_id
stringlengths 17
22
| url
stringlengths 32
237
| title
stringlengths 1
23
| text
stringlengths 100
5.91k
| score
float64 0.5
1
| views
float64 38.2
20.6k
|
---|---|---|---|---|---|
20231101.hi_74638_2
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE
|
महोबा
|
महोबा से १८ किलोमीटर दूर स्थित हे ,यहा के राजा गंगाधर भट्ट जिन्होंने शिवाजी महाराज को ओरंगजेब की कैद से छुड़ाने में मदद की बाद में शिवाजी का राज्याभिषेक भी कराया उनका बनाया हुआ कालभैरव का मंदिर देखने लायक हे
| 0.5 | 2,617.300251 |
20231101.hi_74638_3
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE
|
महोबा
|
महोबा स्थित गोरखगिरी पर्वत एक खूबसूरत पर्यटक स्थल है। इसी पर्वत पर गुरू गोरखनाथ कुछ समय के लिए अपने शिष्य सिद्धो दीपक नाथ के साथ ठहरें थे। इसके अलावा यहां भगवान शिव की नृत्य करती मुद्रा में एक मूर्ति भी है।
| 0.5 | 2,617.300251 |
20231101.hi_74638_4
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE
|
महोबा
|
सूर्य मंदिर राहिला सागर के पश्चिम दिशा में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण राहिला के शासक चंदेल ने अपने शासक काल ८९० से ९१० ई. के दौरान नौवीं शताब्दी में करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला काफी खूबसूरत है।
| 0.5 | 2,617.300251 |
20231101.hi_74638_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE
|
महोबा
|
महाबो से खजुराहो ६१ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। विश्व प्रसिद्ध मंदिर खजुराहो महाबो के प्रमुख व प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण ९५० ई. और १०५० ई. में चन्देलों द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर के आस-पास २५ अन्य मंदिर भी है। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत आकर्षक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
| 0.5 | 2,617.300251 |
20231101.hi_74638_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE
|
महोबा
|
महोबा से १०९ किलोमीटर की दूरी पर स्थित कालिंजर किलों के लिए काफी प्रसिद्ध है। १५वीं और १९वीं शताब्दी के मध्य में इस किले का विशेष महत्व रहा है। किले के भीतर कई अन्य जगह जैसे नीलकंठ मंदिर, सीता सेज, पटल गंगा, पांडु खुर्द, कोटि तीर्थ और भैरों की झरिद आदि स्थित है।
| 1 | 2,617.300251 |
20231101.hi_74638_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE
|
महोबा
|
महोबा से १२७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित चित्रकूट की प्राकृतिक सुंदरता काफी अद्भुत है। चित्रकूट अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि भगवान राम और सीता ने अपने चौदह वर्ष यहीं पर बिताए थे।
| 0.5 | 2,617.300251 |
20231101.hi_74638_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE
|
महोबा
|
837 साल पहले महोबा के चंदेल राजा परमाल के शासन से कजली मेले की शुरुआत हुई थी। राजा परमाल की पुत्री चंद्रावल अपनी 14 सखियों के साथ भुजरियां विसर्जित करने कीरत सागर जा रही थीं। तभी रास्ते में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने आक्रमण कर दिया था।
| 0.5 | 2,617.300251 |
20231101.hi_74638_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE
|
महोबा
|
पृथ्वीराज चौहान की योजना चंद्रावल का अपहरण कर उसका विवाह अपने बेटे सूरज सिंह से कराने की थी। उस समय कन्नौज में रह रहे आल्हा और ऊदल को जब इसकी जानकारी मिली तो वे चचेरे भाई मलखान के साथ महोबा पहुंच गए और राजा परमाल के पुत्र रंजीत के नेतृत्व में चंदेल सेना ने पृथ्वीराज चौहान की सेना से युद्ध किया। 24 घंटे चली लड़ाई में पृथ्वीराज का बेटा सूरज सिंह मारा गया। युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को पराजय का सामना करना पड़ा। युद्ध के बाद राजा परमाल की पत्नी रानी मल्हना, राजकुमारी चंद्रावल व उसकी सखियों ने कीरत सागर में भुजरियां विसर्जित कीं।
| 0.5 | 2,617.300251 |
20231101.hi_74638_10
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE
|
महोबा
|
इसके बाद पूरे राज्य में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया गया। तभी से महोबा क्षेत्र के ग्रामीण रक्षाबंधन के एक दिन बाद अर्थात भादों मास की परीवा को कीरत सागर के तट से लौटने के बाद ही बहने अपने भाइयों को राखी बांधती हैं। आल्हा-ऊदल की इस वीरभूमि में आठ सदी बीतने के बाद भी लाखो लोग कजली मेले में आते हैं।
| 0.5 | 2,617.300251 |
20231101.hi_25944_1
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
|
रक्षासूत्र
|
प्राचीनकाल में रक्षाबंधन मुख्यत: हिन्दुओ का त्यौहार है। प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण अपने यजमानों के दाहिने हाथ पर एक सूत्र बांधते थे, जिसे रक्षासूत्र कहा जाता था। इसे ही आगे चलकर राखी जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि यज्ञ में जो यज्ञसूत्र बांधा जाता था उसे आगे चलकर रक्षासूत्र कहा जाने लगा। रक्षाबंधन की सामाजिक लोकप्रियता कब प्रारंभ हुई, यह कहना कठिन है। कुछ पौराणिक कथाओं में इसका जिक्र है जिसके अनुसार भगवान विष्णु के वामनावतार ने भी राजा बलि के रक्षासूत्र बांधा था और उसके बाद ही उन्हें पाताल जाने का आदेश दिया था। आज भी रक्षासूत्र बांधते समय एक मंत्र बोला जाता है उसमें इसी घटना का जिक्र होता है। परंपरागत मान्यता के अनुसार रक्षाबंधन का संबंध एक पौराणिक कथा से माना जाता है, जो कृष्ण व युधिष्ठिर के संवाद के रूप में भविष्योत्तर पुराण में वर्णित बताई जाती है। इसमें राक्षसों से इंद्रलोक को बचाने के लिए गुरु बृहस्पति ने इंद्राणी को एक उपाय बतलाया था जिसमें श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्राणी ने इंद्र के तिलक लगाकर उसके रक्षासूत्र बांधा था जिससे इंद्र विजयी हुए। इसी त्योहार से जुड़ी एक और कहानी बहुत मशहूर है। यह कहानी है हुमायूं और रानी कर्णावती की। बताया जाता है कि रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजकर मदद की गुहार लगाई थी। जिसके बाद हुमायूं ने रानी कर्णावती की मदद करने का फैसला लिया था। दरअसल राणा संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा की विधवा रानी कर्णवती ने उस वक्त हुमायूं को राखी भेजी थी जब गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने चितौड़ पर हमला कर दिया था। उस वक्त चितौड़ की गद्दी पर रानी कर्णावती का बेटा था और उनके पास इतनी फौजी ताकत भी नहीं थी कि वो राज्य और प्रजा रक्षा कर सकें। जिसके बाद रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी और मदद की अपील की। हुमायूं ने एक मुस्लिम होने के बावजूद उस राखी को कुबूल किया। हुमायूं चितौड़ की हिफाज़त करने के लिए अपनी फौज लेकर निकल पड़ा और कई सौ किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद चितौड़ पहुंचा ,लेकिन जब तक हुमायूं चितौड़ पहुंचा था तब तक काफी देर हो चुकी थी और रानी कर्णावती ने जौहर (खुद को आग में जला लेना) कर लिया था। जिसके बाद चितौड़ पर बहादुर शाह ने कब्ज़ा कर लिया था।यह खबर सुनने के बाद हुमायूं ने चितौड़ पर हमला बोल दिया।हुमायूं और बहादुर शाह के बीच हुई इस जंग में हुमायूं ने बहादुर शाह को शिकस्त दी और हुमायूं ने एक बार फिर रानी कर्णावती के बेटे को उनकी गद्दी वापस दिलाई।
| 0.5 | 2,598.743328 |
20231101.hi_25944_2
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
|
रक्षासूत्र
|
वर्तमानकाल में परिवार में किसी या सभी पूज्य और आदरणीय लोगों को रक्षासूत्र बाँधने की परंपरा भी है। वृक्षों की रक्षा के लिए वृक्षों को रक्षासूत्र तथा परिवार की रक्षा के लिए माँ को रक्षासूत्र बाँधने के दृष्टांत भी मिलते हैं।
| 0.5 | 2,598.743328 |
20231101.hi_25944_3
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
|
रक्षासूत्र
|
इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवीर महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे!(रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।
| 0.5 | 2,598.743328 |
20231101.hi_25944_4
