_id
stringlengths
17
22
url
stringlengths
32
237
title
stringlengths
1
23
text
stringlengths
100
5.91k
score
float64
0.5
1
views
float64
38.2
20.6k
20231101.hi_52106_36
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%A4%E0%A4%BE
अन्धता
यह रोग दो प्रकार का होता है, प्राथमिक (प्राइमरी) और गौण (सेकंडरी)। प्राथमिक को फिर दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है, संभरणी (कंजेस्टिव) तथा असंभरणी (नॉन-कंजेस्टिव)। संभरणी प्रकार का रोग उग्र (ऐक्यूट) अथवा जीर्ण (क्रॉनिक) रूप में प्रारंभ हो सकता है। इसके विशेष लक्षण नेत्र में पीड़ा, लालिमा, जलीय स्राव, दृष्टि की क्षीणता, आँख के पूर्वकोष्ठ का उथला हो जाना तथा नेत्र की भीतरी दाब का बढ़ना है। अधिकतर, उग्र रूप में पीड़ा और अन्य लक्षणों के तीव्र होने पर ही रोगी डाक्टर की सलाह लेता है। यदि डाक्टर नेत्र रोगों का विशेषज्ञ होता है तो वह रोग को पहचानकर उसकी उपयुक्त चिकित्सा का आयोजन करता है, जिससे रोगी अंधा नहीं होने पाता। किंतु जीर्ण रूप में लक्षणों के तीव्र न होने के कारण रोगी प्रायः डाक्टर को तब तक नहीं दिखाता जब तक दृष्टिक्षय उत्पन्न नहीं हो पाता, परंतु तब लाभप्रद चिकित्सा की आशा नहीं रहती। इस प्रकार के रोग के आक्रमण रह रहकर होते हैं। आक्रमणों के बीच के काल में रोग के कोई लक्षण नहीं रहते। केवल पूर्वकोष्ठ का उथलापन रह जाता है जिसका पता रोगी को नहीं चलता। इससे रोग के निदान में बहुधा भ्रम हो जाता है।
0.5
955.876971
20231101.hi_52106_37
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%A4%E0%A4%BE
अन्धता
भ्रम उत्पन्न करने वाला दूसरा रोग मोतियाबिंद है जो साधारणतः अधिक आयु में होता है। जीर्ण प्राथमिक समलवाय भी इसी अवस्था में होता है। इस कारण धीरे-धीरे बढ़ता हुआ दृष्टिह्रास मोतियाबिंद का परिणाम समझा जा सकता है, यद्यपि उसका वास्तविक कारण समलवाय होता है जिसमें शस्त्रकर्म से कोई लाभ नहीं होता।
0.5
955.876971
20231101.hi_622890_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88
मुल्ताई
मुलताई को मुलतापी के नाम से भी जाना जाता हैं। यह शहर सुर्यपुत्री सलीला माँ ताप्ती का उद्गम स्थल हैं। मान्यता यह हैं की माँ ताप्ती का जन्म मुल्ताई के नारद टेकरी नामक स्थान से हुआ हैं मुल्ताई के निकट प्रभात पट्टन और बेतुल प्रमुख शहर है। यह मुल्ताई मध्य-प्रदेश . के दक्षिणी क्षेत्रों में आता है और सतपुड़ा पठार क्षेत्र का लगभग आधा क्षेत्र इसके अन्तर्गत्त आता है। कस्बे के कई गांवों के फ़ैलाव सहित सतपुड़ा क्षेत्र में उत्तरी ओर नर्मदा घाटी और दक्षिण के मैदानों के बीच काफ़ी फ़ैला हुआ है। इसके पश्चिमी ओर निमार (पूर्वी) और अमरावती जिलों के बीच वन क्षेत्र का विस्तार है। यह कस्बा ताप्ती नदी के उत्तरी तट पर स्थित है और इस नदी का मूलस्थान भी है।मुलताई का मूल नाम मूलतापी था, तापी नदी के उद्गम या मूलस्थान होने के कारण पड़ा था। मराठा एवं ब्रिटिश राज के समय मुलताई क्षेत्रीय मुख्यालयों में से एक रहा है और जो उत्तर में जिला मुख्यालय से और दक्षिण में महाराष्ट्र के नागपुर जिला मुख्यालय को जोड़ता था।
0.5
947.140618
20231101.hi_622890_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88
मुल्ताई
मुल्ताई अपने पड़ोसी क्षेत्रों से भली-भांति रेल एवं सड़क मार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। निकटतम विमानक्षेत्र नागपुर है जो 120 किमी दूर है एवं मुल्ताई से बस एवं टैक्सी सेवाओं द्वारा जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग ४७ और राष्ट्रीय राजमार्ग ३४७ यहाँ से गुज़रते हैं।
0.5
947.140618
20231101.hi_622890_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88
मुल्ताई
मुलताई की भौगोलिक निर्देशांक स्थित है। यहां की औसत ऊंचाई 749  मीटर (2457  फ़ीट) है। मुलताई के उत्तर में आमला और दक्षिण में महाराष्ट्र का अमरावती जिला है। इसके पूर्व में छिंदवाड़ा जिला और पश्चिम में बैतूल हैं। नगर की दक्षिणी सीमा मेलघाट शृंखला की तराई में फ़ैली है, किन्तु अमरावती के हट्टी घाट एवं चिकल्दा इसकी सीमा से बाहर हैं। नगर जम्बादी से ६ किमी, सण्डिया से ७ किमी, सिरसावाड़ी से ७ किमी, कर्पा से ८ कि.मी, नरपा से ९ कि.मी है। ये यहां के मुख्य ग्राम हैं। मुलताई कस्बे के दक्षिण में प्रभात पट्टन तहसील, उत्तर में आमला तहसील, दक्षिण में वरूड़ तहसील एवं पूर्व में पांढुर्णा जिला स्थित हैं।
0.5
947.140618
20231101.hi_622890_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88
मुल्ताई
मुलताई भारत की बड़ी नदी ताप्ती का उद्गम होने के कारण एक हिन्दू धामिक क्षेत्र भी है। हिन्दू मान्यता अनुसार ताप्ती माता भगवान सूर्य की पुत्री हैं। ताप्ती माता के यहां दो प्रमुख मन्दिर हैं एक प्राचीन मन्दिर और एक नवीन मन्दिर। ताप्ती नदी की जयन्ती के दिन यहां अखण्ड सप्तमी ताप्ती जन्मोत्सव मनाय़ा जाता है और शहर को सजाय़ा जाता है। इसके अलावा यहां कई भगवान शिव, हनुमान आदि हिन्दू भगवानों के मन्दिर भी हैं।
0.5
947.140618
20231101.hi_622890_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88
मुल्ताई
के भारतीय जनगणना अनुसार, मुल्ताई कस्बे की कुल जनसंख्या २१,४२८ है। इसमें ५२% पुरुष एवं ४८% स्त्रियां हैं। यहां की साक्षरता दर ७४% है जो राष्ट्रीय दर ५९.५% से कहीं अधिक है। इनमें पुरुष साक्षरता दर ७९% एवं स्त्री साक्षरता दर ६८% हैं। यहां की १३% जनसंख्या ६ वर्ष की आयु से कम की है।
1
947.140618
20231101.hi_622890_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88
मुल्ताई
नगर में बहुरंगी संस्कृति दिखाई देती है जिसका कारण यहां कई धर्म एवं परम्पराओं का संगम है। जिले के उत्तरी भाग में बुन्देलखंडी भाषा एवं संस्कृति की झलक दिखाई देती है तो दक्षिणी क्षेत्रों में मराठी भाषा एवं संस्कइतु बहुल है। शेष जिला मुख्यतः जनजातीय क्षेत्र है जिनमें गोंड एवं कोरकू मुख्य हैं जो बाबा महादेव को पूजते हैं तथा अनेक अंधविश्वासों एवं प्रथाओं के साथ पशु बलि तक देते हैं। ये लोग अभी तक प्राकृतिक चिकित्सा एवं जड़ी-बूटियों पर ही निर्भर हैं। मुलताई में मेघनाथ का मेला लगता है
0.5
947.140618
20231101.hi_622890_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88
मुल्ताई
यहां के मुख्य धर्मों में हिन्दू धर्म आता है, जिसके साथ ही यहां मुस्लिम, सिख, जैन एवं ईसाई लोग भी रहते हैं। प्रमुख हिंदू जातियों में क्षत्रिय भोयर पवार/पवार, राजपूत, कुर्मी, कुन्बी हैं। इसके अलावा गोंड, भील, कोरकू आदि है । बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी, पवारी/भोयरी , मराठी, गोंडी एवं कोरकू हैं।
0.5
947.140618
20231101.hi_622890_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88
मुल्ताई
सूर्यपुत्री माँ ताप्ती नदी उद्गम स्थल मुलताई बैतूल जिला एवं मध्यप्रदेश में पर्यटन का मुख्य केन्द्र है।
0.5
947.140618
20231101.hi_622890_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88
मुल्ताई
सूर्य पुत्री पुण्य सलिला ताप्ती का पौराणिक महत्व अपार है। मान्यता है कि ताप्ती जल से दिवंगत परिजनों के लिए तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष के दौरान महाराष्ट्र प्रदेश के साथ अन्य नगरों से भी बड़ी संख्या में लोग ताप्ती सरोवर पर तर्पण करने पहुंचते है।
0.5
947.140618
20231101.hi_382252_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D
दिक्
