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20231101.hi_983327_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
हराम
हलाल और हरम की द्विआधारी अवधारणाओं का इस्तेमाल कई सांस्कृतिक वाक्यांशों में किया जाता था, विशेष रूप से इब्न (लड़का) अल-हलाल और बंट (लड़की) अल-हलाल। इन वाक्यांशों का अक्सर विवाह में उपयुक्त पति / पत्नी के संदर्भ में उपयोग किया जाता है, और इब्न अल-हरम या बंट अल-हरम के विपरीत खड़े होते हैं, जिनका अपमान के रूप में उपयोग किया जाता है। इस मामले में, हरम शब्द का मतलब 'अवैध' अर्थात् सख्ती से अर्थहीन या अश्लील होना था। हलाल और हरम का भी धन (माल) के संबंध में उपयोग किया जाता है। मल अल-हरम का मतलब है कि पैसा कम हो गया है, और ऐसे लोगों पर विनाश लाता है जो इस तरह के माध्यम से अपना जीवन बनाते हैं
0.5
863.446298
20231101.hi_983327_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
हराम
स्थानीय स्तर पर उपयोग की जाने वाली कानूनी परिभाषाओं से हरम को प्रभावित और प्रभावित करने की ये सांस्कृतिक व्याख्याएं हैं। इसका मतलब है कि हरम की लोकप्रिय अवधारणाएं आंशिक रूप से इस्लामी इस्लामी न्यायशास्त्र पर आधारित हैं और आंशिक रूप से क्षेत्रीय संस्कृति पर आधारित हैं, और बदले में लोकप्रिय धारणाएं बदलती हैं कि कानूनी व्यवस्था कैसे परिभाषित करती है और कर्मों को दंडित करता है।
0.5
863.446298
20231101.hi_983327_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
हराम
इस्लाम में, मुसलमानों द्वारा कुरान के आदेशों की आज्ञाकारिता के अनुसार अवैध कृत्यों या वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाए गए थे। इस्लामी कानून में, आहार निषेध कहा जाता है
0.5
863.446298
20231101.hi_983327_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
हराम
हरम मांस के संबंध में, मुसलमानों को बहने वाले रक्त का उपभोग करने से मना किया जाता है मीट जिन्हें पोर्क, कुत्ते, बिल्ली, बंदर, या किसी अन्य हरम जानवर जैसे हरम के रूप में माना जाता है, केवल आपात स्थिति में कानूनी माना जा सकता है। हालांकि, आवश्यकता मौजूद नहीं है हरम खाद्य पदार्थ तब तक स्वीकार्य नहीं होते जब कोई व्यक्ति समाज में अतिरिक्त भोजन के साथ होता है, और उसके सदस्यों का समर्थन किया जाता है, और साथी मुस्लिम हलाल खाद्य पदार्थों के लिए। कुछ मीट समझा जाता है जैसे जानवर ठीक से कत्ल नहीं किया जाता है। एक हलाल वध में एक तेज चाकू शामिल होता है जिसे जानवर को मारने से पहले नहीं दिखता है; जानवर को अच्छी तरह से विश्राम किया जाना चाहिए और वध करने से पहले खिलाया जाना चाहिए, और कत्लेआम अन्य जानवरों के सामने नहीं हो सकता है। [18] यह तैयारी मुस्लिम आबादी में की जाती है। उचित कत्लेआम प्रक्रिया में पूरी तरह से जागरूक जानवर से सभी रक्त निकालने के लिए गर्दन की जॉगुलर नसों को काटना शामिल है। कत्लेआम प्रक्रिया के दौरान, भोजन की कानूनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए जानवरों के जीवन को लेने के लिए " बिस्मिल्लाह " कहकर अल्लाह के नाम को पढ़ा जाना चाहिए। अल्लाह के अलावा किसी अन्य नाम में मारे गए जानवरों को मना किया जाता है क्योंकि यह अल्लाह की एकता में विश्वास है
1
863.446298
20231101.hi_983327_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
हराम
इस्लाम में शराब नशे की लत निषिद्ध है। खमेर शराब पीने के लिए अरबी शब्द है पैगंबर ने घोषणा की कि निषेध न केवल शराब पर रखा गया था, बल्कि निषेध में भी एक व्यक्ति को नशे में शामिल किया गया था। पैगंबर ने गैर-मुस्लिमों के साथ भी इन विषाक्त पदार्थों के व्यापार को मना कर दिया एक मुसलमान के लिए मादक पेय पदार्थों का आयात या निर्यात करने के लिए अनुमति नहीं है, या नशे की लत बेचने वाले स्थान पर काम करने या उसके मालिक होने की अनुमति नहीं है। उपहार के रूप में नशे की लत देना भी माना जाता है।
0.5
863.446298
20231101.hi_983327_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
हराम
अन्य विषाक्त पदार्थ, जैसे तम्बाकू, पान, दोखा और खट को कुछ विद्वानों द्वारा मना किया गया माना जाता है।
0.5
863.446298
20231101.hi_983327_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
हराम
खाद्य पदार्थों के बारे में वेनिला निकालने और जिलेटिन भी प्रतिबंधित हैं या खुद को जहरीले होने के कारण, शराब के कुछ प्रतिशत या सुअर भागों जैसे अन्य वर्जित वस्तुओं को शामिल करते हैं।
0.5
863.446298
20231101.hi_983327_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
हराम
रफी इब्न खदीज द्वारा सुनाई गई एक घटना में, मुहम्मद ने कहा कि मुस्लिम जो कुछ जानवरों को रीड का उपयोग करके मारना चाहते हैं,
0.5
863.446298
20231101.hi_193139_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A6
पिप्पलाद
इनके माता-पिता के नाम के बारे में भिन्न-भिन्न स्रोतों से भिन्न-भिन्न जानकारी प्राप्त है। कुछ स्रोतों के अनुसार दधीचि ऋषि को प्रातिथेयी (वडवा अथवा गभस्तिनी) नामक पत्नी से यह उत्पन्न हुए। किन्तु कई ग्रथों में इसके माता का नाम सुवर्चा अथवा सुभद्रा दिया गया है। इनमें से सुभद्रा, दधीचि ऋषि की दासी थी। स्कन्दपुराण तथा अन्य कई ग्रंथों में, इन्हें याज्ञवल्क्य एवं उसकी बहन का पुत्र कहा गया है। फिर भी यह दधीचि ऋषि के पुत्र के रुप यें विख्यात है। दधीचि की मृत्यु के समय, उसकी पत्नी प्रातिथेयी गर्भवती थी । अपने पति की मृत्यु का समाचार सुनकर उसने उदरविदारण कर अपना गर्भ बाहर निकाला तथा उसे पीपल वृक्ष के नीचे रखकर, दधीचि के शव के साथ सती हो गयी । उस गर्भ का रक्षा पीपल वृक्ष ने की । इस कारण इस बालक को पिप्पलाद नाम प्राप्त हुआ । पशु-पक्षियों ने इसकी रक्षा की, तथा सोम ने इसे सारी विद्याओं में पारंगत कराया।
0.5
861.494513
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A6
पिप्पलाद
बाल्यकाल में मिले हुए कष्टों का कारण, शनि को मानकर, इन्होंने उसे नीचे गिराया । त्रस्त होकर शनि इनकी शरण में आए। इन्होंने शनिग्रह को इस शर्त पर छोड़ा कि वह बारह वर्ष से कम आयु वाले बालकों को कष्ट ने दे। कई ग्रन्थों में बारह वर्ष के स्थान पर सोलह वर्ष का निर्देश भी प्राप्त है । इसीलिये आज भी शनि की पीडा से छुटकारा पाने के लिए पिप्पलाद, गाधि एवं कौशिक ऋषियों का स्मरण किया जाता है [शिव. शत. २४-२५] ।
0.5
861.494513
20231101.hi_193139_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A6
पिप्पलाद
एक बार अपने पिता पर क्रोधित होकर इन्होंने एक कृत्या निर्माण कर, उसे याज्ञवल्क्य पर छोड़ा । याज्ञवल्क्य शिव की शरण में गये जिन्होने इस कृत्या का नाश किया तथा याज्ञवल्क्य एवं पिप्पलाद में मित्रता स्थापित करायी [स्कंद. ५.३.४२] । यही कथा ब्रह्मपुराण में कुछ अलग ढंग से दी गयी है। अपनी माता-पिता की मृत्यु का कारण देवताओं को मानकर, उनसे बदला लेने के लिए इन्होंने शिव की आराधना की, तथा एक कृत्या का निर्माण करके इसे देवों पर छोड़ा। यह देखकर शंकर ने मध्यस्थ होकर देवों तथा इसके वीच मित्रता स्थापित करायी । बाद में, अपनी माता-पिता को देखने की इच्छा उत्पन्न होने के कारण, देवों ने स्वर्ग में इन्हें दधीचि के पास पहुँचाया। दधीचि इन्हें देखकर प्रसन्न हुए तथा इससे विवाह करने के लिए आग्रह किया । स्वर्ग से वापस आकर इसने गौतम की कन्या से विवाह किया [ब्रह्म.११०.२२५] ।
0.5
861.494513
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पिप्पलाद
एकबार, जब यह पुष्पभद्रा नदी में स्नान करने जा रहे थे तब वहाँ अनरण्य राजा की कन्या पद्मा को देखकर इन्होंने उसकी मांग की । शापभय से अनरण्य राजा ने अपनी कन्या इसे प्रदान की। पद्मा से इनके दस पुत्र हुये [शिव.शत. २४-२५] ।
0.5
861.494513
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पिप्पलाद
एकबार जब यह अपनी तपस्या में निमग्न थे तब वहाँ कोलासुर आकर इनका ध्यानभंग करने के हेतु इन्हें पीड़ित करने लगा । तत्काल, इनके पुत्र कहोड ने एक कृत्या का निर्माण करके उससे कोलासुर का वध कराया । इसी से इस स्थान को ‘पिप्पलादतीर्थ’ नाम प्राप्त हुआ [पद्म. उ.१५५, १५७] । ] ।
