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20231101.hi_185795_7
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ग्रामोफ़ोन
गायकों को भोंपू (horn) के मुख के ठीक सामने रखा जाता था ताकि ध्वनि की ऊर्जा तनुपट (diaphragm) पर केंद्रित हो सके। गायक या वादक सिमटकर बैठते थे। एक परदे के आगे भोंपू बाहर की ओर निकला होता था। परदे के दूसरी ओर अभिलेखन मशीन होती थी, जिसमें मोम जैसे पदार्थ की चौरस पट्टिका होती थी। इसी पट्टिका पर सूई सर्पिल रेखा अंकित करती थी। विद्युत् जमाव की प्रक्रिया द्वारा इस पट्टिका से ठोस धातु का एक प्रतिछाप (negative) बनाया जाता था। एक ऐसे पदार्थ पर जो साधारणत: कड़ा होता है, परंतु गरम करने पर मुलायम हो, जाता है, इस प्रतिछाप को दबाकर उसकी प्रतिलिपियाँ बनाई जाती थीं।
0.5
1,892.054277
20231101.hi_185795_8
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ग्रामोफ़ोन
इसी समय के आस पास बहुत से आविष्कारकों ने पुनरुत्पादन करनेवाली मशीनों के सुधार की ओर ध्यान दिया। लंदन के विज्ञानसंग्रहालय में प्रदर्शित बहुत से ग्रामोफोनों द्वारा उनके विकास की विभिन्न अवस्थाओं की झलक मिलती है। आरंभ में बर्लिनर की मशीन है, जिसमें धातु तनुपटवाली अनुनाद पेटिका (Sound box) है। यह हाथ से चलाई जाती थी। सन् 1896 में यांत्रिक नियंत्रण का प्रवेश हुआ और शताब्दी के अंत तक घड़ी के समान यंत्र बनाया गया, जो केवल पुनरुत्पादन के लिय प्रयुक्त होता था। इसमें सेलूलायड का तनुपट था, परंतु दो साल पश्चात् अभ्रक का उपयोग होने लगा। सन् 1905 तक ऐसी अनुनादपेटिका का विकास हो चुका था जो बिना किसी महत्वपूर्ण परिवर्तन के 20 वर्ष तक प्रचलित रही। इसमें अभ्रक का तनुपट था, जो चारों तरफ किनारे पर रबर के खोखले छल्ले रूपी गैस्केट (gasket) से अच्छी तरह कसा रहता था। जो उत्तोलक तनुपट के केंद्र को सुई की नोक से लोड़ता था, उसका आलंब असिकोर का होता था और उसकी गति का नियंत्रण कोमल कमानियों द्वारा होता था। अच्छे पुनरुत्पादन के लिये बड़े हार्न आवश्यक थे, परंतु जब इनका भार बहुत अधिक होने लगा तब उन्हें अनुनादपेटिका से अलग कर दिया गया और मशीन की पेटी पर बने एक ब्रैकेट से जोड़ा जाने लगा। अनुनादपेटिका को भोंपू से जोड़ने के लिय एक छोटी नलिका का उपयोग किया गया, जिसे ध्वनिभुजा (tone arm) कहते थे। भोंपू का दिखाई देना जनता पसंद नहीं करती थी, इसलिये उसे उलटा करके पेटी में रखा गया।
0.5
1,892.054277
20231101.hi_185795_9
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ग्रामोफ़ोन
वक्ता या गायक ध्वनिपोष (microphone) के सामने बोलता या गाता है। ध्वनिपोष में उत्पन्न परिवर्ती विद्युद्धारा को रेडियो वाल्वों द्वारा संबंधित कर एक कुंडली में ले जाते हैं। विद्युद्धारा के घटने बढ़ने से नरम लोहे का आर्मेचर पार्श्व दिशा में दोलित होता है और उससे जुड़ी हुई नीलम (sapphire) की सूई मोमपट्टिका पर सर्पिल खाँच बना देती है।
0.5
1,892.054277
20231101.hi_185795_10
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ग्रामोफ़ोन
विद्युद्विधि से ध्वनि उत्पादन करने के लिये अनुनादपेटिका की जगह विद्युद्ध्वनिग्रह (pick up) का उपयोग करते हैं। सूई की पार्श्वीय गति एक कुंडली में परिवर्ती धारा उत्पन्न करती है, जिसे संबंधित कर लाउडस्पीकर में ले जाते हैं। बहुत से ध्वनिग्रह मणिभ का उपयोग करते हैं और बहुतों में घूमनेवाला घात्र (armature) होता है या कुंडली। कुछ ध्वनिग्रह विद्युद्धारित्र का भी उपयोगकरते हैं।
0.5
1,892.054277
20231101.hi_11800_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%AE
आगम
भारत के नाना धर्मों में आगम का साम्राज्य है। जैन धर्म में मात्रा में न्यून होने पर भी आगमपूजा का पर्याप्त समावेश है। बौद्ध धर्म का 'वज्रयान' इसी पद्धति का प्रयोजक मार्ग है। वैदिक धर्म में उपास्य देवता की भिन्नता के कारण इसके तीन प्रकार है: वैष्णव आगम (पंचरात्र तथा वैखानस आगम), शैव आगम (पाशुपत, शैवसिद्धांत, त्रिक आदि) तथा शाक्त आगम।
0.5
1,880.567865
20231101.hi_11800_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%AE
आगम
आगम परम्परा से आये हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। वेद के ये सम्पूरक हैं। इनके वक्ता प्रायः शिवजी होते हैं।
0.5
1,880.567865
20231101.hi_11800_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%AE
आगम
यह शास्त्र साधारणतया 'तंत्रशास्त्र' के नाम से प्रसिद्ध है। निगमागममूलक भारतीय संस्कृति का आधार जिस प्रकार निगम (=वेद) है, उसी प्रकार आगम (=तंत्र) भी है। दोनों स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे के पोषक हैं। निगम कर्म, ज्ञान तथा उपासना का स्वरूप बतलाता है तथा आगम इनके उपायभूत साधनों का वर्णन करता है। इसीलिए वाचस्पति मिश्र ने 'तत्ववैशारदी' (योगभाष्य की व्याख्या) में 'आगम' को व्युत्पत्ति इस प्रकार की है : आगच्छंति बुद्धिमारोहंति अभ्युदयनि:श्रेयसोपाया यस्मात्‌, स आगम:।
0.5
1,880.567865
20231101.hi_11800_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%AE
आगम
आगम का मुख्य लक्ष्य 'क्रिया' के ऊपर है, तथापि ज्ञान का भी विवरण यहाँ कम नहीं है। 'वाराहीतंत्र' के अनुसार आगम इन सात लक्षणों से समवित होता है : सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म, (=शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन तथा ध्यानयोग। 'महानिर्वाण' तंत्र के अनुसार कलियुग में प्राणी मेध्य (पवित्र) तथा अमेध्य (अपवित्र) के विचारों से बहुधा हीन होते हैं और इन्हीं के कल्याणार्थ महादेव ने आगमों का उपदेश पार्वती को स्वयं दिया। इसीलिए कलियुग में आगम की पूजापद्धति विशेष उपयोगी तथा लाभदायक मानी जाती है-कलौ आगमसम्मत:।
0.5
1,880.567865
20231101.hi_11800_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%AE
आगम
वैदिक धर्म में उपास्य देवता की भिन्नता के कारण इसके तीन प्रकार है: वैष्णव आगम (पाँचरात्र तथा वैखानस आगम), शैव आगम (पाशुपत, शैवसिद्धांत, त्रिक आदि) तथा शाक्त आगम। द्वैत, द्वैताद्वैत तथा अद्वैत की दृष्टि से भी इनमें तीन भेद माने जाते हैं। अनेक आगम वेदमूलक हैं, परन्तु कतिपय तंत्रों के ऊपर बाहरी प्रभाव भी लक्षित होता है। विशेषतः शाक्तागम के कौलाचार के ऊपर चीन या तिब्बत का प्रभाव पुराणों में स्वीकृत किया गया है। आगमिक पूजा विशुद्ध तथा पवित्र भारतीय है। 'पञ्च मकार' के रहस्य का अज्ञान भी इसके विषय में अनेक भ्रमों का उत्पादक है।
1
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20231101.hi_11800_5
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आगम
जैन-साहित्य का प्राचीनतम भाग ‘आगम’ के नाम से कहा जाता है। आगम ग्रन्थ काफी प्राचीन है, तथा जो स्थान वैदिक साहित्य क्षेत्र में वेद का तथा बौद्ध साहित्य में त्रिपिटक का है, वही स्थान जैन साहित्य में आगमों का है। आगम ग्रन्थों में महावीर के उपदेशों तथा जैन संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाली अनेक कथा-कहानियों का संकलन है।
