_id
stringlengths
17
22
url
stringlengths
32
237
title
stringlengths
1
23
text
stringlengths
100
5.91k
score
float64
0.5
1
views
float64
38.2
20.6k
20231101.hi_213393_64
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3
नरभक्षण
1960 और 1970 के दशक में दक्षिण पूर्व एशियाई युद्ध के दौरान पत्रकार नील डेविस ने नरभक्षण की खबर दी. डेविस ने बताया कि कंबोडियाई सेना ने रिवाज के अनुसार मृत शत्रुओं के अंग खाए, विशेष रूप से कलेजे. हालांकि उसने और कई शरणार्थियों ने भी बताया कि भोजन के अभाव में गैर-परंपरागत रूप से नरभक्षण किये जाते रहे. यह आमतौर पर तब हुआ जब कस्बों और गांवों पर खमेर रूज का नियंत्रण था और कड़ाई से खाद्य की राशनिंग थी, इससे व्यापक भुखमरी फैली. कोई नागरिक नरभक्षण में भाग लेते पकड़ा जाता तो उसे तुरंत ही फांसी दे दी जाती.
0.5
1,377.96796
20231101.hi_213393_65
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3
नरभक्षण
दूसरे कांगो युद्ध और लाइबेरिया तथा सिएरा लियोन के गृह युद्ध सहित हाल के अनेक अफ्रीकी युद्धों के दौरान नरभक्षण की खबरें मिलीं. जुलाई 2007 को एक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने सूचना दी कि कांगो की महिलाओं के खिलाफ यौन अत्याचार बलात्कार से बहुत आगे जा चुका है; जिसमें यौन गुलामी, जबरन कौटुंबिक व्यभिचार और नरभक्षण शामिल हैं। यह हताशा में किया गया हो सकता है, क्योंकि शांतिकाल के दौरान नरभक्षण अक्सर बहुत कम होता है; अन्य समय में, कांगो पिग्मी जैसे कुछ अपेक्षाकृत कमजोर समूहों के खिलाफ यह जान-बूझकर किया जाता, कुछ अन्य कांगोवासियों द्वारा यहां तक कि उन्हें अवमानवीय समझा जाता. यह भी बताया गया कि कुछ जादू-टोना करने वाले ओझाओं द्वारा बच्चों के शरीर के अंगों का उपयोग दवा में किया जाता. 1970 में युगांडा के तानाशाह इदी अमीन नरभक्षण के मामले में बड़े ख्यातिप्राप्त रहे.
0.5
1,377.96796
20231101.hi_220503_20
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1
प्लाइवुड
"डी": न्यूनतम गुणवत्ता पोशिश (वीनियर) समझा जाता है और अक्सर निर्माण श्रेणी के फलकों की पृष्ठ सतह के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। बड़ी और छोटी अनेक गांठें होती हैं, साथ ही 2½ इंच व्यास के गांठों के खुले छिद्र भी होते हैं। खुली गांठ, दरार और मलिनीकरण स्वीकार्य हैं। "डी" श्रेणी मलिनकिरण की न तो मरम्मत की जाती है और न ही उसे बालू से चिकना किया जाता है। इस श्रेणी को मौसमी तत्त्वों के प्रभाव में स्थायी रूप से खुला रखने की अनुशंसा नहीं की जाती।
0.5
1,374.970735
20231101.hi_220503_21
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1
प्लाइवुड
प्लाईवुड का प्रयोग अनेक ऐसे अनुप्रयोगों में किया जाता है जिनमें उच्च गुणवत्ता तथा उच्च शक्ति की शीट सामग्री की आवश्यकता होती है। इस संदर्भ में गुणवत्ता का अर्थ है चटकने, टूटने, सिकुड़ने, बल खाने और मुड़ने का प्रतिरोध।
0.5
1,374.970735
20231101.hi_220503_22
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1
प्लाइवुड
बाहर से चिपके हुए प्लाईवुड बाह्य उपयोग के लिए उपयुक्त हैं, लेकिन क्योंकि नमी लकड़ी की शक्ति को प्रभावित करती है, अतः अनुकूलतम प्रदर्शन तभी हासिल किया जा सकता है जब उसके अंदर नमी की मात्रा अपेक्षाकृत कम हो। दूसरी ओर, शून्य से नीचे तापमान वाली परिस्थितियां प्लाईवुड के आकार या मजबूती के गुण पर कोई प्रभाव नहीं डालती, जो इसके कुछ विशेष अनुप्रयोगों में इस्तेमाल को संभव को संभव बनाता है।
0.5
1,374.970735
20231101.hi_220503_23
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1
प्लाइवुड
प्लाईवुड का इस्तेमाल दबाव प्रक्रिया (स्ट्रेस्ड स्किन) वाले अनुप्रयोगों में इंजीनियरिंग सामग्री के रूप में भी किया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध से इसका इस्तेमाल समुद्रीय और विमानन अनुप्रयोगों के लिए किया गया है। इनमें सबसे उल्लेखनीय है ब्रिटेन का डी हैवीलैंड मॉसक्विटो बॉम्बर, जिसे मुख्य रूप से लकड़ी से बनाया गया था। वर्तमान में प्लाईवुड का इस्तेमाल दबाव प्रक्रिया अनुप्रयोग में सफलतापूर्वक किया जाता है।. अमेरिकी डिजाइनर चार्ल्स और रे ईम्स अपने प्लाईवुड आधारित फर्नीचर के लिए प्रसिद्ध हैं, जबकि फिल बोल्गर मुख्य रूप से प्लाईवुड से निर्मित नौकाओं की विस्तृत श्रृंखला की डिजाइनिंग के लिए प्रसिद्ध हैं।
0.5
1,374.970735
20231101.hi_220503_24
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1
प्लाइवुड
कोटिंग वाले समाधान उपलब्ध हैं जो स्प्रूस प्लाईवुड की प्रमुख तंतु संरचना को ढक लेते हैं। इन लेपित प्लाईवुड के कुछ अंतिम उपयोग हैं जहां उचित शक्ति की जरूरत है लेकिन स्प्रूस का हल्कापन लाभदायक है, उदाहरण के लिएः
1
1,374.970735
20231101.hi_220503_25
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1
प्लाइवुड
विशेष लेपित सन्टी प्लाईवुड विशिष्ट रूप से संस्थापना-को-तैयार घटक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उदाहरण के लिए:
0.5
1,374.970735
20231101.hi_220503_26
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1
प्लाइवुड
सन्टी प्लाईबुड विशेष अनुप्रयोगों में एक संरचनात्मक सामग्री के रूप में प्रयोग किया जाता है, उदाहरण के लिए:
0.5
1,374.970735
20231101.hi_220503_27
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1
प्लाइवुड
चिकनी सतह और सटीक मोटाई, सामग्री के स्थायित्व के साथ मिल कर सन्टी प्लाईवुड को कई विशेष अंतिम उपयोगों के लिए एक अनुकूल सामग्री बनाते हैं, उदाहरण के लिएः
0.5
1,374.970735
20231101.hi_220503_28
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1
प्लाइवुड
ऊष्णकटिबंधीय प्लाईवुड व्यापक रूप से दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र, मुख्यतः मलेशिया और इंडोनेशिया से उपलब्ध है। ऊष्णकटिबंधीय प्लाईवुड प्रीमियम गुणवत्ता और शक्ति समेटे हुए हैं। मशीनरी पर निर्भर करते हुए, ऊष्णकटिबंधीय प्लाईवुड मोटाई में उच्च सटीकता के साथ बनाया जा सकता है तथा अमेरिका, जापान, मध्य पूर्व, कोरिया और दुनिया भर के अन्य क्षेत्रों में एक बेहद बेहतर विकल्प है।
0.5
1,374.970735
20231101.hi_7028_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%88
जमुई
जिला मुख्यालय के सिकन्दरा-जमुई मुख्य मार्ग पथ पर बाबा धनेश्वर नाथ (महादेव सिमरिया) मंदिर स्थित है। बाबा धनेश्वर नाथ शिव मंदिर स्वयंभू शिवलिंग है। इसे बाबा वैद्यनाथ के उपलिंग के रूप में जाना जाता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार यह शिव मंदिर 400 दशक से भी अधिक पुराना है। जहां बिहार ही नहीं बरन दूसरे राज्य जैसे झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि से श्रद्धालु नर-नारी पहुंचते हैं। पूरे वर्ष इस मंदिर में पूजन दर्शन, उपनयन, मुंडन आदि अनुष्ठान करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। विशेषताएं-इस मंदिर के चारों और शिवगंगा बनी हुई है। मंदिर का मुख्य द्वार पूरब दिशा की ओर है। मंदिर परिसर में सात मंदिर है जिसमें भगवान शंकर का मंदिर गर्भगृह में अवस्थित है।
0.5
1,369.368745
20231101.hi_7028_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%88
जमुई
