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दिबियापुर
नगर से कई अखबार और पत्रिकाएँ हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में प्रकाशित की जाती हैं। अमर उजाला, और दैनिक जागरण के पास एक बहुत व्यापक परिसंचरण है, जिसमें कई महत्वपूर्ण शहरों से प्रकाशित स्थानीय संस्करण हैं। प्रमुख अंग्रेजी भाषा के अखबार जो यहाँ बेचे जाते हैं वे टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और द हिंदू हैं।
0.5
911.399965
20231101.hi_71773_1
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बाकला
राजमा या अंग्रेज़ी में किडनी बीन, को उसके रंग और आकार के कारण गुर्दे का नाम दिया गया है। इसे अंग्रेज़ी में रेड बीन भी कहा जाता है, किंतु इस नाम से अन्य किस्म भी हैं। यह उत्तर भारत के खानपान की एक अभिन्न अंग बनने वाली किस्म है। इसे यहाँ अधिकतर चावल के संग परोसा जाता है।
0.5
910.911791
20231101.hi_71773_2
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बाकला
इसे कभी कभी राजमा चित्र आभी कहा जाता है। इसके बीज बादामी रंग के लाल राजमा से कुछ छोटे होते हैं, लगभग १.२५-१.५ सें.मी. के।
0.5
910.911791
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बाकला
यह राजमा कश्मीरी भी कहलाता है। इसके बीज १ सें॰मी॰ के अंदर के होते हैं। इनका आकार सबसे छोटा होता है। ये भी कुछ रानी रंग की आभा लिए हुए मैरून होते हैं।
0.5
910.911791
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बाकला
राजमा की प्रथम किस्म - वी.एल-६३ सन् १९८४ में विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधानशाला, अल्मोङा द्वारा विकसित की गई थी।
0.5
910.911791
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बाकला
राजमा की उदय (पी.डी.आर-१४) किस्म सन् १९८७ में भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर द्वारा विकसित की गई थी।
1
910.911791
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बाकला
अनासाज़ी फली (aka Aztec bean, Cave bean, New Mexico Appaloosa) दक्षिण-पश्चिमी उत्तर अमरीका के मूल की होती है।
0.5
910.911791
20231101.hi_71773_7
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बाकला
छोटे, चिकने ब्लैक टर्टल बीन दक्षिण अमरीकी खाने में बहुत प्रचलित हैं। इसे सामान्यतः काली बीन कहा जाता है। (स्पेनिश:frijol negro, पुर्तगाली: feijão preto''), हालाँकि इस तरह की एक अन्य ब्लैक बीन भी होती हैं।
0.5
910.911791
20231101.hi_71773_8
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बाकला
क्रेनबरी फलियों का उद्गम कोलंबिया में हुआ था। इन्हें कार्गैमैन्टो कहा जाता था। यह फली मध्यम से बड़ी टैन वर्ण की होती है और इसमें लाल- या रानी रंग के धब्बे हो सकते हैं।
0.5
910.911791
20231101.hi_71773_9
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बाकला
Lost Crops of the Incas, p 174 displays a popped seed of P. vulgaris nunas. (An extremely attractive color photograph by J. Kucharski featuring many cultivars can be found in Lost Crops of the Incas between p 192 & p 193, unfortunately not shown on web site).
0.5
910.911791
20231101.hi_460542_8
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श्रीरंगपट्टण
श्रीरंगपट्टण मैसूर राज्य का भाग 1610 से लेकर 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद तक रहा; चूँकि दुर्ग राजधानी मैसूर से निकटतम दूरी पर थी, इसलिए उसे किसी भी प्रहार की स्थिति में बचाव के अंतिम गढ़ के रूप में देखा गया है।
0.5
906.177396
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श्रीरंगपट्टण
जब टीपू ने अंततः विधि द्वारा स्थापित वाडियार महाराज से सत्ता अपने हाथ में ली और उन्हें अपना बंदी बनाते हुए अपनी "खुदादाद सलतनत" की घोषणा की, श्रीरंगपट्टण वास्तुत: इस अल्प-अवधि अस्तित्व की राजधानी बना। इस तूफ़ानी दौर में टीपू के राज्य की सीमाएँ हर दिशा में फैलने लगी थी, जिसमें दक्षिण भारत का एक बड़ा भाग सम्मिलित हो गया था। श्रीरंगपट्टण के मज़बूत राज्य की संयुक्त राजधानी के तौर पर विकसित हुआ। विभिन्न भारतीय-इस्लामी स्मार्क इस नगर में फैले हैं, जैसे कि टीपू के महलम "दरिया दौलत" और "जुमा मस्जिद", जो इस दौर से सम्बंधित हैं।
0.5
906.177396
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श्रीरंगपट्टण
श्रीरंगपट्टण टीपू सुलतान और 50,000 लोगों के गठजोड़ वाली हैदराबाद के निज़ाम और ब्रिटिश सेनाओं के बीच युद्ध जनरल जॉर्ज हैरिस के नेतृत्व में लड़ा गया। यह चतुर्थ ऐंगलो-मैसूर युद्ध की अंतिम कड़ी थी। श्रीरंगपट्टण की लड़ाई 1799 में वास्तव में एक निर्णायक युद्ध थी और इसके ऐतिहासिक प्रभाव देखे गए।
0.5
906.177396
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श्रीरंगपट्टण
बहरहाल टीपू सुलतान को श्रीरंगपट्टण दुर्ग में ही अपनी विश्वासपात्र के धोके के कारण मौत का शिकार होना पड़ा; वह जगह जहाँ वह वीर गति को प्राप्त किए थे, एक स्मारक बन चुका है। इतिहास में अंतिम बार श्रीरंगपट्टण मैसूर सलतनत के राजनीतिक सत्ता पलट का केन्द्र बना। विजयी सेना की संयुक्त सेना ने सेरिंगापट्टनम को बर्बाद करने और टीपू के महल को लूटने के लिए आगे बढ़ी। आम सोने और नक़द के अलावा कई बहुमूल्य कलाकृतियाँ जिनमें कुछ टीपू की ओर विशेष रूप से निर्मित थे, उसके क़ीमती कपड़े और जूते, तलवार और बारूद इंगलैंड भेजे गए।
0.5
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श्रीरंगपट्टण
हालाँकि इन में से अधिकाँश को ब्रिटिश राजशाही संग्रह में और विकटोरिया और ऐलबर्ट संग्रहालय में पाया जा सकता है, इन में कुछ वस्तुओं को समय-समय नीलाम भी किया गया है और अपने मूल निवासीय स्थान वापस पहुँचाया जाता गया है। टीपू सुलतान की तलवार को एक नीलाम में विजय माल्या प्राप्त किया था, जो व्यापार जगत में कर्नाटक के शराब के सौदागर रूप में प्रसिद्ध हैं। युद्ध भूमि का अधिकांश हिस्सा ज्यों का त्यों है, जिसमें किले, पानी के द्वार, वह स्थान जहाँ टीपू का शरीर पाया गया, वह जगह जहाँ ब्रिटिश क़ैदियों को रखा जाता था और तबाह किया गया महल। टीपू का शेर जैसाकि स्वचालित रूप में वह चलता था विकटोरिया और ऐलबर्ट संग्रहालय में इस युद्ध के पश्चात रखा गया।
