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रंगमंच
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जब सारे यूरोप के रंगमंच लोकतंत्र की ओर अग्रसर हो रहे थे, संयुक्त राज्य, अमरीका, में अपनी ही किस्म के जीवन का स्वतंत्र विकास हो रहा था। चार्ल्सटन, फिलाडेल्फ़िया, न्यूयॉर्क और बोस्टन के रंगमंचों पर लंदन का प्रभाव बिलकुल नहीं पड़ा। फिर भी अमरीकी रंगमंचों में कोई उल्लेखनीय विशेषता नहीं थीं। उनके सामान्य रंगमंच घुमंतू कंपनियों के से ही होते थे। किंतु 18 वीं शती के अंत तक अनेक उत्कृष्ट काटि के भिएटर बन गए, जिनमें फ़िलाडेल्फ़िया का चेस्टनट स्ट्रीट थिएटर (1794ई.) और न्यूयॉर्क का पार्क थिएटर (1798ई.) उल्लेखनीय हैं। इनमें सुंदर प्रेक्षागृह बने और कुछ यूरोपीय प्रभाव भी आ गया। तदनंतर 20-25 वर्ष में ही अमेरिकी रंगमंच यूरोपीय रंगमंच के समकक्ष, बल्कि उससे भी उत्कृष्ट हो गया।
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रंगमंच
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आधुनिक रंगमंच का वास्तविक विकास १९वीं शती के उत्तरार्ध से आरंभ हुआ और विन्यास तथा आकल्पन में प्रति वर्ष नए नए सुधार होते रहे हैं; यहाँ तक कि 10 वर्ष पहले के थिएटर पुराने पड़ जाते रहे और 20 वर्ष पहले के अविकसित और अप्रचलित समझे जाने लगे। निर्माण की दृष्टि से लोहे के ढाँचोंवाली रचना, विज्ञान की प्रगति, विद्युत् प्रकाश की संभावनाएँ और निर्माण संबंधी नियमों का अनिवार्य पालन ही मुख्यत: इस प्रगति के मूल कारण हैं। सामाजिक और आर्थिक दशा में परिवर्तन होने से भी कुछ सुधार हुआ है। अभी कुछ ही वर्ष पहले के थिएटर, जिनमें अनिवार्यत: खंभे, छज्जे और दीर्घाएँ हुआ करती थीं, अnbbjjkkब प्राचीन माने जाते हैं।
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रंगमंच
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आधुनिक रंगशाला में एक तल फर्श से नीचे होता है, जिसे वादित्र कक्ष कहते हैं। ऊपर एक ढालू बालकनी होती है। कभी कभी इस बालकनी और फर्श के बीच में एक छोटी बालकनी और होती है। प्रेक्षागृह में बैठे प्रत्येक दर्शक को रंगमंच तक सीधे देखने की सुविधा होनी चाहिए, इसलिए उसमें उपयुक्त ढाल का विशेष ध्यान रखा जाता है। ध्वनि उपचार भी उच्च स्तर का होना चाहिए। समय की कमी के कारण आजकल नाटक बहुधा अधिक लंबे नहीं होते और एक दूसरे के बाद क्रम से अनेक खेल होते हैं। इसलिए दर्शकों के आने जाने के लिए सीढ़ियाँ, गलियारे, टिकटघर आदि सुविधाजनक स्थानों पर होने चाहिए, जिससे अव्यवस्था न फैले।
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रंगमंच
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1890 ई. तक रंगमंच से चित्रकारी को दूर करने की कोई कल्पना भी न कर सकता था, किंतु आधुनिक रंगमंचों में रंग, कपड़ों, पर्दों और प्रकाश तक ही सीमित रह गया है। रंगमंच की रंगाछुही और सज्जा पूर्णतया लुप्त हो गई है। सादगी और गंभीरता ने उसका स्थान ले लिया है, ताकि दर्शकों का ध्यान बँट न जाए। विद्युत् प्रकाश के नियंत्रण द्वारा रंगमंच में वह प्रभाव उत्पन्न किया जाता है जो कभी चित्रित पर्दों द्वारा किया जाता था। प्रकाश से ही विविध दृश्यों का, उनकी दूरी और निकटता का और उनके प्रकट और लुप्त होने का आभास कराया जाता है।
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रंगमंच
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विभिन्न दृश्यों के परिवर्तन में अभिनेताओं के आने जाने में जो समय लगता है, उसमें दर्शकों का ध्यान आकर्षित रखने के लिए कुछ अवकाश गीत आदि कराने की आवश्यकता होती थी, जिनका खेल से प्राय: कोई संबंध न होता था। अब परिभ्रामी रंगमंच बनने लगे हैं, जिनमें एक दृश्य समाप्त होते ही, रंगमंच घूम जाता है और दूसरा दृश्य जो उसमें अन्यत्र पहले से ही सजा तैयार रहती है, समने आ जाता है। इसमें कुछ क्षण ही लगते हैं।
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रंगमंच
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चित्रपट (सिनेमा) के आ जाने से रंगमंच का स्थान बहुत संकीर्ण हो गया है। विशाल प्रेक्षागृहों में, केवल एक छोटा सा रंगमंच जिसपर कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर छोटे माटे नृत्य, या एकांकी आदि खेले जा सकें, बना देना पर्याप्त समझा जाता है। पृष्ठभूमि पर रजतपट रहता है : आवश्यकतानुसार एक दो पर्दे भी लगाए जा सकते हैं। वादित्र के लिए रंगमंच के सामने एक गढ़े में थोड़ा सा स्थान रहता है। दर्शकों के लिए अधिक स्थान होने के कारण उपयुक्त संवातन, ध्वनिनियंत्रण, एवं अन्य व्यवस्थाओं की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है। अब तो पाँच छह हजार दर्शकों के लिए स्थानवाले, बड़ी सुखप्रद कुर्सियों से युक्त प्रेक्षागृह सभी बड़े नगरों में बनते हैं।
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रंगमंच
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सिनेमा का आकर्षण अधिक होने पर भी, नाटकों के लिए उपयुक्त रंगमंच बनाने का पाश्चात्य देशों में काफी प्रयास हो रहा है। मनोरंजन की दृष्टि से कम, शिक्षा की दृष्टि से इनकी उपयोगिता अधिक समझी गई है। शैक्षणिक रंगमंच में अमरीका संसार में अग्रणी है। अमरीकी शैक्षणिक रंगमंच की शाखाएँ बहुत से विश्वविद्यालयों में खुली हैं।
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रंगमंच
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भारत में भी सिनेमा का प्रचार दिन दिन बढ़ रहा है। किंतु यहाँ देहात अधिक होने के कारण रंगमंच के लिए अब भी पर्याप्त क्षेत्र है और प्रोत्साहन मिलने पर यह सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग बना रहेगा। इस दृष्टि से रंगमंच के पति केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों की अनुभूति बढ़ती रही है और वे सक्रिय सहायता भी देती हैं।
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बिस्मार्क
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बिस्मार्क का मुख्य उद्देश्य प्रशा को शक्तिशाली बनाकर जर्मन संघ से ऑस्ट्रिया को बाहर निकालना एवं जर्मनी में उसके प्रभाव को समाप्त करके प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना था। इसके लिए आवश्यक था कि राज्य की सभी सत्ता व अधिकार राजा में केन्द्रित हों। बिस्मार्क राजतंत्र में विश्वास रखता था। अतः उसने राजतंत्र के केन्द्र बिन्दु पर ही समस्त जर्मनी की राष्ट्रीयता को एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न किया।
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बिस्मार्क
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बिस्मार्क ने अपने सम्पूर्ण कार्यक्रम के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा कि जर्मनी के एकीकरण के लिए प्रशा की अस्मिता नष्ट न हो जाए। वह प्रशा का बलिदान करने को तैयार नहीं था, जैसा कि पीडमोन्ट ने इटली के एकीकरण के लिए किया। वह प्रशा में ही जर्मनी को समाहित कर लेना चाहता था।
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बिस्मार्क
