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गुलमर्ग
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महारानी मंदिर (आमतौर पर गुलमर्ग के शिव मंदिर के रूप में जाना जाता है) का निर्माण एक हिंदू शासक महाराज हरि सिंह ने अपनी पत्नी महारानी मोहिनी बाई सिसोदिया के लिए किया था, जिन्होंने 1915 तक शासन किया था। इस मंदिर को डोगरा राजाओं का आलीशान अधिकार माना जाता था। मंदिर शिव और पार्वती को समर्पित है। यह मंदिर हरियाली के साथ एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर गुलमर्ग के सभी कोनों से दिखाई देता है।
| 0.5 | 2,112.083381 |
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गुलमर्ग
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खिलनमर्ग गुलमर्ग के आंचल में बसी एक खूबसूरत घाटी है। यहां के हरे मैदानों में जंगली फूलों का सौंदर्य देखते ही बनता है। खिलनमर्ग से बर्फ से ढ़के हिमालय और कश्मीर घाटी का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है।
| 0.5 | 2,112.083381 |
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गुलमर्ग
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चीड़ और देवदार के पेड़ों से घिरी यह झील अफरवात चोटी के नीचे स्थित है। इस खूबसूरत झील का पानी मध्य जून तक बर्फ की बना रहता है।
| 0.5 | 2,112.083381 |
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गुलमर्ग
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गुलमर्ग से आठ किमी दूर स्थित निंगली नल्लाह एक धारा है जो अफरात चोटी से पिघली बर्फ और अलपाथर झील के पानी से बनी है। यह सफेद धारा घाटी में गिरती है और अंतत: झेलम नदी में मिलती है। घाटी के साथ बहती यह धारा गुलमर्ग का एक प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट है।
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गुलमर्ग
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1948 में, भारतीय सेना ने गुलमर्ग में एक स्की स्कूल की स्थापना की जो बाद में हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल बन गया, जो बर्फ-शिल्प और शीतकालीन युद्ध में माहिर है। यह ऐसे क्षेत्र में स्थित है जो हिमस्खलन से ग्रस्त है।
| 0.5 | 2,112.083381 |
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गुलमर्ग
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यह जम्मू कश्मीर की राजधानी है और यहाँ का सबसे बड़ा शहर है। समुद्र तल से 1730 मी. की ऊँचाई पर स्थित श्रीनगर नहर, हाउस बोट और मुगल गार्डन के लिए मशहूर है।
| 0.5 | 2,112.083381 |
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गुलमर्ग
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यह मुसलमानों का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। यह जियारत एक प्रसिद्ध मुस्लिम संत की याद में बनाई गई है जिनका इंतकाल 1480 में हुआ था। सन्यास लेने से पहले वे कश्मीर के राजा जिया-उल-अबिदीन के दरबारी थे। प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
| 0.5 | 2,112.083381 |
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गुलमर्ग
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नज़दीकी हवाई अड्डा श्रीनगर (56 किलोमीटर) देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से यहाँ के लिए नियमित उड़ानें हैं।
| 0.5 | 2,112.083381 |
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स्मारक
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प्रायः स्मारकों का इस्तेमाल किसी नगर या स्थान के स्वरूप को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है। योजनाबद्ध रूप से बसाए गए नगर जैसे वाशिंगटन डी. सी., नई दिल्ली और ब्राज़ीलिया, आम तौर पर स्मारकों के इर्द-गिर्द बसाए गए हैं। जार्ज वाशिंगटन से किसी तरह सम्बंधित होने से पहले वाशिंगटन स्मारक क़ी अवस्थिति (और उसकी लम्बवत ज्यामिति, पर उसका वाह्य विवरण नहीं) का चुनाव शहर में सार्वजनिक स्थलों को व्यवस्थित करने के लिए किया गया था। पुराने नगरों में स्मारक ऐसे स्थल पर हैं जो पहले से ही महत्वपूर्ण हैं या कभी-कभार उन्हें उसे उभारने के लिए फिर से डिज़ाइन किया जाता है। जैसा क़ि शेली ने अपनी प्रसिद्ध कविता "ओज़ीमेंडियस" ("लुक ऑन माई वर्क्स, ये माइटी, एंड डेस्पेयर !") में सुझाया था, स्मारक का उद्देश्य आम तौर पर प्रभावित करना या आश्चर्यचकित करना होता है। अंग्रेज़ी शब्द "मॉन्युमेंटल" का इस्तेमाल प्रायः किसी अतिविशाल या अतिशक्तिशाली वस्तु के सन्दर्भ में होता है। यह शब्द लैटिन शब्द "मोनेरे" से आया है जिसका अर्थ है 'याद दिलाना' या 'चेतावनी देना'।
| 0.5 | 2,105.147393 |
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स्मारक
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अपने युग, आकार या गौरवपूर्ण अतीत के कारण चर्चित कामकाजी संरचनाएं भी स्मारक क़ी तरह देखी जा सकती हैं। यह महान युग या आकार के कारण हो सकता है जैसा कि चीन की दीवार के मामले में, या किसी महान आयात की घटना के कारण जैसा कि फ़्रांस का ओराडोर-सर-ग्लेन गाँव। कई देश, संरक्षित संरचनाओं या पुरातात्विक स्थलों, जो मूलतः कभी रिहाइशी घर या अन्य प्रकार के भवन रहे होंगे, उनके आधिकारिक संकेतन के लिए ऐतिहासिक स्थल या उससे मिलते जुलते पदों का इस्तेमाल करते हैं।
| 0.5 | 2,105.147393 |
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स्मारक
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राजनैतिक या ऐतिहासिक जानकारी देने के लिए भी प्रायः स्मारक डिजाइन किये जाते हैं। उनका इस्तेमाल समकालीन राजनैतिक सत्ता के प्रभुत्व को और सुदृढ़ करने में किया जा सकता है, जैसे ट्राजन स्तम्भ या सोवियत यूनियन में लेनिन क़ी ढेरो मूर्तियां। इनका उपयोग जनता को अतीत की महत्वपूर्ण घटनाओं और आंकड़ो के बारे में शिक्षित करने के लिए किया जा सकता है, उदहारण के लिए पूर्व पोस्ट मास्टर जनरल जेम्स फारले के बाद न्यू यार्क शहर के पुराने जनरल पोस्ट आफ़िस का नाम बदल कर जेम्स ए॰ फारले भवन (जेम्स फारले पोस्ट आफिस) रख दिया गया.