1
906.177396
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श्रीरंगपट्टण
यह नगर आदि प्राचीन मन्दिर श्री रंगानाथस्वामी मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है जो कि विष्णु के अवतार माने जाते हैं। अन्य आकर्षणों मे जुमा मस्जिद और दरिया दौलत बाग़ है। श्रीरंगपट्टण के निकट रंगनटिट्ट पक्षीशाला है जिसमें विभिन्न प्रकार के पक्षी हैं। प्रसिद्ध निमिशंबा मंदिर पड़ोस के गंजाम में है। टीपू सुलतान की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी दिलचस्प है। इस नगर से 27 किलोमीटर दूर खूबसूरत शिवासनसमुद्र झरने हैं जो भारत में दूसरे स्थान पर दुनिया में सोलहवीं स्थान पर हैं।
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श्रीरंगपट्टण
बर्नर्ड कॉर्नवेल द्वारा रचित शार्प्ज़ टाइगर श्रीरंगपट्टण युद्ध का काल्पनिक विवरण है। इसके केन्द्र पूर्ण रूप से काल्पनिक चरित्र रिचर्ड शार्प और पूर्ण रूप से ऐतिहासिक आर्थर वेलेस्ले हैं, जो बाद में वेलिंगटन के ड्यूक बने।
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श्रीरंगपट्टण
विल्की कॉलिंज़ द्वारा रचित दि मूनस्टोन में एक प्रस्तावना शामिल है जो श्रीरंगपट्टण युद्ध संबंधित है। इसका शीर्षक "स्टॉर्मिंग ऑफ़ श्रीरंगपट्टण" (1799) है। इसके अनुसार एक ब्रिटिश अधिकारी एक पवित्र हिन्दू हीरे की चोरी करता है जो उपन्यास की कहानी के केन्द्र है।
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श्रीरंगपट्टण
गणेश मन्दिर रंगनाथस्वामी मन्दिर के सामने स्थित है। अन्य दार्शनिक स्थलों में गंधारेश्वर स्वामी मन्दिर है।
0.5
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सिनसिनवार
सिनसिनवार भारतीय जाट जाति में पाया जाने वाला गोत्र है । भरतपुर के राजा सूरज मल भी सिनसिनवार गोत्र के जाट राजा थे। लोग यह भी जानना चाहते हैं
0.5
903.053647
20231101.hi_188525_1
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सिनसिनवार
यह गोत्र जाट भारत में राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं। सिनसिनवार भरतपुर रियासत के शासक थे। भरतपुर राज्य के गठन से पहले सिनसिनवारों की राजधानी सिनसिनी में थी। सिनसिनवार:ठाकुर देशराज
0.5
903.053647
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सिनसिनवार
यदुवंश के शाखागोत्र - : 1. वृष्णि 2. अन्धक 3. हाला 4. शिवस्कन्दे-सौकन्दे 5. डागुर-डीगराणा 6. खिरवार-खरे 7. बलहारा 8. सारन 9. सिनसिनवाल 10. छोंकर 11. सोगरवार 12. हांगा 13. घनिहार 14. भोज ।[15]
0.5
903.053647
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सिनसिनवार
ठाकुर देशराज[16] ने लिखा है.... भरतपुर के संबंध में जागा लोगों का कहना है कि बालचंद्र ने एक डागुर गोती जाट की स्त्री का डोला ले लिया था, अतः बालचंद राजपूत से जाट हो गया। बृजेंद्रवंश भास्कर के लेखक ने भी इसी गलती को दोहराया है। हालांकि महाराजा श्री कृष्णसिंह जी इस बेहूदा
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903.053647
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सिनसिनवार
[पृ.129]: बात पर बड़े हंसे थे। वे तो कहते थे हम राजपूतों से बहुत पुराने हैं। उनका गोत सिनसिनवार क्यों हुआ? इसके लिए जगा कहते हैं क्योंकि ये सिनसिनी में जाकर आबाद हुए थे किंतु उन बेचारों को यह तो पता ही नहीं कि गांवों के नाम सदा किसी महान पुरुष के नाम पर होते हैं। और उसी के नाम पर गोत्र का नाम होता है। जैसे मथुरा नाम मधु के नाम से प्रसिद्ध हुआ और उसके साथी मधुरिया अथवा मथुरिया कहलाए। पुरानों के अनुसार भी देश और नगरों के नाम किन्हीं महान पुरुषों के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। हाँ 2-4 घटनाएं अपवाद भी होती हैं।
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सिनसिनवार
वास्तव में बात यह है कि इन लोगों ने वहां पर शिन देवता की स्थापना की थी। उसी शिन के नाम पर जिसे कि ये लोग सिनसिना कहते थे सिनसिनी प्रसिद्ध हुआ। ये शिन अथवा सिनसिना कौन है यह भी बता देना चाहते हैं। शिन वैदिक ऋचा का दृष्ट्वा एक ऋषि हुआ है जिसका वैदिक ऋचा में नाम है और चंद्रवंशी क्षत्रियों में ही हुआ है। चंद्रवंश की वंशावली में भगवान श्रीकृष्ण से 6 पीढ़ी पहले शिनि हुये हैं। एक शिनी कृष्ण से 10 पीढ़ी पहले वृषणी के जेठे भाई थे। संभव है इन दोनों शिनियों को वे सिनसिना के नाम से उसी भांति याद करते हैं जैसे लोग नलनील अथवा रामकृष्ण को याद करते हैं। सिंध में तो इन लोगों की कुछ मोहरें भी मिलीं जिनपर शिनशिन और शिन ईसर लिखे शब्द मिले हैं। यह याद रखने की बात है कि ब्रज की
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903.053647
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सिनसिनवार
[पृ.130]: संतान के कुछ लोग पंजाब के जदू का डांग और सिंध के मोहनजोदारो में जाकर आबाद हुए थे। वहां से लौट कर इनके एक पुरुष ने बयाना पर कब्जा किया। यहां पर बहुत प्राचीन समय में बाना लोग राज करते थे। उनकी पुत्री उषा का वहां अब तक भी मंदिर है। आगे चलकर इनकी दो शाखाएँ हो गई। एक दल नए क्षत्रियों में दीक्षित हो गया जो कि राजपूत कहलाते थे। उसने उन सब रस्मों रिवाजों को छोड़ दिया जो कि उसके बाप दादा हजारों वर्ष से मानते चले आ रहे थे। इस तरह जाट संघ से निकलकर वे लोग अपने लिए यादव राजपूत कहलाने लगे। करौली में उन्होंने अपना राज्य कायम किया।
0.5
903.053647
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सिनसिनवार
फौजदार - यह उपाधि मुगल शासनकाल में उन शाही उच्च अधिकारियों को दी जाती थी जो कई परगनों या प्रान्त की शासन व्यवस्था करते थे। जाटों को यह उपाधि भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल ने देनी आरम्भ की थी। प्राचीन राजवंशज जाट जो महाराजा की सेना में बड़ी संख्या में भरती थे, उनको महाराजा सूरजमल ने यह फौजदार की उपाधि प्रदान की थी। भरतपुर के सभी सिनसिनवार गोत्र के जाट, अलीगढ, मथुरा के खूंटेल (कुन्तल), डागुर, चाहर, गंड और भगौर गोत्रों के जाट फौजदार कहलाते हैं।[17]