0.5
1,880.567865
20231101.hi_11800_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%AE
आगम
अंग (12) : आयारंग, सूयगडं, ठाणांग, समवायांग, भगवती, नायाधम्मकहा, उवासगदसा, अंतगडदसा, अनुत्तरोववाइयदसा, पण्हवागरण, विवागसुय, दिठ्ठवाय।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%AE
आगम
उपांग (12) : ओवाइय, रायपसेणिय, जीवाभिगम, पन्नवणा, सूरियपन्नति, जम्बुद्दीवपन्नति, निरयावलि, कप्पवडंसिया, पुप्फिया, पुप्फचूलिया, वण्हिदसा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%AE
आगम
पइन्ना या प्रकीर्णक (10) : चउसरण, आउरपचक्खाण, भत्तपरिन्ना, संथर, तंदुलवेयालिय, चंदविज्झय, देविंदत्थव, गणिविज्जा, महापंचक्खाण, वोरत्थव।
0.5
1,880.567865
20231101.hi_228134_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3
प्रेक्षण
सी.ए. मोजर ने अपनी पुस्तक ‘सर्वे मैथड्स इन सोशल इनवेस्टीगेशन’ में स्पष्ट किया है कि अवलोकन में कानों तथा वाणी की अपेक्षा नेत्रों के प्रयोग की स्वतन्त्रता पर बल दिया जाता है। अर्थात्, यह किसी घटना को उसके वास्तविक रूप में देखने पर बल देता है। श्रीमती पी.वी.यंग ने अपनी कृति ‘‘सांइटिफिक सोशल सर्वेज एण्ड रिसर्च’’ में कहा है कि ‘‘अवलोकन को नेत्रों द्वारा सामूहिक व्यवहार एवं जटिल सामाजिक संस्थाओं के साथ-साथ सम्पूर्णता की रचना करने वाली पृथक इकायों के अध्ययन की विचारपूर्ण पद्धति के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।’’ अन्यत्र श्रीमती यंग लिखती है कि ‘‘अवलोकन स्वत: विकसित घटनाओं का उनके घटित होने के समय ही अपने नेत्रों द्वारा व्यवस्थित तथा जानबूझ कर किया गया अध्ययन है।’’ इन परिभाषाओं में निम्न बातों पर बल दिया गया है-
0.5
1,879.420679
20231101.hi_228134_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3
प्रेक्षण
(1) अवलोकन का सम्बन्ध कृत्रिम घटनाओं एवं व्यवहारों से न हो कर, स्वाभाविक रूप से अथवा स्वत: विकसित होने वाली घटनाओं से है।
0.5
1,879.420679
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प्रेक्षण
(2) अवलोकनकर्त्ता की उपस्थिति घटनाओं के घटित होने के समय ही आवश्यक है ताकि वह उन्हें उसी समय देख सके।
0.5
1,879.420679
20231101.hi_228134_4
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प्रेक्षण
उपरोक्त परिभाषााओं के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि प्रेक्षण विधि, प्राथमिक सामग्री (Primary data) के संग्रहण की प्रत्यक्ष विधि है। प्रेक्षण का तात्पर्य उस प्रविधि से है जिसमें नेत्रों द्वारा नवीन अथवा प्राथमिक तत्यों का विचाारपूर्वक संकलन किया जाता है। उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर हम प्रेक्षण की निम्न विशेषतायें स्पष्ट कर सकते हैं-
0.5
1,879.420679
20231101.hi_228134_5
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प्रेक्षण
मानवीय इन्द्रियों का पूर्ण प्रयोग- यद्यपि अवलोकन में हम कानों एवं वाक् शक्ति का प्रयोग भी करते हैं, परन्तु इनका प्रयोग अपेक्षाकृत कम होता है। इसमें नेत्रों के प्रयोग पर अधिक बल दिया जाता है। अर्थात्, अवलोकनकर्त्ता जो भी देखता है- वही संकलित करता है।
1
1,879.420679
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प्रेक्षण
उद्देश्यपूर्ण एवं सूक्ष्म अध्ययन- प्रेक्षण विधि सामान्य निरीक्षण से भिन्न होती है। हम हर समय ही कुछ न कुछ देखते रहते हैं, परन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे प्रेक्षण नहीं कहा जा सकता। वैज्ञानिक अवलोकन का एक निश्चित उद्देश्य होता है और उसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुये समाज वैज्ञानिक सामाजिक घटनाओं का अवलोकन करते हैं।
0.5
1,879.420679
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प्रेक्षण
प्रत्यक्ष अध्ययन- प्रेक्षण पद्धति की यह विशेषता है कि इसमें अनुसन्धानकर्त्ता स्वयं ही अध्ययन क्षेत्र में जाकर अवलोकन करता है, और वांछित सूचनाएँ एकत्र करता है।
0.5
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प्रेक्षण
कार्य-कारण सम्बन्धों का पता लगाना- सामान्य प्रेक्षण में प्रेक्षणकर्ता घटनाओं को केवल सतही तौर पर देखता है, जबकि वैज्ञानिक अवलोकन में घटनाओं के बीच विद्यमान कार्य-कारण सम्बन्धों को खोजा जाता है ताकि उनक़े आधार पर सिद्धान्तों का निर्माण किया जा सके।
0.5
1,879.420679
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प्रेक्षण
निष्पक्षता- चूंकि प्रेक्षण में प्रेक्षणकर्ता स्वयं अपनी आँखों से घटनाओं को घटते हुये देखता है, अत: उसके निष्कर्ष निष्पक्ष होते हैं।
0.5
1,879.420679
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चन्द्रपुर
चन्द्रपुर का नज़दीकी हवाई अड्डा नागपुर में डॉ॰ बाबा साहेब अम्बेडकर हवाई अड्डा है जो देश के अनेक शहरों से वायु मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
0.5
1,877.817134
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चन्द्रपुर
मुंबई-वर्धा-चन्द्रपुर रेल लाइन और दिल्ली-चेन्नई मुख्य रेल लाइन से महाराष्ट्र का यह ज़िला जुड़ा है। महाराष्ट्र और पड़ोसी राज्यों के अनेक शहरों से यहाँ के लिए नियमित रेलगाड़ियाँ हैं।
0.5
1,877.817134
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चन्द्रपुर
मुंबई नासिक नागपुर चन्द्रपुर हैदराबाद सड़क मार्ग चन्द्रपुर को महाराष्ट्र और देश के अन्य शहरों से जोड़ता है। राज्य परिवहन के अलावा अनेक निजी बसें चन्द्रपुर के लिए चलती हैं।
0.5
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चन्द्रपुर
प्रमुख रेल तथा सड़क मार्ग पर स्थित यह शहर आसपास के क्षेत्रों में उगने वाले कपास, अनाज और अन्य फ़सलों का वाणिज्यिक केंद्र है।
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1,877.817134
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चन्द्रपुर
स्थानीय खनिजों पर आधारित उद्योगों में कोयले की कई खानें तथा शीशे का सामान बनाने के उद्योग शामिल हैं।
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1,877.817134
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चन्द्रपुर
पर्यटकों के देखने लायक़ यहाँ अनेक ऐतिहासिक मन्दिर और स्मारक हैं। जिसमे चंद्रपुर का 11 किमी लंबा किला-परकोट जो आज भी सुस्थिति मैं है। इस किले की 4 दरवाजे 5 खिड़कियां, 39 बुरुज है जिसपर घूमकर कुछ हिस्से में हम 'हेरिटेज वॉक' किला पर्यटन कर सकते है। साथ 'प्यार का प्रतीक' समझा जानेवाला रानी हिराई निर्मित 'बिरशाह की समाधी', महाकाली मंदिर, अंचलेश्वर मंदिर, मुरलीधर मंदिर तथा अपूर्ण देवालय, प्राचीन बावडिया ऐतिहासिक धरोहरे है।
0.5
1,877.817134
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चन्द्रपुर
