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त्यागराज
त्यागराज के लिए संगीत ईश्वर से साक्षात्कार का मार्ग था और उनके संगीत में भक्ति भाव विशेष रूप से उभर कर सामने आया है। संगीत के प्रति उनका लगाव बचपन से ही था। कम उम्र में ही वह वेंकटरमनैया के शिष्य बन गए और किशोरावस्था में ही उन्होंने पहले गीत 'नमो नमो राघव' की रचना की।
0.5
813.260756
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त्यागराज
दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में प्रभावी योगदान करने वाले त्यागराज की रचनाएं आज भी काफी लोकप्रिय हैं और धार्मिक आयोजनों तथा त्यागराज के सम्मान में आयोजित कार्यक्रमों में उनका खूब गायन होता है। त्यागराज ने मुत्तुस्वामी दीक्षित और श्यामाशास्त्री के साथ कर्नाटक संगीत को नयी दिशा दी और उनके योगदान को देखते हुए उन्हें त्रिमूर्ति की संज्ञा दी गयी।
1
813.260756
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त्यागराज
उनकी संगीत प्रतिभा से तंजावुर नरेश काफी प्रभावित थे और उन्हें दरबार में शामिल होने के लिए आमंत्रित भी किया था। लेकिन प्रभु की उपासना में डूबे त्यागराज ने उनके आकर्षक प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने राजा के प्रस्ताव को अस्वीकार कर प्रसिद्ध कृति 'निधि चल सुखम यानी क्या धन से सुख की प्राप्ति हो सकती है' की रचना की थी। कहा जाता है कि त्यागराज के भाई ने भगवान राम की वह मूर्ति पास ही कावेरी नदी में फेंक दी थी जिसकी वह अर्चना करते थे। त्यागराज अपने इष्ट से अलगाव को बर्दाश्त नहीं कर सके और घर से निकल पड़े। इस क्रम में उन्होंने दक्षिण भारत के लगभग सभी प्रमुख मंदिरों की यात्रा की और उन मंदिरों के देवताओं की स्तुति में गीत बनाए।
0.5
813.260756
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त्यागराज
त्यागराज ने करीब 600 कृतियों की रचना करने के अलावा तेलुगु में दो नाटक प्रह्लाद भक्ति विजय और नौका चरितम भी लिखा। प्रह्लाद भक्ति विजय जहां पांच दृश्यों में 45 कृतियों का नाटक है वहीं नौका चरितम एकांकी है और इसमें 21 कृतियां हैं।
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20231101.hi_16567_7
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त्यागराज
त्यागराज की विद्वता उनकी हर कृति में झलकती है हालांकि पंचरत्न कृति को उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना कहा जाता है। सैंकड़ों गीतों के अलावा उन्होंने उत्सव संप्रदाय कीर्तनम और दिव्यनाम कीर्तनम की भी रचनाएं की। उन्होंने संस्कृत में भी गीतों की रचना की हालांकि उनके अधिकतर गीत तेलुगु में हैं। त्यागराज की रचनाओं के बारे में कहा जाता है कि उनमें सब कुछ अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में है। उसमें कोई भी हिस्सा अनावश्यक नहीं है चाहे संगीत हो या बोल। इसके अलावा उसमें प्रवाह भी ऐसा है जो संगीत पेमियों को अपनी ओर खींच लेता है।
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त्यागराज
आध्यात्मिक रूप से वह उन लोगों में थे जिन्होंने भक्ति के सामने किसी बात की परवाह नहीं की। उन्हें सिर्फ संगीत एवं भक्ति से लगाव था और ये दोनों उनके लिए पर्यायवाची थे। उनके जीवन का कोई भी पल राम से जुदा नहीं था। वह अपनी कृतियों में भगवान राम को मित्र मालिक पिता सहायक बताते हैं। अपनी भक्ति के बीच ही उन्होंने छह जनवरी 1847 को समाधि ले ली।
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20231101.hi_179787_5
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ट्रांसयूरेनिक
940 ई. में अमरीका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक सीबोर्ग तथा अन्य साथियों ने इस तत्व की खोज की। यूरेनियम 238 समस्थानिक पर ड्यूट्रान कारणो की बौछार से बनेश् नेप्चूनियम 238 द्वारा इलेक्ट्रॉन मुक्त करने पर प्लूटोनियम रखा गया। 1941 ई. में प्लूटोनियम 239 की खोज हुई। यह समस्थानिक यूरेनियम पर मंद न्यूट्रॉन की प्रक्रिया द्वारा बनाया गया और नाभिकीय अनुसंधानों में अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। यूरेनियम नाभिक रिऐक्टर में इसका निर्माण सरलता से हो जाता है। इसी कारण इसके रासायनिक गुणों की भली प्रकार जाँच हो सकी है। इसके अनेक यौगिक भी बनाए गए हैं। यूरेनियम के अनेक आयस्कों के प्लूटोनियम अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में मिला है। यह यूरेनियम पर प्राकृतिक स्रोतो से उत्पन्न न्यूट्रॉनों की प्रक्रिया द्वारा बनता रहता है।
0.5
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20231101.hi_179787_6
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ट्रांसयूरेनिक
प्लूटोनियम 239 यूरेनियम 235 की भाँति खंडित हो सकता है और नाभिक रिऐक्टरों में ईधंन की भाँति प्रयुक्त हुआ है। इसके 15 समस्थानिक अभी तक ज्ञात हैं, जिनकी भार संख्या 232 से 246 है। इसमें 244 भार वाला समस्थानिक सबसे स्थिर है और उसकी अर्ध जीवनावधि 7.6 x 107 वर्ष है।
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20231101.hi_179787_7
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ट्रांसयूरेनिक
ऐमेरिशियम (Am)-इस तत्व की खोज 1944 ई. में हुई। प्लूटोनियम 239 पर न्यूट्रॉन की बौछार द्वारा बने प्लूटोनियम 241 नाभिक द्वारा बीटा कण मुक्त करने पर इसका निर्माण होता है।
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ट्रांसयूरेनिक
ऐमेरिशियम के 10 समस्थानिक प्राप्त हैं जिनमें Am243 का अर्ध जीवनकाल सब से दीर्ध (8000 वर्ष) है रासायनिक प्रयोगों से ज्ञात है कि इसके 3 संयोजकता वाले यौगिक सर्वाधिक स्थायी हैं।
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ट्रांसयूरेनिक
इस तत्व की खोज 1944 ई. में ऐमेरिशियम से पहले हुई। इसका निर्माण प्लूटपेनियम 239 पर ऐल्फा कण की बौछार द्वारा किया गया।
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ट्रांसयूरेनिक
प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्रीमती मैडम क्यूरी की समृति में इसका नाम 'क्यूरियम' रखा गया। इस तत्व के 13 समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनमें 245 भार का समस्थानिक सबसे स्थिर है (अर्ध जीवन अवधि 11,000 वर्ष)।
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ट्रांसयूरेनिक
1950 ई. में क्यूरियम परमाणुओं पर ऐल्फा कणों की अभिक्रिया द्वारा यह तत्व निर्मित किया गया। अमरीका के कैलिफार्निया प्रदेश के आधार पर इसे कैलिफार्निया नाम मिला। कैलिफार्नियम के 11 समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनमें 251 भार का समस्थानिक सबसे स्थिर है (अर्धजीवन अवधि 700 वर्ष)।
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ट्रांसयूरेनिक
प्रशांत महासागर में 1952 ई. में परमाणु विस्फोट के खंड मे इस तत्व की सर्वप्रथम खोज हुई थी। 1954 ई. के लगभग एक ही समय में अमरीका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय तथा आर्गन राष्ट्रीय प्रयोगशाला और स्वीडन की स्टॉकहोमश् प्रयोगशाला में इस तत्व का निर्माण हुआ। यूरेनियम 238 पर नाईट्रोजन नाभिक की बौछार द्वारा इसे सर्वप्रथम बनाया गया था। विश्वप्रसिद्धश् वैज्ञानिक आइंस्टी के समान में इस तत्व का नाम आइंस्टीनियम रखा गया। अभी तक इसके दस समस्थानिक ज्ञात है जिनमें सबसे स्थिर समस्थानिक Es 254 की अर्ध-जीवनावधि 280 दिन है।
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ट्रांसयूरेनिक
यूरेनियम पर तीव्र ऑक्सिजन आयनों की क्रिया द्वारा इसका निर्माण किया गया था। 1952 ई. के प्रशांत सागर के विस्फोट में इसके कण भी पाए गए थे। इसके सात समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनमें 256 भार का समस्थानिक सबसे स्थायल है।
0.5
812.847831
20231101.hi_73168_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE
