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20231101.hi_228478_48
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मानविकी
इसकी बजाय फिश जैसे विद्वान यह सुझाते हैं कि मानविकी एक अनूठे प्रकार का आनंद प्रदान करती हैं, एक ऐसा आनंद जो ज्ञान की सामूहिक खोज पर आधारित है (तब भी जब यह केवल विषयगत ज्ञान हो। यह आनंद अवकाश के बढ़ते निजीकरण और पश्चिमी संस्कृति की क्षणिक तृप्ति के चरित्र के विरुद्ध है; इसलिए यह जर्गेन हेबरमॉस की सामाजिक स्तर की अवहेलना और मध्यमवर्गीय सार्वजनिक क्षेत्र में होने वाले प्रयास के लिए आवश्यक पूर्व के निर्विवाद क्षेत्रों की विवेकपूर्ण समस्याकरण की अपेक्षाओं को पूरा करता है। तब इस दलील में केवल आनंद की अकादमिक खोज ही आधुनिक पश्चिमी उपभोक्ता समाज में निजी और सार्वजानिक क्षेत्र के बीच एक कड़ी प्रदान कर सकती है और उस सार्वजनिक क्षेत्र को मज़बूत कर सकती है जो कई सैद्धान्तिकों के अनुसार आधुनिक लोकतंत्र की नींव है।
0.5
1,842.593199
20231101.hi_228478_49
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मानविकी
मानविकी का समर्थन करने वाले इन तर्कों में से कई में मानविकी के जन समर्थन के विरुद्ध तर्कों का बनना अंतर्निहित है। जोसेफ कैरोल जोर देकर कहते हैं कि हम एक परिवर्तनशील दुनिया में रहते हैं, एक ऐसी दुनिया जिसमें "वैज्ञानिक साक्षरता" "सांस्कृतिक पूँजी" की जगह ले रही है और जिसमें पुनर्जागरण मानविकी विद्वानों के काल्पनिक विचार पुराने हो गए हैं। इस तरह के तर्क मानविकी की अनिवार्य अनुपयोगिता के संबंध में निर्णयों और चिंताओं को आकर्षक लगते हैं, विशेषकर एक ऐसे युग में जब साहित्य, इतिहास और कला के विद्वानों के लिए "प्रयोगशील वैज्ञानिकों के साथ सहयोगपूर्ण कार्य" में शामिल होना या यहाँ तक कि सामान्य रूप से "अनुभवजन्य विज्ञान के निष्कर्षों का समझदारी भरा प्रयोग" प्रकट रूप से आवश्यक रूप से महत्त्वपूर्ण है। यह विचार कि "आज के समय और युग में" जहाँ सारा ध्यान कार्य कुशलता और व्यवहारिक उपयोगिता पर केन्द्रित है, मानविकी के विद्वान पुराने पड़ रहे हैं, इसका सार एक टिप्पणी में शायद सबसे ज़ोरदार तरीके से प्रस्तुत किया गया है जिसका श्रेय कृत्रिम बौद्धिकता के विशेषज्ञ मार्विन मिन्स्की को दिया जाता है: "उस पूरे धन से जो हम मानविकी और कला पर बर्बाद कर रहे हैं - वह धन मुझे दो और मैं तुम्हे एक बेहतर छात्र बना दूंगा".
0.5
1,842.593199
20231101.hi_228478_50
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80
मानविकी
तकीनीकी ज्ञान की श्रेष्ठता पर मिन्स्की के विश्वास और उनके द्वारा आज के मानविकी विद्वानों को कर डॉलर से समर्थित अतीत के पुराने पड़ चुके अवशेष जी.आई. बिल के दिनों को भोलेपन से याद करने वाली अव्यवहारिकता के स्तर तक गिराना, उन विद्वानों और सांस्कृतिक समीक्षकों द्वारा दिए गए तर्कों को प्रतिबिंबित करता है जो स्वयं को उत्तर-मानवतावादी या ट्रांसह्युमनिस्ट कहते हैं। विचार यह है कि मानव की वैज्ञानिक समझ की वर्तमान प्रवृत्ति "मनुष्य" की मूल श्रेणी पर ही प्रश्न चिन्ह लगा रही है। ऐसी प्रवृत्ति के उदाहरण में शामिल हैं, संज्ञानात्मक वैज्ञानिकों का दावा कि मस्तिष्क एक कंप्यूटर मात्र है, अनुवांशिकी वैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य स्वतः उत्पन्न होने वाले जींस द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला क्षण भंगुर भूसा मात्र है (या यहाँ तक कि मीमेस, कुछ उत्तर आधुनिक भाषाविदों के अनुसार) या जैव-इंजीनियरों के अनुसार जो यह दावा करते हैं कि एक दिन मनुष्य-जानवर के संकर को उत्पन्न करना संभव और वांछनीय हो जाएगा. पुरानी शैली की मानविकी विद्वता से जुड़ने की बजाय विशेष रूप से ट्रांसह्युमनिस्ट, संज्ञानात्मक विज्ञान और जैव इंजीनियरी के क्षेत्रों में परीक्षण और हमारी मानसिक तथा शारीरिक क्षमताओं की सीमाओं के परिवर्तन पर ध्यान देने की प्रवृत्ति रखते हैं ताकि उन अनिवार्य शारीरिक सीमाओं के परे जाया जा सके जिन्होंने मानवता को परिबद्ध किया हुआ है। हालांकि मानविकी की विद्वता के अप्रचलित हो जाने की आलोचना के बावजूद कई सबसे अधिक प्रभावशाली मानवता उपरांत की रचनाएं फिल्म और साहित्यिक आलोचना, इतिहास और सांस्कृतिक अध्ययन के साथ अत्यंत गहराई से संलग्न हैं जैसा कि डोना हारावे और एन. कैथरीन हेल्स के लेखन में देखा जा सकता है। और हाल के वर्षों में मानवतावादी अध्ययन के महत्त्व को फिर से स्पष्ट करने वाली पुस्तकों और आलेखों की एक बाढ़ सी आ गयी है। उदाहरणों में शामिल हैं: हैरोल्ड ब्लूम, हाउ टू रीड एंड व्हाय (2001), हैंस उलरिक गम्ब्रेक्ट, प्रोडक्शन ऑफ प्रेजेंस (2004), फ्रैंक बी. फारेल, व्हाय डज लिटरेचर मैटर? (2004), जॉन केरी, व्हाट गुड आर द आर्ट्स? (2006), लीज़ा ज़ुन्शाइन, व्हाय वी रीड फिक्शन (2006), एलेक्जेंडर नेहामास, वनली ए प्रोमिस ऑफ हैप्पीनेस (2007), रीता फेल्स्की, यूजेज ऑफ लिटरेचर (2008).
