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20231101.hi_179125_3
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कॉरोना
किरीट की सीमा अचल नहीं अपितु सूर्यकलंक के साथ परिवर्तित होती रहती है। अधिकतम कलंक पर वह लगभग वृत्तीय होती हैं इसमें से चारों ओर अनियमित रूप से फैला होता है इसके विरुद्ध न्यूनतम कलंक पर वह सूर्य के विषुवद्वृत्तीय समतल में अधिक विस्तृत हो जाती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि किरीट की आकृति सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र पर निर्भर है।
0.5
1,511.557196
20231101.hi_179125_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
कॉरोना
किरीटीय वर्णक्रमपट्ट में सतत विकिरण अंकित होता है, जिसमें कुछ दीप्तिमान रेखाएँ स्थित होती हैं। अनेक वर्षों तक इन रेखाओं का कारण ज्ञात नहीं किया जा सका, क्योंकि उनके तरंगदैर्ध्य किसी भी ज्ञात तत्व की वर्णक्रम रेखाओं के तरंग-दैर्घ्य के सदृश नहीं थे। अत: ज्यातिषियों ने यह कल्पना की कि सूर्यकिरीट में 'कोरोनियम' नामक एक नवीन तत्व उपस्थित है। परंतु शनै:-शनै: नवीन तत्वों की आवर्त सारणी (Periodic Table) के रिक्त स्थान पूर्ण किए जाने लगे और यह निश्चयपूर्वक सिद्ध हो गया है कि कोरोनियम कोई नवीन तत्व नहीं है, वरन् कोई ज्ञात तत्व ही है जिसकी रेखाओं के तरंगदैध्यों में किरीट की प्रस्तुत भौतिक अवस्था इतना परिवर्तन कर देती है कि उनका पहचानना सरल नहीं। सन् 1940 में ऐडलेन ने इस प्रश्न का पूर्ण रूप से समाधान किया। सैद्धांतिक गणना के आधार पर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि किरीट के वर्णक्रम की प्रमुख रेखाओं में से अनेक रेखाएँ लोह, निकल और कैलसियम के अत्यंत आयनित परमाणओं द्वारा उत्पन्न होती हैं। उदाहरणार्थ, लोह के उदासीन परमाणु में 26 इलेक्ट्रन होते हैं और किरीट के वर्णक्रम कर हरित रेखा का वे परमाणु विकिरण करते हैं, जिनके 13 इलेक्ट्रन आयनित हो चुके हैं। किरीट के वर्णक्रम में उपस्थित रेखाओं की तीव्रता में कलंकचक्र के साथ परिवर्तन होता रहता हैं और अधिकतम कलंक पर वे सबसे अधिक तीव्र होती हैं। इसी प्रकार यदि सूर्यबिंब के विविध खंडों द्वारा विकीर्ण रेखाओं की तीव्रता की तुलना की जाए तो निश्चयात्मक रूप से यह कहा सकता है कि समस्त रेखाएँ कलंकप्रदेशों के समीप सबसे अधिक उग्र होती हैं।
1
1,511.557196
20231101.hi_179125_5
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कॉरोना
रॉबर्ट्स ने सूर्यबिंब के पूर्वीय और पश्चिमी कोरों पर किरीट की दीप्ति का दैनिक अध्ययन किया, जिसके आधार पर उन्होंने यह सिद्ध किया कि किरीट की आकृति बहुत कुछ स्थायी है और उसके अक्षीय घूर्णन (Rotation) का आवर्तनकाल 26 दिन है, जो प्रकाशमंडल (Photosphere) के घूर्णन के आवर्तनकाल के लगभग है। वे यह भी सिद्ध कर सके कि किरीट के दीप्तिमान खंड कलंकों के ऊपर केंद्रीभूत होते हैं। कलंक और किरीट के दीप्तिमान प्रदेशों का यह संबंध महत्वपूर्ण है।
0.5
1,511.557196
20231101.hi_179125_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
कॉरोना
किरीट में लोह के ऐसे परमाणुओं की उपस्थिति जिनके 13 इलेक्ट्रन आयनित हो चुके हैं, यह संकेत करती है कि किरीट में 10 लाख अंशों से अधिक का ताप विद्यमान होना चाहिए। इस कथन का समर्थन अनेक प्रकार के अवलोकन करते हैं, जिनमें से सूर्य से आनेवाले रेडियो विकिरण की तीव्रता का अध्ययन प्रमुख है। किरीट, सौर ज्वाला (Prominence) और वर्णमंडल का प्रकाशमंडल की अपेक्षा अधिक ताप पर होना अत्यंत विषम परिस्थिति उपस्थित करता हैं। यह अधिक ताप प्रकाशमंडल से तापसंवाहन के कारण नहीं हो सकता, क्योंकि उष्मा उच्च ताप से निम्न ताप की ओर गमन करती हैं। किरीट के इस अत्यधिक ताप का कारण अभी तक निश्चयात्मक रूप से ज्ञात नहीं हो सका हैं। अनेक ज्योतिषियों ने समय समय पर इस विषय पर अनेक प्रकार के विचार प्रकट किए हैं, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं। मेंज़ल ने यह कल्पना की कि सूर्य के अंतर में किसी कारण ऐसे भंवर उत्पन्न होते हैं जिनमें सूर्य के उच्च तापवाले निम्न स्तरों का पदार्थ विस्तरण करता हुआ उसके पृष्ठ तक आ पहुँचता है और प्रत्येक क्षण विस्तरण के कारण उत्पन्न होनेवाले ताप के ह्रास को रोकने के लिए भँवर के पदार्थ का पुन: तापन होता रहता हैं। यह पदार्थ वातिमंडल में ऊपर उठता रहता है और कुछ समय के पश्चात् वह अपनी उष्णता को किरीट में मिलाकर उसका ताप बड़ा देता हैं। उनसोल्ड ने यह सिद्ध किया है कि प्रकाशमंडल के समीप उस स्तर में जिसका ताप 10,000 अंश से 20,000 अंश तक है, पदार्थ की गति विक्षुब्ध (turbulent) होती है और संवाहन का यह प्रदेश हाइड्रोजन के आयनीकरण के कारण उत्पन्न होता हैं। अधिकांश ज्योतिर्विद् इस मत से सहमत हैं कि यह प्रदेश शूकिकाओं (Spikelets) एवं कणिकाओं से संबंधित विक्षुब्ध गति का उद्गम है। टॉमस और हाउट्गास्ट के मतानुसार सूर्य के अंदर से उष्ण गैस की धाराएँ ध्वनि की गति से भी अधिक वेग के साथ किरीट में प्रवेश करती हैं और प्रेक्षित ताप तक उसको तप्त करती हैं। श्वार्शचाइल्ड ने भी इसी प्रकार के विचार प्रकट किए हैं, परंतु उनका मत है कि उष्ण गैस की इन धाराओं का वेग ध्वनि की गति से कम होता हैं। यह असंभव नहीं कि इस प्रकार के प्रभावों का किरीट के लक्षणों का निर्धारण करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भाग हो। ऑल्फवेन ने यह सिद्ध किया है कि जब विद्युच्छंचारी पदार्थ चुंबकीय क्षेत्र में गतिमान होता है तो विद्युच्चुंबकीय तरंगें उत्पन्न होती हैं। सूर्य के एवं कलंकों के चुंबकीय क्षेत्र में विद्यमान पदार्थ की गति ऐसी तरंगें उत्पन्न करने में समर्थ है। ऑल्फवेन और वालेन का मत है कि ज्यों-ज्यों ये तरंगें किरीट में आगे बढ़ती हैं उनकी ऊर्जा क ह्रास होता जाता है और यह ऊर्जा किरीट को अभीष्ट ताप तक तप्त करने में समर्थ होती हैं।
0.5
1,511.557196
20231101.hi_179125_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
कॉरोना
आजकल इन विचारों का विस्तृत परीक्षण हो रहा है और ऐसा अनुमान है कि इस प्रकार की प्रक्रिया का किरीट की तापोच्चता में हाथ हो सकता है। परंतु संप्रति निश्चयात्मक रूप से यह कहना कि द्रव-चुंबकीय तरंगें किरीट को अभीष्ट ताप तक तप्त कर सकती हैं अथवा नहीं, असंभव है। अत: किरीट का अत्यधिक ताप आज भी एक रहस्य है।
0.5
1,511.557196
20231101.hi_179125_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
कॉरोना
