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मल्टीमीडिया
व्यापार में - व्यापारी विज्ञापन के लिये मल्टीमीडिया का प्रयोग करते हैं। जिससे विज्ञापन के जरिए व्यापार में काफी लाभ होता है।
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4,227.428688
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मल्टीमीडिया
खेल तथा मनोरंजन में - यह तो हम सभी जानते हैं कि खेलों के लिये वीडियो गेम्स के रूप में मल्टीमीडिया का प्रयोग अत्यन्त लोकप्रिय है। सिनेमा जैसे मनोरंजन के क्षेत्र में स्पेशल इफैक्ट देने के लिये मल्टीमीडिया का प्रयोग किया जाता है।
0.5
4,227.428688
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मल्टीमीडिया
शिक्षा के क्षेत्र में - विद्यार्थियों को आसानी के साथ कम से कम समय में शिक्षा प्रदान करने के लिये मल्टीमीडिया एक वरदान साबित हुई है। मल्टीमीडिया आज के समय में लोगों के लिए वरदान बनकर उभरा है।
0.5
4,227.428688
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मल्टीमीडिया
ये तो मल्टीमीडिया के प्रयोग मात्र कुछ ही उदाहरण हैं वरना आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं होगा जिसमें मल्टीमीडिया का प्रयोग न किया जाता हो।
0.5
4,227.428688
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मल्टीमीडिया
सामाजिक कार्य में प्रयोग- आज के समय में मल्टीमीडिया का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। आज हम सामाजिक कार्य में भी मल्टीमीडिया का प्रयोग कर रहे है। मल्टीमीडिया सामाजिक कार्य के संदर्भ में एक मजबूत शिक्षा और अनुसंधान पद्धति है। पांच अलग-अलग मल्टीमीडिया जो शिक्षा प्रक्रिया का समर्थन करते हैं, कथात्मक मीडिया, इंटरैक्टिव मीडिया, संचार मीडिया, अनुकूली मीडिया और उत्पादक मीडिया हैं। लंबे समय से चली आ रही धारणा के विपरीत, सामाजिक कार्य शिक्षा में मल्टीमीडिया तकनीक इंटरनेट की व्यापकता से पहले मौजूद थी। यह पाठ्यक्रम में छवियों, ऑडियो और वीडियो का रूप लेता है।
0.5
4,227.428688
20231101.hi_62481_9
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अण्डा
अंडे का रंग मुख्य रूप से रक्षात्मक होता है। अतएव हरी डालियों पर दिए जानेवाले अंडों का रंग हरा और जमीन पर दिए जानेवाले अंडों का रंग प्राय: भूरा होता है। कोटर अथवा बिल के अंडे प्राय: सफेद होते हैं, जिससे पक्षी अंधेरे में भी उनका पता लगा सके।
0.5
4,207.805253
20231101.hi_62481_10
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अण्डा
गिलमाट और रेजरबिल केवल एक ही अंडा देती हैं, परावत या जंगली कबूतर और गरुड़ (golden eagel) दो, ढोमरा या गंगचिल्ली की विभिन्न जातियाँ तीन और टिट्टिभ की अनेक जातियाँ चार अंडे देती हैं। अनेक जातियाँ पाँच छह अंडे तक देती है। कुछ गानेवाली छोटी किस्म की चिड़ियों में सात आठ से लेकर दस बारह तक अंडे मिलते हैं। शिकार की कुछ चिड़ियों और बतखों में इससे भी और अधिक संख्या पाई जाती है।
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4,207.805253
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BE
अण्डा
अधिकांश चिड़ियाँ, यदि उनके अंडे चुरा लिए जाऐं, अथवा नष्ट हो जाऐं, अथवा अंडों को त्यागने के लिए वे बाध्य कर दी जायें, तो फिर से अंडे देती हैं, क्योंकि हर पक्षी के अंडों की एक निश्चित संख्या होती है। जब तक यह संख्या पूरी नहीं हो जाती, वह अंडे देना समाप्त नहीं करती। चिड़ियाँ साधारणतया एक ऋतु में एक ही बार अड़े देती हैं। कुछ गानेवाली चिड़ियाँ ऋतुकाल में दो या तीन बार भी बच्चे उत्पन्न करती हैं।
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4,207.805253
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BE
अण्डा
जिन चिड़ियों के अंडे और बच्चे अधिक नष्ट होते हैं, अथवा जो अल्पायु होती हैं, उनमें जनन तीव्र गति से और अंडों की संख्या अधिक होती है। चिड़ियों की आयु का भी प्रभाव उनके अंडों की संख्या पर पड़ता है। प्रथम बार माँ बननेवाली चिड़ियाँ कम और दूसरी या तीसरी बार अंडे देनेवाली चिड़ियाँ अधिक अंडे देती हैं।
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4,207.805253
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BE
अण्डा
अंडों की संख्या जब पूरी हो जाती है, तब उनका सेना प्रारंभ होता हैं। पक्षी बड़ी लगन और तत्परता से अंडे सेते हैं, अपने पंखों से उन्हें गरम रखते तथा उनकी रक्षा करते हैं :
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4,207.805253
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BE
अण्डा
अधिकांश जातियों में नर और मादा दोनों ही अंडसेवन का कार्य करते हैं, भले ही अंडे सेने का कार्य एक थोड़ा करता है तो दूसरा अधिक। कभी कभी दिन में मादा अंडे सेती है और रात्रि में नर। कुछ जातियों में केवल मादा ही अंडे सेती हैं, किंतु ऐसी अवस्था में नर उसके लिए भोजन जुटाता है। किसी किसी जाति में नर और मादा बारी बारी सें आते जाते रहते हैं।
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4,207.805253
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BE
अण्डा
अंडा-सेवन-काल में मादा का ध्यान अंडे सेने में कुछ ऐसा लग जाता है और उसमें ऐसी एकाग्रता उत्पन्न हो जाती है कि यदि कोई उसके अंडे को हटाकर अन्य कोई वस्तु, जैसे पत्थर के टुकड़े, रोड़े इत्यादि, भी रख दे तो वह बिना देखे सुने उनपर बैठकर उन्हें सेती रहेगी। बहुधा ऐसा देखा गया है कि अंडों के खराब या निर्जीव हो जाने पर भी मादा एक लंबी अवधि तक उन्हें सेती रहती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BE
अण्डा
कबूतरों में नर बड़े चाव से अंडा सेता है। यही नहीं, बल्कि मादा को हटाकर स्वयं अंडों पर बैठता है। नर स्वयं नहीं दे सकता, किंतु संतानप्रेम की अभिलाषा से वह किसी तरह मादा को रिझाकर जोड़ा बाँध लेता है, मादा से अंडे दिलवा लेता है और फिर उसके बाद उनके सेने तथा शिशुपालन की सारी क्रिया स्वयं बड़े चाव से संपन्न करता है। लैपलैंड और औक (auk) जाति के पक्षियों में नर की संख्या अधिक है, मादा की कम। अत: सभी नर जोड़ा बाँधने में सफल नहीं हो पाते, पर उनकी अंडा सेने तथा संतान पालन का अभिलाषा दिल से नहीं जाती।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BE
अण्डा
इससे ठीक विपरीत कुछ पक्षी ऐसे भी हैं, जो अंडों को स्वयं न सेकर दूसरों से सेवाते हैं। कोयल, पपीहा आदि इनमें मुख्य हैं, जो चोरी से अपने अंडे कौवे, चर्खी अथवा सतभइए (seven sisters) आदि के घोंसलों में रख आते हैं और उन्हें मूर्ख बनाकर उनसे धात्री का काम लेते हैं।
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देहरादून
इसके अतिरिक्त एक अत्यन्त प्राचीन किंवदन्ती के अनुसार देहरादून का नाम पहले द्रोणनगर था और यह कहा जाता था कि पाण्डव-कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य ने इस स्थान पर अपनी तपोभूमि बनाई थी और उन्हीं के नाम पर इस नगर का नामकरण हुआ था। एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार जिस द्रोणपर्त की औषधियाँ हनुमान जी लक्ष्मण के शक्ति लगने पर लंका ले गए थे, वह देहरादून में स्थित था, किन्तु वाल्मीकि रामायण में इस पर्वत को महोदय कहा गया है।
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देहरादून
देहरादून की जलवायु समशीतोष्ण है। यहां का तापमान १६ से ३६ डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है जहां शीत का तापमान २ से २४ डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। देहरादून में औसतन २०७३.३ मिलिमीटर वर्षा होती है। अधिकांश वर्षा जून और सितंबर के बीच होती है। अगस्त में सबसे अधिक वर्षा होती है।
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देहरादून