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बिस्मार्क नीचे के स्तर से जर्मनी का एकीकरण नहीं चाहता था, अर्थात् उदारवादी तरीके से जनता में एकीकरण की भावना जागृत करने के बदले व वह ऊपर से एकीकरण करना चाहता था अर्थात् कूटनीति एवं रक्त एवं लोहे की नीतियों द्वारा वह चाहता था कि जर्मन राज्यों की अधीनस्थ स्थिति हो, प्रशा की नहीं। इस दृष्टि से वह प्रशा के जर्मनीकरण नहीं बल्कि जर्मनी का प्रशाकरण करना चाहता था।
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बिस्मार्क
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बिस्मार्क 1862 में प्रशा का चान्सलर बना और अपनी कूटनीति, सूझबूझ रक्त एवं लौह की नीति के द्वारा जर्मनी का एकीकरण पूर्ण किया।
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बिस्मार्क
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1871 ई. में एकीकरण के बाद बिस्मार्क ने घोषणा की कि जर्मनी एक सन्तुष्ट राष्ट्र है और वह उपनिवेशवादी प्रसार में कोई रूचि नहीं रखता। इस तरह उसने जर्मनी के विस्तार संबंधी आशंकाओं को दूर करने का प्रयास किया। बिस्मार्क को जर्मनी की आन्तरिक समस्याओं से गुजरना पड़ा। इन समस्याओं के समाधान उसने प्रस्तुत किए। किन्तु समस्याओं की जटिलता ने उसे 1890 में त्यागपत्र देने को विवश कर दिया।
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बिस्मार्क
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एकीकरण के पश्चात जर्मनी में औद्योगीकरण तेजी से हुआ। कारखानों में मजदूरों की अतिशय वृद्धि हुई, किन्तु वहाँ उनकी स्थिति निम्न रही उनके रहने-खाने का कोई उचित प्रबंध नहीं था। आर्थिक और सामाजिक स्थिति खराब होने के कारण समाजवादियों का प्रभाव बढ़ने लगा और उन्हें अपना प्रबल शत्रु मानता था।
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बिस्मार्क
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पूरे जर्मनी में कई तरह के कानून व्याप्त थे। एकीकरण के दौरान हुए युद्धों से आर्थिक संसाधनों की कमी हो गयी थी। फलतः देश की आर्थिक प्रगति बाधित हो रही थी।
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बिस्मार्क
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बिस्मार्क को धार्मिक समस्या का भी सामना करना पड़ा। वस्तुतः प्रशा के लोग प्रोटेस्टेन्ट धर्म के अनुयायी थे जबकि जर्मनी के अन्य राज्यों की प्रजा अधिकांशतः कैथोलिक धर्म की अनुयायी थी। कैथोलिक लोग बिस्मार्क के एकीकरण के प्रबल विरोधी थे क्योंकि उन्हें भय था कि प्रोटेस्टेन्ट प्रशा उनका दमन कर देगा। ऑस्ट्रिया और फ्रांस को पराजित कर बिस्मार्क ने जर्मन कैथोलिक को नाराज कर दिया था, क्योंकि ये दोनों कैथोलिक देश थे। रोम से पोप की सत्ता समाप्त हो जाने से जर्मन कैथोलिक कु्रद्ध हो उठे और उन्होंने बिस्मार्क का विरोध करना शुरू कर दिया।
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बिस्मार्क
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आर्थिक एकता और विकास के लिए बिस्मार्क ने पूरे जर्मनी में एक ही प्रकार की मुद्रा का प्रचलन कराया। यातायात की सुविधा के लिए रेल्वे बोर्ड की स्थापना की और उसी से टेलीग्राफ विभाग को संबद्ध कर दिया। राज्य की ओर से बैंको की स्थापना की गई थी। विभिन्न राज्यों में प्रचलित कानूनों को स्थागित कर दिया गया और ऐसे कानूनों का निर्माण किया जो संपूर्ण जर्मन साम्राज्य में समान रूप से प्रचलित हुए।
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शारीरिकी
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अचल में वनस्पतिजगत तथा चल में प्राणीजगत का समावेश होता है और वनस्पति और प्राणी के संदर्भ में इसे क्रमश: पादप शारीरिकी और जीव शारीरिकी कहा जाता है। जब किसी विशेष प्राणी अथवा वनस्पति की शरीररचना का अध्ययन किया जाता है, तब इसे विशेष शारीरिकी अध्ययन कहते हैं। जब किसी प्राणी या वनस्पति की शरीर रचना की तुलना किसी दूसरे प्राणी अथवा वनस्पति की शरीर रचना से की जाती है उस स्थिति में यह अध्ययन तुलनात्मक शारीरिकी कहलाता है। जब किसी प्राणी के अंगों की रचना का अध्ययन किया जाता है, तब यह आंगिक शारीरिकी कहलाती है।
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शारीरिकी
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शरीररचना विज्ञान का इतिहास, मानव शरीर के अंगों और संरचनाओं के कार्यों की एक प्रगतिशील समझ से पहचाना जाता है। शवों और लाशों के विच्छेदन द्वारा जानवरों की अन्वीक्षा से 20वीं सदी की चिकित्सा प्रतिबिंबन तकनीकों जैसे कि एक्स-रे, पराध्वनि, और चुंबकीय अनुनाद प्रतिबिंबन इत्यादि को आगे बढ़ाते हुए तरीकों में भी नाटकीय रूप से सुधार हुआ है ।
| 0.5 | 4,512.010105 |
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शारीरिकी
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व्यावहारिक या लौकिक दृष्टि से मानव शरीररचना का अध्ययन अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। एक चिकित्सक को शरीररचना का अध्ययन कई दृष्टि से करना होता है, जैसे रूप, स्थिति, आकार एवं अन्य रचनाओं से संबंध।
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शारीरिकी
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आकारिकीय शरीररचना विज्ञान (Morphological Anatomy) की दृष्टि से मानवशरीर के भीतर अंगों की उत्पत्ति के कारणों का ज्ञान, अन्वेषण का विषय बन गया है। इस ज्ञान की वृद्धि के लिए भ्रूणविज्ञान (Embryology), जीवविकास विज्ञान, जातिविकास विज्ञान एवं ऊतक विज्ञान (Histo-anatomy) का अध्ययन आवश्यक है।
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शारीरिकी
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मानव की विभिन्न प्रजातियों की शरीररचना का जब तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है, तब मानवविज्ञान (Anthropology) का सहारा लिया जाता है। आजकल शरीररचना का अध्ययन सर्वांगी (systemic) विधि से किया जाता है।
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शारीरिकी
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ईसा से 1,000 वर्ष पूर्व महर्षि सुश्रुत ने शवच्छेद कर शरीररचना का पर्याप्त वर्णन किया था। धीरे-धीरे यह ज्ञान अरब और यूनान होता हुआ यूरोप में पहुँचा और वहाँ पर इसका बहुत विस्तार एवं उन्नति हुई। शव की संरक्षा के साधन, सूक्ष्मदर्शी, ऐक्सरे आदि के उपलब्ध होने पर शरीररचना विज्ञान का अध्ययन अधिक सूक्ष्म एवं विस्तृत हो गया है। शरीर रचना की सबसे छोटी इकाई कोशिका है। बहुत सी कोशिकाएँ मिलकर ऊतक बनते हैं; एक या अनेक प्रकार के ऊतकों से अंग बनते हैं; कई अंग मिलकर एक तंत्र बनाते हैं। शरीर कई तन्त्रों का समूह है।
| 0.5 | 4,512.010105 |
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शारीरिकी
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शरीर का निर्माण करनेवाले जीवित एकक (unit) को कोशिका (cell) कहते हैं। यह सूक्ष्मदर्शी से देखी जा सकती है। कोशिका एक स्वच्छ लसलसे रस से, जिसे जीवद्रव्य कहते हैं, भरी रहती है। कोशिका को चारों ओर से घेरनेवाली कला को कोशिका झिल्ली कहते हैं। कोशिका के केंद्र में केन्द्रक (न्यूक्लियस) रहता है, जो कोशिका पर नियंत्रण करता है। कोशिका के जीवित होने का लक्षण यही है कि उसमें अभिक्रिया, शक्ति, एकीकरण शक्ति, वृद्धि, विसर्जन शक्ति तथा उत्पादन शक्ति, उपस्थित रहे। शरीर का स्वास्थ्य कोशिकाओं के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।
