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20231101.hi_19490_2
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गोण्डा
गोण्डा प्राचीन काल में कोशल महाजनपद का भाग था, मुगलों के शासन में यह फरवरी १८५६ तक अवध का हिस्सा था और मुगलों के आधीन था जिसे बाद में अंग्रेजों ने कब्ज़ा लिया।
0.5
2,158.466997
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गोण्डा
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम की गायें इस क्षेत्र में चरा करती थी, जिससे इस क्षेत्र का नाम "गोनर्द" पड़ा। यही कालान्तर में अपभ्रंश होकर गोण्डा कहलाया। आज भी बहुत से ग्रामीण "गोण्डा" को "गोंड़ा" कहते हैं। गोण्डा को महाभाष्यकार पतंजलि की जन्मभूमि भी माना जाता है। पतंजलि को "गोनर्दीय पतंजलि" भी कहा जाता है। यहाँ स्थित "सूकरखेत", जो सूकरक्षेत्र का ही अपभ्रंश है, तुलसीदास जी की जन्मस्थली माना जाता है। गोण्डां मुख्यालय से दक्षिण 35 कि.मी. पर उमरी बेगमगंज में मां बाराही का विश्व का एकमात्र बड़ा ही पुरातन मंदिर है और इसी दिशा में गोण्डा से 37 कि. मी की दूरी पर पसका (सूूूकरखेत) मे प्रसिद्ध बाराह भगवान मन्दिर है।तथा यही पर तुुुलसीदास जी के गुुरू नरिहरदास जी का आश्रम भी यही है।
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गोण्डा
गोण्डा से 35 कि. मी उत्तर खरगुपुर में एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर का है जो पांडव द्वारा स्थापित है और गोण्डा का गौरव बड़ा रहै है इन्ही के समीप झाली धाम में कामधेनु गौ और विशालकाय कछुए देश विदेश के पर्यटको की उत्सुक्ता का केंद्र है
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गोण्डा
गोण्डा के नवाबगंज में पार्वती अरगा पक्षी विहार है जहां देशी व विदेशी पक्षीयों का दर्शन होता है और मुख्यालय से उत्तर में धानेपुर के समीप एक बहुत बड़ी मनोरम सोहिला झील भी है जिसके पास धरमेई गाँव सुप्रसिद्ध कथाव्यास श्रद्धेय श्रीकृष्णानंद व्यास जी की जन्मस्थली भी है।
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गोण्डा
"बाबा बालेश्वर नाथ मंदिर "- ये मंदिर गोंडा शहर से 17 किलोमीटर दूर स्थित है बाबा बालेश्वर नाथ बहुत ही प्राचीन मंदिर है यह गोंडा फैजाबाद रोड पर स्थित डुमरियाडीह बाजार से तरबगंज रोड पर बाल्हाराई ग्राम सभा में स्थित है मान्यता है कि यहाँ स्थित शिवलिंग श्वायाम्भू है औरंगजेब के शाशन काल में इस शिवलिंग पर आरे से प्रहार किया गया था ज़िसका चिन्ह आज भी विद्यमान है तथा इसी के आसपास 7 कोस में बिसेन राजपूत जो कि कालांतर में गौरहा बिसेन क्षत्रिय कहे जाते हैं यहीं निवास करते हैं,और यहीं पूरब में इमिलिया वरजोतपुरवा में वीर क्षत्रिय चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी के वंशज की २४ शाखाओं में से १८ वीं शाखा अवध के राजा श्री बच्छराज कुँवर जी के वंशज श्री कल्पनाथ चौहान के प्रपौत्र रामदुलारे चौहान s/o नागेश्वर चौहान जी की संताने निवास करती हैं।
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गोण्डा
इसी स्थानों पर चंदेलों की भी बस्तियां पाई जाती है, जिसमें हरिश्चंद्र सिंह चंदेल (पूर्व प्रधान) मुकुंदपुर निकट (माँ बाराही स्थल) अपने कर्तव्यों ,ईमानदारी और कर्मठता केे लिए विख्यात हैं, उनके प्रपौत्र विजय सिंह चंदेल 2015 में उत्तर प्रदेश अवार्ड सोसाइटी द्वारा अन्य कई जिले,राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के पुरष्कारों से नवाज़े जा चुके हैं। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा जिले के माने जाने संस्थान फातिमा सीनियर सेकेंडरी स्कूल से की है। वह जिले में कई मुहिम भी स्कूली शिक्षा के दौरान चला चुके है जैसे , नशा मुक्ति, स्वरोजगार, गरीबी उन्मूलन ।
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गोण्डा
"स्वामी नारायण मंदिर छपिया" गोंडा जिला मुख्यालय से पूरब की ओर छपिया में श्री घनश्याम जी का भव्य एवम् विशाल मंदिर है जहां पर दूर दूर से सैलानी घूमने आते हैं , यहीं घनश्याम जी की जन्मस्थली भी है।
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2,158.466997
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गोण्डा
खैरा भवानी मंदिर गोण्डा जिले में गोण्डा शहर के उत्तर दिशा में डीजल शेड से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह गोण्डा जिले का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है इसके पास में रामलीला मैदान पंडरी कृपाल ब्लॉक स्थित है
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गोण्डा
श्रीराधाकृष्ण मंदिर एवं शिव मंदिर खैरा भवानी मंदिर के पास स्थित है यहां पर श्रावण मास में रूद्राभिषेक कराने एवं जल चढ़ाने के लिए भक्तों की लाइन लगी रहती है यहां पर रामनवमी जन्माष्टमी बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है
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2,158.466997
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हेपरिन
कुछ दुर्लभ डाईसैकराइड होते हैं जिन्हें नीचे नहीं दिखाया गया है जिसमें 3-O-सल्फेटकृत ग्लुकोसमाइन (GlcNS(3S,6s)) होता है या एक मुक्त अमीन समूह (GlcNH3+). शारीरिक स्थितियों के तहत, एस्टर और अमाइड सल्फेट समूहों से प्रोटोन हटा दिया जाता है और ये एक हेपरिन नमक के गठन के लिए धनात्मक-चार्ज काउन्टीरियन को आकर्षित करते हैं। ऐसा इसी रूप में होता है कि हेपरिन को आम तौर पर एक थक्का-रोधी के रूप में दिया जाता है।
0.5
2,152.741792
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A8
हेपरिन
हेपरिन की एक इकाई ("हॉवेल यूनिट") शुद्ध हेपरिन की 0.002 mg की मात्रा के लगभग बराबर की मात्रा है, इतनी ही मात्रा की आवश्यकता एक बिल्ली के तरल रक्त को 24 घंटे के लिए 0 °C पर रखने के लिए आवश्यक होती है।
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हेपरिन
हेपरिन की त्रि-आयामी संरचना इस बात से जटिल हो जाती है कि इडुरोनिक एसिड दोनों में से किसी एक निम्न-ऊर्जा गठन में मौजूद हो सकता है जब इसे एक औलिगोसैक्राइड के अन्दर एक आंतरिक रूप से रखा जाता है। गठनात्मक संतुलन, आसन्न ग्लुकोसेमाइन शर्करा के सल्फेशन स्थिति द्वारा प्रभावित होता है। फिर भी, हेपरिन के एक डोडेकासैकराइड की घोल संरचना जो पूरी तरह से छह GlcNS(6S)-IdoA(2S) के दोहराव इकाइयों से गठित है, उसका निर्धारण NMR स्पेक्ट्रोस्कोपी और आण्विक मॉडलिंग तकनीक के संयोजन के इस्तेमाल से किया जाता है। दो मॉडल का निर्माण किया गया, एक जिसमें सभी IdoA(2S), 2S0 (A और B नीचे) गठन में थे और दूसरा जिसमें वे 1C4 गठन में हैं (C और D नीचे). लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं है कि जिससे यह सुझाव दिया जाए कि इन गठनों के बीच परिवर्तन एक ठोस शैली में घटित होते है। ये मॉडल, प्रोटीन डेटा बैंक कोड के अनुरूप हैं 1HPN.