जिस दिक् में कोई मरोड़, गोलाई या टेढ़ापन न हो उसे यूक्लिडी दिक् कहते हैं। यह नाम प्राचीन यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड के नाम से बना है। यूक्लिडी दिक् में अगर दो समानांतर रेखाएँ (अंग्रेज़ी में पैरलल रेखाएँ) आरम्भ कर के उन्हें आगे बढ़ाया जाए तो उनका आपस का फ़ासला हमेशा एक ही रहेगा और वह एक-दुसरे से कभी नहीं मिलेंगी। लेकिन अगर वे अयूक्लिडी दिक् में खींची जा रहीं हैं जो स्वयं ही मुड़ा हुआ है तो उनमें आपस का फ़ासला बदल सकता है और वे मिल भी सकतीं हैं। पृथ्वी की सतह एक दो-आयाम वाला अयूक्लिडी दिक् है। इसपर अगर इक्वेटर पर उत्तर की ओर दो समानांतर रेखाएँ बनाई जाएँ तो वे दोनों एक दुसरे के नज़दीक आती जाएँगी और उत्तरी ध्रुव पर जा कर मिल जाएँगी।
0.5
941.9716
20231101.hi_382252_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D
दिक्
ठीक इसी तरह हम किसी दिक् में स्थित दो वस्तुओं की एक-दुसरे से आपेक्षिक गति के बारे में भी बता सकते हैं। अगर हम ज़मीन से दो आतिशबाज़ियाँ (एक लाल और एक हरी) आसमान की ओर उड़ाएँ तो अलग अलग वस्तुओं की तुलना कर के ऐसी चीज़ें कह सकते हैं -
0.5
941.9716
20231101.hi_382252_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D
दिक्
हम ज़मीन पर बिना हिले खड़े हैं। हमारी अपेक्षा में लाल आतिशबाज़ी ७० किमी प्रति घंटा (कि॰प्र॰घ॰) की रफ़्तार से ऊपर जा रही है।
0.5
941.9716
20231101.hi_382252_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D
दिक्
हरी आतिशबाज़ी थोड़ी तेज़ है और हमारी अपेक्षा में हरी आतिशबाज़ी १०० कि॰प्र॰घ॰ की गति से ऊपर जा रही है।
0.5
941.9716
20231101.hi_382252_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D
दिक्
अगर कोई काल्पनिक व्यक्ति हरी आतिशबाज़ी पर बैठा हो और अपने आपको स्थिर माने तो कहेगा के उसकी अपेक्षा में हम १०० कि॰प्र॰घ॰ की रफ़्तार से नीचे जा रहे हैं।
1
941.9716
20231101.hi_382252_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D
दिक्
हरी आतिशबाज़ी वाला व्यक्ति यह भी देखेगा के लाल आतिशबाज़ी उस से ३० कि॰प्र॰घ॰ की रफ़्तार पर नीचे की ओर जा रही है।
0.5
941.9716
20231101.hi_382252_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D
दिक्
ऐसा भी हो सकता है के हरी आतिशबाज़ी तो आसमान में सीधी चढ़ती रहे लेकिन लाल आतिशबाज़ी तिरछी होकर उत्तर की तरफ ३० कि॰प्र॰घ॰ और ऊपर की तरफ २० कि॰प्र॰घ॰ से चलना शुरू कर दे। अब हम और हरी आतिशबाज़ी वाला व्यक्ति यह कहेंगे -
0.5
941.9716
20231101.hi_382252_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D
दिक्
हरी आतिशबाज़ी अभी भी १०० कि॰प्र॰घ॰ से ऊपर चढ़ रही है, तो उसपर बैठा व्यक्ति बोलेगा के लाल आतिशबाज़ी ८० कि॰प्र॰घ॰ से नीचे की तरफ़ और ३० कि॰प्र॰घ॰ उत्तर की तरफ़ जा रही है।
0.5
941.9716
20231101.hi_382252_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D
दिक्
अगर लाल आतिशबाज़ी पूर्वोत्तर को चल देती तो देखा जा सकता है के इस त्रिआयामी दिक् में तीन आयामों के साथ किसी भी दो वस्तुओं की आपस की गति और दिशा को पूरी तरह बताया जा सकता है।
0.5
941.9716
20231101.hi_42847_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
खुरई
खुरई डोहेला मंदिर का निर्माण 1752 में हुआ था। यहां कई देवी देवताओं के मंदिर हैं पर मुख्य रूप से इसकी पहचान भगवान विष्णु के मंदिर से है। कहा जाता है कि इस मंदिर में मौजूद भगवान विष्णु की मूर्ति सिर्फ 2 जगह मौजूद है। एक बद्रीनाथ धाम और दूसरा खुरई। मकर संक्रांति के पावन पर्व पर यहां महोत्सव होता है जिसे डोहेला महोत्सव कहते हैं इस महोत्सव में दूर-दूर से लोग आते हैं।
0.5
941.121223
20231101.hi_42847_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
खुरई
लोक कथाएँ है कि महाभारतकाल में कौरवों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर इस नगर से गमन किया था उन गायों के असंख्य खुरों के चिन्हों के कारण इस नगर का नाम खुरई हुआ। खुरई का ऐतिहारिक कालक्रम इस प्रकार है:
0.5
941.121223
20231101.hi_42847_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
खुरई
औरंगजेब के शासन मे उसने खुरई-गड़ौला को परगना बना लिया । जिसमें 161 गांव थे जिसमें एरण खुरई सहित 32 गांव खेमचंद्रसिंह दांगी को जागीर में दे दिए गए।
0.5
941.121223
20231101.hi_42847_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
खुरई
1707 ईस्वी में खेमचंद्रसिंह दांगी ने किले का निर्माण करवाया ये गडोला के ठाकुर खुमन सिंह के पुत्र थे।
0.5
941.121223
20231101.hi_42847_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
खुरई
1740 में खेमचंद्र की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दीवान अचल सिंह तथा भूमणसिंह के कब्जे में 40 गांव मय निर्माण के चले गए जो 1752 तक रहे।
1
941.121223
20231101.hi_42847_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
खुरई
1752 में किले पर पेशवाओं का अधिकार हुआ खुरई पेशवा के प्रतिनिधि गोविंद पंडित के कब्जे में यह चला गया। गोविंद पंडित ने किले तथा कस्बे को बढ़ाया और किले के पीछे एक मंदिर डोहिला बनवाया। डोहिला को किले के पीछे खोदी गई झील से जोड़ दिया गया ये झील किले के दक्षिण में आज भी स्थित है।
0.5
941.121223
20231101.hi_42847_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
खुरई
1857 में भानगढ़ के राजा ने खुरई पर चढ़ाई कर दी तथा ब्रिटिश शासन द्वारा नियुक्त तहसीलदार अहमद किला समर्पित कर खुद भी विद्रोहियों के साथ हो गया व अपने हिसाब से अधिकारियों की नियुक्ति कर दी और 1858 तक वहां रहा। मगर सरहिरोज़ ने भानगढ़ के राजा व उसकी सेना को बरोदिया नौनागिर के युद्ध में पराजित कर दिया तब राजा द्वारा खुरई खिमलासा में नियुक्त अधिकारियों समेत सभी लोग भाग गए।
0.5
941.121223
20231101.hi_42847_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
खुरई
1861 में खुरई को सागर जिले में सम्मिलित किया गया और खुरई को तहसील का दर्जा प्राप्त हुआ। खुरई के प्रथम तहसीलदार पंडित नारायण राव हुए। अदालत की स्थापना भी तहसील बनने के साथ 1862 में हो चुकी थी किले भवन का उपयोग तहसील कचहरी के लिए किया गया।
0.5
941.121223
20231101.hi_42847_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%88
खुरई
1885 में नगर का प्रथम स्कूल उर्दू स्कूल के रूप में प्रारंभ हुआ जो किला भवन की ऊपरी मंजिल में संचालित हुआ करता था।
0.5
941.121223
20231101.hi_186583_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE
जलजीवशाला
जलजीवशाला (Aquarium) या कृत्रिमजलाशय, पानी से भरे बर्तन, या कांच के हौज को कहते हैं, जिसमें जीवित जलचरों या पौधों को रखा जाता है। ये शालाएँ मुख्यत: मछलियों को पालने और उनके कौतुक देखने दिखाने के काम में आती हैं।
0.5
937.991155
20231101.hi_186583_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE
जलजीवशाला
मछलियों के पाले जाने के प्रमाण कम से कम 4,500 वर्ष पूर्व तक के प्राप्त हुए हैं, जब सुमेर निवासी भोजन के लिये उन्हें हौजों या पोखरों में पालते थे। किंतु संभव है कि यह प्रथा इससे भी पूर्व प्रचलित रही हो। भारत में मछलियों को पालना सर्वप्रथम कब आरंभ हुआ यह कहना कठिन है, किंतु एशियाई देशों में से चीन में, शुंगवंश के राज्यकाल में (सन् 960-1278) लाल मछलियों (स्वर्ण मत्स्यों) का कौतुम और सजावट के लिये पालन प्रारंभ हुआ। चीनियों ने छोटे बरतनों में रखने योग्य तथा सजावट के उपर्युक्त मछलियों की विशेष जातियों का विकास किया। इन्होंने उत्तम नस्लों के चुनाव से जिन जातियों की मछलियों का संवर्धन किया उन्हीं से आज की सुंदरतम पालतू मछलियाँ प्राप्त हुई हैं। रोमन लोगों में भी पालतू मछलियाँ रखने का वर्णन है। ये मछलियाँ हौजों, या छोटे तालाबों, में पाली जाती थीं। शीशे के बरतनों या शालाओं में मछली पालन की प्रथा 200 वर्षों से अधिक पुरानी नहीं है।
0.5
937.991155
20231101.hi_186583_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE
जलजीवशाला
