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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80
ब्लैकबेरी
ये उपकरण कुछ कारोबारियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं, जहां वे मुख्य रूप से अपने घुमंतू कर्मचारियों से ई-मेल के जरिए संपर्क बनाया करते हैं। किसी कंपनी के सिस्टम में ब्लैकबेरी को पूरी तरह एकीकृत करने के लिए या तो माइक्रोसॉफ्ट एक्सचेंज, लोटस नोट्स या नोवेल ग्रुपवाइज ईमेल सर्वर अनुप्रयोग के साथ ब्लैकबेरी एंटरप्राइज सर्वर (BES) की स्थापना की जरूरत है।
0.5
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ब्लैकबेरी
ब्लैकबेरी दुनिया का दूसरा सबसे लोकप्रिय स्मार्टफ़ोन मंच है, जिसने Q2, 2009 में दुनिया भर में स्मार्टफ़ोन की बिक्री के 21% पर कब्जा जमाया. 30 मई 2009 को, रिम ने घोषित किया कि ब्लैकबेरी ग्राहकों की संख्या लगभग 28.5 मिलियन तक पहुंच गयी है।
0.5
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ब्लैकबेरी
RIM ब्लैकबेरी के लिए मालिकाना बहुद्देशीय ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) मुहैया कराता है, जिससे उपकरणों के विशिष्ट इनपुट उपकरणों का भारी इस्तेमाल करना संभव होता है, खासकर स्क्रोल व्हील (1999–2006) या हाल ही के ट्रैकबॉल (12 सितम्बर 2006 से) और ट्रैकपैड (सितम्बर 2009 से) के मामले में. OS जावा MIDP 1.0 और WAP 1.2 को सहायता प्रदान करता है। पिछले संस्करण माइक्रोसॉफ्ट एक्सचेंज सर्वर के ई-मेल और कैलेंडर के साथ और लोटस डोमिनो के ई-मेल के साथ भी, वायरलेस तुल्यकालिता की अनुमति देते रहे. वर्तमान OS4 MIDP2.0 का एक सबसेट प्रदान करता है और संपूर्ण वायरलेस सक्रियण तथा एक्सचेंज के ई-मेल, कैलेंडर, कार्य, नोट्स और संपर्कों के साथ तुल्यकालिता की अनुमति देता है और नोवेल ग्रुपवाइज और लोटस नोट्स के लिए सहायता करता है।
1
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ब्लैकबेरी
तीसरे-पक्ष वाला डेवलपर्स इन APIs और ब्लैकबेरी के मालिकाना के APIs का भी इस्तेमाल करके सॉफ्टवेयर लेखन कर सकता है, लेकिन कुछ प्रतिबंधित कार्यात्मकता का उपयोग किसी अनुप्रयोग के लिए करने से पहले जरूरी है कि डिजिटल हस्ताक्षर किया जाय, ताकि RIM के डेवलपर खाते में यह जुड़ सके. यह हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया आवेदक को लेखकत्व की गारंटी देती है, लेकिन गुणवत्ता या कोड की सुरक्षा की गारंटी नहीं देती.
0.5
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ब्लैकबेरी
आरंभिक ब्लैकबेरी उपकरणों में इंटेल 80386 आधारित प्रोसेसर का उपयोग होता था। नवीनतम ब्लैकबेरी 9000 श्रृंखला इंटेल Xस्केल 624 मेगाहर्ट्ज सीपीयू से लैस है, जो इसे अब तक का सबसे तेज ब्लैकबेरी बनाता है। पहले के ब्लैकबेरी 8000 श्रृंखला के स्मार्टफ़ोन, जैसे कि 8700 और पर्ल 312 मेगाहर्ट्ज ARM Xस्केल ARMv5TE PXA900 पर आधारित हैं। ब्लैकबेरी 8707 एक अपवाद है जो 80 मेगाहर्टज क्वालकोम्म 3250 चिपसेट पर आधारित है, ऐसा इसलिए कि ARM Xस्केल ARMv5TE PXA900 चिपसेट 3 जी नेटवर्क का समर्थन नहीं करता. ब्लैकबेरी 8707 में 80 मेगाहर्टज प्रोसेसर दरअसल डाउनलोड को अक्सर धीमा बना देता था और 8700 के EDGE नेटवर्क्स की तुलना में 3G वेबपेजों को वापस कर देता.
0.5
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ब्लैकबेरी
ब्लैकबेरी से निकाला गया डेटा एक मेजबान कंप्यूटर में IPD के नाम से जाने जाने वाले एक ब्लैकबेरी-विशेष फॉर्मेट की एक अकेली फाइल में संग्रहित किये जाते हैं।
0.5
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ब्लैकबेरी
"ब्लैकबेरी एंटरप्राइज सर्वर" (BES) नामक एक सॉफ्टवेयर पैकेज के जरिए ब्लैकबेरी फोन को एक संगठन के ईमेल सिस्टम में एकीकृत किया गया है। BES के संस्करण माइक्रोसॉफ्ट एक्सचेंज, लोटस डोमिनो और नोवेल ग्रुपवाइज के लिए उपलब्ध हैं। जबकि निजी उपयोगकर्ता वायरलेस प्रदाता की ई-मेल सेवा का उपयोग BES को इंस्टाल किये बगैर करने में सक्षम हो सकते हैं, एकाधिक उपयोगकर्ताओं वाले संगठन आमतौर पर अपने नेटवर्क पर BES चलाते हैं। कुछ अन्य कंपनियां BES द्वारा दिए गए समाधानों को उपलब्ध कराती हैं। हरेक ब्लैकबेरी की एक पहचान होती है, जो ब्लैकबेरी पिन (PIN) कहलाती है, जिसका इस्तेमाल BES उपकरण की पहचान के लिए होता है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%98%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AF
दीघनिकाय
दीघनिकाय (संस्कृत:दीर्घनिकाय) बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक के सुत्तपिटक का प्रथम निकाय है। दीघनिकाय में कुल ३४ सुत्त (सूत्र) है। यह लम्बे सूत्रों का संकलन है। इन सुत्रों के आकार दीर्घ (लम्बा) हैं इसी लिए इस निकाय को दीघनिकाय (पालि दीघ=दीर्घ) कहा गया है।
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दीघनिकाय
पहले वग्ग में 13 सुक्त हैं, दूसरे में 10 हैं और तीसरे में 11। इस प्रकार इस निकाय में कुल 34 सुत्त हैं। पहले वग्ग का मुख्य विषय शील है। इसलिए उसका नाम सीलक्खंधवग्ग रखा गया है। दूसरे वग्ग में महापरिनिब्बान, महासतिपठ्ठान जैसे बड़े बड़े सुत्त संग्रहीत हैं। इसलिए उसका नाम महावग्ग रखा गया है। तीसरे वग्ग का नामकरण उसके पहले सुत्त के अनुसार हुआ है।
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दीघनिकाय
भगवान् बुद्ध ने निर्वाणप्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग का उपदेश दिया है। यह अष्टांगिक मार्ग है। इसमें शील, समाधि और प्रज्ञा का समावेश है इसलिए अनेक स्थलों पर उन्होंने आर्यमार्ग का उपदेश शील, समाधि और प्रज्ञा के रूप में ही दिया है। दीघनिकाय के अनेक सुत्तों से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है।
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दीघनिकाय
ब्रह्मजाल सुत्त में उस समय प्रचलित 62 दृष्टियों अर्थात् दार्शनिक मतवादों का विस्तृत वर्णन है। अन्य कई एक सुत्तों में भी उनका वर्णन संक्षेप में आया है। बुद्ध के समकालीन छ: तीर्थंकरों के सिद्धांतों का उल्लेख सामंंञफल सुत्त में आया है। उन तीर्थंकरों में भगवान महावीर भी थे। इनके निर्वाण और शिष्यों में धर्म संबंधी मतभेद की चर्चा पासादिक और संगीतिपरियाय सुत्तों में आई है। उस समय भारत में प्रचलित अनेक धार्मिक संप्रदायों में कठिन तपस्या का अभ्यास साधना का एक प्रमुख अंग था। भगवान बुद्ध उस पद्धति के समर्थक नहीं थे। कस्सपसीहनाद और उदुबरिकसीहनाद आदि सुत्तों में उन तपस्याओं और तत्संबंधी भगवान के विचारों पर प्रकाश पड़ता है।
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दीघनिकाय
