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20231101.hi_47144_5
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प्रकिण्व
बन्धने वाला क्रियाधार प्रकिण्व के आकार में इस प्रकार से बदलाव लाता है कि क्रियाधार प्रकिण्व से मजबूती से बन्ध जाता है।
0.5
2,562.347936
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प्रकिण्व
प्रकिण्व का सक्रिय स्थल अब क्रियाधार के काफी समीप होता है जिसके फलस्वरूप क्रियाधार के रासायनिक आबन्ध टूट जाते हैं और नए प्रकिण्व उत्पाद जटिल का निर्माण होता है।
0.5
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प्रकिण्व
प्रकिण्व नवनिर्मित उत्पाद को अत करता है व प्रकिण्व न होकर क्रियाधार के दूसरे अणु से बँधने हेतु प्रस्तुत हो जाता है। इस प्रकार पुनः उत्प्रेरक चक्र प्रारंभ जाता है।
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प्रकिण्व
जी कारक प्रोटीन की तृतीयक संरचना को परिवर्तित करते हैं, वे प्रकिण्व को सक्रियता को भी प्रभावित करते हैं जैसे- तापक्रम, pH। क्रियाधार की सान्द्रता में परिवर्तन या किसी विशिष्ट रसायन का प्रकिण्व से बन्धन उसकी प्रक्रिया को नियन्त्रित करते हैं।
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प्रकिण्व
प्रकिण्व सामान्यतः तापमान व pH के लघु परिसर में कार्य करते हैं। प्रत्येक प्रकिण्व की अधिकतम क्रियाशीलता एक विशेष तापमान व pH पर ही होती हैं, जिसे क्रमश: इष्टतम तापक्रम व pH कहते हैं। इस इष्टतम मान के ऊपर या नीचे होने से क्रियाशीलता घट जाती है। निम्न तापमान प्रकिण्व को अस्थायी रूप से निष्क्रियावस्था में सुरक्षित रखता है, जबकि उच्च तापमान प्रकिण्व की क्रियाशीलता को समाप्त कर देता है क्योंकि उच्च तापमान प्रकिण्व प्रोटीन को विकृत कर देता है।
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2,562.347936
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प्रकिण्व
क्रियाधार की सान्द्रता के वृद्धि के साथ पहले तो एंजाइम क्रिया की गति बढ़ती हैं। अभिक्रिया अन्ततोगत्वा सर्वोच्च गति प्राप्त करने के बाद क्रियाधार की सान्द्रता वृद्धि पर भी अग्रसर नहीं होती है। ऐसा इसलिए होता है कि प्रकिण्व के अण्वों की संख्या क्रियाधार के अण्वों से कहीं कम होती हैं और इन अण्वों से प्रकिण्व के सन्तृप्त होने के बाद प्रकिण्व का कोई भी अणु क्रियाधार के अतिरिक्त अण्वों से बन्धन करने हेतु मुक्त नहीं बचता है।
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प्रकिण्व
किसी भी प्रकिण्व की क्रियाशीलता विशिष्ट रसायनों को उपस्थिति में संवेदनशील होती है जो प्रकिण्व से बन्धते हैं। जब रसायन का एंजाइम से बन्धने के उपरान्त इसकी क्रियाशीलता बंद हो जाती है तो इस प्रक्रिया को सन्दमन व उस रसायन को प्रकिण्व सन्दमक कहते हैं।
0.5
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प्रकिण्व
जब सन्दमक अपनी आण्विक संरचना में क्रियाधार से काफी समानता रखता है और प्रकिण्व की क्रियाशीलता को सन्दमित करता हो तो इसे प्रतिस्पर्धात्मक सन्दमन कहते हैं। सन्दमक की क्रियाधार से निकटतम संरचनात्मक समानता के फलस्वरूप यह क्रियाधार से प्रकिण्व के क्रियाधार बन्धक स्थल से बन्धते हुए प्रतिस्पर्धा करता है। फलस्वरूप क्रियाधार, क्रियाधार बन्धक स्थल से बन्ध नहीं पाता, जिसके फलस्वरूप प्रकिण्व क्रिया मन्द हो जाती हैं। उदाहरणार्थ, सक्सिनिक डिहाइड्रोजिनेस का मैलोनेट द्वारा सन्दमन जो संरचना में क्रियाधार सक्सिनेट से निकट की समानता रखता है। ऐसे प्रतिस्पर्धी सन्दमको का अक्सर उपयोग रोगजनक जीवाणु के नियन्त्रण हेतु किया जाता है।
0.5
2,562.347936
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काबुल
इसे काबुल म्‍यूजियम भी कहा जाता है। यह ऐतिहासिक दो मंजिला इमारत काबुल में स्थित है। इस म्‍यूजियम को मध्‍य एशिया का सबसे समृद्ध संग्रहालय माना जाता है। यहां कई सहस्राब्दिक पूर्व के लगभग एक लाख दुलर्भ वस्‍तुओं का संग्रह है। इस म्‍यूजियम की स्‍थापना 1920 ई. में हुई थी। 1973 ई. में एक डच वास्‍तुविद को इस संग्रहालय की नई इमारत का डिजाइन तैयार करने के लिए बुलाया गया था। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह योजना पूर्ण न हो सकी। 1996 ई. में तालिबान शासन के दौरान इस म्‍यूजियम को लूटा गया। इस म्‍यूजियम को पुन: अपने वास्‍तविक रूप में लाने के लिए अंर्तराष्‍ट्रीय समुदाय ने 2003 ई. में 350000 अमेरिकी डालर का सहयोग दिया। विदेशी सहायता से बने नए इस संग्रहालय का उदघाटन 29 सितंबर 2004 ई. को किया गया। इस संग्रहालय में कुषाण काल से सम्‍बन्‍धित विभिन्‍न बौद्ध स्‍मृति चिन्‍हों का अच्‍छा संग्रह है। इसके अलावा यहां इस्‍लाम धर्म के प्रारंभिक काल से संबंद्ध दस्‍तावेजों का संग्रह भी है।
0.5
2,560.442151
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काबुल
यह यूरोपियन शैली में बना हुआ महल है जो काबुल से 10 मील की दूरी पर स्थित है। दारुल अमन पैलेस का निर्माण 1920 ई. में सुधारवादी राजा अमानुल्‍लाह खान ने करवाया था। यह भवन एक पहाड़ी पर बना हुआ है। यहां से पूरी घाटी का सुंदर नजारा दिखा जा सकता है। इस इमारत का निर्माण अफगानिस्‍तान की संसद के लिए करवाया गया था। लेकिन अमानुल्‍लाह के शासन से हटने के बाद यह इमारत कई वर्षों तक बिना उपयोग के पड़ी रहा। 1969 ई. में इस इमारत में आग लग गई। 1970 तथा 80 के दशक में इस इमारत को रक्षा मंत्रालय द्वारा उपयोग किया गया। वर्तमान में इस इमारत का उपयोग नाटो सेनाओं द्वारा किया जा रहा है। अफगानिस्‍तान की वर्तमान सरकार इस इमारत को नया रूप देकर संसद भवन के रूप में तब्‍दील करने वाली है।
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काबुल
यह अफगानिस्‍तान की दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद है। इस मस्जिद में एक साथ 20 लाख लोग नमाज अदा करते हैं। इस मस्जिद का निर्माण 1893 ई. के आस-पास यहां के तात्‍कालीक शासक अब्‍दुर रहमान खान ने करवाया था। यह काबुल के शहर बराक क्षेत्र में स्थित है। इस मस्जिद का अफगानिस्‍तान की राजनीति पर व्‍यापक प्रभाव है।
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काबुल
यह अफगानिस्‍तान का प्राचीन किला है। इस किले का निर्माण 5वीं शताब्‍दी ई. पू. के आस-पास हुआ था। बाला हिसार वर्तमान काबुल शहर के दक्षिण में खुह-ए-शेरदरवाज पहाड़ी के पास स्थित है। यह किला मूल रूप से दो भागों में विभक्‍त था। किले के नि‍चले भाग में बैरक तथा तीन राजकीय भवन थे। जबकि ऊपरी भाग में शस्‍त्रागार तथा कारागार था। इस कारागार को काला गढा के नाम से जाना जाता‍ था।
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काबुल
यह अफगानिस्‍तान का पहला आधुनिक मॉल है। इसका उदघाटन 2005 ई. को किया गया। यह नौ मंजिला मॉल काबुल के निचले हिस्‍से में स्थित है।