| 0.5 | 4,512.010105 |
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शारीरिकी
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एक प्रकार की आकृति एवं कार्य करनेवाली कोशिकाएँ मिलकर, एक विशेष प्रकार के ऊतक (Tissues) का निर्माण करती हैं। जन्तुओं में मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के ऊतक पाये जाते हैं :
| 0.5 | 4,512.010105 |
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शारीरिकी
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धरातलीय शारीरिकी (Superficial or surface anatomy) शरीरशास्त्र की यह महत्वपूर्ण शाखा है और शल्य चिकित्सा तथा रोग निदान में अत्यन्त सहायक होती है। इसी से ज्ञात होता है कि दाहिनी दसवीं पर्शुका के कार्टिलेज के नीचे पित्ताशय रहता है; या हृदय का शीर्ष (apex) 5वीं अंतरपर्शुका से सटा, शरीर की मध्य रेखा से 9 सेमी. बाईं ओर होता है; अथवा भगास्थि, ट्यूबरकल से 1 सेमी. ऊपर होती है तथा 1 सेमी. पार्श्व में बाह्य उदरी मुद्रिका छिद्र रहता है। शरीर में स्थित जहाँ बिंदु त्वचा पर पहचाने जा सकते हैं, वहाँ से त्वचा के अंतः स्थित अंगों को त्वचा पर खींचकर, उस स्थान पर काटने पर वही अंग हमें मिलना चाहिए।
| 0.5 | 4,512.010105 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%90
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ॐ
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अक्षरका अर्थ जिसका कभी क्षरण न हो। ऐसे तीन अक्षरों— अ उ और म से मिलकर बना है ॐ। माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्डसे सदा ॐ की ध्वनी निसृत होती रहती है। हमारी और आपके हर श्वास से ॐ की ही ध्वनि निकलती है। यही हमारे-आपके श्वास की गति को नियंत्रित करता है। माना गया है कि अत्यन्त पवित्र और शक्तिशाली है ॐ। किसी भी मंत्र से पहले यदि ॐ जोड़ दिया जाए तो वह पूर्णतया शुद्ध और शक्ति-सम्पन्न हो जाता है। किसी देवी-देवता, ग्रह या ईश्वर के मंत्रों के पहले ॐ लगाना आवश्यक होता है, जैसे, श्रीराम का मंत्र — ॐ रामाय नमः, विष्णु का मंत्र — ॐ विष्णवे नमः, शिव का मंत्र — ॐ नमः शिवाय, प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि ॐ से रहित कोई मंत्र फलदायी नहीं होता, चाहे उसका कितना भी जाप हो। मंत्र के रूप में मात्र ॐ भी पर्याप्त है। माना जाता है कि एक बार ॐ का जाप हज़ार बार किसी मंत्र के जाप से महत्वपूर्ण है। ॐ का दूसरा नाम प्रणव (परमेश्वर) है। "तस्य वाचकः प्रणवः" अर्थात् उस परमेश्वर का वाचक प्रणव है। इस तरह प्रणव अथवा ॐ एवं ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। ॐ अक्षर है इसका क्षरण अथवा विनाश नहीं होता।
| 0.5 | 4,503.628692 |
20231101.hi_63389_16
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%90
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ॐ
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ॐ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का प्रदायक है। मात्र ॐ का जप कर कई साधकों ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर ली। कोशीतकी ऋषि निस्संतान थे, संतान प्राप्तिके लिए उन्होंने सूर्यका ध्यान कर ॐ का जाप किया तो उन्हे पुत्र प्राप्ति हो गई।
| 0.5 | 4,503.628692 |
20231101.hi_63389_17
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%90
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ॐ
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गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में उल्लेख है कि जो "कुश" के आसन पर पूर्व की ओर मुख कर एक हज़ार बार ॐ रूपी मंत्र का जाप करता है, उसके सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं।
| 0.5 | 4,503.628692 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%90
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ॐ
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श्रीमद्भगवद्गीता में ॐ के महत्व को कई बार रेखांकित किया गया है। इसके आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है कि जो ॐ अक्षर रूपी ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह परम गति प्राप्त करता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%90
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ॐ
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ॐ अर्थात् ओउम् तीन अक्षरों से बना है, जो सर्व विदित है। अ उ म्। "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ में प्रयुक्त "अ" तो सृष्टि के जन्म की ओर इंगित करता है, वहीं "उ" उड़ने का अर्थ देता है, जिसका मतलब है "ऊर्जा" सम्पन्न होना। किसी ऊर्जावान मंदिर या तीर्थस्थल जाने पर वहाँ की अगाध ऊर्जा ग्रहण करने के बाद व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को आकाश में उड़ता हुआ देखता है। मौन का महत्व ज्ञानियों ने बताया ही है। अंग्रजी में एक उक्ति है — "साइलेंस इज़ सिल्वर ऍण्ड ऍब्सल्यूट साइलेंस इज़ गोल्ड"। श्री गीता जी में परमेश्वर श्रीकृष्ण ने मौन के महत्व को प्रतिपादित करते हुए स्वयं को मौनका ही पर्याय बताया है —
| 1 | 4,503.628692 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%90
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ॐ
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"ध्यान बिन्दुपनिषद्" के अनुसार ॐ मन्त्र की विशेषता यह है कि पवित्र या अपवित्र सभी स्थितियों में जो इसका जप करता है, उसे लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है। जिस तरह कमल-पत्र पर जल नहीं ठहरता है, ठीक उसी तरह जप-कर्ता पर कोई कलुष नहीं लगता।
| 0.5 | 4,503.628692 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%90
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ॐ
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ओमिति ब्रह्म । ओमितीदँसर्वम् । ओमित्येतदनुकृतिर्हस्म वा अप्यो श्रावयेत्याश्रावयन्ति । ओमिति सामानि गायन्ति ।ओँशोमिति शस्त्राणि शँसन्ति । ओमित्यध्वर्युः प्रतिगरं प्रतिगृणाति । ओमिति ब्रह्मा प्रसौति । ओमित्यग्निहोत्रमनुजानाति ।
| 0.5 | 4,503.628692 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%90
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ॐ
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अर्थातः- ॐ ही ब्रह्म है। ॐ ही यह प्रत्यक्ष जगत् है। ॐ ही इसकी (जगत की) अनुकृति है। हे आचार्य! ॐ के विषय में और भी सुनाएँ। आचार्य सुनाते हैं। ॐ से प्रारम्भ करके साम गायक सामगान करते हैं। ॐ-ॐ कहते हुए ही शस्त्र रूप मन्त्र पढ़े जाते हैं। ॐ से ही अध्वर्यु प्रतिगर मन्त्रों का उच्चारण करता है। ॐ कहकर ही अग्निहोत्र प्रारम्भ किया जाता है। अध्ययन के समय ब्राह्मण ॐ कहकर ही ब्रह्म को प्राप्त करने की बात करता है। ॐ के द्वारा ही वह ब्रह्म को प्राप्त करता है।सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति
| 0.5 | 4,503.628692 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%90
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ॐ
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अर्थातः- सारे वेद जिस पद का वर्णन करते हैं, समस्त तपों को जिसकी प्राप्ति के साधक कहते हैं, जिसकी इक्षा से (मुमुक्षुजन) ब्रह्मचर्य का पालन करते है, उस पद को मैं तुमसे संक्षेप में कहता हूँ। ॐ यही वह पद है।ऋग्भिरेतं यजुर्भिरन्तरिक्षं
| 0.5 | 4,503.628692 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A5%82
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बिच्छू
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मध्यकाय के प्रथम खंड की उरोस्थि (sternum) पर जननांगी प्रच्छद ढक्कन (genital operculum) पाया जाता है, जो दरार (cleft) से विभाजित, कोमल, मध्यस्थ, गोल पालि (lobe) हैं। इसके आधार पर जननांगी वाहिनी का मुँह होता हैं। दूसरे खंड की उरोस्थि से दो कंघीनुमा पेक्टिन (pectins) जुड़े होते हैं। क्रिया की दृष्टि से ये स्पर्शक (tactile) हैं।
| 0.5 | 4,497.391332 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A5%82
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बिच्छू
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मध्यकाय के तीसरे, चौथे, पाँचवें और छठे खंडों की उरोस्थियाँ बहुत चौड़ी होती हैं और प्रत्येक पर दो तिर्यक् रेखाछिद्र (oblique slits) रहते हैं, जिन्हें बदुदृक् (stigmata) कहते हैं। ये फुफ्फुसी कोश (Pulmonary sacs) में पाए जाते हैं। शेष मध्यकायिक तथा मेटासोमा के खंड उपांगविहीन होते हैं।
| 0.5 | 4,497.391332 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A5%82
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बिच्छू
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शिरोवक्ष के अग्र में अनेक प्रक्रियाओं का एक काइटिनी (chitinous) प्लेट हैं, जिससे विभिन्न दिशाओं से आनेवाली पेशियाँ जुड़ी होती हैं। इस काइटिनी प्लेट को एंडोस्टर्नाइट (Endosternite) कहते हैं।
| 0.5 | 4,497.391332 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A5%82
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बिच्छू
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आहारनाल (alimentary canal) एक सीधी नली हे जो मुँह से गुदा तक जाती है। इसे चार प्रधान भागों में विभक्त किया जा सकता है : (1) मुखपूर्वी कोटर (preoral cavity), (2) अग्रांत्र (foregut) या मुखपथ (stomadaeum), (3) मध्यांत्र (midgut) या मेसेंटरॉन (mesenteron) और (4) पश्चांत्र या गुदपथ (proctodaeum) या पाचन की प्रक्रिया में उदर ग्रंथियाँ और हेपैटोपैंक्रिअस (hepato-pancreas) सहचरित अग (organs) होते हैं।
| 0.5 | 4,497.391332 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A5%82
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बिच्छू
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बिच्छू का परिसंचरण तंत्र सुविकसित होता हैं। इसमें नलिकाकार ऑस्टिएट (ostiate), हृदय, धमनियाँ, शिराएँ और कोटर (sinuses) हैं। रक्त रंगहीन तरल के रूप में नीली छटा से युक्त होता है, जो उसमें घुले हीमोसायनिन रंगद्रव्य के कारण होती है। इसमें असंख्य केंद्रिकित (nucleated) कणिकाएँ होती हैं।
| 1 | 4,497.391332 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A5%82
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बिच्छू
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तीसरे से छठे मध्यकायिक खंड के अधर पार्श्वक बगल में चार जोड़ा पुस्त-फुफ्फुस (booklungs) स्थित होते हैं। प्रत्येक पुस्त-फुफ्फुस (1) फुफ्फुस कोष्ठ जिसमें खोखली पटलिकाएँ होती हैं तथा जिनमें रक्त प्रवाहित होता है, (2) वायुपरिकोष्ठ (atsium) और (3) बाहर की ओर खुलनेवाले दृग्बिंदु (stigma) का बना होता है।
| 0.5 | 4,497.391332 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A5%82
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बिच्छू
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बिच्छू की श्वसन क्रियाविधि में शरीर की पृष्ठपार्श्वीय (dorsolateral) पेशियों की सक्रियता के कारण फुफ्फुस का तालबद्ध संकुचन और शिथिलन (contraction & relaxation) होता है। बिच्छू में पुस्तफुफ्फुस के अतिरिक्त अन्य श्वसन अंगों का अभाव है। त्वक्श्वसन (cutaneous respiration) नहीं होता।
| 0.5 | 4,497.391332 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A5%82
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बिच्छू
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बिच्छू में तीन भिन्न अंगों से उत्सर्जन की क्रिया होती है : (1) एक जोड़ा मैलपीगी नलिकाएँ (Malpighian tubules), जिनका रंग भूरा होता है, (2) एक जोड़ा श्रोणि ग्रंथियाँ (coxal glands) तथा (3) एक यकृत अथवा हेपैटोपैंक्रिअस (Hepato-pancreas)।
| 0.5 | 4,497.391332 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A5%82
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बिच्छू
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नर मादा के लिंग अलग अलग होते हैं। नर मादा की अपेक्षा छोटा होता है और उसका उदर अपेक्षाकृत सँकरा होता है। नर के पश्चस्पर्शक प्राय: अपेक्षाकृत लंबे और अंगुलियाँ छोटी और पुष्ट होती हैं। नर की दुम प्राय: मादा की अपेक्षा लंबी होती है। जननिक प्रच्छद (genital operculum) सदैव दो आवरकों (flaps) का बना होता है।
| 0.5 | 4,497.391332 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95
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विधायक
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न्यूफ़ाउंडलैंड और लेब्राडार, जहां उनको विधानसभा का सदस्य (मेम्बर्स ऑफ हाउस ऑफ एसेम्बली - एमएचए) कहा जाता है।
| 0.5 | 4,469.563591 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95
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विधायक
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ब्रिटिश कोलंबिया, एल्बर्टा, सासकेश्वान, मैनीटोबा, न्यू ब्रन्सविक, नोवा स्कोटिया (हाउस ऑफ एसेम्बली होने के बावजूद), प्रिंस एडवर्ड आइलैंड तथा तीन क्षेत्रों (युकोन, एनडब्ल्यूटी तथा नूनावुट) की विधान सभा के सदस्यों को एमएलए कहा जाता है।
| 0.5 | 4,469.563591 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95
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विधायक
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विधान सभा का सदस्य (एमएलए) वह प्रतिनिधि है जिसे भारतीय सरकारी प्रणाली के तहत एक निर्वाचन जिले के मतदाताओं द्वारा किसी राज्य के विधानमंडल के लिए चुना जाता है।
| 0.5 | 4,469.563591 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95
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विधायक