जलजीवशालाएँ दो प्रकार की होती हैं : सार्वजनिक तथा व्यक्तिगत। भिन्न भिन्न देशों के अनेक मुख्य नगरों में सार्वजनिक जलजीवशालाएँ स्थापित हैं। न्यूयार्क, शिकागो, सैनफ्रांसिस्को, लंदन, बर्लिन, इत्यादि नगरों में बड़ी बड़ी जलजीवशालाएँ हैं। इनसे छोटी, किंतु प्रसिद्ध, जलजीवशालाएँ मद्रास, हवाई द्वीप, आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका तथा संयुक्त राज्य (अमरीका) के वाशिंगटन, फिलाडेल्फ़िया, बोस्टन, बाल्टिमोर इत्यादि नगरों में हैं। ये जलजीवशालाएँ मुख्यत: जनशिक्षा तथा मनोरंजन के लिये हैं, कुछ में थोड़ा बहुत वैज्ञानिक खोज का काम भी किया जाता है। वे जलजीवशालाएँ अलग हैं, जिनका प्रयोजन मुख्यत: वैज्ञानिक अनुसंधान है। ये साधारणत: विशाल होती हैं। इनके साथ जनता के विनोदार्थ छोटी जीवशालाएँ भी प्राय: रहती हैं। इनमें प्रधन संयुक्त राज्य (अमरीका) के मासाच्यूसेट्स प्रदेश के वुड्स होल नामक स्थान में, इंग्लैंड के प्लिमथ तथा इटली के नेपुल्स नगर में हैं। देखने की सुविधा में विचार से जलजीवशालाओं की दीवारें काच की बनाईं जाती हैं। बड़े जलाशयों की दीवारें एक से डेढ़ इंच मोटे काच की होती हैं।
0.5
937.991155
20231101.hi_186583_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE
जलजीवशाला
सार्वजनिक जलजीवशालाओं की देखभाल के लिये जल को आवश्यक ताप तथा रासायनिक संरचना को बनाए रखना तथा जलजीवों के स्वास्थ्य, भोजन, रोग और परजीवियों से संबंधित समस्याओं का निराकरण भी आवश्यक होता है। जहाँ उचित प्रकार का जल आवश्यक परिमाण में सुलभ होता है, वहाँ मशीनों द्वारा आवश्यक जल की पूर्ति सरलता से होती है। ताजा जल नगरपालिकाओं के जलाशयों से मिल जाता है, किंतु इस जल के जीवाणुओं को मारने के लिये प्रयुक्त क्लोरिन गैस के अवशेष को पहले अलग कर लिया जाता है, क्योंकि यह गैस जलाशय के जीवों को हानि पहुँचाती है। यदि जलाशय के लिये समुद्री पानी आवश्यक है, तो समुद्र के ऐसे स्थान से जल लेते हैं जहाँ नदियों से आई हुई, या अन्य प्रकार से गिरनेवाली, गंदगियाँ न हों। ऐसे स्थानों पर भी तूफानों के कारण जल उपयोग के अयोग्य ठहर सकता है, इसलिये अनेक जगहों पर ऐसा प्रबंध रहता है कि हौज में एक बार भरा हुआ जल पुन: संचारित होता रहता है और मार्ग में उसके छानने और उपयुक्त बनाने की क्रियाएँ संपन्न हो जाती हैं।
0.5
937.991155
20231101.hi_186583_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE
जलजीवशाला
इस कार्य के लिये जीवशालाओं से जल एक छनने से होकर नीचे स्थित एक हौज़ में चला जाता है। यहाँ इसका रासायनिक शोधन तथा तापनियंत्रण होता है। जल का ताप नियमित बनाए रखने के लिये गरम या ठंडा करने के उष्मास्थैतिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। नीचे के हौज से पंप मशीन जल को उठाकर फिर जीवशाला में पहुँचा देती हैं। जीवों द्वारा जल में से ली हुई ऑक्सीजन की पूर्ति तथा उसमें छोड़ी हुई कार्बन डाइआक्साइड के निकास के लिये मार्ग में उचित स्थानों पर वायुसंचारण के साधन रहते हैं। इस प्रकार की बड़ी संस्थाओं में भिन्न प्रकार की जलवयु में पाए जानेवाले जीवों के लिये उष्ण, समशीतोष्ण तथा शीतल, समुद्री जल के भिन्न भिन्न जलाशय होते हैं। इसी प्रकार भिन्न ताप के मृदु जल के जलाशय आवश्यक हैं तथा भिन्न ताप और भिन्न क्षारीय या अम्लीय जलों की भी आवश्यकता होती है। जल के आवागमन के लिये धातु के नलों के स्थान पर, जिनका प्रभाव विषैला हो सकता है, काँच के या सीमेंट के पलस्तर किए हुए नल उपयुक्त होते हैं।
1
937.991155
20231101.hi_186583_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE
जलजीवशाला
जंतुओं के संग्रह में यह सावधानी अत्यावश्यक है कि पकड़ते समय उन्हें अधिक चोट न लगे और परिवहन के समय उपयुक्त जल तथा खाद्य उन्हें मिलता रहे। कुछ खाद्य सामान तो बाजारों में मिल जाते हैं, किंतु कुछ खाद्य जलशाला के कार्यकर्ताओं को ढूँढ़कर एकत्रित करना पड़ता है। परजीवियों तथा रोग और महामारियों से रक्षा कर विशेष ध्यान देना चाहिए। जलजीवों के रोगों की चिकित्सा कठिन है, इसलिये निवारक उपाय ही अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुए हैं। चिकित्सा के लिय मुख्यत: जीव को ऐसे विलयन में रख देते हैं जिसमें उसको कोई हानि न पहुँचे, किंतु संक्रामक जीवाणु मर जाएँ। यदि जलाशय के जल को ठंढा न होने दिया जाए, तो रोगों और परजीवियों से विशेष आशंका नहीं रहती।
0.5
937.991155
20231101.hi_186583_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE
जलजीवशाला
छोटे जलाशयों में मछलियों के साथ जलीय वनस्पतियों को भी रखने के कारण, घरों में जलजीवशालाओं के प्रति आकर्षण बढ़ गया है और ये लोकप्रिय हो गई हैं। अनेक जलीय जीव स्थिर जल में जीवनयापन के अभ्यस्त हैं। इसलिये इस प्रकार की जीवशालाओं का रखरखाव अपेक्षाकृत सरल होता है, यद्यपि इनकी देखभाल के सिद्धांत मुख्यत: वे ही हैं जो सार्वजनिक बड़ी जीवशालाओं के संबंध में लागू होते हैं।
0.5
937.991155
20231101.hi_186583_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE
जलजीवशाला
एक मिथ्या विश्वास फैला हुआ है कि स्थिर जलवाली उपर्युक्त जलजीवशालाओं में उपस्थित वनस्पतियों से जल का ऑक्सीकरण होता रहता है। वास्तव में बात इसके विपरीत है। वनस्पतियाँ भी रात में, या बदलीवाले दिनों में, जल से उसी प्रकार ऑक्सीजन लेती और कार्बन डाइऑक्साइड देती हैं जैसे जलीय जीव; किंतु इन जीवशालाओं में वनस्पतियों की उपस्थिति से अन्य लाभ हैं। मछलियों तथा अन्य जीवों के शरीर से जो मल इत्यादि निकलते हैं वे वनस्पतियों के लिये खाद के काम आ जाते हैं और इस तरह जल में गंदगी नहीं एकत्रित होने पाती। वनस्पतियों से जलाशय की सुंदरता में भी वृद्धी होती है।
0.5
937.991155
20231101.hi_186583_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE
जलजीवशाला
वनस्पतियों और जंतुओं द्वारा जल से शोशित ऑक्सीजन का पुन:स्थापन तथा इनके द्वारा जल में उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन समुचित रीति से होना आवश्यक है। यदि जलाशय के जल और वायु का मध्यस्थ स्तर यथेष्ट विस्तृत है, तो यह कार्य स्वयमेव संपादित हो जाता है। यदि ऐसा नहीं है, तो सूक्ष्म बुलबुलों के रूप में पंप या अन्य किसी उपाय से जल के भीतर से वायु का निष्कासन कराना आवश्यक होता है। किसी भी जलाशय में यदि जीवों तथा वनस्पतियों का परिमाण जलवायु-मध्यस्थ-स्तर के क्षेत्रफल से संतुलित रखा जाय, तो वायुसंचरण की विशेष व्यवस्था किए बिना भी काम चल सकता है।
0.5
937.991155
20231101.hi_71424_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
पदविज्ञान
भाषाविज्ञान में रूपिम की संरचनात्मक इकाई के आधार पर शब्द-रूप (अर्थात् पद) के अध्ययन को पदविज्ञान या रूपविज्ञान (मॉर्फोलोजी) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, 'शब्द' को 'पद' में बदलने की प्रक्रिया के अध्ययन को रूपविज्ञान कहा जाता है।
0.5
934.750305
20231101.hi_71424_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
पदविज्ञान
रूपविज्ञान, भाषाविज्ञान का एक प्रमुख अंग है। इसके अंतर्गत पद के विभिन्न अंशों - मूल प्रकृति (baseform) तथा उपसर्ग, प्रत्यय, विभक्ति (affixation) - का सम्यक् विश्लेषण किया जाता है इसलिये कतिपय भारतीय भाषाशास्त्रियों ने पदविज्ञान को "प्रकृति-प्रत्यय-विचार" का नाम भी दिया है।
0.5
934.750305
20231101.hi_71424_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
पदविज्ञान
भाषा के व्याकरण में पदविज्ञान का विशेष महत्त्व है। व्याकरण/भाषाविज्ञानी वाक्यों का वर्णन करता है और यह वर्णन यथासम्भव पूर्ण और लघु हो, इसके लिए वह पदों की कल्पना करता है। अतः उसे पदकार कहा गया है। पदों से चलकर ही हम वाक्यार्थ और वाक्योच्चारण तक पहुंचते हैं। "किसी भाषा के पदविभाग को ठीक-ठीक हृदयंगम करने का अर्थ है उस भाषा के व्याकरण का पूरा ज्ञान"।
0.5
934.750305
20231101.hi_71424_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
पदविज्ञान