पशुबलि द्वारा यज्ञ करना उस समय प्रचलित कर्मकांड का एक विशेष अंग रहा है। कूटदंत सुत्त में उन्होंने अहिंसात्मक यज्ञानुष्ठान का उपदेश दिया है।
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दीघनिकाय
बुद्धकालीन भारतीय समाज चतुर्वर्णी व्यवस्था पर स्थित था। भगवान बुद्ध जन्मना उच्च नीच के भी बड़े विरोधी थे। आचरण को ही इसकी कसौटी मानते थे। जातिवाद का विवेचन त्रिपिटक के अनेक स्थलों पर आया है। दीघनिकाय के अंबट्ठ सोगदंड और अग्गम्म सुत्तों में भी इस विषय की चर्चा और तत्संबंधी बुद्ध के विचार आए हैं।
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दीघनिकाय
कुछ लोग ऋद्धि प्राप्ति को धार्मिक साधना का लक्ष्य मानते थे। साधना के निम्न स्तरों पर ऋद्धियाँ प्राप्त होती हैं। जो साधक उनमें आसक्त हो जाते हैं, उनका पतन अवश्यंभावी है। इसलिए भगवान ने अपने शिष्यों को ऋद्धिप्रदर्शन करना नियमत: मना किया। उन्होंने बताया कि साधना द्वारा शांति प्राप्त करना और दूसरों को उस मार्ग का दर्शन कराना ही सबसे बड़ा चमत्कार है। इस विषय की चर्चा महालि और केवट्ट सत्तों में आई है।
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दीघनिकाय
बौद्ध परंपराकथा के अनुसार गौतम बुद्ध के पूर्व छह बुद्ध और हुए थे। उनके नाम इस प्रकार हैं : विपस्सी, सिखी, वेस्सभू, ककुसंध, कोणागमन और कस्सप। महापदान सुत्त में इनकी जीवनियों का वर्णन है। यह वर्णन पौराणिक कथाओं के ढंग पर है और गौतम बुद्ध की जीवनघटनाओं पर आधारित है। प्रथम चार निकायों में इन छ: बुद्धों का ही उल्लेख आया है। लेकिन खुद्दक निकाय के अंतर्गत बुद्धबंस में 28 बुद्धों का उल्लेख है। लक्खण सुत्त में 32 महापुरुष लक्षणों का विवरण है। इस सुत्त में यह भी बताया गया है कि किन किन कुशल कर्मों के फलस्वरूप ये लक्षण प्राप्त होते हैं।
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दीघनिकाय
चक्रवर्ती राजा की कल्पना अति प्राचीन है। महासुदस्सन और चक्कवत्तिसीहनाद सुत्तों में चक्रवर्ती राजा का जीवनआदर्श उपस्थित किया गया है। महासुदस्सन सुत्त में वर्णित चक्रवर्ती राजा बोधिसत्व ही थे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE
कैनवा
1 जनवरी 2013 को मेलानी पर्किन्स, क्लिफ ओब्रेक्ट और कैमरन एडम्स द्वारा कैनवा की स्थापना पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में की गई थी। अपने पहले वर्ष में, Canva के 750,000 से अधिक उपयोगकर्ता थे। अप्रैल 2014 में, सोशल मीडिया और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ गाइ कावासाकी कंपनी में इसके मुख्य प्रचारक (ब्रांड प्रमोटर) के रूप में शामिल हुए। 2015 में, विपणन सामग्री पर ध्यान केंद्रित करते हुए कैनवा फॉर वर्क लॉन्च किया गया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE
कैनवा
2016-17 के वित्तीय वर्ष के दौरान, Canva का राजस्व के नुकसान के साथ से बढ़कर हो गया। 2017 में, कंपनी लाभप्रदता पर पहुंच गई और उसके पास 294,000 भुगतान करने वाले ग्राहक थे।
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कैनवा
जनवरी 2018 में, पर्किन्स ने घोषणा की कि कंपनी ने सिकोइया कैपिटल, ब्लैकबर्ड वेंचर्स और फेलिसिस वेंचर्स से जुटाए थे और कंपनी का मूल्य ।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE
कैनवा
मई 2019 के दौरान, कंपनी ने 70 की फंडिंग का एक और दौर जुटाया जनरल कैटेलिस्ट और बॉन्ड और इसके मौजूदा निवेशकों ब्लैकबर्ड वेंचर्स और फेलिसिस वेंचर्स से मिलियन, कैनवा का मूल्यांकन 2.5 पर अरब। उस वर्ष अक्टूबर में, कैनवा ने घोषणा की कि उसने अतिरिक्त 85 जुटाए हैं  3.2 के मूल्यांकन पर मिलियन बिलियन, और एक उद्यम उत्पाद लॉन्च किया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE
कैनवा
दिसंबर 2019 में, Canva ने शिक्षा के लिए Canva की घोषणा की, जो छात्रों और शिक्षकों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक निःशुल्क उत्पाद है।
1
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE
कैनवा
दिसंबर 2019 में, Canva ने शिक्षा के लिए Canva की घोषणा की, जो छात्रों और शिक्षकों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक निःशुल्क उत्पाद है।
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कैनवा
मई 2019 में, Canva ने एक डेटा ब्रीच का अनुभव किया जिसमें लगभग 139 मिलियन उपयोगकर्ताओं का डेटा हैक कर लिया गया था। उजागर किए गए डेटा में कुछ उपयोगकर्ताओं के वास्तविक नाम, उपयोगकर्ता नाम, ईमेल पते, भौगोलिक जानकारी और पासवर्ड हैश शामिल थे। कैनवा को ग्राहकों को एक प्रारंभिक ईमेल के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, जिसने स्व-बधाई विपणन सामग्री के विवरण को नीचे दबा दिया। बाद में जनवरी 2020 में लगभग 4 मिलियन उपयोगकर्ता पासवर्ड डिक्रिप्ट किए गए और ऑनलाइन साझा किए गए। कैनवा ने प्रत्येक उपयोगकर्ता के पासवर्ड को रीसेट करके जवाब दिया, जिन्होंने शुरुआती उल्लंघन के बाद से अपना पासवर्ड नहीं बदला था।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE
कैनवा
2018 में, कंपनी ने प्रेजेंटेशन स्पेस में अपने विस्तार के हिस्से के रूप में एक अज्ञात राशि के लिए प्रेजेंटेशन स्टार्टअप Zeetings का अधिग्रहण किया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE
कैनवा
मई 2019 में, कंपनी ने Pixabay और Pexels के अधिग्रहण की घोषणा की, जो जर्मनी में स्थित दो मुफ्त स्टॉक फ़ोटोग्राफ़ी साइटें हैं, जो Canva उपयोगकर्ताओं को डिज़ाइन के लिए अपनी फ़ोटो तक पहुँचने में सक्षम बनाती हैं।
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831.667127
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
तिनसुकिया
महात्मा गांधी ने तिनसुकिया का दौरा किया और २० मार्च १९३४ को कचुजान क्षेत्र में एक जनसभा को संबोधित किया।
0.5
830.814824
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
तिनसुकिया
तिनसुकिया में गर्मी, सर्दी और मौसमी चक्र बनाने वाले मानसून के द्वारा एक नम उष्णकटिबंधीय जलवायु पेश करती है। तिनसुकिया में ग्रीष्मकाल मार्च से मई के महीनों के दौरान आम तौर पर रहती है। इन महीनों में २४ डिग्री सेल्सियस (न्यूनतम) और ३१ डिग्री सेल्सियस (अधिकतम) का तापमान रहता है। वर्षा गर्मियों के महीनों के दौरान होती रहती हैं और नमी (आद्रता) के इस मौसम के दौरान अपने चरम पर पहुँच जाती है। मानसून (जून से सितंबर) के महीने तिनसुकिया में भारी वर्षा लाते हैं। तिनसुकिया में सर्दियाँ अक्टूबर से फरवरी के महीने के दौरान होती हैं। सर्दियाँ मौसम सुखद परन्तु धूलभरे रहते हैं और इस समय के दौरान इस क्षेत्र में तापमान लगभग २४ डिग्री सेल्सियस (अधिकतम) ११ डिग्री सेल्सियस (न्यूनतम) के बीच रहता है।