1
861.494513
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पिप्पलाद
अथर्ववेद की कुल दो संहितायें उपलब्ध हैं जिनमें से एक की रचना शौनक ने की है, एवं दूसरी का रचयिता पिप्पलाद हैं। पिप्पलाद विरचित अथर्ववेद की संहिता ‘पैप्पलाद संहिता’ नाम से प्रसिद्ध है। श्रीमद्भागवत में वेदव्यास की शिष्यपरम्परा उल्लिखित है। वेदव्यास ने अथर्ववेद संहिता अपने शिष्य सुमन्तु को दी। पिप्पलाद सुमन्तु के शिष्यों में आते हैं।
0.5
861.494513
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A6
पिप्पलाद
पैप्पलाद संहिता बीस काण्डों की है, तथा उस संहिता का प्रथम मंत्र ‘शन्नो देवी’ है । पतञ्जलि के व्याकरण महाभाष्य में एवं ब्रह्मयज्ञान्तर्गत तर्पण में, इसी मंत्र का उद्धरण प्राप्त है। व्हिटने के अनुसार, ‘पैप्पलाद संहिता’ में ‘शौनक संहिता’ की अपेक्षा, ‘ब्राह्मण पाठ’ अधिक हैं, तथा अभिचारादि कर्म भी अधिक दिय गये हैं (व्हिटने कृत अथर्ववेद अनुवाद-प्रस्तावना पृष्ठ ८०) । अथर्ववेदसंहिता का संकलन करते समय पिप्पलाद ने ऐन्द्रजालिक मंत्रों का संग्रह किया था। कुछ दिनों बाद पैप्पलाद शाखा के नौ खण्ड हुए जिनमें शौनक तथा पैप्पलाद (काश्मीरी) प्रमुख थे। अथर्ववेद के पैप्पलाद शाखा के मूलपाठ को शार्बे तथा ब्लूमफील्ड ने हस्तलिपि के फोटो-चित्रों में सम्पादित किया है, जिसका कुछ अंश प्रकाशित भी हो चुका है।
0.5
861.494513
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पिप्पलाद
‘पैप्पलाद ब्राह्मण’ नामक एक ब्राह्मणग्रंथ उपलब्ध है, जिसके आठ अध्याय हैं। इसके अतिरिक्त ‘पिप्पलाद श्राद्धकल्प’ एवं ‘अगस्त्य कल्पमूत्र’ नामक पिप्पलादशाखा के और दों ग्रंथ भी उपलब्ध हैं।
0.5
861.494513
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पिप्पलाद
प्रश्नोपनिषद, अथर्ववेद का एक उपनिषद है। सुकेशा भारद्वाज, शैव्य सत्यकाम, सौर्ययणि गार्ग्य, कौसल्य, आश्वलायन, भार्गव वैदर्भी तथा कबंधिन् कात्यायन आदि ऋषि ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए पिप्पलाद के पास आये थे। उन्हें एक वर्ष तक आश्रम में रहने के बाद प्रश्न पूछने की अनुज्ञा प्राप्त हुयी। उन्होंने जिस क्रम से प्रश्न पूछे वह ब्रह्मज्ञान के स्वरुप को समझने के लिये पर्याप्त है।
0.5
861.494513
20231101.hi_26829_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
रबारी
जूनागढ के इतिहासकार डॉ शंभुप्रसाद देसाई ने नोंधट की है कि वे रावल का एक बलवान रेबारी हमीर मुस्लिमो के शासक के सामने खुशरो खां नाम धारण करके सूबा बना था जो बाद मे दिल्ली की गद्दी पर बैठ कर सुलतान बना था। सन 1901 मे लिखा गया बोम्बे गेझेटियर मे लिखा है की रेबारीओं की शारीरिक मजबूती देख के लगता है की शायद वो पर्शियन वंश के भी हो सकते है और वो पर्शिया से भारत मे आये होंगे रेबारीओं मे एक आग नाम की शाख है और पर्शियन आग अग्नि के पूजक होते हैं।
0.5
857.764432
20231101.hi_26829_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
रबारी
इनको अलग-अलग नामों से जाना जाता है। राजस्थान के पाली, सिरोही पेउआला (हड़मतिया), जालोर जिलों में रबारी दैवासी के नाम से जाने जाते हैं। उत्तरी राजस्थान जयपुर और जोधपुर संभाग में इन्हें 'राईका' नाम से जाना जाता है। हरियाणा और पंजाब में भी इस जनजाति को राईका ही कहा जाता है। गुजरात और मध्य राजस्थान में इन्हें देवासी, देसाई,रैबारी, रबारी,  नाम से भी पुकारा जाता है।
0.5
857.764432
20231101.hi_26829_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
रबारी
भारत मैं करीब 1 करोड़ से भी ज्यादा की इनकी जनसंख्या है। पशुपालन ही इनका प्रमुख व्यवसाय रहा था।  राजस्थान और  कच्छ प्रदेश मैं बसने वाले रबारी लोग उत्तम कक्षा के  ऊटो  को पालते आए है।  तो गुजरात और राजस्थान के रैबारी गाय,भेस, ऊंट जैसे पशु भी पालते है। गुजरात, राजस्थान और सौराष्ट्र के रबारी लोग खेती भी करते है। मुख्यत्व पशुपालन और खेती इनका व्यवसाय था पर बारिश की अनियमित्ता, बढते उद्योग और ज़मीन की कमी की वजह से इस जाति के लोगों ने  अन्य व्यवसायों को अपनाया है। पिछले कुछ सालो मैं शैक्षणिक क्रांति आने की वजह से इस जाति के लोगों के जीवन मैं काफी बदलाव आया है। सामाजिक, राजकीय और सिविल सर्विसिस मैं यह जाती के लोग काफी आगे बढ़ रहे हैं बहुत सारे  रैबारी जाति के लोग विदेशों में भी रहते है। देवासी समाज की प्रमुख उपजाति पेउआला है जिसने कई युद्धों में अपनी वीरता का परिचय दिया है जिसके आखरी वंशज वर्तमान में राजस्थान के सिरोही जिले के हड़मतियां गांव में निवास करते हैं
0.5
857.764432
20231101.hi_26829_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
रबारी
भाट और वही-वंचाओ के ग्रंथो के आधार पर, मूल पुरुष को 12 लड़कियाँ हुई और वो 12 लडकीयां का ब्याह 12 क्षत्रिय कुल के पुरुषो साथ कीया गया! जो हिमालयके नियम बहार थे, सोलाह की जो वंसज हुए वो रबारी और बाद मे रबारी का अपभ्रंश होने से रेबारी के नाम से पहचानने लगे, बाद मे सोलाह की जो संतति जिनकी बढा रेबारी जाति अनेक शाखाओँ (गोत्र) मेँ बंट गयी। वर्तमान मेँ 133 गोत्र या शाखा उभर के सामने आयी है जिसे विहोतर के नाम से भी जाना जाता है ।  रैबारी लोगो के प्रमुख त्यौहार  नवरात्री, दिवाली, होली और जन्माष्ठमी है।
0.5
857.764432
20231101.hi_26829_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
रबारी
मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान,हरियाणा,पंजाब, उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में रायका देवासी देसाई रबारी जाति ज्यादा पाई जाती ह
1
857.764432
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
रबारी
हरियाणा म एक गांव biran जिला भिवानी में पुष्पेन्द्र रबारी (बार) ह। पुष्पेन्द्र बार अपनी जाति को लेकर बहुत उत्साहित रहते ह इनका मानना ह की रबारी जाति का इतिहास कुछ लोगो ने जानबूझ कर के दबाया ह जो कि आज का युवा जान चुका है। रबारी जाति एक योद्धा जाति ह न जाने कितने युधो में अपनी जान गंवा गवा कर आज इतने कम संख्या है
0.5
857.764432
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
रबारी
रेबारी, राइका, देवासी जाति का मुख्य काम पशुपालन का है तो ये इनका भोजन मुख्य रूप से दूध, दही, घी, बाजरी की रोटी (होगरा) भड़िया, राबोडी की सब्जी, के साथ देशी सब्जियों सहित शुद्ध शाकाहारी भोजन करते है। मारवाड़ के रेबारी शिक्षित होने के कारण उनकी जीवनशैली मे कुछ परिवर्तन आया है, ये अब शिक्षा के क्षेत्र मे ज़्यादा सक्रिय है।
0.5
857.764432
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
रबारी
सीर पर लाल पगड़ी, श्वेत धोती और श्वेत कमीज और ओरते चुनङी,घाघरा,कब्जा(blouse)पहनती है। ईस समाज का पहनावा सबसे अलग हे इसमें पुरुष सिर पर लाल साफा , सफेद कुर्ता , व सफेद धोती पहनते है। ईस समाज मे पुरुषो को मूस रखने का शोक जादा लगता हैं। व घहना भी बहुत पहनते है इसमें महिलाएं लाल चुनरी, घाघरा, ओढ़नी,शिर पर बोर, व चुडा भी पहनती हैं , आज कल शिक्षा का तोर होने से काफी कम हुआ है ईस समाज की सबसे बड़ी विशेषता पुरूषों के हाथो में कडा पहनते हैं। जो जादातर चांदी का होता है। व कोई कानों में लुंग भी पहनते हैं । ये इस समाज की प्रमुख विशेषता है।
0.5
857.764432
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
रबारी
रैबारी की अधिकांश जनसंख्या राजस्थान के जालोर एवम् सिरोही -पाली एव बाँसवाड़ा बाडमेर ज़िलों में है। एव कुछ डूंगरपुर उदयपुर मैं भी निवासरत है। रबारी समाज अति प्राचीन समाज है जो क्षत्रिय कुल से निकली हुई समाज है।
0.5
857.764432
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6
केनोपनिषद
केनोपनिषद् ( = केन + उपनिषद् ) सामवेद के “तलकवार ब्राह्मण” के ९वें अध्याय पर है। पहले मंत्र का पहला शब्द 'केन' (अर्थ : किससे) है, इसलिए इसे केन उपनिषद कहा जाता है। इसे 'जैमिनी” व ' ब्राह्मणोपनिषद्‌ ' भी कहते हैं।
0.5
855.897372