ऐतिहासिक रूपविज्ञान - इसमें भाषा या बोली के विभिन्न कालों के रूपों का अध्ययन कर उसमें रूप-रचना का इतिहास या विकास प्रस्तुत किया जाता है।
0.5
934.750305
20231101.hi_71424_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
पदविज्ञान
भारतीय आचार्यों ने शब्दों की दो स्थितियाँ - सिद्ध एवं असिद्ध दी हैं। इनमें "असिद्ध" शब्द को केवल "शब्द" तथा "सिद्ध" शब्द को "पद" के रूप में परिणत किया जाता है। "सिद्धि" के सुंबत (नाम) एवं तिङंत (क्रिया) तथा "असिद्ध" के कई भेद प्रभेद किए गए हैं। यहाँ तक कि संस्कृत का प्रत्येक शब्द "धातुज" ठहराया गया है। व्याकरण शास्त्र का नामकरण एवं उनकी परिभाषा इसी प्रक्रिया को ध्यान में रख कर की गई है यथा, शब्दानुशसन (महर्षि पतंजलि एवं आचार्य हेमचंद्र) तथा "व्याक्रियंते विविच्यंते शब्दा: अनेन इति व्याकरणम्।" पाश्चात्य विद्वान् धात्वंश को आवश्यक नहीं मानते, वे आधार रूपांशों (base-elements) को नाम एवं आख्यात् दोनों के लिये अलग अलग स्वीकार करते हैं। वस्तुत: बहुत सी भाषाओं के लिये धात्वंश आवश्यक नहीं। इस प्रकार रूपांशों की परिभाषा पाश्चात्य विद्वान् ब्लूमफील्ड और नाइडा के अनुसार शब्द "भाषा की अर्थपूर्ण लघुतम इकाई" है। वह आधार रूपांशों तथा संबंध रूपांशों में विभक्त हो सकती है। उन्हें क्रम से भाषा के अर्थतत्व एवं संबंधतत्व कह सकते हैं।
1
934.750305
20231101.hi_71424_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
पदविज्ञान
अर्थतत्व तथा संबंधतत्व के पारस्परिक संबंधों के मुख्यत: तीन रूप उपलब्ध होते हैं। एक संयुक्त जहाँ दोनों अभिन्न रूप हो जाते हैं, दूसरा ईषत् संयुक्त या अर्धसंयुक्त; इसमें दोनों को पृथक पृथक पहचाना जा सकता है। तीसरे वियुक्त जहाँ दोनों अलग अलग रहकर अर्थ की अभिव्यक्ति करते हैं। संयुक्त रूप के अंतर्गत प्राचीन आर्य, सामी हामी आदि भाषाओं की गणना की गई है। इसमें मूल प्रकृति बदल जाती है। ग्रीक प्रथमा एक. बाउस, सं. गो:, ग्रीक पुं.द्वि. जुगोन, सं., युग्म संस्कृत पुंर्लिग पं.एक. अग्ने:, अरबी क़ित्ल (वैरी), कत्ल (मारा), कातिल (मारनेवाला), कुतिल (वह मारा गया) आदि।
0.5
934.750305
20231101.hi_71424_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
पदविज्ञान
वियुक्त रूप में संबंधतत्व पृथक् अस्तित्व रखता है। आधुनिक आर्य, चीनी आदि भाषाएँ इसी कोटि की हैं। संस्कृत के अव्वय, आधुनिक आर्यभाषाओं के परसंग इसके उदाहरण है। यथा सं. इति एवं, च आदि, हिंदी को, से, का, की, के, में पर और, जब, आदि। चीनी में ऐसे व्याकरणिक शब्दों को रिक्त या अर्थहीन कहा जाता है। यथा- त्सि (का), मु (को), सुंग (की)। संबंध रूप का बोध सुर या बलाघात से भी होता है। चीनी, अफ्रीकी भाषाओं में इस उदाहरण की बहुलता है। अंग्रेजी कन्डक्ट, कन्डेक्ट, हुओ (प्रेम) चीनी। इसके अंतर्गत शब्दक्रम भी संबंधरूप को प्रकट करता है। उदाहरणार्थ, जिन (बड़ा आदमी), जिन्त (आदमी बड़ा है।) न्गोतनि (मैं तुम्हें मारता हूँ) नितन्मो-तुम मुझे मारते हो।
0.5
934.750305
20231101.hi_71424_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
पदविज्ञान
इस सबंधतत्वों के द्वारा भाषा की विभिन्न व्याकरणात्मक धाराओं का निर्धारण होता है। इनसे ही भाषा में लिंग, वचन, कारक, पुरुष, काल, प्रश्न, निषेध आदि की अभिव्यक्ति संभव होती है। भाषाशास्त्रियों के मतानुसार इन सभी व्याकरणात्मक धाराओं का प्रयोग भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ साथ हुआ।
0.5
934.750305
20231101.hi_71424_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
पदविज्ञान
विभक्तियों के द्वारा वाक्य में प्रयुक्त शब्दों में परस्पर संबंध का निर्धारण होता है। प्राचीन आर्यभाषाओं में आठ विभक्तियाँ थीं जिनके अब केवल अविकारी और विकारी, दो ही रूप शेष मिलते हैं। विकारी में स्वत: प्रयोग की क्षमता नहीं होती। उसके साथ परसर्ग के योग से सबंध प्रकट होता है। (यथा हिंदी, घोड़ों ने, पुत्रों को आदि)। विभिन्न कारकसबंधों के स्पष्टीकरण के लिये भाषा में परसर्ग व प्रिपोज़िशन का विकास हुआ। इस प्रकार भाषा में पुरानी व्याकरणात्मक धाराओं का ह्रास होता रहता है और नई धाराएँ इस अभाव की पूर्ति करती चलती हैं। हिंदी की क्रियाओं में भी लिंगभेद मिलता है। अन्य आधुनिक आर्यभाषाओं में यह प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। हिंदी में लिंगप्रयोग संबंधी यह विशेष व्याकरणिक धारा है। भाषा की ये सूक्ष्म धाराएँ एक दूसरे से भिन्न होती हैं। इसीलिये एक भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद करना सरल कार्य नहीं होता। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि व्याकरणिक धाराएँ स्वभावसिद्ध एवं तर्कसंगत नहीं हैं। इनका विकास स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर हुआ है। इस आधार पर यह निष्कर्ष भी निकाला गया है कि अविकसित भाषाएँ स्थूल और विकसित सूक्ष्म रूप की परिचायक हैं।
0.5
934.750305
20231101.hi_69897_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
गोड़वाड़
गोड़वाड़ भारत के राजस्थान राज्य पाली जिले का मेवाड का सीमावर्ती एक क्षेत्रीय इलाका है। हर साल यहाँ गोडवाड़ महोत्सव मनाया जाता है। यह क्षेत्र अरावली और मेवाड़ की तराई में है।
0.5
929.804833
20231101.hi_69897_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
गोड़वाड़
इसका विस्तार अरावली पर्वत से दक्षिण पूर्व में मेवाड़ तथा दक्षिण पश्चिम में जालौर और सिरोही तक है। सांडेराव को गोडवाड़ का द्वार भी कहा जाता है।
0.5
929.804833
20231101.hi_69897_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
गोड़वाड़
पाली जिला* प्रतापगढ़ सादड़ी ,बाली, राजस्थान, रानी, राजस्थान, देसूरी और सुमेरपुर तहसील का कुछ क्षेत्र।
0.5
929.804833
20231101.hi_69897_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
गोड़वाड़
यहाँ के हर छोटे बड़े गावो में हवेली गढ़ मौजूद है जिनमे मुख्य है घाणेराव,बेडा,वरकाणा,फालना,चाणौद,आउवा,नारलाई आदि के रावले गढ़ व् देसूरी किला अन्य में नाडोल,बोया,सिन्दरली,कोटड़ी,बीजापुर,आदि के गढ़ और पुरानी हवेलिया। भाटुन्द गाँव ब्राहमणो की सदियों पुरानी नगरी है। भाटुन्द गांव के संथापक श्री आदोरजी महाराज ने अपने 18 परिवार वालों सहित 13 शताब्दी में जौहर किया था। यहाँ पर हर साल माँ शीतला माता का विशाल मेला लगता है। यहाँ पर देव मन्दिर अधिक होने के कारण इसे देव नगरी भी कहते हैं। ब्राहमणो की नगरी होने के कारण इसे ब्रह्म नगरी भी कहते हैं। १०वी व ११ वी सदी का सूर्य मन्दिर है। यह महाराजा भोज ने बनाया था। यहाँ का तालाब बाली तहसील में सबसे बड़ा है, यह भी महाराजा भोज ने खुुदवाया था।
0.5
929.804833
20231101.hi_69897_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
गोड़वाड़
पर्यटको को आकर्षित करते आशापुरा जी नाडोल,रणकपुर मंदिर,जवाई बांध,कुम्भलगढ़ राष्ट्रीय अभयारण्य,मुछाला महावीर,ठंडी बेरी,परशुराम जी गुफा मंदिर,पैंथर साइट आदि।
1
929.804833
20231101.hi_69897_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
गोड़वाड़
गौड़वार प्राचीन समय से ही इतिहास में अपनी उपस्थिति दर्ज करता रहा है मेवाड़ आने का एक मार्ग देसूरी दर्रा भी था मेवाड़ के महाराणा ने इस क्षेत्र की और मार्ग की रक्षा का भार सोलंकी और मेड़तिया राजपूतो में दे रखा यहाँ था।
0.5
929.804833
20231101.hi_69897_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
गोड़वाड़
राजपूतों के आगमन से पहले यह क्षेत्र गोंड गोत्रिय मीणाओं के अधीन था। इसी कारण यह क्षेत्र गोडवाड कहलाता है। कालांतर में मीणाओ को हटाने के बाद राजपूतों ने अपना आधिपत्य स्थापित किया और मूलनिवासी मीणाओ को हांसिए पर धकेल दिया गया। यहां निवास करने वाले मीणा जाति के सरदार हमेशा मेवाड़ को आतंकित किया करते थे।
0.5
929.804833