0.5
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हेपरिन
इन मॉडलों में, हेपरिन एक पेचदार गठन अपनाता है, जिसका घुमाव, सल्फेट समूहों के गुच्छों को पेचदार धुरी के दोनों ओर करीब 17 एंगस्ट्रोम (1.7 nm) के एक नियमित अंतराल पर रखता है।
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हेपरिन
हेपरिन एक स्वाभाविक रूप से मौजूद रहने वाला थक्का-रोधी है जिसका उत्पादन बैसोफिल और मास्ट ऊतक द्वारा किया जाता है। हेपरिन एक थक्का-रोधी के रूप में कार्य करता है, जहां यह थक्कों और मौजूदा थक्कों को खून के भीतर विस्तारित होने से रोकता है। जबकि हेपरिन उन थक्कों को नहीं तोड़ता है जो पहले से बन गए हैं (ऊतक प्लाज्मीनोजेन उत्प्रेरक के विपरीत), यह शरीर के प्राकृतिक थक्का लाइसिस तंत्र को बन चुके थक्कों को तोड़ने के लिए सामान्य रूप से कार्य करने की अनुमति देता है। हेपरिन को आम तौर पर, निम्नलिखित स्थितियों के लिए थक्का-रोधन के लिए प्रयोग किया जाता है:
1
2,152.741792
20231101.hi_194823_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A8
हेपरिन
हेपरिन और इसके निम्न आणविक भार के व्युत्पन्न (जैसे इनोक्सापारिन, डाल्टपारिन, टीन्ज़ापारिन), रोगियों में गहन-शिरा घनास्त्रता और फुफ्फुसीय अन्तःशल्यता को रोकने में प्रभावी हैं, लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं है इनमें से कोई भी एक मृत्यु को रोकने में अधिक प्रभावी है। हेपरिन, एंजाइम प्रावरोधक एंटीथ्रोम्बिन III (AT) में बंध जाता है और एक गठनात्मक परिवर्तन को पैदा करता है जो प्रतिक्रियाशील साईट लूप के लचीलेपन में वृद्धि के माध्यम से इसके सक्रियण को फलित करता है। सक्रिय AT फिर थ्रोम्बिन और रक्त के थक्के में शामिल अन्य प्रोटीज़ को निष्क्रिय कर देता है, सबसे खासकर कारक Xa को। AT द्वारा इन प्रोटीज़ का निष्क्रियन दर, हेपरिन के बंधन की वजह से 1000-गुना बढ़ सकता है।
0.5
2,152.741792
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हेपरिन
हेपरिन-बंधन पर AT में गठनात्मक परिवर्तन, कारक Xa के उसके निषेध में मध्यस्थता करता है। थ्रोम्बिन निषेध के लिए, हालांकि, थ्रोम्बिन को हेपरिन बहुलक से ऐसे साईट पर बंधन करना चाहिए जो पेंटासैक्राइड के नज़दीक है। हेपरिन का उच्च-ऋणात्मक चार्ज घनत्व, थ्रोम्बिन के साथ इसकी अत्यंत मज़बूत विद्युत-स्थैतिक अंतर्क्रिया करने में योगदान देता है। AT, थ्रोम्बिन और हेपरिन के बीच त्रिगुट संकुल का गठन, थ्रोम्बिन की निष्क्रियता में फलित होता है। इस कारण से थ्रोम्बिन के खिलाफ हेपरिन की गतिविधि आकार-निर्भर है, जहां प्रभावी गठन के लिए त्रिगुट संकुल को कम से कम 18 सैक्राइड इकाइयों की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, कारक विरोधी Xa गतिविधि को केवल पेंटासैक्राइड बाध्यकारी साइट की आवश्यकता होती है।
0.5
2,152.741792
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हेपरिन
आकार के इस अंतर ने निम्न-आणविक भार वाले हेपरिन (LMWHs) को प्रेरित किया और अधिक हाल में फार्मास्युटिकल थक्का-रोधी के रूप में फोंडापारिनक्स को। निम्न-आणविक भार वाले हेपरिन और फोंडापारिनक्स, थ्रोम्बिन-विरोधी (IIa) गतिविधि के बजाय कारक-विरोधी Xa गतिविधि को लक्षित करते हैं, जहां उनका लक्ष्य जमाव के एक अधिक सूक्ष्म विनियमन और एक बेहतर चिकित्सीय सूचकांक को आसान करना है। फोंडापारिनक्स की रासायनिक संरचना बाईं तरफ दिखाई गई है। यह एक सिंथेटिक पेंटासैक्राइड है जिसकी रासायनिक संरचना, AT बाध्यकारी पेंटासैक्राइड अनुक्रम के लगभग समान है जिसे पौलिमेरिक हेपरिन और हेपारन सल्फेट में पाया जा सकता है।
0.5
2,152.741792
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हेपरिन
LMWH और फोंडापारिनक्स के साथ, ऑस्टियोपोरोसिस और हेपरिन-जनित थ्रोम्बोसाइटोंपीनिया (HIT) का खतरा कम होता है। APTT की मॉनिटरिंग की भी जरूरत नहीं है और यह बेशक थक्का-रोधी प्रभाव को प्रतिबिंबित नहीं करता है, क्योंकि APTT, कारक Xa में परिवर्तन के प्रति असंवेदनशील है।
0.5
2,152.741792
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
कोश
निघंटु ग्रंथों के अनंतर संस्कृत कोशों की परंपरा का उद्भव धातुपाठ, उणादिसूत्र, गणपाठ, लिंगानुशासन के रूप में हुआ। आगे चलकर संस्कृत के जो कोश प्रस्तुत हुए, वे धातुपाठ अथवा गणपाठ शैली से सर्वथा भिन्न है। इन कोशों में मुख्यत: नामपदों और अव्ययों का संग्रह है। कवियों को काव्यरचना करते समय शब्दों के चयन में सुविधा हो, इस दृष्टि से वाड्मय के विस्तृत क्षेत्र से शब्दों का संग्रह करके मुरारी, मयूर, वाण, श्रीहर्ष, विल्हण, आदि कवियों ने कोश प्रस्तुत किए। संस्कृत काश प्रधानत: पद्यात्मक हैं और उनमें शब्द और अर्थ का परिचय है।
0.5
2,142.233283
20231101.hi_190149_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
कोश
संस्कृत के किसी प्राचीनतम कोश का अंश आठ पृष्ठों के रूप में मध्य एशिया के काशगर नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। उसे किसी बौद्धधर्मी ने प्रस्तुत किया था। काशिका नानार्थ, कात्यायन का नाममाला, वाचस्पति का शब्दार्णव, विक्रमादित्य का संसारावत, व्याडि की उत्पलिनी संस्कृत के प्राचीन कोश है। किंतु प्राचीन कोशों में सर्वश्रेष्ठ अमरसिंह विरचित नामलिंगानुशासन शब्दों का संग्रह है। यह लगभग चौथी-पाँचवी शती ई. की और उपर्युक्त कोशों के कदाचित् बाद की रचना है।
0.5
2,142.233283
20231101.hi_190149_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
कोश
प्राचीनकालीन जो भारतीय कोश उपलब्ध हैं, उनमें शब्दों का संग्रह किसी विशेष क्रम से नहीं किया गया है। उनमें संक्षेप में अर्थ का ही संग्रह है। संस्कृत के कोष दो प्रकार के हैं :
0.5
2,142.233283
20231101.hi_190149_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
कोश
इन दोनों ही प्रकार के कोशों का कोई व्यवस्थित रूप नहीं है। प्रत्येक कोश में एक दूसरे से भिन्न पद्धति अपनाई गई है। कुछ कोश अक्षर अनुक्रम से हैं तो कुछ शब्दों के अक्षरों की संख्या के अनुसार है और कुछ पयार्यबाहुल्य शब्दों का संग्रह हैं। किसी में लिंग को संग्रह का आधार बनाया गया हैं।
0.5
2,142.233283
20231101.hi_190149_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
कोश
मध्ययुगीन कोशों में अनेकार्थ समुच्चय महत्व का कोश समझा जाता है। उसके बाद हलायुध के अभिधान रत्नमाला का स्थान है। इसकी रचना दसवीं शती के आसपास हुई थी। इसके सौ वर्ष पश्चात् यादवप्रकाश अथवा वैजयंती नाम से एक विस्तृत कोश की रचना हुई। इसमें प्रथम अक्षर की संख्या के आधार पर शब्दों का संग्रह किया गया है। उसके बाद लिंग-पद्धति से शब्द दिए गए हैं और फिर प्रत्येक प्रकरण में अक्षरक्रम से शब्द है। इस कोश में बड़ी मात्रा में नए शब्दों का संकलन है।