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केनोपनिषद
यह उपनिषद चार खण्डों में विभाजित है। प्रथम व द्वितीय खण्ड में गुरु-शिष्य परम्परा द्वारा प्रेरक सत्ता के बारे में बताया गया है। तीसरे और चौथे खंड में देवताओं में अभिमान व देवी ऊमा हेमवती द्वारा "ब्रह्म तत्व' ज्ञान का उल्लेख है। मनुष्य को ”श्रेय” मार्ग की ओर प्रेरित करना इस उपनिषद का लक्ष्य है। श्रेय (ब्रह्म) को तप, दम व कर्म से अनुभव किया जाता है।
0.5
855.897372
20231101.hi_228243_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6
केनोपनिषद
इस खण्ड में शिष्य अपने गुरु के सम्मुख ‘ब्रह्म चेतना’ के प्रति अपनी जिज्ञासा प्रकट करता है। वह अपने मुख से प्रश्न करता है कि वह कौन है, जो हमें परमात्मा के विविध रहस्यों को जानने के लिए प्रेरित करता है। ज्ञान-विज्ञान तथा हमारी आत्मा का संचालन करने वाला वह कौन है जो हमारी वाणी में, कानों में और नेत्रों में निवास करता है और हमें बोलने, सुनने तथा देखने की शक्ति प्रदान करता है। शिष्य के प्रश्नो का उत्तर देते हुए गुरु बताता है कि जो साधक मन, प्राण, वाणी, आंख, कान आदि में चेतना शक्ति भरने वाले ‘ब्रह्म’ को जान लेता है, वह जीवन मुक्त होकर अमर हो जाता है तथा आवागमन के चक्र से छूट जाता है। वह महान चेतनतत्त्व(ब्रह्म) वाक् का भी वाक् है, प्राण शक्ति का भी प्राण है, वह हमारे जीवन का आधार है, वह चक्षु का भी चक्षु है, वह सर्वशक्तिमान है और श्रवण शक्ति का भी मूल आधार है। हमारा मन उसी की महत्ता से मनन कर पाता है। उसे ही ‘ब्रह्म’ समझना चाहिए। उसे आंखों से और कानों से न तो देखा जा सकता है, न सुना जा सकता है।
0.5
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20231101.hi_228243_3
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केनोपनिषद
इस खण्ड में ‘ब्रह्म’ की अज्ञेयता और मानव जीवन के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। गुरु शिष्य को बताता है कि जो असीम और अनन्त है, उसे वह भली प्रकार से जानता है या वह उसे जान गया है, ऐसा नहीं है। उसे पूर्ण रूप से जान पाना असम्भव है। हम उसे जानते हैं या नहीं जानते हैं, ये दोनों ही कथन अपूर्ण हैं।
0.5
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केनोपनिषद
अहंकारविहीन व्यक्ति का वह बोध, जिसके द्वारा वह ज्ञान प्राप्त करता है, उसी से वह अमृत स्वरूप परब्रह्म को अनुभव कर पाता है। जिसने अपने जीवन में ऐसा ज्ञान प्राप्त कर लिया, उसे ही परब्रह्म का अनुभव हो पाता है। किसी अन्य योनि में जन्म लेकर वह ऐसा नहीं कर पाता। अन्य समस्त योनियां, कर्म भोग की योनियां हैं। मानव जीवन में ही बुद्धिमान पुरुष प्रत्येक वाणी, प्रत्येक तत्त्व तथा प्रत्येक जीव में उस परमात्म सत्ता को व्याप्त जानकर इस लोक में जाता है और अमरत्व को प्राप्त करता है।
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केनोपनिषद
तीसरे खण्ड में देवताओं के अहंकार का मर्दन किया गया है। एक बार उस ब्रह्म ने देवताओं को माध्यम बनाकर असुरों पर विजय प्राप्त की। इस विजय से देवताओं को अभिमान हो गया कि असुरों पर विजय प्राप्त करने वाले वे स्वयं हैं। इसमें ब्रह्म ने क्या किया? तब ब्रह्म ने उन देवताओं के अहंकार को जानकर उनके सम्मुख यक्ष के रूप में अपने को प्रकट किया। तब देवताओं ने जानना चाहा कि वह यक्ष कौन है? सबसे पहले अग्निदेव ने जाकर यक्ष से उसका परिचय पूछा। यक्ष ने अग्निदेव से उनका परिचय पूछा, आप कौन हैं?
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केनोपनिषद
अग्निदेव ने उत्तर दिया कि वह अग्नि है और लोग उसे जातवेदा कहते हैं। वह चाहे, तो इस पृथ्वी पर जो कुछ भी है, उसे भस्म कर सकता है, जला सकता है। तब यक्ष ने एक तिनका अग्निदेव के सम्मुख रखकर कहा, आप इसे जला दीजिए। अग्निदेव ने बहुत प्रयत्न किया, पर वे उस तिनके को जला नहीं सके। हारकर उन्होंने अन्य देवों के पास लौटकर कहा कि वे उस यक्ष को नहीं जान सके।
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केनोपनिषद
उसके बाद वायु देव ने जाकर अपना परिचय दिया और अपनी शक्ति का बढ़ा चढ़ाकर बखान किया। इस पर यक्ष ने वायु से कहा कि वे इस तिनके को उड़ा दें, परंतु अपनी सारी शक्ति लगाने पर भी वायुदेव उस तिनके को उड़ा नहीं सके। तब वायुदेव ने इंद्र के समक्ष लौटकर कहा कि वे उस यक्ष को समझने में असमर्थ रहे। उन्होंने इंद्र से पता लगाने के लिए कहा। इंद्र ने यक्ष का पता लगाने के लिए तीव्रगति से यक्ष की ओर प्रयाण किया, परंतु उसके वहां पहुंचने से पहले ही यक्ष अंतर्ध्यान हो गया। तब इंद्र ने भगवती उमा से यक्ष के बारे में प्रश्न किया कि यह यक्ष कौन था।
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केनोपनिषद
Complete translation on-line into English of all 108 Upaniṣad-s [not only the 11 (or so) major ones to which the foregoing links are meagerly restricted]-- lacking, however, diacritical marks
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साजिद-वाजिद
साजिद अली और वाजिद अली दोनों संगीतकार और संगीत निर्देशक हैं। यह साजिद-वाजिद नाम से प्रशिद्ध हैं। यह कई फिल्मों के गाने गाये हैं, लिख चुके है और निर्देशित भी कर चुके हैं। फिल्म दबंग के संगीत लिए उन्हें २०११ में फ़िल्म्फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वाजिद का ३१ मई २०२० को मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया.
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साजिद-वाजिद
साजिद ने एकेडमी ऑफ एशियाटिक सिनेमा और टेलीविजन में अध्ययन किया। उन्होंने अपने पिता शराफत अली खान सहित विभिन्न कलाकारों के अधीन भी अध्ययन किया। उनके पैतृक पिता उस्ताद अब्देल लतीफ़ एक प्रभावशाली भारतीय कलाकार थे। उनके नाना उस्ताद फैय्याज अहद खान, पद्म श्री से सम्मानित थे।
0.5
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साजिद-वाजिद
उनके नाना उस्ताद फैय्याज अहद खान, पद्म श्री से सम्मानित थे।उनके नाना उस्ताद Faiyyaz एहेद खान, एक पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। साजिद खान ने भी अल्लाहखर खान और दास बाबू के अधीन अध्ययन किया।
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साजिद-वाजिद
वाजिद अली खान (7 अक्टूबर 1977-1 जून 2020) कलाकार और तबला वादक शराफत अली खान और मां रज़िया खान के छोटे बेटे थे। उन्होंने कलात्मक जोड़ी साजिद-वाजिद बनाने के लिए अपने बड़े भाई साजिद खान के साथ जुड़ गए। उनका एकल अभिनय के रूप में एक अलग गायन करियर भी था और एक पार्श्व कलाकार के रूप में उन्हें कई पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था।
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साजिद-वाजिद
वाजिद ने मिथिबे कॉलेज में अध्ययन किया, जहां वह अपने कॉलेज की छात्रा कमलारुख से मिले। वाजिद से शादी किए बिना दोनों की शादी लगभग 10 साल तक चली थी, जो पर्यटन और संगीतमय बप्पी दा में काफी शामिल था। पारसी संप्रदाय के कमालुख खान ने वाजिद के सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय में बदलने से इनकार कर दिया क्योंकि पारिवारिक प्रतिबंधों ने शादी को भी स्थगित कर दिया। आखिरकार उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम के तहत एक दूसरे से शादी करने के एक दशक बाद शादी की, जिसने उन्हें वाजिद खान के परिवार के विरोध के बावजूद धर्म परिवर्तन करने और शादी करने की अनुमति दी। इस दंपति के दो बच्चे हैं, अर्शी, एक बेटी (जन्म 2004 सी) और एक बेटा ह्रहान (जन्म 2011)।
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साजिद-वाजिद
2019 में किडनी प्रत्यारोपण के दौरान वाजिद का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया, जिसे सफल माना गया। वह बाद में गले में संक्रमण से भी पीड़ित थे। 31 मई 2020 को, उन्हें तुरंत COVID-19 की गंभीर जटिलताओं के साथ अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया और एक दिन बाद 1 जून 2020 को बड़े पैमाने पर दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। वह 43 साल के थे। [8]