20231101.hi_69897_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
गोड़वाड़
दिल्ली के बादशाह औरंगज़ेब ने जब इस दर्रे से मेवाड़ पड़ आक्रमण किया तब देसूरी के बिक्रम सोलंकी और घाणेराव के हिम्मत मेड़तिया ने मुगलो को हराया इस सन्दर्भ में एक कहावत प्रसिद्ध है।
0.5
929.804833
20231101.hi_69897_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC
गोड़वाड़
यह क्षेत्र पहले मेवाड़ के आदिपत्य में था बाद में मारवाड़ के राजा विजय सिंह ने मेवाड़ के गृह युद्ध के समय इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया ; यहाँ के अधिकतर ठिकाने जोधपुर मारवाड़ के प्रति उदासीन रहे, देसूरी के खालसा हो जाने के बाद घाणेराव ठिकाने के ठाकुर को गोडवाड़ का राजा कहा जाता था और सरकार कह कर संबोदित किया जाता था। यहाँ मुख्य ठिकानो में घाणेराव, बेडा,नाणा,वरकाणा, फालना, चाणोद,नारलाई, बोया, देवली पाबूजी,बीजापुर, साण्डेराव,मालारी,बीसलपुर, गलथनी,कोलीवाड़ा,पावा,कंवला आदि हैं।
0.5
929.804833
20231101.hi_192164_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA
स्काइप
PSP Go में इसके अंतर्निर्मित माइक्रोफोन के अतिरिक्त स्काइप ऐप्लिकेशन के साथ ब्लूटूथ (Bluetooth) कनेक्शनों का प्रयोग करने की क्षमता है।
0.5
927.700894
20231101.hi_192164_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA
स्काइप
आधिकारिक सिम्बियन (Symbian) संस्करण, 2006 में विकासाधीन था, 10 दिसम्बर 2009 को इस बात की घोषणा की गई कि एक सीमित बीटा संस्करण को रिलीज़ किया जाएगा. यह कई अलग-अलग नोकिया फोनों के लिए उपलब्ध था।
0.5
927.700894
20231101.hi_192164_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA
स्काइप
आधिकारिक स्काइप समर्थन, मोबाइल ऑपरेटर 3 के साथ X-सिरीज़ (X-Series) के भाग के रूप में उपलब्ध है। हालांकि स्काइप गेटवे के लिए यह मोबाइल इंटरनेट की अपेक्षा एक नियमित मोबाइल फोन कॉल और इस्कूट का प्रयोग करता है। अन्य कंपनियां, समर्पित स्काइप फोनों का उत्पादन करती है जो वाईफ़ाई (WiFi) के माध्यम से कनेक्ट होती है।
0.5
927.700894
20231101.hi_192164_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA
स्काइप
निम्बज़ (Nimbuzz) और फ्रिंग (Fring) जैसे थर्ड पार्टी डेवलपरों ने स्काइप को किसी भी सिम्बियन (Symbian) या जावा (Java) एनवायरनमेंट में कई अन्य प्रतिस्पर्धी VoIP/IM नेटवर्कों [निम्बज़ (Nimbuzz) के पास प्रतिस्पर्धी प्रदत्त या वैतनिक सेवा के रूप में निम्बज़आउट (NimbuzzOut) भी है] के समानांतर रन करने की अनुमति प्रदान किया है। निम्बज़ (Nimbuzz) ने ब्लैकबेरी (BlackBerry) के प्रयोक्ताओं को स्काइप उपलब्ध कराया है।
0.5
927.700894
20231101.hi_192164_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA
स्काइप
आइफोन OS (iPhone OS) के लिए एक आधिकारिक निःशुल्क स्काइप ऐप्लिकेशन को 31 मार्च 2009 को आइट्यून्स (iTunes) स्टोर में रिलीज़ किया गया। हालांकि, कुछ नेटवर्क ऑपरेटर, अपने 3G नेटवर्क पर स्काइप कॉल करने की अनुमति प्रदान नहीं करते हैं बल्कि यह केवल वाईफ़ाई (WiFi) प्रयोग के लिए सीमित है।
1
927.700894
20231101.hi_192164_19
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA
स्काइप
सितंबर 2002 — ड्रेपर इनवेस्टमेंट कंपनी (Draper Investment Company) का निवेश और उस समय इसका असली नाम स्काइपर (Skyper) था।
0.5
927.700894
20231101.hi_192164_20
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA
स्काइप
दिसंबर 2005 — वीडियोटेलीफोनी का शुभारंभ हुआ। अप्रैल 2006 में पंजीकृत प्रयोक्ताओं की संख्या 100 मिलियन तक पहुंच गया।
0.5
927.700894
20231101.hi_192164_21
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA
स्काइप
अक्टूबर 2006 — मैक (Mac) के लिए स्काइप 2.0 को रिलीज़, मैकिंटोश (Macintosh) के लिए वीडियो के साथ स्काइप का पहला पूर्ण रिलीज़ किया गया।
0.5
927.700894
20231101.hi_192164_22
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA
स्काइप
दिसंबर 2006: स्काइप ने 18 जनवरी 2007 तक सभी स्काइपआउट (SkypeOut) कॉलों के लिए कनेक्शन शुल्कों सहित एक नई मूल्य संरचना प्रस्तुत करने की घोषणा की। विंडोज़ के लिए स्काइप 3.0 (Skype 3.0) को रिलीज़ किया गया।
0.5
927.700894
20231101.hi_222997_24
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8
निसान
1998 में निसान ने घोषणा की कि यह अपनी मुख्यालय इमारतों में से एक मोरी समूह को $107.8 मिलियन में बेच रहे हैं।
0.5
926.566826
20231101.hi_222997_25
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8
निसान
अपने यूरोपीय ग्राहकों के लिए निर्यात शुल्क और वितरण लागत पर काबू पाने के क्रम में, निसान ने यूरोप में एक संयंत्र स्थापित करने पर विचार किया। एक व्यापक समीक्षा के बाद, यूनाइटेड किंगडम के उत्तर पूर्व में प्रमुख बंदरगाहों के पास उपलब्धता और अपनी स्थिति और अत्यधिक कुशल कार्यबल के कारण की संडरलैंड को चुना गया था। 1986 में निसान मोटर विनिर्माण (लिमिटेड) ब्रिटेन के सहायक के रूप में संयंत्र का काम पूरा हुआ। 2007 तक यह प्रति वर्ष 400,000 वाहनों का उत्पादन करने लगी और जल्दी ही इसे यूरोप के सबसे अधिक उत्पादन करने वाले संयत्र की उपाधि मिल गई।
0.5
926.566826
20231101.hi_222997_26
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8
निसान
ऑस्ट्रेलिया में 1980 के अन्त में वित्तीय कठिनाइयों (अरबों में) के कारण निसान को वहाँ का उत्पादन बंद करना पड़ा. "बटन योजना" के कारण ऑस्ट्रेलियाई आपरेशन अद्वितीय था जैसा कि निसान मोटर्स के उत्पादों को जेनेरल मोटर्स होल्डन: होल्डन एस्ट्रा पल्सर के रूप में) और फोर्ड: कोर्सैर फोर्ड ब्लूबर्ड के रूप में) पुनः ब्रांडेड किया गया।
0.5
926.566826
20231101.hi_222997_27
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8
निसान
2005 में, निसान ने भारत में अपनी सहायक कंपनी निसान मोटर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से अपने कारोबार की स्थापना की। अपने वैश्विक गठबंधन साथी रेनॉल्ट के साथ निसान ने भारतीय बाजार की मांग को पूरी करने के लिए चेन्नई में निर्माण की सुविधा स्थापित की साथ ही साथ यूरोप को छोटे कारों के निर्यात के लिए $ 920 मिलियन का निवेश किया।
0.5
926.566826
20231101.hi_222997_28
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8
निसान
2009 में निसान ने चीन में डोंगफेंग मोटर के साथ साझेदारी कर लगभग 520,000 नए वाहनों को बेचा और 3 या 4 सालों में 1 मिलियन का लक्ष्य है। लक्ष्य को पूरा करने के लिए, डोंगफेंग-निसान ने गुआंगज़ौ में उत्पादन के आधार का विस्तार किया है जो पूरा होने पर उत्पादन क्षमता के आधार पर विश्व में निसान का सबसे बड़ा कारखाना होगा।
1
926.566826
20231101.hi_222997_29
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8
निसान
उत्तरी अमेरिकी बाजार के लिए एक पूर्ण पिकअप ट्रक के रूप में निसान टाइटन को 2004 में पेश किया गया था, ट्रक ने निसान एफ अल्फा मंच पर निसान अर्मादा और इनफिनिटी QX56 एसयूवी-ट्रक के साथ विस्तार किया।
0.5
926.566826
20231101.hi_222997_30
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8
निसान
टाइटन की विशेषता है 32 valve 5.6 L VK56DE V8 इंजन जो 317 hp उत्पन्न करता है और लगभग 9500 रस्सा पाउंड के लिए सक्षम है। निसान टाइटन चार बुनियादी ट्रिम स्तरों में आता है: XE, SE, Pro-4 और LE . ट्रकों पर ट्रिम स्तरों के संयोजन की सुविधाओं की पेशकश हो रही है।
0.5
926.566826
20231101.hi_222997_31
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8
निसान
Edmunds.com द्वारा सबसे अच्छे ट्रक के रूप में इसे सूचीबद्ध किया गया। 2004 में टाइटन को उत्तरी अमेरिका के ट्रक ऑफ द इयर के पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था।