nasa.gov Astronomy Picture of the Day July 26, 2009 - a combination of thirty-three photographs of the sun's corona that were digitally processed to highlight faint features of a total eclipse that occurred in March of 2006
0.5
1,511.557196
20231101.hi_174163_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95
ब्रेक
जब किसी दिष्टधारा के पार्श्व कुंडलीयुक्त मोटर (shunt motor]] का पार्श्वपथ क्षेत्र (shunt field) उत्तेजित रहता है, उसी समय यदि उसे किसी अन्य चालक माध्यम द्वारा चलित रखा जाए, जैसे उसी के आर्मेचर (armature) के संवेग अथवा उससे संबंधित अन्य यंत्रों के संवेग द्वारा, तो वह मोटर उस समय डायनमो का काम करने लगता है, क्योंकि उस समय मोटर का धात्र मुख्य शक्तिस्रोत से असंबद्ध होकर धारानियंत्रक (rheostat) से संबंधित हो जाता है, जिससे वह मोटर की गति का अवरोध उसी प्रकार करने लगता है जिस प्रकार डायनामो अपने चालक इंजन की गति का अवरोध करता है। प्रत्यावर्त्त धारा के मोटरों से जब इस प्रकार का काम लिया जाता है, तब उसके तारों का संबंध प्रत्यावर्त्त डायनामौ के समान ही कर दिया जाता है। प्राय: प्रेरक मोटर (induction motor) का उत्तेजन निम्न वोल्टता की दिष्टधारा से किया जाता है और रोटर को (rotor) धारा नियंत्रक से संबद्ध कर देते हैं। ऐसा करने से मोटर की चाल का नियंत्रण धारा नियंत्रक में होनेवाले प्रतिरोध की मात्रा से ठीक वैसे ही हो जाता है जैसा दिष्टधारा के प्रयोग में होता है।
0.5
1,510.746927
20231101.hi_174163_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95
ब्रेक
गत्यात्मक पुनर्योजी (Dynamic Regensrative) प्रणाली के ब्रेकों के लगते समय जो यांत्रिक उर्जा का शोषण होता है, वह धारा नियंत्रक में नष्ट हो जाने के बदले स्थिर वोल्टीय प्रणाली को वापस लौट जाता है। इस प्रणाली में दिष्ट अथवा प्रत्यावर्त्त, किसी भी प्रकार की धारा का उपयोग किया जा सकता है। कई ब्रेक यंत्रों में गत्यात्मक और पुनर्योजी, दोनों ही प्रकार का प्रणालियों का मिश्रित उपयोग होता है।
0.5
1,510.746927
20231101.hi_174163_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95
ब्रेक
मोटरगाड़ियों (automobiles) में पैर से दबाकर लाए जानेवाले विशुद्ध यांत्रिक ब्रेक और द्रवचालित ब्रेक, दोनों ही प्रकार के, ब्रेकों का उपयोग किया जाता है।
0.5
1,510.746927
20231101.hi_174163_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95
ब्रेक
इसमें लीवरों को ड्रम की परिधि पर दबाने के लिए कैम के बदले एक दुमुहा सिलिंडर लगा रहता है, जिसमें दोनों ओर दो पिस्टन लगे होते हैं। द्रव दाब उत्पादन और पारेषण करनेवाला प्रधान सिलिंडर इंजन के पास लगा होता है, जिनमें अंडी का तेल और ईथर आदि का मिश्रण पूरा-पूरा भरा रहता है। यह बड़ी मजबूत तथा लचीली नलियों द्वारा उपर्युक्त ड्रम के सिलिंडरों में एक छोटा पिस्टन उसमें भरे द्रव को दबाता है, लेकिन यह द्रव असंपीड्य (uncompressible) होने के कारण उस दाब को ड्रम में लगे सिलिंडरों तक पारेषित (transmit) कर, उसके पिस्टनों को चलाकर लीवरों और परिधि के बीच घर्षण द्वारा गत्यवरोध करता है। पैर के साधारण दबाव से सिलिंडरों में 100 पाउंड प्रति वर्ग इंच तक दाब उत्पन्न होती है और आवश्यकता के समय अधिक जोर से दबाने पर 350 पाउंड प्रति वर्ग इंच तक हो जाती है।
0.5
1,510.746927
20231101.hi_174163_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95
ब्रेक
ट्राम गाड़ियों में हाथ के बल से, संपीडित वायु के बल से और विद्युच्चालित तीन प्रकार के ब्रेक लगाए जाते हैं।
1
1,510.746927
20231101.hi_174163_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95
ब्रेक
इंजनों और प्रत्येक वाहन में जो ब्रेक लगाए जाते हैं वे संपीडित वाष्प, हवा, अथवा निर्वात या हस्तशक्ति चालित हुआ करते हैं। संपीडित हवा तथा निर्वात के कारण चलनेवाले ब्रेक स्वयंचालित होते हैं, जो रेलगाड़ियों के वफर संयोजकों के टूट जाने या असंबंधित हो जाने पर, जब ट्रेन के दो भाग हो जाते हैं, स्वत: ही सब वाहनों में लगाकर ट्रेन खंडों को रोक देते हैं। प्रत्येक इंजन और अलहंदा वैगनों तथा विशेष प्रकार के सवारी डिब्बों में हाथ ब्रेक तो अवश्य ही होता है, जिससे इंजन की शक्ति के अभाव में, यार्ड (yard) में उन्हें इच्छित स्थान पर रोक दिया जाय और ढाल अथवा वायु के झोकों के कारण लुढ़ककर वे चल न पड़े। इंजनों और उनके साथ लगनेवाली कोयले और पानी की टंकियों में हाथ के अतिरिक्त वाष्पचालित ब्रेक भी लगाया जाता है, जिसके ब्रेक सिलिंडर में जाकर उसके पिस्टन को दबाते हैं। इससे लीवरों की सहायता से ब्रेक गुटके चक्कों को पकड़ लेते हैं।
0.5
1,510.746927
20231101.hi_174163_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95
ब्रेक
यह इंजन सहित पूरी रेलगाड़ी में काम करता है। यदि रेलगाड़ी को चलाने के लिए वाष्प इंजन हो, तो उसके बॉयलर के वाष्प से और बिजली के इंजन में मोटर द्वारा, एक वायुसंपीडक पंप चलाया जाता है, जिसमें इंजन पर लगी एक बड़ी मुख्य टंकी में 90 से 100 पाउंड प्रति वर्ग इंच की दाब से हवा भर दी जाती है। इंजन के पीछे चलनेवाली गाड़ियों में भी एक एक छोटी सहायक टंकी लगा दी जाती है, जिसमें लगभग 12 से 15 घन फुट तक स्थान रहता है। इंजन रेलगाड़ी में जुत जाने पर इंजन की मुख्य टंकी में से दबी हवा को ट्रेन पाइप में छोड़ दिया जाता है, जो पाइप की शाखाओं में से होती हुई सहायक टंकी में भर जाती है, लेकिन गाड़ी में लगे ब्रेक सिलिंडरों में यह हवा केवल उसी समय पहुँचती है जब ब्रेक लगाना आवश्यक होता है। इंजन में ड्राइवर के ब्रेक नियंत्रक वाल्व के निकट ही भरण (feed) वाल्व लगा होता है, जिसके माध्यम से गाड़ी के चलने की हालत में उसकी सब टंकी आदि में 70 पाउंड प्रति वर्ग इंच के लगभग हवा की दाब बनी रहती है। तब ड्राइवर अपनी इच्छा से ब्रेक लगाना चाहता है, अथवा कोई बिगाड़ होने के कारण जब स्वत: ही ब्रेक लगने लगते हैं, उस समय ट्रेन पाइप की हवा किसी न किसी मार्ग से, चाहे वह ड्राइवर अथवा गार्ड का ब्रेक वाल्व हो अथवा कोई अन्य मार्ग हो, वायुमंडल में निकलने लगती है, जिससे ट्रेन पाइप की हवा की दाब घटते ही सब गाड़ियों में लगे ट्रिपल वाल्वों के पिस्टन सरक जाते हैं।
0.5
1,510.746927
20231101.hi_174163_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95
ब्रेक