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साजिद-वाजिद
उनकी मृत्यु के बाद, उनकी पूर्व पत्नी कमालुख खान ने 17 साल की शादी में अपने अध्यादेश को उजागर करने के लिए सार्वजनिक रूप से जाना, साथ ही अपने पूर्व पति के परिवार द्वारा उन्हें और उनके दो बच्चों को उनके गैर-मुस्लिम में निहित विरासत के अधिकारों से वंचित करने के कथित प्रयासों को भी उजागर किया। मज़हब।
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साजिद-वाजिद
साजिद-वाजिद ने पहली बार १९९८ में सलमान खान की प्यार किया तो डरना क्या फिल्म के लिए संगीत दिया। १९९९ में उन्होंने सोनू निगम की एल्बम दीवाना के लिए संगीत दिया, जिसमें "दीवाना तेरा", "अब मुझे रात दिन" और "इस कदर प्यार है" गाने शामिल थे। उसी वर्ष उन्होंने फिल्म हैलो ब्रदर के संगीत निर्देशक के रूप में भी काम किया और फिल्म के लिए "हटा सावन की घटा", "चुपके से कोई आयेगा" और "हैलो ब्रदर" गाने बनाये। अगले कुछ वर्षों में उन्होंने क्या यही प्यार है (२००२), गुनाह (२००२), चोरी चोरी (२००३), द किलर (२००६), शादी करके फँस गया यार (२००६) और कल किसने देखा जैसी कई फिल्मों के लिए संगीत रचना की।
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साजिद-वाजिद
साजिद वाजिद ने अपने संगीत करियर में सलमान खान की कई फिल्मों के लिए यादगार संगीत दिया है, जिनमें तुमको ना भूल पायेंगे (२००२), तेरे नाम (२००३), गर्व (२००४), मुझसे शादी करोगी (२००४), पार्टनर (२००७), हैलो (२००८), गॉड तुस्सी ग्रेट हो (२००८), वांटेड (२००९), मैं और मिसेज खन्ना, (२००९), वीर (२०१०), दबंग (२०१०), नो प्रॉब्लम (२०१०) और एक था टाइगर (२०१२) जैसी फिल्में शामिल हैं। फिल्मों के अतिरिक्त वे टीवी धारावाहिक सा रे गा मा पा में भी बतौर जज आ चुके हैं और टीवी रियलिटी शो के लिए बिग बॉस ४ और बिग बॉस ६ के लिए शीर्षक गीत भी बना चुके हैं।
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सुदीप
'''सुदीप''' (जन्म:2 सितम्बर 1973, [[शिमोगा]], कर्नाटक; {{lang-kn|ಸುದೀಪ್}}) भारतीय फ़िल्म निर्देशक, अभिनेता और निर्माता है। वो मुख्य तौर पर कन्नड़ भाषा की फ़िल्मों में काम करते हैं। उनकी कुछ मुख्य फ़िल्में है: ''स्पर्श'', ''नंदी'', ''स्वाति मुत्थू'', ''बच्चन''।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA
सुदीप
सुदीप कन्नड़ फिल्मों स्पार्शी (2000), हचचा (2001), नंदी (2002), कीचा (2003), स्वथी मुथु (2003), माय ऑटोग्राफ (2006), मुसांजामातु (2008), वीरा मदारी (2009), बस माथ महाथली (2010), केपे गौड़ा (2011) और तेलुगू-तमिल द्विभाषी एगा ​​(2012), आदि। उन्होंने अपनी फिल्म हचचा, नंदी और स्वाती मुथु के लिए लगातार तीन वर्षों तक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता - कन्नड़ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। 2013 के बाद से, वे बिग बॉस के कन्नड़ वर्जन, बिग बॉस, टेलीविजन रियलिटी शो की मेजबानी कर रहे हैं।
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सुदीप
सुदीप का जन्म कर्नाटक के शिमोगा जिले के शिमोगा में संजीव मंजप्पा और सरोजा के घर हुआ था। पूरा परिवार नारीसिंहराजपुरा से शिमोगा में चला गया था उन्होंने इंजीनियरिंग और दयानंद सागर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बैंगलोर से औद्योगिक और उत्पादन इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।उन्होंने अंडर -17 और अंडर -19 क्रिकेट में कॉलेज का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने मुंबई में अभिनय के रोशन तनेजा स्कूल में भाग लिया, जहां उन्होंने 'शर्म' पर विजय प्राप्त की।।
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सुदीप
सुदीप ने थयवव (1997) में अपना फिल्म कैरियर शुरू किया। इसके बाद उन्होंने प्रत्यार्था  में सहायक भूमिका निभाई, निर्देशित सुनील कुमार देसाई और एक ही निर्देशक की फिल्म स्पर्ष (फिल्म) में मुख्य भूमिका निभाई। 2001 में, हुचचा में एक भूमिका ने उन्हें अपना पहला बड़ा अनुसरण किया। 2008 में उन्होंने फुंक में अपनी बॉलीवुड की शुरुआत की। उन्होंने राम गोपाल वर्मा की फिल्मों रान, फूंक 2 और रक्षा चरित्र में भी अभिनय किया है। उनके बाद केपे गौड़ा और विष्णुवर्धन (2011) थे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA
सुदीप
उन्होंने कन्नड़ फिल्में मेरी ऑटोग्राफ़, #73 शायंदी निवासा, वीरा मदकरी, जस्ट मठथथली, केपे गौड़ा और मानिक्या को निर्देशित किया है। उन्होंने जस्ट मैथ मथली के लिए पटकथा भी लिखी
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सुदीप
उनकी एक फिल्म निर्देशन कंपनी कास्का क्रिएशन है, जिसका श्रेय मेरी ऑटोग्राफ (2006)और 73, शांतिनिवासा (2007) में है।.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA
सुदीप
सुदीप कर्नाटक बुलडोजर्स क्रिकेट टीम के कप्तान है जो सेलिब्रिटी क्रिकेट लीग में प्रतिस्पर्धा करता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA
सुदीप
सुदीप ने 2000 में बंगलौर में केरल के नायर समुदाय से संबंधित प्रिया राधाकृष्णन से मुलाकात की और उन्होंने 2001 में शादी की। प्रिया ने विवाह से पहले एक एयरलाइन कंपनी में तथा बैंक में काम किया।उनके एकमात्र बच्चे, साणवी, का जन्म 2004 में हुआ।2013 में, सुदीप ने एक स्टेज 360 °, एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की शुरुआत की, जिसमें उनकी पत्नी ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। दोनो सितंबर 2015 में विभाजित हो गये,
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA
सुदीप
सुदीप को आलोचकों द्वारा कन्नड़ सिनेमा के सबसे प्रतिभावान कलाकारों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है। 2012 में उन्होंने बेंगलुरु में टाइम्स 25 में सबसे ज्यादा वांछनीय पुरुषों में पहली बार सूचीबद्ध किया था। 2012में उन्हें कन्नड़ संगठन, कर्नाटक रक्षणा वेदिक द्वारा 'अभिनया चक्रवर्ती' का खिताब दिया गया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2
दिक्-काल
अनुभवों में दिक्‌ का संबंध चार प्रकार से आता है और इन चारों प्रकारों पर विचार करके दिक्‌ के गुणों की व्यावहारिक कल्पनाएँ बनती हैं। किसी वस्तु के स्थल का निर्देश जब वहाँ कहकर किया जाता है, तब दिक्‌ के एक स्वरूप की कल्पना आती है और इसका अर्थ यह भी माना जाता है कि दिक्‌ का अस्तित्व (अनुभवों से) स्वतंत्र है। किसी वस्तु के स्थल का निर्देश अन्य वस्तु के "सापेक्ष' करने पर दिक्‌ की "सापेक्ष स्थिति' में दूसरा स्वरूप दिखई देता है। दिक्‌ का तीसरा स्वरूप वस्तुओं के "आकार' से मिलता है, जिससे दिक्‌ की विभाज्यता की भी कल्पना की जा सकती है। आकाश की ओर देखने से दिक्‌ की "विशालता' (अथवा अनंतता) का चौथा स्वरूप दिखाई देता है। इन चार प्रकार के स्वरूपों से ही प्राय: दिक्‌ के संबध में व्यावहारिक धारणाएँ बनती हैं और दिक्‌ के गुण भी सूचित होते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2
दिक्-काल
घटनाओं से प्राप्त इंद्रियजन्य अनुभवों का विचर किया जाए तो उनके दो प्रकार होते हैं। घटनाओं के स्थानभेद से दिक्‌ की कल्पना होती है और उनके क्रम-भेद से काल की कल्पना होती है। इस प्रकार दिक्‌ और काल हमारी विचारधारा में संदिग्ध रूप से प्रवेश करते हैं। दिक्‌ जैसा ही काल भी व्यक्तिगत (अथवा स्व-काल) होता है और प्रत्येक व्यक्ति की कालगणना स्वतंत्र तथा स्वेच्छ होती है। इतना ही नहीं, इस स्व-काल की गणना में भी परिवर्तन होता है और वह व्यक्ति के स्वास्थ्य, अवस्था इत्यादि स्थितियों पर निर्भर करता है, जैसे, किसी कार्य में मनुष्य मग्न हो तो काल तेजी से कटता है। अत: व्यक्तिगत अथवा स्व-काल विश्वास योग्य नहीं रहता। किसी प्राकृतिक घटना से - दिन और रात से - जो काल का मापन होगा वह व्यक्तिगत नहीं रहेगा और सब लोगों के लिए समान होगा। अत: ऐसे काल को सार्वजनिक काल कहा जाता है। दिन और रात काल के स्थूल विभाग हैं। इनके छोटे विभाग किए जाएँ तो व्यवहार में कालमापन के लिए वे अधिक उपयुक्त होते हैं। इसलिए प्रहर, घटिका, पल विपल अथवा घंटा, मिनट, सेकंड इत्यादि विभाग किए गए। सामान्यत: काल का मापन घड़ी से होता है।