| 0.5 | 2,105.147393 |
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स्मारक
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किसी स्मारक के सामाजिक मायनों को तय और निश्चित करना मुश्किल है, वे प्रायः विभिन्न सामाजिक समूहों में विवाद के विषय होते हैं। मसलन जहाँ एक तरफ पूर्वी जर्मनी का पुराना समाजवादी राज्य, बर्लिन क़ी दीवार को पश्चिम से आने वाली विचारधारात्मक अशुद्धता से 'प्रतिरक्षा' करने वाली मानता था, वहीं दूसरी ओर उनसे असहमत और अन्य लोगों का तर्क था कि यह सामान्यतः फांसीवाद और राजसत्ता के विभ्रम का प्रतीक चिन्ह है। अर्थों की यह प्रतिद्वंद्विता ही आधुनिक 'पोस्ट प्रोसेसुअल' पुरातात्त्विक विमर्श का केंद्रीय विषय है।
| 0.5 | 2,105.147393 |
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स्मारक
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स्मारक हजारों सालों के लिए बनाये जाते थे और वे सामान्यतः प्राचीन सभ्यताओं के सबसे भरोसेमंद और प्रसिद्ध प्रतीक हैं। मिस्र के पिरामिड, ग्रीस के पार्थेनन और ईस्टर आईलैंड के मोए उन सभ्यताओं के प्रतीक बन गए। आधुनिक काल में स्टैचू ऑफ लिबर्टी और एफिल टावर जैसी विशाल संरचनाएं आधुनिक राष्ट्र-राज्यों के महान प्रतीक बन गए हैं। अंग्रेज़ी का शब्द मोन्युमेंटैलिटी, किसी स्मारक की प्रतीकात्मक अवस्था और उनकी भौतिक उपस्थिति को संबोधित करता है।
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स्मारक
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हाल तक यह अभ्यास देखा जाता रहा है कि, पुरातत्वविद विशाल स्मारकों का अध्ययन करते थे और उनको बनाने वाले समाजों की रोजमर्रा की जिंदगी की ओर कम ध्यान देते थे। पुरातात्विक रिकार्ड का निर्माण कैसे होता है, इस बारे में नए विचारों ने यह खुलासा किया कि कुछ वैधानिक और सैद्धांतिक प्रणालियां, स्मारक की प्रारंभिक परिभाषा पर अत्यधिक केन्द्रित हैं। यूनाइटेड किंगडम का अनुसूचित प्राचीन स्मारक कानून इसका एक उदाहरण है।
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स्मारक
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मृतक क़ी कब्र के निकट उसे श्रद्धांजलि देने के लिए चर्च द्वारा बनाये गए स्मारक, जहां प्रायः मूर्तियां लगी होती हैं
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स्मारक
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आम तौर पर युद्धों में मृत लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी स्मृति और याद में बनाये गए ढांचे, जैसे विमी रिग स्मारक और इंडिया गेट
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स्मारक
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युद्धकालीन नृशंसता या चर्चित खूनी युद्धों क़ी याद में स्मृति स्थल के रूप में समूचा क्षेत्र, उदाहरण के लिए ओराडोर-सर-ग्लेन या गेटिसबर्ग, पेंसिलवानिया और बोरोडिनो के युद्ध क्षेत्र
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सुपर-३०
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आनन्द कुमार इसके जन्मदाता है। आनंद कुमार रामानुज स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स नामक संस्थान का भी संचालन करते हैं। सुपर-30 को इस गणित संस्थान से होने वाली आमदनी से चलाया जाता है। उल्लेखनीय है कि पिछले सालकब? पूर्व जापानी ब्यूटी क्वीन और अभिनेत्री नोरिका फूजिवारा ने सुपर 30 इंस्टीट्यूट पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई थी। इस कार्यक्रम को 2019 की फिल्म सुपर 30 में चित्रित किया गया है, जिसमें कुमार के रूप में ऋतिक रोशन हैं।
| 0.5 | 2,102.280327 |
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सुपर-३०
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प्रतिवर्ष यह इंस्टीयूट गरीब परिवारों के 30 प्रतिभावान बच्चों का चयन करती है और फिर उन्हें बिना शुल्क के आईआईटी की तैयारी करवाती है। इंस्टीयूट इन बच्चों के खाने और रहने का इंतजाम भी बिना कोई शुल्क करती है। इंस्टीयूट केवल 30 बच्चों का चयन करती है और इसी आधार पर इसे सुपर 30 नाम दिया गया था।
| 0.5 | 2,102.280327 |
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सुपर-३०
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सुपर 30 इंस्टीट्यूट की शुरुआत सन 2003 में हुई थी। इस वर्ष सुपर 30 के 30 में से 18 विद्यार्थी आईआईटी में सफल हुए थे। 2004 में यह संख्या 22 और सन 2005 में यह 26 हो गई। 2017 में सभी 30 छात्र सफल रहे।
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सुपर-३०
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सुपर 30 की शुरवात 2003 में हुई थी ! इस institute कि founder आनंद कुमार जी है. Anand Kumar जी अपना एक अलग सा Institute भी चलते है. उनके Institute का नाम Ramanuj School of Mathematics है। super 30 के सभी बच्चो को मुप्त में शिक्षा दी जाती है !
| 0.5 | 2,102.280327 |
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सुपर-३०
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Ramanuj school of Mathematics से जो कुछ भी पैसा मिलता है ! उससे super 30 के छात्रो को पढ़ाया जाता है ! Anand Kumar ने इस institute कि शुरवात गरीब बच्चो को IIT के लिए तैयार करने के लिया किया था। उनका कहना है, कि भारत देश में बहुत से होनहार छात्र है, जो पैसे के कारण आगे नही पढ़ पाते है। और अपने काबिलियत को देते है, इसीलिए वैसे बच्चो को वह मुप्त में पढकर उन्हें काबिल बन सके !
| 1 | 2,102.280327 |
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सुपर-३०
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इसीलिए Anand Kumar के इस कठिन परिश्रम को आज पूरी दुनिया सलाम करती है ! उन्हें लोग Super 30 man और Super Teacher के नाम से भी जानते है ! गरीब बच्चों के लिए वरदान है सुपर 30 के आनंद कुमार !
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सुपर-३०
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आनंद कुमार सुपर 30 के सस्थांपक है ! यह ” Super 30 “ के नाम से एक Institute चलते है ! जिसमे गरीब छात्रो को IIT कि फ्री में कोचिंग क्लास दी जाती है ! आनंद कुमार एक गणितग्य होने के साथ – साथ एक अच्छे Teacher भी है !
| 0.5 | 2,102.280327 |
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सुपर-३०
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आनंद कुमार जी एक ऐसे व्यक्ति है ! जिन्होंने गरीब छात्रो को मुप्त में शिक्षा देकर उनकी काबिलियत को समझा है ! इनका मुख्य उद्देश्य है, कि गरीब छात्रो को IIT JEE में प्रवेश के लिए तैयारी करना।
| 0.5 | 2,102.280327 |
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सुपर-३०
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IIT में हर छात्र प्रवेश पाने के लिए सपने देखता है ! कुछ छात्र होनहार होने के बावजूद भी IIT में प्रवेश नही ले पाते है !
| 0.5 | 2,102.280327 |
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धारामापी
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धारामापी या गैल्वानोमीटर (galvanometer) एक प्रकार का अमीटर ही है। यह किसी परिपथ में धारा की उपस्थिति का पता करने के लिये प्रयोग किया जाता है। प्रायः इसपर एम्पीयर, वोल्ट या ओम के निशान नहीं लगाये गये रहते हैं।
| 0.5 | 2,101.320738 |
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धारामापी
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धारामापी के समानान्तर समुचित मान वाला अल्प मान का प्रतिरोध (इसे शंट कहते हैं) लगाकर इसे अमीटर की तरह प्रयोग किया जाता है।
| 0.5 | 2,101.320738 |
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धारामापी
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धारामापी के श्रेणीक्रम में समुचित मान का बड़ा प्रतिरोध (इसे मल्टिप्लायर कहते हैं) लगाकर इसे वोल्टमापी की भांति प्रयोग किया जाता है।
| 0.5 | 2,101.320738 |
