मुख्य रूप से पाई जाती हैं। इनमें से उपवनों में उगाई जानेवाली गुलदाउदी को क्राइसैंथिमस इंडिकम (Chrysanthemum indicum Linn) कहते हैं।
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गुलदाउदी
गुलदाउदी का पौधा शाक (herbs) की श्रेणी में आता है। इसकी जड़ें मुख्यतया प्रधान मूल, शाखादार और रेशेदार होती हैं। तना कोमल, सीधा तथा कभी कभी रोएँदार होता है। पत्तियाँ एकांतर (alternate) सम, पालिवत्‌ होती हैं, परंतु उनकी कोर कटी तथा विभाजित होती हैं। पुष्पों के संग्रहीत होने के कारण पुष्पक्रम (inflorescence) एक मुंडक (capitulum) या शीर्ष (head) होता है। पूर्ण पुष्पक्रम पौधे के शिखर पर एक लंबे डंठल के ऊपर स्थित रहता है। इस डंठल के निचले भाग से और भी पुष्पक्रम निकलते हैं, जो सामूहिक रूप से एक समशिख (corymb) बना देते हैं, जो विषमयुग्मीय और रश्मीय (rayed) होता है। रश्मिपुष्प मादा और एकक्रमिक होते हैं तथा उनकी जिह्विका फैली हुई, सफेद पीली, नीली अथवा गुलाबी होती है। बिंबपुष्प द्विलिंगी तथा नलिकावत्‌ होते हैं। इनका दलचक्र युक्तदल होता है और ऊपर जाकर चार या पाँच भागों में विभाजित हो जाता है। निचक्रीय निपत्र (involucral bract) सटे हुए एवं बहुक्रमिक होते हैं। भीतरी निपत्र रसदार सिरेवाले एवं बाहरी छोटे और प्राय: नसदार रंगीन किनारे वाले होते हैं। परागकोष का निचला भाग गोल होता है। गुलदाउदी में एकीन (achene) प्रकार के फल बनते हैं। ये अर्धवृत्ताकार, कोणीय, पंखदार, होते हैं। बाह्यदलरोम (pappus) छोटे अथवा अनुपस्थित होते हैं।
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गुलदाउदी
गुलदाउदी मुख्यत: वर्धीप्रचारण (vegetative propagation) अथवा बीजांकुर द्वारा उगाई जाती है। चौथाई इंच चलनी द्वारा छाने हुए, लगभग बराबर भागवाले दोमट, सड़ी हुई पत्तियों तथा बालू और थोड़ी सी राख के मिश्रण में गुलदाउदी की अच्छी वृद्धि होती है। गमले में इस मिश्रण को खूब दबा दबाकर भरने के बाद पानी देते हैं तथा लगभग एक घंटे बाद कलमें लगाते हैं। सबसे उत्तम कलमें सीधे जड़ों से निकलने वाले छोटे छोटे तनों से मिलती हैं। इनके न मिलने पर मुख्य तने के किसी अन्य भाग से कलमें ली जाती हैं।
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गुलदाउदी
सुंदरता के साथ साथ गुलदाउदी की कुछ जातियों के फूल कीटनाशक गुणवाले होते हैं। सबसे पहले ईरान में क्राइसैंथिमम कॉक्सिनियम (C. coccineum) तथा क्राइसैंथिमम मार्शलाई (C. marschalli) के फूल कीटनाशक रूप में प्रयुक्त हुए। सन्‌ 1840 के आसपास क्राइसैंथिमम सिनेरेरिईफोलियम (C. Cinerariaefolium) डलमैशिया। यूगोस्लाविया में उत्पन्न की गई और धीरे धीरे इसने ईरानी जातियों से ज्यादा ख्याति प्राप्त कर ली। व्यापारिक स्तर पर गुलदाउदी की खेती ईरान, अल्जीरिया, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, स्विट्जरलैंड तथा भारत में की जाती है।
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गुलदाउदी
गुलदाउदी के फूलों का प्रयोग चूर्ण अथवा अर्क के रूप में होता है। साधारणतया इसके विभिन्न उपयोगों को तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं:
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गुलदाउदी
(1) पाईथ्रोम कीड़ों पर ही प्रभाव डालता है, मनुष्यों को इससे कोई हानि नहीं होती, अत: इसका प्रयोग घर में खटमल, मच्छर आदि के नाश के लिए किया जाता है;
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गुलदाउदी
(3) पाईथ्रोम का अत्यंत महीन चूर्ण उद्यानों में कीटनाशक के रूप में सफल सिद्ध हुआ है, यद्यपि आजकल पाईथ्रोम का छिड़काव ही मुख्यतया उपयोग में लाया जाता है।
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गुलदाउदी
पाईथ्रोम का कीटनाशक गुण इसके फूल को एकत्र करने के समय तथा सुखाने के ढंग पर निर्भर करता है। कीटनाशक अंश की अधिकतम मात्रा प्राय: परागण के पूर्व एकत्रित फूलों में पाई जाती है। जहाँ तक फूलों के सुखाने का प्रश्न है, धूप में सुखाना अधिक सुविधाजनक होता है। परंतु छाया में सुखाए हुए फूलों से कीटनाशक अंश की प्राप्ति अधिक मात्रा में की जा सकती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कंधा
ग्लेनोह्युमरल जोड़ कंधे का प्रमुख जोड़ होता है जिसे आमतौर पर कंधे का जोड़ कहते संधर्बित करते है। यह एक गोला और गर्तिका जोड़ है जो भुजा को गोल घुमाने और अन्दर और बहर चलाने में उपयोगी है। यह प्रगंडिकाके शीर्ष और पार्श्विक कंधे की हड्डी के बीच के जोड़ से बनता है (खासकर कंधे की हड्डी का ग्लेनोइड खात) कंधे का गोला प्रगंडिका का गोल, मध्यवर्ती अग्रस्थ सतह है और गर्तिका ग्लेनोइड खात से बना है, जो की पार्श्विक कंधे की हड्डी का कटोरी जैसा हिस्सा है। खात और कंधे व शारीर के बीच के अपेक्षकृत ढीले संयोजनों के खोकलेपन के कारण भुजा में भयंकर चंचलता होती है जिसके कारण दुसरे जोड़ो की अपेक्षा यहाँ आसानी से विस्थापन हो जाता है।