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830.814824
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
तिनसुकिया
तिनसुकिया हवाई मार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे से जुड़ा हुआ शहर है। यह गुवाहाटी, असम के राज्य की राजधानी से सड़क मार्ग से ४८६ किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा मोहनबाड़ी, डिब्रूगढ़ में है जो तिनसुकिया से लगभग ४० किमी दूर है। यहाँ से दिल्ली, गुवाहाटी, कोलकाता और पूर्वोत्तर राज्यों कि राजधानियों के लिए दैनिक और साप्ताहिक हिसाब से हवाई यात्रा उपलब्ध हैं।
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830.814824
20231101.hi_3127_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
तिनसुकिया
तिनसुकिया शहर बहुत अच्छी तरह से रेलवे से जुड़ा हुआ है। यह भारतीय रेल के पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के अंतर्गत आती है। इस शहर मे दो रेलवे स्टेशन है- न्यु तिनसुकिया जंक्शन और दूसरा है तिनसुकिया जंक्शन। ज्यादातर गाड़ियाँ न्यु तिनसुकिया स्टेशन से ही रवाना होती है। नई तिनसुकिया रेलवे स्टेशन से कई महत्वपूर्ण ट्रेन जैसे - डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस, ब्रह्मपुत्र मेल, कामरूप एक्सप्रेस, कामख्या एक्सप्रेस, चेन्नई एक्सप्रेस, लेडो इंटर सिटी एक्सप्रेस आदि चलते हैं।
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830.814824
20231101.hi_3127_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
तिनसुकिया
राष्ट्रीय राजमार्ग 15 तिनसुकिया से होकर गुजरती है और यह अन्य राष्ट्रीय राजमार्गों जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग 315 और राष्ट्रीय राजमार्ग 315ए से जुडी हुई है। ३७ नंबर राष्ट्रीय राजमार्ग तिनसुकिया को राज्य के अन्य शहरों जैसे डिब्रूगढ़, जोरहाट, नौगाँव, गुवाहाटी आदि से जोडती है। इन शहरों के लिए दिन और रात्रि दोनों समय डीलक्स बसे चलती रहती है। अरुणाचल प्रदेश तथा राज्य के विभिन्न जगहों पर जाने के लिए असम राज्य परिवहन निगम द्वारा संचालित बसें, प्राइवेट बसें, विंगर और छोटे वाहन नियमित रूप से चलती हैं। स्थानीय परिवहन में ऑटो रिक्शा, ट्रैकर्स, रिक्शा आदि बुनियादी साधन हैं।
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20231101.hi_3127_12
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तिनसुकिया
२०११ में भारत की जनगणना के आधार में, तिनसुकिया की आबादी १,२५,२१६ है। पुरुषों की जनसंख्या ५५% और महिलाओं की ४५% है। तिनसुकिया की औसत साक्षरता दर ७०.१५% है जो के राष्ट्रीय औसत ६४.८४% से अधिक है। पुरुष साक्षरता दर ७७.८९% है और महिला साक्षरता ६३.५४% है। तिनसुकिया में, जनसंख्या का तमाम विवरण इस प्रकार है-
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तिनसुकिया
तिनसुकिया असम के वाणिज्य राजधानी के रूप में माना जाता है। यह शहर पूर्वी और दक्षिण पूर्वी अरुणाचल प्रदेश सहित दुलियाजान, नाहरकटिया, नामरूप, डूमडूमा, मार्घेरिटा, लेडो, जागुन, सदिया जैसे जगहों पर सामान आपूर्ति का केंद्र है। दैनिक जरूरत का हर सामान जैसे कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, कंप्यूटर हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर, अच्छी गुणवत्ता की चाय, खाद्य सामग्री, सब्जियां, मांस-मछली, अंडे यहाँ से विभिन्न स्थानों पर भेजी जाती हैं। यह शहर लकड़ी से संबंधित उत्पादों के लिए जाना जाता था परन्तु सरकार के नयी वन-नीति के कारण लकड़ी उद्योग प्राय: दम तोड़ चुका है। लकड़ी की कई फेक्ट्रियां जैसे किटप्लाई आदि बंद हो चुके हैं और कई बंद होने के कगार पर हैं। चैंबर रोड यहाँ के वाणिज्यिक केंद्र की हृदयस्थली है।
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तिनसुकिया
शिव धाम: शिव धाम, भगवान शिव को समर्पित एक बड़ा मंदिर है, जिसके परिसर के भीतर स्थित एक बड़ा तालाब है। तिनसुकिया से २.५ कि॰मी॰ दूर ३७ नम्बर हाईवे के किनारे स्थित यह मंदिर शिवरात्रि के समय लोगों के आकर्षण का केंद्र रहता है।
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तिनसुकिया
रेलवे हेरिटेज पार्क: न्यू तिनसुकिया रेलवे जंक्शन के प्रांगण में स्थित यह पार्क तिनसुकिया का प्रमुख आकर्षण है। इस पार्क में एक संग्रहालय है जो १९वीं सदी के विविध संग्रहों और रेलवे के अन्वेषकों को दर्शाती है। दिल्ली और कोलकाता के बाद तिनसुकिया केवल तीसरा ऐसा शहर है जहाँ ऐसा संग्रहालय है। इस पार्क में ब्रिटेन निर्मित छोटी लाइन भाप इंजन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना द्वारा इस्तेमाल किये गये रेलवे पहियों और १८९९ में बनाये गए छोटी गेज के डब्बे जो टिपोंग कोलियरी से कोयले की ढुलाई के लिए इस्तेमाल किये जाते थे जैसी चीजें प्रदर्शित की गयीं है। यहाँ लोगों के मनोरंजन के लिए टॉय-ट्रेन और बच्चों के खेलने और मनोरंजन के कई साधन हैं।
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सम्प्रति
परिशिष्ट पर्व में लिखा है, कि एक बार रात्रि के समय संप्रति के मन में यह विचार पैदा हुआ, कि अनार्य देशों में भी जैन धर्म का प्रसार हो और उनमें जैन साधु स्वच्छंदरूप से विचरण कर सकें। इसके लिये उसने इन अनार्य देशों में धर्म-प्रचार के लिये जैन साधुत्रों को भेजा ।
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सम्प्रति
कुणालसूनुस्त्रिखण्डभरताधिपः परमाहतो अनार्यदेशेष्वपि प्रवर्तितश्रमणविहारः सम्प्रति महाराजाउसौ अभवत्‌।
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सम्प्रति
हिन्दी अनुवाद - कुणाल का पुत्र महाराज संप्रति हुआ, जो भारत के तीन खंडों का स्वामी था, अर्हन्त भगवान्‌ का भक्त जैन था और जिसने अनार्य देशों में भी श्रमणों-जैन मुनियों का विहार कराया था।
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सम्प्रति
तद्से तु बिन्दुपारोडइशोकश्रीकुशालपृनुस्तिवण्डभरताधिप, परमाहतो अनार्यदेशेष्वपि प्रवर्तितश्रमणविहार, सम्प्रतिमहाराजश्चाभवत्‌।
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सम्प्रति
दिव्यावदान' मे वर्णन है कि सम्प्रति कुणाल का पुत्र था। बौद्ध-साहित्य और जैन-साहित्य की कथाओ से सिद्ध होता है, कि सम्प्रति जैनधर्म का अनुयायी प्रभावक-शासक था। इसने अपने राज्य का खूब विस्तार किया था।
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सम्प्रति
डॉ. गोपीनाथ [2] लिखते हैं कि यह शिलालेख आदिनाथ मंदिर की मूर्ति पर 6 पंक्तियों का है. इसका समय वि.सं. 1686 वैशाख शुक्ला 8 शनिवार है और महाराणा जगतसिंह के काल का है. इस लेख में तपागच्छ के आचार्य हरिविजय, विजयसेन और विजयदेव सूरि का उल्लेख है.