ऐसी मान्यता है कि गिद्धौर वंश के तत्कालीन महाराजा पूरनमल सिंह को स्वप्न आया कि महादेव सिमरिया स्थित शिवडीह में शिवलिंग प्रकट हुआ है। जिसकी चर्चा दूर-दूर तक फैल रही है। तब महाराजा ने अपने दल-बल के साथ उक्त स्थान पर आकर विधिवत तरीके से पूजा-अर्चना कर शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की। उस के बाद से यह शिवमंदिर बाबा धनेश्वर नाथ के नाम से जाना जाने लगा और पुजारियों के आजीविका के लिए महाराजा द्वारा जमीन उपलब्ध कराए गए।
0.5
1,369.368745
20231101.hi_7028_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%88
जमुई
जिला मुख्यालय से लगभग १५ किलो मीटर दूर खैरा प्रखंड में गिद्धेश्वर स्थान है। कहा जाता है कि राम व रावण की लड़ाई में जब रावण-सीता का अपहरण कर लंका जा रहा था तो यही वह स्थान है जब गिद्धराज जटायु ने रावण से युद्ध किया था। आज भी यह स्थान क्षेत्र के लोगों के लिए दर्शनीय केन्द्र है। यहाँ गिद्धेश्वर महादेव मंदिर भी है जो यहाँ के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है।
0.5
1,369.368745
20231101.hi_7028_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%88
जमुई
प्रचलित कथा के अनुसार यहां के पर्वत पर ही जटायु ने रावण से उस वक्त युद्ध किया था जब माता सीता का अपहरण कर ले जा रहा था। गुस्से में रावण ने जटायु का पंख काट डाला था और यहीं पर गिरकर मौक्ष की प्राप्ति किया था। चुकि जटायू गिद्ध था इसलिए इस स्थान का नाम गिद्धेश्वर और यहां निर्मित मंदिर का नाम गिद्धेश्वर मंदिर पड़ा। गिद्धेश्वर मंदिर का निर्माण खैरा स्टेट के तत्कालीन तहसीलदार लाला हरिनंदन प्रसाद द्वारा लगभग 100 वर्ष पूर्व किया गया है।
0.5
1,369.368745
20231101.hi_7028_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%88
जमुई
प्रकृति के खुबसूरत वादियों में बसे गिद्धेश्वर स्थान और इसके आसपास विशाल भू-भाग को आदर्श पिकनिक स्थल के रूप में विकसित है। यहां हरे-भरे पेड़-पौधों से अच्छादित पर्वत, बीच में भव्य मंदिर, आगे शिवगंग (तालाब) तथा किउल नदी की कलकल-छलछल करती जलधारा बरबस ही श्रद्धालुओं के साथ-साथ सैलानियों को भी आकर्षित करता है।
1
1,369.368745
20231101.hi_7028_19
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%88
जमुई
किउल नदी तट पर पत्‍‌नेश्वर पहाड़ पर अवस्थित पत्‍‌नेश्वर नाथ मंदिर राजकाल से ही लोगों की आस्था का केन्द्र रहा है। धर्मावलंबी जनों की मानें तो यहां की पूजा करने से असाध्य रोग दूर हो जाता है। इस मंदिर के पुजारी बताते हैं कि उक्त स्थल पर स्वयं शिवलिंग अवतरित हुआ है। शिवलिंग के आसपास मंदिर का निर्माण किया गया जहां जमुई के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। पुजारियों ने बताया कि बनैली राज स्टेट द्वारा उक्त मंदिर और आसपास का परिसर ब्राह्माणों को पूजन के लिए दिया गया। शुरुआती दौर में यहां आबादी नहीं के बराबर थी तब यहां एक साधु महात्मा आए थे। उड़ीया बाबा के नाम से मशहूर उक्त महात्मा काफी दिनों तक पत्‍‌नेश्वर पहाड़ पर रहे। उन्होंने बताया कि उन्हें गलित कुष्ठ था और देवघर बाबाधाम मंदिर में पूजा के दौरान उन्हें पत्‍‌नेश्वर में पूजा करने का स्वप्न हुआ। वे स्वयं पत्‍‌नेश्वर में पूजा के बाद स्वस्थ हुए और यहीं के होकर रह गए। उन्होंने जंगल पहाड़ के स्थल पर किउल नदी में हर रोज स्नान कर पूजा से कुष्ठ जैसे असाध्य रोगों से मुक्ति का मार्ग बताया था। बदलते वक्त के साथ यहां अब भव्य मंदिर बन गया है। हर साल सावन माह में यहां भक्त ही भगवान की परीक्षा लेते हैं। इस विशेष पूजन में छोटे से शिवलिंग को चारो ओर से घेरकर कई मन दूध तथा गंगा जल से अभिषेक कराया जाता है। इस पूजन में लगातार अभिषेक के बावजूद शिवलिंग को पूरी तरह से दूध अथवा जल में डुबाना मुश्किल होता है। इस आयोजन के दौरान भारी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। बदलते वक्त के साथ अब जमुई शहर में प्रवेश के साथ ही पत्‍‌नेश्वर पहाड़, किउल नदी के बीच पत्‍‌नेश्वर धाम में मंदिर का मनोहारी दृश्य लोगों को बरबस ही आकर्षित कर रहा है। पूरे साल यहां सैकड़ों की संख्या में शादियां और पूजा-पाठ का कार्यक्रम चलता रहता है।
0.5
1,369.368745
20231101.hi_7028_20
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%88
जमुई
जमुई मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर सिकंदरा प्रखंड के कुमार गाँव के समीप श्मशान भूमि स्थित माँ नेतुला मंदिर प्राचीन काल से ही हिंदू धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। हजारों वर्षो पूर्व से ही यहां नेत्र व पुत्र प्रदाता देवी के रूप में माँ नेतुला की पूजा होती आ रही है। माँ नेतुला मंदिर का इतिहास: जैन धर्म की पुस्तक कल्पसूत्र के अनुसार जैन धर्म के 24 वें र्तीथकर भगवान महावीर ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए घर का त्याग किया था तो कुण्डलपुर से निकल कर उन्होंने पहला रात्रि विश्रम कुमार गाँव में ही माँ नेतुना मंदिर के समीप एक वट वृक्ष के नीचे किया था। लगभग 26 सौ वर्ष पूर्व घटी इस घटना और कल्पसूत्र में वर्णित माँ नेतुला की पूजा व बली प्रथा का वर्णन इस मंदिर के पौराणिक काल के होने की पुष्टि करती है। इस प्रकार हजारों वर्षो की गौरव गाथा को अपने में समेटे माँ नुतुला आज भी भक्तों की मनोकामना पूरी कर रही है।
0.5
1,369.368745
20231101.hi_7028_21
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%88
जमुई
खैरा का दुर्गा मंदिर न केवल ऐतिहासिक है बल्कि इसकी पौराणिक महत्ता भी है। यहां के दुर्गा मंदिर और दुर्गा पूजा से खैरा प्रखंड के अलावा जिले व अन्य जिलों के लाखों लोगों की धार्मिक आस्था और मान्यता जुड़ी है। यही कारण है कि दुर्गा पूजा के अवसर पर लाखों लोग यहां आकर दंडवत देते हैं और भक्तिभाव से पूजा अर्चना करते हैं। दुर्गा पूजा के अवसर पर यहां तीन दिवसीय मेला भी लगता है।
0.5
1,369.368745
20231101.hi_7028_22
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%88
जमुई
खैरा का दुर्गा मंदिर 200 वर्षो से अधिक पुराना है। इसका निर्माण स्व. राजा रावणेश्वर प्रसाद सिंह के पुत्र स्व॰ गुरुप्रसाद सिंह द्वारा कराया गया था। दुर्गा पूजा के अवसर पर हजारों लोग मध्य रात्रि से ही रानी तालाब में स्नान कर माँ दुर्गा को दंडवत देते हैं। यहाँ मन्नतें पूरी होती है खैरा के दुर्गा मंदिर के प्रति आस्था रखने वाले और भक्तिभाव से पूजन करने वालों की मन्नतें पूरी होती हैं। यही कारण है कि लाखों लोग यहां पूजा करने आते हैं। यहां अष्टमी में मध्यरात्रि से बलि प्रथा की प्रचलन है जहां हजारों की संख्याओं में पशुओं की बलि दी जाती है। यहां के मूर्तिकार और पुजारी परंपरागत हैं।
0.5
1,369.368745
20231101.hi_165165_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
औषधशास्त्र
फ़ार्मेकोथेरैपी (Pharmacotherapy) के अंतर्गत बाधक अवस्था में सूक्ष्म जीवों की रासायनिक संवेदनों के प्रति क्रियाशीलता का वर्णन रहता है।
0.5
1,368.856018
20231101.hi_165165_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
औषधशास्त्र
रसायनचिकित्सा (Chemotherapy / कैमोथेरैपी) के अंतर्गत रासायनिकों द्वारा रोगनिवारण तथा ज्ञात रासायनिक संरचना एवं संबंधित रासायनिक संरचना वाली ओषधियों के शरीर पर प्रभाव का अध्ययन किया जाता है।
0.5
1,368.856018
20231101.hi_165165_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
औषधशास्त्र
विषविज्ञान (toxicology / टाक्सिकोलाजी) के अंतर्गत लक्षण रासायनिक पुष्टीकरण तथा प्रतिबिंब के उपयोग आदि का अध्ययन किया जाता है।
0.5
1,368.856018
20231101.hi_165165_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
औषधशास्त्र