1
2,142.233283
20231101.hi_190149_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
कोश
बारहवीं शती के पूर्वार्ध में धनंजय नामक जैन कवि ने नाममाला और महेश्वर कवि ने विश्वप्रकाश नामक कोश प्रस्तुत किए। विश्वप्रकाश नानार्थ कोश है। महेश्वर ने इसकी प्रस्तावना में अपने पूर्ववर्ती कोशकारों के रूप में योगींद्र, कात्यायन, वोपालित और भागुरी का उल्लेख किया है। इसी काल में मंख ने एक अनिवार्थ कोश की रचना की थी किंतु कश्मीर के बाहर उसका प्रचार नहीं है। इसी काल के एक अन्य प्रसिद्ध कोशकार हैं - हेमचंद्र (1088-1172 ई.)। उनके चार कोश उपलब्ध होते है-
0.5
2,142.233283
20231101.hi_190149_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
कोश
दसवीं और तेरहवीं शती के बीच किसी समय पुरुषोत्तमदेव ने अमरकोश के परिशिष्ट के रूप में त्रिकांडशेष नामक कोश प्रस्तुत किया। इसमें बौद्ध संस्कृत वाङ्मय से महत्व के शब्द चुने गए हैं। उन्होंने हारावली नाम से एक अन्य कोश की रचना की है जिसमें त्रिकांडशेष की अपेक्षा अधिक महत्व के शब्द संग्रहीत हैं।
0.5
2,142.233283
20231101.hi_190149_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
कोश
1200 ई. के आसपास केशस्वामी ने ‘नानार्थार्णवसंक्षेप’ नामक कोश की रचना की उसमें शब्द अक्षर क्रम और लिंग अनुग्रम से संकलित है। चौदहवीं शती में मेदिनीकर ने मेदिनी नामक नानार्थ शब्दकोश तैयार किया था जिसकी काफी ख्याति है।
0.5
2,142.233283
20231101.hi_190149_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B6
कोश
प्राकृत कोशों में सबसे प्राचीन धर्मपालकृत पाइयलच्छी नाममाला (972 ई.) है। इसका उपयोग हेमचंद्र ने अपने देशी नाममाला में किया है। 12वीं शती में रचित अभिधानप्पदीपिका प्राकृत का एक अन्य प्रसिद्ध कोश है।
0.5
2,142.233283
20231101.hi_48002_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B2%E0%A5%80
औली
औली में प्रकृति ने अपने सौन्दर्य को खुल कर बिखेरा है। बर्फ से ढकी चोटियों और ढलानों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। यहाँ पर कपास जैसी मुलायम बर्फ पड़ती है और पर्यटक खासकर बच्चे इस बर्फ में खूब खेलते हैं। स्थानीय लोग जोशीमठ और औली के बीच केबल कार स्थापित करना चाहते हैं। जिससे आने-जाने में सुविधा हो और समय की भी बचत हो। इस केबल कार को बलतु और देवदार के जंगलो के ऊपर से बनाया जाएगा। यात्रा करते समय आपको गहरी ढ़लानों से होकर जाना पड़ता है और ऊँची चढ़ाईयाँ चढ़नी पड़तीं हैं। यहाँ पर सबसे गहरी ढलान 1,640 फुट और सबसे ऊँची चढ़ाई 2,620 फुट की है। पैदल यात्रा के अलावा यहाँ पर चेयर लिफ्ट का विकल्प भी है।
0.5
2,139.010472
20231101.hi_48002_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B2%E0%A5%80
औली
जिंदादिल लोगों के लिए औली बहुत ही आदर्श स्थान है। यहाँ पर बर्फ गाड़ी और स्लेज आदि की व्यवस्था नहीं है। यहाँ पर केवल स्कीइंग और केवल स्कीइंग की जा सकती है। इसके अलावा यहाँ पर अनेक सुन्दर दृश्यों का आनंद भी लिया जा सकता है। नंदा देवी के पीछे सूर्योदय देखना एक बहुत ही सुखद अनुभव है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान यहाँ से 41 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा बर्फ गिरना और रात में खुले आकाश को देखना मन को प्रसन्न कर देता है। शहर की भागती-दौड़ती जिंदगी से दूर औली एक बहुत ही बेहतरीन पर्यटक स्थल है।
0.5
2,139.010472
20231101.hi_48002_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B2%E0%A5%80
औली
यहाँ पर स्की करना सिखाया जाता है। गढ़वाल मण्डल विकास निगम ने यहाँ स्की सिखाने की व्यवस्था की है। मण्डल द्वारा 7 दिन की नॉन-सर्टिफिकेट और 14 दिन की सर्टिफिकेट ट्रेनिंग दी जाती है। यह ट्रेनिंग हर वर्ष जनवरी-मार्च में दी जाती है। मण्डल के अलावा निजी संस्थान भी ट्रेनिंग देते हैं। यह पर्यटक के ऊपर निर्भर करता है कि वह कौन सा विकल्प चुनता है। स्की सीखते समय सामान और ट्रेनिंग के लिए रू.500 देने पड़ते हैं। इस फीस में पर्यटकों के लिए रहने, खाने और स्की सीखने के लिए आवश्यक सामान आदि की आवश्यक सुविधाएं दी जाती हैं।
0.5
2,139.010472
20231101.hi_48002_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B2%E0%A5%80
औली
इसके अलावा यहाँ पर कई डीलक्स रिसोर्ट भी हैं। यहाँ पर भी ठहरने का अच्छा इंतजाम है। पर्यटक अपनी इच्छानुसार कहीं पर भी रूक सकते हैं। बच्चों के लिए भी औली बहुत ही आदर्श जगह है। यहाँ पर पड़ी बर्फ किसी खिलौने से कम नहीं होती है। इस बर्फ से बच्चे बर्फ के पुतले और महल बनाते हैं और बहुत खुश होते हैं।
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2,139.010472
20231101.hi_48002_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B2%E0%A5%80
औली
स्की करने के लिए व्यस्कों से रू. 475 और बच्चों से रू. 250 शुल्क लिया जाता है। स्की सीखाने के लिए रू. 125-175, दस्तानों के लिए रू. 175 और चश्मे के लिए रू. 100 शुल्क लिया जाता है। 7 दिन तक स्की सीखने के लिए भारतीय पर्यटकों से रू. 4,710 और विदेशी पर्यटकों से रू. 5,890 शुल्क लिया जाता है। 14 दिन तक स्की सीखने के लिए भारतीय पर्यटकों से रू. 9,440 और विदेशी पर्यटकों से रू. 11,800 शुल्क लिया जाता है।
1
2,139.010472
20231101.hi_48002_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B2%E0%A5%80
औली
जोशीमठ बहुत ही पवित्र स्थान है। यह माना जाता है कि महागुरू आदि शंकराचार्य ने यहीं पर ज्ञान प्राप्त किया था। यह मानना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि यहाँ पर बहुत ही विषम परिस्थितियाँ हैं। इसके अलावा यहाँ पर नरसिंह, गरूड़ मंदिर आदि शंकराचार्य का मठ और अमर कल्प वृक्ष है। यह माना जाता है कि यह वृक्ष लगभग 2,500 वर्ष पुराना है। इसके अलावा तपोवन भी घुमा जा सकता है। यह जोशीमठ से 14 किलोमीटर और औली से 32 किलोमीटर दूर है। तपोवन पवित्र बद्रीनाथ यात्रा के रास्ते में पड़ता है। यहीं से बद्रीनाथ यात्रा की शुरूआत मानी जाती है। बद्रीनाथ यात्रा भारत की सबसे पवित्र चार धाम यात्रा में से एक मानी जाती है।
0.5
2,139.010472
20231101.hi_48002_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B2%E0%A5%80
औली
दिल्ली से औली जाते समय रास्ते में रूद्रप्रयाग पड़ता है। यहाँ पर रात को रूका जा सकता है। रूद्रप्रयाग से औली पहुँचने के लिए साढ़े चार घंटे का समय लगता है। रूद्रप्रयाग में रात को ठहरने की अच्छी व्यवस्‍था है। जोशीनाथ रोड से केवल 3 किलोमीटर दूर मोनल रिसोर्ट है। यह औली का सबसे अच्छा होटल है। इसमें बच्चों के खेलने के लिए मैदान और मचान बने हुए हैं। इसके अलावा इसमें खाने के लिए एक रेस्तरां भी है।
0.5
2,139.010472