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धारामापी
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स्पर्शज्या धारामापी (Tangent galvanometer) सबसे सरल और उपयोगी चलचुंबक धारामापी (moving magnet galvanometer) है। इसमें किसी अचुंबकीय पदार्थ के ऊर्ध्वाधर ढाँचे पर विद्युतरोधी ताँबे के तार की एक वृत्ताकार कुंडली लगी रहती है। कुंडली में प्राय: ५५२ चक्कर होते हैं, जिसमें २, ५० और ५०० चक्करों के बाद संयोजक पेंच लगे रहते हैं। इनकी सहायता से आवश्यतानुसार कम या अधिक चक्करों से काम ले सकते हैं। वृत्ताकार कुंडली को ऊर्ध्वाधर अक्ष के चारों ओर घुमाया जा सकता है। कुंडली के केंद्र पर एक चुंबकीय सुई ऊर्ध्वाधर कीलक (pivot) पर सधी रहती है और सुई के लंबरूप एक ऐल्यूमिनियम का लंबा संकेतक लगा रहता है, जो सूई के साथ साथ क्षैतिज वृत्ताकार स्केल पर घूमता है और चुंबकीय सूई का विक्षेप बतलाता है। यह स्केल चार चतुर्थांशों में विभाजित रहता है और प्रत्येक चतुर्थांश में ० डिग्री से ९० डिग्री तक के चिह्न होते हैं। जब चुंबकीय सूई चुंबकीय याम्योत्तर (meridian) में होती है, तो संकेतक शून्य अंश पर रहता है।
| 0.5 | 2,101.320738 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%80
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धारामापी
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धारा नापने के पूर्व धारामापी के आधार को क्षैतिज कर लेते हैं और कुंडली के समतल को घुमाकर चुंबकीय याम्योत्तर में ले आते हैं। इस दशा में चुंबकीय सुई के बक्स को कुंडली के केंद्र पर क्षैजित स्थिति में रखते हैं और यह भी देख लेते हैं कि संकेतक के दोनों सिरे ० डिग्री - ० डिग्री पर स्थित है अब धारामापी के दो संयोजक पेंचों को उस परिपथ में संबद्ध कर देते हैं जिसमें धारा का प्रवाह होता है। ऊर्ध्वाधर कुंडली में धारा के प्रवाहित होते ही, एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है, जो पार्थिव क्षैतिज चुंबकीय क्षेत्र से समकोण बनाता है। उन दोनों चुंबकीय क्षेत्रों के कारण चुंबकीय सूई पर दो विपरीत दिशा में घुमानेवाले बलयुग्म कार्य करते हैं। सूई विक्षेपित होकर ऐसी दशा में रुक जाती है जहाँ दोनों बलयुग्मों का घूर्ण बराबर होता है। यदि सूई का विक्षेप Q हो, तो धारा का मान निम्न सूत्र से ज्ञात होता है :
| 1 | 2,101.320738 |
20231101.hi_69383_5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%80
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धारामापी
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अर्थात् धारामापी में बहनेवाली धारा विक्षेप कोण के स्पर्शज्या के समानुपाती होती है। नियतांक (K) धारामापी का परिवर्तन गुणक कहलाता है। परिवर्तन गुणक ऐंपियर में नापा जाती है। यह उस विद्युत्धारा के बराबर होता है, जो धारामापी की सूई में ४५ डिग्री का विक्षेप उत्पन्न कर सकती है। इस प्रकार का सरल स्पर्शज्या धारामापी यथेष्ट रूप से सूक्ष्मग्राही और यथार्थ नहीं होता। विशेष रूप से धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता चुंबकीय सुई के दोनों ध्रुवों पर एक सी नहीं होती। इस कारण धारामान में त्रुटि हो जाती है, क्योंकि सूत्र इसी पर निर्भर है कि दोनों ध्रुवों पर चुंबकीय क्षेत्र एक सा हो। इसलिए इसी सिद्धांत पर आधारित एक दूसरा धारामापी बना, जिसे हेल्महोल्ट्स गैलवेनोमीटर (Helmholtz galvanometer) कहते हैं। इस धारामापी में यह त्रुटि नहीं होती और यह सरल स्पर्शज्या धारामापी से अधिक सूक्ष्मग्राही होता है। इसमें अचुंबकीय पदार्थ के दो ऊर्ध्वाधर ढाँचों पर वृत्ताकार कुंडलियाँ होती हैं। उनके केंद्रों के बीच की दूरी उनके अर्धव्यास के बराबर होती है। चुंबकीय सूई का बक्स दोनों कुंडिलियों के क्षैतिज अक्ष पर ठीक बीच में रखा जाता है। दोनों कुंडलियों के तार इस प्रकार जोड़ दिए जाते हैं कि जब उनमें धारा प्रवाहित हो तब दोनों से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र एक ही दिशा में हों। ऐसा होने से चुंबकीय सूई के पास धरा से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र अधिक तीव्र हो जाता है और यह भी सिद्ध किया जा सकता है कि इस क्षेत्र की तीव्रता सूई के दोनों सिरों पर एक सी रहती है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप यह धारामापी अधिक सूक्ष्मग्राही और यथार्थ हो जाता है। धारा नापने के पहले सूई के बक्स के समतल को क्षैतिज करना और ऊर्ध्वाधर कुंडलियों को चुंबकीय याम्योत्तर में करना आवश्यक है। इस समंजन के बाद जब धारामापी की कुंडलियों में धारा प्रवाहित की जाती है और चुंबकीय सूई में कोण (Q) का विक्षेप होता है, तब धारा का मान निम्न सूत्र से ज्ञात होता है :
| 0.5 | 2,101.320738 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%80
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धारामापी
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G को हेल्महोल्ट्स धारामापी का पविर्तन गुणक कहते हैं। यह धारामापी भी यथेष्ट रूप से सूक्ष्मग्राही नहीं होता। अधिक सूक्ष्मग्राही धारामापी बनाने के लिए एक नया सिद्धांत प्रयोग में लाया जाता है। वह यह है कि यदि पार्थिव चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव चुंबकीय सूई पर कम कर दिया जाए, तो किसी भी धारा के कारण चुंबकीय सूई में पहले से अधिक विक्षेप होगा, अर्थात् यंत्र अधिक सूक्ष्मग्राही हो जाएगा। इसको अस्थैतिक युग्म (astatic pair) का सिद्धांत कहते हैं।
| 0.5 | 2,101.320738 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%80
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धारामापी
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यदि दो लगभग बराबर चुंबकीय घूर्ण वाले चुंबकों को एक दृढ़ छड़ से ऐसा जोड़ा जाए कि वे एक दूसरे के समांतर हों और उनके विपरीत ध्रुव पास पास हों, तो उन्हें अस्थैतिक युग्म कहते हैं। इस युग्म में दोनों चुंबकों के विपरीत ध्रुव पास पास होते हैं, इस कारण पार्थिव चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव इस युग्म पर बहुत कम पड़ता है। तार की कुंडली या कुंडलियाँ एक चुंबक या दोनों चुंबक के चारों ओर इस प्रकार लपेटी जाती हैं कि उनमें धारा बहने पर चुंबकों पर एक ही दिशा में बलयुग्म लगे। इस दशा में यदि कुंडलियों में न्यून धारा भी प्रवहित हा, ता भ चुंबकीय युग्म में अधिक विक्षेप होता है। इस प्रकार के धारामापी अति सूक्ष्मग्राही होते हैं। यदि इस चुंबकीय युग्म को एक ऐंठनरहित लटकन द्वारा लटका दिया जाए और इस लटकन में एक छोटा सा दर्पण लगा दिया जाए, तो प्रकाश किरण द्वारा अति सक्ष्म विक्षेप नापा जा सकता है। प्रकाश की किरणें लैंप से चलकर धारामापी के दर्पण से परावर्तित होकर एक लेंस द्वारा स्केल पर फोकस में आती हैं। जब धारा प्रवाह के कारण चुंबकीय युग्म में विक्षेप होता है और दर्पण कोण Q द्वारा घूमता है, तो परवर्तित प्रकाश किरणे कोण 2Q में घूमती हैं और स्केल पर प्रकाशबिंदु में स्थानांतरण हो जाता है। इस विधि से सूई का अति सूक्ष्म विक्षेप नापा जा सकता है और इसके फलस्वरूप इस धारामापी से अति सूक्ष्म धारा नापी जा सकती है। अस्थैतिक चुंबकीय युग्म का प्रयोग कई प्रकार से विभिन्न नामों के धारामापियों में किया गया है। केलविन धारामापी (Kelvin's galvanometer), पाशेन (Paschen) धारामापी और ब्रोका (Broca) धारामापी इनके कुछ उदाहरण हैं। इन धारामापियों से १०-१२ ऐंपियर तक की धारा नापी जा सकती है। जलचुंबक धारामापी, विशेष कर अस्थैतिक धारामापी, अत्यं सूक्ष्मग्राही होते हैं, परंतु इनका प्रयोग असुविधाजनक होता है। ये अस्थायी भी होते हैं। यही कारण है कि वे बहुत कम प्रयुक्त होते हैं। अधिकतर चलकुंडल धारामापी (moving coil galvanometer) का ही उपयोग होता है, क्योंकि ये यथेष्ट सूक्ष्मग्राही होने के अतिरिक्त, स्थायी, सरल तथा सुविधाजनक होते हैं।
| 0.5 | 2,101.320738 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%80
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धारामापी
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Selection of historic galvanometer in the Virtual Laboratory of the Max Planck Institute for the History of Science