0.5
903.053647
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सिनसिनवार
77 सिनसिनवार खाप - किसी जमाने में इस खाप के 365 गांव ब्रज मंडल में गिने जाते थे परंतु आज यह उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान तीनों प्रांतों में फैले हुए हैं. गांव सिनसिनी के कारण सिनसिनवार नामक जाटों के गोत्र का जन्म हुआ. महाराजा भरतपुर इसी गोत्र से हैं. कुम्हेर और डीग के प्रसिद्ध किले इसी खाप की शान हैं. सिनसिनी इस खाप का मुख्यालय है जिसके लिए जाटों ने रक्त के दरिया बताए और मुगलों को छठी का दूध याद दिलाया. इस खाप के अभाव में जाटों का इतिहास लिख पाना संभव नहीं. अखिल भारतीय जाट महासभा के पूर्व अध्यक्ष महाराजा विश्वेंद्र सिंह इसी खाप से रहे हैं.[18]
0.5
903.053647
20231101.hi_554148_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B0
नेमावर
नेमावर (Nemawar) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के देवास ज़िले में स्थित एक नगर है। यह हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। नेमावर नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ है और ठीक नर्मदा के पार हंडिया गाँव है, जो हरदा ज़िले में है।
0.5
901.996002
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B0
नेमावर
नेमावर नर्मदा नदी के उत्तर तट पर स्थित है और नर्मदा के पार दक्षिण तट पर हंडिया गाँव है। यहाँ नर्मदा का मध्य भाग है और नदी की चौड़ाई करीब 700 मीटर है। नेमावर में प्रकति का सुन्दर नमूना है। नेमावर से 8 किमी की दूरी पर स्थित ग्राम लवरास खातेगांव तेहसील की सबसे ज्यादा उपजाऊ भूमि के लिए प्रसिद्ध है। महाभारतकाल में नाभिपुर के नाम से प्रसिद्ध यह नगर व्यापारिक केंद्र हुआ करता था मगर अब यह पर्यटन स्थल का रूप ले रहा है। राज्य शासन के रिकॉर्ड में इसका नाम 'नाभापट्टम' था। यहीं पर नर्मदा नदी का 'नाभि' स्थान है।
0.5
901.996002
20231101.hi_554148_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B0
नेमावर
इस गांव में मुख्य रूप से धनगर,राजपूत/रावणा राजपूत,ब्राह्मण,गुर्जर, जाट ओर विश्नोई।जातियों के लोग निवास करते हैं
0.5
901.996002
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नेमावर
नेमावर एक हिंदू सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र है, जहाँ नर्मदा के तट पर भगवान सिद्धनाथ का अतिप्राचीन मंदिर खड़ा है। यह स्थान प्राचीन काल में हिंदू संन्यासियों की तपोभूमि हुआ करता था तथा यहाँ कई भव्य मंदिर हुआ करते थे
0.5
901.996002
20231101.hi_554148_4
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नेमावर
सिद्धनाथ मंदिर के शिवलिंग की स्थापना चार सिद्ध ऋषि सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार ने सतयुग में की थी। इसी कारण इस मंदिर का नाम सिद्धनाथ है। इसके ऊपरी तल पर ओमकारेश्वर और निचले तल पर महाकालेश्वर स्थित हैं श्रद्धालुओं का ऐसा भी मानना है कि जब सिद्धेश्वर महादेव शिवलिंग पर जल अर्पण किया जाता है तब ॐ की प्रतिध्‍वनि उत्पन्न होती है।
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901.996002
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नेमावर
ग्राम के बुजुर्गों का मानना है कि पहाड़ी के अंदर स्थित गुफाओं, कंदराओं में तपलीन साधु प्रात:काल यहाँ नर्मदा स्नान करने के लिए आते हैं। नेमावर के आस-पास प्राचीनकाल के अनेक विशालकाय पुरातात्विक अवशेष मौजूद हैं।
0.5
901.996002
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नेमावर
हिंदू और जैन पुराणों में इस स्थान का कई बार उल्लेख हुआ है। इसे सब पापों का नाश कर सिद्धिदाता ‍तीर्थस्थल माना गया है।
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नेमावर
कहा गया है कि - रावण के सुत आदि कुमार, मुक्ति गए रेवातट सार। कोटि पंच अरू लाख पचास, ते बंदों धरि परम हुलास॥ उक्त निर्वाण कांड के श्लोक के अनुसार रावण के पुत्र सहित साढ़े पाँच करोड़ मुनिराज नेमावर के रेवातट से मोक्ष पधारे हैं। रेवा नदी जो कि नर्मदा के नाम से भी जानी जाती है। जैन शास्त्र के अनुसार नेमावर नगरी पर प्रचीन काल में कालसंवर और उनकी रानी कनकमला राज्य करते थे। आगे जाकर यह निमावती और बाद में नेमावर हुआ।
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नेमावर
नेमावर नदी के तल से विक्रम संवत 1880 ई.पू. की तीन विशाल जैन प्रतिमाएँ निकली है। पहली 1008 भगवान आदिनाथ की मूर्ति जिन्हें नेमावर जिनालय में, दूसरी 1008 भगवान मुनिसुव्रतनाथ की मूर्ति, जिन्हें खातेगाँव के जिनालय में और 1008 भगवान शांतिनाथ की पद्‍मासनस्त मूर्ति, जिन्हें हरदा में रखा गया है। इसी कारण इस सिद्धक्षेत्र का महत्व और बढ़ गया है।
0.5
901.996002
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पशुजन्यरोग
1995 में, 43 बच्चों को जो वेल्स में एक ग्रामीण खेत का दौरा करमे के बाद क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस से बीमार हो गया। क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस सात बीमार बच्चों से अलग की गई थी। एक महामारी जांच संकेत दिया है कि बीमारी बच्चों के स्रोत के खेत में बछड़ों के साथ संपर्क था।
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पशुजन्यरोग
1995 में भी डब्लिन, आयरलैंड में एक फार्म पर जाने के बाद कम से कम 13 बच्चे क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस (Cryptosporidiosis) से बीमार हो गए। एक परीक्षण अध्ययन के दौरान, शोधकर्ताओं ने 13 बीमार बच्चों, या विषयों की गतिविधियों की तुलना उन 55 में से 52 बच्चों के साथ की जोकि उस फार्म पर गए थे - अर्थात नियंत्रण समूह. इस अध्ययन से यह पता चला कि बीमारी मुख्यतया उस झरने के किनारे स्थित पिकनिक स्थल पर खेलने से संबंद्ध थी, जो जानवरों की पहुंच में था।
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पशुजन्यरोग