0.5
838.587137
20231101.hi_220717_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2
दिक्-काल
दिक्‌ की भाँति काल के भी चार स्वरूप व्यवहार में दिखाई देते हैं। किसी घटना अथवा अनुभव से "कब?' प्रश्न उपस्थित होता है और इसका दिक्‌ विषयक "कहाँ' से साम्य है। इस कल्पना से काल का अस्तित्व (अनुभवों से) स्वतंत्र समझा जाता है। किसी घटना के काल के सापेक्ष दूसरी घटना का वर्णन करते समय काल का सापेक्ष स्वरूप दिखाई देता है। दो घटनाओं के बीच के काल से काल का जो स्वरूप दिखाई देता है वह दिक्‌ के आकार से समान है। वैसे ही काल के अनादि, अनंत इत्यादि विशेषणों से काल की विशालता दिखाई दती है। दिक्‌ तथा काल के चारों स्वरूपों को, या गुणों को कहिए, मिलाकर विचार करने पर इनके विषय में हमारी जो धारणाएँ बनती हैं उनको "स्व' या "व्यक्तिगत' अथवा "मनोवैज्ञानिक' दिक्‌ और काल कहा जाता है।
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दिक्-काल
दिक्‌ तथा काल की धारणाओं को निश्चित रूप देने के लिए उनका मापन करने के साधन आवश्यक होते हैं। दिक्‌ के मापन के लिए दृढ़ पदार्थों के दंड, औजार तथा यंत्र उपयोग में लाए जाते हैं। इन उपकरणों से लंबाई, कोण, क्षेत्रफल, आयतन इत्यादि वस्तुओं के गुणों के मापन होते है। इन मापनों के समय बिंदु, रेखा, समतल इत्यादि की धारणाएँ बनती जाती हैं। जब अनेक पुनरावृत्तियों से ये धारणाएँ दृढ़ हो जाती हैं, तब बिंदु, रेखा, समतल इत्यादि का स्थान मौलिक होता है और भौतिक वस्तुएँ इन धारणाओं से दूर हो जाती हैं। अब इन धारणाओं की और यूक्लिडीय ज्यामिति की मौलिक धारणाओं की समानता स्पष्ट होगी। दृढ़ वस्तुओं को समाविष्ट करके दिक्‌ के, अथवा वस्तुओं के, मापन से दिक्‌ की जो धारणा होती है उसे ज्यामितीय अथवा यूक्लिडीय दिक्‌ कहा जाता है। यह स्पष्ट है कि दिक्‌ की इस धारणा से उसके जो गुण समझे जाते हैं वे केवल यूक्लिडीय ज्यामिति की परिभाषाओं, स्वयंसिद्ध और कल्पनाओं के ऊपर ही निर्भर होते हैं। दिक्‌ की हमारी व्यावहारिक धारणा और मापन से निश्चित की हुई यह ज्यामितीय धारणा, क्रमश: हमारी स्थूल दृष्टि और सूक्ष्म दृष्टि के स्वरूप हैं।
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दिक्-काल
यूक्लिडीय ज्यामिति पर निर्धारित दिक्‌ की यह धारणा यद्यपि स्वाभाविक दिखाई देती होगी, तथापि इसका विश्लेषण करने की आवश्यता है। यूक्लिडीय ज्यामिति में कुछ परिभाषाएँ (जैसे बिंदु, रेखा, तल इत्यादि) तथा कुछ स्वयंसिद्ध तथ्य दिए हुए हैं और इनका तार्किक दृष्टि से विकास किया गया है। ये धारणाएँ केवल काल्पनिक और स्वतंत्र हैं। थोड़ा ही विचार करने पर यह स्पष्ट होगा कि यूक्लिडीय ज्यामिति का व्यवहार की वस्तुओं से कोई भी वास्तविक संबंध नहीं है। अपनी मूल कल्पनाओं को विकसित करते समय उनका परस्पर तर्कसंगत संबंध रखना और एक "काल्पनिक' गणित शास्त्र का निर्मांण करना, इतना ही इस ज्यामिति का मूल उद्देश्य था। इस उद्देश्य में यह ज्यामिति अत्यंत ही सफल रही। इस ज्यामिति का और भी विस्तार करके उसे "व्यावहारिक' बनाने के लिए "आदर्श दृढ़ वस्तु' की परिभाषा यह है कि इसके दो बिंदुओं का अंतर किसी भी परिस्थिति में उतना ही रहता है। मापन दंड अथवा अन्य औजारों का उपयोग इसी विशेषता पर निर्भर करता है। वस्तुत: इस प्रकार "आदर्श दृढ़ वस्तु' को समाविष्ट करने पर यूक्लिडीय ज्यामिति का स्वरूप बदल जाता है और उसको अब हम भौतिकी का एक विभाग समझ सकते हैं। किंतु व्यवहार में यूक्लिडीय ज्यामिति का यह परिवर्तन इस दृष्टि से नहीं देखा जाता। मापन करने पर व्यावहारिक वस्तुओं के मापन के लिए यूक्लिडीय ज्यामिति के सिद्धांत यथार्थ दिखाई देते हैं। इसलिए यूक्लिडीय ज्यामिति को "वास्तविक' समझा जाने लगा।
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दिक्-काल
व्यावहारिक अनुभव और यूक्लिडीय ज्यामिति का दृष्टि से न्यूटन ने अपनी दिक्‌ और काल की धारणाएँ निश्चित रूप से प्रस्तुत की और प्रतिष्ठित भौतिकी का विकास प्राय: वर्तमान शताब्दी के प्रारंभ तक इन्हीं धारणाओं पर निर्भर रहा। न्यूटन ने दिक्‌ को स्वतंत्र सत्ता समझकर उसके गुण भी दिए। न्यूटन के अनुसार दिक्‌ के गुण सर्व दिशाओं में तथा सर्व बिंदुओं पर समान ही होते हैं, अर्थात्‌ दिक्‌ समदिक्‌, समांग तथा एक समान है। अत: पदार्थों के गुण दिक्‌ में सभी स्थानों पर समान ही होते हैं। दिक्‌ अनंत है और न्यूटन के दिक्‌ में लंबाई, काल तथा गति से अबाधित रहती है। काल के विषय में भी न्यूटन ने अपनी धारणा दी है और यह धारणा भी उस समय के भौतिकी के विकास के अनुसार ही थी। न्यूटन के अनुसार काल भी एक स्वतंत्र सत्ता है। काल का विशेष गुण यह है कि वह समान गति से सतत और सर्वत्र "बहता' है और किसी भी परिस्थिति का उसके ऊपर कोई भी परिणाम नहीं होता। काल भी अनंत है। सारांश में, न्यूटन के अनुसार दिक्‌ तथा काल दोनों ही स्वतंत्र और निरपेक्ष सत्ताएँ होती हैं। न्यूटन आदि की यांत्रिकी इन्हीं धारणाओं पर निर्भर थी। यांत्रिकी में गति और त्वरण, इन दोनों के लिए दिक्‌ और काल को निश्चित रूप देना आवश्यक था और उस समय तो इन धारणाओं में कोई भी त्रुटि दिखाई नहीं देती थी। वैसे ही भौतिकी में न्यूटन का इतना प्रभाव था कि इन धारणाओं पर शंका प्रदर्शित करना संभव नहीं था।
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दिक्-काल
बोल्याई, लोबातचेवस्की, रीमान इत्यादि गणितज्ञों ने यह सिद्ध किया कि यूक्लिडीय ज्यामिति के कुछ स्वयंतथ्यों में उचित परिवर्तन करने पर अयूक्लिडीय ज्यामितियों का निर्माण हो सकता है। यद्यपि अयूक्लिडीय ज्यामितियों के अनेक सिद्धांत यूक्लिडीय ज्यामिति के सिद्धांतों से भिन्न होते हैं, तथापि वे अयोग्य नहीं होते हैं। विशेषत: रीमान के अयूक्लिडीय ज्यामिति से यह स्पष्ट हुआ कि यूक्लिडीय ज्यामिति ही केवल मौलिक नहीं है। यद्यपि अयूक्लिडीय ज्यामितियाँ कल्पना करने में कठिन होती हैं, तथापि तर्कसम्मत होने से उनके फल अत्यंत रोचक तथा उपयुक्त होते हैं। इनमें तीन से अधिक विमितियों के दिक्‌ की (जिसे हम "अति दिक्‌' कह सकते हैं) जो कल्पना होती है, उस दिक्‌ की वक्रता की कल्पना विशेष रूप से उपयुक्त हुई।
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दिक्-काल
क्व भूतं क्व भविष्यद् वा वर्तमानमपि क्व वा | क्व देशः क्व च वा नित्यं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे ||१९- ३||
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दिक्-काल
अष्टावक्र गीता राजा जनक और इनके गुरु अष्टावक्र के बीच हुए संवाद है, जिसके परिणाम स्वरूप राजा जनक को परमज्ञान की प्राप्ति हुई। भाग१९ में परमज्ञान प्राप्ति के बाद अपने अनुभव व्यक्त करते हुए भौतिक जगत की विभिन्न अवधारणाओं से मुक्ति की घोषणा करते हुए, दिक् व काल को एक ही साथ वर्णित किया हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE
टूना
टूना की 48 से अधिक विभिन्न प्रकार की प्रजातियां हैं। थुन्नुस (Thunnus) वर्ग में 9 प्रजातियाँ शामिल हैं:
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE
टूना
कई अन्य पीढ़ियों (सभी स्कॉमब्रिडे वर्ग से संबंधित हैं) की प्रजातियों का भी सामान्य नाम "टूना" ही है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE
टूना
थुन्नुस के शरीर क्रिया विज्ञान का एक उल्लेखनीय पहलू अपने शरीर के तापमान को आस पास के समुद्री जल से ऊपर बनाए रखना है। उदाहरण के लिए, ब्लूफिन ठंडे पानी में भी अपने शरीर का तापमान तक बनाए रख सकती है। हालांकि, ठेठ एंडोथर्मिक प्राणियों जैसे स्तनधारियों एवं पक्षियों की तरह, टूना अपेक्षाकृत अत्यंत कम सीमा के भीतर तापमान को नहीं बनाए रखती।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE
टूना