0.5
1,842.593199
20231101.hi_486527_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%95
कपोतक
कपोतक (डव, डौकी, Dove) एक पक्षी है, जो कबूतरों (कोलंबिडी गण, Order columbidae) का निकट संबंधी है। यह पँड़की, फाखता, पंडुक और सिरोटी के नाम से भी प्रसिद्ध है एवं बुंदेलखंड में इसे डौकी अथवा डिउकी भी कहा जाता है।
0.5
1,835.235146
20231101.hi_486527_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%95
कपोतक
कपोतक ,डौकी 12 इंच तक लंबे, भोले भाले पक्षी होते हैं। इनकी प्रकृति, स्वभाव तथा अन्य बातें कपोतों से मिलती जुलती होती हैं। कपोत (कबूतर) की तरह ये भी अनाज और बीज आदि से अपना पेट भरते हैं और इन्हीं की भाँति इनका अंडा देने का समय भी साल में दो बार आता है। तब मादा अपने मचान-नुमा, तितरे बितरे घोंसले में दो सफ़ेद अंडे देती है।
0.5
1,835.235146
20231101.hi_486527_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%95
कपोतक
1. धवर (रिंग डव, Ring Dove)-यह कद में सब कपोतकों से बड़ा और राख के रंग का होता है जिसके गले में काला कंठा सा रहता है।
0.5
1,835.235146
20231101.hi_486527_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%95
कपोतक
2. काल्हक (टर्टल डव, Turtle Dove)-यह धवर से कुछ छोटा और भूरे रंग का होता है। इसके ऊपरी भाग पर काली चित्तियाँ और चिह्न पड़े रहते हैं।
0.5
1,835.235146
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%95
कपोतक
3. चितरोखा (स्पॉटेड डव, Spotted Dove)-यह काल्हक से कुछ छोटा, परंतु सबसे सुंदर होता है। इसके अगले ऊपरी काले भाग में सफेद बिंदियाँ और पिछले भूरे भाग में कत्थई चित्तियाँ पड़ी रहती हैं।
1
1,835.235146
20231101.hi_486527_5
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कपोतक
4. टूटरूँ (ब्राउन डव, Stock Dove)-यह उपर्युक्त तीनों कपोतकों से छोटा होता है। इसका ऊपरी भाग भूरा और छाती से नीचे का भाग सफेद रहता है। गले पर काली पट्टी रहती है जिसपर सफेद बिंदियाँ रहती हैं।
0.5
1,835.235146
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%95
कपोतक
5. ईंटकोहरी (रेड टर्टल डव, Red Turtle Dove)-इसका रंग ईंट जैसा और कद सबसे छोटा होता है। पूँछ के नीचे का भाग सफेद और गले में काला कंठा रहता है।
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1,835.235146
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%95
कपोतक
6. स्टॉक डव (Stock Dove)-यह धवर से कुछ छोटा होता है, परंतु रंग उससे कुछ गाढ़ा होता है। इसके गले में धवर की तरह कंठा नहीं रहता। इसकी मादा पेड़ों के कोटरों में अंडे देती है।
0.5
1,835.235146
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%95
कपोतक
7. कॉलर्ड (Collared) या बारबरी डव (Barbary Dove)-यह उत्तरी अमरीका का प्रसिद्ध कपोतक है जिसके शरीर का रंग चंदन के समान और गले में काला कंठा रहता है।
0.5
1,835.235146
20231101.hi_228569_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A5%8D
संध्यावन्दनम्
स्वयं शब्द संध्या का उपयोग दैनिक अनुष्ठान के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है जिसका आशय दिन के आरंभ और अस्त के समय इन अर्चनाओं का किया जाना है।
0.5
1,833.249152
20231101.hi_228569_4
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संध्यावन्दनम्
वेदों की ऋचाओं तथा श्लोकों के आधार पर आवाहन आदि करके गायत्री मंत्र का २८, ३२, ५४ या १०८ बार जाप करना संध्योपासन का अभिन्न अंग है (यह संध्यावंदन कर रहे व्यक्ति पर निर्भर करता है। वह किसी भी संख्या में मंत्र का जाप कर सकता है। "यथाशक्ति गायत्री मंत्र जपमहं करिष्ये।" ऐसा संध्यावन्दन के संकल्प में जोड़कर वह यथाशक्ति मंत्र का जाप कर सकता है।)। मंत्र के अलावा संध्या अनुष्ठान में विचारों को भटकने से रोकने तथा ध्यान को केंद्रित करने के लिए कुछ अन्य शुद्धिकारक तथा प्रारंभिक अनुष्ठान हैं। इनमें से कुछ में ग्रहों और हिन्दू पंचांग के महीनों के देवताओं को संध्यावंदन न कर पाने तथा पिछली संध्या के बाद से किए गए पापों के प्रायश्चित स्वरूप में जल अर्पित किया जाता है। इसके अतिरिक्त एक संध्यावंदन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठानों में प्रातः सूर्य की तथा सायं वरुण की मित्रदेव के रूप में पूजा की जाती है।
0.5
1,833.249152
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संध्यावन्दनम्
पूजा के अन्य पहलुओं में जो कि मुख्यतः संध्यावंदना में शामिल नहीं है, जिनमें ध्यान मंत्रों का उच्चारण (संस्कृतः जप) तथा आराधक द्वारा देवी-देवताओं की पूजा शामिल है। ध्यान-योग से संबंध के बारे में मोनियर-विलियम्स लिखते हैं कि यदि इसे ध्यान की क्रिया माना जाए तो संध्या शब्द की उत्पत्ति का संबंध सन-ध्याई के साथ हो सकता है।
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1,833.249152
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संध्यावन्दनम्
संध्याकर्म का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है क्योंकि इससे मानसिक शुद्धि होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से प्राणायाम जो संध्या का अभिन्न अंग है, इससे कई रोग समाप्त हो जाते हैं। इस समस्त संसार में जो द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) अपने कर्म (स्वकर्म) से भटक गए हैं, उनके हेतु संध्या की आवश्यकता है। संध्या करने वाले पापरहित हो जाते हैं। संन्ध्योपासन से अज्ञानवश किये गए पाप समाप्त हो जाते हैं।
0.5
1,833.249152
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संध्यावन्दनम्
संध्या को ब्राह्मण का मूल कहा गया है। अगर मूल नहीं तो शाखा आदि सब समाप्त हो जाता है। अतः संध्या महत्वपूर्ण है।
1
1,833.249152
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संध्यावन्दनम्
विप्रोवृक्षोमूलकान्यत्रसंध्यावेदाः शाखा धर्मकर्माणिपत्रम्। तस्मान्मूलं यत्नतोरक्षणीयं छिन्नेमूलेनैववृक्षो न शाखा।।
0.5
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संध्यावन्दनम्
जो ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्यादि संध्या नहीं करते हैं वह अपवित्र कहे गए हैं। उनके समस्त पूण्यकर्म समाप्त हो जाते हैं।
0.5
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संध्यावन्दनम्
सर्वप्रथम तो शास्त्रोक्त विधि से स्नानशौचाचार कर, तिलक, भष्म, पवित्रीधारण, कुशोत्पाटन आदि करके प्रातः की पहली संध्या करना चाहिये।
0.5
1,833.249152
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संध्यावन्दनम्
शास्त्रों में संध्याकाल का निर्धारण भी हुआ है जिसके अनुसार ही संध्योपासन फलित होता है। अकाल की संध्या वन्ध्या स्त्री जैसी होती है।
0.5
1,833.249152
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बोलिविया
बोलीविया दक्षिण अमेरिका के मध्य क्षेत्र में 57°26'–69°38'पश्चिम और 9°38'–22°53'दक्षिण के बीच स्थित है। 1,098,581 वर्ग किलोमीटर (424,164 वर्ग मील) के क्षेत्रफल के साथ, बोलीविया दुनिया का 28वाँ सबसे बड़ा देश है, और दक्षिण अमेरिका का पांचवां सबसे बड़ा देश है। देश का भौगोलिक केंद्र, रिओ ग्रांडे पर तथाकथित प्वेर्टो एस्ट्रेला ("स्टार पोर्ट") है, जो सांताक्रूज विभाग के उफ्फलो डी चावेज़ प्रांत में है।
0.5
1,828.139586
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बोलिविया