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सम्प्रति
1. संवत 1686 वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे शति पुष्प योगे अष्टमी दिवसे महाराणा श्री जगत सिंहजी विजय राज्ये जहांगीरी महातपा
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सम्प्रति
2. विरुद धारक भट्टारक श्री विजयदेवसूरीश्वरोपदेशकारित प्राक्प्रशस्ति पट्टिका ज्ञातराज श्री सम्प्रति निर्म्मापित श्री जेरपाल पर्वतस्य
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सम्प्रति
3. जीर्ण्ण प्रासादोद्धारेण श्री नडलाई वास्तव्य समस्त संघेन स्वश्रेयसे श्री श्री आदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च पादशाह श्री मदकब्बर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE
बज्जिका
| बज्जिका भाषा के कतिपय शब्दों का आलोचनात्मक अध्ययन || डा योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा ||| प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली (बिहार) |||| 1987
0.5
827.821005
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE
बज्जिका
| खिस्सा पेहानी (बज्जिका के प्रतिनिधि कहानी संकलन) || निर्मल मिलिन्द ||| अखिल भारतीय बज्जिका साहित्य सम्मेलन, सिकन्दराबाद |||| xxxx
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बज्जिका
| इंजुरी भर सिंहोरवा (बज्जिका गीत-कविता संग्रह) || चन्द्र किशोर श्वेतांशु ||| समीक्षा प्रकाशन, सीतामढी (बिहार) |||| 1977
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE
बज्जिका
| साँच में आँच कि? (बज्जिका भाषा के सामाजिक नाटक) || देवेन्द्र राकेश ||| अहिल्या प्रकाशन, मुजफ्फरपुर (बिहार) |||| 1970
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बज्जिका
| A study in the transitivity of Bajjika: verbs and verb-endings.” CIEFL Bulletin 13 (सिफेल, हैदराबाद में बज्जिका भाषा पर शोधपत्र) || अभिषेक कुमार ||| सिेएफल, हैदराबाद (भारत) |||| 2003
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बज्जिका
| A systemic functional description of the grammar of Bajjika (मैकेरे विश्वविद्यालय में बज्जिका भाषा पर पीएचडी शोधपत्र) || अभिषेक कुमार ||| मैकेरे विश्वविद्यालय, सिड्नी (ऑस्ट्रेलिया) |||| 2009
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बज्जिका
बज्जिका भाषा के सनेस- बिहार एवं झारखंड के 'राधाकृष्ण पुरस्कार' से सम्मानित ख्यातिलब्ध साहित्यकार श्री निर्मल मिलिन्द द्वारा संपादित। १९७२ से प्रकाशित इस पत्रिका का प्रकाशन अब संभवत: बंद हो चुका है।
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बज्जिका
आकाशवाणी पटना से बज्जिका में चौपाल एवं गीत कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं लेकिन टेलिविजन पर बज्जिका में कार्यक्रम प्रसारित करने वाले चैनल का अभाव था। हाल में पॉजिटिव मीडिया ग्रुप द्वारा हमार टीवी नाम से एक पुरबिया न्यूज चैनल लंच किया गया है जो बज्जिका सहित भोजपुरी, अंगिका, मगही, मैथिली, नगपुरिया सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखंड के स्थानीय भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित कर रहा है। मुजफ्फरपुर के पारू प्रखंड के चांदकेवारी गाँव से संचालित अप्पन समाचार समाचार चैनल जिले में होनेवाली हलचल एवं गतिविधियों का बज्जिका में प्रसारण करती है। खास बात यह है कि कुछ पुरुषों का परोक्ष रूप से समर्थन एवं सहयोग से यह बहुचर्चित चैनल केवल महिलाओं द्वारा संचालित है। उड़ीसा में बिजॉय कुमार महोपात्रा द्वारा निजी स्तर पर ६० भाषाओं में प्रकाशित पत्रिका दुलारी बहन बज्जिका में भी प्रकाशित होता है। भोजपुरी फिल्म उद्योग के प्रसिद्ध अभिनेता विजय खरे ने हाल में लछमी अलथिन हम्मर अंगना नाम से पहली बज्जिका फिल्म बनाने की घोषणा की है।
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बज्जिका
लोकगीत के मामले में बज्जिका की संपदा समृद्ध है। विवाह, तीज-त्योहारों या अन्य समारोह पर बज्जिका के गीत समां बाँध देते हैं। होली पर गाए जाने वाले 'होरी' या 'चैती' या मॉनसून का मजा 'कजरी' से लेने में बज्जिका भाषी माहिर हैं।,। सदियों से बज्जिका भाषा का प्रवाह बनाए रखने में इसके गीत ही सक्षम रहे हैं।
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ज़र्कोनियम
जरकोनियम (Zirconium) एक रासायनिक तत्व है जो आवर्त सारणी के चतुर्थ अंतवर्ती समूह (transition group) का तत्व है। इस तत्व के पाँच स्थिर समस्थानिक पाये जाते हैं, जिनका परमाणु भार 90, 91, 92, 94, 96 है। कुछ अन्य रेडियधर्मी समस्थानिक जैसे परमाणु भार 89 भी कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं।
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ज़र्कोनियम
इस तत्व की खोज ज़रकान अयस्क में, क्लोंप्रोट नामक वैज्ञानिक ने सन् 1789 में की थी। सन् 1824 में स्विडन के प्रसिद्ध रसायनज्ञ बर्ज़ीलियस ने ज़रकोनियम धातु तैयार की।
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ज़र्कोनियम
ज़रकोनियम की गणना विरल तत्वों में की जाती है यद्यपि पृथ्वी की सतह पर इसकी मात्रा अनेक सामान्य तत्वों से अधिक है। तत्वों की प्राप्ति सारणी में इसका स्थान बीसवाँ है। ऐसा अनुमान है कि ज़रकोनियम की मात्रा ताम्र, यशद एवं सीस तीनों की संयुक्त मात्रा से अधिक है।
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ज़र्कोनियम