यहाँ ताडोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प जो बाघों के उत्तम अधिवास के लिए जाना जाता है, हरसाल लाखो पर्यटक इस प्रकल्प को भेट देते है। बाघों के साथ अन्य वन्यजीव भी यहाँ आने वाले सैलानियों के आकर्षण का केंद्र होते हैं। यह चंद्रपुर के उत्तर में 27 किमी पर ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। इसके 45 किमी दक्षिण में मानिकगढ़ वन पर्यावरण सैरगाह है। यहाँ कई प्रकार के बांस व दूसरे वृक्ष, बाघ, तेंदुआ, जंगली कुत्ते, भालू गौर, सांबर, मुंतजाक हिरन जैसे जानवर व अनेक प्रजातियों के जंगली पक्षी पाए जाते हैं। वरोरा में बाबा आमटे इनकी कर्मभूमि रही आनंदवन भी है, जो चंद्रपुर से महज 40 किमी पर स्थित है।
0.5
1,877.817134
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चन्द्रपुर
चंद्रपुर किला (जिसे पहले चंदा किला कहा जाता था) (आज "पुराना शहर" कहा जाता है), एक किला है जो इराई और ज़ारपत नदियों के संगम पर स्थित है। किले का निर्माण गोंड राजा, खण्डक बल्लाल साह ने करवाया था। किले के चार द्वार हैं: उत्तर में जटपुरा द्वार, पूर्व में अंचलेश्वर द्वार, दक्षिण में पठानपुरा गेट और पश्चिम में बिनबा गेट। किले में चार छोटे द्वार भी हैं, जिन्हें खिड़कियाँ कहा जाता है: उत्तर पूर्व में बगद खिड़की, दक्षिण-पूर्व में हनुमान खिड़की, दक्षिण पश्चिम में विठोबा खिड़की और उत्तर पश्चिम में चोर खिड़की। किले के चारो ओर 15-20 फीट ऊंची मजबूत दीवारें हैं।
0.5
1,877.817134
20231101.hi_471394_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
चन्द्रपुर
महाकाली मंदिर (मंदिर) चंद्रपुर में प्रशिद्ध मंदिर है। प्राचीन मंदिर गोंड राजवंश के धुंडी राम साह द्वारा 16वीं शताब्दी के आसपास बनवाया गया था। मंगलवार विशेष रूप से महत्वपूर्ण दिन हैं। मंदिर के भीतर एक छोटा गणेश मंदिर और एक हनुमान मंदिर है। दो मंदिरों के प्रवेश द्वार पर, पूजा (पूजा) के लिए नारियल, फूल और कपड़े जैसी छोटी दुकानें हैं। मंदिर के पास गृह सजावट और पूजा सजावट के वस्तुएं बेचे जाते हैं। पीछे के प्रवेश द्वार के पास एक शनि मंदिर है।
0.5
1,877.817134
20231101.hi_611373_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96
विलेख
आधार, आधारों, हैबन्डम (Habendum), टैनन्डम (Tenendum), रेडेन्डम (Reddendum), शर्तें और कानूनी समझौता (Covenant)।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96
विलेख
किसी लेनदेन के कानूनी प्रभाव का निर्धारण करते समय जब अस्पष्ट शब्दों का प्रयोग किया गया है तो न्यायालय प्रायः उस निर्वचन को मानता है जो विलेख को सही मानता है, यदि पक्षों ने उसकी वैधता की कल्पना के अनुसार कार्य किया है। सम्पूर्ण विलेख को पढ़ना चाहिए और यथासम्भव उसके प्रत्येक भाग को पूरा करना चाहिए।
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विलेख
विलेख विभिन्न पैराग्राफों में विभक्त होता है। प्रत्येक पैरा साधारण और समझने योग्य भाषा में आवश्यक और सम्बन्धित सूचना से व्यवहार करता है। यदि किसी विशेष मामले में कोई विशेष भाग लागू नहीं होता है तो उसे प्रपत्र में से हटा दिया जाता है। सामान्यतः महत्वपूर्ण भाग निम्न प्रकार हैं -
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विलेख
विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 13 के अनुसार या 'विनिमय-साध्य विलेख' या 'परक्राम्य लिखत' (negotiable instrument) की परिभाषा निम्नलिखित है-
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विलेख
एक विनिमय-साध्य विलेख से तात्पर्य ऐसे प्रतिज्ञा पत्र से है, जिसका भुगतान वाहक को अथवा आदेशानुसार हो सकता है।
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विलेख
विनिमय-साध्य विलेख ऐसा विपत्र है, जिसमे निहित संम्पत्ति किसी व्यक्ति द्वारा सदभाव से और मूल्य के बदले अर्जित की गयी है, चाहे वह किसी ऐसे व्यक्ति से लिया गया है, जिसके स्वामित्व ( ownership ) मे कोई दोष ही क्यों न हो।''
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विलेख
उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि विनिमय-साध्य विलेख का स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति से हस्तानांतरण किया जा सकता है, प्राप्त करने वाले को शुद्ध स्वामित्व प्राप्त होगा, यदि वह निम्न तीन बाते पूरी कर दे-
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विलेख
1. धनादेश या चेक (cheque):- चेक एक प्रकार का विनिमय-पत्र है, जो किसी विशिष्ट बैंकर पर लिखा जाता है तथा मांग पर ही देय होता है।
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विलेख
2. विनिमय-विपत्र (BILL OF EXCHANGE):- विनिमय बिल एक लिखित आदेश होता है, जिस पर लेखक के लिखित हस्ताक्षर होते है, तथा जिसमे निश्चित व्यक्ति को यह आदेश होता है कि वह अमुक ( निश्चित) व्यक्ति को अथवा उसके आदेशानुशर अथवा विलेख वाहक को एक निश्चित धनराशि का भुगतान करे।
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क्रिस्टलकी
मणिभविज्ञान, या क्रिस्टलकी वह विद्या है, जिसमें मणिभों या क्रिस्टलों की आकृति, गुण और संरचना का अध्ययन किया जाता है। 'क्रिस्टल' ग्रीक भाषा के शब्द क्रुस्टालॉस (Krustallos) से व्युत्पन्न है। क्रुस्टोलॉस का मूल अर्थ है "हिम", पर यह शब्द बाद में शैल-क्रिस्टल के लिये, जो क्वार्ट्ज की एक रंगहीन पारदर्शक किस्म है, प्रयुक्त किया जाने लगा। इसके विषय में प्राचीन काल में लोगों की धारणा थी कि यह अत्यधिक ठंढ के कारण पानी के जमने से बनता है। शनै: शनै: "क्रिस्टल" शब्द किसी भी ऐसे खनिज के लिये प्रयुक्त किया जाने लगा, जो स्वभाव से ही साधरण फलकों (faces) से घिरा होता है। यह शब्द अंगूठी में जड़े जानेवाले रत्नों तथा अन्य आभूषणों के लिये प्रयुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनमें जो सुव्यवस्थित समतल फलक दिखाई देते हैं वे प्राकृतिक रीति से नहीं बने हैं, वरन् कृत्रिम हैं। ये फलक काटकर पॉलिश करने के बाद बनाए जाते हैं। सच्चे क्रिस्टल के फलक प्राकृतिक क्रिस्टलन के फलस्वरूप बनते हैं, क्रिस्टलन क्रिया चाहे भूपटल में हुई हो या प्रयोगशाला में। दूसरी अवस्था में किस्टलन के लिये पदार्थ और वातावरण तो मनुष्य द्वारा तैयार किया जाता है, लेकिन क्रिस्टल की वास्तविक रचना तथा उसके विशिष्ट फलकों का विकास मनुष्य के हस्तक्षेप के बिना होता है। ये फलक एक विशेष आंतरिक परमाणु संरचना के फलस्वरूप निर्मित होते हैं। इसी संरचना पर क्रिस्टल के भौतिक गुण निर्भर करते हैं। काँच के बने एक कृत्रिम रत्न में नियमित आंतरिक संरचना नहीं होती है, अत: बाह्य रूप में क्रिस्टल के समान होते हुए भी उसकी गणना क्रिस्टल में नहीं की जाती। अत:, क्रिस्टल की सच्ची पहचान उसके अणुओं के परमाणुओं के नियमित विन्यास द्वारा होती है।
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क्रिस्टलकी
क्रिस्टल एक सम पिंड है, जो प्राय: ठोस होता है और चारों ओर से चिकने समतल फलकों से, विशिष्ट सिद्धांतों के आधार पर, घिरा रहता है। इसके भौतिक गुण निश्चित रहते हैं। इसके बाह्य रूप और भौतिक गुण दोनों ही नियमित आंतरिक संरचना के बाहरी परिचायक हैं। अधिकतर खनिज, जो उपयुक्त अवस्थाओं के अंतर्गत बनते हैं, क्रिस्टल होते हैं।