राजपुर मार्ग पर या डालनवाला के पुराने आवासीय क्षेत्र में पूर्वी यमुना नहर सड़क से देहरादून शुरु हो जाता है। सड़क के दोनों किनारे स्थित चौड़े बरामदे और सुन्दर ढालदार छतों वाले छोटे बंगले इस शहर की पहचान हैं। इन बंगलों के फलों से लदे हुए पेड़ों वाले बगीचे बरबस ध्यान आकर्षित करते हैं। घण्टाघर से आगे तक फैलाहुआ रंगीन पलटन बाजार यहाँ का सर्वाधिक पुराना और व्यस्त बाजार है। यह बाजार तब अस्तित्व में आया जब १८२० में ब्रिटिश सेना की टुकड़ी को आने की आवश्यकता पड़ी। आज इस बाजार में फल, सब्जियां, सभी प्रकार के कपड़े, तैयार वस्त्र (रेडीमेड गारमेंट्स) जूते और घर में प्रतिदिन काम आने वाली वस्तुयें मिलती हैं। इसके स्टोर माल, राजपुर सड़क तक है जिसके दोनों ओर विश्व के लोकप्रिय उत्पादों के शो रूम हैं। अनेक प्रसिद्ध रेस्तरां भी राजपुर सड़क पर है। कुछ छोटी आवासीय बस्तियाँ जैसे राजपुर, क्लेमेंट टाउन, प्रेमनगर और रायपुर इस शहर के पारंपरिक गौरव हैं।
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4,195.926727
20231101.hi_2395_8
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देहरादून
देहरादून के राजपुर मार्ग पर भारत सरकार की दृष्टिबाधितों के लिए स्थापित पहली और एकमात्र राष्ट्रीय स्तर की संस्था राष्ट्रीय दृष्टिबाधित संस्थान (एन.आइ.वी.एच.) स्थित है। इसकी स्थापनी 19वीं सदी के नब्बे के दशक में विकलांगों के लिए स्थापित चार संस्थाओं की श्रंखला में हुआ जिसमें राष्ट्रीय दृष्टिबाधित संस्था के लिए देहरादून का चयन किया गया। यहाँ दृष्टिबाधित बच्चों के लिए स्कूल, कॉलेज, छात्रावास, ब्रेल पुस्तास्तलय एवं ध्वन्यांकित पुस्तकों का पुस्तकालय भी स्थापित किया गया है। इसके कर्मचारी इसके अन्दर रहते हैं इसके अतिरिक्त (तेज यादगार) शार्प मेमोरियल नामक निजी संस्था राजपुर में हैं यें दृष्टि अपंगता तथा कानों सम्बन्धि बजाज संस्थान तथा राजपुर सड़क पर दूसरी अन्य संस्थाये बहुत अच्छा कार्य कर रही है। उत्तराखण्ड सरकार का एक और नया केन्द्र है। करूणा विहार, बसन्त विहार में कुछ कार्य शुरू किये है। तथा गहनता से बच्चों के लिये कार्य कर रहें है तथा कुछ नगर के चारों ओर केन्द्र है। देहरादून राफील रेडरचेशायर अर्न्तराष्ट्रीय केन्द है। ‍रिस्पना ब्रिज शायर गृह डालनवाला में हैं। जो मानसिक चुनौतियों के लिए कार्य करते है। मानसिक चुनौतियों के लिए काम करने के अतिरिक्त राफील रेडरचेशायर अर्न्तराष्ट्रीय केन्द्र ने टी.बी व अधरंग के इलाज के लिये भी अस्पताल बनाया। अधिकाँश संस्थायें भारत और विदेश से स्वेच्छा से आने वालो को आकर्षित तथा प्रोत्साहित करती है। आवश्यकता विहीन का कहना है कि स्वेच्छा से काम करने वाले इन संस्थाओं को ठीक प्रकार से चलाते है। तथा अयोग्य, मानसिक चुनौतियो और कम योग्य वाले लोगो को व्यक्तिगत रूप से चेतना देते है।
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4,195.926727
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देहरादून
देहरादून अपनी पहाडीयों और ढलानो के साथ-साथ साईकिलिंग का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। चारों ओर पर्वतो और हरियाली से घिरा होने के कारण यहाँ साईकिलिंग करना बहुत सुखद है। लीची देहरादून का पर्यायवाची है क्योंकि यह स्वादिष्ट फल चुनिँदा जलवायु में ही उगता है। देहरादून देश के उन जगहों में से एक है जहाँ लीची उगती है। लीची के अतिरिक्त देहरादून के चारों ओर बेर, नाशपत्ती, अमरूद्ध और आम के पेड है। जो नगर की बनावट को घेरे हुये है। ये सारी चीजे घाटी के आकर्षण में वृद्धि करती है। यदि आप मई माह या जून के शुरू की गर्मियों में भ्रमण के लिये जाओ तो आप इन फलों को केवल देखोगें ही नही बल्कि खरीदोंगे भी। बासमती चावल की लोकप्रियता देहरादून या भारत में ही नही बल्कि विदेशो में भी है। एक समय अंग्रेज भी देहरादून में रहते थे और वे नगर पर अपना प्रभाव छोड गयें। उदाहरण के रूप में देहरादून की बैकरीज (बिस्कुट आदि) आज भी यहाँ प्रसिद्ध है। उस समय के अंग्रेजो ने यहाँ के स्थानीय स्टाफ को सेंकना (बनाना) सीखाया। यह निपुणता बहुत अच्छी सिद्ध हुई तथा यह निपुणता अगली संतति सन्तान में भी आयी। फिर भी देहरादून के रहने वालो के लिये यहाँ के स्थानीय रस्क, केक, होट क्रोस बन्स, पेस्टिज और कुकीज मित्रों के लिये सामान्य उपहार है, कोई भी ऐसी नही बनाता जैसे देहरादून में बनती है।
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4,195.926727
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देहरादून
दूसरा उपहार जो पर्यटक यहाँ से ले जाते है विख्यात क्वालिटी की टॉफी जोकि क्वालिटी रेस्टोरेन्ट (गुणवत्ता वाली दुकानों) से मिलती हैं। यद्यपि आज बडी संख्या में दूसरी दुकानों (स्टोर) से भी ये टॉफी मिलती है परन्तु असली टॉफी आज भी सर्वोतम है। देहरादून में आन्नद के और बहुत से पर्याप्त विकल्प है। प्रर्याप्त मात्रा में देहरादून में दर्शनीय चीजे है जो उनके लिये प्रकृति के उपहार है विशेष रूप से देहरादून से मसूरी का मार्ग जो कि पैदल चलने वालों के लिये बहुत लोकप्रिय है। उन लोगो के लिये जो साधारण से ऊपर कुछ करना चाहते है सर्वोतम योग संस्थानों में से किसी एक से जुड़ना चाहिये अथवा सीखना चाहिये।
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4,195.926727
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देहरादून
सड़क मार्गः देहरादून देश के विभिन्न हिस्सों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है और यहां पर किसी भी जगह से बस या टेक्सी से आसानी से पहुंचा जा सकता है। सभी तरह की बसें, (साधारण और लक्जरी) गांधी बस स्टेंड जो दिल्ली बस स्टेंड के नाम से जाना जाता है, यहां से खुलती हैं। यहां पर दो बस स्टैंड हैं। देहरादून और दिल्ली, शिमला और मसूरी के बीच डिलक्स/ सेमी डिलक्स बस सेवा उपलब्ध है। ये बसें क्लेमेंट टाउन के नजदीक स्थित अंतरराज्यीय बस टर्मिनस से चलती हैं। दिल्ली के गांधी रोड बस स्टैंड से एसी डिलक्स बसें (वोल्वो) भी चलती हैं। यह सेवा हाल में ही यूएएसआरटीसी द्वारा शुरू की गई है। आईएसबीटी, देहरादून से मसूरी के लिए हर १५ से ७० मिनट के अंतराल पर बसें चलती हैं। इस सेवा का संचालन यूएएसआरटीसी द्वारा किया जाता है। देहरादून और उसके पड़ोसी केंद्रों के बीच भी नियमित रूप से बस सेवा उपलब्ध है। इसके आसपास के गांवों से भी बसें चलती हैं। ये सभी बसें परेड ग्राउंड स्थित स्थानीय बस स्टैड से चलती हैं।
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देहरादून
रेलः देहरादून उत्तरी रेलवे का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है। यह भारत के लगभग सभी बड़े शहरों से सीधी ट्रेनों से जुड़ा हुआ है। ऐसी कुछ प्रमुख ट्रेनें हैं- हावड़ा-देहरादून एक्सप्रेस, चेन्नई- देहरादून एक्सप्रेस, दिल्ली- देहरादून एक्सप्रेस, बांद्रा- देहरादून एक्सप्रेस, इंदौर- देहरादून एक्सप्रेस आदि।
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4,195.926727
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देहरादून
वायु मार्गः जॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून से २५ से किलोमीटर है। यह दिल्ली एयरपोर्ट से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। एयर डेक्कन दोनों एयरपोर्टों के बीच प्रतिदिन वायु सेवा संचालित करती है।
0.5
4,195.926727
20231101.hi_10470_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0
विदुर
विदुर (अर्थ : कुशल, बुद्धिमान अथवा मनीषी) हिन्दू ग्रन्थ महाभारत के केन्द्रीय पात्रों में से एक व हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री, कौरवो और पांडवो के चाचाश्री और धृतराष्ट्र एवं पाण्डु के भाई थे। इनका जन्म अम्बिका की प्रधान दासी के गर्भ से हुआ था |
0.5
4,183.579195
20231101.hi_10470_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0
विदुर
हस्तिनापुर नरेश शान्तनु और रानी सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। शान्तनु का स्वर्गवास चित्रांगद और विचित्रवीर्य के बाल्यकाल में ही हो गया था इसलिये उनका पालन पोषण भीष्म ने किया। भीष्म ने चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें राजगद्दी पर बिठा दिया लेकिन कुछ ही काल में गन्धर्वों से युद्ध करते हुये चित्रांगद मारा गया। इस पर भीष्म ने उनके अनुज विचित्रवीर्य को राज्य सौंप दिया। अब भीष्म को विचित्रवीर्य के विवाह की चिन्ता हुई। उन्हीं दिनों काशीराज की दो कन्याओं, अम्बिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ करवा दिया।