इससे प्रत्येक गाड़ी की टंकियों में भरी हुई दबी हवा ब्रेक सिलिंडरों में जाकर उनके पिस्टनों की ताकत से सरका देती है, जिससे लीवरों के जरिए ब्रेक गुटके चक्कों को पकड़ लेते हैं। ब्रेकों को छुड़ाने के लिए इंजन की मुख्य टंकी में से दबी हवा फिर से ट्रेन पाइप में भर दी जाती है, जिससे उसमें दबाव बढ़ जाने से ट्रिपल वाल्वों के पिस्टन अपने पुराने स्थानों पर लौट आते हैं। इससे ब्रेक सिलिंडरों में भरी दबी हवा का मार्ग ट्रिपल वाल्व के माध्यम से वायुमंडल में खुल जाता है और ब्रेक छूट जाते हैं।
0.5
1,510.746927
20231101.hi_174163_19
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95
ब्रेक
निर्वात ब्रेक जिन गाड़ियों में लगा होता है उनके प्रत्येक वाहन में एक सिलिंडर लगा होता है, जिसमें एक सरकता हुआ पोला पिस्टन उसे दो वायुरोधी (airtight) भागों में बाँट देता है। जिस समय गाड़ियाँ बेकार खड़ी होती हैं, उस समय सिलिंडर में पिस्टन में दोनों तरफ साधारण हवा भरी रहती है और पिस्टन अपने बोझे से नीचे की तरफ बैठा रहता है। गाड़ियों को इंजन में जोत देने पर, ट्रेन पाइपों के माध्यम से उन सब सिलिंडरों को इंजन में लगे वायुनिष्कासक यंत्र (ejector) से संबंधित कर देते हैं और बॉयलर की वाष्प की द्रुतगामिनी धारा की सहायता से वह यंत्र समग्र गाड़ियों के ट्रेन पाइप और उससे संबंधित सिलिंडरों की हवा को चूषण क्रिया द्वारा बाहर फेंककर, उनमें 22 इंच तक निर्वातन कर देता है। निर्वातन के समय भी पिस्टन के दोनों और निर्वात हो जाने के कारण, वह यथापूर्व अपने बोझे से नीचे ही बैठा रहता है। जब ब्रेक लगाना होता है, उस समय ड्राइवर अपने वाल्व, अथवा गार्ड अपने वाल्व, के द्वारा; अथवा यात्री लोग जंजीर खींचकर; एक छोटे वाल्व द्वारा ट्रेन पाइप में हवा को प्रविष्ट करवा देते हैं। इससे वह पाइप की शाखाओं में से होती हुई ब्रेक सिलिंडरों में पिस्टनों के नीचे की ओर पहुँच जाती है। उसके ऊपर की ओर जाने के रास्ते में एक गोलीनुमा वाल्व लगा रहता है, जो हवा के दबाव से बंद हो जाता है और हवा ऊपर न जा सकनेके कारण पिस्टन ऊपर निर्वात बना रहता है। अत: नीचे से वायुमंडल की हवा उसे ऊपर उठा देती है, जिससे पिस्टन दंड से संबंधित ब्रेक गुटकों के चक्कों को पकड़ लेते हैं। ब्रेक को छुड़ाने के लिए फिर से निर्वात करने पर, जब पिस्टन के नीचे आई हुई हवा निकल जाती है, तब पिस्टन के दोनों ओर एक सी दाब होने के कारण अपने बोझे से वह नीचे बैठ जाता है और ब्रेक छूट जाते हैं।
0.5
1,510.746927
20231101.hi_43720_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
अमरकोश
इस कोश में प्राय: दस हजार नाम हैं, जहाँ मेदिनी में केवल साढ़े चार हजार और हलायुध में आठ हजार हैं। इसी कारण पण्डितों ने इसका आदर किया और इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई।
0.5
1,505.090274
20231101.hi_43720_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
अमरकोश
अमरकोश श्लोकरूप में रचित है। इसमें तीन काण्ड (अध्याय) हैं। स्वर्गादिकाण्डं, भूवर्गादिकाण्डं और सामान्यादिकाण्डम्। प्रत्येक काण्ड में अनेक वर्ग हैं। विषयानुगुणं शब्दाः अत्र वर्गीकृताः सन्ति। शब्दों के साथ-साथ इसमें लिंगनिर्देश भी किया हुआ है।
0.5
1,505.090274
20231101.hi_43720_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
अमरकोश
अन्य संस्कृत कोशों की भाँति अमरकोश भी छंदोबद्ध रचना है। इसका कारण यह है कि भारत के प्राचीन पण्डित "पुस्तकस्था' विद्या को कम महत्त्व देते थे। उनके लिए कोश का उचित उपयोग वही विद्वान् कर पाता है जिसे वह कणृठस्थ हो। श्लोक शीघ्र कण्ठस्थ हो जाते हैं। इसलिए संस्कृत के सभी मध्यकालीन कोश पद्य में हैं। इतालीय पडित पावोलीनी ने सत्तर वर्ष पहले यह सिद्ध किया था कि संस्कृत के ये कोश कवियों के लिए महत्त्वपूर्ण तथा काम में कम आनेवाले शब्दों के संग्रह हैं। अमरकोश ऐसा ही एक कोश है।
0.5
1,505.090274
20231101.hi_43720_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
अमरकोश
अमरकोश का वास्तविक नाम अमरसिंह के अनुसार नामलिगानुशासन है। नाम का अर्थ यहाँ संज्ञा शब्द है। अमरकोश में संज्ञा और उसके लिंगभेद का अनुशासन या शिक्षा है। अव्यय भी दिए गए हैं, किन्तु धातु नहीं हैं। धातुओं के कोश भिन्न होते थे (काव्यप्रकाश, काव्यानुशासन आदि)। हलायुध ने अपना कोश लिखने का प्रयोजन कविकंठविभूषणार्थम् बताया है। धनंजय ने अपने कोश के विषय में लिखा है - मैं इसे कवियों के लाभ के लिए लिख रहा हूँ (कवीनां हितकाम्यया)। अमरसिंह इस विषय पर मौन हैं, किन्तु उनका उद्देश्य भी यही रहा होगा।
0.5
1,505.090274
20231101.hi_43720_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
अमरकोश
अमरकोश में साधारण संस्कृत शब्दों के साथ-साथ असाधारण नामों की भरमार है। आरम्भ ही देखिए- देवताओं के नामों में लेखा शब्द का प्रयोग अमरसिंह ने कहाँ देखा, पता नहीं। ऐसे भारी भरकम और नाममात्र के लिए प्रयोग में आए शब्द इस कोश में संगृहीत हैं, जैसे-देवद्रयंग या विश्द्रयंग (3,34)। कठिन, दुलर्भ और विचित्र शब्द ढूंढ़-ढूंढ़कर रखना कोशकारों का एक कर्तव्य माना जाता था। नमस्या (नमाज या प्रार्थना) ऋग्वेद का शब्द है (2,7,34)। द्विवचन में नासत्या, ऐसा ही शब्द है। मध्यकाल के इन कोशों में, उस समय प्राकृत शब्द भी संस्कृत समझकर रख दिए गए हैं। मध्यकाल के इन कोशों में, उस समय प्राकृत शब्दों के अत्यधिक प्रयोग के कारण, कई प्राकृत शब्द संस्कृत माने गए हैं; जैसे-छुरिक, ढक्का, गर्गरी (प्राकृत गग्गरी), डुलि, आदि। बौद्ध-विकृत-संस्कृत का प्रभाव भी स्पष्ट है, जैसे-बुद्ध का एक नामपर्याय अर्कबन्धु। बौद्ध-विकृत-संस्कृत में बताया गया है कि अर्कबन्धु नाम भी कोश में दे दिया। बुद्ध के 'सुगत' आदि अन्य नामपर्याय ऐसे ही हैं।
1
1,505.090274
20231101.hi_43720_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
अमरकोश
अमरकोष पर आज तक ४० से भी अधिक टीकाओं का प्रणयन किया जा चुका है। उनमें से कुछ प्रमुख टीकाएँ निम्नलिखित हैं –
0.5
1,505.090274
20231101.hi_43720_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
अमरकोश
१. अमरकोशोद्घाटन : इसके रचनाकार क्षीरस्वामी हैं। यह क्षीरस्वामी का प्रमेयबहुल ग्रन्थ है। यह अमरकोष की सबसे प्राचीन टीका है। क्षीरस्वामी के समय के विषय में स्पष्टरूप से नहीं कहा जा सकता। परन्तु विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इनका समय १०८० ई० से ११३० ई० के मध्य निर्धारित किया जा सकता है।
0.5
1,505.090274
20231101.hi_43720_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
अमरकोश