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क्रिस्टलकी
कुछ ऐसे पदार्थ हैं, जिन्हें हम तरल क्रिस्टल कहते हैं। यद्यपि इनमें नियमित परमाण्वीय विन्यास का प्रमाण मिलता है, तथापि ये सच्चे ठोस नहीं है। दूसरी ओर कुछ ऐसे ठोस खनिज हैं, जिनमें नियमित परमाण्वीय संरचना नहीं मिलती। इन्हें रवाहीन (Amorphous) कहते हैं। कुछ क्रिस्टल बहुत ही छोटे होते हैं। इनके फलकों का विकास सूक्ष्मदर्शी की सहायता से भी नहीं स्पष्ट होता। इन्हें गूढ़ क्रिस्टली (Cryptocrystalline) कहते हैं। साधारणत: क्रिस्टलीय शब्द किसी भी ऐसे पदार्थ के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है जिसमें परमाणु एक नियमित रूप में व्यवस्थित रहते हैं, लेकिन क्रिस्टल शब्द उन्हीं क्रिस्टलीय पदार्थों के लिये प्रयोग में लाया जाता है जो चारों ओर से समतल फलकों से घिरे होते हैं। क्रिस्टल का आकार क्रिस्टलन-समय पर निर्भर करता है। क्रिस्टलन जितना धीरे-धीरे होगा, क्रिस्टल उतने ही बड़े बनेंगे। जब क्रिस्टजन जल्दी होता है, तब अणुओं को विकास केंद्र की ओर अधिक संख्या में जाने का अवसर नहीं मिलता। इस कारण बड़े-बड़े क्रिस्टलों की रचना नहीं हो पाती है। साथ ही श्यानता (viscoity) बढ़ने के कारण अणुओं की गतिविधि भी धीमी पड़ जाती है।
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क्रिस्टलकी
विलयन, गलन (fusion) और वाष्पन तीनों अवस्थाओं में क्रिस्टलन हो सकता है। एक विलयन में क्रिस्टल की रचना "विलायक" (solvent) के वाष्पीकरण से, विलायक का ताप गिर जाने से, अथवा दबाव कम हो जाने से होती है। इस प्रकार नमक के क्रिस्टल, सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन से, तीनों में से किसी भी विधि से बन सकते हैं। इसी प्रकार उसी संघटन के पिघले द्रव्य से क्रिस्टल की रचना हो सकती है। जल से हिम क्रिस्टल की रचना तथा पिघले हुए मैग्मा से आग्नेय शैल की रचना इसके साधारण उदाहरण हैं। पिछले उदाहरण में ज्यों-ज्यों तरल मैग्मा ठंडा होता जाता है, उसमें विद्यमान खनिज अणुओं के समुदाय बनाते हैं और अंतत: पिंडित शैल के खनिज अवयवों का निर्माण करते हैं। वाष्प से क्रिस्टल की रचना अपेक्षाकृत दुर्लभ है। इसके उदाहरण हैं, वायुमंडल के जलवाष्प से बने हिम क्रिस्टल और ज्वालामुखी से संबंधित गरम पानी के झरनों से निकले गंधकमय वाष्प से बने गंधक क्रिस्टल।
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क्रिस्टलकी
खनिज विज्ञान के अध्ययन में क्रिस्टलकी का महत्वपूर्ण योग है। भूपटल में पाए जानेवाले खनिज प्राय: समांग क्रिस्टलीय ठोस होते हैं। इनमें अधिकतर सुविकसित क्रिस्टल की आकृतियाँ, जो आंतरिक आण्विक संरचना से संबद्ध हैं, मिलती हैं। इनमें हीरा, लाल, नीलम, पन्न, पुखराज, ऐमिथिस्ट आदि रत्न खनिज विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन क्रिस्टलीय खनिजों को, जिनमें क्रिस्टल की आकृतियाँ नहीं दिखाई देती हैं, घिसकर पतले टुकड़े निकाले जाते हैं और उनका ध्रुवण सूक्ष्मदर्शी के द्वारा परीक्षण किया जाता है। इस परीक्षण द्वारा उन खनिजों में विद्यमान क्रिस्टलीय सममिति के कुछ तत्त्वों का ज्ञान हो जाता है, जिसके आधार पर उन खनिजों की आंतरिक आणविक अव्यवस्था, जिसपर खनिज के क्रिस्टल की आकृति निर्भर करती है, खनिज के भौतिक और प्रकाशीय (optical) गुणों का आधार भी है।
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क्रिस्टलकी
यह विज्ञान ठोस कार्बनिक तथा अकार्बनिक यौगिकों के अध्ययन में समान रूप से उपयोगी है। इनमें से बहुत से यौगिकों में क्रिस्टलकी आकृतियाँ बनती हैं, जो उनके पहचानने में सहायता देती है।
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क्रिस्टलकी
उन क्रिस्टलीय पदार्थों का जिनमें आसानी से पहचान में आनेवाली क्रिस्टल आकृतियाँ नहीं दिखाई देतीं, या जो क्रिस्टलकोणमापी (goniometer) द्वारा अध्ययन के लिये बहुत छोटे हैं, एक्सरे (X-ray) द्वारा विश्लेषण किया जाता है। इस प्रकार कुछ विधियों से प्राप्त फोटोग्राफ के प्रतिरूपों (patterns) की, आतंरिक क्रिस्टलीय सममिति के आधार पर, व्याख्या की जाती है, जिससे उन्हें पहचानने में लाभ उठाया जाता है। क्रिस्टल किसी विशेष लाभ प्रतिरूप की इकाई की पुनरावृत्ति से बना एक नियमित समुदाय है। अत: इस इकाई की सममिति संबंधित पदार्थ के क्रिस्टल की बाहरी सममिति की द्योतक है।
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क्रिस्टलकी
क्रिस्टलन का अध्ययन धातुकर्म (metallurgy) के लिये अपरिहार्य है। कुछ धातुएँ, जैसे सोना, चाँदी और ताँबा, जो भूपटल में शुद्ध तत्वों के रूप में प्राप्त होती हैं, क्रिस्टलीय स्वरूप दिखलाती हैं, लेकिन उन कुछ धातुओं की, जो खनिजों से निकाली जाती हैं, बाह्य आकृतियाँ क्रिस्टलन विधि को नहीं बतलाती। इन धातुओं की आंतरिक संरचना और सममिति अध्ययन के लिये सरंचना क्रिस्अलकी (structural crystallography) की विधियों को उपयोग में लाया जाता है।
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क्रिस्टलकी
इन विधियों का उपयोग आजकल मृत्तिका खनिजों (clay minerals) के अध्ययन में भी किया जा रहा है, जिनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति से मिट्टी के वे गुण ज्ञात होते हैं जिनसे निश्चित होता है कि वह मिट्टी पोर्सलीन और चीनी मिट्टी के बरतन बनाने के लिये उपयोगी है या नहीं। ये खनिज बहुत छोटे छोटे कणों से लेकर कोलाइडी (colloidal) माप के आकार में प्राप्त होते हैं तथा तीन वर्गों में विभाजित किए गए हैं। एक्स-रे विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि ये खनिज क्रिस्टलीय हैं। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के द्वारा, जिसमें एक लाख गुना आवर्धन होता है, इनमें से बहुत से क्रिस्टलों की बाह्य आकृतियाँ देखी गई हैं।
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वर्णलेखन
मिश्रण के विभाजन के लिए सामूहिक शब्द से प्रयोगशाला तकनीकों का एक सेट आता है। मिश्रण को मोबाइल चरण नामक एक तरल पदार्थ में भंग किया जाता है, जो एक अन्य सामग्री के माध्यम से किया जाता है जिसे संरचना स्थिर चरण कहा जाता है। मिश्रण के विभिन्न घटक अलग-अलग गति में यात्रा करते हैं, उनके अलग होने के कारण। पृथक्करण मोबाइल और स्थिर चरणों के बीच अंतर पर आधारित है। स्थिर चरण पर अंतर बनाए रखने में यौगिक का विभाजन गुणांक परिणाम।
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वर्णलेखन