मनुष्य को प्राचीन काल से ही वनस्पतियों का ज्ञान रहा है क्योंकि वह सदा से उन्हीं के संपर्क में रहा है। रेचक एवं निद्राजनक द्रव्य वनस्पतियों में भी प्राय: होते हैं। इनका कभी मानव ने अचानक प्रयोग किया होगा, जिससे उनके परिणाम या प्रभाव का उसने अनुभव किया होगा। द्राक्षा के किण्वन से मद्य को उत्पन्न करने की रीति मनुष्य को अति प्राचीन काल से ज्ञात रही है। संज्ञाहारी तथा विषों में बुझे हुए बाणों का प्रयोग भी वह प्राचीन काल से करता आया है।
0.5
1,368.856018
20231101.hi_165165_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
औषधशास्त्र
कई सहस्र वर्ष पूर्व उपचार के लिए ओषधियों के प्रयोग में मनुष्य की पर्याप्त रुचि हो चुकी थी। प्राचीन हिंदू पुस्तकों में ओषधियों के निर्माण में यंत्रमंत्रादि का विस्तृत उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में ऐसे अनेक विधानों का वर्णन है। कई सौ ओषधियों का सामूहिक विवरण चरक तथा सुश्रुतसंहिता एवं निघंटु में मिलता है। अन्य पूर्ववर्ती वनस्पतिसूचियों में मिस्र का 'इबर्स पैपरिस' है जो लगभग 1,500 ई.पू. में संकलित हुआ था। हिप्पोक्रेटिस (460-377 ई.पू.) ने बृहत रूप से वानस्पतिक ओषधियों का प्रयोग किया तथा उसके लेखों में ऐसे 300 पदार्थो का ब्योरा है। गैलेन (130-200 ई.) ने, जो रोम का एक सफल चिकित्सक था, चिकित्सोपयोगी 400 वनस्पतियों की सूची तैयार की थी। मध्ययुग में यह इस क्षेत्र में सर्वमान्य पुस्तक थी।
1
1,368.856018
20231101.hi_165165_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
औषधशास्त्र
इब्न सीना ने अपना ओषधिज्ञान यूनान से प्राप्त किया था तथा आज भी भारत में उसकी चिकित्साप्रणाली यूनानी प्रणाली के नाम से जानी जाती है।
0.5
1,368.856018
20231101.hi_165165_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
औषधशास्त्र
पैरासेल्सस (1493-1541 ई.) बासेल विश्वविद्यालय में रसायन का अध्यापक था। इसने सर्वप्रथम चिकित्सा में धातुओं का प्रयोग किया। उपदंश (सिफ़िलिस) की चिकित्सा में पारद् के उपयोग का श्रेय इसी को है। प्राय: इसी काल में भारत में रसशास्त्र का विकास हुआ।
0.5
1,368.856018
20231101.hi_165165_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
औषधशास्त्र
1783 ई. में अंग्रेज चिकित्सक विलियम विदरिंग ने अपना युगांतरकारी लेख प्रकाशित किया जिसमें डिजिटैलिस द्वारा हृदयरोग के उपचार का वर्णन था।
0.5
1,368.856018
20231101.hi_165165_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
औषधशास्त्र
अब तक औषधियाँ वानस्पतिक पदार्थो से ही तैयार की जाती थीं। 1807 ई. में जर्मन भैषजिक सरटुरनर ने अफीम में से मारफ़ीन नामक ऐलकलाएड निकाला तथा यह सिद्ध किया कि अफीम का प्रावसादक गुण इसी के कारण है। तदुपरांत वनस्पतियों से अनेक सक्रिय पदार्थ निकाले गए जिनमें स्ट्रिकनीन, कैफ़ीन, एमिटीन, ऐट्रोपीन तथा क्विनीन आदि ऐलकलाएड हैं।
0.5
1,368.856018
20231101.hi_247145_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0
सैलामैंडर
सैलामैंडर की त्वचा से म्यूकस का स्राव होता है जो सूखे स्थानों पर इस जीव को नम रखने में मदद करता है और पानी में रहने पर इसके नमक का संतुलन बनाए रखता है साथ ही तैरने के दौरान इसे चिकनाई प्रदान करता है। सैलामैंडर अपनी त्वचा में मौजूद ग्रंथियों से विष का स्राव भी करते हैं और कुछ में इनके अतिरिक्त अनुनय संबंधी फेरोमोंस के स्राव के लिए त्वचा ग्रंथियां भी होती हैं।
0.5
1,365.617511
20231101.hi_247145_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0
सैलामैंडर
शिकार अभी भी सैलामैंडर का एक और अनूठा पहलू है। फेफड़ा रहित सैलामैंडरों में हायोड हड्डी के आसपास की मांसपेशियां दबाव बनाने के लिए संकुचित हो जाती हैं और वास्तव में हायोड हड्डी को "झटके से" जीभ के साथ मुँह से बाहर निकालती हैं। जीभ की नोक एक म्यूकस की बनी होती है जो इसके सिरे को चिपचिपा बनाती है जिससे शिकार को पकड़ा जाता है। पेडू क्षेत्र की मांसपेशियों का इस्तेमाल जीभ को घुमाने के क्रम में और हायोड के पिछले हिस्से को इसकी मूल स्थिति में वापस लाने में किया जाता है।
0.5
1,365.617511
20231101.hi_247145_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0
सैलामैंडर
हालांकि अत्यंत जलीय प्रजातियों में से कई में जीभ में मांसपेशियाँ नहीं होती हैं और इसका इस्तेमाल शिकार को पकड़ने के लिए नहीं किया जाता है जबकि ज्यादातर अन्य प्रजातियों में एक मोबाइल जीभ होता है लेकिन हायोड बोन के अनुकूलन के बगैर. सैलामैंडर की ज्यादातर प्रजातियों के पास ऊपरी और निचले दोनों जबड़ों में छोटे दांत होते हैं। मेंढ़कों के विपरीत यहाँ तक कि सैलामैंडर के लार्वा में भी इस तरह के दांत पाए जाते हैं।
0.5
1,365.617511
20231101.hi_247145_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0
सैलामैंडर
अपने शिकार को खोजने के लिए सैलामैंडर लगभग 400 एनएम, 500 एनएम और 570 एनएम के अधिक से अधिक संवेदनशील दो प्रकार के फोटोरिसेप्टर पर आधारित पराबैंगनी रेंज में ट्राइकोमैटिक कलर विजन का इस्तेमाल करते हैं। स्थायी रूप से भूमिगत सैलामैंडरों के पास छोटी आँखें होती हैं जो यहाँ तक कि त्वचा की एक परत से ढकी हो सकती हैं। लार्वा और कुछ अत्यंत जलीय प्रजातियों के वयस्कों में मछलियों की तरह का एक पार्श्व रैखिक अंग मौजूद होता है जो पानी के दबाव में होने वाले बदलावों का पता लगा सकता है। सैलामैंडरों के पास बाहरी कान नहीं होते हैं और केवल एक अल्पविकसित मध्य कान होता है।
0.5
1,365.617511
20231101.hi_247145_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0
सैलामैंडर
सैलामैंडर शिकारियों से बचने के लिए अपनी स्वतंत्र पूँछ का इस्तेमाल करते हैं। वे अपनी पूँछ को गिरा लेते हैं और यह थोड़ी देर के लिए छटपटाती रहती है और सैलामैंडर या तो भाग जाते हैं या फिर उस समय तक स्थिर रहते हैं जब तक कि शिकारी का ध्यान नहीं बँट जाता. सैलामैंडर नियमित रूप से जटिल ऊतकों को पुनः उत्पन्न कर लेते हैं। पादों के किसी भी हिस्से को खोने के कुछ ही हफ़्तों के बाद सैलामैंडर गायब संरचना को पूरी तरह से दुबारा पैदा कर लेते हैं।
1
1,365.617511
20231101.hi_247145_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0
सैलामैंडर
सैलामैंडर पर्मियन काल के मध्य से लेकर अंत तक के दौरान अन्य उभयचरों से अलग हो गए थे और शुरुआत में क्रिप्टोब्रैंक्वाडिया के आधुनिक सदस्यों के सामान थे। छिपकलियों से उनकी समानता सिम्प्लेसियोमोर्फी, प्रारंभिक चौपायों की शारीरिक संरचना की उनकी सामान्य स्मृति का नतीजा है और वे अब छिपकलियों से उतनी नजदीकी से नहीं जुड़े हैं जितने कि स्तनधारियों से - या फिर उस मामले में पक्षियों से. बैट्राकिया के अंदर उनके नजदीकी संबंधी मेंढक और टोड हैं।
0.5
1,365.617511
20231101.hi_247145_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0
सैलामैंडर
कॉडेट्स (पूँछवाले) ऑस्ट्रेलिया, अंटार्टिका और अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों को छोड़कर सभी महाद्वीपों में पाए जाते हैं। सैलामैंडर की ज्ञात प्रजातियों में से एक तिहाई उत्तरी अमेरिका में पायी जाती हैं। इनका सबसे अधिक जमावड़ा एपालाचेन के पर्वतीय क्षेत्रों में मिलता है। सैलामैंडर की अनेकों प्रजातियाँ हैं और ये उत्तरी गोलार्द्ध में ज्यादातर नम या शुष्क आवासों में पायी जाती हैं। ये आम तौर पर नदी-नालों में या उनके निकट, खाड़ियों, तालाबों और अन्य नम स्थानों में रहते हैं।
0.5
1,365.617511
20231101.hi_247145_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0