टूना सामान्य चयापचय से उत्पन्न गर्मी को संरक्षित कर शारीरिक ऊष्मा को प्राप्त करती है। शरीर में स्थित नसों और धमनियों का ताना बाना, जिसे रेटे मीराबाइल ("अद्भुत जाल") कहते हैं, काउंटर-करंट विनिमय प्रणाली के माध्यम से ऊष्मा को नसों में बहने वाले रक्त से धमनियों के रक्त में प्रवाहित करता है। इससे सतह की ठंडक कम हो जाती है, जिससे मांसपेशियां अपेक्षाकृत गरम रहती हैं। इससे कम उर्जा की खपत के साथ उच्च तैराकी गति मिलती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE
टूना
टूना एक महत्वपूर्ण व्यवसायिक मछली है। इंटरनेशनल सी फ़ूड सस्टेनेबिलिटी फाउंडेशन ने 2009 में टूना के वैश्विक स्टॉक के बारे में एक विस्तृत वैज्ञानिक रिपोर्ट संकलित की, जिसमे नियमित रूप से होने वाले अपडेट शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर के महासागरों में टूना व्यापक रूप से, किन्तु छोटे-छोटे झुंडों में, आम तौर पर भूमध्य रेखा के 45 डिग्री उत्तर और दक्षिण में उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण पानी में पाई जाती है। इन्हें स्कॉमब्रिडे वर्ग की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें लगभग 50 प्रजातियाँ शामिल हैं। इनमें व्यवसायिक और मनोरंजक मत्स्य उद्योग के लिए प्रयुक्त होने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण मछली येल्लोफिन (थुन्नुस एल्बाकारेस), बिगआई (टी. ओबेसस), ब्लूफिन (टी. थाय्न्नुस, टी. ओरिएंटलिस व टी. माकोयी), एल्बाकोर (टी. अलालुंगा) तथा स्किपजैक (कात्सूवोनस पेलामिस) हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE
टूना
1940 और 1960 के दशक के मध्य के बीच, बाज़ार में बिकने वाली टूना की पांच प्रमुख प्रजातियों की पकड़ी गई संख्या 300 हजार टन से लगभग 1 लाख टन पहुंच गई, जिनमें से अधिकांश हुक और लाइन द्वारा पकड़ी गईं। अब सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाले पर्स-सीन जालों के विकास के साथ, पिछले कुछ सालों में यह संख्या सालाना 4 मिलियन टन से अधिक बढ़ी है। पकड़ी गई मात्रा का 68 प्रतिशत हिस्सा प्रशांत महासागर, 22 प्रतिशत हिंद महासागर और शेष 10 प्रतिशत अटलांटिक महासागर और भूमध्य सागर से है। पकड़ी गई मात्रा का 60 प्रतिशत हिस्सा स्किपजैक का है, जिसके बाद येल्लोफिन (24 प्रतिशत), बिगआई (10 प्रतिशत), एल्बाकोर (5 प्रतिशत) तथा शेष हिस्सा ब्लुफ़िन का है। वैश्विक उत्पादन का 62 प्रतिशत पर्स-सीन्स, 14 प्रतिशत लॉन्गलाइन, लगभग 11 प्रतिशत पोल व लाइन तथा शेष 3 प्रतिशत अन्य उपकरणों की सहायता से पकड़ा जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE
टूना
2006 में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने आरोप लगाया कि जापान ने अवैध रूप से प्रतिवर्ष 12000 से 20000 टन दक्षिणी ब्लूफिन पकड़ कर 6000 टन की सहमत मात्रा से अधिक मछली पकड़ी थी; इस प्रकार की जरूरत से अधिक मछली की लागत लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। इस प्रकार के जरूरत से अधिक मछली के शिकार ने ब्लूफिन की मात्रा को अत्यधिक क्षति पहुंचाई है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ" (WWF) के अनुसार, यदि मत्स्य व्यापार करने वाली इकाईयां कोटे का सख्ती से पालन नहीं करतीं हैं तो टूना के प्रति जापान की अत्यधिक भूख व्यवसायिक रूप से सबसे अधिक पकड़ी जाने वाली मछली को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा देंगी। जवाब में जापान की मत्स्य अनुसंधान एजेंसी का कहना है कि आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की टूना मछली पकड़ने वाली कम्पनियां दक्षिणी ब्लूफिन की कुल पकड़ी गई मात्रा को कम करके बताती हैं तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य कुल मात्रा की उपेक्षा करती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE
टूना
2010 में, टोक्यो के त्सुकिजी मछली बाज़ार में 232 किलोग्राम (511.47 पाउंड) वजनी एक ब्लूफिन टूना 16.28 मिलियन येन (175000 अमेरिकी डॉलर) में बिकी थी।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE
टूना
2011 की शुरुआत में, टोक्यो के त्सुजिकी बाजार में एक नीलामी के दौरान 754 पाउंड (342 किलोग्राम) वजनी एक ब्लूफिन टूना को 32.49 मिलियन येन में बेच कर एक नया रिकॉर्ड कायम किया गया। यह प्रति किलोग्राम 95000 येन के बराबर है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
उपपुराण
उपपुराण समान्यतः पुराण नाम से प्रचलित अष्टादश महापुराणों के बाद रचित एवं प्रचलित उन ग्रन्थों को कहते हैं जो पंचलक्षणात्मक प्रसिद्ध महापुराणों से विषयों के विन्यास तथा देवीदेवताओं के वर्णन में निर्मित हैं, परन्तु उनसे कई प्रकार से समानता भी रखते हैं। इनकी यथार्थ संख्या तथा नाम के विषय में बहुत मतभेद है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
उपपुराण
अष्टादश पुराणों की तरह अष्टादश उपपुराण भी परम्परा से प्रचलित हैं एवं अनेकत्र उनका उल्लेख मिलता है। इन उप पुराणों की संख्या यद्यपि अठारह प्रचलित है, परन्तु इससे बहुत अधिक मात्रा में उपपुराण नामधारी ग्रन्थों का उल्लेख तथा अस्तित्व मिलता है। संग्रह भाव से एकत्र की गयी उपपुराणों की सूचियाँ ही करीब दो दर्जन हैं। डॉ॰ आर॰ सी॰ हाज़रा ने अपनी उपपुराण विषयक पुस्तक में विभिन्न ग्रन्थों से उपपुराणों की तेईस सूचियाँ प्रस्तुत की हैं। इन्हीं सूचियों को देवनागरी लिपि में डॉ॰ कपिलदेव त्रिपाठी ने 'पाराशरोपपुराणम्' की भूमिका में प्रस्तुत किया है। इन सूचियों में कुछ और जोड़कर डॉ॰ बृजेश कुमार शुक्ल ने 'आद्युपपुराणम्' की भूमिका में मूल श्लोक रूप में कुल २७ सूचियाँ प्रस्तुत की हैं। २८ वीं में मत्स्य पुराण के उद्धरण हैं। इन सभी सूचियों में से कुछ को छोड़कर शेष सभी के मूलाधार ग्रन्थों में बाकायदा कूर्म पुराण का नाम लेकर पूर्वोक्त सूची ही प्रस्तुत की गयी है। फिर भी कहीं-कहीं पाठभेद मिलने पर इन अध्येताओं ने उन्हें अलग पुराण के रूप में गिन लिया है। इस सन्दर्भ में यह तथ्य विशेष ध्यातव्य है कि उपपुराणों की सर्वाधिक विश्वसनीय एवं अपेक्षाकृत सर्वाधिक प्राचीन सूची अष्टादश मुख्य पुराणों में ही अनेकत्र मिलती है। यह तथ्य भी विशेष ध्यातव्य है कि मुख्य पुराणों में उपलब्ध ये सूचियाँ बिल्कुल सामान हैं। स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड में तथा कूर्म पुराण एवं गरुड़ पुराण में प्रायः बिल्कुल समान रूप में अष्टादश उपपुराणों की सूची दी गयी है, जो इस प्रकार है :-
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
उपपुराण
इनमें से क्रमसं॰ १.आदि २.नरसिंह ४.शिवधर्म ६.नारदीय ७.कपिल १२.कालिका १४.साम्ब १५.सौर १६.पाराशर एवं १८.भार्गव उपपुराण प्रकाशित हो चुके हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
उपपुराण
शेष अप्रकाशित उपपुराणों में क्रमसं॰ ३.नन्दी ११.वरुण १३.वासिष्ठलैङ्ग (=माहेश्वर) एवं १७.मारीच उपपुराण की पाण्डुलिपि (मातृका) उपलब्ध हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
उपपुराण
यह ध्यातव्य है कि उपर्युक्त क्रम में प्रथम उपपुराण को प्रायः सभी सूचियों में 'आद्यं सनत्कुमारोक्तम्' कहने के बावजूद टीकाकारों ने 'आद्यं' का अर्थ पहला तथा 'सनत्कुमारोक्तम्' का अर्थ 'सनत्कुमार पुराण' लिख दिया है। परन्तु, स्वयं 'आदि पुराण' में यह स्पष्ट उल्लेख है कि इसका उपदेश सर्वप्रथम सनत्कुमार ने दिया था तथा इसका नाम 'आदि पुराण' है। इसी प्रकार तीसरे स्थान पर कथित 'नन्दिपुराण' का नाम वस्तुतः मूल श्लोकों में नाम गिनाते समय 'कुमारोक्त स्कान्द' कहा गया है, परन्तु उसके बाद वर्णन के क्रम में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि कार्तिकेय के द्वारा नन्दी के माहात्म्य-वर्णन वाला यह पुराण ही 'नन्दिपुराण' के नाम से विख्यात है। यह स्पष्टीकरण नाम मात्र के पाठ भेद से मत्स्य पुराण में भी दिया गया है। अतः तीसरे स्थान पर उक्त पुराण का नाम वस्तुतः 'नन्दिपुराण' ही सिद्ध होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
उपपुराण