क्रोमैटोग्राफी प्रारंभिक या विश्लेषणात्मक हो सकता है। प्रारंभिक क्रोमैटोग्राफी के प्रयोजन के लिए और अधिक उन्नत उपयोग के लिए एक मिश्रण के घटकों को अलग करने के लिए हैं (और इस प्रकार शुद्धि का एक रूप है)। एनालिटिकल क्रोमैटोग्राफी आम तौर पर एनालेट्स के सापेक्ष अनुपात को मापने के लिए अवयवों की थोड़ी मात्रा और मिश्रण में किया जाता है। दो परस्पर अनन्य। आणविक अणु का निरंतर आणविक गति के दो चरणों के बीच आदान-प्रदान नहीं किया जाता है। एक विशेष विलेय पदार्थ के लिए, वितरण चलती तरल पदार्थ के पक्ष में है, फिर अणु अपना अधिकांश समय धारा के साथ भागकर और अन्य प्रजातियों से दूर ले जाएंगे जिनके अणुओं को स्थिर चरण से लंबे समय तक सुरक्षित रखा जाएगा। दी गई प्रजातियों के लिए, कई बार यह चलती है और निश्चित क्षेत्रों में व्यय के अनुपात को इन क्षेत्रों में इसकी एकाग्रता के अनुपात के रूप में जाना जाता है, जिसे विभाजन गुणांक के रूप में जाना जाता है। (एक ठोस चरण शामिल होने पर अक्सर शब्द सोखना इज़ोटेर्म का उपयोग किया जाता है।) इस प्रणाली में एक सीमित क्षेत्र या संकीर्ण क्षेत्र (मूल) में विलेय का मिश्रण पेश किया जाता है, जिसे विभिन्न प्रजातियों की दिशा में अलग-अलग दरों पर लिया जाता है, जिसमें तरल बहाव होता है। प्रेरणा बल विघटित पदार्थ के प्रवास के लिए गतिमान द्रव है, और प्रतिरोधक बल स्थिर अवस्था के लिए विघटित पदार्थ की समानता है; विश्लेषक के रूप में इन बलों का संयोजन, अलगाव को अलग करता है।
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वर्णलेखन
क्रोमैटोग्राफी से क्रॉस ड्रेन के रूप में परिभाषित कई पृथक्करण तकनीकों में से एक। वैद्युतकणसंचलन इस समूह का एक और सदस्य है। इस मामले में, वास्तविक शक्ति एक विद्युत क्षेत्र है, जो विभिन्न आयनिक आवेशों के विलायक पर विभिन्न बल लगा रहा है। प्रतिरोधक बल नैनफ्लोविन विलायक की चिपचिपाहट है। इन बलों आयनों का संयोजन प्रत्येक विलेय के लिए विषम जुटाता है।
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वर्णलेखन
क्रोमैटोग्राफी जैविक और रासायनिक क्षेत्रों में कई आवेदन किया है। यह व्यापक रूप से जुदाई और जैविक मूल के रासायनिक यौगिकों की पहचान के लिए जैव रासायनिक अनुसंधान के क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है। पेट्रोलियम उद्योग में तकनीक हाइड्रोकार्बन का जटिल मिश्रण का विश्लेषण करने के लिए कार्यरत है।प्रारंभिक घटनाक्रमों
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वर्णलेखन
क्रोमैटोग्राफी की पहली विशुद्ध रूप से व्यावहारिक आवेदन जल्दी डाई दवा की दुकानों, जो एक डाई वैट में तार या कपड़े या फिल्टर पेपर के टुकड़े सूई से उनके डाई मिश्रण का परीक्षण किया था। डाई समाधान केशिका क्रिया द्वारा डाला सामग्री को चले गए, और डाई घटकों के अलग अलग रंग के बैंड का उत्पादन किया। 19 वीं सदी में, कई जर्मन दवा की दुकानों जानबूझकर किए गए प्रयोगों घटना का पता लगाने के लिए। उन्होंने कहा, उदाहरण के लिए, फिल्टर कागज के एक टुकड़े के केंद्र पर अकार्बनिक यौगिकों के समाधान छोड़ने के द्वारा गाढ़ा रंग के छल्ले के विकास; एक ग्रंथ 1861 में प्रकाशित किया गया था फ्रेडरिक Goppelsröder द्वारा विधि का वर्णन है और यह नाम दे "केशिका विश्लेषण।"
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%A8
वर्णलेखन
क्रोमैटोग्राफी को पहली बार 1900 में इटली में जन्मे वैज्ञानिक मिखाइल त्सेवेट द्वारा खोजा गया था। उन्होंने 20 वीं शताब्दी के पहले दशक में क्रोमैटोग्राफी के साथ काम करना जारी रखा, मुख्य रूप से क्लोरोफिल , कैरोटीन और ज़ैंथोफिल जैसे पौधे रंजक के पृथक्करण के लिए। । चूंकि इन घटकों के अलग-अलग रंग हैं (क्रमशः हरे, नारंगी, और पीले), उन्होंने तकनीक को इसका नाम दिया। 1930 और 1940 के दशक के दौरान विकसित नए प्रकार की क्रोमैटोग्राफी ने तकनीक को कई पृथक्करण प्रक्रियाओं के लिए उपयोगी बना दिया।
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वर्णलेखन
1940 और 1950 के दशक के दौरान आर्चर जॉन पोर्टर मार्टिन और रिचर्ड लॉरेंस मिलिंगटन सिंज के काम के परिणामस्वरूप क्रोमैटोग्राफी तकनीक काफी हद तक विकसित हुई, जिसके लिए उन्होंने रसायन विज्ञान में 1952 का नोबेल पुरस्कार जीता। उन्होंने विभाजन क्रोमैटोग्राफी के सिद्धांतों और बुनियादी तकनीकों की स्थापना की, और उनके काम ने कई क्रोमैटोग्राफिक तरीकों के तेजी से विकास को प्रोत्साहित किया: पेपर क्रोमैटोग्राफी , गैस क्रोमैटोग्राफी , और जिसे उच्च प्रदर्शन तरल क्रोमैटोग्राफी के रूप में जाना जाता है। तब से, प्रौद्योगिकी तेजी से आगे बढ़ी है। शोधकर्ताओं ने पाया कि Tsvet के क्रोमैटोग्राफी के मुख्य सिद्धांतों को कई अलग-अलग तरीकों से लागू किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप क्रोमैटोग्राफी की विभिन्न किस्में नीचे दी गई हैं। अग्रिम लगातार क्रोमैटोग्राफी के तकनीकी प्रदर्शन में सुधार कर रहे हैं, जिससे तेजी से समान अणुओं के अलगाव की अनुमति मिलती है। भांग की शक्ति का परीक्षण करने के लिए एक विधि के रूप में क्रोमैटोग्राफी को भी नियोजित किया गया है।
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वर्णलेखन
घटकों के अंतर जुदाई में स्थिर और मोबाइल चरण के परिणाम की ओर अनालैत्त् के विभिन्न घटकों के अंतर समानताएं (आसंजन की ताकत): विभिन्न घटकों के अलग होने का सिद्धांत। 'सोखना' और 'घुलनशीलता': आत्मीयता, बारी में, अणु की दो संपत्तियों से निर्धारित होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%A8
वर्णलेखन
हम कैसे अच्छी तरह से मिश्रण का एक घटक स्थिर चरण के लिए लाठी की संपत्ति के रूप सोखना परिभाषित कर सकते हैं, जबकि घुलनशीलता कैसे अच्छी तरह से मिश्रण का एक घटक मोबाइल चरण में घुल की संपत्ति है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%90%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%89%E0%A4%B2
ऐल्कोहॉल
ऐल्कोहॉल (अंग्रेज़ी: Alcohol), कार्बनिक यौगिक से एक या एक से अधिक हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन एक या एक से अधिक -O-H समूह द्वारा कर दिया जाए तो बनने वाले यौगिक अल्कोहल कहलाते है। यौगिक मे उपस्थित -OH समूह की संख्या के आधार पर इसे चार भागो मे बाँटा गया है।
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ऐल्कोहॉल
मोनो हाइड्रिक अल्कोहल :- जब कार्बनिक यौगिक से एक हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन एक -OH समूह द्वारा कर दिया जाता है तो इससे प्राप्त अल्कोहल मोनो हाइड्रिक अल्कोहल कहलाती है। इसे जल का मोनो एल्किल व्युत्पन्न माना जाता है। इसका सामान्य सूत्र CnH2n+1OH है।
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ऐल्कोहॉल
प्राथमिक ऐल्कोहॉल :- जब प्राथमिक कार्बन से हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन -OH समूह द्वारा कर दिया जाता है तो प्राथमिक अलकोहल बनता है। जैसे :- मेथेनॉल।
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ऐल्कोहॉल
द्वितीयक ऐल्कोहॉल :- जब द्वितीयक कार्बन से हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन -OH समूह द्वारा कर दिया जाता है तो द्वितीयक अल्कोहल बनता है। जैसे :- 2-प्रोपेनॉल
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ऐल्कोहॉल
