Chapter
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61
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76
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890
| Mesra
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2
| Text
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34
|
---|---|---|---|---|
8 | 12 | 32 | 1 |
بفرمود تا دخترش رفت پیش
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8 | 12 | 32 | 2 |
همی دست برزد به رخسار خویش
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8 | 12 | 33 | 1 |
دو گل رابدو نرگس خوابدار
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8 | 12 | 33 | 2 |
همی شست تا شد گلان آبدار
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8 | 12 | 34 | 1 |
به رودابه گفت ای سرافراز ماه
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8 | 12 | 34 | 2 |
گزین کردی از ناز برگاه چاه
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8 | 12 | 35 | 1 |
چه ماند از نکو داشتی در جهان
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8 | 12 | 35 | 2 |
که ننمودمت آشکار و نهان
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8 | 12 | 36 | 1 |
ستمگر چرا گشتی ای ماهروی
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8 | 12 | 36 | 2 |
همه رازها پیش مادر بگوی
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8 | 12 | 37 | 1 |
که این زن ز پیش که آید همی
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8 | 12 | 37 | 2 |
به پیشت ز بهر چه آید همی
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8 | 12 | 38 | 1 |
سخن بر چه سانست و آن مرد کیست
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8 | 12 | 38 | 2 |
که زیبای سربند و انگشتریست
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8 | 12 | 39 | 1 |
ز گنج بزرگ افسر تازیان
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8 | 12 | 39 | 2 |
به ما ماند بسیار سود و زیان
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8 | 12 | 40 | 1 |
بدین نام بد دادخواهی به باد
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8 | 12 | 40 | 2 |
چو من زادهام دخت هرگز مباد
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8 | 12 | 41 | 1 |
زمین دید رودابه و پشت پای
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8 | 12 | 41 | 2 |
فرو ماند از خشم مادر به جای
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8 | 12 | 42 | 1 |
فرو ریخت از دیدگان آب مهر
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8 | 12 | 42 | 2 |
به خون دو نرگس بیاراست چهر
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8 | 12 | 43 | 1 |
به مادر چنین گفت کای پر خرد
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8 | 12 | 43 | 2 |
همی مهر جان مرا بشکرد
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8 | 12 | 44 | 1 |
مرا مام فرخ نزادی ز بن
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8 | 12 | 44 | 2 |
نرفتی ز من نیک یا بد سخن
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8 | 12 | 45 | 1 |
سپهدار دستان به کابل بماند
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8 | 12 | 45 | 2 |
چنین مهر اویم بر آتش نشاند
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8 | 12 | 46 | 1 |
چنان تنگ شد بر دلم بر جهان
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8 | 12 | 46 | 2 |
که گریان شدم آشکار و نهان
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8 | 12 | 47 | 1 |
نخواهم بدن زنده بیروی او
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8 | 12 | 47 | 2 |
جهانم نیرزد به یک موی او
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8 | 12 | 48 | 1 |
بدان کو مرا دید و بامن نشست
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8 | 12 | 48 | 2 |
به پیمان گرفتیم دستش بدست
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8 | 12 | 49 | 1 |
فرستاده شد نزد سام بزرگ
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8 | 12 | 49 | 2 |
فرستاد پاسخ به زال سترگ
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8 | 12 | 50 | 1 |
زمانی بپیچید و دستور بود
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8 | 12 | 50 | 2 |
سخنهای بایسته گفت و شنود
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8 | 12 | 51 | 1 |
فرستاده را داد بسیار چیز
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8 | 12 | 51 | 2 |
شنیدم همه پاسخ سام نیز
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8 | 12 | 52 | 1 |
به دست همین زن که کندیش موی
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8 | 12 | 52 | 2 |
زدی بر زمین و کشیدی به روی
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8 | 12 | 53 | 1 |
فرستاده آرندهٔ نامه بود
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8 | 12 | 53 | 2 |
مرا پاسخ نامه این جامه بود
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8 | 12 | 54 | 1 |
فروماند سیندخت زان گفتگوی
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8 | 12 | 54 | 2 |
پسند آمدش زال را جفت اوی
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8 | 12 | 55 | 1 |
چنین داد پاسخ که این خرد نیست
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8 | 12 | 55 | 2 |
چو دستان ز پرمایگان گرد نیست
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8 | 12 | 56 | 1 |
بزرگست پور جهان پهلوان