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काबुल
यह काबुल आने वाले पर्यटकों का सबसे पसंदीदा स्‍थान है। इसी बाग में प्रथम मुगल बादशाह बाबर की कब्र है। यह बाग कई बगीचों को मिलाकर बनाया गया है। इस बाग की बाहरी दीवार का पुनर्निर्माण 2005 ई. में पुरानी शैली में ही किया गया था। इस दीवार को 1992-96 ई. में युद्ध के दौरान क्षति पहुंची थी। यह बाग काबुल के चेचलस्‍टन क्षेत्र में स्थित है। बाबर की मृत्‍यु के बाद उन्‍हें आगरा में दफनाया गया था। लेकिन बाबर की यह इच्‍छा थी कि उन्‍हें काबुल में दफनाया जा। इस कारण उनकी इच्‍छानुसार उन्‍हें काबुल लाकर इस बाग में दफनाया गया। इसी बाग की प्रेरणा से भारत में मुगल बादशाहों ने कई बागों का निर्माण करवाया।
0.5
2,560.442151
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काबुल
यह चिड़ियाघर काबुल नदी के तट पर स्थित है। इस चिडियाघर को 1967 ई. में आम लोगों के लिए खोला गया था। इस चिडियाघर में 116 जानवर हैं। इन जानवरों की देखभाल के लिए यहां 60 कर्मचारी कार्यरत हैं।
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काबुल
यह अपने आप में एक अनोखा म्‍यूजियम है। इस म्‍यूजियम में प्रसिद्ध कलाकृतियों या हस्‍तशिल्‍पों को नहीं बल्कि विभिन्‍न प्रकार के बमों को देखा जा सकता है। इस म्‍यूजियम में पर्यटक उन सभी प्रकार के हथियारों को देख सकते हैं, जिनका उपयोग यहां होने वाले युद्धों में किया गया है। इस म्‍यूजियम को घूमने के लिए पहले से अनुमति लेनी होती है।
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काबुल
यह गार्डन काबुल में छुट्टियां बिताने के लिए सबसे खूबसूरत स्‍थल है। यहां लोग अपने मित्रों तथा संबंधियों के साथ छुट्टियां बिताने आते हैं। इस गार्डन का निर्माण 1927-28 ई. में बादशाह अमानुल्‍लाह ने करवाया था।
0.5
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तालाब
जल का स्तर ऊपर रहने से पेड़ों को पर्याप्त पानी की आपूर्ति होने के साथ साथ उनसे वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी परिपूर्ण रूप से होती थी,जो कि बर्षा के बादलों को आकर्षण में योगदान देता था।
0.5
2,558.154511
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तालाब
खेतों में पौधों को ऊपरी जलस्तर के कारण पर्याप्त मात्रा में घुलनशील पदार्थ खनिज आदि का समायोजन होता था,जिस कारण प्रोटीन की मात्रा भी अनाज में उपलब्ध होती थी।
0.5
2,558.154511
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तालाब
इसी प्रोटीन की उपलब्धता गाय भैंस के उस दूध में भी होती थी जो अनाज और घास के सोर्स से मिलती थी,और यह सोर्स भी ऊपरी जलस्तर के कारण प्रोटीन और खनिज का संचयन करती थी।
0.5
2,558.154511
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तालाब
और सबको विदित है कि प्रोटीन के कारण इंसान की सोचने और विचारने की क्षमता प्रभावित होती है,यही कारण है कि पुराने समय में लोग एक दूसरे के बारे में सोचते थे,और खयाल भी रखते थे।
0.5
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तालाब
आज स्थित यह है कि लोग अपने सिवा किसी के बारे में नहीं सोचते न ही किसी की बात सुनने की क्षमता रखते हैं।
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2,558.154511
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तालाब
ताली के जलस्तर के कारण गांव में छः नंबर के नल और कुंए अपने अस्तित्व में थे,कुएं और ताली का पूजन भी विशेष आयोजन में किया जाता था,जिससे कुलदेवता व कुलदेवी का भी पूजन का फल भी जाने अंजाने में प्राप्त होता था।
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तालाब
आज की स्थित में कुंए एवं छः नंबरी नल का अस्तित्व समाप्त हो गया है,जो भी इंडिया मार्का या सबमर्सिबल लोग पैसे के बल पर चला रहे हैं वह भी आने वाले समय में समाप्त हो जायेगा,आने वाले समय में पीने का पानी भी बाहर से पैसे देकर लोग लायेंगें,जो कि कुछ घरों में शुरू भी हो चुका है,और इस पानी में शुद्ध करने के नाम पर एक केमिकल की अल्प मात्रा मिलाई जाती है,जो कि मस्तिष्क पर असर करता है,इस कारण से भी इंसान चिड़चिड़ा एवं दूसरों की बातों पर ध्यान न दे पाने अर्थात एकाग्रता की कमी हो जाती है।
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तालाब
अभी गांव में प्राकृतिक जल स्रोत संवाहक के नाम पर ताली बची है,और यह भी गांव वासी के देखरेख के बिना जीवित रहने में असमर्थ है।
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तालाब
आने वाली पीढ़ियों में इसका असर पूर्ण रूप से दिखेगा,जो कि प्राकृतिक जल की कमी,प्रोटीन की कमी,कुलदेवी देवता से दूरी के कारण मानसिक रूप से एकदूसरे के प्रति नहीं जुड़ पायेंगें,और यहां तक कि गांव तो क्या अपने माता पिता से भी दूरी बना लेंगें।
0.5
2,558.154511
20231101.hi_45477_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A0%E0%A5%82%E0%A4%B0
बिठूर
बिठूर कानपुर के पश्चिमोत्तर दिशा में २७ किमी दूर स्थित एक नगर व नगरपंचायत है। मेरठ के अलावा बिठूर में भी सन १८५७ में भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम का श्रीगणेश हुआ था। यह शहर कन्नौज रोड पर स्थित है। बिठूर गंगा-किनारे बसा हुआ एक ऐसा सोया हुआ सा, छोटा सा क़स्बा है जो किसी ज़माने में सत्ता का केंद्र हुआ करता था। यहाँ कई पुरानी ऐतिहासिक इमारतें, बारादरियाँ और मंदिर जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। ये नानाराव और तात्या टोपे जैसे लोगों की धरती रही है। टोपे परिवार की एक शाखा आज भी बैरकपुर में है और यहीं झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का बचपन बीता। उसी दौर में कानपुर से अपनी जान बचाकर भाग रहे अंग्रेज़ों को सतीचौरा घाट पर मौत के घाट उतार दिया गया। बाद में उसके बदले में अंग्रेज़ों ने गाँव के गाँव तबाह कर दिए और एक एक पेड़ से लटका कर बीस-बीस लोगों को फाँसी दे दी गई। जीत के बाद अँग्रेज़ों ने बिठूर में नानाराव पेशवा के महल को तो मटियामेट कर ही दिया था, जब ताँत्या टोपे के रिश्तेदारों को 1860 में ग्वालियर जेल से रिहा किया गया तो उन्होंने बिठूर लौटकर पाया कि उनका घर भी जला दिया गया है।
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2,547.067776
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A0%E0%A5%82%E0%A4%B0
बिठूर