| 0.5 | 2,101.320738 |
20231101.hi_612624_12
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B9
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नूह
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जब शेत एक सौ पाँच वर्ष का हो गया तब उसे एनोश नाम का पुत्र पैदा हुआ। एनोश के जन्म के बाद शेत आठ सौ सात वर्ष जीवित रहा। इसी शेत के अन्य पुत्र—पुत्रियाँ पैदा हुईं। इस तरह शेत पूरे नौ सौ बारह वर्ष जीवित रहा, तब वह वफ़ात हुआ।
| 0.5 | 2,099.484372 |
20231101.hi_612624_13
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B9
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नूह
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एनोश जब नव्वे वर्ष का हुआ, उसे केनान नाम का पुत्र पैदा हुआ। केनान के जन्म के बाद एनोश आठ सौ फन्द्रह वर्ष जीवित रहा। इन दिनों इसके अन्य पुत्र और पुत्रियाँ पैदा हुईं। इस तरह एनोश पूरे नौ सौ पाँच वर्ष जीवित रहा, तब वह वफ़ात हुआ।
| 0.5 | 2,099.484372 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B9
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नूह
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जब केनान सत्तर वर्ष का हुआ, उसे महललेल नाम का पुत्र पैदा हुआ। महललेल के जन्म के बाद केनान आठ सौ चालीस वर्ष जीवित रहा। इन दिनों केनान के दूसरे पुत्र और पुत्रियाँ पैदा हुईं। इस तरह केनान पूरे नौ सौ दस वर्ष जीवित रहा, तब वफ़ात हुआ ।
| 0.5 | 2,099.484372 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B9
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नूह
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जब महललेल पैंसठ वर्ष का हुआ, उसे येरेद नाम का पुत्र पैदा हुआ। येरेद के जन्म के बाद महललेल आठ सौ तीस वर्ष जीवित रहा। इन दिनों में उसे दूसरे पुत्र और पुत्रियाँ पैदा हुईं। इस तरह महललेल पूरे आठ सौ पंचानवे वर्ष जीवित रहा। तब वह वफ़ात हुआ।
| 0.5 | 2,099.484372 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B9
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नूह
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जब येरेद एक सौ बासठ वर्ष का हुआ तो उसे हनोक नाम का पुत्र पैदा हुआ। हनोक के जन्म के बाद येरेद आठ सौ वर्ष जीवित रहा। इन दिनों में उसे दूसरे पुत्र और पुत्रियाँ पैदा हुईं। 20 इस तरह येरेद पूरे नौ सौ बांसठ वर्ष जीवित रहा, तब वह वफ़ात हुआ।
| 1 | 2,099.484372 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B9
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नूह
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जब हनोक पैंसठ वर्ष का हुआ, उसे मतूशेलह नाम का पुत्र पैदा हुआ। मतूशेलह के जन्म के बाद हनोक परमेश्वर के साथ तीन सौ वर्ष रहा। इन दिनों उसके दूसरे पुत्र पुत्रियाँ पैदा हुईं। इस तरह हनोक पूरे तीन सौ पैंसठ वर्ष जीवित रहा। एक दिन हनोक परमेश्वर के साथ चल रहा था [b] और गायब हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया।
| 0.5 | 2,099.484372 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B9
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नूह
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2जब मतूशेलह एक सौ सत्तासी वर्ष का हुआ, उसे लेमेक नाम का पुत्र पैदा हुआ। लेमेक के जन्म के बाद मतूशेलह सात सौ बयासी वर्ष जीवित रहा। इन दिनों उसे दूसरे पुत्र और पुत्रियाँ पैदा हुईं। इस तरह मतूशेलह पूरे नौ सौ उनहत्तर वर्ष जीवित रहा, तब यह मरा।
| 0.5 | 2,099.484372 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B9
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नूह
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जब लेमेक एक सौ बयासी वर्ष का हुआ, वह एक पुत्र का पिता बना। लेमेक के पुत्र का नाम नूह रखा। लेमेक ने कहा, “हम किसान लोग बहुत कड़ी मेहनत करते हैं क्यैंकि परमेश्वर ने भूमि को शाप दे दिया है। किन्तु नूह हम लोगों को विश्राम देगा।”
| 0.5 | 2,099.484372 |
20231101.hi_612624_20
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B9
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नूह
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नूह के जन्म के बाद, लेमेक पाँच सौ पंचानवे वर्ष जीवित रहा। इन दिनों उसे दूसरे पुत्र और पुत्रियाँ पैदा हुईं। इस तरह लेमेक पूरे सात सौ सतहत्तर वर्ष जीवित रहा, तब वह वफ़ात हुआ।
| 0.5 | 2,099.484372 |
20231101.hi_248849_88
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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एडिडास
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1990 के दशक के मध्य से अंत तक, एडिडास ने अपने ब्रांड को तीन मुख्य समूहों में विभाजित किया, प्रत्येक का अपना एक अलग फोकस था: एडिडास परफोर्मेंस को एथलीट्स के लिए डिजाइन किया गया; एडिडास ओरिजिनल्स को फैशन और जीवन शैली को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया; और स्टाइल असेंशियल्स को Y-3 के भीतर मुख्य समूह के लिए डिजाइन किया गया।
| 0.5 | 2,094.312094 |
20231101.hi_248849_89
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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एडिडास
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इस अभियान का विकास एम्स्टर्डम में 180/TBWA के द्वारा किया गया परन्तु साथ ही सेन फ्रांसिस्को में TBWA/Chiat/Day के द्वारा महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है-विशेष रूप से इसके बास्केटबॉल अभियान के लिए "बिलीव इन फाइव".
| 0.5 | 2,094.312094 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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एडिडास
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TBWA\Chiat\Day ने 2007 के अंतर्राष्ट्रीय विज्ञापन अभियान के लिए छवियों के उतपादन हेतु ज़ाने पीच की शुरुआत की.
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एडिडास
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अमिगा कमोडोर अमिगा: डैले थोम्प्सन का ओलिंपिक चैलेंज सोनी प्लेस्टेशन: एडिडास पावर सॉकर कमोडोर 64, ZX स्पेक्ट्रम, एम्सट्रड सीपीसी: एडिडास चैंपियनशिप फुटबॉल
| 0.5 | 2,094.312094 |
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एडिडास
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एडिडास प्रमुख घरेलू (जर्मनी में) और अंतर्राष्ट्रीय स्पोर्ट्स और आयोजनों का प्रायोजन (स्पोंसर) करता है।
| 1 | 2,094.312094 |
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एडिडास
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एडिडास नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन (एनबीए) का प्रमुख प्रायोजक है और उसका आपूर्तिकर्ता भी है। कम्पनी ने हाल ही में एनबीए खेल की एक नयी जर्सी का अनावरण किया है, जिसे 2010–2011 के दौरे में शुरू होने वाले खेलों में सभी एनबीए खिलाडियों के द्वारा पहना जाएगा.
| 0.5 | 2,094.312094 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%B8
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एडिडास
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एडिडास अत्यधिक सफल न्यूज़ीलैंड नेशनल रग्बी टीम, ऑल ब्लैक्स का प्रमुख प्रायोजक है और उसके लिए किट की आपूर्ति भी करता है।
| 0.5 | 2,094.312094 |
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एडिडास
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एडिडास लोस प्यूमास, द ईगल्स, आयरिश पेशेवर रग्बी यूनियन टीम, मंस्टर रग्बी और फ़्रांसीसी पेशेवर रग्बी यूनियन क्लब, स्टेड फ्रंकाईस को भी किट की आपूर्ति करता है।
| 0.5 | 2,094.312094 |
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एडिडास