सैलामैंडर
सैलामैंडरों का जीवन इतिहास अन्य उभयचरों जैसे कि मेंढ़कों या टोडों के सामान होता है। अधिकांश प्रजातियां अपने अण्डों का निषेचन आतंरिक रूप से करती हैं जिसमें नर शुक्राणुओं की एक थैली को मादा की मोरी में जमा करते हैं। सबसे प्रारंभिक सैलामैंडर - जिन्हें एक साथ क्रिप्टोब्रैंक्वाइडिया के रूप में वर्गीकृत किया जाता है - उनमें इसकी बजाय बाह्य निषेचन होता है। अंडे एक नमी वाले वातावरण में, अक्सर तालाब में लेकिन कभी-कभी नम मिट्टी या ब्रोमेलियाड्स के अंदर भी दिए जाते हैं। कुछ प्रजातियाँ ओवोविविपेरस होती हैं जिनमें महिलाएं अण्डों को उनके निषेचन तक अपने शरीर में रख लेती हैं।
0.5
1,365.617511
20231101.hi_247145_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0
सैलामैंडर
इसके बाद लार्वा का एक ऐसा चरण होता है जिसमें ये जीव पूरी तरह से जलीय या स्थलीय आवास में रहते हैं और इसके पास गलफड़े मौजूद होते हैं। प्रजातियों के आधार पर लार्वा चरण में पैर मौजूद हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं। लार्वा चरण प्रजातियों के आधार पर कुछ दिनों से लेकर कई वर्षों तक का हो सकता है। कुछ प्रजातियों (जैसे कि डंस सैलामैंडर) में लार्वा चरण बिलकुल ही नहीं होता है जिनमें वयस्कों के लघु संस्करणों के रूप में बच्चे अण्डों को सेने का काम करते हैं।
0.5
1,365.617511
20231101.hi_63683_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
दन्तचिकित्सा
दंतचिकित्सकों का प्रशिक्षण आयुर्वेज्ञानिक तथा दंतविद्यालयों में हो और शेष व्यक्तियों का प्रशिक्षण केवल दंतविद्यालयों मे। भोर समिति की एक संस्तुति यह भी है कि दंतचिकित्सा शिक्षा सब स्थानों पर एक ही स्तर की हो। यह कार्यरूप में परिणत कर दी गई है। कुछ संस्तुतियाँ एम डी एस (मास्टर ऑव डेंटल सर्जरी) नामक उपाधि के लिये थीं। उन्हें धीरे धीरे अवसर के अनुसार कार्यरूप में परिणत किया जा सकता है। दंतविषयक विधान के बारे में संस्तुतियाँ मान ली गई हैं और दंतचिकित्सक अधिनियम स्वीकृत हो गया है।
0.5
1,362.180894
20231101.hi_63683_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
दन्तचिकित्सा
सन् 1948 ई के दंतचिकित्सक विधान के अनुसार यह परिषद् स्थापित हुई थी। इसे इस व्यवसाय को नियंत्रित करने और नियम बनाने का अधिकार है। यह परिषद् दंत-चिकित्सा-शिक्षा का भी नियंत्रण करती है और इस प्रकर शिक्षा का स्तर सदा समान रूप से ऊँचा रहता है। प्रत्येक संस्था को, जो दंतचिकित्सा संबंधी उपाधियाँ देती है, इस परिषद् के माँगने पर अपने पाठ्यक्रम और परीक्षाओं के बारे में ब्यौरेवार सूचना देनी पड़ती है। यदि उनका परीक्षास्तर संतोषजनक नहीं होता तो संस्था की मान्यता छीन ली जा सकती है।
0.5
1,362.180894
20231101.hi_63683_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
दन्तचिकित्सा
प्रत्येक राज्य में अपनी निजी दंतचिकित्सा परिषद् है, जिसके सदस्य अंशत: चुने जाते हैं और अंशत: मनोनीत होते हैं। इसका कार्य अपने प्रांत में व्यवसाय को नियंत्रित करना और यह देखना है कि आचारिक स्तर पर्याप्त ऊँचा रहे।
0.5
1,362.180894
20231101.hi_63683_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
दन्तचिकित्सा
इस परिषद् में एक पंजिका रहती है, जिसे भारतीय दंतचिकित्सक पंजिका कहते हैं। इसके दो खंड हैं। प्रथम खंड (खण्ड ए) में उन सब दंतचिकित्सकों के नाम लिखे जाते हैं, जिन्हें मान्यता प्राप्त दंतचिकित्सा उपाधियाँ मिली हैं। द्वितीय खंड (खण्ड बी) में उनके नाम रहते हैं, जिनके पास ऐसी कोई उपाधि नहीं है। दंतयांत्रिकों और दंतरक्षकों की भी पंजिकाएँ रखी जाती हैं।
0.5
1,362.180894
20231101.hi_63683_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
दन्तचिकित्सा
भारत में प्रथम दंतचिकित्सा शाला सन् 1920 ई में कलकत्ते में खोली गई थी। 1926 ईदृ में दूसरी शाला कराची में खुली। नैयर दंतचिकित्सा विद्यालय 1933 ई में खुला। सन् 1936 में लाहौर के डे मॉण्टमोरेंसी कॉलेज ऑव डेंटिस्ट्री में बीदृ डीदृ एसदृ उपाधि के लिये नियमित शिक्षा आरंभ हुई। सन् 1945 में 'एम डी एस' उपाधि के लिये पढ़ाई प्रारंभ की गई। सन् 1949 में उत्तर प्रदेश में एक दंतचिकित्सा विद्यालय, लखनऊ में खोला गया और किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से संबद्ध कर दिया गया। वर्तमान काल में ये सात दंतचिकित्सा विद्यालय हैं जो किसी न किसी विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं :
1
1,362.180894
20231101.hi_63683_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
दन्तचिकित्सा
भर्ती होने के लिये न्यूनतम योग्यता, जीवविज्ञान सहित इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण हैं। पाठ्यक्रम चार वर्ष का है और बैचलर ऑव डेंटल सर्जरी की उपाधि मिलती है। इन सब विद्यालयों में पाठ्क्रम एक ही स्तर का है। दंतशल्य में मास्टर की उपाधि के लिये बंबई के डेंटल कॉलेज में पाठ्यक्रम चालू कर दिया गया है।
0.5
1,362.180894
20231101.hi_63683_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
दन्तचिकित्सा
दंतचिकित्सा के अध्यापक भारत के सभी मेडिकल कॉलेज में नियुक्त कर दिए गए हैं। इसका उद्देश्य यह है कि सभी आर्युवैज्ञानिक विद्यार्थी दंतशल्य के मूलाधार से परिचित हो जाएँ और रोगियों की देखभाल कर सकें। इंडियन काउंसिल ऑव मेडिकल रिसर्च तथा उत्तर प्रदेश साइंटिफ़िक रिसर्च कमेटी के तत्वावधान में दंतचिकित्सा विद्यालयों में दंतचिकित्सा संबंधी अनुसंधान भी हो रहा है।
0.5
1,362.180894
20231101.hi_63683_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
दन्तचिकित्सा
आर्मी डेंटल कोर, आर्मी मेडिकल कोर की भगिनी शाखा है। मेडिकल कोर के प्रधान को कर्नल की पदवी मिली रहती है और वह दंतसेवाओं का उपनिदेशक (डेप्युटी डाइरेक्टर) भी कहलाता है। नाविक और वायुसेनाओं में पृथक् दंतविभाग होते हैं। दंतचिकित्सा की विविध शाखाओं के लिये पाँच विशेषज्ञ होते हैं। दंतयांत्रिक और दंतरक्षकों के प्रशिक्षण के लिये आम्र्ड फोर्सेज़ मेडिकल कॉलेज, पूना, में पढ़ाई होती है। भर्ती पहले अल्प काल के कमीशन के लिये होती है। इनमें से कुछ चुने हुए अभ्यर्थियों को स्थायी कमीशन दिया जाता है।
0.5
1,362.180894
20231101.hi_63683_19
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
दन्तचिकित्सा
सन् 1946 से पूर्व केवल थोड़े से स्वतंत्र दंतसंघ थे, जो लाहौर, कलकत्ता, बंबई और कराची के दंतचिकित्सा विद्यालयों से संबंद्ध थे। जनवरी, 1946 में इन समस्त संघों को एक में संयोजित करके अखिल भारतीय दंतचिकित्सक संघ (ऑल इंडिया डेंटल एसोसिएशन) स्थापित किया गया। अधिक समुन्नत देशों में दंतचिकित्सा की प्रत्येक विशेषज्ञ शाखा के लिये पृथक् संघ होते हैं।
0.5
1,362.180894
20231101.hi_32661_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
रोबॉटिक्स
निर्वात-पकड: बड़े वस्तुओं को उठाने के लिये, जब तक की उनकी सतह चिकनी हो (जैसे की कार का हवारोधी शीशा), निर्वात-पकडों का प्रयोग किया जाता है।
0.5
1,360.978149
20231101.hi_32661_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
रोबॉटिक्स
सामान्य प्रयोजन पकड: कुछ आधूनिक रोबॉटों ने तकरीबन इन्सानी हाथ की दक्शता पा ली है, जैसे कि 'शैडो हैंड' (Shadow Hand) और 'शंक हैंड' (Schunk hand)। इनकी खासियत यह है कि इनमें २० तक स्वातंत्र्य परिमाण और सैकडों स्पर्ष-संकेतक होते हैं, जिनका नियंत्रण अत्यंत कठिन होता है क्योंकि कंप्यूटर को अत्याधिक विकल्पों से सही विकल्प ढूंढना होता है।.