तृतीयक ऐल्कोहॉल :- जब तृतीयक कार्बन से हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन -OH समूह द्वारा कर दिया जाता है तो तृतीयक अल्कोहल बनता है। जैसे :- मेथिल प्रोपेन 2-ऑल।
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ऐल्कोहॉल
एल्कीन के जलयोजन से:- जब एल्कीन पर जल की अभिक्रिया तनु H2SO4 की उपस्थिति में की जाती है तो अल्कोहल बनता है।
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ऐल्कोहॉल
ग्रीन्यार अभिकर्मक से :- ग्रीन्यार अभिकर्मक पर जब ऑक्सीज़न की क्रिया की जाती है तो योगत्पाद बनता है, जिसका जल योजन करवाने पर अल्कोहल बनता है।
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ऐल्कोहॉल
उद्योग में मेथिल एल्कोहल तथा एथिल एल्कोहल का प्रमुख स्थान है। कुछ समय पहले तक व्यापारिक मात्रा में मेथिल ऐल्कोहल केवल लकड़ी के शुष्क आसवन द्वारा ही प्राप्त किया जाता था। इस विधि में लकड़ी को लोहे के बड़े-बड़े बकयंत्रों (रिटॉर्टों) में, जिनमें शीतक लगे रहते हैं, हवा की अनुपस्थिति में ५००° सेंटीग्रेड पर गर्म करने से निम्नलिखित पदार्थ बनते हैं :
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ऐल्कोहॉल
(क) काष्ट गैंस यह गैसों का मिश्रण तथा एक उपयोगी ईधंन है। इसमें मिथेन, कार्बन मोनोक्साइड और हाइड्रोजन की मात्रा अधिक तथा एथेन, अथिलीन और ऐसिटिलीन की मात्रा कम होती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A0
जोशीमठ
कुछ लोगों के अनुसार जोशीमठ शहर 3,000 वर्ष पुराना है जिसके महान धार्मिक महत्त्व को यहां के कई मंदिर दर्शाते हैं। यह बद्रीनाथ गद्दी का जाड़े का स्थान है यह बद्रीनाथ मंदिर के जाड़े का बद्रीनाथ गद्दी एवं बद्रीनाथ का पहुंच शहर है। यात्रियों के लिये यह कुछ असामान्य आकर्षण पेश करता है, जैसे प्रिय औली रज्जुमार्ग तथा चढ़ाई के अवसर जो प्राचीन एवं पौराणिक स्थलों के अलावा होता है।
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जोशीमठ
जोशीमठ में प्रवेश करते ही आपके सामने सड़क के किनारे एक छोटा झरना जोगी झरना आता है। इसे जोगी झरना इसलिये कहा जाता है क्योंकि कई योगी एवं साधु झील के ठंडे जल में यहां स्नान करने के लिये रूकते हैं।
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जोशीमठ
जोशीमठ के संकडी मुख्य सड़क तथा प्रमुख बाजार का निर्माण निश्चय ही आज के भारी आवाजाही के लिये नहीं हुआ था। तीर्थयात्रियों एवं यात्रियों से लदे विशाल पर्यटक बसें, गाड़ियां सभी प्रकार एवं आकार की कारें बद्रीनाथ की यात्रा पर यहां तांता बांध देते हैं तथा कुछ जगहों पर रास्ता अवरोध के कारण परिवहन की कठिनाइयां आ जाती हैं, क्योंकि सड़क इतना ही चौड़ा होता है कि आराम से दो कारें ही एक-दूसरे को पार कर सकती हैं। जोशीमठ के पुलिस कर्मचारी परिवहन सेवा कायम रखने का अच्छा कार्य करते हैं, जहां कभी-कभी एक-दूसरे से टकराने से एक बाल की दूरी पर ही इन्हें बचा लिया जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A0
जोशीमठ
मुख्य सड़क के ऊपर पुराना शहर बसा है जहां ज्योतिर्मठ, कल्पवृक्ष तथा आदि शंकराचार्य के पूजास्थल की गुफा है और इसके नीचे बद्रीनाथ की ओर बाहर निकलने पर जोशीमठ के दो प्रमुख आकर्षण नरसिंह मंदिर तथा वासुदेव मंदिर स्थित हैं।
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जोशीमठ
कुछ दूरी तक जोशीमठ के यात्रियों एवं वासियों के जीवन को यहां की द्वार प्रणाली द्वारा नियमित किया जाता है। बद्रीनाथ के लिये गाड़ियां 6-7, 9-10, 11-12 बजे दिन तथा 2-3 एवं 4.30-5.30 बजे दोपहर बाद छूटती हैं। गेट खुलने का समय जैसे ही निकट होता है तो नरसिंह मंदिर के पास पुलिस चौकी से लगभग मुख्य सड़क तक गाड़ियों की सर्पिली पंक्ति बनने लगती है। गर्मियों में एक द्वार पर लगभग 300 गाड़ियां इकट्ठा हो जाती हैं। इसी समय रास्ते पर फेरी वाले व्यस्त हो जाते हैं जो एक गाड़ी से दूसरी गाड़ी के बीच चाय, हल्का नाश्ता, शाल, स्वेटर तथा मनके बेचते हैं। बद्रीनाथ से जैसे ही परिवहन शहर में आता है तो मुख्य सड़क बाजार पर फिर जाम हो जाता है। शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान जाते हुए आपको गेट का ध्यान रखना पड़ता है, ताकि आप ट्रैफिक में न फंसें।
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जोशीमठ
आता-जाता रज्जुमार्ग जोशीमठ से औली को जोड़ता है जो गर्मी एक सुंदर बुगियाल तथा जाड़े में स्की ढलान होता है, तथा यह भारत का सबसे लंबा 4.15 किलोमीटर मार्ग है। 6,000 फीट से 10,200 फीट ऊंचाई पर कार्यरत यह दूसरा सबसे ऊंचा मार्ग भी है। 3 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से यह 22 मिनट में पहुंच जाता है। गर्मियों में 8 बजे सुबह से 6.50 शाम तक तथा जाड़ों में 8 बजे सुबह से 4.30 बजे शाम तक कार्यरत है एवं इसका भाड़ा वर्षभर 400 रूपये प्रति व्यक्ति होता है। वर्ष 1992 में यह रज्जुमार्ग जीएमवीएन ने चालू किया जो बहुत सफल हुआ।
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जोशीमठ
जबकि जाड़ों में रज्जुमार्ग स्कीईंग के गंभीर इच्छा रखने वाले को ही औली क्रीड़ा के लिये ले जाता है जो प्रतिदिन 50-75 लोग होते हैं, पर गर्मियों में वैसे यात्री होते हैं जो केवल आनंद सैर के लिये औली जाते हैं। गर्मियों में 400-500 यात्रियों द्वारा इसका इस्तेमाल होता है। शहर की एक प्रमुख विशेषता द्रोणगिरी, कामेत, बरमाल, माना, हाथी-घोड़ी-पालकी, मुकेत, बरथारटोली, नीलकंठ एवं नंदा देवी जैसे पर्वतों के मनोरम दृश्य होते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A0
जोशीमठ
कहा जाता है कि 8वीं सदीं में सनातन धर्म का पुनरूद्धार करने आदि शंकराचार्य जब उत्तराखंड आये थे तो उन्होंने इसी शहतूत पेड़ के नीचे जोशीमठ में पूजा की थी। यहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि उन्होंने राज-राजेश्वरी को अपना ईष्ट देवी माना था और इसी पेड़ के नीचे देवी उनके सम्मुख एक ज्योति या प्रकाश के रूप में प्रकट हुई तथा उन्हें बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की मूर्ति को पुनर्स्थापित करने की शक्ति तथा सामर्थ्य प्रदान किया। जोशीमठ, ज्योतिर्मठ का बिगड़ा स्वरूप है, जो इस घटना से संबद्ध है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A0
जोशीमठ
अब यह पेड़ 300 वर्ष पुराना है तथा इसके तने 36 मीटर में फैले हैं। यह भी कहा जाता है कि यह पेड़ वर्षभर हरा-भरा रहता है एवं इससे पत्ते कभी नहीं झड़ते। पेड़ के ठीक नीचे आदि शंकराचार्य की गुफा है तथा इसमें आदि गुरू की एक मानवाकार मूर्ति स्थापित है।
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किर्गिज़स्तान
किर्गिज गणराज्य का कुल क्षेत्रफल 198500 वर्ग किलोमीटर है जिसमें से 65 प्रतिशत तयानि शान और पामीर के पर्वतीय क्षेत्र हैं। 1606 मीटर की ऊंचाई पर असम्यक कौल की खारी झील स्थित है जो दुनिया में इस प्रकार की दूसरी सब से बड़ी झील है। गुरग़ीज़ी भाषा में इस के मानी "गर्म झील" हैं क्योंकि इतने बर्फ़ानी इलाके में और इस ऊंचाई पर होने के बावजूद यह साल भर जमती नहीं है।