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के पूर्व यह तपस्या की थी। उसी को स्मरण दिलाता यहाँ का ब्रह्मावर्त घाट है। ये भी वर्णन मिलता है कि यहीं पर ध्रुव ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि बिठूर को प्राचीन काल में ब्रह्मावर्त नाम से जाना जाता था। शहरी शोर शराबे से उकता चुके लोगों को कुछ समय बिठूर में गुजारना काफी रास आता है। बिठूर में ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के अनेक पर्यटन स्थल देखे जा सकते हैं। गंगा किनार बसे इस नगर का उल्लेख प्राचीन भारत के इतिहास में मिलता है। अनेक कथाएं और किवदंतियां यहां से जुड़ी हुईं हैं। इसी स्थान पर भगवान राम ने सीता का त्याग किया था और यहीं संत वाल्मीकि ने तपस्या करने के बाद पौराणिक ग्रंथ रामायण की रचना की थी। कहा जाता है कि बिठूर में ही बालक ध्रुव ने सबसे पहले ध्यान लगाया था। 1857 के संग्राम के केन्द्र के रूप में भी बिठूर को जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा नदी के किनार लगने वाला कार्तिक अथवा कतिकी मेला पूर भारतवर्ष के लोगों का ध्यान खींचता है।
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2,547.067776
20231101.hi_45477_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A0%E0%A5%82%E0%A4%B0
बिठूर
बिठूर उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर जिले में एक नगर पंचायत शहर है। बिठूर शहर को 10 वार्डों में विभाजित किया गया है जिसके लिए हर 5 साल में चुनाव होते हैं। 2001 की भारत की जनगणना के अनुसार बिठूर की जनसंख्या 9647 थी। इनमें पुरुषों की आबादी 55% और महिलाओं की आबादी 45% थी। बिठूर की औसत साक्षरता दर 62% है, जो राष्ट्रीय औसत 59.5% से अधिक है। इनमें 70% पुरुष साक्षरता और 53% महिला साक्षरता हैं। 13% जनसंख्या 6 वर्ष से कम आयु के बालकों की है। जनगणना इंडिया 2011 द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार बिठूर नगर पंचायत की जनसंख्या 11,300 है, जिसमें 6,088 पुरुष हैं, जबकि 5,212 महिलाएं हैं। 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों का टीकाकरण की संख्या 1337 है जो बिठूर (एनपी) की कुल जनसंख्या का 11.83% है। बिठूर नगर पंचायत में, महिला लिंग अनुपात 912 के राज्य औसत के मुकाबले 856 है। इसके अलावा, बिठूर में बाल लिंग अनुपात 902 के उत्तर प्रदेश राज्य औसत की तुलना में लगभग 860 है। बिठूर शहर की साक्षरता दर 67.68 के राज्य औसत से 80.61% अधिक है। बिठूर में पुरुष साक्षरता लगभग 86.01% है जबकि महिला साक्षरता दर 74.29% है। बिठूर नगर पंचायत में 1,999 से अधिक घरों में कुल प्रशासन है, जो पानी और सीवरेज जैसी बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति करता है। यह नगर पंचायत की सीमा के भीतर सड़क बनाने और इसके अधिकार क्षेत्र में आने वाली संपत्तियों पर कर लगाने के लिए भी अधिकृत है।
0.5
2,547.067776
20231101.hi_45477_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A0%E0%A5%82%E0%A4%B0
बिठूर
बिठूर की अधिकांश आबादी हिंदुओं की है लगभग कुल आबादी का 89.54% हिस्सा, इसके बाद मुस्लिम हैं, जिनमें 10.19% शामिल हैं। ईसाई और सिख अल्पसंख्यक हैं और केवल शहर के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। बिठूर के अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश से हैं, हालांकि शहर में एक महत्वपूर्ण मराठी आबादी भी है। बिठूर में बसे प्रवासी मराठी परिवारों के वंशज न केवल बिठूर में तीन पीढ़ियों से अधिक समय से रह रहे हैं बल्कि कई ज़मीन और अन्य अचल संपत्तियों के मालिक हैं। नाना साहब के साथ आए पहले पाँच परिवार थे:- मोघे, पिंग, सेहजवलकर, हरदेकर और सप्रे। उनमें से अधिकांश बिठूर या आसपास के स्थानों में बस गए।
0.5
2,547.067776
20231101.hi_45477_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A0%E0%A5%82%E0%A4%B0
बिठूर
हिन्दुओं के लिए इस पवित्र आश्रम का बहुत महत्व है। यही वह स्थान है जहां रामायण की रचना की गई थी। संत वाल्मीकि इसी आश्रम में रहते थे। राम ने जब सीता का त्याग किया तो वह भी यहीं रहने लगीं थीं। इसी आश्रम में सीता ने लव-कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया। यह आश्रम थोड़ी ऊंचाई पर बना है, जहां पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों को स्वर्ग जाने की सीढ़ी कहा जाता है। आश्रम से बिठूर का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है।
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बिठूर
इसे बिठूर का सबसे पवित्रतम घाट माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी ने इस स्थान पर यज्ञ किया था एवं प्रतीक स्वरुप इस स्थान पर एक खूँटी गाड़ दी जिसे "ब्रह्मा जी की खूँटी" कहते हैं। भगवान ब्रह्मा के अनुयायी गंगा नदी में स्‍नान करने बाद खडाऊ पहनकर यहां उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। यह भी कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने यहां एक शिवलिंग स्थापित किया था, जिसे ब्रह्मेश्‍वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
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बिठूर
यह घाट लाल पत्थरों से बना है। अनोखी निर्माण कला के प्रतीक इस घाट की नींव अवध के मंत्री टिकैत राय ने डाली थी। घाट के निकट ही एक विशाल शिव मंदिर है, जहां कसौटी पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित है।
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बिठूर
ध्रुव टीला वह स्थान है, जहां बालक ध्रुव ने एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे एक दैवीय तारे के रूप में सदैव चमकने का वरदान दिया था। इन धार्मिक स्थानों के अलावा भी बिठूर में देखने के लिए बहुत कुछ है। यहां का राम जानकी मंदिर, लव-कुश मंदिर, हरीधाम आश्रम और नाना साहब स्मारक अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
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बिठूर
कल्याणपुर यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन है। केवल पेसेन्जर ट्रेन के माध्यम से ही यहां पहुंचा जा सकता है। कानपुर जंक्शन यहां का निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन है।
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अम्बाला
अम्बाला (Ambala) भारत के हरियाणा राज्य के अम्बाला ज़िले में स्थित एक नगर व नगरपालिका है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली, से लगभग 200 किमी उत्तर में है। यहाँ सिन्धु नदी का जलसम्भर क्षेत्र और गंगा नदी का जलसम्भर मिलता है, और अम्बाला पंजाब राज्य की सीमा से सटा हुआ है। राज्य सीमा के पार समीप ही पटियाला नगर है। अम्बाला लम्बे काल से भारतीय सेना की एक प्रमुख छावनी रही है iऔर दो भागों में विभाजित है - अम्बाला छावनी और अम्बाला नगर, जो एक-दूसरे से लगभग 8 किमी दूर हैं। अम्बाला दो नदियों से घिरा है, उत्तर में घग्गर नदी और दक्षिण में टांगरी नदी। श्रीनगर से कन्याकुमारी जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 44 यहाँ से गुज़रता है। भौगोलिक स्थिति के कारण पर्यटन कें क्षेत्र में भी अम्बाला का महत्वपूर्ण स्थान है।