20231101.hi_48002_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B2%E0%A5%80
औली
इसके अलावा जी.एम.वी.एन. रूद्र कॉम्पलैक्स में भी रूका जा सकता है। यहाँ ठहरने और खाने की अच्छी व्यवस्था है। इसके अलावा यहाँ पर तीन कमरों में सोने की सामूहिक व्यवस्था भी है। यहाँ पर 20 बेड हैं और खाने के लिए रेस्तरां है।
0.5
2,139.010472
20231101.hi_48002_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B2%E0%A5%80
औली
औली बहुत ही विषम परिस्थितियों वाला पर्यटक स्थल है। यहाँ घूमने के लिए पर्यटकों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि औली आने से पहले शारीरिक व्यायाम करें और रोज दौड़ लगाएं। औली में बहुत ठंड पड़ती है। यहाँ पर ठीक रहने और सर्दी से बचने के लिए उच्च गुणवत्ता के गर्म कपड़े पहनना बहुत आवश्यक है। गर्म कपड़ों में कोट, जैकेट, दस्ताने, गर्म पैंट और जुराबें होनी बहुत आवश्यक हैं। इन सबके अलावा अच्छे जूते होना भी बहुत जरुरी है। घूमते समय सिर और कान पूरी और अच्छी तरह से ढके होने चाहिए। आँखो को बचाने के लिए चश्में का प्रयोग करना चाहिए। यह सामान जी.एम.वी.एन. के कार्यालय से किराए पर भी लिए जा सकते हैं। जैसे-जैसे आप पहाड़ों पर चढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे पराबैंगनी किरणों का प्रभाव बढ़ता जाता है। यह किरणे आँखों के लिए बहुत हानिकारक होती हैं। इनसे बचाव बहुत जरूरी है। अत: यात्रा पर जाते समय विशेषकर बच्चों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले चश्मे का होना बहुत जरूरी है। वहाँ पर ठंड बहुत पड़ती है। अत्यधिक ठंड के कारण त्वचा रूखी हो जाती है। त्वचा को रूखी होने से बचाने के लिए विशेषकर होंठो पर एस.पी.एफ. क्रीम का प्रयोग करना चाहिए।
0.5
2,139.010472
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औषधनिर्माण
राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार के अनुसार स्कूली शिक्षा की विभिन्न आवश्यकताएँ हैं जहां छात्र अभ्यास करना चाहता है।
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2,138.50145
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औषधनिर्माण
संयुक्त राज्य अमेरिका में, सामान्य फार्मासिस्ट डॉक्टर ऑफ फार्मेसी डिग्री (फार्म.डी.) प्राप्त करेंगे। फार्म.डी. कम से कम छह वर्षों में पूरा किया जा सकता है, जिसमें दो वर्ष की प्री-फार्मेसी कक्षाएं और चार वर्ष का व्यावसायिक अध्ययन शामिल है। फार्मेसी स्कूल से स्नातक होने के बाद, यह सुझाव दिया जाता है कि छात्र एक या दो वर्ष की रेसीडेंसी पूरा करें, जो स्वतंत्र रूप से सामान्यीकृत या विशेष फार्मासिस्ट बनने से पहले छात्र के लिए मूल्यवान अनुभव प्रदान करता है।
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2,138.50145
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औषधनिर्माण
सामुदायिक फार्मेसियों, अस्पतालों, क्लीनिकों, विस्तारित देखभाल सुविधाओं, मनोरोग अस्पतालों और नियामक एजेंसियों सहित विभिन्न क्षेत्रों में फार्मासिस्ट अभ्यास करते हैं। फार्मासिस्ट स्वयं के पास चिकित्सा विशेषता में विशेषज्ञता हो सकती है।
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औषधनिर्माण
एक ऑनलाइन फार्मेसी, इंटरनेट फार्मेसी, या मेल-ऑर्डर फार्मेसी एक ऐसी फार्मेसी है जो इंटरनेट पर काम करती है और ग्राहकों को मेल, शिपिंग कंपनियों या ऑनलाइन फार्मेसी वेब पोर्टल्स के माध्यम से ऑर्डर भेजती है।
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औषधनिर्माण
वर्ष २००० के बाद से, दुनिया भर में इंटरनेट फार्मेसियों की बढ़ती संख्या स्थापित की गई है। इनमें से कई फार्मेसी सामुदायिक फार्मेसियों के समान हैं, और वास्तव में, उनमें से कई वास्तव में ईंट-और-पत्थर की सामुदायिक फार्मेसी द्वारा संचालित हैं जो ग्राहकों को ऑनलाइन और जो उनके स्टोर में आते है उन सबको सेवा प्रदान करती हैं । प्राथमिक अंतर वह तरीका है जिसके द्वारा दवाओं का अनुरोध किया जाता है और प्राप्त किया जाता है। कुछ ग्राहक सामुदायिक दवा की दुकान में जाने के बजाय इसे एक अधिक सुविधाजनक और निजी तरीका मानते हैं, जहां कोई अन्य ग्राहक उनके द्वारा ली जाने वाली दवाओं के बारे में सुन सकता है। इंटरनेट फार्मेसियों (ऑनलाइन फार्मेसी के रूप में भी जाना जाता है) को कुछ रोगियों को उनके चिकित्सकों द्वारा अनुशंसित किया जाता है यदि उन्हें घर से बाहर नहीं निकलना हैं।
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औषधनिर्माण
कनाडा दर्जनों लाइसेंस प्राप्त इंटरनेट फार्मेसी का घर है, जिनमें से कई अपनी कम-लागत वाली दवाओं को यू.एस. उपभोक्ताओं को बेचते हैं (अन्यथा जिन्हें दुनिया की उच्चतम दवा कीमतों में से एक का भुगतान करना होगा)। हाल के वर्षों में, अमेरिका में (और उच्च दवा लागत वाले अन्य देशों में) कई उपभोक्ताओं ने भारत, इज़राइल और यूके में लाइसेंस प्राप्त इंटरनेट फार्मेसी की प्राथमिकता देते है, जिनकी कीमतें अक्सर कनाडा से भी कम होती हैं।
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औषधनिर्माण
अध्ययन के लिए भेषज विज्ञान दो भागों में बाँटा जा सकता है - सैद्धांतिक भेषजी (theoretical pharmacy) तथा क्रियात्मक भेषजी (practical pharmacy)
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औषधनिर्माण
सैद्धांतिक भेषज विज्ञान के अंतर्गत भौतिकी, रसायन, गणित और सांख्यिक विश्लेषण तथा वनस्पति विज्ञान, प्राणिशास्त्र, वनौषध परिचय, औषध-प्रभाव-विज्ञान, सूक्ष्म-जीव-विज्ञान तथा जैविकीय प्रमापण का भी ज्ञान आता है। साथ ही, इसमें भाषाज्ञान, भेषज संबंधी कानून, औषधनिर्माण, प्राथमिक चिकित्सा और सामाजिक स्वास्थ्य इत्यादि भी सम्मिलित हैं।
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औषधनिर्माण
क्रियात्मक भेषज विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसमें भेषज के सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप में लाने के हेतु प्रयुक्त विधियों तथा निर्माण क्रियाओं का ज्ञान आता है। इसके अंतर्गत औषध संयोजन तथा भेषजीय द्रव्यों का निर्माण भी है।
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आर्सेनिक
क्षार, क्षारीय मृदाएँ (ऐल्कैलाइन अर्थ्स) तथा कुछ अन्य धातुएँ जैसे यशद, एल्यूमीनियम आदि आर्सेनिक के साथ यौगिक बनाती हैं। ये प्रतिक्रियाएँ आर्सेनिक के अधातु गुणधर्म की पुष्टि करती है।
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2,134.164823
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आर्सेनिक
आर्सेनिक अम्ल का सूत्र As(OH)3 है। क्षार द्वारा इस अम्ल के क्रियात्मक लवण आर्सेनाइट कहलाते हैं। आर्सेनिक आक्साइड आथवा संखिया का सूत्र As4O6 है। यह यौगिक कई अपर रूपों में मिलता है और शक्तिशाली संचयी (अक्युम्युलेटिव) विष है।