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उत्तरी आयरलैंड की विधायिका, उत्तरी आयरलैंड के बर्खास्त विधान मंडल के सदस्यों को एमएलए (मेम्बर्स ऑफ दी लेजिस्लेटिव एसेंबली - विधान सभा के सदस्य) के नाम से जाना जाता है।
| 0.5 | 4,469.563591 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95
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विधायक
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विधानसभा को 14 अक्टूबर 2002 को निलंबित कर दिया गया था लेकिन 2003 के विधान सभा चुनावों में चुने गए व्यक्तियों को उत्तरी आयरलैंड एक्ट 2006 के तहत, उत्तरी आयरलैंड की बर्खास्त सरकार की बहाली की शुरुआत के तौर पर फर्स्ट मिनिस्टर तथा डेप्युटी फर्स्ट मिनिस्टर एवं कार्यपालिका के सदस्यों का चयन करने के लिए (25 नवम्बर 2006 से पहले) 15 मई 2006 को एक साथ बुलाया गया। 7 मार्च 2007 को फिर से चुनाव करवाया गया और मई 2007 में विधान सभा को अपनी पूर्ण शक्तियों के साथ बहाल कर दिया गया।
| 1 | 4,469.563591 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95
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विधायक
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संयुक्त राज्य अमेरिका में लेजिस्लेटर (विधायक) शब्द का प्रयोग देश के 50 राज्यों में से किसी भी राज्य की विधायिका के सदस्यों के लिए किया जाता है।
| 0.5 | 4,469.563591 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95
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विधायक
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औपचारिक नाम एक राज्य से दूसरे राज्य में बदलता रहता है। 24 राज्यों में लेजिस्लेचर (विधान मंडल) को केवल लेजिस्लेचर ही कहा जाता है जबकि 19 राज्यों में इसे जनरल एसेम्बली कहा जाता है। मैसाचुसेट्स और न्यू हैम्पशायर में लेजिस्लेचर को जनरल कोर्ट कहा जाता है, जबकि उत्तरी डकोटा और ओरेगन में इसे लेजिस्लेटिव एसेंबली कहा जाता है।
| 0.5 | 4,469.563591 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95
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विधायक
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जैसे कि यूनाइटेड स्टेट्स हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के सदस्य, काँग्रेसमेन या रिप्रेजेंटेटिव्स के तौर पर संदर्भित किये जाने के बावजूद आधिकारिक तौर पर मेंबर ऑफ काँग्रेस (संक्षेप में एमसी) होते हैं, राज्यों के लेजिस्लेचर के निचले सदन के सदस्य, सामान्य तौर पर रिप्रेजेंटेटिव्स या एसेंबलीमेन के तौर पर संदर्भित किये जाने के बावजूद मेंबर ऑफ लेजिस्लेचर (एमएल), मेंबर ऑफ स्टेट लेजिस्लेचर
| 0.5 | 4,469.563591 |
20231101.hi_228457_15
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95
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विधायक
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(एमएसएल), मेंबर ऑफ दी जनरल एसेंबली (एमजीए), मेंबर ऑफ दी जनरल कोर्ट (एमजीसी) या मेंबर ऑफ दी लेजिस्लेटिव एसेंबली (एमएलए) होते हैं।
| 0.5 | 4,469.563591 |
20231101.hi_26620_2
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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त्वरण
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सामान्यतः वस्तु की गति की अवधि में उसके वेग में परिवर्तन होता रहता है। वेग में हो रहे इस परिवर्तन को कैसे व्यक्त करें। वेग में हो रहे इस परिवर्तन को समय के सापेक्ष व्यक्त करना चाहिए या दूरी के सापेक्ष? यह समस्या गैलिलैयो के समय भी थी। गैलिलैयो ने पहले सोचा कि वेग में हो रहे परिवर्तन की इस दर को दूरी के सापेक्ष व्यक्त किया जा सकता है किन्तु जब उन्होंने मुक्त रूप से गिरती हुई तथा नत समतल पर गतिमान वस्तुओं की गति का विधिवत् अध्ययन किया तो उन्होंने पाया कि समय के सापेक्ष वेग परिवर्तन की दर का मान मुक्त रूप से गिरती हुई वस्तुओं हेतु, स्थिर रहता है जबकि दूरी के सापेक्ष वस्तु का वेग परिवर्तन स्थिर नहीं रहता वरन जैसे-जैसे गिरती हुई वस्तु की दूरी बढ़ती जाती है वैसे-वैसे यह मान घटता जाता है। इस अध्ययन ने त्वरण की वर्तमान धारणा को जन्म दिया जिसके अनुसार त्वरण को हम समय के सापेक्ष वेग परिवर्तन के रूप में परिभाषित करते हैं।
| 0.5 | 4,460.115675 |
20231101.hi_26620_3
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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त्वरण
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जब किसी वस्तु का वेग समय के सापेक्ष बदलता है तो उसमें त्वरण हो रहा है । वेग में परिवर्तन तथा तत्सम्बन्धित समयान्तराल के अनुपात को औसत त्वरण कहते हैं। इसे से प्रदर्शित करते हैं:
| 0.5 | 4,460.115675 |
20231101.hi_26620_4
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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त्वरण
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यहां t0,t क्षणों पर वस्तु का वेग क्रमशः v0,v है। यह एकांक समय में वेग में औसत परिवर्तन होता है। त्वरण का SI मात्रक ms² है ।
| 0.5 | 4,460.115675 |
20231101.hi_26620_5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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त्वरण
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वेग-समय (v-t) ग्राफ से वस्तु का औसत त्वरण उस सरल रेखा की प्रावण्य के बराबर होता है जो बिन्दु (v, t) को बिन्दु (v0, t0) से जोड़ती है।
| 0.5 | 4,460.115675 |
20231101.hi_26620_6
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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त्वरण
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गतिमान वस्तु का तात्क्षणिक त्वरण उसके औसत त्वरण के समान होगा यदि उसके दो समयों (t तथा (t+∆t)) के मध्य का अन्तराल (∆t) अनन्तसूक्ष्म हो। तात्क्षणिक त्वरण समय के एक अनन्तसूक्ष्म अन्तराल पर औसत त्वरण की सीमा है। कलन के सन्दर्भ में, तात्क्षणिक त्वरण समय के सापेक्ष वेग सदिश का अवकलज है:
| 1 | 4,460.115675 |
20231101.hi_26620_7
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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त्वरण
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जैसा कि त्वरण को वेग, v, का समय t के सापेक्ष अवकलज के रूप में परिभाषित किया गया है और वेग को स्थिति, x, का समय के सापेक्ष अवकलज के रूप में परिभाषित किया गया है, त्वरण को t के सापेक्ष x के द्वितीय अवकलज के रूप में माना जा सकता है:
| 0.5 | 4,460.115675 |
20231101.hi_26620_8
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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त्वरण
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कलन का मूलभूत प्रमेय द्वारा, यह देखा जा सकता है कि त्वरण फलन a(t) का समाकलज वेग फलन v(t) है; अर्थात्, त्वरण बनाम समय (a-t) ग्राफ के वक्र के नीचे का क्षेत्र वेग के परिवर्तन से मेल खाता है।