खेड़ा
खेड़ा (Kheda) भारत के गुजरात राज्य के खेड़ा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। यह वात्रक नदी के किनारे बसा हुआ है।
0.5
810.836249
20231101.hi_73168_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE
खेड़ा
सुनहरी पत्तियों की भूमि कहा जाने वाला गुजरात का खेडा 7194 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह गुजरात का सबसे बड़ा तम्बाकू उत्पादक है। इस प्राचीन बस्ती की स्थापना पांचवीं शताब्दी में हुई थी। अंग्रेजों ने यहां 1803 में मिल्रिटी गैरीसन विकसित किया। खेडा के जैन मंदिर खूबसूरत नक्काशी और कारीगरी के लिए प्रसिद्ध हैं। साथ ही 1822 में बना एक चर्च और 19वीं शताब्दी का टॉउन हॉल भी यहां देखा जा सकता है। खंभात यहां का जाना माना ऐतिहासिक स्थल है जो मिठाइयों और पत्थर की खूबसूरत कारीगरी के लिए विख्यात है। डाकोर यहां का प्रमुख तीर्थस्थल है।
0.5
810.836249
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खेड़ा
खेड़ा ज़िले में नडियाद का सबसे बड़ा नगर संतराम मंदिर और श्री माई मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर अपनी शानदार नक्कासियों के लिए चर्चित हैं। यह नगर सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मस्थल भी है। गुजराती उपन्यास सरस्वतीचन्द्र लिखने वाले लेखक गोवर्धनराम त्रिपाठी भी इसी नगर से संबंधित हैं। नगर में अनेक अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों को भी देखा जा सकता है।
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खेड़ा
यह जैन तीर्थस्थल खेडा के मेन रोड पर स्थित है। भगवान सुमतिनाथ को समर्पित यहां के मंदिर का प्रवेश द्वार बेहद आकर्षक है। यात्रियों को ठहरने के लिए यहां उचित व्यवस्था है। यहां से 5 किलोमीटर की दूरी पर ही श्री खेडा तीर्थ भी देखा जा सकता है।
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810.836249
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खेड़ा
अहमदाबाद से 86 किलोमीटर दूर रायोली में स्थित यह पार्क विश्व के तीन सबसे बड़े डायनासोर जीवाश्म पार्को में एक है। विशेषज्ञों का मानना है कि लगभग 65 मिलियन साल पहले यहां बड़ी संख्या में डायनासोर पाए जाते थे। डायनासोरों के बहुत से अंडे और जीवाश्म यहां मिले हैं।
1
810.836249
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE
खेड़ा
टिंबा तुवा और लसुंदरा खेडा के गर्म पानी के झरने हैं जिन्हें औषधीय और चमत्कारिक गुणों से भरपूर माना जाता है। माना जाता है कि इसमें स्‍नान करने से आर्थराइटिस रोग दूर हो जाता है। टिंबा तुवा के निकट एक मंदिर बना हुआ है जिसे भीम से संबंधित माना जाता है।
0.5
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खेड़ा
गलटेश्वर मंदिर 12वीं शताब्दी के आसपास सोलंकी शैली में बनवाए गए मंदिरों में एक है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में 8 ऑफसेट वाला गर्भगृह और भूमिजा शैली में डिजाइन किया गया शिखर बेहद आकर्षक हैं। देश के अनेक हिस्सों से लोगों का यहां नियमित आना-जाना लगा रहता है।
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खेड़ा
बोचासन स्थित इस मंदिर को 1907 में शास्त्रीजी महाराज ने समर्पित किया था। मंदिर में हरीकृष्ण महाराज, नारायण, देवी लक्ष्मी, अक्षर, पुरूषोत्तम आदि की मूर्तियां स्थापित हैं। गुरू पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा पर्व यहां बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। मुख्य मंदिर परिसर के निकट भगवान हनुमान का एक छोटा मंदिर भी देखा जा सकता है।
0.5
810.836249
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खेड़ा
शेधी नदी के तट पर बसा यह तीर्थस्थल रणछोडजी के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 1772 में हुआ था। हर माह पूर्णिमा के अवसर पर हजारों भक्त इस मंदिर में दर्शन हेतु आते हैं। डाकोर नाडियाड और गोधरा से राज्य राजमार्ग द्वारा जुड़ा है। डाकोर को प्रारंभ में डंकापुर के नाम से जाना जाता था।
0.5
810.836249
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क्रमचय-संचय
शुद्ध गणित, बीजगणित, प्रायिकता सिद्धांत, टोपोलोजी तथा ज्यामिति आदि गणित के विभिन्न क्षेत्रों में क्रमचय-संचय से संबन्धित समस्याये पैदा होतीं हैं। इसके अलावा क्रमचय-संचय का उपयोग इष्टतमीकरण (आप्टिमाइजेशन), संगणक विज्ञान, एर्गोडिक सिद्धांत (ergodic theory) तथा सांख्यिकीय भौतिकी में भी होता है। ग्राफ सिद्धांत, क्रमचय-संचय के सबसे पुराने एवं सर्वाधिक प्रयुक्त भागों में से है। ऐतिहासिक रूप से क्रमचय-संचय के बहुत से प्रश्न विलगित रूप में उठते रहे थे और उनके तदर्थ हल प्रस्तुत किये जाते रहे। किन्तु बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शक्तिशाली एवं सामान्य सैद्धांतिक विधियाँ विकसित हुईं और क्रमचय-संचय गणित की स्वतंत्र शाखा बनकर उभरा।
0.5
806.525929
20231101.hi_222018_2
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क्रमचय-संचय
क्रमचय-संचय से संबंधित सरल प्रश्न काफी प्राचीन काल से ही उठते और हल किये जाते रहे हैं। ६ठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत के महान आयुर्विज्ञानी सुश्रुत ने सुश्रुतसंहिता के ६३वें अध्याय (रसभेदविकल्पमध्याय) में कहा है कि ६ भिन्न स्वादों के कुल ६३ संचय (कंबिनेशन) बनाये जा सकते हैं (एक बार में केवल एक स्वाद लेकर, एकबार में दो स्वाद लेकर ... इस प्रकार कुल 26-1=25 समुच्चय बन सकते हैं।) ८५० ईसवी के आसपास भारत के ही एक दूसरे महान गणितज्ञ महावीर (गणितज्ञ) ने क्रमचयों एवं संचयों की संख्या निकालने के लिये एक सामान्यीकृत सूत्र बताया।
0.5
806.525929
20231101.hi_222018_3
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क्रमचय-संचय
भास्कराचार्य ने लीलावती के 'अङ्कपाश' नामक अध्याय में क्रमचय-संचय का विवेचन किया है (इसके पूर्व के जैन ग्रन्थों में इसे 'विकल्प' नाम दिया गया था।)
0.5
806.525929
20231101.hi_222018_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय-संचय
स्थानान्तमेकादिचयाङ्कघातः संख्याविभेदाः नियतैस्युरङ्कैः।भक्तोsङ्कमित्याङ्कसमासनिघ्नः स्थानेषु युक्तः मितिसंयुतिः स्यात्॥
0.5
806.525929
20231101.hi_222018_5
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क्रमचय-संचय
At number of places which are filled with equal nymbers of digits, place 1, 2, 3, 4 ... in increasing order. The product of these (placed) digits is the required number of permutations.
1
806.525929
20231101.hi_222018_6
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क्रमचय-संचय
यावत्स्थानेषु तुल्याङ्कास्तद्भेदैस्तु पृथक् कृतैः।प्राग्भेदाः विहृताः भेदास्तत्सङ्ख्यैक्यं च पूर्ववत्॥
0.5
806.525929
20231101.hi_222018_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय-संचय
In the given digits, if some digits are repeated, then at those number of places find number of permutations assuming different digits. Divide by this number (of permutations), the number of permutations of all given digits, assuming different digits at all places.
0.5
806.525929
20231101.hi_222018_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय-संचय
इसी प्रकार महावीराचार्य ने गणितसारसंग्रह में कुछ दी हुई वस्तुओं के कुल संचयों (कम्बिनेशन्स) के लिए निम्नलिखित सूत्र दिया है-
0.5
806.525929
20231101.hi_222018_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय-संचय
( Putting numbers starting with 1 and increasing by 1, in the reverse order above, (and) in order below; the product (of those) in the reverse order is divided by the product (of those) in order; (the quotient) is the result.