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2,627.961248
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कंधा
संपुट एक नरम ऊतक का लिफाफा है जो ग्लेनोह्युमरल जोड़ को घेरता है और कंधे की हड्डी, प्रगंडिका और द्विशिरस्क को भी उससे जोड़ता है। यह एक पतली, नरम श्लेष झिल्ली से रेखांकित है। यह संपुट कोराकोह्युम्रल स्नायु के कारण मजबूत होता है जो कंधे की हड्डी की कोराकोइड प्रक्रिया को प्रगंडिका बड़ी ग्रंथिका से जोड़ता है। तीन अन्य प्रकार के स्नायु भी होते है जो प्रगंडिका की छोटी ग्रंथिका को पार्श्विक कंधे की हड्डी से जोड़ते है और जिन्हें सामूहिक तौर पर ग्लेनोह्युमरल स्नायु कहा जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कंधा
एक प्रकार के स्नायु को सेमीसरक्यूलेयर ह्युमेरी कहते है जो ट्युबरकलम माइनस की पिछली तरफ और प्रगंडिका के मेजस के बीच तिरछी पट्टी है। यह पट्टी संपुट जोड़ की सबसे महत्वपूर्ण और मजबूत स्नायु है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कंधा
स्तेर्नोक्लाविकुलर हंसुली के मध्यवर्ती सिरों पर मेंयुब्रिम या स्टेरनम के सबसे उपरी भाग के साथ पाया जाता है। हंसली त्रिकोनिय और गोल होती है और मेंयुब्रिम उत्तल होती है, व ये दोनों हड्डियाँ संधियों में विभाजित है। जोड़ में एक चुस्त सम्पुट होता है और पूर्ण संधिपरक चक्र जो जोड़ की स्थिरता को सुरक्षित रखता है। कस्तोक्लाविक्युलर स्नायु गति पर प्रमुख बंधन है, इसीलिए, जोड़ को प्रमुख रूप से स्थिरता देता है। जोड़ पर प्रस्तुत फैब्रोकार्टिलेजीनस चक्र गति की सीमा को बड़ाता है। स्तेर्नोकलाविक्यूलर विस्थापन दुर्लभ है, हालाँकि प्रत्यक्षा अघात से क्षति हो सकती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कंधा
कंधे की मास्पेशियाँ और उसके जोड़ उसे एक उल्लेखनीय श्रेणी की गति से हिलने देती है, जिसके कारण यह मानव शारीर का सबसे चंचल जोड़ है। कंधा खींचना, समिपकर्ष (जैसे की मक्खी), घूर्णन, धड के आगे-पीछे की तरफ उठाना और सैजिटल तल से पूरे ३६० घुमाना जैसे कार्य कर सकता है। इस प्रकार गति की भयानक श्रेणी से कंधा अत्यंत अस्थिर बन जाता है और विस्थापन और चोट से और ज्यादा उन्मुख हो जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कंधा
जो मस्पेशियाँ कंधे के मूवमेंट के लिए जिम्मेदार होती हैं वे प्रगंडिका, कंधे की हड्डी और हंसुली से जुडी हुई होती हैं। जो मस्पेस्जियाँ कंधे को घेरती हैं वे कंधे की कपालिका और बगल को बनाती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कंधा
अंग को घुमाने वाली पेशी कफ एक शरीररचना शब्द है जो मांसपेशियों के समूह को और उनके टेडन को कहा जाता है जो कंधे को स्थिर करने का कम करता है। यह टेंडन और मस्पेशियाँ (कफ पेशी, इन्फ्रासपिनेटस, लघु बेलनाकार और सब्स्केप्युलेरिस) जो प्रगंडिका के सर (पिंड) को विवर (मुख) के ग्लेनोइड में पकड़ के रखता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कंधा
दो फिल्मी थैली जैसी संरचनाओं जिन्हें पुट्ठा कहते है, वे हड्डी, टेडन और मांसपेशियों के बीच खिसकने की क्रिया को आराम से होने देता है। ये घूमने वाली पेशी कफ को एक्रोमिन के अस्थिवत चाप से बचाते है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कंधा
कंधे के सामान्य और पेथोलोजिक कार्य को समझने के लिए ग्लेनोह्युमारल जोड़ के बल की जानकारी होना आवश्यक है। यह अस्थिभंग के उपचार और जोड़ को बदलने के लिए सर्जरी का आधार बनाता है, स्थरीकरण और डिज़ाइन रोपण को ओपटीमाइज करने और कंधे के एनेलेटिक और बायोकेमिकल मोडल्स की जाँच करने और सुधरने के लिए. ज्युलीयास वोल्फ इंस्टीट्युट में यांत्रिक कंधारोपण से जोड़ के संधार्ग बल और गति को अलग अलग गतिविधियों के दौरान जीवित ऊतक के अन्दर मापा जा सकता है।
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शवपरीक्षा
शवपरीक्षा भली प्रकार करना उचित है एवं सहयोग के हेतु रोगग्रसित अंग अथवा ऊतक, की सूक्ष्मदर्शी द्वारा परीक्षा एवं कीटाणुशास्त्रीय परीक्षा अपेक्षित है। उस प्रत्येक मृतक की, जिसकी मृत्यु का कारण आकस्मिक दुर्घटना हो और उचित कारण अज्ञात हो, मृत्यु का कारण एवं उसकी प्रकृति ज्ञात करने के लिए शवपरीक्षा करना नितांत आवश्यक रूप से अपेक्षित है।