0.5
926.566826
20231101.hi_222997_32
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8
निसान
1999 में, निसान को गंभीर रूप से वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, निसान ने फ्रांस के रेनॉल्ट एसए के साथ एक गठबंधन में प्रवेश किया।
0.5
926.566826
20231101.hi_546805_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
स्टालिनवाद
मार्क्सवादी आंदोलन के भीतर सोवियत इतिहास में स्टालिन की भूमिका और मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर स्टालिन के प्रभाव का मूल्यांकन करने के बारे में ज़बरदस्त विवाद है। इस लिहाज़ से सारी दुनिया के मार्क्सवादी तीन हिस्सों में बँटे हुए हैं : एक हिस्सा वह है जो स्टालिनवाद को पूरी तरह से स्वीकारते हुए उसे मार्क्सवाद का प्रमुख व्यावहारिक रूप करार देता है (भारत में इसका उदाहरण ख़ुद को मार्क्सवादी- लेनिनवादी कहने वाले नक्सलवादी गुटों के रूप में मौजूद है), दूसरा हिस्सा उसे पूरी तरह से ख़ारिज करते हुए मार्क्सवादी प्रयोग की त्याज्य विकृति करार देता है (जैसे, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) और तीसरा हिस्सा वह है जो स्टालिनवाद के प्रभाव को आम तौर पर प्रेरक और सकारात्मक मानने के बावजूद उसके कुछ पहलुओं की आलोचना करता है (जैसे, माओ त्से तुंग जो स्टालिन को सत्तर फ़ीसदी सही और तीस फ़ीसदी ग़लत मानते थे)। वामपंथियों के ग़ैर-मार्क्सवादी हिस्सों और अन्य वैचारिक हलकों में स्टालिनवाद को एक ऐसी अधिनायकवादी प्रवृत्ति के रूप में देखा जाता है जिसने एक अत्यंत हिंसक और दमनकारी राज्य की स्थापना की।
0.5
920.575383
20231101.hi_546805_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
स्टालिनवाद
पार्टी कार्यकर्त्ताओं के बीच स्टालिन (मैन ऑफ़ स्टील) के नाम पुकारे जाने वाले जोसेफ़ विस्सियारोविच जुगाश्विली का जन्म ज्यार्जिया में 21 दिसम्बर 1879 को एक ग़रीब मोची के घर में हुआ था। उनकी पढ़ाई-लिखाई तिबलिसी की एक धार्मिक सेमिनरी में हुई जहाँ अपने क्रांतिकारी रुझानों के कारण उन्हें अक्सर सज़ा भुगतनी पड़ती थी। 1899 में वे पेशेवर क्रांतिकारी हो कर मार्क्सवादी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने लगे। कुशल संगठक और भूमिगत राजनीतिक काम में महारत होने के कारण स्टालिन को क्रांतिकारी हलकों में प्रमुखता मिलने लगी। 1904 से ही उन्होंने ख़ुद को लेनिन और बोल्शेविकों के साथ जोड़ लिया और 1912 में बोल्शेविक केंद्रीय समिति के सदस्य बने। 1902 से 1917 के बीच स्टालिन अनगिनत बार गिरक्रतार हुए, उन्हें लम्बी-लम्बी सज़ाएँ दी गयीं और कई बार उनका निष्कासन हुआ। 1913 में उन्हें पकड़ कर साइबेरिया के सुदूर उत्तरी इलाके में भेज दिया गया जहाँ से उनकी रिहाई 1917 की फ़रवरी क्रांति के बाद ही हो पायी। बोल्शेविक क्रांति के तुरंत बाद और गृह-युद्ध के दौरान स्टालिन पार्टी के कई प्रमुख पदों पर रहे। पोलित ब्यूरो के सबसे शुरुआती सदस्यों में से एक स्टालिन को 1922 में पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया। समाज के सबसे निचले तबके से उभर कर सर्वोच्च पदों पर पहुँचने वाले वे पार्टी के एकमात्र नेता थे। जनवरी, 1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद उन्होंने एक-एक करके अपनी नीतियों का विरोध करने वाले ट्रॉट्स्की, ज़िनोवीव और बुख़ारिन को पराजित किया और 1929 के अंत तक सोवियत पार्टी और राज्य के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे। स्टालिन का देहांत पाँच मार्च, 1953 को हुआ। स्टालिन के आलोचक अक्सर उन्हें केवल जोड़-तोड़ में माहिर और मामूली बौद्धिक क्षमताओं वाले नेता के रूप में पेश करते हैं। लेकिन 1906 में ही प्रिंस क्रोपाटकिन के विचारों की आलोचना करने वाली उनकी रचना अनार्किज़म ऑर सोशलज़िम? का प्रकाशन हो चुका था। उनके सैद्धांतिक लेखन की विशेषता थी बेहद सरल अभिव्यक्ति जिसके कारण वह कार्यकर्त्ताओं के बीच काफ़ी पसंद किया जाता था। स्टालिन मुख्य रूप से विश्व-क्रांति के बिना ही एक देश में समाजवाद की स्थापना के सिद्धांत के लिए जाने जाते हैं। 1924 के बाद से स्टालिन ने अपने इस तर्क को मज़बूत करने वाला लेखन और विश्लेषण किया।
0.5
920.575383
20231101.hi_546805_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
स्टालिनवाद
स्टालिनवाद को अक्सर एक व्यक्ति स्टालिन की कारिस्तानी के रूप में देखने का सरलीकरण किया जाता है, पर इस राजनीतिक परिघटना के पीछे मौजूद संरचनागत कारणों की समझ ज़रूरी है। बोल्शेविक क्रांति के परिणामस्वरूप स्थापित हुई कम्युनिस्ट सत्ता दो विरोधाभासी आयामों से मिल कर बनी थी। एक तरफ़ उसमें सोवियतों (मज़दूरों और किसानों की निर्वाचित परिषदें) के रूप में आम जनता की सीधी भागीदारी के पहलू थे जिनमें प्रत्यक्ष लोकतंत्र की झलक दिखती थी। लोकतंत्र का यह रूप पश्चिमी देशों में विकसित हो रहे बाज़ार आधारित उदारतावादी लोकतंत्र से बेहतर और रैडिकल लगता था। दूसरी तरफ़ एक नयी उदीयमान व्यवस्था को एक अनुशासित कार्यकर्त्ता आधारित कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा निर्देशित-नियंत्रित किया जा रहा था। इस पार्टी की बागडोर लेनिन के हाथ में थी जो सर्वहारा की तानाशाही, लोकतांत्रिक केंद्रवाद और क्रांतिकारी हरावल दस्ते के आधार पर बनी पार्टी की भूमिका में यकीन रखते थे। 1920 में प्रकाशित अपनी रचना वामपंथी कम्युनिज़म : एक बचकाना मर्ज़ में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि सोवियत सत्ता की तारतम्यता का क्रम क्या रहेगा। सबसे ऊपर नेता, फिर पार्टी, फिर मज़दूर वर्ग और फिर जनता।
0.5
920.575383
20231101.hi_546805_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
स्टालिनवाद
नेता और पार्टी की सर्वोच्चता की पृष्ठभूमि में पनपे स्टालिनवाद की ज़िम्मेदारी कुछ वैचारिक रुझानों के साथ- साथ अपने देश-काल की मज़बूरियों के असाधारण संयोग पर भी डाली जा सकती है। 1918-21 के बीच चले गृह युद्ध, उसके बाद के दो वर्षों और फिर 1924-27 के बीच की अवधि को इतिहासकारों ने ‘सर्वसत्तावादी लोकतंत्र’ का विरोधाभासी नाम दिया है। समझा जाता है कि स्टालिनवाद का बीज इसी मुकाम पर पड़ा। बाद के सालों में पश्चिमी ताकतों द्वारा पहले समाजवादी राज्य की ‘पूँजीवादी और साम्राज्यवादी घेरेबंदी’ का मुकाबला करने के नाम पर कई तरह के संस्थागत और वैचारिक तौर-तरीके ईजाद किये गये। इनमें कुछ को छोड़ कर हर एक के लिए स्टालिन ख़ुद ज़िम्मेदार नहीं थे। लेनिन की मृत्यु के बाद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में शामिल उनके तत्कालीन साथी और सत्ता के लिए उनसे होड़ करने वाले नेता भी उन अधिनायकवादी और दमनकारी प्रवृत्तियों की शुरुआत में भागीदार थे जिनके आधार पर आने वाले समय के लिए सोवियत राज्य की व्यावहारिक नींव रखी जा रही थी।
0.5
920.575383
20231101.hi_546805_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
स्टालिनवाद