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
|
रक्षासूत्र
|
शास्त्रों में कहा गया है - इस दिन अपरान्ह में रक्षासूत्र का पूजन करे और उसके उपरांत रक्षाबंधन का विधान है। यह रक्षाबंधन राजा को पुरोहित द्वारा यजमान के ब्राह्मण द्वारा, भाई के बहिन द्वारा और पति के पत्नी द्वारा दाहिनी कलाई पर किया जाता है। संस्कृत की उक्ति के अनुसार
| 0.5 | 2,598.743328 |
20231101.hi_25944_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
|
रक्षासूत्र
|
अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है। रक्षाबंधन में मूलत: दो भावनाएं काम करती रही हैं। प्रथम जिस व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना और दूसरे रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना। इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह, शांति और रक्षा का बंधन है। इसमें सबके सुख और कल्याण की भावना निहित है। सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और सिद्धांत या मंत्र भी। पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षासूत्र बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो सकता है। धागा केवल उसका प्रतीक है। रक्षासूत्र बाँधते समय एक श्लोक और पढ़ा जाता है जो इस प्रकार है-
| 1 | 2,598.743328 |
20231101.hi_25944_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
|
रक्षासूत्र
|
ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।
| 0.5 | 2,598.743328 |
20231101.hi_25944_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
|
रक्षासूत्र
|
साधारण मौली की राखियाँ भी बाज़ार में मिलती हैं। छोटे बच्चों के लिए उपहार युक्त राखियां, जिसमें रौशनी वाले खिलौने, टेडी बियर, इलेक्ट्रानिक उपकरण व चाकलेट लगी राखियाँ भी बाज़ार में मिलती हैं। बड़ों के लिए चंदन, कीमती नगों, सिंदूर, चावल तथा सोन व चाँदी के ब्रेसलेट लोगों में खूब लोकप्रिय हैं। इसके अतिरिक्त रंगीन धागे, मोती व चंदन जड़ित धागे डाक से भेजे जाने के लिए अधिक पसंद किए जाते हैं। अनेक रक्षासूत्रों पर भगवान के भी दर्शन होते हैं। राखियों पर संप्रदाय के अनुरूप देवी-देवताओं की प्रतिमा उकेरी और चित्र चिपकाए जाते हैं। दूर-दराज व विदेशों में भेजने के अभिनंदन पत्रों के साथ भी राखियां भी मिलती हैं। इसमें भाइयों के लिए राखी के साथ शुभकामना संदेश भी होते है। इसके अलावा सुनार और आभूषणों की दूकानों पर चाँदी, डायमंड, अमरीकन ज़रीकन, रुद्राक्ष से मंडित राखियाँ विभिन्न डिज़ाइनों एवं रंगों में उपलब्ध हैं।
| 0.5 | 2,598.743328 |
20231101.hi_25944_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
|
रक्षासूत्र
|
भारत में विदेशी राखियाँ भी काफ़ी लोकप्रिय हैं। आमतौर पर इलेक्ट्रॉनिक सामान की नकल करने में मशहूर चीन अब राखी कारोबार में भी फल-फूल रहा है। इन राखियों में साटन के धागों में छोटे-छोटे खिलौने, गाड़ियाँ, फुटबॉल, टेडिबियर, गुड्डे-गुड़िया, सुपरमैन और रंग-बिरंगे फूल बँधे हुए हैं। यहाँ तक कि बच्चों के लिए धागों पर चूहे को भी विराजमान कर दिया गया है।
| 0.5 | 2,598.743328 |
20231101.hi_25944_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
|
रक्षासूत्र
|
बहनों की व्यस्तता को देखते हुए भारत का डाक विभाग ऐसे लिफ़ाफ़े बिक्री के लिए जारी करता है, जिन पर बहन को केवल भाई का पता भर लिखना होता है। इनमें राखी, रोली व चावल सहित सभी सामग्री पहले से होती है। इसके अलावा वाटर प्रूफ़ लिफ़ाफ़े भी जारी किए जाते हैं। कुछ लिफ़ाफ़े ऐसे भी तैयार कराए जाते हैं जिनमें राखी सहित सभी सामग्री होती है। इनकी बिक्री अनेक मुख्य या प्रधान डाकघरों द्वारा की जाती है। डाक छँटाई के दौरान राखी डाक का विशेष ध्यान रखा जाता है।
| 0.5 | 2,598.743328 |
20231101.hi_220982_3
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A5%8B
|
जूडो
|
कानो अपने बचपन में काफी कमजोर थे, उनका कद भी काफी कम था और उनका वजन बीस साल का होने पर भी एक सौ पाउंड (45 किलो) से ज्यादा नहीं था और वह अक्सर दबंगों द्वारा सताए जाते थे। उन्होंने 17 साल की उम्र में उस समय जुजुत्सु का अनुसरण किया जिस समय यह कला ख़त्म होने लगी थी लेकिन उन्हें इसमें बहुत कम कामयाबी हासिल हुई। ऐसा कुछ हद तक उन्हें एक छात्र के रूप में अपनाने वाले एक शिक्षक के मिलने में तकलीफ होने की वजह से हुआ था। 18 साल की उम्र में साहित्य की पढ़ाई करने के लिए विश्वविद्यालय जाने के समय भी उन्होंने अपने मार्शल आर्ट का अध्ययन जारी रखा और अंत में उन्होंने फुकुदा हाचिनोसुके (लगभग 1828 से लगभग 1880 तक) के बारे में सुना जो तेनजिन शिन'यो-रियु के गुरु और केइको फुकुदा (जन्म 1913) के दादा थे, जो कानो की एकमात्र जीवित छात्रा और दुनिया में सबसे ऊंचा दर्जा पाने वाली महिला जुडोका है। कहा जाता है कि फुकुदा हाचिनोसुके ने जुडो में मुक्त अभ्यास (रंदोरी) पर कानो के गुरूच्चरण के बीज बोकर औपचारिक अभ्यास की तकनीक पर जोर दिया था।
| 0.5 | 2,597.090591 |
20231101.hi_220982_4
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A5%8B
|
जूडो
|
फुकुदा के स्कूल में कानो के शामिल होने के एक साल से कुछ ज्यादा समय बीतने के बाद फुकुदा बीमार पड़ गए और उनकी मौत हो गई। उसके बाद कानो एक अन्य तेनजिन शिन'यो-रियु स्कूल के छात्र बन गए जो आइसो मासातोमो (लगभग 1820 से लगभग 1881) का था जो फुकुदा की तुलना में पूर्व-व्यवस्थित तरीकों (काता) के अभ्यास पर ज्यादा ज़ोर देते थे। अपने समर्पण के बल पर कानो ने बहुत जल्द निपुण प्रशिक्षक (शिहान) का ख़िताब हासिल कर लिया और 21 साल की उम्र में आइसो के सहायक प्रशिक्षक बन गए। दुर्भाग्य से, आइसो जल्द बीमार पड़ गए और कानो ने यह महसूस करते हुए कितो-रियु के आईकुबो सुनेतोशी (1835–1889) के छात्र बनकर एक दूसरी शैली को अपना लिया कि उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है। फुकुदा की तरह, आईकुबो ने मुक्त अभ्यास पर ज्यादा जोर दिया। दूसरी तरफ, कितो-रियु में तेनजिन शिन'यो-रियु की तुलना में काफी हद तक पटकने की तकनीकों पर ज़ोर दिया जाता था।
| 0.5 | 2,597.090591 |
20231101.hi_220982_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A5%8B
|
जूडो
|
इस समय तक, कानो नई तकनीकों को तैयार करने में लगे थे, जैसे - "शोल्डर व्हील" (काता-गुरुमा, जिसे पश्चिमी पहलवानों में एक फायरमैन्स कैरी के नाम से जाना जाता है जो इसी तरह की एक थोड़ी अलग तकनीक का इस्तेमाल करते हैं) और "फ्लोटिंग हिप" (उकी गोशी) दांव. हालांकि, वह पहले से ही कितो-रियु और तेनजिन शिन'यो-रियु के सिद्धांतों का सिर्फ विस्तार करने की अपेक्षा उससे कहीं अधिक कुछ करने पर विचार कर रहे थे। नए विचारों से भरे कानो के दिमाग में जुजुत्सु के एक प्रमुख सुधार की योजना थी जिसकी तकनीकें काफी अच्छे वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित थी और जिसका मुख्य उद्देश्य मार्शल आर्ट की बहादुरी के विकास के अलावा युवाओं के शरीर, दिमाग और चरित्र का भी विकास करना था। मई 1882 में, 22 साल की उम्र में, विश्वविद्यालय में अपनी स्नातक की उपाधि के लगभग ख़त्म होने पर, कानो ने आईकुबो के स्कूल के नौ छात्रों को कामाकुरा के एइशो-जी नामक एक बौद्ध मंदिर में जुजुत्सु का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया और आईकुबो प्रशिक्षण में मदद करने के लिए सप्ताह में तीन दिन वहां आते थे। हालांकि उस मंदिर को "कोडोकन" या "तरीका सिखाने की जगह" के नाम से पुकारे जाने से पहले दो साल बीत चुके थे और कानो को उस वक़्त तक कितो-रियु के "मास्टर" या गुरु का खिताब नहीं दिया गया था, लेकिन इसे अब कोडोकन की संस्थापना माना जाता है।
| 0.5 | 2,597.090591 |
20231101.hi_220982_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A5%8B
|
जूडो
|
जुडो को वास्तव में कानो जिउ-जित्सु या कानो जिउ-डो और बाद में कोडोकन जिउ-डो या केवल जिउ-डो या जुडो के नाम से जाना जाता था। शुरू के दिनों में इसे उस वक़्त तक सामान्य रूप से केवल जिउ-जित्सु के रूप में भी संदर्भित किया जाता था।
| 0.5 | 2,597.090591 |
20231101.hi_220982_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A5%8B
|
जूडो