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2,625.274429
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शवपरीक्षा
शवपरीक्षा करने के पूर्व मृतक के निकट संबंधी से सहमति प्राप्त करना आवश्यक है और शवपरीक्षा मृत्यु के 6 से 10 घंटे के भीतर ही कर लेनी चाहिए, अन्यथा शव में मृत्युपरांत अवश्यंभावी प्राकृतिक परिवर्तन हो जाने की आशंका रहेगी, जैसे शव ऐंठन (rigor mortis), शवमलिनता (postmortem) एवं विघटन (decomposition)। यह परिवर्तन अधिकतर रोगावस्था के परिवर्तनों के समान ही होते हैं।
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शवपरीक्षा
कुछ शल्य अस्त्र, उदाहरणार्थ चाकू, चिमटियाँ कैंची, सलाई आदि, की शवपरीक्षा में आवश्यकता पड़ती है। शव को सीने के लिए सुई एवं प्रबल धागे की भी आवश्यकता होती है।
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शवपरीक्षा
प्रथम ठुड्डी से जघन (public) जोड़ तक शवछेदन कर, त्वचा एवं मांसपेशियों को हटाकर, वक्षअस्थि को पृथक् कर दिया जाता है। तत्पश्चात् आँत के ऊपर की झिल्ली तथा फुप्फुस झिल्ली का पूर्ण परीक्षण करना आवश्यक है।
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शवपरीक्षा
देहगुहा के सर्व तंत्रों को पृथक् कर, उनका भार एवं उनका विस्तृत विवरण ज्ञात किया जाता है। सब तंत्रों को उनके रक्षक विलयन में, जैसे फॉर्मेलिन में, भली प्रकार रख देना अपेक्षित है। फॉर्मेलिन ऊतक की रचना को पूर्ववत् बनाए रखने में सहायक सिद्ध होता है। रक्षित ऊतक के खंड कर तथा उचित रंगमलिनता प्रदान कर, सूक्ष्मदर्शी से उनका परीक्षण किया जाता है।
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शवपरीक्षा
यदि मृत्यु का कारण रोग न होकर कोई आकस्मिक दुर्घटना विषपान, अथवा अन्य कोई कारण हो, तो देहगुहा के तंत्र रक्षित विलयन में सुरक्षित रखे जाते हैं, तत्पश्चात् रासायनिक परीक्षण द्वारा परीक्षा होने पर मृत्यु का उचित कारण ज्ञात किया जाता है।
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शवपरीक्षा
The Virtual Autopsy - a site from the University of Leicester where one examines the patient, looks at the (medical) history and gets a try at the diagnosis.
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शवपरीक्षा
BBC News - Controversial Autopsy goes ahead - news story about Prof. Gunther von Hagens performing the first public autopsy in the UK in 170 years.
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शवपरीक्षा
www.autopsyvideo.com- This site offers autopsy documentaries, one produced with the aid of The LA County Coroner's Office.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
शालीग्राम
जिसमें नाना प्रकार की अनेकों मूर्तियों तथा सर्प-शरीर के चिह्न होते हैं, वह भगवान अनन्त की प्रतिमा है।
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2,623.970301
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
शालीग्राम
दामोदर की मूर्ति स्थूलकाय एवं नीलवर्ण की होती है। उसके मध्य भाग में चक्र का चिह्न होता है। भगवान दामोदर नील चिह्न से युक्त होकर संकर्षण के द्वारा जगत की रक्षा करते हैं।
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2,623.970301
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
शालीग्राम
जिसका वर्ण लाल है, तथा जो लम्बी-लम्बी रेखा, छिद्र, एक चक्र और कमल आदि से युक्त एवं स्थूल है, उस शालिग्राम को ब्रह्मा की मूर्ति समझनी चाहिये।
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2,623.970301
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
शालीग्राम
जिसमें बृहत छिद्र, स्थूल चक्र का चिह्न और कृष्ण वर्ण हो, वह श्रीकृष्ण का स्वरूप है। वह बिन्दुयुक्त और बिन्दुशून्य दोनों ही प्रकार का देखा जाता है।
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2,623.970301
20231101.hi_33603_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
शालीग्राम
भगवान वैकुण्ठ कौस्तुभ मणि धारण किये रहते हैं। उनकी मूर्ति बड़ी निर्मल दिखायी देती है। वह एक चक्र से चिह्नित और श्याम वर्ण की होती है।
1
2,623.970301
20231101.hi_33603_14
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शालीग्राम
मत्स्य भगवान की मूर्ति बृहत कमल के आकार की होती है। उसका रंग श्वेत होता है तथा उसमें हार की रेखा देखी जाती है।
0.5
2,623.970301