रूसी विद्वान मिखाइल इल्यिन ने स्टालिनवाद की परिघटना के विकास को कई चरणों में बाँट कर पेश किया है। सोवियत पार्टी के भीतर कई साल तक चले गहन सत्ता- संघर्ष का अंत दिसम्बर, 1927 में हुई पार्टी कांग्रेस के रूप में हुआ। इस दौर को उन्होंने नवजात स्टालिनवाद की संज्ञा दी है। बचकाना वामपंथ के मर्ज़ की आलोचना करते हुए लेनिन ने ट्राट्स्की द्वारा प्रवर्तित सतत क्रांति की थीसिस से असहमति व्यक्त की थी। इससे पाँच साल पहले ही अपने एक लेख में लेनिन ने स्थापित मार्क्सवादी नज़रिये के विपरीत दिखा दिया था कि असमान आर्थिक-राजनीतिक विकास के कारण कुछ देशों में या एक ही देश में समाजवाद की स्थापना का प्रयास करना होगा। 1921 में हुई दसवीं कांग्रेस से ही पार्टी में ‘पर्जिंग’ अर्थात् विरोध की आवाज़ उठाने वालों का निष्कासन करके पार्टी की सफ़ाई का चलन शुरू हो गया था। 1922 में पार्टी महासचिव के तौर पर केंद्रीय स्थिति प्राप्त करने वाले स्टालिन ने लेनिन के इस विश्लेषण को समझ कर ही 1924 में अपनी रचना फ़ाउंडेशंस ऑफ़ लेनिनिज़म के दूसरे संस्करण में एक देश में समाजवाद की स्थापना के विचार को जोड़ा। स्टालिन के समकालीन सोवियत सिद्धांतकार निकोलाई बुख़ारिन ने भी इस विचार का समर्थन करते हुए कहा कि अगर दुनिया के पहले समाजवादी राज्य को फ़ौजी सुरक्षा की गारंटी दी जा सके तो एक देश में समाजवाद की रचना की जा सकती है। पर्जिंग का बार-बार इस्तेमाल करते हुए स्टालिन ने पंद्रहवीं कांग्रेस तक अपनी नीतियों के विरोधियों से पार्टी को मुक्त कर लिया। पार्टी के प्रत्येक पद पर नियुक्ति उनके हाथ में  आ गयी और उन्होंने क्षेत्रीय पार्टी कमेटियों में विशेष विभाग स्थापित किये ताकि हर तरह की नियुक्तियों की कड़ी निगरानी की जा सके। इस तरह 1927 आते-आते सोवियत संघ में पार्टी-राज्य के रूप में सर्वसत्तावादी शासन कायम करने का रास्ता पूरी तरह से साफ़ हो गया।
1
920.575383
20231101.hi_546805_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
स्टालिनवाद
दूसरे दौर को उदीयमान स्टालिनवाद का नाम दिया गया है जो 1930 तक चला। यह उद्योगीकरण, कृषि के सामूहिकीकरण और पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत का समय था। अर्थव्यवस्था पूरी तरह से राज्य के नियोजित नियंत्रण में चली गयी। समाज के धरातल पर किसी भी तरह की पृथक अस्मिता सोवियत विरोधी मान ली गयी। समरूपीकरण का बोलबाला हो गया। इन कदमों का पार्टी के भीतर विरोध हुआ, जिसके कारण स्टालिन को 1929 से 30 के दौरान पार्टी में पर्जिंग की ज़बरदस्त मुहिम चलानी पड़ी। करीब एक लाख कम्युनिस्ट निकाल दिये गये। कोई दस फ़ीसदी पुराने सदस्य हटाये गये और नये औद्योगिक मज़दूरों को पार्टी का सदस्य बनाया गया। 1930-34 की अवधि को शुरुआती स्टालिनवाद करार देते हुए इल्यिन ने बताया है कि इस दौर में स्टालिन ने वर्ग संघर्ष को और तीखा करने की घोषणा करते हुए यह दिखाने की कोशिश की कि समाजवाद को पूँजीवादी साज़िशों से बचाने के लिए राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ चल रहा दमनचक्र किस तरह ज़रूरी है। 1933 में एक बार फिर पर्जिंग का दौर चला और पार्टी के 18 फ़ीसदी सदस्य हटा दिये गये। लेकिन इस बार उनकी जगह नये सदस्यों की भर्ती नहीं की गयी।
0.5
920.575383
20231101.hi_546805_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
स्टालिनवाद
1934-41 की अवधि सम्पूर्ण स्टालिनवाद की थी। इस दौर में स्टालिन की व्यक्ति-पूजा को बढ़ावा दिया गया। स्टालिनवाद की यह अवधि बोल्शेविक क्रांति के कुछ महत्त्वपूर्ण नेताओं के ऊपर चलाये गये मुकदमों के लिए भी जानी जाती है। इन मुकदमों में बुख़ारिन और कामेनेव जैसे नेताओं को अपने अपराध (सोवियत संघ के ख़िलाफ़ साज़िश और पूँजीवाद की स्थापना की कोशिशें) स्वीकार करने के लिए मजबूर करके मौत की सज़ा दी गयी। इसी अवधि में नोमेनक्लेतुरा की परिघटना उभरी। यह एक लैटिन शब्द था जिसका मतलब था नामों की सूची। नोमेनक्लेतुरा में अग्रिम नामज़दगी की प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न कमेटियों के लिए कार्यकर्त्ताओं और नेताओं को शामिल किया जाता था। इस सूची में नाम आने का मतलब था कि वह व्यक्ति पार्टी- प्रणाली द्वारा नियंत्रित रहेगा, पार्टी जब चाहेगी उसे हटा देगी, पदोन्नति करेगी या उसे हाशिये पर फेंक दिया जाएगा। मिलोवान जिलास ने स्टालिनवाद की आलोचना करते हुए नोमेनक्लेतुरा को नये वर्ग की संज्ञा दी है। लेकिन सोवियत संघ में शासन चलाने वालों का यह तबका मुख्यतः पार्टी और प्रशासनिक मशीनरी के बीच पुल का काम करता था। यह सरकार के नियंत्रण और सुसंगतीकरण की प्रणाली का प्रमुख अंग था। इसने राज्य की संस्था को एक प्रशासनिक बंदोबस्त में सीमित करके रख दिया।
0.5
920.575383
20231101.hi_546805_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
स्टालिनवाद
1936 के बाद पार्टी-पर्जिंग की जगह ‘जनता के गद्दारों के ख़िलाफ़ संघर्ष’ किया जाने लगा। यह ‘संघर्ष’ निकोलाई येझोव के नेतृत्व में कार्यरत आंतरिक मामलों के मंत्रालय (एनकेवीडी) की देखरेख में चलने वाली सीक्रेट पुलिस के हवाले कर दिया गया। 1938 तक येझोव ने स्टालिन के सीधे आदेश के तहत जम कर राजकीय दमन किया। द्वितीय विश्व-युद्ध में सोवियत पार्टी-राज्य प्रणाली की फ़ौजी जीत ने स्टालिन की व्यक्ति-पूजा को ज़बरदस्त उछाल दिया। विश्व-युद्ध के परिणामस्वरूप सोवियत संघ को अमेरिका के साथ-साथ दुनिया की दूसरी महाशक्ति का दर्जा मिल गया। 1945-52 के बीच का दौर विकसित स्टालिनवाद माना जाता है जिसमें स्टालिन के नेतृत्व में दुनिया के पैमाने पर एक समाजवादी ख़ेमा उभरा। इस दौर में मार्क्सवाद को विज्ञान घोषित करके सभी तरह के विज्ञानों को उसमें समाहित मान लिया गया। प्राकृतिक विज्ञानों से निकली दलीलों के ज़रिये द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और ऐतिहासिक भौतिकवाद को पुष्ट किया जाने लगा। स्टालिन ने ख़ुद कई तरह के विज्ञानों के बारे में मुहिमें चलवायीं। इसी दौरान भाषा-विज्ञान पर ख़ुद उनकी पुस्तिका प्रकाशित हुई।
0.5
920.575383
20231101.hi_546805_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
स्टालिनवाद
स्टालिनवाद को सोवियत संघ से बाहर विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन की प्रधान प्रवृत्ति बनाने में कम्युनिस्ट इंटरनैशनल यानी कोमिंटर्न (1919-1943) की उल्लेखनीय भूमिका रही। इसकी स्थापना बोल्शेविक क्रांति की पृष्ठभूमि और मध्य युरोप में चल रही क्रांतिकारी उभार की परिस्थितियों में लेनिन द्वारा 1919 में की गयी थी। इसका सदस्य बनने के लिए हर कम्युनिस्ट पार्टी को लाज़मी तौर पर सुधारवादियों और मध्यमार्गियों से ख़ुद को मुक्त घोषित करना पड़ता था। दूसरे, केवल वे ही पार्टियाँ इसकी सदस्य बन सकती थीं जो कठोर अनुशासन और संगठन के अत्यंत केंद्रीकृत नियमों का पालन करते हुए खुली राजनीति के साथ-साथ भूमिगत राजनीति का भी तालमेल बैठाती हों और जो अपने देश की सेनाओं में भी कम्युनिस्ट प्रचार चलाती हों। स्टालिन सोवियत संघ  में समाजवादी अर्थव्यवस्था और सामाजिक संबंधों की रचना जिस तरह से कर रहे थे, कोमिंटर्न अपनी सदस्य कम्युनिस्ट पार्टियों को ठीक उसी पैटर्न पर चलाने की कोशिश करता था।
0.5
920.575383
20231101.hi_49327_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BE
वडोदरा
सयाजीराव ने अपनी वस्तु दृष्टि को लागु करने के लिए ब्रिटिश इंजीनियरों आर.एफ. चिसॅाम और मेजर आर.एन मंट (R. F. Chisolm and Major R. N. Mant) को राज्य आर्किटेक्ट के रूप में भर्ती किया, और अपनी राजधानी के सार्वजनिक भवनों के रखरखाव के लिए एक संरक्षक नियुक्त भी नियुक्त किया। उनके प्रमुख कामों में लक्ष्मी विला पैलेस, कमति (समिति) बाग, और रेजीडेंसी शामिल हैं, जिन पर अरबी शैली (Saracenic) का प्रभाव देखा जा सकता है। चिसॅाम और मंट के कामो का प्रभाव बाद में एडवर्ड लुटियन (Edward Lutyens ) के दिल्ली के वास्तुकला के कामों पर देखा जा सकता है। इस विश्वास के साथ कि, भारत के औद्योगिक विकास के बिना प्रगति नहीं कर सकता है सयाजीराव ने पुराने ईंट और मोर्टार के उद्योग के स्थान पर, स्टील और कांच के नये उद्योगों को मंजूरी दी।
0.5
919.387607
20231101.hi_49327_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BE
वडोदरा
बड़ौदा के आधुनिकीकरण और शहरीकरण का आधार बना, बड़ौदा कॉलेज और कला स्कूल कलाभवन की स्थापना, जिसने इंजीनियरिंग और वास्तुकला के साथ कला पर भी जोर दिया। इन संस्थानों पर अमेरिकी टस्केगी संस्थान (Tuskegee Institute) और यूरोप के स्टाटलीचेस बॉहॉस (Staatliches Bauhaus) जैसे संस्थानों के विचारों का प्रभाव था। पश्चिमी विचारों ने सयाजीराव के बाद भी बड़ौदा को प्रभावित करना जारी रखा। 1941 में, हरमन गोएत्ज़, एक जर्मन प्रवासी, ने बड़ौदा संग्रहालय के निदेशक का पदभार संभाल लिया। गोएत्ज़ ने समकालीन भारतीय कला का समर्थन किया और बड़ौदा में दृश्य कला शिक्षा (visual arts education) को बढ़ावा देने के संग्रहालय का इस्तेमाल किया। महाराजा फतेसिंहराव संग्रहालय 1961 में लक्ष्मी विला पैलेस परिसर में स्थापित किया गया था, जिस वर्ष गुजरात राज्य बनाया गया था।