| 0.5 | 4,460.115675 |
20231101.hi_26620_9
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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त्वरण
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गति की दिशा में गतिपथ के स्पर्शरेखीय इकाई सदिश है। ध्यान दें कि यहाँ v(t) तथा ut दोनों समय के साथ परिवर्तन्शील हैं, त्वरण की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जायेगी:
| 0.5 | 4,460.115675 |
20231101.hi_26620_10
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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त्वरण
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जहाँ un इकाई नॉर्मल सदिश (अन्दर की तरफ) है तथा r उस क्षण पर वक्रता त्रिज्या है। त्वरन के इन दो घटकों को क्रमशः स्पर्शरेखीय त्वरण (tangential acceleration) तथा नॉर्मल त्वरन या त्रिज्य त्वरण या अभिकेन्द्रीय त्वरण (centripetal acceleration) कहते हैं।
| 0.5 | 4,460.115675 |
20231101.hi_219354_18
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A5%E0%A4%A8
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मैराथन
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42.195 किमी और 26 मील 385 गज़ की दूरी में सिर्फ़ आधे इंच का फ़र्क है। मानक दूरी और ज़्यादातर इस्तेमाल में ली जानी वाली दूरी (तालिका देखें), 26.22 मील में दो मीटर या 6.6 फ़ुट से ज़्यादा है। आईएएफ़ द्वारा किसी मैराथन दौड़ की पुष्टि तभी होती है जब उसकी दूरी 42.195 किमी से कम न हो और लंबाई की अनिश्चितता 42 मीटर (अर्थात् 0.1%) से कम होनी चाहिए। आईएएफ़-प्रमाणित दौड़ के रास्तों को अक्सर एक मीटर प्रति किलोमीटर लंबा किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि वे छोटे न रह जाएँ। मैराथन के मामले में इसकी बदौलत लंबाई 46 गज़ बढ़ जाती है।
| 0.5 | 4,427.155697 |
20231101.hi_219354_19
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A5%E0%A4%A8
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मैराथन
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हर साल पूरी दुनिया में 500 से ज़्यादा मैराथन आयोजित होती हैं। इनमें से कई अंतर्राष्ट्रीय मैराथन और लंबी दौड़ संगठन (एआईएमएस) की हैं जो कि 1982 में अपनी स्थापना के बाद से 83 देशों और क्षेत्रों के 300 से अधिक आयोजन करता है। सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित दौड़ों में से पाँच, बोस्टन, न्यू यार्क शहर, शिकागो, लंदन और बर्लिन, मिल के द्विवार्षिक विश्व मैराथन प्रमुख शृंखला बनती है, जो कि शृंखला के सबसे अच्छे महिला व पुरुष धावकों को $500,000 से सालाना नवाज़ती है।
| 0.5 | 4,427.155697 |
20231101.hi_219354_20
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A5%E0%A4%A8
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मैराथन
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2006 में, रनर्स वर्ल्ड के संपादकों ने "दूनिया के 10 सबसे बड़े मैराथन" चुने, इनमें उपरोक्त पाँच आयोजनों के अलावा एम्स्टर्डम, होनोलुलु, पेरिस, रोटर्डम और स्टॉकहोम मैराथन शामिल थे। अन्य उल्लेखनीय मैराथनों में शामिल हैं संयुक्त राज्य मरीन कोर मैराथन, लॉस एंजेलेस और रोम. बोस्टन मैराथन दुनिया का सबसे पुराना वार्षिक मैराथन है, यह 1896 के ओलंपिक मैराथन से प्रेरित हुआ और 1897 से चल रहा है। यूरोप का सबसे पुराना मैराथन, कोसीच शांति मैराथन 1924 में कोसीच, स्लोवाकिया में स्थापित हुआ।
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मैराथन
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एक अनोखा मैराथन है मिडनाइट सन मैराथन जो कि ट्रोम्सो, नार्वे में 70वाँ समानांतर उत्तर में आयोजित होता है। अनाधिकारिक और अस्थायी रास्तों का जीपीएस द्वारा नाप के, मैराथन की दूरी की दौड़ें अब उत्तरी ध्रुव, अंटार्कटिका और रेगिस्तानी इलाकों में भी होती है। अन्य असाधारण मैराथनों में हैं चीन की विशाल दीवार पर होने वाला विशाल दीवार मैराथन, दक्षिण अफ़्रीका के जंगली इलाकों में बिग फ़ाइव मैराथन तिब्बती बौद्ध माहौल में की ऊँचाई में होने वाला विशाल तिब्बती मैराथन और ग्रीनलैंड की स्थायी बर्फ़ीली परत में -15 अंश सेल्सियस में होने वाला ध्रुवीय वृत मैराथन।
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मैराथन
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कुछ सुंदर मैराथन रस्ते हैं: स्टीमबोट मैराथन, स्टीमबोट स्प्रिंग्स, कोलोराडो; मेयर्स मैराथन, एंकोरेज, अलास्का; कोना मैराथन, क्याहू/कोना हवाई; सैन फ़्रैंसिस्को मैराथन, कैलिफ़ोर्निया।
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मैराथन
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अंतर्महाद्वीपीय इस्तांबुल यूरेशिया मैराथन एकमात्र ऐसा मैराथन है जिसमें धावक यूरोप और एशिया, दो महाद्वीपों में दौड़ते हैं। ऐतिहासिक पॉलीटेक्निक मैराथन 1996 में बंद कर दिया गया था।
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मैराथन
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डेनिस क्रेथर्न और रिच हाना की लिखी दि अल्टिमेट गाइड टु इंटर्नेशनल मैराथंस (1997), स्टॉकहोम मैराथन को विश्व का सबसे अच्छा मैराथन बताती है।
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मैराथन
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World records were not officially recognized by the आइएएएफ until January 1, 2004; previously, the best times for the marathon were referred to as the 'world best'. Courses must conform to आइएएएफ standards for a record to be recognized. However, marathon routes still vary greatly in elevation, course, and surface, making exact comparisons impossible. Typically, the fastest times are set over relatively flat courses near sea level, during good weather conditions and with the assistance of pacesetters.
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मैराथन
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The world record time for men over the distance is 2 hours 3 minutes and 59 seconds, set in the Berlin Marathon by Haile Gebrselassie of Ethiopia on September 28, 2008, an improvement of 51 minutes and 19 seconds since Johnny Hayes' gold medal performance at the 1908 Summer Olympics. Gebrselassie's world record represents an average pace of under 2:57 per kilometre (4:44 per mile), average speed of over 20.4 km/h (12.6 mph). The world record for women was set by Paula Radcliffe of Great Britain in the London Marathon on April 13, 2003, in 2 hours 15 minutes and 25 seconds. This time was set using male pacesetters; the fastest time by a woman without using a male pacesetter ("woman-only") was also set by Paula Radcliffe, again during the London Marathon, with a time of 2 hours 17 minutes and 42 seconds, on April 17, 2005.