0.5
806.525929
20231101.hi_651573_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80
देवदीवाली
देव दीपावली भी शुरू होता है जो कार्तिक महोत्सव, शरद पूर्णिमा के दिन लंबे महीने की परिणति है। कई रवानगी दीपावली समारोह सचमुच देवताओं के लिए फिट का वर्णन किया है। इन समारोहों में कई लाख मिट्टी के दीपक घाट की सीढ़ियों पर सूर्यास्त पर जलाया जाता है जब दूसरों के बीच में भी टॉलेमी और हुआंग त्सांग द्वारा दर्ज किया जता है।
0.5
805.782025
20231101.hi_651573_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80
देवदीवाली
वाराणसी के एक बहुत ही खास नदी महोत्सव है और यह एक पवित्र शहर के लिए सभी आगंतुकों के लिए देखना चाहिए।
0.5
805.782025
20231101.hi_651573_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80
देवदीवाली
देव दीपावली तीर्थयात्रियों द्वारा गंगा के संबंध में दीवाली के पन्द्रहवें दिन को वाराणसी में हर साल मनाई जाती है। चंद्रमा को पूरा ध्यान में रखते हुए यह कार्तिक पूर्णिमा पर कार्तिक के महीने में आयोजित की जाती है। यह महान तुरही और पड़ा साथ लोगों द्वारा मनाई जाती है। हिंदू धर्म में देव दीपावली देवताओं इस भव्य उदाहरण पर पृथ्वी पर उतरना के विश्वास में मनाई जाती है। देव दीपावली मनाने का एक और मिथक है कि त्रिपुरासुर दानव इस दिन देवताओं द्वारा मारा गया था, तो यह देव दीपावली के रूप में नामित किया गया और कार्तिक पूर्णिमा पर देवताओं की विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
0.5
805.782025
20231101.hi_651573_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80
देवदीवाली
राजा बाली छोड़ने के बाद,सारे भगवान इस दिन एक सथ फिर से शामिल हुए। देवास उत्साह में अपने आगमन का जश्न मनाया और इस तरह देवदिवाली अस्तित्व में आया था।
0.5
805.782025
20231101.hi_651573_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80
देवदीवाली
त्रिपुरारी पूर्णिमा।शरिमध भागवत के 7 वें स्खन्ध कहानी बताता। तारक और विधुन्मालि के मदद से तीन तत्व का निर्माण किया जो सोने, चांदी और लोहे की।राक्षसों ने स्थानों को नष्ट करने, उड़ान भरी। देवास तो राहत के लिए भगवान शिव का दरवाजा खटखटाया। भगवान शिव का निवास -कैलाश को नष्ट करने के लिए तिन राक्षसों को उकसाया। एक नाराज शिव तो तीन तत्व नष्ट कर दिये। इसके बाद वह त्रिपुरारी के रूप में जाना जाने लगा। देवों के देव दिवाली आनन्द के साथ मनाया जता है।
1
805.782025
20231101.hi_651573_8
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देवदीवाली
भावना एक जैसी ही है जैसे देवप्राधोबिहिनी एकादशी के रूप मे मनया जता है। आदि अहंकार, क्रोध, लोभ, वासना, के आधार सहज ज्ञान और भीतर देवत्व के परिणामस्वरूप अभिव्यक्ति - देवता भगवान की वापसी का जश्न मनाया हालांकि, हम मनुष्यों हमारे भीतर के राक्षस को समाप्त करने से देव दिवाली मनाते हैं।
0.5
805.782025
20231101.hi_651573_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80
देवदीवाली
काशी में दिवाली का वर्तमान स्वरूप पहले नहीं था, पहले लोग कार्तिक पूर्णिमा को धार्मिक महात्म्य के कारण घाटों पर स्नान-ध्यान को आते और घरों से लाये दीपक गंगा तट पर रखते व कुछ गंगा की धारा में प्रवाहित करते थे, घाट तटों पर ऊचे बांस-बल्लियों में टोकरी टांग कर उसमें आकाशदीप जलाते थे जो देर रात्रि तक जलता रहता था। इसके माध्यम से वे धरती पर देवताओं के आगमन का स्वागत एवं अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि प्रदान करते है।
0.5
805.782025
20231101.hi_651573_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80
देवदीवाली
भगवान स्वामीनारायण की मां, भक्तिमाता उत्तर प्रदेश, उत्तर भारत में संवत १७९८ में आज ही के दिन पैदा हुआ थी।
0.5
805.782025
20231101.hi_651573_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80
देवदीवाली
निम्बार्क जयंती। १२ वीं सदी में निम्बार्क आचार्य,दर्शन के प्रस्तावक और सनक संप्रदाय इस दिन पैदा हुये थे। उन्होंने कहा कि कृष्ण की पूजा करने के क्रम में राधा की तरह एक आदर्श भक्त बन सकते है। मंदिरों में श्री कृष्ण के साथ राधा की मूर्ति संस्कार के लिए पहली बार था।
0.5
805.782025
20231101.hi_194816_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय
"क्रमपरिवर्तन" शब्द का एक कमजोर अर्थ भी है जो कभी-कभार प्राथमिक कॉम्बीनेटॉरिक्स ग्रंथों में प्रयोग किया जाता है, उन क्रमों को नामोद्धिष्ट करते हुए जिनमें कोई तत्व एक से अधिक बार न आए, किन्तु निर्धारित सेट के सभी तत्वों के प्रयोग की आवश्यकता न पड़े. वास्तव में इसके उपयोग में अक्सर निर्धारित आकार के सेट में से लिए गए तत्वों की निर्धारित लंबाई k के क्रम पर विचार करना पड़ता है। इन वस्तुओं को बिना दोहराव के क्रम के रूप में भी जाना जाता है, ऐसा शब्द जिससे "क्रमपरिवर्तन" के दूसरे, आम अर्थों के भ्रम से बचा जाता है। n के आकार के एक सेट की तत्वों के बिना दोहराव के k क्रम की लंबाई की संख्या है
0.5
802.957809
20231101.hi_194816_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय
एक संख्या जिसे n की k -th ह्रासात्मक भाज्य शक्ति के रूप में जाना जाता है और जिसके कईं दूसरे नाम और अंकन प्रचलित हैं।
0.5
802.957809
20231101.hi_194816_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय
अगर M एक परिमित मल्टीसेट है, तो एक मल्टीसेट क्रमपरिवर्तन M तत्वों का क्रम है जिसमें प्रत्येक तत्व उतनी बार प्रकट होता है जितनी बार M में इसकी बहुलता है। यदि M के तत्वों की बहुलता (किसी क्रम में ली जाए) , , ..., है और उनका योग (अर्थात,M का आकार) n है, तो M के मल्टीसेट क्रमपरिवर्तन की संख्या बहुपदीय गुणांक द्वारा दी जाती है
0.5
802.957809
20231101.hi_194816_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय
समूह सिद्धांत में, एक सेट के क्रमपरिवर्तन का अर्थ है एक द्विभाजित नक्शा, या उस सेट से स्वंय में द्विभाजन. किसी भी सेट S के सभी क्रमपरिवर्तन, नक्शे की उत्पाद के रूप में और पहचान की तटस्थ तत्व के रूप में संरचना वाले समूह बनाते हैं। यह S का सममितीय समूह है। समरूपता तक, यह सममितीय समूह सेट की गणनीयता पर निर्भर करता है, इसलिए S तत्वों की प्रकृति समूह की संरचना के लिए अप्रासंगिक है। परिमित सेटों के मामले में सममितीय समूहों का अध्ययन सबसे अधिक किया गया है, जिस मामले में यह माना जा सकता है कि S ={1,2,...,{0}n} कुछ प्राकृतिक संख्या n के लिए, जो n की डिग्री के सममितीय समूह को परिभाषित करता है। सममितीय समूह के किसी भी उपसमूह को क्रमपरिवर्तन समूह कहते है। वास्तव में केली के सूत्र के अनुसार कोई भी समूह क्रमपरिवर्तन समूह के अनुरूप है और प्रत्येक परिमित समूह किसी भी परिमित सममितीय समूह का उपसमूह है। हालांकि, क्रमपरिवर्तन समूहों की अमूर्त क्रमपरिवर्तन समूहों की तुलना में अधिक संरचना होती है और क्रमपरिवर्तन समूह के रूप में विभिन्न प्रतीति होती है इसलिए समतुल्य होने की ज़रूरत नहीं है।
0.5
802.957809
20231101.hi_194816_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय
एक परिमित S सेट के क्रमपरिवर्तन के लिए दो मुख्य अंकन पद्धतियां हैं। दो-पंक्तियों वाले अंकन में, एक पहली पंक्ति में S के तत्व को सूचीबद्ध करती है और प्रत्येक के लिए क्रमपरिवर्तन के तहत अपने बिम्ब को दूसरी पंक्ति में. उदाहरण के लिए सेट (1,2,3,4,5) का विशेष क्रमपरिवर्तन इस रूप में लिखा जा सकता है:
1
802.957809
20231101.hi_194816_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय
वैकल्पिक रूप से, हम चक्र अंकन का उपयोग कर क्रमपरिवर्तन लिख सकते हैं, जो क्रमपरिवर्तन के सफल प्रयोग के प्रभाव पर केंद्रित करता है। यह क्रमपरिवर्तन को चक्र के उत्पाद के रूप में व्यक्त करती है जो क्रमपरिवर्तन की कक्षाओं (कम से कम दो तत्वों के साथ) के अनुरूप होता है; चूंकि पृथक कक्षाएं शिथिल होती हैं, इसे सामान्य रूप से क्रमपरिवर्तन का "शिथिल चक्रों में अपघटन" कहते हैं। यह इस प्रकार काम करता है: S के कुछ X तत्व से शुरू करके, अनुक्रम लिखते हैं σ के तहत क्रमिक बिम्ब का (x σ ('x ) σ (σ ('x )) ...), जब तक बिम्ब X न हो जाए, जिस बिंदु पर कोष्ठक बंद कर दिए जाते हैं। लिखे गए मान का सेट x की कक्षा बनाता है (σ के अंतर्गत) और कोष्ठकबद्ध अभिव्यक्ति σ का समानुरूप चक्र देती है। तो S के x तत्व को चुनना जारी रहता है जो पहले से लिखी गई कक्षा में नहीं है और कि और संगत चक्र को लिखते हैं और यह क्रम जारी रहता है जब तक S के सभी तत्व लिखे गए चक्र से संबद्ध नहीं होते हैं या σ के नियत बिंदु नहीं होते. चूंकि हर नए चक्र के लिए प्रारंभ बिंदु अलग अलग तरीकों से चुना जा सकता है, सामान्यतः एक ही क्रमपरिवर्तन के लिए कई अलग अलग चक्र अंकन हैं; उदाहरण के लिए ऊपर वाले में एक उदाहरण है
0.5
802.957809
20231101.hi_194816_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय
σ का हर चक्र (x 1 x 2 ... x l) अपने आप में एक क्रमपरिवर्तन का प्रतीक है, अर्थात जो इस कक्षा में σ के सम मूल्य लेता है (तो यह चित्रित करता है x <sub>'i </sub> को x i+1 के लिए और x l को x 1 ), S के सभी तत्वों को स्वंय में चित्रित करते हुए. कक्षा के l आकार को चक्र की लंबाई कहा जाता है। σ की पृथक कक्षाएं परिभाषा से शिथिल हैं, तो तदनुरूपी चक्र रूपांतरित हो जाते हैं और σ इसके चक्रों का उत्पाद है (किसी भी क्रम में). इसलिए चक्र अंकन में चक्र के संयोजन की क्रमपरिवर्तन की संरचना के अंकन के रूप में व्याख्या की जा सकती है, जिस कारण से क्रमपरिवर्तन का नाम "अपघटन". यह अपघटन अनिवार्य रूप से अद्वितीय है: उत्पाद में चक्रों के पुनर्क्रम के अलावा, σ को चक्रों के उत्पाद (शायद σ के चक्रों से असंबंधित) के रूप में लिखने का कोई तरीका नहीं है जिसकी कक्षाएं शिथिल हों. चक्र अंकन कम अद्वितीय है क्योंकि प्रत्येक चक्र अलग अलग तरीकों से लिखा जा सकता है, जैसा कि उपरोक्त उदाहरण में दिया गया है जहां (5 1 2) (1 2 5) जैसे चक्र को निरूपित करता है किन्तु (5 2 1) एक अलग क्रमपरिवर्तन को निरूपित करेगा).