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किर्गिज़स्तान
इस नमकीन झील के इतर, यह क्षेत्र, अन्य मध्य एशियाई राष्ट्रों के प्रकार ही पूर्ण रूप से शुष्क जलवायु वाला है। इस की सीमा किसी समुंद्र से नहीं मिलतीं।
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किर्गिज़स्तान
यहाँ स्वर्ण और अन्य बहुमूल्य खनिज सीमित मात्रा में प्रस्तुत हैं। पहाड़ों से घिरे हुए इस देश में मात्र 8 प्रतिशत क्षेत्र ही कृषि योग्य है, जो कि नदियों की घाटियों में है।। इन घाटियों में से किर्गिजिया की दो बड़ी नदियाँ , कारओ- नदी (काली नदी) और नारीन गुज़रते हैं। इन के संगम से सियाओ नदी निकलती है।
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किर्गिज़स्तान
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, किर्गिस्तान का पूर्वी भाग, जो मुख्य रूप से इस्किक-कुल क्षेत्र है, को तारबागताई की संधि के माध्यम से किंग चीन द्वारा रूसी साम्राज्य को सौंप दिया गया था। क्षेत्र, जिसे तब रूसी में "किर्गिज़िया" के रूप में जाना जाता था, को औपचारिक रूप से 1876 में साम्राज्य में शामिल किया गया था। रूसी अधिग्रहण को कई विद्रोहों के साथ मिला था, और किर्गिज़ के कई लोगों ने पामीर पर्वत और अफगानिस्तान को स्थानांतरित करने का विकल्प चुना था।
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किर्गिज़स्तान
इसके अलावा, मध्य एशिया में रूसी शासन के खिलाफ 1916 के विद्रोह के दमन ने बाद में कई किर्गिज़ को चीन में स्थानांतरित कर दिया। चूंकि इस क्षेत्र में कई जातीय समूह (और अभी भी हैं) पड़ोसी राज्यों के बीच विभाजित थे जब सीमाएं अधिक छिद्रपूर्ण और कम विनियमित थीं, इसलिए पहाड़ों पर आगे और पीछे बढ़ना आम था, जहां जीवन बेहतर माना जाता था; इसका मतलब अत्याचार के दौरान चारागाह या बेहतर सरकार के लिए बेहतर बारिश हो सकती है।
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किर्गिज़स्तान
सोवियत सत्ता शुरू में 1919 में इस क्षेत्र में स्थापित की गई थी, और कारा-किर्गिज़ ऑटोनॉमस ओब्लास्ट रूसी एसएफएसआर के भीतर बनाया गया था (वाक्यांश कारा-किर्गिज़ का उपयोग किया गया था जब तक कि 1920 के मध्य तक रूसियों ने उन्हें कज़ाकों से अलग करने के लिए, जो भी थे किर्गिज़ के नाम से जाना जाता है)। 5 दिसंबर 1936 को, Kirghiz सोवियत समाजवादी गणराज्य सोवियत संघ के एक घटक संघ गणराज्य के रूप में स्थापित किया गया था।
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किर्गिज़स्तान
1920 के दशक के दौरान, किर्गिस्तान सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक जीवन में काफी विकसित हुआ। साक्षरता में बहुत सुधार हुआ, और एक मानक साहित्यिक भाषा रूसी को आबादी पर थोपकर पेश की गई। आर्थिक और सामाजिक विकास भी उल्लेखनीय था। जोसेफ स्टालिन के तहत राष्ट्रवादी गतिविधि के दमन के बावजूद किर्गिज़ राष्ट्रीय संस्कृति के कई पहलुओं को बरकरार रखा गया था।
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किर्गिज़स्तान
ग्लासगोस्ट के शुरुआती वर्षों में किर्गिस्तान में राजनीतिक जलवायु पर बहुत कम प्रभाव पड़ा। हालांकि, रिपब्लिक के प्रेस को अधिक उदार रुख अपनाने और एस्टाबल…
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8
किर्गिज़स्तान
किर्गिस्तान में इस्लाम मुख्य धर्म है, लेकिन संविधान धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। किर्गिस्तान इस्लाम के साथ एक बहु जातीय और बहु धार्मिक देश है (सुन्नी, शिया और अहमदीया सहित), बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म (रूसी रूढ़िवादी चर्च, रोमन कैथोलिक धर्म, और सातवें दिन के एडवेंटिस्ट चर्च समेत), यहूदी धर्म और अन्य धर्म सभी देश में उपस्थिति है। किर्गिस्तान में सुन्नी इस्लाम मुख्य धर्म है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2
हड़ताल
प्रथम महायुद्ध से पूर्व भारतीय मजदूर अपनी माँगोंको मनवाने के लिए हड़ताल का सुचारु रूप से प्रयोग करना नहीं जानते थे। इसका मूल कारण उनकी निरक्षरता, जीवन के प्रति उदासीनता और उनमें संगठन तथा नेतृत्व का अभाव था। प्रथम महायुद्ध की अवधि तथा विशेषकर उसके बाद लोकतंत्रीय विचारों के प्रवाह ने, सोवियत क्रांति ने, समानता, भ्रातृत्व और स्वतंत्रता के सिद्धांत की लहर ने तथा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने मजदूरों के बीच एक नई चेतना पैदा कर दी तथा भारतीय मजदूरों ने भी साम्राज्यवादी शासन के विरोध, काम की दशाओं, काम के घंटे, छुट्टी, निष्कासन आदि प्रश्नों को लेकर हड़तालें की।
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1,850.506952
20231101.hi_26324_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2
हड़ताल
कहा जाता है की अंग्रेजी हुकूमत के सामने सत्य के जितने प्रयोग हुए,वो सभी सफल हुए .जबकि हिंसात्मक कदम समाज को और जन जीवन को छिन्न भिन्न करने वाले ही साबित हुए. जब सविनय सत्याग्रह के मंडल की शुरुआत भी नहीं हुयी थी तब कलकत्ता जैसे महानगर में “हडताल” जैसे शब्द का जन्म हुआ और उसके नामकी सही सार्थकता करने का सम्मान भोई जाती के हिस्सेदारी में गयी. इतिहाश के पन्नो में “हडताल” के आविश्कार का यस ओरिस्सा के भोई लोगो को मिला.
0.5
1,850.506952
20231101.hi_26324_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2
हड़ताल
कहाजाता है की १८२७ के मई महीने की बहुत गर्मी के दिनो मे कलकत्ता में पहली “हडताल” हुयी, जो पूरे भारत में पहली “हडताल” थी.उस समय लोगोको गाड़ी या पालखी बिना नहीं चलता था. श्रीमंतो की श्रीमंताईका उनकी गाड़ी से लोग पता लगते थे. और पैसेवाले की पहचान पालखी से होती थी.उस समय अंग्रेजो के शाशन काल में तबके पुलिस कमिश्नरने कायदा बनाया, पालखी उठानेवाले या गाड़ी खिचनेवाले बिना लायसेंस यह काम नहीं कर सकते.जबकि किराये के मामले में अंग्रेज खुद के उपयोग्के समय जो भी किराया दे वो बेहिचक स्वीकार कर लो.
0.5
1,850.506952
20231101.hi_26324_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2
हड़ताल
कायदे का यह खेल गाड़ी-पालखी वाहको को असहनीय हो गया .कम आवक में से लायसंस की फ़ीस भी देना वो भी भरी भोझ बन गया. कहाजाता है की ये पालखी उठानेवाले और गाड़ी खीचनेवाले भोई जाती के थे. और उन्होंने संगठित होकर “हडताल” की .पालखी या गाड़ी के बिना एक कदम भी नहीं रखते थे .अंग्रेजो को यह “हडताल” तकलीफदेह लगने लगी. सलंग चार दिन तक यह “हडताल” चली. अंग्रेजो ने एस “हडताल” को ख़तम करने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार से दुसरे भोई लोगो को बुलाया और यह काम उन्हें सौंप दिया .जिससे सभी हडतालियो की हिम्मत टूट गयी.
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हड़ताल
युरोपियन ब्राउन ने फिर चार पहिये की गाड़ी बनवाई उसमे दो घोड़े जोड़ दिए ,(जिसे बग्गी या तांगा कहते थे. यह देखकर “हडताल” वालो ने अपनी “हडताल” वापस की और मजबूरी में फिर से काम शुरू किया.