इस तत्व के मुख्य अयस्क बैडिलियाइट या ब्रेजीलाइट (ज़रकोनियम ऑक्साइड), ज़रकेलाइट (ऑक्साइड एवं सिलिकेट का सम्मिश्रण) तथा जर्कन (ज़रकोनियम सिलिकेट) हैं। इस तत्व को विशुद्ध अवस्था में तैयर करना अत्यंत कठिन है, क्योंकि उच्च ताप पर ज़रकोनियम अनेक तत्वों से यौगिक बनाता है। बहुत समय तक इसे सोडियम, कैल्सियम या मैग्नीशियम से ज़रकोनियम ऑक्साइड के अवकरण द्वारा तैयार करते थे। इस क्रिया द्वारा अशुद्ध धातु चूर्ण रूप में प्राप्त होती थी। अब प्राय: ज़रकोनियम क्लोराइड को मैग्नीशियम धातु द्वारा अवकृत कर धातु में परिणत करते हैं। तत्पश्चात् इससे आयोडीन द्वारा अभिक्रिया कर उत्पन्न ज़रकोनियम आयोडाइड के वाष्प का तप्त टंगस्टन तंतु पर प्रवाहित करते हैं। फलस्वरूप तंतु पर विशुद्ध धातु की तह जम जाती है।
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ज़र्कोनियम
विशुद्ध ज़रकोनियम घातवर्ध्य (malleable) होता है, जिसके पतले तार बनाए जा सकते हैं। इसके कुछ विशेष गुण निम्निलिखित हैं :
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ज़र्कोनियम
संकेत जक (Zr), परमाणु संख्या 40, परमाणु भार 91.22, गलनांक 2100 डिग्री सें., क्वथनांक 3600 डिग्री सें.,
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ज़र्कोनियम
साधारण ताप पर ज़रकोनियम वायु में स्थायी है, परंतु रक्त ताप पर हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन को अवशोषित करता है। 700 डिग्री सें. पर ऑक्सीजन से और 1000 डिग्री सें. से ऊपर नाइट्रोजन से किया करता है। ऊष्ण सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा अम्लराज, ज़रकोनियम पर क्रिया करते हैं। उच्च ताप पर यह अनेक ऑक्साइडों को अवकृत कर सकता है।
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ज़र्कोनियम
ज़रकोनियम सिलिकेट तथा ऑक्साइड का विद्युत उपकरणों, तथा चीनी मिट्टी उद्योग में उपयोग होता है। ज़रकोनियम यौगिकों के वर्णकों का चमड़े की रंगाई, तथा रेशम उद्योगों में उपयोग हुआ है। ज़रकोनियम चूर्ण का उपयोग विस्फोटक उपकरणों में भी होता है।
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ज़र्कोनियम
आजकल ज़रकोनियम का प्रधान उपयोग परमाणु ऊर्जा में हो रहा है। ज़रकोनियम का न्यूट्रान-अवशोषण-अनुप्रस्थ काट (neutron absorption cross-section) अत्यंत न्यून है, जो अन्य धातुओं या मिश्र धातुओं से कहीं कम है। साथ में संक्षरण प्रतिरोधी होने से इसका उपयोग परमाणु अभिक्रियक में सफलता से हो रहा है।
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प्रायश्चित्त
ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्णस्तेय, गुरुतल्पगमन और इन चतुर्विध पापों के करने वाले पातकी से संसर्ग रखना ये पाँच महापातक हैं।
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प्रायश्चित्त
पातकी प्रायश्चित्त का भागी होता है। सर्वप्रथम उसे किए हुए पाप के निमित्त पश्चात्ताप होना चाहिए। अपने पाप क प्रायश्चित्त जानने के लिए उसे परिषद् में उपस्थित होना चाहिए। मीमांसा, न्याय और धर्मशास्त्र के जानकार तीन विद्वानों की परिषद् कही गई है। महापातक का प्रायश्चित्त बतलाते समय राजा की उपस्थित भी आवश्यक है। देश, काल और पातकी की परिस्थिति के अनुकूल प्रायश्चित्त होना चाहिए। बालक, वृद्ध, स्त्री और आतुर को आधा प्रायश्चित्त विहित हैं। पाँच वर्ष की अवस्था तक नहीं है। पाँच से पौने बारह वर्ष तक चौथाई प्रायश्चित्त है और यह प्रायश्चित्त बालक के पिता या गुरु को करना चाहिए। बारह से सोलह वर्ष तक आधार और सोलह से अस्सी वर्ष तक पूरा प्रायश्चित्त अनुष्ठेय है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को क्रमश: पूरा, आधा, तीन भाग और चौथाई प्रायश्चित्त कर्तव्य है। ब्रह्मचारी को द्विगुणित, वानप्रस्थी को त्रिगुणित और यति को चतुर्गुणित प्रायश्चित्त करना चाहिए। प्रायश्चित्त करने में विलंब करना अनुचित है। आरंभ के पूर्वदिन सविधि क्षौर, स्नान और पंचगव्य का प्राशन करना चाहिए।
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प्रायश्चित्त
पाप की निवृत्ति के लिए प्रायश्चित्त रूप में जप, तप, हवन, दान, उपवास, तीर्थयात्रा तथा प्राजापत्य, चांद्रायण, कृच्छ और सांतपन प्रभृति व्रत करने का विधान है। उदाहरण रूप पाँच महापातकों के प्रायश्चित्त इस प्रकार हैं -
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प्रायश्चित्त
ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त - जिस ब्राह्ण की हत्या की गई हो उसकी खोपड़ी के एक भाग का खप्पर बनाकर सर्वदा हाथ में रखे। दूसरे भाग को बाँस में लगाकर ध्वजा बनाए और उस ध्वजा को सर्वदा अपने साथ रखे। भिक्षा में उपलब्ध सिद्धान्न से अपना जीवननिर्वाह करे। इन नियमों का पालन करते हुए १२ वर्ष पर्यन्त तीर्थयात्रा करने पर ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा मिलता है। एक ब्राह्मण की अथवा १२ गौओं की प्राणरक्षा करने पर अथवा अश्वमेघ यज्ञ, अवभृथ स्नान करने पर उपर्युक्त १२ वर्ष की अवधि में कमी होना संभव हैं।
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प्रायश्चित्त
जिसने सुरा का पान किया हो उसे सुरा, जल, घृत, गोमूत्र या दूध प्रभृति किसी एक को गरम करके खौलता हुआ पीना चाहिए। और तब तक पान करते रहना चाहिए जब तक प्राण न निकले।
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प्रायश्चित्त
गुरुतल्पगमन प्रायश्चित्त - गुरुपत्नी के साथ संभोग करने पर तपाए हुए लोहे के पलंग पर उसे सोना चाहिए। साथ ही तपाई हुई लोहे की स्त्री की प्रतिकृति का आलिंगन कर प्राणविसर्जन करना चाहिए।
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प्रायश्चित्त
संसर्गि प्रायश्चित्त - महापातक करनेवाले के संसर्ग में यदि कोई व्यक्ति एक वर्ष पर्यंत रहे तो उसे नियमपूर्वक द्वादशवर्षीय व्रत का पालन करना चाहिए। इस तरह प्रयश्चित्त करने से मानव पाप से मुक्त हो जाता है।