|
"जुडो" शब्द की जड़ उसी चित्रलिपि से निकली है जहां से "जुजुत्सु" शब्द की निकली है: , जिसका मतलब इसके सन्दर्भ के आधार पर "नम्रता", "कोमलता", "लचीलापन" और "आसान" भी हो सकता है। हालांकि jū (जु) का अनुवाद करने के ऐसे प्रयास भ्रामक होते हैं। इनमें से प्रत्येक शब्द में jū (जु) का इस्तेमाल के मार्शल आर्ट्स के सिद्धांत का एक स्पष्ट सन्दर्भ है। कोमल तरीके को प्रतिद्वंद्वी को हराने के लिए लगाए जाने वाले बल के अप्रत्यक्ष अनुप्रयोग द्वारा अभिलक्ष्यित किया जाता है। अधिक विशेष रूप से, यह व्यक्ति के प्रतिद्वंद्वी की ताकत को उसके खिलाफ इस्तेमाल करने और बदलती परिस्थितियों के अनुसार अच्छी तरह ढल जाने का सिद्धांत है। उदाहरण के लिए, हमलावर पर उसका प्रतिद्वंद्वी हमला करने के लिए एक तरफ हट सकता है और उसे आगे की तरफ पटकने के लिए अपनी ताकत (उसे अपने पैर से मारकर गिराने के लिए अक्सर एक पैर की मदद से) का इस्तेमाल कर सकता है (खींचने के लिए इसका उल्टा करना सही होता है). कानो ने जुजुत्सु को चालों की एक असंगत थैली के रूप में देखा जिसे वह एक सिद्धांत के अनुसार एकजुट करना चाहते थे जिसका समाधान उन्हें "अधिकतम क्षमता" की धारणा में मिला। केवल बेहतर ताकत पर निर्भर करने वाले जुजुत्सु की तकनीकों को प्रतिद्वंद्वी के बल को पुनर्निर्देशित करने, प्रतिद्वंद्वी के संतुलन को बिगाड़ने, या बेहतर उत्तोलन का इस्तेमाल करने वाले के पक्ष में स्वीकार या अस्वीकार कर दिया जाता था।
| 1 | 2,597.090591 |
20231101.hi_220982_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A5%8B
|
जूडो
|
जुडो और जुजुत्सु के दूसरे लक्षणों में अंतर है। जहां का मतलब कोमलता की "कला", "विज्ञान", या "तकनीक" है, वहीं का मतलब कोमलता का "रास्ता" है। के इस्तेमाल, जिसका मतलब रास्ता, सड़क या पथ है (और जिसका लक्षण चीनी शब्द "ताओ" के समान होता है), में दार्शनिक मकसद छिपा हुआ है। यह बुड़ो और बुजुत्सु के बीच के अंतर के समान है। इस शब्द के इस्तेमाल से प्राचीन मार्शल आर्ट के उस विचार को निकाल दिया गया है जिसका एकमात्र उद्देश्य जान से मारना था। कानो ने जुडो को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और नैतिक रूप से खुद पर काबू करने और खुद का सुधार करने के एक साधन के रूप में देखा. उन्होंने दैनिक जीवन में अधिकतम क्षमता के भौतिक सिद्धांत का भी विस्तार किया और इसे "परस्पर समृद्धि" में विकसित कर दिया। इस सम्बन्ध में, जुडो को डोजो की बंदिशों के बाहर अच्छी तरह से जीवन का विस्तार करने के एक समग्र दृष्टिकोण के रूप में देखा जाता है।
| 0.5 | 2,597.090591 |
20231101.hi_220982_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A5%8B
|
जूडो
|
जुडो के अभ्यासकर्ता को जुडोका या "जुडो अभ्यासकर्ता" के नाम से जाना जाता है, हालांकि पारंपरिक रूप से केवल चौथे डैन या उससे ऊंचा दर्जा पाने वालों को "जुडोका" कहा जाता था। जब किसी अंग्रेज़ी संज्ञा शब्द के साथ -ka (-का) प्रत्यय जोड़ दिया जाता है तो इसका मतलब एक ऐसे व्यक्ति से होता है जो उस विषय का विशेषज्ञ होता है या जिसके पास उस विषय का विशेष ज्ञान होता है। चौथे डैन से नीचे का दर्जा पाने वाले अन्य अभ्यासकर्ताओं को केंक्यु-सेई या "प्रशिक्षु" कहा जाता था। आधुनिक समय में जुडोका का मतलब किसी भी स्तर की विशेषज्ञता वाले जुडो अभ्यासकर्ता से है।
| 0.5 | 2,597.090591 |
20231101.hi_220982_10
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A5%8B
|
जूडो
|
जुडो शिक्षक को सेंसेई कहा जाता है। sensei (सेंसेई) शब्द की उत्पत्ति sen (सेन) या saki (साकी) (पहले) और sei (सेई) (जीवन) से हुई है जिसका मतलब उस व्यक्ति से है जो आपसे पहले आया है। पश्चिमी डोजो में, डैन दर्जे के किसी भी प्रशिक्षक को सेंसेई कहना आम बात है। परंपरागत रूप से, वह ख़िताब चौथे डैन या उससे ऊंचे दर्जे के प्रशिक्षकों के लिए आरक्षित है।
| 0.5 | 2,597.090591 |
20231101.hi_220982_11
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A5%8B
|
जूडो
|
पारंपरिक रूप से जुडो अभ्यासकर्ता सफ़ेद रंग की वर्दी पहनते हैं जिसे जुडोगी कहा जाता है जिसका सामान्य मतलब जुडो का अभ्यास करने के लिए पहना जाने वाला "जुडो पोशाक" है। कभी-कभी इस शब्द को छोटा करके केवल 'गी ' (वर्दी) के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जुडोगी का निर्माण कानो ने 1907 में किया था और बाद में इसी तरह की वर्दियों को कई अन्य मार्शल आर्ट द्वारा अपना लिया गया। आधुनिक जुडोगी सफ़ेद या नीले रंग की सूती के कपड़े की कर्षण डोरी वाली पैंट और इससे मेल खाती हुई सफ़ेद या नीले रंग की सूती के कपड़े की रजाई की तरह सिली हुई जैकेट से बना होता है जिसे एक बेल्ट (ओबी) से कस दिया जाता है। दर्जे या पद को सूचित करने के लिए बेल्ट या कमरबंद को आम तौर पर रंग दिया जाता है। जैकेट को इस इरादे से बनाया जाता है कि वह कुश्ती के दबाव को झेल सके और इसीलिए इसे कराटे की वर्दी (कराटेगी) की तुलना में काफी मोटा बनाया जाता है। जुडोगी को इस तरह तैयार किया जाता है कि इस पर प्रतिद्वंद्वी को रोककर रखने में आसानी हो जबकि कराटेगी को बरसाती कोट बनाने वाली सामग्री से बनाया जाता है ताकि प्रतिद्वंद्वी इस सामग्री पर अपनी पकड़ न जमा सके.
| 0.5 | 2,597.090591 |
20231101.hi_507694_4
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95
|
बीजक
|
चौंतीस अक्षर से निकले जोई ! पाप पुण्य जानेगा सोई ! अर्थात जो चौंतीस अक्षरों (शब्द-प्रमाण के जालों) से निकल कर स्वतन्त्र विवेक-विचार करेगा, वाही यथार्थ पाप-पुण्य तथा सत्यासत्य समझ सकेगा।
| 0.5 | 2,596.80064 |
20231101.hi_507694_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95
|
बीजक
|
यह चौथा प्रकरण है। यह विप्र + मति +तीसी है। अर्थात तीस चौपाइयों में ब्राहम्णों की मति का वर्णन है। इन तीस चौपाइयों के साथ अन्त में एक साखी है। इसमें सद्गुरु के जीवन काल के तात्कालिक ब्राहम्णों के चरित्रों का सुन्दर चित्रण है। इसमें ब्राहम्णों के सिद्धान्त की मुख्य-मुख्य बातों पर कोई आलोचना नहीं प्रस्तुत की गयी है; प्रत्युत उनके सिद्धांन्त के अनुकूल ही चर्चा करते हुए, उनमें आये हुए स्वार्थ, दम्भ, पाखण्ड, दुष्ट-आचरण, हीन-भावना तथा दोष-पक्षों पर ही उपालम्भ पूर्वक आलोचनायें की गयी है। उन्हें अपने आप में सम्हलकर पूर्ण मानवता को विकसित करने को प्रोत्साहित किया गया है।
| 0.5 | 2,596.80064 |
20231101.hi_507694_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95
|
बीजक
|
इसमें यह बताया गया है कि संसार में जड़ और चेतन दो पदार्थ हैं। उन दोनों के, जड़-चेतन छोड़कर अन्य कोई जाति-वर्ण नहीं हैं। अर्थात पृथ्वी, जल, तेज, वायु से बने हुए शरीर भी सबके एक समान हैं और चेतन हंस भी सबमें एक समान है। जीव के नाते प्राणिमात्र सजाति हैं और दैहिक-दृष्टी से मानवमात्र सजाति हैं। पवित्र आचरण वाला ही श्रेष्ठ है तथा हीन आचरण वाला ही बुरा है, परन्तु उस हीन व्यक्ति के साथ भी हमें सौहार्द्र एवं मैत्री का बर्ताव इसलिये करना है कि जिससे वह हीन-आचरण छोड़कर ऊपर उठे |
| 0.5 | 2,596.80064 |
20231101.hi_507694_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95
|
बीजक
|
यह पाँचवाँ प्रकरण है। इसमें कहरा नामक बारह पद्ध हैं। उत्तरी भारत में एक जाति 'कहार' है। इस जाति के लोग प्राय: मछली मारते, भुत्यापन करते तथा नाचते-गाते हैं। इनके रूपों का इसमें आध्यात्मिक वर्णन है। इस जाति का एक गीत होता है जिसका नाम 'कहरवा' है, इस गीत से मिलती-जुलती हुई ध्वनि इस प्रकरण के पद्दों में पाये जाते हैं।
| 0.5 | 2,596.80064 |
20231101.hi_507694_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95
|
बीजक
|
कहरा का अभिप्राय दुखी जीव भी हैं। 'कहर' कहते हैं 'दुःख' को। दुःख दो प्रकार के हैं, एक खानी-मोती माया की आसक्ति तथा दूसरा वाणी-झीनी माया का राग | इन दोनों से जीव व्यथित हैं। इन दुःखों अर्थात 'कहर' से छूटने के संकेत में 'कहरा' प्रकरण कहा गया है। इसमें बड़े सुन्दर-सुन्दर उपदेश हैं। पहला ही 'कहरा' में स्वरुप-स्थिति का सुन्दर विवेचन है।
| 1 | 2,596.80064 |
20231101.hi_507694_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95