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अम्बाला
अम्बाला नाम की उत्पत्ति शायद महाभारत की अम्बालिका के नाम से हुई होगी। आज के जमाने में अम्बाला अपने विज्ञान सामग्री उत्पादन व मिक्सी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। अम्‍बाला को विज्ञान नगरी कह कर भी पुकारा जाता है कयोंकि यहां वैज्ञानिक उपकरण उद्योग केंद्रित है। भारत के वैज्ञानिक उपकरणों का लगभग चालीस प्रतिशत उत्‍पादन अम्‍बाला में ही होता है। एक अन्‍य मत यह भी है कि यहां पर आमों के बाग बगीचे बहुत थे, जिससे इस का नाम अम्‍बा वाला अर्थात् अम्‍बाला पड़ गया।
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अम्बाला
अम्बाला की स्थापना अम्बा नामक राजपूत शाशक ने की कुछ लोगों का मानना है। अम्बाला अंबिका माता का मंदिर होने के कारण इसका नाम अंबाला पड़ा कुछ लोगों का मानना है कि यहाँ आम की पैदावार अधिक होती थी इस लिए इसे अम्बवाला कहा जाता था, जो अब अंबाला बन गया।
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अम्बाला
अंबाला नगर, सिंधु तथा गंगा नदी तंत्रो के बीच जल विभाजक पर स्थित है। अंबाला से सुंदरवन तक मैदान की लम्बाई 1,800 कि०मी० है। यहाँ से चण्डीगढ़ 47 किमी उत्तर, कुरुक्षेत्र 50 किमी दक्षिण, शिमला 148 किमी पूर्वोत्तर, अमृतसर 260 किमी पश्चिमोत्तर और दिल्ली198 किमी दक्षिण में स्थित हैं।
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अम्बाला
अम्बाला छावनी में सनातन धर्म कालेज, आर्य कन्‍या महाविद्यालय, गांधी स्मारक कॉलेज तथा राजकीय महाविद्यालय स्थित हैं। एस डी कॉलेज में कार्यालय प्रबंधन के अध्‍यापन की व्‍यवस्‍था बी ए, बी कॉम तथा डिप्‍लोमा स्‍तर पर उपलब्‍ध है। इस विषय के अध्‍यापन की सुविधा मात्र सनातन धर्म कॉलेज, अम्‍बाला छावनी में ही है। संस्कृत के गहन अध्ययन के लिये अम्‍बाला छावनी में श्री दीवान कृष्ण किशोर सनातन धर्म आदर्श संस्कृत महाविद्यालय भी विद्यमान है। अम्‍बाला शहर में एम डी एस डी गर्ल्‍ज कॉलेज, डी ए वी कॉलेज तथा आत्‍मा नन्‍द जैन कॉलेज स्थित हैं। अम्बाला शहर में श्री आत्मानन्द जैन सीनियर सेकेन्डरी स्कूल, श्री आत्मानन्द जैन सीनियर मॉडल स्कूल, श्री आत्मानन्द जैन विजय वल्लभ स्कूल, गंगा राम सनातन धर्म स्कूल, एन एन एम डी स्कूल, डी ए वी पब्लिक स्कूल, पी के आर जैन स्कूल, चमन वाटिका, आर्य समाज सीनियर सेकेन्डरी स्कूल, स्प्रिन्ग्फ़ील्ड स्कूल और भी कई स्कूल हैं। अम्बाला शहर में दो राजकीय बहुतकनीकी संस्थान हैं। अम्बाला से २० मील दूर मुलाना में एम एम विश्वविधालय है।
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अम्बाला
यह शहर अमृतसर और दिल्ली से सड़क और रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। शहर से संलग्न अंबाला छावनी में रेलों के एक बड़े जंक्शन के साथ एक हवाई अड्डा भी है। साथ ही यह भारत की सबसे बड़ी छावनियों में से एक है।
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अम्बाला
अंबाला एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक शहर है। वैज्ञानिक उपकरणों, सिलाई मशीनों, मिश्रण यंत्रों (मिक्सर) और मशीनी औज़रों के निर्माण तथा कपास की ओटाई, आटा मिलों व हथकरघा उद्योग की दृष्टि से अंबाला छावनी व शहर, दोनों उल्लेखनीय हैं। एक महत्त्वपूर्ण कृषि मंडी होने के साथ अंबाला में एक सरकारी धातु कार्यशाला भी है।
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अम्बाला
अम्‍बाला में भारत की पश्चिमोत्‍तर सीमा पर भारत का प्रमुख वायु सेना मुख्‍यालय भी स्थित है। यहां पर पटेल पार्क, नेता जी सुभाष चंद्र पार्क, इन्दिरा पार्क तथा महावीर उद्यान स्थित हैं। इस पार्कों में स्‍थानीय नागरिक सुबह और शाम घूमने जाते हैं। मनोरंजन हेतु यहां पर निगार, कैपिटल, निशात तथा नावल्‍टी सिनेमाघर विद्यमान हैं। सेंट पॉल कैथेड्रल भी दर्शनीय है। अम्‍बाला से वैसे तो अनेक लघु पत्रपत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। पश्चिमोत्‍तर भारत का एक प्रमुख हिन्‍दी दैनिक पंजाब केसरी भी अम्‍बाला से प्रकाशित होता है।
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अम्बाला
अम्‍बाला छावनी, अम्‍बाला सदर तथा अम्‍बाला शहर तीन पृथक व स्‍तंत्रत स्‍थानीय निकाय यहां पर लोक प्रशासन हेतु स्‍थापित हैं। अंबाला शहर में प्रसिद्ध अम्बिका देवी मंदिर स्थित है। जोकि अंबाला शहर बैस स्टैंड से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर है । नवरात्रि में यहां बड़े मेले लगते है और मां अंबिका के दर्शनार्थ पंजाब,उत्तरप्रदेश और स्थानीय लोग आते है। अंबिका देवी का सम्बन्ध महाभारत काल से है। अंबिका देवी मन्दिर के समीप ही नोरंगराय तालाब स्थित है जिसके बीचोबीच विष्णु जी के अवतार वामन भगवान की प्रतिमा स्थापित है । जहा वामन द्वादशी तिथि को बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
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गिलगित-बल्तिस्तान
1970 में "उत्तरी क्षेत्र” नामक यह प्रशासनिक इकाई, गिलगित एजेंसी, लद्दाख़ वज़ारत का बल्तिस्तान ज़िला, हुन्ज़ा और नगर नामक राज्यों के विलय के पश्चात अस्तित्व में आई थी। पाकिस्तान इस क्षेत्र को विवादित भूतपूर्व रियासत जम्मू और कश्मीर के क्षेत्र से पृथक क्षेत्र मानता है जबकि भारत और यूरोपीय संघ के अनुसार यह भूतपूर्व रियासत जम्मू और कश्मीर के वृहत विवादित क्षेत्र का ही हिस्सा है। लद्दाख का यह वृहत क्षेत्र सन 1947 के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय है।
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गिलगित-बल्तिस्तान
काराकोरम राजमार्ग के साथ साथ हुन्ज़ा और शतियाल के बीच लगभग दस मुख्य स्थानों पर पत्थरों के काट कर और चट्टानों को तराश कर बनाये गये लगभग 20000 कला के नमूने मिलते हैं। इनको मुख्यत इस व्यापार मार्ग का प्रयोग करने वाले हमलावरों, व्यापारियों और तीर्थयात्रियों के साथ साथ स्थानीय लोगों ने भी उकेरा है। इन कला के नमूनों में सबसे पुराने तो 5000 और 1000 ईसापूर्व के बीच के हैं। इनमें अकेले जानवरों, त्रिकोणीय पुरुषों और शिकार के दृश्यों को जिनमें जानवरों का आकार अमूमन शिकारी से बड़ा है, को उकेरा गया है। पुरातत्वविद कार्ल जेटमर ने इन कला के नमूनों के माध्यम से इस पूरे इलाके के इतिहास को अपनी पुस्तक रॉक कार्विंग एंड इंस्क्रिपशन इन द नॉर्दन एरियास ऑफ पाकिस्तान में दर्ज किया है। इसके बाद उन्होने अपनी एक दूसरी पुस्तक बिटवीन गंधारा एंड द सिल्क रूट–रॉक कार्विंग अलोंग द काराकोरम हाइवे को जारी किया।
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गिलगित-बल्तिस्तान