0.5
802.957809
20231101.hi_194816_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय
आकार 1 की एक कक्षा (S में एक निश्चित बिंदु x) का तदनुरूपी चक्र नहीं है, चूंकि यह क्रमपरिवर्तन x और साथ ही S के हर अन्य तत्व को ठीक करेगा, दूसरे शब्दों में यह पहचान होगी, x से स्वतंत्र रूप में. यह संभव है चक्र अंकन में (x) शामिल करें ताकि σ बल दे कि σ x को तय करता है (और कॉम्बीनेटॉरिक्स में यह सम मानक है, जैसा कि चक्र और नियत बिंदुओं में वर्णित है), पर यह (समूह सैद्धांतिक)σ के अपघटन में कारक के अनुरूप नहीं है। अगर "चक्र" की अवधारणा में क्रमपरिवर्तन की पहचान शामिल करें, तो इससे शिथिल चक्रों में क्रमपरिवर्तन के अपघटन की अद्वितीयता (क्रम तक) नष्ट हो जाएगी. पहचान क्रमपरिवर्तन का शिथिल चक्रों में अपघटन खाली उत्पाद है; इसका चक्र अंकन खाली होगा, इसलिए इसकी बजाए e जैसी अंकन पद्धति इस्तेमाल की जाएगी.
0.5
802.957809
20231101.hi_194816_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%AF
क्रमचय
दो क्रमपरिवर्तन का उत्पाद कार्य के रूप में उनकी संरचना के रूप में परिभाषित है, दूसरे शब्दों में σ·π वह कार्य है जो सेट के किसी भी x तत्व का σ (π (x)) में चित्रण करता है। ध्यान दें कि कार्य का अनुप्रयोग लिखने के ढंग की वजह से सबसे दायां क्रमपरिवर्तन पहले तर्क पर लागू होता है। कुछ लेखक पहले सबसे बाएं कारक को लागू करना पसंद करते हैं, पर उसके लिए क्रमपरिवर्तन उनके तर्क की दायीं ओर लिखा जाना चाहिए, उदाहरणार्थ प्रतिपादक के रूप में, x पर लागू σ x σ लिखा जाता है; तो उत्पाद परिभाषित किया गया है x σ ·π =(x σ )π के द्वारा. हालांकि यह क्रमपरिवर्तन गुणा करने के लिए एक अलग नियम देता है; यह लेख वहां परिभाषा का उपयोग करता है जहां सबसे दाएं क्रमपरिवर्तन को पहले लागू किया जाता है।
0.5
802.957809
20231101.hi_248799_39
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE
स्पा
1930 के दशक के आखिर तक संयुक्त राज्य अमेरिका में 2000 गर्म या ठंडे स्प्रिंग्स स्वास्थ्य सैरगाह सक्रिय थे। 1950 के दशक तक यह संख्या बहुत कम हो गई और अगले दो दशकों में भी गिरावट जारी रही। हाल ही में, अमेरिका के स्पा में पारंपरिक स्नान गतिविधियों से अधिक आहार, व्यायाम या मनोरंजक कार्यक्रमों पर जोर दिया जाता था।
0.5
802.548835
20231101.hi_248799_40
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE
स्पा
हाल तक अमेरिका का सार्वजनिक स्नान उद्योग स्थिर बना रहा। फिर भी, यूरोप में, चिकित्सकीय स्नान हमेशा से बहुत लोकप्रिय रहे है और आज भी हैं। जापान के बारे में भी यही सच है, जहां परंपरागत गर्म झरने, जिसे ऑनसेन कहा जाता है, से नहाने के प्रति काफी लोग आकर्षित होते हैं।
0.5
802.548835
20231101.hi_248799_41
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE
स्पा
लेकिन अमेरिका में स्वास्थ्य और निरोग रहने पर ध्यान केंद्रित करने में वृद्धि के साथ इस तरह के उपचार लोकप्रिय होते जा रहे हैं।
0.5
802.548835
20231101.hi_248799_42
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE
स्पा
स्पा आमतौर पर सामान्य स्वास्थ्य के लिए कीचड़ स्नान प्रदान करते हैं या चिकित्सा की विविध स्थितियों के लिए उपयोगी होते हैं। इसे 'फैंगोथेरेपी' के नाम से भी जाना जाता है। विभिन्न तरह की औषधीय मिट्टी और सड़ी हुई सब्जियों के आसव का प्रयोग किया जाता है।
0.5
802.548835
20231101.hi_248799_43
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE
स्पा
स्पा - विभिन्न तरह की पेशेवर सेवाओं के जरिये समग्र सकुशलता को समर्पित स्पा-स्थल, जो मन, शरीर और आत्मा के नवीकरण को प्रोत्साहित करते हैं।
1
802.548835
20231101.hi_248799_44
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE
स्पा
आयुर्वेदिक स्पा, एक स्पा जिसमें सभी उपचार और उत्पाद प्राकृतिक होते हैं और ये अक्सर वैकल्पिक दवा के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं।
0.5
802.548835
20231101.hi_248799_45
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE
स्पा
क्लब स्पा, एक ऐसी सुविधा है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य है फिटनेस और जो एक दिन के उपयोग के आधार पर पेशेवर रूप से दी जाने वाली विविध स्पा सेवाएं प्रदान करता है।
0.5
802.548835
20231101.hi_248799_46
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE
स्पा
क्रूज जहाज स्पा, यह स्पा एक क्रूज जहाज पर सवारी के दौरान प्रदान की जाने वाली पेशेवर रूप से दी जाने वाली स्पा सेवाएं हैं, जिनमें फिटनेस और सकुशलता के घटकों और स्पा कुशन मेन्यू चयन की सुविधा होती है।
0.5
802.548835
20231101.hi_248799_47
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE
स्पा
दंत चिकित्सा स्पा, एक लाइसेंस प्राप्त दंत चिकित्सक के पर्यवेक्षण में दी जाने वाली सुविधा है, जो स्पा की सेवाओं के साथ परंपरागत दंत उपचार को जोड़ती है।
0.5
802.548835
20231101.hi_500428_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
अवतारवाद
पुराणों में अवतारवाद का हम विस्तृत तथा व्यापक वर्णन पाते हैं। इस कारण इस तत्त्व की उद्भावना पुराणों की देन मानना किसी भी तरह न्याय्य नहीं है। वेदों में हमें अवतारवाद का मौलिक तथा प्राचीनतम आधार उपलब्ध होता है। वेदों के अनुसार प्रजापति ने जीवों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि के कल्याण के लिए नाना रूपों को धारण किया। मत्स्यरूप धारण का संकेत मिलता है शतपथ ब्राह्मण में (२.८.१। १), कूर्म का शतपथ (७.५.१.५) तथा जैमिनीय ब्राह्मण (३। २७२) में, वराह का तैत्तिरीय संहिता (७.५.१.१) तथा शतपथ (१४.१.२.११) में नृसिंह का तैत्तिरीय आरण्यक में तथा वामन का तैत्तिरीय संहिता (२.१.३.१) में शब्दत: तथा ऋग्वेद में विष्णुओं में अर्थत: संकेत मिलता है। ऋग्वेद में त्रिविक्रम विष्णु को तीन डगों द्वारा समग्र विश्व के नापने का बहुश: श्रेय दिया गया है (एको विममे त्रिभिरित् पदेभि:-ऋग्वेद १.१५४.३)। आगे चलकर प्रजापति के स्थान पर जब विष्णु में इस प्रकार अवतारों के रूप, लीला तथा घटनावैचित्रय का वर्णन वेद के ऊपर ही बहुश: आश्रित है।
0.5
801.960781
20231101.hi_500428_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
अवतारवाद
भागवत के अनुसार सत्वनिधि हरि के अवतारों की गणना नहीं की जा सकती। जिस प्रकार न सूखनेवाले (अविदासी) तालाब से हजारों छोटी छोटी नदियाँ (कुल्या) निकलती हैं, उसी प्रकार अक्षरय्य सत्वाश्रय हरि से भी नाना अवतार उत्पन्न होते हैं-अवतारा हासंख्येया हरे: सत्वनिधेद्विजा:। यथाऽविदासिन: कुल्या: सरस: स्यु: सहस्रश:। पाँचरात्र मत में अवतार प्रधानत: चार प्रकार के होते हैं-व्यूह (संकर्षण, प्रद्युम्न तथा अनिरुद्ध), विभव, अंतर्यामी तथा अर्यावतार। विष्णु के अवतारों की संख्या २४ मानी जाती है (श्रीमद्भागवत २.६), परंतु दशावतार की कल्पना नितांत लोकप्रिय है जिनकी प्रख्यात संज्ञा इस प्रकार है-दो पानीवाले जीव (वनजौ, मत्स्य तथा कच्छप), दो जलथलचारी (वनजौ, वराह तथा नृसिंह), वामन (खर्व), दो राम (परशुराम, दाशरथि राम) श्रीकृष्ण, बुद्ध (सकृप:) तथा कल्कि (अकृप:)-