देश का भूगोल इलाके और जलवायु में एक बड़ी विविधता प्रदर्शित करते है। बोलीविया में जैव विविधता का उच्च स्तर है, साथ ही दुनिया में सबसे सम्पन्न में से एक माना जाता है, साथ ही साथ आल्टिप्लानो, उष्णकटिबंधीय वर्षावन (अमेज़ॅन वर्षावन सहित), शुष्क घाटियों और चिक्विटानिया जैसे पारिस्थितिक उप-इकाइयों के साथ कई पारिक्षेत्र उपस्थित है, जैसे कि उष्णकटिबंधीय सवाना। यहाँ क्षेत्रों के ऊंचाई में भारी भिन्नताएं देखी जा सकती है, जैसे नेवाडो साजमा, समुद्र तल से 6,542 मीटर (21,463 फीट) की ऊंचाई पर है जबकी पैराग्वे नदी के साथ लगे क्षेत्र 70 मीटर (230 फीट) की ऊंचाई पर हैं। हालांकि महान भौगोलिक विविधता का देश, प्रशांत महासागर के युद्ध के बाद से बोलीविया एक स्थलरूध्द देश बना हुआ है।
0.5
1,828.139586
20231101.hi_13291_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
बोलिविया
एंडियन क्षेत्र- दक्षिणपश्चिम में एंडियन क्षेत्र राष्ट्रीय क्षेत्र का 28% हिस्सा है, जोकि 307,603 वर्ग किलोमीटर (118,766 वर्ग मील) से अधिक है। यह क्षेत्र 3,000 मीटर (9,800 फीट) की ऊंचाई से ऊपर स्थित है और अमेरिका के दो सबसे ऊंचे स्थानों नेवाडो सजमा, 6,542 मीटर (21,463 फीट) की ऊंचाई और इलिमानी, 6,462 मीटर (21,201 फीट) के साथ दो बड़े एंडियन पर्वतमाला, कॉर्डिलेरा ओसीडेंटल ("वेस्टर्न रेंज") और कॉर्डिलेरा सेंट्रल ("सेंट्रल रेंज") के बीच स्थित है। कॉर्डिलेरा सेंट्रल में टिटिकाका झील भी स्थित है, जो दुनिया की सबसे बड़ी वाणिज्यिक रूप से नौकायन योग्य झील और दक्षिण अमेरिका की सबसे बड़ी झील है; झील पेरू के साथ साझा की जाती है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अल्टीप्लानो और सालार डी उयुनी हैं, जो दुनिया में सबसे बड़ा नमक सपाट क्षेत्र और लिथियम का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
0.5
1,828.139586
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
बोलिविया
उप-एंडियन क्षेत्र - देश के मध्य और दक्षिण में उप-एंडियन क्षेत्र आल्टिप्लानो और पूर्वी लानोस (मैदान) के बीच एक मध्यवर्ती क्षेत्र है; यह बोलीविया के क्षेत्र का 13% हिस्सा है, जो 142,815 किमी 2 (55,141 वर्ग मील) से अधिक है, और बोलीवियन घाटियों और युंगस क्षेत्र को शामिल करता है। यह अपनी कृषि गतिविधियों और समशीतोष्ण जलवायु के लिये प्रसिद्ध है।
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1,828.139586
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बोलिविया
लानोस क्षेत्र या मैदानी क्षेत्र - पूर्वोत्तर में लानोस क्षेत्र 648,163 किमी2 (250,257 वर्ग मील) के क्षेत्र के साथ देश का 59% हिस्सा बनाता है। यह कॉर्डिलेरा सेंट्रल के उत्तर में स्थित है और अंडेन तलहटी से पैराग्वे नदी तक फैली हुई है। यह मैदानी भूमि और छोटे पठारों का एक क्षेत्र है, जो व्यापक जैव विविधता वाले व्यापक वर्षा वनों से ढका हुआ हैं। यह क्षेत्र समुद्र तल से 400 मीटर (1,300 फीट) से ऊपर है।
1
1,828.139586
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बोलिविया
बोलीविया में नौ प्रांतो के रुप में प्रशानित हैं। बोलिवियाई राजनीतिक संविधान के अनुसार, स्वायत्तता और विकेंद्रीकरण का कानून केंद्र सरकार और स्वायत्त संस्थाओं के बीच प्रत्यक्ष भूमिकाओं के हस्तांतरण और वितरण के नियमों के स्वायत्तता के विस्तार के लिए प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
0.5
1,828.139586
20231101.hi_13291_16
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बोलिविया
विकेन्द्रीकरण के चार स्तर हैं: विभागीय सरकार, विभागीय विधानसभा द्वारा गठित, विभाग के कानून पर अधिकार के साथ। राज्यपाल सार्वभौमिक मताधिकार द्वारा चुना जाता है। नगर पालिका द्वारा गठित नगरपालिका सरकार, नगर पालिका के कानून पर अधिकार के साथ। महापौर सार्वभौमिक मताधिकार द्वारा चुना जाता है। एक विभाग के भीतर भौगोलिक निरंतरता के कई प्रांतों या नगर पालिकाओं द्वारा गठित क्षेत्रीय सरकार चुना जाता है। यह एक क्षेत्रीय असेंबली द्वारा गठित किया गया है। मूल स्वदेशी सरकार, प्राचीन क्षेत्रों पर मूल स्वदेशी लोगों का स्वशासन है जहाँ वे रहते हैं।
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बोलिविया
बोलीविया का अनुमानित 2018 सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) आधिकारिक विनिमय दर पर 40.73 अरब डॉलर और क्रय शक्ति समानता पर 88.86 अरब डॉलर था। आर्थिक विकास का अनुमान लगभग 5.2% था, और मुद्रास्फीति का अनुमान लगभग 6.9% था। बोलीविया में टिन, चांदी, और अन्य खानों और प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल के बड़े भंडार होने के बावजूद, यह लैटिन अमेरिका के सबसे गरीब राष्ट्रों में से एक है। आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोकेन के स्रोत कोका की अवैध फसल उगा कर अपना जीवन यापन करते है; 1990 के दशक के अंत में शुरू होने वाले एक सरकारी उन्मूलन कार्यक्रम ने उन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है जहां कोका की फसल महत्वपूर्ण जीविका थी। सोयाबीन, कॉफी, कपास, मक्का, गन्ना, चावल, और आलू यहाँ की अन्य प्रमुख फसलें हैं; लकड़ी उद्योग भी काफी महत्वपूर्ण है। उद्योग खनन और प्रगलन, पेट्रोलियम परिष्करण, खाद्य प्रसंस्करण, और छोटे पैमाने पर विनिर्माण तक ही सीमित है। टिन उद्योग को दक्षिण-पूर्व एशिया से प्रतिस्पर्धा मिली है, और नतीजतन कई टिन के खदान बंद हो गई हैं। हालांकि बोलीविया में बहुत अधिक जलविद्युत क्षमता है, जिसक बहुत कम उपयोग किया जाता है।
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बोलिविया
बोलीविया सरकार ने मूल्य स्थिरता बनाए रखने, निरंतर विकास की स्थिति बनाने और 1985 से गरीबी को कम करने के उद्देश्य से व्यापक आर्थिक स्थिरीकरण और संरचनात्मक सुधार का एक दूरगामी कार्यक्रम लागू किया है। कई सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का पूंजीकरण बोलीविया अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन है। 1996 में ब्राजील ने गैस पाइपलाइन के निर्माण की सुविधा प्रदान करने के लिए हाइड्रोकार्बन अन्वेषण, उत्पादन और परिवहन में शामिल बोलीवियन राज्य तेल निगम (वाईपीएफबी) की तीन इकाइयां को पूंजी प्रदान की थीं। सरकार के पास 2019 के मध्य तक ब्राजील को 30 मिलियन घन मीटर प्राकृतिक गैस प्रति दिन बेचने का दीर्घकालिक बिक्री समझौता है।
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बठिंडा
ये माना जाता है कि राजपूत राजा भुट्टा ने बठिंडा शहर को लखी जंगल में तीसरी सदी में स्थापित किया था। तब दो किले बठिंडा और भटनेर का निर्माण राजपूत भुट्टा राजाओं ने करवाया था फिर भटिंडा शहर को बराहो नें हडप लिया था। बाल राओ भट्टी नें फिर इसे ९६५ में हासिल किया और तब इसका नाम बठिंडा पड़ा (उन्हीं के नाम पर)। यह राजा जयपाल की राजधानी भी रही है।
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बठिंडा
१००४ में घज़नी के महमूद नें इसका किला छीन लिया। फिर मुहमद घोरी नें हमला किया और बठिंडा का किला छीन लिया। फिर राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान नें १३ महीनों के बाद तगडी लडाई के पश्चात इसे फिर से जीता।
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बठिंडा
रजिया सुलतान, भारत की पहली महिला शासक बठिंडा में april १२४० में कैद की गई थी। उसे अलतुनिया की कोशिशों द्वारा औगस्त में (उसी साल में) वहाँ से छुडा लिया गया। रजिया और अलतुनिया की शादी हुई लेकिन वे कैठल के पास चोरों द्वारा १३ औकटूबर को मारे गये।
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बठिंडा