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8 | 12 | 56 | 2 |
همش نام و هم رای روشن روان
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8 | 12 | 57 | 1 |
هنرها همه هست و آهو یکی
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8 | 12 | 57 | 2 |
که گردد هنر پیش او اندکی
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8 | 12 | 58 | 1 |
شود شاه گیتی بدین خشمناک
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8 | 12 | 58 | 2 |
ز کابل برآرد به خورشید خاک
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8 | 12 | 59 | 1 |
نخواهد که از تخم ما بر زمین
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8 | 12 | 59 | 2 |
کسی پای خوار اندر آرد به زین
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8 | 12 | 60 | 1 |
رها کرد زن را و بنواختش
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8 | 12 | 60 | 2 |
چنان کرد پیدا که نشناختش
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8 | 12 | 61 | 1 |
چنان دید رودابه را در نهان
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8 | 12 | 61 | 2 |
کجا نشنود پند کس در جهان
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8 | 12 | 62 | 1 |
بیامد ز تیمار گریان بخفت
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8 | 12 | 62 | 2 |
همی پوست بر تنش گفتی بکفت
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8 | 13 | 1 | 1 |
چو آمد ز درگاه مهراب شاد
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8 | 13 | 1 | 2 |
همی کرد از زال بسیار یاد
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8 | 13 | 2 | 1 |
گرانمایه سیندخت را خفته دید
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8 | 13 | 2 | 2 |
رخش پژمریده دل آشفته دید
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8 | 13 | 3 | 1 |
بپرسید و گفتا چه بودت بگوی
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8 | 13 | 3 | 2 |
چرا پژمرید آن چو گلبرگ روی
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8 | 13 | 4 | 1 |
چنین داد پاسخ به مهراب باز
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8 | 13 | 4 | 2 |
که اندیشه اندر دلم شد دراز
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8 | 13 | 5 | 1 |
ازین کاخ آباد و این خواسته
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8 | 13 | 5 | 2 |
وزین تازی اسپان آراسته
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8 | 13 | 6 | 1 |
وزین بندگان سپهبدپرست
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8 | 13 | 6 | 2 |
ازین تاج و این خسروانی نشست
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8 | 13 | 7 | 1 |
وزین چهره و سرو بالای ما
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8 | 13 | 7 | 2 |
وزین نام و این دانش و رای ما
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8 | 13 | 8 | 1 |
بدین آبداری و این راستی
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8 | 13 | 8 | 2 |
زمان تا زمان آورد کاستی
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8 | 13 | 9 | 1 |
به ناکام باید به دشمن سپرد
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8 | 13 | 9 | 2 |
همه رنج ما باد باید شمرد
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8 | 13 | 10 | 1 |
یکی تنگ تابوت ازین بهر ماست
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8 | 13 | 10 | 2 |
درختی که تریاک او زهر ماست
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8 | 13 | 11 | 1 |
بکشتیم و دادیم آبش به رنج
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8 | 13 | 11 | 2 |
بیاویختیم از برش تاج و گنج
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8 | 13 | 12 | 1 |
چو بر شد به خورشید و شد سایهدار
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8 | 13 | 12 | 2 |
به خاک اندر آمد سر مایهدار
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8 | 13 | 13 | 1 |
برینست فرجام و انجام ما
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8 | 13 | 13 | 2 |
بدان تا کجا باشد آرام ما
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8 | 13 | 14 | 1 |
به سیندخت مهراب گفت این سخن
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8 | 13 | 14 | 2 |
نوآوردی و نو نگردد کهن
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8 | 13 | 15 | 1 |
سرای سپنجی بدین سان بود
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8 | 13 | 15 | 2 |
خرد یافته زو هراسان بود
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8 | 13 | 16 | 1 |
یکی اندر آید دگر بگذرد
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8 | 13 | 16 | 2 |
گذر نی که چرخش همی بسپرد
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8 | 13 | 17 | 1 |
به شادی و انده نگردد دگر
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8 | 13 | 17 | 2 |
برین نیست پیکار با دادگر
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8 | 13 | 18 | 1 |
بدو گفت سیندخت این داستان
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8 | 13 | 18 | 2 |
بروی دگر بر نهد باستان
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8 | 13 | 19 | 1 |
خرد یافته موبد نیک بخت
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8 | 13 | 19 | 2 |
به فرزند زد داستان درخت
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Subsets and Splits
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