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आर्सेनिक
क्लोरीन, ब्रोमीन तथा आयोडीन के साथ आर्सेनिक त्रिसंयोजकीय यौगिक बनाता है। इन यौगिकों का विघटन बहुत कम हाता है। इस कारण इनमें लवण के गुण नहीं हैं।
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आर्सेनिक
आर्सेनिक के पाँच प्रधान यौगिक आक्साइड As2O5, आर्सेनिक अम्ल H3AsO4 तथा उससे बने आर्सिनेट सल्फाइड As2O5 और फ्लोराइड AsF5 हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95
आर्सेनिक
आर्सेनिक के कार्बनिक व्युत्पन्न भी बनाए गए हैं, जिनमें (CH)3 As, (CH3)4 As Cl, (CH3)2 As-As (CH3)2 और (CH3)2As OOH मुख्य हैं।
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आर्सेनिक
गुणात्मक विश्लेषण में आर्सेनिक को सल्फाइड के रूप में पारद, वंग (राँगा), एंटिमनी आदि के साथ अलग करते हैं। आर्सेनिक के यौगिक अधिकतर विषैले होते हैं। इसलिए इसकी सूक्ष्म मात्रा में उपस्थिति की पहचान करना, विलयन तथा गैस दोनों रूपों में, आवश्यक हो सकता है। आर्सेनाइट का विलयन ताँबे द्वारा अपचयित हो जाता है। ताँबें के टुकड़े को विलयन में डालने से उसपर आर्सेनिक की काली परत छा जाती है। AsH3 अथवा आर्सीन का वाष्प सिल्वर नाइट्रेट को उपचयित कर देता है। आर्सीन का वाष्प गर्म नली में आर्सेनिक की काली तह जमा देता है; इस परीक्षा को मार्श की परीक्षा कहा जाता है।
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आर्सेनिक
आर्सेनिक आक्साइड आर्सेनिक का सबसे उपयोगी यौगिक है। यह तांबे, सीसे तथा अन्य धातुओं के अयस्क से सहजात के रूप में निकाला जाता है। आर्सेनिक आक्साइड अन्य आर्सेनिक यौगिकों के निर्माण में काम आता है। इसका उपयोग काँच बनाने तथा चमड़े की वस्तुएँ सुरक्षित करने में होता है। इस काम में लेड आर्सेनाइट, कैल्सियम आर्सेनाइट और ताँबे के कार्बनिक आर्सेनाइट का विशेष उपयोग होता है। आर्सेनिक के कुछ अन्य यौगिक वर्णकों (रंगों) के लिए विशेष उपयोगी होते हैं।
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आर्सेनिक
आर्सेनिक का उपयोग मिश्र धातुओं के निर्माण में भी होता है। सीसे में एक प्रतिशत आर्सेनिक डालने से उसकी पुष्टता बढ़ जाती है। इस मिश्रण का उपयोग छर्रे बनाने में होता है। ताँबे के साथ थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक मिलाने पर उसका आक्सीकरण तथा क्षरण रुक जाता है।
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आर्सेनिक
आर्सेनिक के यौगिक प्राय: विषैले होते हैं। वे शरीर की कोशिकाओं में पक्षाघात (पैरालिसिस) पैदा करते हैं तथा अंतड़ियों और ऊतकों को हानि पहुँचाते हैं। आर्सेनिक खाने पर सिरपीड़ा, चक्कर तथा वमन आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। कुछ व्यक्तियों का विचार है कि आर्सेनिक सूक्ष्म मात्रा में लाभकारी होता है। अत: उसके अनेक कार्बनिक तथा अकार्बनिक यौगिक रक्ताल्पता, तंत्रिकाव्याधि, गठिया, मलेरिया, प्रमेह तथा अन्य रोगों के उपचार में प्रयुक्त होते हैं। विशेषकर प्रमेह के उपचार में सालवारसन का उपयोग होता है, जो आर्सेनिक का कार्बनिक यौगिक आर्सफिनामीन हाइड्रोक्लोराइड है।
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आयुर्विज्ञान
शारीरिकी जीवों की शारीरिक संरचना का अध्ययन है। स्थूल शरीर रचनाविज्ञान के विपरीत, कोशिका विज्ञान और ऊतक विज्ञान सूक्ष्म संरचनाओं से संबंधित हैं।
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आयुर्विज्ञान
जैवरसायन जीवित जीवों में होने वाले रसायन विज्ञान का अध्ययन है, विशेष रूप से उनके रासायनिक घटकों की संरचना और क्रियाओं का।
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आयुर्विज्ञान
जैवभौतिकी एक अंतःविषय विज्ञान है जो जैविक प्रणालियों का अध्ययन करने के लिए भौतिकी और भौतिक रसायन विज्ञान के तरीकों का उपयोग करता है।
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आयुर्विज्ञान
जैवसांख्यिकी व्यापक अर्थों में जैविक क्षेत्रों में सांख्यिकी का अनुप्रयोग है। चिकित्सा अनुसंधान की योजना, मूल्यांकन और व्याख्या में जैवसांख्यिकी का ज्ञान आवश्यक है। यह महामारी विज्ञान और साक्ष्य-आधारित चिकित्साके लिए भी मौलिक है।
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आयुर्विज्ञान
महामारी विज्ञान या जानपदिक रोगविज्ञान, रोग प्रक्रियाओं की जनसांख्यिकी का अध्ययन है, और इसमें शामिल है, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है, महामारी का अध्ययन ।
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आयुर्विज्ञान
ऊतकविज्ञान, प्रकाश सूक्ष्मदर्शिकी , इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शिकी और प्रतिरक्षा-ऊतकरसायन द्वारा जैविक ऊतकों की संरचनाओं का अध्ययन है।
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आयुर्विज्ञान
प्रतिरक्षा विज्ञान प्रतिरक्षा प्रणाली का अध्ययन है, जिसमें उदाहरण के लिए, मनुष्यों में जन्मजात (सहज प्रतिरक्षा) और अनुकूली (उपार्जित प्रतिरक्षा) प्रणाली शामिल है।
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आयुर्विज्ञान
जीवनशैली आयुर्विज्ञान, दीर्घकालिक स्थितियों, लक्षणों व बीमारियों और उन्हें कैसे रोका जाए, इलाज किया जाए और कैसे ठीक किया जाए का अध्ययन है, ।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
आयुर्विज्ञान
अणुजैविकी, आनुवंशिक सामग्री की प्रतिकृति , प्रतिलेखन और अनुवाद की प्रक्रिया के आणविक आधारों का अध्ययन है।
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2,130.620322
20231101.hi_596412_0
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BE
एजोला
एजोला (Azolla) एक तैरती हुई फर्न है जो शैवाल से मिलती-जुलती है। सामान्यतः एजोला धान के खेत या उथले पानी में उगाई जाती है। यह तेजी से बढ़ती है।
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एजोला
अजोला एक जैव उर्वरक है। एक तरफ जहाँ इसे धान की उपज बढ़ती है वहीं ये कुक्कुट, मछली और पशुओं के चारे के काम आता है। कुछ देशों में तो लोग इसे चटनी व पकोड़े भी बनाते हैं। इससे बायोडीजल तैयार किया जाता है। यहां तक कि लोग इसे अपने घर के ड्रॉइंग रूम को सजाने के लिए भी लगाते हैं। अजोला पशुओं के लिए पौष्टिक आहार है। पशुओं को खिलाने से उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है ।
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एजोला