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प्रायश्चित्त
जैन धर्म मतानुसार ९ प्रकार के कृत्य (प्रायश्चित्त) बताये गये हैं जिनके करने से पाप की निवृत्ति होती है— (१) आलोचन, (२) प्रतिक्रमण, (३) आलोचन प्रतिक्रमण, (४) विवेक, (५) व्युत्सगँ, (६) तप, (७) छेद, (८) परिहार, (९) उपस्थान और (१०) दोष।
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प्रायश्चित्त
जिन कार्यों द्वारा मनुष्य पापाचरण के लिए खेद प्रकट करता है तथा ईश्वर से क्षमा माँगता है, उन्हें प्रायश्चित्त कहा जाता है। बाइबिल के पूर्वार्ध में बहुत से स्थलों पर यहूदियों में प्रचलित प्रायश्चित्त के इन कार्यों का उल्लेख हैं - उपवास, विलाप, अपने पापों की स्वीकारोक्ति, शोक के वस्त्र धारण करना, राख में बैठना आदि।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
हाटकेश्वर
सदाशिव शंकर की यह बात सुनकर ब्राम्हण विष्णु तथा अन्य देवताओ ने उनसे विनय के साथ कहा कि आप सती के लिए शोक न करें हिमालय में मेनका के यहॉ पार्वती का जन्म होगा और वह पार्वती ही आपकी सती है जिसे आप ग्रहण कर प्रसन्न होंगे। इसिलए आप इस लिंग का पूर्ववत धारण कर लें।
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हाटकेश्वर
शंकर ने लिंग धारण करने के पूर्व देवताओं से कहा कि यदि आज से ब्राम्ह्ण लोग विधिपूर्वक लिंग का पूजन करेंगें तभी मैं इसे धारण करूंगा। अत स्वयं ब्राम्हणौ ने कहा हम भी आपके लिंग की पूजा कर सूखी प्रसन्न होंगें। वैसे आपके लिंग की संसार में पूजा होगी और पृथ्वीवासी आपके लिंग की पूजा कर अपना जीवनयापन कर प्रसन्नता को प्राप्त होंगें।
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हाटकेश्वर
तब प्रसन्न होकर शंकर ने पुन लिंग धारण कर लिया और ब्राम्हणौ विष्णु तथा अन्य देवताओ ने हाटक यानी सोने का लिंग बनाकर पाताल में उसी स्थान पर उसकी स्थापाना कर शास्त्र विधि पूर्वक उसकी पूजा अर्चना कर शंकर को प्रसन्न किया तथा पृथ्वी पर श्री महादेवजी की लिंग पूजा का माहात्यम बढ़ाकर वर्तमान संकट का निवारण किया। फिर ब्राम्हणौ विष्णु तथा अन्य देवता अपने अपने लोग में चले गए।
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हाटकेश्वर
तभी से शिवलिंग का माहात्म्य संसार में बढ गया और पृथ्वी का उत्पाद शांत हो गया। जिस लिंग का ब्रम्हाजी ने स्थापना किया यह श्री हाटकेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ और नागरों के कुल देवता माने गए।
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हाटकेश्वर
.......गुजरात के पुरा ग्रंथो में उल्लेख मिलता है कि वडनगर (चमत्कारपूर) की भूमि राजा द्वारा आभार -चिह्न के रूप में नागरो को भेंट किया था। राजा को एक हिरन को मारकर स्वयम व् अपने पुत्रो को खिलने कर्ण गल्य्त्व मुनि द्वारा एक अभिशाप के कारण जो श्वेत कुश्त हो गया राजा ने नागर सभा से करुना की याचना की, कृनाव्र्ट धरी नागर ने rajaके कष्टों का जड़ी बूटियों और प्राकृतिक दवाओं ...के अपने ज्ञान की मदद से इलाज किया गया। राजा चमत्कारपूर (देश जहाँ वडनगर स्थित है) देश नागरो को दान में देना चाह, परन्तु अपनी करुना का मूल्य न लगाने के कर्ण राजा का इनाम स्वीकार नहीं किया ! नागर ब्राह्मण के 72 परिवार उच्च सिद्धांतों, के थे जिन्होंने दान स्वीकार नही किया राजा चमत्कार की रानी से अनुनय के बाद छह परिवारों ने उपहार स्वीकार कर लिया, परन्तु 66 परिवार जिन्होंने रजा का उपहार स्वीकार नहीं किया अपना देश त्याग चले गए और उनके वंशज साठ गाडियों में अपना कुनबा लेकर चले थे इसीसे सठोत्रा गोत्र के कहलाये ! आज भी वे अपने त्याग ओर आदर्शो के कारण श्रद्धेय हैं। !
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हाटकेश्वर
एक अन्य किवदन्...ती जो की नागर समाज के तीर्थ पुरोहितो की पोथी के अनुसार यह है की गुजरात के तत्कालीन नवाब नासिर-उद-दीन (महमूद शाह) ई.स. 1537- 1554 के लगभग धर्म परिवर्तन, मुस्लिम वंश में कन्या देना एवं जागीर और सरकारी कामकाज में गैर मुस्लिमो की बेदखली से क्षुब्ध हो गुजरात छोड़ कर मालवा और राजस्थान की और पलायन किया,
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हाटकेश्वर
कहते हैं यात्रा में एक दिन जिस स्थान से मालवा और राजस्थान के दोराहे पर कन्थाल और कालीसिंध के तट पर जिस बैलगाड़ी मे अपने साथ अपने इष्ट व् कुलदेव भगवान हाटकेश्वर का चलायमान शिवलिंग स्वरूप (जिसे वडनगर के प्राचीन व् स्वयम्भू हाटकेश्वर मंदिर में उत्सव एवं शोभायात्राओ में नगर में निकला जाता था) को रात्रि विश्राम के बाद प्रात: सभी चलने को उद्यत हुए तो जिस बैलगाड़ी मे भगवान हाटकेश्वर मुर्तिस्वरूप विराजमान थे बहुत कोशिश के बाद भी आगे नही चला पाए, प्रभु की इच्छा जान सभी नागर जन वही अपने इष्ट देव की पूजन करने लगे!
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हाटकेश्वर
संयोगवश उसी रात महाराणा उदयसिंग को स्वप्न में भगवान हाटकेश्वर के दर्शन हुए और आज्ञा दी की तुम्हारे राज्य की सीमा पर मेरे प्रिय जन भूखे है जाकर उन ब्रहामणों को अन्न आदि दो, महाराणा ने तुरंत अपने स्थानीय प्रतिनिधि को सूचित किया, जब महाराणा उदयसिंग के प्रतिनिधी ने अपने दूतो को आज्ञा दी ओर उन्होंने नागर जनों को भोजन अन्न व् गाये देना चाहा तो उन सभी ने कहा जब तक हमारे इष्ट देव को स्थापित नही कर देते तब तक अन्न नही लेंगे, जब महाराणा उदयसिंग को पता लगा तो उन्होंने सभी नागर को राजभटट की उपाधी दी!तथा राजपुरोहित को भेज कर सोयत कलां में शिवलिंग स्थापित करवाकर गो, भूमि और भोजन आदि की व्यवस्था की !