1997 में, एक ई. O157 कोलाई: H7 प्रकोप दलों पहचान की स्कूल के दौरान था बच्चा जो एक खुले खेत और खेत का दौरा किया। तीन में से दो बच्चों में hemolytic-uremic सिंड्रोम विकसित था। आइसोलेट्स खेत एकत्र से तीन में लिया नमूनों से बच्चों और बच्चों की बीमारी और खेत सबूत के बीच लिंक देखा गया।
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पशुजन्यरोग
1999 में, ई.कोलाई waterborne फैलने का सबसे बड़ा माना जा रहा था। O157: H7 बीमारी संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क वाशिंगटन काउंटी, इतिहास में हुई स्वास्थ्य विभाग राज्य न्यूयॉर्क जो 781 व्यक्तियों या तोई.कोलाई: से संक्रमित होने का संदिग्ध थे O157 ' H7 या Campylobacter jejuni. की पहचान की. बीमारी फैलने में एक जांच से पता चला कि Fairgrounds unchlorinated पेय पदार्थों खरीदा विक्रेताओं से खींचा पानी के साथ आपूर्ति कीकी खपत बीमारी के साथ जुड़े थे। सभी में, 127 ई. पीड़ितों प्रकोप से बीमार थे पुष्टि की कोलाई O157: H7 संक्रमण, 71, 14 अस्पताल में भर्ती थे विकसित पति और दो निधन हो गया।
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पशुजन्यरोग
2000 में, पेंसिल्वेनिया में एक डेयरी फार्म में आने के बाद 51 लोग बीमार हुये ई.कोलाई संदिग्ध बन गया है या O157: H7 संक्रमण पेन्सिलवेनिया .पुष्टि की आठ बच्चों में एचयूएस विकसित किया। पेंसिल्वेनिया आगंतुकों के लिए डेयरी अध्ययन नियंत्रण एक मामला स्वास्थ्य विभाग पेंसिल्वेनिया और मोंटगोमरी काउंटी स्वास्थ्य विभागस्वास्थ्य विभाग संयुक्त रूप से आयोजित किया था। अध्ययन के लेखकों ने निष्कर्ष निकाला कि ई. कोलाई जानवर खाल और वातावरण में.पर संदूषण का एक परिणाम के रूप में आगंतुकों को प्रेषित किया गया
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पशुजन्यरोग
इसके अलावा 2000 में, ओहियो में काउंटी मदीनामेला 43 आगंतुकों को O157: H7 संक्रमण से बीमार थे .ई. कोलाई पुष्टि की फैलने में एक जांच का सुझाव दिया है कि पानी की व्यवस्था जिसमें से खाद्य विक्रेताओं की आपूर्ति की गई ई. कोलाई का स्रोत था ' . कई महीनों बाद में, पाँच बच्चे काउंटी Fairgrounds मदीना में आयोजित समारोह कार्निवल भाग लेने के बाद' ई.कोलाई के साथ बीमार हो गये। उपभेदों के विश्लेषण के PFGE ई. कोलाई प्रकोप दोनों के सदस्यों को अलग से एक पैटर्न का पता चला और जांचकर्ताओं ने मदीना काउंटी स्वास्थ्य विभाग और सीडीसी निर्धारित किया है कि मदीना काउंटी Fairgrounds जल वितरण प्रणाली दोनों ई. कोलाई प्रकोप स्रोत था '''' .
0.5
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पशुजन्यरोग
2001 में, एक ई.कोलाई: O157 H7 प्रकोप ओहियो में Lorainकाउंटी काउ पैलेस में साफ जोखिम का पता लगाया सीडीसी जांचकर्ताओं ने ई.कोलाई के 23 मामलों की पहचान की Lorain काउंटी मामलों में संक्रमण के साथ जुड़े उपस्थिति माध्यमिक अतिरिक्त मेला, दो लोग में एचयूएस विकसित हुआ। एक पर्यावरण और साइट ई.कोलाई संदूषण, रेल, bleachers और चूराजांच से पता चला . जांचकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि Lorain काउंटी साफ प्रकोप के स्रोत था।
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पशुजन्यरोग
Wyandot काउंटी, ओहियो, भी ई. कोलाई O157: 2001 में फैलने H7.रिपोर्ट की. विश्लेषण प्रयोगशाला की रिपोर्ट की पुष्टि के प्रयोग से नब्बे ई.कोलाई दो ' संक्रमण के मामलों के साथ 27 Wyandot काउंटी स्वास्थ्य विभाग और सीडीसी, के लिए थे दो मामलों में एचयूएस का विकास किया। पशु संक्रमित संपर्क के साथ फैलने था स्रोत माना जा रहा था, तथापि, एक विशेष कारण पहचान कभी नहीं की थी।
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पशुजन्यरोग
कनाडा के ओंटारियो में निष्पक्ष, कृषि पर जाकर 2002 में, H7 O157:संक्रमण के बाद सात लोग ई.कोलाई से बीमार हो गया ' . जांचकर्ताओं प्रकोप ई. आयोजित एक मामला निष्पक्ष नियंत्रण अध्ययन, एक संकेत से पालतु भेड़ बकरियों और स्रोत के चिड़ियाघर आगंतुकों के बीच में कोलाई देखा गया। अन्य संकेत बाड़ लगाने और चिड़ियाघर पर्यावरण आसपास के संचरण का स्रोत हो सकता था।
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मूत्रमेह
तरल पदार्थ की समस्थिति के लिए मुख्य निष्पादि अंग गुर्दा है। ADH, संग्रह नलिकाओं और दूरस्थ कुंडलित छोटी नलिका में पानी की पारगम्यता को बढ़ाते हुए क्रिया करता है, मुख्यतः यह एक्वापोरीन नामक प्रोटीन पर कार्य करता है जो पानी को संग्रह नलिका कोशिका में भेजने के लिए खुलता है। पारगम्यता में यह वृद्धि खून में, पानी के पुनः अवशोषण की अनुमति देता है, तथा इस प्रकार मूत्र की सांद्रता को बढ़ाता है।
0.5
897.681475
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मूत्रमेह
तंत्रिकाजन्य बहुमूत्ररोग, जो सामान्यतः केंद्रीय बहुमूत्ररोग के नाम से ज्ञात है, मस्तिष्क में वैसोप्रेसिन के उत्पादन की कमी के कारण होता है।
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मूत्रमेह
वृक्कजनक बहुमूत्ररोग, सामान्य रूप से ADH के प्रति गुर्दे की प्रतिक्रिया की अक्षमता की वजह से होता है।
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मूत्रमेह
पिपासाजन्य DI, पिपासा तंत्र में, दोष या क्षति के कारण होता है जो अध:श्चेतक में स्थित है। इस दोष के परिणामस्वरूप प्यास और तरल पदार्थ के सेवन में एक असामान्य वृद्धि होती है, जो ADH स्राव को घटाती है तथा मूत्र उत्पादन को बढ़ाती है। डेस्मोप्रेसिन अप्रभावी होती है और चूंकि प्यास बनी रहती है यह तरल अधिभार को फलित कर सकती है।
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मूत्रमेह
गर्भजन्य DI केवल गर्भावस्था के दौरान होता है। जबकि सभी गर्भवती महिलाएं, गर्भनाल में वैसोप्रेसिनेज़ का उत्पादन करती हैं जो ADH को विखंडित करता है, यह GDI में चरम रूपों को धारण कर सकता है।
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मूत्रमेह
गर्भजन्य DI के अधिकांश मामलों का इलाज डेस्मोप्रेसिन से हो सकता है। कुछ दुर्लभ मामलों में, हालांकि प्यास तंत्र में एक असामान्यता, गर्भजन्य DI का कारण बनती है और इस मामले में डेस्मोप्रेसिन का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
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मूत्रमेह