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शालीग्राम
जिस शालिग्राम का वर्ण श्याम हो, जिसके दक्षिण भाग में एक रेखा दिखायी देती हो तथा जो तीन चक्रों के चिह्न से युक्त हो, वह भगवान श्री रामचन्द्रजी का स्वरूप है, वे भगवान सबकी रक्षा करनेवाले हैं।
0.5
2,623.970301
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शालीग्राम
हिंदू धर्म में आमतौर पर मानवरूपी धार्मिक मूर्तियां प्रतिनिधित्व करती हैं हालांकि प्रतीक चिन्हों का भी समान रूप से प्रयोग होता है। शालीग्राम के रूप में भगवान के अमूर्त रूप का प्रतिनिधित्व किया जाता जिस पर मानव आसानी से ध्यान केंद्रित कर सकेंऔर जैसा की भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है ,
0.5
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शालीग्राम
उन सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्म में आसक्त चित्तवाले पुरुषों के साधन में परिश्रम विशेष है क्योंकि देहाभिमानियों द्वारा अव्यक्तविषयक गति दुःखपूर्वक प्राप्त की जाती है॥5॥
0.5
2,623.970301
20231101.hi_9282_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7
विष
(क) मस्तिष्क को क्षति पहुँचानेवाले, अफी और उसके ऐल्केलॉयड, ऐल्कोहॉल, ईथर, क्लोरोफॉर्म, धतूरा, बेलाडोना, हायेसायामस (hyoscyamus); *(ख) मेरुरज्जु को प्रभावित करनेवाले - कुचला (nux vomica), जेलसेमियम मूल।
0.5
2,620.377408
20231101.hi_9282_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7
विष
(ग) हृदय को प्रभावित करनेवाले - वच्छनाभ (aconite), डिजिटैलिस (digitalis), कनेर, तंबाकू, हाइड्रोसायनिक, अम्ल,
0.5
2,620.377408
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7
विष
विषाक्तता के आपाती उपचार (emergency treatment) के लिए, जिसमें जीवविष (toxin) खा लिया गया हो, निम्नलिखित क्रियाविधि अपनानी चाहिए :
0.5
2,620.377408
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7
विष
(1) यथाशीघ्र उलटी, वस्तिक्रिया (lavage), विरेचन (catharsis) या मूत्रता (diuresis) द्वारा विष को निकालना।
0.5
2,620.377408
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7
विष
(3) संक्षोभ (shock), पात (collapse) और अन्य विशिष्ट अभिव्यक्तियों (manifestations) के होते ही उनसे संघर्ष करना।
1
2,620.377408
20231101.hi_9282_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7
विष
तीव्र अम्ल, क्षार या अन्य संक्षारक पदार्थ द्वारा विषाक्तता होने पर आमाशय नलिकाओं (stomach tubes), या वमनकारियों, का उपयोग नहीं करना चाहिए। इनसे जठरीय वेधन (gastric perforation) हो सकता है। जठर में स्थित अंतर्वस्तु की खाली करने का सबसे सरल उपाय वमन कराना है। वमन का प्रयोग तभी करना चाहिए जब रोगी चिकित्सक को सहयोग देने की स्थिति में हो, उसके शरीर में अतिरिक्त विष हो और आमाशय नलिकाओं का अभाव हो, या रोगी आमाशय नलिकाओं का उपयोग कर सकने की स्थिति में न हो। निद्रालु या अचेतन रोगी को वमन नहीं कराना चाहिए, क्योंकि उसके आमाशय की अंतर्वस्तु के तरलापनयन (aspiration) का भय रहता है। संक्षारक विषों के उपशमकों के अंतर्ग्रहण की स्थिति में भी वमन वर्जित है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7
विष
वमन कराने के लिए गले में अँगुली या अन्य वस्तु का प्रयोग करना चाहिए, या निम्नलिखित वस्तुओं में से कोई चीज खिलानी चाहिए : ऐयोमॉरफ़ीन हाइड्रोक्लोराइड, चूर्णित सरसों, (powdered mustard) और नमक या प्रबल साबुन जल (strong soap suds)।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7
विष
(1) अतिरिक्त असंक्षारक विषों का निष्कासन, जिन्हें बाद में जठरांत्र क्षेत्र (gastro intestinal tract) से अवशोषित किया जा सकता है;
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7
विष
(2) वमन केंद्र के निर्बल होने पर जब वमन नहीं होता, केंद्रीय तंत्रिकातंत्र को अपसादित करनेवाले विष का निष्कासन;
0.5
2,620.377408
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%81
बदायूँ
बदायूँ (Budaun) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बदायूँ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और एक लोकसभा निर्वाचनक्षेत्र है। बदायूँ गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है।
0.5
2,619.312702
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%81
बदायूँ
इस नगर में एक महान शख्सियत का जन्म हुआ है जिसका नाम है ज्ञानेन्द्र चौहान,जो सामाजिक,लोक कल्याण एवं सनातन के लिए बड़ चढकर हिस्सा लेने का काम करते हैं..