0.5
801.960781
20231101.hi_500428_7
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अवतारवाद
महाभारत में दशावतार में 'बुद्ध' को छोड़ दिया गया है और 'हँस' को अवतार मानकर संख्या की पूर्ति की गई है। भागवत के अनुसार 'बलराम' की दशावतार में गणना हें, श्रीमद्भागवत के अनुसार परमेश्वर प्रकृति और प्रकृतिजन्य कार्य का नियमन प्रवर्तनादि कार्य करते हैं और माया से मुक्त रहते हुए भी माया से संबद्ध प्रतीत होते हैं एवं सर्वदा चिच्छक्तितयुक्त होकर पुरुष कहलाते हैं जिनसे भिन्न भिन्न अवतारों की अभिव्यक्ति होती है। इस प्रकार अवतारों के भेद हैं--पुरुषावतार, गुणावतार, कल्पावतार, मन्वंतरावतार, युगावतार, स्व्ल्पावतार, लीलावतारआदि। कहीं कहीं आवेशावतार आदि की भी चर्चा मिलती है, जैसे परशुराम। इस प्रकार अवतारों की संख्या तथा संज्ञा में पर्याप्त विकास हुआ है। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अवतार वस्तुत: परमेश्वर का वह आविर्भाव है जिसमें वह किसी विशेष उद्देश्य को लेकर किसी विशेष रूप में, किसी विशेष देश और काल में, लोकों में अवतरण करता है।
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अवतारवाद
बौद्ध धर्म के महायानपंथ में अवतार की कल्पना दृढ़ मूल है। 'बोधिसत्व' कर्मफल की पूर्णता होने पर बुद्ध के रूप में अवतरित होते हैं तथा निर्वाण की प्राप्ति के अनंतर बुद्ध भी भविष्य में अवतार धारण करते हैं यह महायानियों की मान्यता है। बोधिसत्व तुषित नामक स्वर्ग में निवास करते हुए अपने कर्मफल की परिपक्वता की प्रतीक्षा करते हैं और उचित अवसर आने पर वह मानव जगत में अवतीर्ण होते हैं। थेरवादियों में यह मान्यता नहीं है। बौद्ध अवतारतत्व का पूर्ण निदर्शन हमें तिब्बत में दलाईलामा की कल्पना में उपलब्ध होता है। तिब्बत में दलाईलामा अवलोकितेश्वर बुद्ध के अवतार माने जाते हैं। तिब्बती परंपरा के अनुसार ग्रेदैन द्रुप (१४७३ ई.) नामक लामा ने इस कल्पना का प्रथम प्रादुर्भाव किया जिसके अनुसार दलाईलामा धार्मिक गुरु तथा राजा के रूप में प्रतिष्ठित किए गए। ऐतिहासिक दृष्टि से लोजंग-ग्या-मत्सो (१६१५-१६८२ ई.) नामक लामा ने ही इस परंपरा को जन्म दिया। तिब्बती लोगों का दृढ़ विश्वास है कि दलाईलामा के मरने पर उनकी आत्मा किसी बालक में प्रवेश करती है जो उस मठ के आसपास ही जन्म लेता है। इस में अवतार की कल्पना मान्य नहीं थी। चीनी लोगों का पहला राजा शंगती सदाचार और सद्गुण का आदर्श माना जाता था, परंतु उसके ऊपर देवत्व का आरोप कहीं भी नहीं मिलता।
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अवतारवाद
पारसी धर्म में अनेक सिद्धांत हिंदुओं और विशेषत: वैदिक आर्यों के समान हैं, परंतु यहाँ अवतार की कल्पना उपलब्ध नहीं है। पारसी धर्मानुयायियों का कथन है कि इस धर्म के प्रौढ़ प्रचारक या प्रतिष्ठापक जरथुस्त्र अहुरमज्द के कहीं भी अवतार नहीं माने गए हैं। तथापि ये लोग राजा को पवित्र तथा दैवी शक्ति से संपन्न मानते थे। 'ह्रेनारह' नामक अद्भूत तेज की सत्ता मान्य थी, जिसकाप निवास पीछे अर्दशिर राजा में तथा सस्नवंशी राजाओं में था, ऐसी कल्पना पारसी ग्रंथों में बहुश: उपलब्ध है। सामी (सेमेटिक) लोगों में भी अवतारवाद की कल्पना न्यूनाधिक रूप में विद्यमान है। इन लोगों में राजा भौतिक शक्ति का जिस प्रकार चूडांत निवास था उसी प्रकार वह दैवी शक्ति का पूर्ण प्रतीक माना जाता था। इसलिए राजा को देवता का अवतार मानना यहाँ स्वभावत: सिद्ध सिद्धांत माना जाता था। प्राचीन बाबुल (बेबिलोनिया) में हमें इस मान्यता का पूर्ण विकास दिखाई देता है। किश का राजा 'उरुमुश' अपने जीवनकाल में ही ईश्वर का अवतार माना जाता था। नरामसिन नामक राजा अपने में देवता का रक्त प्रवाहित मानात था इसलिए उसने अपने मस्तक पर सींग से युक्त चित्र अंकित करवा रखा था। वह 'अक्काद का देवता' नाम से विशेष प्रख्यात था।
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अवतारवाद
मिस्री मान्यता भी कुछ ऐसी ही थी। वहाँ के राजा 'फराऊन' नाम से विख्यात थे जिन्हें मिस्री लोग दैवी शक्ति से संपन्न मानते थे। मिस्रनिवासी यह भी मानते थे कि 'रा' नामक देवता रानी के साथ सहवास कर राजपुत्र को उत्पन्न करता है, इसीलिए वह अलौकिक शक्तिसंपन्न होता है। यहूदी भी ईश्वर के अवतार मानने के पक्ष में हैं। बाइबिल में स्पष्टत: उल्लेख है कि ईश्वर ही मनुष्य का रूप धारण करता है और इसके पर्याप्त उदाहरण भी वहाँ उपलब्ध होते हैं। यूनानियों में अवतार की कल्पना आर्यो के समान नहीं थी परंतु वीर पुरुष विभिन्न देवों के पुत्ररूप माने जाते थे। प्रख्यात योद्धा हरक्यूलीज ज्यूस का पुत्र माना जाता था, लेकिन देवता के मनुष्यरूप में पृथ्वी पर जन्म लेने की बात यूनान में मान्य नहीं थी।
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अवतारवाद
इसलाम के शिया संप्रदाय में अवतार के समान सिद्धांत का प्रचार है। शिया लोगों की यह मान्यता कि अली (मुहम्मद साहब के चचेरे भाई) तथा फ़ातिमा (मुहम्मद साहब की पुत्री) के वंशजों में ही धर्मगुरु (खलीफ़ा) बनने की योग्यता विद्यमान है, अवतार के पास तक पहुँचती है। 'इमा' की कल्पना में भी यह तथ्य जागरूक जा सकता है। वे मुहम्मद साहब के वंशज ही नहीं, प्रय्तुत उनमें दिव्य ज्योंति की भी सत्ता है और उनकी श्रेष्ठता का यही कारण है।
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अवतारवाद
आधारभूत विश्वास है कि परमेश्वर मनुष्य जाति के पापों का प्रायश्चित्त करने तथा मनुष्यों को मुक्ति देने के उद्देश्य से यीशु मसीह में अवतरित हुआ।
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अवतारवाद
बाइबिल के निरीक्षण से पता चलता है कि किस प्रकार यीशु के शिष्य उनके जीवनकाल में ही धीरे-धीरे उनके परमेश्वरत्व पर विश्वास करने लगे। इतिहास इसका साक्षी है कि ईसा के मरण के पश्चात् अर्थात् ईसाई धर्म के प्रारंभ से ही ईसा को पूर्ण रूप से ईश्वर तथा पूर्ण रूप से मनुष्य भी माना गया है। इस प्रारंभिक अवतारवादी विश्वास के सूस्रीकरण में उत्तरोत्तर स्पष्टता आती गई है। वास्तव में अवतारवाद का निरूपण विभिन्न-विभिन्न भ्रांत धारणाओं के विरोध से विकसित हुआ। उस विकास के सोपान निम्नलिखित हैं:
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चरित्रहीन
चरित्रहीन प्रेम की तलाश में भटकाव की कहानी है। यह भटकाव है हारान की पत्नी किरणमयी का। इस उपन्यास का शीर्षक किरणमयी पर ही आधारित है, लेकिन यही इसकी एकमात्र कथा नहीं है। वस्तुतः इसमें दो कथाएँ समान्तर चलती हैं - सतीश-सावित्री की कथा और किरणमयी की कथा। उपेन्द्र दोनों कथाओं को जोड़ने वाली कड़ी है, वह सतीश और हारान बाबू का मित्र है। सतीश पढ़ाई के लिए कलकता आता है तो उपेन्द्र बीमार हारान बाबू की देखभाल के लिए। उपेन्द्र के इर्द-गिर्द दोनों कथाएँ चलती हैं। वह एक चरित्रवान पुरुष है। उपेन्द्र की मृत्यु और किरणमयी के पागल हो जाने के साथ इस उपन्यास का अन्त हो जाता है। सतीश-सरोजनी का विवाह निश्चित हो जाता है और दिवाकर को सावित्री के हाथ सौंप दिया जाता है। उपेन्द्र दिवाकर का विवाह अपनी पत्नी की बहन से करने की बात भी सावित्री को कह कर जाता है। सावित्री त्याग की मूर्ति की रूप में स्थापित होती है।