बहुमूत्ररोग, गर्भावस्था के कुछ गंभीर रोगों के साथ भी जुड़ा हुआ है। ये हैं पूर्व-गर्भाक्षेप HELLP सिंड्रोम, तथा गर्भावस्था का तीव्र वसायुक्त यकृत. यह, यकृत वैसोप्रेसीनेज़ को सक्रिय करके बहुमूत्ररोग का कारण बनता है। इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जब एक औरत को गर्भावस्था में बहुमूत्ररोग हो, क्योंकि बीमारी के इलाज के लिए यह आवश्यक है कि रोग के बढ़ने से पहले बच्चे का जन्म हो जाये. इन रोगों के इलाज क़ी विफलता तुरंत औरतों क़ी प्रसवकालीन मृत्यु को प्रेरित कर सकती है।
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मूत्रमेह
केंद्रीय DI और गर्भजन्य DI, डेस्मोप्रेसिन के प्रति प्रतिक्रिया देते हैं। कार्बामाज़ेपाइन जो एक आक्षेपिक-विरोधी दवा है, को भी इस तरह के DI में सफलता मिली है। इसके आलावा गर्भजन्य DI, प्रसव पीड़ा के 4 से 6 सप्ताह बाद अपने-आप ही कम होने लगती है। यद्यपि कुछ महिलाओं में बाद के गर्भधारण के समय इसका पुनः विकास हो सकता है। पिपासाजन्य DI में, डेस्मोप्रेसिन आमतौर पर एक विकल्प नहीं है।
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मूत्रमेह
डेस्मोप्रेसिन वृक्कजनक DI में अप्रभावी होगा। इसके बजाय, मूत्रवर्धक हाइड्रोक्लोरोथियाजाइड (एक थियाजाइड मूत्रवर्धक) या इंडोमेथासिन, वृक्कजनक बहुमूत्ररोग में सुधार कर सकता है। थियाजाइड मूत्रवर्धक को हाइपोकलीमिया को रोकने के लिए कभी-कभी अमिलोराइड के साथ संयुक्त किया जाता है। अत्यंत मुत्राधिक्य का इलाज मूत्रवर्धक से करना विरोधाभासी लगता है लेकिन थियाजाइड मूत्रवर्धक, दूरस्थ संवहन नलिका के सोडियम और पानी के अवशोषण को कम करता है और दूरस्थ नेफ्रॉन में द्रव की परासारिता में कमी होती है जिसके परिणामस्वरूप मलोत्सर्जन दर में कमी होती है। इसके आलावा, DI वाले रोगियों के लिए पर्याप्त जलयोजन महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे आसानी से निर्जलित हो सकते हैं।
0.5
897.681475
20231101.hi_41888_25
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A6%E0%A5%AF
२००९
१७ मई- भारत के आम-चुनाव में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सत्ताधारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने जीत दर्ज की है।
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895.13271
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A6%E0%A5%AF
२००९
२२ मई- भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति रोह मू ह्यून ने अपने घर के नजदीक पहाडिय़ों से छलांग लगाकर आत्महत्या की।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A6%E0%A5%AF
२००९
२७ मई- पाकिस्तान के लाहौर में पुलिस मुख्यालय को निशाना बनाकर हुए एक बड़े बम धमाके में २३ लोग मारे गए और २०० से अधिक घायल हुए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A6%E0%A5%AF
२००९
२८ मई- प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह की मंत्रीमंडल के १४ नए मंत्रियों सहित सात स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और 38 राज्य मंत्रियों ने शपथ ली। अब प्रधानमंत्री को मिलाकर मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या 78 हो जाएगी।
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२००९
भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने जकार्ता में इंडोनेशियाई ओपन के फाइनल में चीन की लि वांग को हरा कर सुपर सीरीज टूर्नामेंट जीतने वाली पहली भारतीय बनीं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A6%E0%A5%AF
२००९
२३ जून- पाकिस्तानी में तालिबान नेता बैतुल्ला महसूद के शहर दक्षिणी वज़ीरिस्तान में हुए अमरीकी मिसाइल हमले में कम से कम ४० लोग मारे गए।
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२००९
२६ जुलाई- भारत की पहली नाभिकीय पनडुब्बी आई एन एस अरिहन्त देश को समर्पित की गई। यह हिन्द महासागर में उतारी गई।
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२००९
मुंबई में प्रसिद्ध हिन्दी अभिनेत्री लीला नायडू का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे ६९ वर्ष की थीं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A6%E0%A5%AF
२००९
१३ अगस्त- इसरो ने गूगल अर्थ के समान भुवन सॉफ्टेयर का निर्माण किया है। यह सिर्फ भारत देश के विभिन्न भागों की तसवीरें लगभग १० मि॰ की ऊँचाई तक दिखा सकता है। हर साल भारत की तसवीरों को भुवन पर उन्नत किया जाएगा।
0.5
895.13271
20231101.hi_248932_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
रंगहीनता
ऐल्बिनिज़म के ज्यादातर रूप किसी व्यक्ति के दोनों माता-पिता से होकर गुजरने वाले आनुवंशिक रिसेसिव एलील्स (जींस) के जैविक विरासत का परिणाम है, हालाँकि कुछ दुर्लभ रूप केवल एक माता या पिता से विरासत में प्राप्त होता है। कुछ अन्य आनुवंशिक उत्परिवर्तन हैं जिनके ऐल्बिनिज़म से संबंधित होने की बात साबित हुई है। हालांकि सभी परिवर्तनों के फलस्वरूप शरीर में मेलेनिन के निर्माण में बदलाव आता है।
0.5
894.275419
20231101.hi_248932_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE
रंगहीनता
ऐल्बिनिज़मग्रस्त या ऐल्बिनिज़मरहित किसी जीवधारी की जोड़ी से ऐल्बिनिज़मग्रस्त संतान की उत्पत्ति की सम्भावना कम होती है। हालाँकि चूंकि जीवधारी किसी लक्षण का प्रदर्शन किए बिना ऐल्बिनिज़म के लिए जीन (genes) के वाहक हो सकते हैं, इसलिए गैर-ऐलबिनिस्टिक माता-पिता द्वारा ऐलबिनिस्टिक संतान की उत्पत्ति हो सकती है। ऐल्बिनिज़म आमतौर पर दोनों लिंगों में समान आवृत्ति के साथ होती है। इसका एक अपवाद ऑक्यूलर ऐल्बिनिज़म है जो X-लिंक्ड विरासत के माध्यम से संतान में चले जाते हैं। इस प्रकार, ऑक्यूलर ऐल्बिनिज़म ज्यादातर पुरुषों में होता है क्योंकि केवल एक-एक X और Y क्रोमोजोम होता है जबकि महिलाओं में दो X क्रोमोजोम होते हैं।
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रंगहीनता
ऐल्बिनिज़म के दो अलग रूप हैं; मेलेनिन के आंशिक अभाव को हाइपोमेलेनिज्म या हाइपोमेलेनोसिस और मेलेनिन की सम्पूर्ण अनुपस्थिति को ऐमेलेनिज्म या ऐमेलेनोसिस के नाम से जाना जाता है।