0.5
4,183.579195
20231101.hi_10470_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0
विदुर
समय आने पर अम्बिका के गर्भ से जन्मान्ध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु तथा दासी से विदुर का जन्म हुआ।
0.5
4,183.579195
20231101.hi_10470_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0
विदुर
सम्पूर्ण तीर्थों की यात्रा करने के पश्चात् विदुर जी हस्तिनापुर आये। उन्होंने मैत्रेय जी से आत्मज्ञान प्राप्त कर किया था। धर्मराज युधिष्ठिर, भीम अर्जुन, नकुल सहदेव, धृतराष्ट्र, युयुत्सु, संजय, कृपाचार्य, कुन्ती गांधारी, द्रौपदी, सुभद्रा, उत्तरा, कृपी नगर के गणमान्य नागरिकों के साथ विदुर जी के दर्शन के लिये आये। सभी के यथायोग्य अभिवादन के पश्चात् युधिष्ठिर ने कहा - "हे चाचाजी! आपने हम सब का पालन पोषण किया है और समय समय पर हमारी प्राणरक्षा करके आपत्तियों से बचाया है। अपने उपदेशों से हमें सन्मार्ग दिखाया है। अब आप हमें अपने तीर्थयात्रा का वृतान्त कहिये। अपनी इस यात्रा में आप द्वारिका भी अवश्य गये होंगे, कृपा करके हमारे आराध्य श्रीकृष्णचन्द्र का हाल चाल भी बताइये।"
0.5
4,183.579195
20231101.hi_10470_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0
विदुर
अजातशत्रु युधिष्ठिर के इन वचनों को सुन कर विदुर जी ने उन्हें सभी तीर्थों का वर्णन सुनाया, किन्तु यदुवंश के विनाश का वर्णन को न कहना ही उचित समझा। वे जानते थे कि यदुवंश के विनाश का वर्णन सुन कर युधिष्ठिर को अत्यन्त क्लेश होगा और वे पाण्डवों को दुखी नहीं देख सकते थे। कुछ दिनों तक विदुर जी प्रसन्नता पूर्वक हस्तिनापुर में रहे।
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4,183.579195
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विदुर
विदुर जी धर्मराज के अवतार थे। मांडव्य ऋषि ने धर्मराज को श्राप दे दिया था, इसी कारण वे सौ वर्ष पर्यन्त शूद्र बन कर रहे। एक समय एक राजा के दूतों ने मांडव्य ऋषि के आश्रम पर कुछ चोरों को पकड़ा था। दूतों ने चोरों के साथ मांडव्य ऋषि को भी चोर समझ कर पकड़ लिया। राजा ने चोरों को शूली पर चढ़ाने की आज्ञा दी। उन चोरों के साथ मांडव्य ऋषि को भी शूली पर चढ़ा दिया गया किन्तु इस बात का पता लगते ही कि चोर नहीं हैं बल्कि ऋषि हैं, राजा ने उन्हें शूली से उतरवा कर अपने अपराध के लिये क्षमा मांगी। मांडव्य ऋषि ने धर्मराज के पहुँच कर प्रश्न किया कि तुमने मझे मेरे किस पाप के कारण शूली पर चढ़वाया? धर्मराज ने कहा कि आपने बचपन में एक टिड्डे को कुश को नोंक से छेदा था, इसी पाप में आप को यह दंड मिला। ऋषि बोले - "वह कार्य मैंने अज्ञानवश किया था और तुमने अज्ञानवश किए गए कार्य का इतना कठोर दंड देकर अपराध किया है। अतः तुम इसी कारण से सौ वर्ष तक शूद्र योनि में जन्म लेकर मृत्युलोक में रहो।"
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विदुर
मुनि के शाप के कारण ही धर्मराज को विदुर जी का अवतार लेना पड़ा था। वे काल की गति को भली भाँति जानते थे। उन्होंने अपने बड़े भ्राता धृतराष्ट्र को समझाया कि महाराज! अब भविष्य में वड़अ बुरा समय आने वाला है। आप यहाँ से तुरन्त वन की ओर निकल चलिये। कराल काल शीघ्र ही यहाँ आने वाला है जिसे संसार का कोई भी प्राणी टाल नहीं सकता। आपके पुत्र-पौत्रादि सभी नष्ट हो चुके हैं और वृद्धावस्था के कारण आपके इन्द्रिय भी शिथिल हो गईं हैं। आपने इन पाण्डवों को महान क्लेश दिये, उन्हें मरवाने कि कुचेष्टा की, उनकी पत्नी द्रौपदी को भरि सभा में अपमानित किया और उनका राज्य छीन लिया। फिर भी उन्हीं का अन्न खाकर अपने शरीर को पाल रहे हैं और भीमसेन के दुर्वचन सुनते रहते हैं। आप मेरी बात बात मान कर सन्यास धारण कर शीघ्र ही चुपचाप यहाँ से उत्तराखंड की ओर चले जाइये। विदुर जी के इन वचनों से धृतराष्ट्र को प्रज्ञाचक्षु प्राप्त हो गये और वे उसी रात गांधारी को साथ लेकर चुपचाप विदुर जी के साथ वन को चले गये।
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विदुर
प्रातःकाल सन्ध्यावंदन से निवृत होकर ब्राह्मणों को तल, गौ, भूमि और सुवर्ण दान करके जब युधिष्ठिर अपने गुरुजन धृतराष्ट्र, विदुर और गांधारी के दर्शन करने गये तब उन्हें वहाँ न पाकर चिंतित हुये कि कहीं भीमसेन के कटुवचनों से त्रस्त होकर अथवा पुत्र शोक से दुखि हो कर कहीं गंगा में तो नहीं डूब गये। यदि ऐसा है तो मैं ही अपराधी समझा जाउँगा। वे उनके शोक से दुखी रहने लगे।
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विदुर
एक दिन देवर्षि नारद अपने तम्बूरे के साथ वहाँ पधारे। युधिष्ठिर ने प्रणाम करके और यथोचित सत्कार के साथ आसन देकर उनसे विदुर, धृतराष्ट्र और गांधारी के विषय में प्रश्न किया। उनके इस प्रश्न पर नारद जी बोले - "हे युधिष्ठिर! तुम किसी प्रकार का शोक मत करो। यह सम्पूर्ण विशव परमात्मा के वश में है और वही सब की रक्षा करता है। तुम्हारा यह समझना कि मैं ही उनकी रक्षा करता हूँ, तुम्हारी भूल है। यह संसार नश्वर है तथा जाने वालों के लिये शोक नहीं करना चाहिये। शोक का कारण केवल मोह ही है, इस मोह को त्याग दो। यह पंचभौतिक शरीर नाशवान एवं काल के वश में है। तुम्हारे चाचा धृतराष्ट्र, माता गांधारी एवं विदुर उत्तराखंड में सप्तश्रोत नामक स्थान पर आश्रम बना कर रहते हैं। वे वहाँ तीनों काल स्नान कर के अग्नहोत्र करते हैं और उनके सम्पूर्ण पाप धुल चुके हैं। अब उनकी कामनाएँ भी शान्त हो चुकी हैं। सदा भगवान के ध्यान में रहने के कारण तमोगुण, रजोगुण, सतोगुण और अहंकार बुद्धि नष्ट हो चुकी है। उन्होंने अपने आप को भगवान में लीन कर दिया है।
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लाहौर
पुराने शहर की यह मस्जिद अपनी टाइल की कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। बहुत बार इसे लाहौर के गाल के जासूस के नाम से भी संबोधित किया जाता है। यह मस्जिद 1634-35 ई. में मुगल सम्राट शाहजहां के काल में बननी शुरू हुई थी और इससे बनने में सात वर्ष का समय लगा था। मस्जिद को चिनिओट के शेख इलमुद्दीन अंसानी ने बनवाया था। बाद में उसे लाहौर का गवर्नर अर्थात वजीर बना दिया गया था। मस्जिद में फारसी भाषा में अनेक प्रकार के अभिलेख मुद्रित हैं।
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लाहौर
1872 में स्थापित लाहौर का यह चिड़ियाघर विश्व के सबसे प्राचीन चिड़ियाघरों में एक है। इस चिड़ियाघर को विकसित करने का श्रेय श्री लाल महुन्द्रा राम को जाता है। इस चिड़ियाघर में 136 प्रजातियों के 1381 जीवों, 49 सरीसृपों, 336 स्तनपायी 996 प्रकार की चिड़ियों को देखा जा सकता है। 1872 से 1923 तक यह चिड़ियाघर लाहौर नगर निगम के अधीन रहा था। चिड़ियाघर वनस्पति उद्यान में पेड़-पौधों की विविध किस्मों को भी देखा जा सकता है।
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लाहौर
इस मस्जिद को 1673 ई. में मुगल सम्राट औरंगजेब ने बनवाया था। यह मस्जिद मुगल काल की सौंदर्य और भव्यता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। पाकिस्तान की इस दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद में एक साथ 55000 हजार लोग नमाज अदा कर सकते हैं। बादशाही मस्जिद का डिजाइन दिल्ली की जामा मस्जिद से काफी मिलता-जुलता है । मस्जिद लाहौर किले के नजदीक स्थित है। हाल में मस्जिद परिसर में एक छोटा संग्रहालय भी जोड़ा गया है।
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लाहौर
किम्स गन या भंगियावाला तोप लाहौर संग्रहालय में रखी एक विशाल तोप है। यह गन 14 फीट या 4.38 मीटर लंबी है। गन का औसत व्यास 9.5 इंच है। यह गन लाहौर में 1757 ई. में शाहवाली खान के निर्देश पर शाह नजीर द्वारा लाई गई थी। यह ऐतिहासिक गन एशिया महाद्वीप की सबसे विशाल गनों में एक है। माना जाता है कि इस गन को तांबे और पीतल से बनाया गया है। 1761 में पानीपत के युद्ध में अहमदशाह अब्दाली ने इस गन का इस्तेमाल किया था।