सिद्धू बरारों को लोदी के शासन में बठिंडा से निकाल दिया गया था लेकिन बाबर के शासन में वापिस स्थान दे दिया गया था। कुछ सालों बाद, रूप चन्द नाम के सिख्ख पंजाब के इतिहास में आये। रूप चंद जी के लडके फूल नें लंगर की प्रथा चलाई और १६५४ के आस पास एक किला बनाया।
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बठिंडा
यह ईट का बना सबसे पुराना और ऊंचा स्मारक है। इसका इतिहास थोड़ा अद्भुत है। राजा बैनपाल जो कि भाटी राजपूत थे, इस किले का निर्माण लगभग 1800 साल पहले करवाया था। इसी किले में पहली महिला शासिका रजिया सुलतान को 1239 ईसवीं में कैद कर लिया गया था। रजिया सुलतान को उसके गर्वनर अल्तूनिया ने कैद किया था। दसवें सिख गुरू, गुरू गोविन्द सिंह इस किले में 1705 के जून माह में आए थे और इस जगह की सलामती और खुशहाली के लिए प्रार्थना की थी।
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बठिंडा
पटियाला राज्य के महाराजा आला सिंह ने इस किले को 1754 में अपनी अधीन कर लिया था। और इस किले का नाम गोविन्दघर कर दिया गया। लेकिन जल्द ही इस जगह को बकरामघर के नाम से बुलाने जाने लगा। इस किले के सबसे ऊपर गुरूद्वारे का निर्माण करवाया गया है। इस गुरूद्वारे का निर्माण पटियाला के महाराजा करम सिंह ने करवाया था।
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बठिंडा
बाहिया किले का निर्माण 1930 में मुख्य किले के सामने किया गया था। इस किले का निर्माण एस. बलवन्त सिंह सिद्धू ने करवाया था। इसके अलावा यहां पटियाला राज्य के महाराजा भूपेन्द्र सिंह की सेना का स्थानीय कार्यालय था। लेकिन अब यह चार सितारा होटल में बदल चुका है।
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बठिंडा
बठिंडा झील पर्यटकों की पसंदीदा जगहों में से एक है जहाँ पर्यटक बोटिंग और वाटर स्कूटर का मज़ा लेने आते हैं। यहाँ के कश्मीरी शिकारस पर्यटकों के मुख्य आकर्षण का केंद्र है। इस झील की हरियाली यहाँ पर आने वाले सैलानीयों का मन मोह लेती है।
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बठिंडा
बठिंडा में देश के सबसे अच्छे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स हैं, जैसे मित्तल मॉल, सिटी सेंटर मॉल, पेंनिन्सुला मॉल और सिटी वॉक मॉल हैं जहाँ स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटक भी घूमते हैं। इन मॉल में एक ही छत के नीचे प्रसिद्ध ब्रांडों की दुकानों के साथ फ़ूड रेस्टोरेन्ट भी हैं।
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प्रत्यायोजन
परिस्थितियों के विस्तार एवं मात्रा की मांग है कि कुछ मात्रा में सत्ता का प्रत्यायोजन हो तथा अधिकतर कार्य वहीं पर निपटा लिए जाए जहां पर वह उत्पन्न होते है। प्रशासनिक उलझनों के चलते जो विलम्ब होता है उससे बचने के लिए यह आवश्यक है कि प्रशासनिक निर्णय केवल मुख्यालयों में लिए जाने के बजाए क्षेत्रीय प्रस्थापनाओं में भी लिए जाँए। सत्ता के प्रत्यायोजन का अर्थ निश्चय ही अत्यधिक कार्य से युक्त अधिकारियों को राहत, अधीनस्थों को भावी कार्यों के लिए प्रशिक्षण, उत्तरदायित्व की उच्चतर भावना तथा कर्मचारियों का उठा हुआ मनोबल है।
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प्रत्यायोजन
निम्नलिखित तथ्यों से प्रत्यायोजन की आवश्यकता अत्यधिक बढ़ी है और यह तथ्य प्रत्यायोजन के महत्व को भी स्पष्ट करते है:
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प्रत्यायोजन
(1) शीघ्र निर्णय के लिए : प्रशासकीय संगठन के विभिन्न स्तरों पर कुछ ऐसे कार्य होते है जिनमें शीघ्र निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। सत्ता का प्रत्यायोजन इस कार्य को सरल बना देता है क्योंकि अधीनस्थों को भी सीमित क्षेत्र में निर्णय लेने का अधिकार सौप दिया जाता है। छोटे–छोटे कार्यों के सम्बन्ध में तुरन्त निर्णय ले लिये जाते हैं। कभी-कभी प्रशासकीय संगठनों में कुछ ऐसी आपातकालीन परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जिसके लिए आपातकालीन निर्णय की आवश्यकता होती है। अपने मुख्यालय से आदेश प्राप्त करने में इतना समय लग जाता है कि बहुत देर हो चुकी होती है, अत: ऐसी परिस्थिति में प्रत्यायोजित अधिकारी शीघ्र निर्णय लेने में समर्थ होते हैं।
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प्रत्यायोजन
(2) मितव्ययता एवं कुशलता : प्रत्यायोजन से निर्णयों में शीघ्रता आती है क्योंकि निर्णय के प्रशासनिक स्तर कम हो जाते हैं। शीघ्र तथा प्रभावी निर्णयों से संगठन में मितव्ययता और कुशलता में वृद्धि होती है। कार्यों तथा अधिकारों का विभाजन होने से उच्चाधिकारी के सामने नियत्रंण और निर्देशन की स्पष्टता रहती है।
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प्रत्यायोजन
(3) कार्यों का बोझ कम करने के लिए : वर्तमान समय में विभिन्न देशों में न सिर्फ जनसंख्या में व्यापक वृद्धि हुई है बल्कि कार्यों का बोझ निरन्तर बढ़ता ही गया है। सरकारी प्रशासन पर इतने कार्य बढ गये हैं वह किसी भी विभाग का कार्य किसी एक अधिकारी के द्वारा सम्पन्न नहीं करा सकता है। पदसोपान पर स्थित विभिन्न प्राधिकारों में सत्ता का हस्तान्तरण आवश्यक हो जाता है ताकि कार्यों के बोझ को हल्का किया जा सके।
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प्रत्यायोजन
(4) समय की बचत : उच्च सत्ताधारी के पास संगठन या इकाई की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ होती हैं। इन जिम्मेदारियों में नीति–निर्धारण तथा नियोजन प्रमुख है। प्रत्यायोजन के अन्तर्गत उच्चाधिकारी द्वारा महत्व के कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य अधीनस्थ को सौप दिये जाते हैं, जिससे उच्चाधिकारी को महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सरलता रहती है तथा कार्यों का निष्पादन आसानी से हो जाता है।
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प्रत्यायोजन
(5) प्रशिक्षण का अवसर प्रदान करने हेतु : जब कभी भी अधीनस्थ कर्मचारी के ऊपर प्रत्यायोजन के फलस्वरूप नवीन उत्तरदायित्व सौपे जाते हैं तो वे पूरे उत्तरदायित्व की भावना के साथ काम करते हैं और इस कार्य से उन्हें प्रशिक्षण प्राप्त होता है। सत्ता के प्रत्यायोजन के फलस्वरूप अधीनस्थ कर्मचारियों को कार्य करने का जो अवसर प्राप्त होता है उसकी वजह से उनकी सक्रियता बढ़ती है, अनुभव में वृद्धि होती है तथा भावी उत्तरदायित्वों के लिए वे प्रशिक्षण प्राप्त करते है।
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प्रत्यायोजन
(6) निर्देशन, नियंत्रण और पर्यवेक्षण की सुविधा के लिये : प्रशासनिक संगठन में पद–सोपान के विभिन्न स्तरों पर सत्ता के प्रत्यायोजन होने से निर्देशन, नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण का कार्य सुगम हो जाता है। सत्ता का प्रत्यायोजन योजनाबद्ध ढंग से होता है। इसमें यह स्पष्ट रूप से निर्धारित कर दिया जाता है कि किसे कौन–सा कार्य कितनी सीमाओं में रहकर पूरा करना है। जो उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थ को सत्ता प्रत्यायोजित करता है, उसके पास उस कार्य से सम्बन्धित निर्देशन, नियंत्रण और पर्यवेक्षण के अधिकार बने रहते हैं। अगर प्रशासकीय कार्य में कहीं कोई गड़बड़ी, दोहरान या अव्यवस्था होती है तो इसके लिए उत्तरदायी व्यक्ति की खोज आसानी से हो जाती है।
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प्रत्यायोजन