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रंगहीनता
आनुवंशिक परीक्षण से ऐल्बिनिज़म और इसकी भिन्नता की पुष्टि हो सकती है लेकिन गैर-ओसीए (OCA) विकारों (नीचे देखें) के मामलों को छोड़कर अन्य कोई चिकित्सीय लाभ प्राप्त नहीं होता है, जिसकी वजह से अन्य चिकित्सीय समस्याओं के साथ-साथ ऐल्बिनिज़म भी होता है जिसका इलाज किया जा सकता है। ऐल्बिनिज़म के लक्षणों का इलाज नीचे विस्तारपूर्वक बताए गए विभिन्न तरीकों के माध्यम से किया जा सकता है।
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रंगहीनता
आँख संबंधी समस्याओं के इलाज में ज्यादातर दृश्य पुनर्वास शामिल होता है। नीस्टैगमस, स्ट्राबिस्मस और सामान्य अपवर्तक त्रुटियों जैसे ऐस्टिगमैटिज्म को कम करने के लिए ऑक्यूलर मांसपेशियों पर सर्जरी करना संभव है। स्ट्राबिस्मस सर्जरी से आँखों के रूप-रंग में सुधार किया जा सकता है। आँखों के आगे-पीछे "हिलने" की समस्या को कम करने के लिए नीस्टैगमस-डैम्पिंग सर्जरी भी की जा सकती है। इन सभी प्रक्रियाओं की प्रभावकारिता में काफी अंतर होता है और वह व्यक्तिगत परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि चूंकि सर्जरी से किसी सामान्य आरपीई (RPE) या फोविया को पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता है, इसलिए सर्जरी से बेहतर द्विनेत्री दृष्टि प्राप्त नहीं हो सकती है। एसोट्रोपिया (स्ट्राबिस्मस का "क्रॉस्ड आईज" रूप) के मामले में सर्जरी द्वारा दृश्य क्षेत्र (वह क्षेत्र जिसे आँखे किसी एक बिंदु पर देखने के दौरान देख सकती हैं) का विस्तार करके दृष्टि में मदद मिल सकती है।
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रंगहीनता
चश्मा और अन्य दृष्टि सहायक सामग्री, बड़े अक्षरों में मुद्रित सामग्रियां और सीसीटीवी (CCTV) के साथ-साथ उज्जवल लेकिन तिरछी रिडींग लाईट से ऐल्बिनिज़म ग्रस्त व्यक्तियों को मदद मिल सकती है, हालांकि उनकी दृष्टि को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। कुछ ऐल्बिनिज़म ग्रस्त लोग बाइफोकल (एक मजबूत रीडिंग लेंस के साथ), प्रेस्क्रिप्शन रीडिंग ग्लास और/या हाथ से पकड़कर इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों जैसे मैग्नीफायर या मोनोक्यूलर (एक अतिसरल टेलीस्कोप) का इस्तेमाल करना अच्छी तरह देख सकते हैं। आईरिस के माध्यम से प्रकाश के संचरण को अवरुद्ध करने के लिए कॉन्टेक्ट लेंसों को रंग किया जा सकता है। लेकिन नीस्टैगमस के मामले में आँखों के हिलने-डुलने की वजह से होने वाली जलन की वजह से ऐसा करना संभव नहीं है। कुछ बायोप्टिक्स नामक चश्मों का इस्तेमाल करते हैं जहां उनके नियमित लेंसों पर, में या उसके पीछे छोटे-छोटे टेलीस्कोप लगे होते हैं जिससे वे या तो नियमित लेंस के माध्यम से या टेलीस्कोप के माध्यम से देख सकें. बायोप्टिक्स के नए डिजाइनों में छोटे और हल्के लेंसों का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ अमेरिकी राज्यों में मोटर वाहनों को चलाने के लिए बायोप्टिक टेलीस्कोपों के इस्तेमाल की अनुमति है। (एनओएएच बुलेटिन "लो विज़न एड्स" अर्थात् कम दृष्टि सहायक भी देखें.)
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रंगहीनता
अभी भी विशेषज्ञों के बीच विवाद का विषय होने के बावजूद कई ओप्थाल्मोलॉजिस्ट (नेत्र रोग विज्ञानी) आँखों के सर्वोत्तम संभावित विकास की दृष्टि से एकदम बचपन से ही चश्मों का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
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रंगहीनता
सभी जाति के लोगों पर ऐल्बिनिज़म का प्रभाव पड़ता है और मनुष्यों में इसके होने की आवृत्ति के अनुमान के अनुसार हर 20,000 में से लगभग 1 व्यक्ति में यह पाया जाता है।
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रंगहीनता
शारीरिक दृष्टि से ऐल्बिनिज़म ग्रस्त मनुष्यों को आम तौर पर दृष्टि संबंधी समस्याएँ होती हैं और उन्हें सूर्य संरक्षण की जरूरत पड़ती है। लेकिन वे सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों (और खतरों का भी) का भी सामना करते हैं क्योंकि उनकी यह हालत अक्सर उपहास, भेदभाव का कारण बनती है, या यहाँ तक की डर और हिंसा के नज़रिये से भी उसे देखा जाता है। दुनिया भर की संस्कृतियों में ऐल्बिनिज़म ग्रस्त लोगों के बारे में तरह-तरह की आस्थाओं का विकास हुआ है। इस लोकसाहित्य में हानिरहित मिथक से लेकर खतरनाक अन्धविश्वास भी शामिल है, जो मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। सांस्कृतिक चुनौतियों की उम्मीद ज्यादातर उन क्षेत्रों में की जा सकती है जहाँ पीली त्वचा और हल्के बालों वाले लोगों की संख्या जातीय बहुतमत की औसत फेनोटाइप से अधिक होती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%8B
कार्गो
सड़क परिवहन का श्रेष्ठ उदाहरण है खाद्य पदार्थ, जैसा कि सुपरमार्केटों को प्रति दिन माल की आवश्यकता होती है ताकि उनकी ताकों पर सामान भरा रहे। रिटेलर्स सभी प्रकार के वितरण ट्रकों पर भरोसा करते हैं, भले ही वे बड़े हों, सेमी ट्रक हों या छोटी डिलीवरी वैन हो।
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कार्गो
परिवहन करने से पहले आमतौर पर भाड़े को विभिन्न श्रेणियों में लदान के अनुसार सुनियोजित कर लिया जाता है। किसी वस्तु की श्रेणी को निर्धारित किया जाता है:
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कार्गो
किस प्रकार के माल को वहन किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, एक केतली, 'घरेलू सामान' की श्रेणी में शामिल हो सकती है।
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कार्गो
आम तौर पर परिवहन की वस्तुओं को घरेलू सामान, एक्सप्रेस पार्सल और फ्रेट लदान के रूप में वर्गीकृत किया जाता है:
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कार्गो
बहुत छोटी व्यापारिक या निजी वस्तुओं की तरह लिफाफों को ओवरनाइट एक्सप्रेस या एक्सप्रेस लेटर शिपमेंट वर्ग में रखा जाता है। इन चीजों का वजन कुछ किलोग्राम या पाउंड से कम होता है और ये लगभग हमेशा वाहक की अपनी की हुईपैकेजिंग में ही होती हैं। एक्सप्रेस वस्तुओं को हमेशा कुछ हवाई दूरी तय करनी पड़ती है। एक लिफाफा संयुक्त राज्य अमेरिका में रातोंरात एक तट से दूसरे तट के लिए जा सकता है या इसे कई दिन लग सकते हैं यह सेवा के विकल्प पर निर्भर करता है।