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लाहौर
लाहौर के उत्तर-पश्चिम किनारे में स्थित यह किला यहां का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। किले के भीतर शीश महल, आलमगीर गेट, नौलखा पेवेलियन और मोती मस्जिद देखी जा सकती है। यह किला 1400 फीट लंबा और 1115 फीट चौड़ा है। यूनेस्को ने 1981 में इसे विश्वदाय धरोहरों सूची में शामिल किया है। माना जाता है कि इस किले को 1560 ई. में अकबर ने बनवाया था। आलमगीर दरवाजे से किले में प्रवेश किया जाता है जिसे 1618 में जहांगीर ने बनवाया था। दीवाने आम और दीवाने खास किले के मुख्य आकर्षण हैं।
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लाहौर
यह म्युजियम 1894 में स्थापित किया गया था। ओल्ड यूनिवर्सिटी हॉल के निकट स्थित इस म्युजियम को दक्षिण एशिया के सबसे विशाल म्युजियमों में एक माना जाता है। म्युजियम में मुगलों, सिक्खों और ब्रिटिश काल की अनेक बहुमूल्य और दुर्लभ कलाकृतियों को देखा जा सकता है। यहां वाद्ययंत्रों, प्राचीन आभूषणों, कपड़ों, मिट्टी के बर्तनों और हथियारों का विस्तृत संग्रह देखा जा सकता है। दौड़ते हुए बुद्ध की मूर्ति म्युजियम की एक अमूल्य एवं दुर्लभ निधि है।
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लाहौर
इस गार्डन को मुगल सम्राट शाहजहां ने 1641 ई. में बनवाया था। चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा यह गार्डन अपने जटिल फ्रेमवर्क के लिए प्रसिद्ध है। 1981 में यूनेस्को ने इसे लाहौर किले के साथ विश्वदाय धरोहरों में शामिल किया था। फराह बख्स, फैज बख्स और हयात बख्स नामक चबूतरे गार्डन की सुंदरता में वृद्धि करते हैं।
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लाहौर
शाहदरा नगर के निकट स्थित जहांगीर मकबरा मुगल सम्राट जहांगीर को समर्पित है। इसे जहांगीर की मृत्‍यु के 10 साल बाद उनके पुत्र शाहजहां ने बनवाया था। एक बगीचे के अंदर स्थित मकबरे की मीनारें 30 मीटर ऊंची हैं। मकबरे के भीतरी हिस्से में भित्तिचित्रों की सुंदर सजावट है।
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लाहौर
लाहौर के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में यह खूबसूरत बाग शामिल है। इसके पूर्व में लाहौर किला, उत्तर में रणजीत सिंह की समाधि, पश्चिम में बादशाही मस्जिद और दक्षिण में रोशनई दरवाजा स्थित है। इस बाग का निमार्ण 1813 ई. में पंजाब के महान शासक महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था। इस बाग को कोहिनूर हीर को अफगान के शासक शाह शुजा से पुन: भारत लाए जाने के उपलक्ष्य में बनवाया गया था।
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राँची
राँची की बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र (आई एक्स आर) को कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, बेंगलूर, पटना, हैदराबाद, भुवनेश्वर से सीधी उड़ानें हैं। एयर इंडिया, गोएयर, इंडिगो और एयर एशिया जैसी कुछ प्रमुख एयरलाइंस इस उद्देश्य का काम करती हैं। सीधे चेन्नई, चंडीगढ़, पुणे, पोर्ट ब्लेयर, नागपुर, गोवा, अमृतसर, जयपुर, लखनऊ, वाराणसी, श्रीनगर, कोयंबतूर, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम, विशाखापट्टनम और अहमदाबाद जैसे शहरों के साथ ही राँची को जोड़ने के लिए योजनाएं चल रही हैं। एक नया अंतरराष्ट्रीय टर्मिनल अब तैयार है, जो 19,676 वर्ग मीटर भूमि पर आयातित उपकरणों से सुसज्जित है, और इसमें 500 घरेलू और 200 अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को संभालने की क्षमता है। इसके अलावा, बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अत्याधुनिक घरेलू कार्गो कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन मुख्यमंत्री रघुबर दास द्वारा 50 लाख टन की दैनिक क्षमता के साथ किया गया था, जो अब राँची में और बाहर चलने वाली 14 उड़ानों को पूरा करता है।
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राँची
राँची रेलवे स्टेशन अच्छी तरह से दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और अन्य प्रमुख शहरों से सीधे ट्रेनों से जुड़ा हुआ है। इसमें सभी मानक आवश्यकताओं के साथ छह प्लेटफार्म हैं। यह राँची हवाई अड्डे और बस टर्मिनल से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। राँची रेलवे स्टेशन 36 हॉलिंग ट्रेनों, 27 आरंभिक ट्रेनों और 27 टर्मिनेशन ट्रेनों को पूरा करता है।
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राँची
रांची में पर्यटक गोंडा हिल और रॉक गार्डन की सैर पर जा सकते हैं। रॉक गार्डन को गोंडा हिल की चट्टानों को काटकर बनाया गया है। इस पार्क के अलावा गोंडा हिल की तराई में एक बांध का निर्माण भी किया गया है जो इसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता है। यह सब मिलकर इसे एक बेहतरीन पिकनिक स्पॉट बनाते हैं। पर्यटकों को यहां आकर बहुत अच्छा लगाता है क्योंकि वह यहां पर शानदार पिकनिक का आनंद ले सकते हैं।
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राँची
गोंडा हिल पर पिकनिक मनाने के अलावा पर्यटक रांची में मछलीघर और मूटा मगरमच्छ प्रजनन केन्द्र देखने जा सकते हैं। मछलीघर में पर्यटक विभिन्न प्रजातियों की रंग-बिरंगी मछलियों को देख और खरीद सकते हैं। जबकि मगरमच्छ प्रजनन केन्द्र में लगभग 50 मगरमच्छों को देखा जा सकता है। यह दोनों बहुत खूबसूरत हैं और पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। वह मछलियों और मगरमच्छों के खूबसूरत चित्रों के फोटो खींचकर भी ले जाते हैं।
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राँची
टैगोर पहाड़ी की गिनती रांची के प्रमुख पर्यटक स्थलों में की जाती है। यह पर्यटकों के बीच बेहतरीन पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। उन्हें पहाड़ी पर आकर बहुत अच्छा लगता है क्योंकि इस पहाड़ी से पूरे रांची के मनोहारी दृश्य देखे जा सकते हैं। पहाड़ी पर पत्थरों से बने शांतिधाम को भी देखा जा सकता है। इसका निर्माण गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बड़े भाई ने कराया था।
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राँची
यूरोपि‍यन शैली के बंगलों और आदिवासी संग्राहलय के लिए मैक क्लुस्किगंज स्थानीय निवासियों के साथ पर्यटकों में भी बहुत लोकप्रिय है। यहां पर कई खूबसूरत बंगले देखे जा सकते हैं। बंगलों के अलावा यहां पर आदिवासी संग्राहलय की स्थापना भी की गई है जिसमें आदिवासियों के इतिहास और संस्कृति से जुड़ी कई महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक वस्तुओं को देखा जा सकता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9A%E0%A5%80
राँची
प्रकृति के अनमोल उपहार झरनों को रांची के पर्यटन उद्योग की जान माना जाता है। इन झरनों में हुन्डरू, जोन्हा, दसम और पांच गाघ झरने प्रमुख हैं। यह झरने तो खूबसूरत हैं ही लेकिन इनके आस-पास के नजारे भी बहुत खूबसूरत हैं जो पर्यटकों को मंत्र-मुग्ध कर देते हैं। इन सभी झरनों में जोन्हा झरना प्रमुख है क्योंकि इस झरने के पास भगवान बुद्ध के मन्दिर के दर्शन किए जा सकते हैं। पर्यटकों को यह झरना खासतौर से आकर्षित करता है क्योंकि यहां उनके ठहरने के लिए रेस्ट हाऊस का निर्माण किया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9A%E0%A5%80
राँची
पुराने राँची में बहुत से सिनेमा घर हुआ करते थे, लेकिन शहरीकरण के बढते दवाब की वजह से और सिनेमा जानेवालों की संख्या में गिरावट की वजह से पिछ्ले कुछ सालों में राँची में बहुत से सिनेमा घर बंद हो चुके हैं। पिछले वर्ष (2006) में भी उपहार एवं प्लाजा को बंद कर दिया गया। अब उसकी जगह आधुनिक मल्टीप्लेक्स माल बनाये जा रहे हैं। महाराष्ट्र एवं दिल्ली जैसे विकसित राज्यों की तर्ज पर झारखंड सरकार ने भी मल्टीप्लेक्स बनाने वालों के लिए कई तरह के कर-छूट की भी घोषणा की है।
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राँची