|
बीजक
|
यह छठवाँ प्रकरण है। इसमें भी 'बसन्त' नामक बारह पद्ध हैं। छह ॠतुओं में 'बसन्त' एक श्रेष्ठ ऋतु मानी जाती है। यह चैत-वैशाख पूरे दो महीने तक रहती है। इसमें पेड़-पौधों के पुराने छाल तथा पत्तियाँ गिरते और नये छाल एवं पत्तियाँ आते हैं। अठारह भार वनस्पत्तियाँ इसी समय प्रफुल्लित होती हैं।
| 0.5 | 2,596.80064 |
20231101.hi_507694_10
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95
|
बीजक
|
सद्गुरु ने इस प्रकरण में बतलाया है कि प्राणि-जगत में तो बारहों महीने बसन्त लगे रहते हैं। हर समय पुराने-पुराने प्राणियों का मरना तथा नये-नये का जन्म लेना और बारहों महीने विषय-वासन्ती-परिधान पहन कर माया या काम-भोग में मनुष्यों का निमग्न रहना एवं इस प्रकार माया में विमोहित होकर स्वरुपज्ञान तथा मानवता से पतित होना हर समय लगा रहता है। इस जन्म-मरण तथा विषय बसन्त से मुक्त होकर स्वरूप-ज्ञान में प्रतिष्ठित होने के लिये सद्गुरु ने 'बसन्त' प्रकरण निबद्ध किया है।
| 0.5 | 2,596.80064 |
20231101.hi_507694_11
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95
|
बीजक
|
यह सातवाँ प्रकरण हैं। इसमें चाचर नामक दो पद्ध हैं। चाचर एक गीत होता है। जो होली में गाया जाता है। होली में चाचर या फाग गाकर तथा पिचकारी में रंग भरकर एक-को-एक मारते हैं। माया किस प्रकार अपना अदभुत रूप बनाकर तथा मोह कि पिचकारी में विषय-रंग भर कर लोगों को मार रही हैं और किस प्रकार विद्वान-अविद्वान उस का क्रीड़ा मृग हो रहे हैं- इसका विचित्र चित्रण इस प्रकरण में हुआ है। इस माया के मोह से निवृत्त होने के लिये प्रेरणा दी गयी है और माया से वही उबर सकता है जिसके मन में उसका मोह नहीं समायेगा-यह बात बतायी गयी है।
| 0.5 | 2,596.80064 |
20231101.hi_507694_12
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95
|
बीजक
|
माया से मुक्ति-अर्थ उसकी निस्सारता बतलायी गयी है तथा माया के मद पर चोटें कि गयी हैं। किस प्रकार भोगों के लोभ में पड़कर हाथी, बन्दर तथा सुग्गा बन्दी तथा व्ज़्सफ़्ग़्फ़्बःफ़ॅफ़दीन होते हैं और उसी प्रकार विषयों के मोह में पड़कर मनुष्य भी विवश होता है इसका सोदाहरण सुरम्य वर्णन किया गया है।
| 0.5 | 2,596.80064 |
20231101.hi_183446_0
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8
|
दान
|
दान का शाब्दिक अर्थ है - 'देने की क्रिया'। सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है। हिन्दू धर्म में दान की बहुत महिमा बतायी गयी है। आधुनिक सन्दर्भों में दान का अर्थ किसी जरूरतमन्द को सहायता के रूप में कुछ देना है।
| 0.5 | 2,593.848794 |
20231101.hi_183446_1
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8
|
दान
|
दान किसी वस्तु पर से अपना अधिकार समाप्त करके दूसरे का अधिकार स्थापित करना दान है। साथ ही यह आवश्यक है कि दान में दी हुई वस्तु के बदले में किसी प्रकार का विनिमय नहीं होना चाहिए। इस दान की पूर्ति तभी कही गई है जबकि दान में दी हुईं वस्तु के ऊपर पाने वाले का अधिकार स्थापित हो जाए। मान लिया जाए कि कोई वस्तु दान में दी गई किंतु उस वस्तु पर पानेवाले का अधिकार होने से पूर्व ही यदि वह वस्तु नष्ट हो गई तो वह दान नहीं कहा जा सकता। ऐसी परिस्थिति में यद्यपि दान देनेवाले को प्रत्यवाय नहीं लगता तथापि दाता को दान के फल की प्राप्ति भी नहीं हो सकती।
| 0.5 | 2,593.848794 |
20231101.hi_183446_2
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8
|
दान
|
सात्विक, राजस और तामस, इन भेदों से दान तीन प्रकार का कहा गया है। जो दान पवित्र स्थान में और उत्तम समय में ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिसने दाता पर किसी प्रकार का उपकार न किया हो वह सात्विक दान है। अपने ऊपर किए हुए किसी प्रकार के उपकार के बदले में अथवा किसी फल की आकांक्षा से अथवा विवशतावश जो दान दिया जाता है वह राजस दान कहा जाता है। अपवित्र स्थान एवं अनुचित समय में बिना सत्कार के, अवज्ञतार्पूक एवं अयोग्य व्यक्ति को जो दान दिया जात है वह तामस दान कहा गया है।
| 0.5 | 2,593.848794 |
20231101.hi_183446_3
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8
|
दान
|
कायिक, वाचिक और मानसिक इन भेदों से पुन: दान के तीन भेद गिनाए गए हैं। संकल्पपूर्वक जो सूवर्ण, रजत आदि दान दिया जाता है वह कायिक दान है। अपने निकट किसी भयभीत व्यक्ति के आने पर जौ अभय दान दिया जाता है वह वाचिक दान है। जप और ध्यान प्रभृति का जो अर्पण किया जाता है उसे मानसिक दान कहते हैं।
| 0.5 | 2,593.848794 |
20231101.hi_183446_4
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8
|
दान
|
जिस व्यक्ति को दान दिया जाता है उसे दान का पात्र कहते हैं। तपस्वी, वेद और शास्त्र को जाननेवाला और शास्त्र में बतलाए हुए मार्गं के अनुसार स्वयं आचरण करनेवाला व्यक्ति दान का उत्तम पात्र है। यहाँ गुरु का प्रथम स्थान है। इसके अनंतर विद्या, गुण एवं वय के अनुपात से पात्रता मानी जाती है। इसके अतिरिक्त जामाता, दौहित्र तथा भागिनेय भी दान के उत्तम पात्र हैं। ब्राह्मण को दिया हुआ दान षड्गुणित, क्षत्रिय को त्रिगुणित, वैश्य का द्विगुणित एवं शूद्र को जो दान दिया जाता है वह सामान्य फल को देनेवाला कहा गया है। उपर्युक्त पात्रता का परिगणन विशेष दान के निमित्त किया गया है। इसके सिवाय यदि अन्न और वस्त्र का दान देना हो तो उसके लिए उपर्युक्त पात्रता देखने की आवश्यकता नहीं है। तदर्थ बुभुक्षित और विवस्त्र होना मात्र ही पर्याप्त पात्रता कही गई है।
| 1 | 2,593.848794 |
20231101.hi_183446_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8
|
दान
|
दातव्य द्रव्य के तीन भेद गिनाए गए हैं - शुक्ल, मिश्रित और कृष्ण। शास्त्र, तप, योग, परंपरा, पराक्रम और शिष्य से उपलब्ध द्रव्य शुक्ल कहा गया है। कुसीद, कृषि और वाणिज्य से समागत द्रव्य मिश्रित बतलाया गया है। सेवा, द्यूत और चौर्य से प्राप्त द्रव्य को कृष्ण कहा है। शुक्ल द्रव्य के दान से सुख की प्राप्ति होती है। मिश्रित द्रव्य के दान से सुख एवं दु:ख, दोनों को उपलब्धि होती है। कृष्ण द्रव्य का दान दिया जाए तो केवल दु:ख ही मिलता है। द्रव्य की तीन ही परिस्थितियाँ देखी जाती हैं - दान, भोग और नाश। उत्तम कोटि के व्यक्ति अपने द्रव्य का उपयोग दान में करते हैं। मध्यम पुरुष अपने द्रव्य का व्यय उपभोग में करते हैं। इन दोनों से अतिरिक्त व्यक्ति अपने द्रव्य का उपयोग न दान में ही करते हैं न उपभोग में। उनका द्रव्य नाश को प्राप्त होता है। इस प्रकार के व्यक्तियों की गणना अधम कोटि में होती है।
| 0.5 | 2,593.848794 |
20231101.hi_183446_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8
|
दान
|
दान के महादान, लघुदान और सामानय दान प्रभृति अनेक भेद गिनाए गए हैं। महादान भी 16 तरह के कहे गए हैं। इनमें तुलादान को प्राथमिकता मिली हैं। इस तुलादान का अनुष्ठान तीन दिनों में संपन्न होता है। प्रथम दिन तुलादान करनेवाला व्यक्ति और उस अनुष्ठान को संपादित करानेवाले विद्वान् लोग दूसरे दिन उपवास और नियमपालन करने का संकल्प करते हैं दूसरे दिन प्रात:काल उठकर अपने आवश्यक दैहिक कृत्य से निवृत्त होकर स्नान और दैनिक आह्निक से छुट्टी पाकर अनुष्ठानमंडप के निकट उपस्थित होते हैं। प्रारंभ में संकल्पपूर्वक महागणपतिपूजन, मातृकापूजन, वसोर्धारापूजन, नांदीश्राद्ध और पुण्याहवाचन होता है। प्रथम शुद्ध की हुई भूमि पर मंडप, कुंड और वेदियों का जो निर्माण हो चुका है उसका संस्कार किया जाता है वस्त्र, अलंकार और पताका से मंडप का प्रसाधन किया जाता है। यजमान के द्वारा अनुष्ठान के निमित्त आचार्य, ब्रह्मा और ऋत्विजों का वरण किया जाता है। सभी विद्वानों का मधुपर्क से अर्चन होता है। इस प्रकार के महादान के अवसर पर चारों वेदों के जानकार विद्वानों की अपेक्षा होती है। आचार्य की जानकारी उसी वेद की होनी चाहिए जो वेद यजमान का हो। यजमान के वेद के अनुसार अनुष्ठान का समस्त कार्य होना चाहिए। अन्य वेदों के जानकार विद्वानों में ऋग्वेदी विद्वान् मंडप के पूर्व द्वार पर, यजुर्वेदी विद्वान् दक्षिण द्वार पर, सामवेदी विद्वान् पश्चिम द्वार पर और अथर्ववेदी विद्वान् उत्तर द्वार पर बैठते हैं। वहीं पर बैठे हुए रक्षा एवं शांति के निमित्त वैदिक मंत्रपाठ करते हैं।