दूसरी बात यहाँ गौर करने की यह है कि मुख्य पुराणों में दी गयी उप पुराणों की सभी सूचियों में ब्रह्माण्ड पुराण का नाम भी है, जिससे यह प्रतीत होता है कि मुख्य ब्रह्माण्ड पुराण के अतिरिक्त इस नाम का कोई उपपुराण भी था, जिसका नाम इन सूचियों में मौजूद है। इसी प्रकार यहाँ उल्लिखित 'नारदीय पुराण' भी महापुराणों में परिगणित मुख्य नारदीय पुराण से भिन्न एक उपपुराण है जिसके वक्ता वस्तुतः मूल रूप से नारद को ही माना गया हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
उपपुराण
अठारह मुख्य पुराणों के बाद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पुराण देवीभागवत में दी गयी उपपुराणों की सूची में यदि क्रम-भिन्नता को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश नाम तो पूर्वोक्त सूची के समान ही हैं, पर कुछ नामों में भिन्नता भी है। देवी भागवत में चौथे स्थान पर शिवधर्म के बदले केवल 'शिव' नाम दिया गया है तथा ब्रह्माण्ड, मारीच एवं भार्गव के नाम छोड़ दिये गये हैं और उनके बदले आदित्य, भागवत एवं वासिष्ठ नाम दिये गये हैं। श्रीमद्भागवत पुराण एवं देवी भागवत में से कौन वस्तुतः महापुराण है, यह विवाद तो प्रसिद्ध ही है, जिस पर यहाँ कुछ भी लिखना उचित नहीं है। दूसरी बात यह कि तीन-तीन मुख्य पुराणों से उद्धृत पूर्वोक्त सूची में से किसी में भागवत या देवी भागवत -- किसी का नाम नहीं है। 'आदित्य पुराण' के नाम को लेकर भारी भ्रम प्रचलित है। कहीं तो उसे स्वतंत्र पुराण मान लिया गया है और कहीं 'सौर पुराण' का पर्यायवाची मान लिया गया है। परन्तु, इस सन्दर्भ में स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड तथा मत्स्य पुराण में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है कि आदित्य महिमा से सम्बद्ध होने के कारण 'साम्ब पुराण' को ही 'आदित्य पुराण' कहा जाता है। अतः आदित्य पुराण कोई स्वतंत्र पुराण न होकर साम्ब पुराण का ही पर्यायवाची नाम है। अतः इस दृष्टि से विचार करने पर भी पूर्वोक्त सूची ही सर्वाधिक प्रामाणिक ज्ञात होती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
उपपुराण
उपपुराणों के अध्येता डॉ॰ लीलाधर 'वियोगी' उपपुराणों की संख्या बढ़ाने में इस कदर लीन हो गये हैं कि अनेक जगह 'कुमार द्वारा कथित' 'स्कान्द' ही वस्तुतः 'नन्दी पुराण' है तथा 'साम्ब पुराण' का ही दूसरा नाम 'आदित्य पुराण' है, ऐसा उल्लेख रहने के बावजूद वे ऐसा कोई उद्धरण न देकर भिन्न-भिन्न पुराणों की संख्या बढ़ाते गये हैं। उपपुराणों में परिगणित 'ब्रह्माण्ड पुराण' मुख्य पुराणों में परिगणित 'ब्रह्माण्ड पुराण' से भिन्न है, इसलिए दूसरे ब्रह्माण्ड के साथ 'अपर' नाम लगा रहने से डॉ॰ वियोगी उसे एक और भिन्न उपपुराण मान लेते हैं। इसी तरह कहीं किसी पुराण के साथ 'अतिविस्तरम्' या 'सविस्तारम्' शब्द मूल श्लोक में आ गया है तो उन्होंने उसे भी उसी नाम का एक और भिन्न उपपुराण मान लिया है। मूल ग्रन्थों में अनेकत्र स्पष्ट उल्लेखों के बावजूद ऐसी अनवधानता के कारण पुराणों की संख्या भ्रामक रूप से बढ़ती चली गयी है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
उपपुराण
हेमाद्रि विरचित 'चतुर्वर्गचिन्तामणि' में भी कूर्म पुराण का नाम लेकर उसके अनुसार उपपुराणों का नाम गिनाया गया है तथा अंत में फिर लिखा है कि ऐसा कूर्म पुराण में कहा गया है।
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प्रजीव
प्रजीव (protist) ऐसा कोई भी एककोशिकीय जीव है जिसमें वास्तविक या सत्य केन्द्रक होता है तथा जो जन्तु, कवक या पादप नही है। प्रोटिस्ट कोई प्राकृतिक समूह या ' क्लेड' नहीं । कुछ जैव वैज्ञानिक वर्गीकरणों, जैसे कि रॉबर्ट विटाकर द्वारा सन 1969 में प्रस्तावित प्रख्यात पांच जगत वर्गीकरण में सभी एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीवों, एककोशीय निवही या कोलोनियल जीवों व ऐसे जीवों को जो ऊतक नहीं बनाते ,को जगत 'प्रॉटिस्टा' में वर्गीकृत किया गया है।
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प्रजीव
उनके अपेक्षाकृत सरल संगठन स्तर के अतिरिक्त प्रोटिस्ट अनिवार्य रूप से और कुछ अधिक साझा नहीं करते। आज, प्रचलित शब्द ' प्रोटिस्ट' का प्रयोग विविध संवर्गों या टैक्सा (जीव समूहों) के साझे विकासीय इतिहास वाले, समानता प्रदर्शित करने वाले जीवों के लिए किया जाता है। अर्थात इस संवर्ग के जीवों का विकास एक विशिष्ट साझे पूर्वज से नहीं हुआ । यह सभी यूकैरियोटिक तो हैं लेकिन इनके जीवन चक्र,पोषण स्तर, गमन या चलन की विधियां व कोशिकीय सरंचना भिन्न भिन्न हैं। लिन मारगुलिस ( Lynn Margolis ) के वर्गीकरण में शब्द प्रोटिस्ट सिर्फ सूक्ष्म जीवधारियों के लिए आरक्षित है जबकि एक अन्य व्यापक अर्थों वाले शब्द प्रोटोकटिस्टा ( Protectors)या प्रोटो कटिस्ट का प्रयोग एक जैव जगत के लिए किया गया है जिसमें केल्प, लाल शैवाल व स्लाइम मोल्ड जैसे बड़े बहुकोशिकीय जीव भी शामिल हैं। कुछ अन्य वैज्ञानिक, प्रोटिस्ट शब्द का प्रयोग व्यापक सन्दर्भों में ऐसे यूकैरियोटिक सूक्ष्मजीव व बड़े जीवों को शामिल करने के लिए करते हैं जिन्हें अन्य किसी पारम्परिक जगत में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
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प्रजीव
साझी पूर्वजता पर आधारित वर्गीकरण अर्थात क्लेडिस्टिक वर्गीकरण तंत्र में प्रोटिस्टा या प्रोटॉकटिस्टा संवर्गों का कोई भी समवर्ती नहीं है, दोनो ही शब्द एक समान विकासीय इतिहास वाले ऐसे जीवों को इंगित करते हैं जिनका परास सम्पूर्ण यूकैरियोटिक जीवन वृक्ष पर है। क्लेडिस्टिक वर्गीकरण में प्रोटिस्टा के अंशों का वितरण विभिन्न सुपरग्रुप्स में है ।( SAR जैसे कि प्रोटोजोआ व कुछ शैवाल , आर्किप्लास्टिडा ( Archaeplastida) जैसे कि स्थलीय पादप व कुछ शैवाल, एक्सकावटा ( excavata ) जो कि एक कोशिकीय जीव समूह है तथा ऑफिस्थोकोंटा ( Ophisthokonta) जिनमें जन्तु व कवक शामिल हैं। 'प्रोटिस्टा', 'प्रोटो कटिस्टा' व 'प्रोटोजोआ' शब्द अब पुराने हो गए हैं। यद्धपि एककोशिकीय यूकैरियोटिक सूक्ष्म जीवों के लिए प्रोटिस्ट शब्द का प्रयोग आज भी किया जाता है। उदाहरण के लिए 'प्रोटिस्ट पैथोजन' शब्द का प्रयोग ऐसे रोगकारी प्रोटिस्ट के लिए किया जाता है जो कि बैक्टीरिया, वायरस, वाइरोइड , प्रियन या मेटाजोआ नहीं हैं।
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प्रजीव
प्रोटिस्ट् प्रमुखतः जलीय जीव हैं लेकिन यह स्थलीय पर्यवासों में भी पाए जाते हैं। प्रमुख फोटोसिंथेटिक प्रोटिस्ट् हैं डायटम, डिनोफ्लाजलेट, युगलिना आदि। समुद्र में रेड टाइड उत्पन्न करने वाले जीव यही प्रोटिस्ट् ही हैं। मुख्य प्रोटोजोन्स प्रोटिस्ट् हैं मलेरिया परजीवी या प्लासमोडियम,अमीबा, स्लीपिंग सिकनेस का कारक ट्रीपनोसोमा, कालाजार का कारक, लीशमानया आदि। यह सभी प्रोटोज़ोआन्स जीव परपोषी प्राणीसम पोषण प्रदर्शित करते हैं।
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प्रजीव
अन्य जीवों से प्रोटिस्ट के प्रथम श्रेणी जर्मन जीव विज्ञानी जॉर्ज ए गोल्ड ऐसे ciliates और मूंगों के रूप में जीवों का उल्लेख करने के प्रोटोजोआ शब्द शुरू की है, जब 1820 में आया था। इस समूह में ऐसे foraminifera और अमीबा के रूप में सभी "कोशिकीय जानवरों", शामिल करने के लिए 1845 में विस्तार किया गया था। औपचारिक वर्गीकरण श्रेणी Protoctista पहले प्रोटिस्ट वह पौधों और पशुओं दोनों के आदिम कोशिकीय रूपों के रूप में देखा क्या शामिल करना चाहिए जो तर्क है कि जल्दी 1860 जॉन हॉग, में प्रस्तावित किया गया था। वह पौधों, जानवरों और खनिजों के तत्कालीन पारंपरिक राज्यों के अलावा, एक "प्रकृति का चौथा राज्य 'के रूप में Protoctista परिभाषित किया। खनिजों के राज्य के बाद एक "आदिम रूपों के राज्य 'के रूप में पौधों, जानवरों और प्रोटिस्ट छोड़ने, अर्नस्ट हएच्केल् द्वारा वर्गीकरण से हटा दिया गया था।
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प्रजीव