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%81
बदायूँ
11वीं शती के एक अभिलेख में, जो बदायूँ से प्राप्त हुआ है, इस नगर का तत्कालीन नाम वेदामऊ कहा गया है। इस लेख से ज्ञात होता है कि उस समय बदायूँ में पांचाल देश की राजधानी थी। बर्तमान में बदायूँ जिला , रूहेलखण्ड में आता है, रूहेलखण्ड में बरेली , बदायूँ, पीलीभीत, शाहजहाँपुर, मुरादाबाद,सम्भल,अमरोहा,रामपुर,बिजनौर जिले सामिल है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%81
बदायूँ
यह जान पड़ता है कि अहिच्छत्रा नगरी, जो अति प्राचीन काल से उत्तर पांचाल की राजधानी चली आई थी, इस समय तक अपना पूर्व गौरव गँवा बैठी थी। एक किंवदन्ती में यह भी कहा गया है कि, इस नगर को अहीर सरदार राजा बुद्ध ने 10वीं शती में बसाया था जो वैदिक सभ्यता के पालन करने वाले थे।। 13 वीं शताब्दी में यह दिल्ली के मुस्लिम राज्य की एक महत्त्वपूर्ण सीमावर्ती चौकी था और 1657 में बरेली द्वारा इसका स्थान लिए जाने तक प्रांतीय सूबेदार यहीं रहता था। 1838 में यह ज़िला मुख्यालय बना। कुछ लोगों का यह मत है कि बदायूँ की नींव अजयपाल ने 1175 ई. में डाली थी। राजा लखनपाल को भी नगर के बसाने का श्रेय दिया जाता है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%81
बदायूँ
गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भगीरथ ने कहाँ तपस्या की थी। कन्नौज के कछवाहा वंश के राजाओं का राज्य होने के कारण गंगा घाट को कछला घाट नाम दिया गया तथा इसके कुछ ही दूर पर बूढ़ी गंगा के किनारे एक प्राचीन टीले पर अनूठी गुफा है। कपिल मुनि आश्रम के बगल स्थित इस गुफा को भगीरथ गुफा के नाम से जानते हैं। पहले यहाँ राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की भी मूर्तियाँ थी, जो कुछ साल पहले चोरी चली गईं। करीब ही राजा भगीरथ का एक अति जीर्ण-शीर्ण मंदिर है, जहाँ अब सिर्फ चरण पादुका बची हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%81
बदायूँ
अध्यात्मिक दृष्टि से सूकरखेत (बाराह क्षेत्र) का वैसे भी बहुत महत्व है। बदायूँ के कछला गंगा घाट से करीब पाँच कोस की दूरी पर कासगंज की ओर बढ़कर एक बोर्ड दिखाई पड़ता है, जिस पर लिखा है भगीरथ गुफा। एक गाँव है होडलपुर। थोड़ी दूर जंगल के बीच एक प्राचीन टीला दिखाई पड़ता है। बरगद का विशालकाय वृक्ष और अन्य पेड़ों के झुरमुटों बीच मठिया है। इसी टीले पर स्थित है कपिल मुनि आश्रम और भगीरथ गुफा। लाखोरी ईंटें से बनी एक मठिया के द्वार पर हनुमानजी की विशालकाय मूर्ति लगी है। भीतर प्रवेश करने पर एक मूर्ति और दिखाई पड़ती है, इसे स्थानीय लोग कपिल मुनि की मूर्ति बताते हैं। मूर्ति के बगल से ही सुरंगनुमा रास्ता अंदर को जाता है, जिसमें से एक व्यक्ति ही एक बार में प्रवेश कर सकता है। पाँच मीटर भीतर तक ही सुरंग की दीवारों पर लाखोरी ईटें दिखाई पड़ती हैं। इसके बाद शुरू हो जाती है कच्ची अंधेरी गुफा। सुरंगनुमा रास्ते से भीतर जाने के बाद एक बड़ी कोठरी मिलती है, जहाँ एक शिवलिंग भी कोने में है। कोठरी के बाद फिर सुरंग और फिर कोठरी। पहले गंगा इसी टीले के बगल से होकर बहती थीं। अभी भी गंगा की एक धारा समीप से होकर बहती है, जिसे बूढ़ी गंगा कहते हैं। टीले के नीचे स्थित मंदिर से दुर्लभ मुखार बिंदु शिवलिंग भी चोरी चला गया था। बाद में पुलिस ने पाली (अलीगढ़) के एक तालाब से शिवलिंग तो बरामद कर लिया, लेकिन सगर पुत्रों की मूर्तियों का अभी भी कोई पता नहीं है। इसी टीले पर तीन समाधि भी हैं, इनमें से एक को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु नरहरिदास की समाधि कहते हैं।
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20231101.hi_32864_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%81
बदायूँ
नीलकंठ महादेव का प्रसिद्ध मन्दिर, शायद लखनपाल का बनवाया हुआ था। ताजुलमासिर के लेखक ने बदायूँ पर कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमण का वर्णन करते हुए इस नगर को हिन्द के प्रमुख नगरों में माना है। बदायूँ के स्मारकों में जामा मस्जिद भारत की मध्य युगीन इमारतों में शायद सबसे विशाल है इसका निर्माता इल्तुतमिश था, जिसने इसे गद्दी पर बैठने के बारह वर्ष पश्चात अर्थात 1222 ई. में बनवाया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%81
बदायूँ