राँची के पहले शापिंग सह मल्टीप्लेक्स का शुभारंभ 7 सितंबर 2007 में हीनू में हुआ। 50-150 रुपये के टिकट वाले इस मल्टीप्लेक्स में लगभग 350 दर्शकों के बैठने की क्षमता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
बलराम
पांचरात्र शास्त्रों के अनुसार बलराम (बलभद्र) भगवान वासुदेव के ब्यूह या स्वरूप हैं। उनका श्रीकृष्ण के अग्रज और शेष का अवतार होना ब्राह्मण धर्म को अभिमत है। जैनों के मत में उनका सम्बन्ध तीर्थकर नेमिनाथ से है।
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4,176.674817
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
बलराम
बलराम या संकर्षण का पूजन बहुत पहले से चला आ रहा था, पर इनकी सर्वप्राचीन मूर्तियाँ मथुरा और ग्वालियर के क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं। ये शुंगकालीन हैं। कुषाणकालीन बलराम की मूर्तियों में कुछ व्यूह मूर्तियाँ विष्णु के समान चतुर्भुज प्रतिमाए हैं और कुछ उनके शेष से संबंधित होने की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हैं। ऐसी मूर्तियों में वे द्विभुज हैं और उनका मस्तक मंगलचिह्नों से शोभित नागफणों से अलंकृत है। बलराम का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में उठा हुआ है और बाएँ में मदिरा का चषक है। बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर नाग का आभोग दिखलाया गया है। कुषाण काल के मध्य में ही व्यूहमूर्तियों का और अवतारमूर्तियों का भेद समाप्तप्राय हो गया था, परिणामतः बलराम की ऐसी मूर्तियाँ भी बनने लगीं जिनमें नागफणाओं के साथ ही उन्हें हल-मूसल से युक्त दिखलाया जाने लगा। गुप्तकाल में बलराम की मूर्तियों में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। उनके द्विभुज और चतुर्भुज दोनों रूप चलते थे। कभी-कभी उनका एक ही कुंडल पहने रहना "बृहत्संहिता" से अनुमोदित था। स्वतंत्र रूप के अतिरिक्त बलराम तीर्थंकर नेमिनाथ के साथ, देवी एकानंशा के साथ, कभी दशावतारों की पंक्ति में दिखलाई पड़ते हैं।
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बलराम
कुषाण और गुप्तकाल की कुछ मूर्तियों में बलराम को सिंहशीर्ष से युक्त हल पकड़े हुए अथवा सिंहकुंडल पहिने हुए दिखलाया गया है। इनका सिंह से सम्बन्ध कदाचित् जैन परंपरा पर आधारित है।
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बलराम
मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र, जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही, के अतिरिक्त बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया। हल, मूसल तथा मद्यपात्र धारण करनेवाले सर्पफणाओं से सुशोभित बलदेव बहुधा समपद स्थिति में अथवा कभी एक घुटने को किंचित झुकाकर खड़े दिखलाई पड़ते हैं। कभी-कभी रेवती भी साथ में रहती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
बलराम
बलराम का जन्म यदूकुल में हुआ। कंस ने अपनी प्रिय बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव से विधिपुर्वक कराया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
बलराम
जब कंस अपनी बहन देवकी को रथ में बिठा कर वसुदेव के घर ले जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई और उसे पता चला कि उसकी बहन का आठवाँ संतान ही उसे मारेगा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
बलराम
कंस ने अपनी बहन को कारागार में बन्द कर दिया और क्रमशः 6 पुत्रों को मार दिया, 7वें पुत्र के रूप में शेष के अवतार बलराम जी थे जिसे श्री हरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE
बलराम
बलभद्र या बलराम श्री कृष्ण के बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं। बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी जिन्हें चित्रा भी कहते हैं। इनका ब्याह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था। कहते हैं, रेवती 21 हाथ लंबी थीं और बलभद्र जी ने अपने हल से खींचकर इन्हें छोटी किया था।
0.5
4,176.674817
20231101.hi_11191_8
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बलराम
इन्हें नागराज अनंत का अंश कहा जाता है और इनके पराक्रम की अनेक कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं। ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। दुर्योधन और भीमसेन इनके ही शिष्य थे। इसी से कई बार इन्होंने जरासंध को पराजित किया था। श्रीकृष्ण के पुत्र शांब जब दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण करते समय कौरव सेना द्वारा बंदी कर लिए गए तो बलभद्र ने ही उन्हें दुड़ाया था। स्यमंतक मणि लाने के समय भी ये श्रीकृष्ण के साथ गए थे। मृत्यु के समय इनके मुँह से एक बड़ा नाग निकला और प्रभास के समुद्र में प्रवेश कर गया था।
0.5
4,176.674817
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तरबूज़
तरबूज़ ग्रीष्म ऋतु का फल है। यह बाहर से हरे रंग के होते हैं, परन्तु अंदर से लाल और पानी से भरपूर व मीठे होते हैं। इनकी फ़सल आमतौर पर गर्मी में तैयार होती है। पारमरिक रूप से इन्हें गर्मी में खाना अच्छा माना जाता है क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करते हैं। तरबूज में लगभग 97% पानी होता है यह शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को पूरा करता है कुछ स्रोतों के अनुसार तरबूज़ रक्तचाप को संतुलित रखता है और कई बीमारियाँ दूर करता है। हिन्दी की उपभाषाओं में इसे मतीरा (राजस्थान के कुछ भागों में) और हदवाना (हरियाणा के कुछ भागों में) भी कहा जाता है।
0.5
4,173.11506
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तरबूज़
खाना खाने के उपरांत तरबूज़ का रस पीने से भोजन शीघ्र पचना। नींद आने में आसानी। रस से लू लगने का अंदेशा कम होना।
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4,173.11506
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तरबूज़
गर्मी में नित्य तरबूज़ के ठंडा शरबत से शरीर का शीतल होना। चेहरा चमकदार होना। लाल गूदेदार छिलकों को हाथ-पैर, गर्दन व चेहरे पर रगड़ने से सौंदर्य निखरना।
0.5
4,173.11506
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तरबूज़
तरबूज़ में विटामिन ए, बी, सी तथा लौहा भी प्रचुर मात्रा में मिलता है, जिससे रक्त सुर्ख़ व शुद्ध होता है।
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4,173.11506
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तरबूज़
कुछ का दावा है कि यह मोटापे और मधुमेह को भी रोकने का कार्य करता है। अर्जीनाइन नाइट्रिक ऑक्साइड को बढावा देता है, जिससे रक्त धमनियों को आराम मिलता है। एक भारतीय-अमरीकी वैज्ञानिक ने दावा किया है कि तरबूज़ वायग्रा-जैसा असर भी पैदा करता है। टेक्सास के फ्रुट एंड वेजीटेबल इम्प्रूवमेंट सेंटर के वैज्ञानिक डॉ भिमु पाटिल के अनुसार, "जितना हम तरबूज़ के बारे में शोध करते जाते हैं, उतना ही और अधिक जान पाते हैं। यह फल गुणो की खान है और शरीर के लिए वरदान स्वरूप है। तरबूज़ में सिट्रुलिन नामक न्यूट्रिन होता है जो शरीर में जाने के बाद अर्जीनाइन में बदल जाता है। अर्जीनाइन एक एम्यूनो इसिड होता है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और खून का परिभ्रमण सुदृढ रखता है।
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4,173.11506
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तरबूज़
यह संयुक्त राज्य अमेरिका से लाई गई किस्म है इस किस्म के फल बीज बोने के ९५-१०० दिन बाद तोड़ाई के लिए तैयार हो जाते है, जिनका औसत भार ४-६ किग्राम होता है इसके फल में बीज बहुत कम होते है बीज छोटे, भूरे और एक सिरे पर काले होते है उत्तर भारत में इस किस्म ने काफी लोकप्रियता हासिल कर ली है प्रति हे० २००-२५० क्विंटल तक उपज दे देती है छिलका हरे रंग का, गूदा लाल, मीठा होता है।
0.5
4,173.11506
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तरबूज़
यह जापान से लाई गई किस्म है इस किस्म के फल का औसत भार ७-८ किग्रा० होता है इसका छिलका हरा और मामूली धारीदार होता है इसका गूदा गहरा गुलाबी मीठा होता है इसके बीज छोटे होते है प्रति हे० २२५ क्विंटल तक उपज दे देती है।