२. टीका सर्वस्व : इसके रचनाकार सर्वानन्द हैं। ये बंगाल के निवासी थे। इनके विषय में स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिसके अनुसार इनका समय ११५९ ई० है।
0.5
1,505.090274
20231101.hi_43720_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
अमरकोश
३. कामधेनु : इसके रचनाकार सुभूतिचन्द्र हैं। इस टीका का अनुवाद तिब्बती भाषा में भी उपलब्ध है। इनका समय ११९१ ई० के आसपास है।
0.5
1,505.090274
20231101.hi_190160_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2
डिंगल
'डिंगल' शब्द का प्रयोग जैन कवि वाचक कुशलाभ द्वारा कृत 'उडिंगल नाम माला' और संत-कवि सायांजी झूला द्वारा कृत 'नाग-दमन' में भी मिलता है, जो दोनों ग्रंथ 15 वीं शताब्दी की शुरुआत में लिखे गये थे।
0.5
1,502.702463
20231101.hi_190160_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2
डिंगल
झवेरचंद मेघाणी के अनुसार, डिंगल, एक चारणी भाषा, अपभ्रंश और प्राकृत से विकसित हुई थी। मेघाणी ने डिंगल को एक भाषा और काव्य माध्यम दोनों के रूप में माना, जो "राजस्थान और सौराष्ट्र के बीच स्वतंत्र रूप से बहती थी और सिंधी और कच्छी जैसी अन्य ध्वन्यात्मक भाषाओं की रूपरेखा के अनुरूप ढल जाती थी"।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2
डिंगल
डिंगल भाषा की एक दिलचस्प विशेषता यह है कि इसमें प्रारंभिक मध्ययुगीन काल के पुरातन शब्दों को संरक्षित करके रखा गया है जो कहीं और नहीं मिलते हैं। डिंगल, अन्य उत्तरी हिन्द-आर्य भाषाओं से अलग है, क्योंकि यह कई पुराने भाषा रूप व नव-व्याकरणिक और शाब्दिक निर्माणों को सम्मालित करती है। पश्चिमी राजस्थान में डिंगल की भौगोलिक उत्पत्ति के कारण, डिंगल शब्दावली अनेकों सिंधी, फारसी, पंजाबी और संस्कृत के शब्दों को भी साझा करती है।
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डिंगल
टेसिटोरी डिंगल कवियों की पुरातन शब्दावली की व्याख्या इस प्रकार करते है:व्याकरण की तुलना में शब्द शब्दावली के मामले में चारण अधिक रूढ़िवादी रहे हैं, और अधिकांश काव्य और पुरातन शब्द जो पांच सौ साल पहले उनके द्वारा उपयोग किए गए थे, आज भी वर्तमान समय के चारणों द्वारा उपयोग किए जा सकते हैं, हालांकि उनके अर्थ अब किसी भी श्रोता या पाठक के लिए बोधगम्य नहीं है, केवल डिंगल-परंपरा में दीक्षित के सिवाय। डिंगल में पुरातन शब्दों के संरक्षण के इस तथ्य को 'हमीर नाम-माला' और 'मनमंजरि नाम-माला' जैसे काव्य शब्दावलियों, आदि के अस्तित्व द्वारा आसानी से समझा जा सकता है, जो पिछली तीन शताब्दियों या उससे अधिक समय से चारणों के अध्ययन-पाठ्यक्रम में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
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डिंगल
ऐतिहासिक रूप से पश्चिमी राजस्थान की भाषा डिंगल के नाम से जानी जाती थी। डिंगल को मरु-भाषा (अन्यथा मारवाड़ी भाषा, मरुभौम भाषा, आदि) के समान माना जाता था।
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डिंगल
डिंगल लेखकों के ग्रन्थों में कई ऐतिहासिक उदाहरण मिलते हैं जो इस दृष्टिकोण की पुष्टि करते हैं कि इस क्षेत्र की बोली जाने वाली भाषा को डिंगल भी कहा जाता है। पदम भगत द्वारा 15वीं शताब्दी के अंत में रचित अख्यान काव्य पाठ 'रुकमणी मंगल' या 'हाराजी रो व्यावालो' बोली जाने वाली भाषा में लिखित है। इसकी एक पांडुलिपि में एक दोहा मिलता है: 'मेरी कविता की भाषा डिंगल है। यह कोई मीटर या निरंतरता नहीं जानती। इसमें केवल दिव्य चिंतन शामिल है'। 19-वी शताब्दी के प्रारम्भ में चारण संत स्वरूपुदास अपने ग्रंथ 'पांडव यशेंदु चंद्रिका' में लिखते हैं: 'मेरी भाषा मिश्रित है। इसमें डिंगल, ब्रज और संस्कृत शामिल हैं, ताकि सभी समझ सकें। मैं इसके लिए विद्वान कवियों से क्षमा चाहता हूँ।'
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डिंगल
यद्यपि यह सत्य है कि अधिकांश डिंगल साहित्य की रचना चारणों द्वारा की गई थी, अन्य जातियों ने भी इसे अपनाया और महान योगदान दिया। चारण के अलावा, राजपूत, पंचोली (कायस्थ), मोतीसर, ब्राह्मण, रावल, जैन, मुहता (ओसवाल) और भाट समुदायों के कई कवियों द्वारा डिंगल साहित्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
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डिंगल
'डिंगल गीत' डिंगल की एक अनूठी विशेषता है और इसे चारणों द्वारा आविष्कारित माना जाता है। डिंगल गीतों में एक महत्वपूर्ण अंतर है। यह धारणा कि ये 'गीत' गाए गए थे, भ्रामक है। वैदिक भजनों के समान ही चारणों द्वारा डिंगल गीत का पाठ किया गया था। यह राजस्थानी काव्य की एक अनूठी विशेषता है। जैसे अपभ्रंश में दोहा सबसे लोकप्रिय मीटर है, वैसे ही राजस्थानी के लिए 'गीत' है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2
डिंगल
'गीत' 120 प्रकार के होते हैं। आमतौर पर डिंगल छंद ग्रंथों में 70-90 प्रकार के गीतों का प्रयोग किया गया है। एक गीत एक छोटी कविता की तरह है। इसे गाया नहीं जाना चाहिए बल्कि "एक विशेष शैली में उच्च स्वर में" कहा जाना चाहिए।
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टार्ज़न
1958 में, फिल्म टार्जन गॉर्डन स्कॉट को एक टेलिविज़न श्रृंखला के तीन एपिसोड्स के रूप में प्रसारित किया गया।
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टार्ज़न
कार्यक्रम की बिक्री नहीं हुई, लेकिन एक अलग तरह का लाइव एक्शन टार्ज़न सीरीज एनबीसी (NBC) पर 1966 से 1968 तक चला, जिसमें रोन एली ने अभिनय किया। फिल्मांकन से एक एनिमेटेड श्रृंखला, टार्ज़न, लोर्ड ऑफ़ द जंगल, 1976 से 1977 तक चली, जिससे पहले कई कार्यक्रम प्रसारित किये जा चुके थे, ये कार्यक्रम हैं बेटमेन/टार्ज़न एडवेंचर आर (Batman/Tarzan Adventure Hour) (1977–1978), टार्ज़न एंड द सुपर 7 (Tarzan and the Super 7) (1978–1980), द टार्ज़न/लोने रेंजर एडवेंचर आर (The Tarzan/Lone Ranger Adventure Hour) (1980–1981) और द टार्ज़न/लोने रेंजर/ जोरो एडवेंचर आर (The Tarzan/Lone Ranger/Zorro Adventure Hour) (1981–1982)
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टार्ज़न
जो लारा ने एक अलग तरह की टीवी फिल्म टार्ज़न इन मैनहट्टन (1989) में शीर्षक भूमिका निभाई और बाद में पूरी तरह से अलग एक नयी लाइव-एक्शन सीरीज़ Tarzan: The Epic Adventures (1996) में लौट गए।
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टार्ज़न
इसी बीच लारा के साथ दो प्रोडक्शन किये गए, टार्ज़न (Tarzán), एक आधे घंटे की सिंडिकेटेड सीरीज़ जो 1991 से 1994 तक चली.