2011 की जनगणना के अनुसार, बदायूं शहर की आबादी 369,221 (188,475 पुरुष 180,746 महिला = 1000/907), 39,613 (12.3%) थी, जिनकी उम्र 0 से 6 वर्ष थी। वयस्क साक्षरता दर 73.% थी। शहर में व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा हिंदी और उर्दू है जिसमें अंग्रेजी का उपयोग बहुत कम किया जाता है, और शहर में पंजाबी भी एक महत्वपूर्ण भाषा है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%81
बदायूँ
यहाँ की जामा मस्जिद प्रायः समान्तर चतुर्भुज के आकार की है, किन्तु पूर्व की ओर अधिक चौड़ी है। भीतरी प्रागंण के पूर्वी कोण पर मुख्य मस्जिद है, जो तीन भागों में विभाजित है। बीच के प्रकोष्ठ पर गुम्बद है। बाहर से देखने पर यह मस्जिद साधारण सी दिखती है, किन्तु इसके चारों कोनों की बुर्जियों पर सुन्दर नक़्क़ाशी और शिल्प प्रदर्शित है। बदायूँ में सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलज़ी के परिवार के बनवाए हुए कई मक़बरे हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%B0
लाउडस्पीकर
मल्टी-ड्राइवर स्पीकर सिस्टम में प्रयुक्त, क्रॉसओवर एक सबसिस्टम है जो निवेश संकेत को विभिन्न ड्राइवरों के अनुकूल आवृत्ति सीमाओं में पृथक रखता है। ड्राइवर अपनी प्रयोज्य आवृत्ति सीमा में ही विद्युत शक्ति प्राप्त करते हैं और इस प्रकार ड्राइवरों में विरूपण तथा उनके बीच व्यतिकरण कम होता है।
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लाउडस्पीकर
क्रॉसओवर सक्रिय या निष्क्रिय हो सकते हैं। एक निष्क्रिय क्रॉसओवर एक इलेक्ट्रोनिक परिपथ है जिसमें एक या अधिक प्रतिरोध, प्रेरक या गैर-ध्रुवीय संधारित्र के संयोजन प्रयुक्त होते हैं। ये भाग ध्यानपूर्वक डिजाइन किए गए नेटवर्क में गठित किए गए हैं और प्रवर्धक के संकेतों को अलग-अलग ड्राइवरों को वितरित करने से पूर्व आवश्यक आवृत्ति बैंड में विभाजित करने के लिए इन्हें अधिकतर विद्युत प्रवर्धक तथा लाउडस्पीकर ड्राइवरों के बीच में रखा जाता है। निष्क्रिय क्रॉसओवर परिपथ को खुद श्रव्य संकेत से परे किसी बाह्य विद्युत शक्ति की जरूरत नहीं होती किंतु वाक कॉल तथा क्रॉसओवर के बीच अवमंदन गुणांक में उल्लेखनीय कमी होती है। एक सक्रिय क्रॉसओवर एक इलेक्ट्रॉनिक फिल्टर परिपथ है, जो शक्ति प्रवर्धन से पूर्व संकेत को अलग-अलग आवृत्ति बैंड में विभाजित करता है, इस प्रकार प्रत्येक बैंडपास के लिए कम से कम एक विद्युत प्रवर्धक की आवश्यकता होती है। निष्क्रिय फिल्टर भी शक्ति प्रवर्धन से पहले इस तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन सक्रिय फिल्टरिंग की तुलना में दृढ़ता के कारण यह एक असामान्य समाधान है। कोई भी तकनीक जो क्रॉसओवर फिल्टरिंग के बाद प्रवर्धन का उपयोग करती है, वह सामान्यतः न्यूनतम प्रवर्धक चैनलों की संख्या के आधार पर बाइ-एम्पिंग, ट्राइ-एम्पिंग, क्वैड-एम्पिंग और इसी प्रकार आगे, के नाम से जानी जाती है। कुछ लाउडस्पीकर डिजाइनों में निष्क्रिय और सक्रिय क्रॉसओवर फिल्टरिंग का संयोजन प्रयुक्त होता है, जैसे मध्य एवं उच्च आवृत्ति ड्राइवरों के बीच निष्क्रिय क्रॉसओवर तथा न्यून-आवृत्ति ड्राइवर संयुक्त मध्य और उच्च आवृत्तियों के वीच सक्रिय क्रॉसओवर.
0.5
2,618.874678
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लाउडस्पीकर
निष्क्रिय क्रॉसओवर सामान्यतः स्पीकर बक्से के अंदर संस्थापित होते हैं और घर तथा कम शक्ति के उपयोग के लिए क्रॉसओवर का सबसे सामान्य प्रकार है। कार ऑडियो सिस्टम में, निष्क्रिय क्रॉसओवर एक अलग बॉक्स में, आवश्यक सकता है उपयोग घटकों के आकार को समायोजित. निष्क्रिय क्रॉसओवर निम्न-स्तरीय फिल्टरिंग के लिए सामान्य हो सकता है, या 18 से 24 डीबी प्रति सप्तक की खड़ी ढलान प्रदान करने के लिए जटिल. निष्क्रिय क्रॉसओवरों को ड्राइवर, भौंपू या अंतःक्षेत्र के अनुनाद की अवांछित विशेषताओं को समायोजित करने के लिए डिजाइन किया जा सकता है और घटकों की अन्योन्यक्रियाओं के कारण इसका क्रियान्वयन मुश्किल हो सकता है। निष्क्रिय क्रॉसओवर की, ड्राइवर इकाइयों जिन्हें वे फ़ीड करते हैं, की भांति विद्युत वहन सीमा होती है, निवेशन हानि होती हैं 10% अक्सर दावा किया है) और प्रवर्धक द्वारा देखा भार बदल जाते हैं। हाई-फाई दुनिया में परिवर्तन बहुतों के चिंता की बात है। जब उच्च उत्पादन स्तर की आवश्यकता होती है, सक्रिय क्रॉसओवर बेहतर हो सकता है। सक्रिय क्रॉसओवर सरल परिपथ हो सकता है जो एक निष्क्रिय नेटवर्क की प्रतिक्रिया की बराबरी करता है, या व्यापक श्रव्य समायोजन की अनुमति देते हुए अधिक जटिल हो सकता है। कुछ सक्रिय क्रॉसओवर, आमतौर पर डिजिटल लाउडस्पीकर प्रबंधन प्रणाली में, आवृत्ति बैंड्स के बीच फेज और समय में सटीक संरेखण, तुल्यकरण और गतिक (संपीड़न और सीमांत) नियंत्रण शामिल हो सकते हैं।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%B0