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चरित्रहीन
किरणमयी की कथा ४५ अंक के इस उपन्यास के ११वें अंक से आरम्भ होती है। किरणमयी, हारान की पत्नी है जो बीमार रहता है। किरणमयी अपने पति से संतुष्ट नहीं क्योंकि उसका कहना है कि पति से उसके सम्बन्ध महज गुरु-शिष्य के हैं, इसीलिए वह हारान का इलाज करने आने वाले डॉक्टर अनंगमोहन से सम्बन्ध बना लेती है, लेकिन बाद में उसे ठुकराकर उपेन्द्र की तरफ झुकती है। उपेन्द्र अपने एकनिष्ठ पत्नी प्रेम के कारण उसके प्रेम निवेदन को ठुकरा देता है, लेकिन वह अपने प्रिय दिवाकर को पढाई के लिए उसके पास इस उम्मीद से छोड़ जाता है कि वह उसका ध्यान रखेगी, लेकिन वह उसी पर डोरे डाल लेती है और उसे भगाकर आराकान ले जाती है, लेकिन उनके सम्बन्ध स्थायी नहीं रह पाते।
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चरित्रहीन
सतीश-सावित्री की कथा उपन्यास के शरू से ही चलती है। सावित्री एक विधवा है। वह एक मेस में नौकरी करती है जहाँ सतीश रहता है। सतीश उसे प्रेम करता है। वह भी सतीश से प्रेम करती है, लेकिन इस उद्देश्य से सतीश को दूर हटाती है कि विधवा का विवाह समाज में मान्य नहीं। सतीश उसे समझ नहीं पाता और वह उसे ऐसी चरित्रहीन औरत समझ लेता है जो किसी दूसरे के पास चली गई हो। सावित्री के कारण ही उपेन्द्र और सतीश में मनमुटाव होता है। उपेन्द्र सावित्री को उस दिन सतीश के घर पर देख लेता है जिस दिन वह सतीश से पैसे उधार लेने आती है। इससे आहत होकर सतीश एकान्तवास में चला जाता है। यहाँ उसका पता उपेन्द्र के दोस्त ज्योतिष की बहन सरोजिनी को चल जाता है। उपेन्द्र के माध्यम से ही वह सतीश को जानती है और उस पर मोहित भी है। सरोजिनी को शशांकमोहन नामक युवक भी चाहता है लेकिन सरोजिनी की माता सतीश को ही दामाद बनाना चाहती है। शशांकमोहन सतीश-सावित्री की कथा ज्योतिष को सुनाता है जिससे सरोजिनी के विवाह की बात अटक जाती है। सतीश पिता की मृत्यु के बाद अपने पैतृक गाँव चला जाता है और एक तांत्रिक के पीछे लगकर नशा करने लगता है और बीमार पड जाता है। सतीश का नौकर सावित्री को ढूंढ लाता है। सावित्री तांत्रिक को भगाकर सतीश को सम्भालती है। वह उपेन्द्र के नाम भी पत्र लिखती है। उपेन्द्र भी सावित्री के बारे में जान चुका होता है। वह सरोजनी को लेकर गाँव पहुंचता है। उपेन्द्र सावित्री को अपनी बहन बना लेता है और सतीश-सरोजनी का विवाह निश्चित कर दिया जाता है। सतीश आराकान जाकर दिवाकर और किरणमयी को लेकर आता है। किरणमयी उपेन्द्र के सामने नहीं आना चाहती, इसलिए वह सतीश के घर नहीं आती, लेकिन बाद में पागलावस्था में सतीश के घर पहुँच जाती है। उपेन्द्र दिवाकर का भार सावित्री को सौंप सतीश, सावित्री, दिवाकर और सरोजनी की उपस्थिति में प्राण त्याग देता है। जिस समय उपेन्द्र की मृत्यु होती है उस समय किरणमयी पास के कमरे में गहरी नींद में सो रही होती है।
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चरित्रहीन
इस उपन्यास में बांगला समाज और तत्कालीन परिस्थितियों का भी सुन्दर चित्रण है। बांगला समाज पाश्चात्य दृष्टिकोण को लेकर दो भागों में बंटा हुआ है। ज्योतिष के माता-पिता में इसी बात को लेकर अलगाव हो जाता है कि ज्योतिष का पिता बैरिस्टर बनने के लिए विदेश चला जाता है। ज्योतिष, शशांकमोहन और सरोजनी पाश्चात्य ख्यालों के हैं लेकिन ज्योतिष की माता पुराने ख्यालों की होने के कारण ही शशांक की बजाए सतीश को दामाद के रूप में चुनती है। बीमारियों का चिकित्सा नहीं हो पाती। सुरबाला और उपेन्द्र का निधन इसी कारण होता है। गाँव में बीमारियाँ महामारी के रूप में फैलती हैं, इसलिए जब सतीश गाँव जाने का फैसला लेता है तो उसका नौकर डर जाता है। सतीश के बीमार हो जाने पर यह डर सच साबित होता प्रतीत होता है।
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चरित्रहीन
इस उपन्यास में बीच-बीच में विद्वता भरा बोझिल वाद-विवाद भी है। सत्य क्या है, ईश्वर है या नहीं, वेद-पुराण सच हैं या झूठ, अर्जुन तीर से भीष्म को पानी पिलाता है या नहीं और प्रेम के विषय को लेकर लम्बे वाद-विवाद होते हैं। ये वाद-विवाद करती है किरणमयी। इस प्रकार किरणमयी एक तरफ विदुषी है तो दूसरी तरफ लम्पट औरत जो अनंगमोहन, उपेन्द्र और दिवाकर को वासना की दृष्टि से देखती है और अनंगमोहन और दिवाकर से सम्बन्ध भी स्थापित करती है।
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चरित्रहीन
इस उपन्यास में चार नारी चरित्र हैं - साभित्रीया (सावित्री), किरणमयि, सुरबाला एवं सरोजिनी। इसमें से प्रथम दो प्रमुख चरित्र हैं जबकि बाद वाले दो चरित्र गौण हैं। सावित्री एक ब्राह्मण परिवार में जन्मी स्त्री है किन्तु अपने ही एक सम्बन्धी द्वारा छल किए जाने से वह पति द्वारा त्यक्त होकर एक नौकरानी का कार्य करके जीविका चलाती है। उसका चरित्र विशुद्ध है और वह सतीश के प्रति अनुरक्त है। सुबारला उपेन्द्रनाथ की पत्नी है। वह तरुण, शुद्धचरित्र, धार्मिक ग्रन्थों में अन्धश्रद्धायुक्त तथा चित्ताकर्षक है। सरोजिनी पाश्चात्य शैली में शिक्षित, प्रगतिशील चिन्तन वाली महिला है किन्तु पारिवारिक परिस्थितियों के चलते वह बलपूर्बक माँ बना दी गयी थी। किरणमयी, इस उपन्यास की सबसे आकर्षक चरित्र है। वह तरुण एवं अत्यन्त सुन्दर, अत्यन्त बुद्धिमान एबं युक्तियुक्त महिला है। सावित्री और किरणमयि पर चरित्रहीनता का आरोप लगता है। किन्तु इस उपन्यास की सबसे रोचक बात यह है कि चारों चरित्रों के बारे में जैसी धारणा बनती है उससे वे पूर्णतः भिन्न हैं। चार भिन्न प्रकार के स्त्री चरित्रों को लेकर बुने गए इस ताने-बाने में शरत के विचार बड़ी तेजी से एक छोर से दूसरे छोर तक जाते हैं लेकिन जो एक बात विशेष प्रभावित करती है वो ये कि शरत के लेखन ने सभी स्त्री पात्रो की गरिमा को हर हाल में बनाए रखा है।
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चरित्रहीन
उपेन्द्रनाथ जो कि पेशे से वकील हैं। सतीश उपेन्द्र का मित्र है जिसे उपेन्द्र अपने छोटे भाई के समान समझता है। दिवाकर, उपेन्द्र का ममेरा भाई है जो कि उपेन्द्र के घर में ही रहता है। किरणमयी, उपेन्द्र के मित्र हारान की पत्नी है।
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चरित्रहीन
सतीश और सावित्री के बीच एक विचित्र सम्बन्ध है जहाँ कोई भी एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का साहस नहीं करता। आगे चलकर लुका-छिपी का यह खेल एक विनाशकारी प्रति-प्रभाव पैदा करता है और उन दोनों को चरित्रहीन होने का दोषी ठहराया जाता है। सावित्री कोलकाता छोड़ने और वाराणसी की शरण लेने के लिए मजबूर हो जाती है। उसे खोने के बाद सतीश को असहनीय पीड़ा होती है। इस बिन्दु पर किरणमयी और सरोजिनी उसके जीवन में प्रवेश करती हैं। किरणमयी धीरे-धीरे उसके साथ गहरे प्यार में पड़ जाती है। सतीश और सरोजिनी के सम्बन्ध में स्पष्टता नहीं हैं।