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हड़ताल
भारत में सर्वप्रथम हड़ताल बंबई की "टेक्सटाइल मिल" ने 1874 में हुई। तीन वर्ष उपरांत "इंप्रेस मिल्स" नागपुर के श्रमिकों ने अधिक मजदूरी की माँग की पूर्ति न होने के फलस्वरूप हड़ताल की। 1882 से 1890 तक बंबई एवं मद्रास ने हड़तालों की संख्या 25 तक पहुँच गई। 1894 में अहमदाबाद में श्रमिकों ने एक सप्ताह के स्थान पर दो सप्ताह पश्चात् मजदूरी देने के विरोध में हड़ताल का सहारा लिया, जिसमें 8000, बुनकरों ने भाग लिया परंतु हड़ताल असफल रही। दूसरी बड़ी हड़ताल मई, 1897 में बंबई के श्रमिकों ने दैनिक मजदूरी देने की प्रथा समाप्त कर देने के विरोध में की। यह भी असफल रही। उद्योगों में वृद्धि के फलस्वरूप बंबई एवं मद्रास में 1905 से 1907 तक काफी हड़तालें हुईं। 1905 में कलकत्ता के भारतीय सरकारी प्रेस के श्रमिकों ने निम्नांकित माँगों की पूर्ति के लिए हड़ताल की :
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हड़ताल
यह हड़ताल लगभग एक मास तक चली। दो वर्ष उपरात समस्तीपुर रेलकर्मचारियों ने अधिक मजदूरी की माँग में हड़ताल की। 1908 में बबंई के टेक्सटाइल मिलों के श्रमिकों ने श्री बालगंगाधर तिलक के जेल भेजे जाने के फलस्वरूप हड़ताल की। इसके अतिरिक्त 1910 में बंबई में हड़तालें हुईं।
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हड़ताल
1930-1938 के मध्य भी अधिक हड़तालें हुईं। परंतु इनकी संख्या पिछले वर्षों से अपेक्षाकृत काफी कम थी। 1938 के द्वितीय महायुद्ध की विभीषिका से पुन: एक बार श्रमिकों की आर्थिक दशा पर कुठाराघात किया गया। फलस्वरूप इनकी दशा और दयनीय हो गई। तत्पश्चात् 1940 में 322 तथा 1942 में 694 हड़तालें हुई। 1942 से 1946 के मध्य भी हड़तालें होती रहीं जिनमें जुलाई, 1946 की डाक एवं तार विभाग के कर्मचारियों की आम हड़ताल अधिक महत्वपूर्ण है। इनका मूल कारण मजदूरी एवं महँगाई भत्ता में वृद्धि करना था।
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हड़ताल
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार ने संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने के अनेक प्रयास किए। परंतु दिन प्रतिदिन महँगाई बढ़ने से श्रमिकों में असंतोष की ज्वाला कम न हुई। उदाहरणस्वरूप केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल, एयर इंडिया इंटरनेशनल के पाइलटों की हड़ताल, स्टेक बैंक एवं अन्य व्यापारिक बैंकों के कर्मचारियों की हड़ताल, हेवी इलेक्ट्रिकल, भोपाल के कर्मचारियों की हड़ताल, पोर्ट एवं डाक के मजदूरों की हड़ताल, राउरकेला, दुर्गापुर, भिलाई एवं हिंदुस्तान स्टील प्लांट के श्रमिकों की हड़ताल तथा अन्य छोटे बड़े उद्योगों ही हड़तालें विशेष महत्व की हैं। इनसे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की अधिक क्षति पहुँची है।
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मानविकी
19वीं सदी के उत्तरार्ध से मानविकी के लिए एक केंद्रीय औचित्य यह रहा है कि यह आत्म-प्रतिबिंब को सहयोग देता है और इसे प्रोत्साहित करता है, एक ऐसा आत्म-प्रतिबिम्ब जो बदले में व्यक्तिगत चेतना और/या नागरिक कर्तव्य की एक सक्रिय भावना को विकसित करने में मदद करता है।
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मानविकी
विल्हेम डिल्थी और हैंस-जॉर्ज गैडेमर ने मानविकी द्वारा प्राकृतिक विज्ञान से स्वयं को अलग करने की कोशिश को मानव जाति द्वारा स्वयं के अनुभवों को समझने की चेष्टा के रूप में वर्णित किया है। उन्होंने दावा किया कि यह समझ एक जैसी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के समान विचार वाले लोगों को एक साथ जोड़ती है और दार्शनिक अतीत के साथ सांस्कृतिक निरंतरता की भावना प्रदान करती है।
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मानविकी
बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध और इक्कीसवीं सदी की शुरूआत में विद्वानों ने उस "व्याख्यात्मक कल्पना" को किसी व्यक्ति द्वारा अपने व्यक्तिगत सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ के बाहर किये गए अनुभवों के आंकड़ों को समझने की क्षमता तक विस्तारित किया है। व्याख्यात्मक कल्पना के माध्यम से यह दावा किया जाता है कि मानविकी के विद्वान और छात्र, जहाँ हम रहते हैं उस बहुसांस्कृतिक दुनिया के लिए एक अधिक अनुकूल विवेक विकसित करते हैं। यह विवेक एक धैर्यवान रूप ले सकता है जो कहीं अधिक प्रभावी आत्म-प्रतिबिम्ब की अनुमति देता है या एक सक्रिय सहानुभूति में विस्तार लेता है जो नागरिक कर्तव्यों के वितरण की सुविधा प्रदान करता है जिसमें विश्व के एक जिम्मेदार नागरिक को अवश्य संलग्न होना चाहिए। हालांकि मानविकी का अध्ययन किसी व्यक्ति पर जिस स्तर का प्रभाव डाल सकता है और क्या मानववादी उद्यम में उत्पन्न समझ "लोगों पर पहचान योग्य सकारात्मक प्रभाव" की गारंटी दे सकता है या नहीं, इस बात पर असहमति है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80
मानविकी
मानवीय अध्ययन और प्राकृतिक विज्ञानों के बीच विभाजन, मानविकी में भी अर्थ के तर्कों के बारे में बताता है। प्राकृतिक विज्ञानों से मानविकी को अलग करने वाली कोई निश्चित विषय वस्तु नहीं बल्कि किसी भी प्रश्न को देखने का तरीका होता है। मानविकी अर्थ, उद्देश्य और लक्ष्य को समझने पर केन्द्रित होती है और घटनाओं के कारण की व्याख्या करने या प्राकृतिक विश्व के सच को उजागर करने की बजाय - "सत्य" को ढूँढने की व्याख्यात्मक पद्वति - विलक्षण ऐतिहासिक और सामाजिक घटनाओं के मूल्यांकन को प्रोत्साहित करती है। अपने सामाजिक अनुप्रयोगों के अलावा व्याख्यात्मक कल्पना इतिहास, संस्कृति और साहित्य के पहले समझे गए अर्थ की पुनर्व्याख्या का महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
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मानविकी
कल्पना, किसी कलाकार या विद्वान के विभिन्न उपकरणों के अंग के रूप में एक ऐसे माध्यम की तरह काम करती है जो दर्शकों की प्रतिक्रिया को आमंत्रित करती है। चूँकि एक मानविकी विद्वान सदैव जीवन में घटित अनुभवों के बंधन में रहता है, इसलिए किसी भी तरह का "निरपेक्ष" ज्ञान सैद्धांतिक रूप से संभव नहीं है; यहाँ ज्ञान, विषय वस्तु को पढ़े जाने के संदर्भ की रचना और पुनर्रचना की एक अंतहीन प्रक्रिया है। उत्तर संरचनावाद ने अर्थ, वैचारिकता और लेखन के प्रश्नों पर आधारित मानविकी अध्ययन की समझ को समस्याग्रस्त किया है। रोनाल्ड बर्थेस द्वारा लेखक की मृत्यु की घोषणा के मद्देनज़र विभिन्न सौद्धान्तिक धाराएं जैसे कि विखंडन और संवाद विश्लेषण मानविकी अध्ययन के संभावित अर्थपूर्ण अभिप्राय और हर्मिन्यूटिक विषयों दोनों की ही रचना में आदर्शों और साहित्यिक शब्द आडम्बर को उजागर करने की कोशिश करती हैं। इस रहस्योद्घाटन ने मानविकी की व्याख्यात्मक संरचनाओं की आलोचना के लिए के द्वार खोले हैं। मानविकी विद्वता अवैज्ञानिक है और इसलिए अपने प्रासंगिक अर्थों की परिवर्तनशील प्रकृति के कारण आधुनिक विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम मे शामिल करने योग्य नहीं है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80
मानविकी
स्टेनले फिश की तरह कुछ लोग यह दावा करते हैं कि मानविकी उपयोगिता के दावों से इनकार करके अपना सबसे बेहतर बचाव कर सकती है। (फिश इतिहास और दर्शन की बजाय मुख्यतः साहित्यिक अध्ययन के बारे में सोच रहे होंगे). मानविकी को बाहरी फायदों जैसे कि सामाजिक उपयोगिता (जैसे बढ़ी हुई उत्पादकता) या व्यक्ति पर उद्दात्त प्रभाव (जैसे बढ़ी हुई बुद्धिमत्ता या पूर्वाग्रह में कमी) के नज़रिए से न्यायसंगत साबित करना तर्करहित है, फिश के अनुसार यह महत्त्वपूर्ण अकादमिक विभागों पर असंभव अपेक्षाएं डालता है। इसके अलावा आलोचनात्मक वैचारिकता जो कि असंदिग्ध रूप से मानविकी प्रशिक्षण का परिणाम है, इसे अन्य प्रसंगों में अर्जित किया जा सकता है। और मानविकी एक तरह की सामाजिक मोहर (जिसे समाजशास्त्री कभी-कभी "सांस्कृतिक पूंजी" कहते हैं) भी नहीं दे सकीं जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद समूह शिक्षा के काल से पूर्व पश्चिमी समाज में कामयाबी में सहायक होती.
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