पाकिस्तान की स्वतंत्रता और 1947 में भारत के विभाजन से पहले, महाराजा हरि सिंह ने अपना राज्य गिलगित और बल्तिस्तान तक बढ़ाया था। विभाजन के बाद, संपूर्ण जम्मू और कश्मीर, एक स्वतंत्र राष्ट्र बना रहा। 1947 के भारत पाकिस्तान युद्ध के अंत में संघर्ष विराम रेखा (जिसे अब नियंत्रण रेखा कहते हैं) के उत्तर और पश्चिम के कश्मीर के भागों को के उत्तरी भाग को उत्तरी क्षेत्र (72,971 किमी²) और दक्षिणी भाग को आज़ाद कश्मीर (13,297 किमी²) के रूप में विभाजित किया गया। उत्तरी क्षेत्र नाम का प्रयोग सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर के उत्तरी भाग की व्याख्या के लिए किया। 1963 में उत्तरी क्षेत्रों का एक छोटा हिस्सा जिसे शक्स्गम घाटी कहते हैं, पाकिस्तान द्वारा अनंतिम रूप से जनवादी चीन गणराज्य को सौंप दिया गया।
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गिलगित-बल्तिस्तान
पाकिस्तान सरकार ने 1974 में गिलगित-बाल्टिस्तान में राज्य विषय नियम (एसएसआर) को समाप्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए। वर्तमान में गिलगित-बल्तिस्तान, सात ज़िलों में बंटा हैं, इसकी जनसंख्या लगभग दस लाख और क्षेत्रफल 28,000 वर्ग मील है। इसकी सीमायें पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान और भारत से मिलती हैं। इस दूरदराज के क्षेत्र के लोगों को जम्मू और कश्मीर के पूर्व राजसी राज्य के डोगरा शासन से 1 नवम्बर 1947 को बिना किसी भी बाहरी सहायता के मुक्ति मिली और वे एक छोटे से समयांतराल के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक बन गए। इस नए राष्ट्र ने स्वयं के एक आवश्यक प्रशासनिक ढांचे के आभाव के फलस्वरूप पाकिस्तान की सरकार से अपनी सरकार के मामलों के संचालन के लिए सहायता मांगी। पाकिस्तान की सरकार ने उनके इस अनुरोध को स्वीकारते हुए उत्तरपश्चिम सीमांत प्रांत से सरदार मुहम्मद आलम खान जो कि एक अतिरिक्त सहायक आयुक्त थे, को गिलगित भेजा। इसके पहले नियुक्त राजनीतिक एजेंट के रूप में, सरदार मुहम्मद आलम खान ने इस क्षेत्र का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।
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गिलगित-बल्तिस्तान
स्थानीय, उत्तरी लाइट इन्फैंट्री, सेना की इकाई है और माना जाता है कि 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इसने पाकिस्तान की सहायता की और संभवत: पाकिस्तान की ओर से युद्ध में भाग भी लिया। कारगिल युद्ध में इसके 500 से अधिक सैनिक मारे गये, जिन्हें उत्तरी क्षेत्रों में दफन कर दिया गया। ललक जान, जो यासीन घाटी का एक शिया इमामी इस्माइली मुस्लिम (निज़ारी) सैनिक था, जिसे कारगिल युद्ध के दौरान उसके साहसी कार्यों के लिए पाकिस्तान के सबसे प्रतिष्ठित पदक निशान-ए-हैदर से सम्मानित किया गया।
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गिलगित-बल्तिस्तान
29 अगस्त 2009 को गिलगित-बल्तिस्तान अधिकारिता और स्व-प्रशासन आदेश 2009, पाकिस्तानी मंत्रिमंडल द्वारा पारित किया गया था और फिर इस पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए गए। यह आदेश गिलगित-बल्तिस्तान के लोगों को एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी विधानसभा के माध्यम से स्वशासन की आज्ञा देता है। पाकिस्तानी सरकार के इस कदम की पाकिस्तान, भारत के अलावा गिलगित-बल्तिस्तान में भी आलोचना की गयी है साथ ही पूरे इलाके में इसका विरोध भी किया गया है।
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गिलगित-बल्तिस्तान
गिलगित-बल्तिस्तान संयुक्त-आंदोलन ने इस आदेश को खारिज करते हुए नए पैकेज की मांग की है, जिसके अनुसार गिलगित-बल्तिस्तान की एक स्वतंत्र और स्वायत्त विधान सभा, भारत पाकिस्तान हेतु संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCIP)-प्रस्ताव के अनुसार स्थापित एक आधिकारिक स्थानीय सरकार के साथ बनाई जानी चाहिए, जहां गिलगित-बल्तिस्तान के लोग अपना राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री खुद चुनेंगे।
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गिलगित-बल्तिस्तान
सितम्बर 2009 की शुरुआत में, पाकिस्तान ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और इसके अनुसार चीन गिलगित-बल्तिस्तान में एक बड़ी ऊर्जा परियोजना लगाएगा जिसके अंतर्गत अस्तोर जिले में बुंजी पर 7,000 मेगावाट के बांध का निर्माण किया जायेगा। इस परियोजना का भारत ने विरोध किया है पर पाकिस्तान ने इस विरोध को यह कह कर खारिज कर दिया कि, भारत सरकार के विरोध का कोई वैधानिक आधार नहीं है।
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गिलगित-बल्तिस्तान
गिलगित-बल्तिस्तान को प्रशासनिक रूप से दो डिवीजनों और इन डिवीजनों को सात जिलों में विभाजित किया गया है। इन सात जिलों मे से दो ज़िले बल्तिस्तान और पांच जिले गिलगित डिवीजन में आते है। राजनीति के मुख्य केन्द्र गिलगित और स्कर्दू हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%95
चुचुक
स्तनधारियों में, एक निप्पल (जिसे मैमरी पैपिला या टीट भी कहा जाता है) त्वचा का एक छोटा प्रक्षेपण होता है जिसमें 15-20 लैक्टिफेरस नलिकाओं के लिए आउटलेट होते हैं जो टिप के चारों ओर बेलनाकार रूप से व्यवस्थित होते हैं। मार्सुपियल्स और यूथेरियन स्तनधारियों में आमतौर पर द्विपक्षीय रूप से व्यवस्थित निपल्स की एक समान संख्या होती है, जो कि 2 से लेकर 19 तक होती है।
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2,534.697366
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%95
चुचुक
निप्पल और स्तन को धमनी आपूर्ति आंतरिक थोरैसिक (स्तन) धमनियों की पूर्वकाल इंटरकोस्टल शाखाओं से उत्पन्न होती है; पार्श्व वक्ष धमनी; और थोरैकोडोरल धमनियां। शिरापरक वाहिकाएँ धमनियों के समानांतर होती हैं।
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2,534.697366
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%95
चुचुक
निपल्स का शारीरिक उद्देश्य स्तनपान कराने के दौरान मादा स्तन ग्रंथियों में उत्पादित दूध को शिशु तक पहुंचाना है। स्तनपान के दौरान, एक शिशु द्वारा निप्पल उत्तेजना हाइपोथैलेमस से ऑक्सीटोसिन की रिहाई को प्रोत्साहित करेगी। ऑक्सीटोसिन एक हार्मोन है जो गर्भावस्था के दौरान बढ़ता है और दूध-इजेक्शन रिफ्लेक्स पैदा करने में मदद करने के लिए स्तन पर कार्य करता है। शिशु के निप्पल की उत्तेजना से ऑक्सीटोसिन रिलीज होने से बच्चे के जन्म के बाद भी गर्भाशय सिकुड़ जाता है।
0.5
2,534.697366
20231101.hi_382894_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%95
चुचुक
जब शिशु निप्पल को चूसता है या उत्तेजित करता है, तो ऑक्सीटोसिन का स्तर बढ़ जाता है और स्तन की छोटी मांसपेशियां दूध नलिकाओं के माध्यम से दूध को स्थानांतरित करती हैं। शिशु द्वारा निप्पल की उत्तेजना का परिणाम स्तन के दूध को नलिकाओं के माध्यम से और निप्पल तक ले जाने में मदद करता है। दूध के इस संकुचन को "लेट-डाउन रिफ्लेक्स" कहा जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%95