| 0.5 | 2,593.848794 |
20231101.hi_183446_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8
|
दान
|
तीसरे दिन वैदिक शांतिपाठपूर्वक कुंड में सविधि अग्निस्थापन होता है। वेदियों पर देवता, दिक्पाल और नवग्रह प्रभृति का स्थापन और पूजन होता है। होतृगण देवता के प्रीत्यर्थ हवन करते हैं। अनंतर दिक्पालों के प्रीत्यर्थ बलिदान करके पूर्वांग कृत्य की समाप्ति होती है।
| 0.5 | 2,593.848794 |
20231101.hi_183446_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8
|
दान
|
प्रधान कृत्य के प्रारंभ में यजमान के द्वारा विद्वानों को शय्या "दान" में दी जाती है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि अन्य विद्वानों को जो दिया जाए उससे आचार्य को द्विगुणित दिया जाना चाहिए। शय्यादान के अनंतर मंगलवाद्य एवं मंगलगीत के साथ प्रधान कृत्य का प्रारंभ होता है। सभी विद्वान् वैदिक मंत्रों का पाठ करते हुए यजमान को मांगलिक स्नान कराते हैं। अनंतर यजमान शुद्ध वस्त्र एवं माला धारण किए हुए अंजलि में पुष्प लेकर तुला की तीन प्रदक्षिणा करता है। अंजलि के पुष्पों को देवता को चढ़ाकर दाहिने हाथ में धर्मराज की और बाएँ हाथ में सूर्य की सुवर्णप्रतिमा लेता है। पूर्व की ओर मुँह किए हुए तुला के उत्तरी भाग में पद्मासन से बैठता है। अपने सम्मुख स्थापित विष्णु की प्रतिमा को देखता रहता है। विद्वान् लोग तुला के दक्षिण भाग पर सुवर्णखंड रखते हैं। ये सुवर्णखंड इतने होने चाहिए जो यजमान के बोझ से कुछ अधिक हों। इस प्रकार कुछ क्षण तुला पर बैठकर यजमान नीचे उतर आता है। तुला पर रखा हुआ स्वर्ण विद्वानों को अर्पित किया जाता है। इस सुवर्ण से अतिरिक्त भूमि, रत्न और दक्षिणा विद्वानों को दी जानी चाहिए। इस प्रकार तुलादान की संक्षिप्त रूपरेखा यहाँ दिखलाई गई हैं। इसके अतिरिक्त सुवर्णाचल, रौप्याचल और धान्याचल प्रभृति महादान एवं सामान्य दान हैं जो दान के विधानों के प्रतिपादक ग्रंथों में देखने चाहिए।
| 0.5 | 2,593.848794 |
20231101.hi_192741_4
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95
|
आजीविक
|
जैनागम भगवती के अनुसार 'गोशालक निमित्त-शास्त्र के भी अभ्यासी थे। हानि-लाभ, सुख-दुख एवं जीवन-मरण विषयक भविष्य बताने में वे कुशल और सिद्धहस्त थे। आजीवक लोग अपनी इस विद्या बल से आजीविका चलाया करते थे। इसीलिए जैन शास्त्रों में इस मत को आजीवक और लिंगजीवी कहा गया है।'
| 0.5 | 2,591.361074 |
20231101.hi_192741_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95
|
आजीविक
|
“जैन आगमों में मक्खली गोशाल को गोसाल मंखलिपुत्त कहा है (उवासगदसाओ) । संस्कृत में उसे ही मस्करी गोशालपुत्र कहा गया है। (दिव्यावदान पृ. १४३)। मस्करी या मक्खलि या मंखलि का दर्शन सुविदित था। महाभारत में मंकि ऋषि की कहानी में नियतिवाद का ही प्रतिपादन है। (शुद्धं हि दैवमेवेदं हठे नैवास्ति पौरुषम्, शान्तिपर्व १७७/११-४)। मंकि ऋषि का मूल दृष्टिकोण निर्वेद या जैसा पतंजलि ने कहा है शान्ति परक था, अर्थात् अपने हाथ-पैर से कुछ न करना। यह पाणिनिवाद का ठीक उल्टा था। मंखलि गोसाल के शुद्ध नाम के विषय में कई अनुश्रुतियां थीं। जैन प्राकृत रूप मंखलि था। भगवती सूत्र के अनुसार गोसाल मंख संज्ञक भिक्षु का पुत्र था (भगवती सूत्र १५/१)। शान्ति-पर्व का मंकि निश्चयरूप से मंखलि का ही दूसरा रूप है।"
| 0.5 | 2,591.361074 |
20231101.hi_192741_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95
|
आजीविक
|
मक्खलि गोसाल के समय में उनके अलावा पूर्ण कस्सप, अजित केशकंबलि, संजय वेलट्ठिपुत्त और पुकुद कात्यायन चार प्रमुख श्रमण आचार्य थे। पांचवे निगंठ नाथपुत्त अर्थात् महावीर और इसी श्रमण परंपरा में छठे दार्शनिक सिद्धार्थ यानी गौतम बुद्ध हुए। इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि महावीर के ‘जिन’ अथवा ‘कैवल्य’ और बुद्ध को बोध की प्राप्ति, या उनके प्रसिद्ध होने से बहुत पहले ही उपर्युक्त पांचों काफी प्रतिष्ठा, लोकप्रियता और जनसमर्थन बटोर चुके थे।
| 0.5 | 2,591.361074 |
20231101.hi_192741_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95
|
आजीविक
|
दर्शन और इतिहास के विद्वानों ने आजीवक दर्शन को ‘नियतिवाद’ कहा है। आजीविकों के अनुसार संसारचक्र नियत है, वह अपने क्रम में ही पूरा होता है और मुक्तिलाभ करता है। आजीवक पुरुषार्थ और पराक्रम को नहीं मानते थे। उनके अनुसार मनुष्य की सभी अवस्थाएं नियति के अधीन है।
| 0.5 | 2,591.361074 |
20231101.hi_192741_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95
|
आजीविक
|
आजीविकों के दर्शन का स्पष्ट उल्लेख हमें ‘दीघ-निकाय’ के ‘समन्न्फल्सुत्र सुत्त’ में मिलता है। जब अशांतचित्त अजातशत्रु अपने संशय को लेकर गौतम बुद्ध से मिलते हैं और छह भौतिकवादी दार्शनिकों के मतों का संक्षिप्त वर्णन करते हैं। अजातशत्रु गौतम बुद्ध से कहता है, ‘भंते अगले दिन मैं मक्खलि गोसाल के यहां गया। वहां कुशलक्षेम पूछने के पश्चात पूछा, ‘महाराज, જુस प्रकार दूसरे शिल्पों का लाभ व्यक्ति अपने इसी जन्म में प्राप्त करता है, क्या श्रामण्य जीवन का लाभ भी मनुष्य इसी जन्म में प्राप्त कर सकता है?’ मक्खलि गोसाल जवाब में कहते हैं, ‘घटनाएं स्वतः घटती हैं। उनका न तो कोई कारण होता है, न ही कोई पूर्व निर्धारित शर्त। उनके क्लेश और शुद्धि का कोई हेतु नहीं है। प्रत्यय भी नहीं है। बिना हेतु और प्रत्यय के सत्व क्लेश और शुद्धि प्राप्त करते हैं। न तो कोई बल है, न ही वीर्य, न ही पराक्रम। सभी भूत जगत, प्राणिमात्र आदि परवश और नियति के अधीन हैं। निर्बल, निर्वीर्य भाग्य और संयोग के फेर से सब छह जातियों में उत्पन्न हो सुख-दुख का भोग करते हैं। संसार में सुख और दुःख बराबर हैं। घटना-बढऩा, उठना-गिरना, उत्कर्ष-अपकर्ष जैसा कुछ नहीं होता। जैसे सूत की गेंद फेंकने पर उछलकर गिरती है और फिर शांत हो जाती है। वैसे ही ज्ञानी और मूर्ख सांसारिक कर्मों से गुजरते हुए अपने दुःख का अंत करते रहते हैं।’
| 1 | 2,591.361074 |
20231101.hi_192741_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95
|
आजीविक
|
मज्झिम निकाय के अनुसार आजीविकों का आचार था - ‘एक साथ भोजन करनेवाले युगल से, सगर्भा और दूधमूंहे बच्चे वाली स्त्री से आहार नहीं ग्रहण करते थे। जहां आहार कम हो और घर के बाहर कूत्ता भूखा खड़ा हो, वहां से भी आहार नहीं लेते थे। हमेशा दो घर, तीन घर या सात घर छोड़कर भिक्षा ग्रहण किया करते थे।
| 0.5 | 2,591.361074 |
20231101.hi_192741_10
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95
|
आजीविक
|
‘पाणिनी ने 3 तरह के दार्शनिकों की चर्चा की है- आस्तिक, नास्तिक (नत्थिक दिट्ठि) और दिष्टिवादी (दैष्टिक, नीयतिवादी-प्रकृतिवादी)। मक्खलि गोसाल दिष्टिवादी थे।’ उनका दर्शन ‘दिट्ठी’ था। इस दिट्ठी के आठ चरम थे- ‘1. चरम पान 2. चरम गीत 3. चरम नृत्य 4. चरम अंजलि (अंजली चम्म-हाथ जोड़कर अभिवादन करना) 5. चरम पुष्कल-संवर्त्त महामेघ 6. चरम संचनक गंधहस्ती 7. चरम महाशिला कंटक महासंग्राम 8. मैं इस महासर्पिणी काल के 24 तीर्थंकरों में चरम तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्ध होऊंगा यानी सब दुःखों का अंत करूंगा।'
| 0.5 | 2,591.361074 |
20231101.hi_192741_11
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95
|
आजीविक
|
भाष्यकार आचार्य महाप्रज्ञ ने आजीवक दर्शन के बारे में कई प्रमाणों के आधार पर लिखा है-"अन्य प्रमाण से भी इंगित होता है कि पाणिनि को मस्करी के आजीवक दर्शन का परिचय था। (अस्ति नास्ति दिष्टं मतिः सूत्र में, ४/४/६०) आस्तिक, नास्तिक, दैष्टिक तीन प्रकार के दार्शनिकों का उल्लेख है। आस्तिक वे थे जिन्हें बौद्ध ग्रंथों में इस्सर करणवादी कहा गया है, जो यह मानते थे कि यह जगतु ईश्वर की रचना है। (अयं लोको इस्सर निमित्तो)। पाली ग्रन्थों के नत्थिक दिठि दार्शनिक पाणिनि के नास्तिक थे। इसमें केशकम्बली के नत्थिक दिठि अनुयायी प्रधान थे। (इतो परलोक गतं नाम नत्थि अयं लोको उच्छिज्जति, जातक ५/२३६) । यही लोकायत दृष्टिकोण था जिसे कठ उपनिषद् में कहा है-अयं लोको न परः इति मानी। पाणिनि के तीसरे दार्शनिक दैष्टिक या मक्खलि के नियतिवादी लोग थे जो पुरुषार्थ या कर्म का खंडन करके दैव की ही स्थापना करते थे।"