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टार्ज़न
शो के इस संस्करण में, टार्ज़न को एक पर्यावरणविद् के रूप में चित्रित किया गया था, औ जेन को एक फ्रांसीसी परिस्थितिकी विज्ञानी में बदल दिया गया।
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टार्ज़न
नवीनतम टेलीविजन श्रृंखला लाइव एक्शन टार्ज़न (2003) थी, जिसमें पुरुष मॉडल ट्रेविस फिम्मल ने अभिनय किया और इसकी सेटिंग को समकालीन न्यूयोर्क शहर के अनुसार अद्यतन (अपडेट) किया गया, इसमें जेन पुलिस की एक जासूस थी, जिसकी भूमिका
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टार्ज़न
1981 का एक टेलीविजन स्पेशल, द मपेट्स गो टू द मूवीस, "टार्ज़न एंड जेन" शीर्षक से युक्त एक छोटे स्केच को चित्रित करता है।
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टार्ज़न
1921 में टार्ज़न ऑफ़ द एप्स का एक ब्रोडवे प्रोडक्शन किया गया, जिसमें रोनाल्ड अदाइर ने टार्ज़न की और एथल दायेर ने जेन पोर्टर की भूमिका निभाई.
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टार्ज़न
1976 में, रिचर्ड ओ ब्रेन एक संगीत लिखा जिसका शीर्षक था टी. ज़ी, जो शिथिल रूप से टार्ज़न पर आधारित था लेकिन इसे फिर से रॉक इडियम की शैली में बनाया गया।
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कवर्धा
कवर्धा सकरी नदी के तट पर कवर्धा नगर बसा हुआ है। पहले यहां पर नागवंशी और हेहेवंशी शासकों का शासन था। उन्होंने यहां पर अनेक मन्दिर और किले बनवाए थे। इन मन्दिरों और किलों के अवशेष आज भी देखे यहां जा सकते हैं। पर्यटकों को यह अवशेष बहुत पसंद आते हैं। किलों और मन्दिरों के अलावा पर्यटक यहां पर सतपुड़ा की पहाड़ियों की मैकाल पर्वत श्रृंखला देख सकते हैं। इसकी अधिकतम ऊंचाई 925 मी. है। पर्यटक चाहें तो इन पहाड़ियों पर रोमांचक यात्राओं का आनंद ले सकते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कवर्धा
इतालवी मार्बल से बना कवर्धा महल बहुत सुन्दर है। इसका निर्माण महाराजा धर्मराज सिंह ने 1936-39 ई. में कराया था। यह महल 11 एकड़ में फैला हुआ है। महल के दरबार के गुम्बद पर सोने और चांदी से नक्काशी की गई है। गुम्बद के अलावा इसकी सीढ़ियां और बरामदे भी बहुत खूबसूरत हैं, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। इसके प्रवेश द्वार का नाम हाथी दरवाजा है, जो बहुत सुन्दर है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कवर्धा
इस मन्दिर का निर्माण राजा उजीयार सिंह ने 180 वर्ष पहले कराया था। प्राचीन समय में साधु-संत मन्दिर के भूमिगत कमरों में कठिन तपस्या किया करते थे। इन भूमिगत कमरों को पर्यटक आज भी देख सकते हैं। मन्दिर के पास एक तालाब भी बना हुआ है। इसका नाम उजीयार सागर है। तालाब के किनारे से मन्दिर के खूबसूरत दृश्य दिखाई देते हैं, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कवर्धा
राधाकृष्ण मन्दिर के अलावा पर्यटक यहां पर भोरमदेव माण्डवा महल और मदन मंजरी महल मन्दिर भी देख सते हैं। यह तीनों मन्दिर एक-दूसरे के काफी नजदीक हैं। भोरमदेव माण्डवा महल और मदन मंजरी महल मन्दिर पुष्पा सरोवर के पास स्थित हैं। इन दोनों मन्दिरों के निर्माण में मुख्य रूप से मार्बल का प्रयोग किया गया है। सरोवर के किनार पर्यटक चहचहाते पक्षियों को भी देख सकते हैं।
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कवर्धा
भोरमदेव मंदिर जिला मुख्यालय कवर्धा से उत्तर पश्चिम में 18 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा मैकल पहाड़ियों के पाद तल में बसे हुए चौरा गांव में स्थित है। भोरमदेव मंदिर का निर्माण फणी नागवंश के छठवें राजा गोपाल देव द्वारा 11 वीं शताब्दी 1087 ई में कराया गया था। मंदिर में बनाए गए तीन प्रवेश द्वार जो तीनों की आकृति अर्द्ध मंडप जैसी ही दिखाई देती है। इस मंदिर मंडप में 16 स्तंभ तथा चारों कोनों पर चार अलंकृत भित्ति स्तंभ है। मंदिर के वर्गाकार गर्भगृह में हाटकेश्वर महादेव विशाल जलाधारी के मध्य प्रतिष्ठित है। गर्भगृह में ही पद्मासना राजपुरूष सपत्नीक,पदमासना सत्पनीक ध्यान मग्य योगी,नृत्य गणपति की अष्ठभूजी प्रतिमा तथा फणीनागवंशी राजवंश के प्रतीक पांच फणों वाले नाग प्रतिमा रखी हुई है। काले भूरे बलुआ पत्थरों से निर्मित मंदिरी की वाहय दीवानों पर देवी देवताओं की चित्ताकर्षक एवं द्विभुजी सूर्यप्रतिमा प्रमुख है। मंदिर के वाह्य सौदर्य दर्शन का सबसे उपयुक्त स्थल ईशान कोण अर्थात भोरवदेव के ठीक सामने है,यहां से मंदिरन रथाकार दिखाई देखता है। यह मंदिर तल विन्यास से सप्तरथ चतुरंग,अंतराल,अंलकृत, स्तंभों से युक्त वर्गाकार मण्डप है। उध्र्व विन्यास में उधिष्ठान जंघा एवं शिखर मंदिर के प्रमुख अंग हे। मंदिर के जंघा की तीन पंकित्यों में विभिन्न देवी देवताओं की कृष्णलीला, नायक-नायिकाओं, अष्ठद्विकपालों, युद्ध एवं मैथुन दृष्यों में अलंककरण किया गया है।
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कवर्धा
छेरकी महल भोरमदेव मंदिर के दक्षिण-पश्चिम में एक किलोमीटर की दूरी पर यह छेरकी महल स्थापित है। इस ऐतिहातिक एवं पुरात्व महत्व के छेरकीमहल में शिव भगवान विराजित है। ईंट प्रस्त्र निर्मित इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। 14 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में निर्मित इस मंदिर में छेरी बकरी का गंध आज भी आती है, इसलिए इस मंदिर नुमा महल को छेरकी महल के नाम से जाना जाता है। द्वार चैखट की वाम पाश्र्व द्वारा शाखा में नीचे चर्तुभूजी शिव एवं द्विभुजी पार्वती खड़े है। मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है। मध्य में कृष्ण प्रस्तर निर्मित शिवलिंग जलाधारी पर स्थापित है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कवर्धा
भोरमदेव मंदिर से आधे किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में चैरा ग्राम के समीप एक प्रस्तर निर्मित पश्चिमांभिमुख एक शिव मंदिर है, जिसे मड़वा महल कहा जाता है। स्थानीय लोग इस दूल्हादेव मंदिर के नाम से जानते है। इस मंदिर का निर्माण फणिनागवंश के चैबीसवें राजा रामचन्द्र देवराज द्वारा 1349 ई में रतनपुर राज्य की कलचुरी राजकुमारी अंबिका देवी के संग विवाहोपरांत करवाया गया था। मड़वा महल के शिलालेख से मिलती हे। इस शिलालेख में फणिनावंश की उत्पत्ति तथा वंशावली दी गई है।
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कवर्धा
वायु मार्ग - कवर्धा रायपुर से 120 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। रायपुर में पर्यटकों के लिए हवाई अड्डे का निर्माण किया गया है और यहां से पर्यटक आसानी से कवर्धा तक पहुंच सकते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कवर्धा
रेल मार्ग - रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनंदगांव, डोंगरगढ़ और जबलपुर रेलवे स्टेशन से आसानी से कवर्धा तक पहुंचा जा सकता है। रायपुर से कवर्धा आने के लिए पर्यटकों को ज्यादा आसानी रहती है क्योंकि वहां से कवर्धा तक काफी अच्छी बस सेवा है।
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बिहारशरीफ