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हाटकेश्वर
प्रति वर्ष हाटकेश्वर जयंती पर इसी स्थान पर सभी एकत्र होकर परस्पर मिलेंगे ऐसा विमर्श कर तथा यहाँ मन्दिर स्थान पर एक स्वजन को पूजन में नियुक्त कर, यही से सभी नागर जन अपनी अपनी आजीविका की तलाश में आगे बढ़े,
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
साम्या
लौकिक अर्थ में साम्या (Equity) को सहज न्याय (Natural Justice) का पर्याय मानते हैं पर ऐसा सोचना भ्रमात्मक होगा कि प्राकृतिक न्याय के अंतर्गत आने वाली सभी विषयों पर न्यायालय अपना निर्णय देगा। दया, करुणा आदि अनेक मानवोचित गुण प्राकृतिक न्याय की सीमा के अंदर हैं, पर न्यायालय किसी को दया का आचरण दिखलाने को बाध्य नहीं कर सकता। न्यायाधीश बक्ले ने रि टेलीस्क्रिप्ट सिंडीकेट लि. (१९०३, २ चांसरी, १७४ द्रष्टव्य पृ. १९५-९६) में कहा था, This court is not a court of conscidence` अर्थात् 'सुनीति' से संबंधित मामलों की जाँच करने वाले इस न्यायालय को हम अंतःकरण का न्यायालय नहीं कह सकते। उसी प्रसंग में उन्होंने कहा कि कानून ने विहित उन अधिकारों को ही यह न्यायालय कार्यान्वित करेगा, जिनके लिए देश का साधारण कानून पर्याप्त नहीं है। अत: 'सुनीति' प्राकृतिक न्याय का वह अंश है, जो न्यायालयों द्वारा कार्यान्वित होने योग्य रहने पर भी ऐतिहासिक कारणों से कॉमन लॉ के न्यायालयों द्वारा कार्यान्वित न होने के कारण 'चांसरी' न्यायालय द्वारा लागू किया जाता था। अन्यथा तथ्य की दृष्टि से 'सुनीति' एवं 'कॉमन लॉ' में कोई अंतर नहीं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
साम्या
संसार के भिन्न-भिन्न देशों में जहाँ पिछली कई शताब्दियों में अंग्रेजी शासन रहा है, उनके न्यायालयों के निर्णय पर अंग्रेजी सुनीति का प्रभाव स्पष्ट है। अत: इंग्लैंड में सुनीति के ऐतिहासिक विकास पर कुछ शब्द आवश्यक हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
साम्या
मध्ययुग में इंग्लैंड के राजा का सचिवालय 'चांसरी' कहलाता था एवं उसका अधिकारी 'चांसलर' के नाम से विख्यात था। देश में मामलों का निर्णय करने के निमित्त न्यायालयों के रहने के बावजूद न्याय की अंतिम थाती 'चांसरी' (Reserve of justice) राजा में ही आश्रित थी। अत: चांसरी में बहुधा ऐसा आवेदन आने लगा कि आवेदक दरिद्र, वृद्ध और रुग्ण है; किंतु उसका विपक्षी धनी एवं शक्तिशाली है। इसलिए उसे आशंका है कि विपक्षी जूरी को घूस देगा; अपनी प्रभुता से उन्हें भय दिखलाएगा; अथवा चालाकी से उसने कुछ ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी है कि देश का साधारण न्यायालय उसे न्याय नहीं दे सकेगा। ऐसा आवेदन प्राय: करुण शब्दों में भगवान और धर्म की दुहाई देकर लिखा जाता था। चांसलर राजा के नाम प्रादेश (Writ) निकालकर विपक्षी को अपने समक्ष उपस्थित कराने लगे। उसे शपथ लेकर आवेदन की फरियाद का उत्तर देना पड़ता था। सन् १४७४ ई. से चांसलर स्वतंत्र रूप से निर्णय देने लगे एवं चांसरी न्यायालय में सुनीति का विकास यहीं से आरंभ हुआ। चांसरी की लोकप्रियता बढ़ने लगी। इसका मुख्य कारण यह था कि चांसलर ऐसे मामलों का निराकरण करने लगे, जिनके लिए साधारण न्यायालय में कोई विधान नहीं था। दृष्टांत के लिए न्यास (Trust) को ले सकते हैं। क्रमश: छल (Fraud), दुर्घटना (Accident), 'चांसरी' दस्तावेज गुम होने के प्रसंग में तथा विश्वासघात (Breach of Confidence) भी उसके अधिकार क्षेत्र में आ गए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
साम्या
सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में चांसरी एवं कॉमन लॉ के न्यायालयों के बीच अपने-अपने अधिकारक्षेत्र का प्रश्न लेकर विवाद उपस्थित हुआ; पर अंतत: इस बात को मान्यता दी गई कि चांसरी न्यायालय का निर्णय सर्वोपरि होगा। इस प्रसंग में यह स्मरणीय है कि चांसरी न्यायालय ने कॉमन लॉ के न्यायालयों पर प्रत्यक्ष शासन नहीं किया। उसने केवल सफल वादी को वारण किया कि वह अनैतिक निर्णय को कार्यान्वित न करे। उक्त दोनों प्रकार के न्यायालयों के विकास के साथ-साथ चांसलर के अधिकार भी सीमित होते गए। सुनीति के सिद्धांत स्थिर हुए, जिन पर कॉमन लॉ की परिधि से बाहर के अधिकार आधारित थे और जिनके लिए निदानश् (Remedy) अपेक्षित था। सन् १८७३-७५ ई. के अभ्यंतर निर्मित कानून के द्वारा 'सुनीति' एवं कॉमन लॉ की दो विभिन्न पद्धतियाँ एक हो गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि कॉमन लॉ के न्यायालय व्यादेश (Injunction) जारी करने लगे एवं चांसरी न्यायालय संविदा (Contract) के स्खलन (Breach) के कारण क्षतिपूर्ति कराने लगा, जैसा पूर्व में संभव नहीं था। अर्थात् अब देश के किसी भी न्यायालय में कॉमन लॉ एवं सुनीति दोनों के निदान एक साथ प्राप्त होने लगे। सन् १७७५ ई. के बाद यदि किसी मामले में सुनीति एवं कॉमन लॉ के नियमों में किसी एक ही विषय को लेकर विषमता उपस्थित हो तो सुनीति के नियम की मान्यता होगी। किंतु यह स्मरणीय है कि सुनीति का यह उद्देश्य नहीं था कि वह देश के साधारण कानून को नष्ट करे, वरन् उसकी कभी की पूर्ति करना ही इसका लक्ष्य था। उदाहरणार्थ, न्यास (Trust) व्यादेश (Injunction), संविदा की पूर्ति (Specific performance), एवं मृत व्यक्ति के इस्टेट का प्रबंध सुनीति के ही अवदान हैं। इन विषयों के लिए कॉमन लॉ के न्यायालय में कोई निदान नहीं था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
साम्या
भारत में अंग्रेजी शासन स्थापित होने पर इस देश के न्यायालयों के निर्णय अंतिम अपील के रूप में प्रिवी काउंसिल के अधिकारक्षेत्र में आने लगा। अतः इंग्लैंड में विकसित सुनीति का प्रभाव हिंदू विधान पर परिलक्षित होने लगा। प्रिवी काउंसिल ने केंचुवा वी गिरिमालप्या (१९२४) ५१९ ए, ३६८ में यह निर्णय किया कि यदि कोई किसी की हत्या कर दे तो वह व्यक्ति मृतक की संपत्ति का अधिकारी नहीं होगा। सार्वजनिक नीति पर आधारित उक्त नियम हिंदुओं के मामले में न्याय एवं सुनीति की दृष्टि से लागू किया गया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
साम्या
प्राचीन काल में नैतिकता (ethics) एवं कानून परस्पर मिले हुए थे एवं 'धर्म' के व्यापक अर्थ में सन्निहित थे। हिंदू धर्म के चार स्रोत माने गए हैं- वेद, स्मृति, सदाचार एवं सुनीति। सुनीति के सिद्धांत 'न्याय' में अंतर्निहित रहे हैं। स्मृति के वचन एवं सदाचार की विशद विवृति के बावजूद न्याय के सभी प्रश्नों का निर्णय देने के लिए मान्य नियमों एवं कानून की कल्पनाओं (Fiction) का आश्रय लिया जाता रहा है तथा इन पर सुनीति की छाप स्पष्ट है। स्मृतिकारों ने स्वीकार कर लिया था कि सनातन धर्म स्वभावतः व्यापक नहीं हो सकता। अत: 'न्याय' के सिद्धान्तों को विभिन्न परिस्थियों में कार्यान्वित करना ही होगा। याज्ञवल्क्य का कथन है कि कानून के नियमों के परस्पर एक-दूसरे से विषम होने पर न्याय अर्थात् प्राकृतिक सुनीति एवं युक्ति की उन पर मान्यता होगी। बृहस्पति के अनुसार केवल धर्मशास्त्र का ही आश्रय लेकर निर्णय देना उचित नहीं होगा, क्योंकि युक्तिहीन विचार से धर्म की हानि ही होती है। नारद ने भी युक्ति की महत्ता मानी है। कानून एवं न्याय के बीच शाश्वत द्वंद्व के प्रसंग में स्मृतिकारों ने युक्ति एवं सुनीति को मान्यता दी है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