चुचुक
1800 के दशक से पश्चिमी संस्कृति में कपड़ों के नीचे मादा निप्पल को छिपाने की संस्कृति की प्रवृत्ति मौजूद है। जैसा कि महिला निपल्स को अक्सर एक अंतरंग हिस्सा माना जाता है, उन्हें कवर करने की उत्पत्ति विक्टोरियन नैतिकता के तहत हो सकती है, जैसा कि राइडिंग साइड सैडल के साथ होता है। कुछ के लिए पूरे स्तन और निप्पल को एक्सपोज करना विरोध का एक रूप है और दूसरों के लिए अपराध। निपल्स के खुलेपन को आमतौर पर अशिष्ट माना जाता है और कुछ मामलों में इसे भद्दा या अश्लील व्यवहार के रूप में देखा जाता है।
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चुचुक
अपवादों के साथ इंस्टाग्राम की "नो निपल्स" नीति है: सामग्री की अनुमति नहीं है जिसमें "महिला निपल्स की कुछ तस्वीरें शामिल हैं, लेकिन स्तन-उच्छेदन के निशान और सक्रिय रूप से स्तनपान कराने वाली महिलाओं की तस्वीरों की अनुमति है। चित्रों और मूर्तियों की तस्वीरों में नग्नता भी ठीक है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%95
चुचुक
स्तन कैंसर के लक्षण अक्सर सबसे पहले चूचुक और एरिओला में देखे जा सकते हैं, हालांकि सभी महिलाओं में एक जैसे लक्षण नहीं होते हैं, और कुछ लोगों में किसी भी प्रकार के संकेत या लक्षण नहीं दिखते हैं। एक व्यक्ति को नियमित मैमोग्राम के बाद पता लग सकता है कि उसे स्तन कैंसर है। चेतावनी के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं:
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%95
चुचुक
चूचुक में कोई बदलाव होना जरूरी नहीं है कि वो स्तन कैंसर के कारण हो, अन्य कारण से भी इस तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%95
चुचुक
कुछ संक्रमण चूचुक के माध्यम से भी हो सकते हैं, खासकर अगर चूचुक में जलन या चोट लगी हो। इन परिस्थितियों में, चूचुक स्वयं कैंडिडा से संक्रमित हो सकता है, जो स्तनपान करने वाले शिशु के मुंह में मौजूद होता है। जिससे शिशु संक्रमण को मां तक पहुंचा देता है। ज्यादातर समय, यह संक्रमण चूचुक के भाग में होता है। कुछ मामलों में, संक्रमण सूजन या स्तन संक्रमण का पूर्ण विकसित मामला बन सकता है। कुछ मामलों में, यदि मां को कोई चूचुक छेद या अल्सर के बिना संक्रमण है, तो भी शिशु को स्तनपान कराना सुरक्षित है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95
मुक्तक
मुक्तक शब्द का अर्थ है ‘अपने आप में सम्पूर्ण’ अथवा ‘अन्य निरपेक्ष वस्तु’ होना. अत: मुक्तक काव्य की वह विधा है जिसमें कथा का कोई पूर्वापर संबंध नहीं होता। प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्णत: स्वतंत्र और सम्पूर्ण अर्थ देने वाला होता है।
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मुक्तक
माना जाता है कि यह संस्कृत इतिहास की प्रथम खोज रही होगी क्योंकि वेद जैसे निबद्ध ग्रन्थों में भी मुक्तक काव्यों का प्रसंग आया हुआ है। रामायण तथा महाभारत जिन्हें हम प्रबन्ध काव्य कहते है उनमें भी जनमानस तथा सभाओं में प्रयुक्त होने वाले मुक्तक काव्यों का वर्णन प्राप्त होता है। महाभारत में लिखा है- सामानि स्तुतिगीतानि गाथाश्च विविधास्तथा। हालांकि यह सत्य है कि भामह आदि काव्यशास्त्रियों ने इसे इसकी निबद्धता के चलते काव्य शृंखला में अन्तिम स्थान दिया है पुनरपि कोई भी इससे मुंह नहीं मोड़ पाया है। अभिनवगुप्त का तो यह मानना था कि रस के आस्वादन में एक मात्र मुक्तक पद्य भी पूर्ण है।
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मुक्तक
संस्कृत काव्य परम्परा में मुक्तक शब्द सर्वप्रथम आनन्दवर्धन ने प्रस्तुत किया। ऐसा नहीं माना जा सकता कि काव्य की इस दिशा का ज्ञान उनसे पूर्व किसी को नहीं था। आचार्य दण्डी मुक्तक नाम से न सही, पर अनिबद्ध काव्य के रूप में इससे परिचित थे। ‘अग्निपुराण' में मुक्तक को परिभाषित करते हुए कहा गया कि मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षमः सताम् अर्थात चमत्कार की क्षमता रखने वाले एक ही श्लोक को मुक्तक कहते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95
मुक्तक
राजशेखर ने भी मुक्तक नाम से ही चर्चा की है। आनंदवर्धन ने रस को महत्त्व प्रदान करते हुए मुक्तक के संबंध में कहा कि तत्र मुक्तकेषु रसबन्धाभिनिवेशिनः कवेः तदाश्रयमौचित्यम् अर्थात् मुक्तकों में रस का अभिनिवेश या प्रतिष्ठा ही उसके बन्ध की व्यवस्थापिका है और कवि द्वारा उसी का आश्रय लेना औचित्य है।
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मुक्तक
हेमचंद्राचार्य ने मुक्तक शब्द के स्थान पर 'मुक्तकादि' शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने उसका लक्षण दण्डी की परम्परा में देते हुए कहा कि जो अनिबद्ध हों, वे मुक्तादि हैं।
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मुक्तक
मुक्तक में प्रबंध के समान रस की धारा नहीं रहती, जिसमें कथा-प्रसंग की परिस्थिति में अपने को भूला हुआ पाठक मग्न हो जाता है और हृदय में एक स्थायी प्रभाव ग्रहण करता है। इसमें तो रस के ऐसे छींटे पड़ते हैं, जिनमें हृदय-कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है। यदि प्रबन्ध एक विस्तृत वनस्थली है, तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है। इसी से यह समाजों के लिए अधिक उपयुक्त होता है। इसमें उत्तरोत्तर दृश्यों द्वारा संगठित पूर्ण जीवन या उसके किसी पूर्ण अंग का प्रदर्शन नहीं होता, बल्कि एक रमणीय खण्ड-दृश्य इस प्रकार सहसा सामने ला दिया जाता है कि पाठक या श्रोता कुछ क्षणों के लिए मंत्रमुग्ध सा हो जाता है। इसके लिए कवि को मनोरम वस्तुओं और व्यापारों का एक छोटा स्तवक कल्पित करके उन्हें अत्यंत संक्षिप्त और सशक्त भाषा में प्रदर्शित करना पड़ता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95
मुक्तक
आचार्य शुक्ल ने अन्यत्र मुक्तक के लिए भाषा की समास शक्ति और कल्पना की समाहार शक्ति को आवश्यक बताया था। गोविंद त्रिगुणायत ने उसी से प्रभावित होकर निम्न परिभाषा प्रस्तुत की-
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95
मुक्तक
''मेरी समझ में मुक्तक उस रचना को कहते हैं जिसमें प्रबन्धत्व का अभाव होते हुए भी कवि अपनी कल्पना की समाहार शक्ति और भाषा की समाज शक्ति के सहारे किसी एक रमणीय दृश्य, परिस्थिति, घटना या वस्तु का ऐसा चित्रात्मक एवं भावपूर्ण वर्णन प्रस्तुत करता है, जिससे पाठकों को प्रबंध जैसा आनंद आने लगता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95
मुक्तक