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कार्गो
बड़े पार्सल जैसे छोटे बक्से ग्राउंड शिपमेंट वर्ग में आते हैं। ये चीजें शायद ही कभी से अधिक होती हैं, इनमें किसी एक सामान का वजन से अधिक नहीं होता। पार्सल शिपमेंट हमेशा बक्से में बंद होता है, कभी वाहक द्वारा प्रदान किए गए बक्से में और कभी माल भेजने वाले द्वारा प्रदान किए गए बक्से में. सेवा के स्तर विभिन्न प्रकार के हैं, लेकिन ज्यादातर जमीनी लदान को पहुंचने में करीब प्रति दिन लगता होगा। सामान किस क्षेत्र का है, इस आधार पर यह चार दिनों में संयुक्त राज्य अमेरिका के एक तट से दूसरे तट की यात्रा कर सकता है। पार्सल शिपमेंट शायद ही कभी हवाई यात्रा करते हैं यह आमतौर पर सड़क और रेल के माध्यम से ही पहुंचाए जाते हैं। पार्सल अधिकतर व्यापार से उपभोक्ता (B2C) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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कार्गो
ट्रकलोड से कम (एल टी एल) कार्गो फ्रेट शिपमेंट की पहली श्रेणी है-, जो इसका और अधिकांश व्यवसाय-से-व्यवसाय (B2B) शिपमेंट का प्रतिनिधित्व करती है। एल टी एल शिपमेंट को अक्सर मोटर फ्रेट भी कहते हैं क्योंकि इसमें अधिकतर परिवहन का काम मोटरों वाहकों द्वारा किया जाता है।
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कार्गो
अधिकांश एल टी एल शिपमेंट की श्रेणी से लेकर से कम होती है। एल टी एल के प्रत्येक भाड़े का औसत और बक्से का आकार मानक है। लंबे माल और / या बड़े माल की चरम लंबाई और घन क्षमता अधिभार के अधीन हैं।
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कार्गो
एल टी एल में प्रयुक्त ट्रेलर की श्रेणी से हो सकती है। शहर में माल पहंचाने का मानक आमतौर पर है। अधिकतर तंग और आवासीय वातावरण में ट्रेलर का इस्तेमाल किया जाता है।
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नीहारिका
1715 में, एडमंड हैली ने छह नीहारिकाओं की एक सूची प्रकाशित की. जीन फिलिप डी चैसॉक्स द्वारा 1746 में जारी 20 की (पहले अज्ञात आठ सहित) एक सूची के संकलन के साथ शताब्दी के दौरान, यह संख्या लगातार बढ़ती रही. निकोलस लुई डी लाकैले ने 1751-53 में केप ऑफ गुड होप से 42 नीहारिकाओं की सूची बनाई. जिसमें से अधिकतर पहले अज्ञात थीं। इसके बाद चार्ल्स मेसियर ने 1781 तक 103 नीहारिकाओं की सूची बनाई, हालांकि उनके ऐसा करने की प्रमुख वजह थी - धूमकेतुओं की गलत पहचान से बचना.
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नीहारिका
इसके बाद विलियम हर्शेल और उनकी बहन कैरोलीन हर्शेल की कोशिशों से नीहारिकाओं की संख्या में अत्यधिक इजाफा हुआ। उनकी कैटलाँग ऑफ वन थाउजेण्ड न्यू नेब्यलाई एंड क्लस्टर ऑफ स्टार्स 1786 में प्रकाशित हुई. एक हजार की दूसरी सूची 1789 में और 510 की तीसरी तथा अंतिम सूची 1802 में प्रकाशित की गयी थी। अपने अधिकतर काम के दौरान, विलियम हर्शेल को यह यकीन था कि ये नीहारिकाएं सितारों के अविकसित समूह मात्र थे। हालांकि, 1790 में, उन्होंने अस्पष्टता से घिरे एक तारे की खोज की और यह निष्कर्ष निकाला कि यह अधिक दूरी पर स्थित समूह न होकर एक वास्तविक घटाटोप या नीहारिका थी।
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नीहारिका
1864 के आरंभ में, विलियम हग्गिन्स ने लगभग 70 नीहारिकाओं के स्पेक्ट्रा या श्रेणी की जांच की. उन्होंने पाया कि उनमें से लगभग एक तिहाई में गैस के समावेश की विस्तृत श्रेणी थी। बाकी में एक सतत विस्तृत श्रेणी दिखाई दी और इन्हें सितारों का एक समूह माना गया। 1912 में, जब वेस्तो स्लीफर ने यह दर्शाया कि मेरोपे तारे के आसपास की नीहारिकाओं की श्रेणी प्लीयेदस खुले तारागुच्छ से मिलती है, तब इनमें एक तीसरा वर्ग जोड़ा गया। इस प्रकार नीहारिका तारों के प्रतिविम्वित प्रकाश द्वारा चमकता है।
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नीहारिका
स्लीफर और एडविन हबल ने अनेक विसरित नीहारिकाओं से इनकी विस्तृत श्रेणियों को एकत्र करना जारी रखा तथा पता लगाया कि इनमें से 29 उत्सर्जन स्पेक्ट्रा दिखाते हैं और 33 में तारों के प्रकाश का सतत स्पेक्ट्रा था। 1922 में हबल ने घोषणा की कि लगभग सभी नीहारिकाएं सितारों से जुडी हैं और उनकी रोशनी तारों के प्रकाश से आती है। उन्होंने यह भी पता लगाया कि उत्सर्जन स्पेक्ट्रम की नीहारिकाएं लगभग हमेशा B1 या उससे अधिक गर्म (सभी O श्रेणी के मुख्य अनुक्रम तारों सहित) से जुडी रहती हैं, जबकि सतत स्पेक्ट्रा युक्त नीहारिकाएं अपेक्षाकृत ठंडे तारों के साथ प्रकट होती हैं। हबल और हेनरी नोरिस रसेल दोनों ने यह निष्कर्ष निकाला कि गर्म तारों के आसपास की नीहारिकाएं किसी न किसी प्रकार से परिवर्तित हो रही हैं।
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नीहारिका
अनेक नीहारिकाओं का गठन अंतरतारकीय माध्यम में गैस के आपसी गुरुत्वाकर्षण की वजह से होता है। अपने निजी भार के तहत द्रव्य के संकुचित होने की वजह से केंद्र में अनेक विशाल सितारों का गठन हो सकता है और उनका पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) प्रकाश आसपास की गैसों को आयनित कर प्रकाश तरंगों पर उन्हें दृष्टिगोचर बनाता है। रोजे़ट नेबुला और पेलिकॉन नेबुला इस प्रकार की नीहारिकाओं के उदाहरण हैं। HII क्षेत्र के नाम से परिचित इस प्रकार की नीहारिकाओं का आकार, गैस के वास्तविक बादलों के आकार पर निर्भर होता है। यही वह जगह हैं जहां सितारों का गठन होता है। इससे गठित सितारों को कभी-कभी एक युवा, ढीले क्लस्टर के रूप में जाना जाता है।
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नीहारिका
कुछ नीहारिकाओं का गठन सुपरनोवा में होनेवाले विस्फोट अर्थात् विशाल और अल्प-जीवी तारों के अंत के परिणामस्वरुप होता है। सुपरनोवा के विस्फोट से बिखरनेवाली सामग्री ऊर्जा द्वारा आयनित होती है और इससे निर्मित हो सकनेवाली ठोस वस्तु का गठन होता है। वृष तारामंडल का क्रैब नेबुला इसका स्रवश्रेष्ट उदाहरण है। वर्ष 1054 में सुपरनोवा की घटना दर्ज की गयी और इसे और SN1054 के रूप में चिह्नित किया गया। विस्फोट के बाद निर्मित ठोस वस्तु क्रैब नेबुला के केन्द्र में स्थित है और यह एक न्यूट्रॉन स्टार है।