0.5
919.387607
20231101.hi_49327_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BE
वडोदरा
बड़ौदा भारत कि स्वतंत्रता तक एक राजसी राज्य बना रहा। कई अन्य रियासतों की तरह, बड़ौदा राज्य भी 1947 में भारत डोमिनियन में शामिल हो गया।
0.5
919.387607
20231101.hi_49327_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BE
वडोदरा
वड़ोदरा में स्थित महाराजा गायकवाड़ विश्वविद्यालय गुजरात का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है एवं लक्ष्मी विला पैलेस स्थापत्य का एक बहुत ही सुन्दर उदाहरण है। वड़ोदरा में कई बड़े सार्वजानिक क्षेत्र के उद्यम गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स (GSFC), इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉरपोरेशन लिमिटेड (अब रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के स्वामित्व में IPCL) और गुजरात एल्कलीज एंड केमिकल्स लिमिटेड (GACL) स्थापित हैं। यहाँ पर अन्य बड़े पैमाने पर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां जैसे, भारी जल परियोजना, गुजरात इंडस्ट्रीज पावर कंपनी लिमिटेड (GIPCL), तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) और गैस प्राधिकरण इंडिया लिमिटेड (GAIL) भी हैं। वड़ोदरा की निजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों में स्थापित विनिर्माण इकाइयां जैसे; जनरल मोटर्स, लिंडे, सीमेंस, आल्सटॉम, ABB समूह, TBEA, फिलिप्स, पैनासोनिक, FAG, स्टर्लिंग बायोटेक, सन फार्मा, L&T, श्नाइडर और आल्सटॉम ग्रिड, बोम्बर्डिएर और GAGL (गुजरात ऑटोमोटिव गियर्स लिमिटेड), Haldyn ग्लास, HNG ग्लास और पिरामल ग्लास फ्लोट आदि शामिल हैं।
0.5
919.387607
20231101.hi_49327_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BE
वडोदरा
1960 के दशक में गुजरात की राजधानी बनने के लिए बड़ौदा की साख, अपने संग्रहालयों, पार्कों दिया, खेल के मैदानों, कॉलेजों, मंदिरों, अस्पतालों, उद्योग (नवजात यद्यपि), प्रगतिशील नीतियों, और महानगरीय जनसंख्या के कारण सबसे प्रभावशाली थी। परन्तु बड़ौदा के राजसी विरासत और गायकवाड़ों के मराठा मूल से होने के कारण इस शहर को लोकतांत्रिक भारत में एक राज्य की राजधानी के रूप में स्थापित होने से रोका।
1
919.387607
20231101.hi_49327_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BE
वडोदरा
नरेन्द्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने दो लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों-वड़ोदरा और वाराणसी से चुनाव लड़ा और दोनो जगह से जीत हासिल की।
0.5
919.387607
20231101.hi_49327_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BE
वडोदरा
वडोदरा का लंबा इतिहास इसके कई महलों, द्वारों, उद्यानों और मार्गों से परिलक्षित होता है। यहाँ सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय (1949) तथा अन्य शैक्षणिक व सांस्कृतिक संस्थान हैं, जिनमें इंजीनियरिंग संकाय, मेडिकल कॉलेज, होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज, वडोदरा बायोइंफ़ॉर्मेटिक्स सेंटर, कला भवन तथा कई संग्रहालय शामिल हैं।
0.5
919.387607
20231101.hi_49327_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BE
वडोदरा
इस शहर का एक प्रमुख स्थान "बड़ौदा संग्रहालय और चित्र दीर्घा" है, जिसकी स्थापना बड़ौदा के महाराजा गायकवाड़ ने 1894 में उत्कृष्ट कलाकृतियों के प्रतिनिधि संग्रह के रूप में की थी। इसके भवन का निर्माण 1908 से 1914 के बीच हुआ और औपचारिक रूप से 1921 में दीर्घा का उद्घाटन हुआ। इस संग्रहालय में यूरोपीय चित्र, विशेषकर जॉर्ज रोमने के इंग्लिश रूपचित्र, सर जोशुआ रेनॉल्ड्स तथा सर पीटर लेली की शैलियों की कृतियाँ और भारतीय पुस्तक चित्र, मूर्तिशिल्प, लोक कला, वैज्ञानिक वस्तुएँ व मानव जाति के वर्णन से संबंधित वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं। यहाँ इतालवी, स्पेनिश, डच और फ्लेमिश कलाकारों की कृतियाँ भी रखी गई हैं।
0.5
919.387607
20231101.hi_49327_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BE
वडोदरा
इस शहर में उत्पादित होने वाली विभिन्न प्रकार की वस्तुओं में सूती वस्त्र तथा हथकरघा वस्त्र, रसायन, दियासलाई, मशीनें और फ़र्नीचर शामिल हैं।
0.5
919.387607
20231101.hi_666738_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
दिबियापुर
गेहूं से लोग मुख्य भोजन बनाते हैं। यहाँ पर आम तौर पर मक्का, जौ, ग्राम और ज्वार जैसे खाद्यान्नों का सेवन किया जाता है। गेहूं व मकई के आटे से तैयार रोटियाँ आम तौर पर दाल दूध से बनी खीर से खाई जाती हैं। यहां खाई जाने वाली दालें उड़द, अरहर, मूंग, चना, मसूर आदि हैं।
0.5
911.399965
20231101.hi_666738_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
दिबियापुर
मिठाई एक महत्वपूर्ण उत्सवी आहार हैं और सामाजिक समारोहों में खाई जाती है। लोग दूध से बने उत्पादों से विशिष्ट मिठाई बनाते हैं, जिनमें मिल्क केक, पेड़ा, गुलाबजामुन, पेठा, जलेबी, मक्खन मलाई, सोनपापड़ी और चमचम शामिल हैं। समोसा, गोलगप्पे, चाट और पान पूरे स्वाद और सामग्री के लिए पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हो रहे हैं।
0.5
911.399965
20231101.hi_666738_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
दिबियापुर
दिबियापुर के लोग रंगीन और अलग-अलग प्रकार के वस्त्र पहनते हैं। साड़ी सभी संप्रदायों में महिलाओं की सबसे पसंदीदा पोशाक है, हालांकि सलवार कमीज़ संयोजन में महिलाओं को आम तौर पर मुलाकात के दौरान देखा जाता है।
0.5
911.399965
20231101.hi_666738_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
दिबियापुर
गाँव के लोग कुर्ता, लुंगी, धोती और पजामा जैसे पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं। 'नेहरु जैकेट' के रूप में जाने वाले कोलरलेस खादी जैकेट भी लोकप्रिय हैं। मुस्लिम महिलाएं परंपरागत 'बुर्का' पहनती हैं और पुरुष अपने सिर पर गोल टोपी पहनते हैं।
0.5
911.399965
20231101.hi_666738_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
दिबियापुर
दिबियापुर औरैया जिले में एक उल्लेखनीय औद्योगिक शहर है, जहाँ भारत के अग्रणी सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के प्रतिष्ठान हैं।
1
911.399965
20231101.hi_666738_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
दिबियापुर
यहाँ स्थापित पेट्रोकेमिकल प्लांट ने हजारों कर्मचारियों को रोजगार दिया है और गेल गांव में विशेष रूप से गेल के कर्मचारियों एक छोटे से अच्छी सुविधाओं वाले विशेष गाँव में रहते हैं।
0.5
911.399965
20231101.hi_666738_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
दिबियापुर
गेल ने गेल गांव अपने गैस संयंत्र के पास एक कंप्रेसर स्टेशन की स्थापना की है जिसमे गेल की एक और आवासीय सोसायटी गेल विहार की स्थापना की गयी है। गेल के रूप में, गेल कंप्रेसर स्टेशन में काम कर रहे गेल कर्मचारियों के लिए एक छोटी, अच्छी तरह से सुविधाजनक कॉलोनी गेल विहार है।
0.5
911.399965
20231101.hi_666738_19
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
दिबियापुर
अनेक शहरों से सड़क द्वारा जुड़ाव एवं मार्गों की कम चौड़ाई के कारण शहर के मध्य से गुजरने वाले लोअर गंगा कैनाल के सेतु और सहायल रोड तिराहा पर भीषण जाम की समस्या आये दिन बनी रहती है।
0.5
911.399965