| 0.5 | 2,591.361074 |
20231101.hi_192741_12
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95
|
आजीविक
|
जैनागम भगवती सुत्र के अनुसार आजीवक श्रमण ‘माता-पिता की सेवा करते। गूलर, बड़, बेर, अंजीर एवं पिलंखू फल (पिलखन, पाकड़) का सेवन नहीं करते। बैलों को लांछित नहीं करते। उनके नाक-कान का छेदन नहीं करते और ऐसा कोई व्यापार नहीं करते जिससे जीवों की हिंसा हो।’
| 0.5 | 2,591.361074 |
20231101.hi_484420_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
|
लेनिनवाद
|
पार्टी की सदस्यता क्रांतिकारी कार्यक्रम से पूर्णतः सहमत कार्यकर्त्ताओं को ही दी जाएगी और वे ही पार्टी पर समग्र रूप से नियंत्रण रखेंगे;
| 0.5 | 2,582.135298 |
20231101.hi_484420_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
|
लेनिनवाद
|
क्रांतिकारी कार्यक्रम का विकास करते हुए उसका कार्यांवयन करने की सामूहिक जिम्मेदारी कार्यकर्त्ताओं की ही होगी;
| 0.5 | 2,582.135298 |
20231101.hi_484420_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
|
लेनिनवाद
|
अगर हुकूमत के दमन के कारण पार्टी को भूमिगत या अर्ध-भूमिगत स्थितियों में काम नहीं करना पड़ रहा है, तो पार्टी खुले रूप से काम करते हुए लोकतांत्रिक गतिविधियाँ करेगी और ऊपर से नीचे चुनाव के ज़रिये उसके पदाधिकारी तय होंगे;
| 0.5 | 2,582.135298 |
20231101.hi_484420_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
|
लेनिनवाद
|
प्रत्येक पार्टी इकाई लोकतांत्रिक रूप से प्रतिनिधियों को चुनेगी जो पार्टी की सर्वोच्च निर्णयकारी संस्था 'कांग्रेस' में भाग लेंगे जिसका आयोजन हर दो साल के अंतराल पर होगा;
| 0.5 | 2,582.135298 |
20231101.hi_484420_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
|
लेनिनवाद
|
कांग्रेस के आयोजन से पहले सदस्यों के लिए अहम समझे जाने वाले सभी सवालों पर पूरी पार्टी में खुल कर निस्संकोच विचार-विमर्श करना होगा और इसके लिए चर्चा-पत्र तैयार करने होंगे और विशेष बैठकें करनी होंगी;
| 1 | 2,582.135298 |
20231101.hi_484420_10
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
|
लेनिनवाद
|
दो कांग्रेसों के बीच की अवधि में क्रांतिकारी कार्यक्रम और कांग्रेस के निर्णयों के आधार पर पार्टी का संचालन करने के लिए कांग्रेस के प्रति जवाबदेह एक केंद्रीय समिति गठित करनी होगी;
| 0.5 | 2,582.135298 |
20231101.hi_484420_11
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
|
लेनिनवाद
|
पार्टी के रोज़मर्रा संचालन के लिए केंद्रीय समिति विभिन्न स्तरों पर कमेटियाँ गठित करेगी जिनका काम सभी स्थानीय इकाइयों और सदस्यों को संगठन के अनुभवों, गतिविधियों, और निर्णयों से अवगत कराते रहना होगा;
| 0.5 | 2,582.135298 |
20231101.hi_484420_12
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
|
लेनिनवाद
|
क्रांतिकारी कार्यक्रम पर व्यापक एकता होते हुए भी पार्टी के भीतर कार्यनीतिक और व्यावहारिक प्रश्नों पर मतभेद हो सकते हैं जिनके भीतर पार्टी के मंचों पर खुल कर बहस चलानी होगी ताकि पार्टी-कार्यक्रम का विकास हो सके और उसके संबंध में राजनीतिक स्पष्टता हासिल हो सके;
| 0.5 | 2,582.135298 |
20231101.hi_484420_13
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
|
लेनिनवाद
|
सभी सवालों पर अंतिम निर्णय बहुमत तय करने वाले मतदान के द्वारा होगा; एक बार फ़ैसला हो जाने पर अल्पमत को उस पर निष्ठापूर्वक अमल करना होगा;
| 0.5 | 2,582.135298 |
20231101.hi_57469_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
|
सर्वर
|
सर्वर अक्सर रैक-माउंटेड (रैक पर रखे) होते हैं तथा इन्हें सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से शारीरिक पहुंच से दूर रखने के लिए सर्वर कक्षों में रखा जाता है।
| 0.5 | 2,578.348429 |
20231101.hi_57469_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
|
सर्वर
|
कई सर्वरों में हार्डवेयर को शुरू करने तथा ऑपरेटिंग सिस्टम को लोड करने में बहुत समय लगता है। सर्वर अक्सर व्यापक पूर्व-बूट मेमोरी परीक्षण व सत्यापन करते हैं और तब दूरदराज के प्रबंधन सेवाओं को शुरू करते हैं। तब हार्ड ड्राइव कंट्रोलर्स सभी ड्राइवों को एक साथ शुरू न करके एक-एक करके शुरू करते हैं ताकि इससे बिजली की आपूर्ति पर कोई ओवरलोड न पड़े और तब जाकर ये RAID प्रणाली के पूर्व-जांच का कार्य शुरू करते हैं जिससे अतिरिक्तता का सही संचालन हो सके. यह कोई खास बात नहीं है कि एक मशीन को शुरू होने में कई मिनट लगते हैं, लेकिन इसे महीनों या सालों तक फिर से शुरू करने की आवश्यकता नहीं हो सकती है।
| 0.5 | 2,578.348429 |
20231101.hi_57469_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
|
सर्वर
|
लगभग इंटरनेट की पूरी संरचना एक क्लाइंट-सर्वर मॉडल पर आधारित होती है। उच्च-स्तर के रूट नेमसर्वर, DNS सर्वर और रूटर्स इंटरनेट पर ट्रैफिक का निर्देशन करते हैं। इंटरनेट से जुड़े ऐसे लाखों सर्वर हैं जो पूरे विश्व में लगातार चल रहे हैं।
| 0.5 | 2,578.348429 |
20231101.hi_57469_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
|
सर्वर
|
एक साधारण इंटरनेट उपयोगकर्ता के द्वारा की गई हर एक कार्रवाई में एक या एक से अधिक सर्वर के साथ एक या एक से अधिक संपर्क की आवश्यकता पड़ती है।
| 0.5 | 2,578.348429 |
20231101.hi_57469_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
|
सर्वर
|
ऐसी भी कई प्रौद्योगिकियां हैं जो इंटर-सर्वर स्तर पर संचालित होती हैं। अन्य सेवाओं में संबंधित सर्वरों का उपयोग नहीं होता है; उदाहरणस्वरूप, सहकर्मी-दर-सहकर्मी फ़ाइल शेयरिंग, दूरभाषी के कुछ कार्यान्वयन (जैसे - स्काइप), भिन्न-भिन्न उपयोगकर्ताओं को टेलीविज़न कार्यक्रमों की आपूर्ति [जैसे - Kontiki (कोंटिकी), SlingBox (स्लिंगबॉक्स)].
| 1 | 2,578.348429 |
20231101.hi_57469_10
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
|
सर्वर
|
कोई भी कंप्यूटर या डिवाइस जो अनुप्रयोग या सेवा प्रदान करते हैं, उन्हें सर्वर कहा जा सकता है। किसी उद्यम या कार्यालय परिवेश में नेटवर्क सर्वर की पहचान करना आसान है। एक DSL/केबल मॉडम रूटर एक सर्वर के समान होता है क्योंकि यह एक ऐसा कंप्यूटर प्रदान करता है जिसमें अनुप्रयोग सेवाएं होती है, जैसे IP एड्रेस असाइनमेंट (DHCP के माध्यम से), NAT और फ़ायरवॉल जो कंप्यूटर को बाहरी खतरों से रक्षा करने में मदद करता है। iTunes (आईट्यून्स) सॉफ्टवेयर एक म्युज़िक सर्वर को कार्यान्वित करता है जो कम्प्यूटरों में म्युज़िक को स्ट्रीम (प्रवाहित) करता है। कई घरेलू उपयोगकर्ता शेयर की गई फोल्डरों व प्रिंटरों का निर्माण करते हैं। एक दूसरा उदाहरण यह भी है कि Everquest (एवरक्वेस्ट), World of Warcraft (वर्ल्ड ऑफ़ वारक्राफ्ट), Counter-Strike (काउंटर-स्ट्राइक) व Eve Online (ईव ऑनलाइन) जैसी ऑनलाइन खेलों को होस्ट करने के लिए कई सर्वर हैं।
| 0.5 | 2,578.348429 |
20231101.hi_57469_11
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
|
सर्वर
|
चलिए हम बात कर लेते हैं सर्वर कितने प्रकार के होते हैं वैसे तो Server कई प्रकार के होते हैं उनके सभी के कार्य अलग-अलग होते हैं हम आज बात करेंगे कुछ महत्वपूर्ण सर्वर की जो बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं और बहुत ज्यादा उपयोगी भी हैं।
| 0.5 | 2,578.348429 |
20231101.hi_57469_12
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
|
सर्वर
|
यह Server नेटवर्क के द्वारा फाइल ट्रांसफर करता है Server में सभी फाइल कंप्यूटर में Store रहती हैं यह सारी कंप्यूटर फाइल्स को मैनेज करता है और यूजर्स के Request के हिसाब से फाइल्स की कॉपी यूजर्स को दिखाता है।
| 0.5 | 2,578.348429 |
20231101.hi_57469_13
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
|
सर्वर
|
यह एक प्रकार का Server Software है जो सारे Web Pages को Web Browser में दिखाता है और इसे कंप्यूटर प्रोग्राम भी कहा जाता है इसका मुख्य काम यूजर्स को जानकारी प्रदान करना होता है। यह वेब सर्वर वेब ब्राउजर से जुड़ा हुआ रहता है ताकि यूजर्स के हिसाब से उनको Browser में ही जानकारी प्रदान कर सके।