हर्बर्ट कोपलैंड "Protoctista" सचमुच "पहले स्थापित प्राणियों" मतलब उनका तर्क है कि लगभग एक सदी बाद में हॉग का लेबल पुनर्जीवित, कोपलैंड हएच्केल् की अवधि प्रॉटिस्टा बैक्टीरिया जैसे anucleated रोगाणुओं शामिल है कि शिकायत की। अवधि protoctista के कोपलैंड का उपयोग नहीं किया था। इसके विपरीत, कोपलैंड का कार्यकाल ऐसे डायटम, हरी शैवाल और कवक के रूप में केन्द्रक यूकेरियोट्स शामिल थे। इस वर्गीकरण जीवन के चार राज्यों के रूप में कवक, Animalia, प्लांटी और प्रॉटिस्टा की Whittaker की बाद में परिभाषा का आधार था। राज्य प्रॉटिस्टा बाद यूकेरियोटिक सूक्ष्म जीवाणुओं के एक समूह के रूप में प्रोटिस्ट छोड़ने, मोनेरा के अलग राज्य में अलग प्रोकीर्योट्स को संशोधित किया गया था। यह प्रोटिस्ट या मोनेरा न तो (वे संघीय समूह नहीं थे) से संबंधित जीवों का एक समूह थे स्पष्ट हो गया कि जब इन पांच राज्यों, देर से 20 वीं सदी में आणविक Phylogenetics का विकास जब तक स्वीकृत वर्गीकरण बने रहे।
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प्रजीव
वर्तमान में, शब्द प्रोटिस्ट या तो स्वतंत्र कोशिकाओं के रूप में मौजूद है कि कोशिकीय यूकेरियोट्स का उल्लेख किया जाता है, या वे कालोनियों में होते हैं, ऊतकों में भेदभाव नहीं दिखाते. प्रोटोजोआ अवधि तंतु फार्म नहीं है कि प्रोटिस्ट की परपोषी प्रजातियों का उल्लेख किया जाता है। इन शर्तों के वर्तमान वर्गीकरण में इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं और इन जीवों के लिए उल्लेख करने के लिए सुविधाजनक तरीके के रूप में ही रखा जाता है।
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प्रजीव
प्रोटिस्ट का वर्गीकरण अभी भी बदल रहा है। नए वर्गीकरण फैटी, जैव रसायन और आनुवंशिकी के आधार पर संघीय समूहों को पेश करने का प्रयास.एक पूरे के रूप में प्रोटिस्ट paraphyletic होते हैं, क्योंकि इस तरह के सिस्टम अक्सर अलग हो जाते हैं या राज्य का परित्याग, बजाय eukaryotes के अलग लाइनों के रूप में प्रोटिस्ट समूहों का इलाज. ADL द्वारा हाल ही में योजना. (2005) औपचारिक रैंकों (जाति, वर्ग, आदि) के साथ संघर्ष और बदले पदानुक्रमित सूचियों में जीवों को सूची बद्ध नहीं है कि एक उदाहरण है। इस वर्गीकरण अधिक लंबी अवधि में स्थिर और अद्यतन करने के लिए आसान बनाने के लिए करना है।
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प्रजीव
संघ के रूप में इलाज किया जा सकता है जो प्रोटिस्ट, के मुख्य समूहों में से कुछ, सही पर taxo बॉक्स में सूचीबद्ध हैं। कई अनिश्चितता अभी भी वहाँ है, हालांकि मोनोफाईलेटिक माना जाता है। उदाहरण के लिए, excavates शायद मोनोफाईलेटिक नहीं हैं और haptophytes और cryptomonads बाहर रखा गया है अगर chromalveolates शायद ही मोनोफाईलेटिक हैं।
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तूनिसीया
तूनिसीया उत्तरी अफ़्रीक़ा महाद्वीप में एक अरब राष्ट्र है जिसका अरबी भाषा में नाम अल्जम्हूरीयाह अत्तूनिसीयाह (الجمهرية التونسية) या तूनिस है। यह भूमध्यसागर के किनारे स्थित है, इसके पूर्व में लीबिया और पश्चिम मे अल्जीरिया देश हैं। देश की पैंतालीस प्रतिशत ज़मीन सहारा रेगिस्तान में है जबकि बाक़ी तटीय जमीन खेती के लिए इस्तमाल होती है। रोमन इतिहास मे तूनिस का शहर कारथिज एक आवश्यक जगह रखता है और इस प्रान्त को बाद में रोमीय राज्य का एक प्रदेश बना दीया गया जिस का नाम अफ़्रीका यानी गरम प्रान्त रखा गया जो अब पूरे महाद्वीप का नाम है।
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तूनिसीया
ट्यूनीशिया स्थिति : ३३° ३०' उ. अ. तथा ९° १०' पू. दे.। यह उत्तरी अफ्रीका का एक स्वतंत्र गणतंत्र (जुलाई, १९५७ तक राजतंत्र) राष्ट्र है, जिसके पश्चिम में अलजीरिया, उत्तर तथा पूर्व में भूमध्यसागर तथा दक्षिण-पूर्व में लीबिया है। जिब्राल्टर के मुहाने तथा स्वेज नहर के मध्य में स्थित होने के कारण ट्रयूनीशिआ सिसली के साथ भूमध्यसागर के पूर्वी तथा पश्चिमी भागों में व्यवधान उपस्थित करता है। इस तरह की स्थिति तथा ९०० मील लंबे समुद्रतट पर अधिकार होने के कारण ट्यूनीशिआ क बहुत आर्थिक तथा राजनीतिक महत्व है। गणतंत्र का क्षेत्रफल ४८,३३२ वर्ग मील है।
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तूनिसीया
९०,००,००० हेक्टेयर विस्तृत खेती करने लायक जमीन में से ३४,००,००० हेक्टेयर पर खेती होती है परंतु उपज बहुत कम होती है। ३६,००० हेक्टेयर पर अंगूर की खेती तथा २५,००,००० एकड़ में जंगल है।
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तूनिसीया
यहाँ फॉस्फेट का अक्षय भंडार है। अच्छे किस्म का कच्चा लोहा केफ के दक्षिण में मिलता है। पारा, मैंगनीज, ताँबा, तथा नमक भी यहाँ मिलते हैं। (नृ. कु. सिं.)
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तूनिसीया
अरबी राजभाषा है। फ्रेंच का भी प्रयोग प्रशासन और व्यापार में किया जाता है ट््यूानिजियाई अरबी भाषा, जिसपर मगरिबी लिपि का प्रभाव है, मध्य पूर्व में ही वोली जाती है। बेरबर भाषियों की संख्या बहुत थोड़ी है।
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तूनिसीया
राज्य का धर्म इसलाम है। फिर भी यहाँ के निवासी धर्म के मामले में दुराग्रही नहीं। मूलवासी सुन्नी मुस्लिम हैं। यूरोपीय लोग रोमन कैथोलिक, ग्रीक आर्थोडॉक्स, प्रोटेस्टेंट और अंाग्लिकन आदि धर्मों पर आस्था रखते हैं।
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तूनिसीया
तूनिसीया का इतिहास १२०० वर्ष ईसा पूर्व से आरंभ होता है। उस समय कुछ फीनिशियन वहाँ आ बसे और उन्होंने कार्थेज नगर की स्थापना की। १४६ वर्ष ईसा पूर्व प्रसिद्ध प्यूनिक युद्ध में कार्थेज ध्वस्त हुआ और वहाँ रोमनों का राज्य स्थापित हुआ। कुछ समय पश्चात्‌ रोमनों का पतन हुआ तथा लगभग दो शताब्दियों तक ट्यूनीशिया में अव्यवस्था तथा अराजकता रही विदेशी आक्रमणकारियों ने ट््यनूीजिया आना आरंभ किया। पाँचवीं और छठी शताब्दियों में क्रमश: वंडल और बाइजेंटाइन आए। अरबों ने सातवीं शताब्दी में तूनिसीया को विजय किया।
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तूनिसीया
८०० में तूनिसीया के तात्कालिक मनोनीत प्रशासक इब्राहिम बिन अगलब ने बगदाद के खलीफा से विद्रोह करके अपने आधिपत्य में तूनिसीया को अलग राज्य बनाया। सिसली भी उसमें मिला लिया गया। दो शताब्दियों बाद हाफसिद वंश सत्तारूढ़ हुआ और उसने अगले ३०० वर्षों में ट्यूनीशिया को बहुत संपन्न बना दिया। १५७४ से १८८१ के बीच तुर्क आटोमन साम्राज्य का अधिकार रहा। धीरे धीरे टर्की द्वारा नियुक्त छोटे-छोटे स्थानीय प्रशासक ट्यूनीशिया के शासक बन गए और १७०५ में उन्होंने राज्य को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इस प्रकार सत्ता हुसेन वंश को प्राप्त हुई। यह वंश १९५७ तक ट्यूनीशिया का शासक रहा।
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तूनिसीया
१९वीं शताब्दी का अंतिम चरण आते आते ट्यूनीशिया की आर्थिक स्थिति गंभीर रूप से बिगड़ गई। अन्तराष्ट्रीय आयोग की सिफारिश पर उसे यूरोप के राष्ट्रों से ऋण प्राप्त हुआ, साथ ही फ्रांस, ब्रिटेन और इटली की प्रतिनिधि वहाँ के आर्थिक मामलों की देख रेख के लिये नियुक्त हुए। इस संदर्भ में फ्रांस ने वहाँ अपनी स्थिति सुधारनी चाही और इसी से प्रेरित होकर १८८५ के मई में उसने अपना सैनिक अड्डा कायम कर लिया। इसके अतिरिक्त तूनिसीया के आधुनिकीकरण में भी उसने रुचि ली। बदले में प्रथम विश्वयुद्ध में तूनिसीया ने फ्रांस का साथ दिया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80
ब्लैकबेरी
आधुनिक जीएसएम-आधारित ब्लैकबेरी फ़ोन में एक ARM 7 या 9 प्रोसेसर शामिल है, जबकि पुराने ब्लैकबेरी 950 और 957 फ़ोन में इंटेल 80386 प्रोसेसर का उपयोग होता है। नवीनतम जीएसएम ब्लैकबेरी मॉडल (8100, 8300 और 8700 श्रृंखला) में एक इंटेल PXA901 312 मेगाहर्ट्ज प्रोसेसर, 64 MB फ्लैश मेमोरी और 16 MB SDRAM होता है।
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20231101.hi_182471_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80
ब्लैकबेरी
CDMA ब्लैकबेरी स्मार्टफोन्स क्वालकोम्म MSM6x00 चिपसेट्स पर आधारित है, जिसमें ARM 9-आधारित प्रोसेसर और GSM 900/1800 घुमंतू भी शामिल हैं (जैसा कि 8830 और 9500 के मामले में) और 256MB तक फ्लैश मेमोरी भी शामिल हैं।
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