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एडिडास ऑस्ट्रेलियाई नेशनल रग्बी लीग (एनआरएल) प्रतियोगिता में रग्बी क्लब गोल्ड कोस्ट टाईटन्स के लिए परिधान बनाता है और इसका प्रायोजन भी करता है।
| 0.5 | 2,094.312094 |
20231101.hi_29314_0
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राफेल
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राफेल (Raffaello Sanzio da Urbino या Raphael , 1483 – 1520) परम पुनरुत्थान काल के इटली के महान चित्रकार एवं वास्तुशिल्पी थे। लियोनार्डो दा विन्ची , माइकल एंजेलो और राफेल अपने युग के महान कलाकार हैं।
| 0.5 | 2,084.552851 |
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%B2
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राफेल
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राफेल को शताब्दियों तक समूह संयोजन का आचार्य माना जाता रहा है। व्यक्तियों के समूह, समूहों का सम्पूर्ण चित्र में अनुपात, चित्र की उंचाई और गहराई का अनुपात, और व्यक्तियों की विभिन्न मुद्राएं - इन सब में उसने कमाल कर दिखाया है। रैफेल की सर्वाधिक ख्याति उसके मैडोन्ना चित्रों से है। रैफेल की कला से ही बरोक शैली का विकास हुआ।
| 0.5 | 2,084.552851 |
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राफेल
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माइकेल एंजेलो की अपेक्षा राफेल का काम शान्त, मधुर और नारीसुलभ मोहिनी से भरपूर है। राफेल की नारी और बाल चित्रण में विशेष अभिरुचि थी।
| 0.5 | 2,084.552851 |
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राफेल
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राफेल का जन्म इटली के उर्बीनो ( Urbino) में हुआ था। उसके पिता जियोवान्नी सान्ती एक चित्रकार थे। 1500 में रैफेल पेरुजिहनो के यहाँ कार्य सीखने लगा। 'सैनिक का स्वप्न' नामक चित्र की रचना उसने इसी समय की जब वह मात्र 17 वर्ष का था। 1500-1510 का युग रैफेल के लिये एक महान चित्रकार के रूप में उदय का युग था।
| 0.5 | 2,084.552851 |
20231101.hi_29314_4
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%B2
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राफेल
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लियोनार्डो की वर्जिन (कुमारी), शिशु तथा सन्त के चित्रों से राफेल ने एक नवीन प्रकार के मैडोन्ना चित्रों का विकास किया तथा मोनालिसा के आधार पर व्यक्ति चित्रों की एक नयी पद्धति आरम्भ की। जिसका उदाहरण मेडालेन्ना डोनी का व्यक्ति चित्र है। विन्ची के छाया प्रकाश के सिद्धान्तों का प्रभाव राफेल की पृष्ठभूमियों में इसी समय से मिलना आरम्भ हुआ। माइकेल एंजिलो के प्रभाव से उसकी आकृतियों की रेखाएँ शक्तिशाली और संयमपूर्ण हो गयी।
| 1 | 2,084.552851 |
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राफेल
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1508 में वह रोम गया तथा पोप जूलियस द्वितीय के द्वारा वैटिकन में चित्रांकन के लिये नियुक्त किया गया। शीघ्र ही यह वहाँ का प्रधान चित्रकार हो गया। यहाँ राफेल ने 'स्कूल आॅफ ऐथेन्स' नामक प्रसिद्ध कृति बनायी। यह चरम पुनरुत्थान काल की उत्तम कृति मानी जाती है। इसमें प्लेटो तथा अरस्तू को बात करते हुए बाहर आते दिखाया है। प्लेटो की हस्तमुद्रा ऊपर की ओर संकेत कर रही है। इसके वस्त्रों का रंग लाल और उसकी सलवटें उर्ध्वलय में हैं। अरस्तु की हस्त मुद्राएं एवं नीले वस्त्र सभी क्षैतिज कर्णवत हैं जो इसी संसार को महत्वपूर्ण मानने का संकेत कर रहे हैं।
| 0.5 | 2,084.552851 |
20231101.hi_29314_6
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राफेल
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1514 में रैफेल सेण्ट पीटर के गिरजाघर का प्रमुख शिल्पी बन गया। रोम के फर्नेसिया नामक स्थान पर उसने जो भित्तिचित्र अंकित किये वह उत्कृष्त श्रेणी के हैं। वह टेपेस्ट्री डिजाइन का भी आविष्कार कर रहा था जिससे अंकित पर्दे सिस्टीन चैपल में टांगने की योजना थी। इसी समय वह ओल्ड टेस्टामेण्ट के आधार पर भी चित्र बना रहे थे। 1515 में निर्मित उनका एक चित्र 'सिस्टाइन मैडोन्ना' है जो उन्होने अकेले ही चित्रित की है। इस चित्र में मैडोन्ना पृथ्वी की मानुषी न रह कर स्वर्ग की देवी हो गयी है और उसे बादलों में तैरते हुए चित्रित किया गया है।
| 0.5 | 2,084.552851 |
20231101.hi_29314_7
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%B2
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राफेल
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राफेल की अन्तिम श्रेष्ठ कृति 'ईसा का दिव्य स्वरुप धारण करना' है जो उसने 1517 में आरम्भ की तथा 1520 में अपनी मृत्यु तक पूर्ण नहीं कर सके। इसे रैफेल के प्रिय शिष्य ज्यूलियो रोमानो ने पूर्ण किया। 37 वर्ष की आयु में ही रैफेल की मृत्यु हो गयी। किसी भी चित्रकार ने इससे पूर्व इतनी सामाजिक पृतिष्ठा प्राप्त नहीं की थी।
| 0.5 | 2,084.552851 |
20231101.hi_29314_8
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%B2
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राफेल
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राफेल ने चित्रकला के अलावा वास्तुकला के क्षेत्र में भी काम किया और नाम कमाया। उसने रोमन वास्तुशैली को नया जीवन देने की कोशिश की। रोम का सेंट पीटर गिरिजाघर पुनरुत्थान शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
| 0.5 | 2,084.552851 |
20231101.hi_381634_28
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A4%A1%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B8
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मैकडॉनल्ड्स
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मैक्लिबेल ट्राएल, जिसे मैकडॉनल्ड्स रेस्तरां बनाम मौरिस एंड स्टील के नाम से भी जाना जाता है, इस विवाद का एक उदाहरण है। 1990 में, लन्दन ग्रीनपीस (इसका अंतर्राष्ट्रीय समूह ग्रीनपीस से कोई संबंध नहीं है) नामक एक छोटे से समूह से कार्यकर्ताओं ने मैकडॉनल्ड्स के वातावरण, स्वास्थ्य और कार्य के रिकॉर्ड कि आलोचना करते हुए "व्हाट्स रौंग विद मैकडॉनल्ड्स?" शीर्षक के पत्रक वितरित किये. कार्पोरेशन ने समूह को लिखकर इसे रोकने और माफ़ी मांगने कि मांग की और जब दो कार्यकर्ताओं ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उनपर परिवाद करने के लिए केस कर दिया गया जो कि ब्रिटिश नागरिक कानून के सबसे लम्बे मुकदमों में से एक था। मैक्लिबेल ट्राएल का एक वृत्तचित्र कई देशों में दिखाया जा चुका है।
| 0.5 | 2,082.490868 |
20231101.hi_381634_29
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A4%A1%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B8
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मैकडॉनल्ड्स
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मैकडॉनल्ड्स के विरोध के बावजूद भी, 2003 में मरियम वेबस्टर्स विज्ञान कॉलिजिअट शब्दकोष में "मैकजॉब" शब्द जोड़ा गया। इसका अर्थ है "कम वेतन वाला कार्य जिसमें कम योग्यता कि आवश्यकता होती है और जो उन्नति के लिए कम मौके प्रदान करता है।"
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मैकडॉनल्ड्स
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मरियम वेबस्टर को लिखे गए एक स्वतंत्र पत्र में, जिम कैंटालूपो, मैकडॉनल्ड्स के पूर्व सीईओ ने इस परिभाषा को सभी रेस्तरां कर्मचारियों के चेहरे पर तमाचा की संज्ञा देते हुए इसकी निंदा की और यह कहा की "मैकजॉब कि ज्यादा उपयुक्त परिभाषा 'उत्तरदायित्व सिखाना' हो सकती है" मरियम-वेबस्टर ने जवाब दिया कि "हम अपनी परिभाषा की सटीकता और उपयुक्तता पर खड़े हैं।"
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मैकडॉनल्ड्स
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1999 में, फ्रेंच वैश्वीकरण विरोधी कार्यकर्ता जोस बोव ने अपने क्षेत्र में फास्ट फ़ूड की शुरुआत का विरोध करने के लिए आधे बने मैकडॉनल्ड्स को तोड़फोड़ दिया.