| 0.5 | 2,578.348429 |
20231101.hi_31177_3
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF
|
अदिति
|
ऋग्वेद में अदिति को माता के रूप में स्वीकारा गया है। उस मातृदेवी की स्तुति में उस वेद में बीस मंत्र कहे गए हैं। उन मन्त्रों में अदितिर्द्यौः ये मन्त्र अदिति को माता के रूप में प्रदर्शित करता है -
| 0.5 | 2,576.397702 |
20231101.hi_31177_4
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF
|
अदिति
|
यह मित्रावरुण, अर्यमन्, रुद्रों, आदित्यों इंद्र आदि की माता हैं। इंद्र और आदित्यों को शक्ति अदिति से ही प्राप्त होती है। उसके मातृत्व की ओर संकेत अथर्ववेद (7.6.2) और वाजसनेयिसंहिता (21,5) में भी हुआ है। इस प्रकार उसका स्वाभाविक स्वत्व शिशुओं पर है और ऋग्वैदिक ऋषि अपने देवताओं सहित बार बार उसकी शरण जाता है एवं कठिनाइयों में उससे रक्षा की अपेक्षा करता है।
| 0.5 | 2,576.397702 |
20231101.hi_31177_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF
|
अदिति
|
अदिति अपने शाब्दिक अर्थ में बंधनहीनता और स्वतंत्रता की द्योतक है। 'दिति' का अर्थ बँधकर और 'दा' का बाँधना होता है। इसी से पाप के बंधन से रहित होना भी अदिति के संपर्क से ही संभव माना गया है। ऋग्वेद (1,162,22) में उससे पापों से मुक्त करने की प्रार्थना की गई है। कुछ अर्थों में उसे गो का भी पर्याय माना गया है। ऋग्वेद का वह प्रसिद्ध मंत्र (8,101,15)- मा गां अनागां अदिति वधिष्ट- गाय रूपी अदिति को न मारो। -जिसमें गोहत्या का निषेध माना जाता है - इसी अदिति से संबंध रखता है। इसी मातृदेवी की उपासना के लिए किसी न किसी रूप में बनाई मृण्मूर्तियां प्राचीन काल में सिंधुनद से भूमध्यसागर तक बनी थीं।
| 0.5 | 2,576.397702 |
20231101.hi_31177_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF
|
अदिति
|
स्वर्गलोक की सत्ता के लोभ में दैत्यों और देवों में शत्रुता हो गई। दैत्यों और देवों के परस्पर युद्ध आरम्भ हो गये। एक समय दोनों पक्षों में भयङ्कर युद्ध हुआ। अनेक वर्षों तक वो युद्ध चला। उस युद्ध में देवों का दैत्यों स पराजय हो गया। सभी देव वनो में विचरण करने लगे। उनकी दुर्दशा को देखकर अदिति और कश्यप भी दुःखी हुए। पश्चात् नारद मुनि के द्वारा सूर्योपासना का उपाय बताया गया। अदिति ने अनेक वर्षों पर्यन्त सूर्य की घोर तपस्या की। सूर्य देव अदिति के तप से प्रसन्न हुए। उन्होंने साक्षात् दर्शन दिये और वरदान माँगने को कहा।
| 0.5 | 2,576.397702 |
20231101.hi_31177_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF
|
अदिति
|
अदिति ने सूर्य की स्तुति की। तत्पश्चात् अदिति द्वारा वरदान माँगा गया कि – “आप मेरे पुत्र रूप में जन्म लेवें”। कालान्तर में सूर्य का तेज अदिति के गर्भ में प्रतिष्ठित हुआ । किन्तु एक बार अदिति और कश्यप के मध्य कलह उत्पन्न हो गया। क्रोध में कश्यप अदिति के गर्भस्थ शिशु को “मृत” शब्द से सम्बोधित कर बैठे। उसी समय अदिति के गर्भ से एक प्रकाशपुञ्ज बाहर आया। उस प्रकाशपुञ्ज को देखकर कश्यप भयभीत हो गये। कश्यप ने सूर्य से क्षमा याचना की। तब ही आकाशवाणी हुई कि – “आप दोनों इस पुञ्ज का प्रतिदिन पूजन करें। उचित समय होते ही उस पुञ्ज से एक पुत्ररत्न जन्म लेगा। वो आप दोनों की इच्छा को पूर्ण करके ब्रह्माण्ड में स्थित होगा।
| 1 | 2,576.397702 |
20231101.hi_31177_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF
|
अदिति
|
समयान्तर में उस पुञ्ज से तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ। वही विवस्वान् नाम से विख्यात है। विवस्वान् का तेज असहनीय था। अतः युद्ध में दैत्य विवस्वान के तेज को देखकर ही पलायन कर गये। सर्वे दैत्य पाताललोक में चले गये। अन्त में विवस्वान् सूर्यदेव स्वरूप में ब्रह्माण्ड के मध्यभाग में स्थित हुए और ब्रह्माण्ड का सञ्चालन करते हैं।
| 0.5 | 2,576.397702 |
20231101.hi_31177_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF
|
अदिति
|
दक्ष प्रजापति की ८४ कन्या थीं उनमें दो थीं दिति और अदिति । कश्यप के साथ उन दोनों और उनकी अन्य बहनों का विवाह हुआ था। अदिति ने इन्द्र को जन्म दिया। वह तेजस्वी था। अतः दिति ने भी महर्षि कश्यप से एक तेजस्वी पुत्र की याचना की। तब महर्षि ने पयोव्रत नामक उत्तम व्रत करने का उपाय प्रदान किया। महर्षि की आज्ञानुसार दिति ने उस व्रत को किया। समयान्तर में दिति का शरीर दुर्बल हो गया।
| 0.5 | 2,576.397702 |
20231101.hi_31177_10
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF
|
अदिति
|
एक बार अदिति की आज्ञानुसार इन्द्र दिति की सेवा करने के लिये गया। इन्द्र ने छलपूर्वक दिति के गर्भ के सात भाग कर दिये। जब वें शिशु रुदन कर रहे थे, तब इन्द्र ने कहा – “मा रुदन्तु” । तत् पश्चात् पुनः प्रत्येक गर्भ के सात विभाग किये। इस प्रकार उनचास (४९) पुत्रों का जन्म हुआ। वें पुत्र मरुद्गण कहे जाते हैं, जो कि उनचास हैं। इन्द्र के अभद्र कार्य से क्रुद्ध दिति अदिति को शाप देती है कि – “इन्द्र का राज्य शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा। जैसा अदिति ने मेरे गर्भ को गिराया, वैसे ही उसका भी पुत्र जन्म समय में ही नष्ट हो जाएगा”।
| 0.5 | 2,576.397702 |
20231101.hi_31177_11
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF
|
अदिति
|
शाप के प्रभाव से हि द्वापरयुग में कश्यप ऋषि का वसुदेव के स्वरूप में, अदिति का देवकी के रूप में और दिति का रोहिणी के रूप में जन्म हुआ। देवकी के छ: ( सातवीं संतान बलराम थे ) पुत्रों की कारागार में कंस ने हत्या कर दी। तत् पश्चात् अष्टम पुत्र विष्णु के अवतार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। अन्त में कृष्ण ने अपने मातुल (मामा) कंस का वध किया था ।
| 0.5 | 2,576.397702 |
20231101.hi_170990_3
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A5
|
श्वसनीशोथ
|
श्वसनीशोथ दो प्रकार का होता है। यह तीव्र (acute) हो सकता है अथवा दीर्घकालिक (chronic)। दोनो के कारण, लक्षण और चिकित्सा अलग-अलग हैं।
| 0.5 | 2,571.942531 |
20231101.hi_170990_4
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A5
|
श्वसनीशोथ
|
नासिका से वायु के फेफड़े तक पहुँचाने के साथ ही वायु से जीवाणु तथा अन्य संक्रामी पदार्थों को, जो नासिका की श्लेष्माकला द्वारा नहीं रोके जा सकते, श्वासनली रोकती है। श्लेष्माकला की भीतरी सतह पक्ष्माभिकामय उपकला होती है। ये पक्ष्माभिका एक लहर के रूप में गतिशील होते हैं तथा बाह्य पदार्थों को ऊपर की ओर प्रेरित करते हैं। श्लेष्माग्रंथि, जो चिपचिपा पदार्थ अर्थात् श्लेष्मा उत्पन्न करती हैं, उसमें जीवाणु तथा बह्य पदार्थ चिपक जाते हैं तथा पक्ष्माभिका की सहायता से बाहर आते हैं। खाँसी भी एक सुरक्षात्मक कार्य है। बाह्य पदार्थ जब श्लेष्माकला के संपर्क में आते हैं तो तंत्रिका या स्नायु को उत्तेजना प्राप्त होती है तथा मांसपेशियों के एकाएक संकुचन से वायु का एक तीव्र झोंका फेफड़े से बाहर निकलता है तथा निरर्थक पदार्थ को बाहर कर देता है।
| 0.5 | 2,571.942531 |
20231101.hi_170990_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A5
|
श्वसनीशोथ
|
कुछ रासायनिक, भौतिक तथा जीवित पदार्थ श्वसनी की श्लेष्माकला को इस रूप में प्रभावित करते हैं कि खाँसी, ज्वर, साँस फूलना, आदि उत्पन्न हो जाते हैं तथा यह दशा उग्र श्वसनीशोथ कहलाती है। कुछ विषैले धुएँ, जैसे युद्ध गैस (मस्टर्ड गैस, क्लोरीन), तीव्र अम्ल के वाष्प, अमोनिया, गैस आदि कुछ जीवाणु तथा कुछ रोग, जैसे इनफ्ल्यूएंजा, कुकरखाँसी, खसरा वगैरह भी तीव्र श्वसनीशोथ उत्पन्न करते हैं।
| 0.5 | 2,571.942531 |
20231101.hi_170990_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A5
|
श्वसनीशोथ
|
इन पदार्थों के क्षोभ द्वारा श्लेष्माकला की रुधिरनलिकाएँ फैल जाती हैं तथा उनसे रुधिर और द्रव पदार्थ बाहर निकल आते हैं। श्लेष्मस्राव से बाहर आते हैं। अत्यधिक क्षोभ होने पर कोशिकाओं की सतह नष्ट हो सकती है। अधिक श्लेष्मा एकत्र हो जाने पर श्वास की गति बढ़ जाती है।
| 0.5 | 2,571.942531 |