एजोला पानी में पनपने वाला छोटे बारीक पौधों के जाति का होता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में फर्न कहा जाता है। एजोला की पंखुड़ियो में एनाबिना (Anabaena,) नामक नील हरित काई के जाति का एक सूक्ष्मजीव होता है जो सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय नत्रजन का यौगिकीकरण करता है और हरे खाद की तरह फसल को नत्रजन की पूर्ति करता है। एजोला की विशेषता यह है कि यह अनुकूल वातावरण में ५ दिनों में ही दो-गुना हो जाता है। यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये तो ३०० टन से भी अधिक सेन्द्रीय पदार्थ प्रति हेक्टेयर पैदा किया जा सकता है यानी ४० कि०ग्रा० नत्रजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त। एजोला में ३.५ प्रतिशत नत्रजन तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की ऊर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं।
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एजोला
धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है। २ से ४ इंच पानी से भरे खेत में १० टन ताजा एजोला को रोपाई के पूर्व डाल दिया जाता है। इसके साथ ही इसके ऊपर ३० से ४० कि०ग्रा० सुपर फास्फेट का छिड़काव भी कर दिया जाता है। इसकी वृद्ध के लिये ३० से ३५ डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अत्यंत अनुकूल होता है।
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एजोला
इस फर्न का रंग गहरा लाल या कत्थाई होता है। धान के खेतों में यह अक्सर दिखाई देती है। छोटे-छोटे पोखर या तालाबों में जहां पानी एकत्रित होता है वहां पानी की सतह पर यह दिखाई देती है।
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एजोला
अजोला का प्रयोग मुख्यतः धान की खेती में किया जाता है जिसमें सभी किस्मों का प्रयोग हम कर सकते हैं अगर Junwer29 का प्रयोग करते हैं तो अधिक लाभ मिलता है धान की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद हम इसे खेतों में डाल सकते हैं एक बार डालने के बाद आसानी से पूरे खेत में यह फैल जाता है खेती में एजोला को हरी खाद के रूप में रामबाण माना गया है अजोला को खाद के रूप में प्रयोग करने से भूमि में कार्बनिकक गुणों में बढ़ोतरी व फसल में नाइट्रोजन की पूर्ति करना मुख्य कार्य है
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एजोला
अजोला सस्ता, सुपाच्य, पौष्टिक, पूरक पशु आहार है। इसे खिलाने से पशुओं के दूध में वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं की अपेक्षा अधिक पाई जाती हैं। यह पशुओं में बांझपन निवारण में उपयोगी है। पशुओं के पेशाब में खून आने की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है जो अजोला खिलाने से दूर हो जाती है। अजोला से पशुओं में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारिरिक विकास अच्छा है। अजोला में प्रोटीन, आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा-कैरोटीन) एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फ़ोरस, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैगनेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत एमीनो अम्ल, जैव सक्रिय पदार्थ एवं पोलिमर्स आदि पाये जाते है। इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यन्त कम होती है, अतः इसकी संरचना इसे अत्यन्त पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है। यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों , मुर्गियों आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है। दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगों से पाया गया है कि जब पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ 1.5 से 2 किग्रा. अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत वृद्धि होती है।
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एजोला
अजोला जल की सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाला फर्न है। यह छोटे-छोटे समूह में हरित गुक्ष्छ की तरह तैरता है। भारत में मुख्य रूप से "अजोला पिन्नाटा" नामक अजोला की जाति पाई जाती है जो काफी हद तक गर्मी सहन करने वाली जाति है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BE
एजोला
अजोला प्रोटीन, आवश्यक अमीनो अम्ल, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा कैरोटीन), एवं कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, लोहा, कॉपर एवं मैग्नीशियम से भरपूर है। शुष्क वजन के आधार पर इसमें 20-30 प्रति‍शत प्रोटीन, 20-30 प्रति‍शत वसा, 50-70 प्रति‍शत खनिज लवण, 10-13 प्रति‍शत रेशा, बायो-एक्टिव पदार्थ एवं बायो पॉलीमर पाये जाते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%80
मूली
जीनस रैफानस वर्णनात्मक ग्रीक नाम "का अर्थ है जल्द ही प्रकट होना और इन पौधों के तेजी से अंकुरण को संदर्भित करता है। एक ही ग्रीक रूट रैपैनिस्ट्रम एक पुराना नाम है जो किसी समय इस जीनस के लिए उपयोग किया जाता है। सामान्य नाम" मुला "लैटिन (मूल = जड़) से लिया गया है। हां।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%80
मूली
यद्यपि मूली से हेलेनिस्टिक और रोमन काल से खेती अच्छी तरह से स्थापित है, यह धारणा कि इसकी खेती पहली बार लाई गई थी, "इसमें लगभग कोई पुरातात्विक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं"। निर्धारित इतिहास और पतलापन। शहतूत और शलजम टॉर्टिल और शलजम के जंगली रूप पूरे पश्चिम एशिया और यूरोप में पाए जा सकते हैं, यह सुझाव देते हैं कि उन क्षेत्रों में कहीं-कहीं उनकी पर्णवृष्टि हुई थी। हालांकि, इन पौधों की उत्पत्ति के रूप में जोहरी और हॉपफ के निष्कर्ष आवश्यक रूप से भाषाई आधार पर आधारित हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%80
मूली
मूली सभी प्रकार के बवासीर में फायदेमंद होती है, इसे कच्चा या पका कर खाया जाता है। इसके पत्ते की सब्जी बनाई जाए। यदि गुर्दे की विफलता से मूत्र बनना बंद हो जाती है, तो मूली के रस को दो औंस प्रति मात्रा पीने से लाभ होता है। मधुमेह के रोगियों को इससेसे लाभ होता है। अगर आप रोज सुबह एक कच्ची मूली खाते हैं, तो यह कुछ ही दिनों में पीलिया को ठीक कर सकता है। गर्मी का असर खट्टे डकार हो तो एक क कप मूली के रस में चीनी मिलाकर पीने से लाभ होता हैा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%80
मूली
मासिक धर्म की कमी के कारण लड़कियों के यदि मुहाँसे निकलते हों तो प्रातः पत्तों सहित एक मूली खाने से लाभ होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%80
मूली
कोमल मूली का अचार भी बनाया जाता है। बहुत से लोग मुली के पत्ते काटकर उसमें चने का आटा डालकर स्वादिष्ट सब्जी बनाते हैं। कुछ लोग उसकी मुठिया (मुटकुळी)और थालिपीठे भी बनाते हैं।
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मूली