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मैकडॉनल्ड्स
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2001 में, एरिक स्क्लोसर की पुस्तक फास्ट फ़ूड नेशन ने मैकडॉनल्ड्स के व्यापारिक प्रयोगों की आलोचना करने की शुरुआत की. आलोचकों के बीच ये भी आरोप थे कि मैकडॉनल्ड्स (फास्ट फ़ूड उद्योग में अन्य कंपनियों के साथ) लोगों कि सेहत और अपने कार्यकर्ताओं की सामाजिक स्थिति की कीमत पर अपने मुनाफें को बढ़ने के लिए अपने राजनैतिक प्रभाव का प्रयोग कर रहा है। पुस्तक में मैकडॉनल्ड्स की उन विज्ञापन तकनीकों पर भी प्रश्न किया गया था जिसमें यह बच्चों को लक्ष्य बनाता है। जबकि पुस्तक में अन्य फास्ट फ़ूड श्रृंखलाओं की भी चर्चा की गयी थी, लेकिन इसे मुख्य तौर पर मैकडॉनल्ड्स पर केन्द्रित किया गया था।
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मैकडॉनल्ड्स
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मैकडॉनल्ड्स विश्व में खिलौनों का सबसे बड़ा वितरक है, जिन्हें यह अपने खाद्य के साथ सम्मिलित करता है। यह आरोप लगाया गया है कि लोकप्रिय खिलौने का उपयोग बच्चों को ज्यादा मैकडॉनल्ड्स फ़ूड खाने के लिए प्रोत्साहित करता है, इस प्रकार से वह बहुत से बच्चों की सेहत संबंधी समस्या में यागदान दे रहा है, जिसमें मोटापे का बढ़ना भी शामिल है।
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मैकडॉनल्ड्स
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2002 में, शाकाहारी समूह ने, जिसमें ज़्यादातर हिन्दू और बौद्ध थे, मैकडॉनल्ड्स पर फ्रेंच फ्राइस को शाकाहारी बताकर गलत तरीके से प्रदर्शित करने के लिए सफलतापूर्वक मुकदमा किया, जबकि उसमें गोमांस का शोरबा था।
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मैकडॉनल्ड्स
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इसी बीच पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ़ एनिमल्स (पेटा), मैकडॉनल्ड्स पर अपने उन पशु कल्याण मानकों को बदलने के लिए निरंतर दबाव बनाये था, जिस विधि से उसके आपूर्तिकर्ता चिकन की हत्या करते हैं। संयुक्त राज्य में ज़्यादातर प्रोसेसर पूर्ण जाग्रत पक्षी को बांधकर उसका गला काटने से पहले उसे बिजली के आवेश वाले पानी से गुजारते हैं। पेटा की यह दलील है की चिड़ियों को मारने के लिए गैस का प्रयोग करना कम क्रूर है ("कंट्रोल्ड एट्मोसफियर किलिंग" या सीएके कहते हैं) सीएके और "कंट्रोल्ड एट्मोसफियर स्टनिंग" (सीएएस) दोनों का प्रयोग यूरोप में प्रायः होता है।
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मैकडॉनल्ड्स
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मॉरगन स्पर्लौक की 2004 की वृत्तचित्र फिल्म सुपर साइज़ मी यह बताती है कि मैकडॉनल्ड्स के फ़ूड समाज में मोटापे का संक्रमण फैला रहे हैं और यह कि कंपनी अपने ग्राहकों को अपने खाने के बारे में पोषण की सूचना देने में असफल हैं। फिल्म के पहले प्रदर्शन के छः हफ़्तों के बाद, मैकडॉनल्ड्स ने यह घोषणा की कि वह सुपर साइज़ विकल्प हटा रहा है और अडल्ट हैप्पी मील का निर्माण कर रहा है।
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स्कॉट्लैण्ड
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यहाँ का मुख्य व्यवसाय पशुपालन है। पहाड़ी भाग में भेड़ पालने का व्यवसाय बहुत पुराना है। कुछ भागों में अधिक भेड़ें पाली जाती हैं और कुछ भाग में अधिक गाएँ पाली जाती हैं। घासवाले क्षेत्रों में शिकार करने की भी प्रथा प्रचलित है। क्षेत्र का सबसे बड़ा नगर एबर्डीन है।
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स्कॉट्लैण्ड
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स्कॉटलैंड का यह भाग सदैव अन्य भागों से पृथक् रहा है। १८वीं शताब्दी तक 'हाईलैंडर' लोगों ने अपनी पोशाक, रीति रिवाज और लड़ाई झगड़े की प्रवृत्ति कायम रखी थी। वे लोग गैलिक भाषा बोलते थे। भेड़ पालने के तौर-तरीकों में पीछे सुधार हुआ और रेलों तथा सड़कों के बनने से उनमें नया जीवन आया।
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स्कॉट्लैण्ड
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मोरे की खाड़ी के निकट वाले पूर्वी समुद्रतटीय मैदान में और ही दृश्य देखने को मिलता है। कृषि तथा मछली पकड़ना यहाँ का मुख्य उद्यम है। इस उपजाऊ भाग में इस विभाग के लोग निवास करते हैं। वलाटर, गैनटाउन, डारनोच और इवरनेस मुख्य व्यापारी नगर हैं। मत्स्य व्यवसाय के कारण समुद्रतट पर छोटे-छोटे मत्स्यनगर (fishing towns) बस गए हैं।
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स्कॉट्लैण्ड
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उत्तर के प्राचीन पहाड़ी भाग तथा दक्षिण के पठारी भाग के बीच दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की दिशा में फैला हुआ एक ऊँचा नीचा मैदान है। बीच बीच में नदियों के बड़े-बड़े ज्वारमुहानों के घुस जाने के फलस्वरूप मैदान सँकरा हो गया है और उसका क्षेत्रफल पूरे स्कॉटलैंड के क्षेत्रफल का केवल एक चौथाई है। यह भूमिखंड, जो मध्य की घाटी के नाम से प्रसिद्ध है, यहाँ की अधिक उपजाऊ भूमि समुद्र से संबद्ध होने, आवागमन के साधनों की सुगमता तथा खनिज पदार्थों की उपलब्धि के कारण शताब्दियों से स्कॉटलैंड के आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन का मुख्य केंद्र रहा है। यहाँ पर स्कॉटलैंड के दो तिहाई लोग निवास करते हैं। ग्रेट ब्रिटेन का दूसरा बड़ा नगर ग्लासगो, इसी भाग में स्थित है।
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स्कॉट्लैण्ड
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मध्य की घाटी धँसान की घाटी है जिसके उत्तर तथा दक्षिण की ओर भ्रंष (jault) की पक्तियाँ मिलती हैं। निचले भाग में डिवोनी तथा कार्बोनीफेरस युग की चट्टानें लाल पत्थर, शेल, कोयला, मृत्तिका, और चूनापत्थर आदि मिलते हैं। घाटी का पूर्वी भाग अपनी उपजाऊ भूमि के लिए प्रसिद्ध है, यहाँ गेहूँ, जई, जौ, आल, क्लवर, लूसर्न, और सलगम की अच्छी उपज होती है। भेड़ तथा गोपालन आर्थिक दृष्टि से अच्छा उद्यम माना जाता है। बगीचों में फल उगाए जाते हैं।
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स्कॉट्लैण्ड
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कुछ नगर उपजाऊ मैदान में स्थित हैं और वहाँ कृषि मंडियाँ (Agricultural towns) हैं। कुछ नगर, जैसे स्टिरलिंग और पर्थ, अपनी भौगोलिक स्थितियों के कारण बड़े नगर हो गए हैं। फोर्थ नदी के ज्वारमुहाने पर खदानें मिलती हैं। इसके दक्षिणी तट पर लोथियन की कोयले की खदानें विस्तृत हैं जिसकी ४६ तहों की कुल मोटाई ४० मी है। फिफीशिर तथा क्लाकयन कोयले की अन्य खदानें हैं। इसके फलस्वरूप यहाँ लोहे के कई कारखानें हैं। यहाँ लिनलिथगो तथा मिडलोथियन में खनिज तेल की प्रमुख खानें हैं।
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स्कॉट्लैण्ड
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टे के ज्वार मुहाने पर जूट, मोटे कपड़े तथा लिनेन (Linen) तैयार करने के उद्योग बहुत पहले से केंद्रित हैं। इन उद्योगों से संबंधित नगर समुद्रतट पर डंडी से फोर्थ तक बिखरे हुए हैं। कपड़े की सफाई तथा रंगाई पर्थ में होेती है परंतु जूट तथा लिनेन का मुख्य केंद्र डंडी है। प्रारंभ में यह मत्स्यकेंद्र था जहाँ ह्वेल पकड़ने का विशेष कार्य होता था। जहाजनिर्माण का भी कार्य यहाँ होता था, परंतु अब यह मुख्यतया लिनेन, सन (हेंप) तथा जूट का ही काम करता है। यहाँ के कारखाने बोरे, टाट तथा जूट के कपड़े तथा चद्दरें (sheets) तैयार करते हैं। सन् १८८० तक डंडी के मुकाबिले में जूट के कारखाने स्थापित हो जाने से इसका एकाधिकार समाप्त हो गया। आसपास में फल उत्पन्न होने के कारण यहाँ जैम उद्योग स्थापित हो गया है। अत: बाहर से आयात होनेवाली वस्तुओं में चीनी की मात्रा अधिक रहती है। उद्योग धंधों के विकास के साथ जनसंख्या का विकास भी हुआ है।
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स्कॉट्लैण्ड