0.5
1,360.978149
20231101.hi_32661_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
रोबॉटिक्स
दोपहिया रोबॉट: हालांकि सैग्वे एक रोबॉट नहीं है, कई रोबॉटों में इसके गतिक संतुलन कलनविधि का प्रयोग हुआ है। सैग्वे का नासा नें रोबोनॉट में प्रयोग किया है।
0.5
1,360.978149
20231101.hi_32661_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
रोबॉटिक्स
बॉलबॉट: कार्नेगी मैलन विश्वविद्यालय के अनुसन्धान करताओं ने रोबॉटों के चालन के लिये पहियों की जगह एक गेंद का प्रयोग किया है। इनकी खासियत यह है कि छोटे सीमित जगहों में भी इन्हे घुमा सकते हैं।
0.5
1,360.978149
20231101.hi_32661_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
रोबॉटिक्स
रोबॉटों का प्रभावी प्रयोग घरेलु और औध्योगिक परिप्रदेश में होने के लिये यह जरूरी है कि वे इन्सानों से प्रभावकारी रूप में अंत:संचार कर सकें। वे लोग जो इन रोबॉटों के साथ काम करेंगे, उन्हे इस बात से आसानी होगी की ये रोबॉट उनकी भाषा में बोले, उनकी परेशानियों को चेहरा देखकर समझ सकें। विज्ञान साहित्य में रोबॉट भाषा, मुख भाव को बडी सहजता से प्रस्तुत करतें हैं, पर वास्तविकता यह है कि इन क्षेत्रों में अभी बहुत दूर जाना बाकी है।
1
1,360.978149
20231101.hi_32661_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
रोबॉटिक्स
वाक अभिज्ञान: किसी मनुष्य के वचनों की धारा को सद्य अनुक्रिया समझ पाना क्म्प्यूटर के लिये अत्याधिक कठिन है, क्योंकि इसमें कई तरह के घटबढ़ देखे जाते हैं, जैसे कि अर्थवतता, शब्द का उच्चारण, ध्वनि की प्रबलता, पास पडोस के ध्वनिकता, वक्ता का मिजाज या तबियत (सर्दी तो नहीं लगी), इत्यादि। आज, डेविस, बिड्डुल्फ और बालाशेक के १९५२ में बनायी वाक अभिज्ञान प्रणाली, जिसमें १ से १० तक की बोली को १००% परिशुद्धता से पहचानने की क्षमता थी, की तुलना में दुनिया काफी आगे जा चुकी है। सर्वोत्तम प्रणालियों में १६० शब्द प्रति मिनट से अधिक की परिशुद्धता को पाया गया है।
0.5
1,360.978149
20231101.hi_32661_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
रोबॉटिक्स
भाव संकेत: अगर किसी रोबॉटी पुलिस अफसर से रास्ता पूछा जाये, तो शब्दों की बजाय हाथों के संकेत से ज्यादा आसानी से रास्ता बताया जा सकता है। ऐसी कई प्रणालियों का विकास किया जा चुका है।
0.5
1,360.978149
20231101.hi_32661_19
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
रोबॉटिक्स
मुख भाव: मुख भाव का इन्सानी सम्पर्क में महत्वपूर्ण है और इसे रोबॉटी सम्पर्क के लिये भी विकसित किया जा रहा है। एक तरफ रोबॉट का अपनें चेहरे पर मनोभावों को व्यक्त करना (जैसे कि किस्मेट), दूसरी तरफ इन्सानों के मनोभावों को समझना, दोनों ही उप्योगी हैं।
0.5
1,360.978149
20231101.hi_32661_20
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
रोबॉटिक्स
व्यक्तित्व: विज्ञान साहित्य में कई रोबॉटों को मानविक तौर पर व्यक्तित्व के प्रदर्शन करते हुऐ दिखाया जाता है। ये और बात है कि ऐसे रोबॉटों की वांछनीयता पर विवाद है। फिर भी, ऐसे रोबॉटों पर अनुसन्धान चल रहा है। प्लियो, जो एक रोबॉटी खिलौना है, कई तरह के मनोभावों को प्रतर्शित कर सकता है।
0.5
1,360.978149
20231101.hi_50774_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
पाकशास्त्र
पाक क्रिया, पाक कला या रन्धन उपभोग के लिए भोजन प्रस्तुति हेतु ताप का प्रयोग करने की कला, विज्ञान और शास्त्र है। पाकशैली और सामग्री व्यापक रूप से भिन्न होती है, एक खुली अग्नि पर भोजन को ग्रिल करने से लेकर वैद्युतिक चूल्हा का उपयोग करने तक, विभिन्न प्रकार के तंदूरी पाककला, स्थानीय परिस्थितियों को दर्शाती है।
0.5
1,360.204149
20231101.hi_50774_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
पाकशास्त्र
रन्धन के प्रकार भी रसोइयों के कौशल स्तर और प्रशिक्षण पर निर्भर करते हैं। पाक कार्य लोगों द्वारा अपने घरों, रेस्तोराँ और अन्य खाद्य प्रतिष्ठानों में पेशेवर रसोइयों और रसोइयों द्वारा किया जाता है।
0.5
1,360.204149
20231101.hi_50774_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
पाकशास्त्र
ताप या अग्नि से भोजन तैयार करना मानव के लिए एक अनोखी गतिविधि है। न्यूनतम 300,000 वर्ष पूर्व पाकाग्नि के पुरातात्विक साक्ष्य मौजूद हैं, लेकिन कुछ का अनुमान है कि मानव ने 20 लाख वर्ष पहले तक पकाना शुरू कर दिया था।
0.5
1,360.204149
20231101.hi_50774_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
पाकशास्त्र
विभिन्न क्षेत्रों में सभ्यताओं के बीच कृषि, वाणिज्य, व्यापार और परिवहन के विस्तार ने कई नूतन सामग्रियों को पकाने की अनुमति दी। नए आविष्कार और प्रौद्योगिकियाँ, जैसे जल का धारण और क्वथन के लिए मृदा के कुम्भकारी का आविष्कार, रन्धन की तकनीकों का विस्तार। कुछ आधुनिक पाकशास्त्री परोसे जाने वाले व्यंजन के स्वाद को और बढ़ाने के लिए भोजन प्रस्तुति हेतु उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करते हैं।
0.5
1,360.204149
20231101.hi_50774_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
पाकशास्त्र
कच्चे भोज्य पदार्थों को अग्नि के संयोग से पकाकर खाने के योग्य बनाने की यह प्रक्रिया है। भोजन पकाने के कई तरीके हैं। भोजन चिकनाई, भाप अथवा पानी के माध्यम से पकाया जाता है। सीधे अग्नि के संयोग से भी पकाया जाता है। इन्हीं रीतियों के अनुरूप भोजन पकाने की कई विधियाँ हैं।
1
1,360.204149
20231101.hi_50774_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
पाकशास्त्र
भोज्य पदार्थ को घी अथवा कोई भी तेल के माध्यम से सेंकने की प्रक्रिया को तलना कहते हैं। कड़ाही अथवा अन्य किसी छिछले बर्तन में घी अथवा तेल चूल्हे पर चढ़ा दिया जाता है। अच्छी तरह गरम हो जाने पर इसमें वस्तुएँ डाल दी जाती हैं। घी अथवा तेल इतना रहता है कि वस्तु उसमें भली प्रकार डूबी रहे। इस तरह पूरी, कचौड़ी, पकौड़ी इत्यादि बनाई जाती है। इस प्रक्रिया में भोजन के कुछ तत्वों की हानि भी हो जाती है।
0.5
1,360.204149
20231101.hi_50774_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
पाकशास्त्र
भोज्य पदार्थों को थोड़ी चिकनाई के साथ, अथवा बिना चिकनाई के, पकाने की प्रक्रिया को सेंकना कहते हैं। रोटी और टोस्ट बिना चिकनाई के सेंके जाते हैं। ये वस्तुएँ तवे अथवा टोस्टर की सहायता से तैयार की जाती हैं। पराठे, चीले, दोसा, ऑमलेट इत्यादि थोड़ी चिकनाई के साथ तवे पर सेके जाते हैं।
0.5
1,360.204149
20231101.hi_50774_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
पाकशास्त्र
भोज्य पदार्थों को अग्नि के सीधे संयोग से पकाने की क्रिया को भूनना कहते हैं। इस प्रकार मुख्यतया चना, लाई, मटर इत्यादि, जिसे चबैना कहते हैं, पकाए जाते हैं। हरे चने, हरे भुट्टे, आलू, शकरकंद इत्यादि भी इसी प्रकार तैयार किए जाते हैं। अंगारे, गरम राख अथवा गरम बालू भूनने के लिए काम में लाए जाते हैं।