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नीहारिका
अन्य नीहारिकाएं ग्रहीय नीहारिकाओं का गठन कर सकती हैं। पृथ्वी के सूरज की तरह, यह लो-मास अर्थात् द्रव्यमान तारे के जीवन का अंतिम चरण है। 8-10 सौर द्रव्यमान वाले तारे लाल दानव तारों के रूप में विकसित होते हैं और अपने वातावरण में स्पंदन के दौरान धीरे-धीरे अपनी बहरी परत खो देते हैं। जब एक तारा पर्याप्त सामग्री खो देता है, तब इसका तापमान बढ़ता है और इससे उत्सर्जित पराबैंगनी विकिरण इसके द्वारा आसपास फेंके हुए नेब्यल को आयनित कर सकता है। नीहारिका में अवशिष्ट सामग्री सहित 97% हाइड्रोजन और 3% हीलियम है। इस चरण का मुख्य लक्ष्य संतुलन प्राप्त करना है।
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नीहारिका
नीहारिकाओं को चार प्रमुख समूहों में वर्गीकृत किया गया है। पहले गैलेक्सी और गोल तारागुच्छों को भिन्न प्रकार की नीहारिकायें समझा जाता था। गैलेक्सीओं की सर्पाकार संरचना की व्याख्या के लिए सर्पाकार नीहारिका का उपयोग किया जाता था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE
नीहारिका
इस वर्गीकरण में बादल जैसी सभी ज्ञात संरचनायें शामिल नहीं हैं। जिसका एक उदहारण हर्बिग-हारो ऑब्जेक्ट है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0
पलवार
एक पतली प्लास्टिक की फिल्म को जमीन के ऊपर रखा जाता है, बीजों को लगाने के लिए नियमित अंतराल पर छिद्रों को छिद्रित किया जाता है, या विकास के शुरुआती चरणों में इसे सीधे पौधों पर रखा जाता है। फिल्मों की खेती की अवधि (आमतौर पर 2-4 महीने) तक होती है और आमतौर पर इसकी मोटाई 12-80μm होती है। प्लास्टिक मल्च के मुख्य कार्य मिट्टी के नमी के वाष्पीकरण को रोकना, बीजों की कटाई और कटाई को कम करना, खरपतवार की वृद्धि को रोकना और कटाव को रोकना है। रंगहीन फिल्मों का उपयोग किया जा सकता है, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट फायदे और दूसरे पर नुकसान हैं। काली फिल्में खरपतवार की वृद्धि को रोकती हैं, लेकिन मिट्टी को गर्म करने के लिए प्रकाश का संचार नहीं करती हैं; स्पष्ट फिल्में प्रकाश को संचारित करती हैं और मिट्टी को गर्म करती हैं, लेकिन खरपतवार के विकास को बढ़ावा देती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0
पलवार
पलवार में फसलों के बेकार, पुआल, भूंसी, सूखी पत्तियों का प्रयोग खाली स्थानों को ढ़कनें में किया जाता है जो खाली जगह पर आवरण बनाकर मृदा अपरदन एवं पोषक तत्व क्षरण को निंयत्रित करती है। पहाड़ी क्षेत्रों में फलों के बागों में आवरण फसल एंव पलवार का विशेष महत्व है। जैविक तरीकों के साथ-साथ मल्चिंग प्लास्टिक का अधिक उपयोग किया जा रहा है | सब्जियों एवं फल इत्यादि का उत्पादन में बढ़ोतरी देखा जा रहा है |भूमि के किसी क्षेत्र पर बिछायी जाने वाली सामग्री को पलवार या मल्च (mulch) कहते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0
पलवार
जरूरी नहीं है कि पलवार कोई जैविक चीज ही हो। पलवार स्थायी हो सकती है (जैसे बार्क चिप) या अस्थायी (जैसे प्लास्टिक की पतली चादरें)।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0
पलवार
प्लास्टिक फिल्म या झिल्ली जब पलवार के रूप मे काम मे ली जाती है तो उसे प्लास्टिक पलवार या मल्चिंग भी कहते हैं | ये सस्ती,आसानी से उपलब्ध एवं सभी मोटाई व रंगो मे उपलब्ध होती है |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0
पलवार
प्लास्टिक के विभिन्न रंग जैसे: काले,पारदर्शी,पीला,काला,लाल पलवार के रूप मे उपलब्ध होती है | अधिकतर काले एवं सिल्वर कलर की प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है इस प्लास्टिक के उपयोग से तापमान नियंत्रण ,कीटों पर नियंत्रण,एवं अधिक उत्पादन हेतु इस रंग का प्लास्टिक का उपयोग करना लाभकारी है |
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पलवार
प्लास्टिक फिल्म का चयन हमेशा खेती के जरूरत के अनुसार किया जाना चाहिए |जैसे खरतवार नियंत्रण,मृदा तापमान,को कम व अधिक करना एवं रोग नियंत्रण इत्यादि| सामान्यत: 90 से 120 सेमी.चौड़ी पलवार का चयन करना चाहिए |ताकि कृषी कार्य आसानी से हो सकें|
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पलवार
यह सामान्यत: फसल के प्रकार एवं उसकी अवधि के अनुसार होता है विभिन्न फसलों के लिए पलवार निन प्रकार है :
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पलवार
-[१]कई सामग्रियों का उपयोग मल्च के रूप में किया जाता है, जिनका उपयोग मिट्टी की नमी को बनाए रखने,मिट्टी के तापमान को विनियमित करने,खरपतवार की वृद्धि को दबाने और सौंदर्यशास्त्र के लिए किया जाता है। [२] वे मिट्टी की सतह पर लगाए जाते हैं,[3] पेड़ों, रास्तों, फूलों के बिस्तरों के आसपास,ढलानों पर मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए और फूलों और सब्जियों की फसलों के लिए उत्पादन क्षेत्रों में। मुल्क की परतें सामान्य रूप से 2 इंच (5.1 सेमी) या अधिक गहरी होती हैं जब लागू किया जाता है।
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पलवार
मल्चिंग प्लास्टिक को बीज लगाने एवं पोधे लगाने से पूर्व ही लगाया जाता है|मल्चिंग प्लास्टिक को बिछाने से पहले जमीन की अच्छी जुताई आवश्यक है ,जुताई के बाद 1. मी. चौड़ी क्यारी बनाना है| तैयार क्यारी से पत्थर ,लकड़ी इत्यादि अनावश्यक चीजों को निकाल दें ताकि प्लास्टिक पलवार फट ना जाएँ|अब क्यारी के ऊपर के हिस्से मे ड्रिप की पाइप लाइन बिछा दें|ड्रिप लाइन के उपर प्लास्टिक बिछाना शुरू करें|प्लास्टिक बिछाने के बाद दोनों बाहरी किनारे के हिस्से मे मिट्टी से ढक दें|क्यारी के ऊपर के हिस्से मे 1–1 फिट निश्चित दूरी मे छेद करें|निश्चित जगह मे कम्पोस्ट खाद डालकर चयनित पौधे या बीज लगाएँ|इस तरह नियमित देखभाल से निश्चित ही उत्पादन बेहतर होगा|
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