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स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबर्ग फोर्थ की खाड़ी पर उस ऐतिहासिक मार्ग पर स्थित है जो फर्थ, इस्टलिंग, डनफर्मलिन को संबद्ध करता है। नगर ज्वालामुखी पहाड़ियों पर स्थित है। प्रारंभ में नगर कैसिल राक तथा काल्टन हिल पर बसा था, धीरे-धीरे पूर्व में आर्थर्स सीट, पश्चिम में कास्टरफिन हिल और दक्षिण में ब्लैकफोर्ड हिल तक नगर का विकास हो गया। 'राक' के पश्चिमी मार्ग में प्राचीन दुर्ग तथा पूर्वी भाग में होली रुड अबे तथा राजमहल स्थित हैं। अबे तथा दुर्ग को हाईस्ट्रीट तथा कैनन गेट मार्गों द्वारा संबद्ध किया गया है। नगर के इस भाग में मकान बहुत करीब करीब हैं तथा इमारतें कई तल्ले ऊँची उठती हैं। १८वीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन की आर्थिक उन्नति के साथ नगर के उत्तर की ओर एक नए नगर की स्थापना हुई जो प्राचीन भाग से एक लंबे खंड द्वारा अलग होता है। इस नए नगर में सड़कें चौड़ी, सीधी तथा इमारतें खुली हुई हैं। प्रिंसेज स्ट्रीट यहाँ का मुख्य जनपथ है जो खड्ड के समांतर जाती है। खड्ड में उसकी तलहटी तक सुंदर फूलों के बाग लगे हुए हैं। लीथ इस नगर का मुख्य बंदरगाह है।
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स्कॉट्लैण्ड
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मध्य की घाटी में पश्चिमी तट पर संसार का एक प्रसिद्ध औद्योगिक केंद्र ग्लास्गो स्थित है। यह अपेक्षाकृत नवविकसित नगर है।
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फ़र्रूख़ाबाद
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फ़र्रूख़ाबाद से १२ किलो मीटर कानपुर मार्ग पर एक किला है जो कि अब भग्नावशेष मात्र है। मोहम्दाबाद, फ़र्रूख़ाबाद से २० किलो मीटर दूर में से किले की दीवारें अभी भी देखी जा सकती हैं। जो कि बहुत ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। मोहम्मदाबाद का किला सैनिक विद्रोह के पश्चात ध्वस्त हुआ।
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फ़र्रूख़ाबाद
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जयचन्द के समय में फतेहगढ़ छावनी क्षेत्र था। मोहम्मद तुगलक १३४३ में फतेहगढ़ आया। वह स्वयं फ़र्रूख़ाबाद में ठहरा और उसके सैनिक फतेहगढ़ में।
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फ़र्रूख़ाबाद
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दिलीप सिंह, पंजाब के अंतिम सिख शासक लाहौर में राज्यच्युत हुए और फ़र्रूख़ाबाद में उन्हें बंदी बनाकर रखा गया। वे यहां ३ वर्ष ८ माह तक बंदी रहे।
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फ़र्रूख़ाबाद
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फतेहगढ़ से ३५ किलो मीटर दूर स्थित संकिशा है। इसका प्रथमोल्लेख वाल्मीकि रामायण में पाया जाता है। संकिशा नरेश सीता स्वयंवर में आमन्त्रित थे। जनसमूह में उन्होंने अपने मि गर्व का प्रदर्शन किया। वे सीता को बिना शर्त ले जाना चाहते थे। वे राजा जनक द्वारा परास्त और वीरगति को प्राप्त हुए तत्पश्चात् जनक ने अपने अनुज कुंशध्वज को संकिशा पर अधिकार करने के लिए कहा परन्तु महाभारत में इस स्थल का कोई उल्लेख नहीं पाया जाता। बुद्ध धर्म के इतिहास में इसका उल्लेख बहुधा पाया जाता है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध यहां ८-१० दिन ठहरे थे। यहां से वो फ़र्रूख़ाबाद शहर गए, जबकि वे संकिशा से कन्नौज की यात्रा पर थे। यदि बुद्ध काल में ही नहीं, तो बाद में यहां बौद्ध विहारों, का आगमन हुआ। संकिशा का उत्खन्न कार्य यह सिद्ध करता है कि अनेक उच्चकोटि के भवन व धार्मिक स्थल तदन्तर यहां आए, बौद्ध धर्मावलम्बियों के आश्रयदाताओं द्वारा बनावाए गये। संकिशा भी बौद्धों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थली है। संकिशा का उल्लेख पाणिनी की अष्टाध्यायी में भी पाया जाता है। चीनी यात्री फाह्मवान ने भी इस स्थान का उल्लेख किया है। इस स्थान से अनेक बुद्ध मूर्तियां खुदाई में प्राप्त हुई। जो कि अब मथुरा संग्रहालय में रखी हैं। चीनी तीर्थ-यात्री हवेनत्सांग के अनुसार संकिशा उच्च कोटि के भवनों से सुसज्जित नगर है जिसका निर्माण सम्राट अशोक ने तथा उसके उत्तरवर्ती शासकों ने किया। संकिशा ने अब अपना वैभव खो दिया और मात्र ग्राम रूप में शेष है।
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फ़र्रूख़ाबाद
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फतेहगढ़ से २५ किलो मीटर दूर प्राचीन भारत का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण केन्द्र कन्नौज स्थित है। रामायण के अनुसार यह नगर कौशाम्ब द्वारा बसाया गया। जो कि कुश का पुत्र था। महाभारत में भी इसके विषय में उल्लेख पाये जाते हैं। ६०६ ई० में हर्षवर्धन जब थानेश्वर (दिल्ली के उत्तर में) का शासक बना, उसने अपनी राजधानी गंगातटीय कन्नौज में स्थानांन्तरित की। कठियाद से बंगाल तक उसके ४१ वर्ष के शासनकाल में भारत का एक महत्वपूर्ण केन्द्र हर्षवर्धन की राजधानी होने के कारण यहां अनेक उत्तम कोटि के भवनों का निर्माण हुआ जो कि अब लुप्त हो गए हैं।
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फ़र्रूख़ाबाद
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६वीं शदी से इस स्थान का महत्व बढ़ा। कन्नौज अनेक शताब्दियों तक महत्व का केन्द्र रहा। दुर्भाग्यवश यह विदेशी आक्रमणकारियों का कोप भाजन हो गया। जो अपने स्वर्णिम इतिहास के साक्षी हैं। पुरानी पोशाक, पुराने परिधान फूलमती मंदिर में आज भी देखे जा सकते हैं। गौरी शंकर मंदिर और निकटस्थ चौधरीपुर क्षेत्र, देवकाली और सलीमपुर ग्राम सभी प्राचीन विरासत के केन्द्र हैं। इन सभी स्थलों पर स्थापत्य कला और मूर्तिकला का अद्वितीय सौंदर्य देखा जा सकता है।
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फ़र्रूख़ाबाद
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८३६ ई० में कन्नौज पर प्रतिहारों का अधिपत्य हो गया। प्रतिहार वंश का अंतिम शासक राज्यपाल था, उसकी राजधानी पर मोहम्मद गजनी के १०१८ ई० में आक्रमण किया। बारा-बार हुए आक्रमणों ने नगर को छिन्न-भिन्न कर दिया जिससे वह पुन: न उभर पाया। मोहम्मद गजनी के ऐतिहासिक वृतान्त उत्वी के अनुसार १०,००० हिन्दू मंदिरों को मोहम्मद की तलवार का शिकार होना पड़ा। १०३० में अलवेरुनी कन्नौज आया, उसने वहां मुस्लिम आबादी का उल्लेख किया है। उसके उल्लेख के अनुसार मुस्लिम आबादी वहां पहले से थी जबकि मुगल शासन आरम्भ भी नहीं हुआ था। तब भी हिन्दू-मुस्लिम शान्ति व सहृदयता से वहां रहते थे। कन्नौज के महाराजा जयचन्द गरवार ११९३ में पराजय तथा वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने मुस्लिम प्रजा पर विशेष कर (तुर्कुश) लगाया जिससे यह स्पष्ट होता है कि मुस्लिम जनसंख्या हिन्दू साम्राज्य में कम थी।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6
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फ़र्रूख़ाबाद
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फतेहगढ़ से उत्तर-पश्चिम दिशा में ४५ किलो मीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसका उल्लेख रामायण, महाभारत में भी पाया जाता है। महाभारत में इसका उल्लेख द्रौपदी के स्वयंवर के समय किया गया है कि राजा द्रुपद ने द्रौपदी स्वयंवर यहां आयोजित किया था। काम्पिल्य पांचाल देश की राजधानी थी। यहां कपिल मुनि का आश्रम है जिसके अनुरुप यह नामकरण प्रसिद्ध हुआ। यह स्थान हिन्दू व जैन दोनों ही के लिए पवित्र है। जैन धर्मग्रन्थों के अनुसार प्रथम तीर्थकर श्री ॠषभदेव ने नगर को बसाया तथा अपना पहला उपदेश दिया। तेरहवें तीर्थकर बिमलदेव ने अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत किया। कम्पिल में अनेकों वैभवशाली मंदिर हैं।
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फ़र्रूख़ाबाद
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समग्रतया सुधार संभव है यदि जिला भारतीय पर्यटन मानचित्र पर लाया जाए। इससे उन्नतिशील परियोजनाएं कुछ गति प्राप्त कर सकती हैं। जिससे नि:सन्देह प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति होगी। अविलम्बावश्यकता क्षेत्र में प्रचार और तत्संबंधी सभी परियोजनाओं को सुचारु रूप से आयोजित व क्रियान्वित करने की है जिसमें वहां की स्थानीय प्रजा सहभागी हो तभी सर्वा प्रगति संभव है।