लाउडस्पीकर
कुछ हाई-फाई और पेशेवर लाउडस्पीकर सिस्टमों में अब एक ऑनबोर्ड प्रवर्धक सिस्टम के एक भाग के रूप में के रूप में एक सक्रिय क्रॉसओवर परिपथ को शामिल किया जाता है। ये स्पीकर डिजाइन एक प्रवर्धक-पूर्व से एक संकेत केबल के अलावा अपनी एसी विद्युत की आवश्यकता से पहचाने जा सकते हैं। इस सक्रिय संरचना में ड्राइवर संरक्षण परिपथ और एक डिजिटल लाउडस्पीकर प्रबंधन प्रणाली की अन्य विशेषताएं शामिल हो सकती हैं। कंप्यूटर ध्वनि में संचालित स्पीकर सिस्टम आम हैं (एकल श्रोता के लिए) और आकार के स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर, आधुनिक संगीत कार्यक्रम साउंड सिस्टम जहां उनकी उपस्थिति बढ़ रही है महत्वपूर्ण और तेजी से.<ref>SVConline.com, ब्रुस बोर्गार्सन. बायर्स गाइड: पॉवर्ड पीए (PA) लाउडस्पीकर , 1 जनवरी 2006' . "अ डज़न इयर्स अगो, पॉवर्ड पीए (PA) लाउडस्पीकर्स वर डी रेयर एक्सेपशंस. टूडे, दो नोट एक्जैक्टली द रुल, दे सर्टेनली कमांड अ सिग्नीफिकेंट एंड सटेडली इन्क्रिज़िंग शेयर ऑफ़ द प्रोफेशनल मार्केटप्लेस."</ref>
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%B0
लाउडस्पीकर
अधिकतर लाउडस्पीकर सिस्टमों में अंतःक्षेत्र या एक कैबिनेट में ड्राइवर आरोहित होते हैं, एक बाड़े मिलकर के ड्राइवरों में घुड़सवार. अंतःक्षेत्र की भूमिका ड्राइवरों को भौतिक रूप में आरोहित करने हेतु स्थान प्रदान करना तथा ड्राइवर के पृष्ठभाग से निकलने वाली ध्वनि तरंगों के अग्रभाग से निकली ध्वनि तरंगों के साथ ध्वंसकारी व्यतिकरण को रोकना है; आमतौर से इनके कारण निरसन (उदाहरण के लिए कंघा-फिल्टरिंग) और कम आवृत्तियों पर उल्लेखनीय रूप से स्तर और गुणवत्ता में बदलाव होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%B0
लाउडस्पीकर
सरलतम ड्राइवर आरोहण एक सपाट पैनल (यानी, व्यारोध) होता है, जिसके छिद्रों में ड्राइवर आरोहित होते हैं। हालांकि, इस पद्धति में, व्यारोध के आयाम की तुलना में लंबी तरंगदैर्घ्य वाली ध्वनि आवृत्तियां रद्द हो जाती हैं, क्योंकि शंकु के पृष्ठभाग से प्रत्यवस्था विकिरण का अग्रभाग से विकिरण के साथ व्यतिकरण होता है। एक असीम बड़े पैनल के साथ, इस व्यतिकरण को पूरी तरह रोका जा सकता है। एक पर्याप्त बड़े मोहरबंद बॉक्स से इस क्रिया को किया जा सकता है।रिकार्ड निर्माता. अनंत रोक
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2,618.874678
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%B0
लाउडस्पीकर
चूंकि अनंत आयाम के पैनल अव्यावहारिक हैं, अधिकतर अंतःक्षेत्र गतिशील डायाफ्राम से पृष्ठ विकिरण को सामित करके कार्य करते हैं। एक मोहरबंद अंतःक्षेत्र एक कठोर और वायुरोधक बॉक्स में ध्वनि को सीमित करके लाउडस्पीकर के पीछे से उत्सर्जित ध्वनि के संचरण को रोकता है। कैबिनेट की दीवारों में ध्वनि के प्रसारण को कम करने के उपायों में, कैबिनेट की मोटी दीवारें, क्षयकारी दीवार सामग्री, आंतरिक सुदृढ़ीकरण, मुड़ी हुई कैबिनेट की दीवारें- या बहुत ही कम, श्यानप्रत्यास्थ सामग्री (जैसे, खनिजयुक्त कोलतार) या अंतःक्षेत्र की अंदरूनी दीवारों पर सीसे की पतली चद्दर की परत चढ़ाना शामिल हैं।
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लाउडस्पीकर
हालांकि, एक कठोर अंतःक्षेत्र आंतरिक रूप से ध्वनि को प्रत्यावर्तित करता है, जो लाउडस्पीकर डायफ्राम के द्वारा वापस संचरित हो सकती है- पुनः जिसके परिणाम में ध्वनि की गुणवत्ता में गिरावट होती है। इसे अवशोषक सामग्री का उपयोग करके आंतरिक अवशोषण द्वारा कम किया जा सकता है (अक्सर जिसे “अवमंदन” कहा जाता है), जैसे अंतःक्षेत्र में कांच के रेशे, ऊन, या सिंथेटिक फाइबर बैटिंग का प्रयोग. अंतःक्षेत्र के आंतरिक आकार को भी इस प्रकार डिजाइन किया जा सकता है कि ध्वनि को लाउडस्पीकर डायाफ्राम से दूर प्रत्यावर्तित किया जा सके, जहां उसे अवशोषित कर लिया जाए.