0.5
1,360.204149
20231101.hi_50774_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
पाकशास्त्र
खौलते पानी में भोज्य पदार्थ को पकाने की क्रिया को उबालना कहते हैं। किसी बर्तन में पानी डालकर चूल्हे पर चढ़ा देते हैं। उसी में भोज्य पदार्थ डाल दिए जाते हैं। पानी खौलता है और वस्तु पकती है। इस प्रकार पके हुए भोज्य पदार्थों के पोषक तत्व बहुत कम मात्रा में नष्ट होते हैं। प्राय: सभी भोज्य पदार्थ इस प्रकार पकाए जा सकते हैं। कुछ पदार्थ केवल उबालकर खाए जाते हैं। पाश्चात्य पद्धति के तो अधिकांश भोज्य पदार्थ उबालकर खाए जाते हैं। सब प्रकार की साग सब्जियाँ उबालकर खाने से अधिक लाभदायक होती हैं। पानी इतना ही होना चाहिए जिससे उबलनेवाली वस्तु ढँक मात्र जाय। खौलते पानी में सब्जियाँ डालकर पकाना अधिक अच्छा है। इससे पोषक तत्व कम मात्रा में नष्ट होते हैं।
0.5
1,360.204149
20231101.hi_71465_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B0
सांभर
अरहर की दाल को धोकर 1-2 घंटे के लिये पानी में भिगो दीजिये (दालें पहले से पानी में भिगो कर पकाने से जल्दी पकती है और स्वादिष्ट भी हो जाती है)।
0.5
1,356.723338
20231101.hi_71465_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B0
सांभर
कढ़ाई में एक छोटी चम्म्च तेल डालकर गरम कीजिये। चना उरद दाल और मैथी के दाने डाल कर हल्का ब्राउन होने तक भूनिये।
0.5
1,356.723338
20231101.hi_71465_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B0
सांभर
जब ये हल्के भुन जायें तो इनमें धनिया, जीरा, हींग, हल्दी पाउडर, धनियां, काली मिर्च और लाल मिर्च मिला कर थोड़ा ओर भूनिये।। ठंडा कीजिये और पीस लीजिये।
0.5
1,356.723338
20231101.hi_71465_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B0
सांभर
सांबार मसाला पाउडर आप इस्तेमाल के लिये एकसाथ भी बना कर रख सकते हैं लेकिन इसे दो सप्ताह के अन्दर अन्दर प्रयोग कर लें। अधिक समय तक रखे गये पिसे मसाले अपनी महक खो बैठते हैं। ताजा भुने हुये मसालों से बनी सांबार में जो स्वाद और महक होती है वह अधिक समय तक रखे मसालों से नहीं आती।
0.5
1,356.723338
20231101.hi_71465_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B0
सांभर
दाल को कुकर में दुगने पानी के साथ डालिये, एक सीटी आने के बाद 4-5 मिनिट तक धीमी गैस पर पकाइये, गैस बन्द कर दीजिये।
1
1,356.723338
20231101.hi_71465_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B0
सांभर
लौकी, बैगन और भिण्डी को धोकर 1 इंच लम्बे टुकड़ों में काट लीजिये। स्वाद के अनुसार नमक और 3-4 टेबिल स्पून पानी डाल कर, सब्जियों के नरम होने तक पकने दीजिये।
0.5
1,356.723338
20231101.hi_71465_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B0
सांभर
कढ़ाई में तेल डाल कर गरम कीजिये। गरम तेल में राई डालिये, राई तड़कने के बाद करी पत्ता डाल कर भूनिये। अब टमाटर का पेस्ट डाल कर तब तक भूनिये जब तक कि मसाले के ऊपर तेल न तैरने लग जाय।
0.5
1,356.723338
20231101.hi_71465_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B0
सांभर
कुकर का प्रेशर खतम होने के बाद, कुकर खोलिये, दाल को मैस कर लीजिये, दाल, में टमाटर का भुना हुआ मसाला, और सब्जियां मिलाइये, आपको जितना गाढ़ा सांबार चाहिये, उसके अनुसार पानी डाल दीजिये, नमक और इमली का पेस्ट मिला दीजिये।
0.5
1,356.723338
20231101.hi_71465_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B0
सांभर
यदि आप प्याज वाला सांबार खाना चाहते हैं, तब राई और पत्ते डालने के बाद, एक बारीक कटी प्याज डालकर, हल्का गुलाबी होने तक भूनिये, अब टमाटर, हरी मिर्च का पेस्ट डालकर मसाला भूनिये, बाकी उपरोक्त विधि से सांबार बना लीजिये।
0.5
1,356.723338
20231101.hi_382317_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
भदोही
यह कालीन निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। भदोही क्षेत्र बुनकरों का घर है, जहाँ भोले-भाले परस से कितनी कलाकृतियाँ जन्म लेती हैं। बेलबूटेदार कलात्मक रंगों का इन्द्रधनुषी वैभव लिए हुए बेहद लुभावने गलीचे दुनिया के बाजारों में धाक जमाये हुए हैं। करोड़ों रुपये विदेशी मुद्रा अर्जित कराने तथा लाखों लोगों को रोजी रोटी मुहैया कराने वाले भदोही अंचल की अभिव्यक्ति कालीनों के माध्यम से होती है। आकर्षक कालीनों से ही भदोही को विश्व मानचित्र एवं हस्त कला के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान दिया है। भदोही जनपद वाराणसी जनपद का ही एक भाग था सन 2001 में विभाजित करके भदोही जनपद का नाम दिया गया का जिला मुख्यालय ज्ञानपुर है और इसमें 3 विधायकी के औराई ज्ञानपुर और भदोही एक बार पुनः सन 2009 में सुश्री मायावती जी के मुख्यमंत्री बनने पर इसका नामकरण किया गया और इसका नाम भदोही की जगह परिवर्तित करते संत रविदास नगर किया गया आज इस जनपद को संत रविदास नगर के नाम से भी जाना जाता है यह एक तरफ देश के सबसे छोटे जिलों में एक है यहां के निवासी लगभग स्वयं पर निर्भर रहते हैं लगभग 30% लोग यहां पर प्रवासियों के रूप में रहते हैं
0.5
1,354.52938
20231101.hi_382317_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
भदोही
भदोही नगर गंगा तट से २१ किलोमीटर उत्तर में स्थित है। भदोही कालीन औद्योगिक परिक्षेत्र में अनेकों बाजार तथा उपनगर हैं जिसमें गोपीगंज, खमरिया, घोसिया, ज्ञानपुर, सुरियावां,जंघई,औराई एवं नई बाजार आदि मुख्य उपनगर अपनी अलग पहचान बनाए हुए उद्योग के विकास में तत्पर हैं। इसकी दक्षिण सीमा गंगा जी द्वारा परिभाषित है।
0.5
1,354.52938
20231101.hi_382317_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
भदोही
४०० साल पूर्व भदोही परगना में भरों का राज्य था, जिसके ड़ीह, कोट, खंडहर आज भी मौजूद हैं। भदोही नगर के अहमदगंज, कजियाता, पचभैया, जमुन्द मुहल्लों के मध्यम में स्थित बाड़ा, कोट मोहल्ले में ही भरों की राजधानी थी। भर जाति का राज्य इस क्षेत्र सहित आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर, इलाहाबाद एवं जौनपुर आदि में भी था। गंगा तट पर बसे भदोही राज्य क्षेत्र में सबसे बड़ा राज्य क्षेत्र था। सुरियांवां, गोपीगंज, जंगीगंज, खमरिया, औराई, महाराजगंज, कपसेठी, चौरी, जंघई, बरौत, कोइरौना, कटरा, धनतुलसी आदि क्षेत्र भदोही राज्य में थे। गंगा तट का यह भाग जंगलों की तरह था। भदोही नाम भरद्रोही का अपभ्रंश है जिसका तात्पर्य है कि ऐसा क्षेत्र जिसका भरों से द्रोह है। भदोही के अतिरिक्त भरों के होने के प्रमाण विभिन्न गाँवों के नाम से भी प्रमाणित होता है, यथा-भरदुआर (भरद्वार), बरौत (भरौत), रायपुर, सागर रायपुर, भँटान आदि। बड़ागाँव, सगरा, बिछिया, जगापुर, रायपुर, भगवानपुर, डुहिया, सुरियावाँ, कौड़र, अंधेडीह (दुर्गागंज के पास), कसीदहाँ, कलनुआ, पाली आदि में भरों की बस्तियों के अवशेष टीले थे जिनमें से कुछ अब भी बचे हैं।