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चरित्रहीन
उपेन्द्र शुरू में किरणमयी की मदद करता है, लेकिन दिवाकर के साथ किरणमयी के सम्बन्धों के बारे में सबसे बुरा सोचता है। दिबाकर अभी अपनी किशोरावस्था में है और किरणमयी की चालों को देखने में नाकाम रहता है। वह एक अनाथ बालक है जो इस बात से अत्यन्त प्रसन्न है कि किरणमयी उसे अपने भाई के समान मानती है। वह पढ़ाई छोड़ देता है । धीरे-धीरे किरणमयी की अलौकिक सुन्दरता से आकर्षित होता है और उनके बीच प्रेम की प्रगाढ़ मनोदशा विकसित होती है। अपनी अपरिपक्व और अनौपचारिक समझ के लिए उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है। वह किरणमयी के साथ अपने सम्बन्ध के बाद पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना कार्य करता है।
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मियामी
चक्रवाती मौसम आधिकारिक तौर पर 1 जून से लेकर 30 नवम्बर तक रहता है, हालांकि इन तिथियों के बाद भी चक्रवात की संभावना बनी रहती है। मियामी में चक्रवात की सबसे अधिक संभावना मध्य-अगस्त से लेकर सितम्बर के अंत तक केप वर्डे मौसम के दौरान रहती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80
मियामी
मियामी कई अलग-अलग खण्डों, मोटे तौर पर उत्तर, दक्षिण, पश्चिम और डाउनटाउन में विभाजित है। शहर का दिल है डाउनटाउन मियामी और तकनीकी रूप से यह शहर के पूर्वी हिस्से में स्थित है। इस क्षेत्र में ब्रिकेल, वर्जीनिया की, वाटसन द्वीप और पोर्ट ऑफ मियामी शामिल हैं। डाउनटाउन दक्षिण फ्लोरिडा का केन्द्रीय व्यावसायिक जिला है और फ्लोरिडा का सबसे बड़ा और सबसे अधिक प्रभावशाली व्यावसायिक जिला है। डाउनटाउन में ब्रिकेल एवेन्यू के निकट अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय बैंकों का सबसे बड़ा जमावड़ा है। डाउनटाउन कई बड़े बैंकों, अदालती परिसरों, वित्तीय मुख्यालयों, सांस्कृतिक एवं पर्यटन संबंधी आकर्षणों, विद्यालयों, पार्कों और एक बड़ी आवासीय आबादी का प्रमुख ठिकाना है। डाउनटाउन के पूरब में, बिस्केन की खाड़ी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक साउथ बीच स्थित है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80
मियामी
मियामी के दक्षिणी हिस्से में कोरल वे, सड़कें और कोकोनट ग्रोव शामिल हैं। कोरल वे 1922 में बना पड़ोस का एक ऐतिहासिक आवासीय क्षेत्र है जो डाउनटाउन को कोरल गैबल्स से जोड़ता है और यहाँ कई पुराने आवास एवं पेड़ों की कतारों वाली सड़कें मौजूद हैं। कोकोनट ग्रोव की स्थापना 1825 में की गयी थी और यहाँ डिनर की में मियामी का सिटी हॉल, कोकोनट ग्रोव प्लेहाउस, कोकोवाक, अनेकों नाईटक्लब, बार, रेस्ताराएं और बोहेमियन दुकानें और इसी प्रकार के अन्य आकर्षण मौजूद हैं जो स्थानीय कॉलेज के विद्यार्थियों में काफी लोकप्रिय हैं। यह संकीर्ण, घुमावदार सड़कों और पेड़ों के एक भारी झुण्ड से घिरा एक ऐतिहासिक पड़ोस है। कोकोनट ग्रोव के अंदर कई पार्क और उद्यान जैसे कि विला विजकाया, द कैम्पोंग, द बार्नेकल हिस्टोरिक स्टेट पार्क मौजूद हैं और यह कोकोनट ग्रोव कन्वेंशन सेंटर के साथ-साथ देश के कई बहुप्रतिष्ठित निजी विद्यालयों और अनेकों ऐतिहासिक आवासों एवं एस्टेट्स का ठिकाना भी है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80
मियामी
मियामी के पश्चिम में लिटिल हवाना, वेस्ट फ्लैगलर और फ्लैगामी इलाके शामिल हैं और यहाँ शहर की पारंपरिक आप्रवासी आबादी का निवास है। हालांकि एक समय में यहाँ ज्यादातर यहूदी लोग रहते थे, मगर आज पश्चिमी मियामी में ज्यादातर मध्य अमेरिका और क्यूबा के आप्रवासियों का ठिकाना है, जबकि आलापाता के मध्य पश्चिमी इलाके में कई जातियों का एक बहुसांस्कृतिक समुदाय है।
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मियामी
मियामी के उत्तरी दिशा में मिडटाउन स्थित है, जो एक ऐसा जिला है जहाँ कई वेस्ट इन्डियनों, स्पेनियों, बोहेमियाईयों, आर्टिस्टों और गोरे लोगों की विविधतापूर्ण संस्कृतियों का एक अनूठा संगम है। एजवाटर और वेनवुड मिडटाउन के पड़ोसी इलाके हैं जो अधिकांशतः बहुमंजिले आवासीय टावरों से बने हैं और इनमें प्रदर्शनी कला के एड्रियेन आर्ष्ट केंद्र का ठिकाना है। यहाँ के अपेक्षाकृत अधिक अमीर निवासी आम तौर पर उत्तर-पूर्वी हिस्से, मिडटाउन, डिजाइन डिस्ट्रिक्ट और अपर ईस्ट साइड में, 1920 के दशक के बाद बने आवासों में और 1950 के दशक में मियामी में जन्मी एक वास्तुकला शैली, मीमो हिस्टोरिक डिस्ट्रिक्ट में बने घरों में रहते हैं। मियामी के उत्तरी हिस्से में भी उल्लेखनीय अफ्रीकी मूल के अमेरिकी और कैरेबियाई आप्रवासी समुदायों जैसे कि लिटिल हैती, ओवरटाउन (लिरिक थियेटर का ठिकाना) और लिबर्टी सिटी का निवास है।
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मियामी
मियामी स्प्रिंग्स, ब्राउन्सविले, वेस्ट लिटिल रिवर, एल पोर्टल, मियामी शोर्स, नॉर्थ मियामी, नॉर्थ मियामी बीच, एवेंच्यूरा
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मियामी
मियामी कई मनोरंजन स्थलों, थियेटरों, संग्रहालयों, उद्यानों एवं प्रदर्शनी कला केन्द्रों का गढ़ है। मियामी कला के पटल पर सबसे नया नाम एड्रियेन आर्ष्ट सेंटर ऑफ द परफॉर्मिंग आर्ट्स का है, जो न्युयॉर्क सिटी के लिंकन सेंटर के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका का दूसरा-सबसे बड़ा प्रदर्शनी कला केंद्र है और यह फ्लोरिडा ग्रैंड ओपेरा का ठिकाना है। इसके अंदर केंद्र का सबसे बड़ा आयोजन स्थल जिफ़ बैलेट ओपेरा हाउस, नाईट कन्सर्ट हॉल, कार्निवल स्टूडियो थियेटर और पीकॉक रिहर्सल स्टूडियो मौजूद हैं। यह केंद्र दुनिया भर से बड़े पैमाने पर ओपेराओं, बैले नृत्यों, कंसर्ट्स और संगीत कार्यक्रमों को अपनी ओर आकर्षित करता है और यह फ्लोरिडा का विशालतम प्रदर्शनी कला केंद्र है। मियामी के अन्य प्रदर्शनी कला आयोजन स्थलों में शामिल हैं, गुस्मैन सेंटर फॉर द परफ़ॉरमिंग आर्ट्स, कोकोनट ग्रोव प्ले हाउस, कॉलोनी थियेटर, लिंकन थियेटर, न्यु वर्ल्ड सिम्फोनी हाउस, मिरैकल थियेटर में एक्टर्स प्ले हाउस, जैकी ग्लीसन थियेटर, मैनुएल एयरटाइम थियेटर, रिंग थियेटर, प्लेग्राउंड थियेटर, वार्थियेम परफ़ॉरमिंग आर्ट्स सेंटर, फेयर एक्सपो सेंटर और आउटडोर संगीत आयोजनों के लिए बेफ्रंट पार्क एम्फीथियेटर.
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मियामी
यह शहर कई संग्रहालयों का भी केंद्र है, जिनमें से कई डाउनटाउन में स्थित हैं। इनमें शामिल हैं, बास संग्रहालय, फ्रॉस्ट कला संग्रहालय दक्षिणी फ्लोरिडा का ऐतिहासिक संग्रहालय, फ्लोरिडा का यहूदी संग्रहालय, लोव कला संग्रहालय, मियामी कला संग्रहालय, मियामी बाल संग्रहालय, मियामी विज्ञान संग्रहालय, समकालीन कला संग्रहालय, विज़काया संग्रहालय और बाग़, वुल्फसोनियन-एफआईयू (FIU) संग्रहालय और मुख्य मियामी पुस्तकालय का केंद्र मियामी सांस्कृतिक केंद्र.