शास्त्रीय मतानुसार उसमें प्रोटिन, कर्बोहायड्रेट,फॉस्फरस और लोह होता है।उसकी राख क्षारयुक्त होती है।मुली उष्ण गुणधर्म की है।मुली के ताजे पत्तों के रस और बिजो से मूत्र स्वच्छ होता है। पथरी भी ठीक होती है। भोजन में कच्ची मुली खाना चाहिए। कोमल मुली खाने से अच्छी भूख लगती है।अन्न भी अच्छी तरह से पचता है। मुली में ज्वरनाशक गुण है इस कारण बुखार आने पर मुली की सब्जी खाना लाभदायक होता है। ठंड के समय मूली खानी चाहिए क्योंकि इससे वायु विकारादी भी कम होती है। मुली के पत्ते पचने में हल्के, रुची निर्माण करनेवाले और गरम होते हैं। वह कच्चे खाए तो पित्त बढता है, पर यही सब्जी घी में बनाई तो सब्जी के पौष्टिक गुणधर्म में बढ़ोतरी होती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%80
मूली
मूली के सलाद के लिए सफेद मुली स्वच्छ धोकर कद्दूकस करके या पीसकर उसमें नारीयल का कीस और बारीक कटी हरी धनिया मिक्स करे इसके उपरांत स्वादनुसार मिश्रण में नमक और शक्कर डालें।कम तेलपर जिरे, हिंग, राई और कढीपत्ते की बघार करके वह किसे हुए मूलीपर डाले इस सलाद में हल्दी न डाले। इस प्रकार लाल मुली की सलाद भी बना सकते हैं। इस सलाद में मीठा दही डालने से स्वाद और बढता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%80
मूली
मूली की सब्जी बनाने के लिए मूली पत्तेसहीत धोकर बारीक काट ले। प्याज़ बारीक काट ले उसमें दो चमचे तुअर की दाल गरम पानी में भिगोकर रखे। तेल की बगार में लहसुन की कली पीसकर डाले। उस पर बघार में हरी मिर्च, हल्दी, तूअर दाल और बारीक कटा प्याज़ डाल कर बघार अच्छी तरह भूने। अच्छी तरह भूनी प्याज़ पर मूली की कटी सब्जी डाले। थोडा पानी का छिडकाव करके पहले पर ढक्कन रखे। ढक्कन पर पानी डालकर भाप में सब्जी पकाएं। सब्जी पकने पर उसमें थोडी शक्कर वे व खोपरे का तेल डालें।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%80
मूली
मूली के थालिपीठ(मुठीया) रुचिकर लगती है। दो मध्यम आकार की मूली किस ले व रस निचोड़ ले। किस निचोडने पर उसका तेज कम होता है। किस में एक बारीक कटा प्याज़, एक कटोरी चावल का आटा, ज्वार का आटा, बेसन, अाधा चमचा धनिया जिरे पावडर, पाव चम्मच हल्दी अर्धा चम्मच शक्कर, नारीयल के टुकड़े,बारीक कटी हरी मिर्च अाधी कटोरी बारीक कटी हरी धनिया और स्वाद के अनुसार नमक ऐसी सब सामग्री एकत्र करके छान ले आवश्यकतानुसार पानी डालकर मिश्रण गेंद ले प्लास्टिक के कागजपर थालीपीठ बनाएं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80
ठुमरी
यह विविध भावों को प्रकट करने वाली शैली है जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है साथ ही यह रागों के मिश्रण की शैली भी है जिसमें एक राग से दूसरे राग में गमन की भी छूट होती है और रंजकता तथा भावाभिव्यक्ति इसका मूल मंतव्य होता है। इसी वज़ह से इसे अर्ध-शास्त्रीय गायन के अंतर्गत रखा जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80
ठुमरी
ठुमरी की उत्पत्ति लखनऊ के नवाब वाज़िद अली शाह के दरबार से मानी जाती है। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने इसे मात्र प्रश्रय दिया और उनके दरबार में ठुमरी गायन नई ऊँचाइयों तक पहुँचा क्योंकि वे खुद 'अख्तर पिया' के नाम से ठुमरियों की रचना करते और गाते थे। हालाँकि इसे मूलतः ब्रज शैली की रचना माना जाता है और इसकी अदाकारी के आधार पर पुनः पूरबी अंग की ठुमरी और पंजाबी अंग की ठुमरी में बाँटा जाता है पूरबी अंग की ठुमरी के भी दो रूप लखनऊ और बनारस की ठुमरी के रूप में प्रचलित हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80
ठुमरी
ठुमरी की बंदिश छोटी होती है और श्रृंगार रस प्रधान होती है। भक्ति भाव से अनुस्यूत ठुमरियों में भी बहुधा राधा-कृष्ण के प्रेमाख्यान से विषय उठाये जाते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80
ठुमरी
ठुमरी में प्रयुक्त होने वाले राग भी चपल प्रवृत्ति के होते हैं जैसे: खमाज, भैरवी, तिलक कामोद, तिलंग, पीलू, काफी, झिंझोटी, जोगिया इत्यादि।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80
ठुमरी
ठुमरी सामान्यतः छोटी लम्बाई (कम मात्रा) वाले तालों में गाई जाती हैं जिनमें कहरवा, दादरा, और झपताल प्रमुख हैं। इसके आलावा दीपचंदी और झपताल का ठुमरी में काफ़ी प्रचलन है। राग की तरह ही इस विधा में एक ताल से दूसरे ताल में जाने की छूट भी होती है।
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ठुमरी
वर्तमान समय में इस विधा की ओर रूचि के कम होने का कारण शास्त्रीय गायन ही में रूचि का ह्रास है। बनारस के जाने-माने ठुमरी गायक पं॰ छन्नूलाल मिश्र की मानें तो अब ठुमरी गाने वाले कम हो गए हैं और बनारस घराने की गायकी की इस विधा को सीखने-सिखाने का दौर मंद पड़ गया है।
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ठुमरी
वहीं दूसरी ओर प्रयोग के तौर कुछ लोगों द्वारा वर्तमान समय में ठुमरी को पश्चिमी संगीत के साथ जोड़ कर ठुमरी के पारंपरिक वाद्यों, तबला, हारमोनियम, सारंगी और ढोलक के अलावा इसमें ड्रम्स, वॉयलिन, की-बोर्ड और गिटार के साथ अफ्रीकी ड्रम जेम्बे, चीनी बांसुरी और ऑर्गेनिक की-बोर्ड पियानिका का इस्तेमाल भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80
ठुमरी
1) ठुमरी एक भाव प्रधान तथा चपल चाल वाला गीत है। इसमें शब्द कम होते हैं,किन्तु शब्दों को हाव-भाव द्वारा प्रदर्शित करके गीत का अर्थ प्रकट किया जाता है।
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ठुमरी
2) इसकी गति अति द्रुत नही होती। इसके साथ दीपचन्दी अथवा जात्तताल और पंजाबी त्रिताल का वादन किया जाता है !
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शुकनासोपदेश
शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश), कादम्बरी का ही एक अंश है। गीता की तरह शुकनासोपदेश का भी स्वतंत्र महत्व है। यह एक ऐसा उपदेशात्मक ग्रंथ है जिसमें जीवन दर्शन का एक भी पक्ष बाणभट्ट की दृष्टि से ओझल नहीं हो सका। इसमें राजा तारापीड का नीतिनिपुण एवं अनुभवी मन्त्री शुकनास राजकुमामार चन्द्रापीड को राज्याभिषेक के पूर्व वात्सल्य भाव से उपदेश देते हैं और रूप, यौवन, प्रभुता तथा ऐश्वर्य से उद्भूत दोषों से सावधान रहने की शिक्षा देते हैं। यह प्रत्येक युवक के लिए उपादेय उपदेश है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6
शुकनासोपदेश
चन्द्रापीड को दिये गये शुकनासोपदेश में कवि की प्रतिभा का चरमोत्कर्ष परिलक्षित होता है। कवि की लेखनी भावोद्रेक में बहती हुई सी प्रतीत होती है। शुकनासोपदेश में ऐसा प्रतीत होता है मानो सरस्वती साक्षात मूर्तिमती होकर बोल रही हैं। इसमें बाणभट्ट की शब्दचातुरी प्रदर्शित हुई है।
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शुकनासोपदेश