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तरबूज़
यह एक उन्नत किस्म है इसके फलों का औसत भार १५-२० किग्रा० होता है इस किस्म के फल ८५ दिनों में खाने योग्य हो जाते है इसका छिलका हरा और हल्की धारियों वाला होता है यह किस्म गृह वाटिका में उगाने के लिए बहुत अच्छी है।
0.5
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तरबूज़
इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा किया गया है इस किस्म की सबसे बङी विशेषता यह है कि इसके फलों में बीज नहीं होते हैं फल में गूदा गुलाबी व अधिक रसदार व मीठा होता है यह किस्म ८५-९० दिन में तैयार हो जाती है।
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नैमिषारण्य
नैमिषारण्य तीर्थ अंतर्गत कई प्राचीन पौराणिक धर्मस्थल/देवस्थल है जिनमे मुख्यतः चक्रतीर्थ,माँ ललिता देवी मंदिर , भूतेश्वर नाथ मंदिर ,व्यास गद्दी,सूत गद्दी, मनु-सतरूपा तपस्थली , हनुमान गढ़ी, काशी कुंड तीर्थ , देवपुरी ,काशी विश्वनाथ मंदिर , रुद्रावर्त तीर्थ , देवदेवेश्वर , संत आपानारायण स्वामी समाधि स्थल , , चार धाम मंदिर, बालाजी मंदिर,त्रिशक्ति धाम, हत्या हरण तीर्थ, कालिका देवी,काली पीठ, प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। नैमिषारण्यसे कुछ दूरी पर मिश्रिख है- दधीचि कुंड। वृत्तासुर राक्षस के वध के लिए वज्रायुध के निर्माण हेतु फाल्गुनी पूर्णिमा को जब इन्द्रादि देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियों निवेदन किया तो महर्षि दधीचि ने कहा मैं समस्त तीर्थों में स्नान कर देवताओं के दर्शन करना चाहता हूं तो इन्द्र ने विश्व के समस्त तीर्थों और समस्त देवताओं का आव्हान किया तो समस्त तीर्थों और पवित्र नदियों ने एक सरोवर में मिश्रण हुए महर्षि दधीचि ने स्नान किया तब से इस कुण्ड का नाम 'दधीचि कुण्ड'या 'मिश्रित तीर्थ' के नाम से जाना जाता है और समस्त देवताओं ने 84 कोस के नैमिषारण्य में अपना स्थान ग्रहण किया दधीचि जी ने सभी देवताओं का दर्शन किया परिक्रमा करने के बाद अपनी अस्थियों को दान में दे दिया तब से समस्त तीर्थ '35000000'साढे तीन करोड़ तीर्थ' एवं समस्त देवता '(33) तेंतीस कोटि देवता नैमिषारण्य में वास करते हैं और आज भी भक्त समस्त तीर्थों और देवताओं का दर्शन 84कोश परिक्रमा करने के लिए देश विदेश से आते हैं ।
0.5
4,152.717994
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नैमिषारण्य
नैमिषारण्य स्टेशन से लगभग एक मील दूर चक्रतीर्थ है। यहां एक सरोवर है, जिसका मध्यभाग गोलाकार है और उससे बराबर जल निकलता रहता है। उस मध्य के घेरे के बाहर स्नान करने का घेरा है। यहीं नैमिषारण्य का मुख्य तीर्थ है। इसके किनारे अनेक मंदिर हैं। मुख्य मंदिर भूतनाथ महादेव का है। चक्रतीर्थ का बड़ी महिमा है। एक बार अट्ठासी हजार ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मा जी से निवेदन कि जगत कल्याण के लिये तपस्या हेतु विश्व में सौम्य और शांन्त भूमि का निर्देश करें। उस समय ब्रह्मा जी ने अपने मन से एक चक्र उत्पन्न करके ऋषियों कहा कि इस चक्र के पीछे चलकर उसका अनुकरण करो, जिस भूमि पर इस चक्र की नेमि (अर्थात मध्य भाग) स्वतः गिर जाये तो समझ लेना कि, पॄथ्वी का मध्य भाग वही है, तथा विश्व की सबसे दिव्य भूमि भी वही है। इस परम पवित्र भूमि के दर्शन विना जीव का जीवन भी कभी सफल नहीं होता।
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नैमिषारण्य
नैमिषारण्य की परिक्रमा ८४ कोस की है। यह परिक्रमा प्रतिवर्ष फाल्गुनमास की अमावस्या के बाद की प्रतिपदा को प्रारंभ होकर पूर्णिमा को पूर्ण होती है । नैमिषारण्य की छोटी (अंतर्वेदी) में यहां के सभी तीर्थ आ जाते हैं। यहां के प्रमुख तीर्थों में:
0.5
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नैमिषारण्य
ललितादेवी- पुराणों में नैमिषारण्य में लिंग धारिणी नाम से देवी का वर्णन है, लेकिन अब यह ललिता देवी के नाम से विख्यात है। देवी भागवत में भी श्लोक है कि वाराणस्यां विशालाक्षी नैमिषेलिंग धारिणी, प्रयागे ललिता देवी कामुका गंध मादने...। नैमिषारण्य में ललिता देवी का वर्णन 108 देवी पीठाें में आता है। देवी भागवत में लिखा है कि दक्ष द्वारा अपने पति के अपमान को न सह सकीं और आहत होकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। तब शंकर जी ने अपने गणों के साथ यज्ञ को नष्ट कर डाला और सती के शव को लेकर इधर-उधर विचरण करने लगे। उनके नरसंहार से विरत न होते देखकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के 108 टुकड़े कर डाले। शव के अंश जिन-जिन स्थानों पर गिरे, वहां पर देवी पीठ बने। नैमिषारण्य में सती जी का हृदय गिरा था, जिससे यह स्थान भी सिद्ध पीठ के नाम से विख्यात हुआ।
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नैमिषारण्य
काशीविश्वनाथ मंदिर - चक्रतीर्थ ललिता देवी मार्ग से आधा किलोमीटर की दूरी पर एक प्राचीन शिवधाम है जहाँ के बारे में मान्यता है कि सावन मास में एक माह तक यहां निरन्तर दर्शन करने से सारे कार्य सिद्ध होते हैं , नैमिष स्थित काशी तीर्थ के निकट स्थित भोले बाबा का पवित्र धाम काशीविश्वनाथ मंदिर स्थित है , यहाँ की महिमा ऐसी है कि जो व्यक्ति वाराणसी जाकर बाबा काशीविश्वनाथ के दर्शन न कर सके उसे यहाँ दर्शन करने से पूरा फल मिलता है ये बेहद प्राचीन मंदिर सहसा ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है , इस मन्दिर प्रबन्धक पं पुरुषोत्तम शास्त्री बताते है कि जब देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियां दान करने का निवेदन किया तो दधीचि ऋषि ने मनुष्य योनि से मुक्ति के लिए सभी तीर्थों और देवस्थलों के दर्शन करने का देवताओं से आग्रह किया । जिस पर देवराज इंद्र ने नैमिष तीर्थ में सभी देवो व तीर्थो को आमन्त्रित किया । सभी ने नैमिष की चौरासी कोसीय परिक्रमा में अपना स्थान ग्रहण किया। जिनके दर्शन और पूजन से महर्षि दधीचि को मोक्ष मिला और उनकी अस्थियों से परम् शक्तिशाली वज्र शक्ति का निर्माण हुआ एवं दुष्ट वृत्तासुर का वध हुआ । इसी क्रम में चक्रतीर्थ के पूर्व में स्थित काशी क्षेत्र में काशीकुण्ड के निकट द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से प्रमुख प्रभु काशी विश्वनाथ जी का आगमन हुआ है उनके स्वरूप की प्रतिकृति यहाँ आज भी विद्यमान है मान्यता है कि इस शिवलिंग के दर्शन पूजन से वाराणसी के काशी विश्वनाथ के समकक्ष पुण्य अर्जित होता है ये शिवालय चिरकाल से यहाँ आने वाले शिवभक्तो की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है । इसके अलावा इस स्थान पर मां अन्नपूर्णा देवी का भी मंदिर है जो वाराणसी में अन्नपूर्णा दर्शन के समान ही फल प्रदान करता है ।
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नैमिषारण्य
- काशीविश्वनाथ मंदिर के निकट नैमिष के परमसंत आपा नारायण स्वामी की समाधि स्थल है । यह नैमिष के परम् विरक्त सन्त हुए । आपा नारायण स्वामी ने यहां तपस्या रत रहते हुए विश्व कल्याण के लिए जीवित समाधि ली और चिरनिद्रा में लीन हुए । मन्दिर प्रबन्धक पं पुरुषोत्तम शास्त्री का कहना है कि यहां आये है तो यहाँ देवों ऋषियों से ईश्वर की भक्ति और पापकर्मो , पुनर्जन्म से मुक्ति मांगिये क्योंकि इसी से मानव जीवन का कल्याण है वहीं नैमिष में जो मनुष्य आकर धन, संपदा का लोभ करता है पाप करता है उसका सर्वनाश हो जाता है ।
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नैमिषारण्य
व्यास-शुकदेव के स्थान- एक मंदिर में भीतर शुकदेवजी की और बाहर व्यासजी की गद्दी है तथा पास में मनु और शतरूपा के चबूतरे हैं। *ब्रह्मावर्त- सूखा सरोवर। गंगोत्तरी, सूखा सरोवर रेत से भरा। पुष्कर- सरोवर है। गोमती नदी।
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नैमिषारण्य
चारों धाम मंदिर भारत के चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित चारों धाम मंदिर नैमिषारण्य में महर्षि गोपाल दास जी के द्वारा स्थापित चारों धाम १जगन्नाथ धाम २बद्रीनाथ धाम ३द्वारिकाधीश धाम ४रामेश्वरम धाम एक साथ दर्शन