साम्या
यह नियम सुनीति का आधार है। इसका आशय यह है कि यदि कोई हरकत ऐसी है, जिसके लिए नैतिक दृष्टि से न्यायालय को त्राण देना चाहिए, तो न्यायालय त्राण अवश्य देगा। चांसरी न्यायालय का आरंभ इसी आधार पर हुआ। न्यास का कानून इस प्रसंग में एक उपयुक्त दृष्टांत है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
साम्या
इसका अर्थ यह है कि सुनीति देश के साधारण कानून द्वारा प्रदत्त किसी व्यक्ति के अधिकारों में तभी हस्तक्षेप करेगी, जब उस व्यक्ति के लिए ऐसे अधिकारों से लाभ उठाना अनैतिक होगा, क्योंकि सुनीति अंत:करण पर आधारित है। दृष्टांत- किसी व्यक्ति को कॉमन लॉ के अनुसार फी सिंपुल (Fee simple) एक इस्टेट है एवं वह बिना वसीयत किए मर जाता है। उसके पुत्र और कन्याएँ हैं। सबसे ज्येष्ठ पुत्र इस्टेट का उत्तराधिकारी हो जाता है यद्यपि ऐसा होना अन्याय संततियों के हित में अनुचित है तथापि सुनीति इस स्थिति में हस्तक्षेप नहीं करेगी। पर यदि ज्येष्ठ पुत्र ने अपने पिता से कहा कि आप वसीयत न करें, मैं संपत्ति को सब भाइयों और बहनों में बाँट दूँगा और उसके आश्वासन पर पिता ने संपत्ति की वसीयत नहीं की और ज्येष्ठ पुत्र ने अपनी प्रतिज्ञा न रखकर पूरे इस्टेट को आत्मसात् कर लिया तो इस स्थिति में सुनीति उसे अपने वचन का पालन करने को बाध्य करेगी, चूँकि ज्येष्ठ पुत्र के लिए पूरी संपत्ति का उपभोग करना अंत:करण के प्रतिकूल होगा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
साम्या
दि सैमुएल एलेन ऐंड संस लि. (१९०७) १ चांसरी ५७५ में एक कंपनी ने किराया-खरीद (Hire-purchase) की शर्त पर मशीन खरीदी। यह तय हुआ कि अंतिम किस्त आदा कर देने तक मशीन का स्वत्वाधिकारी इसका विक्रेता रहेगा एवं उसे अधिकार रहेगा कि वह किस्त टूटने पर मशीन को उठाकर ले जाए। कंपनी के व्यवसाय वाले मकान में मशीन लगा दी गई, अत: मशीन का कॉमन लॉ द्वारा प्रदत्त स्वत्वाधिकार कंपनी का हुआ। पीछे कंपनी ने उक्त मकान गिरवी में एक ऐसे व्यक्ति को दिया, जिसे मशीन से संबंधित 'किराया-खरीद' की कोई सूचना नहीं थी। एक मामला हुआ जिसमें न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि मशीन हटाकर ले जाने का अधिकार भूमि में साम्यिक स्वत्वाधिकार (equitable interest) था। चूँकि क्रम में इसकी सृष्टि पहले हुई, अत: मकान के गिरवीदार के अधिकार की अपेक्षा इसकी प्राथमिकता है।
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क्रमानुदेशन
प्रोग्रामिंग एक कंप्यूटर/संगणक के लिये एक प्रोग्राम लिखने की प्रक्रिया है। प्रोग्राम कंप्यूटर के द्वारा किसी कार्य को करवाने के लिये लिखा जाता है।
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क्रमानुदेशन
सामान्य जीवन में जब हम किसी कार्य विशेष को करने का निर्णय करते हैं तो उस कार्य को करने से पूर्व उसकी रूपरेखा सुनिश्चित की जाती है। दुनिया को जोड़ने वाला इंटरनेट इसके अन्तर्गत कार्य करता है| कार्य से संबंधित समस्त आवश्यक शर्तो का अनुपालन उचित प्रकार हो एवं कार्य मे आने वाली बाधाओ पर विचार कर उनको दूर करने की प्रक्रिया भी रूपरेखा तैयार करते समय महत्वपूर्ण विचारणीय विषय होते हैं। कार्य के प्रारम्भ होने से कार्य के सम्पन्न होने तक के एक एक चरण पर पुनर्विचार करके रूपरेखा को अंतिम रूप देकर उस कार्य विशेष को सम्पन्न किया जाता है।
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क्रमानुदेशन
इसी प्रकार संगणक द्वारा, उसकी क्षमता के अनुसार, वाँछित कार्य कराये जा सकते हैं। इसके लिये आवश्यकता है संगणक को एक निश्चित तकनीक व क्रम मे निर्देश दिये जाने की, ताकि संगणक द्वारा इन निर्देशों का अनुपालन कराकर वांछित कार्य को समपन्न किया जा सके। सामान्य बोलचाल की भाषा मे इसे क्रमानुदेशन या प्रोग्रामन या क्रमानुदेशन कहते हैं। सभी निर्देशों के समूह (सम्पूर्ण निर्देशावली) को प्रोग्राम कहा जाता है।
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क्रमानुदेशन
सूचनाविज्ञान का अन्तरराष्ट्रीय ओलम्पियाड (International Informatics Olympiad) - स्कूली बच्चों के लिये
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क्रमानुदेशन
अन्तरराष्ट्रीय महाविद्यालयी क्रमानुदेशन स्पर्धा (International Collegiate Programming Contest) - आईबीएम द्वारा
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क्रमानुदेशन
गुणवत्ता-सम्बन्धी आवश्यकताएँ : अर्थात कितनी बार किसी प्रोग्राम से प्राप्त होने वाले परिणाम शुद्ध होते हैं।
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क्रमानुदेशन
Robustness: प्रोग्राम कितनी अच्छी तरह गलतियों ( errors, not bugs) के कारण होने वाली समस्याओं को समझता है।
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क्रमानुदेशन
दक्षता/निष्पादन (Efficiency/performance): Measure of system resources a program consumes (processor time, memory space, slow devices such as disks, network bandwidth and to some extent even user interaction): the less, the better.
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क्रमानुदेशन
क्रमानुदेशन कैसे बनें? (अंग्रेजी में) - विकी-हाउ पर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रोग्रामरों के बारे में जानकारी
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त्यागराज
त्यागराज (तेलुगु: శ్రీ త్యాగరాజ; तमिल தியாகராஜ சுவாமிகள் ; 4 मई, 1767 – 6 जनवरी, 1847) भक्तिमार्गी कवि एवं कर्णाटक संगीत के महान संगीतज्ञ थे। उन्होने समाज एवं साहित्य के साथ-साथ कला को भी समृद्ध किया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने सैंकड़ों भक्ति गीतों की रचना की जो भगवान राम की स्तुति में थे और उनके सर्वश्रेष्ठ गीत पंचरत्न कृति अक्सर धार्मिक आयोजनों में गाए जाते हैं।
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त्यागराज
तंजावुर जिले के तिरूवरूर में चार मई 1767 को पैदा हुए त्यागराज की मां का नाम सीताम्मा और पिता का रामब्रह्मम था। वह अपनी एक कृति में कहते हैं - "सीताम्मा मायाम्मा श्री रामुदु मा तंद्री" (सीता मेरी मां और श्री राम मेरे पिता हैं)। इसके गीत के जरिए शायद वह दो बातें कहना चाहते हैं। एक ओर वास्तविक माता-पिता के बारे मे बताते हैं दूसरी ओर प्रभु राम के प्रति अपनी आस्था प्रदर्शित करते हैं।
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त्यागराज
एक अच्छे सुसंस्कृत परिवार में पैदा हुए और पले बढ़े त्यागराज प्रकांड विद्वान और कवि थे। वह संस्कृत ज्योतिष तथा अपनी मातृभाषा तेलुगु के ज्ञाता थे।
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