(7) संगठनात्मक लोचशीलता हेतु : कठोरता, जड़ता तथा रूढ़िवादिता किसी भी संगठन की कार्यकुशलता एवं विकास के लिए बाधक हैं। परिवर्तित परिस्थितियों के अनुकूल संगठन को ढालने तथा कार्मिकों का विकास करने के लिए यह आवश्यक है कि संगठन में लोचशीलता का समावेश हो ताकि ताजी हवा के झोंके आते रहें। नवाचार तथा प्रत्यायोजन के द्वारा जड़ता को तोड़ा जा सकता है तथा संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति बेहतर ढंग से हो सकती है।
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बिलियर्ड्स
स्नूकर इंग्लिश बिलियर्ड्स के लिये प्रयुक्त टेबल पर व उसी आकार की गेंदों से खेला जाता है। यह खेल 22 गेंदों से खेला जाता है: सफ़ेद क्यू गेंद, 15 लाल गेंद और छह रंगीन गेंद, जिनका पीली के 2, हरी के 3, भूरी के 4, नीली के 5, गुलाबी के 6 व काली के 7 के हिसाब से अंक होते हैं।
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बिलियर्ड्स
खिलाड़ी को पहले एक लाल गेंद को पॉकेट में डालकर फिर किसी भी रंग की गेंद डालने का प्रयास करना चाहिये, जिससे उसे पॉकेट में डाली गई गेंद के रंग के अनुसार अंक मिलते रहें।
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बिलियर्ड्स
पॉकेट में डाले जाने के पश्चात प्रत्येक लाल गेंद वहीं रहती है, जबकि अन्य रंगों की गेंदें, जब पॉकेट में डाल दी जाएं, तो जब तक कोई भी लाल गेंद टेबल पर बची रहती है, तब तक वापस अपने निर्धारित स्थान पर रखी जाती हैं।
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बिलियर्ड्स
खेल के दौरान यदि (अन्य गेंद अथवा गेंदों की रूकावट के कारण) कोई खिलाड़ी उस गेंद पर प्रहार नहीं कर पाता, जिस पर उसे नियमानुसार प्रहार करना चाहिये, तो कहा जाता है कि उसने स्नूकर कर दिया है और वह अपना दांव खो देता है; यह स्थिति खेल को उसका नाम देती है।
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बिलियर्ड्स
पॉकेट बिलियर्ड्स सामान्यत:1.4 मीटर x 2.7 मीटर की टेबल पर खेला जाता है, यद्यपि विशेष प्रतियोगिताओं में टेबल कभी-कभी 1.5 मीटर x 3 मीटर भी होती है।
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बिलियर्ड्स
पॉकेट बिलियर्ड्स में एक सफ़ेद गेंद के साथ ही 15 संख्याकित लक्ष्य गेंदें होती हैं; जिनमें 1 से 8 लक्ष्य गेंदों पर एक ही रंग होता है, 9 से 15 तक पट्टियां होती हैं।
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बिलियर्ड्स
खेल की शुरुआत में 15 लक्ष्य गेंदें टेबिल के एक कोने पर त्रिभुजाकार अभिरचना में त्रिभुजाकार लकड़ी अथवा प्लास्टिक के, रैक के द्वारा रखी जाती है।
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बिलियर्ड्स
पहला खिलाड़ी संरचना को क्यू बॉल से तोड़ता है; फिर वह लक्ष्य गेंदों को किसी निर्दिष्ट क्रम या रीति से पॉकेट में डालने का प्रयास करता है।
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बिलियर्ड्स
स्ट्रेट पूल में प्रत्येक खिलाड़ी 14 लक्ष्य गेंदों को किसी भी क्रम अथवा संयोजन में पॉकेट में डालने का प्रयास करता है। हालांकि प्रत्येक प्रहार के पूर्व, खिलाड़ी को गेंद की संख्या व निर्दिष्ट पॉकेट बताना होता है; यदि वह सफल होता है, तो उसे एक अंक मिलता है।
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अलगाववाद
सोवियत संघ का अपने मूल जातीय समूहों में विघटन, जिन्होंने आर्मेनिया, अजरबैजान, बेलारूस, एस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मोल्दोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान के अपने राष्ट्रों का गठन किया।
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20231101.hi_1047125_8
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अलगाववाद
ईरान में अज़ेरी अलगाववादियों के प्रांतों को एकजुट करना चाहते हैं पूर्व अज़रबैजान, पश्चिम अज़रबैजान, Zanjan और आर्डेबिल साथ अज़रबैजान ।
0.5
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अलगाववाद
स्पेन में बास्क और कैटलन अलगाववाद। अंडालूसिया, एस्टुरियास, बेलिएरिक आइलैंड्स, कैनरी आइलैंड्स, कैस्टिले (लगभग न के बराबर), गैलिसिया, लियोन, नावर्रे और वेलेंसिया ( स्पेन के राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद देखें) में मामूली अलगाववादी आंदोलनों।
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अलगाववाद
ब्रिटिश द्वीपों में " केल्टिक राष्ट्र " ने यूनाइटेड किंगडम से स्कॉटिश स्वतंत्रता, वेल्श राष्ट्रवाद, आयरिश रिपब्लिकनवाद और कोर्निश राष्ट्रवाद के रूप में विभिन्न अलगाववादी आंदोलनों का निर्माण किया है।
0.5
1,802.755504
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अलगाववाद
नीदरलैंड में, कुछ फ्रिसियन एक स्वायत्त देश या क्षेत्र को देखते हैं (पश्चिम पश्चिमी क्षेत्र पर Fryske Beweging देखें)।
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1,802.755504
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अलगाववाद
चिन, काचिन, करेन, राखीन, रोहिंग्या, शान, और वा सहित म्यांमार (बर्मा) में अलग-अलग राज्यों के लिए लड़ने वाले कई जातीय अल्पसंख्यक समूह।
0.5
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अलगाववाद
अफ्रीका के सैकड़ों जातीय समूहों को 54 राष्ट्र राज्यों में रखा गया है, जो अक्सर जातीय संघर्ष और अलगाववाद की ओर अग्रसर होते हैं, जिनमें अंगोला, अल्जीरिया, बुरुंडी, नामीबिया में कैप्रवी स्ट्रिप, कांगो और द डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, दारफुर शामिल हैं सूडान, इथियोपिया, सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका, युगांडा, पश्चिमी सहारा और जिम्बाब्वे में ।
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अलगाववाद
इबोस, हौसा-फुलानी और योरूबा के बीच 1960 के दशक में बियाफ्रान युद्ध ; नाइजीरिया के नाइजर डेल्टा में आज का जातीय और तेल-संबंधी संघर्ष ।
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अलगाववाद
अफ्रीकी-लिबेरियन और अमेरिको-लिबेरियन के बीच लाइबेरिया में संघर्ष, अफ्रीकी मूल के लोग जो गुलामी से मुक्त होने के बाद अमेरिका से आकर बस गए थे।
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तानिकाशोथ
मस्तिष्क ज्वर के गंभीर रूपों में रक्त इलेक्ट्रोलाइट महत्वपूर्ण हो सकते हैं;उदाहरण के लिये हाइप्नॉट्रीमिया (रक्त में सोडियम की कमी) एक सामान्य बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर है, कई कारकों के संयोजन के कारण जिसमें निर्जलीकरण शामिल है, एंटीडाइयूरेटिक हार्मोन का अनुचित उत्सर्जन (SIADH) या अतिरिक्त सक्रिय अंतःशिरा तरल प्रशासन।
0.5
1,800.247831
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तानिकाशोथ
आम तौर पर एक व्यक्ति को एक करवट में लिटा कर, सेरेब्रल तरल (CSF) एकत्र करने के लिये लोकल एनेस्थीसिया लगा कर और ड्यूरल सैक (रीढ़ की हड्डी के चारों ओर लगी थैली) में एक सुई डाल कर लंबर पंचर किया जाता है। जब यह प्राप्त हो जाता है तो मैनोमीटर का उपयोग करते हुये CSF का “खुलने वाला दाब” मापा जाता है। दाब आम तौर पर 6 और 18 cm जल (cmH2O) के बीच होता है; बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर में दाब आम तौर पर बढ़ा होता है। In क्रिप्टोकॉकल मस्तिष्क ज्वर में अंतःकपालीय दाब काफी बढ़ा होता है। तरल का आरंभिक स्वरूप संक्रमण की प्रकृति का संकेत साबित हो सकता है: धुंधला CSF संकेत करता है कि प्रोटीन, सफेद व लाल रक्त कोशिकाओं और/या बैक्टीरिया का स्तर ऊंचा है और इसलिये इसमें बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर हो सकता है।
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तानिकाशोथ