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मेहरानगढ़
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500 साल की अवधि में मेहरानगढ़ किले और महलों को बनाया गया था। किले की वास्तुकला में आप 20 वीं शताब्दी की वास्तुकला की विशेषताओं के साथ 5 वीं शताब्दी की बुनियादी वास्तुकला शैली को भी देख सकते हैं। किले में 68 फीट चौड़ी और 117 फीट लंबी दीवारें है। मेहरानगढ़ किले में सात द्वार हैं जिनमें से जयपोली सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। किले की वास्तुकला 500 वर्षों की अवधि के विकास से गुजरी है। महाराजा अजीत सिंह के शासन के समय इस किले की कई इमारतों का निर्माण मुगल डिजाइन में किया गया है। इस किले में पर्यटकों को आकर्षित कर देने वाले सात द्वारों के अलावा मोती महल (पर्ल पैलेस), फूल महल (फूल महल), दौलत खाना, शीश महल (दर्पण पैलेस) और सुरेश खान जैसे कई शानदार शैली में बने कमरें हैं। मोती महल का निर्माण राजा सूर सिंह द्वारा बनवाया गया था। शीश महल, या हॉल ऑफ मिरर्स बेहद आकर्षक है जो अपनी दर्पण के टुकड़ों पर जटिल डिजाइन की वजह से पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। फूल महल का निर्माण महाराजा अभय सिंह ने करवाया था।
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मेहरानगढ़
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किले के निर्माण के लिए राव जोधा को एक ऋषि चीरिया नाथजी को जबरदस्ती इस जगह से हटाया था जिसके बाद उस ऋषि ने राजा को शाप दिया था कि इस किले को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। लेकिन बाद में राव जोधा ने उनके लिए एक मंदिर और एक घर बनवाकर उन्हें प्रसन्न किया।
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मेहरानगढ़
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जब आप इस किले को देखने के लिए जायेंगे तो इसके मुख्य द्वार के सामने आपको कुछ लोग लोक नृत्य करते नजर आयेंगे।
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मेहरानगढ़
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कई हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों को किले में शूट किया गया है जिसमें फिल्म द डार्क नाइट राइजेस, द लायन किंग,और ठग्स ऑफ हिंदोस्तान के नाम शामिल हैं।
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मेहरानगढ़
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यहां जाने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के मौसम का है। अक्टूबर से मार्च के के महीनों के बीच यहां का मौसम काफी ठंडा और सुखद रहता है। इस मौसम में आप पूरे किले को एक्सप्लोर कर सकते हैं। किला घूमने के लिए आप सर्दियों के मौसम में सुबह के समय जाएँ। यह किला सुबह 9:00 बजे पर्यटकों के लिए खोला जाता। आप दो या तीन घंटे एक किले में बिताने के बाद यहां के पास के पर्यटन स्थलों पर जा सकते हैं।
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मेहरानगढ़
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जोधपुर एक ऐसा शहर है जहां के व्यंजन मिर्च मसाले से भरपूर होते हैं। यहां पर पर्याप्त मात्रा में स्ट्रीट फूड और मिठाइयां उपलब्ध हैं। यहां आप मिर्ची बड़ा, मावा कचोरी और प्याज़ कचोरी जैसे कुछ स्वादिष्ट स्ट्रीट फूड का स्वाद भी ले सकते हैं इसके अलावा यहां के मखानिया लस्सी भी काफी लोकप्रिय है। अगर आप इस शहर में कुछ मीठा खाना चाहते हैं तो यहां मिलने वाले भोग बेसन की चक्की, मावे की कचौरी, मोतीचूर के लड्डू और मखान वडे का मजा भी ले सकते हैं।
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मेहरानगढ़
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राव जोधा डेजर्ट रॉक पार्क किले के पास स्थित है जो प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के सामान है। यह पार्क 72 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है जहां रेगिस्तान और शुष्क वनस्पति पाई जाती है। इस पार्क में पर्यटक गाइड के साथ 880 से 1100 मीटर लंबे रोमांचक रास्ते जा सकते हैं जहां पर कुछ अनोखे पौधों को देखा जा सकता है।
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मेहरानगढ़
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चोकेलो गार्डन मेहरानगढ़ किले के ठीक नीचे स्थित है जिसे आपको अपनी किले की यात्रा में जरुर शामिल करना चाहिए। यह गार्डन 18 वीं शताब्दी का है जिसके बाद इसका जीर्णोद्धार किया गया है। इस गार्डन में एक रेस्टोरेंट भी है जहां से आप मनोरम दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।
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मेहरानगढ़
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नागणेचजी मंदिर किले के बिलकुल दाईं ओर स्थित है जिसका निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया गया था, जब राव धुहड़ ने मूर्ति को मारवाड़ में लाया था जिसको बाद में किले में स्थापित कर दिया गया था।
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रामभद्राचार्य
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राघव गीत गुंजन – हिन्दी में रचित गीतों का संग्रह। राघव साहित्य प्रकाशन निधि, राजकोट द्वारा प्रकाशित।
| 0.5 | 4,423.842315 |
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रामभद्राचार्य
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भक्ति गीत सुधा – भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण पर रचित ४३८ गीतों का संग्रह। राघव साहित्य प्रकाशन निधि, राजकोट द्वारा प्रकाशित।
| 0.5 | 4,423.842315 |
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रामभद्राचार्य
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गीतरामायणम् (२०११) – सम्पूर्ण रामायण की कथा को वर्णित करने वाला लोकधुनों की ढाल पर रचित १००८ संस्कृत गीतों का महाकाव्य। यह महाकाव्य ३६-३६ गीतों से युक्त २८ सर्गों में विभक्त है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
| 0.5 | 4,423.842315 |
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रामभद्राचार्य
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श्रीसीतारामकेलिकौमुदी (२००८) – १०९ पदों के तीन भागों में विभक्त प्राकृत के छः छन्दों में बद्ध ३२७ पदों में विरचित हिन्दी (ब्रज, अवधी और मैथिली) भाषा में रचित रीतिकाव्य। काव्य का वर्ण्य विषय बाल रूप श्रीराम और माता सीता की लीलाएँ हैं। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
| 0.5 | 4,423.842315 |
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रामभद्राचार्य
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श्रीरामभक्तिसर्वस्वम् – १०० श्लोकों में रचित संस्कृत काव्य जिसमें रामभक्ति का सार वर्णित है। त्रिवेणी धाम, जयपुर द्वारा प्रकाशित।
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रामभद्राचार्य
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श्रीराघवचरणचिह्नशतकम् – श्रीराम के चरणचिह्नों की प्रशंसा में १०० श्लोकों में रचित संस्कृत काव्य। अप्रकाशित।
| 0.5 | 4,423.842315 |
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रामभद्राचार्य
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श्रीगंगामहिम्नस्तोत्रम् – गंगा नदी की महिमा का वर्णन करता संस्कृत काव्य। राघव साहित्य प्रकाशन निधि, राजकोट द्वारा प्रकाशित।
| 0.5 | 4,423.842315 |
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रामभद्राचार्य
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श्रीजानकीकृपाकटाक्षस्तोत्रम् – सीता माता के कृपा कटाक्ष का वर्णन करता संस्कृत काव्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
| 0.5 | 4,423.842315 |
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रामभद्राचार्य