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नैमिषारण्य
यहां स्वामी श्रीनारदनंदजी महाराज का आश्रम तथा एक ब्रह्मचर्याश्रम भी है, जहां ब्रह्मचारी प्राचीन पद्धति से शिक्षा प्राप्त करते हैं। आश्रम में साधक लोग साधना की दृष्टि से रहते हैं। धारणा है कि कलियुग में समस्त तीर्थ नैमिष क्षेत्र में ही निवास करते हैं।
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ज़ुकाम
समूह प्रतिरक्षा उसे कहते हैं जब कोई समूह एक विशेष संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षित हो जाता है और ऐसा पूर्व में जुकाम के विषाणुओं के संपर्क में आ चुके होने के कारण होता है। इस प्रकार कम आयु वाली जनसंख्या में श्वसन संक्रमण के होने की दर अधिक है और अधिक आयु वाली जनसंख्या में इसकी दर कम है। कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली भी इस बीमारी के लिए एक खतरा है। नींद की कमी और कुपोषण को भी इस संक्रमण के प्रति एक जोखिम माना जाता है जिससे बाद में राइनोवायरस का खतरा बढ़ जाता है। यह माना जाता है कि ऐसा प्रतिरक्षा प्रणाली पर इनके प्रभाव के कारण होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE
ज़ुकाम
सामान्य ज़ुकाम के लक्षण आमतौर पर वायरस के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया माने जाते हैं। इस प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की प्रक्रिया विषाणु विशिष्ट होती है। उदाहरण के लिए, राइनोवायरस आम तौर पर सीधे संपर्क से उपार्जित होता है। यह ICAM-1 मानव अभिग्राहकों से अज्ञात विधि से जुड़ जाता है और उत्तेजक मध्यस्थों के स्राव को सक्रिय करता है। जिससे ये उत्तेजक मध्यस्थ लक्षण पैदा करते हैं। आमतौर पर यह नासिका के ऐपीथैलियम को नुकसान नहीं पहुंचाता है। इसके विपरीत, रेस्परेट्री सिंक्शियल वायरस (RSV) सीधे संपर्क और वायु में उपस्थित नन्हीं बूंदों, दोनों माध्यम से उपार्जित होता है। इसके पश्चात निचली श्वसननलिका में अधिक फैलने से पूर्व यह नाक और गले में प्रतिकृतियां बनाता है। RSV से ऐपीथैलियम को नुकसान पहुंचता है। ह्युमन पैराइन्फ्लुएंजा वायरस आमतौर पर नाक, गले और वायुमार्ग में जलन पैदा करते हैं। कम आयु के बच्चों में ट्रेशिया को प्रभावित करने पर एक कंठ रोग भी हो सकता है, जिसमें सूखी खांसी आती है और सांस लेने में परेशानी होती है। ऐसा बच्चों के वायुमार्ग के छोटे आकार के कारण होता है।
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20231101.hi_31824_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE
ज़ुकाम
ऊपरी श्वसननलिका संक्रमणों (URTIs) के बीच अंतर अधिकतर लक्षणों के प्रकट होने के स्थानों पर निर्भर करता है। सामान्य ज़ुकाम मुख्य रूप से नाक, फैरिंजाइटिस मुख्य रूप से गले को और ब्रौन्काइटिस मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है। सामान्य ज़ुकाम को बहुधा नाक की जलन के रूप में परिभाषित किया जाता है और इसमें गले के संक्रमण भी अलग-अलग सीमा तक शामिल हो सकते हैं। इसमें स्व-निदान आम है। वह वायरस एजेंट जो वास्तव में इसका कारक होता है, उसका पृथक्करण असामान्य है। आमतौर पर लक्षणों के आधार पर विषाणु के प्रकार की पहचान कर पाना संभव नहीं है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE
ज़ुकाम
सामान्य ज़ुकाम के फैलाव को रोकने का एकमात्र प्रभावी तरीका इसके विषाणु को फैलने से रोकना ही है। इसमें मुख्यतः हाथ को धोना और चेहरे पर मास्क पहनना शामिल होता है। स्वास्थ्य रक्षा परिवेश में लम्बे चोंगे (गाउन) और उपयोग पश्चात फेंक दिए जाने वाले दस्ताने भी पहने जाते हैं। संक्रमित व्यक्तियों को अलग रखना इसमें संभव नहीं होता क्योंकि यह बीमारी बहुत व्यापक है और इसके लक्षण बहुत विशिष्ट नहीं होते। अनेक विषाणु इस बीमारी के कारक हो सकते हैं और उनमें बहुत ज़ल्दी-ज़ल्दी बदलाव होते रहते हैं इसलिए इस बीमारी में टीकाकरण भी कठिन सिद्ध हुआ है। व्यापक स्तर पर प्रभावशाली टीके विकसित कर पाने की संभावना बहुत कम है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE
ज़ुकाम
नियमित रूप से हाथ धोने से ज़ुकाम के विषाणुओं के संचरण को कम किया जा सकता है। यह बच्चों के बीच सबसे अधिक प्रभावी है। यह ज्ञात नहीं है कि सामान्य रूप से हाथ धोने के दौरान वायरसरोधी या बैक्टीरियारोधी पदार्थों के प्रयोग से हाथ धोने के लाभ बढ़ते हैं या नहीं संक्रमित लोगों के आसपास रहने के दौरान मास्क पहनना लाभकारी होता है। यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि अधिक शारीरिक और सामाजिक दूरी बनाना इसमें लाभकारी है या नहीं। ज़िंक अनुपूरण, किसी व्यक्ति में ज़ुकाम होने की आवृ्ति कम करने में प्रभावी हो सकता है। नियमित तौर पर लिया जाने वाला विटामिन सी पूरक सामान्य ज़ुकाम की गंभीरता या जोखिम को कम नहीं करता है। विटामिन सी ज़ुकाम की अवधि को कम कर सकता है।
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20231101.hi_31824_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE
ज़ुकाम
अभी तक ऐसी कोई दवा या जड़ी बूटी औषधि नहीं है जो प्रमाणित तौर पर सामान्य ज़ुकाम की अवधि को कम कर सकती हो। इसके उपचार में लक्षणों से मुक्ति शामिल है। इसमें खूब आराम करना, शरीर में जलयोजन बनाए रखने के लिए द्रव पदार्थ लेना, हलके गर्म-नमकीन पानी से गरारे करना आदि शामिल हो सकते हैं। हालांकि इलाज से होने वाले अधिकांश लाभ प्लासेबो प्रभाव के कारण ही माने जा सकते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE
ज़ुकाम
लक्षणों को घटने में जो इलाज सहायता करते हैं, वे हैं साधारण दर्द निवारक (एनेल्जेसिक्स) और बुखार कम करने वाली (एंटीपाइरेटिक्स) दवायें जैसे, आईब्रूफेन और एसिटामिनोफेन/पैरासेटामॉल। इस बात के साक्ष्य नहीं मिलते हैं कि कफ़ संबंधी दवायें, आम दर्द निवारक दवाओं (एनाल्जेसिक) दवाओं से अधिक प्रभावी हैं। बच्चों के लिए खांसी की दवा देने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि इनसे होने वाले नुकसान के जोखिम को देखते हुए इस बात के पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं जो यह सिद्ध करें कि ये प्रभावकारी होती हैं। जोखिम तथा अप्रमाणिक लाभों के कारण 2009 में, कनाडा ने 6 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिये काउंटर पर बिकने वाली खांसी की दवाओं तथा ज़ुकाम की दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया। डेक्सट्रोमेथॉर्थफन (खांसी की काउंटर पर बिकने वाली दवा) के दुरुपयोग के चलते कई देशों में इस पर प्रतिबंध लग गया है।
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ज़ुकाम
वयस्कों में नास के स्राव होने का लक्षण एंटीहिस्टामाइन की पहली पीढ़ी की दवाइयों द्वारा कम किया जा सकता है। हालांकि, पहली पीढ़ी की एंटीहिस्टामाइन के साथ सुस्ती जैसे कुछ दुष्प्रभाव जुड़े होते हैं। अन्य विसंकुलक (सर्दी/खांसी की दवा) जैसे कि स्यूडोएफेड्राइन भी वयस्कों में बहुत प्रभावी होते हैं। इप्राट्रोपियम जो कि नाक में डाला जाने वाला एक स्प्रे है, नाक से स्राव के लक्षण को कम कर सकता है, लेकिन स्राव के कारण होने वाली घुटन को यह बहुत प्रभावित नहीं कर पाता है। दूसरी पीढ़ी की एंटीहिस्टामाइन इतनी प्रभावकारी प्रतीत नहीं होती हैं।
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ज़ुकाम
अध्ययन के अभाव के कारण, यह ज्ञात नहीं है कि अधिक मात्रा में तरल लेने से लक्षणों में सुधार होता है या श्वसन रोग की अवधि कम होती है। इसी प्रकार तप्त नम वायु के प्रयोग के संबंध में भी आंकड़ों की कमी है। अध्ययन में यह पाया गया कि चेस्ट वेपर रब रात्रि के समय कुछ लक्षणात्मक आराम देने में सहायक हैं जैसे, खांसी, संकुलन और सोने में कठिनाई
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
महिला