20231101.hi_170990_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A5
|
श्वसनीशोथ
|
बुखार, ठंड लगना, शरीर में दर्द, नाक से स्राव, वक्ष में कसावट महसूस होना, खाँसी पहले सूखी, फिर बलगम के साथ तथा साँस फूलना आदि। न्युमोनिया होने का भय रहता है।
| 1 | 2,571.942531 |
20231101.hi_170990_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A5
|
श्वसनीशोथ
|
विश्राम करना, द्रव भोजन, तथा कारण दूर करना। खाँसी की दवाइयाँ - यदि सूखी खाँसी है तो कोडीन जैसी दवाइयाँ, यदि कफ निकलता है तो अमोनियम कार्बोनेट, टिंचर इपिकाक इत्यादि कफोत्सारक ओषधियाँ देनी चाहिए। भाप में साँस लेना भी कफ निकलने में सहायता करता है। पेनिसिलिन, सल्फोनामाइड, तथा अन्य जीवाणुनाशक ओषधियों का प्रयोग भी आवश्यक है।
| 0.5 | 2,571.942531 |
20231101.hi_170990_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A5
|
श्वसनीशोथ
|
जब श्वसनी की श्लेष्माकला का प्रदाह अधिक समय तक बना रहता है तथा श्वसनी में अन्य दोष उत्पन्न कर देता है तो वह दीर्घकालिक श्वसनीशोथ कहलाता है।
| 0.5 | 2,571.942531 |
20231101.hi_170990_10
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A5
|
श्वसनीशोथ
|
इस रोग में श्वसनी की श्लेष्माकला को अत्यधिक क्षति पहुंचती है। कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, पक्ष्माभिका समाप्त हो जाते हैं। श्वसनी टेढ़ी मेढ़ी हो जाती है तथा स्राव अधिक होता है। अन्य रोग, जैसे वातस्फीति, सूत्रण रोग, दमा आदि, हो सकते हैं।
| 0.5 | 2,571.942531 |
20231101.hi_170990_11
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A5
|
श्वसनीशोथ
|
दीर्घकालिक खाँसी तथा कफ। खाँसी ताप के आकस्मिक परिवर्तन तथा जाड़े में बढ़ जाती है। कभी कभी तीव्र श्वसनलीशोथ का रूप ले लेती है।
| 0.5 | 2,571.942531 |
20231101.hi_498736_5
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80
|
माहेश्वरी
|
गुरुओं का मानना था कि इस अलौकिक पवित्र माहेश्वरी निशान के दर्शन मात्र से ही हमारे भीतर दिव्य-सृजनात्मक ऊर्जा (एनर्जी) का संचार होता है l इसे देखते ही अनेक प्रेरक भाव मन में प्रस्फुटित होते है l माहेश्वरी निशान की उपस्थिति आपके घर, परिवार और जीवन में जो भी बुरी (दुष्ट) शक्तियां है उनका विनाश करती है ; इस दिव्य निशान के दर्शन मात्र से ही जीवन में सौभाग्य का उदय हो जाता है। आजकल लगभग सभी माहेश्वरी पत्र-पत्रिकाओं, वैवाहिक कार्ड, दीपावली कार्ड, आमंत्रण-पत्र एवं अन्य कार्यक्रमों की पत्रिकाओं में इस निशान (प्रतीक चिह्न) का प्रयोग किया जाता है। यह निशान (प्रतीक चिह्न) माहेश्वरी परम्परा में श्रद्धा एवं विश्वास का द्योतक है। यह निशान माहेश्वरी समाज के आन-बाण-शान का प्रतीक है l
| 0.5 | 2,562.696606 |
20231101.hi_498736_6
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80
|
माहेश्वरी
|
त्रिशूल धर्मरक्षा के लिए समर्पण का प्रतीक है l ”त्रिशूल” शस्त्र भी है और शास्त्र भी है. आततायियों के लिए यह एक शस्त्र है, तो सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र का यह एक अनिर्वचनीय शास्त्र भी हैl त्रिशूल पाप को नष्ट करने वाला एवं दुष्ट प्रवृत्ति का दमन करने वाला हैl जैसे ॐ स्वयं शिव स्वरुप है वैसे ही 'त्रिशूल' स्वयं शक्ति (आदिशक्ति माता पार्वती) स्वरुप हैl त्रिशूल का दाहिना पाता सत्य का, बाया पाता न्याय का और मध्य का पाता प्रेम का प्रतीक भी माना जाता हैl वृत्त के बीच का ॐ (प्रणव) स्वयं भगवान महेश जी का प्रतीक है, ॐ पवित्रता का प्रतीक है, ॐ अखिल ब्रह्माण्ड का प्रतीक हैl सभी मंगल मंत्रों का मूलाधार ॐ हैl परमात्मा के असंख्य रूप है उन सभी रूपों का समावेश ओंकार में हो जाता हैl ॐ सगुण निर्गुण का समन्वय और एकाक्षर ब्रम्ह भी हैl भगवदगीता में कहा है “ ओमित्येकाक्षरं ब्रम्ह”l माहेश्वरी समाज आस्तिक और प्रभुविश्वासी रहा है, इसी ईश्वर श्रध्दा का प्रतीक है- ॐ। माहेश्वरियों का यह गौरवशाली निशान बड़ा ही अर्थपूर्ण, पथ-प्रदर्शक और प्रेरणादायी है l
| 0.5 | 2,562.696606 |
20231101.hi_498736_7
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80
|
माहेश्वरी
|
माहेश्वरी का बोधवाक्य - माहेश्वरीयों का बोधवाक्य' सर्वे भवन्तु सुखिन: माहेश्वरीयों की विचारधारा को, संस्कृति को दर्शाता है। सर्वे भवन्तु सुखिन: अर्थात केवल माहेश्वरियों का ही नही बल्कि सर्वे (सभीके) सुख की कामना करनेवाला तथा सत्य, प्रेम, न्याय का उद्घोषक यह माहेश्वरी निशान सचमुच बडा अर्थपूर्ण है। माहेश्वरी निशान का दर्शन अत्यंत मंगलमय है, इसे देखते ही आतंरिक शक्ति, आतंरिक ऊर्जा जागृत हो जाती है, इसे देखते ही अनेक प्रेरक भाव मन में प्रस्फुटित होते है।
| 0.5 | 2,562.696606 |
20231101.hi_498736_8
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80
|
माहेश्वरी
|
माहेश्वरी निशान (प्रतीक चिह्न) किसी भी विचारधारा, दर्शन या दल के ध्वज के समान है, जिसको देखने मात्र से पता लग जाता है कि यह किससे संबंधित है, परंतु इसके लिए किसी भी निशान (प्रतीक चिह्न) का विशिष्ट (विशेष /यूनिक) होना एवं सभी स्थानों पर समानुपाती होना बहुत ही आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि प्रतीक का प्रारूप बनाते समय जो मूल भावनाएँ इसमें समाहित की गई थीं, उन सभी मूल भावनाओं को यह चिह्न अच्छी तरह से प्रकट करता है।
| 0.5 | 2,562.696606 |
20231101.hi_498736_9
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80
|
माहेश्वरी
|
इस निशान (प्रतीक चिह्न) को एक रूप छापने के लिए अब इसके फॉरमेट का विकास कर लिया गया है। इस फॉरमेट के उपयोग से इसे सही स्वरूप में छापा जा सकेगा। सुनिश्चित कर लें कि इसके सही प्रारूप/फॉरमेट का उपयोग हो रहा है।
| 1 | 2,562.696606 |
20231101.hi_498736_10
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80
|
माहेश्वरी
|
सुजानसेन का विवाह चंद्रावती के साथ हुआ। सुजानसेन को उतर दिशा में कभी भी नही जाने का कहा गया था, किन्तु हठ पूर्वक वो 72 उमरावों के साथ उत्तर दिशा में गए। वहां उन्हें श्रृंगी ऋषि और दाधीच ऋषि यज्ञ करते हुए मिले ।
| 0.5 | 2,562.696606 |
20231101.hi_498736_11
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80
|
माहेश्वरी
|
सुजानसेन ने ऋषि मुनियों के यज्ञ को विध्वंस कर दिया । जिसके कारण ऋषियों ने सुजानसेन व 72 उमरावों को श्राप देकर उन्हें पत्थर के बना दिये ।
| 0.5 | 2,562.696606 |
20231101.hi_498736_12
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80
|
माहेश्वरी
|
जब सुजानसेन की पत्नी को पता चला तो उसने व 72 उमरावों की पत्नियों ने मिलकर शिवजी का ध्यान करके तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती प्रकट हुए और माता पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने सभी उमरावों को व सुजानसेन को जीवन दान दिया । तब सबने महेश वंदना गाई । भगवान महेश के द्वारा जीवन दान मिलने के कारण माहेश्वरी कहलाये । ये एक सुंदर कहानी / गाथा के रूप में भी उपलब्ध है ।
| 0.5 | 2,562.696606 |
20231101.hi_498736_13
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80
|
माहेश्वरी
|
दम्माणी, करनाणी, सुरजन, धूरया, गांधी, राईवाल, बिन्नाणी, मूथा, मोदी, मोह्त्ता, फाफट आदि। इसके अलावा भी बहुत सी खान्पे है, जो यहाँ नहीं आ सकी है, जो 'राठी' खांप के गोत्र के अंतर्गत आती है l कुछेक अन्य भी हो सकती है l
| 0.5 | 2,562.696606 |
20231101.hi_47144_4
|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%B5
|
प्रकिण्व
|
प्रत्येक प्रकिण्व के अणु में क्रियाधार बन्धन स्थल मिलता है जो क्रियाधार सम्बन्ध कर सक्रिय प्रकिण्व क्रियाधार सम्मिश्र का निर्माण करता है। यह सम्मिश्र अल्पावधि का होता है, जो उत्पाद एवं अपरिवर्तित प्रकिण्व में विघटित हो जाता है इसके पूर्व मध्यावस्था के रूप में प्रकिण्व उत्पाद जटिल का निर्माण होता है। प्रकिण्व क्रियाधार जटिल का निर्माण उत्प्रेरण के लिए आवश्यक होता है।
| 0.5 | 2,562.347936 |
Subsets and Splits
No community queries yet
The top public SQL queries from the community will appear here once available.