अधिकतर शादियां माता-पिता के द्वारा ही निर्धारित-निर्देशानुसार होती है। विवाह में संतान की इच्छा की मान्यता परिवार पर निर्भर करती है। विवाह को पवित्र माना जाता है और तलाक की बात सोचना (मुस्लिम परिवारों में भी) एक सामाजिक अपराध समझा जाता है। शादियाँ उत्सव की तरह आयोजित होती है और इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भरमार रहती है। कुछेक पर्वों को छोड़ दिया जाय तो वास्तव में विवाह के अवसर पर ही लोक-कला की सर्वोत्तम झांकी दिखाई देती है। इस अवसर पर किए गए खर्च और भोजों की अधिकता कई परिवारों में विपन्नता का कारण बनता है। दहेज का चलन ज्यादातर हिंदू एवं मुस्लिम परिवारों में बना हुआ है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AB
बिहारशरीफ
दीवाली, दुर्गापूजा, होली, बसंत पंचमी, शिवरात्रि, रामनवमी, जन्माष्टमी हिंदुओं का महत्वपूर्ण लोकप्रियतम पर्वो में से है, जबकि मुसलमानो का महत्वपूर्ण त्यौहार मुहर्रम, ईद और बकरीद है।
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बिहारशरीफ
छठ इस क्षेत्र के लिए सबसे पवित्र त्योहार है। इसका महत्व के रूप में यह धर्म के सभी बाधाओं को खारिज कर देता है देखा जा सकता है। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा भाव और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।
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बिहारशरीफ
आबादी का मुख्य भोजन भात-दाल-रोटी-तरकारी-अचार है। सरसों का तेल पारम्परिक रूप से खाना तैयार करने में प्रयुक्त होता है। खिचड़ी, जोकि चावल तथा दालों से साथ कुछ मसालों को मिलाकर पकाया जाता है, भी भोज्य व्यंजनों में काफी लोकप्रिय है। खिचड़ी, प्रायः शनिवार को, दही, पापड़, घी, अचार तथा चोखा के साथ-साथ परोसा जाता है।
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1,498.739547
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AB
बिहारशरीफ
बिहारशरीफ को केन्द्रीय बिहार के मिष्ठान्नों तथा मीठे पकवानों के लिए भी जाना जाता है। इनमें खाजा, मावे का लड्डू, मोतीचूर के लड्डू, काला जामुन, केसरिया पेड़ा, परवल की मिठाई, खोये की लाई और चना मर्की का नाम लिया जा सकता है। इन पकवानो का मूल इनके सम्बन्धित शहर हैं जो कि बिहारशरीफ के निकट हैं, जैसे कि सिलाव का खाजा, बाढ का मावे का लाई, मनेर का लड्डू, विक्रम का काला जामुन, गया का केसरिया पेड़ा, बख्तियारपुर का खोये की लाई पटना का चना मर्की, बिहिया की पूरी इत्यादि उल्लेखनीय है। वैसे यहा की रबरी काफी मशहूर है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AB
बिहारशरीफ
चिवड़ा या चूड़ा - चावल को कूट कर या दबा कर पतले तथा चौड़ा कर बनाया जाता है। इसे प्रायः दही या अन्य चाजो के साथ ही परोसा जाता है।
0.5
1,498.739547
20231101.hi_34625_12
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बिहारशरीफ
सत्तू - भूने हुए चने को पीसने से तैयार किया गया सत्तू, दिनभर की थकान को सहने के लिए सुबह में कई लोगो द्वारा प्रयोग किया जाता है। इसको रोटी के अन्दर भर कर भी प्रयोग किया जाता है जिसे स्थानीय लोग मकुनी रोटी कहते हैं।
0.5
1,498.739547
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बिहारशरीफ
लिट्टी चोखा - लिट्टी जो आंटे के अन्दर सत्तू तथा मसाले डालकर आग पर सेंकने से बनता है, को चोखे के साथ परोसा जाता है। चोखा उबले आलू या बैंगन को गूंथने से तैयार होता है।
0.5
1,498.739547
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बिहारशरीफ
आमिष व्यंजन भी लोकप्रिय हैं। मछली काफी लोकप्रिय है और मुग़ल व्यंजन भी बिहारशरीफ में देखे जा सकते हैं।
0.5
1,498.739547
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गैलियम
गैलियम सरल क्रिस्टल संरचनाओं में से किसी में मणिभ नहीं है। सामान्य परिस्थितियों में स्थिर चरण पारंपरिक इकाई कक्ष में 8 परमाणुओं के साथ orthorhombic है। एक इकाई कोशिका के भीतर, प्रत्येक परमाणु (244 बजे की दूरी पर) केवल एक निकटतम पड़ोसी है। शेष छह यूनिट सेल पड़ोसियों 27 स्थान दिया गया है, 30 और 39 बजे दूर दूर, और वे एक ही दूरी के साथ जोड़े में बांटा जाता है। [15] कई स्थिर और metastable चरणों तापमान और दबाव के समारोह के रूप में पाए जाते हैं। [16]
0.5
1,493.356914
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गैलियम
दो निकटतम पड़ोसी देशों के बीच संबंधों के सहसंयोजक है; इसलिए GA2 dimers क्रिस्टल के मौलिक ब्लॉकों इमारत के रूप में देखा जाता है। यह कम गलनांक पड़ोसी तत्वों, एल्यूमीनियम और ईण्डीयुम के सापेक्ष बताते हैं। इस संरचना ऊँची आयोडीन और क्योंकि गैलियम परमाणुओं के एकल 4P इलेक्ट्रॉनों के बीच बातचीत के रूपों के समान है, आगे 4S इलेक्ट्रॉनों और [ar] 3d10 कोर की तुलना में नाभिक से दूर है। यह घटना अपने 'छद्म नोबल गैस "[Xe] 4f145d106s2 इलेक्ट्रॉन विन्यास, जो कमरे के तापमान पर तरल है साथ पारा के साथ बारंबार। [17] 3d10 इलेक्ट्रॉनों नाभिक से बहुत अच्छी तरह से बाहरी इलेक्ट्रॉनों को ढाल नहीं है और इसलिए गैलियम की पहली आयनीकरण ऊर्जा एल्यूमीनियम की तुलना में अधिक है। [4]
0.5
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गैलियम
गैलियम के भौतिक गुणों अत्यधिक anisotropic कर रहे हैं, साथ में तीन प्रमुख crystallographical कुल्हाड़ियों ए, बी, और सी (तालिका देखें), रैखिक (α) और मात्रा थर्मल विस्तार गुणांक के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर का निर्माण अर्थात अलग मूल्य नहीं है। गैलियम के गुणों को विशेष रूप से पिघलने बिंदु के पास, दृढ़ता से तापमान पर निर्भर कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, थर्मल विस्तार के गुणांक पिघलने पर कई सौ प्रतिशत तक बढ़ जाती है। [14]
0.5
1,493.356914
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गैलियम
गैलियम मुख्य रूप से 3 ऑक्सीकरण राज्य में पाया जाता है। +1 ऑक्सीकरण भी कुछ यौगिकों में पाया जाता है। उदाहरण के लिए, बहुत स्थिर GaCl2 दोनों गैलियम (आई) और गैलियम (तृतीय) में शामिल है और GaIGaIIICl4 के रूप में तैयार किया जा सकता है; इसके विपरीत, monochloride 0 डिग्री सेल्सियस मौलिक गैलियम और गैलियम (तृतीय) क्लोराइड में disproportionating ऊपर अस्थिर है। गैलियम गैलियम बांड युक्त यौगिकों सच गैलियम (द्वितीय) यौगिकों हैं; उदाहरण के लिए, गैस तैयार की जा सकती है Ga24 + (S2-) 2, और dioxan जटिल Ga2Cl4 (C4H8O2) 2 एक गा-गा बंधन होता है। [18]
0.5
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गैलियम
गैलियम केवल अपेक्षाकृत उच्च तापमान पर chalcogens साथ प्रतिक्रिया करता है। कमरे के तापमान पर, गैलियम धातु, क्योंकि यह एक निष्क्रिय, सुरक्षात्मक ऑक्साइड परत रूपों हवा और पानी के साथ प्रतिक्रियाशील नहीं है। उच्च तापमान पर, तथापि, यह वायुमंडलीय ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करता गैलियम के लिए फार्म (तृतीय) ऑक्साइड, गा
1
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गैलियम
700 डिग्री सेल्सियस के लिए 500 डिग्री सेल्सियस पर निर्वात में मौलिक गैलियम के साथ 3, पैदावार गहरे भूरे रंग गैलियम (आई) ऑक्साइड गा
0.5
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गैलियम