CSF नमूने का परीक्षण श्वेत रक्त कोशिकाओं, लाल रक्त कोशिकाओं, प्रोटीन मात्रा और ग्लूकोस स्तर की उपस्थिति व प्रकार के लिये किया जाता है। नमूने की ग्राम स्टेनिंग बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर में बैक्टीरिया प्रदर्शित कर सकता है, लेकिन बैक्टीरिया की अनुपस्थिति बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर की संभावना को निष्कासित नहीं करती है क्योंकि वे सिर्फ 60% मामलों में दिखते हैं; यदि नमूना लिये जाने के पहले एंटीबायोटिक्स दिये गये थे तो यह आंकड़ा 20% तक और कम हो जाता है। ग्राम स्टेनिंग भी लिस्टेरियोसिस जैसे संक्रमणों में कम विश्वसनीय है। माइक्रोबायोलॉजिकल कल्चर का नमूना अधिक संवेदनशील होता है (यह 70–85% मामलों में जीवों को पहचान लेता है) लेकिन परिणाम उपलब्ध होने में 48 घंटे तक का समय लगता है। रक्त कोशिकाओं का अधिक उपस्थित प्रकार (तालिका देखें) संकेत करता है कि क्या मस्तिष्क ज्वर बैक्टीरिया (आम तौर पर न्यूट्रोफिल-प्रीडॉमिनेंट) जनित है या वायरस (आमतौर पर लिम्फोसाइट-प्रीडॉमिनेंट) जनित, हलांकि रोग की शुरुआत में यह हमेशा विश्वसनीय संकेतक नहीं होता है। कम सामान्य मामलों में स्नोफिल प्रबलता दूसरे कारणों के साथ परजीवी या फंफूंद के कारण होने का सुझाव देती है।
0.5
1,800.247831
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तानिकाशोथ
CSF में ग्लूकोस की अधिकता आम तौर पर रक्त की तुलना में 40% ऊपर होती है। बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर में यह आम तौर पर कम होती है; CSF का ग्लूकोस स्तर इस कारण रक्त शर्करा (CSF ग्लूकोस सो सीरम ग्लूकोस अनुपात) से विभाजित किया जाता है। ≤0.4 का अनुपात बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर का संकेत हो सकता है; नवजात में CSF में ग्लूकोस का स्तर आम तौर पर उच्च रहता है और 0.6 (60%) के नीचे का अनुपात असामान्य माना जाता है। CSF में लैक्टेट बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर के होने की संभावना के उच्च स्तर को दर्शाता है, ठीक ऐसे ही श्वेत रक्त कोशिकाओं की उच्च संख्या भी। यदि लैक्टेट स्तर 35 mg/dl से कम हों और व्यक्ति ने पहले कोई ऐंटीबायोटिक न लिया हो तो यह बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर होने की संभावना क्षीण करता है।
0.5
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तानिकाशोथ
मस्तिष्क ज्वरों के विभिन्न प्रकार की पृथक पहचान करने के लिये अन्य विशेष परीक्षण उपयोग किये जा सकते हैं। लैटेक्स एग्लुटिनेशन परीक्षण स्ट्रैप्टोकॉकस न्यूमोनिया, नीएसेरिया मेनिन्जाइटिडिस,हीमोफिलिज़ इन्फ्युएंज़ा, एस्केरीशिया कॉलिऔर ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकॉकि के कारण होने वाले मस्तिष्क ज्वर में सकारात्मक हो सकता है; इसका नियमित प्रयोग प्रोत्साहित नहीं किया जाता है क्योंकि इसके कारण उपचार में परिवर्तन बहुत कम होते हैं लेकिन इसे तब उपयोग किया जा सकता है जब दूसरे परीक्षण निदान न कर पा रहे हों। इसी प्रकार लिम्युलस लाइसेट परीक्षण ग्राम-नकारात्मक बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर में सकारात्मक हो सकता है, लेकिन यह तब तक सीमित रूप से उपयोगी होता है जब तक कि अन्य परीक्षण सहायक न रहे हो। पॉलीमरेस चेन रिएक्शन (PCR) एक ऐसी तकनीक है जो बैक्टीरिया के DNA के छोटे निशानों को बढ़ाने में उपयोग की जाती है, जिससे कि सेरेब्रोस्पाइनल तरल में बैक्टीरिया या वायरस DNA की उपस्थिति की पहचान की जा सके; यह एक उच्च संवेदनशीलता वाला तथा विशिष्ट परीक्षण है क्योंकि इसमें संक्रमित एजेंट के DNA के निशानों की राशि की जरूरत होती है। यह बैक्टीरिया जनित मस्तिष्क ज्वर में बैक्टीरिया की पहचान कर सकता है और वायरस जनित मस्तिष्क ज्वर (उनमे जिनको एंटेरोवायरस, हरपीस सिंप्लेक्स वायरस 2 और मम्स के लिये टीका न दिया गया हो) के विभिन्न मामलों में अंतर पता करने के लिये सहायक हो सकता है। सेरोलॉजी (वायरसों के एंटीबॉडी की पहचान) वायरस जनित मस्तिष्क ज्वर में उपयोगी हो सकता है। यदि ट्यूबरकलोस मस्तिष्क ज्वर का संदेह हो तो, नमूने को ज़ील नेल्सन स्टेनजिसकी संवेदनशीलता निम्न है और ट्यूबरकुलोसिस कल्चर, जिसमें अधिक समय लगता है; PCR का उपयोग बढ़ रहा है। CSF पर इंडियन इंक स्टेन का उपयोग करके क्रिप्टोकॉकल मस्तिष्क ज्वर का निदान कम लागत पर किया जा सकता है; हलांकि रक्त या CSF में क्रिप्टोकॉकल एंटीजन का परीक्षण अधिक संवेदनशील होता है विशेष रूप से AIDS पीड़ित लोगों में।
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1,800.247831
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तानिकाशोथ
जहां पर एंटीबायोटिक्स लेने के बाद मस्तिष्क ज्वर के लक्षण होते हैं (जैसे कि प्रकल्पित साइनोसाइटिस), "आंशिक रूप से उपचारित मस्तिष्क ज्वर", एक निदानात्मक व उपचारात्मक कठिनाई है। जब ऐसा होता है तो CSF निष्कर्ष वायरस जनित मस्तिष्क ज्वर के समान दिख सकते हैं, लेकिन एंटीबायोटिक उपचार तब तक जारी रखने की आवश्यकता होती है जब तक कि वायरस संबंधी कारण (उदा. के लिये सकारात्मक एन्टेरोवायरस PCR) के निश्चित लक्षण बने रहते हैं।
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तानिकाशोथ
मस्तिष्क ज्वर का निदान मृत्यु के बाद हो सकता है।पोस्टमार्टम के बाद के निष्कर्ष में आम तौर पर पाया मेटर और मस्तिष्क आवरण की परतों अर्कनॉएड की बढ़ी सूजन होती है। न्यूट्रोफिल ग्रैन्यूलोकाइट, क्रैनिएल नर्व और रीढ़ के साथ सेरेब्रोस्पाइनल तरल और मस्तिष्क के आधार की ओर बढ़ जाते हैं, जो कि पस (मवाद) द्वारा घिरे हो सकते हैं — इसी प्रकार मैनिन्जिएल केशिकायें भी।
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तानिकाशोथ
मस्तिष्क ज्वर के कुछ कारणों के लिये, लंबे समय में टीकाकरण के माध्यम से या छोटी अवधि में एंटीबायोटिक्स द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। कुछ व्यवहार जनित उपाय भी प्रभावी हो सकते हैं।
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तानिकाशोथ
बैक्टीरिया और वायरस जनित मस्तिष्क ज्वर संक्रामक हैं, हलांकि दोनो में से कोई भी आम सर्दी-ज़ुकाम या फ्लू की तरह संक्रामक नहीं है। चुंबन, छीकने या किसी के खांसने से होने वाले श्वसन स्राव से निकली बूंदों के माध्यम से दोनो रोगों का संक्रमण हो सकता है लेकिन मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित व्यक्ति द्वारा छोड़ी गयी हवा के माध्यम से ऐसा नहीं हो सकता है। वायरस जनित मस्तिष्क ज्वर आम तौर पर एंटेरोवायरस के कारण होता है और सबसे आम रूप में यह मल संदूषण द्वारा फैलता है। संक्रमण का जोखिम उस व्यवहार में बदलाव लाकर कम किया जा सकता है जिसके कारण संक्रमण हुआ।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0
बैराठ
बैराठ राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 85 किलोमीटर दूर स्थित है। प्राचीन ग्रंथों में इसका नाम विराटपुर मिलता है। यह प्राचीन मत्स्य प्रदेश की राजधानी था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0
बैराठ
बैराठ का क्षेत्र लगभग 8 किमी लंबाई तथा 5 किमी चौड़ाई में फैला है। यह आसपास में पहाड़ियो से घिरा है। कस्बे के चारों ओर टीले ही टीले हैं। इन टीलों में पुरातत्व की दृष्टि से बीजक की पहाड़ी, भीमजी की डूंगरी तथा महादेव जी की डूंगरी अधिक महत्वपूर्ण है। यह स्थान मौर्यकालीन तथा उसके पीछे के काल के अवशेष का प्रतीक है, किंतु खुदाई से प्राप्त सामग्री से यह अनुमान लगाया जाता है कि यह क्षेत्र सिंधु घाटी सभ्यता के प्रागैतिहासिक काल का समकालीन है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0