भारतीय संस्कृति मे प्राचीन वैदिक काल से ही नारी का स्थान सम्माननीय रहा है और कहा गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रफलाः क्रियाः।। अर्थात् जिस कुल में स्त्रियों की पूजा होती है, उस कुल पर देवता प्रसन्न होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा, वस्त्र, भूषण तथा मधुर वचनादि द्वारा सत्कार नहीं होता है, उस कुल में सब कर्म निष्फल होते हैं। उन दिनों परिवार मातृसत्तात्मक था। खेती की शुरूआत तथा एक जगह बस्ती बनाकर रहने की शुरूआत नारी ने ही की थी, इसलिए सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भ में नारी है किन्तु कालान्तर में धीरे-धीरे सभी समाजों में सामाजिक व्यवस्था मातृ-सत्तात्मक से पितृसत्तात्मक होती गई और नारी समाज के हाशिए पर चली गई। आर्यों की सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भिक काल में महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ थी। ऋग्वेद काल में स्त्रियां उस समय की सर्वोच्च शिक्षा अर्थात् बृह्मज्ञान प्राप्त कर सकतीं थीं। ऋग्वेद में सरस्वती को वाणी की देवी कहा गया है जो उस समय की नारी की शास्त्र एवं कला के क्षेत्र में निपुणता का परिचायक है। अर्द्धनारीश्वर की कल्पना स्त्री और पुरूष के समान अधिकारों तथा उनके संतुलित संबंधों का परिचायक है। वैदिक काल में परिवार के सभी कार्यों और भूमिकाओं में पत्नी को पति के समान अधिकार प्राप्त थे। नारियां शिक्षा ग्रहण करने के अलावा पति के साथ यज्ञ का सम्पादन भी करतीं थीं। वेदों में अनेक स्थलों पर रोमाला, घोषाल, सूर्या, अपाला, विलोमी, सावित्री, यमी, श्रद्धा, कामायनी, विश्वम्भरा, देवयानी आदि विदुषियों के नाम प्राप्त होते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
महिला
देवमाता अदिति चारों वेदों की प्रकाण्ड विदुषि थी। ये दक्ष प्रजापति की कन्या एवं महर्षि कश्यप की पत्नी थीं। इन्होंने अपने पुत्र इन्द्र को वेदों एवं शास्त्रों की इतनी अच्छी शिक्षा दी कि उस ज्ञान की तुलना किसी से सम्भव नहीं थी, यही कारण है कि इन्द्र अपने ज्ञान के बल पर तीनों लोकों का अधिपति बना। अदिति को अजर-अमर माना जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
महिला
देवसम्राज्ञी शची इन्द्र की पत्नी थीं, वे वेदों की प्रकांड विद्वान थी। ऋग्वेद के कई सूक्तों पर शची ने अनुसन्धान किया। शचीदेवी पतिव्रता स्त्रियों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं। शची को इंद्राणी भी कहा जाता है। ये विदुषी के साथ-साथ महान नीतिवान भी थी। इन्होंने अपने पति द्वारा खोया गया सम्राज्य एवं पद प्रतिष्ठा ज्ञान के बल पर ही दोबारा प्राप्त की थी।
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महिला
सती शतरूपा स्वायम्भुव मनु की पत्नी थीं। वे चारों वेदों की प्रकाण्ड विदुषी थी। जल प्रलय के बाद मनु और शतरूपा से ही दोबारा सृष्टि का आरम्भ हुआ। ये योगशास्त्र की भी प्रकाड विद्वान और साधक थीं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
महिला
शाकल्य देवी महाराज अश्वपति की पत्नी थीं। एक बार अश्वपति महाराज ने ऋषियों से कहा कि मैं राष्ट्र में कन्याओं का भी निर्वाचन चाहता हूं। देश में ऐसी कौन महान वेदों की विदुषी है जो देवकन्याओं को वेदों की शिक्षा प्रदान करे। ऋषियों ने बताया कि आपकी पत्नी से बढ़कर वेदों की विदुषी और कोई नहीं है। तो राजा ने अपनी पत्नी शाकल्य देवी को वनवास दे दिया, ताकि वे वनों में रहकर कन्याओं के गुरुकुल स्थापित करें, आश्रम बनाएं और उसमें देश की कन्याएं शिक्षा पाएं। उन्होंने ऐसा ही किया। शाकल्य देवी ऐसी पहली विदुषी हैं, जिन्होंने कन्याओं के लिए शिक्षणालय स्थापित किए थे।
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महिला
सन्ध्या वेदों की प्रकाण्ड विद्वान थीं। इन्होंने महर्षि मेधातिथि को शास्त्रार्थ में पराजित किया। वे यज्ञ को सम्पन्न कराने वाली पहली महिला पुरोहित थी। उन्हीं के नाम पर प्रातः संध्या और सायं सन्ध्या का नामकरण हुआ।
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महिला
विदुषी अरून्धती ब्रहर्षि वसिष्ठ जी की धर्मपत्नी थीं। ये भी वेदों की प्रकाण्ड विद्वान थी। अपने ज्ञान के बल पर ही ये एकमात्र ऐसी विदुषी हैं, जिन्होंने सप्तर्षि मंडल में ऋषि पत्नी के रूप में गौरवशाली स्थान पाया। महर्षि मेधातिथि के यज्ञ में ये बचपन से ही भाग लेती थीं और यज्ञ के बाद वेदों की बातों पर तर्क-वितर्क किया करती थी।
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महिला
ब्रह्मवादिनी घोषा काक्षीवान् की कन्या थीं। इनको कोढ़ रोग हो गया था, लेकिन उसकी चिकित्सा के लिए इन्होंने वेद और आयुर्वेद का गहन अध्ययन किया और ये कोढी होते हुए भी विदुषी और ब्रह्मवादिनी बन गई। अश्विनकुमारों ने इनकी चिकित्सा की और ये अपने काल की विश्वसुन्दरी भी बनी।
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महिला
ब्रह्मवादिनी विश्ववारा वेदों पर अनुसन्धान करने वाली महान विदुषी थीं। ऋग्वेद के पांचवें मण्डल के द्वितीय अनुवाक के अटठाइसवें सूक्त षड्ऋकों का सरल रूपान्तरण इन्होंने ही किया था। अत्रि महर्षि के वंश में पैदा होने वली इस विदुषी ने वेदज्ञान के बल पर ऋषि पद प्राप्त किया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%B2%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
जयललिता
फिल्मी करियर के बाद उन्होने एम॰जी॰ रामचंद्रन के साथ 1982 में राजनीतिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने 1984 से 1989 के दौरान तमिलनाडु से राज्यसभा के लिए राज्य का प्रतिनिधित्व भी किया। वर्ष 1987 में रामचंद्रन का निधन के बाद उन्होने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। वे 24 जून 1991 से 12 मई 1996 तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्‍यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं। राजनीति में उनके समर्थक उन्हें अम्मा (मां) और कभी कभी पुरातची तलाईवी ('क्रांतिकारी नेता') कहकर बुलाते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%B2%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
जयललिता
जयललिता का जन्म 24 फ़रवरी 1948 को एक 'अय्यर ब्राम्हण' परिवार में, मैसूर राज्य (जो कि अब कर्नाटक का हिस्सा है) के मांडया जिले के पांडवपुरा तालुक के मेलुरकोट गांव में हुआ था। उनके दादा तत्कालीन मैसूर राज्य में एक सर्जन थे। महज 2 साल की उम्र में ही उनके पिता जयराम, उन्हें माँ संध्या के साथ अकेला छोड़ कर चल बसे थे। पिता की मृत्यु के पश्चात उनकी मां उन्हें लेकर बंगलौर चली आयीं, जहां उनके माता-पिता रहते थे। बाद में उनकी मां ने तमिल सिनेमा में काम करना शुरू कर दिया और अपना फिल्मी नाम 'संध्या' रख लिया।
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जयललिता
उनकी प्रारंभिक शिक्षा पहले बंगलौर और बाद में चेन्नई में हुई। चेन्नई के स्टेला मारिस कॉलेज में पढ़ने की बजाय उन्होंने सरकारी वजीफे से आगे पढ़ाई की।
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जयललिता
जब वे स्कूल में ही पढ़ रही थीं तभी उनकी मां ने उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए राजी कर लिया। विद्यालई शिक्षा के दौरान ही उन्होंने 1961 में 'एपिसल' नाम की एक अंग्रेजी फिल्म में काम किया। मात्र 15 वर्ष की आयु में वे कन्नड़ फिल्मों में मुख्‍य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी। कन्नड भाषा में उनकी पहली फिल्म 'चिन्नाडा गोम्बे' है जो 1964 में प्रदर्शित हुई। उसके बाद उन्होने तमिल फिल्मों की ओर रुख किया। वे पहली ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने स्कर्ट पहनकर भूमिका निभाई थी।
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जयललिता
तमिल सिनेमा में उन्होंने जाने माने निर्देशक श्रीधर की फिल्म 'वेन्नीरादई' से अपना करियर शुरू किया और लगभग 300 फिल्मों में काम किया। उन्होंने तमिल के अलावा तेलुगु, कन्नड़, अँग्रेजी और हिन्दी फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने धर्मेंद्र सहित कई अभिनेताओं के साथ काम किया, किन्तु उनकी ज्यादातर फिल्में शिवाजी गणेशन और एमजी रामचंद्रन के साथ ही आईं।
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