0.5
1,354.52938
20231101.hi_382317_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
भदोही
इसके अलावा ऊसरों की एक लम्बी शृंखला है जो कदाचित् किसी नदी का क्षेत्र रहा होगा। कदाचित् यह असी नदी का सूखा हुआ मार्ग था जिस पर बहुत बड़े-बड़े तालाब बनाये गये। मोरवा, बरना (वरुणा), कटइया आदि कुछ गंगा जी के अतिरिक्त नदियाँ थीं जो इस क्षेत्र से बहती थीं। जिसमें से मोरवा और कटइया (जो कदाचित असी नदी के चैनल का अवशेष है) अभी भी कहीं-कहीं बची रह गयी हैं। वरुणा का भी प्रवाह बाधित हो चुका है।
0.5
1,354.52938
20231101.hi_382317_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
भदोही
सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी (माता सीता व लव-कुश), सेमराधनाथ (महादेव), बरम बाबा डुहिया (ब्राह्मण), सगरा (हनुमान जी), हरिहरनाथ ज्ञानपुर (महादेव), कबूतरनाथ गोपीगंज (महादेव), बेलनाथ बरौत (महादेव), खाखरनाथ जगापुर (महादेव), तिलेश्वरनाथ आनापुर (महादेव), आदिनाथ सुंदरपुर (महादेव), चकवा महावीर (हनुमान जी) आदि हैं।
1
1,354.52938
20231101.hi_382317_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
भदोही
नये साहित्यकारों में महादेवी अनुराधा पांडे (कविता, गीत, कहबतिया), अनिल शुक्ल (संस्मरण, कविता, गीत, कथा, लोक साहित्य), अरुण शूक्ल (कविता, गीत, कथा, संस्मरण, हास्य), डॉ. धीरज शुक्ल (कविता, कथा, व्यंग्य, हास्य, संस्मरण, लोककथा, कहकुतिया, लोकगीत) आदि विभिन्न विधाओं में रह कर साहित्य सृजन कर रहे हैं।
0.5
1,354.52938
20231101.hi_382317_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
भदोही
देश के महापराक्रमी हूणों के आक्रमण एवं अत्याचारों से काँप उठी थी। देश को आक्रमण कारी हूणों से घिरा देख कर भारशैव (भर) शासकों ने हूणों के आक्रमण का सामना करने की पूर्ण जिम्मेदारी अपने हाथों में ली। प्रति तीन-तीन मील पर प्रति रक्षात्मक गढ़ियों का निर्माण किया गया। भदोही क्षेत्र में प्रायः गाँव और कस्बों में आज भी उन गढ़ियों व तालाबों के ध्वंशावाशेष देखे जा सकते हैं। भदोही क्षेत्र की जनता के सहयोग से भार शैव (भर) राजाओं ने हूणों को आगे बढ़ने से रोक दिया तथा हूणों को क्षेत्र से पीछे हटना पडा। इसके बाद फिर हूणों ने भदोही क्षेत्र में आक्रमण करने का साहस नहीं किया। सागर राय भरों में सबसे सम्मानित पुरुष थे। चौदहवीं शताब्दी में जौनपुर के शर्की शासकों से खुले युद्ध में भरों की बहुत हानि हुई जिससे उनका राजनैतिक पतन हो गया।
0.5
1,354.52938
20231101.hi_382317_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
भदोही
जब भर जाति के राजा वहां के नागरिकों पर अत्याचार करने लगे और क्षेत्र की जनता भरों से टक्कर लेने की रणनीति बनाया तो उसी समय राजस्थान के राजपूत आक्रान्ता का काफिला काशी जा रहा था, यहाँ से होकर गुजरा। यहाँ की जनता ने उन राजपूत से भरों राजा के अत्याचार से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की, जिस पर वे राजी हो गए और राजपूत व भरों के बीच जमकर युद्ध हुआ। कालांतर में इन मौनस राजपूतों ने क्षेत्र में आक्रमण कर कब्जाकर लिए। बहुत से भर पूरब की ओर चले गये जो बचे थे वे अन्यान्य जातियों में विलीन हो गये। कुछ दशक पहले तक जो बचे-खुचे राजभर(राजभर) थे, उन सबका ब्राह्मण औ अन्यान्य जातियों में विलय हो गया। मौनस राजपूतों के वंशज अभी भी बघेलों में बचे हुए हैं।
0.5
1,354.52938
20231101.hi_382317_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
भदोही
अंग्रेजों के समय में यहाँ आज के ज्ञानपुर क्षेत्र में अदालत खुली जिसे कोर्ट कहा गया। पर जनता उसे कोट ही बुलाती रही। यही कोट बाद में काशी नरेश के सौजन्य से विद्यालय खुलने के बाद ज्ञानपुर कहलाया। मुगल काल में भदोही क्षेत्र सुरियावां के राजा कुलहिया के राज्य में था, जिसमें भदोही ताल्लुका चौथार या कुलहिया राजा के टीला व भग्नावशेष आज भी बावन बिगहिया (जल तारा) के पास मौजूद है।
0.5
1,354.52938
20231101.hi_25970_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95
पंचकल्याणक
जिन आचार्यों ने पंच कल्याणक के इस लौकिक रूप की रचना की उसको समझने में कोई त्रुटि न हो जाए, इसके लिए 2000 वर्ष पूर्व हुए आचार्य यतिवृषभ ने तिलोयपण्णत्ति की गाथा क्र. 8/595 में स्पष्ट किया है कि 'गर्भ और जन्मादि कल्याणकों में देवों के उत्तर शरीर जाते हैं। उनके मूल शरीर जन्म स्थानों में सुखपूर्वक स्थित रहते हैं।'
0.5
1,353.500158
20231101.hi_25970_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95
पंचकल्याणक
यह गाथा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि सांसारिक कार्यों में देवादि भाग नहीं लेते किन्तु तीर्थंकरत्व की आत्मा को सम्मान देने व अपना हर्ष प्रकट करने के लिए वे अपने उत्तर शरीर से उपस्थित होते हैं। इतना प्रतिभाशाली व्यक्ति जन्म ले तो सब तरफ खुशियाँ मनाना वास्तविक और तर्कसंगत है। यह आवश्यक नहीं कि तीर्थंकरों के जन्म लेते समय आम नागरिकों ने देवों को देखा हो। देवत्व एक पद है जिसका भावना से सीधा संबंध है।
0.5
1,353.500158
20231101.hi_25970_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95
पंचकल्याणक
पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में दिखाई जाने वाली घटनाएँ काल्पनिक नहीं, प्रतीकात्मक हैं। हमारी आँख कितनी भी शक्तिशाली हो जाए, लेकिन वह काल की पर्तों को लांघकर ऋषभ काल में नहीं देख सकतीं।
0.5
1,353.500158
20231101.hi_25970_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95
पंचकल्याणक
पंच कल्याण महोत्सव में कई रूपक बताए जाते हैं, जैसे गर्भ के नाटकीय दृश्य, 16 स्वप्न, तीर्थंकर का जन्मोत्सव, सुमेरु पर्वत पर अभिषेक, तीर्थंकर बालक को पालना झुलाना, तीर्थंकर बालक की बालक्रीड़ा, वैराग्य, दीक्षा संस्कार, तीर्थंकर महामुनि की आहारचर्या, केवल ज्ञान संस्कार, समवशरण, दिव्यध्वनि का गुंजन, मोक्षगमन, नाटकीय वेशभूषा में भगवान के माता-पिता बनाना, सौधर्म इंद्र बनाना, यज्ञ नायक बनाना, धनपति कुबेर बनाना आदि। ऐसा लगता है जैसे कोई नाटक के पात्र हों। किन्तु सचेत रहें ये नाटक के पात्र नहीं हैं। तीर्थंकर के पूर्वभव व उनके जीवनकाल में जो महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं, उन्हें स्मरण करने का यह तरीका है। उन घटनाओं को रोचक ढंग से जनसमूह में फैलाने का तरीका है। हमारी मुख्य दृष्टि तो उस महामानव की आत्मा के विकास क्रम पर रहना चाहिए जो तीर्थंकरत्व में बदल जाती है।
0.5
1,353.500158