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धर्मांतरण
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बहाई लोग सभी धर्मों की दिव्य उत्पत्ति को मान्यता देते हैं और यह मानते हैं कि ये धर्म क्रमिक रूप से एक दिव्य योजना के एक भाग के रूप में उत्पन्न हुए (प्रगतिशील प्रकटीकरण), तथा प्रत्येक नया प्रकटीकरण अपने पूर्ववर्तियों का स्थान लेता है और उन्हें पूर्ण करता है। बहाई लोग अपने स्वयं के धर्म को नवीनतम (परंतु अंतिम नहीं) मानते हैं और उनका विश्वास है कि इसकी शिक्षाएं – जो कि मानवता की एकात्मता के सिद्धांत के आस-पास केंद्रित है – वैश्विक समुदाय की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सर्वाधिक उपयुक्त हैं।
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धर्मांतरण
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अधिकांश देशों में, धर्मांतरंण के लिये केवल विश्वास की घोषणा करने वाले एक कार्ड को भरना होता है। इसमें बहाउल्लाह – इस धर्म के संस्थापक – को वर्तमान समय के लिये ईश्वर के दूत मानने, उनकी शिक्षाओं के प्रति जागरूक होने व उन्हें स्वीकार करने, तथा उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं व नियमों के प्रति आज्ञाकारी बनने की घोषणा शामिल होती है।
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धर्मांतरण
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बहाई धर्म में धर्मांतरण के साथ ही सभी ज्ञात धर्मों की आम बुनियाद में स्पष्ट विश्वास, मानवता की एकता और वृहत् स्तर पर समुदाय की सक्रिय सेवा, विशेषतः उन क्षेत्रों में, जिनसे एकता व मैत्री को बढ़ावा मिले, के प्रति एक प्रतिबद्धता शामिल होती है। चूंकि बहाई धर्म में कोई पुरोहित नहीं होते, अतः इस धर्म में आने वाले धर्मांतरितों को सामुदायिक जीवन के सभी पहलुओं में सक्रिय होने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। यहां तक कि हाल ही में धर्मांतरित हुए किसी व्यक्ति को भी स्थानीय आध्यात्मिक सभा (Local Spiritual Assembly) – सामुदयिक स्तर पर मार्गदर्शक बहाई संस्था – में कार्य करने के लिये चुना जा सकता है।
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धर्मांतरण
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हिंदू धर्म धर्मांतरण का समर्थन नहीं करता और इसमें धर्मांतरण के लिये कोई रस्म मौजूद नहीं है। यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है कि कोई व्यक्ति हिंदू कब बनता है क्योंकि हिंदू धर्म ने कभी भी दूसरे धर्मों को अपने प्रतिद्वंद्वियों के रूप में नहीं देखा। अनेक हिंदुओं की धारणा यह है कि ‘हिंदू होने के लिये व्यक्ति को हिंदू के रूप में जन्म लेना पड़ता है’ और ‘यदि कोई व्यक्ति हिंदू के रूप में जन्मा है, तो वह सदा के लिये हिंदू ही रहता है’; हालांकि, भारतीय कानून किसी भी ऐसे व्यक्ति को हिंदू के रूप में मान्यता प्रदान करता है, जो स्वयं को हिंदू घोषित करे। हिंदू धर्म के अनुसार, केवल एक ही परम सत्य है (इस सत्य या ब्राह्मण का ज्ञान न होना ही शोक का कारण है और आत्माएं तब तक पुनर्जन्म के शाश्वत चक्र में फंसी रहती है, जब तक उन्हें इस सत्य का ज्ञान न हो जाए) और सत्य तक “पहुंचने” के अनेक पथ—अन्य धर्मों द्वारा पालन किये जाने वाले पथों सहित— हैं। धर्म के लिये संस्कृत शब्द “मार्ग” का शाब्दिक अर्थ पथ होता है। धर्मांतरण की अवधारणा ही एक विरोधाभास है क्योंकि हिंदू ग्रंथ वेद तथा उपनिषद संपूर्ण विश्व को एक ही सत्य को देवता मानने वाला एक परिवार मानते हैं।
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धर्मांतरण
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हिंदू धर्म में आस्था के पुनः प्रवर्तन का सबसे पहला उल्लेख शंकराचार्य के काल में आठवीं शताब्दी का है, जब जैन धर्म और बौद्ध धर्म प्रभावी बन गए थे। हिंदू धर्म में आक्रमण और सामूहिक धर्मांतरण का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। अनेक पीढ़ियों के संस्कृतीकरण के बाद गुज्जरों, अहोमों और हूणों सहित कई विदेशी समूह हिंदू धर्म में धर्मांतरित हुए। पूरी अठारहवीं शताब्दी के दौरान हुए संस्कृतीकरण के परिणामस्वरूप मणिपुर के आदिवासी समुदाय स्वयं को हिंदू मानने लगे।
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धर्मांतरण
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हाल ही में, हिंदू धर्म से धर्मांतरित हो चुके लोगों का पुनः धर्मांतरण करने की अवधारणा प्रचलित हुई है। यह पुनः धर्मांतरण सदैव ही अन्य प्रमुख धर्मों के प्रचारीकरण (evangelization), धर्म-परिवर्तन तथा धर्मांतरण गतिविधियों के खतरे की प्रतिक्रिया के रूप में ही होता रहा है; अनेक आधुनिक हिंदू उनके धर्म से (किसी भी) अन्य धर्म में धर्मांतरण के विचार के खिलाफ़ हैं। हिंदू पुनर्जागरण आंदोलनों के विकास के परिणामस्वरूप ऐसे लोगों के पुनः धर्मांतरण के कार्य में गति आई है, जो पहले हिंदू थे या जिनके पूर्वज हिंदू रहे थे। आर्य समाज (भारत) तथा परिषद हिंदू धर्म (इंडोनेशिया) जैसे राष्ट्रीय संगठन ऐसे पुनः धर्मांतरणों के द्वारा हिंदू बनने की इच्छा रखने वालों की सहायता करते हैं।
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धर्मांतरण
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अमेरिका में जन्मे हिंदू गुरू, सतगुरू शिवाय सुब्रमुनियस्वामी ने हाऊ टू बिकम अ हिंदू – अ गाइड फॉर सीकर्स एन्ड बॉर्न हिन्दूज़ (How to Become a Hindu - A Guide for Seekers and Born Hindus) शीर्षक से एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में, सुब्रमुनियस्वामी ने उस कार्य, जो उनके अनुसार “हिंदू धर्म में एक नैतिक धर्मांतरण” है, के लिये एक व्यवस्थित पद्धति, हिंदू धर्म में धर्मांतरित होने वाले लोगों के कथन, एक हिंदू वास्तव में क्या होता है, इस बारे में हिंदू प्राधिकारियों द्वारा दी गईं परिभाषाएं आदि प्रस्तुत की हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A3
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धर्मांतरण
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सिख धर्म द्वारा खुले तौर पर धर्म परिवर्तन किये जाने की जानकारी नहीं है, लेकिन इसमें धर्मांतरितों को स्वीकार किया जाता है।
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धर्मांतरण
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जैन धर्म किसी भी ऐसे व्यक्ति को स्वीकार करता है, जो उनके धर्म को अपनाना चाहता हो। जैन धर्म में धर्मांतरित होने की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिये शाकाहारी होना तथा अर्हतों व सिद्धों को अपने तीर्थंकरों के रूप में स्वीकार करना अनिवार्य होता है।
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पूर्णिया
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बिहार सरकार ने वर्ष २०१८ में पूर्णिया में विश्वविद्यालय का पहला सेशन चालू हो गया है। पूर्णिया विश्वविद्यालय के अंतर्गत ४६ कॉलेज हैं जिसका ऐडमिशन ऑनलाइन होता है!
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पूर्णिया
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पूर्णिया हवाई अड्डा, जिसे चुनपुर हवाई अड्डा (एयरफोर्स स्टेशन) के रूप में भी जाना जाता है, छावनी क्षेत्र के भीतर स्थित है। लेकिन केवल सैन्य उपयोग के लिए ही सीमित है। राज्य सरकार के स्तर पर निर्धारित उड़ानों को संचालित करने के लिए हवाई अड्डे के लिए प्रस्ताव व्यापक रूप से चर्चा किए जा रहे हैं। बिहार केे मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने २०१६ में घोषणा किया था की पूर्णिया में एक नया अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनेगा और कार्य अभी भी जारी है।
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