मुक्तक काव्य से तात्पर्य है ऐसे काव्य जो किसी एक प्रसंगवश लिखे गये हो। रामायण, महाभारत या रघुवंश आदि काव्य में अनेक प्रसंग है, ये काव्य कथाओं से ओत-प्रोत हैं, जिसमें अनेक भाव तथा अनेक रस है। परन्तु मुक्तक काव्य किसी एक प्रसंग, एक भाव तथा एक ही रस से निहित एक मात्र पद्य होता है। मुक्तक में एक पद्य अवश्य होता है पुनरपि मुक्तक के विकास ने इसमें कुछ और विशेषता भी सम्मिलित की है। हालांकि दण्डी आदि आचार्यों ने ऐसी रचना को मुक्तक नहीं स्वीकार किया है। परन्तु देखा जाये तो यह सभी मुक्तक के ही प्रकार है। मुक्तक काव्य के अन्तर्गत हम इन अधोलिखित सभी काव्यों प्रकारों का ग्रहण कर सकते हैं-
0.5
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20231101.hi_2991_1
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अण्डमान
अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल-जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं। यहाँ एक संग्रहालय भी है जहाँ उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।
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2,531.339728
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अण्डमान
हरे-भरे वृक्षों से घिरा यह बीच एक मनोरम स्थान है। यहां समुद्र में डुबकी लगाकर पानी के नीचे की दुनिया का अवलोकन किया जा सकता है। यहां से सूर्यास्त का अद्भुत नजारा काफी आकर्षक प्रतीत होता है। यह बीच अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए लोकप्रिय है।
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अण्डमान
यह द्वीप ब्रिटिश वास्तुशिल्प के खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है। रॉस द्वीप 200 एकड़ में फैला हुआ है। फीनिक्स उपसागर से नाव के माध्यम से चंद मिनटों में रॉस द्वीप पहुंचा जा सकता है। सुबह के समय यह द्वीप पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है।
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अण्डमान
80 एकड़ में फैला पिपोघाट फार्म दुर्लभ प्रजातियों के पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के लिए जाना जाता है। यहां एशिया का सबसे प्राचीन लकड़ी चिराई की मशीन छातास सा मिल है।
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2,531.339728
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अण्डमान
यहां भारत का एकमात्र सक्रिय है ज्वालामुखी है। यह द्वीप लगभग 3 किलोमीटर में फैला है। यहां का ज्वालामुखी 28 मई 2005 में फटा था। तब से अब तक इससे लावा निकल रहा है।
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2,531.339728
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अण्डमान
उत्तरी अंडमान द्वीप में स्थित प्रकृति प्रेमियों को बहुत पसंद आता है। यह स्थान अपने संतरों, चावलों और समुद्री जीवन के लिए प्रसिद्ध है। यहां की सेडल पीक आसपास के द्वीपों से सबसे ऊंचा प्वाइंट है जो 732 मीटर ऊंचा है। अंडमान की एकमात्र नदी कलपोंग यहां से बहती है।
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अण्डमान
यहां किसी जमाने में गुलाम भारत से लाए गए बंदियों को पोर्ट ब्लेयर के पास वाइपर द्वीप पर उतारा जाता था। अब यह द्वीप एक पिकनिक स्थल के रूप में विकसित हो चुका है। यहां के टूटे-फूटे फांसी के फंदे निर्मम अतीत के साक्षी बनकर खड़े हैं।
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अण्डमान
यहां के स्वच्छ निर्मल पानी का सौंदर्य सैलानियों का मन मोह लेता है। इन द्वीपों में कई बार तेरती हुई डाल्फिन मछलियों के झुंड देखे जा सकते हैं। सीसे की तरह साफ पानी के नीचे जलीय पेड़-पौधे व रंगीन मछलियों को तेरते देखकर पर्यटक अपनी बाहरी दुनिया को अक्सर भूल जाते हैं।
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अण्डमान
पोर्ट ब्लेयर से चैन्नई, कोलकाता, दिल्ली, मुम्बई, बंगलूरू और भुवनेश्वर की दिन भर में 18 उड़ाने हैं। सभी प्रमुख एयर लाईन्स अपनी सेवाएं दे रही हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
महाभाष्य
पतंजलि ने पाणिनि के अष्टाध्यायी के कुछ चुने हुए सूत्रों पर भाष्य लिखी जिसे व्याकरणमहाभाष्य का नाम दिया (महा+भाष्य (समीक्षा, टिप्पणी, विवेचना, आलोचना))। व्याकरण महाभाष्य में कात्यायन वार्तिक भी सम्मिलित हैं जो पाणिनि के अष्टाध्यायी पर कात्यायन के भाष्य हैं। कात्यायन के वार्तिक कुल लगभग 1400 हैं जो अन्यत्र नहीं मिलते बल्कि केवल व्याकरणमहाभाष्य में पतञ्जलि द्वारा सन्दर्भ के रूप में ही उपलब्ध हैं। इसकी रचना लगभग ईसापूर्व दूसरी शताब्दी में हुई थी।
0.5
2,520.189979
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
महाभाष्य
संस्कृत के तीन महान वैयाकरणों में पतंजलि भी हैं। अन्य दो हैं - पाणिनि तथा कात्यायन (140 ईशा पूर्व)। महाभाष्य में शिक्षा (phonology, including accent), व्याकरण (grammar and morphology) और निरुक्त (etymology) - तीनों की चर्चा हुई है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
महाभाष्य
इसकी रचना ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की मानी जाती है। महाभाष्यकार "पतंजलि" का समय असंदिग्ध रूप में ज्ञात है। पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में पतंजलि वर्तमान थे। महाभाष्य के निश्चित साक्ष्य के आधार पर विजयोपरांत पुष्यमित्र के श्रौत (अश्वमेध यज्ञ) में संभवतः पतंजलि पुरोहित थे। यह (इह पुष्यमित्रं याजयाम:) महाभाष्य से सिद्ध है। साकेत और माध्यमिका पर यवनों के आक्रमणकाल में पतंजलि विद्यमान थे। अत: महाभाष्य और महाभाष्यकार पतंजलि - दोनों का समय ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी निश्चित है। द्वितीय शताब्दी ई.पू. में मौर्यों के ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग - मौर्य वंशी बृहद्रथ को मारकार गद्दी पर बैठे थे। नाना पंडितों के विचार से 200 ई.पू. से लेकार 140 ई.पू. तक महाभाष्य की रचना का मान्य काल है।
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2,520.189979
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महाभाष्य
महाभाष्य की महत्ता के अनेक कारण हैं। प्रथम हेतु है उसकी पांडित्यपूर्ण विशिष्ट व्याख्याशैली। विवादास्पद स्थलों का पूर्वपक्ष उपस्थित करने के बाद उत्तरपक्ष उपस्थित किया है। शास्त्रार्थ प्रक्रिया में पूर्व और उत्तर पक्षों का व्यवहार चला आ रहा है। इसके अतिरिक्त आवश्यक होने पर उस पक्ष का भी उपन्यास किया है। विषयप्रतिपादन दूसरी विशेषता है। महाभाष्य की व्याख्या का क्रम तो अष्टाध्यायी और तदंतर्गत चार पादों और उनके सूत्रों का क्रम है। पर भाष्य के अपने क्रम में व्याख्या का नियोजन विभक्त है, जिसका अर्थ यह भी होता है कि एक "महाभाष्य" लिखा जाता रहा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
महाभाष्य