20231101.hi_25970_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95
पंचकल्याणक
जैनागमों में प्रत्येक तीर्थंकर के जीवनकाल में पाँच प्रसिद्ध घटनाओं-अवसरों का उल्लेख मिलता है- वे अवसर जगत के लिए अत्यंत कल्याणकारी होते हैं। अतः उनका स्मरण दर्शन भावों को जागृत करता है व सही दिशा में उन्हें मोड़ सकता है। वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसा ही घटनाक्रम घटित होता है किंतु साधारण व्यक्ति गर्भ और जन्म और (तप कल्याण के पूर्व) बाल क्रीड़ा, राज्याभिषेक (जीवन में सांसारिक सफलता पाना) आदि क्रियाओं से गुजर जाता है किंतु वैराग्य उसके जीवन में फलित नहीं होता। उसका कारण पूर्व जनित कर्म तो होते ही हैं किंतु उसके संस्कार और संगति अध्यात्म परक न हो पाने के कारण वैराग्य फलित नहीं होता। जैन धर्म भावना प्रधान है। भावनाओं को कड़ियों में पिरोकर जैन धर्म के दर्शन व इतिहास की रचना हुई है। यदि हम भावनाओं को एक तरफ उठाकर रख दें तो जैन धर्म के ताने-बाने को हम नहीं समझ पाएँगे। पंच कल्याणक महोत्सव इसी ताने-बाने का एक भाग है।
1
1,353.500158
20231101.hi_25970_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95
पंचकल्याणक
जिन घटनाओं ने - परिवर्तनों ने मानव को महामानव बना दिया, उसे भगवान बना दिया- लोग उसे नहीं भूले, उनके सामने उसे बार-बार दोहराया जाए ताकि वे सदैव स्मरण करते रहें कि आत्मा को परमात्मा बनने के लिए कई पड़ावों से होकर गुजरना पड़ता है। कोई आत्मा तब तक परमात्मा नहीं बन सकती जब तक उसे संसार से विरक्ति न हो, वह तप न करे, केवल ज्ञान न उत्पन्न हो तब तक वह परमात्मा बनने का अधिकारी नहीं है।
0.5
1,353.500158
20231101.hi_25970_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95
पंचकल्याणक
पहले लिखित रिकार्ड तो नहीं थे- जो पुरानी घटनाओं को याद रखने का सहारा बनते। पहले तो मनुष्य की विचार जनित वाणी और कुछ दृश्य दिखाना ही- घटनाओं को याद रखने का तरीका था। तीर्थंकर प्रकृति का बंध होने के बावजूद, तीर्थंकर की आत्मा को त्याग-तपस्या का मार्ग अपनाना ही पड़ता है। सांसारिक प्राणी के सामने इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराया जाए ताकि, जैन दर्शन के मूल सिद्धांतों को वह सफलता से समझ जाए।
0.5
1,353.500158
20231101.hi_25970_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95
पंचकल्याणक
'जंबूदीवपण्णत्ति संग हो' अधिकार संख्या 13/गाथा सं. 93 में लिखा है- जिसका अर्थ इस प्रकार है- जो जिनदेव, गर्भावतार काल, जन्मकाल, निष्क्रमणकाल, केवल ज्ञानोत्पत्तिकाल और निर्वाण समय, इन पाँचों स्थानों (कालों) से पाँच महाकल्याण को प्राप्त होकर महाऋधी युक्त सुरेन्द्र इंद्रों से पूजित हैं।
0.5
1,353.500158
20231101.hi_25970_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95
पंचकल्याणक
पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव जैन समाज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नैमित्तिक महोत्सव है। यह आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का महोत्सव है। पौराणिक पुरुषों के जीवन का संदेश घर-घर पहुँचाने के लिए इन महोत्सवों में पात्रों का अवलम्बन लेकर सक्षम जीवन यात्रा को रेखांकित किया जाता है। थोड़ा इसे विस्तार से समझने का प्रयत्न करते हैं।
0.5
1,353.500158
20231101.hi_9356_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
षडयंत्र
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी अवैध कार्य या किसी वैध कार्य को अवैध तरीके से करने या करवाने को सहमत होते हैं तो उसे आपराधिक षड्यन्त्र कहते हैं।
0.5
1,352.122419
20231101.hi_9356_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
षडयंत्र
अर्थात षडयन्त्र के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है, कोई अवैध कार्य करना/अकरवाना या कोई वैध कार्य अवैध साधनों द्वारा करना/करवाना आवश्यक है।
0.5
1,352.122419
20231101.hi_9356_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
षडयंत्र
अवैध कार्य – आपराधिक षड्यन्त्र के अपराध को गठित करने के लिए समझौता निश्चयतः विधि विरुद्ध अथवा विधि द्वारा निषिद्ध कोई कार्य करने के लिए होना चाहिए।
0.5
1,352.122419
20231101.hi_9356_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
षडयंत्र
अवैध साधनों द्वारा – किसी कार्य को, भले ही वह वैध हो, अवैध साधनों द्वारा करने की सहमति षड्यन्त्र मानी जाएगी। कार्य का अन्त साधनों को न्यायोचित नही ठहराता। उदाहरण के लिए प्रतिद्वन्दी व्यापारी को मात देना अवैध कार्य नही है परन्तु सस्ती वस्तुओं के विक्रेता को नष्ट करने के लिए एकीकृत होकर एक दिवालिया क्रेता को ऋण देने के लिए प्रोत्साहन देकर विक्रेता को हानि पहुचाना अवैध होगा।
0.5
1,352.122419
20231101.hi_9356_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
षडयंत्र
षड्यन्त्र का प्रमाण – आपराधिक षड्यन्त्र हेतु यह आवश्यक नही है कि किये गये अभिकथित समझौते का प्रत्यक्ष साक्ष्य द्वारा साबित किया जाए क्योंकि ऐसा साक्ष्य सामान्यतः उपलब्ध नही होता।
1
1,352.122419
20231101.hi_9356_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
षडयंत्र
हीरालाल हरिलाल भगवती बनाम सी.बी.आई. (2003) उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि षड्यन्त्र के अपराध को भारतीय दण्ड संहिताकी धारा 120-B के दायरे में लाने के लिए यह सिद्ध करना आवश्यक है कि पक्षकार के बीच विधिविरुद्ध कार्य करने का करार हुआ था तथापि प्रत्यक्ष साक्ष्य से षड्यन्त्र को सिद्ध करना कठिन है।
0.5
1,352.122419
20231101.hi_9356_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
षडयंत्र
सेन्ट्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन, हैदराबाद बनाम नारायण राव (2012) के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि किसी कार्य का करार आपराधिक षड्यन्त्र का मूल तत्व है। आपराधिक षड्यन्त्र का प्रत्यक्ष साक्ष्य मिलना यदा कदा उपलब्ध होता है यह घटना के पूर्व या बाद की परिस्थितियों के आधार पर सिद्ध किया जाता है। सिद्ध परिस्थितियों को यह स्पष्ट दर्शाना चाहिए कि वे एक करार के अग्रसरण में कारित की गयी है।
0.5
1,352.122419
20231101.hi_9356_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
षडयंत्र
आपराधिक षड्यन्त्र का आधार करार में निहित है लेकिन एक अवयस्क किसी प्रकार से षड्यन्त्र में शामिल नही हो सकता इसीलिए जब एक अवयस्क के साथ कोई व्यक्ति करार करके आपराधिक षड्यन्त्र गठित करता है तो वहा पर करार शून्य होने के कारण वह व्यक्ति आपराधिक षड्यन्त्र के लिए दायी नही होगा लेकिन वह धारा 107 के अधीन एक अवयस्क के दुष्प्रेरण के अपराध के लिए दायी होगा।
0.5
1,352.122419