शुकनासोपदेश का नायक राजकुमार चन्द्रापीड है, जो सत्व, शौर्य और आर्जव भावों से युक्त है। शुकनास एक अनुभवी मन्त्री हैं जो चन्द्रापीड को राज्याभिषेक के पूर्व वात्सल्यभाव से उपदेश देते हैं। वे उसे युवावस्था में सुलभ रूप, यौवन, प्रभुता एवं ऐश्वर्य से उद्भूत दोषों के विषय में सावधान कर देना उचित समझते हैं। इसे युवावस्था में प्रवेश कर रहे समस्त युवकों को प्रदत्त ‘दीक्षान्त भाषण’ कहा जा सकता है।
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शुकनासोपदेश
'शुकनासोपदेश', कादम्बरी का प्रवेशद्वार माना जाता है। इसमें लक्ष्मी की ब्याजस्तुति ब्याज निन्दा का अत्यन्त मनोरम वर्णन है। ‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति’ इस उक्ति को चरितार्थ करने वाला यह साहित्य है। इसके अध्ययन से काव्यात्मक तत्व का तो ज्ञान होता ही है, साथ में तत्कालीन सामाजिक ज्ञान भी प्राप्त होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6
शुकनासोपदेश
आलोकयतु तावत् कल्याणाभिनिवेशी लक्ष्मीमेव प्रथमम्। इयं हि सुभटखड्गमण्डलोत्पलवनविभ्रमभ्रमरी लक्ष्मीः क्षीरसागरात्पारिजातपल्लवेम्यो रागम्, इन्दुशकलादेकान्तवक्रताम्, उच्चैः श्रवसश्चंचलताम्, कालकूटान्मोहनशक्तिं मदिराया मदम्, कौस्तुभमणेर्नैष्ठुर्यम्, इत्येतानि सहवासपरिचयवशात् विरहविनोदचिह्नानि गृहीत्वैवोद्गता। न ह्येवंविधमपरिचितमिह जगति किंचिदस्ति यथेयमनार्या। लब्धापि खलु दुःखेन परिपाल्यते। दृढगुणपाशसन्दाननिस्पन्दीकृता अपि नश्यति। उद्दामदर्पभटसहस्नोल्लासितासिलतापंजरविधृता अप्यपक्रामति। मदजलदुर्दिदनान्धकारगजघटितघनघटापरिपालिता अपि प्रपलायते। न परिचयं रक्षति। नाभिजनमीक्षते। न रूपमालोकयते। न कुलक्रममनुवर्तते। न शीलं पश्यति। न वैदग्ध्यं गणयति। न श्रुतमाकर्णयति। न धर्ममनुरुध्यते। न त्यागमाद्रियते। न विशेषज्ञतां विचारयति। नाचारं पालयति। न सत्यमनुबुध्यते। न लक्षणं प्रमाणीकरोति। गन्धर्वनगरलेखा इव पश्यत एव नश्यति।
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शुकनासोपदेश
(...हे प्रजा का कल्याण चाहने वाले (राजकुमार), पहले लक्ष्मी (की प्रकृति) को ही देखें। यह लक्ष्मी योद्धाओं एवं शस्त्रों के समूह रूपी कमल पर भ्रमण करने वाली मधुमखी है। वह क्षीरसागर से निकली है (और अपने साथ निकलने वाले अन्य वस्तुओं के गुण उसने धर लिये हैं।) उसने पारिजात वृक्ष के पल्लवों से लाल रंग (आनन्द के लिये आकर्षण का गुण) ले लिया, चन्द्रमा की कला उसकी एकान्तवक्रता ले ली, उच्चैःश्रवा से उसकी चंचलता ग्रहण कर लिया, कालकूट से मोहने की शक्ति और मदिरा (वारुणी) से उसका मद ले लिया, कौस्तुभ मणि से उसकी कठोरता (निठुरता) ले ली। इस प्रकार की दूसरी अपरिचित वस्तु संसार में और कोई नहीं है जैसी यह अनार्या है। यह पाकर भी दुःख से बचाई जाती है। सन्धिविग्रहादि दृढ़ बन्धनों से बाँधकर निश्चल की गई भी यह पलायन कर जाती है। उत्कट अभिमानी योद्धाओं की उठाई गई हजारों तलवारों के समूहरूपी पिंजड़े में बन्दी करके रखी गई भी (यह अनार्या लक्ष्मी) गायब होती जाती है। मदजल की निरन्तर होने वाली वर्षा के कारण दुर्दिन जैसा अन्धकार बना देने वाली हाथियों की घनी घटाओं से घिरी हुई भी भाग जाती है। (यह दुष्टा लक्ष्मी) जान पहिचान की रक्षा नहीं करती, उत्तम कुल का भी ध्यान नहीं रखती, सुन्दरता को नहीं देखती, कुलक्रम का अनुगमन नहीं करती, शील को नहीं देखती, पाण्डित्य को नहीं गिनती, शास्त्रों के (ज्ञान) को नहीं सुनती, धर्म का अनुरोध नहीं करती, त्याग का आदर नहीं करती, विशेषज्ञता को नहीं विचारती, आचरण का पालन नहीं करती, सत्य को नहीं जानती, सामुद्रिक शास्त्रानुसार छत्रचामरादि चिह्नों को भी प्रमाणित नहीं करती है। गन्धर्व नगरलेखा की भाँति देखते-देखते यह नष्ट हो जाती है। )
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शुकनासोपदेश
कादम्बरी कथान्तर्गत शुकनासोपदेश अत्यन्त महत्वपूर्ण शिक्षाप्रद अंश है। इसमें तारापीड के पुत्र राजकुमार चन्द्रापीड को मंत्री शुकनास के द्वारा राज्याभिषेक होने के पूर्व उपदेश दिया गया है।
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शुकनासोपदेश
राजकुमार चन्द्रापीड विधिवत् विद्याध्ययन कर राजभवन को वापस लौट आते हैं तथा राज्याभिषेक की तैयारी में वह एक दिन महामंत्री शुकनास के दर्शन के लिए उनके घर पहुँच जाते हैं। महामंत्री शुकनास युवराज चन्द्रापीड के जीवन में स्वाभाविक रूप से आने वाले दोषों तथा उत्तरदायित्वों को समझाने का उपयुक्त अवसर जान कर इस प्रकार राजकुमार को उपदेश देते हैं -
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शुकनासोपदेश
हे तात चन्द्रापीड! आप सभी शास्त्रों, विद्याओं तथा कलाओं का विधिवत् ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं। अब आपको कोई भी विषय अज्ञात नहीं है अतः वास्तव में मुझे आपसे कुछ कहना नहीं है, पर यौवन में स्वाभाविक रूप से ऐसा अन्धकार उत्पन्न होता है जो कि सूर्य के प्रकाश, रत्नों के आलोक तथा प्रदीपों की प्रभा से भी दूर नहीं हो सकता है। लक्ष्मी का दारुण मद शान्ति का विनाश कर देता है। ऐश्वर्य के कारण अाँखों में छायी हुई तिमिरान्धता अंजनवर्तिका से भी नहीं मिटाई जा सकती है। दर्पहाज्वर की गर्मी किसी भी शीतोपचार (चन्दनांगरागादि लेप) से नहीं दूर की जा सकती है। विषयरूपी विषास्वाद से उत्पन्न हुआ मोह मंत्रों तथा औषधियों के उपचार से भी समाप्त नहीं किया जा सकता है। रागरूपी मल का लेप इतना गाढ़ा चढ़ जाता है कि वह स्नान तथा स्वच्छ बनाने वाली क्रियाओं से भी स्वच्छ नहीं होता है। राज्य सुख से उत्पन्न हुई घोर निद्रा रात्रि समाप्त होने पर भी समाप्त नहीं होती है। शास्त्र रूपी जल से स्वच्छ (निर्मल) बनायी गयी बुद्धि भी युवावस्था आने पर कलुषित हो जाती है। जन्मजात प्रभुता, अभिनव यौवन, अनुपम सुन्दरता तथा असाधारण शक्ति यह प्रत्येक अनर्थ मूल हैं तो फिर इनके समुदाय का कहना ही क्या? कामिनी तथा कांचन की आसक्ति मनुष्य को पथभ्रष्ट कर देती है। गुरुजनोपदेश आप सदृश निर्मल बुद्धि वाले व्यक्ति ही ग्रहण कर सकते हैं। साधारण व्यक्ति को दिया गया यह उपदेश शूल जैसा लगता है। गुरुजनों द्वारा दी गयी शिक्षा सम्पूर्ण दोषों को भी गुणों में परिवर्तित कर देती है। वह एक ऐसा दिव्य आकाश है जिसकी ज्योति सूर्य-चन्द्रादि से भी अधिक है। प्रथम तो भय से कोई राजाओं को उपदेश देने का साहस ही नहीं करता है। फिर वे उपदेशवचनों को सुनते भी नहीं हैं अथवा सुनकर भी राजमद से आँखे मींच लेते हैं। राजलक्ष्मी राज्याभिमानरूपी विष चढ़ा कर मूर्च्छा उत्पन्न कर देती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97
गुलमर्ग
गुलमर्ग के गोल्‍फ कोर्स विश्‍व के सबसे बड़े और हरे भरे गोल्‍फ कोर्स में से एक है। अंग्रेज यहां अपनी छुट्टियाँ बिताने आते थे। उन्‍होंने ही गोल्‍फ के शौकीनों के लिए 1904 में इन गोल्‍फ कोर्स की स्‍थापना की थी। वर्तमान में इसकी देख रेख जम्‍मू और कश्‍मीर पर्यटन विकास प्राधिकरण करता है।
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