3, 3 संभव क्रिस्टल संशोधनों है [21]:। 104 यह हाइड्रोजन सल्फाइड के साथ गैलियम की प्रतिक्रिया से बनाया जा सकता है (एच
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
गैलियम
गैलियम भी गैलियम (द्वितीय) सल्फाइड और हरे रंग गैलियम (मैं) सल्फाइड, जो बाद के नाइट्रोजन की एक धारा के तहत 1000 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने से पूर्व से निर्मित है के रूप में कम ऑक्सीकरण राज्यों में sulfides रूपों [21]।: 94
0.5
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गैलियम
3, zincblende संरचना है। वे सभी अर्धचालकों हैं, लेकिन आसानी से HYDROLYSED कर रहे हैं और सीमित उपयोगिता है [21]:। 104
0.5
1,493.356914
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गोपनीयता
कुछ न्यायालयों ने इस परंपरागत विवेकाधीन शुल्क को अनिवार्य बना दिया है। उदाहरण के लिए, न्यू जर्सी और वर्जीनिया के व्यावसायिक आचरण नियम 1.6 देखें।
0.5
1,490.260222
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गोपनीयता
कुछ न्यायालयों में वकील कोई भी अन्यथा गोपनीय जानकारी का खुलासा करने से पहले अपने ग्राहक को कानून की सीमाओं के अनुरूप आचरण करने के बारे में समझाने का प्रयास करना आवश्यक है।
0.5
1,490.260222
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
गोपनीयता
ध्यान दें कि इन अपवादों में पहले से घटित अपराध शामिल नहीं हैं, यहां तक कि चरम मामलों में हत्यारे द्वारा अपने वकील को उस गुम लाश का स्थान बताने पर भी, जिसके पुलिस को तलाश है। अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट और कई राज्य सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी स्थितियों में जानकारी दबा कर रखने के लिए वकील को दृढ़तापूर्वक कहने का अधिकार दिया है। अन्यथा, उत्साही प्रतिरक्षा प्राप्त करना किसी भी आपराधिक प्रतिवादी के लिए नामुमकिन हो सकता है।
0.5
1,490.260222
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गोपनीयता
कैलिफोर्निया दुनिया में गोपनीयता के सबसे मजबूत कर्तव्यों के लिए मशहूर है; इसके वकीलों को अपने ग्राहक की रक्षा "उसके हर जोखिम" में उसका साथ देना होता है। 2004 में किए गए संशोधन तक, कैलिफोर्निया के वकीलों को यह तक खुलासा करने की अनुमति नहीं थी कि उनका कोई ग्राहक हत्या करनेवाला है।
0.5
1,490.260222
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गोपनीयता
ब्रिटेन के नवीनतम कानून में पेशेवर जैसे वकील और लेखाकार गोपनीयता राज्य के खर्चे पर बनाए रख सकते हैं। उदाहरण के लिए, लेखाकारों द्वारा लेखाकंन से संबंधित संदेहास्पद धोखाधड़ी की सूचना राज्य को दिया जाना आवश्यक है, यहां तक कि कर बचत योजनाओं के वैध उपयोग का उपयोग के बारे में भीओतब बताना आवश्यक होता है, जब उन योजनाओं की जानकारी कर अधिकारियों को पहले से नहीं होती है।
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गोपनीयता
गोपनीयता का आधुनिक अंग्रेजी कानून का उद्धभव लॉर्ड चांसलर, लॉर्ड कोटेनहम के न्याय से हुआ था, जिसमें प्रतिवादी को रानी विक्टोरिया और राजकुमार अल्बर्ट (प्रिंस अल्बर्ट वी स्ट्रेज़) द्वारा बनाए गए निजी की सूची प्रकाशित करने से मना किया गया था।
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गोपनीयता
हालांकि, न्याय की बुद्धिमानी साल्टमैन इंजीनयरिंग कं लिमिटेड बनाम कैम्पबेल इंजीनयरिंग कं लिमिटेड के केस के पहले तक कभी कभी गोपनीयता के न्यायिक बुद्धिमता के आधार पर किसी भी केस की जांच नही की गई थी, जिसमें अपील की कोर्ट न्यायसंगत गोपनीयता के सिद्धांत, स्वतंत्र अनुबंध की उपस्थिति दर्ज की गई थी।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
गोपनीयता
कोको बनाम ए. एन. क्लार्क (इंजीनियर्स) लिमिटेड (1969), आर. पी. सी. 41, के केस में मेगारे जे ने विश्वास-भंग पर की गयी कार्रवाई के कारण मिली आवश्यक समग्रियों का एक प्रभावी त्रि-पक्षीय विश्लेषण विकसित किया: जानकारी गुणवत्ता के आधार पर गोपनीय रखी जानी चाहिए, जानकारी इस प्रकार दी जानी चाहिए कि गोपनीयता का दायित्व निभाया गया हो और जानकारी देने वाले पक्ष को नुकसान पहुंचाने के लिए उस जानकारी का अनाधिकृत उपयोग किया जाना चाहिए.
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गोपनीयता
उस समय विकास की वर्तमान स्थिति का कानून अधिकारिक रूप से स्पाइकैचर केस में लॉर्ड गोल्फ द्वारा सारांशित किया गया था। उन्होंने किसी व्यक्ति (विश्वासपात्र) को गोपनीय जानकारी के बारे में पता चल जाने पर, जब उसे यह पता हो कि जानकारी गोपनीय है, गोपनीयता के कर्तव्य द्वारा उल्लेखित व्यापक सामान्य सिद्धांत को, इस प्रभाव के साथ सीमित करते हुए तीन प्रतिबंधो की पहचाना कि ऐसा सभी स्थितियों में हो सकता है और उसे इन सूचनाओं को दूसरों को बताने से रोका जाना चाहिए. पहला, जानकारी के सार्वजनिक हो जाने पर, गोपनीय के रूप में उस जानकारी को संरक्षित नहीं किया जा सकता. दूसरा, गोपनीयता का कर्तव्य अनपयोगी सूचना, या साधारण तथ्यों पर लागू नहीं होगी. तीसरा, गोपनीयता के संरक्षण में जनता के हित से सार्वजनिक हित पक्षीय प्रकटीकरण अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है।
0.5
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सिंधुदुर्ग
भारत सरकारने इस किले को दिनांक २१ जून, इ.स. २०१० के दिन महाराष्ट्र का राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया है।
0.5
1,488.541603
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सिंधुदुर्ग
शिवाजी महाराज के सैनिक दल में इस किले को बहुत महत्त्व प्राप्त था। किले के क्षेत्र कुरटे बंदरगाह पर ४८ एकर पर फैला है। तटबंदी की लंबाई साधारणत: तीन किलोमीटर है। बुरुज की संख्या ५२ होकर ४५ पथरीले जिने है। इस किले पर शिवाजी महाराज के काल के मीठे पानी के पथरीले कुँए है। उनके नाम दूध कुऑ शक्कर कुँआ ,दही कुँआ एेसे है। इस किले की तटबंदी की दीवार में छत्रपती शिवाजी महाराज ने उस काल में तीस से चालीस शौचालय की निर्मिति की है। इन किलो में शिवाजी महाराज का शंकर के रूप का एक मंदिर है। यह मंदिर इ.स. १६९५ में शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम महाराज इन्होंने बनाया था।
0.5
1,488.541603
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97
सिंधुदुर्ग
छत्रपती शिवाजी महाराज के आरमारी दल का आद्यस्थान मालवण यहाँ का जंजिरा मतलब यह सिंधुदुर्ग किला है। महाराज के पास ३६२ किले थे। इन सब किलो के पूर्व में विजापूर, दक्षिणेस हुबली, पश्चिमेस अरबी समुद्र और उत्तरेस खानदेश-वऱ्हाड इन देशाे तक का विस्तार है। 'भुईकोट' और पहाड़ी किले के बराबरी में सागरी मार्ग पर शत्रु की स्वारी के लिए जलदुर्ग की निर्मिती महत्त्वपूर्ण है। यह पहचान कर शिवाजी महाराज ने सागरी किल्ले निर्माण किए।अच्छी, मजबूत और सुरक्षित स्थलो को खोज कर समुद्रकिनाऱो का निरीक्षण किया। इ.स. १६६४ साल में मालवण के पास कुरटे नाम का काला कभिन्न चट्टानवाला बंदरगाह किलो के लिए चुना। महाराज के हस्ते किले के तटाे की नींव डाली गई है। आज'मोरयाचा दगड' इस नाम से यह जगह प्रसिद्ध है।एक पत्थर पर गणेशमूर्ती, एक सूर्याकृती और दूसरी ओर चंद्राकार कर महाराज ने पूजा की।