"पतंजलि" ने अपने महाभाष्य में व्याकरण की दार्शनिक शब्दनित्यत्ववाद या स्फोटबाद अथवा शब्दब्रह्मवाद का किया है। इस सिद्धांत को भर्तृहरि ने विस्तार के से वाक्यपदीय में पल्लवित किया है। महाभाष्य की महत्ता का यह कारण है। साहित्यिक दृष्टि से महाभाष्य का गद्य अत्यन्त अकृत्रिम, मुहावरेदार, धाराप्रावाहिक और स्पष्टार्थबोध है। भर्तृहरि ने इसपर टीका लिखी थी पर उसका अधिकांश अनुपलब्ध है। केय्यट की "प्रदीप" नामक टीका और नागोज उद्योत नाम से "प्रदीपटीका" प्रकाशित है। भट्टोजि दीक्षित ने अपने "शब्दकौस्तुभ" की रचना महाभाष्य के आधार पर की।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
महाभाष्य
संस्कृत व्याकरण में "मुनित्रय" को बहुत ही उच्च और प्रामाणिक पद दिया गया है। अष्टाध्यायी-कार पाणिनि, वार्त्तिककार कात्यायन और महाभाष्यकार पतंजलि - इन्हीं तीनों को "मुनित्रय" कहा गया है। व्याकरणशास्त्र के इतिहास में पाणिनीय व्याकरण की शाखा के अतिरिक्त पूर्व और परवर्ती अनेक व्याकरण शाखाएँ रही हैं। परंतु "मुनित्रय" से पोषित और समर्थित व्याकरण की पाणिनीय शाखा को जो प्रसिद्धि, मान्यता और लोकप्रियता प्राप्त हुई वह अन्य शाखाओं को नहीं मिल सकी - जिसका कारण महाभाष्य ही माना गया है। अष्टाध्यायी पर "कात्यायन" ने वार्त्तिकों की रचना द्वारा व्याकरणसिद्धांतों को अधिक पूर्ण और स्पष्ट बनाया। "पतंजलि" ने मुख्यत: वार्त्तिकों की व्याख्या को महाभाष्य द्वारा आगे बढ़ाया। अनेक स्थलों पर उन्होंने कात्यायनमत का प्रत्याख्यान और पाणिनिमत की मान्यता भी सिद्ध की है। कभी-कभी उन सूत्रों की भी विवेचना की है जो कात्यायन ने छोड़ दिए थे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
महाभाष्य
इस महाभाष्य की रचनापीठिका का निर्देश करते हुए वाक्यपदीयकार "भर्तृहरि" ने बताया है कि जब व्याकरण के पाठक संक्षेपरुचि और अल्पविद्यापरिग्रह बन गए, "संग्रह" ग्रंथ (जिसके कर्ता परंपरा के अनुसार व्याडि हैं) अस्त हो गया तब तीर्थदर्शी गुरु पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की, जिसमें सभी न्यायबीजों का भी निबंधन है। इससे पता चलता है कि "पतंजलि" के पूर्व "संग्रह" नामक ग्रंथ में व्याकरण संबद्ध विवेचन अत्यंत विस्तृत था। "संग्रह" नामक ग्रंथ में एक लाख श्लोक होने का उल्लेख महाभाष्य तथा प्रदीप की टीका ‘उद्योत’ में नागेश भट्ट ने किया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
महाभाष्य
The of Patañjali with annotation (Ahnikas I – IV), Translated by Surendranath Dasgupta, Published by Indian Council of Philosophical Research
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF
महाभाष्य
Bronkhorst, Johannes, 1992. Panini's View of Meaning and its Western Counterpart. In, Maxim Stamenov (ed.) Current Advances in Semantic Theory. Amsterdam: J. Benjamins. (455-64)
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A8
आर्गन
उपसतह परमाणु विस्फोट का एक परिणाम के रूप में एक अल्फा कण उत्सर्जन के द्वारा पीछा सीए। यह 35 दिनों की एक आधा जीवन है। [22]
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A8
आर्गन
सौर प्रणाली में स्थानों के बीच, आर्गन के समस्थानिक रचना बहुत भिन्न होता है। कहाँ आर्गन का प्रमुख स्रोत 40 का क्षय है
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A8
आर्गन
Ar, प्रमुख आइसोटोप हो जाएगा, क्योंकि यह पृथ्वी पर। आर्गन तारकीय nucleosynthesis द्वारा सीधे उत्पादन किया, 36 अल्फा प्रक्रिया nuclide का बोलबाला है
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A8
आर्गन
एआर (सौर हवा माप के अनुसार), [23] और तीन आइसोटोप के अनुपात 36Ar: 38Ar: 40Ar बाहरी ग्रह के वायुमंडल में है 8400: 1600: 1. [24] यह मौलिक 36 से कम बहुतायत के साथ विरोधाभासों
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आर्गन
पृथ्वी के वायुमंडल है, जो केवल 31.5 ppmv (= 9340 × ppmv 0.337%), पृथ्वी पर और ग्रहों के बीच गैसों, जांच से मापा साथ नीयन (18.18 ppmv) के साथ तुलनीय है में गिरफ्तारी।
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आर्गन
गिरफ्तारी। मेरिनर जांच फ्लाई द्वारा बुध ग्रह की 1973 में पाया पारा 70% आर्गन के साथ एक बहुत पतली माहौल, 40 के रेडियोधर्मी क्षय से परिणाम माना है कि
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A8
आर्गन
Ar कारण स्थलीय आर्गन के मानक परमाणु वज़न अगले तत्त्व, पोटेशियम, एक तथ्य यह है कि जब आर्गन की खोज की थी puzzling गया था की तुलना में अधिक है। Mendeleev परमाणु वज़न के क्रम में उसकी आवर्त सारणी पर तत्वों हों, लेकिन आर्गन की जड़ता प्रतिक्रियाशील क्षार धातु से पहले एक प्लेसमेंट का सुझाव दिया। हेनरी Moseley बाद में दिखा रहा है कि आवर्त सारणी वास्तव में परमाणु संख्या के क्रम में व्यवस्थित किया जाता है के द्वारा इस समस्या का हल है। (आवर्त सारणी के इतिहास को देखें)।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A8
आर्गन
आर्गन के इलेक्ट्रॉनों की पूरी ओकटेट पूर्ण एस और पी subshells इंगित करता है। यह पूर्ण बाहरी ऊर्जा स्तर आर्गन बहुत स्थिर है और अत्यंत अन्य तत्वों के साथ संबंधों के लिए प्रतिरोधी बनाता है। सन 1962 से पहले, आर्गन और अन्य महान गैसों रासायनिक निष्क्रिय और यौगिकों के रूप में करने में असमर्थ हो जाता था; हालांकि, भारी नोबल गैसों के यौगिकों के बाद से संश्लेषित किया गया है। अगस्त 2000 में, पहली आर्गन यौगिक हेलसिंकी विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं द्वारा बनाई गई थी। जमे हुए आर्गन सीज़ियम आयोडाइड के साथ हाइड्रोजन फ्लोराइड की एक छोटी राशि है, [26] आर्गन fluorohydride (harf) का गठन किया गया था युक्त पर पराबैंगनी प्रकाश से चमक रहा है। [9] [27] यह 40 केल्विन (-233 डिग्री सेल्सियस) तक स्थिर है। metastable ArCF2 +
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A8
आर्गन
2 dication, जो कार्बोनिल फ्लोराइड और विषैली गैस के साथ संयोजक isoelectronic है, 2010 में मनाया गया था [28] आर्गन-36, आर्गन हाइड्राइड (argonium) आयनों, के रूप में क्रैब नेबुला सुपरनोवा के साथ जुड़े तारे के बीच का माध्यम में पाया गया है; यह पहली नोबल गैस अणु बाह्य अंतरिक्ष में पाया गया था। [29] [30]
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
बलिया
बलिया (Ballia) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। यह दो नदियों, गंगा और घाघरा, के संगम के समीप बसा हुआ है। यह वाराणासी से 140 किमी और राज्य राजधानी, लखनऊ, से 380 किमी पूर्व में, बिहार की राज्य सीमा से 4 किमी दूर स्थित है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
बलिया
बलिया को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने उल्लेखनीय योगदान के वजह से बागी बलिया (Rebel Ballia) के नाम से बुलाया जाता है।
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