बैराठ
वैसे यहां पर मौर्यकालीन अवशेषों के अलावा मध्यकालीन अवशेष भी मिले हैं। यहाँ की बीजक डूँगरी से कैप्टन बर्ट ने अशोक का ‘भाब्रू शिलालेख’ खोजा था। इनके अतिरिक्त यहाँ से बौद्ध स्तूप, बौद्ध मंदिर (गोल मंदिर) और अशोक स्तंभ के साक्ष्य मिले हैं। ये सभी अवशेष मौर्ययुगीन हैं। ऐसा माना जाता है कि हूण आक्रान्ता मिहिरकुल ने बैराठ का विध्वंस कर दिया था। चीनी यात्री युवानच्वांग ने भी अपने यात्रा वृत्तान्त में बैराठ का उल्लेख किया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0
बैराठ
विराटनगर नाम से प्राय: लोगों को भ्रम हो जाता है। विराटनगर नामक एक क़स्बा नेपाल की सीमा में भी है। किन्तु नेपाल का विराट नगर, महाभारत कालीन विराटनगर नहीं है। महाभारतकालीन गौरव में आराध्यदेव भगवान श्री केशवराय का मंदिर,जिसमे 3 ही कृष्ण एवम् 3 ही विष्णु की प्रतिमाये स्थित है। 64 खम्बे व108 टोड़ी है। ये केशवराय मंदिर विश्व दर्शन के लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।इस सम्बन्ध विराटनगर पौराणिक, प्रगेतिहासिक, महाभारतकालीन तथा गुप्तकालीन ही नहीं मुगलकालीन महत्वपूर्ण घटनाओ को भी अपने में समेटे हुए, राजस्थान के जयपुर और अलवर जिले की सीमा पर स्थित है विराटनगर में पौराणिक शक्तिपीठ, गुहा चित्रों के अवशेष, बोद्ध माथों के भग्नावशेष, अशोक का शिला लेख और मुगलकालीन भवन विद्यमान है। अनेक जलाशय और कुंड इस क्षेत्र की शोभा बढा रहे हैं। प्राकर्तिक शोभा से प्रान्त परिपूर्ण है। विराटनगर के निकट सरिस्का राष्ट्रीय व्याघ्र अभ्यारण, भर्तृहरी का तपोवन, पाण्डुपोल नाल्देश्वर और सिलिसेढ़ जैसे रमणीय तथा दर्शनीय स्थल लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते है। यहाँ के दर्शय दर्शनीय स्थलो में प्रसिद्ध श्रीकेश्वराय मंदिर नगर के मध्य आकर्षक का केंद्र है। जिसमे भगवान केशव एवम् विष्णु के साथ कोई देवी (शक्ति) नहीं है। भगवान केशव का जो रूप महाभारत में था। उसी स्वरूप में भगवन श्रीकृष्ण का मंदिर दर्शनीय है। जो विराटनगर पर्यटन नगरी में सुविख्यात है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0
बैराठ
यह कारण अभी समझ में नहीं आया है कि बैराठ के आसपास पत्थरों की कमी नहीं है, फिर भी भवन निर्माण के लिए मिट्टी से पकाई गई ईंटों का ही अधिक प्रयोग किया गया है। मठों, स्तूपों, मंदिरों, मकानों तथा चबूतरों आदि सभी के निर्माण के लिए मिट्टी की ईंटों का ही प्रयोग किया गया है। यद्यपि यहां के आसपास के लोग अपने नए मकान के निर्माण के लिए यहां की अधिकांष ईंटें निकाल कर ले गए फिर भी बहुत-सी ईंटें बच गई। प्राप्त ईंटों में अधिकतर 20 x 10.5 x 3 इंच और 21 x 13 x 3 इंच के आकार की है। फर्श बिछाने के लिए उपयोग में लाई गई टाइलों का आकार बड़ा अर्थात 26 x 26 इंच के आकार का है। इन ईंटों की बनावट मोहनजोदड़ो में मिली ईंटों के समान है। शायद इन ईंटों का प्रयोग बौद्ध मठ के निर्माण के लिए किया गया होगा। यहां एक खंडहरनुमा भवन मिला है जिसमें 6-7 छोटे कमरे हैं। ये ईंटें इसी भवन के आसपास बिखरी मिली है। विद्वानों के अनुसार यह खंडहर किसी बौद्ध मठ का है। खंडहर की दीवारें 20 इंच मोटी है तथा कमरों में आने जाने का मार्ग अत्यंत संकड़ा है। खंडहर के अवशेष गोदाम तथा चबूतरों के अस्तित्व की और संकेत करते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0
बैराठ
कमरों के उत्खनन से प्राप्त होने वाली सामग्री में मुद्राएं काफी महत्वपूर्ण है। यहां कुल 36 मुद्राएं मिली है। ये मिट्टी के भांड में कपड़े से बंधी हुई प्राप्त हुई है। इनमें से 8 पंचमार्क चांदी की मुद्राएं हैं तथा 28 इंडो ग्रीक व यूनानी शासकों की मुद्राएं हैं। बौद्ध मठ से मुद्राएं प्राप्त होना आश्चर्यजनक है किंतु यह अनुमान लगाया जाता है कि ये किसी भिक्षु ने छुपा कर रखी होगी। ये मुद्राएं यह प्रमाणित करती है कि यहां यूनानी शासकों का अधिकार था। 16 मुद्राएं यूनानी राजा मिनेंडर की हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि 50 ई. तक बैराठ बौद्धों का निवास स्थली रहा होगा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0
बैराठ
पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार बैराठ के बौद्धमठ से प्राप्त सामग्री लगभग 250 ई. पू. से 50 ई. पू. तक के समय की है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0
बैराठ
यहां मृदभांड भी मिले हैं जो काफी अलंकृत है। कुछ पर रोचक ढंग से स्वास्तिक और त्रिरत्न के चिह्न हैं। ये बर्तन देखने में अत्यंत आकर्षक लगते हैं। यहां मिट्टी से बनी कई वस्तुएं मिली है जिनमें पूजापात्र, थालियां, लोटे, मटके, घड़े, खप्पर, नाचते हुए पक्षी, कुंडियां आदि हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0
बैराठ
बौद्धमठ के दक्षिण में बिखरे पड़े चुनाई के पालिशदार पत्थरों से यह पुष्टि होती है कि यहां किसी समय दो या तीन स्तंभ रहे होंगे, जिन्हें बहुत से विद्वान अशोक स्तंभ मानते हैं क्योंकि कई टुकड़ों में सिंह की आकृति के भाग हैं। इनके टुकड़े कैसे हुए होंगे, इस पर विद्वान मानते हैं कि 510-540 ई. के मध्य मिहिरकुल के आक्रमणों से इन्हें क्षति हुई होगी।
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पित्ताशय-उच्छेदन
अंतर-उदर दर्शन पित्ताशय-उच्छेदन में उदरीय मांसपेशियों को काटने की आवश्यकता नहीं होती है, जिसके परिणामस्वरूप कम दर्द, तेज़ी से रोगहरण, उन्नत कॉस्मेटिक परिणाम और संक्रमण तथा आसंजन जैसी कम जटिलताएं पेश आती हैं। अधिकांश रोगियों को सर्जरी के दिन ही या अगले दिन अस्पताल से रिहा किया जा सकता है और अधिकांश रोगी एक सप्ताह के अंदर किसी भी प्रकार के व्यवसाय में दुबारा लौट सकते हैं।
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पित्ताशय-उच्छेदन
एक असामान्य लेकिन संभावित गंभीर जटिलता है पित्ताशय और यकृत को जोड़ने वाली सामान्य पित्त नली को चोट. एक चोटिल पित्त नली पित्त का रिसाव कर सकती है और दर्दनाक और संभवतः ख़तरनाक संक्रमण पैदा कर सकती है। सामान्य पित्त नली को पहुंचने वाली मामूली चोट के कई मामलों को बिना शल्य-चिकित्सा के प्रबंधित किया जा सकता है। तथापि, पित्त नली को प्रमुख चोट, एक बहुत ही गंभीर समस्या है और इसके लिए सुधारात्मक सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। यह सर्जरी के अनुभवी पित्तज सर्जन द्वारा क्रियान्वित होनी चाहिए.
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पित्ताशय-उच्छेदन
उदरीय आवरण आसंजन, कोथग्रस्त पित्ताशय और दृष्टि को धुंधला करने वाली अन्य समस्याओं में लगभग 5% लेप्रोस्कोपिक सर्जरियों के दौरान उजागर होती हैं, जो सर्जनों को पित्ताशय के सुरक्षित उच्छेदन के लिए मानक पित्ताशय-उच्छेदन को अपनाने के लिए मजबूर करती हैं। ज़ाहिर है, आसंजन और विगलन, काफ़ी गंभीर हो सकता है, लेकिन खुली सर्जरी में परिवर्तन से तात्पर्य जटिलता नहीं है।
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पित्ताशय-उच्छेदन
सितंबर 1992 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा आयोजित एक आम सहमति विकास सम्मेलन पैनल ने पित्ताशय हटाने के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी शल्य-चिकित्सा उपचार के रूप में लैप्रोस्कोपिक पित्ताशय-उच्छेदन की पुष्टि की, जिसे पारंपरिक ओपन सर्जरी के समकक्ष प्रभावी माना गया। तथापि, पैनल ने नोट किया कि लैप्रोस्कोपिक पित्ताशय-उच्छेदन केवल अनुभवी सर्जनों द्वारा और केवल पित्त-पथरियों के लक्षण वाले मरीज़ों पर क्रियान्वित होनी चाहिए.