0.5
1,488.541603
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सिंधुदुर्ग
ऐसा कहा जाता है कि, किला बनाने के लिए एक करोड़ 'होन' खर्च करने पडे। यह सब खडा करने के लिए तीन वर्ष का कालावधी लगा। जिन चार कोली लोगों ने सिंधुदुर्ग बनाने के लिए योग्य जगह ढूँढी उन्हें गाँव के गाँव इनाम में दिए गए। ऐतिहासिक सौदर्य से परिपूर्ण सिंधुदुर्ग यह किला जिन कुरटे खडक पर तीन सदी से खडा है वह शुद्ध खडक मालवण से लगभग आधा मील समुद्र में है। इस खडक पर समुद्र मार्ग से व्याप्त क्षेत्र लगभग ४८ एकड है। उसका तट २ मील इतना है। तट की उंचाई ३० फूट और चौड़ाई १२ फूट है। तट पर जगह जगह मजबूत ऐसे कुल मिलाकर २२ बुर्ज है। बुर्ज के आस पास धारदार खडक है। पश्चिम की ओर और दक्षिणे की ओर अथांग सागर फैला है। पश्चिमी दिशा में और दक्षिण की ओर तट के तल पर ५०० खंडी शिसे डाले गए इस तट को बनाने में ८० हजार होन खर्च हुए।
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सिंधुदुर्ग
सिंधुदुर्ग का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा में है। इस जगह प्रवेश द्वार है यह समझ में नहीं आता है। पानी से मनुष्य तट पर उतरा कि उत्तराभिमुख एक खिंड दिखाई देती है इस खिंड से अंदर जाने पर दुर्गाका दरवाजा लगता है। यह दरवाजा मजबूत 'उंबर'के फलों से किया गया है। उंबर की लकड़ी दीर्घकाल टिकती है उसे साग लकडी से मिलाकर बनाया है। अंदर जाने पर हनुमान जी का छोटा मंदिर है। वही से बुर्ज पर जाने के लिए मार्ग है। बुर्ज में जाने पर आजूबाजू का १५ मील का प्रदेश सहज दिखाई देता है। पश्चिमी ओर जरीमरी का मंदिर लगता है। आज भी लोग वहाँ बस्ती करके रहते हैं। श्री शिवराजेश्वर का देवालय और मंडप में महाराज की अन्यत्र कोई भी किलेपर न दिखाई देनेवाली बैठी प्रतिमा सिर्फ यही पर दिखाई देती है। सिंधुदुर्ग किले की प्रमुख विशेषता मतलब इस किले में आज भी हर बारा वर्षाेबाद रामेश्वर की पालखी शिवराजेश्वर यहाँ आती है। अंग्रजाें ने किला अपने अधिकार में लेने के बाद कुछ प्रमाण में वह उद्ध्वस्त कर डाला। किला बनाने के लिए उपयोग में आया चुना आज भी दिखाई देता है। मराठो का भगवा ध्वज और उनका ध्वजस्तंभ २२८ फूट ऊँचा था। इसलिए समुद्र से वह ध्वज सहजरुप से दृष्टीगत होता था।ध्वज को देखकर मच्छिमार खडक से दूर रहते थे। यह भगवा ध्वज इ.स.१८१२ तक फडक रहा था।
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सिंधुदुर्ग
गड पर जगहों जगहें तोप रखने की जगह है। बंदुक रखने के लिए तट पर छेद रखें है।. सैनिकाे के लिए पायखाने है। छत्रपती शिवाजी महाराज ने ३०० वर्ष पहले से सार्वजनिक स्वच्छता का संदेश इसमें से दिखाया है, यह विशेष बात है। कोकण के सिंधुदुर्ग किले की नींव भी छत्रपती शिवाजी महाराज की दृष्टी से अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। र्सिंधुदुर्ग जिले का स्मृतिमय इतिहास मतलब यह किला है। असंख्य सैनिकों के साक्षी ने और परिश्रम से समुद्र में यह हा किला बनाया वह आज भी पर्यटकों को विशेष आकर्षित करता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97
सिंधुदुर्ग
सिंधुदुर्ग किला मालवण से लगभग आधा मील समुद्र में है। १९६१ साली तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण ने तट की दुरुस्ती की।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97
सिंधुदुर्ग
विषेश मतलब इस किले में एक नारीयल के झाड को दो डंगाल (वाय) आकार की थीं। अाजकल उसमें की एक डंगाल तेज बिजली गिरने से टूट गई है।
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सिंधुदुर्ग
मुख्य मतलब इस किले के परिसर में मीठे पानी के तीन कुँए है। उनके नाम दूधबाव, दहीबाव और साखरबाव ऐसे है। इन कुओं का पानी स्वाद में अत्यंत मीठा लगता है। किले के बाहर खारे पानी और अंदर मीठा पानी यह निसर्ग का एक चमत्कार ही मानना पडेगा। इस कारण किले पर रहना सुलभ हुआ था। पानी का अतिरिक्त संग्रह करने के लिए एक सूखा तलाब बांधा गया। फिलहाल इस तलाब के पानी का इस्तेमाल सब्जी उगाने के लिये होता है।
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१९४७
10 फरवरी- पेरिस शांति संधि। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मित्र राष्ट्रों तथा इटली, हंगरी, रोमानिया, बुल्गारिया तथा फिनलैंड के बीच पेरिस शांति संधि हुई।
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१९४७
19 मार्च- 19वीं अकादमी अवार्ड समारोह संपन्न हुआ जिसमें बेस्ट इयर ऑफ आवर लाइफ ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म सहित कई पुरस्कार जीते।
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१९४७
ट्रूमन दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया गया जिसमें अमेरिका ने शित युद्ध में तुर्की और युनान की सहायता के लिए 400 मिलियन डालर का प्रावधान किया गया था।
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१९४७
चार्ल्स डिकिंसके उपन्यास पर बनी डेविड लिंस की फिर्म ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स अमेरिका में प्रदर्शित हुई। समीक्षक इसे डिकिंस के उपन्यासों पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानते हैं।
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१९४७
22 जुलाई- पिंगली वेंकैय्या द्वारा निर्मित भारत के राष्ट्रीय ध्वज को उसके वर्तमान स्वरूप में भारत की संविधान सभा द्वारा अपनाया गया।
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१९४७
पाकिस्तान का स्वाधिनता दिवस। सत्ता का हस्तांतरण ठीक मध्यरात्री को हुआ था पर पाकिस्तान अपना कौमी दिवस 14 अगस्त को मनाता है जबकी भारत अपना स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A7%E0%A5%AF%E0%A5%AA%E0%A5%AD
१९४७
30 अगस्त- भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए डॉ॰ भीम राव अंबेडकर के नेतृत्व में एक प्रारूप समिति का गठन किया गया
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A7%E0%A5%AF%E0%A5%AA%E0%A5%AD
१९४७
13 सितंबर- भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने 40 लाख हिंदूओं और मुसलमानों के पारस्परिक स्थानांतरण का सुझाव दिया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A7%E0%A5%AF%E0%A5%AA%E0%A5%AD
१९४७
20 अक्टूबर- कश्मीर में असैनीक युद्ध आरंभ हो गया। पाकिस्तान ने इस विषय को संयुक्त राष्ट्रसंघ में उठाया।
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आदित्यहृदयम्
19 आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है। सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।
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आदित्यहृदयम्
20 आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं। आपका स्वरुप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।
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आदित्यहृदयम्
21 आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है
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आदित्यहृदयम्
22 रघुनन्दन! ये भगवान् सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं।
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