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मियामी
मियामी एक प्रमुख फैशन केन्द्र भी है, जहाँ दुनिया भर के मॉडलों और कुछ सर्वश्रेष्ठ मॉडलिंग एजेंसियों का भी ठिकाना है। मियामी कई फैशन शो एवं कार्यक्रमों का आयोजन स्थल भी है, जिनमें शामिल हैं वार्षिक मियामी फैशन वीक और वेनवुड आर्ट डिस्ट्रिक्ट में आयोजित होनेवाला मियामी मर्सिडीज-बेंज फैशन वीक. मियामी दुनिया की सबसे बड़ी कला प्रदर्शनियों का केंद्र भी है, जहाँ आर्ट बैसल मियामी बीच में "ओलंपिक्स ऑफ आर्ट्स" को डब किया गया था। यह आयोजन प्रतिवर्ष दिसंबर में होता है और दुनिया भर से हज़ारों दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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बोहेमिया
बोहेमिया कैलिफोर्निया से एक पाकिस्तानी अमेरिकी रैपर और संगीत निर्माता है। इनके द्वारा कई गानो में अपनी रैप आवाज दी गई है।
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बोहेमिया
2000 की शुरुआत में वह ऑकलैंड में अपने चचेरे भाई में शामिल होने के लिए गए, जो एक वेस्ट ऑकलैंड रिकॉर्डिंग स्टूडियो में काम कर रहे थे, और उन्होंने उन्हें Sha One (सेठ एग्रेस) नामक एक युवा हिप-हॉप निर्माता से मिलवाया। यह पता चलता है कि दोनों ने संगीत में गहरी रुचि साझा की, उन्होंने अपना रिकॉर्ड लेबल बनाने की योजना बनाई, जिसे बाद में उन्होंने "द आउटफिट एंटरटेनमेंट" कहा। शा ने बोहेमिया को पंजाबी में जो कुछ लिखा था, उसे सुनकर उन्होंने उसे अपनी एक बीट पर रैप करने के लिए कहा। अगले कुछ महीनों में, उन्होंने गीतों की एक लाइब्रेरी लिखी। यह उनके डेब्यू एल्बम विच परदेसन डे (इन द फॉरेन लैंड) के लिए शस्त्रागार बन जाएगा - एक देसी नौजवान के रूप में उनके जीवन की एक आत्मकथात्मक कहानी जो अमेरिका की सड़कों पर अपना रही है, जिसे उन्होंने और शा वन ने मिलकर बनाया था। उनका पहला एकल "शा ते रा" एक संगीत वीडियो के रूप में जारी किया गया था, लेकिन गीत स्वयं विच परदेसां दे पर शामिल नहीं किया गया था।
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बोहेमिया
निम्नलिखित एल्बम, पेसा नशा प्यार [पैसा, नशा, प्यार] एक प्रमुख लेबल द्वारा जारी पहला पूर्ण लंबाई पंजाबी रैप एल्बम बन गया। यह शा वन और बोहेमिया द्वारा उनके डाउनटाउन ओकलैंड स्टूडियो में रिकॉर्ड और निर्मित किया गया था। लगभग दो साल तक अपनी आवाज़ और शैली को पूरा करने के बाद, बोहेमिया के पंजाबी गायन, और शा वन के अंग्रेजी हुक का एक सहज संलयन, एल्बम आखिरकार जारी किया गया। बाद में उन्होंने म्यूजिक लेबल यूनिवर्सल म्यूजिक ग्रुप के साथ एक मल्टी-रिकॉर्ड डील साइन की। 2006 में, पेसा नशा प्यार मैक्सिम के शीर्ष 10 डाउनलोड पर था, और प्लैनेट एम चार्ट इंडिया पर नंबर 3 पर था। उनका पहला एल्बम विच परदेसन डी बीबीसी यूके के शीर्ष दस एल्बमों में नामांकित हुआ। उनके तीसरे एल्बम डा रैप स्टार को यूके एशियन म्यूजिक अवार्ड्स और पीटीसी पंजाबी म्यूजिक अवार्ड्स में चार नामांकन मिले। यह कई हफ्तों के प्लैनेट एम चार्ट पर नंबर 1 पर रहा।
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बोहेमिया
उन्होंने अक्षय कुमार और दीपिका पादुकोण के साथ फिल्म में दिखने के लिए वार्नर ब्रदर्स की फिल्म चांदनी चौक टू चाइना का टाइटल ट्रैक किया। कुछ महीनों बाद उन्होंने एक और अक्षय कुमार की फिल्म, 8 x 10 तश्वीर का टाइटल ट्रैक किया। 2011 में, उन्होंने अपने पहले हॉलीवुड प्रोडक्शन ब्रेकवे के लिए अक्षय कुमार को एक गीत दिया।
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बोहेमिया
मई 2012 में, सोनी म्यूजिक इंडिया ने बोहेमिया पर हस्ताक्षर किए। एसोसिएशन के हिस्से के रूप में, सोनी म्यूज़िक ने अपने म्यूज़िक एल्बम, लॉन्च और शो का प्रबंधन कार्यक्रम के तहत किया।
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बोहेमिया
सितंबर 2012 में उन्होंने अपना चौथा एल्बम थाउज़ंड विचार जारी किया। 2013 में, इसने पीटीसी पंजाबी म्यूजिक अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ गैर-निवासी पंजाबी एल्बम पुरस्कार जीता। कोक स्टूडियो सेशंस में वे पहले रैप कलाकार थे, जो अपने पांचवें सीज़न में दिखाई दिए, जहाँ उन्होंने तीन गाने प्रस्तुत किए। बोहेमिया ने सोनू कक्कड़ और जमैका के अमेरिकी कलाकार सीन किंग्स्टन के साथ सहयोग भी दर्ज किया है। [१ recorded]
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बोहेमिया
2015 में, बोहेमिया ने अपना स्वयं का संगीत लेबल काली डेनाली संगीत लॉन्च किया। बोहेमिया न्यूयॉर्क में XXL पत्रिका में दिखाई दिया।
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बोहेमिया
26 जुलाई 2018 को, उनके आगामी एल्बम स्कल एंड बोन्स: वॉल्यूम 2 ​​का पहला एकल "सैंडेसा" रिलीज़ किया गया, जो कि उनके अप्रकाशित एकल में से एक का रीमिक्स संस्करण था। 27 नवंबर 2018 को, बोहेमिया ने अपने एल्बम स्कल एंड बोन्स: वॉल्यूम 2 के लिए पहला मूल सिंगल "कोई फ़ार नहीं" रिलीज़ किया। एक साक्षात्कार में बोहेमिया ने कहा कि वह अपने ब्रांड नए एल्बम स्कल एंड बोन्स वॉल्यूम 2 ​​के साथ वापस आ रहे हैं जो 2019 में अपने स्वयं के लेबल, काली डेनली संगीत पर रिलीज़ होने के लिए निर्धारित है, और इस पर कई विशेष कलाकार हैं।
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बोहेमिया
2018 के अंत में बोहेमिया भारत के दौरे पर गए, जहाँ उन्होंने चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई और राजस्थान में प्रदर्शन किया। वह No.1 यारियन विथ ऑल और सलीम मर्चेंट पर एक एपिसोड में दिखाई दिए।
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सारंगपुर
सारंगपुर (Sarangpur) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के राजगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह काली सिन्ध नदी के तट पर बसा हुआ है और इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी है।
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सारंगपुर
यह शहर किसी समय में माण्डु कि राजधानी हुआ करता था। यहाँ पर रानी रूपमती की कब्र भी है। यह माण्डु के शासक बाजबहादुर कि पत्नी थी।
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सारंगपुर
प्राचीन श्रीराम मंदिर- सारंगपुर बहुत ही प्राचीन नगरी है. यहां पर बहुत सारे पुराने मंदिर भी है. जानकारी एवं विश्वास के अनुसार सबसे प्राचीन मंदिर राम मंदिर है. कपिलेश्वर महादेव मंदिर के सामने छोटा बजरंगबली का मंदिर है. वहीं से हम बांध की विपरीत दिशा में चलना प्रारंभ करेंगे. अभी वहां पर गौशाला बन गई है. नदी किनारे पगडंडी पर चलकर या बाइक से लगभग आधा किलोमीटर बाद घनी झाड़ियों में एक खंडहर दिखाई देता है . खंडहर के समीप जाने पर हमें वहां पर प्राचीन मंदिर के अवशेष मिलते हैं. इस मंदिर की जानकारी बहुत कम लोगों को है क्योंकि यहां पर मूर्ति भी नहीं है लेकिन मूर्ति स्थान है. मंदिर की छत भी क्षतिग्रस्त दिखाई देती थी. वह मंदिर किसने बनाया कब बनाया इसकी किसी को जानकारी नहीं है किंतु देखने पर वह 500 वर्ष से अधिक पुराना दिखाई देता है. यह ईट का बना हुआ है. देखने पर राजपूत शैली भी दिखाई देती है. मंदिर छोटा भी है. मंदिर का गर्भ ग्रह छोटा ही है. खंडहर के अंदर जाना बहुत रिस्की है. पुराने लोगों ने बताया कि यहां पर राम मंदिर था. देखने पर भी ऐसा प्रतीत होता है क्योंकि मूर्ति का सिंहासन मैं राम जानकी एवं लक्ष्मण की मूर्ति रखने का पर्याप्त स्थान है.
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सारंगपुर
पुराना कालीसिंध नदी का पुल -सारंगपुर में कालीसिंध नदी पर पुराना पुल 1933 में बनकर तैयार हुआ. इसका निर्माण वर्ष भी लिखा हुआ है. इसके पूर्व वहां पर रपट हुआ करती थी जोकि पुराने बांध के पास में दिखाई देती है. सारंगपुर में जल यातायात के रूप में नाव का उपयोग किया जाता हो ऐसा पुराने लोग नहीं बताते है. उस दौर में अंग्रेजों द्वारा कई स्थलों पर अस्थाई लकड़ी के पुल बनाएं थे किंतु सारंगपुर में इस प्रकार का पुल का उल्लेख नहीं है. उस दौर में एक गलत परंपरा भी थी जिसमें पुल निर्माण के पूर्व छोटे बच्चे की बलि दी जाती थी. सारंगपुर में पुराने लोग इस बात को स्वीकार करते थे किंतु इसका कोई सबूत नहीं है. वर्ष 1940 के आसपास जब अंग्रेजों की सेना सारंगपुर से गुजरती थी तो लोग उन्हें देखते थे. यह पुल सकरा है. एक बार मैं बस या ट्रक ही गुजर सकते हैं. इसके दोनों और जाली लगाई गई थी जिसे बारिश में हटा लिया जाता था. लगातार बारिश में जब पुल के ऊपर पानी आ जाता था तो पूरा गांव उसे देखने के लिए जाता था. पिछले साल बारिश में पुल क्षतिग्रस्त हो गया था.
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