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लाउडस्पीकर
अन्य प्रकार के अंतःक्षेत्र पृष्ठ ध्वनि विकिरण को परिवर्तित कर देते हैं जिससे यह रचनात्मक रूप से शंकु के सामने से उत्पादित निर्गम में जुड़ जाता है। ऐसा करने वाले डिजाइनों (बैस रिफ्लेक्स, पैसिव रेडिएटर, ट्रांसमिशन लाइन, आदि सहित) का उपयोग प्रायः प्रभावी न्यून-आवृत्ति अनुक्रिया का विस्तार करने और ड्राइवर का न्यून-आवृत्ति निर्गम बढ़ाने के लिए किया जाता है।
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व्यावहारिकतावाद
(६) प्रयोजनवादियों के अनुसार सत्य कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो पहले से विद्यमान हो। परिस्थितियों के परिवर्तन के फलस्वरूप मनुष्य के समक्ष अनेक समस्यायें उत्पन्न होती है जिनकी पूर्ति के लिए मनुष्य चिन्तन करता है। चिन्तन में आये सभी विचार सत्य नहीं होते, सत्य केवल वे ही विचार होते हैं जिनके प्रयोग से सन्तोषजनक फल की प्राप्ति होती है।
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व्यावहारिकतावाद
(७) प्रयोजनवाद समाज में व्याप्त रूढ़ियों, मान्यताओं, परम्पराओं, बन्धनों, अंधविश्वासों आदि में कोई आस्था नहीं रखता। यह जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में, जीवन की अनेक प्रकार की क्रियाओं में ज्यादा विश्वास करता है। प्रयोजनवाद के अनुसार विचारों की उत्पत्ति क्रिया के बाद होती है, इसलिए विचारों की अपेक्षा क्रिया को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है।
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व्यावहारिकतावाद
(८) मनुष्य रचनात्मक कार्य करता है, यथार्थ की रचना में भी उसका योगदान है तथा मूल्य भी मानव द्वारा ही निर्मित होते हैं।
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व्यावहारिकतावाद
(१०) आदर्शवादी विचारकों के समान प्रयोजनवादी विचारक भी मनुष्य को विश्व का सर्वोच्च प्राणी मानते हैं। प्रयोजनवादियों के अनुसार मनुष्य ही एक ऐसा मनःशारीरिक प्राणी है जो अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए अनेक प्रकार की उच्चतम क्रियायें करता है। वह क्रियाओं की उपयोगिता एवं अनुपयोगिता को देखकर अनुभवों का संचय करता है तथा मानव-सभ्यता का सृजन एवं संवर्द्धन करता है।
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व्यावहारिकतावाद
(१) प्रयोजनवाद ‘शाश्वत मूल्यों में विश्वास नहीं करता। प्रयोजनवाद के अतिरिक्त सभी दार्शनिक विचारधारायें सत्य को अपरिवर्तनशील मानती हैं परन्तु प्रयोजनवाद के अनुसार सत्य देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। प्रयोजनवादी डीवी केवल ‘शिव’ में ही विश्वास रखते हैं, ‘सत्य’ तथा ‘सुन्दर’ में नहीं। उनके अनुसार जो वस्तु एक स्थान पर सत्य है, यह आवश्यक नहीं है कि वह दूसरे स्थान पर भी सत्य हो। इस प्रकार सत्य सदा परिवर्तनशील है।
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व्यावहारिकतावाद
(२) बुद्धि के व्यावहारिक रूप में ही प्रयोजनवाद का विश्वास होने के कारण वे विज्ञान एवं वैज्ञानिक सत्यों पर विश्वास नहीं करते। उनका विश्वास है कि प्रज्ञा वातावरण को परिवर्तित करने में सहायक होती है। इसी कारण ‘व्यावहारिक इच्छायें’, चेष्टाओंका विकास’, ‘चुनाव द्वारा कार्य’ इत्यादि बातें ही उसके लिए उचित है।
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व्यावहारिकतावाद
(३) प्रयोजनवाद, बहुतत्त्ववादी विचारधारा का समर्थक एवं पोषक है। इसके अनुसार संसार का निर्माण अनेक तत्वों के योग से हुआ है। इस सम्बन्ध में रस्क महोदय ने लिखा है – प्रकृतिवाद प्रत्येक वस्तु को जीवन अथवा भौतिक तत्व से निर्मित मानता है। आदर्शवाद मन (विचार) अथवा आत्मा से। प्रयोजनवाद किसी एक की आधारभूत सिद्धान्त के आधार पर इसकी व्याख्या की आवश्यकता नहीं समझता है। वह अनेक सिद्धान्त के योगदान को स्वीकार करते हैं। इस प्रकार वह बहुतत्ववादी है।
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व्यावहारिकतावाद
(४) प्रयोजनवाद, आदर्शवाद के विपरीत प्रकृतिवाद के साथ सहयोग करके व्यक्तित्व का संकीर्ण अर्थ बताता है। चूँकि मनुष्य जन्म से ही भिन्न भिन्न स्वभाव तथा व्यक्तित्व वाले होते हैं इसलिए आदर्शवाद के व्यक्तित्व की सार्वभौमिकता पर प्रयोजनवाद का विश्वास नहीं है।
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व्यावहारिकतावाद
(५) प्रयोजनवाद ‘सत्य’ को ‘व्यवहार’ तथा ‘प्रयोजन’ की कसौटी पर कसकर तथा परिणाम द्वारा व्यवहार के अच्छे तथा बुरे होने की बात करके वह आदर्शवाद का विरोध करता है तथा तर्क एवं प्रज्ञा के विषय में मनुष्यों तथा पशुओं में साम्य बताकर वह प्रकृतिवादी विचारकों का समर्थन करता है।
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