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श्रीरामवल्लभास्तोत्रम् – सीता माता की प्रशंसा में रचित संस्कृत काव्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
| 0.5 | 4,423.842315 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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भास
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यह लोककथा सम्बन्धी छः अंकों का रूपक है। इसमें राजा कुन्तिभोज की पुत्री कुरंगी का राजकुमार अविमारक से प्रणय एवं विवाह का वर्णन है। नायक के आधार पर इसका नामकरण अविमारक रखा गया है। अविमारक का यथार्थ नाम विष्णुसेन था तथा अवि रूपधारी असुर को मारने से उसकी संज्ञा अविमारक है।
| 0.5 | 4,398.295858 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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भास
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नाटक का नायक अविमारक है। वह अतुलित पराक्रमशाली है। सहज पराक्रमशीलता तथा पर दुःखकातरता उसके स्वभाव के अंग हैं। इसी कारण वह राजकुमारी कुरंगी पर हाथी के आक्रमण करने पर उसे मुक्त करता है। अविमारक एक धीरललित नायक के रूप में इस नाटक में प्रस्तुत किये गये हैं। नाटक की नायिका कुरंगी है। वह रूपयौवन सम्पन्ना है। अन्य पात्र सौवीरराज तथा कुन्तिभोज हैं।
| 0.5 | 4,398.295858 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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भास
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नाटकीयता की दृष्टि से भास के अन्य नाटकों की तरह यह नाटक भी सफल है। सरल भाषा का प्रयोग नाटक की अभिनेयता में चार-चाँद लगा देता है, कथोपकथनों में स्वाभाविकता तथा भावांकन भास की अपनी विशेषता है। छोट - छोटे वाक्य, सरल भाषा, रसानुकूल एव पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग इस नाटक को उच्चकोटि में ला खड़ा करता है। इस नाटक का प्रधान रस श्रृंगार है तथा अन्य रस उसके सहायक बनकर आये हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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भास
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काव्यकला की दृष्टि से भी यह नाटक नितान्त उदात्त है। परिस्थितियों,अवस्थाओं एवं भावों का सटीक शब्दों एवं आलंकारिक भाषा में वर्णन सर्वत्र विद्यमान है। प्रकृति चित्रण में नाटककार पूर्णतया सफल रहे हैं। नाटक में सूक्तियाँ यत्र-तत्र बिखरी हुई हैं। प्रसिद्ध सूक्ति ‘‘कन्यापितृत्वं खलु नाम कष्टम्’’ का भास ने यहाँ उत्तर उपस्थित किया है - ‘‘कन्या पितृत्व बहुवन्दनीयम्।’’
| 0.5 | 4,398.295858 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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भास
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महाकवि भास की नाट्य़ श्रृंखला में चारुदत्त को अन्तिम कड़ी माना जाता है। इसकी कथावस्तु चार अंकों में विभाजित है। शूद्रक के प्रसिद्ध प्रकरण ‘‘मृच्छकटिक’’ का आधार यही माना जाता है। इसमें कवि ने दरिद्र चारूदत्त एवं वेश्या वसन्तसेना की प्रणय-कथा का वर्णन किया है। एक अन्य पात्र शकार है जो प्रतिनायक के रूप में है। प्रेम के आदर्श की सामाजिक प्रस्तुति इसमें दृष्टव्य है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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भास
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इस नाटक का नायक वणिक्पुत्र आर्य चारूदत्त है। उसी के नाम पर इस नाटक का नामकरण हुआ है। नाटक की सम्पूर्ण घटनाएँ उसी के सुकृत्यों पर केन्द्रित हैं। चारुदत्त की दरिद्रता का बड़ा ही मार्मिक चित्रण इसमें किया गया है। चारुदत्त अत्यन्त दानी, गुणवान् एव रूपवान है। दानशीलता के कारण ही वह दरिद्र हो गया है। चारुदत्त धीर प्रकृति का मानव है। वह कला मर्मज्ञ है। वह महान् धार्मिक है तथा निर्धनावस्था में भी पूजा एवं बलिकर्म सम्पन्न करता है।
| 0.5 | 4,398.295858 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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भास
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नाटक की नायिका वसन्तसेना है। वह उज्जयिनी की एक प्रसिद्ध गणिका है। वह अत्यन्त रूपवती है। शकार तथा विट उसके रुप-जल के पिपासु हैं। गणिका होते हुये भी उसका चारित्रिक स्तर ऊँचा है। वह चारुदत्त के गुणों पर अनुरक्त है। उसके एक-एक गुण वसन्तसेना के प्रेम को दृढ़ करते जाते हैं। शकार से रात्रि में रक्षा और विदूषक के साथ वसन्तसेना का सकुशल घर पहुँचाना, चेट को प्रवारक देना, वसन्तसेना के न्यास की चोरी हो जाने पर उस अपने स्त्री का अत्यन्त मूल्यवान हार देना - ये सभी गुण वसन्तसेना के हृदय में स्थायी प्रभा डालते हैं तथा वह स्वयं अभिसार के लिये उसके पास चल देती है। वसन्तसेना गणिका होने पर भी धन लोभिनी नहीं है। वह अत्यन्त उदार मनवाली नायिका है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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भास
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नाटक के अन्य पात्रों में चारुदत्त का मित्र मैत्र या विदूषक है। वह जन्म का ब्राह्मण है। वह अपने मित्र का विपत्ति-सम्पत्ति दोनों समयों में साथ देने वाला है। मैत्र या संस्कृत नाट्कों में अन्य विदूषकों के समान केवल भोजनभट्ट मूर्ख ब्राह्मण नहीं है। वह समयानुसार उसके हित सम्पादन के लिए कठिन कार्यों को भी सम्पन्न करता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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भास
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शकार इस नाटक में खलनायक है। वह मूर्ख है। सामान्य से सामान्य बात का भी उसको ज्ञान नहीं है। गुणवानों के प्रति उसका कोई आकर्षण नहीं है। वह वसन्तसेना के रूप पर मुग्ध है तथा बलात् उससे प्रेम करना चाहता है।
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भाषा-परिवार
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१ भौगोलिक समीपता - भौगोलिक दृष्टि से प्रायः समीपस्थ भाषाओं में समानता और दूरस्थ भाषाओं में असमानता पायी जाती है। इस आधार पर संसार की भाषाएँ अफ्रीका, यूरेशिया, प्रशांतमहासागर और अमरीका के खंड़ों में विभाजित की गयी हैं। किन्तु यह आधार बहुत अधिक वैज्ञानिक नहीं है। क्योंकि दो समीपस्थ भाषाएँ एक-दूसरे से भिन्न हो सकती हैं और दो दूरस्थ भाषाएँ परस्पर समान। भारत की हिन्दी और मलयालम दो भिन्न परिवार की भाषाएँ हैं किन्तु भारत और इंग्लैंड जैसे दूरस्थ देशों की संस्कृत और अंग्रेजी एक ही परिवार की भाषाएँ हैं।
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भाषा-परिवार
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२ शब्दानुरूपता- समान शब्दों का प्रचलन जिन भाषाओं में रहता है उन्हें एक कुल के अन्तर्गत रखा जाता है। यह समानता भाषा-भाषियों की समीपता पर आधारित है और दो तरह से सम्भव होती है। एक ही समाज, जाति अथवा परिवार के व्यक्तियों द्वारा शब्दों के समान रूप से व्यवहृत होते रहने से समानता आ जाती है। इसके अतिरिक्त जब भिन्न देश अथवा जाति के लोग सभ्यता और साधनों के विकसित हो जाने पर राजनीतिक अथवा व्यावसायिक हेतु से एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तो शब्दों के आदान-प्रदान द्वारा उनमें समानता आ जाती है। पारिवारिक वर्गीकरण के लिए प्रथम प्रकार की अनुरूपता ही काम की होती है। क्योंकि ऐसे शब्द भाषा के मूल शब्द होते हैं। इनमें भी नित्यप्रति के कौटुम्बिक जीवन में प्रयुक्त होनेवाले संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्द ही अधिक उपयोगी होते हैं। इस आधार में सबसे बड़ी कठिनाई यह होती है कि अन्य भाषाओं से आये हुए शब्द भाषा के विकसित होते रहने से मूल शब्दों में ऐसे घुलमिल जाते हैं कि उनको पहचान कर अलग करना कठिन हो जाता है।
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Subsets and Splits
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