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पित्ताशय-उच्छेदन
इसके अलावा, पैनल ने नोट किया कि लैप्रोस्कोपिक पित्ताशय-उच्छेदन प्रक्रिया उसे निष्पादित करने वाले सर्जन के प्रशिक्षण, अनुभव, कौशल और अनुमान से काफ़ी प्रभावित होती है। इसलिए, पैनल ने सिफारिश की कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में प्रशिक्षण और प्रत्यायक मंजूर करने, योग्यता निर्धारण और गुणवत्ता पर निगरानी के लिए सख्त दिशा निर्देश विकसित किए जाएं. पैनल के अनुसार, पित्त-पथरियों के उपचार के लिए अनाक्रामक दृष्टिकोण विकसित करने की दिशा में प्रयास जारी रहे, जो न केवल वर्तमान पथरियों को ख़त्म करे, बल्कि उनके निर्माण या पुनरावृत्ति को भी रोक सके.
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पित्ताशय-उच्छेदन
पित्ताशय-उच्छेदन की एक आम जटिलता है लुश्का वाहिनी नाम से ज्ञात एक असामान्य पित्त वाहिनी को अनजाने में चोट पहुंचना, जो 33% लोगों के मामले में घटित होता है। यह पित्ताशय निकालने तक ग़ैर-समस्यात्मक है और एक छोटी अधिवस्तिक वाहिनी का अपूर्णतः दहन हो सकता है या वह अप्रत्यक्ष रह सकती है, जो ऑपरेशन के बाद पित्त रिसाव में तब्दील हो सकती है। मरीज़ में सर्जरी के बाद 5 से 7 दिनों के अंदर पित्तज उदावरणशोथ विकसित हो सकता है और एक अस्थायी पित्तीय स्टेंट की आवश्यकता हो सकती है। यह ज़रूरी है कि चिकित्सक पित्तज उदावरणशोथ की संभावना को शीघ्र पहचान लें और अस्वस्थता-दर को कम करने के लिए HIDA स्कैन के माध्यम से निदान की पुष्टि करें. निदान के बाद जितनी जल्दी हो सके आक्रामक पीड़ा प्रबंधन और एंटीबायोटिक चिकित्सा प्रारंभ की जानी चाहिए.
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पित्ताशय-उच्छेदन
पित्ताशय को निकालने के बाद, उसे उत्तक परीक्षा के लिए भेजा जाना चाहिए (रोग परीक्षा) ताकि निदान की पुष्टि हो सके और आकस्मिक कैंसर का पता लगाएं. यदि कैंसर मौजूद है, तो अधिकांश मामलों में यकृत और लसीकापर्व के हिस्से को हटाने के लिए दुबारा ऑपरेशन की आवश्यकता होगी.
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पित्ताशय-उच्छेदन
जनता की 5% से 40% अल्पसंख्या में पित्ताशय-उच्छेदनोत्तर सिंड्रोम या PCS नामक अवस्था विकसित हो सकती है। लक्षणों में जठरांत्रीय वेदना और ऊपरी दाएं उदर में लगातार दर्द शामिल हो सकता है।
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पित्ताशय-उच्छेदन
लगभग बीस प्रतिशत रोगियों में चिरकालिक दस्त का विकास होता है। कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन पित्त प्रणाली की व्याकुलता शामिल मानी गई है। ज्यादातर मामले हफ़्ते भर में ठीक हो जाते हैं, हालांकि दुर्लभ मामलों में यह दशा कई वर्षों तक चलती रहती है। इसे दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है।
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एटा
एटा की महाकाली का देश भर में डंका बजता है। स्थानीय कलाकारों की प्रतिभा और उनके हैरतअंगेज कारनामों के साथ माता महाकाली का रूप लोगों को रोमांचित करता है। जिले में कला को जीवंत करते काली मंडलों ने देशभर में खूब नाम कमाया है।
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एटा
40 साल पहले शहर में कई काली मंडल रामनवमी और नवरात्र के मौके पर शहर भर में अपनी प्रतिभा दिखाते थे। इन मंडलों में 25 से 30 कलाकार होते हैं, जो कि विभिन्न धार्मिक स्वरूप धरकर शहर में जगह-जगह लोगों का मनोरंजन करते हैं। वहीं विशेष प्रदर्शन होता है काली की तलवारबाजी। काली मंडल का प्रमुख सदस्य माता महाकाली का रौद्र रूप धरकर, हाथ में तलवार लेकर निकलते हैं। बताया जाता है कि काफी वर्ष पूर्व स्व. रम्मू पान वाले, रमेश कुमार, उस्ताद कालीचरन ने मिलकर काली मंडल की परंपरा शुरू की।
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एटा
शुरू-शुरू में अलग-अलग मोहल्ले के लोग मिलकर धार्मिक पात्रों की भूमिका निभाते। धीरे-धीरे काली मंडलों का चलन कई मेलों और कार्यक्रमों में होने लगा। समय बदला तो काली मंडलों का महत्व बढ़ा। रामनवमी और नवरात्र पर निकलने वाली शोभायात्रा में बाहरी जिलों से आने वाले लोग काली मंडलों को बुक कर जाते हैं। जिले के काली मंडलों के प्रदर्शन ने एटा का नाम चमकाया है।
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एटा
यह एटा जिला का एक प्राचीन मंदिर शिव मंदिर है। यह मुख्यालय से अलीगंज रोड पर 22 किमी दूर गोलाकुआं चौराहा के समीप परसोंन में काली नदी के तट पर स्थित है। यहाँ पर महर्षि परशुराम ने तपस्या की थी। उसी जगह पर यहाँ एक शिवलिंग प्रकट हुई। जब शिवलिंग भूगर्भ से प्रकट हुई तो उसके आधिपत्य को लेकर वहाँ परसोंन गाँव के लोगों और वहीं से 4 किमी दूर स्थित जमलापुर गाँव के लोगों मे विवाद हुआ। विवाद न्यायालय तक पहुँचा परन्तु कोई न्यायाधीश फैसला नहीं कर पाया। अतः ये फैसला दोनों पक्षों ने शिवलिंग पर ही छोड़ दिया । दोनों पक्ष शिवलिंग को बीच में करके अपने गाँव की दिशा की तरफ बैठ गये। परसोंन के व्यक्ति उत्तर दिशा में और जमलापुर के व्यक्ति दक्षिण दिशा में बैठे और शिवलिंग की पूजा की तत्पश्चात दोनों ने भगवान शंकर से प्रार्थना की कि आप जिससे पूजा और सेवा कराना चाहते है आप उसकी तरफ झुक जायें। इतनी प्रार्थना करके दोनों पक्ष अपने घर चले गये। और अगले दिन जब सुबह दोनों पक्ष वहाँ पहुचें तो सभी ने शिवलिंग को दक्षिण मे झुका हुआ पाया। तभी से आज तक वो शिवलिंग दक्षिण की तरफ झुकी है।जिसकी वजह से गाँव जमलापुर के माली लोंगों को उसकी पूर्ण जिमेदारी दे दी गई।
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एटा
प्रत्येक वर्ष देवछठ और शिवरात्रि को वहाँ विशाल मेला लगता है जो कम से कम दस दिन चलता है। दूर दूर से कावंडिया कावंड लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। प्रत्येक वर्ष श्रावण के प्रत्येक सोमवार को वहाँ भक्तों बहुत भीड़ होती है।
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एटा
सभी प्रमुख सुविधाओं और आस-पास के प्रमुख आकर्षणों के आसपास स्थित रणनीतिक स्थानों पर स्थित, एटा के होटल मध्यम कीमतों पर मेहमानों को आवास, भोजन और अन्य आवश्यक सुविधाएं प्रदान करते हैं।
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एटा
होटल माया पैलेस, होटल समीर प्लाजा, होटल रामेश्वरम, होटल ग्रैंड स्पाइस, होटल वंदना पैलेस, होटल शिखर,होटल श्री जी पैलेस आदि।
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